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कोरोना वायरस से दुनिया में भय

चीन से फैला कोरोना वायरस अब पुरी दुनिया के लिए एक खतरा बनता जा रहा है। भारत में इस बीमारी से निपटने पुख्ता इंतज़ाम किये जा रहे हैं। चीन और हांगकांग से आने-जाने वाले लोगों की थर्मल स्क्रीनिग भारत के हवाई अड्डों पर की जा रही है। दिल्ली के डॉक्टरों ने इस बीमारी को पूरी तरह से स्वाइन फ्लू की तरह बताया है। डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी का इलाज सावधानी है। सावधानी बरतने से इस बीमारी से बचाव जरूरी है। तहलका संवाददाता ने स्वास्थ्य महकमे से जुड़े डॉक्टरों और कर्मचारियों से इस बीमारी के बारे में समझा। उन्होंने बताया कि अगर इस बीमारी से जुड़ा कोई भी मामला सामने आता है, तो उससे निपटने और बेहतर उपचार के पुख्ता इंतज़ाम हैं। इसका स्वाइन फ्लू की तरह एक वार्ड है, जिसमें रोगियों का उपचार किया जा सकता है।

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर अनिल बंसल ने बताया कि कोरोना वायरस स्वाइन फ्लू की तरह है। इस बीमारी का उपचार है। यह बीमारी उन लोगों के लिए ज़्यादा खतरनाक है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। जैसे मधुमेह रोगी, बीपी, दमा और हृदय के रोगियों को इस बीमारी से बचने के लिए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। अगर किसी को लगातार बुखार के साथ खाँसी आ रही है और हाथ-पैरों में सूजन हो, तो उसे नज़रअंदाज़ न करे और जल्द से जल्द उपचार करवायें।

कालरा अस्पताल के हार्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. आरएन कालरा ने बताया कि चीन से एशिया में फैला कोरोना वायरस अब अमेरिका तक पहुँच गया है। बताया जा रहा है कि चीन में अब तक सौ से अधिक लोगों की इस वायरस से मौत हो चुकी है, जबकि वहाँ सैकड़ों मामले सामने आये हैं।

मैक्स अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विवेका कुमार ने बताया कि कोरोना वायरस आमतौर पर जानवरों मेंं पाये जाते हैं। कई बार जानवरों से इंसानों में भी इसका संचार हो जाता है। इस बीमारी के लक्षण आसानी से पकड़ में नहीं आते; लेकिन खुद-ब-खुद खत्म हो जाते हैं। क्योंकि इस बीमारी का इलाज अभी तक ईजाद नहीं हुआ है। ऐसे में हृदय रोगियों को अगर घबराहट के साथ साँस लेने में दिक्कत हो, तो उसे नज़रअंदाज़ न करें। डब्ल्यूएचओ के डॉक्टर दिव्यांग ने बताया कि कोरोना वायरस एक खतरनाक वायरस है, जो ज़रा-सी लापरवाही पर जानलेवा साबित हो सकता है। बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। अगर उनको एक सप्ताह तक बुखार के साथ खाँसी और साँस लेने में दिक्कत हो, तो डॉक्टर से ज़रूर परामर्श लें और बेहतर इलाज कराएँ।

एम्स के डॉक्टर आलोक कुमार ने बताया कि चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे शोधों से इस बीमारी को पकड़ा गया है। इसमें ज़रा-सी भी असावधानी ठीक नहीं है। संक्रमण फैलने वालेे क्षेत्र में जाने से बचें। अगर किसी भी व्यक्ति को सर्दी-जुकाम भी है, तो भी इलाज करवाएँ। यदि आसपास कोई भी संक्रमित है, तो उससे बचें और उससे हाथ भी मिलाएँ, तो साबुन से हाथ साफ कर लें। मृत जानवरों के पास न जाएँ। अगर जाना पड़े, तो मुँह पर मास्क लगाकर जाएँ, ताकि किसी प्रकार का संक्रमण न हो सके।

बता दें कि इस मामले में विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने कहा है कि केरल की करीब 100 भारतीय नर्सों का परीक्षण किया गया है। ये नर्सें चीन से आयी थीं। इनमें से केवल एक नर्स कोरोनो वायरस से संक्रमित मिली है। सऊदी अरब के एसेर नेशनल अस्पताल में संक्रमित नर्स का इलाज चल रहा है।

केरल के मुख्यमंत्री विजयन ने केंद्र को लिखा पत्र

कोरोना वायरस को लेकर केरल के स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने कहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने चिट्ठी में कहा है कि सऊदी अरब के अजीर आबा अल हयात अस्पताल में भारतीय नर्स में कोरोना वायरस का संक्रमण गम्भीर है। इस मामले में ज़रूरी कदम उठाये जाने चाहिए।

थालीनॉमिक्स और मध्यमवर्ग की आकांक्षाओं की फ़िक्र

पाँच पाँच ट्रिलियन इकोनॉमी के लक्ष्य के दबाव और गम्भीर आर्थिक स्थिति के बीच नया बजट देश में उभर रही उन चिन्ताओं को साधने की भी कोशिश है, जो नागरिकता कानून और सम्भावित एनआरसी के विरोध और आन्दोलन से पैदा हुई हैं। किसानों के लिए फिर घोषणाओं का पिटारा रखा गया है, लेकिन ये घोषणाएँ कितनी फलीभूत होंगी, यह फिर देखना है। अभी तक मोदी सरकार न्यू इंडिया पर केंद्रित रही; लेकिन इस बजट में अचानक मोदी सरकार की भारत के लिए चिन्ता उजागर हुई है।

कुल मिलाकर यह बजट मध्यम वर्ग के उस वोट बैंक को खुश रखने की कोशिश है, जिसने पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा को दिल खोलकर समर्थन दिया है। वित्त मंत्री का कहना है कि बजट मुख्यत: तीन बातों- आकांक्षी भारत, सभी के लिए आर्थिक विकास करने वाला भारत और सभी की देखभाल करने वाला समाज भारत पर केंद्रित है। मोदी सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में थालीनॉमिक्स का नया शब्द गढ़ा गया, तो इसके साफ मायने हैं कि मोदी सरकार उस वर्ग की नाराज़गी के प्रति चिन्तित है, जो हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों के साथ खड़ा दिखता रहा है; लेकिन पिछले महीनों में उसकी सोच में बदलाव आया है। मोदी सरकार ने आयकर ढाँचे में व्यापक बदलाव किया है और नये स्लैब बनाये हैं। देखने में बहुत लुभावना लगने वाला बजट उतना लुभावना नहीं है। नये स्लैब के तहत टैक्स का भुगतान वही करदाता कर सकेंगे, जो पूर्व नियमों के तहत मिलने वाली छूट और कटौतियों को छोड़ देंगे।

विशेषज्ञों के अनुसार, नयी आयकर व्यवस्था वैकल्पिक होगी। करदाताओं को पुरानी व्यवस्था या नयी व्यवस्था में से चुनने का विकल्प होगा। अगर नयी व्यवस्था के तहत टैक्स भरते हैं, तो पूर्व नियमों के तहत मिलने वाली छूट और कटौतियों को छोडऩा पड़ेगा। रोज़गार को लेकर पिछले बजटों में बहुत कुछ कहा गया; लेकिन विभिन्न सर्वे बताते हैं कि इन वर्षों में लाखों रोज़गार चले गये हैं। देश की इस सबसे बड़ी चिन्ता के निवारण के लिए कुछ खास बजट में नहीं दिखता। यह चिन्ताएँ वैसे ही हैं, जो नोटबंदी और बाद में जीएसटी लागू करते हुए बहुत लाभकारी बतायी गयी थीं; लेकिन इनका व्यापक असर आज तक लोग भुगत रहे हैं।।

आयकर में बड़ा बदलाव

वित्त मंत्री ने आयकर (टैक्‍स स्‍लैब) में बड़े बदलाव का ऐलान किया और कहा कि 5 से 7.5 लाख रुपये तक की आमदनी पर 10 फीसदी टैक्‍स देना होगा। इसके साथ ही 7.5 से 10 लाख रुपये तक की आमदनी पर 15 फीसदी, 10 से 12.5 लाख रुपये की आमदनी पर 20 फीसदी टैक्‍स, 12.5 से 15 लाख रुपये की आमदनी पर 25 फीसदी और 15 लाख से ऊपर की आमदनी पर 30 फीसदी टैक्‍स देना होगा। लेकिन नयी आयकर व्यवस्था वैकल्पिक होगी, करदाताओं को पुरानी व्यवस्था या नयी व्यवस्था में से चुनने का विकल्प होगा।

अप्रत्यक्ष करों में मुकदमेबाज़ी कम करने के लिए सबका विश्वास स्कीम लायी गयी थी। इस स्कीम के तहत 1,89 हज़ार से अधिक मामलों का निपटान किया गया। लाभांश वितरण कर समाप्त कर दिया गया है। अब लाभांश पाने वालों को कर देना होगा। कस्टम ड्यूटी से 14 रियायतें वापस ले ली गयी हैं। अब आधार के ज़रिये पैन कार्ड फौरन मिलेगा।

बनेगा टैक्स पेयर चार्टर

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2020-21 में ऐलान किया कि सरकार एक टैक्स पेयर चार्टर बनायेगी, जिससे अब किसी भी करदाता कोई भी तंग नहीं कर पायेगा। किसानों को 15 लाख करोड़ तक कर्ज़ का देने का लक्ष्य है। वित्त मंत्री के रूप में वह दूसरी बार बजट पेश रहीं निर्मला सीतारमण ने लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की अगुआई में मिली जीत का ज़िक्र किया और कहा कि यह प्रचंड जनादेश था और स्थायित्व ने वाला है।

सस्ता होम लोन और रियायतें

सस्ते मकान की खरीद के लिए 1,50,000 रुपये तक अतिरिक्त कटौती को एक वर्ष बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है। विद्युत क्षेत्र में निवेश के लिए घरेलू कम्पनियों को भी 15 फीसदी रियायती कॉरपोरेट कर देने का प्रस्ताव, निवेशकों को राहत प्रदान करने के लिए लाभांश वितरण कर को हटाने का प्रस्ताव है।

नयी शिक्षा नीति जल्द

नयी शिक्षा नीति की घोषणा जल्द की जाएगी। समाज के वंचित वर्ग के विद्यार्थियों के लिए डिग्री स्तर का ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए विदेशों से कर्ज़ और एफडीआई के उपाय किये जाएँगे। शिक्षा क्षेत्र के लिए 99,300 करोड़ का प्रस्ताव किया गया है।

एलआईसी की हिस्सेदारी बिकेगी

वित्त मंत्री ने एलआईसी में सरकारी हिस्सेदारी बेचने का ऐलान किया है। साथ ही सूक्ष्म और लघु उद्योगों की भुगतान में देरी की समस्या और नकदी प्रवाह की समस्या से निपटने के लिए एप आधारित इनवॉयस वित्त पोषण ऋण उत्पाद पेश करने का ऐलान किया गया है। सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अराजपत्रित पदों पर भर्ती में महत्त्वपूर्ण सुधार के लिए राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी की स्थापना करने का प्रस्ताव है।

इस साल के दौरान सभी मंत्रालय गुणवत्ता मानक आदेश जारी करेंगे। इससे देश में गुणवत्ता वाले सामान की बिक्री को प्रोत्साहन दिया जा सकेगा और घटिया सामान के आयात पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

जीएसटी और महँगाई

जीएसटी पर वित्त मंत्री ने अरुण जेटली को याद किया और कहा कि उनकी दूरदर्शिता के चलते जीएसटी लागू हुआ और इससे डरावना इंस्पेक्टर राज खत्म हो गया। कहा कि बैंकिंग सिस्टम सुधार आया है, जिससे बैंकों की हालत में सुधार हुआ है। अब तक 40 करोड़ का जीएसटी फाइल हो चुका है। अर्थव्यवस्था की बुनियाद  मज़बूत है और 2014 से 2019 के बीच सरकारी कामकाज में बदलाव आया है।

वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार महँगाई को काबू करने में कामयाब हुई है। बीते साल 16 लाख से •यादा नये करदाता जुड़े हैं। जीडीपी में हमारा कर्ज़ अनुपात घटा है। छोटे और मझोले उद्योगों को राहत मिली है। सरकार ने व्यवस्था को बदल डाला है। पीएम मोदी के नारे सबका साथ, सबका विकास में प्रधानमंत्री आवास योजना बेहतर रही। सीतारमण ने साल 2020-21 के लिए अनुमानित जीडीपी 10 फीसदी आँकी, हालाँकि उनके ऐसा कहते ही संसद में ज़ोरदार हंगामा हुआ।

वित्त मंत्री ने सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अराजपत्रित पदों पर भर्ती में महत्त्वपूर्ण सुधार के लिए राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी की स्थापना करने का प्रस्ताव किया। उन्होंने कहा कि इस साल के दौरान सभी मंत्रालय गुणवत्ता मानक आदेश जारी करेंगे। इससे देश में गुणवत्ता वाले सामान की बिक्री को प्रोत्साहन दिया जा सकेगा और घटिया सामान के आयात पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

जी-20 सम्मेलन में भारत

वित्त मंत्री ने कहा कि 2022 का जी-20 सम्मेलन भारत में होगा और इसके आयोजन की तैयारी के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है। वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों के लिए लगभग 9500 करोड़ रुपये का आवंटन है। साल 2020-21 के लिए संस्कृति मंत्रालय के लिए 3150 करोड़ रुपये की व्यवस्था, पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 2500 करोड़ रुपये आवंटित करने का प्रस्ताव है।

एक अहम घोषणा में कहा कि बड़े नगरों में स्वच्छ हवा सुनिश्चित करने के लिए 4400 करोड़ का आवंटन किया गया है। अब बैंकों में जमा 5 लाख रुपये तक की रकम पूरी तरह सुरक्षित होगी, जबकि पहले यह एक लाख थी। उन्होंने  कहा कि 112 आकांक्षी ज़िलों में जहाँ आयुष्मान भारत योजना से जुड़े अस्पताल नहीं हैं।

