माहवारी के दिन कठिन दिन नहीं हैं

चिकित्सा तथा स्वास्थ्य का संसार बहुत सारी गलतफहमियों और अफवाहों का शिकार रहा है. इसी के चलते बहुत-से नीम हकीमों की दुकानदारी चलती है, झाड़-फूंक वाले बाबाओं-देवताओं की हलवापूरी चलती है और अवैज्ञानिक चमत्कारी दवाइयों का बड़ा बाजार भी चलता है. मिर्गी, दमा, मनोरोगों से लगाकर गुप्तरोग तथा अनेकानेक स्त्री रोगों के इलाज का बड़ा चोर बाजार इसी के चलते खूब चल रहा है. खैर, उसकी बात क्या करूं. इसी तरह की कुछ गलतफहमियों की जरूरी बात करूंगा. आज मैं आपको स्त्री की माहवारी (मेन्स्ट्रयेशन) या रजस्वला होने के बारे में फैली गलतफहमियों तथा अज्ञान के बारे में बताऊंगा. सही बात क्या है, यह तो बताऊंगा ही.

माहवारी होना स्त्री की विलक्षण शारीरिक बनावट का हिस्सा है. दुर्भाग्यवश, मीडिया, विज्ञान जगत तथा समाज ने माहवारी वाले दिनों को ‘स्त्री के वे कठिन दिन’ मानकर ही चर्चित किया है. इसके विपरीत वास्तव में तो माहवारी का आना तो ईश्वर द्वारा स्त्री को मातृत्व का वरदान देने का द्योतक है. मां बनना और मातृत्व की क्षमता स्त्री का ऐसा गुण है जिसे प्रायः पुरुष समझ ही नहीं पाते. मां बन सकने की यह क्षमता स्त्री में बहुत-से हार्मोनों के प्रभाव, अंडाशय से हर माहवारी के बीच गर्भारोपण की तैयारी के लिए अंडा निकलने, तथा इन सबके प्रभाव में गर्भाशय (बच्चेदानी) की झिल्ली के तैयार होने की कहानी है.

‘माहवारी का आना तो ईश्वर द्वारा स्त्री को मातृत्व का वरदान देने का द्योतक है’

माहवारी होना स्त्री के जीवन में स्वास्थ्य की निशानी है. मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि इस सारे तामझाम की बॉस टाइप है. उसके द्वारा ही ईस्ट्रोसन, प्रोजेस्टेरोन आदि हार्मोनों का बनना कंट्रोल होता है. फिर आता है अंडाशय. यहां अंडा बनता है और हर माह बच्चेदानी के अंदर तक पहुंचता है. वहां जाकर यह बच्चेदानी के अंदर की झिल्ली पर बिराजकर शुक्राणु या स्पर्म की प्रतीक्षा करता है. यदि कभी स्पर्म आया और अंडे से मिल पाया तो गर्भ ठहर जाएगा. प्रायः ऐसा नहीं होगा. तब? उस स्थिति मंे गर्भधारण के लिए जो तैयारी हर माह होती है वह बेकार चली जाती है. तब हार्मोनों के प्रभाव में तैयार हुई झिल्ली बच्चेदानी से निकल जाती है. बच्चेदानी की लाइनिंग का टूटकर निकलना ही माहवारी है.

 माहवारी खत्म होने के बाद शरीर फिर से अगले माह बच्चेदानी की झिल्ली तैयार करेगा. फिर हार्मोन काम करेंगे. फिर गर्भधारण होने के तैयारियां महीने भर तक चलेंगी. फिर कुछ नहीं हुआ तो फिर सारी तैयारियों को नेस्तनाबूद करके माहवारी द्वारा बच्चेदानी (गर्भाशय) को अगली साइकिल या चक्र के लिये साफ कर दिया जाएगा. और यह सिलसिला चलता रहेगा. यही स्वस्थ नारी की निशानी भी है. नियमित माहवारी से पता चलता है कि सब ठीक चल रहा है.

