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मर्दानी-2 का टीजर देख, गुस्से में शहर कोटा

िफल्में आम आदमी की ज़िन्दगी में इस कदर रच-बस गयी हैं कि सियासत की यादों की तरह धुँधली नहीं पड़तीं। क्योंकि िफल्में समाज के सच को भी दिखाती हैं। यही कारण है कि लोग िफल्मों को देखकर प्रतिक्रिया भी करते हैं। हाल ही में फिल्म ‘मर्दानी-दो’ के टीजर ने कोटा कोचिंग जैसी आसमानी ख्वाब बुनती इस बुलंद मीनार पर जमकर छींटाकशी कर दी। इसका विरोध हो रहा है। इसकी शुरुआत बेशक दबी-छुपी सरगोशियों से हुई, लेकिन दिन बीतते-बीतते ज़बरदस्त शोर में तब्दील हो गयी। इसके संकेत तो पहले ही दिखने लगे थे। लेकिन टीजर वायरल होने के साथ ही लोग सिनेमाघरों के प्रबन्धकों से गुत्थमगुत्था करने को उतावले नज़र आये। दरअसल, लोगों के भड़कते गुस्से के पीछे इस कोटा शहर की तस्वीर पर फिल्म के ज़रिये कालिख पोतने की नामुराद कोशिश थी, जो प्रतिभा का पालना कहलाता है और तालीम की दुनिया में खूब चमक रहा है। कोटा कोचिंग उद्योग बेहिसाब मेहनत के मुकम्मल मुजस्सिम की तरह आसमानी ऊँचाइयाँ ताकता हुआ खड़ा है। आज दुनिया-भर में कोटा का ज़िक्र फख्र से किया जाता है कि यहाँ तकनीकी शिक्षा के कोहिनूर तराशे जाते हैं। लेकिन िफल्म मर्दानी कोटा की शिनाख्त बदरंग और बदकार शहर के रूप में करती है। मानो यह शहर अस्मत के लुटेरों का अड्डा बन गया है। लाखों को रोज़गार देने के साथ डॉक्टर, इंजीनियर गढऩे वाले इस शहर पर अगर यह तोहमत लगेगी, तो तूफान तो खड़ा होगा ही। िफल्मकारों का दावा है कि िफल्म सच्ची घटनाओं पर बनायी गयी है। मगर लोगों को फिल्म का टीजर इस कदर नागवार गुज़रा कि िफल्म को बैन करने की चेतावनी के साथ प्रदर्शन पर उतर आये। राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना और कांग्रेस ने िफल्म की थीम को लेकर तीखी प्रतिक्रिया जतायी है। उनका कहना था कि शहर पर आपराधिक छींटाकशी करते हुए इसकी तस्वीर को बदरंग किया जा रहा है। भाजपा के आनुषांगिक संगठनों ने सिनेमाघरों के आगे िफल्म निर्माता का पुतला फूँका। शिक्षा शास्त्रियों का कहना है कि जिस शहर को प्रधानमंत्री शिक्षा का काशी कहते हैं, कैसे कोई उस पर गन्दगी उछाल सकता है? कोटा के सांसद और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला अपने हालिया दौरे में इस खदबदाहट से बेखबर नहीं रहे। नतीजतन बिरला के दखल के बाद िफल्म के निर्माता और स्क्रिप्ट राइटर गोपी पुरथन शर्मिन्दा होते नज़र आये। उन्होंने कहा कि हमारा मकसद यह नहीं था। हमने िफल्म से कोटा से जुड़ी सत्य घटनाओं की शाब्दिक टिप्पणी को हटा दिया है। इसके साथ ही सफाई दी कि मर्दानी एक िफल्म है, डाक्यूमेंटरी नहीं; और उसे इसी रूप में देखा जाना चाहिए। िफल्म की कहानियाँ आज के समय के यथार्थ को एक नज़ीर के साथ सेल्यूलाइड पर उकेरती है। इसका सबसे बड़ा गुण है कि इसमें छिपी बलात्कार की जघन्य घटनाएँ समाज की कड़वी सचाइयों को बयान करती हैं और अपराधों की जटिल प्रकृति को बुनती-खोलती नज़र आती हैं। वहीं लोगों के विरोध से िफल्म की रिलीज पर िफलहाल रोक लग गयी है। देखना यह है कि यह िफल्म थोड़ी-बहुत हाय-तौबा के बाद सिनेमाघरों मेें चल पाती है या फिर इसका विरोध जारी रहेगा।

साजिद-वाजिद कहते हैं… दिलों में उतर जाती है अच्छी गायकी

आप दोनों की जाती ज़िन्दगी के बारे में लोग कम ही जानते हैं। कुछ बताएं!

वाजिद : हमारी पैदाइश मुम्बई की ही है। टाउन के बाबुलनाथ मंदिर के पास अस्पताल में 1972 में मेरा जन्म हुआ, बल्कि हम तीनों ही भाइयों की बर्थ यहीं की है। मेरे पिता उस्ताद शराफत हुसैन खान जी बड़े तबला वादक रहे हैं। उन्होंने सैकड़ों िफल्मों में तबला बजाया। कल्याण जी आनंद जी, पंचम (एसडी बर्मन), नौशाद, खय्याम, इलैया राजा, बप्पी लहरी, नदीम श्रवण, आनंद मिलिंद, जतिन ललित, अन्नू मलिक जैसे फनकारों से बेहतरीन संगत रही। उमराव जान का पूरा संगीत उन्होंने अरेंज किया था। मुकद्दर का सिकंदर, सुहाग में तबले को आधुनिक तरीके से उन्होंने पेश किया। मैंने पिता जी से तबला व अरेंजमेंट की ट्रेनिंग ली, जबकि आरके दास से गिटार सीखा।

साजिद : घर में संगीत का माहौल था, सुनने-बजाने वाले लोगों की सोहबत रही, जिसका हमें लाभ हुआ। मैं संगीत में प्रयोगों का समर्थक इसीलिए बन सका, क्योंकि हमारे पिता जी की सोच एकदम आधुनिक थी। भले वे पुराने दौर से तबला बजाते आ रहे हैं, लेकिन बदलते वक्त के हिसाब से उन्होंने संगीत तैयार करने और अरेंजमेंट में काफी एक्सपेरिमेंट किये।

आपके ननिहाल में भी संगीत का अहम सिलसिला रहा है!

