क्या डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में सीबीआई किसी नतीजे पर पहुंच पाएगी?

फोटो साभार : नरेंद्र दाभोलकर के फेसबुक पेज से
फोटो साभार :  नरेंद्र दाभोलकर के फेसबुक पेज से
फोटो साभार : नरेंद्र दाभोलकर के फेसबुक पेज से

बीते 11 जून की शाम के तकरीबन पांच बज रहे थे. पुणे के शिवाजीनगर कोर्ट में न्यायाधीश एनएन शेख का कोर्टरूम खचाखच भरा हुआ था. कोर्ट में पुलिस का अच्छा-खासा बंदोबस्त था. तकरीबन 67 पुलिसकर्मी परिसर और उसके गेट पर पहरा दे रहे  थे. कोर्टरूम के भीतर मौजूद पत्रकार टकटकी लगाए बैठे थे कि आरोपी को कोर्ट में कब लाया जाएगा.  छुट्टी के दिन कोर्ट में पत्रकारों और पुलिस का मजमा इसलिए लगा हुआ था क्योंकि सीबीआई पुणे के चर्चित डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में गिरफ्तार किए गए एक आरोपी डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े को पेश करने वाली थी. आरोपी तावड़े सनातन संस्था से संबंध रखते हैं और उस दिन दिखने में बेहद शांत नजर आ रहे थे. सीबीआई की मानें तो डॉ. दाभोलकर की हत्या की साजिश रचने में तावड़े की भूमिका अहम है.

अदालत में हुई बहस के दौरान अधिवक्ता बीपी राजू ने सीबीआई का पक्ष रखते हुए बताया, ‘तावड़े ईमेल के जरिए इस मामले से जुड़े कुछ अन्य आरोपियों के संपर्क में थे. तर्कवादियों डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे और एमएम कलबुर्गी की हत्या में काले रंग की एक होंडा मोटरसाइकिल इस्तेमाल हुई है जो कि तावड़े की मोटरसाइकिल जैसी ही है.’ उन्होंने बहस में यह भी कहा, ‘कोल्हापुर में गोविंद पानसरे की हत्या उस घर के सामने हुई जिसमें तावड़े रहते थे. तीनों ही हत्याओं में एक ही तरह के कारतूस और एक ही तरह की पिस्तौल का इस्तेमाल हुआ था.’ बहस के दौरान सीबीआई की तरफ से यह भी बताया गया कि तावड़े की गतिविधियों को प्रमाणित करने के लिए उनके पास एक गवाह भी है. इसके बाद न्यायालय ने तावड़े को 16 तारीख तक के लिए सीबीआई की हिरासत में रखने का आदेश दे दिया.

20 अगस्त, 2013 की सुबह सवा सात बजे पुणे के शनिवार पेठ इलाके के पास ओंकारेश्वर पुल पर मोटरसाइकिल सवार दो अज्ञात लोगों ने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी थी. वे घर से टहलने के लिए निकले थे. जहां उनकी हत्या हुई वहां से शनिवार पेठ पुलिस चौकी की दूरी 100 मीटर भी नहीं थी

16 जून को सीबीआई ने डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े को जूडिशियल मजिस्ट्रेट वीबी गुलावे पाटिल की कोर्ट में पेश किया और उनकी हिरासत आठ दिन बढ़ा दिए जाने की मांग की थी. सीबीआई ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि डॉ. दाभोलकर की हत्या के तीन माह पूर्व तावड़े को एक अनजान व्यक्ति के जरिए एक ईमेल मिला था जिसमें लिखा था कि वे दाभोलकर के ऊपर अपना काम केंद्रित करें. हालांकि तावड़े ने उस ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया लेकिन सीबीआई को शक है कि उसने ईमेल में दिए निर्देश के अनुसार काम किया और दाभोलकर की हत्या की योजना बनाई. सीबीआई के वकील ने अदालत में यह भी कहा कि तावड़े जांच में मदद नहीं कर रहे हैं और उसे टालने के लिए सिरदर्द और उल्टी का बहाना बनाते रहते हैं. सीबीआई द्वारा करवाई गई मेडिकल जांच में वे पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं.

