जिसने धारावाहिकों का चेहरा बदल दिया

2001 में क्योंकि सास भी कभी बहू थी  के मिहिर विरानी की मौत हो गई. एक टीवी धारावाहिक में किसी किरदार की मौत कोई बहुत बड़ी घटना नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन यह थी. देश भर में महिलाओें ने रो-रोकर भावनाओं का सैलाब ला दिया. अभिनेता अमर उपाध्याय, जो धारावाहिक में मिहिर की भूमिका में थे, को अनगिनत फोन आए यह पता करने के लिए कि क्या वे जिंदा हैं. इसके बाद जो हुआ वह भारतीय टीवी मनोरंजन उद्योग की फिर एक नयी घटना बन गई. मांग और आपूर्ति वाला नियम यहां लागू हुआ और धारावाहिक में मिहिर का पुनर्जन्म हो गया. उस समय आम दर्शकों के लिए बस यही राहत की बात थी कि वे अपना पसंदीदा किरदार दुबारा देख रहे थे. उधर, टीवी मनोरंजन उद्योग इस बात पर जश्न मना रहा था कि भारतीय मध्यवर्ग पर उसकी खासी पकड़ बन चुुकी है. और इन हलचलों के लिए जिम्मेदार और क्योंकि सास भी… के पटकथा लेखक राजेश जोशी को इस बात का एहसास हो चला था कि वे मिहिर के पुनर्जन्म के जरिए टीवी धारावाहिकों का एक नया दौर शुरू कर रहे हैं. जोशी के लिए बदलाव की यह घड़ी संयोग से मिली सफलता भर नहीं थी. उसके बाद उन्होंने कसौटी जिंदगी की, कुसुम, कोई अपना सा  और बंदिनी लिखा.

अपने कांदीवली स्थित घर में चमड़े की आराम कुर्सी पर बैठे जोशी फिलहाल पवित्र रिश्ता के साथ एक बार फिर नये नियम लिख रहे हैं. अपने भुलेश्वर में बिताए चॉल के दिनों से प्रेरित होकर गरीब युगल की प्रेम कहानी. इसमें न भव्य सेट हैं, न भड़कीले कपड़े और न ही रईस परिवार फिर भी आज इसकी टीआरपी सर्वाधिक 6.1 है.  इंडियन नेशनल थिएटर के सह-संस्थापक मनसुख जोशी के 50 वर्षीय बेटे ने कभी सोचा भी नहीं था कि वे धारावाहिक लेखक बनेंगे. जोशी बताते हैं, ‘घर में लेखन के लिए माहौल था लेकिन मैं एक फार्मा कंपनी के साथ काम कर रहा था.’ इसी बीच अगस्त, 1999 में एक कार दुर्घटना ने उन्हें तीन महीने के लिए बिस्तर पर ला दिया. यही वह वक्त था जब उन्होंने लिखने की शुरुआत की और क्योंकि सास भी… के लेखक बन गए. उस दौर को याद करते हुए जोशी कहते हैं, ‘विपुल मेहता, जो क्योंकि… में मेरे  लेखक थे, ने सुझाव दिया कि मैं लेखन में अपना हाथ आजमाऊं. मेरे पास करने के लिए कोई और काम नहीं था, इसलिए मैंने हां कर दी. मैंने फैसला किया कि मैं कामयाब हुआ तो लेखन जारी रखूंगा, और सफल रहा.’

मेरे धारावाहिकों की तरह ही मेरा परिवार के लिए भी सख्त नैतिक नियम है. अगर मेरा बेटा कभी लिव-इन-रिलेशनशिप में रहना चाहेगा तो मैं उसे अपनी जिंदगी से बेदखल कर दूंगा

जोशी की कामयाबी को आसानी से समझा जा सकता है. वे एक ऐसे लेखक हैं जो सादे संवादों में यकीन रखते हैं. उनके लिखे धारावाहिकों में संयुक्त परिवार होते हैं. उनके अपने गुजराती बैकग्राउंड से प्रेरित और उनके केंद्रीय महिला पात्र- विनम्र लेकिन मजबूत, सख्त लेकिन प्यार करने वाले- उनकी अपनी मां और पत्नी जैसे. ‘मेरे घर में मेरी मां का दबदबा था. वे हमें मारती थीं लेकिन प्यार भी करती थीं. जब मैं युवा था तो अपनी मां के पूर्वाभासों पर विश्वास रखता था, अब अपनी पत्नी के. मैं अकसर वही करता हूं जो वह कहती है’, मुस्कुराते हुए राजेश बताते हैं, ‘यह स्वाभाविक है कि मेरे चरित्र उनसे मिलते-जुलते होते हैं. लोगों को कहानी में थोड़े झटके चाहिए होते हैं. जरूरी नहीं कि वे हमेशा जनता को पसंद ही आएं. परंतु लेखकों को प्रयोग करने ही पड़ते हैं. पवित्र रिश्ता में मुख्य चरि­त्र शादी करते हैं, तलाक लेते हैं और फिर शादी करते हैं. एक चरित्र अपना करियर बनाने के लिए गर्भपात करवाती है. मैं समय के साथ चलता हूं.’

