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पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि दे राहुल ने सरकार से पूछा – जांच में क्या निकला और किसकी जवाबदेही तय हुई ?

पुलवामा हमला, जिसे सुरक्षा की एक बहुत बड़ी चूक माना गया था, के एक साल होने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की है। इसके साथ ही कांग्रेस नेता ने तीन सवाल भी पूछे हैं जिनमें एक यह भी है कि सुरक्षा में चूक के लिए मोदी सरकार में किसकी जवाबदेही तय हुई है?

एक ट्वीट करके राहुल गांधी ने कहा – ”आज जब हम पुलवामा हमले के सीआरपीएफ के ४० शहीदों को याद करते हैं तो साथ ही यह सवाल भी पूछते हैं। उन्होंने मोदी सरकार से इस ट्वीट में तीन सवाल पूछे हैं। इसमें उन्होंने जांच और जवाबदेही के अलावा यह भी पूछा है कि इस घटना से किसको फायदा हुआ?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद लिखा –  एक : पुलवामा आतंकी हमले से किसे सबसे ज्यादा फायदा हुआ? दो : पुलवामा आतंकी हमले को लेकर हुई जांच से क्या निकला? और तीन : सुरक्षा में चूक के लिए मोदी सरकार में किसकी जवाबदेही तय हुई?

गौरतलब है कि इस घटना को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह उभरा था कि यह सुरक्षा की बड़ी चूक है। साथ ही जब यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई थी, तो देश में लोकसभा के चुनाव बहुत पास थे लिहाजा इसे लेकर राजनीतिक रूप से भी सवाल उठाये गए थे। इनमें प्रमुख यह थे कि जवानों को जहाज से क्यों नहीं भेजा गया, उस नियम का पालन क्यों नहीं हुआ जिसमें कहा गया था कि जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर सेना या सुरक्षा बलों का कॉन्वॉय गुजरने के वक्त प्राइवेट वाहनों की आवाजाही रोक दी जाये और इतनी बड़ी मात्रा में आरडीएक्स लेकर एक कार इतने संवेदनशील समय में इतनी सुरक्षा के बावजूद घटनास्थल तक कैसे पहुंच गयी कि उससे पूरी बस के परखच्चे ही उड़ गए और देश के ४० सपूत शहीद हो गए।

इस घटना के बाद चुनाव के समय विपक्ष ने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर चुनाव प्रचार में सेना का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। यही नहीं कांग्रेस और अन्य कई विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग में शिकायत की थी और पीएम  मोदी के चुनाव रैलियों में दिए गए बयानों का हवाला दिया था। बाद में सेना ने इस हमले में शामिल आतंकियों को मार गिराने की बात कही थी साथ ही बालाकोट में आतंकी शिविरों को तबाह किया गया था।

अब राहुल गांधी के अलावा माकपा के नेता मोहम्मद सलीम ने भी पुलवामा हमले को लेकर ट्विटर पर लिखा – ”हमें जवानों के लिए मेमोरियल नहीं चाहियें। बल्कि हम ये जानना चाहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से ८० किलो आरडीएक्स कैसे भारत में आ गया, वो भी उस जगह जहां पर सेना की इतनी बड़ी तादाद है।”

हालांकि, भाजपा को राहुल गांधी का इस तरह सवाल उठाना पसंद नहीं आया है और इसके वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता संबित पात्रा ने राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए ट्वीट  में कहा – ”पुलवामा नृशंस हमला था और यह एक नृशंस बयान है कि किसको फायदा हुआ। क्या गांधी परिवार कभी फायदे से आगे बढ़कर सोच सकता है। इनकी आतमाएं भी भ्रष्ट हो चुकी हैं।”

पुलवामा हमले के बाद सेना ने पाकिस्तान के आतंकी अड्डों पर बम दागे थे इस करारे जवाब में कई आतंकी मारे गए थे. लेकिन इसके तुरंत बाद जब लोकसभा चुनाव आए तो विपक्ष ने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर चुनाव प्रचार में सेना का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.

राहुल गांधी का ट्वीट –

Rahul Gandhi

@RahulGandhi
Today as we remember our 40 CRPF martyrs in the #PulwamaAttack , let us ask:
1. Who benefitted the most from the attack?
2. What is the outcome of the inquiry into the attack?
3. Who in the BJP Govt has yet been held accountable for the security lapses that allowed the attack?

पुलवामा के शहीदों को याद किया

देश आज एक साल पहले कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के ४० से ज्यादा जवानों की शहादत को याद कर रहा है। श्रीनगर जाते हुए एक आतंकी हमले में इन जवानों की शहादत हुई थी। इस घटना को सुरक्षा की बहुत बड़ी चूक माना गया था।

पीएम मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित देश के नेताओं ने ट्वीट करके इन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की है

पीएम नरेंद्र मोदी ने पुलवामा हमले में जान गंवाने वाले बहादुर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। कहा कि वे सबसे अलग थे जिन्होंने हमारे राष्ट्र की सेवा और रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। भारत उनकी शहादत को कभी नहीं भूलेगा।

शहीद जवानों को सीआरपीएफ ने भी अपने अंदाज में याद किया है। सीआरपीएफ ने कहा – ”हम भूले नहीं, हमने छोड़ा नहीं।”

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा – ”मैं पुलवामा हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि देता हूं। भारत हमेशा हमारे बहादुरों और उनके परिवारों का आभारी रहेगा जिन्होंने हमारी मातृभूमि की संप्रभुता और अखंडता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।”

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शहीद जवानों को याद करते हुए कहा – ”भारत उनके बलिदान को कभी नहीं भूलेगा। संपूर्ण राष्ट्र आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है और हम इस खतरे के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

याद रहे १४ फरवरी, २०१९ को सीआरपीएफ की ७८ बसें करीब २६०० जवानों को लेकर नेशनल हाईवे ४४ से गुजर रही थीं। आश्चर्य यह कि नियम के विपरीत उस दिन  सड़क पर दूसरे वाहनों की आवाजाही को रोका नहीं गया था। सेना का कन्वॉय होने के बावजूद एक कार ने सड़क की विपरीत दिशा से सीआरपीएफ के काफिले के साथ चल रही बस को टक्‍कर मार दी। इससे हुए  धमाके में बस के परखच्‍चे उड़ गए और ४० से ज्यादा देश के सपूत शहीद हो गए। आतंकी वहां से भागने में सफल हो गए।