सीबीआई ने कोर्ट में कहा कि कोल्हापुर के रहने वाले एक गवाह ने तावड़े और सारंग आकोलकर की इस मामले में पहचान की है. सीबीआई का मानना है कि हत्या को अंजाम देने में इस्तेमाल हुए हथियारों और गोलियों का प्रबंध तावड़े ने किया था और ये गोलियां कर्नाटक के बेलगाम से लाई गई थीं. सीबीआई ने कोर्ट में यह भी बताया कि तावड़े ने साल 2009 में सांगली और गोवा में सनातन संस्था द्वारा लगाए गए हथियारों के प्रशिक्षण शिविर में प्रशिक्षण भी लिया था. इसके अलावा सीबीआई ने अपनी दलील में यह भी कहा कि तावड़े और आकोलकर के बीच ईमेल द्वारा हुए कई संवादों में दो ईमेल ऐसे हैं जिसमंे उन्होंने दाभोलकर के बारे में चर्चा की है. इनमें हथियारों की फैक्टरी स्थापित करने के साथ-साथ ही हिंदुओं के खिलाफ काम करने वाले संगठनों के खिलाफ 15,000 लोगों की एक सेना बनाने का भी जिक्र है.

बताया जाता है कि तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के अगले दिन सनातन संस्था के मुखपत्र ‘सनातन प्रभात’ में लिखा गया, ‘गीता में लिखा है- जो जैसे कर्म करेगा वैसा ही फल भोगेगा इसलिए डॉ. नरेंद्र दाभोलकर को इस तरह की मौत मिली है. वे भाग्यशाली हैं कि किसी बीमारी के चलते बिस्तर पर नहीं मर गए’

वहीं तावड़े के वकील संजीव पुनालेकर ने कहा कि तावड़े और आकोलकर के बीच हुआ ईमेल का आदान-प्रदान 2009 का है, जबकि दाभोलकर की हत्या 2013 में हुई है. सिर्फ शक के अाधार पर इस मामले में किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने तावड़े को 20 जून तक सीबीआई की हिरासत में भेज दिया था. 20 जून को हुई सुनवाई में कोर्ट ने वीरेंद्र तावड़े को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. 

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क्या है सनातन संस्था?

सनातन संस्था की स्थापना करने वाले जयंत बालाजी आठवले को संस्था से जुड़े लोग भगवान नारायण का अवतार मानते हैं. संस्था का उद्देश्य एक हिंदू राष्ट्र का निर्माण करना है. आठवले ने ‘क्षात्रधर्म साधना’ नाम की एक किताब लिखी है.  सनातन संस्था का अपना मुखपत्र भी है, जिसका नाम ‘सनातन प्रभात’ है
सनातन संस्था की स्थापना करने वाले जयंत बालाजी आठवले को संस्था से जुड़े लोग भगवान नारायण का अवतार मानते हैं. संस्था का उद्देश्य एक हिंदू राष्ट्र का निर्माण करना है. आठवले ने ‘क्षात्रधर्म साधना’ नाम की एक किताब लिखी है. सनातन संस्था का अपना मुखपत्र भी है, जिसका नाम ‘सनातन प्रभात’ है

साल 1990 में जयंत बालाजी आठवले ने मुंबई में सायन स्थित अपने घर में सनातन भारतीय संस्कृति संस्था नाम के संगठन की शुरुआत की थी. उन्होंने यह घोषणा की थी कि समाज से दुर्जनों के नाश के लिए और धरती पर ईश्वरीय राज्य की स्थापना के लिए संस्था की स्थापना की है. आठवले ने असल में डॉक्टरी की पढ़ाई की है, जिसके बाद उन्होंने सम्मोहन विद्या सीखी और 197० तक महाराष्ट्र और गोवा के कई इलाकों में वे इसका सामूहिक प्रदर्शन करते थे. इसी दौरान उनकी मुलाकात कुंदा बोरवणकर से हुई, जिनसे उन्होंने शादी कर ली और सम्मोहन पर शोध करनेे के लिए लंदन चले गए. वे करीब सात साल लंदन में रहे और फिर 1978 में भारत आकर आठवले ने क्लीनिकल हिप्नोसिस की क्लिनिक मुंबई में अपने घर से शुरू की.

