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आरसीईपी से अलग हुआ भारत

थाईलैंड में 4 नवंबर को आयोजित हुए विश्व के प्रस्तावित सबसे बड़े व्यापार समझौता सम्मेलन क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से भारत ने ख़ुद को अलग कर लिया। इस सम्मेलन में भाग न लेने की बात कहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से बाहर रहेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि आरसीईपी समझौते का मौज़ूदा प्रारूप न तो भारत की लंबित माँगों और चिंताओं का भी समाधान करता है और न ही अपनी मूल मंशा और सिद्धांतों को पूरी तरह स्पष्ट करता है। उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में इसके परिणाम भारत के लिए न उचित होंगे और न संतुलित। ऐसी स्थिति में आरसीईपी समझौते में शामिल होना भारत के लिए संभव नहीं होगा।

साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि क्षेत्रीय एकीकरण के साथ मुक्त व्यापार और नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए भारत प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि सभी भारतीयों के हितों को ध्यान में रखते हुए जब मैंने आरसीईपी समझौते का आकलन किया, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिला। ऐसे में न तो गाँधीजी के आदर्शों ने और न ही मेरी अंतरात्मा ने आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति दी। उन्होंने कहा कि आरसीईपी वार्ता के सात वर्षों की अवधि में वैश्विक, आर्थिक और व्यापार परिदृश्य समेत अनेक चीज़े बदल चुकी हैं और हम किसी भी सूरत में इन बदलावों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने पहले ही स्पष्ट किया था कि भारत आरसीईपी समझौते की वार्ता के व्यापक और संतुलित परिणाम के लिए प्रतिबद्ध है। भारत इस बात पर गौर करेगा कि समझौते में व्यापार, निवेश तथा सेवाओं में उसके हितों का पूरा ध्यान रखा जाए। बता दें कि आरसीईपी समझौता सम्मेलन में भारत के भाग लेने से इन्कार करने के थाईलैंड के वाणिज्य मंत्री जूरिन लकसानाविसित ने कहा कि भारत को छोडक़र 15 देश समझौते को लेकर सहमत हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि आरसीईपी समझौते से भारत के बाहर होने के फैसले से देश के किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योगों और डेयरी क्षेत्र को घाटे से बचाने के लिए बड़ी मदद मिलेगी। उनका यह भी कहना है कि आरसीईपी में भारत का रुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मज़बूत नेतृत्व और दुनिया में भारत के बढ़ते कद को दर्शाता है। भारत ने जहाँ गरीबों के हितों के संरक्षण की बात की है, वहीं देश के सेवा क्षेत्र को लाभ की स्थिति देने का भी प्रयास किया है। इस फैसले पर भारत का रुख काफी व्यावहारिक रहा है।

समझौता होने पर बढ़ते चीनी उत्पाद

माना जा रहा है कि अगर आरसीईपी समझौता होता है, तो चीन के सस्ते कृषि व औद्योगिक उत्पादों से भारतीय बाज़ार भर जाते। इससे न केवल भारतीय व्यापार घाटा बढ़ जाता, बल्कि लोगों के रोज़गार भी छिनते। कहा जा रहा है अगर भारत आरसीईपी में शामिल होता, तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र होता। अनुमानित तौर पर इससे दुनिया की आधी आबादी जुड़ती, इसमें वैश्विक अर्थव्यवस्था का 40 फीसदी तथा वैश्विक जीडीपी का 35 फीसदी हिस्सा होता।

फ्रंट फुट पर खेला भारत  

आरसीईपी में भाग न लेकर भारत फ्रंट फुट पर खेला है। भारत ने इस बार पूरी तरह व्यापार घाटे पर अपनी चिंताओं को दूर करने की आवश्यकताओं पर ज़ोर दिया है। साथ ही भारतीय सेवाओं और निवेशों के लिए वैश्विक बाज़ार खोलने की ज़रूरत पर भी भारत ने ज़ोर दिया है। विदित हो कि पहले व्यापार सम्बन्धी मुद्दों को लेकर वैश्विक शक्तियों द्वारा भारत पर दबाव डाला जाता था। इस बार भारत ने कहा है कि अब वे दिन लद गए। माना जा रहा है कि भारत के इस फैसले से जहाँ किसानों और गरीबों के हितों की रक्षा होगी, वहीं सेवा के क्षेत्र में भी लाभ होगा।

पिछले समझौते में नुकसान उठा चुका है भारत

बता दें कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में आसियान देशों के लिए 74 फीसदी बाज़ार को खोला था; लेकिन इंडोनेशिया ने भारत के लिए सिर्फ 50 फीसदी बाज़ार खोला था। इतनी ही नहीं भारत-चीन एफटीए को लेकर 2007 में भारत ने सहमति जताई थी और चीन के साथ 2011-12 में आरसीईपी समझौते पर वार्ता को लेकर राज़ी हो गया था। भारत के इस फ़ैसले से आरसीईपी देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा 2004 में सात अरब डॉलर से बढक़र 2014 में 78 अरब पर पहुँच गया था।

