मिलेगी फुटबॉल को ‘किक’

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नेहा (27 वर्ष) फ्रीलांस फोटोग्राफर हैं. फुटबॉल क्लब चेल्सिया को लेकर उनके भीतर जबरदस्त दीवानगी है और वह सप्ताहांत पर कभी मैच देखना नहीं भूलतीं. लेकिन गत 12 अक्टूबर को इस विदेशी क्लब को लेकर उनकी वफादारी दांव पर लग गई क्योंकि उस दिन दिल्ली डायनेमोज समेत देश के सात अन्य फुटबॉल क्लबों के दरमियान इंडियन सुपर लीग (आईएसएल)की शुरुआत हुई.

आईएसएल खेल प्रबंधन क्षेत्र की कंपनी आईएमजी- रिलायंस के दिमाग की उपज है. इस कंपनी ने अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के साथ वर्ष 2010 में 700 करोड़ रुपये का करार किया था ताकि इस खूबसूरत खेल को देश में और अधिक लोकप्रिय बनाया जा सके. इसके मूल मसौदे में पहले से चल रही आई-लीग को सुधारने की बात शामिल थी लेकिन इसमें कुछ दिक्कतें आईं. नतीजा, आईएसएल के रूप में हमारे सामने आया.

अप्रैल में इसके लिए बोली की जोरदार प्रक्रिया हुई जिसमें क्रिकेट के सितारे, बॉलीवुड के आला कलाकार और बड़े कारोबारी अपना पैसा लगाते देखे गए. आखिर में आठ शहर/राज्य/क्षेत्र चुने गए. उनके नाम हैं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, गोवा, केरल, पुणे, बेंगलूर और पूर्वोत्तर (अगस्त में बेंगलूर फ्रेंचाइजी की जगह चेन्नई ने ले ली). अंतिम सूची इस प्रकार बनी- एटलेटिको डी कोलकाता, चेन्नइयन एफसी, डेल्ही डायनेमोज, एफसी गोवा, केरला ब्लास्टर्स, मुंबई सिटी, नॉर्थईस्ट यूनाइटेड और पुणे सिटी.

भारतीय फुटबॉल फैन हमेशा से दूसरों से अलग रहे हैं. सन 1990 तक टेलीविजन पर अच्छी फुटबॉल कवरेज विश्व कप तक सीमित थी जो हर चार साल में एक बार होता है. लेकिन स्टार टीवी नेटवर्क ने इस पुरानी परंपरा को बदल डाला. इंग्लिश प्रीमियर लीग की वजह से भारतीय उपमहाद्वीप के दर्शकों को नियमित अंतराल पर फुटबॉल का खेल देखने को मिलने लगा. यूरोप की दिग्गज टीमों को अब नए प्रशंसक मिल रहे थे.

जल्दी ही उन टीमों की पोशाक की नकल खेल के सामान की दुकानों पर नजर आने लगी. जगह-जगह पर फैन क्लब बनने लगे और स्पोर्टस बार उग आए.

इंडियन प्रीमियर लीग की सफलता ने हॉकी, बैडमिंटन और कबड्डी में इसी तर्ज के टूर्नामेंटों की बाढ़ ला दी. जाहिर है फुटबॉल भला इससे अछूता कैसे रह सकता था. लेकिन यहां पर थोड़ी दिक्कत है. जहां तक क्रिकेट, हॉकी और कबड्डी की बात है तो भारत में प्रतिभाओं का अंबार है लेकिन फुटबॉल के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है. टीम इंडिया को फीफा की विश्व रैंकिंग में 158वां स्थान हासिल है. यहां तक कि हाल में हमारी टीम एक दोस्ताना मुकाबले में फिलीस्तीन तक से 2-3 से पराजित हो गई. ऐसे में सवाल उठता है कि जब लोगों के पास यूरोप की बेहतरीन टीमों के मैच देखने का विकल्प मौजूद होगा तो वे 20वीं सदी की पिछड़ी फुटबॉल क्यों देखेंगे? यहीं पर दिग्गज खिलाड़ियों की अहमियत सामने आती है. हर टीम ने करीब 6 विदेशी खिलाड़ियों में कोई न कोई सितारा खिलाड़ी शामिल किया है. जुवेंट्स के सुपरस्टार अलेसांद्रो डेल पियेरो दिल्ली से खेल रहे हैं और उनको अब तक का सबसे चमकदार सितारा करार दिया जा सकता है. वहीं गोवा के लिए रॉबर्ट पायर्स, मुंबई के लिए फ्रेड्रिक जुंगबर्ग, पुणे के लिए डेविड टे्रजेगुएट, कोलकाता के लिए लुइस गार्सिया, केरल के लिए डेविड जेम्स, पूर्वोत्तर के लिए जॉन कैपडेविला और चेन्नई के लिए एलानो ऐसे ही नाम हैं.

