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भारत में मुसलमानों के लिए जगह नहीं : सना इल्तिजा

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी ने केंद्रीय कैबिनेट के नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी देने के बाद मोदी सरकार पर हमला बोला है। उनका कहना है कि भाजपा नीत एनडीए सरकार मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करती है।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के ट्विटर हैंडल से पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती की बेटी सना इल्तिजा जावेद ने ट्वीट के जरिये हमला बोला। उन्होंने लिखा-भारत में मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं हे। सना ने यह ट्वीट कैबिनेट की बैठक द्वारा नागरिकता संशेाधन बिल की मंजूरी के बाद किया। चूंकि 5 अगस्त से पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती हिरासत में हैं, इसलिए इस ट्विटर का संचालन उनकी बेटी सना ही कर रही हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से घाटी के प्रमुख राजनीतिक दलों के करीब 400 नेता नजरबंद या जेल में हैं।
नागरिकता संशोधन बिल के मुताबिक, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के आने वाले अल्पसंख्यों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। इसमें मुसलमानों को अलग रखा गया है। विपक्षी दलों ने भी मुसलमानों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया है। हालांकि, केंद्र ने अपने फैसले का बचाव करते हुए दावा किया कि इससे पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को ‘सताया’ गया है, जिससे उनकी मदद करनी जरूरी है।
पहली बार नहीं है कि जब महबूबा मुफ्ती या उनकी बेटी ने सरकार पर मुसलमानों को निशाना बनाने का आरोप लगाया। इससे पहले भी कह चुकी हैं कि देश के एकमात्र मुस्लिम बहुल प्रदेश से सत्ता पर काबिज होने के लिए ही इसके दो टुकड़े किए गए और परिसीमन किया गया। बता दें कि 5 अगस्त के बाद राज्य से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद राज्य के पूर्व तीन मुख्यमंत्रयों महबूबा मुफ्ती, नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला समेत तमाम राजनेता अहतियायतन नजरबंद हैं। यहां तक कि पूर्व सीएम और वर्तमान लोकसभा सांसद फारूक अब्दुल्ला को पीएसए के तहत घर पर ही गिरफ्तार किया गया है।

सूडान के कारखाने में विस्फोट, 23 की मौत जिनमें 18 भारतीय 

सूडान  में चीनी मिट्टी के कारखाने में एक एलपीजी टैंकर में विस्फोट होने से कम-से-कम 23 लोगों की मौत हुई है जिनमें 18 भारतीय शामिल हैं। फैक्ट्री में 50 से अधिक भारतीय श्रमिक काम करते थे और घटना में 130 से अधिक लोग घायल हुए हैं।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस घटना की पुष्टि की है। विदेश मंत्री ने कहा कि मुझे अभी सलूमी स्थित एक फैक्ट्री में विस्फोट की जानकारी मिली है।
हादसे की वजह एक एलपीजी सिलेंडर में ब्लास्ट है। भारतीय मिशन ने इस बात की जानकारी दी है। खारतोम में भारतीय दूतावास ने इस भीषण हादसे की पुष्‍टि की है। दूतावास के अनुसार फैक्‍ट्री में 50 भारतीय काम करते हैं।
भारतीय दूतावास की ओर से बताया गया कि ये फैक्‍ट्री राजधानी के बाहरी इलाके में स्‍थित है। दूतावास ने इमरजेंसी नंबर +249-921917471 भी जारी किया है। ये नंबर 24 घंटे सर्विस में रहेगा। हादसे से संबंधित जानकारी इससे ली जा सकेगी।

मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ वोट करेगी शिव सेना

महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से सत्ता में आने वाले शिव सेना ने अपने पुराने स्टैंड में पहला बड़ा बदलाव करते हुए मोदी सरकार के संसद में पेश किये जाने पर नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कारण का फैसला किया है। भाजपा के लिए यह बड़ा झटका इसलिए भी है कि शिव सेना हाल के महीनों तक इस बिल का समर्थन करती रही थी।

शिव सेना सांसद राजेन्द्र गावित ने मंत्रिमंडल के इस बिल हो हरी झंडी दिखाने के बाद कहा कि भारत का जो गठन है वह सेकुलर स्टेट के तौर पर हुआ है। शिव सेना सांसद  ने कहा – ”भारत एक सेकुलर स्टेट है तो भारत हिंदू राष्ट्र कैसे बन जाएगा। भारत तो सेकुलर ही रहेगा।” मोदी सरकार जब भी इस बिल को संसद में पेश करेगी, तो पार्टी इसके खिलाफ वोट करेगी।

गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नागरिकता संशोधन बिल को आज सुबह ही मंजूरी दी है। मोदी सरकार इस बिल को अब संसद पेश करने की तैयारी कर रही है।

उधर कांग्रेस सांसद शशी थरूर ने कहा कि इस बिल का मतलब है धर्म के आधार पर नागरिकता में भेदभाव करना जो हमें मंजूर नहीं है। गौरतलब है कि कमोवेश पूरा का पूरा विपक्ष ही नहीं सरकार के कुछ घटक दल भी इस बिल के संभावित प्रावधानों का सख्त विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि धर्म के आधार पर नागरिकता देना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

इस विधेयक को १९ जुलाई, २०१६ को लोकसभा में पेश किया गया था और १२ अगस्त, २०१६ को इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने ७  जनवरी, २०१९ को अपनी रिपोर्ट सौंपी और ८ जनवरी को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया, लेकिन उस समय राज्यसभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था। इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में सरकार की फिर से नए सिरे पेश करने की तैयारी है। अब फिर से संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद ही यह कानून बन पाएगा।

