Home Blog Page 961

सुप्रीम कोर्ट : हैदराबाद एनकाउंटर की जांच आयोग करेगा

सर्वोच्च न्यायालय ने हैदराबाद एनकाउंटर के लिए एक आयोग का गठन किया है जो ६ महीने के भीतर सर्वोच्च अदालत को अपनी रिपोर्ट देगा। हैदराबाद एनकाउंटर के  मामले में गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई। इसमें अदालत ने इस आयोग के गठन का फैसला सुनाया। इस आयोग में तीन सदस्य होंगे।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बीएस सिरपुरकर इस आयोग के अध्यक्ष होंगे जबकि इसमें  बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व जज रेखा बेलदोटा और सीबीआई के कार्तिकेयन भी होंगे। याद रहे हैदराबाद में एक डाक्टर से रेप और उसकी निर्मम ह्त्या के चार आरोपियों को पुलिस जब घटनास्थल पर सीन रीक्रिएट करने ली गयी ही तब पुलिस के अनुसार इन आरोपियों ने पुलिस के हथियार छीन लिए और स्पार हमला कर दिया। पुलिस के मुताबिक सके बाद उनसे मुठभेड़ हुई जिसमें यह चारों मारे गए।

सर्वोच्च अदालत में आज हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ जिसमें जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना भी हैं, ने यह फैसला दिया। बुधवार को ही पीठ ने कहा हां कि हम इससे अवगत हैं कि इस मामले को तेलंगाना हाईकोर्ट देख रही है। लिहाजा हम सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज को मामले की जांच के लिए नियुक्त कर सकते हैं।

पीठ ने आज तीन जजों का आयोग गठित करने और छह महीने में इसकी रिपोर्ट देने का फैसला सुनाया।

नागरिकता बिल राज्य सभा में भी पास

नागरिकता संशोधन बिल (कैब) सोमवार को लोकसभा में पास होने के बाद बुधवार को राज्यसभा में भी पास हो गया। बिल के हक़ में १२५ वोट जबकि विरोध में १०५  वोट पड़े। इससे पहले बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने का प्रस्ताव १२४ के मुकाबले ९९ मतों से गिर गया। अन्य संशोधनों के प्रस्ताव भी गिर गए। शिव सेना ने बिल का सदन में विरोध करने की जगह सदन से वाकआउट किया। उधर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बिल पास होने के बाद एक ब्यान में देश के इतिहास में आज के दिन को ”काला दिन” करार दिया है।

इससे पहले सुबह राज्य सभा में गृह मंत्री अमित शाह बिल ने पेश किया। विपक्ष के जबरदस्त विरोध और असम सहित देश के कुछ राज्यों में इसके जबरदस्त विरोध के बीच इसे  राज्यसभा में पेश करने के बाद इसपर चर्चा शुरू हुई। लोकसभा में बहस के बाद कुछ राजनीतिक दलों ने अपने रुख में बदलाव किया तो कुछ गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेसी दल बिल के समर्थन में आ गए।

शाह ने कहा कांग्रेस के नेताओं के बयान और पाकिस्तान के नेताओं के बयान कई बार घुल-मिल जाते हैं। कल ही पाकिस्तान के पीएम ने जो बयान दिया और आज जो इस सदन में बयान दिए गए हैं, वो एक समान हैं। एयर स्ट्राइक के लिए जो पाकिस्तान ने बयान दिए वो और कांग्रेस के नेताओं के बयान एक समान हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के समय जो बयान पाकिस्तान के नेताओं और कांग्रेस के नेताओं ने दिए वो एक समान हैं।

विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा- बिल के लिए जिन धर्मों का चुनाव किया गया, उसका आधार क्या है। वहीं कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि इससे पहले कभी भी धर्म के आधार पर सरकारों ने फैसला नहीं लिया। यह सरकार जल्दबाजी में है। वहीं, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा- अगर भारत देश अपनी संस्कृति और संस्कार के चलते लोगों को आश्रय दे रहा है, तो इसमें क्या गलत है। प्रसाद ने अपने भाषण में कश्मीर का जिक्र किया, तो टोका-टोकी शुरु हो गई। हालांकि अध्यक्ष के हस्तक्षेप के बाद कार्रवाई आगे बढ़ी।

आजाद ने कहा- मैं पूछना चाहता हूं कि बिल के लिए जिन धर्मों का चुनाव किया गया, उसका आधार क्या है। इस बिल में श्रीलंका के हिंदू, भूटान के ईसाई क्यों शामिल नहीं किए गए। मुसलमानों का सबसे ज्यादा प्रॉसीक्यूशन अफगानिस्तान में हुआ, जो इस्लामी देश है। उन्होंने कहा कि अगर यह बिल सबको पसंद है, तो असम में ये हालात क्यों बने हैं, त्रिपुरा में ये हालात क्यों बिगड़े? पूरे नॉर्थ ईस्ट में यही स्थिति है। आप लोग इसी तरह तीन तलाक बिल लाए, इसी तरह एनआरसी लाए और अब सिटीजनशिप बिल ला रहे हैं।

कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों से इस बिल को लेकर चर्चा हो रही है। साल 2016 में भी यह बिल लाया गया था लेकिन उसमें और इसमें काफी अंतर है। ”मैंने गृह मंत्री को आज भी सुना और दूसरे सदन में भी सुना था। उनका कहना है कि सबसे बातचीत हो चुकी है। जांच पड़ताल हो चुकी है। मैं इससे सहमत नहीं हूं। इसकी स्क्रूटनी होनी चाहिए।”