विदेशी राजनयिकों का दल जम्मू पहुंचा

मोदी सरकार ने भले देश के विपक्षी दलों के नेताओं के कश्मीर जाने पर पावंदी लगा रखी हो, विदेशी राजनयिकों के जम्मू-कश्मीर के दो दिन के दौरे का आज दूसरा दिन है और वे जम्मू पहुंच गए हैं। बुधवार को वे कश्मीर में थे और उन्होंने वहां चुनिंदा व्यापारियों और उद्यमियों के साथ हालात पर चर्चा की।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद ३७० हटाए जाने के बाद विदेशी राजनयिकों का यह तीसरा दौरा है। घाटी की स्थिति की वास्तविकता का जायजा लेने के लिए यह विदेशी राजनयिक बुधवार को कश्मीर पहुंचे थे।

दल में यूरोपीय संघ, दक्षिणी अमेरिका के साथ साथ खाड़ी देशों के २५ राजनयिक शामिल हैं। दल में यूरोपीय यूनियन के १२ (जर्मनी, आस्ट्रिया, नीदरलैंड, इटली, हंगरी, चेक रिपब्लिक, बुल्गारिया), अफगानिस्तान, मैक्सिको, कनाडा, डोमनिकन रिपब्लिक, न्यूजीलैंड, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, यूगांडा और रवांडा के प्रतिनिधि शामिल हैं।

उन्हें बुधवार को बारामुला भी जाना था लेकिन खराब मौसम के चलते वे नहीं जा सके।

इन विदेशी राजनयिकों ने श्रीनगर में बुधवार को डल झील में शिकारे की सैर की थी। बाद में उन्होंने व्यापारी प्रतिनिधियों और उद्यमियों से हालात पर चर्चा की। शाम को राजनयिकों से घाटी के ३६ प्रतिनिधिमंडलों ने मुलाकात की। इनमें कश्मीर के स्थानीय व्यापारी, ट्रेड यूनियन नेता, ट्रांसपोर्टर, विद्यार्थी, सिविल सोसाइटी के सदस्य और पत्रकार भी थे।

इन राजनयिकों को डल झील किनारे स्थित ग्रैंड ललित होटल में ठहराया गया था। राजनयिकों का दल बुधवार सुबह करीब ग्यारह बजे श्रीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा और पूरे रस्ते में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गयी थी।

आज यह दल जम्मू पहुंचा और सबसे पहले उन्होंने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल से भेंट की। वे सैन्य अधिकारियों से भी मिले हैं और हालात की जानकारी ली है। वे स्थानीय अधिकारियों के अलावा जान प्रतिनिधिमंडलों से भी मिलेंगे।

आजाद देश में किससे आजादी के नारे लगाए जा रहे हैं : रविशंकर

देशभर में इन दिनों अलग-अलग राज्यों में अपनी-अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन का दौर चल रहा है। खासकर, नागरिकता संशोधन कानून के संसद से पास होते ही पूर्वोत्तर समेत देशभर में इसके विरोध में आंदोलन ने एक अलग ही माहौल बना दिया है। अब लगता है कि केंद्र सरकार इससे आजिज होने लगी है। इससे परेशान तो है, पर वह सीधे तौर पर इसे उजागर होते नहीं दिखना चाह रही है। मंत्रियों के बयानों से इस बारे में सहज समझा जा सकता है।

केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ट्वीट कर लिखा कि हम आजकल कुछ जगहों पर  आजादी-आजादी  के नारे सुन रहे हैं। किससे आजादी मांगी जा रही है? लोग खुलकर सरकार की आलोचना करते हैं। वे चुनाव के जरिये किसी को भी चुन सकते हैं या नकार सकते हैं। उनमें से कुछ विश्वविद्यालयों का घेराव और पुलिस के खिलाफ नाराजगी भी जता चुके हैं। फिर किससे आजादी चाहते हैं?

वरिष्ठ भाजपा नेता ने एक कार्यक्रम में कहा कि आपकी आजादी का आलम यह है कि आप अपनी ही यूनिवर्सिटी का घेराव कर लेते हैं और अपनी ही पुलिस से झड़प तक कर लेते हैं। फिर आपको किस चीज से आजादी चाहिए। इस सवाल पर बहस होनी चाहिए।

आजादी के नारों से ‘खफा’ रविशंकर प्रसाद ने कहा कि नारे लगाने वाले प्रदर्शकारियों को यह तो पता है कि देश पहले से ही आजाद है, इसलिए इस तरह के प्रदशनों से कई सवाल खड़े होते हैं। यह सच है कि भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी का प्रावधान है, लेकिन इसका दुरुपयोग करने पर अंकुश लगाने के प्रावधानों को भी हमें नहीं भूलना चाहिए।

बता दें कि पिछले दो-तीन महीनों से जेएनयू, जामिया, एएमयू और डीयू के तमाम कॉलेजों समेत देशभर बहुत से विश्वविद्यालयों समेत अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में बड़ी तादाद में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किए हैं। इन प्रदर्शनों के दौरान बर्बर पुलिसिया कार्रवाई या गुंडई होने के विरोध में तो युवाओं का गुस्सा और अधिक फूट पड़ा है। इस गुस्से को ठंडा करने का तरीका फिलहाल सरकार के पास नजर नहीं आ रहा है।

सर्वोच्च न्यायलय का राजनीति में अपराधियों पर लगाम के लिए बड़ा आदेश,  वेबसाइट पर करनी होगी उम्मीदवारों की जानकारी साझा

सर्वोच्च न्यायालय से राजनीति में सुचिता की बड़ी पहल हुई है। राजनीति में आपराधिक छवि के लोगों की बढ़ती हिस्सेदारी पर गुरूवार को गहन चिंता व्यक्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने तमाम राजनीतिक दलों को निर्देश दिया है कि वे अपनी वेबसाइट पर सभी उम्मीदवारों की जानकारी साझा करें। अदालत ने आदेश दिया कि सभी राजनीतिक दलों को उम्मीदवार घोषित करने के ७२ घंटे के भीतर चुनाव आयोग को इसकी जानकारी देनी होगी।
सर्वोच्च अदालत का यह आदेश एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। इस आदेश के मुताबिक अब प्रत्याशी पर दर्ज सभी आपराधिक मामले, ट्रायल और उम्मीदवार के चयन का कारण भी राजनीतिक दलों को बताना होगा। राजनीतिक दल को ये भी बताना होगा कि आखिर उन्होंने एक अपराधी को क्यों अपना प्रत्याशी बनाया। यह याचिका एक वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है।

