जनजातीय विश्वविद्यालय में घटाया जा रहा आदिवासियों का प्रतिनिधित्व

सन् 2008 में संसद के इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम-2007 के तहत मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले के अमरकंटक में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी। इस विश्वविद्यालय की स्थापना का मुख्य उद्देश्य आदिवासियों के बौद्धिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक विकास के साथ-साथ उनकी आर्थिक दशा में सुधार करना था।

लेकिन विगत कुछ वर्षों में इस विश्वविद्यालय की स्थापना के मूल उद्देश्यों से परे जाकर आदिवासी छात्र-छात्राओं के प्रतिनिधित्व को काफ़ी कम कर दिया गया है। जिस तरह से विश्वविद्यालय के टीचिंग और नॉन-टीचिंग पदों को भरने में विवाद की स्थिति पैदा की गयी है, उससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या यह सच में आदिवासी विश्वविद्यालय है? क्या आदिवासी विश्वविद्यालय के नाम की आड़ में यहाँ उच्च वर्गों का प्रतिनिधित्व और वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश की जा रही है? विगत चार-पाँच वर्षों से विश्वविद्यालय के टीचिंग और नॉन-टीचिंग पदों पर होने वाली नियुक्तियाँ विवादों में रही हैं। और लगातार यह आरोप लगते रहे हैं कि बिना रोस्टर रजिस्टर तैयार किये आरक्षण नियमों का उल्लंघन कर मनमाने ढंग से नियुक्तियाँ की गयी हैं। 15 जुलाई, 2023 को विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षकों की भर्ती के लिए प्रकाशित एक विज्ञापन पर सवाल उठने लगे।

21 अगस्त, 2023 को एससी प्रकोष्ठ के लाइजन अधिकारी प्रोफेसर तन्मय घोराई ने कुलसचिव को पत्र लिखा कि विश्वविद्यालय द्वारा बिना रोस्टर रजिस्टर बनाये मनमाने तरी$के से नियुक्ति की जा रही है, जो भारत सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा समय-समय पर जारी आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है। कई विभागों में पूर्व से सहायक प्राध्यापक के जिन पदों पर एससी और एसटी के लोग नियुक्त थे, उन पदों के रिक्त होने पर उसे जानबूझकर अनारक्षित और ईडब्ल्यूएस श्रेणी में बदल दिया गया। ऐसे पाँच एससी के लिए और दो एसटी के लिए आरक्षित पदों में बैकलाग के तीन एससी और एक ओबीसी आरक्षित पद पर दिव्यांग की अतिरिक्त शर्त जोड़कर उसकी पूर्ति को दुरूह कर दिया गया।

जनजातीय अध्ययन विभाग में एक भी पद जनजातीय वर्ग के लिए विज्ञापित नहीं किया गया है और न ही पूर्व में किया गया है। इस प्रकार जनजातीय विभाग में एक भी शिक्षक जनजातीय वर्ग का नहीं है। इस पर एसटी प्रकोष्ठ और ओबीसी प्रकोष्ठ ने आपत्ति दर्ज करायी। 23 अगस्त, 2023 को भी शिक्षक संघ ने एससी प्रकोष्ठ के पत्र के हवाले से रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर भर्ती विज्ञापन में विसंगति होने का आरोप लगाते हुए आरक्षित पदों सहित विज्ञापन में अन्य तरह की विसंगतियों को दूर करके 200 प्वाइंट रोस्टर के तहत भर्ती विज्ञापन निकालने का अनुरोध किया था। इसके बाद रोस्टर समिति की पुन: बैठक बुलायी; लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। यह भी सूचना मिली कि बैकलाग पदों में दिव्यांग की शर्त जोड़ने मामले पर भी विरोध होने के बाद आनन-फ़ानन में दो सदस्यीय रोस्टर री-विजिट कमेटी बनायी गयी, जिसमें बाहर से दो एक्सपर्ट आये थे। 01 सितंबर, 2023 को कमेटी की बैठक में दोनों ने स्पष्ट कहा कि बैकलाग आरक्षित पदों में दिव्यांग की शर्त जोड़ना त्रुटि है। इसे सुधार कर दोबारा विज्ञापन निकाला जाए। यह बात बैठक की रिपोर्ट में भी लिखी हुई है। फिर भी उनकी बातों को इनकार कर नियमों का उल्लंघन किया गया।

वहीं दूसरी ओर विश्व दलित परिषद् नामक संस्था ने इस हेर-फेर के विरुद्ध राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में शिकायत कर ज़िम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने और जब तक निराकरण न हो जाए, भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाने का अनुरोध किया है। अनुसूचित जाति आयोग ने मामले को गम्भीरता से लेते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति, यूजीसी के सचिव और शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के सचिव को नोटिस जारी कर सात दिन के भीतर जवाब माँगा था। जवाब देने की तिथि बीत चुकी है; लेकिन आयोग ने रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई कार्यवाही नहीं की थी।

विश्वविद्यालय में ही पूर्व मुख्य छात्रावास अधीक्षक प्रोफेसर नवीन शर्मा आदिवासी छात्र संगठन मध्य प्रदेश के प्रदेश उपाध्यक्ष रोहित सिंह मरावी, जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष इंद्रपाल मरकाम और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह इस पर आपत्ति कर चुके हैं।