सनातन संस्था के बारे में जानकारी रखने वाले एक मनोवैज्ञानिक ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया, ‘लोगों का इलाज करते-करते आठवले अध्यात्म और साधना की ओर इतने आकर्षित हो गए कि वे अपने मरीजों से कहने लगे कि वे भगवान से बातें कर सकते हैं और लोगों की समस्याएं सुलझाने के लिए भगवान की सलाह ले सकते हैं. धीरे-धीरे वे लोगों की मनोवैज्ञानिक तकलीफों को सम्मोहन से ठीक करने के बजाय धार्मिक अनुष्ठानों के जरिए ठीक करने की कोशिश करने लगे, उन्हें जप करने के लिए प्रेरित करने लगे और फिर उन्होंने सनातन भारतीय संस्कृति संस्था की शुरुआत की जिसका नाम आगे जाकर सनातन संस्था हो गया.’

वे आगे बताते हैं, ‘सनातन संस्था से जुड़े लोगों को साधक और साधिका कहा जाने लगा, जो आठवले को भगवान की तरह मानते हैं. आठवले सम्मोहन के जरिए लोगों को भ्रमित करने में कामयाब रहे और उनके मानने वालों की संख्या बढ़ती गई. महाराष्ट्र और गोवा में बहुत-से लोग आठवले के पास आने लगे और उनके समर्थक बनते गए.’

साल 2000 में आठवले ने अपनी संस्था के मुखपत्र ‘सनातन प्रभात’ की स्थापना की, जिसमें देश और धर्म की खबरें होती थीं. इसमें साधकों से निरंतर यह कहा जाता था कि देश और धर्म खतरे में है और उन्हें उसे बचाने के लिए कुछ करना है. साधकों से कहा जाता कि आठवले ईश्वर का अवतार हैं और उनका जन्म ईश्वरीय राज्य की स्थापना के लिए हुआ है. ‘सनातन प्रभात’ में साधकों के लिए सुझाव और अादेश दिए जाते हैं जिन्हेंे हर साधक को मानना  होता है. आठवले का अपने साधकों पर इतना प्रभाव माना जाता है कि उनके कहने पर वे अपना जीवन तक त्यागने के लिए तैयार हो जाते हैं. आठवले अपने अनुयायियों को संबोधित करते हुए अक्सर कहा करते थे कि साधक समाज से दुर्जनों के नाश के लिए और  धरती पर ईश्वरीय राज्य की स्थापना के लिए कार्य कर रहे हैं और एक ऐसा राज्य बनाएंगे जहां न तो भ्रष्टाचार होगा और न ही लोकतंत्र. ‘सनातन प्रभात’ के जरिए आठवले अपने साधकों से कहते हैं कि महात्मा गांधी, नेहरू और महात्मा फुले ठीक नहीं थे. उन्होंने देश का कुछ भला नहीं किया और उनके चलते आज समाज को भुगतना पड़ रहा है.

आठवले द्वारा लिखी गई किताब ‘क्षात्रधर्म साधना’ के अनुसार, उनके ईश्वरीय राज्य का संविधान महाभारत और रामायण के मुताबिक होगा. उनके राज्य में सालाना बजट नहीं पेश किया जाएगा और शेयर मार्केट नहीं होगा. वे भारतीय लोकतंत्र को पसंद नहीं करते और न ही उन्हें देश की शिक्षा व्यवस्था, कानून व्यवस्था और पुलिस पसंद है. वे कहते है कि उनका ईश्वरीय राज्य स्थापित होने के बाद वे नई न्यायपालिका बनाएंगे जिसका नाम ‘ईश्वरीय न्याय व्यवस्था’ होगा जहां साधक न्यायाधीश होंगे और वर्तमान में विभिन्न अदालतों में काम करने वाले वकील मुजरिम होंगे और उन पर मुकदमे चलाए जाएंगे. किताब में आठवले ने बताया है कि गुरु और शिष्य का ही रिश्ता जीवन में असली रिश्ता है बाकी माता, पिता, भाई, बहन, पत्नी सब नकली रिश्ते होते हैं, इनका कोई अर्थ नहीं होता. आठवले अपने साधकों को अपने गुरु के सामने नग्नावस्था में जाने को कहते हैं. उनका कहना है कि सभी राजनीतिक पार्टियों और उनके अनुयायियों को खत्म करके ही ईश्वरीय समाज की स्थापना की जा सकती है. किताब में यहां तक कहा गया है कि समाज में साधक होते हैं और दुर्जन होते हैं, ये दुर्जन साधकों को साधना नहीं करने देते और ऐसे लोगों को  टुकड़े-टुकड़े करके मार देना चाहिए. अगर साधक ऐसे दुर्जनों को मारेंगे तो उनकी आध्यात्मिक शक्तियां बढ़ेंगी और उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा.