इस आदेश के मुताबिक राजनीतिक दलों को घोषित प्रत्याशी की जानकारी स्थानीय अखबारों में भी छपवानी होगी और राजनीतिक दलों को उम्मीदवार घोषित करने के ७२ घंटे के भीतर चुनाव आयोग को इसकी जानकारी देनी होगी।

अभी यह साफ़ नहीं है हालांकि, इस आदेश के बाद इस बात की पक्की संभावना लग रही है कि यदि अदालत के आदेश का पालन राजनीतिक दलों ने नहीं किया तो यह अदालत की अवमानना मानी जाएगी। अतीत में राजनीतिक दल इस तरह के आदेशों को हलके में लेते रहे हैं जिससे राजनीति में अपराधियों की संख्या बढ़ती गयी है।

याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक अगर कोई भी उम्मीदवार या राजनीतिक दल इन निर्देशों का पालन नहीं करेगा, तो उसे अदालत की अवमानना माना जाएगा। अगर किसी नेता या उम्मीदवार के खिलाफ कोई मामला नहीं है और कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं है तो उसे भी इसकी जानकारी देनी होगी।

आतंकियों को सुरक्षित निकलने दें!

घाटी में जाँच के दौरान कार में आतंकियों के साथ पकड़े गये जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी दविंदर सिंह को लेकर दिन-ब-दिन चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। दविंदर सिंह को लेकर सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह हुआ है कि डीएसपी को कथित तौर पर कश्मीर से पकडक़र आतंकियों को देश के अन्य हिस्सों में पहुँचाने के लिए एस्कॉर्ट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था।

तहलका के पास वह पत्र उपलब्ध है, जिसमें डीएसपी दविंदर सिंह हथियारों के साथ शीर्ष आतंकियों को सुरक्षित मार्ग से निकालने की अनुमति दिये जाने की सिफारिश की गयी है। ऐसे ही एक पत्र में शीर्ष आतंकी को हथियारों के साथ सुरक्षित तरीके से बाहर निकालने की बात कही गयी है। यह पत्र खुफिया एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो के हाथ लगा है। आईबी इस पत्र के आधार पर भी दविंदर सिंह से पूछताछ कर रही है। 2005 में दिल्ली पुलिस ने सात संदिग्ध आतंकियों को एके-47 और बड़ी मात्रा में नकली मुद्रा के साथ गिरफ्तार किया था।

पुलिस ने कथित तौर पर जाँच के दौरान पाया कि सभी सात संदिग्ध आतंकी हिजबुल मुजाहिदीन के लिए काम करते थे। गिरफ्तार किये गये आरोपियों में से एक का नाम था- ‘हाजी गुलाम मोइनुद्दीन डार उर्फ ज़ाहिद।’

जब हाजी गुलाम मोइनुद्दीन को गिरफ्तार किया गया था, तो उसके पास से एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ बरामद किया गया था, जो कथित तौर पर डीएसपी दविंदर सिंह ने दिया था। इस पत्र में इन सभी बातों का ज़िक्र है।

सीआईडी के डीएसपी के कथित हस्ताक्षर वाले इस पत्र में दविंदर सिंह ने उल्लेख किया है कि ऑपरेशनल ड्यूटी के लिए ‘गुलाम मोइनुद्दीन पुत्र गुलाम रसूल निवासी पुत्रिगाम, पुलवामा को एक पिस्तौल (रजिस्टर्ड नम्बर 14363) और एक वायरलेस सेट ले जाने की अनुमति है। सभी सुरक्षा बलों से अनुरोध है कि वे इनको सुरक्षित मार्ग प्रदान करें। किसी भी सत्यापन के लिए नीचे दिये गये टेलीफोन नम्बर पर सम्पर्क कर सकते हैं। इस पर पत्र कथित तौर पर डीएसपी दविंदर सिंह के हस्ताक्षर हैं और उन्हीं के लेटर हेड पर लिखा गया है।

सूत्रों के मुताबिक, गुलाम मोइनुद्दीन की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली पुलिस की टीम ने उस समय दविंदर सिंह से बात की थी और मामले में जानकारी माँगी थी। दविंदर सिंह ने कथित रूप से पत्र को सही ठहराया था और इसकी सामग्री को प्रमाणित भी किया था। इस पत्र के आधार पर अदालत की सुनवाई के दौरान आरोपी को इसका लाभ मिला।

दिल्ली में अदालत से रिहाई के बाद गुलाम मोइनुद्दीन भूमिगत हो गया और कोई नहीं जानता कि वह वर्तमान में वह कहाँ है?

लेकिन यह सवाल अब भी कायम है कि दविंदर सिंह कैसे किसी निजी व्यक्ति को वायरलेस सेट ले जाने की अनुमति प्रदान कर सकते हैं? बिना किसी जाँच-पड़ताल के किसी संदिग्ध शख्स को हथियारों और वायरलेस सेट के साथ भेजे जाने की अनुमति कैसे और क्यों प्रदान की गयी? इस मामले की जाँच कर रहीं एजेंसियों- केंद्रीय खुफिया ब्यूरो, मिलिट्री इंटेलीजेंस ने कथित तौर पर दिल्ली पुलिस को संदिग्ध आतंकी के बारे में सूचित किया था और पुलिस से उसे गिरफ्तार करने को कहा था। हालाँकि, यह उसी समय की बात है, जब संदिग्ध आतंकियों के पास से दविंदर सिंह का लिखा एक पत्र मिला था। इस तरह इन मामलों से कई सवाल खड़े होते हैं?

