मैं अब मध्य प्रदेश की राजनीति नहीं करूंगा

 

कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह अब भोपाल वापस लौटना नहीं चाहते. अतुल चौरसिया को दिए साक्षात्कार में उन्होंने अपनी भविष्य की राजनीतिक योजना के साथ ही राहुल गांधी की बड़ी भूमिका, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हार, देश की अर्थव्यवस्था से लेकर बाबरी मस्जिद विध्वंस जैसे मसलों पर बेबाकी से अपनी राय रखी.

आपके मुताबिक सितंबर राहुल गांधी को बड़ी भूमिका में आने के लिए आदर्श होगा. क्या आप बताना चाहेंगे कि वह बड़ी भूमिका सरकार में होगी या पार्टी में? 

देखिए, मैंने आम कांग्रेस कार्यकर्ता की भावनाओं को व्यक्त किया है. हर कांग्रेसी चाहता है कि वे आगे आएं. अभी तक वे छात्र संगठन और युवा संगठन का काम देख रहे हैं. कार्यकर्ता चाहते हैं कि वे अब मातृ संगठन के लिए काम करें. 

सलमान खुर्शीद ने भी कहा कि राहुल गांधी अभी तक सजावटी भूमिकाएं ही निभाते रहे हैं, कोई गंभीर काम उन्होंने नहीं किया है.

मेरे ख्याल से उनकी बात को गलत समझा गया. पर अब तो उन्होंने इस पर सफाई दे दी है. 

आपके आक्रामक अभियान और राहुल गांधी के प्रचार के बावजूद यूपी में कांग्रेस बुरी तरह हार गई. कहां चूक हो गई?

हमने यूपी की हार की समीक्षा की है. दो-तीन बातें रहीं. एक तो उत्तर प्रदेश के मतदाता को हम यह विश्वास नहीं दिला पाए कि बसपा के हटने की हालत में हम सरकार बना सकते हैं. सरकार बदलना जरूरी है इस बात के लिए तो हमने मतदाता को तैयार कर लिया था, लेकिन बसपा के मुकाबले कांग्रेस सरकार बना पाएगी यह विश्वास मतदाता को नहीं था. यह हमारी कमजोरी रही. 

सलमान खुर्शीद या बेनी प्रसाद वर्मा द्वारा चुनाव आयोग को दी गई चुनौती ने कांग्रेस को नुकसान नहीं पहुंचाया?  

मैं ऐसा नहीं मानता. मेरा तो यही मानना है कि हमारा संगठन और उत्तर प्रदेश की लीडरशिप जनता के मन में भरोसा पैदा नहीं कर पाई. 

हार के बाद किसी तरह का बदलाव होगा? 

इसकी पूरी संभावना है. जल्द ही बदलाव के बारे में निर्णय किया जाएगा. 

चुनावों के दौरान मीडिया में जो खबरें उड़ीं कि कांग्रेस और सपा के बीच सांठ-गांठ है, उसने कितना नुकसान पहुंचाया? 

मैं नहीं मानता कि इससे कोई नुकसान हुआ है. 

कांग्रेस सेक्युलर विचारधारा वाली पार्टी रही है. लेकिन बटला हाउस से लेकर मुसलिम आरक्षण के मुद्दे पर जिस तरह से आप और बाकी नेता बार-बार बयानबाजी करते रहे वह तुष्टीकरण नहीं तो क्या है? इस तुष्टीकरण के कारण हिंदू मतदाता कांग्रेस से दूर हुआ.

मैं इसे दूसरी तरह से देखता हूं. पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण देने का वादा हमारे 2009 के घोषणापत्र का हिस्सा था. उसी के आधार पर सरकार ने पूरे देश के ओबीसी मुसलमानों को आरक्षण दिया. यह कोई नई बात नहीं थी जिसे हम लोग पहली बार कह रहे थे. हमने तो सरकार के ही निर्णय को प्रचारित किया. 

बटला हाउस के मामले पर आप पीएम और चिदंबरम के खिलाफ क्यों रहे?

बटला हाउस के मामले पर मेरा शुरू से एक विचार था और आज भी मैं उस बात पर कायम हूं. पर अब बटला हाउस कोई मुद्दा नहीं रहा. 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आपने बहुत गहन अभियान चलाया. राहुल गांधी ने पदयात्रा भी की थी. नया भूमि अधिग्रहण बिल लाने का वादा भी आपने किया था. न तो बिल आया न ही अभियान का कोई फायदा हुआ.