हाई स्पीड ब्रॉडबैंड

वहाँ सार्वजनिक निजी भागीदारी के तहत अस्पताल बनाने को प्राथमिकता-ग्राम पंचायतों को हाई स्पीड ब्रॉडबैंड सुविधा मिलेगी। ग्राम पंचायतों को हाई स्पीड ब्रॉडबैंड से जोडऩे वाले भारतनेट कार्यक्रम के लिए 2020-21 में 6,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। एक लाख ग्राम पंचायतों को इससे जोड़ा जाएगा और डाटा सेंटर पार्क स्थापित करने के लिए जल्द नीति बनेगी। उन्होंने कहा कि बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ में बेहतरीन नतीजे देखने को मिले हैं। छ: लाख से अधिक आँगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को समार्टफोन दिये गये हैं। साल 2020-21 के पोषण सम्बन्धी कार्यक्रमों के लिए 35,600 करोड़ का प्रस्ताव है। महिला विशिष्ट कार्यक्रमों को 28,600 करोड़ रुपये का प्रावधान है। साल 2020-21 में विद्युत और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को लगभग 22,000 करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव है। राष्ट्रीय गैस ग्रिड को मौज़ूदा 16,200 किमी से बढ़ाकर 27,000 किमी तक पहुँचाने का प्रस्ताव है।

150 ट्रेनें, 100 हवाई अड्डे

देश में तेजस की तरह और रेलगाडिय़ाँ चलायी जाएँगी। मुम्बई-अहमदाबाद हाई स्पीड ट्रेन का काम आगे बढ़ाया जाएगा। बेंगलूरु उप नगरीय रेलगाड़ी परियोजना में केंद्र सरकार 20 फीसदी शेयर पूँजी लगायेगी। पीपीपी मॉडल की तरह 150 नयी ट्रेनें चलायी जाएँगी। इसके अलावा उड़ान योजना को बढ़ावा देने के लिए 100 और हवाई अड्डों का विकास किया जाएगा। साल 2024 तक 6,000 किलोमीटर हाईवे बनाये जाएँगे। क्वांटम तकनीक और एप्लीकेशन पर पाँच वर्ष में 8000 करोड़ रुपये व्यय करने का प्रस्ताव है। राष्ट्रीय लॉजिस्टक नीति का जल्द ऐलान होगा। राष्ट्रीय लॉजिस्टक नीति, एकल खिडक़ी ई-लॉजिस्टिक बाज़ार बनाया जाएगा और पीएम किसान के लाभार्थियों को किसान क्रेडिट कार्ड से जोड़ा जाएगा। उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देंगे, प्रोत्साहित करने की व्यवस्था में बदलाव किया जाएगा।

अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 85 हज़ार करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया गया है, अनुसूचित जनजाति के लिए 53 हजार 700 करोड़ रुपये का बजट प्रस्ताव है। वित्त मंत्री ने कहा कि मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, सेमी कंडक्टर पैकेजिंग के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना है। नेशनल इन्फ्रा पाइपलाइन के लिए 1.03 लाख करोड़ रुपये रखे गये हैं। स्मार्ट मीटरिंग की नयी योजना बनेगी।

राष्ट्रीय पुलिस विश्वविद्यालय

राष्ट्रीय पुलिस विश्वविद्यालय बनाया जाएगा। राष्ट्रीय पुलिस विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय का प्रस्ताव, विदेश में शिक्षकों, नर्सों, चिकित्सा सहायक कर्मचारियों के कौशल को बेहतर किये जाने की ज़रूरत-मोबाइल फोन विनिर्माण, कलपुर्जे, सेमीकंडक्टर के लिए नयी योजना लायी जाएगी। नेशनल फॉरेंसिक साइंस विश्वविद्यालय बनाया जाएगा। मोबाइल फोन विनिर्माण, कलपुर्जे, सेमीकंडक्टर के लिए नयी योजना लायी जाएगी, जल जीवन मिशन के लिए 3.6 लाख करोड़ रुपये की मंज़ूरी दी गयी है।

ढाँचागत परियोजनाओं के लिए परियोजना तैयारी सुविधा विकसित की जाएगी। सभी सरकारी एजेंसियों को इससे जोड़ा जाएगा। किसानों को सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में मदद दी जाएगी। जिन किसानों के पास बंज़र ज़मीन है, उस पर उन्हें सौर बिजली इकाइयाँ लगाने और अधिशेष बिजली सौर ग्रिड को बेचने में मदद की जाएगी।

टीबी हारेगा, देश जीतेगा

साल 2025 तक टीबी समाप्त करने के लिए ‘टीबी हारेगा, देश जीतेगा’ अभियान चलाया जाएगा। साल 2024 तक सभी ज़िलों में जन औषधि केंद्र का विस्तार, स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए लगभग 69 हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान होगा। जन औषधि केंद्र हर ज़िले में खोले जाएँगे, 12300 करोड़ स्वच्छ भारत मिशन के लिए रखा गया है। स्किल इंडिया के लिए 3 हज़ार करोड़ रुपये का बजट है। पाँच नये स्मार्ट शहर विकसित किये जाएँगे। विदेशों में नौकरी के लिए ब्रिज कार्यक्रम चलाये जाएँगे। मत्स्य उत्पादन बढ़ाकर 200 लाख टन करने का प्रस्ताव लाया जाएगा। समुद्री मत्स्य संसाधनों के प्रबंधन के लिए एक फ्रेमवर्क बनाने का प्रस्ताव है और साल 2022-23 तक मत्स्य उत्पादन बढ़ाकर 200 लाख टन करने का प्रस्ताव लाया जाएगा।

किस पर लगेगा कितना कर (टैक्स)

पाँच लाख तक की आय रहेगी कर मुक्त

5 लाख से 7.5 लाख रुपये तक की आय पर लगेगा 10 फीसदी कर

7.5 लाख से 10 लाख तक की आय पर देना होगा 15 फीसदी कर

10 लाख से 12.5 लाख तक की आय पर लगेगा 20 फीसदी कर

12.5 लाख से 15 लाख तक की आय पर लगेगा 25 फीसदी कर

15 लाख से ऊपर आय पर 30 फीसदी कर किसको, कितना बजट

शिक्षा : 99,300 करोड़ रुपये

स्‍वास्‍थ्‍य : 69,000 करोड़ रुपये

कृषि/सिंचाई : 2.83 लाख करोड़

ग्रामीण विकास : 1.23 लाख करोड़

स्वच्छ भारत मिशन : 12,300 करोड़

जल जीवन मिशन : 11,500 करोड़

टैक्‍सटाइल मिशन : 1480 करोड़

इंडस्‍ट्री और कॉमर्स : 27,300 करोड़

नेशनल इंफ्रा पाइपलाइन : 103 लाख करोड़ रुपये

बेंगलूरु लोकल प्रोजेक्‍ट : 18600 करोड़

ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर : 1.7 लाख करोड़

पॉवर रिन्‍यूएबल : 22000 करोड़

भारतनेट प्रोग्राम : 6000 करोड़ रुपये

पोषाहार योजना : 35,300 करोड़ रुपये

महिलाओं की योजना :  28,600 करोड़ रुपये

टूरिज्‍म : 2500 करोड़ रुपये

एससी और ओबीसी वर्ग : 85,000 करोड़ रुपयेे

संस्‍कृति मंत्रालय : 3150 करोड़ रुपये  जम्‍मू-कश्‍मीर/लद्दाख : 30,700 करोड़ रुपयेे

स्किल डेवलपमेंट : 3000 करोड़ रुपये

किसानों को लिए क्या?

वैसे तो बजट में किसानों को लेकर दिया गया प्रस्ताव बड़ा लुभावना लगता है,  हकीकत में किस हद तक तब्दील हो पाएगा, यह आने वाले समय में ही पता चलेगा। कृषि/सिंचाई क्षेत्र के लिए 2.83 लाख करोड़ रखे गये हैं। वित्त मंत्री ने ऐलान किया कि सरकार किसानों की आय 2022 तक दोगुना करने को लेकर प्रतिबद्ध है। किसानों के लिए 16-सूत्री एक्शन प्लान प्रस्तुत किया गया है, जिसमें किसानों के लिए नये बाज़ार को खोलने और उनका दायरा अन्नदाता तक सीमित न रखते हुए ऊर्जादाता के रूप में स्थापित किये जाने की सरकारी पेशकश है।

देखा जाए तो कांग्रेस नेता राहुल गाँधी की किसान यात्राओं से कांग्रेस को चुनाव में भले फायदा नहीं मिला, भाजपा उस दिशा में सोचने पर मजबूर दिखती है। इस बजट की मुख्य बातें हैं- एग्रीकल्चरल लैंड लीजिंग एक्ट 2016, प्रोड्यूस लाइवस्टॉक एक्ट 2017, सर्विसेज फैसिलिटेशन एक्ट 2018 को राज्य सरकारों से लागू करवाना, 100 ज़िलों में पानी की व्यवस्था के लिए बड़ी योजना चलायी जाएगी, ताकि किसानों को पानी की दिक्कत न रहे, पीएम कुसुम स्कीम के ज़रिये किसानों के पम्प को सोलर पम्प से 20 लाख किसानों को योजना से जोड़ा जाएगा और इसके अलावा 15 लाख किसानों के ग्रिड पम्प को भी सोलर से जोड़ा जाएगा। उर्वरता बढ़ाने पर फोकस रखा जाएगा और इसके लिए रासायनिक खादों के इस्तेमाल को कम किया जाएगा।

 देश में मौज़ूद वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज को नाबार्ड के ज़रिये नये तरीके से विकसित किया जाएगा। देश में और भी वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज बनाये जाएँगे और उसमें पीपीपी मॉडल अपनाया जाएगा, महिला किसानों के लिए धन्य लक्ष्मी योजना का ऐलान किया गया है, जिसके तहत बीज से जुड़ी योजनाओं में मुख्य तौर पर महिलाओं को जोड़ा जाएगा। दूध, मांस, मछली सहित जल्द खराब होने वाली चीज़ों को सुरक्षित पहुँचाने के लिए वातानुकुलित किसान रेल कोच चलाये जाएँगे।

कृषि उड़ान योजना को नेशनल और इंटरनेशनल रूटों पर शुरू किया जाएगा, बागवानी क्षेत्र में 311 मिलियन मीट्रिक टन की वर्तमान में पैदावार है और अब बागवानी के किसानों के लिए ज़िला स्तर पर योजना लायी जाएगी।

असुरक्षित मुम्बई का बांद्रा रेलवे टर्मिनस

मुम्बई के 5 रेलवे टर्मिनस में से एक है बांद्रा रेलवे टर्मिनस यानी बीडीटीएस। सुरक्षा कारणों के मद्देनज़र यह कहा जा सकता है कि यह बिल्कुल असुरक्षित है। चारों तरफ से घनी आबादी के बीच बने इस टर्मिनस में सुरक्षा को लेकर इतने छेद है कि कोई भी शख्स आसानी से टर्मिनस के किसी भी प्लेटफार्म में आ जा सकता है अनधिकृत तरीके से और अवैध सामग्रियों के साथ।

1990 में बने वेस्टर्न रेलवे डिविजन के बीडीटीएस से  उत्तर और पश्चिमी भारत के लिए के लिए ट्रेन छूटती हैं। यहाँ पर सात प्लेटफार्म हैं। बीडीटीएस, सांताक्रूज, खार, बांद्रा जैसे रिहाइशी इलाके के बीच है। दक्षिण की ओर नौपाड़ा और बैहरमपाड़ा नामक घनी आबादी वाले इलाके हैं और उसी से बांद्रा जंक्शन लोकल रेलवे स्टेशन लगा हुआ है, जहाँ से वेस्टर्न, सेंट्रल और हार्बर लोकल ट्रेनें गुज़रती हैं। उत्तर की ओर खार इलाका है और लोकल रेलवे का खार स्टेशन भी। भले ही बांद्रा रेलवे टर्मिनस को शुरू हुए 29 साल हो गये हैं, लेकिन  सुरक्षा के मद्देनज़र पुख्ता इंतज़ाम अभी तक नहीं हो पाये हैं। कुछ वर्षों पहले तक प्लेटफॉर्म के पश्चिमी इलाके की ओर से खुला पड़ा हुआ था, अभी भी इस ओर बाउंड्री वॉल का काम अधूरा पड़ा हुआ है। इस ओर से कोई भी बीडीटीएस के सातों प्लेटफार्म में बे-रोकटोक आ जा सकता है। यही बात दक्षिण की ओर से भी है। टर्मिनस से लगी पुरानी पटरी सीधे कई स्लम से होती हुई बांद्रा लोकल रेलवे स्टेशन तक पहुँचती है। बीडीटीएस का पूर्वी छोर जो मुख्य गेट है। वहाँ पर सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था है, लेकिन अन्य तीनों दिशाओं से टर्मिनस के भीतर जाना बेहद आसान है। इस टर्मिनस से उत्तर और पश्चिम भारत के लिए लगभग 60 ट्रेनों का आवागमन होता है। टर्मिनस के कई प्लेटफॉम्र्स के कोने में नशेड़ी दिखाई देते हैं। आसपास के इलाके के लोगों को टपोरी युवकों को प्लेटफॉम्र्स के भीतर टाइम पास करते हुए देखा जा सकता है। टर्मिनस के दक्षिण पश्चिमी किनारे से लगे प्लेटफॉम्र्स का हिस्सा ज़्यादा संवेदनशील माने जा सकते हैं। इसी ओर से ट्रेन में सप्लाई किये जाने वाले बेडशीट, ब्लैंकेट आदि की आवाजाही होती है और इसी कोने में से सबसे ज़्यादा लोग प्लेटफॉर्म के भीतर घुस सकते हैं। सुरक्षा के मद्देनज़र टर्मिनस के भीतर प्लेटफॉर्म तक पहुँचने से पहले यात्रियों की और लगेज की जाँच की जाती है; ताकि किसी भी तरह की विस्फोटक सामग्री या खतरनाक हथियार आदि ट्रेन तक नहीं पहुँच पाये, लेकिन बांद्रा टर्मिनस पर यह बेहद आसान है। जिन जगहों का ज़िक्र ऊपर रिपोर्ट में किया गया है, उन सभी जगहों से कोई भी शख्स प्लेटफॉर्म के भीतर बेखौफ अनधिकृत तरीके से अवैध सामग्रियों के साथ पहुँच सकता है और प्लेटफार्म में खड़ी गाडिय़ों में रखकर किसी भी षड्यंत्र को अंजाम दे सकता है।