एमआई के सूत्रों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली पुलिस ने मिलिट्री इंटेलीजेंस की रिपोर्ट को गम्भीरता से लिया होता, तो ऐसी गम्भीर स्थिति पैदा नहीं होती और पुलिस इस तरह के विवाद में नहीं पड़ती। सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने जब इस कथित पत्र के बारे में सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि मामले की गम्भीरता को देखते हुए दविंदर सिंह से इस पर पूछताछ की जाएगी। जब दविंदर को पूछताछ के लिए दिल्ली मुख्यालय लाया जाएगा, तब इस मामले पर भी विस्तार से पूछताछ की जाएगी।

सूत्रों ने कहा कि दविंदर सिंह का नाम कई बार संदिग्ध आतंकियों के साथ सामने आया, पर उनका नाम इससे हटा दिया गया साथ ही उनके िखलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी। सवाल यह भी है कि जाँच एजेंसियाँ हर बार कैसे दविंदर सिंह को छोड़ती रहीं? जबकि उनका नाम इनमें लिप्त पाया गया।

पुलिस के काम करने के तौर-तरीकों को जानने वालों का तो यहाँ तक कहना है कि दविंदर सिंह को जम्मू-कश्मीर के एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का संरक्षण मिलता रहा है। यह वरिष्ठ अधिकारी जम्मू और कश्मीर पुलिस के महानिरीक्षक थे और अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इसके अलावा राज्य पुलिस के एक पूर्व डीआईजी की भूमिका भी जाँच के दायरे में है। यह अधिकारी पीडीपी के नेतृत्व वाली सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री के करीबी बताये जाते हैं।

दविंदर सिंह की गिरफ्तारी के बाद अब दिल्ली स्थित खुफिया अधिकारी सतर्क हो गये हैं और आईबी की टीम भी दविंदर से जुड़े मामले की ज़्यादा-से-ज़्यादा जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं। हाल ही में आईबी और रॉ की टीम दविंदर सिंह से श्रीनगर में कई घंटे पूछताछ की। देखना यह है कि इस पूछताछ के बाद क्या नतीजा निकलता है?

भारतीय अफसरों को फँसाती है आईएसआई

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) इस बात की जाँच कर रही है कि कैसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने भारतीय अधिकारियों को अपने जाल में फँसाने के लिए हनीट्रैप और धन का इस्तेमाल किया। जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी दविंदर सिंह पर 11 जनवरी, 2020 को आम्र्स एक्ट और गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत केस दर्ज किया गया है। इसमें सम्भव है कि आईएसआई ने भारतीय अधिकारियों को गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल होने के लिए महिलाओं और धन का इस्तेमाल किया गया हो।

कुछ माह पहले की बात है कि जब भारतीय खुफिया एजेंसियों ने पुलिस, अद्र्धसैनिक बल के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को निशाना बनाने के लिए आईएसआई द्वारा संचालित कॉल सेंटर का भंडाफोड़ किया था। कॉल सेंटर में भारतीय सिम कार्ड का इस्तेमाल अधिकतर भारतीय महिलाओं के नाम पर किया गया था। इन्हीं सिम कार्ड का इस्तेमाल करके भारतीय महिलाओं के नाम से फेसबुक पर फर्ज़ी आईडी बनायी गयी थीं। ये वास्तव में पाकिस्तानी महिलाएँ थीं, जो हनी ट्रैप के ज़रिये फँसाकर भारतीय अधिकारियों से दोस्ती का ऑफर देकर उनसे गुप्त सूचनाएँ हासिल करती थीं। गिरफ्तार अधिकारी ने दावा किया है कि वह एक ऑपरेशन कर रहा था। डीएसपी दविंदर सिंह श्रीनगर हवाई अड्डे पर एंटी-हाइजैकिंग यूनिट में तैनात थे और इसलिए यह गुप्त रूप से संचालित ऑपरेशन में शामिल नहीं हो सकते थे। गिरफ्तार डीएसपी को दक्षिण कश्मीर में 11 जनवरी को जम्मू में दो आतंकियों के साथ पकड़ा गया था। दविंदर पर आरोप है कि वह शोपियाँ इलाके से आतंकियों को घाटी से बाहर निकलवा रहा था। अब दविंदर सिंह के िखलाफ एक और मामला दर्ज किया गया है। जम्मू-कश्मीर के पुलिस उप अधीक्षक दविंदर सिंह की गिरफ्तारी से जुड़े मामले को फिर से दर्ज करने के बाद, एनआईए अधिकारी अब 2005 में उनके लिखे कथित पत्र की भी जाँच करने की तैयारी में है। इंटेलिजेंस ब्यूरो को मिले पत्र में पाया गया था कि डीएसपी को कश्मीर से दिल्ली-गुरुग्राम बॉर्डर तक पहुँचाने के लिए आतंकियों को सुरक्षित रास्ता देना था। इन चार आतंकियों में से एक को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। अब उनको आतंकी वाली धाराओं में मामला दर्ज किया गया था; लेकिन जाँच आगे बढ़ती इससे पहले मामले को एनआईए ने अपने हाथ में ले लिया है। उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत भी कार्रवाई की जा सकती है। एनआईए ने दविंदर के 2005 में लिखे कथित पत्र को अपने कब्ज़े में ले लिया है और इसे फोरेंसिक जाँच के लिए भेज दिया है। इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के अनुसार, उनसे मिली जानकारी के आधार पर चलाये गये तलाशी अभियान में चार संदिग्ध आतंकियों को गिरफ्तार किया गया है, उनके पास से पुलिस ने पालम एयरबेस का एक स्केच ज़ब्त किया और डीएसपी द्वारा गिरफ्तार आतंकवादियों में से एक को पत्र भी लिखा था। आईबी ने कहा कि दविंदर सिंह के हस्ताक्षर वाले पत्र में पिस्टल और वायरलेस सेट ले जाने की अनुमति दी गयी थी।

डीएसपी दविंदर सिंह के लेटर हेड पर लिखे गये पत्र में सभी सुरक्षा एजेंसियों को बिना किसी सत्यापन के ‘सुरक्षित मार्ग’ देने को कहा गया था। एनआईए ने जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी दविंदर सिंह को यूएपीए के तहत मामला दर्ज करने के बाद उनको निलंबित कर दिया है। उन पर यूएपीए की धारा-18, 19, 20 और 38, 39 के तहत मामला दर्ज किया गया है। एनआईए की शुरुआती जाँच में सुझाव दिया गया है कि यह पहली बार नहीं था जब दविंदर सिंह ने आतंकियों को बाहर निकालने में मदद की हो। यूएपीए की धारा-38 यह स्पष्ट करती है कि एक व्यक्ति, जो खुद को किसी आतंकवादी संगठन के साथ जोड़ता है या उनकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में उनकी मदद करता है, तो एक तरीके से वह आतंकी संगठन से जुड़े होने की तरह ही अपराध करता है। जम्मू-कश्मीर के पुलिस अधिकारी पर यूएपीए की धारा-39 के तहत भी मामला दर्ज किया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि आरोपी शख्स आतंकी संगठन को समर्थन देने के साथ ही उससे जुडक़र अपराध में लिप्त है। इतना ही नहीं, आतंकी संगठन की गतिविधि को आगे बढ़ाने के इरादे से एक बैठक को सम्बोधित करता है। आतंकवादी संगठन के लिए समर्थन या अन्य गतिविधि को आगे बढ़ाने के उद्देश्य में भी सम्मिलित होता है।

