‘सुषमा स्वराज कहीं बेहतर कर सकती थीं, लेकिन उनके पूरे काम पर प्रधानमंत्री कार्यालय का ग्रहण लगा हुआ है’

Salman Khurshid by Shailendra (13ggg)

मोदी की विदेश नीति के बारे में आप क्या सोचते हैं?

यह काफी निराशाजनक है! उन्हें विदेश नीति की समझ नहीं है. भारत दुनिया का कोई पुलिसमैन नहीं है और उसे वैसा होने की इच्छा भी नहीं रखनी चाहिए. आपको अच्छा संवाद आना चाहिए. आप एकतरफा बात नहीं कर सकते. हर नेता अपने देश के बारे में कोई न कोई सपना बेचता है. उदाहरण के लिए मलेशिया का नारा है, ‘मलेशिया! आपका दूसरा घर!’ हम भी दूसरे शब्दों में यही बात कह रहे हैं, ‘आइए! ‘मेक इन इंडिया’ आइए! भारत में निवेश कीजिए लेकिन साफ ढंग से कहा जाए तो इस एकतरफा संवाद के तरीके से कोई क्यों प्रभावित होगा और दिलचस्पी लेगा?

लोग दिलचस्पी ले रहे हैं क्योंकि वे भारत को एक बाजार के रूप में देखते हैं. यही हमारी ताकत भी है. किसी और चीज में उनकी दिलचस्पी नहीं है. आपको उन्हें बताना चाहिए कि वे भारत किसलिए आएं. उन्हें बताना चाहिए कि भारत से निर्यात करने के लिए या फिर भारत में निवेश करने के लिए भारत आएं. जब मोदी कहते हैं ‘मेक इन इंडिया’ तो अभी तक यह साफ नहीं है कि उसका ठीक-ठीक क्या मतलब है. वे भी भारतीय बाजार को एक अवसर के रूप में देख रहे हैं, लेकिन यह पिछले दो दशक से हो रहा है.

कांग्रेस के पुराने आलोचकों का कहना है कि कांग्रेस की अपेक्षा मोदी पश्चिम के देशों के साथ ज्यादा मजबूती से पेश आ रहे हैं. उनका कहना है कि यूपीए सरकार चीन और रूस से डरती थी.

लेकिन क्या सचमुच आप रूस की उपेक्षा कर सकते हैं? अमेरिका भी ऐसा नहीं कर सकता. क्या आप चीन और जापान को नजरअंदाज कर सकते हैं? क्या आप चीन जाकर ये जता सकते हैं कि जापान है ही नहीं? क्या आप वियतनाम जाकर यह सोच सकते हैं कि चीन है ही नहीं.

पूरी दुनिया आज काफी जटिल हो चुकी है. लेकिन मोदी इस सबको सरलीकरण में देखते हैं. मुझे लगता है कि सिर्फ ‘मैं,’ ‘मेरा’ और ‘जो मैं सोचता हूं’ की बात की जा रही है. दुनिया से आप इस तरह पेश नहीं आ सकते. दुनिया के साथ काफी समझदारी से सौदे करने होते हैं. दुनिया से सौदे करने का मतलब है बड़ी मात्रा में लेन-देन करना. लेकिन मोदी का ध्यान दूसरी ओर है. अभी तक वे यह देख पाने में नाकाम रहे हैं कि जिस तरह से पश्चिम भारत को एक बाजार के रूप में देखता है वैसे ही भारत अफ्रीकी महाद्वीप को एक बाजार के रूप में देखता है. लेकिन अफ्रीका के बाजारों पर हम अभी तक ध्यान नहीं दे रहे हैं. जबकि हमारी स्थिति अफ्रीका में चीन की अपेक्षा कहीं ज्यादा मजबूत हैं. अफ्रीकी महाद्वीप के साथ हमारा ऐतिहासिक जुड़ाव है. मध्यपूर्व में भी हमारी स्थिति मजबूत है. लेकिन आप मध्यपूर्व में भारतीयों से मिलने नहीं जाते. आपको वहां जाकर सरकारों से भी बात करनी चाहिए. लेकिन मोदी सिर्फ भारतीयों से बात करते हैं. मध्य पूर्व जानना चाहता है कि ईरान और सऊदी अरब में क्या हो रहा है? तुर्की और मिस्र का क्या भविष्य है? आईएसआईएस की समस्या से कैसे पेश आया जाए? वे जानना चाहते हैं कि फलस्तीन कब एक वास्तविकता बनेगा? क्या मोदी ने कभी इन विषयों पर बोला है? फिर कौन सी विदेश नीति है उनकी?

विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी की सबसे बड़ी नाकामी क्या है?