आठवले अपने साधकों को ‘क्षात्रधर्म साधना’ करने को कहते हैं. वे कहते हैं, ‘मार दो उन लोगों को जो दुर्जन हैं, जो धर्मद्रोही हैं, जो राष्ट्रद्रोही हैं. ऐसे दुर्जनों का अंत कर दो. दुर्जनों से लड़ने को तैयार हो जाओ और अपनी मृत्यु का भय मत रखो.’ कहा जाता है कि संस्था की नजर में हर वह व्यक्ति दुर्जन है जो आठवले को नहीं मानता और साधक नहीं है. साधकों को लाठी, तलवार, बंदूक चलाना भी सिखाया जाता है और ऐसे साधकों को शास्त्रवीर कहा जाता है. गौरतलब है कि सनातन संस्था में ऐसे कई साधक और साधिकाएं हैं जो परिवार से रिश्ते-नाते तोड़कर आठवले की शरण में रहते हैं. उल्लेखनीय है कि ‘सनातन प्रभात’ के जरिए  सनातन संस्था के आश्रम में साधकों को कहा जाता है कि वे खाली माचिस की डिब्बी, भगवान की फोटो, आठवले द्वारा लिखित कुछ साहित्य या फिर उनके कंबल के टुकड़े अपने अंतर्वस्त्र में रखंे जिससे कि कोई ‘शक्ति’ उन पर हमला न कर सके. कई साधकों को ऐसा भ्रम होता है कि कोई उनके साथ बलात्कार कर सकता है और इससे बचने के लिए उन्हें इस तरह के उपाय बताए जाते हैं. किसी साधक या साधिका की काम इच्छा का बढ़ जाना आठवले उन पर ‘शक्तियों’ का हमला मानते हैं और उसका उपचार करने के लिए कई बार उन्हें गर्म सलाख से भेदा जाता है. मिर्ची पाउडर को जलाकर उसका धुआं उन पर उड़ाया जाता है. उन्हें खंभे से बांध दिया जाता है और पीटा भी जाता है.

आठवले अपने साधकों से यह भी आह्वान करते हैं कि वामपंथी, नक्सलवादियों को खत्म करने के लिए उन्हें हिंदू नक्सलवादी बन जाना चाहिए. पिछले कई वर्षों में कई हिंसक घटनाओं से लेकर बम विस्फोट तक की घटनाओं में सनातन संस्था का नाम आया है. वर्ष 2006 में छह जनवरी को रत्नागिरी के एक ईसाई परिवार के घर के बाहर बम धमाका किया गया था और परिवार के एक लड़के की चाकू घोंपकर हत्या कर दी गई थी. आरोप संस्था पर आया था. कहा जाता है कि सनातन संस्था के लोग इस बात से नाराज थे कि उस परिवार ने धर्मांतरण करके ईसाई धर्म अपना लिया था. 17 अक्टूबर, 2009 को सनातन साधकों ने गोवा के मडगांव में नरकासुर दहन के खिलाफ दिवाली के दिन बम धमाका किया था. इस धमाके में मालगोंडा पाटिल और योगेश नाईक नाम के दो साधक मारे गए थे. स्कूटर से बम निकालते वक्त ही वह फट गया था. मामले की जांच नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी कर रही है. मामले के दो आरोपी सारंग अाकोलकर और रुद्र पाटिल फरार हैं. जहां अाकोलकर के तार डॉ. दाभोलकर हत्याकांड से जुड़े हैं, वहीं पाटिल के तार पानसरे और कलबुर्गी की हत्याओं से जुड़े हुए हैं. सिर्फ देश नहीं विदेशों में भी सनातन संस्था का नाम विवादित है.  गौरतलब है कि यूरोपीय देश सर्बिया स्थित सनातन संस्था के आश्रम पर स्थानीय निवासियों ने हमला कर दिया था और वहां की सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया था.[/symple_box]

गौरतलब है कि अदालत ने गोविंद पानसरे हत्याकांड की जांच कर रही स्पेशल इनवेिस्टगेशन टीम को भी पानसरे हत्याकांड की जांच के सिलसिले में तावड़े को हिरासत में लेने के आदेश दिए हैं. यही नहीं, कर्नाटक सीआईडी भी 30 अगस्त, 2015 को कर्नाटक के धारवाड़ में हुई प्रो. एमएम कलबुर्गी की हत्या के सिलसिले में तावड़े की हिरासत की मांग करने वाली है.

