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क्या अब बदलने वाली है बैडमिंटन की दुनिया?

विश्व बैडमिंटन फैडरेशन (बीडब्लयूएफ) ने अगले साल से सिंथेटिक कॉक को इस्तेमाल का फैसला कर लिया है। 2021 से विश्व की सभी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में इसी शटल कॉक का प्रयोग होगा। मौज़ूदा समय में सभी शटल कॉक बत्तख के परों से तैयार की जाती हैं।

फैडरेशन के अनुसार उन्होंने पिछले साल तीन के प्रतियोगिताओं में इन्हें आजमाया है। ये ‘शटल कॉक्स’ अधिक चलती हैं और बहुत किफायती पड़ती है। इसकी उड़ान और गति परों की शटल के समान ही होती है। शुरू में इस शटल कॉक का इस्तेमाल अनिवार्य नहीं किया जाएगा। मेजबान चाहें सिंथेटिक या रवायती परों वाली शटल कॉक का इस्तेमाल कर सकता है। पर यदि इस नयी शटल कॉक के साथ कोई तकनीकी समस्या खिलाडिय़ों को न हुई तो ज़्यादातर खिलाड़ी इसी का इस्तेमाल करेंगे।

यदि गौर किया जाए, तो पंखों की शटल कॉक्स की तुलना में सिंथेटिक शटल कॉक्स सस्ती हैं; इस वजह से इनका प्रचलन तेज़ी से बढऩे की उम्मीद है। वैसे भी आजकल अभ्यास के लिए आम खिलाड़ी ‘प्लास्टिक’ की शटल कॉक्स मेें भी इस्तेमाल करते हैं। कई छोटे टूर्नामेंट्स में भी प्लास्टिक शटल कॉक्स ही इस्तेमाल होता हैं। इन शटलस की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनकी गति और उड़ान पंखों वाली शटलकॉक्स से काफी अलग होती हैं। फिर जब इन खिलाडिय़ों को पंखों वाली शटल कॉक्स से खेलना पड़ता है तो ये उनके अनुरूप नहीं ढल पाते।

अब सिंथेटिक शटल कॉक्स आ रही हैं। इनके साथ खेलने में खिलाड़ी कैसे खुद को ढालेंगे यह तो अभी भविष्य की बात है; पर एक बात तो तय है कि खेल की अलग-अलग तकनीकों पर इनका खासा असर पड़ेगा। आज तक इस खेल में चीन, कोरिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, जापान और भारत का दबदबा रहा है। यूरोप में से डेनमार्क ही ऐसा देश है, जहाँ से कुछ अच्छे खिलाड़ी निकले हैं। बाकी स्पेन, ब्रिटेन, आदि देशों में भी बैडमिंटन खेला जाता है। आज की विश्व रैंकिंग को देखें तो पुरुषों में पहले 20 खिलाडिय़ों में से 18 एशियाई देशों के हैं और दो डेनमार्क के हैं।

एशियाई देशों में इतनी स्पर्धा है कि भारत, जापान, चीन और थाईलैंड के तीन-तीन खिलाड़ी टॉप 20 में हैं। ताईपे, हांगकांग और कोरिया के एक-एक खिलाड़ी इस ग्रुप में आता है। महिला वर्ग में टॉप 20 खिलाडिय़ों में 16 एशियाई हैं। इनमें चीन की पाँच जापान की चार, भारत और थाईलैंड की दो-दो और इंडोनेशिया, कोरिया और ताईपे की एक-एक खिलाड़ी है। इनके अलावा स्पेन, डेनमार्क, अमेरिका और कैनेडा की भी एक-एक खिलाड़ी टॉप 20 में है।

देखा गया है कि यूरोप के खिलाड़ी जिस खेल में पिछड़ते हैं, उसके नियमों में मूल बदलाव कर लेते हैं। हॉकी इसकी ज़िन्दा मिसाल है। जब दशकों तक जर्मनी, नीदरलैंड्स, आस्ट्रेलिया जैसे देश भारत और पाकिस्तान की ताकत का मुकाबला नहीं कर पाये, तो हॉकी के मैदान से लेकर उसके नियम तक बदल दिये और अभी बदले जा रहे हैं। इन नियमों में आये बदलाव के कारण हॉकी की वह कला खत्म हो गयी, जिसके लिए सह जानी जाती थी। यही वजह है कि 1986 के लंदन हॉकी विश्व कप के अंतिम स्थान के भारत-पाकिस्तान के मैच को देखने के लिए भी उतने ही दर्शक आये थे जितने फाइनल मैच को देखने आये थे। इस कारण एशियाई देशों में यह संदेह होना स्वाभाविक है कि कहीं शटल कॉक का यह बदलाव भी यूरोप के खिलाडिय़ों को लाभ देने के लिए तो नहीं किया गया। भारत के सम्मानित खिलाड़ी और सिंधू के प्रशिक्षक पूलेला गोपीचंद ने तो यह कहकर कि अभी उन्होंने सिंथेनिक शटल कॉक को देखा नहीं है; उसका इस्तेमाल नहीं किया है; इस पर कोई टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया। लेकिन मलेशिया के ओलंपिक पदक विजेता और प्रमुख प्रशिक्षक राशिद सिदेक का कहना है कि उन्हें लगता है कि ये शटल कॉक एक खास प्रकार से खेलने वालों के लिए लाभदायक साबित होगी। उनका मानना है कि इसका उन खिलाडिय़ों को नुकसान होगा, जिनका खेल ‘स्ट्रोक्स’ पर निर्भर है। उन्हेें लगता है कि इन शटल कॉक्स के कारण बैडमिंटन अपनी पहचान खो देगा। उन्होंने यह भी कहा कि सिंथेटिक शटल कॉक्स की गति तेज़ होगी और इसे नियंत्रित करना बहुत कठिन होगा। उन्होंने यह भी कहा कि जिन खिलाडिय़ों ने नयी शटल कॉक्स के साथ खेला है, उनके विचार इनके लिए कोई बहुत अच्छे नहीं है। एक अन्य अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी जॉन क्वाय का कहना है कि इन नयी शटल कॉक्स से दर्शकों को वह आनंद नहीं आयेगा, जो बत्तख के पंखों की शटल्स से आता था। उनका मानना है कि इससे बैडमिंटन का खेल ‘आऊटडोर’ बैडमिंटन की तरह हो जाएगा। ठनकी राय अपनी जगह है, पर आर्थिक नज़र से यह शटल कॉक सस्ती हैं। परिदों के पंखों वाली शटल कॉक्स एक अंतर्राष्ट्रीय मैच में लगभग 24 लग जाती हैं। भारतीय रुपये बनती है कि नयी शटल्स की कीमत लगभग 2800 रुपये बनती है, जबकि नयी शटल कॉक्स से यह खर्च 2100 तक आ जाएगा। ये शटल कॉक्स अच्छी हैं या बुरी, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन इनसे बैडमिंटन की दुनिया बदलने वाली है यह तो पूरी तरह तय ही है।