शर्मा ने कहा कि आप कह रहे है कि यह ऐतिहासिक बिल है, इतिहास इसको किस नजरिए से देखेगा, यह वक्त बताएगा। इस बिल को लेकर इतनी जल्दबाजी क्यों है।  इसे पार्लियामेंट्री कमेटी को भेजे, दोबारा से दिखवाते, अगले सत्र में लेकर आते लेकिन सरकार जिद्द कर रही है। वह इसको लेकर ऐसे कर रही है, जैसे भारत पर कोई विपत्ति आ रही हो। ऐसा पिछले ७२ साल में नहीं देखने को मिला। हमारा विरोध राजनीतिक नहीं, बल्कि संवैधानिक और नैतिक है। यह भारतीय संविधान की नींव पर हमला है। यह भारत की आत्मा पर हमला है। यह संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ है।

नागरिकता बिल के खिलाफ असम में हिंसा, सेना अलर्ट पर

नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के विरोध में असम में आंदोलन अब तेज हो गया है। पुलिस और छात्रों की झड़प के बीच छात्रों पर लाठीचार्ज किया गया है। महिलाओं से लेकर बच्चे तक इस प्रदर्शन में शामिल दिख रहे हैं। कई जगह से हिंसा की भी खबर है। सेना को अलर्ट पर रखा गया है।

पूरे राज्य में बिल का जबरदस्त विरोध हो रहा है। बुधवार को प्रदर्शन के दौरान राज्य सचिवालय के पास छात्रों और पुलिस की झड़प हो गयी। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले दागे। प्रदर्शन को बढ़ता देख डिब्रूगढ़ में सेना को पुलिस की मदद के लिए बुलाया गया है। कम से कम १४ ट्रेनों को या तो रद्द कर दिया गया है या गंतव्य स्थान से पहले ही रोक दिया गया है।

असम के गुवाहाटी में प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के पुतले फूंके। स्थानीय लोग बिल को लेकर जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं और इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

दिल्ली में भी नागरिकता बिल के विरोध में प्रदर्शन हुए हैं। लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पास होते ही नॉर्थ ईस्ट समेत देश के कई हिस्सों में इसका विरोध शुरू हो गया है। पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ-साथ गुजरात में भी इस बिल का विरोध किया गया। बिल को असंवैधानिक बताते हुए लोगों ने इसके खिलाफ नारेबाजी की और पोस्टर लेकर सड़क पर उतरे।

गुवाहाटी में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में मशाल जुलूस निकाला गया। तमाम छात्र संगठन इस बिल के विरोध में उतर आए हैं। गुवाहाटी में हजारों की संख्या में प्रदर्शन करने उतरे छात्रों ने पारंपरिक ढोल बजाकर बिल का विरोध किया। बता दें कि असम के ९० प्रतिशत से ज्यादा क्षेत्रों पर यह बिल लागू होगा। गुवाहाटी में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में मशाल जुलूस निकाला गया। तमाम छात्र संगठन इस बिल के विरोध में उतर आए हैं।

बिल का विरोध कर रहे ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (एएएसयू) ने कहा है कि वह इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा। एएएसयू के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने केंद्र की भाजपा सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि उत्तर पूर्व के लोग इस विधेयक को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करेंगे।

छात्रों ने बताया कि उनमें से कई लाठीचार्ज में घायल हो गए। उन्होंने कहा, ”सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में बर्बर सरकार है। जब तक सीएबी वापस नहीं लिया जाता है, तब तक हम किसी दबाव में नहीं आएंगे।” गुवाहाटी के अलावा डिब्रूगढ़ जिले में प्रदर्शनकारियों की झड़प पुलिस से हुई और पत्थरबाजी में एक पत्रकार भी घायल हो गया।

जासूसी उपग्रह आरआइएसएटी-२बीआर१ लांच

एक और उपलब्धि हासिल करते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को एक नए जासूसी उपग्रह आरआइएसएटी-२बीआर१ और नौ विदेशी उपग्रहों को लांच कर दिया।
इसकी लांचिंग आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा रॉकेट पोर्ट के लांचिंग सेंटर से हुई। आरआइएसएटी-२बीआर१ को ५७६ किलोमीटर की कक्षा में स्थापित किया जाएगा। यह उपग्रह पांच साल के लिए है और इसके साथ नौ विदेशी उपग्रहों में भारतीय उपग्रह के साथ नौ विदेशी उपग्रह भी जाएंगे, जिसमें अमरीका (मल्टी-मिशन लेमूर-४  उपग्रह), टेक्नोलॉजी डिमॉस्ट्रेशन टायवाक-०१२९, अर्थ इमेजिंग १हॉपसैट), इसराइल (रिमोट सेंसिंग डुचिफट-३), इटली (सर्च एंड रेस्क्यू टायवाक-००९२) और जापान (क्यूपीएस-एसएआर-एक रडार इमेजिंग अर्थ ऑब्जरर्वेशन सैटेलाइट) शामिल हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक इसरो का रॉकेट पीएसएलवी-सी४८ ने अपराह्न ३.२५ बजे आरआइएसएटी-२ बीआर१ के साथ उड़ान भरी। आआइएसएटी-२बीआर१ एक रडार इमेजिंग निगरानी उपग्रह है। इस उपग्रह का भार ६२८ किलो है।
इस उपग्रह को भारतीय सीमाओं की सुरक्षा के लिहाज से बहुत महत्पूर्ण कहा गया है रीसैट-२बीआर१ सैटेलाइट के पृथ्‍वी की कक्षा में स्‍थापित होने के बाद भारत की राडार इमेजिंग ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। इसकी मदद से भारतीय सीमाओं की निगरानी और उनकी सुरक्षा को अभेद्य बनाने की प्‍लानिंग आसान हो जाएगी। उपग्रह करीब सौ किलोमीटर के दायरे की तस्‍वीरें लेकर भेजेगा। इसको खासतौर पर सीमा पार से होने वाली घुसपैठ रोकने के लिए तैयार किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट का हैदराबाद मुठभेड़ की जांच पूर्व जज से कराने का प्रस्ताव

