खजूरे का हिंदी साहित्य

रे खजूरे…!

जी हुज़ूर!

एक बात बताओगे?

पूछैं हुज़ूर! नाचीज़ ज़ोर लगायी देई, शंका के समाधान में।

यह साहित्य क्या चीज़ है; जानते हो?

अरे सरकार! …ई तौ बहुत पवित्र चीज़ है। कहा जात है कि ई समाज कै आईना है। आनंददायी वस्तु मानी जात है। गुँसाई जी कै रमैन ही देख लिया जाय सरकार! इहै सब साहित्य है।

आजकल कूड़ा साहित्य सुनने में भी आ रह है…; तो पवित्र चीज़ कूड़ा कैसे है?

सरकार! ई आलोचकन कै आपन-आपन विचार और कद के अनुसार मत हैं। जेकर जइसन सोच, ऊ वइसै बोल देत है। पहिले एक जने कहे रहेन कि पन्त वाला साहित्य कूड़ा है।

पल्लव पाती देखि के कह्य दिहे होइहैं। काहे से कि ई पल्लव पाती तो गिर-पडि़ के बाद में कूड़ै तौ होई जात है। आजकल एक जने कहत हयन की प्रेमचंदौ वाला कूड़ा है। हालाँकि आप जौन ऊ मस्तराम पड़त हैं; उहौ कूड़ा है। …अइसन विद्वान लोग बतावत हैं।

अच्छा छोडो, छोड़ो; यह बता खजूरे कि यह कबीरदास कौन था?

सरकार! ऊ विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से जन्म लिहे रहा। …यही से बहुत गियानी रहा। बाद में जोलाहा होई गय रहा। काहे से वोकी माई विधवा रही, जब ऊ भय रहा। …औ सरकार! यही से वोकी माई वोका फेंक दिहे रहिन। ऊ जौन कहानी दुर्जोधन के वीर साथी कर्ण कै रही। यही से तौ कबीर आलोचकन कै नज़र में गड़त रहा।

यह कबीर कौन-सी भाषा में लिखता था?

अरे सरकार! …ऊ तौ अवधी, भोजपुरी, ब्रज, राजस्थानी, मारवाड़ी, पंजाबी, खड़ी बोली, और न जानै कौन-कौन सी भाखा में लिखत रहा। बहुत घुमक्कड़ रहा; यही से बहुतै भाखा सीख लिहे रहा। लेकिन अनपढ़ रहा सरकार! …यही से।

यही से क्या?

जाये देव सरकार!

हम्म…!

खड़ी बोली… हम्म! तो यह खड़ी बोली का आरम्भ कबसे था?

अब देखा जाय तौ आधुनिकै काल में माना जात है सरकार! भारतेंदु बाउ एंका नयी चाल में दौड़ायन; लेकिन पहिलवौं कौनो-कौनो यहमा लिखत रहेन। ऊ आदिकाल में अमीर खुसरो रहा न! …उहौ लिखत रहा। अउरो रहेन केहू-केहू जे लिखत रहेन; लेकिन दूर-दूर कै लोग रहेन।

तो इसका आरम्भ अमीर खुसरो से क्यों नहीं?

अरे सरकार! वोसे कइसे माना जाए सकत है…, ऊ तौ…।

हम्म! …खजूरे यह पहली कहानी कौन सी थी?

ऊ यस है कि यह में बहुतै विवाद है सरकार!

तो बताओ क्या है विवाद?

एकै निर्धारण तौ अब तक ना होय पाय है सरकार! कि पहिली कहानी कौन है? लेकिन गोस्वामी जी कै ‘इन्दुमती’, माधवराव जी कै ‘एक टोकरी भर मिट्टी’, भगवानदास वाली प्लेग कै ‘चुड़ैल’, शुकुल वाली ‘ग्यारह वर्ष का समय’ औ ‘बंग महिला’ कै दुलाई वाली, …यही सब कै चर्चा कीन जात है सरकार! एकरे पहिलवों केहू-केहू कहानी लिखत रहेन। जेहमा इंशाअल्ला खान ई सबसे 100 साल पहिलवैं ‘रानी केतकी की कहानी’ लिखे रहेन।

तो इंशाअल्ला की कहानी पहली कहानी क्यों नहीं?

आजकल केहू-केहू उनके ई कहानी कै चर्चा करत हैं। …ऊ यस रहा सरकार! कि खान साहब लिखे तौ रहेन बहुत पहिले, औ कहानी के नमवै में कहानी धै दिहे रहेन जौन हइकै; लेकिन खाली इहै कै दिहे से कहानी थोड़े न होई जात है। आलोचकन बतावत हैं कि यहमा कहानी कै तत्त्वै न है। काहे से यह में घटनाएँ पायी गयन हैं; औ उहौ समयानुक्रम में निबद्ध है। यही से आलोचकन सब कहिन कि ई तो फिटै न है।

कहानी पढ़े हो यह?

(खजूरा खींसे निपोरकर) ही..ही…ही….; नाहीं सरकार!

अच्छा यह मातृभाषा क्या है?

मातृभाषा मादरी ज़बान होत है सरकार!

मेरी मातृभाषा क्या है?

आजकल तो कौनो न रहि गय सरकार! आजकल तौ खड़ी बोलियै चलत है सरकार! उही में आप बतियौबो करत हैं, औ सपनवौ तौ अब आपके उही भाषा में आवत है। पहिले ई मातृभाषा सबके अलग अलग रहै। केहू कै अवधी, केहू कै भोजपुरी, केहू कै मैथिली, मगही, ब्रजी…, इहै सब।

ठीक है खजूरे! …चलो अब स्नान करता हूँ। तुम गम्भीर अध्येता हो।

आवा जाय हुज़ूर!

(लेखक असम विश्वविद्यालय के रवीन्द्रनाथ टैगोरे स्कूल ऑफ लैंग्वेज एंड कल्चरल स्टडीज में अध्यापक हैं और आधुनिक हिन्दी की छ: लम्बी कविताओं पर जे.एन.यू., दिल्ली से पीएच.डी.

कर रहे हैं)