आम और आम

आम आदमी से यह देश पटा पड़ा है, जैसा कि हम सब जानते हैं. यत्र तत्र सर्वत्र आम ही आम नजर आते हैं. खास लोगों की यह आम राय है कि आम के कारण ही यह देश आम हो गया है. मगर विश्वपटल पर देश की जो असली पहचान बनी, आमों के चलते ही बनी है. हिंदुस्तान में उत्थान चाहे जिसका हुआ हो, मगर संख्यावृद्धि तो आमों की हुई, इस बात पर किसी को कोई शक है क्या?

आम तौर पर आम रसीला होता है, पर यह जरूरी नहीं कि आम आदमी आम होने के कारण ऊपर से रसीला दिखे. रोजमर्रा की मुसीबतों से लोहा लेने के कारण आदमी जो आम होता है, वो सख्त हो जाता है. मगर चाहे जितना भी सख्त हो जाए, रहेगा तो आम ही. अंदर से रसीला. कुछ लोग इसे जिजीविषा कहते हैं. यह एक खुला रहस्य है कि कुछ आम लोग ऊपर से तो सख्त होते है,मगर अंदर से उतने ही पिलपिले होते हैं. कुछ ऐसे भी आम होते हैं जो सख्त दिखने की एक्टिंग करते हैं, ताकि कोई उन्हें चूस न सके. आम आदमी का सारा जीवन अपने रस को बचाने की कवायद में ही गुजर जाता है, मगर क्या वो बच पाता है?

 अब यहां एक जिज्ञासा सहसा उछली एक बूंद की तरह से उछली क्या आम आदमी के जीवन में भी रस होता है? रस कैसे नहीं होगा, आजादी के बाद से ही इनको वादा-घोषणा-दिलासा के पत्थर से पकाया जा रहा है. रस तो होगा ही. अब दूसरी जिज्ञासा उछली, क्या आम आदमी का रस उसके लिए ही होता है! चिंतन-मनन खास लोगों का काम है, हम जैसे आम लोगों का नहीं. सो, यह जिज्ञासा उनके हवाले. कुल जमा इतना है कि यह आम आदमी, आम की तरह से सबके जीवन में रस घोलता है. अगर यह न हो तो राजनीति नीरस हो जाए. संसद खामोश हो जाए. नारे न गढे़ जाएं. रैली का रैला न हो. देश हमेशा खुला रहे, कभी बंद न हो. चक्का चलता रहे, कभी जाम न हो. विकास का पत्ता किसके लिए डोले! योजनाओं के अंकुर फिर किसके नाम से फूटे! 

अब इधर आमों के साथ क्या हो रहा है? आम को खास बनाने की कवायद हो रही है. आम को खास-खास महानुभावों का नाम दिया जा रहा है. कमाल है एक आम का नाम तो ‘नवाब’ ही रख दिया गया है . कुछ आम तो सिर्फ विदेशियों को खिलाने के लिए ही उगाए जाते हैं. इन आमों को खास बनते आम लोग बड़ी हसरत भरी निगाहों से देख रहे हैं. वे सोच रहे हैं, अरे आम तो पहले से ही हमारे लिए खास थे, ऐसे में इनको किसके लिए खास बनाया जा रहा है. और जब खास बनाना ही है तो हमें बनाओ, आम तो पहले से ही फलों का राजा है. खास को और खास बनाने की क्या जरूरत! क्या महज खास नाम रखने से कोई आम खास हो जाता है? आम हो सकते हंै, मगर आमजन नहीं. यहां आम आदमी का खास बनने का रास्ता आम नहीं है. यह बात आम लोगों से बेहतर खास लोग जानते हंै. मगर हुजूर आपसे किस अहमक ने कहा कि आम लोगों को खास बनाइए! खास बनाइए या न बनाइए,कम से कम उनका जीवन स्तर थोड़ा सुधार दीजिए. बस. आम तौर पर आम आदमी यही चाहता है. मगर यहां तो वह अपना जीवन स्तर ऊपर उठाने की आरजू लिए ही खुद यहां से उठ जाता है. 

यह कहानी आजादी के बाद से बदस्तूर जारी है. मगर कुछ खास लोगों (नाम न छापने की शर्त पर) का कहना है कि नवउदारीकरण के बाद आम लोगों का जीवन बदला है. आधिकारिक रूप से जिसकी घोषणा हर साल 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से की जाती है. सच है, आम आदमी का जीवन बदला है. पहले उसको चूसा जाता था, अब उसकी चटनी बन रही है.