श्रद्धांजलि – अलविदा ‘बापू’

भारतीय क्रिकेट ने एक ऐसा सितारा खो दिया जिसे बापू नादकर्णी के नाम से जाना जाता है। इस खेल में सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलर, दलीप सर देसाई, प्रसन्ना, बेदी, धोनी, चंद्रशेखर, गांगुली, मंसूर अली खान पटौदी या विराट कोहली कितने भी रिकॉर्ड बना लें, लेकिन जो रिकॉर्ड बापू के नाम हैं वे अद्भुत हैं। बायें हाथ क इस स्पिन गेंदबाज़ ने मद्रास टेस्ट में 131 गेदों पर कोई रन नहीं दिया। लगातार 21 ओवर मेडल फेंकने का इनका रिकॉर्ड दुनिया में आज भी कायम हैं। उन्होंने यह कारनामा 12 जनवरी, 1964 को इंग्लैंड के के िखलाफ किया था। यहाँ उन्होंने 32 ओवर की अपनी गेंदबाज़ी में 27 मेडन फेंके थे। उन्होंने कुल पाँच रन ही दिये। आज के ज़माने में जब एक ओवर में पाँच देने को भी किफायती गेंदबाज़ी माना जाता है, तो 32 ओवर पाँच रन देने को क्या कहेंगे?

गेंदबाज़ी का यह जादूगर नेट पर अभ्यास के दौरान सिक्का रक्स कर उस पर गेेंदबाज़ी करता था। यही वजह है कि उनके टेस्ट जीवन की प्रति ओवर इकोनॉमी 1.67 रन प्रति ओवर रही। बापू ने अपने जीवन में 41 टेस्ट मैच खेले, 9165 गेंदों में 2559 रन दिये और 88 क्रिकेट झटके।

86 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले बापू गेंदबाज़ ही नहीं अपितु गज़ब के बल्लेबाज़ और क्षेत्ररक्षक भी थे। वह बल्ले के नज़दीक फील्डिंग करते थे। उनकी 1963-64 सीरिज़ में इंग्लैंड के िखलाफ कानपुर में खेली गयी 122 रनों की नाबाद पारी किस क्रिकेट प्रेमी को याद नहीं होगी। उनकी इन बल्लेबाज़ी की बदौलत भारत वह टेस्ट मैच बचा पाया था। 4 अप्रैल, 1933 को मुम्बई में जन्मे बापू ने सबसे पहले 1950-51 मेें पूणे विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। अगले ही साल वे महाराष्ट्र के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में आ गये। उन्होंने अपना पहला प्रथम श्रेणी शतक मुम्बई के िखलाफ बनाया। बेरबोर्न स्टेडियम में खेल गये इस मुकाबले में उन्होंने 103 रन की नाबाद पारी खेली और सदाशिव पारील के साथ अंतिम विकेट के लिए 100 रन से ज़्यादा रन जोड़े। भारतीय टीम में उन्हें उस समय स्थान मिला, जब 1955-56 में न्यूज़ीलैंड की टीम भारत दौरे पर थी और दिल्ली के िफरोज़घाट कोटला मैदान पर होने वाले टेस्ट से महान् वीनू मॉक्ड ने विश्राम ले लिया था। यहाँ बापू ने 68 रनों की नाबाद पारी खेली और 57 ओवर गेंदबाज़ी की, पर उन्हें कोई विकेट नहीं मिला। पर जब मॉक्ड वापस आये, तो बापू टीम से बाहर हो गये।

1964-65 में की सीरीज़ में बापू ने आस्ट्रेलिया के िखलाफ मद्रास में पहली पारी में 31 रन देकर पाँच विकेट और दूसरी में 91 रन देकर छ: विकेट लिये। इसी दौरान बिशन सिंह बेदी के आने से बापू के लिए कठिनाइयाँ पैदा हो गयीं। फिर भी उन्होंने 1967 में वेलिग्ंटन टेस्ट में न्यूज़ीलैंड के िखलाफ 43 रनों पर छ: विकेट लेकर भारत को जीत दिलवायी। इस दौरे वे बाद 34 साल की आयु में उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट से संन्यास ले लिया। इसके बाद वे सहायक प्रबंधक भी रहे। वे सुनील गावस्कर के गुरु भी रहे। उनके देहांत पर गावस्कर ने कहा कि वे अक्सर करते थे- ‘छोड़ो मत।’ इसका अर्थ था- अंत तक जूझते रहो। आज यह महान् खिलाड़ी हमारे बीच नहीं है। लेकिन यह सभी क्रिकेट प्रेमियों की यादों में सदा जीवित रहेगा। ‘तहलका’ परिवार की ओर से इस महान् खिलाड़ी को विनम्र श्रद्धांजलि!