भूमि अधिग्रहण बिल आ गया है. वह संसदीय कमेटी के पास पड़ा है. बिल पास होने की एक प्रक्रिया होती है, उस प्रक्रिया को पूरा करके ही नया बिल कानून बनेगा. राहुल जी के अभियान का हमें फायदा हुआ. हमारा वोट शेयर काफी बढ़ा उस इलाके में.   

आपने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अजित सिंह के साथ गठबंधन भी किया. वह भी आपको सीटें नहीं दिलवा पाए. अब खबरंे आ रही हैं कि कांग्रेस अजित सिंह से पीछा छुड़ाना चाहती है. चुनाव से पहले भी ऐसी खबरें थीं कि अजित सिंह ने कांग्रेस का इस्तेमाल किया पर कांग्रेस को कोई फायदा नहीं हुआ.

ऐसा कुछ नहीं है. अजित सिंह हमारे सहयोगी हैं और आगे भी बने रहेंगे. ये बातें गलत हैं. अजित सिंह जी ने और उनके लोगों ने हमारा पूरा सहयोग किया था. 

दस साल पहले जब आप अपने गृहराज्य मध्य प्रदेश में चुनाव हारे थे तब आप अपनी राजनीति भोपाल से दिल्ली लेकर आ गए थे. अब आप उत्तर प्रदेश में असफल हुए हैं, अगले साल आपका राजनीतिक संन्यास भी खत्म हो रहा है और लगभग उसी समय राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, तो क्या आप फिर से दिल्ली से भोपाल का रुख करेंगे?  

हम असफल नहीं हुए हैं. मैं एक बात साफ कर दूं आज कि मैं कभी भी भोपाल की राजनीति में नहीं लौटूंगा, मैं यहां केंद्र की राजनीति में ही रहूंगा. वहां राज्य स्तरीय नेता हैं जो अपना काम कर रहे हैं. 

अखिलेश को लेकर आपकी पार्टी का रवैया बेहद नर्म है, जबकि वे कानून व्यवस्था के मामले में असफल सिद्ध हुए हैं. अपराधी नेता (अमरमणि त्रिपाठी, अभय सिंह और विजय मिश्रा) जेल से बाहर घूमने लगे हैं.

बात ये है कि जिन भी लोगों के नाम आपने लिए हैं वे किसी न किसी रूप में सपा के अंग थे. यह बात यूपी की जनता से छिपी नहीं थी उसके बाद भी जनता ने उन्हें चुना है. किसी भी नई सरकार को छह महीने से साल भर का समय देना चाहिए. 

पर चुनाव से पहले सपा इनसे दूरी बनाकर चल रही थी. अखिलेश यादव ने डीपी यादव को पार्टी में नहीं लेकर खुद को गुंडाराज के विरोधी के रूप में स्थापित किया था.

एक बात याद रखिए कि सपा का जो इतिहास रहा है उसमें इस तरह के असामाजिक लोगों का अहम योगदान रहा है. पीछे भी सपा के काल में इस तरह की घटनाओं की अधिकता रही है. अगर अखिलेश जी इस तरह की घटनाओं और अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं पर लगाम लगा सकें तो वे बधाई के पात्र होंगे. 

सरकार की बात करते हैं. एस.ऐंड.पी. ने भारत की क्रेडिट रेटिंग घटा दी है, टाइम पत्रिका प्रधानमंत्री को अंडरअचीवर कह रही है, बराक ओबामा ने तो देश की निवेश नीति पर ही उंगली उठा दी है. नीतियों के स्तर पर इस तरह का हस्तक्षेप हम पहली बार देख रहे हैं. क्या यह बाजारवादी ताकतों को जरूरत से ज्यादा छूट देने का नतीजा है? कोई भी प्रधानमंत्री पर टिप्पणी कर देता है.