मिड-डे मील में मिला मरा चूहा

मिड-डे मील योजना कोताही और भ्रष्टाचार के चंगुल में फंस गई है। उत्तर प्रदेश में पहले नमक के साथ रोटी और फिर एक लीटर दूध में पानी मिला 85 को बच्चों को पिलाने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब पके भोजन में मरा चूहा निकल आया।
मुजफ्फरनगर (यूपी) के गांव मुस्तफाबाद पचैंडा स्थित जनता इंटर कॉलेज में मिड-डे मील में मंगलवार को मरा चूहा मिला। इसके देखने बाद दाल-चावल खाने से एक शिक्षक और क्लास सिक्स के नौ छात्र बीमार हो गए, गनीमत रही कि उन्हें समय पर अस्पताल में इलाज मिल गया और अब ठीक हैं। पर इस घटना ने एक बार फिर कोताही की पोल खोल दी है। मिड-डे मील की गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ा दी हैं। अब फिर वही जांच की खानापूर्ति की जाएगी।
मिड-डे मील में दाल और चावल बांटा गया था। कुछ छात्रों ने भोजन करना शुरू ही किया था कि, तभी एक छात्र के कटोरे में परोसे गए दाल-चावल में मरा चूहा दिखा। इसी बीच, भोजन कर चुके शिक्षक मुन्नू, कक्षा छह के 9 छात्रों का जी मिचलाने लगा और उल्टी आने की शिकायत की।
कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. विनोद कुमार ने सभी शिकायत करने वालों को जिला अस्पताल भिजवाया। वहीं, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने मिड डे मील का सैंपल लिया जिसे जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया। भोजन वितरण करने वाली हापुड़ की संस्था जन कल्याण सेवा समिति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।

छत्तीसगढ़ आईटीबीपी शिविर में आपसी गोलीबारी, ६ जवानों की मौत

एक बेहद दुखद घटना में छत्तीसगढ़ में आईटीबीपी शिविर में जवानों के आपसी झगड़े में हुई गोलीबारी में ६ जवानों की जान चली गयी है। जानकारी के मुताबिक एक जवान ने अपने साथियों पर गोलियों की बौछार कर दी और उन्हें जान से मार दिया। कुछ घायल भी हुए हैं।

उनमें विवाद के बाद फायरिंग हो गई। इसमें छह जवानों की मौत हो गई जबकि  दो गंभीर रूप से घायल हो गए हैं जिन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया है। इन घायलों को हेलीकॉप्टर से रायपुर रेफर किया गया है।

घटना छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में आईटीबीपी कैंप की है। वहां जवानों के बीच आपसी विवाद के बाद फायरिंग हो गई। आईटीबीपी का यह कैंप धौदई क्षेत्र में कडेनार में है। जवानों के बीच किसी बात को लेकर पिछले दो-तीन दिन से कोइ विवाद चल रहा था। बुधवार सुबह करीब पोन ९ बजे विवाद के बाद कैंप में तैनात एक जवान ने अपने हथियार से जवानों पर फायरिंग कर दी।

गोलीबारी से पांच जवानों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि तीन घायल हो गए। इलाज के दौरान एक और जवान ने दम तोड़ दिया। अपुष्ट ख़बरों के मुताबिक जिस जवान ने गोलियां चलाईं वह खुद भी घायल हुआ है और उसकी भी हालत गंभीर है।

कुपवाड़ा में हिमस्खलन से ३ जवान शहीद

उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर कश्मीर के कुपवाड़ा में दो अलग-अलग जगह हिमस्खलन की चपेट में आने से आठ जवान बर्फ में दब गए हैं। इनमें से तीन जवान शहीद हो गए हैं। कुछ जवान अभी भी लापता हैं।

”तहलका” की जानकारी के मुताबिक चार को सुरक्षित निकाल कर अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। लापता जवानों की तलाश में सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है। यह घटना कुपवाड़ा जिले के करनाह सेक्टर में एलओसी के ईगल पोस्ट के नजदीक की है। मंगलवार की इस घटना में हिमस्खलन में सेना की दो जाट रेजीमेंट के चार जवान दब गए। सूचना मिलते ही पास की पोस्ट से जवानों को बचाव कार्य के लिए भेजा गया। इसके साथ ही प्रशिक्षित जवानों को भी लगाया गया और हेलीकॉप्टर की भी मदद ली गई।

जानकारी के मुताबिक देर शाम तक ऑपरेशन चलाया गया। तीन जवानों के शव बरामद कर लिए गए हैं। एक अभी भी जवान लापता है। उधर बांदीपोरा जिले के गुरेज सेक्टर के बख्तूर इलाके में भी बर्फीले तूफान की चपेट में आने से चार जवान गहरी खाई में गिरकर लापता हो गए हैं। सूचना मिलते ही बचाव कार्य शुरू किया गया। इस दौरान तीन जवानों को सुरक्षित निकाल लिया गया, लेकिन एक जवान अब भी लापता है। बचाव कार्य जारी है।

नागरिकता संशोधन बिल पर केबिनेट की मुहर

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी दे दी है। मोदी सरकार इसे इसी हफ्ते संसद में पेश कर सकती है। यह गौरतलब है कि कमोवेश पूरा का पूरा विपक्ष ही नहीं सरकार के कुछ घटक दल भी इस बिल के संभावित प्रावधानों का सख्त विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि धर्म के आधार पर नागरिकता देना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