भारत के पीछे हटने के छह कारण

आरसीईपी समझौते से भारत के पीछे हटने के छह कारण माने जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि अगर भारत आरसीईपी समझौते में शामिल होता, तो उसे आयात होने वाले 90 फीसदी सामानों पर 15 साल तक के लिए शुल्कों में कटौती करनी पड़ती। इसके साथ ही भारतीय बाज़ार चीन के सस्ते सामान के साथ-साथ न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया के डेयरी उत्पादों से पट जाते। इससे देश के छोटे कारोबारियों और डेयरी किसानों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ता। भारत के लिए चीन उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है;  जबकि भारत चीन के लिए 11वाँ बड़ा साझेदार है।

आरसीईपी के 11 देशों से कारोबार में भारत का व्यापार घाटा 104 अरब डॉलर का है। यानी निर्यात की तुलना में भारत इन देशों से ज़्यादा आयात करता है। इस सौदे में डाटा लोकलाइजेशन बड़ा मुद्दा था।

बेसहारा गायों की सुरक्षा के लिए अभयारण्य

अभयारण्य जैव विविधता को बनाये रखने या देश के अद्वितीय प्राकृतिक वातावरण के संरक्षण के लिए स्थापित किए गए थे। इनसे न केवल प्राकृतिक वातावरण देकर लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने और वापस लाने में मदद मिली है, बल्कि कुछ प्रजातियों को लुप्त होने से बचाने में भी मदद मिली है।

इसका लाभ उठाते हुए, हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक अनूठी पहल की है, जिसके तहत वह नये गौ अभयारण्य और बड़े गौ आश्रम स्थापित करेगी। पता चला है कि इस उद्देश्य के लिए पहाड़ी राज्य में गौ सेवायोग नामक एक नया निकाय स्थापित किया गया है। इस पहल के तहत जल्द ही नौ अभयारण्य और बड़े गौ आश्रय स्थापित किए जाएँगे।

यह देखा गया है कि जिन गायों ने दूध देना बंद कर दिया है या बैल हल से खेत नहीं जोत सकते, उन्हें पशुपालक खुला छोड़ देते हैं। इसके अलावा, कृषि में आधुनिक उपकरणों के उपयोग के आने के बाद भी किसान बैलों को छोड़ रहे हैं। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने पहली मार्च, 2019 को गौ सेवायोग का गठन किया है। इसमें 10 सदस्य सरकारी, 10 ही गैर-सरकारी और 10 विशेष आमंत्रित सदस्य हैं।

अयोग के वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए सरकार ने फैसला किया है कि मंदिर के ट्रस्टों की आय का 15 प्रतिशत और शराब की बोतल के अनुसार बिक्री पर एक रुपये गौवंश उपकर लगेगा। इसके ज़रिये अब तक 7.95 करोड़ रुपये आयोग के खाते में एकत्र किये गये हैं।

राज्य सरकार 47.50 करोड़ की लागत से एक सेक्स-सॉर्टेड वीर्य सुविधा केंद्र स्थापित कर रही है। इस केंद्र की स्थापना के लिए केंद्र सरकार 90 फीसदी अनुदान प्रदान करेगी। शेष 10 फीसदी धनराशि राज्य सरकार देगी। इस केंद्र में देशी गाय की नस्लों के लिए ऐसे इंजेक्शन तैयार किए जाएँगे जो केवल मादा बछड़े पैदा करेंगे। कुटलैहड़  विधानसभा क्षेत्र के लमलाहडी में सेक्स-सॉर्टेड वीर्य सुविधा केंद्र की स्थापना के लिए 740 कनाल भूमि का चयन किया गया है। इससे सडक़ों पर बेसहारा पशुओं की समस्या कम होगी और यह किसानों को पशुधन गतिविधियों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करेगा।

राज्य भर में अयोग ने गौ-अभयारण्य और बड़े गौ आश्रम स्थापित किए हैं। करीब 1.52 करोड़ की लागत वाले गौ-अभयारण्य का नींव पत्थर सिरमौर िज़ले के कोटला बडोग में रख दिया गया है। इसी तरह अन्य जिलों में भी गौ सदन स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है। ऊना िज़ले के थानाकला खास में 1.69 करोड़ रुपये की लागत और िज़ला सोलन के हाड़ा-कुड़ी में 2.97 करोड़ की लागत से गौ-अभयारण्य स्थापित किये जाएँगे। इसके अलावा िज़ला कांगड़ा के बाई अटारियां में मंदिर ट्रस्ट की संचालित गौशाला की बाड़ के लिए 77.90 लाख रुपये जारी किये गये हैं। इसके साथ ही गौ सदनों में क्षमता बढ़ाकर 1000 गायों की हो जाएगी। जिला बिलासपुर में बरोटा डबवाल और धरा-तातोह में गौ-अभयारण्यों की स्थापना के लिए भूमि का चयन किया गया है।

