अंतरिक्ष में नया इतिहास रचने को तैयार हैं महिलाएं

इस 21 अक्तूबर को अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में एक नया इतिहास रचा जाएगा। अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में पहली बार दो महिला अंतरिक्ष यात्री स्पेस वॉक करने जा रही हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा पहली बार बिना किसी पुरुष सहयोगी के 15 महिलाओं की टीम को स्पेसवॉक के लिए भेज रही है। 21 अक्तूबर को यह टीम अलग-अलग चरणों में स्पेस वॉक करेगी। ‘ऑल वीमेन स्पेस वॉक ’ नाम की इस ऐतिहासिक स्पेस वॉक को दुनिया भर में लाइव देखा जाएगा। महिलाओं की इस टीम को अंतरिक्ष यात्री क्रिस्टीना कोच और जेसिका मीर लीड करेंगी,क्योंकि इन दोनों महिला अंतरिक्ष यात्रियों के पास अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव है।

अंतरिक्ष यात्री जेसिका मीर मार्च से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र में रह रही हैं। जबकि क्रिस्टीना बीते माह सितंबर में ही वहां पहुंची। 21 अक्तूबर को ये दोनों महिला अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष स्टेशन से बाहर निकलकर उसके सौर पैनल में लगी लिथियम ऑयन बैटरी बदलेगीं। क्रिस्टीना ने ट्वीट किया कि अब तक हुई स्पेस वॉक में पुरुष और महिला अंतरिक्ष यात्री समूह में ऐसे काम करते रहे हैं। ऐसा पहली बार होगा जब समूह में दोनों महिलाएं होंगी। जेसिका मीर ने कहा कि वे ऐतिहासिक अंतरिक्ष चहल कदमी के लिए उत्साहित है। जेसिका ने अपने पूरे गुट को ‘स्पेस सिस्टर्स’ कहकर संबोधित किया। गौरतलब है कि स्पेस वॉक में स्पेसक्राफ्ट की मरम्मत, वैज्ञानिक प्रयोग और नए उपकरणों का परीक्षण होता है।

