‘ताकत की दवाओं का मायावी बाजार’

हमारे किस्से, कहानियां, पौराणिक व्याख्यान अफवाह जैसे गल्प तथा लोककथाएं ऐसी जड़ी-बूटियों, जादुई किस्म के पेय पदार्थों और चमत्कारी हकीमी नुस्खों के जिक्र से भरे हैं जिनका सेवन करते ही सात हाथियों के बराबर बल आ जाता है. मनुष्य को सदियों से ही ऐसे जादुई नुस्खों की तलाश रही है जो लेते ही शरीर को ताकत और जोश से भर दें. आदमी पौष्टिक भोजन, फल-फूल, हरी सब्जियों का सेवन, व्यायाम, सात्विक जीवन व्यवहार, खेलकूद आदि के पेचीदे और घुमावदार रास्तों को छोड़कर चोर रास्ते खोजता है. जिस्मानी तथा दिमागी ताकत बढ़ाने के इन ‘शॉर्ट कट्स’ की तलाश करने वाले भोले मूर्खों के लिए सदियों से बाजार में कुछ न कुछ जादुई दवाइयां, पेय पदार्थ, गोलियां बिकती रही हैं. आज तो जीवन यूं भी पूरी तरह से बाजार के कब्जे में है. आज एनर्जी ड्रिंक्स, ताकत और मांसपेशियां बनाने का वादा करने वाले प्रोटीन पाउडर, प्रोटीन ड्रिंक्स, दिन भर चुस्त-दुरुस्त रखने का दावा करने वाली कैप्सूल गोलियों का एक बड़ा लेकिन मायावी बाजार तैयार हो गया है. 

 ताकत देने का दावा करने वाले इन पेय पदार्थों और गोलियों तथा पाउडरों के डिब्बों ने बेहद शातिराना समझदारी से अपने शिकार चुने हैं. कौन हैं इनके शिकार? एक तो बढ़ती उम्र के बच्चे. कौन नहीं चाहता कि उसका बच्चा लंबा और स्वस्थ हो और ऐसा होशियार हो कि हमेशा अव्वल आए. टीवी और प्रिंट मीडिया की आड़ में तैयार मोर्चों से इन शिकारों को बाजार द्वारा ‘सिटिंग डक’ की तरह आसानी से शिकार बनाया जा सकता था. वही किया भी गया. झूठे-सच्चे दावे. दूध में  ‘ताकत तथा विटामिनों से ठसाठस’ भरे डिब्बे दो चम्मच मिलाकर गटागट पी जाने वाले बच्चे जो रातों-रात लंबे हो रहे हैं. वे बच्चे जो कभी पढ़ाई में फिसड्डी थे, बाबर के बेटे का नाम तक याद नहीं कर पाते थे, वे ही आज ऐसे किसी चमत्कारी पाउडर का सेवन करके इतने होशियार हो गए हैं कि बेचारा टीचर भी हैरान रह गया. विज्ञापनों की दुनिया में इन चमत्कारी नुस्खों वाली ताकत भरी चीजों का सेवन करके बच्चे हृष्ट-पुष्ट और होशियार बन रहे हैं. 

‘प्रोटीन ड्रिंक्स का करोड़ों रुपये का बाजार खड़ा कर दिया गया है. मेडिकल की दृष्टि से देखें तो यह बात स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद डरावनी  है’

अब घर-घर में ऐसे बच्चे हैं जो दुबले हैं, मां-बाप को कमजोर प्रतीत होते हैं. जो वैसे तो पढ़ाई में ठीक- ठाक हैं परंतु माता-पिता की वास्तविक महत्वाकांक्षी आशाओं के अनुरूप नहीं हैं. यही मां बाप बाजार जाकर ये डिब्बे उठा लाते हैं. मां को पता नहीं कि ऐसे डिब्बों के सौ ग्राम पाउडर में मात्र सात ग्राम प्रोटीन होती है, दो ग्राम वसा होती है, विटामिन की सस्ती गोलियों के बराबर कुछ यहां-वहां के विटामिन होते हैं और बाकी का कार्बोहाइड्रेट यानी शक्कर जैसी चीजें. बस अब आप इसकी दो-तीन चम्मचें दूध में मिलाकर चमत्कार की उम्मीद में बैठ जाएं तो यह आपकी मूर्खता है. तीन चम्मच में एक ग्राम प्रोटीन भी ठीक से नहीं होती है. और विज्ञापन में जो बच्चा बढ़ता दिखाया जाता है वह? इसे नेताओं के खोखले वादों की भांति मान लें बस. उनको वादा करने से नहीं रोका जा सकता. और हमारे देश में झूठे दावे करने वाले विज्ञापनों को भी. पर सही बात तो यह है कि बच्चे का विकास इनके बूते कतई संभव नहीं है. ये न दें. बच्चे को बढि़या खाना दें. यदि बच्चा कम वजन का है तो रोज दो केले, पचास ग्राम मूंगफली के दाने दें और उसके आटे में तीन-चार चम्मच तेल मिलाकर फिर रोटी पकाएं. यह वजन बढ़ाने का ज्यादा वैज्ञानिक तरीका है. इन डिब्बाबंद ताकत के पाउडरों से कुछ भी उम्मीद न करें. यह तो एक उदाहरण हुआ. दूसरा उदाहरण आंखें खोलने वाला है.

