भ्रष्टाचार की खिडक़ी

भारतीय रिजर्व बैंक की 19 मई को 2,000 के नोट प्रचलन से बाहर करने की घोषणा के बाद जहाँ आम जनता ने अपने पास जमा नोटों को बैंकों में जमा करवाना शुरू कर दिया है या कम मूल्य वर्ग की करेंसी में बदलवा रही है, वहीं इस बहाने नक़दी माफ़िया (दलाल) भी ख़ूब सक्रिय हो गया है।

इस पखवाड़े ‘तहलका’ एसआईटी की आवरण कथा इसी विषय पर है। वास्तव में 2,000 रुपये के नोटों को प्रचलन से वापस लेने का आरबीआई का क़दम लोगों को नोटबंदी के भूत की याद दिलाता है, जिनके पास इस मूल्यवर्ग की बड़ी मुद्रा जमा थी। केंद्रीय बैंक ने इस क़दम को उचित ठहराते हुए कहा कि नवंबर, 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के बैंक नोटों को वापस लेने के बाद मुद्रा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए नये बैंक नोट पेश किये गये थे, और अब तक उसने अपना उद्देश्य पूरा कर लिया है। उसने अपनी ‘स्वच्छ नोट नीति’ का भी हवाला देते हुए तर्क दिया कि ये नोट अपने अनुमानित जीवन-काल के अंत के क़रीब थे।

हालाँकि कुछ लोगों के लिए यह घबराहट का कारण बना और ‘कतार में खड़े राष्ट्र की भयावहता की याद दिला दी। यह नोट शुरुआत के समय इसमें लगाये गये नैनो चिप के विचित्र दावों के कारण उपहास का विषय भी बना था। उधर विपरीत परिस्थिति में अवसर तलाश करने वाले दलाल फिर सक्रिय हो गये हैं। मार्च, 2023 तक प्रचलन में बैंक नोटों के कुल मूल्य में 2,000 रुपये के नोटों की हिस्सेदारी 10.8 फ़ीसदी थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आरबीआई की घोषणा, जो कि 2016 की नोटबंदी के ठीक साढ़े छ: साल बाद आयी, जब 15.41 लाख करोड़ रुपये के बैंक नोट बंद कर दिये गये थे, से पहले वाली चिन्ता की भावना पैदा हुई। चिन्ता को बढ़ाने की बात यह रही कि 2,000 रुपये के बैंक नोटों का विनिमय एक समय में बैंकों में 20,000 रुपये और दूरदराज़ के स्थानों में 4,000 रुपये प्रति दिन तक सीमित कर दिया गया है।

‘तहलका एसआईटी’ ने गुप्त कैमरे में दलालों को यह दावा करते हुए रिकॉर्ड किया कि वे इन नोटों को पल भर में बदल सकते हैं। एक दलाल ने दावा किया कि, ‘आरबीआई की घोषणा के 24 घंटे के भीतर मुझे कम मूल्य के नोटों के साथ दो करोड़ रुपये मूल्य के 2,000 रुपये के नोटों के आदान-प्रदान का काम मिला। नि:संदेह, यह सब काला धन था। इस दौरान मैं ऐसे लोगों से मिला हूँ, जिनके कमरे अवैध नक़दी से भरे हुए हैं; सभी 2,000 रुपये के नोटों से।’

दलाल ने नक़ली ग्राहक के रूप में उससे मिलने वाले ‘तहलका रिपोर्टर’ से कहा- ‘मुझ पर विश्वास करो। मैं उसी दिन आपके सभी 2,000 रुपये के नोटों को अन्य मूल्यवर्ग के नोटों के साथ बदलवा दूँगा; लेकिन आपको मुझे कमीशन के रूप में 15 फ़ीसदी का भुगतान करना होगा।’ ग्रेटर नोएडा में ट्रांसपोर्ट का कारोबार करने वाले शख़्त ने बताया कि 2016 में नोटबंदी के दौरान भी उसका नोट बदलने का यह धंधा ख़ूब फला-फूला था। एक अन्य दलाल, जिसे भी फ़र्ज़ी सौदे की पेशकश की गयी थी; शुद्ध हिन्दी में यह दावा करते हुए कि ‘30 करोड़ तक कह दिये हैं मैंने’, नोट बदलने के लिए सहमत हो गया।

सन् 2016 के विमुद्रीकरण के बाद सीबीआई और ईडी ने रद्द किये गये नोटों के अवैध विनिमय और धनशोधन में लिप्त होने के आरोप में कुछ बैंक अधिकारियों सहित कई लोगों को गिरफ़्तार किया था। नक़दी माफ़िया का फिर से उभरना इस अवैध धंधे पर दोबारा कार्रवाई की ज़रूरत को उजागर करता है।