गज़लें

अरमान जोधपुरी की दो गज़लें

  1. जनम से पहले की खाता-बही की कैद में हूँ

            मैं एक बूढ़ी-सी पागल सदी की कैद में हूँ

            ये लोग कहते हैं मैं बुज़दिली की कैद में हूँ

            घिरा हूँ इश्क में, सो आशिकी की कैद में हूँ

            वो जिससे मौत निकालेगी एक दिन आकर

            तुम्हें खबर है उसी ज़िन्दगी की कैद में हूँ

            मैं जबसे निकला हूँ उस ला-मकाँ की चाहत में

            हर एक गाम किसी रौशनी की कैद में हूँ

            लो उसकी याद के पंछी उड़ा दिये मैंने

            अभी न कहना मुझे मैं किसी की कैद में हूँ

            अजीब बात है जिसकी असीर है दुनिया

            मुझे खबर ही नहीं, मैं उसी की कैद में हूँ

            समझ में कुछ नहीं आता मैं क्या करूँ ‘अरमान’

            बहुत दिनों से किसी अजनबी की कैद में हूँ

  1. पूछा किये सवाल यही ज़िन्दगी से हम

            कब तक तिरे गमों को छुपाएँ हँसी से हम

            तुमने फन-ए-सुखन को ही बेकार कह दिया

            पहचाने जा रहे हैं इसी शाइरी से हम

            मिलता नहीं सुकून हमें इस जहान में

            उकता चुके हैं कब के तिरी आशिकी से हम

            जैसे के कोई जाँ से गुज़रता है मेरी जाँ

            गुज़रे हैं ऐसे आज तुम्हारी गली से हम

            कैसे गुज़ारता है अकेले वो ज़िन्दगी

            पूछेंगे यह सवाल किसी दिन उसी से हम

            इज़हार उसने प्यार का हमसे किया है आज

            फूले नहीं समा रहे सुनकर खुशी से हम

पता –  जसवंत सागर बाँध, सुरपुरा,

मंडोर जोधपुर राजस्थान

 ज्योति ‘जलज’ की दो गज़लें

  1. पहले तो ख़्वाहिशों को बढ़ाती है ज़िन्दगी

            फिर उसके बाद खून रुलाती है ज़िन्दगी

            जाना है इस जहान से हम सबको एक दिन

            अक्सर ये याद हमको दिलाती है ज़िन्दगी

            आँसू दिये कभी तो कभी दे गयी खुशी

            क्या जाने कितने रंग दिखाती है ज़िन्दगी

            ऐसा न हो कि मौत चली आये यक-ब-यक

            अब आ भी जाओ तुमको बुलाती है ज़िन्दगी

            मरके तो एक बार ही जलता तन मगर

            जीवन में बार-बार जलाती है ज़िन्दगी

            दो रोटियों की िफक्र में कितनों को आज भी

            जाने कहाँ-कहाँ पे नचाती है ज़िन्दगी

            ‘ज्योति’ को तुमने जितना सताया है आज तक

            इतना कहाँ हुज़ूर सताती है ज़िन्दगी

  1. कभी आशिक, कभी मजनूँ, कभी पागल रहा हो

            उसी को प्यार मैं दूँगी जो मुझमें ढल रहा हो

            तुम्हारा ख्वाब आँखों में सनम यूँ पल रहा है

            कि जैसे दीप मंदिर में दुआ का जल रहा हो

            हमारे प्यार के पीछे ज़माना यूँ पड़ा है

            हमारा प्यार जैसे अब सभी को खल रहा हो

            किसी ने खत लिखा है खून से मुझको जिगर के

            ये मुमकिन है कि वो दिल फेंक या पागल रहा हो

            तेरा आना, तेरा जाना मुझे ऐसे लगे है

            कि जैसे आसमाँ में घूमता बादल रहा हो

            मचलता जा रहा है दिल किसी को देखकर ‘ज्योति’

            मेरे दिल में भी उसका प्यार गोया पल रहा हो

ग्राम व पोस्ट – चारूआ, दर्जी मोहल्ला, निकट- अग्रवाल मेडिकल,

तह.- खिरकिया, ज़िला- हरदा, पिन कोड- 461444 (म.प्र.)

सुखविंदर सिंह से खास मुलाकात…‘रहमान के साथ दिल का रिश्ता’

‘तितली दबोच ली’, ‘रुत आ गयी रे’, ‘रमता जोगी’ और ‘जय हो’ जैसे सुपरहिट गाने साथ में क्रिएट करने वाले सुखविंदर सिंह और ए.आर. रहमान ने देश को एक और ऑस्कर दिलाकर भारतवासियों का सिर गर्व से ऊँचा तो कर दिया, लेकिन न जाने किन वजहों से उनके बीच की गर्मजोशी भरी दोस्ती टूट गयी। दिल के रिश्तों का दरक जाना सुखविंदर को अब तक टीसता है। वे इस ब्रेकअप के कारणों को समझ नहीं पा रहे या कि परखना नहीं चाहते। एक खास मुलाकात में सुखविंदर ने कहा- ‘रहमान एकदम दिलदार इंसान है। यारों का यार। िकस्मत का ही खेल है कि जब मैं पहली बार चेन्नई गया, तो वह मुझे एक दरगाह पर ले गया, ताकि मैं खुदा की रहमत से रू-ब-रू हो सकूँ। अपने दिल में सुरों की लियाकत को जगह दे पाऊँ और अच्छे गीत रच सकूँ। ऊपर वाले का कुछ करम भी ऐसा ही रहा कि हमने जो गाने बनाये, वे लोगों के दिल में उतर गये। पहली रात रहमान ने मुझसे कहा था कि तू दरगाह में रुक। ऊपर वाले की इबादत में अपना सब कुछ लगा दे। बस रूह को महसूस कर, सुरों की इबादत कर। अल्लाह चाहेगा, तो सब अच्छा होगा। उसकी बात कितने कमाल की थी! अब सोचता हूँ, तो खुशी और हैरत का ठिकाना नहीं रहता। मैं ठहरा एक पंजाब नौजवान, जो सारी दुनिया घूमकर आया था। जिसे बहुत-सी चीज़ों का अंदाज़ा ज़रूर था, लेकिन साउथ इंडियन लैंग्वेजेज से ज़्यादा करीबी न थी। इससे बढक़र हैरत वाली बात क्या होगी कि वही दक्षिण भारत मेरे ठहरने का, हुनरमंद होने का, सक्सेस हासिल करने का सबसे बड़ा ठिकाना बना। सच तो ये है कि चेन्नई मेरे लिए किसी तीर्थस्थान की तरह है। मैं आज भी जब चेन्नई जाता हूँ, तो उस शहर को और वहाँ के लोगों को सिर झुकाकर सलाम करता हूँ। मेरे और रहमान के बीच सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन कहते हैं न कि कई बार कामयाबी आसानी से हज़म नहीं होती। हमारे रिश्ते के बीच का हाज़मा कुछ ज़्यादा ही खराब हो गया।

