संदेह के घेरे में अप्रत्याशित सफलता

यह बात कहीं और की होती तो आई-गई रह जाती. पर ऐसा नहीं था. यह घटना प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने की है. दिन सोमवार, 11 अप्रैल, 2010. उस दिन जनता के दरबार में मुख्यमंत्री जनता की शिकायतों से रूबरू हो रहे थे. अचानक खुशबू रानी नाम की लड़की उनके समक्ष हाजिर हुई और रोते-चिल्लाते कहने लगी कि इंजीनियरिंग की तैयारी कराने वाले संस्थान सुपर-30 ने उससे दस हजार रुपये लिए हैं और फिर उससे अतिरिक्त पांच हजार रुपयों की मांग की जा रही है. फिर यह कि वह गरीब है इसलिए और पैसे नहीं दे सकी जिसके कारण उसे वहां से निकाल दिया गया. इस अप्रत्याशित घटना के बारे में सुनकर मुख्यमंत्री सन्न रह गए. उन्होंने कहा कि सरकार के पास इस तरह का कोई फंड नहीं कि वह निजी कोचिंग संस्थान की फीस अदा करे. लेकिन उस लड़की की रुलाई देखकर नीतीश ने अपने अधिकारियों से कहा कि उस लड़की के लिए चंदा करके पांच हजार रुपये ताकि वह अपनी कोचिंग कर सके. उसी दिन बाद में मुख्यमंत्री ने अपनी साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी इस बात का उल्लेख किया.

क्या गरीबों को मुफ्त कोचिंग देने का दावा करने वाला सुपर-30 अपनी प्रसिद्धि की आड़ में छात्रों से पैसे भी वसूलता है

यह ध्यान देने की बात है कि सुपर-30 आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में 30 गरीब छात्रों को मुफ्त कोचिंग के साथ खाने और ठहरने की भी व्यवस्था करता है. और पिछले तीन वर्षों से इस संस्थान का दावा रहा है कि उसके 30 के 30 छात्र आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफल हो जाते हैं. चूंकि खुशबू का मामला उस सुपर-30 से जुड़ा था जिसके काम की सराहना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होती है और उसे इस काम के लिए अनेक बार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत भी किया गया है, इसलिए उसके आरोप को गंभीरता से लिया गया. हालांकि खुशबू अचानक जनता दरबार से बाहर चली गई और उसके बारे में अधिक जानकारी किसी को नहीं मिल सकी. यहां तक कि जनता दरबार के अधिकारियों द्वारा भी उसके बारे में कुछ खास जानकारी नहीं दी गई. पर खुशबू द्वारा उठाया गया सवाल अपने आप में महत्वपूर्ण था कि क्या गरीबों के लिए मुफ्त कोचिंग की व्यवस्था करने का दावा करने वाला सुपर-30 अपनी प्रसिद्धि की आड़ में छात्रों से पैसे भी वसूलता है.
इसके अलावा कुछेक बार इस संस्थान के शत-प्रतिशत सफलता के दावों पर भी सवाल उठे हैं. लेकिन अपनी विराट छवि और प्रसिद्धि के कारण सुपर-30 पर इन आरोपों का ज्यादा असर नहीं हुआ.

इन्हीं सवालों के मद्देनजर तहलका ने अपने स्तर पर इस मामले की तहकीकात करने की कोशिश की ताकि यह पता चल सके कि सुपर-30 के दावे की सच्चाई क्या है. इसके लिए तहलका ने दो स्तर पर काम करना शुरू किया. पहला यह कि सुपर-30 के संचालक आनंद कुमार से उनके यहां पढ़ने वाले छात्रों की लिस्ट मांगी जाए. और दूसरा इस बात की पड़ताल की जाए कि जिन छात्रों को सुपर-30 अपना बताता रहा है, क्या वे वास्तव में उसके ही छात्र रहे हैं.

