काले धन की अमरबेल?

राज्यसभा सांसद और सपा के पूर्व महासचिव अमर सिंह पर काले धन के कारोबार के आरोप पहले भी लगते रहे हैं लेकिन तब ये सिर्फ आरोप थे. पिछले साल नवंबर में उत्तर प्रदेश पुलिस ने जो जांच रिपोर्ट इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जमा की है उसमें सिंह के काले धन के कारोबार से जुड़े तमाम अकाट्य सबूत मौजूद हैं. इस रिपोर्ट की एक प्रति तहलका के पास है. ये दस्तावेज बताते हैं कि किस प्रकार अमर सिंह ने साल 2003 से 2007 के बीच अवैध कंपनियों का जाल बिछाकर 138.5 करोड़ रुपयों का अवैध मुनाफा कमाया. रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हें इतना मोटा मुनाफा आय का कोई वैध स्रोत न होने के बावजूद कमाया.

उत्तर प्रदेश पुलिस ने देश भर में फैली करीब 600 ऐसी कंपनियों, जिन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर अमर सिंह का बताया जा रहा था, में से 50 की जांच-पड़ताल की है. यह जांच सिंह के खिलाफ कानपुर में दायर एक एफआईआर के बाद की गई थी. एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि सिंह ने तमाम अवैध तरीकों से करीब 400 करोड़ रुपये इकट्ठा किए. इस काले धन को सफेद बनाने के लिए उन्होंने पहले तो इस धन को कई ‘शैल’ कंपनियों (ऐसी कंपनी जो कोई व्यवसाय नहीं करती और न ही जिसके पास कोई संपत्ति होती है) में लगाया. इसके बाद इस तरह की दर्जनों कंपनियों का उन कंपनियों में विलय कर दिया गया जिन पर पूरी तरह से अमर सिंह और उनके परिवार का नियंत्रण था.

हवाई कंपनी हवा-हवाई निदेशक

1. महेश सिंह राना, निवासी गली न. 3 श्याम पार्क, साहिबाबाद, गाजियाबाद. इन्हें अमर सिंह की दो कंपनियों का निदेशक दिखाया गया – गौतम रोडलाइंस प्रा लि. और ईस्टर इंडिया केमिकल्स लि
2.    ललित कुमार बांगरी, निवासी लतिका अपार्टमेंट हैंगर फोर्ट कोलकाता. इन्हें मर्करी मर्चेंट प्रालि का निदेशक दिखाया गया.
3.   बाबूलाल बांका, लाल बाजार स्ट्रीट कोलकाता. इन्हें तीन कंपनियों का निदेशक दिखाया गया
4.    गोपाल बांका, निवासी लाल बाजार स्ट्रीट कोलकाता, इन्हें कुल 19 कंपनियों के निदेशकमंडल में रखा गया है
5.    मनोहर लाल नगालिया, निवासी लाल बाजार कोलकाता, इन्हें तीन कंपनियों का निदेशक बताया गया है. अरिहंत टैक्सकॉम प्रा लि, गैलेंट ट्रैक्सिम प्रा लि, यामिनी ट्रेडलिंक प्रा लि
6.    अरुण कुमार नगालिया, निवासी लाल बाजार कोलकाता. ये कुल सात कंपनियों के निदेशकमंडल में हैं
7.    श्रीकांत झांवर, निवासी कनकुलिया रोड कोलकाता, इन्हें दो कंपनियों का निदेशक बनाया गया.
8.    गिरिराज किशोर, निवासी विवेक विहार हावड़ा, इन्हें एचपी वीडियोटेक का निदेशक बताया गया
9.    दिनेश प्रताप सिंह, निवासी गाजियाबाद. इन्हें दो कंपनियों का निदेशक बताया गया
10.    देवपाल सिंह राना, निवासी कानपुर

हाई कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिस समय अमर सिंह उत्तर प्रदेश विकास परिषद (प्रदेश के औद्योगिक विकास के लिए बनी सलाहकार संस्था जो 2003 से 2007 के बीच मुलायम सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में प्रभावी रही थी) के मुखिया हुआ करते थे उस दौर में उनकी कंपनियों ने गलत तरीकों से अरबों रुपये बनाए. उस समय अनिल अंबानी, कुमार मंगलम बिड़ला और केवी कामथ जैसे शीर्ष उद्योगपति इस परिषद के सदस्य हुआ करते थे.