सुखविंदर सिंह ने बताया कि एक तरफ ऑस्कर अवॉर्ड हासिल कर रहमान बेहद खुश था, उसकी खुशी से हम लोग बहुत ही प्रसन्न थे। वहीं अफसोस की बात कि गलतफहमियाँ भी सिर उठाने लगी थीं। न जाने असल वजह क्या है? कि हमारी दोस्ती में एक दरार-सी पड़ गयी। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ लोगों ने उसे यही समझाया होगा- ‘ऑस्कर का क्रेडिट सुखविंदर को नहीं, बल्कि तुम्हें मिलना चाहिए।’ अचानक से वह जो ऑस्कर की बात आयी, तो बाकी सब कुछ रहा, लेकिन काम और दोस्ती का रिश्ता कमज़ोर पड़ गया। मुझे अब भी उसके कमबैक का इंतज़ार है। ये कमअक्ली वाली बात भी थी। लेकिन लगता है कि वह दूसरों के झाँसे और बहकावे में फँस गया।’

रहमान और अपने सम्बन्धों में यकायक आ गयी दूरी के बारे में सुखविंदर सिंह बताते हैं कि रहमान पूरी तरह अन्तर्मुखी बंदा है। वह अपनी भावनाओं का खुलकर इज़हार नहीं करता। मुझे याद है कि रहमान शुरू से ही ऐसा है। चाहे गम की हालत हो या खुशी का समाँ… वह कम ही बात करता था। कभी अपनी भावनाओं को उजागर नहीं होने देता। यहाँ तक कि कई बार तो  मुस्कुराता भी नहीं है। मैं उसे हँसाने की भरपूर कोशिश करता और अक्सर इस प्रयास में पूरी तरह कामयाब भी हो जाता। रहमान आश्चर्य से कहता था कि आिखरकार तेरे पास ऐसा कौन-सा जादू है, जो मेरे चेहरे पर हँसी ले आता है। मैं उसे जवाब देता कि कुछ खास जादू नहीं दिखाता हूँ, बस तेरा दिल पहचान लेता हूँ।’

सुखविंदर और रहमान की जोड़ी में दरार ज़रूर पड़ी; लेकिन दूरी प्रोफेशनल फ्रंट पर ही रही। वहाँ भी पूरी तरह नहीं; क्योंकि श्रीदेवी की  ‘मॉम’ और सचिन की बायोपिक में बाद में भी सुखविंदर सिंह ने गीत गाया। श्रीदेवी और बोनी ने कहा था कि हमें बतौर सिंगर सिर्फ सुखविंदर चाहिए। रहमान ने इस बात की कोई मुखालिफत भी नहीं की। ये बात दीगर बात है कि दोनों िफल्मों में सुखविंदर सिंह के गीतों को जिस तरह हाईलाइट किया जा सकता था, वो अंजाम नहीं दिया जा सका। दोनों गाने ज़्यादा नहीं चले और फिर उसके बाद रहमान-सुखविंदर सिंह अभी तक साथ नहीं आये।  वैसे, सुखविंदर सिंह बताना नहीं भूलते कि सचिन की बायोपिक को ज्यादा प्रमोट नहीं किया गया था, ऐसे में गाने को भी जगह नहीं मिली। ‘मॉम’ का गीत चार्टबस्टर न होने की वजह वे बताते हैं कि कई गीतों की अपनी िकस्मत भी होती है।

इस सबके बावजूद सुखविंदर मानते हैं कि जब किसी दोस्त से बिना खास वजह के झड़प हो जाए, तो उसकी आलोचना करने की जगह हमारा एक साथ बीता वक्त कितना खूबसूरत था, यह याद करना चाहिए। सुखविंदर कहते हैं कि खुदा का शुक्र है कि रहमान के संग ऐसी कोई खटास नहीं है- न ही ऐसी दूरी कि उस दूरी को वक्त भर नहीं पायेगा। सच यही है कि रहमान के साथ रिश्ते सुधारने की मैंने कभी-कोई बनावटी कोशिश नहीं की है। मैं उस वक्त का इंतजार कर रहा हूँ, जब  गलतफहमियाँ अपने आप दूर हो जाएँगी और हम फिर से उसी तरह एक अच्छे दोस्त की तरह साथ-साथ होंगे। लेकिन अच्छी बात यह है कि दोस्ती की इस नियामत को, पवित्रता को रहमान ने पूरी डिग्निटी के साथ आज तक सँभाले रखा है। भले ही हमारे बीच थोड़ी-बहुत गलतफहमियाँ हुईं, लेकिन रहमान ने लोगों को बीच आज तक ऐसी किसी बात को सिर नहीं उठाने दिया, जो अफवाह हो या हमारी दोस्ती के रिश्ते की पवित्रता को मैला या धूमिल करे।