इंटेलिजेंस ब्यूरो ने शुरुआती जाँच में पाया है कि पत्र में डीएसपी ने दिल्ली-गुरुग्राम सीमा पर दिल्ली पुलिस द्वारा कश्मीर से दिल्ली जाते समय पकड़े गये चार आतंकियों में से एक को सुरक्षित मार्ग देने के लिए कहा था। वर्तमान में आरोपी के िखलाफ गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। अब मामले को एनआईए ने अपने हाथ में ले लिया है। इसके साथ ही उससे पूछताछ व अन्य खुलासे के लिए अदालत से उसे 15 दिन के रिमांड पर लिया। एनआईए ने दविंदर के लिखे 2005 के पत्र को अपने कब्ज़े में ले लिया है और उसे फोरेंसिक जाँच के लिए भेज दिया है।

इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के अनुसार, चार आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद तलाशी अभियान चलाया गया, जिसमें पुलिस ने पालम एयरबेस का एक स्केच ज़ब्त किया और  उनमें से एक के पास से डीएसपी का लिखा पत्र भी बरामद हुआ था। आईबी ने कहा कि दविंदर सिंह जो तत्कालीन सीआईडी पुलिस अधीक्षक थे, उनके हस्ताक्षर थे और इसमें लिखा था कि आतंकी को को पिस्तौल और एक वायरलेस सेट ड्यूटी पर ले जाने की अनुमति है।

डीएसपी दविंदर सिंह के लेटर हेड पर लिखे गये पत्र में सभी सुरक्षा एजेंसियों को बिना किसी सत्यापन के ‘सुरक्षित मार्ग’ देने के लिए कहा गया है। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी दविंदर सिंह को आम्र्स एक्ट और गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किये जाने के बाद पद से निलंबित कर गिरफ्तार कर लिया है। डीजीपी दिलबाग सिंह के अनुसार, गिरफ्तार अधिकारी ने दावा किया है कि वह एक ऑपरेशन कर रहा था। दुर्भाग्य से िफलहाल एकत्र किये गये सबूत उनके पक्ष में नहीं हैं।

गिरफ्तार अधिकारी को श्रीनगर हवाई अड्डे में तैनात एंटी-हाईजैकिंग यूनिट में तैनात किया गया था और इसलिए गुप्त आतंकवाद निरोधी कार्यों में शामिल नहीं हो सकता था। डीजीपी ने जाँच के निष्कर्षों के विवरण को बताने से इन्कार करते हुए कहा कि सूत्रों का कहना है कि ऑपरेशनों का प्रतिकार करना आवश्यक है और उन्हें प्रक्रिया के तहत बहुत सावधानी से चलाने की ज़रूरत है। व्यक्तिगत लाभ के लिए स्रोतों का उपयोग करना बहुत भयानक है। जम्मू-कश्मीर पुलिस पुराने मामलों में डीएसपी दविंदर की भूमिका की भी जाँच कर रही है, जो उनकी निगरानी में किये गये।

पुलिस अफसर से क्यों करायी आतंकियों की मदद?

जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी दविंदर सिंह को दो शीर्ष हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकियों के साथ पकड़ा गया था, जो गणतंत्र दिवस से पहले दक्षिण कश्मीर के त्राल से नई दिल्ली के लिए निकले थे। हिज्बुल मुजाहिदीन का चर्चित रहा कमांडर बुरहान वानी का गृहनगर रहा है। हालाँकि इस बात के कोई सबूत नहीं है कि सिंह और वानी एक-दूसरे को जानते थे; लेकिन नवीद बाबू, हिज्ब के नम्बर-2 के साथ सिंह की गिरफ्तारी से यह पता चलता है कि इस संगठन के साथ उसके सम्पर्क काफी गहरे और लम्बे समय से रहे हैं।

त्राल एक और वजह के लिए भी महत्त्वपूर्ण  है। यहाँ से है कि नयी उम्र का उग्रवाद 2015 में शुरू हुआ और पूरे दक्षिण कश्मीर में फैल गया। यह पुलवामा ज़िले के अंतर्गत आता है, जहाँ दविंदर सिंह पिछले तीन वर्षों में दो बार तैनात रह चुके हैं। दोनों मौकों पर आतंकी बड़े पैमाने पर हमले को अंजाम दे चुके हैं। अगस्त, 2017 में आतंकियों ने पुलवामा में पुलिस लाइंस पर धावा बोल दिया था। 19 घंटे तक चली गोलीबारी में सीआरपीएफ के जवानों व पुलिसकर्मियों पर तीन आतंकियों ने हमला किया था। सुबह तडक़े जब हमला हुआ, उस समय दविंदर सिंह वहीं पर थे। सिंह मई, 2017 से 8 अगस्त, 2018 तक पुलवामा में तैनात थे। इसी तरह सिंह की दोबारा पुलवामा में तैनाती के दौरान ही सुरक्षा बलों के कािफले पर आत्मघाती हमला किया गया था, जिसमें सीआरपीएफ के 40 से अधिक जवान शहीद हो गये थे।

2001 के संसद हमले में अपनी भूमिका के लिए फाँसी पर लटकाये गये अफज़ल गुरु ने सिंह पर आरोप लगाया था कि वह नई दिल्ली में एक हमलावर मोहम्मद के साथ गये और उसके लिए रहने का इंतज़ाम किया। संसद पर हमले के दौरान हमलावर को बाद में मार दिया गया था। हालाँकि इस सनसनीखेज़ आरोप की जाँच कभी नहीं की गयी। 2006 में मीडिया को दिये एक साक्षात्कार में दविंदर सिंह ने अफज़लगुरु को हिरासत में यातना देना स्वीकार किया था; लेकिन उनके साथ किसी भी आतंकी को भेजे जाने की बात से इन्कार कर दिया था।

