कड़ी सजा न होने से पनप रहा नशे का व्यापार

मादक द्रव्यों की लत के चलते पिछले दो महीनों में पंजाब के युवाओं की मौत के सरकारी आंकड़ें जो हों लेकिन अब राज्य की जनता तो यही मानती है कि न जाने कितने मर गए। लोक लाज की वजह से ही कई मौतें पुलिस रिकार्ड में नहीं आ पातीं। इसी कारण इस समस्या से सख्ती से निपटने के लिए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने उन्हें भी सजा-ए-मौत देने की सिफारिश की है जो पहली बार इस अपराध में पकड़े गए हैं।

पंजाब में मादक द्रव्यों की लत से निजात दिलाने वाले पुनर्वास केंद्रों और वहां के अधिकारियों-कर्मचारियों और पुलिस की मिलीभगत के चलते राज्य में फिर मादक द्रव्यों का काला जाल फैल रहा है। इस अवैध कारोबार में लगे लोगों पर सख्ती से सज़ा की कोई व्यवस्था न होने से यह धंधा फ ल-फूल रहा है। ज्य़ादातर पुनर्वास केंद्रों में मरीज़ों के लिए उपयुक्त साजो-सामान मसलन पलंग, बिस्तर, डाक्टरी उपकरण आदि का अभाव है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार पंजाब में इलाज के लिए जो मरीज़ आते हैं वे 2016 में सरकारी और निजी अस्पतालों में 1.49 लाख थे। जबकि 2017 में यह तदाद 1.08 ही रही। इस साल के आंकड़े अभी तैयार हो रहे हैं। राज्य में 37 नशामुक्ति केंद्र और 22 पुनर्वास केंद्र हैं। गैर अधिकारिक तौर पर राज्य में तीन लाख से ज्य़ादा मरीज़ नशा लेने की प्रवृति के हैं। राज्य में हमने नशाखोरों की देखभाल के लिए महज 96 नशा मुक्ति निवारण केंद्र और 77 निजी पुनर्वास केंद्र हैं जो अपर्याप्त हैं।

चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन और रिसर्च (पीजीआई) में मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर और मादक द्रव्यों के निवारण व इलाज केंद्र के भी प्रमुख डा. देवाशीष वसु ने बताया कि पीजीआई के नशा निवारण केंद्र में सिर्फ बीस ही बिस्तर हंै और फिलहाल अठारह मरीज़ हैं। हर साल दो हज़ार नए मरीज़ पीजीआई में इलाज के लिए आते हैं और तकरीबन आठ हज़ार मरीज़ जो नशे की अपनी लत छुड़ाना चाहते हैं वे अपनी जांच कराने आते हैं।

डा. बसु का कहना है कि मादक द्रव्यों की लत के शिकार मरीज़ों का इलाज कितना प्रभावी रहा वह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कामयाबी को किस तरह लेते हैं। यदि तीन साल से यह लत पूरी तौर पर छूट जाए तो इसका फीसद महज बीस या तीस फीसद है। यदि बीच-बीच में तलब उठे या मरीज़ दवा लेना बंद कर दे और परिवार में ठीक-ठाक रहे तो यह भी कामयाबी है। यदि समाज में और काम की जगह भी लत की इच्छा न जगे तो यह फीसद चालीस से साठ फीसद भी हो सकता है। लेकिन ये सारी बातें दवाओं के प्रयोग और इससे संबंधित बातों पर मरीज़ की इच्छाशक्ति पर निर्भर करती हैं।

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह तय किया था कि सत्ता में आने के महीने भर में वे राज्य को मादक द्रव्यों के सेवन की आदत से मुक्त कराएंगे। लेकिन वे कामयाब नहीं हुए। तकरीबन डेढ़ साल बाद भी यही लगता है कि समस्या का तो अभी तरीके से पूरा आकलन भी नहीं हुआ है। हल करने की बात तो बाद में आएगी। सरकार के मादक द्रव्यों के प्रसार की रोकथाम के लिए कुछ कदम तो उठाए हैं लेकिन इसके नतीजे उत्साहवर्धक नहीं हैं। पिछले दिनों इस मादक द्रव्यों के धंधा चलाने वालों और समग्लरों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी हुई। इस साल पंजाब में ‘हेरोइन’ की जो मात्रा पकड़ी गई वह दूसरे प्रदेशों की तुलना में सबसे ज्य़ादा है।

चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले दो सालों में पकड़े गए समग्लरों में बहुत कम को सज़ा मिली। पिछले छह महीनों में इस साल पंजाब में पुलिस, बीएसएफ, एनसीबी और दूसरी एजंसियों से 215 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी गई। यह एक रिकार्ड है। जबकि पंजाब पुलिस ने पिछले साल सिर्फ 193 किलोग्राम हेरोइन जब्त की थी। पिछले साल 1,915.7 किलो गांजा भी पुलिस ने पकड़ा था। इस साल के पिछले छह महीनों में 1,817.06 किलोग्राम गांजा पकड़ा जा चुका है।

पंजाब में नशे की लत में जो मरीज़ हैं उनकी खासी बड़ी ताताद है। पिछले कुछ वर्षों में मादक द्रव्यों के सेवियों की तादाद खासी बढ़ गई है। ज़ाहिर हैं इनमें कई तो इससे निजात पाने कें लिए बेताब भी होंगे। इसी कारण इतनी बड़ तादाद में नशेडिय़ों का इलाज खासा कठिन है। तकरीबन चौदह सौ मरीज़ों को विभिन्न नशा निवारण केंद्रों में दाखिल भी कराया गया। ज्य़ादातर निजी तौर पर बने हुए जो नशा प्राथमिकता देते हैं। मोहाली के बाहर खरड़ में गुलमोहर कांपलैक्स में बने आकाश अस्पताल में तो मरीज़ों की लंबी कतार है। यहां दस बिस्तरों की व्यवस्था है। अस्पताल के मेडिकल-इन-चार्ज डा. जीवन बाबू ने बताया।

डा.बाबू के अनुसार जब मरीज़ खासी गंभीर अवस्था में होते हैं तभी उन्हें एडमिट करते हैं। उनका घर से भी ठीक इलाज हो सकता है। इलाज के दौरान जब मरीज़ अपनी लत के बारे में बताए और प्रयास करे तो उसकी वजह यही है कि घर पर उसे ठीक तरह से संभाला नहीं जा पा रहा है। ‘मरीज़ों में आत्म बल की बहुत ज़रूरत होती है। दुर्भाग्य से मरीज़ जब अपने रिश्तेदारों और दास्तों के पास पहुंचता है तो लत फिर लग जाती है। मरीज़ जब फिर व्यसनी होता है तो हमें फिर पुरानी दवाएं शुरू करनी पड़ती हंै।’

एक मरीज़ के संबंधी कुराली के रहने वाले ही भूपिंदर सिंह (बदला हुआ नाम) ने बताया कि उसके बड़े भाई कुछ साल पहले मादक द्रव्य लेने के कारण बीमार पड़े थे उनका परिवार कृषक है। पूरे परिवार की देखभाल भूपिंदर ही करता था। लेकिन कुछ महीने से उनका व्यवहार बदल गया। फिर पता लगा कि वह मादक द्रव्य लेने लगे हैं। उन्हें इलाज के लिए लाया गया। शुरू में तो उन्होंने सहयोग दिया लेकिन बाद में वे फिर मादक द्रव्य लेने लगे। समस्या और बढ़ गई। घर में इतना पैसा नहीं है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करा सकें। वे घर में रहते हैं और उनका इलाज ठीक ठाक तरीके से चल रहा है। लेकिन परिवार को डर है कि कहीं फिर उन्हें लत न लग जाए क्योंकि मादक द्रव्य आसपास यह आसानी से उपलब्ध है। जब तक मरीज़ में आत्मबल नहीं होगा कि उसे यह नशा छोडऩा ही है तब तक उसमें यह संभावना बनी रहेगी कि जैसे ही नशीली वस्तु मिले। उसे वह ले।

नशा निवारण केंद्रों के निजी क्लिनिक यह बताने से बचते हैं कि उन्होंने ने कितने मरीज़ देखे। उनके पास उसकी वजह कानूनी तौर पर है जिसे पंजाब सब्स्टैस यूज़ डिसार्डर ट्रीटमेंट एंड काउंसिलिंग, एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर रूल्स 2011 जाना जाता है। इसके तहत पेशेवर चिकित्सक मरीज़ों के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकते।