सीबीआई के सूत्रों के अनुसार रिटायर सब इंस्पेक्टर मनोहर कदम भी दाभोलकर हत्याकांड के आरोपी तावड़े से साल 2012-13 के दौरान निरंतर संपर्क में थे. सीबीआई को शक है कि न सिर्फ कदम ने डॉ. दाभोलकर पर गोली चलाने वालों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया था बल्कि उन्हें हथियार भी उपलब्ध कराए थे. सीबीआई के अनुसार, कदम ने सारंग आकोलकर और रुद्र पाटिल को साल 2009 में हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया था. हालांकि सीबीआई ने इस मामले में अभी तक कदम से कोई भी अाधिकारिक पूछताछ नहीं की है.

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डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या को हुए लगभग तीन साल हो चुके हैं और मामले में सीबीआई की ओेर से यह पहली गिरफ्तारी है. इसके पहले मामले  में वर्ष 2014 की जनवरी में मनीष नागौरी और विकास खंडेलवाल नाम के दो हथियार तस्करों  को महाराष्ट्र एटीएस ने गिरफ्तार किया था. ये दो युवक अगस्त 2014 से अन्य अापराधिक मामलों में पुलिस हिरासत में थे. बाद में इन्हें दाभोलकर हत्याकांड के सिलसिले में भी गिरफ्तार किया गया. उस वक्त पुणे पुलिस के तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) शाहजी सालुंके ने इन दोनों की गिरफ्तारी को लेकर कहा था कि  बैलिस्टिक रिपोर्ट के अनुसार डॉ. नरेंद्र दाभोलकर पर चलाई हुई गोली नागौरी और खंडेलवाल से जब्त की गई 7.55 बोर की पिस्तौल से चलाई गई है. इन दो गिरफ्तारियों को लेकर बवाल तब मचा जब एक पेशी के दौरान कोर्ट में नागौरी ने तत्कालीन एटीएस प्रमुख राकेश मारिया पर आरोप लगाया कि उन्होंने नागौरी को 25 लाख रुपये की पेशकश देकर दाभोलकर हत्याकांड में अपना जुर्म कबूल करने के लिए कहा था.

गौरतलब है कि 20 अगस्त, 2013 की सुबह सवा सात बजे पुणे के शनिवार पेठ इलाके के पास ओंकारेश्वर पुल पर मोटरसाइकिल सवार दो अज्ञात लोगों ने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी थी. वे घर से टहलने के लिए निकले थे. जहां उनकी हत्या हुई वहां से शनिवार पेठ पुलिस चौकी की दूरी 100 मीटर भी नहीं थी.

शुरुआती दौर में यह मामला पुलिस के पास था लेकिन पुलिस की निष्क्रियता देखते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने पत्रकार केतन तिरोडकर की ओर से दाखिल एक जनहित याचिका का संज्ञान लेते हुए मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. हालांकि सीबीआई का हाल भी पुलिस से कुछ ज्यादा बेहतर नहीं था. मई 2014 में मामला सीबीआई के पास जाने के बाद जांच के प्रति एजेंसी के लचर रवैये को लेकर खुद दाभोलकर परिवार बॉम्बे हाई कोर्ट में आपत्ति उठा चुका है. डॉ. दाभोलकर की बेटी मुक्ता दाभोलकर की ओर से हाई कोर्ट में दायर की गई याचिका में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि शुरुआती दौर में सीबीआई इस मामले की जांच करने के खिलाफ थी लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद उसे यह जांच करनी पड़ी. उन्होंने याचिका में यह भी लिखा था कि सीबीआई ढंग से मामले की जांच नहीं कर रही है और उसके अफसरों के बीच कोई तालमेल नहीं है. इसके अलावा इसी साल मई में बॉम्बे हाई कोर्ट भी मामले की ढीली जांच को लेकर सीबीआई को फटकार लगा चुकी है. इसके बाद पहली बार इस मामले में किसी की गिरफ्तारी हुई है. हालांकि अभी भी यह मामला किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है. इस हत्याकांड को सुलझाने के लिए एजेंसी की ओर से सिर्फ चार सदस्यों की एक टीम बनाई गई है.