इसके अलावा कांगड़ा, मंडी और सोलन िज़लों में चार नए गाय आश्रय निर्माण करने के लिए 21 लाख रुपये भी जारी किये गये हैं। नौ नये गाय आश्रयों के निर्माण और स्थानीय क्षेत्रों की निराश्रित गायों को आश्रय प्रदान करने के लिए पुराने गाय आश्रयों के विस्तार के लिए आयोग ने 1.20 करोड़ रुपये की राशि जारी की है। अब तक राज्य सरकार ने दो नये पशु चिकित्सा औषधालय शुरू किए हैं और आठ पशु चिकित्सा औषधालयों को पशु चिकित्सालय में अपग्रेड किया गया है, जबकि एक पशु चिकित्सालय को उप-प्रभागीय पशु चिकित्सा अस्पताल में अपग्रेड किया गया है।

इसके अलावा पशुपालन और डेयरी गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाएँ कार्यान्वित की हैं। साथ ही अनुसूचित जाति और सामान्य श्रेणी के बीपीएल परिवारों के लिए गर्भवती गाय और भैंस पालन के लिए पशु आहार  योजना शुरू की है। इस योजना के तहत इन श्रेणियों के परिवारों के उत्थान के लिए उनकी गायों और भैंसों के गर्भाधान के पिछले तीन महीनों के दौरान 50 प्रतिशत अनुदान पर पशु आहार प्रदान करने के लिए 4.60 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। भारत सरकार ने डेयरी उद्योग विकास योजना शुरू की है।

इस योजना के तहत राज्य सरकार विदेशी नस्ल की गायों की खरीद पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त और लाभार्थियों को देसी नस्ल की गायों की खरीद पर 20 प्रतिशत उपदान प्रदान कर रही है। इसके अलावा साहीवाल, लाल सिंधी, गिर और थारपारकर नस्ल को भी पशु प्रजनन नीति में शामिल किया गया है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत पालमपुर के भ्रूण प्रत्यारोपण प्रयोगशाला में साहीवाल नस्ल के भ्रूण को तैयार करने के लिए केंद्र सरकार से 195.00 लाख रुपये प्राप्त हुए हैं। इसके लिए साहीवाल नस्ल की आठ गौ या बछड़ों की नस्लें पंजाब और हरियाणा से खरीदी गई हैं।

पशुपालन मंत्री और गौ सेवायोग के अध्यक्ष वीरेंद्र कँवर ने कहा कि वर्ष 2012 की पशु जनगणना के अनुसार 32107 बेसहारा गायें सडक़ों पर थीं और अब तक 9119 पशुओं को गौ घरों में आश्रय प्रदान किया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य में गैर सरकारी संगठनों द्वारा 146 गौ आश्रम संचालित किए जा रहे हैं। पंचायती स्तर पर भी बेसहारा गायों के लिए गाय आश्रय, गाय शेड, पशु तालाब आदि का निर्माण किया जा रहा है।

उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे अपनी गायों को न छोड़ें और पंचायती राज अधिनियम 2006 के तहत अपने पशुओं का पंजीकरण सुनिश्चित करें।

भारतीय रेलवे का निजीकरण!

केंद्र की एनडीए सरकार और रेल मंत्रालय ने मुंबई-दिल्ली और दिल्ली-कोलकाता के बीच डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर की बड़े पैमाने पर सार्वजनिक हितों के लिए रेलवे का निजीकरण करने की योजना बनायी है। इसे दिसंबर 2021 तक पूरा कर लेने की योजना है। 90 फीसद व्यस्त मार्गों को यात्री यातायात और तेज़ गति की लक्जरी गाडिय़ाँ चलाने के लिए यातायात से मुक्त किया जा रहा है। इसके अनुसार, वैश्विक टेंडर के लिए बोली दस्तावेज़ों पर काम किया जा रहा है। इसके अलावा, देश भर में कुछ अन्य मार्गों मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और सिकंदराबाद में उप शहरी रेल सेवाओं सहित निजी ट्रेन सेवाओं के लिए खोला जाएगा। सरकार ने मौज़ूदा मुंबई-दिल्ली और कोलकाता-दिल्ली पटरियों को 160 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से अपग्रेड करने के लिए लगभग 1300 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं।