पुलिस को दिए गए बयान में तकरीबन एक दर्जन फर्जी निदेशकों ने बताया कि जिन कंपनियों के निदेशक के रूप में उनके नाम इस्तेमाल किए गए  उनके काम-काज के बारे में उन्हें रत्ती भर भी जानकारी नहीं थी, सिर्फ उनकी पहचान का इस्तेमाल अमर सिंह और उनके भाई अरविंद सिंह ने किया

तहलका से बातचीत में अमर सिंह काले धन के कारोबार और आय से अधिक संपत्ति के आरोपों को सिरे से खारिज कर देते हैं. ‘उत्तर प्रदेश विकास परिषद के अध्यक्ष के तौर पर मैं बड़ी मात्रा में निवेश लेकर आया था. अपने पद का इस्तेमाल मैंने निजी फायदे के लिए कभी नहीं किया. यह सोचना भी हास्यास्पद है कि मैं भ्रष्टाचार में लिप्त था. मेरे पास तो दस्तखत तक के अधिकार नहीं थे. यह तो सिर्फ एक सलाहकार संस्था थी. अगर मेरे खिलाफ जांच हो रही है तो उन सभी शीर्ष उद्योगपतियों के खिलाफ भी जांच होनी चाहिए जो उस समय परिषद के सदस्य थे. यह जांच राजनीतिक षडयंत्र का परिणाम है’, सिंह कहते हैं.

अमर सिंह भले ही इसे राजनीतिक षडयंत्र करार दे रहे हों लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में उन तरीकों की विस्तार से जानकारी दी है जिनके जरिए अमर सिंह ने काले धन को सफेद करने का गोरखधंधा अंजाम दिया. रिपोर्ट के मुताबिक अमर सिंह ने फर्जी निदेशकों की एक पूरी मंडली के माध्यम से लगभग 43 छद्म कंपनियों पर अपना नियंत्रण बना रखा था. कोलकाता में पंजीकृत इन सभी कंपनियों के शेयर एक अजीबोगरीब ‘क्रॉस-होल्डिंग पैटर्न’ में लोगों के पास थे और कथित रूप से बिना कोई व्यवसाय किए सिर्फ बहीखातों में आंकड़े दर्ज करके ये कंपनियां अस्तित्व में बनी हुई थीं.

 कालेधन का काला खेल

उन कंपनियों की सूची जिनमें अमर सिंह और उनके परिजनों की शेयर होल्डिंग मेजोरिटी में है और अब इन पर काले धन के हेर-फेर में शामिल होने का संदेह गहरा गया है :

1 एनर्जी डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड
सरजापुर रोड, बेलांदुर,                    बेंगलुरू
2 पंकजा आर्ट ऐंड क्रेडिट प्राइवेट लिमिटेड
अजीमगंज हाउस, कामक स्ट्रीट,       कोलकाता 
3 सर्वोत्तम कैप्स लिमिटेड
अजीमगंज हाउस, कामक स्ट्रीट,       कोलकाता 
4 ईडीसीएल पावर प्रोजेक्ट्स प्रा. लि.
अजीमगंज हाउस, कामक स्ट्रीट,       कोलकाता
5 ईडीसीएल इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड
अजीमगंज हाउस, कामक स्ट्रीट,       कोलकाता
6 इस्टर (इंडिया) केमिकल्स लि.
ई-593, ग्रेटर कैलाश-II, नई दिल्ली   

पुलिस को दिए गए बयान में तकरीबन एक दर्जन फर्जी निदेशकों ने बताया कि जिन कंपनियों के निदेशक के रूप में उनके नाम इस्तेमाल किए गए  उनके काम-काज के बारे में उन्हें रत्ती भर भी जानकारी नहीं थी, सिर्फ उनकी पहचान का इस्तेमाल अमर सिंह और उनके भाई अरविंद सिंह ने किया. दिसंबर, 2003 में इस तरह की 18 छद्म कंपनियों का विलय अमर सिंह के स्वामित्व वाली कंपनी सर्वोत्तम कैप लिमिटेड में कर दिया गया. इसी तरह की 25 अन्य कंपनियों का विलय सिंह के स्वामित्व वाली एक अन्य कंपनी पंकजा आर्ट ऐंड क्रेडिट प्राइवेट लिमिटेड में जनवरी, 2005 में किया गया. पंकजा कुमारी सिंह अमर सिंह की पत्नी का नाम है. पुलिस की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये छद्म कंपनियां न तो कोई व्यवसाय कर रही थीं और न ही इनमें भविष्य में मुनाफा कमाने की क्षमता थी. बावजूद इसके विलय के वक्त इन 43 कंपनियों की वास्तविक कीमत से कहीं ज्यादा कीमत आंकी गई और उनके शेयरों को उनकी बाजार कीमत से कई गुना ज्यादा पर खरीदा गया. तहलका के पास उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि इन कंपनियों के शेयर सिंह ने 400 से 600 प्रतिशत तक ज्यादा कीमत पर खरीदे. आरोप लग रहा है कि यह पूरी कवायद सिर्फ अमर सिंह के काले धन को सफेद करने के लिए की गई.