25 मई, 2011 को आईआईटी प्रवेश परीक्षा के परिणाम घोषित होंगे. इसलिए हमने आनंद कुमार से पहले ही उनके उन तीस छात्रों की लिस्ट मांगी जो उनके संस्थान के छात्र रहते हुए 2011 में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में शामिल हुए थे. तहलका ने यह लिस्ट इसलिए मांगी ताकि रिजल्ट के बाद संस्थान के दावे की हकीकत का पता चल सके, लेकिन आनंद ने इस लिस्ट को सार्वजनिक करने से साफ मना कर दिया. आनंद के इनकार के बाद इस आरोप को सहज ही बल मिलता है कि उनके संस्थान का शत-प्रतिशत सफलता का दावा पूरी तरह सच नहीं है. ऐसा इसलिए कि परिणाम घोषित हो जाने के बाद वे चाहे जो दावा करें उसकी प्रमाणिकता संदेह के घेरे में रहती है क्योंकि कोचिंगों के बाजार में सफल छात्रों की खूब खरीद-फरोख्त होती है ताकि उन्हें अपना बतलाकर ब्रांडिंग की जाए. एक निजी कोचिंग संस्थान के संचालक विकास राही भी इस बात पर सहमति जताते हुए कहते हैं, ‘हां, ऐसा खेल कोचिंग की दुनिया में खूब चलता है.’ इस मामले में तहलका को विश्वस्त सूत्रों से भी इस तरह की जानकारी मिली है जो यह साबित करती है कि कोचिंग की दुनिया में अपना नाम चमकाने के लिए इस तरह के धंधे खूब चलते हैं.

सुपर-30 ने जिन सफल छात्रों को पिछले दो-तीन वर्षों में अपना बताया उनमें से कई एक अन्य संस्थान में भी पढ़ते थे

इसी क्रम में तहलका को कुछ ऐसे दस्तावेज भी मिले हैं जो यह साबित करते हैं कि सुपर-30 ने जिन सफल छात्रों को पिछले दो-तीन वर्षों में अपने संस्थान का छात्र बताया था उनमें से कइयों ने एक अन्य संस्थान में भी कोचिंग ली थी. 2008 की आईआईटी प्रवेश परीक्षा में आयुषी, सैयद सौजाब मुरतजा और राहुल मयंक भी सफल हुए थे. सुपर-30 ने इन्हें भी अपना छात्र बताया था. पर दूसरी तरफ सच्चाई यह है कि इन तीनों छात्रों ने आई-डिजायर नामक कोचिंग संस्थान की उपस्थिति पंजी में नियमित रूप से अपने हस्ताक्षर किए थे और कोचिंग ली थी. 2007 के अगस्त, सितंबर, अक्टूबर और दिसंबर की अनेक तिथियों में इन छात्रों के उपस्थिति पंजी पर हस्ताक्षर दर्ज हैं. यहां ध्यान देने की बात है कि आई-डिजायर आईआईटी में अध्ययन करने वाले छात्रों द्वारा शुरू किया गया संस्थान था जिसमें प्रतिभाशाली छात्रों को मुफ्त कोचिंग देने की व्यवस्था थी. इस संस्थान में अपनी निःशुल्क सेवा दे चुके गणित के शिक्षक विकास राही भरे मन से कहते हैं, ‘मैं उस दिन बहुत सदमे में था जिस दिन सुपर-30 हमारे यहां पढ़े छात्रों को भी अपना छात्र बता रहा था.’ 

2008 के आईआईटी परिणाम घोषित होने के बाद सुपर-30 के संचालक आनंद कुमार और इससे अभिभावक के तौर पर जुड़े आईपीएस अधिकारी अभयानंद ने साफ कहा था कि आयुषी, सैयद सौजाब मुरतजा और राहुल मयंक सुपर-30 के ही छात्र थे. हालांकि इस संबंध में तहलका ने पड़ताल करने के बाद जब आनंद कुमार से पिछले दिनों बात की तो उन्होंने स्वीकार करते हुए कहा, ‘हो सकता है ये छात्र किसी अन्य संस्थान में भी पढ़े हों क्योंकि एक छात्र अनेक कोचिंग संस्थानों में पढ़ते हैं, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है.’ यहां सवाल यह उठता है कि अगर सुपर-30 के अलावा कोई दूसरा संस्थान भी किसी छात्र की योग्यता को निखारता है तो उसकी कामयाबी का श्रेय सिर्फ सुपर-30 को कैसे दिया जा सकता है.