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को हैदराबाद में डाक्टर से रेप और निर्मम हत्या के चार आरोपियों के एक एनकाउंटर में मारे जाने के मामले में मुठभेड़ की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रस्ताव दिया है। हैदराबाद एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट में आज राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी।

सुनवाई के बाद सर्वोच्च अदालत ने प्रस्ताव दिया है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के  पूर्व जज पूछताछ करें। साथ ही कोर्ट ने कहा कि तेलंगाना हाई कोर्ट पहले ही इस मामले को देख रही है। सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज को नियुक्ति किया जाएगा जो मामले की जांच दिल्ली में रहकर करेंगे।

चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा, ”हम इस तथ्य को जानते हैं कि तेलंगाना हाईकोर्ट ने इस घटना का संज्ञान लिया है।” बेंच ने कहा कि शीर्ष अदालत सिर्फ यही चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली में रहने वाले किसी पूर्व न्यायाधीश को इस मामले की जांच करनी चाहिए।

बेंच ने कहा, ”हमारा प्रस्ताव शीर्ष अदालत के किसी पूर्व न्यायाधीश को इस मामले की जांच के लिए नियुक्त करने का है।”

हैदराबाद में चिकित्सक से गैंगरेप और उसकी निर्मम हत्या के सभी आरोपियों के एनकाउंटर में मारे जाने के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में आगे की सुनवाई गुरुवार को की जाएगी।

नानावती आयोग की फाइनल रिपोर्ट पीएम मोदी को मिली ‘क्लीन चिट’

गुजरात विधानसभा में बुधवार को रखी गयी जस्टिस जीटी नानावती आयोग की फाइनल रिपोर्ट में गुजरात दंगों संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगे सभी आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें क्लीन चिट दी गयी है। इन दंगों में १००० से अधिक लोग मारे गए थे जिनमें से अधिकतर अल्पसंख्यक समुदाय के थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि ”दंगे संगठित नहीं”  थे।

गृहमंत्री प्रदीप सिंह ने इस रिपोर्ट के हवाले से विधानसभा में कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक सीएम के तौर पर नरेंद्र मोदी किसी भी जानकारी के बिना गोधरा गए थे। इस आरोप को पंच ने खारिज कर दिया है। आयोग का कहना है कि वहां पर मौजूद अधिकारियों के आदेश पर पोस्टमॉर्टम किया गया था न कि सीएम के आदेश पर।

गौरतलब है कि साल २००२ में कारसेवकों से भरी एक ट्रेन में आगजनी के बाद भड़की हिंसा और दंगों से सारा देश दहल गया था। उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी पर भी इन दंगों को लेकर आरोप लगे थे। इसके बाद उनके विरोधी उन्हें इसे लेकर निशाना बनाते रहे, हालांकि विधानसभा में आज पेश की गयी नानावती-मेहता कमिशन की रिपोर्ट में उन्हें क्लीन चिट दी गयी है।

इस रिपोर्ट को तत्कालीन राज्य सरकार को सौंपे जाने के पांच साल बाद सदन के पटल पर रखा गया है। नानावती-मेहता कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगी जलाए जाने के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा सुनियोजित नहीं थी।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) जीटी नानावती और गुजरात हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) अक्षय मेहता ने २००२ दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट २०१४ में राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंपी थी। साल २००२ में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने दंगों की जांच के लिए आयोग गठित किया था। यह दंगे गोधरा रेलवे स्टेशन के समीप साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की दो बोगियों में आग लगाए जाने के बाद भड़के थे जिसमें ५९ कारसेवक मारे गए थे।

निर्भया के दरिंदो के लिए तिहाड़ में फांसी घर तैयार

16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ हुई हैवानियत के दरिंदों को फांसी पर जल्द लटकाए जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि 16 दिसंबर या फिर 29 दिसंबर जिस दिन निर्भया की मौत हुई थी, को ही फांसी पर लटकाया जाए। हालांकि अभी राष्ट्रपति की ओर से फाइनल मुहर नहीं लगी है। बावजूद इसके तिहाड़ जेल प्रशासन ने फांसी की कोठी पर काम शुरू कर दिया है। जो अभी तक बंद पड़ा  जेल में बंद  था। निर्भया के चारों दोषियों को फांसी देने वाली दया याचिका पर अभी राष्ट्रपति की ओर से कोई अंतिम फैसला नहीं आया है। निर्भया के चारों दोषियों पर खास नजर रखी जा रही है। इसके लिए बाकायदा सीसीटीवी भी खरीदे गए हैं।
बताया गया कि आरोपी भी इससे चिंतित हैं और टीवी पर उनकी नजरें खबरों पर फोकस रहती हैं। बिहार के बक्सर जेल में पहले ही फंदों का ऑर्डर किया जा चुका है, जहां पर 10 फंदे बनाए जा रहे हैं। बक्सर जेल में फंदे बनाए जाते हैं। इसके अलावा जल्लाद की तलाश भी तेज कर दी है।
इससे पहले तिहाड़ जेल में संसद हमले में दोषी करार दिए गए आतंकी अफजल को जेल नंबर 3 में फांसी पर लटकाया गया था। यही पर अंदर 50 वर्गमीटर में नीचे बेसमेंट में कोठी बनी है, जहां पर फांसी दी जाती है। इसके अलावा जो कैदी मंडोली जेल में थे, उनको तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया गया है, क्योंकि मंडोली जेल में फांसी देने की व्यवस्था नहीं है।

नागरिकता संशोधन बिल राज्यसभा में पेश

नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा से पास होने के बाद बुधवार को राज्यसभा में पेश किया गया। गृह मंत्री अमित शाह ने इसे राज्यसभा में पेश किया।

लोकसभा में सरकार को इस बिल को पास कराने में कोई दिक्कत नहीं हुई, हालांकि राज्यसभा में इसे पास करवाने के लिए सरकार को मशक्कत करनी पड़ सकती है। शिव सेना के रुख के बाद भाजपा की चिंता बढ़ी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने  इसे लेकर विपक्षी नेताओं से चर्चा भी की है

मोदी सरकार बिल पास कराने के लिए पूरी ताकत झौंक रही है। राज्यसभा में बहुमत का जुगाड़ करने के लिए सरकार के रणनीतिकारों ने कई बैठकें की हैं। वहीं, विपक्ष भी राज्यसभा में अपनी ताकत दिखाने का पूरा प्रयास कर रहा है। शिव सेना के रुख के अलावा जेडीयू इ के समर्थन को लेकर खींचतान पर भी भाजपा की नजर है। इन दोनों का रोल राज्यसभा में अहम रहेगायाद रहे नागरिकता संशोधन विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है। विधेयक से मुस्लिम समुदाय को बाहर रखा गया है जिसपर विपक्ष इसे संविधान के खिलाफ बता रहा है।

अत्याचार और नहीं अब बेटियों को न्याय कब?

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद की पशु चिकित्सक की सामूहिक दुष्कर्म के बाद पेट्रोल छिडक़ जलाकर हत्या करने से देश में उबाल आ गया है। इस वारदात से पूरे देश में गुस्सा है, बलात्कारियों को फाँसी की सज़ा की माँग को लेकर सडक़ से लेकर संसद तक में आक्रोश देखने को मिला।

इस घटना ने सात साल पहले मेडिकल छात्रा के साथ हैवानियत ‘निर्भया कांड’ की याद दिला दी। तब भी सडक़ से लेकर संसद तक कोहराम मचा था। मामले के तूल पकडऩे और युवाओं के ज़ोरदार प्रदर्शन के आगे तब की यूपीए सरकार कड़ा कानून लाने को मजबूर हुई थी। बावजूद इसके बलात्कार के मामलों पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। हैवानियत के वे मामले ही •यादा तूल पकड़ते हैं, जो मीडिया की नज़र में आ रहे हैं; नहीं तो तमाम ऐसे मामले हैं, जिनकी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हो पाती या कहें कि वे थाने तक पहुँच ही नहीं पाते या जाने नहीं दिया जाता। कई मामलों में अप्रोच के सहारे या फिर बड़ी मशक्कत के बाद एफआईआर दर्ज हो पाती है।

देश का मौज़ूदा सिस्टम तमाम खामियों के साथ लोगों को बचाने और फँसाने की जुगत में इस कदर कुशल है कि किसी भी मामले की सच्चाई को उजागर करने में तमाम तौर-तरीकों से दो-चार होता है। इसके बाद वो अपनी बात रख पाता है। ऐसे ही कई मामले आते हैं, जब कोई हाई-प्रोफाइल केस सामने आता है, तब जाकर सिस्टम की पोल खुलती है और लोग पूरे साहस के साथ न्याय की गुहार लगाते हैं, तब उन्हें न्याय मिल पाता है, दिल्ली-एनसीआर में हुए बलात्कार के मामलों की दास्तान कुछ ऐसी ही है कि लोगों ने साहस के साथ बलात्कारियों को सज़ा दिलाने के लिए जद्दोजहद कर एफआईआर दर्ज करवायी है।

राजधानी में जंतर-मंतर से लेकर संसद तक जिस तरीके से आवाज़ उठायी जा रही है, इससे सारा देश यह मान रहा है आज भी हम उस सिस्टम में रहे हैं, जहाँ कानून तो है, पर उसका भय नहीं है। दिल्ली के जंतर-मंतर पर छात्र-छात्राओं और राजघाट पर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल ने आमरण अनशन कर सरकार से माँग की है कि जब तक बलात्कारियों को छ: महीने के भीतर फाँसी की सज़ा देने का कानून नहीं बन जाता है, तब तक वे अनशन पर बैठी रहेंगी। उनके साथ ही देश-भर के कई संगठनों से जुड़े युवा भी जंतर-मंतर पर तेलंगाना की डॉक्टर के दोषियों को सज़ा दिलाने की माँग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

सारा देश सवाल कर रहा है कि यूँ तो देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ज़ोर-शोर से ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ का नारा बुलंद किये हुए हैं, फिर भी देश में बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं। आिखरकार बेटियों के साथ अमानवीय घटनाएँ क्यों नहीं रुक रही हैं? निर्र्भया काण्ड के बाद देश में ऐसे मामलों से जुड़े कानून में बदलाव के बावजूद पुलिस को संवेदनशील बनाने के प्रयास किये गये और इसके लिए गाइडलाइंस भी बनायी गयी। पुलिस पेट्रोलिंग से एफआईआर दर्ज करने के तौर-तरीके और पारदर्शिता लाने में कई अहम बदलाव किये गये। फिर ऐसी कौन-सी चूक सरकार और प्रशासन से हो रही है कि जब भी कोई ऐसी घटना घटती है, तब हम खुद को वहीं खड़ा पाते हैं, जहाँ दशकों पहले खड़े थे? इतना ज़रूर है कि संवेदनशील समाज के जो जागरूक लोग आवाज़ उठाते हैं, तो उलटे उनको ही पुलिस के क्रोध का शिकार होना पड़ता है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जिसने आवाज़ उठायी, उसे पुलिसिया कार्रवाई का सामना करना पड़ा।

इसका हालिया उदाहरण हैदराबाद की डॉक्टर से हैवानियत के बाद 30 नवबंर को जब दिल्ली की अनु दुबे नामक युवती ने बलात्कारियों को सज़ा देने की आवाज़ संसद भवन के बाहर उठायी, तो उसके साथ दिल्ली पुलिस ने क्या सलूक किया? वो तो अनु दुबे ही जानती हैं। इस मामले में ‘तहलका’ संवाददाता को अनु दुबे ने बताया कि तब निर्भया थी, आज बेज़ुबानों की डॉक्टर के साथ हैवानियत हुई; अगर ऐसे में दोषियों के िखलाफ कार्रवाई की माँग उन्होंने की, तो क्या गुनाह किया? तीन महिला पुलिसकर्मियों ने मुझे प्रताडऩा दी, पीटा और नाखून गड़ाये। अनु ने बताया कि उसका दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उपचार किया गया। अब भी पुलिस की प्रताडऩा के निशान उसके हाथों में हैं। उसने बताया कि महिलाओं के साथ अन्याय की बात उसे झझकोर देती है। अन्याय कि विरोध में आवाज़ उठाने का साहस उन्हें अपने पिता से आर्मी की सर्विस के दौरान मिला। उनके साथ जंतर-मंतर पर बैठे शिवम वत्स ने बताया कि उनकी माँग बस एक ही है कि ऐसा कानून बने, जो बलात्कारियों को कम समय में सीधे फाँसी की सज़ा दिलाये अन्यथा ऐसी घटनाओं को रोक पाना मुश्किल होगा। उन्होंने बताया कि हम लोग किसी राजनीतिक दल से नहीं हैं, बस अन्याय के विरोध में हैं।

 कानून सिर्फ बने ही न, अमल भी हो

जब 16 दिसंबर, 2012 को द्वारका-मुनिरका रोड पर निर्भया काण्ड हुआ था, तब सारा देश निर्भया के दोषियों को फाँसी की सज़ा की माँग को लेकर सडक़ों पर था। आज उसी तरह का मंज़र जंतर-मंतर पर देखने को मिल रहा है। प्रदर्शनकारी हाथों में काली पट्टी बाँधकर ‘दोषियों को फाँसी दो’, ‘वी वांट जस्टिस’ की माँग को लेकर गगनभेदी नारे लगा रहे हैं। बड़ी तादाद में मौज़ूद छात्राओं और महिलाओं का कहना है कि महिला सुरक्षा को लेकर कड़ा कानून सिर्फ बनना ही नहीं चाहिए, बल्कि उस पर अमल भी किया जाना चाहिए। शहर से लेकर गाँवों तक में महिला पुलिस चौकी बननी चाहिए, ताकि महिलाओं की आवाज़ बिना आनाकानी के सुनी जा सके। अभी तक महिलाओं की शिकायतें दर्ज कराने में खासी मशक्कत करनी होती है, अगर महिला अशिक्षित और सरल स्वभाव की है, तो उसको थाने से दुत्कारकर भगा दिया जाता है।

 भारत में भी फौरन फाँसी हो

सम्पूर्ण मि. की डायरेक्टर व सामाजिक कार्यकर्ता सुजाता गुप्ता का कहना है कि देश में तब तक खुशहाली नहीं आयेगी, जब तक महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता न मिले। क्योंकि आज दुनिया के हर विकसित देश में बलात्कारियों के िखलाफ कड़े कानून का प्रावधान है। तमाम देशों में दुष्कर्मियों को फाँसी दी जाती है, पर अभी भारत में ऐसा नहीं हो पा रहा है। इसके कारण आये दिन बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं, जो काफी हैरान करने वाले हैं।

वर्ष 2013 में केन्द्रीय बजट में निर्भया फंड के नाम से 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था; जिसकी राशि अब बढक़र 300 करोड़हो चुकी है। फिर भी सरकार के लचीले रवैया के कारण दोषियों को सज़ा मिलने में वर्षों लग रहे हैं। कुछ गवाहों के मुकरने से तो कुछ धमकी मिलने के कारण बच जाते हैं। दु:खदायी यह है कि दोषियों को फाँसी की सज़ा निर्धारित कर दी जाती है, फिर भी फाँसी देने में देरी की जाती है। असमजंस की स्थिति इसलिए भी पैदा होती है, क्योंकि 16 दिसंबर, 2012 के जब निर्भयाकाण्ड के दोषियों को फाँसी की सज़ा सुनाई जा चुकी है; इसके बावजूद अभी तक उसके दङ्क्षरदों को फाँसी पर नहीं लटकाया गया है।

जंतर-मंतर पर प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता सन्ध्या बजाज का कहना है कि बलात्कारियों के विरोध में कानून तो है, पर सज़ा देर से मिलती है और कानून का भय न होने के कारण अपराधियों में डर नहीं है। उन्होंने सरकार से माँग की है कि बलात्कारियों की सज़ा का समय निर्धारित किया जाए, ताकि कम समय में ही दोषियों को फाँसी सज़ा मिले अन्यथा ऐसी घटनाओं को रोक पाना मुश्किल होगा। ऐसे मामले में सभी को दलगत राजनीति से उठकर आगे आना होगा। क्योंकि समाज में जो बलात्कार की घटना बढ़ रही है, वो एक कलंक है। देश और विदेश के कई सर्वे में भी यह सामने आया है कि भारत में आज महिलाएँ सुरक्षित नहीं हैं, जो सबको शर्मसार करते हैं।

दुष्कर्मियों को जनता को सौंपा जाए

समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन ने संसद में कहा कि दोषियों के प्रति नरमी नहीं बरतनी चाहिए, बल्कि आरोपियों को जनता को सौंप देना चाहिए। कई देशों में बलात्कारियों को ऐसी सज़ा का प्रावधान है, जहाँ तुरन्त बलात्कारियों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। उन्होंने कहा कि जहाँ पर वारदात की घटना हुई है, वहाँ चौकी प्रभारी से सवाल किया जाना चाहिए कि उन्होंने अपनी ड्यूटी में लापरवाही क्यों की है?

कड़े कानून के लिए बदलाव को तैयार

संसद में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि महिलाओं के साथ अत्याचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हम सख्त कानून बनाने के लिए बदलाव को तैयार हैं। सदन में चर्चा को भी तैयार हैं, जैसी भी सहमति बनेगी, वैसे ही कानून बनाने को तैयार हैं। हैदराबाद में डॉक्टर के साथ जो भी अमानवीयता हुई है, उसकी वो कड़े शब्दों में निन्दा करते हैं।

देश की भावना आहत

अपना दल की सांसद अनुप्रिया पटेल ने संसद में कहा कि ऐसी वारदात से देश की भावना आहत होती है। सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे, ताकि ऐसी वारदात रोकी जा सकें। पीडि़ता के परिजनों को एफआईआर दर्ज कराने में दिक्कत होती है।

अब कड़े फैसले लेने ही होंगे सर्वधर्म सम्भाव से अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक शान्तिदूत आचार्य लोकेश मुनि ने बताया कि डॉक्टर के दोषियों की सज़ा दिलाने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के निवास के बाहर प्रदर्शन कर सरकार सेे गुहार लगायी कि अब सरकार को कड़े फैसले लेने ही होंगे अन्यथा ऐसी घटनाएँ रुकने वाली नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ये सामाजिक मुद्दे हैं, इसको राजनीतिक रंग न देते हुए सभी को पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए आगे आना चाहिए, लोकेश मुनि ने कहा कि पीडि़ता के आरोपियों को जब सैकड़ों पुलिसकर्मी जनता बचाव के लिए सुरक्षा देते हैं, अगर पुलिस इस तरह पहले से ही मुस्तैद रहे और चौकन्नी होकर ड्यूटी करे, तो अपराध और बलात्कार जैसी घटनाएँ ही न हों।

 राजघाट से अनशन

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल बलात्कारियों को छ: महीने के भीतर फाँसी की सज़ा दिलाने की माँग को लेकर राजघाट पर अनिश्चितकालीन आमरण अनशन पर बैठ गयी हैं। मालीवाल का कहना है कि संसद एक ऐसा कानून बनाए जिसमें दोषियों को सीधे फाँसी मिले, इससे कम कोई सज़ा मंज़ूर नहीं होनी चाहिए। जिस तरीके से देश में बलात्कारियों के हौसले बुलंद हैं, वे स्वस्थ समाज के लिए कलंक हैं।

महिला अत्याचार समाज पर कलंक

युवा नेता व सामाजिक कार्यकर्ता संजय प्रजापति ने कहा कि वे पशु चिकित्सक को जि़न्दा जलाये जाने वाली घटना से काफी आहत हैं। वे सरकार से अपील करते हैं कि सरकार कोई ऐसा कानून व सिस्टम बनाये, जिससे महिलाएँ अपनी जॉब व घरेलू कामकाज आसानी से कर सकें। क्योंकि जो अत्याचार महिलाओं पर हो रहे हैं, वे समाज पर कलंक हैं।

आखिर कब गम्भीर होंगे

निर्भया काण्ड के बाद से हैदराबाद काण्ड तक देश में तमाम मामले सामने आये, पर वे किसी कारण न तो सुॢखयों में आये, न ही सडक़ से लेकर संसद तक गूँजे। अगर इन मामलों की समय पर आवाज़ उठी होती, तो इसमें संदेह नहीं कि हैदराबाद की डॉक्टर के साथ यह अनहोनी नहीं होती। क्योंकि हमारे देश में क ई मामलों की आवाज़ लोगों द्वारा उठायी गयी है। ऐसा नहीं कि कानून नहीं है; कानून है, पर उसका डर नहीं है।

हम एक समाज के रूप में हार चुके हैं…

वर्ष 2012 निर्भया काण्ड! वर्ष 2019 हैदराबाद की पशु चिकित्सक रेप काण्ड! और इसके बीच हज़ारों युवतियों, औरतों, बच्चियों, प्रौढ़ाओं, बूढ़ी औरतों से सामूहिक बलात्कार, हत्या और जलाकर मार देने की जघन्य घटनाएँ! मन बहुत बेचैन है। कहीं कुछ नहीं हिल रहा, कहीं कुछ नहीं बदल रहा! हर बार कभी एक उदास मन के साथ, तो कभी जोश और क्रोध से भरकर कैंडल मार्च निकाला जाता है। यूँ ही कुछ दिन तक आन्दोलन और गुस्सा सोशल मीडिया से लेकर सडक़ों तक दिखाई देता है। कुछ दिन में फिर सब कुछ वैसा ही चलने लगता है; सब कुछ थम जाता है। क्या होगा इस समाज का, इस सोसायटी का, जो एक तरफ भागती हुई दुनिया की चकाचौंध के साथ चलना चाहती है? लेकिन किसी भी चीज़ के साथ तालमेल बिठाने में पूरी तरह अक्षम हो चुकी है।

निर्भया काण्ड ने मेरे और मेरे जैसे हज़ारों लोगों के दिल और दिमाग को दहला दिया था। स्तब्ध और आक्रोश से भर कैंडल लाइट मार्च में हम सबने भाग लिया। कितनी ही पेटीशन पर हस्ताक्षर किये, हत्यारों के लिए फाँसी की माँग की और फिर इस बहस को भी सुना कि नाबालिग होने पर फाँसी देना कितना उचित होगा या अनुचित? अपराधियों को सुधरने का मौका देना ही चाहिए! निर्भया तो सिर्फ एक नाम है; पर ऐसी ही घटनाओं की जघन्यता पर हम सब बहसों का हिस्सा बनते रहे कि फाँसी की माँग ऐसे जघन्य अपराधों में भी होनी चाहिए या नहीं? प्रक्रिया विचाराधीन रही और मौन आँखें इन्तज़ार करती हुई पथरा गयीं।

कठुआ की मासूम बच्ची को कैसे भूल जाएँ! हम बलात्कार और हत्या आर जितना स्तब्ध हुए, उससे •यादा बहस यही हुई कि कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान? एक तरफ यह बहस चली कि नाम सोशल मीडिया पर उजागर करना कानूनन गलत है; दूसरी तरफ जाति, धर्म के नगाड़े बजाने वाले अपनी रोटियाँ सेंकते रहे! और फिर सब कुछ शान्त हो गया। लोग अपने-अपने कामों में लग गये। सडक़ें वैसी ही असुरक्षित बनी रहीं। यहाँ तक घर भी असुरक्षित हो रहे हैं। आजकल बहुत तेज़ी से, पर यहाँ मैं अपनी बात से भटकना नहीं चाहती और इन घटनाओं की जघन्यता पर ही बात केन्द्रित रखना चाहती हूँ। लड़कियाँ हर रोज़ साहस जुटाकर पढऩे-नौकरी करने निकल रही और हर रोज़ अखबार दुष्कर्म-सामूहिक दुष्कर्म की खबरों से पटे रहे! और फिर अब हैदराबाद की पशु चिकित्सक से गैंगरेप कर निर्मम हत्या की घटना सामने आयी। एक लम्बे समय से जो क्रोध, तनाव और आक्रोश मेरे भीतर इन घटनाओं ने भर दिया था, इस घटना ने उसे स्तब्धता में बदल दिया पूरी तरह! एक स्तब्धता में जहाँ मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं कि एक सज के रूप में हम हार चुके हैं, फेल हो गए हैं।

कैसे समाज की उम्मीद में हैं हम? जहाँ लडक़ी किसी भी उम्र की हो, केवल एक शरीर है और कुछ नहीं! हम अपराधियों के प्रति रुख में ही उलझे रहेंगे, जैसा हमेशा करते आये हैं; पर इन लड़कियों का काया दोष—जिनके साथ सडक़ पर चलते हुए, ऑटो में बैठते हुए, रिक्शे में, अपनी ही गाड़ी के खराब होने पर कहीं मदद माँगने के क्रम में कहीं भी कुछ हो सकता है। इस पर हम नाराज़ होंगे, क्रोध से भर जाएँगे; पर फिर वैसा ही सब कुछ चलता रहेगा।

यकीन मानिए इनमें से किसी लडक़ी को मैं नहीं जानती। पर हर बार ऐसी खबर पढक़र लगता है, जैसे आत्मा का कोई कोना बिलकुल सुन्न हो गया हो। कैसे वीभत्स समाज का हिस्सा हैं हम, जहाँ दुष्कर्मी ताकतवर होने के दम्भ से भरा हुआ है और लड़कियाँ अनजाने डर से सहमी हुई। ऐसे बनेंगे हम शक्तिशाली और बड़े? फिर कहती हूँ कि अब हम समाज नहीं रहे! इस समाज को एक बड़े बदलाव की ज़रूरत है, जहाँ बलात्कारियों के भीतर कानून का डर हो और सरेआम दंड के व्यवस्था भी करनी पड़े, तो वह भी हो।