डॉ. नरेंद्र दाभोलकर महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मलून समिति के संस्थापक थे और ताउम्र एक तर्कवादी के रूप में अंधश्रद्धा और जादू-टोने  जैसी कुरीतियों के खिलाफ काम करते रहे. इस वजह से उन पर कई बार हमले भी हो चुके थे. उनको अक्सर धमकियां मिलती थीं. लेकिन अंधश्रद्धा के खिलाफ विधानसभा में कानून पारित करने हेतु उनकी पहल के बाद धमकियों का सिलसिला लगातार बढ़ गया था. उन्हें जान से मारने की धमकी भी मिलने लगी थी. साल 2003 में डॉ. दाभोलकर ने अंधश्रद्धा और जादू-टोना विरोध विधेयक का प्रारूप तैयार किया था और विधानसभा में इस विधेयक को पारित कराने हेतु भरसक प्रयास किया था. उनके इस विधेयक को महाराष्ट्र के वारकरी समुदाय के साथ-साथ शिवसेना और भाजपा जैसी पार्टियों का विरोध भी झेलना पड़ा था. विधेयक का विरोध करने वालों के अनुसार, यह विधेयक हिंदू संस्कृति और रीति-रिवाजों का विरोध करता है. डॉ. नरेंद्र दाभोलकर को इस बात का इल्म था कि उनकी जान को खतरा है. इसके बावजूद उन्होंने कभी पुलिस का संरक्षण नहीं लिया था. उनकी हत्या के कुछ दिन बाद ही तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने अंधश्रद्धा और जादू-टोना विरोधी विधेयक विधानसभा में पारित कर दिया था. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, दाभोलकर, पानसरे और कलबुर्गी की हत्या में इस्तेमाल की गई गोलियां पुणे स्थित खड़की एम्युनिशन फैक्टरी की बनी हुई हैं. सभी गोलियों के पीछे ‘केएफ’ लिखा है, जिसका मतलब है- खड़की फैक्टरी. हालांकि कभी इस बात की जांच नहीं की गई. गौरतलब है कि हत्या के इन तीनों ही मामलों में गोलियों की बैलिस्टिक रिपोर्ट बनाने का जिम्मा स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस को दिया गया है. इसके अलावा इन तीनों ही हत्याओं में ‘सनातन संस्था’ नाम का संगठन सवालों के घेरे में है.

 डॉ. दाभोलकर और सनातन संस्था

बताया जाता है कि डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के पहले सनातन संस्था की वेबसाइट पर उनका एक चित्र लगा हुआ था जिस पर लाल रंग का निशान बना था. उनकी हत्या के बाद यह चित्र वेबसाइट से हटा लिया गया. यही नहीं, उनकी हत्या के अगले दिन सनातन संस्था के मुखपत्र ‘सनातन प्रभात’ में लिखा गया, ‘गीता में लिखा है- जो जैसे कर्म करेगा वैसा ही फल भोगेगा इसलिए डॉ. नरेंद्र दाभोलकर को इस तरह की मौत मिली है. वे भाग्यशाली हैं कि किसी बीमारी के चलते बिस्तर पर नहीं मर गए.’

अंधश्रद्धा के खिलाफ डॉ. दाभोलकर की ओेर से चलाई जा रही मुहिम की सनातन संस्था शुरुआती दौर से ही प्रखर विरोधी रही है. सनातन संस्था के साधक मालगोंडा पाटिल, जिसकी गोवा के मडगांव में एक बम विस्फोट को अंजाम देने के दौरान मौत हो गई थी, ने ‘सनातन प्रभात’ में एक लेख लिखा था, जिसमें डॉ. दाभोलकर के बारे में टिप्पणी करते हुए उनके काम की आलोचना की गई थी. उनकी मौत के बाद भी ‘सनातन प्रभात’ में उनके और महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मलून समिति के खिलाफ लगातार टिप्पणियां की जाती रही हैं.