इस विधेयक को १९ जुलाई, २०१६ को लोकसभा में पेश किया गया था और १२ अगस्त, २०१६ को इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने ७  जनवरी, २०१९ को अपनी रिपोर्ट सौंपी और ८ जनवरी को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया, लेकिन उस समय राज्यसभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था। इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में सरकार की फिर से नए सिरे पेश करने की तैयारी है। अब फिर से संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद ही यह कानून बन पाएगा।

नागरिकता संशोधन बिल में नागरिकता संबंधी कानूनों में बदलाव होगा। इस विधेयक के जरिए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाइयों के लिए बिना वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा। भारत की नागरिकता के लिए ११ साल देश में निवास करना जरूरी है, लेकिन इस संशोधन के बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि को घटाकर छह साल करने का प्रावधान है। बिल में इस खास संशोधन को देश के अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के सरकार के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

यहां यह भी गौरतलब है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल ही नहीं भाजपा के कुछ सहयोगी दल भी धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का सख्त विरोध कर रहे हैं। इसे वे १९८५ के असम करार का उल्लंघ्न बता रहे हैं।

चिदंबरम को जमानत, ईडी को झटका

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को आईएनएक्स धनशोधन मामले में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की जमानत अर्जी मंजूर कर ली। इस तरह ईडी को एक बड़ा झटका लगा है। सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए उसकी टिप्पणी करने को गलत बताया है साथ ही उसका आदेश रद्द कर दिया है।

कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए उनके विदेश जाने पर रोक लगाई है और न ही वे प्रेस में कोइ स्टेटमेंट (संभवता केस से जुड़े मामले में) दे पाएंगे। उनका पासपोर्ट फ़िलहाल अदालत में जमा (जब्त) रहेगा। चिदंबरम पिछले १०६ दिन से जेल में बंद थे। उन्हें २ लाख के बांड और मुचलके पर जमानत मिली है।

फैसले के बाद उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि व्यापक सुनवाई के बाद उन्हें जमानत मिली है। ट्रिप्पल टेस्ट के मामले में अभियुक्त चिदंबरम को एक तरह से क्लीन चिट पहले ही मिल गयी थी। उन्होंने फैसले का स्वागत किया।

जलवायु परिवर्तन, नौनिहाल तक बेहाल

दुनिया के सबसे पुराने और  प्रतिष्ठित मेडिकल जरनल में शामिल लैंसेट की जलवायु परिवर्तन पर नवंबर में जारी रिपोर्ट में भारत को गंभीर खतरे के रूप में रखा गया है। बढ़ती जनसंख्या, गरीबी, खराब स्वास्थ्य सेवा और कुपोषण का सामना कर रहे भारत के लिए यह खतरा अधिक चुनौतीपूर्ण है। 2019 की रिपोर्ट में पाँच प्रमुख डोमेन में 41 संकेतकों का वार्षिक अपडेट पेश प्रस्तुत किया गया है- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जोखिम और भेद्यता, अनुकूलन, योजना और स्वास्थ्य पर असर। लोगों की सेहत पर असर डालने का सीधा मतलब है कि उसका आपकी जेब पर असर। इससे अर्थशास्त्र और राजनीति दोनों का सीधे जुड़ाव है। यह रिपोर्ट हर महाद्वीप से 35 प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के निष्कर्षों पर आधारित है।

रिपोर्ट के आधार पर आपको दो विकल्पों में से किसको चुनना ज़रूरी है। इसमें या तो आप व्यवसाय को प्राथमिकता के तौर पर लेंगे या फिर लोगों के भविष्य को देखते हुए फैसले लेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है- ‘जिन क्षेत्रों में तापमान 2 डिग्री सेल्सियस का परिवर्तन होता है, तो इससे होने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को पहचानने में मदद करती है; साथ ही इससे कैसे निपटा जाए? इसका उपाय भी बताती है।’ आज दुनिया में सामान्य स्तर से एक सेल्सियस तापमान बढ़ गया है। पिछले एक दशक के आठ साल सबसे ज़्यादा गर्म रिकॉर्ड किये गये हैं। इस तरह तेज़ी से हो रहे बदलाव के पीछे मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन का अन्धाधुंध दहन बताया गया है। कोयला, गैस और डीज़ल-पेट्रोल की खपत में बेतहाशा वृद्धि होती जा रही है।

नवजातों पर प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के चलते आने वाले समय में आज जन्म लेने वाला बच्चा एक ऐसी दुनिया से रू-ब-रू होगा जहाँ का तापमान औसतन 4 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा। इससे उसके स्वास्थ्य और किशोरावस्था से वयस्कता और बुढ़ापे तक प्रभावित होंगे। दुनिया-भर में बच्चे जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं। 1960 के बाद से किये गये अध्ययनों से सामने आया है कि सभी प्रमुख फसलों के लिए वैश्विक उपज क्षमता में गिरावट का रुझान खाद्य उत्पादन और खाद्य सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा है। अक्सर पौष्टिक भोजन नहीं मिला, तो इसका सबसे •यादा असर बच्चों पर ही होता है।

बच्चे डायरिया रोग से बेहद प्रभावित होते हैं और डेंगू बुखार के सबसे गम्भीर प्रभावों को झेलते हैं। बच्चों में बीमारियों के मामले में इन परिवर्तनों का होने वाला असर चिन्ता पैदा करने वाला है।  साल 2000 के बाद डेंगू बुखार के मामले 10 में से 9 मामले बच्चों के ही सामने आये। इसी तरह 1980 के दशक के शुरुआती आधार के बाद विब्रियो (डायरिया के लिए •िाम्मेदार विषाणु) की संख्या दोगुनी हो गयी है और तटीय विब्रियो कालरा में 9.9 फीसद की वृद्धि हुई है।