पीजीआई, चंडीगढ़ के एक डॉक्टर ने अपना नाम न छापने के अनुरोध के साथ बताया कि ‘नशा लेने वालों की जब हालत बिगड़ जाती है तो उसे संभाल पाना आज भी बहुत कठिन है। इसे संभाल पाना निजी अस्पतालों और सरकारी अस्पतालों, मरीज़ों और उनके परिवारों के प्रयास से ही संभव है।’ जिस तेजी से आज समाज में नशे की लत बढ़ रही है उसे देखते हुए सभी को सजग और हर पल सहयोगी बने रहना होगा।

आधिकारिक आंकड़ों की बात करें तो इस साल जलंधर सिविल अस्पताल और कम्मुनिटी हेल्थसेंटर नूरमहल में तीन हज़ार नशा लेने वाले मरीज़ों की चिकित्सा की गई। पिछले कुछ महीनों मे मरीज़ों की तादाद खासी बढ़ गई है। यह एक अच्छी शुरूआत इसलिए कहीं जाती है क्योंकि ज्य़ादा से ज्य़ादा मरीज़ इलाज के लिए तो आज आ रहे हैं। यानी उनमें जीवन के प्रति उम्मीद की लौ है।

यह पूछने पर कि क्या मादक द्रव्यों के व्यापार से जुड़े लोगों को सजा-ए-मौत देने से क्या इस मसले का हल हो जाएगा। डा. देवाशीष बसु ने कहा कि समाज में मादक द्रव्यों की मादकता का जो असर है उसे एकदम खत्म नहीं किया जा सकता। लेकिन धीरे-धीरे उस पर काबू ज़रूर पाया जा सकता है। कोशिश यही की जाती है कि उसका बढ़ाव न हो।

पंजाब सरकार ने नशा मुक्ति निवारण और पुनर्वास केंद्र मोहाली जाने पर पता चला कि मादक द्रव्यों के लती होकर आने वाले मरीज़ों की तादाद दुगुनी हो गई है। यहां ज्य़ादातर मरीज़ 20-30 आयु वर्ग के हंै। मरीज़ों से दो सौ रुपए लिए जाते हैं। जिसमें इलाज, ठहराव और आधार का पैसा लिया जाता है। कुछ दिन बाद जब मरीज़ खुद को स्वस्थ महसूस करने लगता है तो उस पुनर्वास केंद्र में 50 रुपए रोज़ पर दाखिल किया जाता है। यहां इलाज कम से कम एक महीना चलता है। फिर मरीज़ घर आ जाता है। पूरा इलाज छह महीने और जारी रहता है। बाज़ार में ऐसे ही इलाज की कीमत रुपए एक हज़ार मात्र से रुपए तीन हज़ार मात्र प्रतिदिन है।

‘ज्य़ादातर लोग निजी अस्पतालों में इसलिए जाना चाहते हैं’ क्योंकि एक तो उनका भरोसा सरकारी डाक्टरों पर नहीं होता और वहां जमी भीड़ और गंदगी से उन्हें काफी परेशानी होती है। बताती है डा. अंशु गर्ग जो पंजाब सरकार की डिस्ट्रिक्ट डिएडिक्शन एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर, मोहाली की को-इंचार्ज हैं।

मरीज़ों से बातचीत में बताया कि उन्हें कारावास जैसी हालत में तालाबंद रखा जाता है। गेट पर एक सिपाही और गार्ड तैनात रहते हैं। किसी भी बाहरी व्यक्ति को अंदर आने की मनाही होती है।’ हमें यह सावधानी इसलिए बरतनी पड़ती है जिससे मरीज़ों को दी जा रही दवाओं के बीच कोई मादक दवा कोई बाहरी तत्व इन्हें न दे। पहले कई ऐसी घटनाएं हुई हैं। मरीज़ों को तीसरी-चौथी बार भी इलाज के लिए आना पड़ा है। जीवन संदेश फाउंडेंशन खरड़ में नौ बिस्तर का अस्पताल है। इनका दूसरा केंद्र दिल्ली में है। ‘हम इलाज नहीं करते सिर्फ पुनर्वास केंद्र चलाते हैं’ जहां सलाह के जरिए मरीज़ों की देखभाल करते हैं।

‘गरीब और अमीर, दोनों ही वर्ग के लोग मरीज़ के तौर पर नशा मुक्ति केंद्र पर आते हैं। तीन से पांच साल में दिल्ली में हमने तकरीबन डेढ़ सौ लोगों को स्वस्थ किया है।’ बताते हैं रघुबीर सिंह।