रेल मंत्रालय के अनुसार एक साथ सरकार सभी आठ उत्पादन इकाइयों जो कि रेल कोच, लोकोमोटिव, डीज़ल और इलेक्ट्रिक, और व्हील्स और एक्सल प्लांट बनाती हैं को कॉरपोरेटाइज करने के लिए तैयारी कर रही है। इस तरह के कॉरपोरेटाइजेशन के तौर-तरीकों को लेकर सरकार में एक कवायद चल रही है कि क्या लोकोमोटिव इकाइयों के प्रत्येक समूह और पहियों और एक्सल सहित रेल डिब्बों के लिए होल्डिंग कंपनी होगी। रेलवे उत्पादन इकाइयों के निजीकरण से कॉर्पोरेट निवेश के लिए रास्ते खुलेंगे, इससे रोज़गार में कमी भी हो सकती है, जबकि मौज़ूदा कार्यबल अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त नहीं हो सकते हैं। यह उन लोगों के लिए देश में रेल सेवाओं की लागत में वृद्धि करेगा, जो कि बड़े पैमाने पर नौकरियों, तीर्थयात्राओं, पर्यटन और लम्बी दूरी के लिए रेल परिवहन पर निर्भर हैं।

रेल सेवाओं में निजी भागीदारी की कोशिश तबसे की जा रही है, जब 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण के साथ ‘ऑन योर वैगन स्कीम’ को स्थापित किया गया था, पैलेस ऑन व्हील्स की तर्ज पर लक्जरी/सुपर लग्जरी रेल हेरिटेज टूरिज्म का राजस्थान सरकार के पर्यटन निगम के सहयोग से, बीओटी (बिल्ड-अपरेट-ट्रांसफर) के आधार संचालन किया जा रहा है। निजी निवेशक का एक मात्र उद्ेश्य लाभ कमाना है, लेकिन कोर्ई भी निजी निवेशक निवेश और लाभ के बीच लम्बे समय के कारण आगे नहीं आया। यहाँ तक कि रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में भी में कुछ राज्यों को छोडक़र अधिकांश राज्यों को साधनविहीनता के आधार पर नहीं लिया गया है। यहाँ तक कि कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के साथ प्रतिस्पर्धा में निजी कंटेनर माल ढुलाई सेवाओं ने निराशाजनक प्रदर्शन किया है।

ट्रेन सेवाओं का निजीकरण भारत में लोकतांत्रिक शासन की कानून आधारित प्रणाली के देश के शासन जहाँ लोग बहुमत की सरकार के संप्रभु स्वामी हैं। वहाँ बड़ी संख्या में गरीब लोगों को जो यात्रा के लिए रेलवे पर निर्भर हैं क्योंकि परिवहन के अन्य साधन उनकी पहुँच से परे हैं उन्हें इससे से वंचित करना सही नहीं है। इसलिए ट्रेन सेवाओं का निजीकरण जन-विरोधी होगा। इसके अलावा, कानून और व्यवस्था की समस्या और संचालन की समस्या भी है। रेलवे अक्सर सार्वजनिक आंदोलन का सामना करता है। लोगों की समस्या सरकार के साथ होती हैं। इस तरह की समस्याओं के लिए रेलवे किसी भी तरह से िज़म्मेदार नहीं हैं, परंतु इससे रेल सेवाओं की सेवा लागत बढ़ती जा रही है और यह निजी निवेशकों के लिए लाभहीन है। अन्य बाधा दोहरी सुरक्षा प्रणालियों की कमी है, जो रेलवे संपत्ति और सुरक्षा और सुरक्षा के लिए रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) हैं और कानून और व्यवस्था के लिए सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) जिसमें तोडफ़ोड़ और अप्रिय घटनाओं की रोकथाम शामिल है, आरपीएफ और जीआरपी सरकार का हिस्सा है।

अन्य बाधाएँ निजी ट्रेन सेवाओं का उच्च स्तर होगा, इसके अलावा राज्य सरकारों का रेलवे पर एकल सुरक्षा आदेश और नियंत्रण की कमी कानून और व्यवस्था पर उनके आधिकारिक नियंत्रण को प्रभावित करेगा। यह लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में सार्वजनिक विद्रोह को भी बढ़ता है, क्योंकि यह लोगों के अधिकार को बाधित करता है। फिर भी इसे ट्रायल बैलून के रूप में माना जा रहा है, क्योंकि इसे कोर्ई भी लेने वाला नहीं है। सरकार ने लखनऊ, नई दिल्ली और अहमदाबाद पर दो सुपरफास्ट सुपर लग्जरी तेजस एक्सप्रेस चलाने के लिए आईआरसीटीसी (इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन) को सौंपा है। मुंबई रूट, जिसे प्राइवेट रन ट्रेनों के रूप में जाना जाता है। रेलवे ट्रेड यूनियन बड़े जनसमर्थन के साथ इस तरह के कदम का विरोध करेंगी।

मखमली प्यार में थिरके शैल

शैल अब मखमली प्यार में थिरकते नज़र आएँगे। उनके गाने जो सबके दिल में उतरने वाले जैसे सोणिये हीरिये, जान वे, जि़ंदगी, कोका कोका, ओनली यू, तेरे बिन, नचले सोणिये तू करने के बाद अब शैल अपनी नई एलबम के जरिए दिलों में दस्तक दे रहे है जिसका नाम है ‘मखमली प्यार।’ जो मूल रूप से रोमानी धुनों से दिलों के एहसास जगाने वाले गानों के सुरीले गायक शैल का नया गाना देश विदेश चर्चा में है।

कैसे सुरों में ढाले नये गीत?