बातचीत के दौरान यहीं एक विरोधाभास धीरे से जगह बनाता दिखता है. राजेश आजज के समय की महत्वाकांक्षी मध्यवर्गीय महिला की प्रशंसा करते हैं, साथ यह भी चाहते हैं कि वह एक आदर्श बहू के गुण तुलसी या अर्चना से ग्रहण कर ले. तो क्या वे उन्हें स्कैंडल में फंसाकर ही प्रगतिशील दिखाना चाहते हैं. राजेश कहते हैं, ‘मेरे किरदार अपनी सच्चाई खुद बोलते हैं.’ और जब आप इस आधार पर उनसे जुड़ी अपनी सोच बदलने ही वाले होते हैं तो वे कहते हैं, ‘मेरा मतलब है वे आधुनिक और पारंपरिक दोनों हो सकते हैं.’ एक और बात जो राजेश की कहानियों को कामयाब बनाती है वह है उनके किरदारों का अच्छे और बुरे के बीच मौजूद एक बारीख रेखा पर आगे बढ़ना.

बातचीत के बीच में ही उनका 22 साल का बेटा इस कमरे में दाखिल होता है. यहां राजेश कुछ समय के लिए लेखक से तुरंत पिता की भूमिका में आ जाते हैं और उसे जेबखर्च के लिए कुछ रु देते हैं. उसके जाने के बाद वे कहते हैं,  ‘मेरे धारावाहिकों की तरह ही मैंने अपने परिवार के लिए भी सख्त नैतिक नियम बनाए हैं. अगर मेरा बेटा लिव-इन-रिलेशनशिप में रहना चाहेगा तो मैं उसे अपनी जिंदगी से बेदखल कर दूंगा, क्योंकि वह लड़की के प्रति प्रतिबद्ध नहीं होगा. मेरी पत्नी ने जब मुझसे शादी की तब मैं 60 रु महीना कमाता था, और अब छह अंकों में. आज वह मेरी आत्मा है, जीवन है. मैं चाहता हूं मेरा बेटा भी किसी के लिए ऐसा ही महसूस करे.’

रिश्तों के अलावा कर्म और भगवान में आस्था राजेश के धारावाहिकों के दो मजबूत स्तंभ हैं. परंतु यहां वे फिर हमें आश्चर्यचकित करते हैं. वे पिछले कई महीनों से मंदिर नहीं गए हैं. ‘भगवान हर जगह है. जब आप अपनी मां से आर्शीवाद लेते हो तो वह भगवान का रूप हो जाती है. और कर्म की तो निश्चित ही अपनी महत्ता है. मैंने कई साल पहले एक व्यक्ति से कुछ पैसे लिए थे और उसे लौटाना भूल गया. हाल ही में , मैंने उसे उस रकम का पांच गुना लौटाया है!’ राजेश के धारावाहिकों से स्टार बन चुके कलाकार भी उनका शुक्रिया अदा करना नहीं भूलते हैं. पवित्र रिश्ता के सुशांत सिंह राजपूत कहते हैं, ‘मानव का किरदार तो मेरे लिए एक पैमाने के समान हो गया है. मैं हमेशा उसके हैंगओवर में रहता हूं.’ विडंबना देखिए कि हाल ही में वे मुंबई में एक झगड़े में फंस गए जो अखबारों की उन सुर्खियों केे साथ खत्म हुआ कि सुशांत मानव जैसे तो बिलकुल नही हैं.

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि एकता कपूर, जैसा कि हमने सुना है बड़ी साहसी और मजबूत महिला हैं, कैसे अर्चना और जोशी की दूसरी आत्मत्यागी नायिकाओं जैसे चरित्रों वाली महिलाओं के लिए राजी हो जाती हैं. जोशी कहते हैं, ‘एकता को पता है कि महिलाओं के कई आयाम होते हैं. उनमें अर्चना जैसा कुछ नहीं है परंतु वे जानती हैं अर्चना हमारे समाज में मौजूद है. वे मध्यवर्गीय समाज के आकलन में बड़ी दक्ष हंै. एकता एक व्यवसायिक महिला हैं, इसलिए उनको मजबूत होना होगा. लेकिन अर्चना कोमल हो सकती है.’ राजेश हाल ही में लेखक से निर्माता भी बन गए हैं. वे जी चैनल पर प्रसारित संस्कार लक्ष्मी  के साथ इस नयी भूमिका में हैं. यह धारावाहिक एक सुंदर महिला की कहानी है जो अपने पति के धनी परिवार के साथ मुंबई आती है और हरेक सदस्य को अच्छे संस्कार सिखाना चाहती है. अगर इस धारावाहिक के बारे में लोगों की राय है कि यह क्योंकि… का ही नया ट्रीटमेंट है तो जोशी इसकी परवाह नहीं करते. वे कहते हैं, ‘मैं यह साबित करना चाहता हूं कि जो लड़किया जींस पहनती हैं उनमें भी नैतिकता हो सकती है. संस्कारी होने का मतलब यह नहीं है कि वे अपना सिर ढककर रहें. इसका मतलब है सबको खुश रखना. मेरे दूसरे शो की तरह यह धारावाहिक भी जल्दी ही टेलीविजन की दुनिया में एक नया बदलाव लाएगा.’