मुझे नहीं पता कि एस.ऐंड.पी. या मूडी जो रेटिंग देती हैं उनका मानक क्या होता है. मुझे इस बात पर आश्चर्य होता है कि स्पेन जिसकी अर्थव्यवस्था डावांडोल है उसे भी एस ऐंड पी ने ट्रिपल बी रेटिंग दी है और भारत को भी. जबकि आज ही आईएमएफ का बयान आया है कि भारत आज भी निवेश के लिए दुनिया भर में तीसरा सबसे आकर्षक स्थान है. आईएमएफ ने तो यहां तक कहा है कि इस समय दुनिया में सिर्फ तीन ही देश ऐसे हैं जिनकी ग्रोथ रेट संतोषजनक है- ब्राजील, चीन और भारत. जहां तक बराक ओबामा साहब का सवाल है तो शायद उन्हें पता नहीं है कि पिछले छह महीने के दौरान सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में हुआ है. पॉलिसी के स्तर पर कोई विदेशी हस्तक्षेप नहीं है. सरकार ने ओबामा के बयान का माकूल जवाब दिया है. स्वयं प्रधानमंत्री ने साफ किया है कि हमारी नीतियां हमारे देश का आंतरिक मसला है. भले ही हमारी ग्रोथ रेट अच्छी है पर पिछले डेढ़ दशक की तुलना में तो यह दर घटी है. वो तो पूरी दुनिया में ही मंदी का असर रहा है. चीन, ब्राजील, रूस सबकी दर में गिरावट आई है.  

एक और उदाहरण हाल में काफी चर्चित रहा है. जरूरत से ज्यादा बाजारवादी नीतियों को बढ़ावा देने का नतीजा है कि मुकेश अंबानी आज प्रधानमंत्री के शिष्टमंडल का न्योता ठुकरा देते हैं. 

ऐसा नहीं है. हो सकता है कोई कारण रहा हो पर ये बात आप क्यों भूल जाते हैं कि मुकेश अंबानी जी ने अपने एजीएम में यह बात कही है कि वे इस वर्ष भारत की अर्थव्यवस्था में एक लाख करोड़ का निवेश करेंगे. 

आपने कहीं कहा कि जहां-जहां ताकतवर क्षेत्रीय नेता नहीं हैं वहां कांग्रेस कमजोर हुई. उत्तर प्रदेश तो गांधी परिवार का ही गढ़ है. वहां दुर्गति क्यों हुई?

हमको क्षेत्रीय नेतृत्व मजबूत करना पड़ेगा. 

ममता बनर्जी पर आपने कठोर टिप्पणी कर दी थी. पार्टी ने भी इस पर फटकार लगाई. आप मानते हैं कि ममता बनर्जी पर बयान देते वक्त आप सीमा पार कर गए थे?

बिल्कुल नहीं. मैंने तो सिर्फ वही कहा था जो बातें पार्टी के लोग बार-बार कह रहे थे. मैं उसी के अनुकूल बोल रहा था. 

तो आप अब भी उन्हें अपरिपक्व और अस्थिर नेता मानते हैं.

मैंने उनके बारे में जो कुछ कहा था उसकी एक-एक बात पर कायम हूं, मैं उसे दोहराना नहीं चाहता. 

प्रियंका गांधी की क्या भूमिका हो सकती है? क्या वे अब भी दो सीटों के प्रबंधन तक ही सीमित रहेंगी. क्यों नहीं उन्हें पूरे यूपी की जिम्मेदारी सौंप दी जाए?

देखिए, प्रियंका जी अभी राजनीति में नहीं हैं. यह खुद उन पर निर्भर करता है कि वे राजनीति में आएं या नहीं. 

राहुल जी के बारे में तो आप लोग चाहते हैं कि वे बड़ी जिम्मेदारी निभाएं लेकिन प्रियंका जी के बारे में फैसला उनके ऊपर क्यों? 

क्योंकि राहुल जी संसद सदस्य हैं, महासचिव भी हैं. उनसे अपेक्षा रखना लाजिमी है. प्रियंका जी राजनीति में ही नहीं हैं तो क्या कहा जाए.

आपके राजनीतिक गुरु रहे अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव को सबसे बड़ा जिम्मेदार ठहराया है.

उनके बीच क्या बात हुई, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन इतना मैं जरूर मानता हूं कि उस समय अगर केंद्र की सरकार सख्त रवैया अपना लेती तो शायद बाबरी मस्जिद नहीं गिरती.