दमनकारी कार्रवाई के डेढ़ महीने बाद भी पसरा खौफ

20 दिसंबर, 2019 को पूरे उत्तर प्रदेश में जो हुआ वो बहुत ही भयावह है। उस घटना को एक महीने से ऊपर हो गये हैं। उस दिन पुलिस ने जिस तरीके मुसलमानों को निशाना बनाकर दमनात्मक कार्रवाई की उससे उस कौम में आज भी बहुत ज़्यादा खौफ का माहौल है। लोग कुछ भी खुलकर बोलने या बताने से डर रहे हैं। पुलिस के आतंक से लोग इतने भयभीत हैं कि अनेक लोग अपना घरबार तक छोडक़र जा चुके हैं। यह माहौल आपको उत्तर प्रदेश के हालात से वािकफ कराने के लिए काफी है।

जब हम उत्तर प्रदेश की हकीकत जानने के लिए वहाँ गये, तो हर जगह लोगों ने यही बताया कि 20 दिसंबर, 2019 दिन शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के बाद जब लोग सीएए और एनआरसी के िखलाफ शान्तिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे, तभी पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया, आँसू गैस के गोले छोड़े और गोलियाँ दागीं, जिससे 27 लोगों की मौत हो गयी। उसके बाद पुलिस ने पूरे प्रदेश में हज़ारों लोगों को गिरफ्तार किया और उनके िखलाफ दंगा कराने, बलवा, आगजनी और अवैध हथियार रखने जैसे फर्ज़ी मुकदमे दर्ज किये। जिन लोगों को गोलियाँ लगी थीं मगर वे बच गये, उनके िखलाफ पुलिस ने दंगे में शामिल होने तथा सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने का मुकदमा दर्ज किया। इतना ही नहीं, सरकारी सम्पत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए नोटिस भेज दिया। इससे लोग बहुत बुरी तरह से डर गये और आज भी डर के साये में जी रहे हैं।

एक महीने बाद भी िफरोज़ाबाद की लोहार गली में रहने वाला असद (बदला हुआ नाम) बुरी तरह डरा हुआ है। उसका परिवार इतना डरा हुआ है कि वो सत्तार को गोली लगने तक से इन्कार कर रहा है। जब हम सत्तार से 17 जनवरी की शाम को मिले, तो असद के भाई ने उनके घर पर किसी शख्स को गोली लगने से साफ इनकार कर दिया। धीरे-धीरे बातचीत के दौरान सत्तार के पिता ने बताया कि 20 दिसंबर को असद घर लौट रहा था, तो अचानक से एक गोली उसके पेट में आकर लगी। काफी पूछने पर उस दिन भी उन लोगों ने इसके सिवाय कुछ नहीं बताया। जब हम अगले दिन 18 जनवरी को फिर से उसके घर गये तो, सत्तार के मोहल्ले के लोगों ने हमें घेर लिया और कहने लगे आपको जो पूछना है, उसका हम लोग जवाब देंगे। लेकिन वे लोग डरे हुए भी थे। जब हमने उन्हें ये भरोसा दिलाया और असद की अम्मी से जब हमने बात की तब उन्होंने असद से मिलवाया।

हमने उनके डर को साफ महसूस किया; क्योंकि असद घर में ही था। जबकि 17 जनवरी की शाम को उसके के भाई और पिता ने हमसे कहा था कि वह ससुराल में अपना इलाज करवा रहा है। उसके परिवार के लोग और मोहल्ले के लोग यह बात भी बार-बार पूछ रहे थे कि आप हमसे किसी कागज़ पर हस्ताक्षर तो नहीं कराएँगे? हस्ताक्षर न कराने के आश्वासन पर लोग कुछ बताने को राज़ी हुए। पूछने पर पता चला कि वहाँ कुछ दिनों पहले भाजपा के लोग आकर सीएए और एनआरसी के समर्थन में उससे जबरन हस्ताक्षर करा कर ले गये हैं। यह बात उनके अंदर के डर को बता रही थी। लोकल लोगों ने बताया कि यहाँ और लोगों को भी गोलियाँ लगी हैं, लेकिन किसी को पता नहीं है; क्योंकि सब पुलिस से डरे हुए हैं।

बिजनौर में भी सलमान, कफील और ओमराज सैनी को गोली लगी है। इन तीनों में से सिर्फ सलमान ये बात कह रहा है कि पुलिस ने गोली मारी है, बाकी दोनों डर के मारे एफआईआर  कराना तो दूर कुछ भी बोलने से डर रहे हैं। पूछने पर कुछ बताने से साफ इन्कार कर रहे हैं। बिजनौर के ही नगीना में लोगों को, यहाँ तक कि नाबालिगों और बच्चों को भी पुलिस उठाकर ले गयी। नगीना में हमें एक 15-16  साल का एक लडक़ा मिला। वह इतना डरा हुआ था कि बहुत देर तक प्यार से पूछने के बाद उसने अपना नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उसको 20 दिसंबर, को पुलिस उठाकर ले गयी थी और थाने में नंगा करके बहुत मारा। उसे पुलिस ने दो दिन बाद छोड़ा। इस दौरान उसकी खूब पिटाई की गयी। नगीना में ही शारिक नाम के एक लडक़े का मार-मारकर पुलिस ने पैर तक तोड़ डाला। उसने बताया कि जब उसे बिजनौर पुलिस लाइन ले जाया गया, वहाँ बस से उतरते ही दर्ज़नों पुलिस वाले मिलकर एक-एक लडक़े और एक-एक व्यक्ति पर लाठियाँ बरसा रहे थे। पुलिस ने पैर टूट जाने के बाद भी 13-14 घंटे उसे कोई चिकित्सा उपलब्ध नहीं करायी। जब उसके पिता उसको लेने आये, तो पुलिस ने उनसे लिखवाया की उनका लडक़ा बलवा में आया है। ऐसा हमें शारिक के पिता ने बताया। उन्होंने बताया कि उन्हें अपने बेटे के इलाज के लिए लगभग एक लाख रुपये तक का कर्ज़ दो रुपये सैकड़ा के ब्याज पर लिया है। शारिक सिलाई का काम करता था। शारिक के पिता कंपाउंडर हैं। नगीना में मोहम्मद सैफ ने बताया की उनका लडक़ा कैफ आज भी जेल में है। उसकी उम्र 18 साल 3 महीने है। उसकी 11वीं की परीक्षा फरवरी से शुरू होने वाली है और वह जेल में ही (19 जनवरी तक) है। वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा है। सैफ ने बताया कि पुलिस ने पैर पर और कमर पर बहुत बुरी तरह मारा है। बच्चे बहुत डरे हुए हैं। मुजफ्फरनगर के सादात हॉस्टल के बच्चों को पुलिस ने बेरहमी से मारा है। घरों में घुसकर पीटा और लूटपाट भी की। मेरठ में भी यही किया है पुलिस ने।

दमन के तरीके

पुलिस के दमन के तरीके की पड़ताल करने पर पता चला कि उत्तर प्रदेश में जहाँ-जहाँ भी पुलिस ने दमनकारी कार्रवाई की है, वहाँ-वहाँ लगभग एक ही तरीका अपनाया गया था। पुलिस ने जुमे की नमाज़ के बाद शान्तिपूर्ण प्रदर्शन पर लाठीचार्ज, गोलियाँ दागने और लूटपाट जैसी कार्रवाइयाँ कीं। कई जगहों पर लोगों ने बताया कि पुलिस ने ही सरकारी सम्पत्ति तोड़ी और उसमें आग लगायी। फिरोज़ाबाद के आज़ाद ने बताया कि पुलिस ने गुंडों के साथ मिलकर उनके आरा मशीन के कारखाने में आग लगायी और यह भी कहा कि इसको भी उसी आग में फेंक दो। आज़ाद ने बताया कि पुलिस ने उन लोगों के साथ मिलकर न केवल आरा मशीन के कारखाने में आग लगायी, बल्कि गल्ले में रखे एक लाख 80 हज़ार रुपये भी लूट लिए। पीडि़तों और चश्मदीदों के अनुसार, पुलिस ने भाजपा नेताओं के साथ मिलकर बहुत से मुस्लिमों को मारा है। इस वीभत्स घटना के लिए लोग उत्तर प्रदेश पुलिस के अलावा मुजफ्फरनगर से भाजपा सांसद संजीव बालियान और बिजनौर के भाजपा नेताओं पर आरोप लगा रहे हैं।

दमन के प्रभाव

20 दिसंबर, 2019 को हुए पुलिसिया दमन का प्रभाव देखना है, तो आप फिरोज़ाबाद, मुजफ्फरनगर, मेरठ, अलीगढ़, भदोही बिजनौर आदि में से किसी भी ज़िले में चले जाइए। आपको वहाँ के लघु उद्योगों की स्थिति तथा लोगों के अंदर का भय उस दिन की सारी कहानी खुद ही बयाँ कर देगा। 20 दिसंबर के बाद से फिरोज़ाबाद के चूड़ी उद्योग पर बुरा प्रभाव पड़ा है; क्योंकि फिरोज़ाबाद के चूड़ी मज़दूरों की यदि सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखें, तो हमें यह पता चलेगा कि चूड़ी मज़दूर अधिकतर मुसलमान हैं, जो बहुत ही गरीब हैं। ये मुसलमान दिहाड़ी मज़दूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। जिनकी भी मौत हुई है फिरोज़ाबाद में उनमें से अधिकतर चूड़ी मज़दूर थे। जो गिरफ्तार हैं, उनमें से भी अधिकतर चूड़ी मज़दूर ही हैं। इस पुलिसिया दमन के बाद लोग घरों से निकलने से बच रहे हैं। इसका सीधा असर वहाँ के लघु उद्योगों पर पड़ रहा है। कई लोग डर से अपना घर भी छोड़ चुके हैं। मेरठ, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़ आदि जगहों पर जहाँ भी लोग मरे हैं, वो सब मज़दूर वर्ग से ताल्लुक रखते थे। इस तरह की कार्रवाई के बाद कई परिवारों ने डर से काम पर जाना बन्द कर दिया है। पूछने पर बताते हैं कि घर का खर्च कर्ज़ लेकर या बचाये हुए पैसे से चल रहा है। मज़दूरों के न जाने से उद्योगों पर भी असर पड़ रहा है। फिरोज़ाबाद में एक चूड़ी व्यवसायी ने बताया कि उस दिन के बाद से शादी का सीजन होने के बाद भी धन्धा मंदा हो गया है।

ध्रुवीकरण की कोशिशों के बीच चुनाव

आजकल की राजनीति प्रलोभन और ङ्क्षहसा से शून्य नहीं दिख रही। जहाँ भी चुनाव होते हैं, वहीं ङ्क्षहसा फैलायी जाने लगती है और प्रलोभन दिये जाने लगते हैं। ऐसा ही माहौल इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में देखा गया। इस बार दिल्ली चुनाव में विकास के मुद्दों पर कम चर्चा हुई, मतों के धुव्रीकारण करने वाली बयानबाज़ी ज़्यादा हावी रही। 8 फरवरी को पूरी दिल्ली में एक साथ मतदान होने हैं और 11 तारीख को परिणाम भी आ जाएँगे। इस बार दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच मुकाबला माना जा रहा था; लेकिन अब माना जा रहा है कि असली मुकाबला इन दोनों पाॢटयों के बीच ही नहीं है, बल्कि भाजपा    , कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच ज़्यादा है। यह तो तय है कि कांग्रेस के वोट बैंक में इज़ाफा होगा, लेकिन इससे इतर सभी पाॢटयों के बागी नेता दूसरी पाॢटयों का गुणगान करते दिखे हैं। ऐसे में इस बार आम आदमी पार्टी के बागी नेता उसके वोट बैंक में भी सेंध लगा सकते हैं। हालाँकि, यह टिकट के स्वार्थ की राजनीति है। जिसको जिस पार्टी से टिकट नहीं मिलता, वह उस पार्टी का धुरविरोधी हो जाता है। यह एक नहीं, बल्कि लगभग सभी नेताओं का हाल है। इस बार के चुनाव में भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर लड़ रही है, तो आम आदमी पार्टी मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नाम पर लड़ रही है। तीनों पाॢटयों को अपने-अपने एजेंडे भी हैं। इस बार आम आदमी पार्टी ने काम के नाम पर वोट माँगे हैं, तो कांग्रेस अपनी पुरानी छवि विकास और भाईचारे के नाम पर, वहीं भाजपा ने इन दोनों पाॢटयों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के साथ-साथ कच्ची कॉलोनियों के पक्का करने के दावे पर वोट माँगे हैं। िफलहाल कांग्रेस पिछले चुनाव की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया है। इस बार भाजपा और कांग्रेस ने मतदाताओं को फ्री का प्रलोभन भी दिया है। इस बार सीएए जैसे मामलों पर राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता और आम लोग भी आपस में भिड़ते नज़र आये। ये झड़पें भी मतदाताओं को विचलित कर रही हैं। तहलका संवाददाता ने विधानसभाओं में मतदाताओं और प्रत्याशियों से बात की, तो उन्होंने कहा कि देश में जो माहौल ङ्क्षहसक और प्रलोभन वाला बना है, इसका कारण वोट बैंक है। कुछ ने यह भी कहा कि केजरीवाल का जनाधार काफी मज़बूत है और इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए वो (पार्टी का नाम लिए बगैर…) किसी भी हद तक जा सकते हैं।