वाजिद : हमारे नानू पद्मश्री उस्ताद फैयाज़ अहमद खाँ साहब और उनके छोटे भाई नियाज अहमद खाँ साहब से बहुत कुछ तालीम ली। एक तरफ अब्बा के साथ रिकॉॄडग में जाते, तो कारोबारी समझदारी बढ़ती। स्टूडियो के रंग-ढंग पता चलते थे, वहीं घर पर माँ की गुनगुनाहट सुनकर मौसिकी से लगाव बढ़ता गया। मैं अक्सर माँ के पाँव दबाता और तब वो आराम करते हुए कोई न कोई गाना गुनगुनाती जातीं। उनको सारे गाने पूरी तरह याद थे, धुन और बोल के साथ। उस वक्त के नग्मों में सच्चाई बहुत थी। तब का संगीत रूह को सुकून देता था। रेडियो का ज़माना था। माँ रेडियो पर प्रसारित होने वाले गाने सुनतीं, बाद में जब गुनगुनातीं, तब मैं मुँह से ठेका बजाता जाता। ऐसे ही संगीत का साथ बचपन से हुआ, जो अब तक चलता जा रहा है। हम दोनों भाइयों ने बैठकर तो रियाज़ किया ही- देखकर, परखकर, सीखकर भी संगीत को समझा और अपनाया।

साजिद को जहां संगीत की दुनिया का डॉन कहा जाता है, वहीं वाजिद की पहचान कूल गॉय के रूप मेें होती है। कुछ कहेंगे?

साजिद : लोगों की मोहब्बत है, जो चाहें नाम दे दें। वैसे, डॉन शायद इसलिए कहते होंगे, क्योंकि मैं गलत बात बर्दाश्त नहीं करता। कभी किसी से भिड़ता नहीं; लेकिन नाजायज़ बातें सुनकर चुप भी नहीं रहता। मेरा और वाजिद भाई का अलग-अलग स्वभाव बैलेंस बनाकर रखता है।

वाजिद : हाँ, ये सच है कि साजिद भाई कट-टू-कट बात करते हैं। वैसे, मैं कई बार ध्यान नहीं देता। जुदा मिज़ाज का फायदा भी होता है। हम दोनों कंप्लीट पैकेज हैं।

आपके संगीत के बारे में एक बात दम ठोंककर कही जा सकती है, वह यह कि कहीं से कुछ कॉपी किया हुआ नहीं है, इंस्पायर्ड भी नहीं लगता!

साजिद : हमारे अब्बा कहते थे कि नियत साबुत तो मंज़िल आसान! चाहे देर से करो, सब्र रखो। चोरी करोगे, किसी की धुनें उड़ाओगे तो टिकोगे नहीं। कुछ वक्त के लिए हो सकता है, चमक मिल जाए, लेकिन फिर भुला दिये जाओगे।

आप दो अलग लोग हैं; यकीनन समझ, महसूसियत और प्रयोगों में अन्तर होगा। किस तरह सिंक करते हैं और क्या कभी अलग-अलग सोच भी होती है, किसी धुन आदि को लेकर? जब कभी ऐसी स्थिति पैदा होती है, तब किस तरह सुलझाते हैं?

साजिद : अच्छे काम के लिए हमारे बीच जमकर बहसें होती हैं; लेकिन हम अहंकार को दीवार नहीं बनने देते। हमें पता है कि दो लोग अलग ढंग से सोचते हैं, ऐसे में केवल एक ही टार्गेट होना चाहिए कि फाइनल प्रोडक्ट अच्छा रहे। वाजिद हर सुझाव पर गौर करते हैं और मैं भी उनकी बातें सुनता हूँ। कभी थोड़ी-बहुत बहस भी हो जाती है; लेकिन हर बार उद्देश्य यही होता है कि गाना अच्छे से अच्छा बन जाए।

वाजिद : दबंग-3 के एक गाने की रिकॉॄडग के वक्त मैंने जो कम्पोजिशन तैयार की, उससे साजिद संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने साफ कह दिया कि इसमें मज़ा नहीं आ रहा है। मुझे गुस्सा आया कि सबके सामने ऐसे बोल रहे हैं। मैंने नाराज़गी ज़ाहिर की, तो सब्र के साथ समझाने लगे कि वाजिद! तुमने जो कम्पोजिशन तैयार की है, वह तो तुम बायें हाथ से, चुटकी बजाते हुए बना सकते हो। कुछ ऐसा करो, जिसे सुनकर लगे कि वह वाजिद की स्पेशिलिटी है। ये बात मेरी समझ में झट से आ गयी। हमारे बीच ऐसी ही लोकतांत्रिक व्यवस्था है।

आजकल का संगीत बड़ा सादा-सा हो गया है। न कोई मुरकी, न ही तान! क्या वजह है इसकी? क्या संगीतकारों को ये लगता है कि आम जनता कठिन संगीत समझ नहीं पाएगी या फिर वे ही नहीं समझते?

साजिद : आम जनता को बेवकूफ ना समझो भाई। अगर आप खुद को तानसेन समझते हैं, तो वो भी कानसेन हैं। सच यही है कि आजकल के संगीत डायरेक्टर्स को खुद ही संगीत की समझ नहीं है। बोल अच्छे होने पर वे रूह में दािखल हो जाते हैं।

वाजिद : मैंने तो हरदम यह महसूस किया है कि रूहदारी वाले गाने हमेशा पसन्द किये जाते हैं। जनता के दिल को जो छू जाए, उसका कोई जवाब नहीं होता। अगर नॉलेज दिखाने के लिए संगीत कठिन बना दिया जाए, तब भी असर नहीं डालेगा। संगीतकार का कमाल यह होना चाहिए कि अंतरों में आलाप के समय जितनी हरकतें करनी हैं, करा दे और सुनने वाले उसका आनन्द भी ले लें। जो दिल को सुकून दे, वही मौसिकी है। कम्पोजिशन अच्छी हो, तो आप किसी भी तरह अरेंज कर दो, अच्छी लगती है।

 सलमान खान के साथ आपकी पार्टनरशिप कमाल की रही है। ऐसा किस तरह मुमकिन हुआ?

