‘आईजी पहले अपने भाई को मरवाकर दिखाते’

उन्हें अपने छह बच्चों और पति के साथ बैठकर घर परिवार की बात करते हुए देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि वे भारत के सबसे दुर्दांत और चतुर माने जाने वाले डकैतों, गड़रिया बंधुओं की बहन हैं. ठेठ ग्रामीण परिवेश की इस महिला के बारे में यह सोचना तो और भी मुश्किल है कि वे एक बार लोकसभा चुनाव (2007) लड़ चुकी हैं और इस चुनाव में भाजपा की यशोधरा राजे सिंधिया के खिलाफ उन्हें 60 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. यह शायद रामश्री की जिंदगी का सबसे उजला पक्ष होगा. वे जिंदगी के 12 साल चंबल की अलग-अलग जेलों में गुजार चुकी हैं. उनपर मध्य प्रदेश दस्यु विरोधी अधिनियम के तहत अपने भाइयों की मदद करने से लेकर हत्या और अपहरण तक के 22 मुकदमे दर्ज थे.

शिवपुरी जिले की नरवर तहसील में बसे टुकी गांव में रहने वाली रामश्री कुख्यात गड़रिया गैंग और उन्हें पकड़ने के लिए सालों तक परेशान रही मध्य प्रदेश पुलिस के अथक प्रयासों की साक्षी रही हैं. डकैतों के घर परिवार के सदस्यों की तकलीफें उजागर करते हुए वे बताती हैं, ‘घाटी में जो लोग डाकू बन जाते हैं, उनका जीवन तो तबाह होता ही है पर उनके परिवारवालों की सबसे ज्यादा दुर्दशा होती है.’

गड़रिया गैंग अक्टूबर, 2004 के दौरान तब अचानक चर्चा में आया जब उसने ग्वालियर जिले के भनवारपुरा गांव में 13 गुर्जरों की निर्मम हत्या की थी. भनवारपुरा नरसंहार को याद करते हुए रामश्री कहती हैं, ‘गुर्जरों के मरते ही पुलिस ने मधुमक्खी के छत्ते की तरह हमारे घर को घेर लिया था. फिर हमें पकड़ ले गए. अलग-अलग जेलों में रखा और झूठे मुकदमे लगवा दिए. बच्चे छोटे-छोटे थे और सबको छोड़कर हमें जेल में रहना पड़ा. 12 साल लड़ाई लड़नी पड़ी. पर अंत में जज साहब ने मुझे छोड़ दिया. ‘

गड़रिया गैंग की खास बात यह थी कि दयाराम गड़रिया, रामबाबू गड़रिया, विजय गड़रिया, प्रताप गड़रिया और रघुवीर गड़रिया जैसे इस गैंग के ज्यादातर सदस्य एक ही परिवार के थे. लड़कियों के पैर छू कर उन्हें धन देने और गरीबों की शादियों में पैसा दान करके उन्होंने लोगों के बीच अच्छी छवि बना ली थी. जिसके चलते पुलिस के लिए इनका  सफाया काफी चुनौती पूर्ण काम था.

रामश्री पर हमेशा अपने भाइयों की मदद करने का आरोप लगता रहा. हालांकि वे इन आरोपों को सिरे से खारिज करती हैं, पर यह मानती हैं कि उन्हें जंगल में रहने वाले अपने भाइयों की चिंता रहती थी. वे बताती हैं,  ‘आईजी साहब मुझे उमा भारती के पास भी ले गए थे. तब वे मुख्यमंत्री थीं. उन्होंने भी मुझसे कहा कि मैं अपने भाइयों का पता दूं. आईजी साहब ने भी कहा. सब कहते थे कि मैं अपने भाइयों को मरवा दूं तो मेरे बेटे को एसपी बनवा देंगे…पर मैं हमेशा यही कहती कि पहले तुम अपने भाई को मरवाओ, फिर मुझसे कहना. मैंने अपने भाइयों का कभी बुरा नहीं चाहा पर वे सब अपने कर्मों से मारे गए.’