दरअसल मेरी पहली एलबम से जुड़े हुए विद्युत गोस्वामी ने मुझे एक धुन सुनाई तो महसूस हुआ की यह धुन काफी अच्छी है और मेरे गुरु जी ने कहा की कुछ मखमली-सा लेकर आओ, तो हमें तुरंत खयाल आया की मखमली प्यार क्यों न लिया जाए, क्योंकि प्यार आपको बहुत ही प्यारा एहसास देता है, तब हमने निर्देशक अमरजीत सिंह और सावंत घोष से बात की।

‘मखमली प्यार’ ही क्यों?

प्यार एक ऐसा एहसास है, जिसको जितना बाँटो उतना ही बढ़ता है, आज के युवाओं को मैं अपने गीतों के ज़रिए वो एहसास देना चाहता हूँ कि प्यार के बिना जि़ंदगी कुछ नहीं है और जहाँ तक मेरी बात है संगीत के बिना मेरी जि़ंदगी कुछ नहीं है। मैं युवाओं के गहरे प्रेम का शब्द और संगीतमय बनाना चाहता हूँ। युवा वर्ग की भावनाओं से जुडक़र मैं ताज़गी महसूस करता हूँ।

‘मखमली प्यार’ को कनाडा में सूट करने की वजह?

इसके ज़रिए एक तो पूरी दुनिया में महक रहे भारतीयों से जुडऩा चाहता था। कनाडा एक बहुत खूबसूरत जगह है, जहाँ का मौसम आपको और आपके प्यार को बहुत खूबसूरत एहसास देता है।

इतनी खूबसूरत और सुरीली आवाज़ को बनाए रखने के लिए आप क्या क्या करते हो?

मैं अपनी आवाज़ का बहुत खयाल रखता हूँ और जब भी समय मिलता है, उस समय रियाज़ कर लेता हूँ, संगीत मेरा प्रोफेशन नहीं मेरा पैशन है।

क्या खाना है पसंद? 

डार्क चॉकलेट, मखाने और खिचड़ी यह मेरा पसंदीदा भोजन है, मैं इन्हें किसी भी समय बड़े प्यार से खा सकता हूँ।

पंजाब से कितना गहरा है आपका जुड़ाव?

मेरा जन्म ही लुधियाना में हुआ है, मैं पूरी तरह पंजाबी हूँ। छोटी उम्र में सिंगापुर चला गया था, पर भारत से जुड़ा रहा हूँ और जब भी समय मिलता है इंडिया आ जाता हूँ। दरअसल सिंगापुर मेरी कर्मस्थली है और भारत मेरी मर्मस्थली है। वहाँ में दुनियाभर की ज़रूरतों के लिए रहता हूँ पर भारत से मैं रूहानी एहसास से जुड़ा रहता हूँ। दिल्ली में मेरी माँ रहती हैं, इसीलिए माँ और मिट्टी मुझे खींच ही लाती है।

संगीत की दुनिया में आने का कारण?

संगीत गीत में बचपन से लगाव था और मैं अच्छा म्यूजिक सुनना पसंद करता हूँ। एक बार लंदन में टैलेंट हंट शो हुआ, जिसमें मैंने अपना गाना रिकॉर्ड करके भेजा, गाना उन्हें पसंद आया और मुझे चुन लिया गया। इसके बाद हमने एलबम निकाली ‘कहाँ है तू’ और तब से अब तक संगीत सफर चल ही रहा है।

क्या आपने कभी हीरो के तौर पर िफल्में करने के सोचा?

नहीं, मैं अपनी गायकी की दुनिया में काफी खुश हूँ और अपनी एलबम में जो अभिनय कर लेता हूँ, इतना ही काफी है। लोगों के दिलों से मैं गीत संगीत के ज़रिये ही जुड़ा रहना चाहता हूँ।

अपनी एलबम में से आपके दिल के करीब कौन-सा गाना है?

जैसे माँ को अपने सभी बच्चे पसंद होते हैं और दिल के करीब होते हैं, वैसे ही मुझे भी अपनी सभी एलबम से लगाव है। परन्तु मुझे सोणिये हीरिये खास पसंद है, क्योंकि इसे करते समय मेरी आँखें नम हो गयी थीं।

आप विदेशों में ही शूटिंग करते हैं?

नहीं, हिंदुस्तान बहुत खूबसूरत है और मैं अपने काफी गानों को यहाँ सूट कर चुका हूँ।

क्यों नहीं आती लक्ष्मी पत्रकार के द्वार!