बता दें कि दविंदर सिंह 1994 में जम्मू-कश्मीर पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती हुए थे। उन्होंने श्रीनगर कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी। बाद में वह पुलिस के विशेष अभियान समूह (एसओजी) में शामिल हो गये, जिसे विशेष रूप से आतंकियों से निपटने के लिए काम सौंपा गया था। लेकिन जबरन वसूली की शिकायतों के बाद दविंदर सिंह को एसओजी से हटा दिया गया था। 2003 में वह एक साल के लिए कोसोवो में संयुक्त राष्ट्र के शान्ति मिशन का हिस्सा रहे।

अब आतंकियों के साथ डीएसपी की गिरफ्तारी ने जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा प्रतिष्ठान में न केवल खतरे की घंटी बजायी है, बल्कि देश में आतंकवाद के िखलाफ लड़ाई में भी सवालिया निशान लगेगा, जिस पर नई दिल्ली भी शामिल होगी। इससे गम्भीर सवाल खड़े होते हैं। दविंदर सिंह कौन हैं? वह किसके लिए काम कर रहा था? क्या वह आतंकियों गणतंत्र दिवस से पहले नई दिल्ली में सनसनीखेज़ हमले करने में मदद कर रहा था? पिछले साल की बमबारी सहित पुलवामा में दो बड़े हमलों में उसकी क्या भूमिका थी? या संसद हमले में उसकी क्या भूमिका थी?  वे किससे प्रेरित थे? क्या वह आतंकियों के लिए काम कर रहा था या आतंकी उसके लिए काम कर रहे थे? इन सवालों के जवाब तो मिलने ही चाहिए। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने दविंदर सिंह को दो आतंकियों और एक वकील के साथ गिरफ्तार करके एक बड़ी सफलता हासिल की है। इतना ही नहीं, आतंकी दविंदर सिंह के हाई सिक्योरिटी क्षेत्र में मौज़ूद आवास पर ठहरे भी थे। उनकी भूमिका की शुरुआती जाँच से पता चला है कि उन्होंने पहले भी अपने घर पर आतंकियों को शरण दी थी। संयोग से गिरफ्तार आतंकी नवीद बाबू भी इनमें शामिल है, जो खुद एक पुलिस डकैत था। वह 2017 में चार राइफल के साथ फरार होकर आतंकी बन गया था।

इसे महज़ संयोग कह सकते हैं कि आतंकियों के साथ पकड़े जाने के कुछ दिन पहले दविंदर सिंह उस सुरक्षा टीम का हिस्सा था, जो घाटी में हालात का जायज़ा लेने पहुँचे 16 देशों के राजदूतों से श्रीनगर एयरपोर्ट पर मिले थे। उनकी राजदूतों के साथ एक फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई है। मामले की जाँच अब राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गयी है, जिससे दविंदर सिंह मामले की गम्भीरता का पता चलता है। यह एनआईए द्वारा लम्बे समय में जाँच किये जाने वाले सबसे संवेदनशील मामलों में से एक है। लोगों को उम्मीद होगी कि एजेंसी मामले की तह तक जाएगी और सबसे बड़े रहस्य से परदा हटायेगी कि आतंकियों की मदद के लिए एक सज़ायाफ्ता पुलिस अधिकारी के साथ अब क्या सुलूक होना चाहिए? और कौन किसका उपयोग कर रहा था?

कहीं चीन के जैविक युद्ध का हिस्सा तो नहीं कोरोना वायरस!

चीन के अधिकारियों ने जैसे ही तत्काल की डराबनी बीमारी कोरोना वायरस के करीब 6,000 मामलों की पुष्टि की, उसके कुछ ही घंटों बाद ही जियोपॉलिटिर्क एंड इंटरनेशनल रिलेशंस पर ग्रेट गेम इंडिया नामक पत्रिका ने टायलर डरडेन का एक लेख प्रकाशित करके पूरी दुनिया को चौंका दिया। इस पत्रिका में सवाल उठाया गया था कि क्या चीन ने कनाडा से कोरोना वायरस को एक हथियार बनाने के लिए चुराया है?

शोधकर्ताओं का मानना है कि नया वायरस शायद चमगादड़ से आया है, जिसके साथ वह अपने आनुवांशिक मेकअप का 80 फीसदी हिस्सा साझा करता है। लेकिन शोधकर्ता प्रामाणिक तौर पर नहीं कह पाये हैं कि यह वायरस किस जानवर से इंसानों में आया है? पिछले हफ्ते एक चीनी टीम ने सुझाव दिया कि यह साँप से आया हो सकता है! लेकिन अन्य विशेषज्ञों ने इस सुझाव को चुनौती दी, जो यह मानते हैं कि एक स्तनधारी के इसके पीछे होने की अधिक सम्भावना है। यह किस जानवर से है। इसकी पहचान हो जाए, तो इससे इस प्रकोप से लडऩे में मदद मिल सकती है।

हालाँकि, ग्रेट गेम इंडिया ने दावा किया कि उसकी जाँच ने एजेंटों को चीनी जैविक युद्ध कार्यक्रम से जोड़ा था, जहाँ से वायरस के लीक होने का संदेह है, जो वुहान कोरोना वायरस का कारण बना। इसमें कहा गया है कि पिछले साल कनाडा से एक रहस्यमय शिपमेंट को कोरोना वायरस की तस्करी करते हुए पकड़ा गया था। तब कनाडाई लैब में काम करने वाले चीन के एजेंट्स का पता लगाया गया था।

कैसे पनपा कोरोना वायरस?

13 जून, 2012 को सऊदी अरब के जेद्दा में एक 60 वर्षीय व्यक्ति को बुखार, खाँसी, कफ और साँस लेने में कठिनाई के कारण एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके पास कार्डियोपल्मोनरी या गुर्दे की बीमारी का कोई इतिहास नहीं था। उसने लम्बे समय से कोई दवा नहीं ली थी। धूम्रपान भी नहीं करता था। मिस्र के वीरोलॉजिस्ट डॉक्टर अली मोहम्मद ज़की ने उसके फेफड़ों से एक अज्ञात वायरस (कोरोना) अलग कर दिया। रुटीन डायग्नॉस्टिक्स के कारण एजेंट को पहचानने में नाकाम रहने के बाद, ज़की ने सलाह के लिए नीदरलैंड के रॉटरडैम में इरास्मस मेडिकल सेंटर (ईएमसी) के एक प्रमुख वायरोलॉजिस्ट, रॉन फुचियर से सम्पर्क किया। फाउचर ने ज़की के भेजे गये एक नमूने से वायरस का मिलान किया। फ्यूचर ने एक व्यापक-स्पेक्ट्रम पैन-कोरोना वायरस का उपयोग किया, जो मानवों को संक्रमित करने के लिए जाने वाले कई कोरोनविर्यूज की विशेषताओं के परीक्षण के लिए वास्तविक समय पोलीमरेज चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) विधि का उपयोग करता है।