किशोरावस्था और उससे आगे के वर्षों के दौरान वायु प्रदूषण मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन से होने वाला प्रदूषण कहीं •यादा घातक साबित होता है। जलवायु परिवर्तन के चलते युवाओं में हृदय, फेफड़े और हर दूसरे महत्त्वपूर्ण अंग को नुकसान पहुँचता है। इसका प्रभाव उम्र बढऩे के साथ ही बढ़ता जाता है। आगे चलकर बढ़ती आयु के साथ बीमारियाँ गम्भीर रूप धारण कर लेती हैं। प्रदूषण की वजह से संसार में 70 लाख मौतें हर साल हो जाती हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में देखें तो इससे सबसे •यादा खतरे में महिलाएँ रहती हैं।

कैसे प्रभावित है भारत?

2001-14 और 2015-18 तक वन्यजीवों पर जलवायु परिवर्तन का असर वैश्विक स्तर पर 77 प्रतिशत देशों पर देखा गया है। इस अवधि में भारत में 2 करोड़ से •यादा और चीन में 1.7 करोड़ में इसका और असर देखने को मिला। विकासशील देशों में मौसम में हो रहे बदलावों की घटनाओं से आर्थिक नुकसान तो होता ही है, साथ ही लोगों के परिवारों पर भी बोझ बढ़ जाता है। तापमान में बढ़ोतरी और लू की चपेट में आने से बड़ी आबादी साल दर प्रभावित होने लगती है। इससे उनके काम करने की क्षमता पर भी असर होता है। इन बदलाव के चलते 2018 में वैश्विक स्तर पर 133.6 अरब घंटे लोग काम नहीं कर सके।  2000 बेस-लाइन से 45 अरब अधिक और संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी क्षेत्रों में सबसे गर्म महीने के दौरान सम्भावित दैनिक कार्य पर 15-20 फीसदी का नुकसान हुआ। 1990 से 2018 के बीच हर क्षेत्र में गर्मी और लू से बड़ी आबादी चपेट में आयी है। 2018 में इस आबादी ने वैश्विक स्तर पर 22 करोड़ लोगों ने गर्म हवाओं का सामना किया और 2015 के

20 करोड़ लोगों के सामना करने का रिकॉर्ड तोड़ दिया।

पेरिस समझौते ने ‘पूर्व-औद्योगिक स्तरों के ऊपर वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे रखने और तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक सीमित करने के प्रयासों का लक्ष्य निर्धारित किया। आज पैदा हुआ एक बच्चा अपने छठे और 11वें जन्मदिन तक यूके और कनाडा में कोयले का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद होते देखना चाहेगा। आज की स्थिति के हिसाब से देखें, तो वे अपने 21वें जन्मदिन तक संभवत: देखेंगे कि फ्रांस ने पेट्रोल और डीज़ल कारों की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इसी तरह 2050 में दुनिया के नेट-ज़ीरो तक पहुँचने के समय तक वे 31 साल के हो जाएँगे। ब्रिटेन में भी कुछ इसी तरह के कदम उठाये जाने की बात कही गयी है।

बच्चों के लिए विकल्प

स्वच्छ हवा, सुरक्षित शहर और अधिक पौष्टिक भोजन मिलने को परिवर्तन के चलते बच्चों के लिए क्या विकल्प हो सकते हैं।?  इसका सीधा सम्बन्ध स्वास्थ्य प्रणालियों और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में नये निवेश से जुड़ा हुआ है। अन्य विकल्प यह है कि वैश्विक स्तर पर औसत तापमान वृद्धि को ‘2 डिग्री सेल्सियस से नीचे’ तक सीमित रखे जाने के लिए कदम उठाये जाएँ। अगर ऐसा करना सम्भव हुआ, तो बच्चों के लिए यह बेहतर होगा।

2015 और 2016 के बीच इलेक्ट्रिक वाहनों के वैश्विक प्रति व्यक्ति उपयोग में 20 फीसदी की वृद्धि हुई और अब चीन कुल परिवहन ईंधन के उपयोग का 1.8 फीसदी का प्रतिनिधित्त्व करता है। आने वाले समय में इनकी माँग में कहीं •यादा वृद्धि देखने को मिल सकती है। पर्यावरण के प्रति जागरूक होने के साथ ही भारत में भी धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक वाहनों का चलन बढऩे लगा है।

स्वास्थ्य के प्रति सतर्कता न बरतने के चलते या देखभाल में कम खर्च करने की वजह से उनके कार्यबल में असर दिखता है। अगर इन परिवर्तन के प्रति कदम नहीं उठाये, तो सेहत के साथ ही कार्यबल पर भी असर दिखेगा। इससे आपकी जेब तो प्रभावित होगी ही, साथ ही काम करने के घंटों पर असर देखने को मिलेगा। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से शहर और स्वास्थ्य प्रणालियों को भी तैयार रहना होगा।

लगभग 50 फीसदी देशों और 69 फीसदी शहरों ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य अनुकूलन योजनाओं या जलवायु परिवर्तन जोखिम आकलन के संचालन के प्रयासों को लेकर रिपोर्ट तैयार की हैं। इस बाबत योजनाएँ तैयार करके उनको लागू किया जा रहा है। इसमें 2018 में स्वास्थ्य क्षेत्र में जलवायु सेवाएँ प्रदान करने वाले देशों की संख्या 2019 में 55 से बढ़कर 70 हो गयी; जबकि 109 देशों ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकालीन ढाँचे के लिए ज़रूरी कदम उठाने में कई कोशिशें की हैं।

साहसिक पहल

जलवायु परिवर्तन के प्रति बदलावों के लिए ज़रूरी है कि इसके लिए नीति तैयार की जाए, शोध और कारोबार के प्रति इसका ध्यान रखा जाए। साथ ही नये दृष्टिकोण को अपने जाने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। किसी भी अनूठी चुनौती को हासिल करने के लिए अभूतपूर्व कदम उठाने पड़ते हैं। वर्तमान में अगर ऐसा किसी भी तरह का बदलाव लागू किया जाता है, तो यह सीधे 7.5 अरब लोगों पर होगा। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि आज पैदा हुए बच्चे का स्वास्थ्य बदलते पर्यावरण के हिसाब से हैं या नहीं?

