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तहलका विशेष

भारत का अटल रुख़: आतंक के लिए कोई जगह नहीं

विश्व में नैतिक मूल्यों पर अक्सर भारी पड़ती रणनीतिक सुविधा के दौर में भारत ने दृढ़ और निडर रुख़ अपनाया है कि जो लोग...

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राजनीति

जंतर-मंतर वाले अब जा टिके हैं चंडीगढ़ के बंगलों में

क्या आपको वे पुराने दिन याद हैं जब सत्येंद्र जैन और उनके गुरु अरविंद केजरीवाल ने केवल आदर्शवाद और ​​सीटी बजाकर दिल्ली की राजनीति में हलचल मचा दी थी? अब वही सत्येंद्र जैन पंजाब में स्वास्थ्य विभाग चला रहे हैं, वो भी चंडीगढ़ के एक शानदार सरकारी बंगले से। जी हां, वही व्यक्ति जो कभी दिल्ली की नौकरशाही से लड़ते थे, अब पंजाब के स्वास्थ्य विभाग की डोरें खींच रहे हैं, बिना किसी चीरफाड़ के। उनके पूर्व ‘विशेष कार्य अधिकारी’ शालीन मित्रा भी उनके साथ पंजाब जा चुके हैं, जिससे स्पष्ट है कि यह सिर्फ एक सप्ताहांत की पोस्टिंग नहीं है। और जैन अकेले नहीं हैं। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, जो कभी मुफ्त पाठ्यपुस्तकों के पक्षधर थे, अब पंजाब के शिक्षा विभाग में सलाहकार की भूमिका में हैं। और रीना गुप्ता, जो कभी केजरीवाल के आलोचकों से तकरार करती थीं, अब पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की बॉस बन बैठी हैं। यह एक उल्टा राजनीतिक एक्सचेंज कार्यक्रम सा लगता है - दिल्ली के दिमाग अब पंजाब के लस्सी पसंद करने वाले लोगों में दुकान जमा रहे हैं। कभी दिल्ली डायलॉग कमीशन की उपाध्यक्ष रहीं जैस्मिन शाह अब पंजाब के आईटी विभाग में ‘लीड गवर्नेंस फेलो’ हैं। वहीं, कमल बंसल ने दिल्ली के तीर्थ यात्रा बोर्ड से पंजाब की तीर्थ यात्रा समिति का अध्यक्ष बन जाना पसंद किया है। सूत्रों के मुताबिक, चंडीगढ़ में कम से कम दस सरकारी फ्लैट अब दिल्ली से आए इन लोगों के पास हैं, जो ‘सिद्धांतवादी’ नौकरशाही की अपनी शैली भी साथ ढो कर लाए हैं। आलोचक कहते हैं - जो कभी व्यवस्था से लड़ते थे, वे अब खुद व्यवस्था बन गए हैं।

राज्यवार

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आप से बात

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