जिन प्रत्याशियों को इस बार उनकी पार्टी ने टिकट नहीं दिया है, उनके सुर पूरी तरह बदल गये हैं। जो कभी आम आदमी पार्टी का गुणगान करते नहीं थकते थे, वे टिकट न मिलने पर उस पार्टी का गुणगान करने लगे हैं, जहाँ से उन्हें टिकट मिला है। यही हाल भाजपा और कांग्रेस का भी है। भाजपा के कई लोग अब आम आदमी पार्टी का गुणगान करते नज़र आ रहे हैं। द्वारका विधानसभा क्षेत्र के आदर्श शास्त्री कह रहे हैं कि केजरीवाल जनता को गुमराह करने में माहिर हैं, वहीं कांग्रेस नेता महाबल मिश्रा के बेटे विनय मिश्रा को आम आदमी पार्टी से टिकट मिलने पर वे आम आदमी पार्टी को ईमानदार नेताओं की पार्टी बता रहे हैं। द्वारका के मतदाताओं की मानें तो आम आदमी पार्टी और भाजपा चुनाव में ज़रूर ये दावे कर रही हैं कि मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच में है, लेकिन इस बार कांगे्रेस का मतदाता फिर से कांग्रेस में आ रहा है।

वहीं केजरीवाल की तुलना में भाजपा और कांग्रेस के पास कोई ऐसा प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है, जो उनका मुकाबला कर सके। कांग्रेस ने  उनके मुकाबले रोमेश सब्बरवाल को उतारा है, जो ज़मीनी नेता नहीं माने जाते हैं। भाजपा ने सुनील यादव को चुनाव में युवा नेता के तौर पर उतारा है, उन्हें कोई ठीक से जानता तक नहीं। वे भाजपा युवा कार्र्यकारिणी के नेता हैं। खास बात यह है कि इस बार बड़े नेता बन चुके केजरीवाल को हराने के लिए दो विरोधी एक होकर जीतने की िफराक में हैं। जैसा कि 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दिग्गज नेता व तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को चुनाव में हराकर दिल्ली की सियासत में एक नयी राजनीति का जन्म हुआ। कोंडली विधानसभा सीट, जो सुरक्षित सीट है; में अजीब माहौल देखने को मिल रहा है। यहाँ पिछली बार भाजपा के टिकट से चुनाव लडऩे वाले नेता अमरीश गौतम कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

हालाँकि, वे पहले भी तीन बार कांग्रेस से विधायक रह चुके हैं, लेकिन 2017 में उनके बेटे को कांग्रेस से नगर निगम का टिकट न मिलने पर वे भाजपा में चले गये थे और सीएए का जमकर समर्थन किया था। लेकिन फिर कांग्रेस में आ गये हैं। अब अमरीश सीएए का विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि भाजपा ने देश को बर्बाद कर दिया है। वहीं आम आदमी पार्टी से विधायक रहे मनोज कुमार टिकट बँटवारे में केजरीवाल पर भेदभाव का आरोप लगा रहे हैं। मटियाला विधानसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी सुमेश शौकीन भी आम आदमी पार्टी पर मतदाताओं को प्रलोभन देकर लुभाने का आरोप लगा रहे हैं। भाजपा के बारे में उन्होंने कहा कि भाजपा ने देश में जो माहौल बनाया है, उसके चलते जगह-जगह हिंसा हो रही है। लेकिन कांग्रेस भाईचारा और विकास की राजनीति करती है। इधर, भाजपा नेता राकेश गोस्वामी कहते हैं कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने सीएए पर लोगों को गुमराह किया है। इससे दिल्ली का सरल चुनाव अन्य राज्यों की तरह होता जा रहा है।

मुद्दों से ध्यान भटकाने के प्रयास

दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले जनता को मुद्दों पर बरगलाने की कोशिश के बाद अब मुद्दों से भटकाने की कोशिश की जा रही है। कहने की ज़रूरत नहीं अब कुछ नेता दिल्ली के विधानसभा चुनाव को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का चुनाव कहने से भी नहीं चूक रहे हैं। हम बात कर रहे हैं आम आदमी पार्टी निष्कासित विधायक कपिल मिश्रा की। हालाँकि चुनाव आयोग ने उनसे इस मामले पर स्पष्टीकरण की माँग की थी, लेकिन भाजपा के दूसरे नेता, यहाँ तक कि केंद्रीय नेता भी इस चुनाव को धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने में लगे दिखायी दिये। खैर, यह तो रही अनर्गल बातों की। अगर मुद्दों की बात करें, तो आम आदमी को पहले झूठे मुद्दे बनाकर बरगलाया गया और फिर मुद्दों से भटकाने की कोशिश की गयी। दरअसल, इसकी मुख्य वजह अधिकतर मतदाताओं का खुलकर आम आदमी पार्टी के पक्ष में बोलना भी है। यही वजह है कि चुनाव के दौरान आम नागरिकों को अपने-अपने तरीके से परेशान किया जा रहा है। लोग इसके लिए दिल्ली के सियासतदानों को ज़िम्मेदार मान रहे हैं। नाम न बताने की शर्त पर एक नेता ने बताया कि एक बड़ी पार्टी नहीं चाहती कि दिल्ली में कोई काम करने वाली पार्टी जीतकर आये। क्योंकि अगर दिल्ली का विकास हो गया, तो उसकी राजनीति दिल्ली से और भी बुरी तरह खत्म हो जाएगी। तहलका संवाददाता ने इस बारे में दिल्ली के कई इलाकों में लोगों से बात की। लोगों ने बताया कि किसी भी सरकार का मुख्य काम जनता के हित में काम करना होना चाहिए। यहाँ एक आदमी काम कर रहा है, तो दूसरों को यह हज़म नहीं हो रहा है। ये लोग धर्म और जातिवाद की राजनीति करने पर आमादा हैं। लोगों को आपस में लड़ाने की कोशिशें की जा रही हैं। कोंडली विधानसभा के आम नागरिक कुन्दन वशिष्ठ से जब हमने बातचीत की, तो उनका गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति को हम मसीहा बनाकर देश की सत्ता में लाये थे, वह आज हमें परेशान किये जा रहा है। उसे यह दिखायी क्यों नहीं देता कि देश की जनता आज औंधे मुँह गिरी जा रही है। आज न तो रोज़गार की बात की जा रही है, न शिक्षा की बात की जा रही है, न एकता की बात की जा रही है, न विकास की बात की जा रही है, फिर ऐसे लोगों को कौन वोट देगा। कुन्दन ने कहा दिल्ली में जिसने काम किया है, उसे बदनाम करने में लगे हैं लोग, पर जो असल में गलत है, उसकी पीठ थपथपाने में लगे हैं।

इधर, दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए के विरोध में लगभग डेढ़ महीने से धरने पर बैठे लोगों को लेकर भी दिल्ली में खूब सियासत हो रही है। शाहीन बाग के लोगों का दर्द सुनने कोई नहीं आया, पर बिरयानी और 500 रुपये के आरोप लगाने से कुछ लोग नहीं चूके। यह सच है कि शाहीन बाग में हो रहे धरना-प्रदर्शन के चलते राहगीरों को खासी परेशानी हो रही है। स्कूली बच्चे स्कूल जाने-आने में दिक्कत हो रही है। एम्बुलेंस जाम में फँस रही हैं। लोग समय से दफ्तर नहीं पहुँच पा रहे हैं। लेकिन इस धरने को प्रदर्शनकारियों से बातचीत करके रोका भी जा सकता था, परे इस पर सियासत हो रही है। पांडव नगर निवासी राजकुमार ने बताया कि दिल्ली में अच्छी-बुरी कर चर्चाएँ तो चुनाव के दौरान ही होती ही हैं, लेकिन जैसे पानी को दूषित बताकर लोगों में भय फैलाया गया, वैसे ही अन्य मुद्दों पर भय फैलाने की कोशिशें हो रही हैं। ये लोग तो राजनीति करने लगते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि आम आदमी को पानी खरीदना कितना महँगा पड़ता है।

राजकुमार का कहना है कि दिल्ली के चुनाव में पाकिस्तान और हिन्दुस्तान का राग अलापा जा रहा है, जिसका विकास और भाईचारे से कोई लेना-देना नहीं है। यह सब वोटबैंक के धुव्रीकरण के लिए किया जा रहा है।

जो आज तक चुनावों में नहीं हुआ, वह अब हो रहा है। लेकिन यह पब्लिक है, सब जानती है। राजकुमार का कहना है कि ऐसे नेताओं की किसे ज़रूरत है? लोग अब केवल काम चाहते हैं, चैन से जीना चाहते हैं। एक और मतदाता सलीम का कहना है कि दिल्ली में गत कुछ माह से ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जिससे लोगों में एक भय का महौल बने। लेकिन यह राजनीतिक चाल चलने वाली नहीं। हम सब दिल्लीवासी सदियों से मिलकर रहते आये हैं और मिलकर ही रहेंगे। किसी की भी फूट डालने की सियासी चालें कामयाब नहीं होने देंगे।

चुनाव के बीच पानी पर सियासत

दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष ने आरोप लगाया था कि दिल्ली में चुनाव के समय गन्दे पानी की आपूर्ति की जा रही थी और इसे एक राजनीतिक साज़िश करार दिया था। दिनेश मोहनिया ने बयान में कहा था- ‘दिल्ली में सप्लाई किया जाने वाला पानी दूसरे राज्यों से आता है, जिसमें हरियाणा सबसे बड़ा स्रोत है। चुनावों की घोषणा के बाद से हरियाणा से आने वाले पानी में अमोनिया की मात्रा बहुत बढ़ गयी है। इससे दिल्ली के कई हिस्सों में पानी की आपूर्ति प्रभावित हुई है। क्योंकि हरियाणा में भाजपा का शासन है, चुनाव के दौरान ये घटनाक्रम एक राजनीतिक साज़िश है।’

हरियाणा के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार अमित आर्य ने मोहनिया के इस बयान को गलत बताते हुए कहा है- ‘यह राज्य की छवि को खराब करने का प्रयास था। आर्य ने यह भी कहा कि दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के पूर्व में लगाये गये ऐसे ही आरोप केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने निराधार पाये थे।’

विशेषज्ञों के अनुसार, अमोनिया की ज़्यादा मात्रा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के कामकाज को प्रभावित कर सकती है; क्योंकि वे 0.7 पीपीएम से अधिक अमोनिया वाले पानी को साफ करने में असमर्थ होते हैं। पानी में अमोनिया की बढ़ती उपस्थिति दोनों राज्यों के बीच एक ज्वलंत मुद्दा है; विशेष रूप से जनवरी और मार्च के बीच नदी में बहने वाले पानी की मात्रा आवश्यक पारिस्थितिक (इकोलॉजिकल) प्रवाह की तुलना में बहुत कम होती है। कई रिपोर्ट और विशेषज्ञों के अनुसार, पानीपत औद्योगिक क्षेत्र से नदी में प्रदूषकों का बड़ा हिस्सा मिल जाता है। अधिकारियों के मुताबिक, दो जल उपचार संयंत्र – चंद्रावल और वज़ीराबाद – प्रदूषकों के कारण अपनी क्षमता से आधी मात्रा में ही पानी उत्पादित करने में सक्षम थे। यह कमी रोजाना लगभग 100 मिलियन गैलन थी। डीजेबी करीब 1,200 एमजीडी की माँग के विपरीत 940 एमजीडी पानी की ही आपूर्ति करता है।

दिनेश मोहनिया ने आरोप लगाया कि पिछले कुछ दिन से दिल्ली में पानी की समस्या फिर शुरू हो गयी है। भाजपा शासित हरियाणा से आने वाले पानी में अमोनिया की मात्रा अधिक होती है। अमोनिया का स्तर लगातार 8 जनवरी को 1.2 पीपीएम से 9 को 1.8 पीपीएम जबकि 10 जनवरी को  2.7 पीपीएम। इसके कारण, दिल्ली जल बोर्ड सामान्य उत्पादन की तुलना में 100 एमजीडी कम पानी का उत्पादन ही कर पाया।

 चुनावों के दौरान हरियाणा से सप्लाई होने वाले पानी में अमोनिया की मात्रा में अचानक वृद्धि किसी तरह के राजनीतिक षड्यंत्र का संकेत देती है। भाजपा अक्सर दिल्ली जल बोर्ड पर शहर में गंदे पानी की आपूर्ति का आरोप लगाती है। डीजेबी के वाइस चेयरमैन ने कहा कि मैं सभी को बताना चाहता हूँ कि दिल्ली में जो पानी की आपूर्ति की जा रही है, वह भाजपा शासित राज्यों से आता है। उनके मुताबिक, दिल्ली में गंदे पानी की लगातार शिकायतों के पीछे एक बड़ा कारण हरियाणा के पानीपत औद्योगिक क्षेत्र से अपशिष्ट, सीवेज और दूषित पानी की आपूर्ति है।

मोहनिया ने आरोप लगाया कि इस समस्या के कारण, चंद्रावल और वज़ीराबाद में दिल्ली जल बोर्ड के दो बड़े संयंत्र अपनी क्षमता का केवल आधा उत्पादन करने में सक्षम हैं और परिणामस्वरूप दिल्ली में पानी की आपूर्ति प्रभावित हो रही है। उन्होंने कहा कि क्योंकि पानी का पूरी तरह से दिल्ली में उत्पादन नहीं हो रहा है, दिल्ली जल बोर्ड मध्य और दक्षिण दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति योजना के मुताबिक करने में सक्षम नहीं है। उनका कहना है कि चुनाव से ठीक पहले इस तरह के घटनाक्रम किसी के भी मन में संदेह पैदा करते हैं। इस संदेह का कारण यह है कि एक तरफ भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने दिल्ली जल बोर्ड पर दिल्ली में गंदे पानी की आपूर्ति का आरोप लगाया था और दूसरी तरफ दूषित पानी भाजपा शासित हरियाणा से सप्लाई किया जा रहा है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि भाजपा अक्सर दिल्ली जल बोर्ड पर शहर में गंदे पानी की आपूर्ति का आरोप लगाती है। मैं सभी को बताना चाहता हूँ कि दिल्ली में जो पानी सप्लाई किया जा रहा है वह भाजपा शासित राज्यों से आता है।  नवंबर में भी दिल्ली के पानी की गुणवत्ता पर विवाद उठा था, जब भारतीय मानक ब्यूरो की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दिल्ली के विभिन्न स्थानों से पानी के सभी 11 नमूने, जिसमें कृषि भवन और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के घर भी शामिल हैं, फेल हो गये।