डॉ. दाभोलकर की हत्या के आरोप में सीबीआई की ओर से गिरफ्तार किए गए डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े सनातन संस्था की शाखा हिंदू जनजागृति समिति के सदस्य हैं. तावड़े पेशे से एक ईएनटी (आंख-नाक-गला) डॉक्टर हैं और साल 2002 से हिंदू जनजागृति समिति के लिए काम कर रहे हैं. वे 2002 से 2007 तक कोल्हापुर में कार्यरत थे

डॉ. दाभोलकर की हत्या के आरोप में सीबीआई की ओर से गिरफ्तार किए गए डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े सनातन संस्था की शाखा हिंदू जनजागृति समिति के सदस्य हैं. तावड़े पेशे से ईएनटी (आंख-नाक-गला) डॉक्टर हैं और साल 2002 से हिंदू जनजागृति समिति के लिए काम कर रहे हैं. तावड़े 2002 से 2007 तक कोल्हापुर में कार्यरत थे. उसके बाद 2007 से 2009 तक सतारा में रहे. इसके बाद 2009 से मुंबई के नजदीक पनवेल में रह रहे थे. बीते एक जून को सीबीआई ने तावड़े के पनवेल स्थित घर में और सनातन संस्था के एक अन्य सदस्य सारंग अाकोलकर (जो 2009 में गोवा में हुए मडगांव बम विस्फोट में आरोपी है) के पुणे स्थित घर में छापा मारा था. इसके बाद तावड़े की गिरफ्तारी हुई. गौरतलब है कि सारंग अाकोलकर के तार गोवा बम विस्फोट से जुड़े हुए हैं और वह 2009 से फरार है. मडगांव बम विस्फोट की जांच कर रही नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) अाकोलकर की तलाश में है. एनआईए ने अाकोलकर के खिलाफ इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी कर रखा है लेकिन वह उसे पकड़ने में अभी तक नाकामयाब रही है. सीबीआई भी सारंग अाकोलकर की दाभोलकर हत्याकांड में तलाश कर रही है. उल्लेखनीय है कि पुणे पुलिस की ओर से डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड की जांच के दौरान जारी किया गया स्केच अाकोलकर से मेल खाता है.

‘तहलका’ से बातचीत के दौरान सीबीआई  के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, ‘तावड़े और अाकोलकर के बीच ईमेल द्वारा बातचीत किए जाने के पुख्ता सबूत मिले हैं. तावड़े और अाकोलकर के बीच साल 2008 से 2013 तक ईमेल के जरिए बातचीत हो रही थी. तावड़े की ओर से भेजे गए एक ईमेल में लिखा था कि ‘देसी’ और ‘विदेशी साहित्य’ के लिए एक कारखाना बनाना पड़ेगा और एक दूसरे ईमेल में यह भी लिखा है कि ‘देसी साहित्य’ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में मिलेगा जबकि ‘विदेशी साहित्य’ असम में मिलेगा.’ सीबीआई के अनुसार, ‘देसी साहित्य’ और ‘विदेशी साहित्य’ का मतलब देसी और विदेशी पिस्तौल से था.

सीबीआई से जुड़े एक सूत्र के अनुसार, डॉ. दाभोलकर की हत्या की साजिश रचने के पीछे  हिंदू जनजागृति समिति का हाथ है. इसमें चार लोग अहम भूमिका में थे. दो ने साजिश रची है और दो ने हत्या को अंजाम दिया है. मौजूदा जानकारी के अनुसार तावड़े  साजिश रचने में  एक अहम किरदार है और दाभोलकर की हत्या को अंजाम देने में अाकोलकर का हाथ है.

डॉ. दाभोलकर के पुत्र हमीद दाभोलकर ‘तहलका’ से बातचीत में कहते हैं, ‘तावड़े ने मेरे पिता के कार्यों का कोल्हापुर और सतारा दोनों ही जगह प्रखर विरोध किया है, नदियों में गणेश  चतुर्थी के दौरान मूर्तियां विसर्जित करने के खिलाफ उनकी मुहिम का तावड़े ने बढ़-चढ़ कर विरोध किया था. इसके अलावा सनातन संस्था के वकील संजीव पुनालेकर जो कि इस मामले में तावड़े की पैरवी कर रहे हैं सारंग अाकोलकर के लगातार संपर्क में हैं.’  दरअसल तावड़े और अाकोलकर के घरों पर सीबीआई के छापों के बाद मुंबई में हिंदू जनजागृति समिति द्वारा की गई एक पत्रकार वार्ता के दौरान सनातन संस्था के वकील संजीव पुनालेकर ने अाकोलकर के उनसे संपर्क में बने रहने की बात कही थी. हमीद यह भी कहते हैं, ‘इस मामले में वैसे ही आरोपियों को पकड़ने में बहुत देर हो चुकी है. तावड़े से तो शुरुआत हुई है लेकिन अब जांच एजेंसी और सरकार को जल्द से जल्द मामले की तह तक पहुंचकर बाकी अपराधियों को गिरफ्तार करना चाहिए.’

