बच्चों को डस रहा सोशल मीडिया

बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन है, तो ध्यान दीजिए कि वे उसका सदुपयोग कर रहे हैं या दुरुपयोग? स्‍मार्टफोन फोन सभी के जीवन का अहम हिस्‍सा बन चुका है। लेकिन बच्चों के हाथ में देर तक स्मार्टफोन रहना घातक साबित हो रहा है। सभी स्मार्टफोन में रिचार्ज के साथ इंटरनेट डाटा होना बच्चों के लिए दिलचस्प बना हुआ है, जिसके चलते वो दिन भर सोशल मीडिया और वीडियो गेमों में लगे रहते हैं।

पढ़ाई के नाम पर बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन देने वाले ज़्यादातर माँ-बाप इस बात को जानते हुए भी कि उनका बच्चा सोशल मीडिया पर समय बर्बाद कर रहा, कुछ नहीं कहते। माँ-बाप की यह एक ग़लती बच्चों का जीवन बर्बाद कर रही है। बच्चों को लेकर किये गये एक अध्ययन के मुताबिक, जो बच्चे सोशल मीडिया पर ज़्यादा समय तक एक्टिव रहते हैं या जो बच्चे वीडियो गेम खेलने में ज़्यादा समय बर्बाद करते हैं, उनकी दिमाग़ी सेहत पर बुरा असर पड़ता है।

स्वास्थ्य विशेषजों का सुझाव है कि स्मार्टफोन पर ज़्यादा समय नष्ट करने वाले बच्चे कई बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। वे मोटापा, चिड़चिड़ापन, आलस, अनिद्रा, आँखों की कमज़ोरी जैसी बीमारियों के शिकार होने के साथ-साथ भूख-प्यास न लगने जैसी परेशानियों के शिकार हो रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, आज के समय में 40 फ़ीसदी बच्चे सोशल मीडिया और वीडियो गेम्स में अपना अधिकतर समय बर्बाद कर रहे हैं। शोध रिपोट्र्स की मानें, तो तीन साल से 15 साल तक के 45 फ़ीसदी बच्चे चार से पाँच घंटे हर दिन सोशल मीडिया पर वीडियो देखने और वीडियो गेम खेलने में लगा रहे हैं। भारत में ऐसे बच्चों की संख्या शहरों में ज़्यादा है, जो स्मार्ट फोन पर अपनी पढ़ाई के समय का बड़ा हिस्सा नष्ट कर रहे हैं।

कुछ महीने पहले अमेरिकी सर्जन विवेक मूर्ति ने चेतावनी वाली एक सलाह जारी करके कहा कि सोशल मीडिया बच्‍चों के लिए सुरक्षित नहीं है। उन्होंने कहा कि आजकल बच्चे सोशल मीडिया का काफ़ी ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, जो उनके दिमाग़ को जकड़ रहा है और उनकी दिमाग़ी सेहत को बड़ा नुक़सान पहुँचा रहा है। यह सभी जानते हैं कि बच्चों के लिए सोशल मीडिया सुरक्षित नहीं है। इससे बच्चे न सिर्फ़ बिगड़ सकते हैं, बल्कि बीमार, आलसी और आवारा भी हो सकते हैं। यह बात माँ-बाप को समझने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।

हालाँकि कुछ बच्चे एनड्रायड मोबाइल पर पढ़ाई भी कर रहे हैं और वे काफ़ी कुछ सीख रहे हैं। लेकिन फिर भी मोबाइल को बहुत लम्बे समय तक देखते रहने से आँखों की रोशनी तो कम होती ही है, आँखों का रेटिना कमज़ोर होता है और दिमाग़ में तनाव पैदा होता है। इसलिए पढऩे वाले बच्चों को मोबाइल से सिर्फ़ दो से तीन घंटे ही पढऩा चाहिए। इससे ज़्यादा समय तक मोबाइल का उपयोग करना कई तरह से नुक़सानदायक साबित हो सकता है।

अक्सर देखा जाता है कि बच्चे मोबाइल को छोडऩा नहीं चाहते। वे अगर वीडियों देखने लगते हैं, तो घंटों तक वीडियो देखते रहते हैं और अगर वीडियो गेम खेलने लगते हैं, तो घटों तक खेलते ही रहते हैं। इससे उनका स्ट्रेस भी बढ़ता है, आँखों को भी नुक़सान होता है, एक जगह बैठे या लेटे रहने से शरीर की कोशिकाएँ भी काम करना बन्द कर देती हैं और इससे बच्चे खाना-पीना भी भूल जाते हैं।