सर्वे को लेकर मोहनिया ने कहा कि इस संदेह का कारण यह है कि एक तरफ पासवान ने डीजेबी पर गंदे पानी की आपूर्ति करने का आरोप लगाया, और दूसरी ओर भाजपा शासित हरियाणा से दूषित पानी की आपूर्ति की गयी। दिल्ली में पानी की आपूर्ति हमेशा एक किसी न किसी विवाद से जुड़ी रही है। कुछ समय पहले हरियाणा की मुनक नहर से दिल्ली तक पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक निगरानी समिति का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायाधीश इंदरमीत कौर ने की थी। उच्च न्यायालय ने दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को निरीक्षण दल में सम्बन्धित विभागों से तीन और व्यक्तियों को नियुक्त करने का भी निर्देश दिया था। यह विचार उन कमियों और चुनौतियों को उजागर करने के लिए था, जो दिल्ली को पर्याप्त पानी की आपूर्ति को रोकती हैं और यह भी कि क्या हरियाणा जानबूझकर पानी को रोकता है। दिल्ली सरकार ने हरियाणा पर आरोप लगाया था कि वह दिल्ली को उसके हिस्से के हिसाब से पानी जारी नहीं कर रहा, जबकि हरियाणा का कहना था कि वे स्वीकृत 719 क्यूसेक के मुकाबले 1049 क्यूसेक पानी की आपूर्ति कर रहा है। हरियाणा ने अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा कि हमारी दिलचस्पी केवल आम आदमी को पानी उपलब्ध कराने में है।

न्यायालय ने हरियाणा को अपने 2014 के आदेश का पालन करने के लिए कहा, जिसमें राज्य को दिल्ली को पर्याप्त पानी उपलब्ध कराने के लिए कहा गया था। अदालत ने 25 मई को हरियाणा सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि राष्ट्रीय राजधानी में पानी की आपूर्ति बिना किसी बाधा के की जाए। अदालत ने यह तब कहा जब उसे बताया गया कि यमुना नदी पर बाँध बनाये गये हैं और वहाँ कई जगह खनन गतिविधियाँ भी होते हैं। अदालत का आदेश डीजेबी की तरफ से दायर एक याचिका पर आया, जिसमें दिल्ली के लिए पर्याप्त पानी की आपूर्ति की माँग की गयी थी। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि वहाँ (हरियाणा) से दिल्ली तक पानी के प्रवाह में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।

यह निर्देश तब आये जब, दिल्ली के लिए पानी लाने वाली नहरों में बँध डाले गये हैं या नहीं, इसका निरीक्षण करने के लिए उच्च न्यायालय की गठित एक समिति ने पीठ को बताया कि यमुना पर 11 स्थानों पर ऐसे अवरोध पाये गये। समिति, जिसमें उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश इंदरमीत कौर, एमिकस क्यूरी राकेश खन्ना और सेवानिवृत्त अतिरिक्त मुख्य सचिव निवेदिता हरन शामिल थे; ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया था कि बन्ध डालने के अलावा यमुना और इसकी सहयोगी नदी सोम्ब के में बड़े पैमाने पर खनन हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया कि यमुना में पानी के प्रवाह को बन्ध ने बुरी तरह प्रभावित किया है। मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि दिल्ली में वर्तमान में 1,113 एमजीडी की कुल अनुमानित माँग में 200 मिलियन गैलन प्रति दिन (एमजीडी) की कमी है।

दिल्ली में किरायेदारों की समस्या क्यों नहीं बनती चुनावी मुद्दा?

राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर है। आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के बीच यहाँ त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। पाँच वर्षों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ आम आदमी पार्टी का दावा है कि दिल्ली की जनता मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जनहित से जुड़े कार्यों से काफी खुश है, इसलिए दिल्ली की लगभग सभी सीटों पर पार्टी की जीत तय है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद बिजली और पानी के बिलों को माफ कर दिया गया। इसके अलावा डीटीसी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा का अधिकार दिया गया।

निश्चित रूप से इससे मौज़ूदा सरकार को फायदा मिलने की उम्मीद है। लेकिन आम लोगों की राजनीति करने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से यह पूछा जाना ज़रूरी है कि दिल्ली में नया किराया नियंत्रण कानून आिखर क्यों नहीं है? दिल्ली में लाखों की संख्या में मौज़ूद अनरजिस्टर्ड प्रॉपर्टी डीलरों पर सरकार लगाम क्यों नहीं लगा रही है? आम आदमी पार्टी हो या भाजपा या फिर कांग्रेस उनके चुनावी घोषणा-पत्र में दिल्ली में रहने वाले करोड़ों किरायेदारों से जुड़ी समस्याओं का ज़िक्र नहीं है।

सिर्फ इसी चुनाव में नहीं, बल्कि इससे पहले भी हुए चुनावों में किरायेदारों की समस्याओं पर कहीं कोई चर्चा नहीं सुनी। दरअसल, दिल्ली में प्रॉपर्टी डीलरों पर नकेल और नया किराया नियंत्रण कानून लागू करना राजनीतिक दलों के लिए मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा है। यही वजह है कि दिल्ली में रहने वाले करोड़ों किरायेदार प्रॉपर्टी डीलरों और मकान मालिकों के शोषण से तंग-तबाह हो रहे हैं। लेकिन उनकी चिन्ता किसी सियासी दलों की प्राथमिकता में नहीं है।

किरायेदारों में प्रॉपर्टी डीलरों का खौफ

ज़िन्दगी जीने और सिर छिपाने के लिए एक अदद छत की ज़रूरत होती है, लेकिन अमूमन छोटे शहरों की तरह आसानी से मिलने वाली किराये की छत को दिल्ली में प्रॉपर्टी डीलरों की नज़र लग गयी है। तकरीबन दो दशक पहले तक राजधानी दिल्ली में भी निजी पहचान के ज़रिये अथवा खुद सीधे मकान मालिक से सम्पर्क करके लोग किराये के घर में रहते थे, लेकिन अब यह मुमकिन नहीं है। दिल्ली में किरायेदार और गृहस्वामी के बीच प्रॉपर्टी डीलर नामक एक ऐसा तत्त्व आ गया है, जिसने दोनों के बीच का सम्बन्ध खत्म कर दिया है। प्रॉपर्टी डीलरों का यह जाल राजधानी दिल्ली समेत पूरे एनसीआर में फैल चुका है। अब किसी ज़रूरतमंद को बगैर किसी प्रॉपर्टी डीलर की मनुहार किये मकान नहीं मिल सकता। दिल्ली में कुल नौ जिले हैं। जाहिर है, यहां लाखों लोग किराये के मकान में रहते हैं। पूरी दिल्ली में कई इलाके ऐसे हैं, जहाँ हर वर्ग के लोग रहते हैं। मसलन, दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका, बेर सराय, कटवारिया सराय, हौजखास और मालवीय नगर जैसी कॉलोनियों में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले हज़ारों छात्र-छात्राएँ रहते हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, भारतीय जनसंचार संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे शिक्षण संस्थान यहीं स्थित हैं। इसी तरह प्रशासनिक एवं न्यायिक सेवा परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवा उत्तरी दिल्ली स्थित मुखर्जी नगर, गाँधी विहार, नेहरू विहार, आउट्रम लाइन, हडसन लेन, मॉल रोड, किंग्सवे कैम्प, विजय नगर और हकीकत नगर जैसे इलाकों में रहते हैं। ये इलाके दिल्ली विश्वविद्यालय के नज़दीक हैं, लिहाज़ा बेहतर पढ़ाई की उम्मीद लिए देश के अलग-अलग राज्यों से हर साल हज़ारों छात्र यहाँ आते हैं।

महानगरों का मिजाज़ भी अजीब होता है। यहाँ हर चीज़ किराये की है। कोख, सम्बन्ध और मकान भी। छोटे शहरों से आये किसी आदमी से पूछिए कि दिल्ली में एक अदद मकान ढूँढ पाने का दर्द क्या होता है? मकान मालिक सीधा आपको मकान नहीं देगा; क्योंकि उसे भरोसा नहीं है। मज़बूरन प्रॉपर्टी डीलरों की शरण में जाना पड़ता है। प्रॉपर्टी डीलरों का रवैया कुछ ऐसा है, मानो आप किसी लुटेरे से बात कर रहे हों। तुर्रा यह कि ज़्यादातर प्रॉपर्टी डीलर रजिस्टर्ड नहीं हैं। लूट के इस खेल में सब शामिल हैं। सिवाय उस आम आदमी के, जिसे महानगर में रहने की कीमत चुकानी पड़ती है।

चार्टर्ड एकांउटेंसी एवं बैंकिंग सेवा परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवा और नौकरीपेशा लोग पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर, शकरपुर, पांडव नगर, पटपडग़ंज, विनोद नगर और गणेश नगर में रहते हैं। इसी तरह पश्चिमी दिल्ली के उत्तम नगर, जनकपुरी, नवादा और विकासपुरी जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर रहते हैं। यहाँ हर गली-मोहल्ले में चंद कदमों की दूरी पर ढेरों प्रॉपर्टी डीलरों के साइन बोर्ड दिखेंगे, जिसमें फ्लैट ही फ्लैट और कमरे ही कमरे जैसे स्लोगन लिखे होते हैं। इन इलाकों में प्रॉपर्टी डीलर को कमीशन की मोटी रकम दिये बिना किराये का कमरा खोजना भूसे में सुई ढूँढने जैसा है। मुखर्जी नगर, मुनिरका, बेरसराय, पांडव नगर, लक्ष्मी नगर जैसे इलाकों में, जहाँ छात्रों की बहुतायत है; एक रूम सेट का किराया 8 हज़ार से लेकर 10 हज़ार रुपये के बीच है। इसके अलावा किरायेदार को एक महीने का पूरा कमीशन प्रॉपर्टी डीलर को देना अनिवार्य है। अगर आपको इन इलाकों में किराये का मकान चाहिए तो पहले महीने का पूरा खर्च 12-15 हज़ार रुपये के बीच आयेगा। मुखर्जी नगर में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे रंजीत का कहना है कि पहले इस इलाके में कपड़े पर प्रेस करने वाले और चाय बेचने वाले दुकानदार भी खाली मकानों का ठिकाना बता देते थे; लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यहाँ प्रॉपर्टी डीलरों का खौफ इतना बढ़ चुका है कि ये गरीब लोग चाहते हुए भी छात्रों की मदद नहीं कर पाते। मॉल रोड में रहने वाले छात्र आकाश का कहना है कि यहाँ काफी छोटे कमरे का भी किराया हज़ारों रुपये है। इसी तरह साउथ दिल्ली के मुनिरका में रहने वाले हिमांशु ने बताया कि पाँच साल पहले मुनिरका में प्रॉपर्टी डीलरों का कोई खास दखल नहीं था; लेकिन अब यहाँ भी दर्ज़नों प्रॉपर्टी डीलरों ने अपनी दुकानें सजा रखी हैं। छात्र अमित ने बताया कि यहाँ मकान मालिकों का व्यवहार इस कदर खराब है कि अगर कमरे पर किसी का दोस्त रात में आ जाए, तो उन्हें बेहद नागवार गुज़रता है। कभी-कभी तो मकान मालिक किरायेदार के साथ अभद्र व्यवहार भी करते हैं। दरअसल, यह आपबीती दिल्ली में रहने वाले हज़ारों किरायेदारों की है, जो अपमान सहकर भी कुछ नहीं कह पाते। ज़रा सोचिए उस परिवार के बारे में, जिसकी आमदनी 10 से 15 हज़ार रुपये के बीच है; क्या वह मोटी रकम किराये में देने के बाद कभी अपना घर बना सकता है। यही वजह है कि दिल्ली आने के बाद कई युवा काफी उम्र के बाद शादी करते हैं। कई लोग ऊँची मंज़िल की चाहत में अविवाहित जीवन व्यतीत करने लगते हैं, जबकि कई लोग शादी के बाद अपनी पत्नी को गाँव में रखते हैं। जो ऐसा नहीं कर पाते, वह अपने ख्वाबों को कुचलकर दिल्ली को अलविदा कह देते हैं।