दीपावली का दिन या यूँ कहिए दीपावली की रात्रि। लोग खूब रौशनी करते हैं और अपने किवाड़ खुले रखते हैं, ताकि धन की देवी लक्ष्मी माता आराम से घर में प्रवेश कर सके। इस मामले में हम िकस्मत वाले हैं। घर में किवाड़ ही नहीं है। केवल चौखट है। उस चौखट पर दो कीलें लगाकर परदा टाँग दिया है। कुछ तो परदा रहे। पर कितनी दिवालियाँ और अमावस की रातें गुज़री पर धन की देवी के चरण हमारे इस हवादार जैसे मकान में नहीं पड़े। इस बार उम्मीद थी, क्योंकि साथ वाले बंगले में रहने वाले सेठ घनश्यामदास अपने पापों से मुक्ति के लिए परिवार सहित चार धाम की यात्रा पर थे। सोचा शायद इस बार देवी उनका बंद दरवाज़ा देखकर हमारे बिना पल्लों वाली चौखट को लांघकर अंदर आ जाए। वैसे भी आज तक इस चौखट के अंदर कर्ज़दारों अलावा किसी और के कदम नहीं पड़े हैं।

इस साल हमने अपने घर के बाहर अपने नाम की तख्ती भी लगा दी थी और नाम के नीचे लिख दिया ‘पत्रकार’। घर में बिजली नहीं थी। मोमबत्तियों की धीमी रौशनी में रोज़ की तरह काम हो रहा था। सही भी था कि जब दो-तीन महीने तक बिजली का बिल 250 रुपये का नहीं भरोगे, तो बिजली तो कटेगी ही। हम कोई पूंजीपति, उद्योगपति, मंत्री, विधायक या पार्टी के अध्यक्ष थोड़ा ही हैं, जिनका लाखों रुपये के बिल ‘बकाया’ होने पर भी बिजली नहीं कटती, क्योंकि वे देश हित में ऐसा करते हैं। पर एक बात ठीक हुई कि जो लोग हमारी औकात नहीं जानते थे उन्हें लगा होगा कि लक्ष्मी माता के स्वागत के लिए किवाड़ खुला छोडऩे की जगह पल्ले ही निकलवा दिए और घर में ‘कैंडल लाइट डिनर’ चल रहा है। अमीरों का कैंडल लाइट डिनर उनकी भव्यता का सुबूत है और हमारा ‘कैंडल लाइट डिनर’ है हमारी मुफलिसी की व्यथा। खैर दीपावली की पूरी रात बैठे रहे इंतज़ार में। वैसे तो घर के आँगन में अँधेरा था पर सेठ घनश्यामदास के बंगले पर लगी लडिय़ों की रौशनी के हम भी भागीदार थे, तो छनकर बिखर रही रौशनी में हमारी ‘नेम प्लेट’ पढ़ी जा रही थी। पर देवी नहीं आयी। दरवाज़े पर दो कीलों के सहारे लटक रहा परदा एक बार भी नहीं हिला, जिससे पता चलता कि कोई अंदर आया है। सुबह आँगन में देवी के पैरों के निशान भी तलाशे पर भारी जूतों और चप्पलों के अलावा वहाँ कोई निशान नहीं था। बैंक के खाते में 35-40 रुपये कम हो गये थे, क्योंकि दीपावली का सामान खरीदने के लिए जो पैसे एटीएम से निकलवाये थे, उनके एवज़ में बैंक ने अपनी दलाली काट ली थी। जो भी हो, देवी नहीं आयी, तो धन भी नहीं आया। उल्टे त्योहार पर खर्च और हो गया। सुबह ऑफिस गये वहाँ देखा एक जूनियर पत्रकार चमचमाती गाड़ी में आये। ड्राइवर ने उन्हें ऑफिस के गेट पर उतारा और गाड़ी पाॄकग में ले गया। हम हैरान-परेशान थे। हमें घर का खर्च चलाना दूभर है और ये साहिब चालक सहित गाड़ी में घूम रहे हैं। साथ से गुज़र रहे एक सहायक ने कहा- ‘क्या देखते हो जनाब, यह आप जैसा नहीं है। यह तो ‘गोदी-मीडिया’ का हिस्सा बन गया है।

हमने पूछा यह ‘गोदी मीडिया’ क्या चीज़ है? वह बोला जब आप अपनी कलम अपनी मर्ज़ी से नहीं, बल्कि किसी और की मर्ज़ी से चलाते हैं, तो आप ‘गोदी मीडिया’ की श्रेणी में आ जाते हो। बस थोड़ा-सा कलम का मुँह मोड़ दो फिर देखो पैसों की कैसी बरसात होती है। आपके आँगन में। उस जूनियर पत्रकार ने शायद मुझे यह भी समझाने का प्रयास किया कि अब पत्रकार की परिभाषा बदल गयी है। अब इसका अर्थ है पत्र और कार। यह बात कुछ-कुछ हमारी समझ में भी आयी। समझ में आने लगा कि देश में जो भी सौदेबाज़ी होती है, उसमें कोई-न-कोई बिचौलिया होता है। तो धन की देवी की हमारे साथ जो ‘डील’ है वह भी तो किसी बिचौलिए के द्वारा ही होगी। ये बिचौलिए हैं वे लोग जिनकी मर्ज़ी से आपका कलम चलेगा या आपकी आवाज़ निकलेगी। पर हम क्या करें हम तो उर्दू के महान् शायर मोमिन खान मोमिन के इस शेयर जैसे हैं-