आप को जानकर हैरानी होगी कि यह स्पेस वॉक मार्च में होनी थी लेकिन अंतरिक्ष केंद्र में मध्यम आकार के स्पेससूट की कमी के कारण इसे रद्द कर दिया गया था। जिस पर हिलेरी क्ंिलटन और अन्य नामी महिला हस्तियों ने नासा की आलोचना की थी क्रिस्टीना कोच ने खुद सूट को कॉन्फिगर किया और उस पर काम किया। अब तक तीन सूट बनकर तैयार हो गए हैं। अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र से महिलाओं का वास्ता बहुत पुराना है। 1940-60 के दरम्यान नासा के स्पेस फ्लाइट रिसर्च में महिलाओं ने निर्णायक योगदान दिया था। इसके बाद 16 जुलाई 1969 को अमेरिका ने पहली मर्तबा चांद पर इंसान को भेजा था। इसी 12 जून को अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने वाशिंगटन में नासा मुख्यालय से लगी गली का नाम बदल कर ‘हिडन फिगर्स वे’ रख दिया। ऐसा नासा ने उन तीन महिला गणितज्ञों के सम्मान में किया जिन्होंने 1940-60 के दौरान नासा के स्पेस फ्लाइट में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला थी। एयरोनॉटिक्स के क्षेत्र में उपलब्धि और योगदान के मामले में वह कई महिलाओं के लिए आदर्श मॉडल रही हैं। भारत में भी अंतरिक्ष विज्ञान में महिलाओं को जिम्मदारी के पद दिए जाने लगे हैं। 12 जून को इसरो प्रमुख डा.के.सिवन ने जब देश को चंद्रयान-2 की जानकारी दी तो उसी समय उन्होंने यह अहम खुलासा भी किया कि यह भारत का पहला अंतरग्रहीय मिशन होगा जिसका संचालन दो महिलाएं करेंगी। एम वनिता को चंद्रयान-2 का प्रोजेक्ट डायरेक्टर और रितु करिधाल को मिशन डायरेक्टर बनाया गया था। बेशक च्रंदयान-2 की सात सितंबर को हार्ड लैंडिग हुई लेकिन वैज्ञानिकों की राय में यह मिशन 95 प्रतिशत सफल हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत में महिला वैज्ञानिकों को यह जिम्मा देकर इसरो ने न केवल देशभर की युवा महत्वाकांक्षी लड़कियों को भी अंतरिक्ष शोध संबंधी क्षेत्र में अधिक रुचि दिखाने और कॅरिअर अपनाने का संदेश ही नहीं दिया बल्कि विज्ञान में महिलाओं को शीर्ष नेतृत्व वाली भूमिका देकर उनकी योग्यता व क्षमताओं पर भी भरोसा जताया है। इसके साथ ही यहां इस बात का उल्लेख करना •ारूरी लग रहा है कि बीते कई सालों से दसवीं की बोर्ड परीक्षा में पास होने वाली लड़कियों की संख्या लडक़ों से अधिक है लेकिन उच्च व उच्चतर कक्षाओं में उनकी संख्या में गिरावट देखी जाती है और विज्ञान पढऩे वाली लड़कियों की संख्या कम होती है। यही नहीं महिला वैज्ञानिकों की संख्या तो और भी कम होती है। इस मुददे पर राष्ट्रीय महिला वैज्ञानिक कांग्रेस में भी चिंता व्यक्त की जाती है। पुरानी सोच कहती है कि विज्ञान व गणित कठिन विषय हैं और ये महिलाओं के लिए नहीं हैं क्योंकि वे कमतर दिमाग वाली होती हैं। नतीजा हमारे सामने है कि समाज ऐसे विषयों के लिए बेटों को प्राथमिकता देता है और लड़कियां पीछे छूट जाती हैं। इसरो की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 में इसरों में 20 प्रतिशत महिलाएं हैं जिनमें से 12 प्रतिशत वैज्ञानिक या तकनीकी भूमिका में हैं। देश में आज भी 14 प्रतिशत लड़कियां ही शोध करती हैं जबकि विश्व में यह आंकड़ा 28.4 प्रतिशत है। नासा में 50 प्रतिशत फ्लाइट डायरेक्टर्स महिलाएं हैं। भारत में करीब पौने तीन लाख टेक्नोलेजिस्ट और इंजीनियर रिसर्च और डवलपमेंट के लिए काम कर रहे हैं और इनमें लड़कियों की संख्या करीब 40,000 है। महिलाओं की कम तादाद के कारण वैज्ञानिक केंद्रों और संस्थानों, शोध संस्थाओं में महिला प्रमुख बहुत ही कम देखने को मिलती हैं और महत्वपूर्ण फैसले लेने वाली समितियों में उनकी मौजूदगी नाममात्र की ही होती है। महिलाओं को विज्ञान,गणित जैसे विषय पढऩे की सलाह नहीं देने के पीछे एक दलील यह भी दी जाती है कि उनका दिमाग पुरुषों से कमतर होता है। इसी कारण उन्हें महत्वपूर्ण आधिकारिक पद व समाज में शाक्तिशाली भूमिका अदा करने से रोका जाता है। लेकिन हाल ही में संज्ञान और न्यूरोलॉजी पर शोध करने वाली ब्रिटिश महिला वैज्ञानिक जीना रिपन ने अपनी किताब ‘जेंडर एंड अवर ब्रेन्स’ में दिमाग की क्षमता पर विश्लेषण किया है और उनका मत है कि महिलाओं और पुरुषों के दिमाग की क्षमता अलग-अलग नहीं होती है। जीना का कहना है, चाल्र्स डार्विन के जमाने से महिलाओं और पुरुषों के दिमाग को अलग-अलग माना जा रहा है। उन्होंने कहा था, महिलाएं अक्षम हैं क्योंकि उनके दिमाग पुरुषों से कमतर हैं इसीलिए उन्हें समाज में शाक्तिशाली भूमिका अदा करने का अधिकार नहीं है। लेकिन ऐसा कोई पैटर्न नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि यह महिला का दिमाग है या पुरुष का। लिंग के आधार पर दिमाग में कुछ अंतर हो सकता है पर बॉयालोजी के आधार पर ताकत की बात को चुनौती देने की जरूरत है। दिमाग के लिए अज्ञानी समाज ताने मारता है,इसके अलावा भी कई कारणों के चलते विज्ञान, गणित, तकनीक, इंजीनियरिंग को बतौर कॅरिअर चुनना लड़कियों की प्राथमिकता नहीं होता और चुन भी लेती हैं तो घरेलू जिम्मेदारियों के कारण कइयों को अपनी नौकरी बीच में ही छोडऩी पड़ती है। घरेलू जिम्मेवारियों के कारण ही अधिकतर महिलाएं लैब में चुनौती वाले काम लेने से बचती हैं। इसरो में काम करने वाली महिला वैज्ञानिक भी इस बात की तस्दीक करती हैं कि घर व इसरों में काम करना आसान नहीं है लेकिन मजबूत इच्छाशाक्ति के चलते व परिवारजनों और दफ्तर के मैत्रीपूर्ण रवैए से ऐसा करना संभव है। समाज में महिला वैज्ञानिकों की रोल मॉडल वाली मजबूत छवि को गढऩे की जरूरत है, इसमें हरेक को भूमिका निभानी चाहिए।