दरअसल, वर्ष 1990 के बाद राजधानी दिल्ली में शिक्षा और रोज़गार के लिए देश के दूसरे शहरों से काफी तादाद में लोगों का आगमन हुआ। यह सिलसिला आज भी जारी है। सवाल यह है कि दिल्ली के हर गली-कूचे में मौज़ूद प्रॉपर्टी डीलरों पर क्या सरकार की कोई नज़र है अथवा नहीं। किरायेदारों को स्थानीय पुलिस थाने में अपना सत्यापन (वेरीफिकेशन) कराना पड़ता है। क्या दिल्ली सरकार और पुलिस ने कभी किराये का मकान दिलाने के नाम पर चाँदी काट रहे किसी प्रॉपर्टी डीलर की कोई जाँच की कि उसने जो दुकान खोल रखी है, क्या वह पंजीकृत है। समूचे दिल्ली में किसी प्रॉपर्टी डीलर के साइन बोर्ड पर अपना कोई रजिस्ट्रेशन नम्बर नहीं दिखेगा। राजधानी के अलग-अलग क्षेत्रों में आज हज़ारों की संख्या में प्रॉपर्टी डीलर अपनी दुकानें चला रहे हैं, जो पंजीकृत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर दिल्ली सरकार इनके लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दे तो उसके राजस्व में भी वृद्धि होगी। दिल्ली सरकार किराया कानून में संशोधन करके उसे जनसुलभ बनाये। आज राजधानी दिल्ली में मकान का किराया सेंसेक्स की तरह छलाँग मार रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें कभी गिरावट नहीं आती, क्योंकि मकान मालिकों और प्रॉपर्टी डीलरों का लालच ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ गया है। वे हर वर्ष किराये में 10 फीसदी की बढ़ोतरी कर रहे हैं। मकान मालिक और किरायेदार के बीच 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट होता है। यह अवधि बीतने के बाद मकान मालिक कोई-न-कोई तरकीब लगाकर मकान खाली करा लेते हैं और उसे ज़्यादा किराये पर चढ़ा देते हैं। प्रवासी किरायेदार कितनी मेहनत से पैसा कमाता है, इससे मकान मालिकों को कोई मतलब नहीं। अपने घर से दूर रहने वाले किरायेदार से मकान मालिक और प्रॉपर्टी डीलर का कोई मानवीय रिश्ता नहीं है, उसे तो केवल हर महीने की सात तारीख तक एकमुश्त किराया चाहिए। अगर किसी किरायेदार की तबीयत खराब हो जाए या किसी महीने उसका हाथ तंग हो तो भी गृहस्वामी उस पर कोई रहम नहीं करते। किसी कारणवश किरायेदार को 2-3 महीने के लिए घर जाना पड़े और इस बीच अगर वह किराया नहीं देता है, तो कई मकान मालिक प्रॉपर्टी डीलर से मिलकर उसका सामान बेचकर किराये की राशि वसूल लेते हैं। ऐसे कई मामले सामने आये हैं। अगर नोएडा एवं आनंद विहार की बात करें, तो यहाँ हालत और भी ज़्यादा खराब हैं।

प्रॉपर्टी डीलरों को राजनीतिक संरक्षण

दिल्ली में प्रॉपर्टी डीलरों की संख्या हज़ारों में है। इसकी सम्भावना बहुत कम है कि दिल्ली सरकार को इनकी वास्तविक संख्या पता हो। साल-दर-साल इनकी संख्या बढ़ रही है, उसी तरह दिल्ली में रहने वाले किरायेदारों की मुसीबतें भी बढ़ रही हैं। गली-मोहल्लों में एक छोटे से कमरे में प्रॉपर्टी डीलिंग का धन्धा करने वाले ज़्यादातर वे लोग हैं, जो दादागीरी के लिए जाने जाते हैं। धीरे-धीरे इनका सम्पर्क राजनीतिक दलों के स्थानीय नेताओं से हो जाता है। नेताओं का संरक्षण मिलने के बाद ये पूरी तरह निरंकुश होकर किरायेदारों के साथ मनमानी करते हैं। इनका खौफ इस कदर है कि कई इलाकों में मकान मालिक बगैर इनसे पूछे किसी को मकान नहीं देते। ये प्रॉपर्टी डीलर लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनावों में नेताओं के लिए बहुत कारगर साबित होते हैं। राजनीतिक पार्टियों के लिए इन प्रॉपर्टी डीलरों की कितनी अहमियत है, इसका अंदाज़ा आप चुनाव के समय लगा सकते हैं, जब इनकी दुकान-घर पर नेताओं का ताँता लगा रहता है।

16,000 करोड़ के घोटाले के तिनके उड़े

देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट समूह माने जाने वाले रिलायंस गु्रप के प्रमुख मुकेश अंबानी ने अपनी सालाना तनख्वाह 15 करोड़ फिक्स कर रखी है। जबकि आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी में काम कर रहे मुख्य निदेशक मुकेश मोदी की बेटी प्रियंका सालाना 24 करोड़ की तनख्वाह उठा रही थी। चींटी और हाथी के बीच चौंकाने वाले प्रतिस्पर्धा के यह अजब-गज़ब आँकड़े थेे? लेकिन किसी की भी पेशानी पर बल क्यों नहीं पड़ा? जहाँ सब्ज़बाग दिखाकर लोगों को रिझाने का खेल चल रहा था? वहंा चेतावनियों का असर होता भी तो कैसे? यह अनूठा कारनामा प्रदेश की आदर्श समेत तीन क्रेडिट सोसायटियों ने ही करके दिखाया। सहकारिता शुरू से ही लोकलुभावन राजनीति का मुख्य िकरदार रहा है। लेकिन 16 हज़ार करोड़ का ‘फ्रॉड’ इसका सबसे बदसूरत चेहरा साबित हुआ। आँख मूँदकर लोगों की बचत हड़पने तथा उनके साथ धोखाधड़ी का मामला न सिर्फ स्थानीय मीडिया में उछला, बल्कि ‘तहलका’ ने भी निवेशकों के दर्द से इत्तेफाक करते हुए रिपोर्ट छापी। बुनियादी शक-शुबहा की तहों को खँगालते हुए एसओजी ने जब इसकी तुरपाई उधेडऩी शुरू की, तो ऐसे चौंकाने वाले खुलासे हुए, जिनमें किसी धारावाहिक से कम नाटकीयता नहीं थी।

एसओजी ने आदर्श नवजीवन और संजीवनी समेत तीन क्रेडिट सोसायटियों के िखलाफ 96 हज़ार पन्नों की चार्जशीट पेश की है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि रिपोर्ट एक ऐसी तिलस्म को तार-तार करती है, जिसमें पूरी तरह मनमानी और िकस्म-िकस्म के घोटालों का संक्रमण रचा-बसा है। इतना ही नहीं, यह सहकारिता के मामले में सरकार का समग्र असफलता कार्ड है और सरकार को ‘धृतराष्ट्र’ का दर्जा देता है। एक बड़े फ्रॉड में जुटे लोगों में इस बात का कतई भय नहीं था कि अगर भेद खुला, तो उनके लिए बड़े जोखिम का सबब बनेगा। गज़ब तो यह है कि सोसायटियों का पूरा तंत्र अपारदर्शिता से लहालोट था। आदर्श क्रेडिट सोसायटी ने आठ साल में 20 लाख लोगों से 14 हज़ार 682 करोड़ निवेश करवाये। मुख्य निदेशक मुकेश मोदी की पत्नी मीनाक्षी और बेटी प्रियंका के खातों में बतौर वेतन-कमीशन के 795 करोड़ रुपये ट्रांसफर हुए। पूरे परिवार की बात करें, तो 990 करोड़ रुपये आपस में बाँट लिये गये। एसओजी की अपराध शाखा के प्रमुख सत्यपाल मिड्ढा इसे चिन्ताजनक बताते हुए कहते हैं कि निदेशक उसकी पत्नी और बेटी ने आपस में 795 करोड़ रुपये रेवडिय़ों की तरह बाँट लिए। सहकारिता के बधाई गीत गाते हुए 45 फर्ज़ी कम्पनियाँ बना ली गयी। सूत्र कहते हैं कि आिखर ऐसा कैसे हुआ कि सिस्टम को भनक तक नहीं हुई? क्या पूरा सिस्टम एडिय़ाँ रगड़ रहा था? किसी ने सोचा तक नहीं कि छोटे निवेशक मार खा जाएँगे। आदर्श क्रेडिट सोसायटी ने प्रदेश से बाहर भी छलाँग लगायी और 28 राज्यों में 806 शाखाएँ खोलीं। इनमें 309 शाखाएँ तो राजस्थान में ही थीं। लोगों को सपने दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं रखी गयी कि आपकी निवेश की गयी रकम कम्पनियों तथा अन्य रसूखदार लोगों को 22 प्रतिशत की ऊँची ब्याज दरों पर बतौर कर्ज़ दी जा रही है। फर्ज़ी कम्पनियों के चेहरे भी अपने ही नाते-रिश्तेदारों और कुनबों के लोगों के थे। लेकिन सोसायटी में निवेश की गयी रकम बतौर कथित कर्ज़ इन्हीं फर्ज़ी कम्पनियों को दे दी गयी। जबकि इन्हें डिपॉजिट जुटाने की छूट भी नहीं थी और ये पराये निवेश से उधार देने का धन्धा कर रही थी। यह रकम 12 हज़ार 414 करोड़ बतायी गयी है। सोसायटी के संचालकों ने सर्वशक्तिमान बनते हुए निवेशकों की रकम से अपने लिए कम्पनियाँ भी खरीद लीं। अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को दे की तर्ज पर फर्ज़ी कम्पनियों को कर्ज़ देने में  बिचौलियों की तस्वीर भी उकेरी गयी। इन्हें दो करोड़ तक का कमीशन बाँट दिया गया। एसओजी की पड़ताल में  बिचोलिये भी अपने ही निकले। किसी ने नहीं पूछा कि कर्ज़ लेने वाली कम्पनियाँ? देने वाली सोसायटी और कमीशनखोर बिचोलिये, सब अपने ही क्यों थे? ऐसी खामियाँ फौरन ऑडिट में पकड़ में आ सकती है। लेकिन ऑडिट अन्धा निकला और आयकर महकमा बेखबर; जबकि ऑडिट और आयकर महकमों को सूचनाएँ तलब करने का अधिकार था। संजीवनी क्रेडिट सोसायटी ने लोगों से निवेश के नाम पर 11,00 करोड़ रुपये ठगे। आँख मूँदकर भरोसा करने वाले निवेशकों को यह कहकर अँधेरे में रखा गया कि यह रकम ऊँची ब्याज दरों पर कम्पनियों को दी गयी है। इसके फर्ज़ी दस्तावेज़ भी तैयार कर लिये गये। लेकिन जब एसओजी ने रिकॉर्ड तलब किया, तो कागज़ात 30 लाख के ही पेश कर पाये। संजीवनी क्रेडिट सोसायटी की शुरुआत 2007 में बाड़मेर में हुई थी। इसके संस्थापक विक्रम सिंह को सितंबर, 2019 में गिरफ्तार कर लिया गया था। संजीवनी सोसायटी ने सौ कम्पनियों को कर्ज़ देना दिखाया। लेकिन एसओजी को एक भी कम्पनी का अस्तित्व नज़र नहीं आया। निवेशकों ने जब कभी पूछताछ की, तो उन्हें सभी कथित कम्पनियों के मुनाफे और डिविडेंट के फर्ज़ी कागज़ दिखाकर चुप कर दिया गया। तीनों ही सोसायटियों ने अनाप-शनाप गिफ्ट देने का खेल भी रचा। नवजीवन सोसायटी ने तो फर्ज़ी कर्ज़ बाँटने का एक नया रिकॉर्ड कायम कर दिया। सोसायटी ने कागज़ों की लिखा-पढ़ी दिखाने की बजाय निवेशकों को कह दिया कि सारा कर्ज़ सॉफ्टवेयर के ज़रिये बाँटा जा रहा है। सॉफ्टवेयर में ऐसे कथित लोगों के नाम पते और दी गयी रकम तो दर्ज है, लेकिन एसओजी की खोजबीन में एक आदमी भी ढूँढे नहीं मिला।

सवाल है कि चोर पूरी तरह मुखर होकर निवेशकों के भरोसे और रकम पर सेंध लगा रहे थे। सभी सूचनाएँ गलत भरी जा रही थी। कायदे-कानून का जमकर उलंघन हो रहा था। फिर सरकार क्या कर रही थी? सहकारिता महकमा कुम्भकर्णी नींद कैसे सोया हुआ था? आम आदमी के एक लाख के ऊपर के ट्रांजेक्शन पर नज़र रखने वाले आयकर महकमे को दो-दो करोड़ का लेन-देन क्यों नहीं खटका? जानकार कह रहे हैं कि ऊपर से नीचे तक का खेल बिना तालमेल के सम्भव ही नहीं था। एसओजी ने अपनी चार्जशीट में बेशक इन सवालों को चौड़ा नहीं किया लेकिन अप्रत्यक्ष संकेत में कह दिया कि ज़रूर इन सोसायटियों में कई रसूखदारों का कालाधन लगा था। इतना ही नहीं, सहकारी महकमे के अफसरों ने भी इन सोसायटियों में गहरी पैठ बनायी हुई थी। जब भी फर्ज़ीवाड़ा खुलने लगता रसूखदार पोल खुलने के डर से निवेशकों को खामोश रखने की कोशिश करते। यहाँ तक कि निवेशकों की आवाज़ दबाने की भी कोशिश करते। एसओजी का कहना है कि इनकम टैक्स एक्ट की धारा-80 (पी) में क्रेडिट सोसायटियों को छूट मिली हुई है। नतीजतन मुनाफे पर टैक्स नहीं लगता। इसी का फायदा उठाकर सोसायटियों ने सालाना हिसाब-किताब में जमकर घालमेल किया। इस पूरे मामले में शायद बदिकस्मती निवेशकों का शुरू से ही पीछाकर रही थी।

वर्ष 2010 में आयकर महकमे ने आदर्श सोसायटी पर छापामारी भी की थी। काफी कुछ गड़बडिय़ाँ भी उजागर हुईं। लेकिन इस मामले में शिकायत-दर-शिकायत के बावजूद सहकारिता महकमे के रजिस्ट्रार कुछ करने को तैयार ही नहीं हुए। इन सोसायटियों का ऑडिट भी हुआ। लेकिन यह सिर्फ दिखावा भर था। अगर ऑडिट में औपचारिकता नहीं बरती ही गयी होती, तो क्या इतनी मोटी रकमों की लुकाछिपी का खेल अदृश्य रह सकता था? आदर्श सोसायटी ने गुजरात को भी अपना केंद्र बनाने की कोशिश की थी। लेकिन वहाँ की सरकार ने लाइसेंस देने से इन्कार कर दिया। अलबत्ता मध्य प्रदेश में ज़रूर अपना जाल फैलाने में कामयाब हो गये। घोटाले का इतना बड़ा बवंडर उठा और उसके तिनके इस तरह से उड़े, तो अब सरकार सतर्क होती नज़र आयी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बड़ा फैसला करते हुए  बचत एवं निवेश फ्रॉड कंट्रोल यूनिट का गठन करने के आदेश दिये हैं। यह यूनिट एसओजी की निगरानी में काम करेगी। घोटालेबाज़ों के गिरफ्त में आने के बाद लुटे-पिटे निवेशकों के चेहरों पर रोनक नज़र आती है कि शायद उन्हें उनकी डूबी हुई रकम मिल जाए?