यही सच्चा रिश्ता होता है कि पहले तो तकरार हो ही न और अगर किसी गलतफहमी के चलते तकरार हो भी जाए, तो मन में गुंजाइश रहे और वह तकरार दो दोस्तों के अलावा किसी तीसरे को सुनाई न दे। सुखविंदर अक्सर चेन्नई चले जाते हैं और रहमान के साथ क्वालिटी टाइम बिताकर मुम्बई लौट आते हैं। मज़ेदार बात यह है कि दोनों के बीच गाने और संगीत की चर्चा नहीं होती। बस, खाने की महिफल जमती है। यह जानकर आपको ताज्जुब होगा कि सुखविंदर सिंह वहाँ रवा मसाला डोसा खाने और छाछ खाने पहुँचते हैं और रहमान उन्हें बड़े प्यार के साथ ईडियट कहकर बुलाते हैं। सुखविंदर सिंह कहते हैं कि हम दोनों पूरे नौटंकीबाज़ हैं। अपन दुनिया भर का खयाल नहीं रख सकते; लेकिन जिन लोगों के साथ अच्छा वक्त बीता है, उनकी िफक्र तो करनी ही पड़ती है। सुखविंदर बताते हैं कि भले ही रहमान के साथ मैंने बहुत से गाने नहीं भी गाये, लेकिन उसका काम हमेशा मुझे सुकून देता रहा है। वह अपनी कण्ठ कला से दुनिया भर को नचा लेता था, जबकि अब खुद खामोशी से घिर गया है। एक कलाकार को तंगदिली का शिकार नहीं होना चाहिए। जैसे ही वह संगीत में फिर पहले की तरह सक्रिय होगा, हमारे रिश्ते पहले की तरह मधुर हो जाएँगे। सुखविंदर सिंह के मुताबिक, मैं डांसिंग स्टाइल के गाने गाता हूँ। इसलिए दिल से भले सूफी रहूँ, लेकिन मंच पर झूमना-थिरकना होता है। अपने प्रशंसकों से भी यही चाहता हूँ कि वे ज़िन्दगी का पूरी तरह आनंद लें एंज्वाय और अन्दर से अंतरात्मा के परम् आनंद को महसूस करते रहें।

जैसा कि बातचीत से पता चला कि नयी पीढ़ी तक संगीत की विरासत पहुँचाने के लिए सुखविंदर जल्द ही कई नयी योजनाओं पर काम शुरू करेंगे। उनकी ख्वाहिश है कि मीरा रोड, दहिसर या विरार में वे कोई संगीत आश्रम शुरू करें, जहाँ बच्चों को नि:शुल्क संगीत सिखाया जा सके। सुखविंदर सिंह कहते हैं- ‘महँगी फीस लेकर बच्चों को ट्रेनिंग दी जाएगी तो सारी सोच पैसे कमाने तक सिमट जाएगी। मैं चाहता हूँ कि ट्रेनिंग सेंटर जैसे कॉन्सेप्ट को छोडक़र संगीत से प्यार का ठिकाना तैयार किया जाए। मैं व्यापार करने के लिए एक और दुकान नहीं शुरू करने वाला। मेरा संगीत ईश्वर की उपासना है। उसे बाज़ार में नहीं भेज सकता। इसके लिए ज़रूरी है कि अपना सम्मान बनाये रखूँ, तब ही मैं अपने ईश्वर की, संगीत की प्रतिष्ठा और इ•ज़त बरकरार रख सकूँगा।

इन्हें समझाने का कोई फायदा नहीं

संतकबीरदास जी मज़हबी दीवारों को नहीं मानते थे। उनका कहना था कि ईश्वर एक है। वे निर्गुण भक्ति के वाहक थे। संत कबीरदास राम के भक्त थे। लेकिन उनके राम दशरथ पुत्र राम नहीं थे, उनके राम निर्गुण परब्रह्म परमेश्वर हैं, जो एक ही हैं। वे न तो मंदिर में पूजा के समर्थक थे और न मस्जिद में इबादत के हामी, और न ही किसी अन्य मज़हब के कायल थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक है; उसके न तो अनेक रूप हैं और न ही वह साकार है। इसी के चलते संत कबीरदास पर कई बार हमले भी हुए। उनका सिर भी फूटा, पर उन्होंने शाश्वत् सत्य को नहीं छोड़ा और इस तथ्य पर अंतिम साँस तक कायम रहे कि ईश्वर एक है और मज़हब की उलझनें बेकार का पागलपन हैं। संत कबीर ने परमात्मा को आत्मा का पति, स्वामी और इकलौता मालिक माना है। वे आत्मा से सीधे परमात्मा का रिश्ता कायम करते हैं। वे मानते हैं कि परमात्मा और आत्मा का मिलन तभी सम्भव है, जब शरीर यानी मैं को बीच से हटा दिया जाए। वे कहते हैं कि ईश्वर को पाने के लिए उसकी भक्ति में शरीर के सुखों को भूलकर डूब जाना पड़ता है। कबीरदास कहते हैं कि ईश्वर को जिसने जल रूपी गहरी भक्ति में डूबकर खोजा है, उसी ने पाया है। वे लोग उसे कैसे पा सकते हैं, जो किनारे पर बैठे हुए हैं।

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।

यहाँ गहरे जल से मतलब अत्यधिक कष्ट से गुज़रने से भी है और भक्ति में डूब जाने से भी है। सभी जानते हैं कि जल में डूबने से क्या होता है? जल में डूबना यानी जान की बाज़ी लगाकर भी ईश्वर को पाने की कोशिश करना। किनारे पर बैठना यानी छिछली भक्ति करना। कबीरदास कहते हैं कि ऐसी छिछली भक्ति से ईश्वर नहीं मिलता।

वह यह भी कहते हैं कि एक मनुष्य का जन्म ही है, जिसमें उसे ईश्वर को पाने का मौका मिलता है। और यह जन्म बार-बार नहीं मिलता।

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।।

अर्थात् मनुष्य का जन्म न तो आसानी से मिलता है और न ही बार-बार मिलता है। जिस तरह से वृक्ष से पत्ते टूटकर गिरने के बाद दोबारा नहीं जुड़ते, वैसे ही मनुष्य को बार-बार जन्म नहीं मिलता। संत कबीर के कहने का मतलब यह है कि ईश्वर को इसी जन्म में समझने की आवश्यकता है, यह मौका फिर नहीं मिलेगा।

इतना ही नहीं, कबीरदास की किसी से भी दुश्मनी नहीं थी, वो सभी लोगों को एक ही नज़र से देखते थे और समझाते भी थे कि परमात्मा एक ही है।