कोरोना वायरस का यह नमूना कनाडा के नेशनल माइक्रोबायोलॉजी लैबोरेटरी (एनएमएल) के वैज्ञानिक निदेशक डॉक्टर फैंक प्लमर ने विन्निपेग में सीधे फाउचर से प्राप्त किया था, जिन्होंने इसे ज़की से हासिल किया। द ग्रेट गेम इंडिया का आरोप है कि चीनी एजेंटों ने कथित तौर पर कनाडाई लैब से इस वायरस को चुराया था। इसका यह भी आरोप है कि 4 मई, 2013 को डच लैब से कोरोना वायरस कनाडा की एनएमएल विन्निपेग में पहुँचे। कनाडाई लैब ने वायरस की संख्या को बढ़ाया और इसका उपयोग कनाडा में होने वाले नैदानिक परीक्षणों का आकलन करने के लिए किया। विन्निपेग वैज्ञानिकों ने यह जानने के लिए काम किया कि किस पशु की प्रजाति नये वायरस से संक्रमित हो सकती है। एनएमएल के पास कोरोना वायरस के लिए व्यापक परीक्षण सेवाओं की पेशकश का एक लम्बा इतिहास है। इसने एसएआरएस कोरोना वायरस के पहले जीनोम अनुक्रम को अलग-थलग कर दिया और 2004 में एक और कोरोनोवायरस एनएल 63 की पहचान की। चीनी एजेंटों ने कथित तौर पर इस विन्निपेग आधारित कनाडाई लैब को लक्षित किया, जिसे जैविक जासूसी केंद्र कहा जा सकता है।

जैविक जासूसी

मार्च, 2019 में एक रहस्यमयी घटना में कनाडा के एनएमएल के असाधारण विषाणुजनित विषाणुओं का शिपमेंट चीन में समाप्त हो गया। एनएमएल के वैज्ञानिकों ने कथित तौर पर कहा था कि अत्यधिक घातक वायरस सम्भावित जैव-हथियार थे। जाँच के बाद, इस घटना का पता एनएमएल में काम करने वाले चीनी एजेंटों को लगा। एनएमएल कनाडा की एकमात्र स्तर-4 सुविधा है और उत्तरी अमेरिका में कुछ में से एक है, जो दुनिया की सबसे घातक बीमारियों से निपटने के लिए सुसज्जित है। इसमें इबोला, सारस, कोरोना वायरस आदि शामिल हैं।

एनएमएल वैज्ञानिक जिसे उसके जीवविज्ञानी पति और शोध टीम के सदस्यों के साथ कनाडाई लैब से बाहर निकाला गया गया था, पर आरोप है कि वे चीन के बायो-वारफेयर एजेंट थे। एजेंट कनाडा के एनएमएल में शक्तिशाली वायरस का अध्ययन कर रहा था। यह दम्पति कथित रूप से कई चीनी एजेंटों के साथ छात्र बनकर चीनी वैज्ञानिक सुविधाओं से सीधे कनाडा के एनएमएल में घुसपैठ करने के लिए ज़िम्मेदार है। वो सीधे चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम में शामिल थे, जिसमें वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और चीनी विज्ञान अकादमी, हुबेई शामिल हैं।

कनाडाई जाँच अभी भी चल रही है और यह सवाल बना हुआ है कि क्या चीन के अन्य विषाणुओं या अन्य आवश्यक तैयारियों के लिए पिछला शिपमेंट 2006 से 2018 तक हुआ। कथित एजेंटों उर्फ वैज्ञानिकों ने चीनी विज्ञान अकादमी की वुहान राष्ट्रीय जैव सुरक्षा प्रयोगशाला के लिए वर्ष 2017-18 में कथित तौर पर कम-से-कम पाँच यात्राएँ कीं। संयोगवश, वुहान नेशनल बायोसेफ्टी प्रयोगशाला, हुआनन सीफूड मार्केट से केवल 20 मील की दूरी पर स्थित है, जो कि कोरोना वायरस के गढ़ वुहान कोरोना वायरस का केंद्र स्थल है।

वुहान राष्ट्रीय जैव सुरक्षा प्रयोगशाला को चीनी सैन्य सुविधा वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में रखा गया है, जो चीन के जैविक वारफेयर प्रोग्राम से जुड़ा हुआ है। वुहान संस्थान ने अतीत में कोरोना वायरस का अध्ययन किया है, जिसमें तनाव भी शामिल है; जो गम्भीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम, या सार्स, एच5एन1 इन्फ्लूएंजा वायरस, जापानी एन्सेफलाइटिस और डेंगू शामिल हैं; के लिए ज़िम्मेदार है। संस्थान के शोधकर्ताओं ने उस रोगाणु का भी अध्ययन किया जो एंथ्रेक्स (एक जैविक एजेंट, जो एक बार रूस में विकसित हुआ) का कारण बनता है।

योजना बन गयी आफत!

चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम को एक अग्रिम चरण में माना जाता है, जिसमें अनुसंधान और विकास, उत्पादन और हथियार क्षमताएँ शामिल हैं। माना जाता है कि इसकी वर्तमान सूची में पारम्परिक रासायनिक और जैविक एजेंटों की पूरी शृंखला को शामिल किया गया है, जिसमें विभिन्न प्रकार के डिलीवरी सिस्टम शामिल हैं। इनमें तोपखाने,  रॉकेट, हवाई बम, स्प्रेयर और कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल शामिल हैं। वास्तव में चीन की सैन्य-नागरिक राष्ट्रीय रणनीति ने जीव विज्ञान को प्राथमिकता के रूप में रखा  है और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) इस ज्ञान का विस्तार और शोषण करने में सबसे आगे हो सकती है। पीएलए जीव विज्ञान के लिए सैन्य अनुप्रयोगों को आगे बढ़ा रही है और मस्तिष्क विज्ञान, सुपर कम्प्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धि सहित अन्य विषयों के साथ दूसरी सम्भावनाओं को देख रही है। साल 2016 से केंद्रीय सैन्य आयोग ने सैन्य मस्तिष्क विज्ञान, उन्नत बायोमिमेटिक सिस्टम, जैविक और बायोमिमेटिक सामग्री, मानव प्रदर्शन बढ़ाने और नयी अवधारणा जैव प्रौद्योगिकी पर परियोजनाओं को वित्त पोषित किया है। रणनीतिक अनुवांशिक हथियारों और रक्तहीन विजय की सम्भावना के बारे में बात करने वाले रणनीतिकार युद्ध के उभरते क्षेत्र के रूप में जीव विज्ञान में चीनी सेना की रुचि का मार्गदर्शन करते हैं। यह योजना चीन के लिए ही आफत बन गयी। लेकिन जब तक चीन में वायरस की चोरी और शिपमेंट के बारे में कनाडाई जाँच पूरी नहीं हो जाती, तब तक रहस्य और सवाल यह है कि कोरोना वायरस ने चीन में कैसे प्रवेश किया? यह रिपोर्ट लिखे जाने तक चीन में, जो कि इस डरावने कोरोना वायरस की उत्पति का देश है; 6,000 से अधिक लोगों में इस वायरस के संक्रमण की पुष्टि की जा चुकी थी, जिनमें से 212 लोगों की मौत हो चुकी है। इस वायरस से पीडि़तों के भारत में एक मामले के अलावा अन्य एशियाई देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और अमेरिका में भी कुछ मामले सामने आये हैं।

क्या है कोरोना वायरस

कोरोना वायरस (सीओवी) के संक्रमण से जुकाम से लेकर साँस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, बुखार, खाँसी, साँस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं। इस वायरस को फैलने से रोकने का िफलहाल कोई टीका नहीं है।

बीमारी के लक्षण

इस वायरस के संक्रमण के से बुखार, जुकाम, साँस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश होती है। वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है, इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरतने की ताकीद की जाती है।

बचाव के उपाय

भारत के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इनके मुताबिक, हाथों को साबुन से धोना चाहिए और अल्‍कोहल आधारित हैंड रब का इस्‍तेमाल भी किया जा सकता है। खाँसते और छींकते समय नाक और मुँह को रूमाल या टिश्‍यू पेपर से ढककर रखना चाहिए। जिन व्‍यक्तियों में कोल्‍ड और फ्लू के लक्षण हों उनसे दूरी बनाकर रखें। अण्डे और मांस का सेवन न करें। जंगली जानवरों से दूर रहें।

लोकतंत्र का ग्राफ

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत डेमोक्रेसी इंडेक्स में 10 पायदान फिसलकर 51वें स्थान पर चला गया है। इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की 2019 की रिपोर्ट से यह ज़ाहिर हुआ है। लेकिन कोई गलती न करें; बांग्लादेश इस रिपोर्ट में 80वें, जबकि पाकिस्तान 108वें  पायदान पर है। भारत का सम्पूर्ण स्कोर (गणना) 2018 के 7.23 से गिरकर 2019 में 6.90 हो गया है, जो 165 स्वतंत्र देशों और दो क्षेत्रों के लिए दुनिया भर में लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति का एक स्वरूप सामने लाता है। कुल स्कोर के आधार पर, देशों को चार प्रकार के शासन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। पहला- पूर्ण लोकतंत्र (8 से अधिक स्कोर),  दूसरा- त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र (6 से 8 के बीच स्कोर), तीसरा- हाइब्रिड शासन (4 से 6 के बीच स्कोर) और चौथा- अधिनायकवादी शासन (4 से कम या बराबर स्कोर)। इस तरह सूचकांक भारत को ‘त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र’ की श्रेणी में रखता है।

लोगों में आज़ादी का भय, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को हटाना, नागरिकता संशोधन कानून बनाना, इंटरनेट पर प्रतिबन्ध, डिजिटल इस्तेमाल पर रोक, पूर्व मुख्यमंत्रियों और अन्य नेताओं की नज़रबंदी को भारत के लोकतंत्र सूचकांक में नीचे गिरने को मुख्य वजह बताया गया है। रिकॉर्ड के लिए भारत पिछले साल 41वें स्थान पर था और 2014 में तो भारत कहीं बेहतर 27वें पायदान पर था। यह गिरावट एक सत्तावादी शासन की ओर इशारा करती है। वार्षिक सर्वेक्षण पाँच मुख्य बिन्दुओं- लोकतंत्र की स्थिति, चुनावी प्रक्रिया, बहुलवाद, सरकारों के कामकाज, लोकतांत्रिक संस्कृति और नागरिक स्वतंत्रता पर आधारित है।

यह सर्वेक्षण रिपोर्ट वैश्विक लोकतंत्र के लिए एक बुरी खबर है; क्योंकि इससे ज़ाहिर होता है कि पिछले एक साल में दुनिया भर में लोकतंत्र में गिरावट दर्ज की गयी है। साल 2006 में सूचकांक के शुरू होने के बाद से वैश्विक स्कोर इस बार 10 में से 5.44 दर्ज किया गया, जो सबसे कम है। सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया की एक-तिहाई आबादी आज भी तानाशाही शासकों के बीच जीवन बिता रही है। यहाँ इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि एक त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र देश की अर्थ-व्यवस्था गड़बड़ा सकती है। निश्चित ही लोकतंत्र सूचकांक में भारत का ग्राफ गिरने से हर भारतीय आहत होगा; क्योंकि लोकतंत्र सूचकांक की गणना प्रसिद्ध संस्था- इकोनॉमिस्ट और इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने की है।

समय आ गया है जब हम ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ की राह पर चलें। भारत में लोकतंत्र का गिरते ग्राफ से सबक लेकर जीवंत लोकतंत्र बनाने का सबसे मज़बूत स्तम्भ बना सकते हैं। भारत में लोकतंत्र सूचकांक सुधरना चाहिए। क्योंकि हम उन चुनिंदा देशों में हैं, जिनके पास एक मज़बूत लोकतंत्र है। यह रिपोर्ट खतरे का एक निशान है, जो हर पल यह याद दिलाएगा कि हमें अपने लोकतंत्र सूचकांक में गिरावट के िखलाफ सतर्क रहना होगा; क्योंकि हमने मुश्किलों से इसे हासिल किया है। अब हम इसे तबाह या कमज़ोर होते नहीं देख सकते और न ही किसी को इसे कमज़ोर करने की इजाज़त दे सकते हैं।