जीने के रास्ते

संसार में दो तरह के लोग हैं। एक वे, जो जीओ और जीने दो की राह पर चलते हैं; और दूसरे वे, जो ख़ुद तो ऐश-ओ-आराम से जीना चाहते हैं; लेकिन दूसरों को नहीं जीने देना चाहते। ये वे लोग हैं, जो अपने दु:ख से नहीं, बल्कि दूसरों के सुख से दु:खी होते हैं। ऐसे लोग दूसरों को तभी महत्त्व देते हैं, जब दूसरा उनसे हर तरह से प्रबल हो। ये वे लोग हैं, जो ईश्वर प्रदत्त चीज़ें का भी स्वामी ख़ुद को समझते हैं और अपने से कमज़ोर लोगों से इन्हें भी छीन लेना चाहते हैं। इस तरह के आततायी लोग ख़ुद से कमज़ोर लोगों को अपना ग़ुलाम समझते हैं और उनके साथ दुव्र्यवहार करते हैं। लेकिन इन लोगों का अमानवीय व्यवहार इन्हें इतना निकृष्ट और तुच्छ बना देता है, जिससे ये ख़ुद समाज की नज़रों में घृणा का पात्र बन जाते हैं।

अभी एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें एक युवक कुर्सी पर बैठा है और दूसरे किशोर से अपने पैर चटवा रहा है। उसे गालियाँ दे रहा है। उसके पैर पकड़वा रहा है। उसे पैरों में सिर रखने को कह रहा है। इस आपराधिक प्रवृत्ति के युवक का जब इतने से भी जी नहीं भर रहा है, तो उसे पीट रहा है। यहाँ पीडि़त और अत्याचारी, दोनों एक ही धर्म के हैं। फ़र्क़ है, तो इंसानों के मन में पल रहे सबसे बड़े कोढ़ जाति का। फ़िज़ूल की दिमाग़ी ख़ुराफ़ात- ऊँच-नीच का। इसके चलते एक ख़ुद को स्वयंभू उच्च मानता है, और इसी वजह से वह अत्याचारी हो चुका है। वहीं दूसरा ख़ुद को उससे कमज़ोर और नीचा मानता है, और इसी के चलते अत्याचार सह रहा है। उसे डर भी है; इसलिए, क्योंकि उसे सामाजिक और न्यायिक संरक्षण नहीं मिल रहा है। इसके अतिरिक्त वह अत्याचारी प्रवृत्ति का भी नहीं है। आर्थिक रूप से भी कमज़ोर है।

क्या विडम्बना है? दोनों ही मनुष्य हैं। लेकिन यह इस देश में न्यायिक व्यवस्था के रखवालों का खोंट है, जिनकी शह के चलते तथाकथित स्वयंभू लोगों ने ख़ुद को उच्च मान रखा है। इन्हीं न्यायिक संरक्षणवादियों के चलते ऐसे तथाकथित स्वयंभू उच्च लोग अपने से कमज़ोर लोगों पर अत्याचार करते हैं। वास्तव में ये लोग अपनी तथाकथित उच्च सत्ता को बनाये रखना चाहते हैं। न्यायिक पदाधिकारियों और सुशासन के लिए लगी पुलिस को ऐसे कमज़ोर लोगों को संरक्षण देने के साथ-साथ अत्याचारी लोगों को सज़ा देनी चाहिए। क्योंकि ऐसे लोग हर धर्म में हैं और इन्होंने समाज में अपराध के बीज बो रहे हैं, जिसके चलते अच्छे लोगों को हमेशा एक भय बना रहता है।

दूसरी ओर वे लोग हैं, जो जीओ और जीने दो को ही अपना कर्तव्य या ईश्वर का आदेश मानते हैं। ऐसे लोगों के चलते इंसान और इंसानियत दोनों ही ज़िन्दा हैं। ऐसा ही इंसानियत का एक उदाहरण लगभग दो-ढाई माह पहले सीहोर के कुबेश्वर धाम के निकट गोकुलपुरा निवासी शेरू ख़ाँ ने दिया। शेरू ने अपना सारा काम छोडक़र कुबेश्वर धाम मंदिर पर रुद्राक्ष के लिए कई किलोमीटर तक लगी लम्बी लाइन में लगे प्यास से तड़प रहे लोगों को सेवा भाव से श्रम और पैसा ख़र्च करके पानी पिलाया।

कुबेश्वर धाम पर रुद्राक्ष लेने इतने लोग पहुँच गये कि उनकी भूख और प्यास देखकर कुबेश्वर धाम पर बैठे व्यापारियों ने खाने-पीने की चीज़ें के दाम कई-कई गुना बढ़ा दिये। इंसानियत के दुश्मन, धर्म के नाम पर पाखण्ड करने वाले इन अधर्मी और व्यापारिक प्रवृत्ति के लोगों ने पानी की 10 रुपये की बोतल के भी 50 रुपये से लेकर 100 रुपये वसूलने शुरू कर दिये। लेकिन वहीं प्यास से धर्मार्थियों को तड़पता देख गोकुलपुरा निवासी शेरू ख़ाँ ने अपने कुछ दोस्तों की मदद से एक लम्बा पाइप इकट्ठा किया और अपने एक दोस्त के खेत में लगी पानी की मोटर को चालू करके रुद्राक्ष लेने दूर-दराज़ से आये श्रद्धालुओं को पानी पिलाया। यह कैंसर की तरह बन चुके धर्म-कलह और कोढ़ की तरह पनप चुके जातिवाद के मुँह पर एक ऐसा तमाचा है, जो पाखण्डियों और इंसानियत के दुश्मनों के मुँह पर पड़ा है।

लोगों को समझना होगा कि अगर सब एक-दूसरे से सिर्फ़ लूट मचाने वाला व्यापार ही करने लगेंगे। लोगों से दुश्मनी ही करने लगेंगे। अपने से हर कमज़ोर को जाति और धर्म के नाम पर प्रताडि़त करेंगे। इंसानियत, प्यार, भाईचारा और व्यवहार जैसे मूल मानवीय उद्देश्यों को नकारकर जीवित रहने की कोशिश करेंगे, तो सुरक्षित कौन बचेगा? अच्छे लोग कैसे जीवित रहेंगे? सब एक-दूसरे को प्रताडि़त ही नहीं करने लगेंगे? सब एक-दूसरे को मारकर नष्ट नहीं करने लगेंगे? धीरे-धीरे पीडि़त भी एक दिन हथियार नहीं उठा लेंगे?

एक कहावत है कि अच्छा आदमी जब अच्छाई छोड़ता है, तो वह बुरे से भी ज़्यादा ख़तरनाक हो जाता है। इसलिए अत्याचारी प्रवृत्ति के आततायियों को भी अब इंसानियत से रहना चाहिए, अन्यथा एक दिन उन पर भी अत्याचार होंगे, यह तय है। यह मानवीय ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक स्वभाव भी है कि इनमें हर कोई एक-न-एक दिन पलटकर जवाब ज़रूर देते हैं।