नये घोटाले की नींव

पिछले 10 साल से चल रहे सिलसिले की बात करें तो, सरकार हर वित्तीय वर्ष में अपेक्स बैंक के माध्यम से ऋणी काश्तकारों के लिए जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा करवाती आयी है। लेकिन मौज़ूदा वित्तीय वर्ष में अभी तक दोनों ही बीमा नहीं करवाये गये हैं। वजह अपेक्स बैंक की ओर से दो बार निविदाएँ निकाले जाने के बावजूद किसी बीमा कम्पनी ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। वरिष्ठ पत्रकार सौरभ भट्ट कहते हैं कि प्रदेश में सहकारी बैंकों ने ऋणी किसानों के बीमा के नाम पर बड़े घोटाले की नींव रख दी गयी है। जिस तरह बीमा के लिए चहेते सलाहकार को तैनात करने और उसी के नाम पर बीमा कम्पनियों को बुलाने के लिए टेंडर की शर्तों में फेरबदल किया गया है? घोटाले की मुश्क छिपाये नहीं छिपती। किसानों की बीमा योजना को लेकर सरकार की मंशा पर इसी बात से उँगलियाँ उठ जाती हैं कि सहकारिता महकमे द्वारा इस फाइल के चलाने का क्या मतलब है कि बीमा कम्पनियों को बुलाने के लिए एक बीमा सलाहकार की तैनाती की जाए। सरकार के कहने पर अपेक्स बैंक ने 22 नवंबर को सलाहकार के लिए निविदाएँ आमंत्रित कीं और 20 दिसंबर को मुम्बई की ग्रो वेल्यू कम्पनी को सलाहकार नियुक्त भी कर लिया। शक-शुबहा की हवाबाज़ी इस बात को लेकर चली कि जब सलाहकार के लिए निविदाएँ आमंत्रित कीं, तो उसकी पहली शर्त थी कि सलाहकार का कार्यालय जयपुर में होना चाहिए। लेकिन ग्रो वेल्यू का मुख्यालय तो मुम्बई में है। गौर करने वाली बात है कि यह एक ब्रोकरेज फर्म है, जबकि अपेक्स बैंक ने इसे सलाहकार के नाम पर नियुक्ति दी है। निविदा की एक अहम शर्त सलाहकार आईआरडीए से मान्यता प्राप्त होना चाहिए, जबकि आईआरडीए में सलाहकार को मान्यता देेने का कोई प्रावधान ही नहीं है। आईआरडीए तो सिर्फ ब्रोकर को मान्यता देती है। अब जबकि सलाहकार के लिए कोई फीस तय नहीं की गयी है, तो ज़ाहिर है कि कम्पनी कमीशन पर काम करेगी। किसानों से बीमा कम्पनियों द्वारा वसूले गये प्रीमियम से इसकी वसूली होगी। सरकारी कम्पनियाँ ब्रोकर को 15 फीसदी तक कमीशन देती हैं। यानी किसानों का बीमा 100 करोड़ का हुआ, तो 15 करोड़ का कमीशन तो हो ही गया। अपेक्स बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर इंदर सिंह कहते हें कि सलाहकार नियुक्त करने का निर्णय राज्य सरकार के स्तर पर किया गया है। यह निर्णय किसानों के पुराने दावों के तय नहीं होने और भविष्य में कोई परेशानी न आये इसलिए किया गया है।

गोरक्षा के नाम पर लुट गये किसान

गोरक्षा के नाम पर लोगों को मारने-पीटने का सिलसिला भले ही थम-सा गया हो, लेकिन गोपालक किसानों की दुर्दशा हो चुकी है, जिस पर कोई भी सरकार ध्यान नहीं दे रही है। दरअसल, जबसे गोतस्करों और गोपालकों को यह अहसास हो गया है कि अगर वे गाय या गोवंश को लेकर कहीं जाएँगे, उन पर हमला हो सकता है; चाहे उनका मकसद अच्छा ही क्यों न हो, तबसे उन्होंने गायों को खरीदकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाना बन्द कर दिया है। यही कारण है कि गायों और गोवंश का बाज़ार बिल्कुल ठंडा पड़ चुका है। स्थिति यहाँ तक पहुँच गयी है कि जिस गाय की कीमत 40 से 50 हज़ार रुपये होती थी, वह वह चार-पाँच हज़ार की भी कोई लेने को तैयार नहीं होता। जबकि इसके विपरीत गोमांस का निर्यात भारत से कम नहीं हुआ है। इस मामले में तहलका संवाददाता ने कुछ किसानों तथा कसाइयों से बातचीत की, तो बड़ी दयनीय स्थिति सामने आयी।

साहब, डर से छोड़ दिया गाय पालना

सुलेमान बरेली के एक छोटे से गाँव में रहते हैं। सुलेमान बताते हैं कि उनकी तीन बीघा ज़मीन है, यही ज़मीन उनके परिवार का सहारा है। इस छोटी सी ज़मीन पर खेती से उनकी इतनी आय नहीं होती कि वे अपना परिवार चला सकें, इसी के लिए वे करीब पिछले पाँच साल से गाय पालते थे, लेकिन पिछले साल से उन्होंने गाय पालना बन्द कर दिया है। सुलेमान कहते हैं- ‘साहब, गाय को तो हम भी माता की तरह मानते हैं और कई साल हमने गाय का घी-दूध खाया-पीया और बेचा है। भैंस पालने की अपनी औकात नहीं है। गाय सस्ते में पल जाती थी। हम गरीब आदमी हैं, आय का कोई संसाधन नहीं है। पहली बार हम एक बछिया (गाय का मादा बच्चा) लाये थे। जब वह बड़ी हो गयी, तो उसका दूध भी खाया और उसके बच्चों को भी बड़ा होते देखा। उसी गाय के वंश से हमारे घर में बरकत आयी थी। हमने दूध देती और हरी (गाबिन) गायों को 20 से 25 हज़ार तक में बेचा और खरीदा था। लेकिन कुछ साल पहले गाय ले जाने वालों की पिटाई होती देखकर, पढक़र अपने घर की गायों को पानी के भाव (बहुत सस्ते में) बेच दिया। अब हमने डर से गाय पालना छोड़ दिया है।’ पहले यह डर नहीं था कि कहीं से गाय खरीदकर लाएँगे या गाय को बेचने जाएँगे, तो कोई बिना कुछ पूछे मारने लगेगा। यह पूछने पर कि आपको किसी ने कभी मारा या धमकाया? सुलेमान बताते हैं कि नहीं, हमें तो किसी ने न मारा और न धमकाया; पर आततायियों का क्या भरोसा कि कब किसी पर भी हमला कर दें? यही नहीं तहलका संवाददाता ने पड़ताल में पाया कि कई हिन्दू परिवार भी गाय पालना बन्द कर चुके हैं। वहीं आबिद नाम के एक छोटे से किसान के घर में आज भी कई गाय हैं। वे कहते हैं कि हम तो घी-दूध खाने के लिए गाय पालते हैं। थोड़ा-बहुत दूध बेच भी देते हैं। यह पूछने पर कि क्या गायों की कीमत कम हुई है? आबिद कहते हैं कि कीमत तो बहुत कम हो गयी है। लेकिन क्या करें, घी-दूध के लिए पशु तो पालने ही पड़ते हैं।

25 हज़ार की गाय बेची 5,000 में

हरिओम नाम के एक किसान के पास इन दिनों तीन-चार गायें हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पैदाइश से पहले से ही उनके खानदान में सिर्फ गायों को पाला जाता है। आज भी वे गायों को पालते हैं। हरिओम ने बताया कि गायों की कीमत इतनी गिर गयी है कि अब उनका भी मन ऊब सा गया है। लेकिन वे सोचते हैं कि क्या पता इन गायों की वजह से ही उनके घर में बरकत रहती हो। हरिओम ने बताया कि वे 2013 में पहलोठा छुटिया (नयी गाय) 25 हज़ार रुपये की लाये थे, पिछले साल जब वह 20-22 लीटर दूध दे रही थी, उनके घर में बीमारी के चलते कुछ पैसे की ज़रूरत पड़ गयी। उन्होंने कई पशु-बाज़ारों में उसे बेचने की कोशिश की, पर किसी ने उसे खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखायी। आिखरकार परेशान होकर उन्हें एक पड़ोसी गाँव के किसान के हाथों उस गाय को केवल 5000 रुपये में बेचना पड़ा। हरिओम कहते हैं कि अगर पहले के हिसाब से भी उनकी गाय बिकती, तो भी वह 20-22 हज़ार से बिल्कुल कम की नहीं बिकती।

खेती का भी हो रहा नुकसान

किसानों को सिर्फ गायों की कीमत गिरने से ही नुकसान नहीं हो रहा है, बल्कि उनकी खेती भी नष्ट हो रही है। गायों की कीमत गिर जाने से किसान दुर्बल और बूढ़ी गायों और गोवंश यानी बैलों को जंगल में छोड़ रहे हैं। ऐसे में साँडों की संख्या बढ़ रही है, जो कि खेतों में खड़ी फसल को नुकसान पहुँचा रहे हैं। हमारे देश में किसानों की फसलें नष्ट करने के लिए पहले से ही नील गायें कम नहीं थीं, अब पालतू गायों और गोवंश को मजबूरन छोडऩे से साँडों और गायों ने भी खेती को नुकसान पहुँचाना शुरू कर दिया है। बलदेव नाम के एक किसान बताते हैं कि उनकी सात बीघा गन्ने की फसल के अंदर रात को पशु आकर बैठने लगे, जिसका उन्हें पता तक नहीं चला। जब वे गन्ना छीलने (गन्ने की फसल काटने) लगे, तो खेत के बीचोंबीच (अन्दर) दो से तीन बीघा गन्ना उन्हें पूरी तरह नष्ट मिला। बलदेव ने बताया कि इतने खेत का गन्ना कम-से-कम 40-50 हज़ार का होता।

गायों के नाम पर खूब हुई है मॉब लिंचिंग

सभी जानते हैं कि 2014 से 2018 तक गायों के नाम पर पूरे देश में जमकर मॉब लिंचिंग के मामले सामने आये हैं। तथाकथित गोरक्षकों ने गाय की रक्षा के नाम पर उन लोगों को जमकर पीटा, जो गायों को ले जाते दिखे। इनमें कइयों की जान भी चली गयी। गायों की तस्करी के नाम पर तथाकथित गोरक्षकों ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोगों को पीटा। मॉब लिंचिंग पर यहाँ तक हुआ कि सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देनी पड़ी। मॉब लिंचिंग के मामले गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और दूसरे कुछ राज्यों में खूब सामने आये। यह मामला संसद में भी खूब गूँजा और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सरकार को गोरक्षकों के िखलाफ कार्रवाई की चेतावनी देनी पड़ी।

गोशालाओं में भी गायों की दुर्दशा

जिस समय देश भर में गोरक्षा का शोर ज़ोर-शोर से चल रहा था, उस समय गोशालाओं का भी एक दृश्य सामने आ रहा था। बहुत-सी गोशालाओं की दशा पर अखबारों में खबरें आने लगीं थीं, जिसमें पाया गया कि गोशालाओं में न केवल गायों की दुर्दशा हो रही है, बल्कि कई गोशालाओं में गायें और गोवंश भूख से मर रहे हैं। यहाँ तक कि कई गोशालाओं में तो एक साथ दर्जनों गायों के मरने की खबरें भी अखबारों की सुर्खियाँ बनीं। दु:खद बात यह है कि उन गोशालाओं में भी गायों और गोवंश की दुर्दशा देखी गयी, जो तथाकथित गोरक्षक हिन्दू संगठनों या मठाधीशों की निगरानी में चल रही हैं। इसके कुछ उदाहरण भी दिये जा सकते हैं। जैसे प्रयागराज के कांदी गाँव की गोशाला में कुछ ही साल पहले बरसात के दिनों में दलदल में फँसकर 35 से अधिक गायों की मौत हो गयी थी, जिन्हें जेसीबी मशीन की मदद से गोशाला के आसपास ही आनन-फानन में दफना दिया गया। लेकिन यह खबर किसी तरह मीडिया तक पहुँच गयी और गोरक्षकों की भत्र्सना के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन पर उँगलियाँ उठीं। बाद में गायों की मौत की उच्च स्तरीय जाँच के सरकार को आदेश जारी करने पड़े।

करोड़ों के बजट से भी नहीं आये गायों के अच्छे दिन

वर्तमान का राज्य सरकारें हों या फिर केंद्र सरकार, गोरक्षा के नाम पर न तो गायों की दशा सुधरी और न ही गोमांस के निर्यात में कोई कमी आयी। केंद्र और राज्यों में गोरक्षा के वादे के साथ सरकारों ने चुनाव में बढ़त भले ही हासिल की थी, लेकिन इससे किसानों को बड़ा नुकसान हुआ है। इतना ही नहीं, गायों की दशा सुधारने के नाम पर केंद्र और राज्यों में करोड़ों रुपये के बजट पास हुए फिर भी गायों के अच्छे दिन नहीं आये। मौज़ूदा दौर में भी गायों की असमय मौत, दर्दनाक मौत और गोशालाओं में गायों और गोवंश की दुर्दशा आम बात है। दु:ख इस बात का है कि इस मूक पशु को धार्मिकता के नाम पर माता कहकर वोट बैंक के लिए भले ही इस्तेमाल किया जा रहा हो, मगर इसकी दशा पहले से भी बदतर हुई है। अफसोस इस बात का है कि आज के दौर में जब गाय का मूत्र तक महँगे दामों में बिक रहा है, तब गाय की यह दुर्दशा उस देश में हो रही है, जहाँ उसे माता का दर्जा दिया जाता है।