‘उम्र तो सारी कटी इश्क-ए-बुतां में मोमिन

आािखरी वक्त में क्या खाक मुस्लमां होंगे’

घर में चाहे दरो-दीवार न हों, दीवारों के दरीचों से हवा आती हो, पर कलम जो मिला, वह अनमोल है। इस कारण यह बिकाऊ नहीं है। इसकी कीमत चुकाने वाला अभी इस धरती पर नहीं आया। लोगों की पहचान उनके रुतबे और धन-दौलत से होती है, पर हमारी पहचान तो यह कलम हैं। आदमी कैसा भी हो अपनी पहचान तो नहीं खोना चाहता। तो हम कैसे खो दें।

चौकीदार टिप्पणी पर राहुल को राहत, राफेल पर पुनर्विचार याचिका खारिज

चुनाव प्रचार के दौरान अदालत का हवाला देकर ‘चौकीदार चोर है’ वाली टिप्पणी से अदालत की अवमानना ममले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को गुरूवार को राहत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उनका माफीनामा स्वीकार कर लिया है। इस तरह इस मामले में उन्हें बड़ी राहत मिली है। साथ ही अदालत ने सरकार को भी राहत देते हुए राफेल पर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने राफेल विमान सौदे में दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। इसे लेकर कुछ नए तथ्य होने का दावा किया गया था जिनसे  स्वीकार नहीं किया और कहा इसमें कुछ नया नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने १४ राफेल जेट के सौदे को बरकरार रखते हुए १४ दिसंबर, २०१८ के फैसले के खिलाफ राफेल समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

उधर सर्वोच्च अदालत ने राहुल गांधी को ‘चौकीदार चोर है’ वाले बयान पर माफ कर दिया है। हालांकि अदालत ने कहा कि ऐसे राजनीतिक मामलों में अदालत को नहीं घसीटा जाना चाहिए। वैसे राहुल गांधी ने अपने इस बयान के लिए सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगी थी। भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने राहुल गांधी के खिलाफ यह याचिका दायर की थी। न्यायालय ने राहुल गांधी को अदालत में अपनी टिप्पणी के लिए भविष्य में अधिक सावधान रहने के लिए कहा है।

सबरीमाला केस बड़ी बेंच को भेजा

सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की बेंच ने गुरूवार को सबरीमाला मंदिर मामले को सात जजों की संवैधानिक बेंच को सौंप दिया है। इस फैसले के बाद सबरीमाला में फिलहाल महिलाओं की एंट्री जारी रहेगी।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की बेंच में से तीन जजों का मानना था कि इस मामले को सात जजों की बेंच को भेज दिया जाए हालांकि जस्टिस नरीमन और जस्टिस चंद्रचूड़ ने इससे अलग विचार रखे। अंत में पांच जजों की बेंच ने ३:२ के फैसले से इस सात जजों की संबैधानिक बेंच को भेज दिया है। इस फैसले के बाद सबरीमाला मंदिर में फिलहाल महिलाओं की एंट्री जारी रहेगी।

जस्टिस नरीमन ने फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही अंतिम होता है।  फैसला अनुपालन करना कोई विकल्प नहीं है। संवैधानिक मूल्यों की पूर्ति करना सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस का असर सिर्फ इस मंदिर नहीं बल्कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, अग्यारी में पारसी महिलाओं के प्रवेश पर भी पड़ेगा। अपने फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परंपराएं धर्म के सर्वोच्च सर्वमान्य नियमों के मुताबिक होनी चाहिए। पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस खानविलकर, जस्टिस नरीमन और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।

सीजेआई दफ्तर आरटीआई के दायरे में आये : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़े फैसले में बुधवार को कहा कि प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) का दफ्तर भी आरटीआई के दायरे में आएगा। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सीजेआई दफ्तर सार्वजनिक आफिस है लिहाजा इसे भी आरटीआई के दायरे में होना चाहिए।

इस फैसले के बाद देश के प्रधान न्यायाधीश का दफ्तर सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में आ जाएगा। इस संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। इस मामले में ४ अप्रैल को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली संविधान बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब सीजेआई रंजन गोगोई की आगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच फैसला सुनाया है। बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना हैं।