दुनिया-भर में एक पूर्व-औद्योगिक बेस-लाइन से 1 डिग्री सेंटीग्रेड की औसत तापमान वृद्धि के चलते पहले से ही इसका असर गर्मी के तौर पर सामने आ गया है।  पर्यावरणीय परिवर्तनों के परिणाम के तौर पर भयंकर तूफान और बाढ़, लम्बे समय तक लू और सूखा, नये और उभरते संक्रामक रोग खाद्य सुरक्षा के लिए बड़े खतरे के रूप में सामने आ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन वर्तमान और भावी पीढिय़ों के स्वास्थ्य प्रोफाइल को परिभाषित करेगा साथ ही पहले से ही व्याप्त स्वास्थ्य प्रणालियों को नयी चुनौती पेश करेगा। संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) की दिशा में प्रगति को कम करेगा। जंगलों में लगी भीषण आग के धुएँ के चपेट में आने से लोगों को साँस सम्बन्धी दिक्कतें बढ़ जाती हैं। इसके अलावा, जो लोग सीधे सम्पर्क में आते हैं, तो वे अपनी जान तक गँवा देते हैं। इसके अतिरिक्त जंगलों की आग से प्रभावित प्रति व्यक्ति वैश्विक आर्थिक बोझ भूकम्पों की तुलना में दोगुना •यादा झेलता है।  बाढ़ की तुलना में 48 गुना अधिक नुकसान होता है। हालाँकि वैश्विक घटनाओं और बाढ़ से प्रभावित लोगों की संख्या जंगलों में लगने वाली आग की तुलना में बहुत अधिक है।

संक्रामक रोगों की शुरुआत

जलवायु परिवर्तन कई संक्रामक रोगों को जन्म देता है। 2019 लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट डेंगू वायरस, मलेरिया, और विब्रियो के संचरण के लिए पर्यावरणीय उपयुक्तता का एक अद्यतन विश्लेषण प्रदान करती है, जिसमें सबसे हाल ही में उपलब्ध आँकड़े हैं और तटीय क्षेत्रों में वी. कोलेरा पर्यावरण उपयुक्तता का एक अतिरिक्त विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

ऊर्जा प्रणाली की कार्बन तीव्रता को शून्य से 2050 तक कम करने की आवश्यकता होगी। पिछले 15 वर्षों में कार्बन की तीव्रता काफी हद तक कम हो गयी है; क्योंकि जीवाश्म ईंधन को विस्थापित करने के लिए कार्बन ऊर्जा को कम करने के लिए जो कदम उठाये, वे पर्याप्त नहीं हैं। न केवल जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए, बल्कि वायु प्रदूषण से होने वाली तमाम समस्याओं व मौतों के लिए ज़रूरी है कि कोयले का उपयोग खत्म कर दिया जाए। दिसंबर, 2018 तक 30 देशों की सरकारों और कारोबार से जुड़े उद्योगपतियों के साथ मिलकर ऐसे बिजली उत्पादन की व्यवस्था करने के लिए ज़रूरी कदम उठाने की बात कही गयी है, जिसमें कोयले का प्रयोग न हो। इसके लिए कोयले को चरणवद्ध तरीके से खत्म करने की प्रतिबद्धता जतायी गयी। पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए तेज़ी से घटता कोयला उपयोग शून्य तक ले जाने का लक्ष्य है। उदाहरण के लिए 2017 से 2050 तक कोयले के उपयोग में 80 फीसदी की कमी (5.6 फीसदी की सालाना कमी दर) करके बढ़ते तापमान को रोकने के अनुरूप नहीं माना गया है।

कुल ऊर्जा-सम्बन्धित उत्सर्जन के 38 फीसदी के लिए बिजली उत्पादन क्षेत्र के लेखांकन के साथ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ जीवाश्म ईंधन के विस्थापन अहम है। वैश्विक रूप से प्रति वर्ष 38 लाख मौतें घरेलू वायु प्रदूषण के कारण होती हैं, जो मोटे तौर पर खाना पकाने के लिए कोयला, लकड़ी, लकड़ी का कोयला और बायोमास जैसे ठोस ईंधन के उपयोग की वजह से होती हैं। ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन और अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों को कम करने के अलावा स्वच्छ खाना पकाने और हीटिंग तकनीक प्रदान करने के तरीके अपनाकर स्वास्थ्य सम्बन्धी पर्याप्त लाभ ले सकते हैं। परिवेशी वायु प्रदूषण के सम्पर्क में आने से समय से पहले मृत्यु दर की बड़ी वजह के चलते पर्यावरणीय जोखिम का गठन करता है। हर साल हृदय और श्वसन सम्बन्धी बीमारियों से समय से पहले लाखों लोग मौत की गिरफ्त में आ जाते हैं।

बच्चों पर प्रभाव

90 फीसदी से अधिक बच्चे पीएम सांद्रता के सम्पर्क में हैं जो डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों से ऊपर हैं और जो उनके जीवन-भर के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। फेफड़ों के नुकसान का एक बढ़ा जोखिम, फेफड़े के विकास और निमोनिया और बाद में अस्थमा और क्रोनिक जैसी बीमारी होने का खतरा है। पीएम के सम्पर्क में आने से •यादातर मानवजनित गतिविधियों का परिणाम है और इसका अधिकांश हिस्सा बिजली उत्पादन, औद्योगिक उत्पादन, परिवहन और घरेलू ताप और खाना पकाने के लिए कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधन के दहन से जुड़ा है। इसलिए, पीएम उत्सर्जन ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन के समान स्रोतों को साझा करता है।

मलेरिया और डेंगू बुखार दुनिया के कई हिस्सों में स्थानिक हैं और जैसा कि पिछले संकेतक में बताया गया है, बच्चों को ये बीमारियाँ •यादा गिरफ्त में लेती हैं। मच्छर जनित संक्रामक रोगों के संचरण के लिए उपयुक्तता तापमान, आद्र्र्रता और वर्षा सहित कारकों से प्रभावित होती है। डेंगू के लिए सदिश क्षमता, जो एक संक्रमित मामले से उत्पन्न होने वाली अति-संवेदनशील आबादी में बाद के मामलों की औसत दैनिक दर को व्यक्त करता है; की गणना एक सूत्र का उपयोग करके की जाती है, जिसमें सदिश से लेकर मानव काटने की सम्भावना, मानव संक्रामक अवधि, औसत वेक्टर काटने की दर, बाह्य ऊष्मायन अवधि और दैनिक उत्तरजीविता अवधि शामिल हैं। दोनों डेंगू विषाणुओं के लिए दूसरी उच्चतम वेक्टरियल क्षमता 2017 में दर्ज की गयी थी, जिसमें एडीज एजिप्टी और एडीस अल्बोपिकस के लिए 2012-17 की औसत 7.2 फीसदी और 9.8 फीसदी आधाररेखा से •यादा थी। यह परिवर्तन जलवायु उपयुक्तता के निरन्तर चढ़ाव पर ज़ोर देता है। मलेरिया के लिए प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम और पी. विवैक्स मलेरिया परजीवी के संचरण के लिए उपयुक्त महीनों की संख्या की गणना तापमान, वर्षा और आद्र्रता के आधार पर तय की जाती है। इसके अलावा, बढ़ते तापमान और पहले के हिमपात सहित जलवायु परिवर्तन, गर्म, आद्र्रता की स्थिति वजह बनती है कि जससे वन्यजीवों का खतरा बढ़ जाता है। फिर भी जंगलों में लगी आग कई पारिस्थितिक तन्त्रों का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।

अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ

2019 लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट में कई अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं की पहचान की गयी है, जो गहरी चिन्ता के संकेत हैं। ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन में वृद्धि जारी है। पर्यावरण में बदलाव के चलते मानव स्वास्थ्य पर तत्काल और सीधा असर होता है। बदलाव के चलते लगातार तापमान बढऩा और लम्बे समय तक गर्मी का सामना करने के तौर पर देखा जा रहा है। स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरों में हीट स्ट्रेस और हीट स्ट्रोक, किडनी की समस्या, कंजस्टिव हार्ट फेल्योर की वजह बनता है। इसके अलावा लोगों के व्यवहार में भी बदलाव आता है, जिसकी वजह से हिंसा का खतरा बढ़ जाता है। अत्यधिक गर्मी की अवधि के दौरान छोटे बच्चों में इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन, बुखार, श्वसन रोग और गुर्दे की बीमारी का खतरा कहीं •यादा रहता है। विश्व स्तर पर मक्का सर्दियों के गेहूँ और सोयाबीन के लिए फसल की उपज पर असर दिखने वाला है। 2030 तक भूख को समाप्त करने के लिए मशक्कत करने की नौबत आ सकती है। चुनौतीपूर्ण प्रयासों के साथ तापमान में वृद्धि को कम करने के उपाय करने ही होंगे। आँकड़ों से पता चलता है कि इन प्रमुख फसलों की वैश्विक पैदावार प्रत्येक 1 डिग्री सेंटीग्रेड की बढ़ोतरी के साथ लगातार तेज़ी से घटती जाती है।

कैसे बचें?

नवीकरणीय ऊर्जा का निरंतर विस्तार, स्वास्थ्य प्रणाली अनुकूलन में निवेश बढऩा, सार्वजनिक परिवहन में सुधार से अच्छे संकेत देखने को मिल सकते हैं। ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन 2020 में पेरिस समझौते के तहत प्रतिबद्धताओं की समीक्षा करने की तैयारी की जा रही है, दुनिया की प्रतिबद्धता यह होनी चाहिए कि कैसे 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान हासिल करने के लिए क्या जरूर कदम उठाएं और इस पर तत्काल कार्रवाई की भी आवश्यकता है।

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) 2018 की ग्लोबल वार्मिंग पर विशेष रिपोर्ट 1.5 डिग्री सेल्सियस पर जरूरी कदम उठाने के लिए बड़े पैमाने पर कदम उठाने पर जोर देती है। वैश्विक वार्षिक उत्सर्जन 2030 तक आधा होना चाहिए और ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए 2050 तक इसे शून्य ले जाना होगा। अगर ऐसा हुआ तो 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढऩे वाले तापमान को रोका जा सकेगा।