तहलका से बातचीत में सिंह बताते हैं, ‘ये सभी 43 कंपनियां कोलकाता में पंजीकृत हैं. इसलिए पहले तो यूपी पुलिस के पास उनकी जांच का अधिकार ही नहीं है. दूसरी बात विलय को कलकत्ता हाई कोर्ट की मंजूरी मिली हुई है. विलय के बाद पुरानी कंपनियां खत्म हो गईं, इसलिए उनके निदेशकों को इसके बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है. तत्कालीन कॉरपोरेट अफेयर मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी इस विलय को क्लीन चिट दी थी.’ दिलचस्प बात यह है कि जब पुलिस ने सिंह से उन 43 कंपनियों के रिकॉर्ड दिखाने के लिए कहा तो उनका जवाब था कि सभी रिकॉर्ड खो गए हैं. ‘कोलकाता में मेरा दफ्तर स्थानांतरित करते समय सारे रिकॉर्ड खो गए थे. इस संबंध में साल 2006 में एक एफआईआर भी दर्ज करवाई गई थी’, सिंह कहते हैं.

अमर सिंह की दो अन्य कंपनियों के खिलाफ भी यूपी पुलिस ने स्पष्ट सबूत जुटाए हैं. उनके नाम हैं एनर्जी डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड और ईडीसीएल पावर प्रोजेक्ट्स लिमिटेड. रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2005-06 में एनर्जी डेवलपमेंट कंपनी लि. का मुनाफा सिर्फ 2.49 करोड़ था, मगर आश्चर्यजनक रूप से 2006-07 में यह करीब इक्कीस गुना बढ़कर 52.4 करोड़ रुपये हो गया. यह मुनाफा कहां से आया, इसमें इतनी वृद्धि कैसे हुई, इस संबंध में सिंह और उनके निदेशक एक भी दस्तावेज पेश नहीं कर सके. जांचकर्ता यह भी बताते हैं कि दो वित्त वर्षों के दौरान मुनाफे में इतनी जबर्दस्त वृद्धि के बावजूद इतना मुनाफा कमाने के लिए किए गए खर्च में कोई वृद्धि देखने को नहीं मिलती. इस तथ्य से भी इन आंकड़ों के संदिग्ध होने का संकेत मिलता है. इसी प्रकार ईडीसीएल पावर प्रोजेक्ट्स लि. ने साल 2004 से 2007 के बीच 14 करोड़ का मुनाफा दिखाया. लेकिन यूपी पुलिस के मुताबिक एक बार फिर से वे कंपनी को किसी तरह के कॉन्ट्रैक्ट या काम मिलने का कोई सबूत नहीं पेश कर पाए जिसके चलते कंपनी को यह फायदा हुआ था.’मेरी कंपनी द्वारा हासिल की गई सारी रकम चेक के जरिए आई है. एक भी लेन-देन नगद में नहीं हुआ है. नियमों का पूरा ध्यान रखा गया है. चेक हासिल करने वाला चेक देने वाले व्यक्ति द्वारा की गई किसी भी तरह की हेरफेर या करचोरी के लिए जिम्मेदार नहीं है. चेक जारी करने वाले को अपनी आय के स्रोत का खुलासा करना चाहिए’, अमर सिंह कहते हैं.

अमर सिंह के खिलाफ जारी जांच कानपुर निवासी एक सामाजिक कार्यकर्ता एसके त्रिपाठी की शिकायत का नतीजा है. ‘दिसंबर, 2008 में मैंने अखबारों में पढ़ा था कि अमर सिंह ने बिल क्लिंटन के चैरिटी फाउंडेशन के लिए 35 करोड़ रुपयों का दान किया था. जब मैंने राज्यसभा के सांसद के तौर पर उनके द्वारा घोषित की गई संपत्ति जानने की कोशिश की तो मैंने पाया कि उस वर्ष उनकी कुल संपत्ति सिर्फ 32 करोड़ थी. ये साफ तौर पर आय से अधिक संपत्ति का मामला था. इसने मुझे उनकी संपत्तियों की गहराई से पड़ताल करने के लिए प्रेरित किया. मैंने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज से आंकड़े जुटाने शुरू किए तो पाया कि अमर सिंह के पास लगभग 600 छद्म कंपनियों का जटिल नेटवर्क है जिन्हें वे या तो खुद संचालित करते हैं या फिर अन्य लोगों के माध्यम से. इसके बाद मैंने कानपुर में इस संबंध में एक एफआईआर दर्ज करवा दी’, त्रिपाठी बताते हैं.