­­सुपर-30 की अवधारणा एक ऐसे सपने को साकार करने की परिकल्पना पर आधारित थी जिसके तहत समाज के वंचित समाज की स्थिति मजबूत की जा सके. इसी मकसद से अभयानंद और आनंद ने मिलकर इसकी शुरुआत की. अभयानंद बड़े पुलिस अधिकारी तो हैं ही , वे एक प्रतिभाशाली छात्र भी रहे हैं. अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अभयानंद और गणितज्ञ आनंद कुमार पहले से एक-दूसरे के साथ थे और आईआईटी के लिए प्रतिभाओं को निखार रहे थे. इसके लिए पहले से आनंद के पास रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स जैसा व्यावसायिक कोचिंग संस्थान था. अभयानंद और आनंद की जोड़ी ने अपने उसी सपने को साकार करने के लिए सुपर 30 की स्थापना 2002 में की थी. जैसा कि अभयानंद कहते हैं, ‘हमने यह तय किया कि हम कम से कम ऐसे तीस छात्रों को अनेक स्तर पर कठिनतम जांच के बाद चुनें जो आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित तो हों पर अवसर और संसाधनों की कमी के कारण सफल नहीं हो पाते. चुने गए इन तीस बच्चों को एक ऐसे माहौल में रखा जाए जो पठन-पाठन और प्रतियोगिता के लिए कारगर हो. उन्हें मुफ्त में कोचिंग के साथ खाने और रहने की व्यवस्था भी मुफ्त में की जाए. इसके लिए आवश्यक आर्थिक व दीगर संसाधन रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स से प्राप्त होने वाली लाखों रुपयों की आमदनी के एक सीमित हिस्से से जुटाना था.’ इस बात की पुष्टि खुद आनंद भी करते हुए कहते हैं, ‘मैंने रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स से प्राप्त आय से ही सुपर-30 को निखारने का बीड़ा उठाया.’  अभयानंद और आनंद की इस कोशिश को काफी सराहना मिली. सामाजिक उत्तरदायित्व के निर्वाह की उम्मीद में शुरू किया गया यह प्रयास सफल होने लगा. और प्रथम साल में ही सुपर-30 ने अपनी भारी सफलता का दावा किया. मीडिया ने इस कथित कामयाबी को सिर-आंखों पर लिया और तारीफ के पुल बांधे. 2002-03 में सुपर-30 के दावे के अनुसार तीस में से 18 छात्र आईआईटी जेईई में सफल हुए. 2004-5 में 30 में से 22 और 2005-6 में सुपर-30 ने अपने 30 में से 26 छात्रों के सफल होने के नये कीर्तिमान का दावा किया. सुपर-30 के उन दावों को सही माना जाए तो वास्तव में यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी. और जाहिर है इस सफलता के आधार पर प्रसिद्धि भी इसके कदम चूम रही थी. 

‘हमें कैसी भी बाहरी आर्थिक सहायता स्वीकार नहीं करनी थी. इससे हमारे मिशन के हाईजैक होने का खतरा होता’

