प्रधानमंत्री की स्वर्णिम योजना में करोड़ों का घोटाला

जिस कम्पनी को करोड़ों रुपये में दिया गया प्रवासी मज़दूरों के सर्वेक्षण का ज़िम्मा, वह किसी भी तरह नहीं योग्य। बिना जीएसटी और बिना स्टाफ के फ़र्ज़ी कार्यालय दिखाकर लिया गया ठेका

देश में विकास की लहर चलाने के लिए मोदी सरकार द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों को कई फ़र्ज़ी कम्पनियों ने प्रभावित करने का कार्य किया है। दरअसल इस तरह का फ़र्ज़ीवाड़ा करने वाली कम्पनियों की एक चेन-सी बनी हुई है, जो सरकार की आँखों में धूल झोंककर हर साल करोड़ों रुपये का चूना लगाने का कार्य बख़ूबी कर रही हैं। एक ऐसी ही फ़र्ज़ी कम्पनी भारत सरकार को क़रीब 50 करोड़ का चूना लगा रही है, जिसकी जड़ें अगर खँगाली जाएँ, तो यह घोटाला सैकड़ों करोड़ रुपये का निक़लेगा।

दरअसल भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने इसी साल की शुरुआत में प्रवासी मज़दूरों के सर्वेक्षण का ज़िम्मा ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कन्सल्टेन्ट इंडिया लिमिटेड (बीईसीआईएल) को सौंपा, जिसका कार्यालय सेक्टर-62, नोएडा में स्थापित है। ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कन्सल्टेन्ट इंडिया लिमिटेड (बीईसीआईएल) ने यह ज़िम्मेदारी  उठाकर कासा टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (Kasa Technologies Limited) नाम की एक कम्पनी को दी और कासा टेक्नोलॉजीज लिमिटेड ने इसे नेशनल फेडरेशन फॉर टूरिज्म ऐंड ट्रांसपोर्ट को-ऑपरेटिव्स ऑफ इंडिया लि. (एनएफटीसी) यानी भारतीय राष्ट्रीय पर्यटन एवं परिवहन सहकारी संघ मर्यादित को हस्तांतरित कर दिया। इस कम्पनी ने 15 फरवरी, 2022 को क़रीब 50 करोड़ रुपये का काम बिना किसी निविदा (टेंडर) निकाले पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड (PSAR COMMUNICATION Pvt. Ltd.) को बिना कोई सिक्योरिटी जमा कराये ही दे दिया। यह ठेका नेशनल फेडरेशन ऑफ टूरिज्म एंड ट्रांसपोर्ट कम्पनी ऑपरेटिव्स ऑफ इंडिया लिमिडेट के जिस लेटरहैड के माध्यम से पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित किया गया, उसका हस्तांतरण नंबर एनएफटीसी/बीए/लेबर सर्वे/2022/15 (NFTC/BA/Labour Survey/2022/15) है।

कम्पनी का फ़र्ज़ीवाड़ा

 

अब यहाँ देखने वाली बात यह है कि नेशनल फेडरेशन फॉर टूरिज्म एंड ट्रांसपोर्ट को-ऑपरेटिव्स ऑफ इंडिया लिमिटेड ने प्रवासी मज़दूरों के सर्वेक्षण परियोजना का इतना बड़ा ज़िम्मा जिस पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड को दिया, वह किस हद तक फ़र्ज़ीवाड़ा कर रही है?

दरअसल पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड साल 2020 में बनायी गयी। यह एक फ़र्ज़ी कम्पनी है, जो कि केवल काग़ज़ों पर है। आरओसी के अनुसार, इस कम्पनी के निगमन (इनकॉरपोरेशन) की तारीख़ 09 अक्टूबर, 2020 है। इस कम्पनी को एक दुकान नंबर 23/24, शीतलादेवी सीएचएस, निकट इंडियन ऑयल नगर, अँधेरी पश्चिम, मुम्बई-400053 के पते पर रजिस्टर्ड कराया गया है। इस कम्पनी का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। कम्पनी की अधिकृत पूँजी मात्र एक लाख रुपये है। सबसे बड़ी बात यह है कि पसार के पास अनुबंध प्रदान करने की तारीख़ में कोई जीएसटी नंबर तक मौज़ूद नहीं था। न ही इस कम्पनी में ईएसआई और पीएफ की कोई व्यवस्था है और न ही कोई कर्मचारी इस कम्पनी में काम करता है, जबकि प्रवासी सर्वेक्षण के लिए सैकड़ों कर्मचारियों की ज़रूरत होती है। इसके अलावा कम्पनी में किसी लैंडलाइन टेलीफोन कनेक्शन, किसी बिजली कनेक्शन आदि की जानकारी भी नहीं मिली है। इतने पर भी पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड को क़रीब 50 करोड़ रुपये का काम बड़ी आसानी से बिना किसी जाँच-पड़ताल के नेशनल फेडरेशन फॉर टूरिज्म एंड ट्रांसपोर्ट को-ऑपरेटिव्स प्राइवेट लिमिटेड की मदद से दे दिया गया।

