गृह मामलों पर संसदीय स्थायी समिति केंद्र के आपराधिक कानून विधेयकों की जांच के लिए करेगी बैठक, व्यभिचार कानून को बहाल करने की सिफारिश कर सकता है पैनल

मौजूदा आपराधिक कानूनों को बदलने के लिए तीन विधेयकों की समीक्षा कर रहे एक संसदीय पैनल ने महत्वपूर्ण संशोधनों का सुझाव पेश किया है, जिन पर शुक्रवार (यानी आज) को एक बैठक में चर्चा होने की संभावना जताई जा रही है।

सूत्रों के अनुसार, अपनी रिपोर्ट में भाजपा सांसद बृज लाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने व्यभिचार कानून को वापस लाने और इसमें लिंग-तटस्थ प्रावधान जोड़ने के साथ-साथ पुरुषों, महिलाओं के बीच बिना सहमति के यौन संबंध को अपराध मानने की सिफारिश की है। रिपोर्ट में पुरुषों, महिलाओं या ट्रांसपर्सन से जुड़ी गैर-सहमति वाली यौन गतिविधियों के साथ-साथ पाशविकता के कृत्यों को भी अपराध घोषित करने की सिफारिश की गयी है। साथ ही रिपोर्ट में अनधिकृत विरोध या प्रदर्शन करने पर सजा को मौजूदा दो साल से घटाकर अधिकतम एक साल करने का भी सुझाव दिया गया है व समिति लापरवाही के कारण मौत के मामलों में सजा को मौजूदा छह महीने से बढ़ाकर पांच साल करने का प्रस्ताव किया गया है।

वहीं भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में संशोधन करने वाले विधेयक में संसद सदस्य व्यभिचार (आईपीसी धारा 497) को फिर से अपराधीकरण की सिफारिश कर रहे हैं। इसे 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपराध मुक्त कर दिया था। संशोधन में लिंग-तटस्थ प्रावधान की शुरुआत भी शामिल हैं।

बता दें, आईपीसी की धारा 377 जो पहले समलैंगिकता को अपराध मानती थी, वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले में कानून के कुछ प्रावधान लागू रहने के साथ आंशिक रूप से रद्द कर दी गई थी। धारा 377 हटाए जाने के बाद पुरूषों, महिलाओं, ट्रांसपर्सन और पाशविकता के कृत्यों के बीच गैर-सहमति वाले यौन संबंध को संबोधित करने के लिए कोई भी प्रावधान नहीं था।

वहीं दूसरी तरफ विपक्षी सदस्यों द्वारा रिपोर्ट पर असहमति जताई जाने की संभावना है। कांग्रेस सांसद पी. चिदंबरम और तृणमूल कांग्रेस सांसद डेरेक ओ ब्रायन सहित कुछ विपक्षी सदस्यों ने 21 अक्टूबर को प्राप्त तीन रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए औस समय का मांग की थी।

आपको बता दें, भारत में आपराधिक न्यायशास्त्र को पूरी तरह से बदलने के उद्देश्य से इन तीन प्रस्तावित आपराधिक कानूनों को अगस्त में संसद के मानसून सत्र में पेश किया गया था। केंद्र सरकार ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को क्रमश- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम से बदलने की मांग की गई है।