जीवन में पहली बार माहवारी के शुरू होने को हम मेनार्के कहते हैं. बच्ची जब किशोरी हो रही है, तब तेरह-चौदह वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते माहवारी शुरू होती है. शुरू में यह अनियमित-सी हो, कम-ज्यादा हो, या दर्द के साथ हो तो बच्ची को समझाएं कि यह सब शीघ्र ही नॉर्मल हो जाएगा. ऐसा भी संभव है कि बिटिया को शुरुआत में तो माहवारी ठीक रही पर दो-तीन वर्ष बाद कुछ माहवारियों में दर्द होने लगा. क्या कुछ गड़बड़ हो रही है? नहीं, यह तो इस बात का लक्षण है कि अब उसकी ओव्हरी अंडा बना रही है. यह शुभ लक्षण है. आपकी बेटी पूर्ण स्वस्थ है और भविष्य में शादी के बाद आराम से मां बन सकेगी. इसलिए बच्ची को डरायें न. मां का दायित्व है कि बिटिया के मन में माहवारी के प्रति भय का भाव न पैदा कर दें. बहुत-सी मांएं इन दिनों में बच्ची को स्कूल नहीं जाने देतीं, आराम करने को कहती हैं. यह गलत है. बच्ची को समझने दें कि यह सब एकदम सामान्य-सी बात है. ये ‘कठिन दिन’ नहीं हैं. यह उसके नाॅर्मल स्वास्थ्य की निशानी है – ऐसा समझाएं.

 जितनी गलतफहमियां और बेकार के भय मेनार्के को लेकर हैं, उससे ज्यादा मेनोपॉज को लेकर हैं. वैसे मेनोपॉज के आसपास स्त्री को बहुत-से ऐसे लक्षण आ सकते हैं जो उसे परेशान करें- मानसिक भी, शारीरिक भी. अचानक ही उसे लगने लगे कि उसके स्त्रीत्व में अधूरापन पैदा हो गया है क्योंकि माहवारी बंद हो गई है. असुरक्षा का भाव. अपनी पहचान खो जाने का डर. बूढ़ी होने की चिंता. और बहुत-सी शारीरिक चीजें भी. जांचें करो तो डाॅक्टर कहे कि आपकी सारी जांचें ठीक हैं. मेनोपॉज होने के करीब पहुंचो तो शुरू में माहवारी कई माह के लिए अनियमित भी हो सकती है. कम आने लगे. देर से आये. फिर वह बंद हो जाती है. पर इसे मेनोपॉज तभी कहेंगे जब लगातार एक साल तक माहवारी न आए. मेनोपॉज के आसपास स्त्री को पति तथा परिवार का बहुत मानसिक सहारा चाहिए. उसे समझें. उसे आश्वस्त किया जाए. अनार तथा साोयाबीन में बहुत ‘एंटीऑक्सीडेंट’ होते हैं. अनार खिलाएं. दस किलो गेहूं के आटे में एक किलो सोयाबीन मिलाकर उसकी रोटियां खाने को दें. मेनोपॉज के बाद हड्डियां ऑस्टोपोरोहिरस के कारण कमजोर हो सकती हैं. कैल्शियम दें. विटामिन डी दें. डॉक्टर से बात करके यह सब तो करें पर मेनोपॉज को भी जीवन का एक पड़ाव ही मानें. इसे सहज स्वीकारें. हां, यह अवश्य याद रखें कि मेनोपॉज के बाद यदि कभी भी, थोड़ी भी माहवारी जैसी या कोई भी ब्लीडिंग हो, रक्तस्राव हो – तुरंत डाॅक्टर से मिलें. मेनोपॉज के बाद जरा सा भी, एक बार भी ब्लीडिंग होना कतई सामान्य बात नहीं है. ऐसा हो तो तुरंत अपनी जांच कराएं. इसे बिलकुल भी नजरअंदाज न करें.