दुनिया को समझने की उनकी नाकामी. गुजरात से आगे उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आता. यहां वे भारत को भी नहीं समझते. बिहार के चुनाव परिणाम ने यह साफ तौर पर बता दिया है. वे दुनिया के बारे में क्या जानेंगे, जब वे भारत के बारे में ही कुछ नहीं जानते?

नेपाल से कमजोर होते संबंधों को किस प्रकार देखते हैं?

फिर से यही कहूंगा कि नेपाल कोई अनुयायी नहीं है. नेपाल मित्र है. हम चाहते हैं कि नेपाल शक्तिशाली देश बने. जब मोदी यह कहते हैं कि वहां का संविधान मधेसी समुदाय के हितों के लिहाज से अधिक समावेशी होना चाहिए तो उनकी इस बात से कोई असहमत नहीं हो सकता. लेकिन अगर यह मुद्दा हमारी चिंता में था तो इस पर हमें गंभीरता से काम करना चाहिए था. हमें इस पर मनन करना चाहिए कि हमारी निगरानी के बावजूद ऐसा कैसे हो गया. और अब जब ऐसा हो ही चुका है तो हमें इस समस्या को सुलझाने के बारे में सोचना चाहिए.

चीन के साथ संबंधों के बारे में क्या सोचते हैं? क्या आपको लगता है कि मोदी शक्ति संतुलन बनाने में सफल होंगे?

कैसा शक्ति संतुलन? चीन ने उन्हें घुमा दिया. हमें बिना कुछ दिए हमसे चीन काफी कुछ हासिल कर रहा है. चीन भारत में निवेश करना चाहता है इसलिए चीन भारत में निवेश करेगा ही. राजीव गांधी के समय से ही चीन के साथ एक संबंध विकसित हो रहा है. यह सारा काम हमारे द्वारा किया जा चुका है. लेकिन इस बारे में साफ तौर पर एक समझ रही है कि यह सब हड़बड़ी में नहीं किया जाना चाहिए. बहरहाल, यह बताइए कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के विषय में चीन ने मोदी की कौन-सी मदद की है? चीन ने भारत को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर समर्थन देने के लिए क्या किया है? हमें चीन को बेहतर तरीके से समझने की जरूरत है साथ ही हमें यह भी कोशिश करने की जरूरत हैै कि वो हमें बेहतर तरीके से समझे. आप चीन को किसी और से सामना करने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते. आपको उनसे सीधे दिल का रिश्ता कायम करना होगा.

मुझे लगता है सुषमा कहीं बेहतर कर सकती थीं. वे काफी ऊर्जावान मंत्री हैं लेकिन उनके पूरे काम पर प्रधानमंत्री कार्यालय का ग्रहण लगा हुआ है. सुषमा की असहायता स्पष्ट तौर पर नजर आती है

क्या आपको लगता है कि पाकिस्तान के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध रखना महत्वपूर्ण है भारत के लिए?

कौन नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान के साथ संबंध अच्छे हों. लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि किसकी कथनी और करनी में अंतर है. पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध रखना बहुत ज्यादा आसान नहीं है. अगर कोई समस्या न हो तो पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध होना बड़ा मसला नहीं. लेकिन समस्याएं हैं और ये बहुत ही गंभीर हैं. हम न सिर्फ पूर्वी सीमा की तरफ से उसके लिए समस्या हैं बल्कि पश्चिम से भी समस्या ही हैं, क्योंकि अफगानिस्तान हमारा मित्र देश है.

विदेश मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज के बारे में क्या सोचते हैं?

सुषमा बेहतर हैं. मुझे लगता है वे कहीं बेहतर कर सकती थीं. वे काफी ऊर्जावान मंत्री हैं लेकिन उनके पूरे काम पर प्रधानमंत्री कार्यालय का ग्रहण लगा हुआ है. इसमें हैरानी की बात नहीं है, लेकिन सुषमा स्वराज की असहायता ज्यादा से ज्यादा स्पष्टतौर पर नजर आती है. वे काफी मुश्किल परिस्थितियों में काम कर रही हैं.

हालांकि भारत की विदेश नीति पर राष्ट्रीय राजनीति का असर कम ही पड़ता है लेकिन हाल ही के घटनाक्रम खासतौर से बिहार के चुनावी नतीजों का कुछ असर पड़ेगा?

सुधारों की स्वीकार्यता हमेशा काफी दिक्कत भरी होती है. अभी इस बारे में कोई टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी.

विदेश नीति के मोर्चे पर मोदी की सबसे बड़ी सफलता क्या है?

वो जिस गति से अपनी पहुंच बना रहे हैं, उसे निश्चय ही सफलता मान सकते हैं. जिस ऊर्जा से वे आगे बढ़े हैं, उस पर सवाल नहीं उठाए जा सकते, भले ही उसका कोई परिणाम मिलता नजर नहीं आता.