‘डाकुओं के डर से मेरे परिवार को कोई भी बचाने नहीं आया’

मध्य प्रदेश के सतना जिले के बिरसिंहपुर नामक कस्बे की रहने वालीं 22 वर्षीय प्रभात कुमारी डाकुओं के आतंक से पीड़ित लोगों में सबसे लोमहर्षक उदाहरण हैं. वे जब 18 साल की थीं तब डाकुओं ने उनके परिवार के 13 लोगों को उनके ही घर में बंद कर के जिंदा जला दिया था. बिछियन नरसंहार के नाम से जाने जाने वाले इस हत्याकांड में प्रभात के पिता लल्लू सिंह गोंड जिंदा बच गए थे. लेकिन चार महीने बाद डाकुओं ने उनकी भी गोली मार कर हत्या कर दी.  

मई, 2009 में हुए बिछियन नरसंहार को अंजाम देने वाला सुंदर पटेल उर्फ रगिया इस घटना के बाद चंबल का सबसे कुख्यात डाकू बन गया था. ददुआ और ठोकिया जैसे गिरोहों का हिस्सा रहा यह डकैत पांच महीने पहले सतना के जंगलों में पुलिस मुठभेड़ में मारा जा चुका है. अपने जीवन की सबसे डरावनी रात को याद करते हुए प्रभात बताती हैं, ‘हमारा परिवार जलता रहा पर गांववालों ने डाकुओं के डर से उनकी मदद नहीं की. मेरी मां, दो भाई,  भाभियां, छोटे भाई-बहन और एक भतीजा, सब जल के मर गए. पिताजी को भी बाद में गोली मार दी.’ 

प्रभात कुमारी अब अपने अतीत की भयावह स्मृतियों से निकलकर एक नई जिंदगी शुरू करना चाहती हैं. तहलका से बातचीत में वे कहती हैं, ‘ मैं ये तो चाहती हूं कि सरकार और पुलिस डाकुओं को पूरी तरह खत्म कर दे पर अब मैं अपना अतीत भूल जाना चाहती हूं.’ अपने पिता के एक मित्र ज्ञानेद्र सिंह के परिवार को ही अपना अभिवावक मान कर उनके साथ रहने वाली प्रभात फिलहाल स्नातक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं दे रहीं हैं और भविष्य में सरकारी अधिकारी बनना चाहती हैं.