साफ हवा के लिए परिवहन और बिजली उत्पादन प्रणालियों का आधुनिक होना जरूरी है। पेरिस समझौते के अनुसार, गैसीय उत्सर्जन को कम करने के प्रयास उचित नहीं है, जिससे खतरा कहीं ज्य़ादा गंभीर है। क्योंकि इसकी अनदेखी का मतलब है कि तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस बढऩे से रोकने में लक्ष्य हासिल नहीं कर सकेंगे। अगर ऐसा संभव नहीं हुआ तो इसके परिणाम के रूप में भयंकर बाढ़, जंगल की आग, लू और ग्लेशियरों का पिघलने जैसी स्थितियां सामने आएंगी। यह एक घातक और खतरनाक संकेत हैं। क्या हम अपने बच्चों को लापरवाह कार्यों के बाद के प्रदूषण के बोझ से दबने दे सकते हैं? बच्चों में घातक डेंगू, डायरिया और अन्य बढ़ते संक्रामक रोग गंभीर चेतावनी है। हमें अपने बच्चों को जीने लायक स्वस्थ वातावरण देना है।  इसके लिए ज़रूरी कदम उठाने होंगे। हम किसी भी सूरत में उन अशुभ संकेतों को अनदेखा नहीं कर सकते, जो जीवन को बदसूरत बनाते हैं।

एड्स दिवस विशेष

 दिल्ली के जीबी रोड को बदनाम गलियों में शामिल मत मानो; क्योंकि दिल्ली की तंग गलियों में एचआईवी एड्स के वायरस आसानी से अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। जीबी रोड में वेश्यावृत्ति में शामिल बदला नाम 24 वर्षीय प्रीति ने बताया कि 01 दिसंबर को विश्व एचआईवी एड्स दिवस पर सरकार और तमाम एड्स रोग से जुड़ी संस्थाएँ पूरी तरह से कार्यक्रम कर नाटक करेंगी कि वे एड्स रोग को समाप्त करने में सक्रिय हैं, परन्तु ऐसा है नहीं। सेक्स वर्कर ज्योति ने बताया कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में कंडोम तो मिलते हैं, पर यहाँ पर जो एनजीओ वाले हैं, वे कभी-कभार कंडोम वितरित करते हैं। ऐसे में एड्स उन्मूलन के नाम पर वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं, युवतियों के साथ खिलवाड़ हो रहा है। उन्होंने बताया कि जीबी रोड पर सरकार और पुलिस की नज़र है कि यह वायरस वाला रोड है; यह रोड बदनाम भी है। लेकिन उन गलियों का लेखा-जोखा सरकार या किसी संस्था के पास नहीं है, जो अब दिल्ली की नामी-गिरामी गलियों को अपनी गिरफ्त में लेती जा रही हैं।

इस जानलेवा महामारी को समाप्त करने के लिए सरकार करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा रही हैं। कहने को सरकार, नाको और हज़ारों की संख्या में लगे एनजीओ इस बीमारी से निपटने के लिए काम कर रहे हैं। फिर भी इस रोग की जड़ें सिर्फ दिल्ली के जीबी रोड तक ही महदूद नहीं हैं, बल्कि एड्स आसानी से पूरे देश में पैर पसार रहा है। इसकी वजह जागरूकता का अभाव है। पढ़े-लिखे युवाओं के बीच ये भ्रान्ति है कि एड्स नामक बीमारी लगभग खत्म हो चुकी है; जबकि सच्चाई यह है कि आज भी इस बीमारी का वायरस तेज़ी से फैल रहा है।

इन्हीं तमाम पहलुओं पर तहलका संवाददाता ने डॉक्टर्स, एड्स की रोकथाम से लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने काम कर रहे एनजीओ के प्रतिनिधियों केअलावा एड्स पीडि़तों से बातचीत की; साथ ही नाको के आला अधिकारियों से जाना कि कहाँ चूक हो रही है, जो एड्स का खात्मा होना तो दूर, उस पर रोक भी नहीं लग पा रही है। दिल्ली के अस्पतालों में इलाज करा रहे एड्स रोगी कुमार ने बताया कि इसका पता जब उन्हें चला, तो वो हतप्रभ रह गये कि किसको बताएँ, किसे नहीं। यह बीमारी है ही ऐसी कि समाज में और घर में बताने लायक नहीं है; क्योंकि लोग उनसे दूरी बना लेंगे, यहाँ तक कि समाज से बहिष्कार का खतरा रहता है। वे यहाँ दिल्ली के अलग-अलग अस्पतालों में जाकर इलाज करा रहे हैं। हालाँकि उनका कहना है कि यह रोग यौन सम्बन्ध के कारण नहीं हुआ है। उनका कहना है कि वह सरकार से पत्रों के ज़रिये सूचित व जानकारी देते हैं कि इस रोग को लेकर सरकार उन एनजीओ वालों पर कार्यवाही क्यों नहीं करती, जो तंग गलियों में दवा वितरित तक नहीं करते हैं। एनजीओ वाले विश्व एड्स दिवस के आस-पास अधिक सक्रिय दिखते हैं। बाकी पूरे साल दिखाई तक नहीं देते हैं। एनजीओ वालों की साँठगाँठ करने वाले अधिकारियों पर कार्यवाही क्यों नहीं होती है?