आलोचक दलील देंगे कि ये सभी सितारा खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन पीछे छोड़ आए हैं और यहां वे केवल पैसे कमाने के लिए आए हैं. लेकिन इस बात से तो कोई इनकार नहीं कर सकता है कि यह भारतीय खिलाड़ियों के लिए सुनहरा अवसर है कि वे इन बुझते सितारों से ही कुछ सीख ले सकें.

बात केवल खिलाड़ियों की ही नहीं है. आईएसएल ने कुछ बेहतरीन कोच भी जुटाए हैं. उदाहरण के लिए गोवा की टीम के पास ब्राजील के बेहतरीन कोच जिको हैं और मुंबई के पास इंग्लिश कोच पीटश्र रीड. रोचक बात यह है कि चेन्न्ई के लिए इटली के मार्को मातेराज्जी और केरल के लिए डेविड जेम्स गोलकीपर और कोच की दोहरी भूमिका में हैं.

जहां तक क्रिकेट, हॉकी और कबड्डी की बात है तो भारत में प्रतिभाओं का अंबार है लेकिन फुटबॉल के बारे में यह बात विश्वास के साथ नहीं कही जा सकती

आखिर में सबकुछ तो मैदान पर ही देखने को मिलेगा. क्या आर्सेनल का कोई प्रशंसक जिसे बेहतरीन फुटबॉल देखने की आदत है वह गोवा एफसी का खेल हजम कर सकेगा?

क्रिकेट कमेंटेटर हर्ष भोगले का मानना है कि भारतीय प्रशंसकों को आईएसएल का भरपूर समर्थन करना चाहिए चाहे भले ही उनको बहुत शानदार फुटबॉल देखने को नहीं मिल रही हो. उन्होंने स्टार स्पोर्ट्स डॉट कॉम पर लिखा कि प्रशंसकों को टीम तक लाने के लिए प्रतिस्पर्धा को स्थानीय बनाना होगा. उन्होंने आगे लिखा कि दुनिया के अनेक देशों में प्रशंसक यह जानने के बावजूद क्लबों के प्रति समर्थन जताने जाते हैं कि उनका क्लब दुनिया के बेहतरीन क्लबों के समक्ष कहीं नहीं टिकता. उनके वहां आने की वजह दूसरी होती है. दक्षिण अफ्रीका इसका बेहतरीन उदाहरण है जहां वे अफ्रीकन कप तक में छाप छोड़ने के लिए भिड़ते हैं लेकिन स्थानीय लीग के प्रशंसक भी कम नहीं हैं. इंडियन सुपर लीग से भी हर्ष को कुछ ऐसी ही उम्मीद है.

बहरहाल फुटबॉल कॉलमिस्ट जॉन ड्यूरडन को लगता है कि यह उत्साह उलटा असर भी दिखा सकती है. उन्होंने सॉकरनेट डॉट कॉम पर लिखा, ‘नई फुटबॉल लीग का वादा है कि यह आऩे वाले समय में फुटबॉल की नौका देश में पार लगाएगी. पैसा आने से स्टेडियमों तथा अन्य सुविधाओं में सुधार होगा, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि क्लब पहले ही शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें उस 14 करोड़ डॉलर का कोई असर नहीं दिख रहा है जो एआईएफएफ को आईएमजी-रिलायंस से 2010 में मिले थे. अगर यह पूरा पैसा, प्रयास और समय इस नए उद्यम में लगाने के बजाय सीधे पुरानी आई-लीग में लगाया जाता तो उसका क्या असर होता? क्लबों को विपणन का तौर तरीका सिखाना एक बेहतर शुरुआत होगी.’

आईएसएल करीब दो महीने चलेगा और खिताबी जंग 20 दिसंबर को होगी. इसे पूरी प्रतिस्पर्धी लीग में बदलने की कोई योजना नहीं है जबकि देश के फुटबॉल जगत को इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है.

लेकिन उम्मीद की एक किरण है. ड्यूरडेन ने लिखा, ‘अच्छी  बात यह है इससे यह बहस शुरू हो सकती है कि इस पूरी प्रक्रिया में क्लब फुटबाल के दीर्घावधि हितों को कैसे सुरक्षित रखा जाए. ऐसी चर्चा बढ़ रही है कि क्लब और लीग एआईएफएफ के नियंत्रण से बाहर अपना अलग अस्तित्व बनाने में लगे हैं. यह क्लब मालिकों के लिए स्वाभाविक है क्योंकि उन्होंने बहुत बड़ी धनराशि लगाई है. जाहिर है वे लीग के भविष्य की दिशा तय करने में अधिक भागीदारी चाहते हैं.’