लेकिन अंतरराष्ट्रीय ख्याति के साथ-साथ विवादों से उसका नाता करीब-करीब एक ही समय 2007 से शुरू होता है. जहां इस वर्ष सुपर-30 ने 30 में से 28 छात्रों के सफल होने का दावा किया वहीं एक अन्य कोचिंग संस्थान ने प्रणव प्रिंस नाम के उस छात्र को अपने कोचिंग संस्थान का बता दिया जिसे सुपर-30 ने पहले अपना छात्र घोषित कर रखा था. इस विवाद के बाद आनंद और अभयानंद ने आनन-फानन में सुपर-30 को बंद करने की घोषणा तक कर दी. हालांकि जल्दी ही इस घोषणा को वापस लिया गया और सुपर-30 का वजूद बना रहा. पर दोनों तरफ से शुरू हुआ वाद-विवाद चलता रहा. विवाद और प्रसिद्धि के इसी दौर (2008) में भारत की दिग्गज कारोबारी कंपनी रिलायंस ने आनंद और अभयानंद को ’24 रियल हीरोज’ की लिस्ट में शामिल किया. कंपनी ने दोनों को मुंबई में स्मृतिचिह्न के साथ पांच-पांच लाख रुपयों के चेक दिए. अभयानंद ने यह चेक लेने से इनकार कर दिया, पर आनंद ने ले लिया. अभयानंद बताते हैं, ‘यही वे दो प्वाइंट थे (प्रणव प्रिंस का मामला और निजी कंपनी से पुरस्कार में पांच लाख रुपये लेना) जिसने मुझे सुपर-30 के साथ बने रहने पर पुनर्विचार करने को मजबूर किया.’ अभयानंद आगे बताते हैं, ‘हमने पहले से यह तय कर रखा था कि हमें किसी भी तरह की बाहरी आर्थिक सहायता स्वीकार नहीं करनी क्योंकि इससे हमारे मिशन के हाईजैक होने का खतरा होगा. चूंकि आनंद ने रिलायंस से पैसे ले लिए, इसलिए मैंने खुद को सुपर-30 से अलग कर लिया.’

2009 और 2010 दोनों साल सुपर-30 ने 30 में 30 छात्रों की सफलता की घोषणा की. विवाद फिर बढ़े पर अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि भी इसे इन्हीं वर्षों में मिली. टाइम पत्रिका ने सुपर-30 को एशिया का सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थान घोषित किया तो न्यूज वीक ने इसे दुनिया के चार उन्नत स्कूलों में से एक का दर्जा दिया. डिस्कवरी और अलजजीरा ने इस पर डॉक्युमेंट्री बनाई.

आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफलता के बढ़ते दावों के बीच 2007 में जक्कनपुर की तंग गलियों में चलने वाला सुपर-30 कंकड़बाग में चलने वाले आनंद के रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स के कैंपस में आ गया जहां पहले से ही एक से डेढ़ हजार छात्र दस-दस हजार रुपये देकर पढ़ाई करते थे. आरोप लगने लगे कि सुपर-30 के सभी तीस सफल छात्रों में रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स के छात्रों को भी शामिल कर लिया जाता है. ये आरोप भी लगे कि इसी तरह कुछ बाहरी छात्रों को भी प्रलोभन देकर अपना छात्र बता दिया जाता है. इस संबंध में अभयानंद कहते हैं, ‘इन आरोपों में मुझे सच्चाई लगती थी, पर मैंने इसकी छानबीन इसलिए नहीं की कि मैं इस कोचिंग के अकैडमिक पार्ट तक ही सीमित था और मेरे पास दूसरे किसी काम के लिए समय भी नहीं था.’ लेकिन छात्र-अधिकारों के लिए लड़ने वाले सामाजिक संगठन स्टूडेंट आॅक्सीजन मूवमेंट के संयोजक बिनोद सिंह अभयानंद को भी आनंद जितना दोषी मानते हैं. वे कहते हैं, ‘विवाद अभयानंद के समय में शुरू हुआ था, इसलिए उन्हें संदेहों से बाहर नहीं रखा जा सकता.’

सुपर-30 द्वारा अपने छात्रों का नाम न बतलाना उसके दावे और उसकी नीयत दोनों पर प्रश्नचिह्न लगाता है.

सुपर-30 की कहानी एक छात्र की जुबानी

किसी संस्था या संगठन की सच्चाई जानने के लिए उसके अंदर के सूत्र काफी महत्वपूर्ण होते हैं. इसलिए तहलका सुपर-30 की भीतर की हकीकत जानने के लिए एक ऐसे छात्र तक पहुंचा जिसने सुपर-30 के मौजूदा सत्र में पढ़ाई की और 2011 की आईआईटी प्रवेश परीक्षा में शामिल हुआ. इस छात्र ने तहलका से इस शर्त पर बातचीत की कि उसका नाम गुप्त रखा जाएगा. इसलिए हम यहां उस छात्र का बदला हुआ नाम इस्तेमाल कर रहे हैं. 

अमित उज्जवल ने सुपर-30 से कोचिंग की है. वे इस बार यानी 2011 की आईआईटी प्रवेश परीक्षा में शामिल हुए थे. अमित बताते हैं, सुपर-30 की प्रवेश परीक्षा काफी कठिन थी. पर आपको यह जानकर हैरत होगी कि इस परीक्षा में 30 की बजाय 60 छात्रों का चयन किया गया था. इस जांच परीक्षा के बाद सुपर-30 ने एक दूसरी प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया था. इसके लिए अलग से फाॅर्म भरवाया गया जो आईआईटी के लिए नहीं था. यह इंजीनियरिंग की दूसरी प्रवेश परीक्षाओं के लिए था. इस प्रवेश परीक्षा के बाद सुपर-30 ने फिर 60 छात्रों का चयन किया. इस प्रकार सुपर-30 ने कुल 120 छात्रों का चयन किया. और जब कोचिंग शुरू हुई तो इसमें सभी 120 छात्रों को शामिल करके पढ़ाई कराई जाने लगी.’  उज्जवल आगे बताते हुए कहते हैं, ‘यह सच है कि सुपर-30 के इस 120 छात्रों की टीम में अधिकतर छात्र बहुत प्रतिभाशाली थे. इनमें शायद ही कुछ बच्चे ऐसे होंगे जिनकी प्रतिभा को कम कर आंका जा सके. अकसर हम लोगों की क्लास शाम में लगाई जाती थी. जब हम सुपर-30 में नहीं पढ़ते थो तो हमें यह जानकारी थी कि यहां सिर्फ 30 छात्रों का ही चयन होता है. पर यहां तो स्थिति बिलकुल अलग थी और यहां 30 की बजाय 120 छात्र पढ़ते थे.’ उज्जवल कहते हैं, ‘मुझे यह बात खलती थी कि सौ या उससे भी ज्यादा की भीड़ में पढ़ने से हम कई बार चीजों को समझ नहीं पाते थे. यही कारण है कि हमें कभी-कभी प्रोजेक्टर स्क्रीन पर पढ़ाया जाता था.’

एक घटना का उल्लेख करते हुए उज्जवल कुछ मायूस हो जाते हैं और सवाल खड़ा करते हैं कि कभी-कभी वहां कुछ छात्रों के साथ भेदभाव भी बरता जाता था. वे बताते हैं, ‘एक बार किसी संस्था (जिसका नाम उन्हें याद नहीं) की तरफ से पुरस्कार देने की घोषणा की गई. उस संस्था ने 30 छात्रों को पार्कर पेन दिया. यह स्पष्ट था कि 30 कलम सिर्फ 30 छात्रों को ही मिलती, इसलिए 120 में से 30 छात्रों को दिया गया.’ वे बताते हैं कि यह इसलिए किया गया क्योंकि दुनिया जानती है कि सुपर-30 में सिर्फ 30 छात्र ही पढ़ते हैं. इसलिए तीस से ज्यादा बच्चों को पुरस्कृत करने का मतलब हुआ कि दुनिया के सामने यह स्वीकार करना कि सुपर-30 में 30 से ज्यादा छात्र हैं. लेकिन यह पूछने पर कि जो 30 छात्र सबसे ज्यादा प्रतिभाशाली थे उन्हें ही पुरस्कृत किया गया होगा, उज्जवल कहते हैं, ‘अगर ऐसा है तो वे सुपर-30 में 30 छात्र होने का दावा क्यों करते हैं? साफ बताते कि उनके यहां 120 छात्र पढ़ते हैं.’

साक्षात्कार

‘मैं रिजल्ट से पहले अपने छात्रों के नाम नहीं बताऊंगा’

सुपर-30 और रामानुजम कोचिंग संस्थान के संचालक आनंद कुमार से इर्शादुल हक की बातचीत के मुख्य अंश

सुपर-30 पर ऐसे आरोप लगते हैं कि आईआईटी प्रवेश परीक्षा में उसकी सफलता के दावे झूठे हैं.

