
लेखक, शिक्षाविद्. पूर्वी दिल्ली. फोटोः पुष्कर व्यास
मेरा फैसला यह था कि मैं राजनीति में नहीं जाऊंगा. मैंने सोचा था कि यह जो अप्रत्याशित और असाधारण आंदोलन (लोकपाल आंदोलन) है, मैं उसे समर्थन दूंगा. फिर मैंने सोचा कि लाखों युवा इसमें शामिल हैं और मैं सिर्फ किनारे खड़ा देख रहा हूं. हालांकि अपने अकादमिक जीवन से मैं खुश था फिर भी मैं जानता था कि मैं आखिर में इस धारा में शामिल हो ही जाऊंगा.
आप ने यह धारणा बना दी है कि कोई भी, कहीं भी, किसी भी बड़ी राजनीतिक पार्टी से जुड़े बिना और किसी बड़े वोट बैंक के बगैर राजनीति में दाखिल हो सकता है. यह समझ बढ़ रही है कि हां, किसी और क्षेत्र में काम करने के बावजूद भी आप राजनीति में दाखिल हो सकते हैं और न सिर्फ दाखिल हो सकते हैं बल्कि जीत भी सकते हैं.
जहां तक मुद्दों की बात है तो भ्रष्टाचार सिर्फ राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है, बल्कि एक स्थानीय मुद्दा भी है. शिक्षा की गुणवत्ता की बात हो, अस्पतालों या बुनियादी सुविधाओं की दुर्दशा या फिर रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली तकलीफें, भ्रष्टाचार की मार सबसे ज्यादा आम आदमी पर ही पड़ती है.
मेरे चुनाव क्षेत्र पूर्वी दिल्ली में बुनियादी ढांचे की बदहाली और झुग्गी झोपड़ी कालोनियों के नारकीय हालात, दो ऐसे मुद्दे हैं जिन पर तत्काल कुछ करने की जरूरत है. अगर मैं जीता तो प्रभावी बदलाव लाने के लिए मैं एमसीडी, डीडीए सहित दिल्ली की तमाम प्रशासकीय इकाइयों के साथ मिलकर काम करूंगा.