आजकल देखा जाता है कि जो बच्चे चल भी नहीं पाते, वे भी मोबाइल देखने के आदि हो जाते हैं। छोटे-छोटे बच्चे मोबाइल के कई फंक्शन ऑन करना जानते हैं। अगर मोबाइल को लॉक कर दो, तो वे उसे भी आसानी से खोल लेते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि इस तकनीकि युग में पैदा हुए बच्चे बहुत समझदार हैं। लेकिन वो लोग यह नहीं समझते कि हर युग के बच्चे अपने युग की टेक्निक से वाक़िफ़ होते हैं; लेकिन आज इस टेक्निक ने बच्चों के शारीरिक विकास और उनकी सेहत से बड़ा खिलवाड़ किया है, जिसके चलते मानसिक रूप से भले ही मज़बूत हों; लेकिन तन-मन से बहुत कमज़ोर होते जा रहे हैं। उनका कॉन्फिडेंट लेवल भी घट रहा है और पढऩे की आदत भी छूटती जा रही है।

बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रेखा कहती हैं कि सोशल मीडिया पर अधिक समय तक सक्रिय रहने वाले बच्चे आभासी दुनिया में भावुक और रिश्तों की दुनिया में कठोर होते जा रहे हैं। इसलिए बच्चों को इस जादुई ख़तरनाक चीज़ से जितनी दूर रखो, उतना अच्छा है। अगर कोई बच्चा मोबाइल से पढ़ाई भी कर रहा है, तो उसे 1-2 घंटे से ज़्यादा मोबाइल से नहीं पढऩा चाहिए। माँ-बाप को चाहिए कि वे बच्चों को ज़्यादातर किताबों से पढऩे का आदि बनाएँ। फिर भी अगर मोबाइल से पढ़ाई करनी ज़रूरी हो, तो ज़्यादा-से-ज़्यादा 2-3 घंटे ही उन्हें सिर्फ़ पढऩे के लिए मोबाइल दें। जब बच्चे मोबाइल से पढ़ाई कर रहे हों, तो उनकी आँखों पर प्रोटेक्टिव लैंस लगाने को कहें। बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर धवल कहते हैं कि कुछ बच्चों में मोबाइल की इतनी बुरी लत लग चुकी है कि वे बीमार होने पर भी मोबाइल देखना नहीं भूलते। हमारे हॉस्पिटल में जो बीमार बच्चे आते हैं, उनमें से अधिकतर में देखा गया है कि उनके हाथ में मोबाइल देने के बाद वो आसानी से इंजेक्शन लगवा लेते हैं। हालाँकि यह ग़लत है; लेकिन जिन बच्चों को मोबाइल में वीडियों देखने की आदत बन चुकी है, उन्हें वीडियो देखे बगैर उनका इलाज करना मुश्किल हो जाता है। कई लोग तो अपने बच्चों की बहुत ज़्यादा मोबाइल देखने की आदत छुड़ाने की सलाह भी माँगते हैं।

डॉक्टर मनीश कहते हैं कि एनड्रायड मोबाइल बच्चों को चुपके से डस रहा है, जिसकी ख़बर माँ-बाप को नहीं लग रही है। समझदार माँ-बाप बच्चों को इस आधुनिक हथियार से अपने बच्चों को दूर रखने की कोशिश करते हैं; लेकिन यह इतना आसान नहीं है। हालाँकि बच्चों को इससे दूर नहीं किया जा सकता, तो इसके ज़्यादा इस्तेमाल से तो रोका ही जा सकता है। आज क़रीब 30 प्रतिशत बच्चे एंग्जायटी और डिप्रेशन के शिकार एनड्रायड फोन पर सोशल मीडिया के इस्तेमाल से हो रहे हैं। एनड्रायड मोबाइल के ज़्यादा इस्तेमाल से बच्चे निगेटिव सोच से भर रहे हैं। मोबाइल हाथ में होने से वो पढऩे से कतराते हैं और किसी काम में उनका मन नहीं लगता। इसलिए ये ज़िम्मेदारी माँ-बाप की है कि वे बच्चों को जब भी मोबाइल इस्तेमाल के लिए दें, तो इस बात का ध्यान रखें कि उनके बच्चे मोबाइल पर क्या कर रहे हैं।

अब तक इसे लेकर किये गये कई अध्ययन किये गये हैं। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि माँ-बाप 3 से 17 साल तक के बच्चों को मोबाइल दूर रखें। अगर बहुत ज़रूरी हो, तो सिर्फ़ ज़रूरत के हिसाब से ही उन्हें फोन दें। यदि बच्चे फोन नहीं छोडऩा चाहते, तो उन्हें खेल-कूद और रचनात्मक कामों में लगाने की कोशिश करें, ताकि उनकी ज़िन्दगी बर्बाद होने से बच सके।