चेता रहा है वायु प्रदूषण

यह सही है कि दिल्ली में प्रदूषण रहता है। सुनने में आया है कि जबसे आम आदमी पार्टी की सरकार वहाँ पर बनी है, प्रदूषण काफ़ी कम हुआ है, लेकिन दीपावली के बाद अचानक ऐसी ख़बरें भी आयीं कि दिल्ली गैस चैंबर बन गयी है। हालाँकि दिल्ली में ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत में पिछले दिनों प्रदूषण बहुत अधिक रहा। ऐसे में केवल किसानों को नहीं, बल्कि सभी लोगों को सोचना होगा कि कहीं वे भी तो प्रदूषण नहीं फैला रहे। सभी को जहाँ तक सम्भव हो सके प्रदूषण फैलाने से परहेज करना चाहिए और अधिक से अधिक पौधे लगाने चाहिए, ताकि प्रदूषण घट सके और हम स्वस्थ रह सकें; आने वाली पीढिय़ाँ स्वस्थ रह सकें। अगर इस समस्या को अब भी हमने गम्भीरता से नहीं लिया, तो बीमारियाँ भी बढ़ेंगी और भविष्य में इसके गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। आपने बढ़ते प्रदूषण पर एक संतुलित लेख प्रकाशित किया, जिसमें यह भी पता चला कि किस स्तर पर प्रदूषण सामान्य होता है और किस स्तर पर घातक। उम्मीद है आप आगे भी इस तरह की दिक़्कतों से हम पाठकों को चेताते रहेंगे।

प्रणव त्रिपाठी, आलम बाग़, लखनऊ

गुरुनानक देवजी के रास्ते पर चलने का प्रण करें

तहलका के पूरे स्टाफ को भी पूरे सिख समाज की ओर से प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। आपने प्रकाश पर्व पर लेख प्रकाशित किया, सभी देशवासियों को प्रकाश पर्व की शुभकामनाएँ दीं, अच्छा लगा। प्रकाश पर्व एक बड़ा त्योहार है। सभी देशवासी गुरु नानक देव जी के आदर्शों का आदर करते हैं और इस पर्व को बड़े हर्ष के साथ मनाते हैं। अगर सभी लोग गुरु जी की शिक्षाओं को भी मानें, तो पूरे देश में शांति और ख़ुशहाली स्थापित हो जाएगी; भेदभाव मिट जाएगा। तो हम सभी मिलकर गुरु नानक देव जी के बताये रास्ते पर चलने का प्रण करें, ताकि हमारा समाज सुधरे, हमारे समाज में विकृतियाँ दूर हों और भारत फिर से विश्व गुरु बने।

जोगिंदर सिंह, चंडीगढ़, पंजाब

सिस्टम पर भरोसा न उठने दें

इस बार दिल्ली में जिस तरह से वकील और पुलिस आपस में लड़े, उससे आम लोगों पर बहुत ही ग़लत प्रभाव पड़ा है। लोगों का इन दोनों विभागों पर पहले ही भरोसा कम है, ऐसे में वकीलों और पुलिसकर्मियों में हुए विवाद में यह भरोसा निश्चित ही और कम हुआ होगा। सभी वकीलों और पुलिसकर्मियों को सोचना चाहिए कि भी दोनों ही कानून के रखवाले हैं। ऐसे में अगर ये लोग ही और लड़ेंगे-झगड़ेंगे, तो जनता इनसे विवादों के उचित फ़ैसले मिलने का भरोसा कैसे करेगी। ऐसे में तो सिस्टम से लोगों का भरोसा उठने लगेगा। जनता की न•ारों में पुलिस और वकील दोनों की इज़्•ात ख़त्म हो जाएगी। आपने इस पर एक अच्छी स्टोरी लिखी, आपका भी धन्यवाद; मगर आपको यह भी लिखना चाहिए कि ये लोग आपस में न लड़ें।