गाय पालन को देना चाहिए था बढ़ावा

पशुओं के डॉक्टर रूमसिंह कहते हैं कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को गाय पालन के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए था। इससे न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक होती, बल्कि गायों की दशा भी अच्छी होती। रूमसिंह कहते हैं कि गाय तो फायदे का पशु है, उसकी रक्षा के नाम पर देश भर में की गयी मारपीट ठीक नहीं थी। अगर सरकार को गाय से इतना ही प्यार है, तो गोमांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। रूम सिंह कहते हैं कि गाय का गोबर, गोमूत्र, दूध, घी, मट्ठा (छाछ), दही सब बड़े काम के होते हैं। सरकार को चाहिए कि गाय पालन को बढ़ावा दे, ताकि किसानों की दशा में सुधार हो सके।

योगी सरकार के वादे का इंतज़ार

जुलाई, 2019 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की थी कि प्रदेश में निराश्रित गायों को पालने वालों को प्रति गाय 900 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से सरकार देगी। इस मामले में किसानों से फार्म भी भरवा लिये गये हैं, लेकिन किसी को एक पैसा भी नहीं दिया गया है। तहलका संवाददाता ने कई ऐसे गोपालकों से बातचीत की, जिनसे एक गाय के पालन-पोषण के लिए 900 रुपये प्रति माह मिलने के वादे के साथ फार्म भरवा लिये गये हैं। सभी ने यही बताया कि उन्हें कोई पैसा अभी तक नहीं मिला है। इस मामले में प्रेमपाल नाम के एक गोपालक कहते हैं कि उनके पास पाँच गायें हैं और तीन गायों के बच्चे। वह कहते हैं कि अभी तक तो उन्हें कोई पैसा मिला नहीं है। यह पैसा अगर अगर सरकार की तरफ से मिलता भी है, तो भी 900 रुपये महीने में एक गाय नहीं पल सकती, यह पैसा बहुत कम होगा। हालाँकि यह किसानों की अपनी सोच और आस है कि उन्हें एक गाय या एक गोवंश के पालन पर 900 रुपये प्रति माह मिलेंगे या मिल सकते हैं या मिलने चाहिए। यहाँ बता दें कि योगी आदित्यनाथ ने निराश्रित गायों या गोवंश के पालन पर 900 रुपये प्रति पशु प्रति माह देने को कहा था। यह अलग बात है कि यह राशि अभी तक किसी ऐसे व्यक्ति को भी नहीं मिली है, जो निराश्रित गायों या गोवंश को पालते हैं अथवा पाल रहे हैं।

अमेरिका में गर्भवती महिलाओं के वीज़ा पर पाबंदी के मायने

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार ने गर्भवती महिलाओं को वीज़ा जारी करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इस प्रतिबन्ध के तहत ऐसी महिलाएँ प्रतिबन्धित रहेंगी, जो अमेरिका में बच्चे को जन्म दे सकती हैं या फिर जानबूझकर अमेरिका जाकर बच्चों को जन्म देना चाहती हैं। अमेरिका में गर्भवती महिलाओं पर इस प्रतिबन्ध के मायने क्या हैं। इसका मुख्य कारण अमेरिकी अधिकारियों ने अमेरिका में पैदा होने वाले बच्चों को अमेरिकी नागरिकता यानी पैदा होने वाले बच्चों को अमेरिकी पासपोर्ट मिलने की कोशिश को नाकाम करना बताया है। अब नये नियमों के आधार पर गर्भवती महिलाओं के लिए पर्यटन वीज़ा भी नहीं दिया जाएगा। इस नियम की मानें तो गर्भवती महिलाओं को वीज़ा प्राप्त करने के लिए काउंसलर अधिकारी अथवा अधिकारियों को बताना होगा कि अमेरिका आने के लिए उनके पास कोई दूसरा वाजिब अथवा अति आवश्यक कारण है। इस नये अमेरिकी कानून में कहा गया है कि अमेरिका में बच्चों को जन्म देने के लिए हर साल भारी संख्या में महिलाएँ आती हैं और यहाँ बच्चों को जन्म देकर बड़ी आसानी से वीज़ा अवधि बढ़वा लेती हैं, साथ ही यहाँ पैदा हुए बच्चों को अमेरिकी नागरिता दिलाने में कामयाब भी हो जाती हैं। विदित हो कि ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी सरकार ने इमीग्रेशन के सभी प्रारूपों पर बंदिशें लगाने के साथ-साथ जन्मजात नागरिकता के इस मुद्दे पर एकदम सख्त रुख अपना लिया है।

अमेरिकी अधिकारियों की मानें तो इस वीज़ा को खत्म करने का मकसद गैर-अमेरिकी नागरिकों के बच्चों को अमेरिका में जन्म लेने के साथ मिलने वाली नागरिकता के अधिकार को खत्म करना है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सभी देशों की तुलना में रूस और चीन से बहुतायत की संख्या में महिलाएँ अमेरिका पहुँचकर अपने बच्चों को जन्म देती हैं, ताकि उन बच्चों को बिना किसी झंझट के अमेरिकी नागरिकता मिल सके। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता स्टेफनी ग्रीशम के मुताबिक, अमेरिका की पहली प्राथमिकता है कि वह अपने नागरिकों की अखंडता को सुरक्षित करे। उन्होंने कहा है कि अब अस्थायी बी-1 और बी-2 यात्री वीज़ा को बर्थ टूरिज्म (बच्चों को जन्म देने या जन्म देने की सम्भावना) के लिए जारी नहीं किया जाएगा। उन्होंने बताया है कि बर्थ टूरिज्म के ज़रिये विदेशी गर्भवती महिलाएँ अमेरिका आ जाती हैं और यहाँ आकर बच्चों को जन्म देती हैं, जिससे नवजात की नागरिकता अमेरिका की हो जाती है। यह हमारे अमेरिकी कानून की एक काफी बड़ी खामी थी, जिसे अब दूर किया गया है। ग्रीशम की मानें तो बर्थ टूरिज्म इंडस्ट्री से अस्पतालों की सुविधाओं पर भी खराब असर पड़ रहा था। इसके अलावा अमेरिका में आपराधिक गतिविधियाँ बढ़ रही थीं। उन्होंने कहा है कि गर्भवती विदेशी महिलाओं की अमेरिका यात्रा प्रतिबन्धित होने से न केवल राष्ट्रीय हित सुरक्षित होगा, बल्कि अमेरिकी करदाताओं की मेहनत का पैसा केवल मूल अमेरिकी लोगों के ही काम आयेगा।

अमेरिका के पास नहीं ब्यौरा

यूँ तो अमेरिकी प्रशासन ने बाहरी गर्भवती महिलाओं की अमेरिका जाने वाली महिलाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया, लेकिन सच तो यह है कि अमेरिका के पास यह आँकड़े नहीं हैं कि कितनी विदेशी महिलाएँ अमेरिका पहुँचकर बच्चों को जन्म देती हैं। न ही अमेरिका को यह पता है कि हर साल कितनी विदेशी महिलाएँ बाहर से गर्भवती होकर आती हैं और अमेरिका में आकर उनमें से कितनी बच्चों को जन्म देती हैं। इस मामले में अगर कड़े आप्रवासन नियमों के समर्थक ग्रुप सेंटर फॉर इमीग्रेशन स्टडीज (सीआईएस) की मानें, तो सन् 2012 में तकरीबन 36,000 ऐसी विदेशी महिलाएँ अमेरिका आयीं, जिन्होंने यहीं अपने बच्चों को जन्म दिया। हालाँकि, इस ग्रुप ने यह भी कहा है कि यह महिलाएँ वापस अपने देश भी चली गयीं।

क्या है अमेरिका का मकसद

भारतीय विदेश नीति के विशेषज्ञों की मानें तो अमेरिका ने यह कदम इसलिए उठाया है, ताकि अमेरिकियों को किसी तरह की दिक्कतों का सामना करना न पड़े। इन दिक्कतों में अमेरिका में बढ़ती जनसंख्या के अतिरिक्त वहाँ के नागरिकों को मिलने वाली सुविधाओं का बंदरबाँट होना भी बताया जा रहा है। अमेरिकी सरकार का मानना है कि यदि इसी तरह लगातार बाहरी लोगों के बच्चों को अमेरिकी नागरिकता मिलती रही, तो अमेरिकी लोगों को जनसंख्या वृद्धि की समस्याओं से जूझना पड़ेगा, जिसके भविष्य में गम्भीर परिणाम हो सकते हैं। विशेषज्ञों की मानें, तो अमेरिका की वीज़ा नीति काफी कठिन है और उससे भी कठिन है अमेरिकी नागरिकता हासिल करना। लेकिन किसी बच्चे के वहाँ जन्म होने पर नवजात को आसानी से नागरिकता मिल जाती है, जिससे अमेरिका की जनसंख्या में और अधिक वृद्धि होती है। इससे ज़ाहिर तौर पर वहाँ के जनसामान्य के लिए आवंटित बजट का वहाँ के मूल नागरिकों को पूरा फायदा नहीं मिल पाता है। साथ ही अस्पतालों पर खर्च का अतिरिक्त भार सरकार पर पड़ता है।

बर्थ टूरिज्म की बढ़ रही माँग

सीआईएस की मानें तो बर्थ टूरिज्म वीज़ा की माँग तेज़ी से बढ़ रही है। इसके चलते बर्थ टूरिज्म  अमेरिका और अन्य विकसित देशों में खूब फल-फूल रहा है। सूत्र बताते हैं कि अमेरिकी कम्पनियाँ भी इसमें इज़ाफा करती हैं, क्योंकि वे इसके लिए विज्ञापन जारी करती हैं। क्योंकि उन्हें एक वीज़ा पर होटल में ठहरने और चिकित्सा सुविधा आदि के लिए 80,000 डॉलर तक की आय होती है। इस तरह हर साल इन कम्पनियों को एक बड़ी राशि बर्थ टूरिज्म के ज़रिये प्राप्त होती है। माना जा रहा है कि अमेरिकी सरकार के इस कड़े कदम से इन कम्पनियों को एक बड़ा झटका लगा है।

एक मुश्त देने होते हैं 80,000 डॉलर

बताया जाता है कि अमेरिका में बर्थ टूरिजम के लिए वीज़ा पर एक मुश्त तकरीबन 80,000 डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। यह पैसा अमेरिकी टूरिज्म कम्पनियाँ लेती हैं और इसके बदले होटल में कमरा दिलाने के अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं को चिकित्सा सुविधा आदि मुहैया कराती हैं। 80,000 डॉलर में कम्पनियों को मोटा मुनाफा होता है। इसके अतिरिक्त वीज़ा लेने वाली महिलाओं को एक मोटी राशि अलग से खर्च करनी पड़ती है। सूत्रों की मानें तो हर साल हज़ारों महिलाएँ सिर्फ बच्चों को जन्म देने के लिए यह राशि खर्च करती हैं, ताकि उनके बच्चों को अमेरिकी नागरिकता मिल सके।

जन्म दिलाने के लिए एक लाख डॉलर तक की वसूली

अमेरिकी अधिकारियों की मानें, तो ‘बी’ वीज़ा के ज़रिये महिलाएँ अमेरिका पहुँचकर हर साल हज़ारों बच्चों को जन्म देती हैं और इसकी संख्या लगातार बढ़ रही है। सेंटर फॉर इमीग्रेशन स्टडीज के अनुसार, 2016 के मध्य से लेकर 2017 के मध्य तक बर्थ वीज़ा के ज़रिये 33 हज़ार बच्चों का जन्म हुआ। अमेरिका में वार्षिक जन्म दर 30 लाख 80 हजार बच्चों की है। विदेश विभाग के मुताबिक, अमेरिका धरती पर बच्चों को जन्म दिलाने के लिए ऑपरेटर एक महिला से 1 लाख डॉलर (71 लाख रुपये से अधिक) वसूलते थे।

कठिन होगा टूरिज्म वीज़ा पर यात्रा करना

व्हाइट हाउस के सूत्रों की मानें तो बर्थ टूरिज्म के नये नियम से गर्भवती महिलाओं के लिए टूरिस्ट वीज़ा पर यात्रा करना अब काफी कठिन काम होगा। नये कानून के अनुसार, विदेश से अमेरिका आने वाली गर्भवती महिलाओं को टूरिज्म वीज़ा हासिल करने के लिए बच्चे को जन्म न देने के मकसद को स्पष्ट करने के साथ-साथ काउंसलर अधिकारी या अधिकारियों को यात्रा के वे कारण बताने होंगे, जो बिल्कुल सत्य हों और प्रसव के मकसद से जुड़े न हों। यानी गर्भकाल के दौरान वीज़ा पर अमेरिका जाने के लिए गर्भवती महिला के पास प्रसव को छोडक़र कोई दूसरी वाजिब और अहम वजह होनी चाहिए। इसी वजह से ट्रम्प प्रशासन ने शुरुआत से ही इमीग्रेशन के सभी प्रारूपों पर बंदिश लगा रहा है और अब राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने जन्मजात नागरिकता के मुद्दे पर यह कड़ा रुख अपनाया है। इसका मकसद गैर-अमेरिकी नागरिकों के बच्चों को अमेरिका में जन्म लेने के साथ मिलने वाली नागरिकता के अधिकार को खत्म करना है, ताकि अमेरिका की जनसंख्या को भी बेतरतीब बढऩे से रोका जा सका।

अमेरिकी सरकार को भी होगा नुकसान

विदेश यात्राओं में लगातार मशरूफ रहने वाले लाल मोहम्मद कहते हैं कि हालाँकि, बर्थ टूरिज्म पर पाबंदी से टूरिज्म के ज़रिये होने वाली आय में कमी आएगी, जिससे अमेरिकी सरकार को भी काफी घाटा होगा। लेकिन यह भी है कि अमेरिकी सरकार ने बड़े मुनाफे और भविष्य की सुरक्षा के लिए इस थोड़े-थोड़े मुनाफे को ठुकराया है। लाल मोहम्मद का कहना है कि इसमें कोई दो-राय नहीं कि इस प्रतिबन्ध से अमेरिकी टूरिज्म एजेंसियों के कारोबार पर असर पड़ेगा, मगर अमेरिकी सरकार ने वहाँ की जनता के हित में यह बड़ा फैसला लिया है। इससे अमेरिकी जनता को भविष्य में बड़े फायदे होंगे।