वहीं, बृजेश कुमार ने बताया कि वह मूल रूप से गाज़ीपुर के रहने वाले हैं। वह मुम्बई में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए गये थे; लेकिन किशोरावास्था में वह यार-दोस्तों की संगत में आकर असुरक्षित यौन सम्बन्ध के चलते  एड्स  की चपेट में आ गये। मगर उन्होंने रोग को छिपाया नहीं, बल्कि इसका उपचार करवाने के साथ एड्स उन्मूलन अभियान में लग गये और सार्वजनिक तौर पर वह एड्स रोग का इलाज करवा रहे हैं और ग्लोबल एलांयस फॉर ह्यूमन राइट्स नामक संस्था के नाम पर एड्स रोगियों के अधिकारों के लिए एनजीओ और नाको के िखलाफ संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि एड्स के नाम पर ज़्यादातर एनजीओ वाले लूट-खसूट कर रहे हैं। इसके िखलाफ उन्होंने प्रधानमंत्री से लेकर सीबीआई तक लिखित में शिकायत की है, परन्तु कार्यवाही नहीं होने से अदालत के दरवा•ो खटखटाने की बात कही। बृजेश की माँग है कि  ऐसे एनजीओ, जो करोड़ों रुपये सरकार से लेतेे हैं, उनको और नाको जैसी संस्था को आरटीआई के दायरे में आना चाहिए, ताकि कामकाज और पैसा की पारदर्शिता बनी रहे। उन्होंने कहा कि एड्स रोगियों को इलाज के नाम पर मिलने वाला पैसा सही मद में खर्च हो। इंडिया एचआईवी एड्स अलायंस की चीफ एग्जीक्यूटिव सोनल मेहता ने बताया कि वे एड्स उन्मूलन के नाम पर दो दशक से काम कर रही हैं। वे केंद्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार और दादर नागर हवेली को छोड़कर पूरे देश में काम करती हैं। सोनल मेहता ने बताया कि ग्लोबल फंड से सलाना 41 करोड़ रुपये मिलता है, जो उनके अलायंस के तहत 300 एनजीओ काम कर रहे हैं। पैसे का इस्तेमाल गाँव से लेकर शहरों तक में एड्स रोगियों को दवा के साथ-साथ विकास की मुख्यधारा मेें लाने के लिए किया जाता है। अभी तक 13 लाख लोगों को सोनल ने संस्था से जोड़कर उनका इलाज कराया है और मरीज़ों को जागरूक किया है। सोनल ने बताया कि मेक एड्स फंड एचएसबीसी बैंक वाले फंड बच्चों के इलाज के लिए जो माँ के गर्भ से या किसी लापरवाही के कारण एड्स रोग की चपेट में आ रहे हैं, उनका मनोबल बढ़ाने और पढ़ाई-लिखाई के नाम पर पैसों का सहयोग देती हैं। एल्टन जॉन एड्स फाउंडेशन भी एड्स के इलाज के लिए पैसा देती है। नाको के एडीजी डॉ. नरेश गोयल ने बताया कि नाको एड्स उन्मूलन पर सरकारी पैसे का सही तरीकेसे जागरूकता और दवाओं के नाम पर खर्च करती है और नाको के तहत 2,400 एनजीओ काम कर रहे हैं और नाको को 2,500 करोड़ सालाना अनुदान मिलता है। िफलहाल अब अन्य कहीं से फंड नहीं आ रहा है। इस बारे में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल बंसल व नेशनल मेडिकल फोरम के चेयरमैन डॉ. प्रेम अग्रवाल ने बताया कि यह रोग अन्य रोग की तुलना में ज़्यादा घातक है। लेकिन इसका इलाज सम्भव है, अगर रोगी समय-समय पर इलाज करवाये, तो वह अपनी पूरी आयु आसानी से व्यतीत कर सकता है। उन्होंने बताया कि एचआईवी इम्यूनो डेफिशियंसी वायरस असुरक्षित यौन सम्बन्धों के कारण होता है। रक्त के चढ़ाने से माँ और अजन्मे बच्चे को भी एड्स का खतरा हो जाता है। इसका संक्रमण तीन सप्ताह से लेकर छ: महीने तक संक्रमित खून की गिरफ्त में आने से अपना शिकार बना लेता है। सबसे गम्भीर बात यह है कि इसके विषाणु बिना किसी लक्षण के शरीर में तीन से 10 साल तक मौज़ूद रहते हैं। एड्स बीमारी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करती है, जो कैंसर और टीबी जैसे रोग के साथ तेज़ बुखार का कारण बनती है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि दुनिया चिकित्सा के क्षेत्र में तमाम तरक्की कर रही है, ऐसे में एड्स का जड़ से इलाज करने का उचित इलाज नहीं खोजा जा सका है। अभी तक कोई टीका नहीं तैयार किया जा सका है।

आज भी देश में एचआईवी-एड्स नामक जानलेवा बीमारी से हज़ारों की संख्या में हर साल मरीज़ मर-खप रहे हैं। •िाम्मेदारी होते हुए भी इस बात का जवाब न तो सरकार के पास है और न ही उन संस्थाओं के पास, जो इलाज के नाम जमकर सरकारी पैसे की लूट-खसूट कर रही हैं।

एड्स के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी बढ़ रहे हैं विषाणु।

नाको के मुताबिक, हर साल लगभग 70 हज़ार एड्स के रोगी मर रहे हैं; स्पष्ट आँकड़े नहीं।

एनजीओ पर जवाबदेही न होने के चलते सहायता-फंड का लेखा-जोखा नहीं है।

अन्य बीमारियों की तुलना में यह घातक बीमारी है।

सरकार की उदासीनता के कारण मामले बढ़ रहे हैं।

ज़्यादातर सरकारी अस्पतालों में अन्य विभागों की तरह एड्स विभाग नहीं हैं।