साजिद : थोड़ा पहले से बात करता हूँ। संगीत वालों की ये बदिकस्मती ही रही है कि उनके पीछे किसी का हाथ कभी नहीं रहा। जितनी मेहनत की, उतना ही खाया। मुझे अब भी याद है कि अब्बा की तबीयत यकायक काफी बिगड़ गयी थी और तब तक हमारी पढ़ाई जारी थी; हम संगीत सीख रहे थे। यकायक, पूरे घर की •िाम्मेदारी हमारे कन्धे पर आ गयी। तीसरे भाई जावेद की उम्र कम थी, इसलिए उसे डिस्टर्ब नहीं किया। हमने तय किया कि पढ़ाई के साथ-साथ काम करेंगे। स्ट्रगल का दौर बहुत बड़ा और परेशानी भरा था; लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी। सलमान के छोटे भाई सोहेल से हमारी अच्छी दोस्ती थी; लेकिन कभी हमने उस सम्बन्ध का नाजायज़ फायदा नहीं उठाया। ये इत्तेफाक की ही बात है कि एक बार उन्होंने हमारी कम्पोजिशन सुनी और फिर झटपट गाना बनाने के लिए कह दिया। अब तो खैर, हम उनकी हर िफल्म का हिस्सा होते हैं।

वाजिद : सलमान भाई के साथ संगीत का सिलसिला 1998 में रिलीज प्यार किया तो डरना क्या से ही चला आ रहा है और ‘दबंग-3’ तक आ पहुँचा है। इतना लम्बा रिश्ता यूँ ही नहीं बनता और चलता है। दरअसल, उनके पास संगीत की समझ और सलीका है। वे इज़्ज़त देना भी जानते हैं, इसलिए हमारे बीच एक अटूट रिश्ता बना हुआ है; जो इंशा अल्लाह हमेशा कायम रहेगा।

कम हो रहा बड़े स्टूडियो, मल्टीप्लेक्स और सिनेमाघरों का क्रेज

26 नवंबर, 2019 को इंटरनेशनल िफल्म फेस्टिवल-2019 में शिरकत करने पहुँचे डैनिश िफल्म ‘डैनियल’ के निर्देशक नील आर्डेन ओप्ले मानते हैं कि स्ट्रीमिंग से जहाँ बड़े स्टूडियो प्रभावित हुए हैं, वहीं इसी दौरान स्थानीय िफल्म निर्माण की लागत भी बढ़ गयी है। आर्डेन कहते हैं कि अमेरिकी िफल्में बड़े स्टूडियो के बैनर तले बनायी जाती हैं; जबकि यूरोप में िफल्म निर्माण स्वतंत्र रूप से किया जाता है। भारतीय िफल्में अमेरिका की तरह ही बनायी जाती हैं और यह यूरोप की तरह आगे बढ़ रहा है, जिसमें िफल्म का निर्माण लॉस एंजिल्स में किया जाता है। यूरोपीय िफल्में छोटी-सी जगह पर िफल्माई जाती हैं और ये मध्यम बजट की होती हैं। और कभी-कभी िफल्म निर्माताओं को इसके लिए सरकारी मदद की ज़रूरत पर निर्भर रहना होता है।

हाल ही में 2019 की रिपोर्ट में लॉबी ग्रुप फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) और कंसल्टिंग फर्म ईवाई में कहा गया है कि मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में साल-दर-साल 13.4 फीसदी की दर से वृद्धि हो ही है और यह 2018 में 1.67 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा। साथ ही डिजिटल प्लेटफॉर्म 42 फीसदी की गति से बढ़कर इसी दौरान 16,900 करोड़ का हो गया।  भारत में मीडिया और मनोरंजन जगत का क्षेत्र 11.6 फीसदी की दर से 2021 तक 2.35 ट्रिलियन डॉलर को पार कर जाने का अनुमान है। ए. बिलियन स्क्रीन्स ऑफ अपॉर्चुनिटी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि िफल्म और मनोरंजन के साथ ही डिजिटल की रफ्तार 2019 में तेज़ी से रही है साथ ही प्रिंट में भी 2021 तक पर्याप्त अवसर हैं। 57 करोड़ यूजर के साथ ही चीन के बाद भारत में इंटरनेट यूज करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसके 2021 तक 13 फीसदी सालाना की दर से बढऩे का अनुामन है। रिपोर्ट में बताया है कि सिर्फ 25 लाख उपभोक्ता ही डिजिटल हैं, जो पारम्परिक मीडिया का उपयोग नहीं करते। डिजिटल विज्ञापन पर खर्च 34 फीसदी की दर से बढ़कर 15,400 करोड़ रुपये हो गया, जो बाज़ार के विज्ञापन का करीब 21 फीसदी है। कई प्रसारकों ने अब प्रचार या विज्ञापन को बढ़ावा देने के लिए हर स्तर पर डिजिटल प्लेटफॉर्म को ब्रांड के तौर पर मान्यता देना शुरू कर दिया है। जहाँ तक विभिन्न वीडियो-ऑन-डिमांड सेवाओं की बात करें, तो इसमें विज्ञापन बढऩे की गति सब्सक्रिप्शन के बढऩे के साथ होती है और 2021 तक इसके कुल विज्ञापनों में से 52 फीसदी होने का अनुमान है।

2018 में डिजिटल सब्सक्रिप्शन 262 फीसदी बढ़कर 1,400 करोड़ रुपये तक पहुँच गया, इसकी अहम वजह रही दूरसंचार कम्पनियों ने अपना दायरा बढ़ाने के लिए सस्ते में डाटा पैक उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराये। वीडियो सब्सक्रिप्शन का राजस्व 2018 में बढ़कर 1340 करोड़ हो गया। इस दौरान स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर नये और दोबारा से वीडियो लॉन्च किये गये साथ ही इस दौरान स्मार्ट फोन भी खूब बिके, ब्रॉडबैंड का विस्तार हुआ। इसके अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में लोगों को एक्सक्लूसिव जानकारी के साथ ही लाइव क्रिकेट व अन्य प्रभावी मसाला लोगों को मिला। ईवाई इंडिया के पार्टनर और मीडिया एंड एंटरटेनमेंट के लीडर आशीष फेरवानी कहते हैं- ‘मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र भारत के युवाओं के लिए कई अवसर मुहैया करा रहा है। डिजिटल के क्षेत्र में लोगों को उन्हीं की स्थानीय भाषा में मनपसन्द सामग्री मिलने से इसका तेज़ी से विस्तार हुआ है। इससे बड़ी आसानी से अपनी बात को दूसरे तक पहुँचाने में मदद करता है, साथ ही लोगों तक पहुँच और उनके व्यवहार को जानने में कारगर साबित हो रहा है।’

संयुक्त रिपोर्ट बताती है कि 2018 में टीवी उद्योग 66,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 74,000 करोड़ रुपये का हो गया। आगे 12 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 2021 तक इसके 95,500 करोड़ रुपये तक पहुँचने का अनुमान है। इसमें विज्ञापन दर की बढ़ोतरी 10 फीसदी और सब्सक्रिप्शन की वृद्धि 8 फीसदी होगी। इसी तरह टीवी विज्ञापन 14 फीसदी की दर से बढ़कर 30,500 करोड़ रुपये का हो गया। पिछले साल सब्सक्रिप्शन 11 फीसदी की दर से बढ़कर 43,500 करोड़ रुपये का हो गया। 2016 में 7.5 फीसदी की दर टेलीविजन देखने वाले घरों में बढ़ोतरी दर्ज की गयी और यह करीब 20 करोड़ हो गयी। टेलीविजन पर 77 फीसदी समय लोग आमतौर पर मनोरंजन या िफल्म देखने के लिए खर्च करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, नये ट्राई टैरिफ का फरमान आने के बाद लोग अपने मनपसन्द के चैनल चुनकर उन्हीं का भुगतान कर सकते हैं; लेकिन इसके लिए भी एकमुश्त रकम देनी होती है। इसमें से कई चैनल मुफ्त में भी उपलब्ध कराये जाते हैं। इससे लोगों की जेबों पर बोझ बढ़ा, तो कम्पनियों की जेब गरम होने के साथ ही सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी हुई है। 2017 में डिजिटल समाचार उपभोक्ताओं में 26 फीसदी की वृद्धि देखी गयी, जब 22.2  करोड़ लोगों ने ऑनलाइन समाचार पत्र पढ़े। 2017 में पेज पढ़े जाने की वृद्धि 59 प्रतिशत रही और 2018 में प्रतिदिन औसतन लगभग 100 फीसदी लोगों ने औसतन 8 मिनट का समय दिया। विज्ञापन राजस्व 21,700 करोड़ रुपये रहा और 1.2 प्रतिशत बढ़कर 30 8,830 करोड़ हो गया। कुल मिलाकर भारतीय िफल्म सेगमेंट 2018 में 12.2 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 174.5 अरब रुपये तक पहुँच गया। इसमें डिजिटल अधिकार और वैश्विक नाट्यशास्त्र में वृद्धि से प्रेरित है। घरेलू िफल्म की कमाई हिन्दी िफल्मों का नेट बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 32.5 अरब रुपये रहा, जो अब तक के इतिहास में सबसे ज़्यादा है। कुल मिलाकर थिएटर के ज़रिये कमाई की बात करें तो यह 2017 में 25 अरब रुपये से बढ़कर 30 अरब रुपये हो गयी। खास बात यह रही कि भारतीय िफल्मों के लिए चीन एक बड़ा बाज़ार बन गया।

भारत में हॉलीवुड िफल्मों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की बात करें, तो एवेंजर्स : इंफिनिटी वॉर इमर्जिंग ने सबसे ज़्यादा 9.21 अरब रुपये कमाये। फिक्की के उपाध्यक्ष व मीडिया और मनोरंजन प्रभाग के अध्यक्ष उदय शंकर कहते हैं- ‘भारतीय मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र तेज़ी से आगे बढ़ चुका है। डिजिटल व्यवधानों से इसमें बिखराव नज़र आ रहा है, जिसकी वह से रचनात्मक अर्थ-व्यवस्था में अनिश्चितता की स्थिति बन गयी, जो पहले कभी नहीं रही। ये सभी के लिए रोमांचक समय है, जब हम अपनी कल्पना और महत्त्वाकांक्षा को जता सकते हैं।’

नील आर्डेन ओप्ले, जिन्होंने अपनी िफल्म डैनियल के बारे में कहा कि भारत में बड़े स्टूडियो में हिट होगी। हालाँकि उनका मानना है कि अमेरिका पारम्परिक विदेशी िफल्मों के लिए अच्छा बाज़ार नहीं है। डैनियल की कहानी हाल के दिनों में अपहरण से जुड़ी है। नायक युवा डैनिश फोटो जर्नलिस्ट डैनियल राई हैं, जिसे अमेरिकी पत्रकार जेम्स फोले सहित कई अन्य विदेशी नागरिकों के साथ आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट द्वारा सीरिया में 398 दिनों के लिए बन्धक बनाकर रखा गया था। िफल्म कैद में रहने के लिए डैनियल के संघर्ष की गाथा है, जेम्स के साथ उसकी दोस्ती और डेनमार्क में राई परिवार के लिए बुरे सपने के रूप में इस खौफ में गुज़रता है कि अब वे अपने बेटे को •िान्दा नहीं देख सकते। ओप्ले ने कहा कि वितरकों के लिए विदेशी िफल्म खरीदना जोखिम भरा रहता है। यूरोपीय िफल्म निर्माता चीनी बाज़ार को टैप करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पुरस्कार ओवर-रेटेड होते हैं; लेकिन वे विदेशों में िफल्म बनाने की कोशिश में मदद करते हैं। इतालवी िफल्म रवांडा के निर्देशक रिकोडार्डो साल्वेटी जो आईसीएफटी-यूनेस्को गाँधी मेडल की दौड़ में है। कहते हैं कि हमारी िफल्म सच्ची घटना पर आधारित है। चूँकि यह एक अफ्रीकी केंद्रित िफल्म है, इसलिए इसमें किसी की दिलचस्पी नहीं थी और हमें अपने देश में ही इसके लिए बड़े विरोध का सामना करना पड़ा।

कम बजट के कारण हमने इटली में अपने घर के पास शूटिंग की। हालाँकि वह स्थान बिलकुल वैसा नहीं था, जहाँ रवांडा के लोग रहते हैं; इसलिए लोगों ने सोचा कि हम रवांडा के हैं। उन्होंने कहा कि हम इस िफल्म को नेटलिक्स पर डालने की कोशिश कर रहे हैं और ऑनलाइन अनुरोध के आधार पर स्क्रीनिंग की भी व्यवस्था कर रहे हैं। यह एक बार फिर स्ट्रीमिंग की ताकत झलकती है, जो बड़े मल्टीप्लेक्स, सिनेमा घरों और स्टूडियो के कारोबार को प्रभावित कर रहा है या लोगों के लिए नया विकल्प बन गया है।

आँसू बनकर बह गयी नफरत

यह बात उन दिनों की है, जब रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद चल रहा था। हालाँकि इस विवाद से रामपुर के शाहबाद गेट मोहल्ले में हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच कोई तनाव नहीं था। इस मोहल्ले में रामसूरत और जब्बार नाम के दो लोग अपने-अपने परिजनों के साथ रहते थे। रामसूरत नगर निगम से सेवानिवृत्त हो चुके थे। उनका इकलौता बेटा महेश स्नातक की पढ़ाई करके घर पर ही खाली रहता था। वहीं जब्बार ठेली पर शृंगार का सामान रखकर फेरी लगाते थे। इस नाते उन्हें मोहल्ले की तकरीबन सभी औरतें जानती-पहचानती थीं। उनके तीन बेटे थे, जिनमें बड़ा बेटा उस्मान एक फैक्टरी में नौकरी करता था, जबकि मँझला इस्लाम साइकिल सँभालने की दुकान पर और छोटा करीम चाय की दुकान पर। वैसे दोनों ही परिवारों में न तो पहले कभी विवाद हुआ था और न ही किसी तरह का कोई ऐसी मिलीभगत ही थी कि वे एक-दूसरे से किसी तरह जुड़े हों। यानी एक-दूसरे को मोहल्ले में होने के नाते जानते थे, पर करीब से जानते नहीं थे।

एक दिन महेश उसी चाय की दुकान पर अखबार पढ़ रहा था, जिस पर करीम काम करता था। अखबार के पहले पन्ने पर ही रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद की खबर छपी हुई थी। कुछ और लोग भी वहीं बैठे थे। जैसा कि अमूमन होता है कि ऐसे संवेदनशील मामलों में लोगों में जगह-जगह बहस होने लगती है; इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। पहले वहाँ बैठे कुछ लोग चर्चा करने लगे और देखते ही देखते बहस करने लगे। महेश ने इसी बहसा-बहसी में विवादित बयान दे दिया। दूसरी तरफ से भी विवादित बयानबाज़ी हुई और मामला तूल पकड़ गया। इस बयानबाज़ी में करीम भी पीछे नहीं रहा। उसका भी खून नया था, भला चुप कैसे रहता। कुछ लोगों ने दोनों पक्षों को समझाने का भी प्रयास किया पर बात बिगड़ती ही गयी। खैर, वहाँ से कुछ लोग एक-दूसरे को भला-बुरा कहते हुए, एक-दूसरे को देख लेने तक की धमकियाँ देकर चले गये। दूसरे दिन सुबह-सुबह महेश और करीम मोहल्ले की एक गली में फिर टकरा गये। पता नहीं दोनों ने एक-दूसरे से क्या कहा कि दोनों में झगड़ा शुरू हो गया। देखते-देखते यह झगड़ा घर तक पहुँच गया। थाने में दोनों पक्षों ने एक-दूसरे िखलाफ रिपोर्ट लिखायी। पुलिस दोनों तरफ के लोगों को थाने ले आयी। महेश और करीम को जेल भेजने की धमकियाँ पुलिस की तरफ से मिलने लगीं। अब दोनों ही पक्ष परेशान थे। क्या किया जाए। दोनों पक्ष फैसला करने को राज़ी हो गये। शायद, पुलिस को कुछ ले-देकर फैसला हो गया। पुलिस ने आगे कभी झगड़ा करने पर दोनों पक्षों को हवालात में बंद करने की धमकी देते हुए जाने दिया। इस एक घटना का नतीजा यह निकला कि महेश और करीम की दोनों के पिताओं ने घर में पिटाई कर दी। महेश घर छोड़कर कहीं चला गया।

इस बात की चर्चा  शाम तक पूरे मोहल्ले में आग की तरह फैल गयी। शाम को जब्बार महेश के घर पहुँचे और रामसूरत से अपने बेटे की गलती के लिए माफी माँगने लगे। रामसूरत ने बिना गिला-शिकवा किये अपने ही बेटे की गलती बतायी। महेश तो नहीं लौटा, पर इस झगड़े से दोनों परिवारों में दुआ-सलाम शुरू हो गयी। एक दिन रामसूरत हाईवे पर किसी ट्रक की चपेट में आ गये। जैसे ही यह खबर उनके घर पहुँची, जब्बार के घर वाले भी दौड़ पड़े। शाम को जब्बार के तीनों बेटों को भी खबर मिली। जब्बार और उनका बड़ा बेटा उस्मान अस्पताल पहुँचे। पता चला कि रामसूरत के सिर से काफी खून बह गया है, जिसके चलते उन्हें खून चढ़ाना पड़ेगा। उस्मान उन्हें अपना खून देने को तैयार हो गया। उस्मान ने अपना खून दिया। रामसूरत को खून चढ़ गया। सुबह कहीं खबर सुनकर महेश अस्पताल आ गया। वह रामपुर में ही कहीं किसी दोस्त के साथ रहने लगा था और अपने परजिनों से गुस्सा था। लेकिन पिता की दुर्घटना की खबर उसे अस्पताल खींच लायी। अस्पताल आकर जैसे ही उसे पता चला कि करीम के भाई उस्मान ने उसके पिता को खून देकर उनकी जान बचायी है। वह फूट-फूटकर रोने लगा और जब्बार के पैर पकड़कर माफी माँगने लगा। जब्बार ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और खुद भी रोने लगे। अस्पताल के बेड पर घायलावस्था में लेटे रामसूरत और उनकी पत्नी की भी आँखें भर आयीं। कुछ दिन बाद रामसूरत ठीक होकर घर आ गये। इस एक और घटना ने दोनों परिवारों को इतना एक कर दिया कि उसके आगे सगे परिजनों की एकता भी फीकी लगे।

अब दोनों परिवारों के बीच कोई मज़हबी दीवार थी और न ही कोई मज़हबी चर्चा होती थी। दोनों ही परिवार एक-दूसरे के घर खूब आया-जाया करते थे और हर त्योहार और घरेलू कार्यक्रम में मिल-जुलकर भाग लेते थे।

यह बात भले ही आपको एक कहानी की तरह लगे; लेकिन इस सच्ची घटना से आज हम सबको सीखने की ज़रूरत है। हमें समझना होगा कि आिखर हम सब इंसान हैं और एकता तथा प्यार से रहने में ही हमारी भलाई है। आिखर हम यह क्यों नहीं समझना चाहते कि इस दुनिया में हम कुछ खास •िाम्मेदारियाँ निभाने के लिए आये हैं। क्या हमें कुछ ऐसे काम नहीं करने चाहिए, जिससे हमें पूरी दुनिया प्यार करे और हमारे न रहने पर हमें सिद्दत से याद करे? क्या हम यहाँ मरने-कटने के लिए आये हैं? क्या ऐसा करके हम ईश्वर की सत्ता के िखलाफ काम नहीं कर रहे हैं? क्या हम अपनी आने वाली पीढिय़ों को ऐसी विरासत सौंपकर दुनिया से जाना चाहते हैं, जिसमें नफरत हो, मारकाट हो, परेशानियाँ हों, साँस लेना दूभर हो। यदि नहीं, तो हमें आज से और अभी से भाईचारे और प्यार से रहें। शायर बशीर महताब ने बहुत खूब कहा है-

मोहब्बत बाँटना सीखो मोहब्बत है अता रब की।

मोहब्बत बाँटने वाले तवील-उल-उम्र होते हैं।।

फडणवीस ने महाराष्ट्र से ‘गद्दारी’ की थी ?

महाराष्ट्र के पूर्व चीफ मिनिस्टर देवेंद्र फडणवीस को उनके ही पार्टी के एमपी अनंत कुमार के एक दावे ने, जिसमें उनपर 40 हजार करोड बचाने के लिए 80 घंटे के सीएम बनने का आरोप लगाया है, ने सांसत डाल दिया। शिवसेना ने इस मौके पर चौका मारते हुए महाराष्ट्र का गद्दार करार दे दिया। मामले की नजाकत को भांप फडणवीस ने तुरंत फुरत मेंं अनंत कुमार के दावे को खारिज करते हुए , ठाकरे सरकार से इसकी जांच कर सच को जनता के सामने लाने की मांग डाली।

फडणवीस ने कहा, ‘ बात पूरी तरह से गलत है, मैं इसको सिरे से नकारता हूं। ऐसी कोई भी घटना घटी नहीं है। मूल रूप से जो बुलेट ट्रेन है वह केंद्र सरकार की एक कंपनी के तहत तैयार हो रही है, जिसमें महाराष्ट्र सरकार का काम केवल लैंड एक्विजिशन का है। इसलिए महाराष्ट्र सरकार के पैसे देने का कोई सवाल ही नहीं उठता।’

फडणवीस ने अनंत कुमार की समझ पर भी तंज कसते हुए कहा कि जिन्हें केंद्र और राज्य सरकार के अकाउंटिंग सिस्टम की समझ है, उन्हें पता है कि इस तरह पैसा न दिया जाता है न लिया जाता है।

उन्होंने कहा, ‘महाराष्ट्र सरकार का बुलेट ट्रेन में रोल केवल लैंड एक्विजिशन का है। बुलेट ट्रेन ही क्या किसी भी चीज के लिए महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र को एक नया पैसा भी वापस नहीं किया है। जब मैं मुख्यमंत्री था या कार्यवाहक मुख्यमंत्री था, ऐसे किसी भी समय ऐसा कोई भी मेजर पॉलिसी डिसिजन मैंने नहीं लिया है। इसलिए यह बिलकुल गलत बयानबाजी है जिसे मैं सिरे से नकारता हूं।’

लेकिन जब तक फडणवीस अनंत कुमार के बयान को समझ पाते तब तक शिवसेना अपना दांव खेल चुकी थी। देवेंद्र फडणवीस को मारा उसका गद्दार करार देते हुए शिवसेना के फायर ब्रांड स्पोक्सपर्सन संजय राउत ने ट्वीट किया,’BJP सांसद अनंत कुमार हेगडे ने कहा है कि 80 घंटे के लिए मुख्यमंत्री बनकर देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के 40,000 करोड़ रुपये को केंद्र को दे दिया? यह महाराष्ट्र के साथ गद्दारी है।’

बीजेपी के एमपी और पूर्व कैबिनेट मिनिस्टर अनंत हेगडे का बयान था, ”आप सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र में हमारा आदमी 80 घंटे के लिए चीफ मिनिस्टर बना। फिर फडणवीस ने सीएम पोस्ट से रिजाइन कर दिया। उन्होंने यह ड्रामा क्यों किया? क्या हम यह नहीं जानते थे कि हमारे पास बहुमत नहीं था और फिर भी वह सीएम बने।…… वहां सीएम के नियंत्रण में केंद्र के 40 हजार करोड़ रुपये थे। वह जानते थे कि यदि कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना की गवर्नमेंट आ जाती है तो वे विकास के बजाए रकम का दुरुपयोग करेंगे। इस वजह से यह पूरा ड्रामा किया गया। फडणवीस सीएम बने और 15 घंटे में केंद्र को 40 हजार करोड़ रुपये वापस कर दिए गए।’

हैदराबाद गैंग रेप-हत्या की संसद में गूंज

हैदराबाद और अन्य जगह लड़कियों और महिलाओं से हो रही दरिंदगी के खिलाफ संसद में सोमवार को एकसुर आवाज सुनाई दी। देश भर में हैदराबाद की घटना को लेकर पैदा हुए गुस्से से सहमति जताते हुए सदस्यों ने इस तरह के घटनाओं को लेकर गंभीर चिंता जताई। सपा सदस्य जया बच्चन ने तो ऐसे दोषियों की “जनता के हाथों  लिंचिंग” की मांग कर दी। सदस्यों के गुस्से से सहमति जताते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घटना की निंदा की और कहा कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सदन में कठोर कानून बनाने पर सहमति बनेगी तो सरकार इसके लिए तैयार है।

राज्य सभा में इस गंभीर मसले पर कांग्रेस सदस्य गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि कोई भी सरकार या नेता नहीं चाहेगा कि ऐसी घटना उनके राज्य में घटित हो। ऐसी समस्या सिर्फ कानून बनाने से हल नहीं हो सकती। ऐसे कृत्यों को मिटाने के लिए एक साथ खड़े होने की जरूरत है।

कांग्रेस की ही अमी याजनिक ने कहा – ”मैं ज्यूडिशरी, विधायिका, कार्यपालिका और अन्य सभी सिस्टम्स से अपील करती हूं कि वह सामाजिक परिवर्तन के लिए आगे आएं। यह तत्काल प्रभाव से होना चाहिए।”

सपा सदस्य जया बच्चन ने कहा कि जहां घटना हुई वहीं पर एक और हादसा एक दिन पहले हुआ था। जो लोग वहां पर काम पर तैनात थे,  क्या उन्होंने अपना काम ठीक से नहीं किया। ऐसे लोगों को पूरे देश के सामने शर्मिंदा करना चाहिए, क्योंकि वह अपनी कार्य को अंजाम देने में नाकामयाब रहे। अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने इस मौके पर तेलंगाना सरकार के ढुलमुल रवैये पर सवाल उठाया।

एआईडीएमके की विजिला सत्यानंत इस मामले पर बोलते हुए भावुक हो गईं। उन्होंने कहा कि देश बच्चों और महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। इस अपराध को अंजाम देने वाले चार लोगों को ३१ दिसंबर से पहले मौत की सजा दी जानी चाहिए। फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की जानी चाहिए। न्याय में देरी न्याय न देने के बराबर है।
संजय सिंह ने कहा कि हैदराबाद की घटना हुई, रांची में भी ऐसी घटना हुई और दिल्ली में भी नौ साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ। निर्भया कांड के बाद पूरा देश आंदोलित हुआ था। सब ने मांग की थी इस बुराई को खत्म करना है सख्त कानून भी बना लेकिन सख्त कानून का पालन कहां हो रहा है।

राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने कहा कि ‘हैदराबाद में जो हुआ वह हमारे समाज और मूल्य प्रणाली के लिए अपमानजनक है। हमें देखना चाहिए कि ऐसी चीजें क्यों हो रही हैं और हमें उपायों की तलाश करनी चाहिए। मैं चाहता हूं कि सभी सुझाव दें। उन्होंने कहा कि बलात्कारियों को कोई दया नहीं दी जानी चाहिए। कोई नया बिल नहीं चाहिए, बल्कि इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

आरके सिन्हा ने सवाल किया कि क्या हम इतने संवेदनहीन हो गए हैं। हमने निर्भया फंड बनाया लेकिन राज्य सरकार ने उस पर को खर्च नहीं कर पा रही। ऐसे अपराधियों को तत्काल फांसी की सजा होनी चाहिए इसमें कोई देरी नहीं होनी चाहिए।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घटना की निंदा करते हुए लोकसभा में कहा कि अगर इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सदन में कठोर कानून बनाने पर सहमति बनेगी तो सरकार इसके लिए तैयार है। उन्होंने सदन में शून्यकाल के दौरान हैदराबाद की घटना के संदर्भ में यह टिप्पणी की।

लोकसभा में ही स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि देश में जो घटनाएं घट रही हैं, उस पर संसद भी चिंतित हैं। इसलिए प्रश्न काल के बाद इस पर चर्चा की अनुमति दी गयी है।

भारी बारिश से तमिलनाडु में दीवार गिरने से १७ की मौत

उत्तर-पूर्व मानसून के कारण तमिलनाडु के कई हिस्सों और पुडुचेरी में पिछले २४ घंटे  में भारी बारिश ने कहर मचाया है। सूबे के कोयंबटूर जिले के मेट्टूपायलम में एक कंपाउंड की दीवार गिरने से १७ लोगों की जान चली गई है। कई जगह बारिश से घर गिरने की भी सूचना है। इसी के मद्देनजर कई स्कूलों और कॉलेजों में सोमवार को छुट्टी की घोषणा कर दी गई है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक तमिलनाडु और पुडुचेरी के कई जिलों में रविवार से ही भारी बारिश जारी है। हादसे में मारे गए लोगों के परिवार की मदद के लिए राज्य सरकार ने  हादसे में मारे गए हर व्यक्ति के परिवार को चार-चार लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया गया है। भारी बारिश को देखते हुए कई स्कूलों और कॉलेजों में सोमवार को छुट्टी की घोषणा की गयी है।

मेट्टूपालयम में पिछले कई दिन से भारी बारिश हो रही है। भूस्खलन और पेड़ों के उखड़ने से लोगों को भरी परेशानी झेलनी पड़ी है। बारिश को देखते हुए निलगिरि माउंटेन रेल (एनएमआर) ने दो दिन के लिए ट्रेन सेवा रोक दी है। मौसम विभाग ने अगले दो दिन में और बारिश होने का पुर्वानुमान जताया है।

तमिलनाडु राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने पुडुचेरी के स्कूलों और कॉलेजों में सोमवार के लिए अवकाश घोषित किया है। भारी वर्षा के पूर्वानुमान को देखते हुए मद्रास विश्वविद्यालय और अन्ना विश्वविद्यालय में होने वाली परीक्षा को स्थगित कर दिया गया है।

केंद्र को ४०,००० करोड़ लौटाने के लिए सीएम बने थे फडणवीस : हेगड़े

वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े के एक ब्यान ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया है। भाजपा सांसद हेगड़े ने दावा किया है कि ”केंद्र के ४० हजार करोड़ रुपये बचाने के लिए बहुमत न होने के बावजूद देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया था”। हेगड़े के इस बयान के बाद तूफ़ान उठ खड़ा हुआ है और शिवसेना ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे महाराष्ट्र से गद्दारी करार दिया है।

पहले ही देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने को लेकर बहुत विवाद हो चुका है और अब हेगड़े के ब्यान ने बड़ा विवाद पैदा कर दिया है।

अपने इस चौंकाने वाले ब्यान में हेगड़े ने कहा – ”आप सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र में हमारा आदमी ८० घंटे के लिए मुख्यमंत्री बना। फिर फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया। उन्होंने यह ड्रामा क्यों किया? क्या हम यह नहीं जानते थे कि हमारे पास बहुमत नहीं था और फिर भी वह सीएम बने। हर कोई यह सवाल पूछ रहा है। वहां मुख्यमंत्री के नियंत्रण में केंद्र के ४० हजार करोड़ रुपये थे। वह जानते थे कि यदि कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना की सरकार सत्ता में आ जाती है तो वे विकास के बजाए रकम का दुरुपयोग करेंगे। इस वजह से यह पूरा ड्रामा किया गया। फडणवीस मुख्यमंत्री बने और १५ घंटे में केंद्र को ४० हजार करोड़ रुपये वापस कर दिए गए।”

हेगड़े के इस ब्यान पर देश भर में बबाल मचने के बाद फडणवीस को सामने आना पड़ा है। उन्होंने कहा – ”यह बिलकुल गलत है। किसी भी स्तर पर इसकी जांच करवा लें। ऐसा कुछ नहीं हुआ।”

उधर हेगड़े के बयान पर शिवसेना नेता संजय राउत ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे ”महाराष्ट्र के साथ गद्दारी” बताया है। एनसीपी नेता ने भी इसे बहुत गंभीर मसला बताते हुए पीएम मोदी के इस्तीफे की मांग की है।

संजय राउत का ट्वीट –
Sanjay Raut

@rautsanjay61
Bjp mp @AnantkumarH says @Dev_Fadanvis as CM for 80 hours, moved maharashtra’s 40000 cr Rs to center ? This is treachery with maharshtra , महाराष्ट्र के साथ गद्दारी है @Officeof UT

हैदराबाद की हैवानियत से बॉलीवुड भी हिला

हैदराबाद के ‘निर्भया कांड’ से पूरे देश में गुस्सा फैल गया है। इसका असर सिर्फ साइबराबाद या दिल्ली में ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने में युवाओं ने विरोध प्रदर्शन कर दोषियों को जल्द से जल्द फाँसी पर लटकाने की मांग की है। इसके साथ ही बहुत हुआ महिलाओं पर अत्याचार, अब बस…। इसके अलावा बॉलीवुड हस्तियों ने भी गम और गुस्से का इजहार किया है। 27 साल की पशु चिकित्सक के साथ हैवानियत के बाद बेरहमी से कत्ल और शव को पेट्रोल छिड़क कर जला देने की क्रूर वारदात ने जहां समाज में बैठे दरिंदों (हैवानों) के प्रति खौफ पैदान करने का मौका दिया है तो सिस्टम के लिए भी सबक है कि वह समय रहते चेते…
हम यहां दे रहे हैं बॉलीवुड की महिला हस्तियों की राय, जिन्होंने हैदराबाद की वारदात के बाद दर्द को महसूस किया:
समाज को क्या हो जा रहा
मशहूर अदाकारा शबाना आज़मी ने लिखा-खतरनाक! क्रूर! अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले। पीडि़ता के  परिवार के लिए दुखी हूँ। दुख इस बात का भी है कि हमारे ही समाज के कुछ हिस्से को क्या होता जा रहा है।
इंसानियत तार-तार
अभिनेत्री स्वरा भास्कर लिखती हैं, महिला डॉक्टर के भयावह गैंगरेप की घटना से स्तब्ध और हैरान हूं कि हमारे समाज में क्रूरता जारी है। इंसानियत की बजाय हमें धार्मिक पंथ विभाजन एकजुट कर रहा है। ऐसा लगता है कि हमें कुरूपता एकजुट कर रही है।
भरोसा किस पर करें
अभिनेत्री ऋचा चड्ढा ने कहती हैं, उन अपराधियों ने स्कूटी ठीक करने का वादा करके पशु चिकित्सक को धोखा दिया। उसकी एकमात्र गलती उन पुरुषों पर भरोसा करना था, जिन्होंने स्कूटी को ठीक करने का वादा किया था।
सिस्टम और समाज नाकाम
अभिनेत्री और मॉडल यामी गौतम ने लिखा-गुस्सा, गम और सदमा। इतने जोरदार हंगामे और जागरूकता के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अमानवीय, अकल्पनीय अपराध कैसे हो सकते हैं। क्या इन राक्षसों को सजा या $कानून का कोई खौफ नहीं है। एक सिस्टम और समाज के तौर पर हम कहां $गलत हो रहे हैं और पिछड़ रहे हैं।
हादसे के बाद जागते हैं
सोना महापात्रा ने लिखा, चाहे हैदराबाद में हैवानियत हो, तमिलनाडु में हो, रांची में लॉ स्टूडेंट हो या फिर 7 साल पहले निर्भया का गैंगरेप हो। हम सभी सिर्फ हादसे के बाद ही जागते हैं।
दिल दहल गया
गायिका मालिनी अवस्थी ने लिखा, जो महिला डॉक्टर के साथ हुआ, वह किसी भी घर की बेटी के साथ हो सकता है। हम सब कितने लाचार और बेबस हो गए हैं। अपने आसपास कैसा क्रूर समाज पनप रहा है? आखिर हैवानों को $कानून का खौफ क्यों नहीं। दिल दहल गया है आज।

…समंदर हूँ लौटकर जरूर आऊंगा- देवेन्द्र फडणवीस

विधानसभा में विरोधी दल के नेता के तौर पर पूर्व चीफ मिनिस्टर देवेंद्र फडणवीस ने एक बार फिर संकेत दे ही दिया वह फिर से सरकार बनाने से पीछे नहीं हटेंगे।

लीडर आफ अपोजिशन चुने जाने के बाद चीफ मिनिस्टर उद्धव ठाकरे,जयंत पाटिल, छगन भुजबल व अन्य माननीय सदस्यों ने उनका अभिवादन किया। हालांकि इस अभिनंदन के दौरान फडणवीस की तारीफ की गई और साथ में उन पर तंज भी कस आ गया।

अपनी बारी आने पर देवेंद्र फडणवीस ने एक शेर कहा और उस शेर के बहाने उन्होंने बहुत कुछ कह दिया।

फडणवीस ने फरमाया,’मेरा पानी उतरता देख किनारे पर घर मत बना लेना, मैं समंदर हूँ लौटकर जरूर आऊंगा।’

देवेंद्र फडणवीस ने आगे कहा कि जैसा उनके बारे में कहा जा रहा है कि विरोध उनके डीएनए में है तो विरोधी दल की भूमिका में वह संविधान के दायरे में रहकर ही अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह उचित ढंग से करेंगेे। उन्होंने कहा कि आज तक उनका हर कदम संविधान के दायरेेे में रहा है।

फडणवीस ने चीफ मिनिस्टर उद्धव ठाकरे का अभिवादन करते हुए कहा कि उद्धव ठाकरे के साथ उनका करीबी रिश्ता है भले ही रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे लेकिन वह जनहित में उनके साथ रहेंगे और गलत नीतियों के खिलाफ खुलकर विरोध करेंगे।