कबिरा खड़ा बज़ार में, माँगे सबकी खैर।

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।

वे कहते हैं कि कबीर संसार रूपी बाज़ार में खड़ा होकर सबकी भलाई की दुआ माँग रहा है। उसकी न तो किसी से दोस्ती है और न ही किसी से दुश्मनी। इसका मतलब यह भी है कि कबीर परमात्मा से सबके लिए सद्बुद्धि की दुआ माँग रहे हैं।

इसी तरह वे परमात्मा के मज़हबों के अनुसार बँटवारे को लेकर तंज़ कसते हैं। वे सभी मज़हबों के ठेकेदारों और समर्थकों की फटकार लगाते हैं। वे कहते हैं-

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

आपस में दोउ लडि़-लडि़ मुए, मरम न कोउ जाना।

यानी हिन्दू कहते हैं हमें राम प्यारे हैं और मुस्लिम कहते हैं कि हमें रहमान प्यारे हैं। दोनों ही एक ही परमात्मा के अलग-अलग नाम रखकर उसके नाम पर झगडक़र मरे जा रहे हैं, लेकिन कोई नहीं जान पाया कि वास्तव में परमात्मा कौन है और उसका असली स्वरूप क्या है?

इसी तरह माला फेरने यानी माला जपने का चलन कई मज़हबों में है। कबीरदास जी कहते हैं कि लोग माला फेरते हैं, लेकिन उनके मन में छल-कपट रहता है। मन का फेर माला फेरने पर भी नहीं जाता। ऐसी भक्ति से क्या फायदा?

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

अर्थात् माला फेरने से भी मन का फेर नहीं जा रहा है। आदमी हर समय 99 के चक्कर में पड़ा रहता है। ऐसी माला फेरने से कोई फायदा नहीं। इसलिए, हे मनुष्य तू जो हाथ से माला के मनके (दाने) फेर रहा है, उन्हें फेंक दे। मन के मनकों (ईश्वर के नाम रूपी दानों) की माला जप।

संत कबीर कहते हैं कि यह शरीर जिसके लिए तू इतने छल-प्रपंच कर रहा है, उसे छोड़ दे। क्योंकि जिस दिन शरीर रूपी घड़ा फूटा, उस दिन परमात्मा रूपी जल और आत्मा रूप जल एक हो जाएँगे। वे कहते हैं-

जल में कुम्भ, कुम्भ  में जल है, बाहर भीतर पानी।

फूटा कुम्भ जल जलहि समाना, यह तथ कह्यौ गयानी॥

संत कबीर का कहना है कि यह मैं अकेला नहीं कह रहा हूँ। संतों और ज्ञानियों ने भी कहा है।

यह भारत का दुर्भाग्य है कि आज यहाँ के लोग मज़हब और जातियों के नाम पर लड़ रहे हैं। एक-दूसरे का खून बहाने को तैयार हैं। वह भी तब, जब भारत सदियों से ऋषियों, संतों और मोहब्बत तथा इंसानियत के पैरोकारों का देश रहा है। इससे भी दुर्भाग्य की बात यह है कि इस देश के षड्यंत्रकारियों ने मानवता के पुजारियों पर सदैव अत्याचार किये हैं। कल भी यही हुआ और आज भी यही हो रहा है। जैसा कि मैंने शुरू में ज़िक्र किया कि कबीरदास पर कई बार हमले भी हुए। संत कबीर जब अंतिम साँसें गिन रहे थे, तब उनकी झोंपड़ी के बाहर इकट्ठे लोग उनका मज़हब तय करने के नाम पर लड़ रहे थे। कबीरदास के पुत्र कमाल जब लोगों को समझाने के लिए उठे, तो कबीरदास जी ने उनका हाथ पकड़ लिया और कहा कि जिन मूर्खों को मैं ज़िन्दगी भर समझाता रहा, उन्हें अब समझाने का कोई फायदा नहीं।

दिल्ली कांग्रेस प्रभारी चाको, अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा के इस्तीफे स्वीकार

कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद दिल्ली  कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा और प्रभारी पीसी चाको का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। शक्ति सिंह गोहिल को अंतरिम प्रभारी बनाया गया है।

चाको ने आज सुबह इस्तीफा दे दिया था जबकि चोपड़ा ने हार के तुरंत बाद इस्तीफा दे दिया था। चाको के फैसलों को लेकर दिल्ली कांग्रेस में शीला दीक्षित के समय से ही विवाद रहा है। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष  सुभाष चोपड़ा  आने के तुरंत बाद अपने पद से इस्तीफे की पेशकश की थी। उनकी बेटी शिवानी चोपड़ा की कालकाजी सीट से जमानत जब्त हो गई है। दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के ६६ लड़े उम्मीदवारों में से ६३ की जमानत जब्त हो गयी है।

ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस दिल्ली में पार्टी संगठन की ओवरहालिंग की तैयारी कर रही है। यहाँ नया राज्य अध्यक्ष भी चुना जा सकता है। जहां तक चाको की बात है वे अपने कुछ फैसलों को लेकर विवाद में रहे हैं। साल २०१५ के बाद अब लगातार दूसरी बार दिल्ली चुनाव में कांग्रेस सुण्या पर सिमटी है। यह कहा जा रहा है कि भाजपा को हारने के लिए कांग्रेस ने अपना वोट पूरी तरह आप को ट्रांसफर करवाया है।

तीन बार कांग्रेस को सत्ता में लाने वालीं शीला दीक्षित को लेकर चाको के ब्यान पहले भी विवाद में रहे थी और अब भी वे २०१३ में कांग्रेस की हार की शुरुआत की बात करते शीला का उदाहरण देते हैं।