ऐसा बिलकुल नहीं है. 2004 से लेकर 2010 तक के सभी परीक्षा परिणाम आपके सामने हैं. क्या हमारा यह दावा भी गलत है कि सब्जी बेचने वाले अनुपम के बेटे ने भी आईआईटी कर लिया?

आप अपने 30 छात्रों के नाम परिणाम घोषित होने से पहले सार्वजनिक क्यों नहीं करते?

वर्ष 2007 में कुछ निजी कोचिंग संस्थानों ने काफी बखेड़ा खड़ा कर दिया था. वे हमारे बच्चों को अपने कोचिंग संस्थान के बच्चे बताने लगे थे. इसलिए हम इस तरह के विवादों में नहीं पड़ना चाहते.

इसमें विवाद कैसा. आप रिजल्ट से पहले सिर्फ इतना बता दीजिए कि वे कौन-से छात्र हैं जिन्हें आपने पिछले साल कोचिंग दी है.

हम पहले इसकी घोषणा कर देंगे तो निजी कोचिंग संस्थान उन बच्चों को बहला-फुसलाकर या पैसों का लालच देकर अपना छात्र बनाने का खेल करेंगे. वे पहले ऐसा कर चुके हैं. आप 25 मई का इंतजार करिए. उस दिन हमारे सभी बच्चे रहेंगे. आप उस दिन उनसे जो चाहें पूछ लें, जो चाहे बात कर लें. सारी सच्चाई उस दिन आपके सामने होगी.

लेकिन निजी कोचिंग संस्थान तो परिणाम आने के बाद भी आपके सफल छात्रों को अपना बता सकते हैं. तब आपके पास कौन-से साक्ष्य होंगे?

अब जिनको जो कहना है कहें. जिनको जो आरोप लगाना है लगाएं. मीडिया को जो लिखना है लिखे. हम परीक्षा परिणाम के पहले कुछ भी नहीं बताएंगे. हम समाज के लिए करते हैं, इसका फैसला समाज ही करेगा. हम पहले से शोर मचाना नहीं चाहते.

आप तहलका को अपने 30 छात्रों की लिस्ट दे दें. हम इन नामों को परिणाम घोषित होने के पहले सार्वजनिक नहीं करेंगे. रिजल्ट आने के बाद तहलका दुनिया को बताएगा कि आनंद के दावे की सच्चाई क्या है.

नहीं.. नहीं, हम ऐसा नहीं कर सकते कि किसी एक मीडिया को दें और दूसरे को नहीं दें. हां, अगली बार यानी 2012 से हम पूरी तरह तैयार रहेंगे और पहले ही इन नामों की घोषणा करेंगे.

अभयानंद भी  अनेक सुपर-30 कोचिंग चला रहे हैं और उन्होंने अपने छात्रों के नामों की पहले ही घोषणा कर दी है.

अभयानंद जी हमारे अभिभावक जैसे हैं. मैं उनका बहुत सम्मान करता हूं. इसलिए मैं उनके संबंध में कुछ नहीं बोलना चाहता.

जनता दरबार में पहुंची खुशबू रानी के मुताबिक उनसे सुपर-30 के लिए 10,000 रुपये लिए गए थे. बाकी 5,000 रु नहीं देने पर उन्हें बाहर कर दिया गया.

मुख्यमंत्री सचिवालय से मुझे भी फोन आया था. मैंने उन्हें बताया था कि वह लड़की हमारे पास आए तो हम उससे बात करें. उस दिन से मैं उसके फोन का इंतजार कर रहा हूं. वह नहीं आई.

सुपर-30 के छात्रों को सारी सुविधाएं मुफ्त मिलती हैं तो खुशबू के आरोपों से क्या समझा जाए?

मुझे उसकी असलियत पर ही संदेह है. हमारे विरोधी उसे हमारे खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं.