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बांग्लादेश में आई बाढ़ से  23 लोगों की मौत, करीब 60 लाख लोग प्रभावित

ढाका :  बांग्लादेश के कई हिस्सों में आई बाढ़ से 23 लोगों की मौत हो गई है। इस भयानक आपदा में लगभग 60 लाख लोग प्रभावित हुए हैं और लाखों परिवार विस्थापित हो गए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, आपदा प्रबंधन एवं राहत मंत्रालय के तहत देश के राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया समन्वय केंद्र (एनडीआरसीसी) की दैनिक आपदा स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार दोपहर तक देश के कुल 64 जिलों में से 11 में बाढ़ के कारण 57,01,204 लोग प्रभावित हुए। बांग्लादेश की मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में बाढ़ से 23 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 11 जिलों में 12,38,048 परिवार फंसे हुए हैं। दो लोग लापता भी बताए गए हैं।

टीवी रिपोर्ट्स से पता चला है कि बांग्लादेश के कई हिस्सों में पिछले हफ़्ते से ही मुख्य नदियों के उफान पर होने के कारण जमीन के बड़े हिस्से पानी में डूबे हुए हैं। बाढ़ ने कथित तौर पर देश के बड़े हिस्से में बस्तियों, फसलों, सड़कों और राजमार्गों को भी व्यापक नुकसान पहुंचाया है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने रविवार को अधिकारियों को बाढ़ से निपटने और लोगों को बचाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि सरकार बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने, आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने और बाढ़ पीड़ितों को हर संभव मदद देने के लिए कड़े प्रयास कर रही है।

बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए अधिकारियों द्वारा बचाव अभियान चलाया जा रहा है। बाढ़ प्रभावित शरणार्थियों को राहत सामग्री वितरित करने और उन केंद्रों की निगरानी के लिए आपदा प्रतिक्रिया बल की टीमें भेजी गई हैं। बता दें कि बांग्लादेश में चीनी दूतावास ने रविवार को बाढ़ से होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए सबसे अधिक प्रभावित फेनी क्षेत्र में भोजन, पेयजल और आवश्यक सुरक्षा सामग्री उपलब्ध कराई। इसके अलावा चीन की रेड क्रॉस सोसाइटी ने आपातकालीन मानवीय सहायता के लिए बांग्लादेश रेड क्रिसेंट सोसाइटी को 100,000 डॉलर का दान दिया। साथ ही यहां चीनी दूतावास ने मुख्य सलाहकार राहत और कल्याण कोष में 20,000 डॉलर दान करने की घोषणा की।

उत्तर रेलवे ने एकीकृत पेंशन योजना की घोषणा की, 23 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को मिलेगा लाभ

नई दिल्ली : उत्तर रेलवे के मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय ने आज एकीकृत पेंशन योजना (UPS) की मुख्य विशेषताओं की घोषणा की है। यह योजना 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी और इसका उद्देश्य लगभग 23 लाख केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों को लाभ पहुंचाना है।

मुख्य विशेषताएँ
– सुनिश्चित पेंशन: 25 वर्ष की न्यूनतम सेवा के लिए पेंशन की राशि सेवानिवृत्ति से पहले के पिछले 12 महीनों के औसत मूल वेतन का 50% होगी। कम से कम 10 वर्ष की सेवा करने पर पेंशन की राशि आनुपातिक होगी।

– सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन: न्यूनतम 10 वर्ष की सेवा के बाद सेवानिवृत्ति पर 10,000 रुपये प्रति माह की पेंशन सुनिश्चित की जाएगी।

– सुनिश्चित पारिवारिक पेंशन: कर्मचारी की मृत्यु के बाद उनकी पेंशन का 60% पारिवारिक पेंशन के रूप में मिलेगा।

– मुद्रास्फीति सूचकांक: सुनिश्चित पेंशन, पारिवारिक पेंशन, और न्यूनतम पेंशन पर महंगाई राहत प्रदान की जाएगी, जैसा कि सेवारत कर्मचारियों के लिए है।

– ग्रेच्युटी के अलावा भुगतान: सेवानिवृत्ति पर, मासिक पारिश्रमिक (वेतन + डीए) का 1/10वां हिस्सा सेवा के प्रत्येक पूर्ण छह महीने के लिए एकमुश्त भुगतान के रूप में मिलेगा।

अन्य विशेषताएँ

– UPS का लाभ एनपीएस के पिछले सेवानिवृत्त लोगों पर भी लागू होगा। पिछली अवधि के लिए बकाया राशि का भुगतान पीपीएफ दरों पर ब्याज के साथ किया जाएगा।

– यह योजना मौजूदा और भावी कर्मचारियों के लिए एक विकल्प के रूप में उपलब्ध होगी। एक बार चुने जाने के बाद, विकल्प अंतिम होगा।

– कर्मचारियों का अंशदान नहीं बढ़ेगा। UPS लागू करने के लिए सरकार अतिरिक्त योगदान देगी और सरकार का योगदान 14% से बढ़ाकर 18.5% कर दिया गया है।

– UPS का कार्यान्वयन केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा और राज्य सरकारों द्वारा भी इसे अपनाने के लिए समान संरचना तैयार की गई है। यदि राज्य सरकारें इसे अपनाती हैं, तो इससे 90 लाख से अधिक सरकारी कर्मचारियों को लाभ हो सकता है जो वर्तमान में एनपीएस पर हैं।

उत्तर रेलवे की यह नई योजना सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है, जिससे उनकी सेवानिवृत्ति के बाद की वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।

शिया तीर्थयात्रियों की बस ईरान में दुर्घटनाग्रस्त,35 लोगों की मौत;23 की हालत गंभीर

तेहरान : पाकिस्तान से इराक जा रहे शिया तीर्थयात्रियों की एक बस दुर्घटनाग्रस्त होने से बड़ा हादसा हो गया है। दरअसल, शिया तीर्थयात्रियों से भरी बस सेंट्रल ईरान में दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जिसमें 35 लोगों की मौत हो गई है। एक अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी।

एजेंसी के मुताबिक, स्थानीय आपातकालीन अधिकारी मोहम्मद अली मालेकज़ादेह ने बताया कि यह दुर्घटना मंगलवार रात को ईरान के यज़्द प्रांत में हुई। अली मालेकज़ादेह ने बताया कि इस दुर्घटना में 23 अन्य लोग भी घायल हुए हैं, जिनमें से 14 की हालत गंभीर है। सभी तीर्थयात्री अरबईन की याद में इराक जा रहे थे, जो 7वीं शताब्दी में एक शिया संत की मृत्यु के 40वें दिन मनाया जाता है।

उत्तर भारत के कई शहरों में ‘भारत बंद’ का अच्छा खासा असर

नई दिल्ली  : एससी, एसटी आरक्षण में उच्चतम न्यायालय द्वारा क्रीमी लेयर और उपवर्गीकरण करने के फैसले के विरोध में अनुसूचित जाति और जनजाति मोर्चा व भीम आर्मी द्वारा बुलाए गए भारत बंद का पूरे देश में मिला-जुला असर देखने को मिल रहा है। इस बंद का समर्थन विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी किया है, जिससे इसका प्रभाव कई शहरों में स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है।

बिहार के जहानाबाद में इसका असर सुबह से ही दिखाई देने लगा। यहां के प्रमुख मार्गों, विशेषकर पटना-गया राष्ट्रीय मार्ग के ऊंटा मोड़ के पास बड़ी संख्या में बंद समर्थकों ने सड़क को जाम कर दिया। इस जाम की वजह से वाहनों की लंबी कतारें लग गई हैं, जिससे आने-जाने वाले लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। भारत बंद समर्थकों ने सरकार से मांग की है कि उच्चतम न्यायालय के फैसले को एक अध्यादेश के माध्यम से रद्द किया जाए।

छत्तीसगढ़ के कवर्धा में भारत बंद का असर अपेक्षाकृत कम देखा गया। चेंबर ऑफ कॉमर्स ने भारत बंद का समर्थन नहीं किया है, जिसमें छोटे व्यापारी और अन्य व्यावसायिक संगठन शामिल हैं। चेंबर ने बताया कि व्यापारिक संगठनों की बिना पूर्व सूचना के समर्थन न देने की परंपरा है, जिसके कारण कवर्धा में भारत बंद का प्रभाव सीमित रहा।

रायपुर में बंद की वजह से कई स्कूलों में छुट्टियां दे दी गई हैं।

इसके अलावा झारखंड के चाईबासा में भारत बंद का व्यापक असर देखने को मिला है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन के साथ अनुसूचित जाति और जनजाति संगठनों ने बाजारों को बंद करा दिया और वाहनों का परिचालन ठप कर दिया। चाईबासा शहर के तांबो चौक पर सड़क को अवरुद्ध कर दिया गया है, और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता ने कहा कि आरक्षण में वर्गीकरण की कोशिशों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

पटना में बंद समर्थकों ने महेंद्रु अंबेडकर हॉस्टल के पास सड़क को जाम कर दिया और आगजनी की। पुलिस प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट मोड पर है और शांति व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।

अलवर में भी भारत बंद का असर देखा गया है। बाजारों में दुकानें बंद हैं और सड़कें सुनसान नजर आ रही हैं। जिला कलक्टर ने कानून और शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील की है, जबकि पुलिस प्रशासन लगातार राउंड पर है। हालांकि, जिले में शांति का माहौल बना हुआ है।

दरभंगा में भीम आर्मी और अन्य दलित संगठनों ने बिहार संपर्क क्रांति ट्रेन का चक्का जाम कर केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने उच्चतम न्यायालय के फैसले की आलोचना करते हुए इसे अनुसूचित जाति और जनजाति समाज के खिलाफ एक बड़ी साजिश करार दिया और सरकार से मांग की है कि इस फैसले को वापस लिया जाए।

उत्तर प्रदेश के हरदोई में भारत बंद का असर नहीं दिखा। रोजाना की तरह दुकानें खुली रहीं। भारत बंद को लेकर पुलिस हाई अलर्ट पर है। शहर के हर चौराहे पर पुलिस फोर्स तैनात है। अमरोहा में बंद समर्थकों ने हाथों में नीला झंडा और तिरंगा लेकर जोरदार प्रदर्शन किया।

बता दें, उच्चतम न्यायालय में काफी लंबे समय से सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए एससी, एसटी वर्ग को सब कैटेगरी में रिजर्वेशन दिए जाने की मांग का मामला लंबित था। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में एक अगस्त को बड़ा फैसला सुनाते हुए अपने ही 2004 के पुराने फैसले को पलट दिया। इसके बाद न्यायालय ने पंजाब अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2006 और तमिलनाडु अरुंथथियार अधिनियम पर अपनी मुहर लगाकर कोटा के अंदर सब कैटेगरी को मंजूरी दे दी।

ज़ेलेंस्की का दावा ,रूस में 92 ठिकानों पर है यूक्रेन का नियंत्रण

राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि यूक्रेनी सेना ने पश्चिमी रूस के कुर्स्क क्षेत्र में 92 बस्तियों पर नियंत्रण कर लिया है।

ज़ेलेंस्की ने सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर कहा कि यूक्रेनी सैनिकों ने 1,250 वर्ग किलोमीटर से ज़्यादा रूसी क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है।

ज़ेलेंस्की ने कहा, “हमारे देश के सुमी क्षेत्र के ठीक सामने रूसी सीमा क्षेत्र को रूस की सेना से लगभग पूरी तरह से मुक्त कर दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि यूक्रेनी सेना कुर्स्क क्षेत्र में कई जगहों पर अपना सैन्य अभियान जारी रखे हुए है।

पिछले हफ़्ते, यूक्रेनी राष्ट्रपति के सलाहकार मायखाइलो पोडोल्याक ने कहा था कि रूस के कुर्स्क क्षेत्र में यूक्रेन का अभियान दोनों देशों के बीच संभावित शांति वार्ता से जुड़ा हुआ है।

उन्होंने कहा कि यूक्रेन रूसी क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने में दिलचस्पी नहीं रखता।

हालांकि, इसके जवाब में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस की सीमा पर यूक्रेन के हमलों का “उचित जवाब” दिया जाएगा। रूसी सेना का पहला काम कुर्स्क क्षेत्र से यूक्रेनी सेना को हटाना है।

यूक्रेन ने 6 अगस्त को कुर्स्क क्षेत्र में सैन्य अभियान शुरू किया था।

15 अगस्त को यूक्रेनी सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ अलेक्सांद्र सिरस्की ने कहा कि उनकी सेना ने इस क्षेत्र में 82 बस्तियों पर कब्जा कर लिया है।

उधर, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि रूस के सीमावर्ती कुर्स्क क्षेत्र पर हमले के बाद यूक्रेन के साथ बातचीत संभव नहीं है।

स्थानीय मीडिया के साथ एक साक्षात्कार में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा, “राष्ट्रपति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कुर्स्क क्षेत्र पर हमलों के बाद, बातचीत असंभव है।”

इस बीच, उन्होंने उन आरोपों का खंडन किया कि दोनों देशों ने किसी तीसरे देश से मध्यस्थता के लिए संपर्क किया है, और इसे कोरी अफवाह बताया।

लावरोव ने यह भी संकेत दिया कि स्विट्जरलैंड में यूक्रेन पर सम्मेलन की पूरी प्रक्रिया रूस के लिए अस्वीकार्य है क्योंकि यह ज़ेलेंस्की के फॉर्मूले को बढ़ावा देने के बारे में है।”

आप सांसद संजय सिंह की मुश्किलें बढ़ीं, 23 साल पुराने मामले में कोर्ट ने दिया गिरफ्तारी का आदेश

सुलतानपुर : उत्तर प्रदेश में सुलतानपुर जिले की एक अदालत ने 23 वर्ष पूर्व एक मामले में आम आदमी पार्टी (आप) सांसद संजय सिंह और समाजवादी पार्टी (सपा) प्रवक्ता अनूप संडा को गिरफ्तार कर अदालत में पेश करने का आदेश दिया है। इस मामले में जमानतीय वारंट को कोर्ट ने जारी रखा है। 28 अगस्त को कोर्ट अब मामले की सुनवाई करेगा।

न्यायिक विभाग के सूत्रों ने मंगलवार को बताया कि करीब 23 वर्ष पूर्व 19 जून 2001 को बिजली-पानी समेत अन्य समस्याओं के विरोध में इन नेताओं ने सड़क पर जाम लगाकर धरना प्रदर्शन किया था, जिस पर कोतवाली नगर में तैनात उपनिरीक्षक अशोक सिंह ने मुकदमा दर्ज कराया था। पुलिस ने आप सांसद संजय सिंह, पूर्व विधायक अनूप संडा, पूर्व सभासद कमल श्रीवास्तव, वर्तमान नामित सभासद विजय, पूर्व प्रवक्ता कांग्रेस संतोष कुमार, पूर्व नगर अध्यक्ष भाजपा सुभाष चौधरी व प्रेम प्रकाश के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। इस दौरान विचारण प्रेम प्रकाश की मौत हो चुकी है। तत्कालीन विशेष मजिस्ट्रेट एमपी-एमएलए योगेश यादव की कोर्ट ने छह आरोपियों को बीते जनवरी 2023 में भादवि की धारा-143 व 341 में दोषी ठहराते हुए तीन-तीन माह के कारावास व 1500-1500 अर्थदण्ड की सजा सुनाया था।

सभी ने सजा के खिलाफ अपील की, स्पेशल एमपी-एमएलए सेशन कोर्ट जज एकता वर्मा की अदालत से सभी दोषियों की अपील छह अगस्त को खारिज हो गई। सम्बंधित कोर्ट में बीते 9 अगस्त को सभी को समर्पण था, फिलहाल अभी तक किसी ने भी सरेंडर नहीं किया। जेल जाने से बचने के लिए कोर्ट आदेश के खिलाफ दोषियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। हाईकोर्ट से भी दोषियों को अभी तक गिरफ्तारी व सरेंडर पर कोई राहत नहीं मिल सकी है। हाईकोर्ट में याचिका पेंडिंग है।

एमपी एमएलए की विशेष मजिस्ट्रेट शुभम वर्मा की अदालत ने अनूप संडा को कोई राहत देना जायज नहीं मानते हुए अर्जी खारिज की है। हाईकोर्ट में याचिका पेंडिंग होने को आधार बनाकर कार्यवाही रोकने के लिए अर्जी दी गई थी। कोर्ट ने राहत नहीं देते हुए सभी को गिरफ्तार कर पेश करने के लिए 28 अगस्त की अगली तारीख तय की है।

भाजपा ने की 9 उम्मीदवारों की घोषणा, रवनीत सिंह बिट्टू को राजस्थान से बनाया उम्मीदवार

नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्यसभा उपचुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। राजस्थान से पार्टी ने कैबिनेट मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू को उम्मीदवार बनाया है। बिट्टू कल अपना नामांकन दाखिल करेंगे। यह सीट पूर्व कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद खाली हुई थी।

राजस्थान में राज्यसभा की एकमात्र सीट के लिए हो रहे इस उपचुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारने की घोषणा की है। विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा की जीत के बाद, पार्टी के पास पर्याप्त संख्याबल है, जिससे बिट्टू का राज्यसभा सांसद बनना लगभग सुनिश्चित है।

भाजपा ने मंगलवार को कुल 9 सीटों के लिए राज्यसभा उपचुनाव के उम्मीदवारों की घोषणा की है। राजस्थान के अलावा, पार्टी ने असम से मिशन रंज दास और रामेश्वर तेली, बिहार से मनन कुमार मिश्र, हरियाणा से किरण चौधरी, मध्य प्रदेश से जॉर्ज कुरियन, महाराष्ट्र से धैर्यशील पाटिल, ओडिशा से ममता मोहंता और त्रिपुरा से राजीव भट्टाचार्जी को उम्मीदवार घोषित किया है।

सड़क से खेत तक समस्या बने आवारा पशु

योगेश

पहले कभी कहा जाता था कि चूहे किसानों की फ़सलों का क़रीब 20वाँ हिस्सा चट कर जाते हैं। लेकिन अब चूहों के अलावा लगातार बढ़ते ही जा रहे आवारा पशु भी किसानों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन चुके हैं। हर राज्य में आवारा पशु फ़सलों का नुक़सान करते हैं, जिसकी ख़बरें भी नहीं आती हैं। खेत से सड़क तक घूमते ये अवारा पशु किसानों पर हमले भी कर देते हैं। यह दु:ख की बात है कि अगर कहीं कोई आवारा पशु किसी किसान पर हमला कर दे और किसान घायल हो जाए या उसकी जान भी चली जाए, तो भी एक छोटी-सी ख़बर अख़बार के किसी कोने में मुश्किल से होती है। पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने पिछले साल आवारा साँड के हमले से अगर किसी की मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिजनों को 5,00,000 रुपये का मुआवज़ा दिया जाएगा। हालाँकि लोगों पर सिर्फ़ साँड ही नहीं, दूसरे आवारा पशु भी हमला कर देते हैं। सरकार को सभी पशुओं के द्वारा हमला करने पर घायलों और मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा देना चाहिए। सरकार को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि कई मामलों में मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा मिलने में परेशानियाँ आती हैं, जो नहीं आनी चाहिए।

आवारा पशुओं द्वारा किसानों की फ़सलों का बहुत नुक़सान होता है, जो बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है ओर देश के सभी किसानों को मिलाकर लाखों रुपये का नुक़सान उनकी फ़सलों के उजाड़ के रूप में देखने को मिलता है। पशु जिन किसानों की फ़सलों को उजाड़ देते हैं, उन फ़सलों का किसानों को कोई मुआवज़ा नहीं मिलता और न ही बीमा कम्पनी इसकी भरपाई करती हैं। बीमा कम्पनियाँ किसानों के इस नुक़सान को प्राकृतिक आपदा का हिस्सा नहीं मानती हैं। कई किसानों से आवारा पशुओं के उनकी फ़सलों के नुक़सान के बारे में पूछा, तो ज़्यादातर किसानों ने इसे सबसे बड़ी समस्या बताया। कुछ किसानों ने कहा कि अब पशु हैं, बेचारे वो भी कहाँ जाएँगे। ज़्यादातर किसानों ने कहाँ कि रात को देर तक खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। दिन में भी कई बार आवारा पशु खेतों में घुस आते हैं, जिससे बहुत नुक़सान होता है। रामसिंह नाम के किसान ने बताया कि उनकी फ़सलों का पाँचवें से एक-चौथाई हिस्सा तक आवारा जानवर उजाड़ देते हैं, जो बहुत बड़ा नुक़सान है। आवारा पशुओं को भगाने के चलते हर दिन खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। अगर फ़सल को पहले की तरह बिना रखवाली के छोड़ दो, तो पूरी फ़सल का नाश हो जाएगा। रामसिंह ने बताया कि अब से 15 साल पहले तक इतने आवारा पशु नहीं थे। जबसे लोगों ने बछड़ों को छोड़ना शुरू कर दिया है, तबसे साँड बहुत हो गये हैं।

ऐसा लगता है कि भारत के किसानों की दशा प्रेमचंद की कहानी पूस की रात के हल्कू की तरह हो गयी है, जो रात भर ठंड में अपनी फ़सल की भी रखवाली करता है और उसकी फ़सल फिर भी नहीं बच पाती है। आज भी भारत के किसान सब्र करने के अलावा और कुछ भी नहीं कर पाते। रही सही कसर प्राकृतिक आपदाएँ पूरा कर देती हैं, जिसकी भरपाई भी बीमा कम्पनी राम भरोसे ही करती हैं। आवारा पशुओं से किसानों की फ़सलों की रक्षा के लिए व्यवस्था बनाने की बात हर राज्य की सरकार कह तो रही है; लेकिन धरातल पर कोई व्यवस्था नज़र नहीं आती। किसान ख़ुद अपनी फ़सलों की रखवाली कर रहे हैं। कुछ सक्षम किसानों ने अपनी फ़सलों की सुरक्षा के लिए खेतों के चारों ओर कटीला तार लगाये हैं। जो किसान तार लगाने में सक्षम नहीं हैं, वे खेतों की रखवाली और धोखे का इस्तेमाल करके पशुओं को भगाने की कोशिश करते हैं। लेकिन आवारा पशु फ़सलों का कम ज़्यादा नुक़सान कर ही देते हैं।

कुछ महीने पहले ही उत्तर प्रदेश के निर्देश पर राज्य के कृषि विभाग ने आवारा पशुओं को भगाने के लिए पशुओं को फ़सलों से दूर रखने वाली गंध के छिड़काव की बात कही थी। लेकिन प्रदेश सरकार पशुओं को फ़सलों से दूर रखने के लिए जिस हरबो लिव दवा के प्रयोग को प्रोत्साहित कर रही है, उससे दवा कम्पनी को तो फ़ायदा हो रहा है, किसानों को नहीं। इस दवा की कीमत काफ़ी है और यह खेतों में काफ़ी ज़्यादा डालनी पड़ती है। राज्य सरकार के कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हरबो लिव नाम की दवा फ़सल की गंध को छिपाकर उसे एक ख़राब गंध में बदलकर फ़सल का स्वाद भी बेहद ख़राब बना देती है। अगर इस दवा लगी फ़सल को पशु खाना भी चाहेंगे, तो खा नहीं सकेंगे। लेकिन अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि आवारा पशु सिर्फ़ फ़सल खाते ही नहीं है, बल्कि उसे पैरों से रौंदकर भी ख़राब कर देते हैं। बड़ी फ़सलों में तो वे अपना ठिकाना बना लेते हैं, जिससे फ़सलों को गिरा देते हैं और उसी में आराम करते हैं।

कृषि विभाग के अधिकारियों का दूसरा दावा है कि हरबो लिव दवा दवा से फ़सलों को कोई नुक़सान नहीं पहुँचता है, उलटा ये दवा खेतों की जैविक प्रकृति को बनाए रखती है। इसके अलावा मिटटी के जैविक गुणों को यह दवा बढ़ाती है और उसे ज़्यादा उर्वर बनाती है। हरबो लिव दवा सब्जी, दलहन, तिलहन और अन्य कई फ़सलों के लिए काफ़ी कारागर है।

इसी साल उत्तर प्रदेश दिवस के शुभारंभ के मौके पर 24 जनवरी को लखनऊ के अवध शिल्प ग्राम में आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कृषि विभाग के तीन स्टाल में से एक हरबो लिव और दूसरी कीटनाशक दवाओं की जानकारी ली। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दूसरी स्टाल पर भी कृषि से सम्बन्धित जानकारी जुटार्यी थी। उस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने ये कहा था कि हर हाल में आवारा पशुओं से किसानों की फ़सलों को बचाने का हर संभव प्रयास किया गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि आवारा पशुओं का आतंक ख़त्म नहीं हो रहा है और किसान इससे बहुत परेशान हैं। कई किसानों ने बताया कि अधिकारियों से आवारा पशुओं को रोकने की कई बार अपील की, शिकायत की; लेकिन अधिकारी किसानों की शिकायतों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं। अब तो कई किसान आवारा पशुओं के द्वारा फ़सलों के नुक़सान को सोशल मीडिया के ज़रिये बताकर मदद की गुहार लगा रहे हैं।

दैयंतपुर गाँव के प्रधान ने बताया कि इस एक गाँव की फ़सलों को नुक़सान पहुँचाने वाले आवारा पशुओं की संख्या कम से एक हजार से ज़्यादा होगी। इन पशुओं का आतंक इस कदर बढ़ गया है कि किसान दिन-रात फ़सलों की रखवाली करने को मजबूर हैं। किसानों की तरफ से हमने भी कई बार अधिकारियों से शिकायतें कीं, लेकिन कोई हल नहीं निकला। अधिकारी आश्वासन देते हैं और फिर इस समस्या को भूल जाते हैं। पहले ही कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे किसान आवारा पशुओं से बहुत परेशान हैं। अगर आवारा पशु इसी तरह बढ़ते रहे, तो किसानों को अपने खेतों को ख़ाली छोड़ना पड़ जाएगा।

उत्तर प्रदेश के हर ज़िले में आज आवारा पशुओं की मौज़ूदगी बहुत ज़्यादा है। किसानों ने बताया कि पहले तो रात को ही आवारा पशु आते थे, लेकिन अब दिन में भी फ़सलों को नुक़सान पहुँचा जाते हैं। आवारा पशु झुंड में चलते हैं, जिन्हें खेतों से भगाना काफ़ी मुश्किल होता है। कई बार आवारा पशु किसानों को भी मारने लगते हैं, जिससे उनकी जान को ख़तरा रहता है। पिछले एक साल में आवारा पशुओं द्वारा किसानों पर हमले की सैकड़ों घटनाएँ सामने आयी हैं। आवारा पशुओं के झुंड में इतने ज़्यादा पशु होते हैं कि उन्हें आसानी से खेतों से भगाया नहीं जा सकता। आवारा पशुओं के हमले के डर से किसान इन पशुओं को मार भी नहीं सकते।

पिछले दिनों सरकार ने कहा था कि उत्तर प्रदेश की गौशालाओं के बेहतर प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश गौशाला अधिनियम-1964 को पूरे राज्य में लागू किया जाएगा। अभी उत्तर प्रदेश में लगभग 500 गौशालाएँ हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत ये सभी गौशालाएँ चलती हैं। अभी राज्य में और गौशालाएँ खोलने की बात चल रही है। उत्तर प्रदेश सरकार नयी गौशालाओं की बड़ी संख्या बताकर ख़ुद की पीठ थपथपा लेती है। साथ ही ये कह देती है कि प्रदेश में गौशालाएँ बढ़ाने को लेकर सरकार काम कर रही है। लेकिन किसानों को आवारा पशुओं से राहत के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठा रही है। किसानों की माँग है कि सरकार किसी भी तरह आवारा पशुओं से किसानों को छुटकारा दिलाए।

आवारा पशुओं से निपटने के लिए किसानों को अपने स्तर पर भी कुछ कारगर क़दम उठाने पड़ेंगे। इनमें से कई उपाय बड़े ही उपयोगी हैं। किसान अपने खेतों से आवारा पशुओं को भगाने के लिए धोखे का उपयोग सदियों से करते रहे हैं; लेकिन अब उन्हें बोलने या शोर करने वाले पुतले लगाने होंगे, जिनमें रात को रंग-बिरंगी रोशनी की व्यवस्था भी हो। इसके अलावा किसान अपने पालतू पशुओं की पेशाब, गोबर, नीम, कपूर आदि का एक घोल बनाकर फ़सलों पर छिड़काव कर सकते हैं। इस घोल के छिड़काव से आवारा पशु फ़सलों को नहीं खाएँगे। इसके अलावा फ़सलों में रोग और कीट भी नहीं लगेंगे, जिससे किसानों का कीटनाशक दवाओं और आवारा पशुओं को रोकने के लिए हरबो लिव दवा और अन्य दवाओं का छिड़काव नहीं करना पड़ेगा, जिससे उनकी फ़सल तो बच ही जाएगी, पैसा भी बचेगा। इस घोल का एक और फ़ायदा यह है कि इससे मिट्टी को ताक़त और फ़सलों को पोषण मिलेगा, जिससे पैदावार अच्छी होगी। आज कई किसान इस तरह के घोल बनाकर अपनी फ़सलों को कई रोगों और आवारा पशुओं से बचा रहे हैं। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों तक को पूरे देश के किसानों को ऐसे घोल बनाकर फ़सलों में छिड़काव करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

भारत में नहीं हैं पर्याप्त नर्स

भारत 145 करोड़ से ज़्यादा आबादी वाला देश है यानी इस समय विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश। लेकिन किसी की आर्थिक व सामाजिक प्रगति को गति देने के लिए उस आबादी का स्वस्थ होना अति ज़रूरी है। यूँ तो सरकार भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार करने व स्वास्थ्य सम्बन्धी ढाँचागत निवेश में वृद्धि के दावे पेश करती रहती है और महानगरों में निजी अस्पतालों के बड़े-बड़े भवन दिखायी दे जाते हैं; पर बाहर से जो उजला दिखाने की कोशिश की जा रही है, उसके भीतर बहुत कुछ ऐसा है, जिसे अक्सर दबाया जाता है। रोगी के लिए अस्पताल बहुत महत्त्व रखता है; लेकिन अस्पताल में स्वास्थ्य स्टाफ के द्वारा होने वाली ग़लतियों, लापरवाही से रोगियों, मरीज़ों पर क्या बीतती है, इसे दूर करने की क़वायद बहुत कम नज़र आती है। भारत में 1,000 लोगों पर महज़ 2.06 के अनुपात में नर्स हैं; जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह संख्या तीन है। इसी तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रति हज़ार की आबादी के लिए 3.5 बिस्तर की अनुशंसा की है; लेकिन भारत में यह दो से भी कम है। जहाँ तक डॉक्टरों का सवाल है, तो इस बाबत यहाँ फरवरी, 2024 में लोकसभा में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा प्रस्तुत आँकड़े का ज़िक्र किया जा रहा है।

लोकसभा को सूचित किया गया कि भारत में यह अनुपात 834 की आबादी पर एक है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसा के अनुसार, 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। सरकार का दावा है कि भारत में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से बेहतर हो गया है। बहरहाल यह सरकारी आँकड़ा है।

ग़ौरतलब है कि भारत में स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसके चलते यहाँ मरीज़ों को सही इलाज नहीं मिल रहा। यही नहीं, ग़लत इलाज का जोखिम भी उन पर बराबर मँडराता रहता है। और नतीजतन कई बार कोई मरीज़ विकलांग हो जाता है या अन्य कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या से घिर जाता है।

भारत में सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, 36.14 लाख नर्सिंग कर्मी हैं यानी नर्स जनसंख्या अनुपात 476 पर एक हो गया है। इसका एक असर यह है कि मरीज़ों के इलाज में गड़बड़ी हो रही है। मेडिकेशन में ग़लतियाँ हो रही हैं। मध्य प्रदेश में एक नर्स ने मरीज़ को एलर्जिक रिएक्शन की जाँच के बिना ही टीका लगा दिया, जिससे उसका दायाँ हाथ सुन्न हो गया और मरीज़ 40 प्रतिशत तक विकलांग हो गया। पंजाब के एक अस्पताल में नर्स ने मरीज़ की नस की जगह धमनी में इंजेक्शन लगा दिया, उसकी तीन उँगलियाँ संक्रमण के चलते काटनी पड़ीं। ऐसी कई घटनाएँ यदा-कदा पढ़ने-सुनने को मिलती रहती हैं।

दरअसल समस्या गहरी है। एक तो प्रति हज़ार की आबादी पर नर्स की संख्या कम है। इस समस्या के भी कई पहलू भी हैं, जिसमें नर्सों को पर्याप्त तकनीकी पेशागत शिक्षा-प्रशिक्षण की कमी। कम संख्या के चलते नर्सों पर काम का अधिक दबाब। अस्पतालों द्वारा कम वेतन पर उनकी नियुक्ति आदि। भारत में क़रीब 5,000 से अधिक नर्सिंग संस्थान हैं, इनमें से 90 प्रतिशत निजी हैं। इनमें हर साल क़रीब 3,00,000 महिला-पुरुष नर्स निकलते हैं। पर उनकी गुणवत्ता की किसे परवाह है। महज़ 20 प्रतिशत संस्थान ही पर्याप्त तकनीकी पेशागत शिक्षा-प्रशिक्षण देते हैं। हज़ारों की संख्या में डिप्लोमा देखकर ही नर्सों को अस्पताल रख लेते हैं। उन्हें उचित प्रशिक्षण दिये बिना ही मरीज़ की देखभाल, दवा देने जैसी सेवाओं में लगा दिया जाता है, जो ग़लत है।

ग़लत इलाज से मरीज़ की मौत, विकलांगता आदि होने पर नर्स को दंडित करने का कोई प्रत्यक्ष क़ानून नहीं है। दुर्लभ मामलों में ही लापरवाही साबित होने पर नर्सों के ख़िलाफ़ धारा-304 और 304(ए) के तहत मुक़दमा चलाया जा सकता है। ये धाराएँ सदोष मानव वध और लापरवाही से मौत की हैं। भारत सरकार ने देश में नर्सों की कमी के मद्देनज़र स्नातक स्तर की नर्सिंग की पढ़ाई कराने वाले संस्थानों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान दिया है। 2014-15 से अब तक ऐसे संस्थानों की संख्या में 36 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और नर्सिंग सीट में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लेकिन संख्या बढ़ाने के साथ-साथ गुणवत्ता पर निगरानी रखना भी सरकार की अहम ज़िम्मेदारी है। लेकिन सवाल यह है कि सरकार इसे लेकर कितनी गंभीर है? नर्सिंग संस्थान खोलने व चलाने की इजाज़त राज्य सरकार देती है। भारतीय नर्सिंग परिषद् मानकों की जाँच करता है। वर्ष 2023 में राष्ट्रीय नर्सिंग सलाहकार आयोग की स्थापना हुई; लेकिन इस आयोग ने अभी तक पूरी तरह से काम शुरू नहीं किया है।

क़र्ज़ लिए बिना क़ज़र्दार हो रही जनता

– महाराष्ट्र सरकार पर क़र्ज़ को विभाजित करें, तो हर व्यक्ति पर है 62,000 से अधिक की देनदारी

देश पर जब क़र्ज़ बढ़ता है, तो देश के हर नागरिक पर क़र्ज़ बढ़ता है। इसी तरह अगर किसी राज्य पर क़र्ज़ बढ़ता है, तो उस राज्य के हर नागरिक पर भी क़र्ज़ बढ़ता रहता है। इसी साल के शुरू में सामने आयीं रिपोर्ट्स के अनुसार, सितंबर, 2023 तक देश पर कुल अंतरराष्ट्रीय क़र्ज़ 205 लाख करोड़ रुपये हो गया था, जो लगातार बढ़ रहा है। ऐसे ही राज्यों पर भी क़र्ज़ बढ़ रहा है। जनवरी-मार्च 2024 तिमाही में राज्यों के अपने उधारी कैलेंडर में भारतीय रिजर्व बैंक ने देश के सभी राज्य द्वारा इस अवधि में 4.13 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ लेने की बात कही थी। रिजर्व बैंक के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में अप्रैल से अक्टूबर के बीच राज्यों ने बाज़ार से कुल 2.58 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ लिया था। महाराष्ट्र पर उसकी कुल जीडीपी का 17.9 फ़ीसदी क़र्ज़ था। इसी तरह अपनी-अपनी जीडीपी का गुजरात पर उसकी का 19 फ़ीसदी, छत्तीसगढ़ पर 26.2 फ़ीसदी, हरियाणा पर 29.4 फ़ीसदी, मध्य प्रदेश पर 31.3 फ़ीसदी, झारखण्ड पर 33 फ़ीसदी, उत्तर प्रदेश पर 34.9 फ़ीसदी, बिहार पर 38.6 फ़ीसदी, राजस्थान पर 39.8 फ़ीसदी, पंजाब पर 53.5 फ़ीसदी क़र्ज़ है। इस तरह देश के सभी राज्य क़र्ज़ में डूबे हैं।

समर्थन नामक एक एनजीओ की रिपोर्ट पर भरोसा करें, तो आज की तारीख़ में महाराष्ट्र का हर व्यक्ति क़र्ज़ में डूबा हुआ है। यह क़र्ज़ किसी ने व्यक्तिगत तौर पर नहीं लिया है, बल्कि यह सब सरकार का किया-धरा है। राज्य का राजस्व और राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से हर व्यक्ति 62,941 रुपये के क़र्ज़ तले डूबा हुआ है। हालाँकि यह क़र्ज़ कई राज्यों की अपेक्षा काफ़ी कम है; लेकिन महाराष्ट्र जैसे कमाऊ राज्य पर, जिसके केंद्र में मुंबई, पुणे जैसे दौलतमंद शहर हैं; इतना क़र्ज़ होना अचम्भित करता है।

एक तरफ़ राज्य पर क़र्ज़ का बोझ और दूसरी तरफ़ राजस्व घाटा इस क़र्ज़ के बोझ को और बढ़ा रहा है। यह राजस्व घाटा शिंदे सरकार की चिंताओं को और बढ़ा रहा है। राज्य की वर्तमान सकल आय और राज्य पर 7.11 लाख करोड़ के क़र्ज़ के बोझ को देखते हुए एनजीओ समर्थन के निष्कर्ष में कहा गया है कि राज्य में प्रत्येक व्यक्ति पर ब्याज सहित 62,941 रुपये का क़र्ज़ है। इसमें यह भी कहा गया है कि इससे वित्तीय संतुलन डगमगाने का भय है। दूसरी तरफ़ सामाजिक सेवाओं के ख़र्च पर भी कैंची चलायी गयी है।

विधानमंडल के मानसून सत्र में वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए राज्य का बजट पेश किया गया। इस बजट की पृष्ठभूमि में एनजीओ समर्थन ने ‘समर्थन बजट अध्ययन केंद्र’ के ज़रिये बजट पर विश्लेषण किया। इसमें एक ओर इस बजट की प्रमुख विशेषताओं का ज़िक्र है, तो दूसरी ओर ख़ामियों की तरफ़ भी इशारा किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि राज्य में पूँजीगत व्यय में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। राज्य का राजस्व घाटा 20,051 करोड़ रुपये है, जबकि राजकोषीय घाटा 1,10,355 करोड़ रुपये है। राज्य की आय, राजस्व और राजकोषीय घाटे पर टिप्पणी करते हुए समर्थन का कहना है कि वेतन, पेंशन, ब्याज पर ख़र्च में लगातार बढ़ोतरी के कारण राजस्व का घाटा बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप, पूँजीगत व्यय को आवश्यक सीमा तक नहीं बढ़ाया जा सका; जो एक चिंता का विषय है। जून, 2022 में राज्य में शिंदे-फडणवीस सरकार सत्ता में आयी। इसके बाद साल 2024-25 में राज्य पर ब्याज समेत कुल क़र्ज़ का बोझ 7,82,991 करोड़ रुपये हो गया है। राज्य की सकल आय 40,67,071 करोड़ रुपये है। इसमें कहा गया है कि राज्य क़र्ज़ और सकल राज्य आय का कुल अनुपात 18.35 प्रतिशत है। इसमें कहा गया है कि राज्य की सकल आय में क़र्ज़ का अनुपात राज्य की वित्तीय स्थिति का संकेतक माना जाता है। साल 2016-17 में जब राज्य में महायुति की सरकार आयी थी, तब राज्य पर कुल 3,64,819 करोड़ रुपये का क़र्ज़ था। उस समय राज्य की सकल आय 31,98,185 करोड़ थी। कुल सरकारी क़र्ज़ का सकल आय से अनुपात 16.60 फ़ीसदी था। अब सकल आय बढ़ने पर भी क़र्ज़ बढ़ रहा है।