गौरतलब है कि मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) ने अपने आदेश में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का दफ्तर आरटीआई के दायरे में होगा। इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया था। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने २०१० में चुनौती दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर ”स्टे” लगा दिया था। इस मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया गया था। बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना हैं।

याद रहे प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली बेंच ने इस मामले पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि कोई भी अपारदर्शिता की व्यवस्था नहीं चाहता, लेकिन पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को नष्ट नहीं किया जा सकता। बेंच ने कहा था कि कोई भी अंधेरे की स्थिति में नहीं रहना चाहता या किसी को अंधेरे की स्थिति में नहीं रखना चाहता। आप पारदर्शिता के नाम पर संस्था को नष्ट नहीं कर सकते।

कांग्रेस-एनसीपी ने समितियां बनाईं

महाराष्ट्र में सरकार कब बनेगी यह अभी पता नहीं लेकिन एक बड़े कदम में कांग्रेस और एनसीपी ने ५-५ सदस्यों की एक कमिटी गठित की है। यह कमिटी न्यूनतम साझा कार्यक्रम के बिंदुओं पर काम करेगी। इस बीच एक बहुत अहम ब्यान में शिव सेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने कहा है कि दुबारा चुनाव की जरूरत नहीं पड़ेगी और तीनों दल साथ आकर मुद्दों पर बात करेंगे।

जानकारी के मुताबिक शिव सेना से मुद्दों पर स्पष्ट बातचीत नहीं होने के बावजूद अपनी तरफ से पहल करते हुए संभावित साझा सरकार के सबसे मुख्य पहलू – न्यूनतम साझा कार्यक्रम – पर काम शुरू कर दिया है और कमिटी का गठन किया है। यह माना जाता है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर सबसे ज्यादा जोर कांग्रेस का है। इनमें किसानों के कर्ज, बिजली और उनकी अन्य मांगों के मसले शामिल हैं।

कांग्रेस की सूची में पृथ्वीराज चव्हाण, अशोक चव्हाण, विजय वेडदेतीवर, माणिकराव ठाकरे और बालासाहब थोराट हैं जबकि एनसीपी की सूची में अजित पवार, छगन भुजबल, नवाब मलिक, जयंत पाटिल और धनंजय मुंडे शामिल हैं।

जयपुर से मुंबई लौट रहे  विधायकों से पत्रकारों की जो बातचीत हुई है, उससे संकेत मिलता है कि उनसे सरकार के गठन की बात हुई है। हालांकि, उनमें से ज्यादातर यह भी कहते सुने गए हैं कि आलाकमान जो भी फैसला करेगी, वहीं उन्हें मंजूर होगा। साथ ही वे यह भी कहते सुने गए हैं कि भाजपा को रोकने के लिए शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी को साथ बैठकर सरकार बनाने की बात करनी चाहिए।

अस्वस्थ राउत से मिलेंगे कांग्रेस, एनसीपी नेता

कांग्रेस विधायकों के जयपुर से मुंबई के लिए वापस निकलने की ख़बरों के बीच महाराष्ट्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता आज अस्पताल में भर्ती शिव सेना नेता संजय राउत से मिलने जायेंगे। एनसीपी के नेता नवाब मलिक भी शिव सेना नेता का हाल जानने कुछ देर पहले अस्पताल गए थे। यह तीनों दल सरकार बनाने को लेकर चर्चा में हैं, हालांकि, अभी तक कोइ तस्वीर साफ़ नहीं हुई है।

खबर है कि टूट से बचाने के लिए जयपुर भेजे गए कांग्रेस विधायकों को पार्टी अब मुंबई वापस ला रही है। संभावना है कि २-३ घंटे में यह विधायक जयपुर एयरपोर्ट से मुंबई के लिए उड़ेंगे। अभी साफ़ नहीं है कि मुंबई में इन विधायकों को कांग्रेस कहाँ रखेगी क्योंकि अभी सरकार बनने की तस्वीर पूरी तरह धुंधली है।

इस बीच महाराष्ट्र में भाजपा का सरकार बनाने का जिम्मा अब पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने संभाल लिया है, ऐसी चर्चा है। राणे पिछले २४ घंटे में बहुत सक्रिय हुए हैं और  रहे हैं कि जल्द ही पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनेगी। हालांकि, इसका मकसद शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी विधायकों पर दबाव बनाने की भाजपा की रणनीति भी हो सकती है।

शिव सेना अब पूरी तरह कांग्रेस और एनसीपी के ऊपर निर्भर है। लिहाजा भाजपा उसपर तंज कस रही है। लेकिन अभी तक किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया  जा सकता। राजनीतिक हलकों में शरद पवार के शिव सेना पर दबाव बनाने की नीति को इस दृष्टि से भी देखा जा रहा है कि वह, कोइ पता नहीं, भाजपा को ही स्पोर्ट कर दे, हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं ने पवार को कुछ ज्यादा सम्मानजनक तरीके से ‘ट्रीट” नहीं किया था।