त्रिपाठी ने एफआईआर में आरोप लगाया था कि अमर सिंह ने छद्म कंपनियों के माध्यम से लगभग 400 करोड़ रुपयों के काले धन का हेरफेर किया है. चूंकि इनमें से अधिकतर कंपनियां कोलकाता में थीं, इसलिए यूपी पुलिस ने बंगाल पुलिस को जांच करने के लिए कहा. लेकिन कोलकाता पुलिस ने इसे ठुकरा दिया. तब उत्तर प्रदेश सरकार ने जांच का जिम्मा उत्तर प्रदेश पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को सौंप दिया.
सिंह पलटवार करते हैं, ‘जिस थानेदार ने मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी उसे भ्रष्टाचार और घर पर कब्जा करने के आरोप में निलंबित किया जा चुका है.’ सिंह ने इस जांच को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक रिट पेटीशन भी दाखिल की थी. शिकायतकर्ता त्रिपाठी ने भी हाई कोर्ट के समक्ष रिट पेटीशन दायर करके सीबीआई अथवा ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा मामले की जांच की मांग की थी. हाई कोर्ट ने इन दोनों याचिकाओं को आपस में मिला दिया. दिसंबर, 2009 में कोर्ट ने सिंह की एफआईआर रद्द करने की याचिका खारिज करते हुए एक आदेश पारित किया कि उत्तर प्रदेश सरकार अमर सिंह के काले धन के साम्राज्य की जांच करने के लिए एकाउंटिंग विशेषज्ञों का एक दल गठित कर सकती है.
फिलहाल यूपी पुलिस की स्पेशल सेल ने अपनी जांच का दायरा सिर्फ 50 कंपनियों तक सीमित कर रखा है. एक साल लंबी जांच के दौरान पुलिस ने इन कंपनियों के दफ्तरों को चिह्नित करने के साथ-साथ इनके निदेशकों के बयान भी दर्ज किए जिसमें बड़ी संख्या में निदेशक फर्जी पाए गए. मसलन गाजियाबाद निवासी दिनेश प्रताप सिंह कागजों में उन 43 में से दो कंपनियों के निदेशक थे जिनका अमर सिंह की कंपनी में विलय हो गया. इनके नाम हैं- पीट इन्वेस्टमेंट और सान्यु इन्वेस्टमेंट प्रा. लि. लेकिन पुलिस ने जब उनसे पूछताछ की तो उन्होंने बताया, ‘मुझे नहीं पता कि पीट और सान्यु अस्तित्व में कब आए. मैं कभी भी उनके दफ्तर में नहीं गया. न ही मुझे कभी भी उनके मुनाफे से एक रुपया भी मिला. मुझे उनके व्यवसाय के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है. और तो और मुझे उनके नफे-नुकसान की भी कोई जानकारी नहीं है.’ 

वे आगे बताते हैं, ‘मैं अमर सिंह की एक कंपनी ईस्टर इंडिया केमिकल्स लि. में सिर्फ एक कर्मचारी था. चूंकि मैं उनके यहां नौकरी करता था, इसलिए उनके भाई अरविंद सिंह ने मुझसे कुछ कागजात पर दस्तखत करवा लिए. उनका कर्मचारी होने के नाते मैंने वही किया जो उन्होंने मुझसे कहा. मुझे इन कंपनियों के बारे में कुछ भी पता नहीं.’ 

पीट और सान्यु के अमर सिंह की कंपनी में विलय का प्रस्ताव कलकत्ता हाई कोर्ट में दाखिल किया गया और उस प्रस्ताव पर निदेशक की हैसियत से दिनेश के भी दस्तखत मौजूद थे. लेकिन जब पुलिस ने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने कंपनी के विलय की सहमति दी थी या विलय के प्रस्ताव पर दस्तखत किए थे तो उनका जवाब था कि उन्हें इस तरह के किसी विलय की जानकारी तक नहीं है और न ही उन्होंने इस तरह के किसी प्रस्ताव पर दस्तखत किए हैं. पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि दिनेश सिंह उन तमाम लोगों में से एक हैं जिनकी पहचान का इस्तेमाल अमर सिंह और उनके भाई ने फर्जी कंपनियों का जटिल जाल खड़ा करने में किया (बॉक्स देखें). संक्षेप में ये सभी 43 कंपनियां जिनका विलय अमर सिंह की दो कंपनियों में किया गया, फर्जी इकाइयां थी और उनकी स्थापना सिर्फ काले धन के कारोबार के लिए की गई थी. यूपी पुलिस की जांच रिपोर्ट फिलहाल इलाहाबाद हाई कोर्ट के पास है. अमर सिंह चाहते हैं कि उनके खिलाफ चल रही जांच खत्म हो जाए. उधर शिकायतकर्ता की मांग है कि पूरे मामले की जांच सीबीआई और ईडी द्वारा करवाई जाए.

इस मामले में अंतिम जिरह खत्म हो चुकी है और बस कुछ ही हफ्तों के अंदर अदालत अपना निर्णय सुना देगी और अमर सिंह के भाग्य का फैसला भी.