राकेश कुमार मिश्रा, दिल्ली

मतभेद मं•ाूर, पर मनभेद नहीं

राम मंदिर पर सुप्रीम फैसला सभी के लिए स्वागत योग्य है। मुझे खुशी है कि लम्बे समय से चलने वाला विवाद आखऱि हमेशा के लिए ख़त्म हो गया। मुझे अपने देश के हिंदू और मुस्लिम भाइयों दोनों से यही कहना है कि जिस तरह से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को माना और उसका स्वागत किया, उसी तरह से देश में आपसी सौहार्द से रहें, तो कितना अच्छा हो। क्योंकि अगर हम आपस में लड़ते रहेंगे, तो कोई फ़ायदा नहीं होगा। क्योंकि झगड़ा किसी चीज का हल नहीं होता, इसलिए सभी को अच्छे से काम करना चाहिए; मिल-जुलकर रहना चाहिए; भारत की अखंडता को बरकरार रखना चाहिए। मंदिर बने या मस्जिद इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता; फ़र्क तब पड़ता है, जब लोग आपस में लड़ते मरते हैं। ईश्वर एक है, इस बात को हम सबको समझ लेना चाहिए। हालाँकि इबादत के तरीके अलग-अलग हैं। इसलिए इबादत-पूजा के सभी के तरीकों में भले ही भेद हो, मुद्दों को लेकर मतभेद भी हो सकते हैं, पर मनभेद नहीं होना चाहिए।

वीरेंद्र कुमार, शालीमार गाँव, दिल्ली

राजनीतिक बिगाड़ पर भी दें सामग्री

पत्रिकाओं में तरह-तरह के लेख मिलते हैं, लेकिन आपकी पत्रिका में मुझे करियर का लेख भी पढऩे को मिला, जो कि सबसे अच्छा लगा। वैसे तो तहलका में प्रकाशित सभी लेख अच्छे हैं, लेकिन हम छात्रों के लिए करियर बनाने के लिए मार्गदर्शन बहुत •ारूरी है। आपके द्वारा प्रकाशित लेख पढक़र मैंने भी ठाना है कि मैं जीवन में इंटीरियर डिजाइनर बनूँगा। मैं 12वीं का स्टूडेंट हूँ। आपने मेरा मार्गदर्शन किया इसके लिए धन्यवाद। 12वीं की पढ़ाई पूरी होते ही आपके बताये संस्थानों में संपर्क करके एडमिशन लूँगा। मेरी गुजारिश है कि आप लोग ऐसे ज्ञानवर्धक सामग्री तहलका में प्रकाशित करते रहें, जिनसे छात्रों का ज्ञान बढ़े। मेरा आपसे एक और अनुरोध यह भी है कि आज राजनीतिक बिगाड़ जो हो रहा है उसके ऊपर भी लिखिए, ताकि राजनीति में अच्छे लोगों को जनता चुने, ताकि देश का अच्छी तरह विकास हो सके।

राजकुमार सिंह, वाराणसी

अंक पठनीय और सराहनीय

बहुत अच्छी पत्रिका है तहलका। 14 नवंर को इसका नया अंक हमारे यहाँ एक अख़बार और पत्रिका विक्रेता के पास दिखा, तो खऱीद लिया। अच्छा अंक लगा। पहले की तरह ही इस अंक में भी काफ़ी कुछ नया पढऩे को मिला। मैं 8-10 साल से तहलका का पाठक रहा हूँ। हालाँकि अभी बीच में मुझे एक-दो अंक देखने को नहीं मिले, तो सोचा कि शायद यह पत्रिका हमारे यहाँ अब नहीं आती होगी, पर फिर नवंबर का यह नया विशेषांक देखा, तो अच्छा लगा। आपसे एक अनुरोध करूँगा मुझे साहित्य से बहुत लगाव है। इसलिए साहित्य-सम्बन्धी सामग्री भी प्रकाशित करने की कृपा करें।

मोहम्मद नासिर, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश