बदल रहे राजस्थान के राजनीतिक समीकरण

भारतीय जनता पार्टी ने दिया कुमारी को बनाया प्रत्याशी, वसुंधरा राजे गुट दंग

राजस्थान के विधानसभा चुनावों को इस बार किसी भी हाल में अनदेखा नहीं किया जा सकेगा। भारतीय जनता पार्टी द्वारा 41 विधानसभा प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करने के बाद राजस्थान में चुनावी सरगर्मी बढ़ गयी है। आश्चर्यजनक यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान की पसंदीदा बड़ी नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को पहली सूची से बाहर रखते हुए दिया कुमारी को जगह दी है।

दिया को लायी थीं वसुंधरा

दिया कुमारी को पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी का पत्ता काटकर प्रत्याशियों की सूची में शामिल किया है। नरपत सिंह इस समय विधायक हैं। राजघराने से सम्बन्ध रखने वाली दिया कुमारी को एक समय में वसुंधरा राजे ही राजनीति में लेकर आयी थीं। मगर अब दिया कुमारी के लिए वसुंधरा से कोई सरोकार नहीं रखती हैं। दिया कुमारी जयपुर की ही हैं। सबसे पहले उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने भरतपुर के सवाई माधोपुर से विधायक प्रत्याशी के रूप में टिकट दिया था। उसके बाद उन्हें 2019 में राजसमन से सांसदी का टिकट दिया, जहाँ से वह वर्तमान में सांसद हैं। अब उन्हें जयपुर के विद्याधर नगर से विधानसभा प्रत्याशी के रूप में चुना गया है।

इस नये कार्यभार को लेकर दिया कुमारी भाजपा का भरपूर आभार व्यक्त कर रही हैं। वह कह रही हैं कि उनके लिए पार्टी का जो भी निर्देश रहेगा, वह उसका पालन करेंगी। हालाँकि वसुंधरा राजे के बदल पर वह कह रही हैं कि ये मीडिया की बनायी बातें हैं। अभी ऐसा कुछ भी नहीं है।

दाँव अपने-अपने

राजस्थान में कांग्रेस अपनी वापसी के प्रयास कर रही है; मगर भाजपा किसी भी हाल में कांग्रेस की यह मनोकामना पूर्ण नहीं होने देना चाहती। भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने राजस्थान में सनातन धर्म को समाप्त करने, संतों को पीटने, सांप्रदायिक दंगे भड़काने एवं मंदिरों को तुड़वाने का प्रयास किया है। भ्रष्टाचार किया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जितनी बार राजस्थान दौरे पर बीते एक साल में गये हैं, उन्होंने लाल डायरी एवं हिन्दुत्व को लेकर ही अधिक बोला है। भाजपा नेता वादे कर रहे हैं कि राज्य में उसकी सरकार बनते ही हिन्दुओं की रक्षा के लिए काम करने के अतिरिक्त भ्रष्टाचार मुक्त विकास करने वाला शासन दिया जाएगा।

मगर अशोक गहलोत कोई छोटे राजनेता नहीं हैं। वह भारतीय जनता पार्टी के हर दाँव का काट जानते हैं। अशोक गहलोत कर्नाटक की तरह राजस्थान की जनता को गारंटी तो दे ही रहे हैं, इसके अतिरिक्त अपने कार्य भी गिना रहे हैं। उन्होंने अपनी पार्टी को विखंडन से बचाने का प्रयास यह कहते हुए कर दिया है कि अब उन्हें मुख्यमंत्री बनने में कोई रुचि नहीं है। इससे उनसे रूठे बैठे सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने के सपनों को पंख लग हैं एवं सचिन पायलट एवं उनके समर्थक प्रसन्न हैं। सचिन जो चाहते हैं, उसकी उम्मीद उन्हें बँधी है।

वसुंधरा की चुप्पी का अर्थ

सन् 2014 में केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद से राजस्थान की इकलौती बड़ी महिला नेता के लिए उलटी गिनती आरंभ हो गयी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनका मनमुटाव किसी से छिपा नहीं है। मगर प्रधानमत्री के सबसे निकट माने जाने वाले अमित शाह जैसे ही 2019 में गृहमंत्री बने, वसुंधरा को बाहर करने का खेल खुलकर सामने आने लगा। भाजपा का वर्तमान नेतृत्व उन्हें घर का भेदी एवं अशोक गहलोत का निकटतम मानता है। कहा तो यह जाता है कि वसुंधरा राजे ने अशोक गहलोत का सम्मान करते हुए भी कभी अपनी पार्टी एवं प्रतिष्ठा को कभी ठेस नहीं पहुँचने दी।

कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे वसुंधरा की अपनी धमक मानते हैं, जो कि वर्तमान नेतृत्व को रास नहीं आ रही थी। कहा जाता है कि वर्तमान नेतृत्व को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह के अतिरिक्त मनमानी किसी भी नेता की पसंद नहीं, चाहे वह कितना भी पुराना हो।

बहरहाल, वसुंधरा अब चुप हैं। उनकी चुप्पी तूफ़ान का संकेत देती है। कहा जा रहा है कि भाजपा राजस्थान में उनके बिना आसानी से जीत नहीं सकेगी।