उनके इस ब्यान को लेकर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी और दिल्ली महिला कांग्रेस प्रमुख वरिष्ठ नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी और दिल्ली के वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित ने भी पार्टी की रणनीति पर सवाल खड़े किए थे। शर्मिष्ठा ने तो यहाँ तक सवाल किता था कि भाजपा विभाजनकारी राजनीति कर रही है जबकि केजरीवाल स्मार्ट पॉलिटिक्स, लेकिन हम क्या कर रहे हैं? उन्होंने जोर देकर कहा कि दिल्ली में हम दोबारा हार गए। अब  कार्रवाई का समय है। शीर्ष स्तर पर निर्णय लेने में देरी, राज्य स्तर पर रणनीति और एकजुटता का अभाव, कार्यकर्ताओं का निरुत्साह, नीचे के स्तर से संवाद नहीं होना आदि हार के कारण हैं. मैं अपने हिस्से की जिम्मेदारी स्वीकार करती हूं।

संदीप दीक्षित, जो दिवंगत शीला दीक्षित के पुत्र हैं, ने कहा कि उन्हें नतीजों से कोइ हैरानी नहीं हुई है। उनके मुताबिक ”अंदरूनी  राजनीति की वजह से पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। हम चुनाव में कहीं नहीं थे। हमने शीलाजी के किए काम  दिखाने की कोशिश की, लेकिन वास्तव में देर हो चुकी थी।”

देशद्रोह की आरोपी छात्रा को हाई कोर्ट से राहत

बांबे हाई कोर्ट ने देशद्रोह की आरोपी 22 वर्ष की छात्रा की अग्रिम जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसको गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी  है। मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान जेएनयू छात्र शरजील इमाम के समर्थन में उर्वशी चूड़ावाला पर नारा लगाए जाने के मामले में देशद्रोह का केस दर्ज किया गया था। मामले में भाजपा के पूर्व सांसद किरीट सोमैया ने दो फरवरी को शिकायत दर्ज कराई थी, साथ ही केस नहीं दर्ज करने पर धरने की धमकी दी थी।

अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए बांबे हाई कोर्ट के जस्टिस एसके शिंदे ने कहा कि गिरफ्तार होने के मामले में याची को 20 हजार रुपये के निजी मुचलके पर छोड़ा जा सकता है। कोर्ट ने चूड़ावाला को थाने में 12 और 13 फरवरी को हाजिर होने को कहा है। इसके साथ ही उसे जब भी बुलाया जाएगा, तो पेश होना पड़ेगा। इसी थाने में चूड़ावाला के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। अदालत में मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी।

गौरतलब है कि देशद्रोह में गिरफ्तार कथित देश के टुकड़े करने के बयान देने वाले जेएनयू के शोधार्थी शरजील इमाम के समर्थन में नारे लगाने वाली कार्यकर्ता उर्वशी चूड़ावाला पर राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था।

आरोप है कि मुंबई के आजाद मैदान में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान शरजील के समर्थन में उर्वशी ने राष्ट्रविरोधी नारे लगाए थे। मुंबई पुलिस के अनुसार, उर्वशी समेत 50 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया है। आरोप है कि रैली में ‘शरजील तेरे सपनों को हम मंजिल तक पहुंचाएंगे’ जैसा नारा लगाने वालों में चूड़ावाला सबसे आगे थीं। उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था।

हार के बाद दिल्ली कांग्रेस प्रभारी चाको का इस्तीफा

दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल पाने के बाद दिल्ली के कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको ने इस्तीफा दे दिया है। चाको के फैसलों को लेकर दिल्ली कांग्रेस में शीला दीक्षित के समय से ही विवाद रहा है। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष  सुभाष चोपड़ा  आने के तुरंत बाद अपने पद से इस्तीफे की पेशकश की थी। उनकी बेटी शिवानी चोपड़ा की कालकाजी सीट से जमानत जब्त हो गई है। दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के ६६ लड़े उम्मीदवारों में से ६३ की जमानत जब्त हो गयी है।

ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस दिल्ली में पार्टी संगठन की ओवरहालिंग की तैयारी कर रही है। यहाँ नया राज्य अध्यक्ष भी चुना जा सकता है। जहां तक चाको की बात है वे अपने कुछ फैसलों को लेकर विवाद में रहे हैं। साल २०१५ के बाद अब लगातार दूसरी बार दिल्ली चुनाव में कांग्रेस सुण्या पर सिमटी है। यह कहा जा रहा है कि भाजपा को हारने के लिए कांग्रेस ने अपना वोट पूरी तरह आप को ट्रांसफर करवाया है।

तीन बार कांग्रेस को सत्ता में लाने वालीं शीला दीक्षित को लेकर चाको के ब्यान पहले भी विवाद में रहे थी और अब भी वे २०१३ में कांग्रेस की हार की शुरुआत की बात करते शीला का उदाहरण देते हैं।

उनके इस ब्यान को लेकर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी और दिल्ली महिला कांग्रेस प्रमुख वरिष्ठ नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी और दिल्ली के वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित ने भी पार्टी की रणनीति पर सवाल खड़े किए थे। शर्मिष्ठा ने तो यहाँ तक सवाल किता था कि भाजपा विभाजनकारी राजनीति कर रही है जबकि केजरीवाल स्मार्ट पॉलिटिक्स, लेकिन हम क्या कर रहे हैं? उन्होंने जोर देकर कहा कि दिल्ली में हम दोबारा हार गए। अब  कार्रवाई का समय है। शीर्ष स्तर पर निर्णय लेने में देरी, राज्य स्तर पर रणनीति और एकजुटता का अभाव, कार्यकर्ताओं का निरुत्साह, नीचे के स्तर से संवाद नहीं होना आदि हार के कारण हैं. मैं अपने हिस्से की जिम्मेदारी स्वीकार करती हूं।

संदीप दीक्षित, जो दिवंगत शीला दीक्षित के पुत्र हैं, ने कहा कि उन्हें नतीजों से कोइ हैरानी नहीं हुई है। उनके मुताबिक ”अंदरूनी  राजनीति की वजह से पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। हम चुनाव में कहीं नहीं थे। हमने शीलाजी के किए काम  दिखाने की कोशिश की, लेकिन वास्तव में देर हो चुकी थी।”