पुनालेकर  ‘तहलका’ से बातचीत के दौरान कहते हैं,  ‘अाकोलकर एक आरोपी हैं और कोई भी आरोपी कानूनी रूप से अपने वकील के संपर्क में रह सकता है. जहां तक तावड़े के खिलाफ सीबीआई के गवाह की बात है तो उसके बारे में हमें पूरी जानकारी है कि वह गवाह कौन है. उनके खिलाफ धोखाधड़ी और महिलाओं के उत्पीड़न के मामले दर्ज हैं. वे खुद एक हिंदूवादी संगठन में थे लेकिन पैसों के हेर-फेर के आरोप में उन्हें संगठन से निकाल दिया गया था. हम आने वाले दिनों में इससे पर्दा उठाएंगे.’

‘वीरेंद्र तावड़े के खिलाफ गवाही देने वाले व्यक्ति का नाम सादविलकर है. यह एक भ्रष्ट व्यक्ति है. सादविलकर ने कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर में चांदी का रथ बनाने में घोटाला किया था. ऐसे व्यक्ति की गवाही मानना सीबीआई की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है और यह भाजपा सरकार के लिए भी बदनामी की बात है’ 

इसके बाद 17 जून को हुई पत्रकार वार्ता में सनातन संस्था की ओर से दावा किया गया कि सनातन साधक वीरेंद्र सिंह तावड़े के खिलाफ दाभोलकर हत्याकांड में सीबीआई का गवाह बनने वाला खुद एक अपराधी है और कोल्हापुर में अपनी असामाजिक गतिविधियों  के लिए मशहूर है. सनातन  संस्था के प्रवक्ता अभय वर्तक कहते हैं, ‘वीरेंद्र तावड़े के खिलाफ गवाही देने वाले व्यक्ति का नाम सादविलकर है. यह एक भ्रष्ट व्यक्ति है, ऐसे व्यक्ति की गवाही मानना सीबीआई की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है और यह भाजपा सरकार के लिए भी बदनामी की बात है.’ सनातन संस्था के अनुसार, सादविलकर ने कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर में चांदी का रथ बनाने में घोटाला किया था. सनातन संस्था की शाखा हिंदू विधिनिद्य परिषद के वकील संजीव पुनालेकर के अनुसार, सादविलकर ने जमीन हड़पने, खनन परमिटों का गलत इस्तेमाल करने और महालक्ष्मी मंदिर सहित पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति के तहत आने वाले 3,066 मंदिरों की राशि में हेर-फेर किया है. पुनालेकर कहते हैं, ‘हिंदू विधिनिद्य परिषद ने सादविलकर के भ्रष्टाचारों की पोल खोली थी. मुख्यमंत्री को परिषद द्वारा सौंपी गई याचिका में सादविलकर के नाम का विशेष रूप से वर्णन था, जिसके चलते इस घोटाले में मुख्यमंत्री ने सीआईडी जांच के आदेश दिए हैं और इसी वजह से सादविलकर संस्था को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं.’

सनातन संस्था के पदाधिकारियों ने बताया कि सादविलकर ने इस तथ्य का फायदा उठाया है कि वीरेंद्र सिंह तावड़े कोल्हापुर में रहते थे और शायद उनकी सादविलकर से जान-पहचान थी. सादविलकर ने हिंदू जनजागृति के कार्यक्रमों में अक्सर खलल डाला है. उनके खिलाफ हिंदू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता को मारने की धमकी देने की भी शिकायत दर्ज है. 

गौरतलब है कि सनातन संस्था की शाखा हिंदू विधिनिद्य परिषद उसके मुकदमे लड़ती है. इस परिषद की स्थापना 2012 में गोवा में हुई थी और इनके पास वकीलों की एक फौज है जो मुफ्त में मुकदमे लड़ती है. सनातन संस्था के प्रवक्ता अभय वर्तक कहते हैं, ‘वीरेंद्र तावड़े की गिरफ्तारी गलत है और मुझे 100 प्रतिशत विश्वास है कि डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड से उनका कोई लेना-देना नहीं है, जल्द ही वे बाइज्जत बरी हो जाएंगे.’