जिम जाना तथा मांसपेशियां (डोले-सोले) बनाना आज की नौजवान पीढ़ी के लिए नशे जैसा है. वे इसके लिए कुछ भी करने को तत्पर हैं. सलमान और ऋतिक जैसा मस्कुलर शरीर बनाने के लिए एक दीवानापन जैसा फैला है चहुंओर. ये इनके दूसरे शिकार हैं. बाजार की ताकतों ने इनकी ताकत की चाहत को खूब भुनाया है. मांसपेशियां बनानी हैं तो खूब अंडे खाओ और प्रोटीन ड्रिंक्स लो, ऐसी ही सलाह दी जाती है जिम में. प्रोटीन पाउडर भी बहुतायत में नए-नए नामों से उपलब्ध हैं. जिम के ट्रेनर समझाते हैं कि मांसपेशियां बनानी हैं तो खूब प्रोटीन खाओ. प्रोटीन ड्रिंक्स का करोड़ों रुपये का बाजार खड़ा कर दिया गया है. मेडिकल दृष्टि से देखें तो यह बात स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद डरावनी है. यदि नौजवान प्रोटीन ही प्रोटीन खाने पर आमादा होगा तो कार्बोहाइड्रेट स्वतः ही कम खाया जाएगा. आपकी भूख तो उतनी ही है, यह खा लो या वह खा लो. नतीजा? कार्बोहाइड्रेट का ‘प्रोटीन स्पेयरिंग’  प्रभाव नहीं रह जाता. कार्बोहाइड्रेट ठीक मात्रा में न मिलने पर इनका शरीर फिर प्रोटीन से ऊर्जा प्राप्त करने लगता है और प्रोटीन जब इतनी ज्यादा इस्तेमाल होती है तो उसके जो एंड प्रोडक्ट्स’ बनते हैं वे किडनी को खराब कर सकते हैं. मांसपेशियां फिर भी नहीं बन पातीं क्योंकि प्रोटीन ड्रिंक्स से प्राप्त अतिरिक्त प्रोटीन तो ऊर्जा बनाने में काम आ जाती है. नतीजा? न खुदा ही मिला, न विसाले सनम. यह सब बेहद अवैज्ञानिक तथा शरीर के लिए हानिकारक है. प्रोटीन ड्रिंक्स तथा पाउडरों के जाल में न फंसें. अब तीसरी और अंतिम बात.

‘एनर्जी ड्रिंक्स’ नामक पेय पदार्थों का भी बड़ा बोलबाला है आजकल. तुरंत ताकत देने वाले पेय, ऐसी गोलियां जो दिन भर आपको चुस्त और दुरुस्त रखती हैं. इस भागदौड़ से भरी जिंदगी में किसको ऐसा चमत्कारी नुस्खा नहीं चाहिए. घर के कामों में खटती औरतें, दफ्तर और घर के बीच भागते अधेड़ लोग, थकान से भरे बूढ़े- सभी को ये एनर्जी ड्रिंक्स आकर्षित करते हैं. ये इनका तीसरा शिकार हैं. तुरंत ताकत कौन दे सकता है? ग्लूकोज पाउडर जैसी कोई चीज या ऐसा नशीला पदार्थ जो आपका मूड बढि़या कर दे. यही सब इन ड्रिंक्स में है. कैफीन इतनी मात्रा में है कि एक-दो ड्रिंक से ज्यादा लिया तो आप इसके आदी हो जाएंगे. नशे की लत न पालें, इनसे बचें. इनके अलावा विटामिन की गोलियों, ताकतवर बनाने वाले कैप्सूलों, टॉनिकों का भी बेहद बड़ा मार्केट है आज. पर उनके मायावी खेलों की चर्चा फिर कभी.