असम में एनआरसी डाटा ऑनलाइन क्लाउड से गायब, गृह मंत्रालय ने कहा सुरक्षित है  

असम में एनआरसी का डाटा कथित रूप से डिलीट होने पर हंगामा मच गया है। जहाँ कांग्रेस ने इसपर जानकारी के बाद सरकार पर सवाल उठाए हैं वहीं गृह मंत्रालय ने दावा किया है कि तकनीकी गड़बड़ी से यह डाटा दिख नहीं रहा, लेकिन सुरक्षित है।

जानकारी के मुताबिक १५ दिसंबर के बाद से असम एनआरसी का डाटा ऑनलाइन क्लाउड पर उपलब्ध नहीं है। यह जानकारी सामने आने के बाद असम कांग्रेस के नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया ने रजिस्ट्रार जनरल और एनआरसी कॉर्डिनेटर को खत लिखकर उनका ध्यान इस तरफ खींचा था। उन्होंने कहा कि एनआरसी की वेबसाइट से एनआरसी का ऑनलाइन डाटा अचानक गायब है।

एनआरसी से जुड़े इस डाटा में उन सभी लोगों के नाम शामिल हैं जो इस प्रक्रिया के बाद इसका हिस्सा हैं या इससे बाहर किये गए हैं। यह सभी डाटा सुप्रीम कोर्ट के १३  अगस्त, २०१९ के निर्देश के मुताबिक ऑनलाइन पोस्ट किया गया था। कांग्रेस नेता ने सवाल उठाया कि अचानक से एनआरसी का ऑनलाइन डाटा कैसे गायब हो गया?

हालांकि, अब बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सफाई दी है कि ”तकनीकी गड़बड़ी की वजह से एनआरसी का डाटा नहीं दिख रहा है और इसे जल्द दुरुस्त कर लिया जाएगा।”

जानकारी के मुताबिक गृह मंत्रालय ने कहा है कि एनआरसी का डाटा सुरक्षित है और किसी तकनीकी गड़बड़ी के कारण इस डाटा की विजिबिलिटी क्लाउड पर नहीं हो पा रही है। उसके मुताबिक गड़बड़ी की पहचान हो गयी है और इसे शीघ्र दुरुस्त कर   लिया जाएगा।

केजरीवाल आप विधायक दल के नेता चुने गए

अरविन्द केजरीवाल का लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ़ हो गया है। बुधवार दोपहर उन्हें आम आदमी पार्टी (आप) विधायक दल का नेता चुन लिया गया। अरविन्द के नाम का प्रस्ताव मनीष सिसोदिया ने प्रस्तावित किया जिसपर सभी ने मुहर लगा दी।

इस बीच चर्चा है कि केजरीवाल का शपथ ग्रहण समारोह रविवार (१६ फरवरी) को हो सकता है। इसमें अन्य प्रदेशों और दलों के नेताओं को भी न्योता दिया जाएगा। आज सुबह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने फोन करके केजरीवाल को उनकी जीत पर बधाई दी। इससे पहले राहुल गांधी उन्हें जीत की बधाई देने वाले मंगलवार को सबसे पहले विपक्षी नेता थे। बाद में पीएम मोदी ने भी ट्वीट करके उन्हें बधाई दी।

आप विधानसभा चुनाव में ७० में से ६२ सीटें जीतकर तीसरी बात सत्ता में आई है। वैसे केजरीवाल को विधायक दल का नेता चुना महज एक औपचारिकता ही थी क्योंकि उनके ही चेहरे के बूते आप सत्ता में आई है।

इस चुनाव में भाजपा को नागरिकता संशोधन क़ानून के हक़ में, शाहीन बाग़ आंदोलन के खिलाफ बड़ा अभियान चलाने और हिन्दू-मुस्लिम का राग अलापने के बावजूद बुरी हार मिली है। उसे सिर्फ ८ सीटें मिली हैं। माना जा रहा है कि आप की एकतरफा जीत के पीछे कांग्रेस का भी बहुत बड़ा रोल रहा है, जिसने अपना कमोवेश पूरा वोट वोट बैंक एक सुन्योजित तरीके से आप को ट्रांसफर करवा दिया ताकि वह अपनी सबसे बड़ी राजनीतिक प्रतिद्वंदी भाजपा की हार सुनिश्चित कर सके।

खुदकुशी कर चुके पूर्व सीएम के बेटे का शव ब्राइटन में मिला

साढ़े तीन साल पहले कथित तौर पर खुदकुशी कर चुके अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल के बेटे ब्रिटेन के ब्राइटन शहर में मृत पाए गए हैं। वे ससेक्स यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे। 20 वर्षीय शुबांसो पुल कलिखो पुल की पहली पत्नी दांग्विमसाई पुल के पुत्र थे।
ब्रिटेन की पुलिस का मानना है कि पहली नजर में मामला संदिग्ध परिस्थितियों का नहीं लग रहा है। आशंका है कि उसने आत्महत्या की हो। स्थानीय पुलिस को बेडरूम में शव पड़े होने की खबर फोन से मिली थी। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। जांच के बाद ही मामले से पर्दा हटेगा। ईटानगर में पुल परिवार शुभांसो के शव लाने के लिए ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग से संपर्क कर रहा है।

बता दें कि कलिखो पुल कांग्रेस और भाजपा के चंद विधायकों के समर्थन से 2016 में कुछ समय के लिए सीएम बने थे। हालांकि अदालत के फैसले के बाद उन्हें पद से हटना पड़ा था। पुल ने नौ अगस्त 2016 को ईटानगर स्थित अपने सरकारी आवास कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने 60 पेज  के सुसाइड नोट में न्यापालिका के कुछ बड़े नामों और वर्तमान मुख्यमंत्री समेत सूबे के राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे।

कलिखो पुल की मौत के बाद उनकी पत्नी दांग्विमसाई पुल ने जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके पीछे उन्होंने गंभीर षड्यंत्र के आरोप लगाए हैं।