गोपनीय सूत्र बताते हैं कि इस घोटाले की साज़िश नेशनल फेडरेशन फॉर टूरिज्म एंड ट्रांसपोर्ट को-ऑपरेटिव्स प्राइवेट लिमिटेड के कार्यकारी प्रबंध निदेशक की मदद से की गयी। कार्यकारी प्रबंध निदेशक को तत्कालीन चेयरमैन का समर्थन मिला हुआ है। जानकारी के मुताबिक, इस प्रकार के कार्यों के लिए कई लोग इनके सम्पर्क में रहते हैं, जो इनके लिए काम करते हैं। इस तरह ये लोग अपने निहित स्वार्थों के लिए अयोग्य लोगों और अयोग्य व फ़र्ज़ी कम्पनियों को केवल काग़ज़ात के माध्यम बिना किसी जाँच-पड़ताल के लिए फ़र्ज़ी तरीक़े से अति महत्त्वपूर्ण कार्य देकर सरकार को बड़े पैमाने पर चूना लगाकर मोदी सरकार की स्वर्णिम योजनाओं को बदनाम करने और सरकारी धन को चूना लगाने का कार्य कर रहे हैं।

पसार ने दिया अन्य कम्पनी को ठेका

हद तो यह है कि पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड ने सभी नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए इससे क़रीब आधी रक़म में इस महत्त्वपूर्ण काम का ज़िम्मा माँ कामाख्या एसोसिएट्स को 21 फरवरी, 2022 को अपने लेटर हैड नंबर पीएसएआर/2022/03 (PSAR/2022/03) के माध्यम से सौंप दिया। इस हस्तांतरण में सबसे बड़ी कमी तो यह है कि यह काम बिना श्रम मंत्रालय की स्वीकृति के ही अगली कम्पनी को दे दिया गया।

ऊपर से पसार कम्युनिकेशन प्रा. लि. ने इस हस्तांतरण-प्रपत्र में लिखा है कि ‘हम मैसर्स माँ कामाख्या एसोसिएट्स को इस सर्वेक्षण परियोजना को लागू करने के लिए श्रम और रोज़गार मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार आवंटित ज़िले / प्रदेश में पूरी तरह से अधिकृत करते हैं।’ जबकि यह अधिकार भारत सरकार और उसके मंत्रालयों के पास होता है। फिर पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड किसी अन्य कम्पनी को किसी काम के लिए अधिकृत कैसे कर सकती है?

पसार कम्युनिकेशन द्वारा दिया गया रेफरेंस नंबर PSAR/2022/03 है। पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड ने माँ कामाख्या एसोसिएट्स को 500 रुपये प्रति इकाई के हिसाब से काम सौंपा, जिसमें जीएसटी भी शामिल है। पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड ने माँ कामाख्या एसोसिएट्स को काम होने के 30 दिन में भुगतान करने का आश्वासन दिया, जबकि नेशनल फेडरेशन फॉर टूरिज्म ऐंड ट्रांसपोर्ट को-ऑपरेटिव्स ऑफ इंडिया लिमिटेड ने पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड को यही काम 1,000 रुपये प्रति इकाई के हिसाब से दिया था और सर्वे का काम होने के 15 दिन के अन्दर भुगतान का आश्वासन दिया था।

यहाँ देखने वाली बात यह है कि एक फ़र्ज़ी कम्पनी (पसार कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड) घर बैठे-बैठे केवल अधूरे और अयोग्य काग़ज़ात के दम पर तक़रीबन 25 करोड़ रुपये सीधे हज़म करने की योजना बना चुकी है। ज़ाहिर है भारत सरकार के वित्तीय कोष से इतनी बड़ी रक़म निकलने पर इसका बहुत विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

क्या है प्रवासी मज़दूर सर्वेक्षण?

दरअसल भारत सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा अखिल भारतीय सर्वेक्षण के लिए प्रवासी श्रमिक सर्वेक्षण, त्रैमासिक स्थापना आधारित रोज़गार सर्वेक्षण (एक्यूईईएस), घरेलू कामगारों का सर्वेक्षण, पेशेवर कामगार सर्वेक्षण और परिवहन क्षेत्र का सर्वेक्षण आदि काम कराये जाते हैं, ताकि इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों के हित में योजनाएँ बनाकर उन्हें लाभ पहुँचाया जा सके और यह आकलन किया जा सके कि किस क्षेत्र से कितने लोग जुड़े हुए हैं। यह कार्य शासनादेश एवं दिशा-निर्देशों के अनुसार नियमों के दायरे में रहकर प्रामाणिक और उच्च मापदण्ड वाली कम्पनी को ही दिया जाता है। लेकिन कुछ कम्पनियाँ इस काम को सरकार के हाथ से लेकर ऐसी कम्पनियों को हस्तांतरित कर देती हैं, जो या तो काम करने के योग्य नहीं होतीं या फिर फ़र्ज़ी होती हैं। इस तरह फ़र्ज़ीवाड़ा करने वाली कम्पनियों की एक चेन है, जो सरकार को हर साल करोड़ों रुपये का चूना लगाती हैं। इससे पता चलता है कि सरकारी कर्मचारियों और फ़र्ज़ी कम्पनियों के मालिकों के बीच किस तरह की साँठगाँठ है।

(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं।)