अहिंसा पर अटल विश्वास है मेरा! इतना कि किसी के अहम को तुष्ट करने के लिए भी उससे माफी माँगकर उसे माफ करना जानती हूँ मैं। पर आज मैं इन और इन जैसे कितने ही बलात्कारियों के लिए अहिंसा का समर्थन नहीं कर पा रही। हैदराबाद में जहाँ यह घटना हुई, ठीक उसके अगले ही दिन वहीं एक और युवती का अधजला शव मिला! आज सुबह जब ये मैं लिख रही हूँ, तो दो खबर और पढ़ी कि मध्य प्रदेश के दतिया •िाले में एक परिवार ने अपने बेटे को मार दिया, क्योंकि वह शराब पीकर अपने परिवार की स्त्रियों से दुष्कर्म करता था। दूसरी खबर उड़ीसा की कि पुरी क्षेत्र में एक आदमी ने बस स्टैंड से लडक़ी को पुलिस होने का दावा करके सहायता के नाम पर जबरन कार में बिठाया और फिर कहीं ले जाकर गैंगरेप किया। कोई डर नहीं! कोई घबराहट नहीं इन अपराधियों के मन में! हैदराबाद के घटना में डॉक्टर की बहन एक थाने से दूसरे में भटकती रही पर अपने क्षेत्र की घटना न होने की बात कहकर समय टलता रहा। जिन घटनाओं को सुनकर प्रो-एक्टिव एप्रोच होनी चाहिए, वहाँ मजबूर आदमी गुहार लगाता रह जाता है; कोई नहीं सुनता। जिन्हें रखवाला माना जाए, उससे भी डर लगने लगे तो इस समाज का क्या होगा?

अब इन घटनाओं के बाद कैसे मदद माँगी जाएगी सडक़ पर किसी से, जब दरकार होगी। पहले-पहल तो यही भाव आता है मन में कि घर पहुँच जाएँ किसी तरह। न जाने कितनी ही औरतें महानगरों में अकेली रहती हैं, नौकरी करती हैं, देर रात तक काम करके वापस आती हैं। लेकिन अब इस डर के साथ हम इस समाज में रह रहे हैं, जहाँ सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। किसी कानून व्यवस्था का कोई ठिकाना नहीं। ऐसी ही 21वीं सदी की परिकल्पना थी हमारी? जहाँ औरतें घरों में खुद को कैद करने पर मजबूर हो जाएँ या फिर किसी की सुरक्षा में निकलने की स्थिति के अलावा कोई चारा न हो; क्योंकि बाहर अब कुछ सुरक्षित दिखाई नहीं देता। तो किया क्या जाए? क्या सब औरतों-बच्चियों को एक आइलैंड पर अलग और पुरुषों को अलग छोड़ दिया जाए? क्या यह समाज साथ चलने लायक भी नहीं रह गया? जेंडर एक विमर्श है और इस विमर्श को संस्थाओं में चलाया जाता है और चलाया भी जा सकता है; पर बाकी तबकों को कैसे शिक्षित किया जाए? यह एक बड़ा सवाल है, जिसे बहुत गम्भीरता से देखा जाना ज़रूरी है। यह मानते हुए भी कि एक समाज के रूप में हम लगातार फेल हो रहे हैं, हमें ही इसके पुनर्निर्माण में लगना होगा। मुझे हैरानी होती है कि चुनाव में किसी भी दल के मुद्दे में बलात्कार और स्त्री से जुड़े मुद्दे क्यों नहीं होते। क्या ये इच्छाशक्ति की कमी है अथवा ये मुद्दा लोकलुभावन नहीं लगता? राजनीतिक दलों को इस पर विचार करने की ज़रूरत है।

कानून के हाथ कम-से-कम इन मामलों में कैसे मज़बूत हों? यह विचार करने की ज़रूरत है। कानून की रक्षा करने वालों से गुहार लगाने वालों को भी कानून के रखवालों से भय होने लगे, वहाँ निरंतर सम्वाद की ज़रूरत है—नये सिरे से संवाद की। एक बार फिर से इस समाज को थोड़ा मध्यकालीन करने की ज़रूरत है। आज जानकारी, शिक्षा के अभाव के साथ आसानी से उपलब्ध सूचनाओं का जंजाल है। अपराधियों के लिए सारा डाटा, जानकारी, सूचना से लेकर हर तरह की सामग्री इंटरनेट पर उपलब्ध है। क्या इस पर एक बार फिर से सोचा जा सकता है? सोचा जाना चाहिए। अगर सब कुछ बाहर से आयात करने की इतनी जल्दी है, तो कुछ समझदारी भी बढऩी चाहिए। अगर नहीं, तो फिर मान लीजिए कि भस्मासुर पैदा करना तो बहुत आसान है; पर उससे मुक्ति पाना बहुत मुश्किल।

इंटरनेट की दुनिया और तकनीक की माध्यम से सब कुछ उपलब्ध है, मनोरंजन के सारे साधन मौज़ूद हैं। स्मार्ट फोन हर एक के हाथ में है, पर उसके इस्तेमाल की मर्यादाएँ हम नहीं जानते। ठीक वैसे ही जैसे हथियार चलाने की योग्यता न होने पर भी हथियार दे दिए जाएँ और उसका इस्तेमाल करने की छूट मिल जाए। रुकिए, ठहरिए, सोचिए, अब हर तबके से एक नये सिरे से संवाद करना होगा, वरना एक संवेदनहीन समाज के रूप में हम खड़े रह जाएँगे और शॄमदा होते ही रहेंगे। पता नहीं किस ओर जा रहे हैं हम! मैं यह सब लिखते हुए बहुत उदास हूँ, परेशान हूँ। बहुत-सी बच्चियों को हँसते-खेलते देख रही हूँ। काश ये खिलखिलाती रह सकें! कोई कविता नहीं लिखूँगी अभी, यह अत्यंत गम्भीर मसला है, मिलकर सोचते हैं… और हाँ, कुछ दिन बात करके इस बार छोडऩा नहीं है। लगातार बहस करनी है, जो भी हो सके, करना है; इन घटनाओं के विरोध में! मैं अकेले तो कुछ नहीं सोच पा रही हूँ। आप लोग सोचिए और बताइए कि एक जागरूक नागरिक के रूप में हमें क्या करना चाहिए?