Indian Prime Minister Narendra Modi gestures as he arrives at Bharatiya Janata Party (BJP) headquarters in New Delhi, India, June 4, 2024. REUTERS/Adnan Abidi
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी बात कही है। उन्होंने कहा कि जनता ने तीसरी बार एनडीए पर विश्वास जताया, हम नई ऊर्जा, उमंग और संकल्प के साथ आगे बढ़ेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के इतिहास में ये एक अभूतपूर्व पल है।
पीएम मोदी ने कहा, “मैं इस स्नेह और आशीर्वाद के लिए अपने परिवारजनों को नमन करता हूं। मैं देशवासियों को विश्वास दिलाता हूं कि उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हम नई ऊर्जा, नई उमंग, नए संकल्पों के साथ आगे बढ़ेंगे। सभी कार्यकर्ताओं ने जिस समर्पण भाव से अथक मेहनत की है, मैं इसके लिए उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं, अभिनंदन करता हूं।”
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में देश की जनता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि यह विजय उनके विश्वास और समर्थन की वजह से ही संभव हो सकी है। उन्होंने देशवासियों को आश्वासन दिया कि उनकी सरकार जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेगी और देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाएगी।
मोदी ने सभी एनडीए कार्यकर्ताओं के समर्पण और मेहनत की सराहना करते हुए कहा कि उनके प्रयासों के बिना यह सफलता संभव नहीं होती। उन्होंने इस चुनाव को लोकतंत्र का महोत्सव बताते हुए सभी नागरिकों को धन्यवाद दिया जिन्होंने इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया।
इस ऐतिहासिक विजय के साथ, प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को जनता की सेवा करने का एक और मौका मिला है, और उन्होंने इस अवसर को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाने का वचन दिया है।
इस बार का राष्ट्रीय चुनाव ख़ास रहा। न कोई हवा, न यह पता चला कि वोटर ने किस मुद्दे को पकड़ा। वोटर के इस रुख़ से नेता लोग तो परेशान हुए ही, मीडिया के लोग भी हवा में तीर चलाते रहे। हाँ, जिनके हित किसी दल ख़ास के साथ जुड़े थे, वे उन्हें 400 पार बताते रहे। ज़मीन पर यह चुनाव पिछले तीन महीने में कभी भी 400 पार वाला नहीं दिखा। न किसी ब्रांड की हवा थी, न वोटर अपना मन खुलकर बता रहा था। फिर भी कुछ मुद्दे थे, जो ज़मीन के भीतर-ही-भीतर अपना काम कर रहे थे; लेकिन समझ नहीं आ रहे थे। अब 04 जून को पता चलेगा कि जनता ने क्या फ़ैसला किया? हाँ, एक बात साफ़ है कि इस चुनाव में भाषणों का स्तर बहुत नीचे चला गया, और दुर्भाग्य से ऐसा करने में ख़ुद देश के प्रधानमंत्री भी पीछे नहीं रहे। कुछ नेता ऐसे भी रहे, जिन्होंने ख़ुद को मुद्दों और अपने घोषणा-पत्र तक सीमित रखा; जिनमें राहुल गाँधी का नाम लिया जा सकता है। बेशक प्रधानमंत्री मोदी की निंदा करने से वह भी ख़ुद को बचा नहीं पाये; भले उनकी भाषा बेहतर रही हो।
यह चुनाव कुछ राज्यों में आश्चर्यजनक नतीजे दे सकता है। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी का इंडिया गठबंधन की सरकार बनने पर महिलाओं के खाते में एक लाख रुपये डालने के लिए इस्तेमाल किया गया खटाखट शब्द इतना लोकप्रिय हो गया कि प्रधानमंत्री मोदी तक इसे अपनी चुनावी जनसभाओं में कहते दिखे, भले कटाक्ष के लिए। इसमें कोई दो-राय नहीं कि राहुल गाँधी का जाति जनगणना, संविधान बचाने, बेरोज़गारी और महँगाई के मुद्दे जनता के बीच पहुँचते दिखे। यदि इसने अपना काम किया होगा, तो कांग्रेस का आँकड़ा पिछली बार की 52 सीटों से उछाल मार सकता है और उसे बेहतर स्थिति तक पहुँचा सकता है। इस चुनाव में राहुल गाँधी का इंडिया गठबंधन के दो बड़े साथियों उत्तर प्रदेश के अखिलेश यादव और बिहार के तेजस्वी यादव के साथ बहुत बेहतर तालमेल दिखा। लगा नहीं कि यह अलग-अलग दल हैं, जिनकी अपनी नीतियाँ हैं। राष्ट्रीय (कांग्रेस) और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों का यह ताल-मेल वोटों में तब्दील हुआ, तो भाजपा को यह इन दो राज्यों में उसकी पिछली बार की सीटों से नीचे धकेल सकता है। तालमेल का सकारात्मक पक्ष यह रहा कि कहीं भी कांग्रेस और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों के मुद्दों का टकराव नहीं हुआ। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने जिस सामाजिक समानता और न्याय की बात इस चुनाव के मुख्य मुद्दे के रूप में सामने रखी, वह वास्तव में सपा और राजद की राजनीति का भी आधार रहा है।
यह मुद्दा न सिर्फ़ जातिगत रूप से, बल्कि आर्थिक और सामाजिक रूप से भी मतदाता को एकजुट करता है। बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति में यदि ऐसे मुद्दे गठबन्धन को लाभ करते हैं, तो इसका सीधा नुक़सान भाजपा का होगा। इसका एक कारण यह भी है कि यह वर्ग जब इस तरह के मुद्दों पर वोट करता है, तो कमोवेश एकतरफ़ा चला जाता है। यही कारण है कि इस ख़तरे को समझते हुए भाजपा के ब्रांड प्रचारक और प्रधानमंत्री मोदी को अपने भाषणों में इस झूठ की मदद लेने पड़ी कि यदि कांग्रेस गठबंधन सत्ता में आया, तो वह इन (हिन्दू) जातियों का आरक्षण मुसलमानों को दे देगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा, जो हिमाचल में कांगड़ा लोकसभा सीट से मैदान में हैं; ने इस पत्रकार से बातचीत में कहा- ‘कांग्रेस के बारे में भला कोई ऐसे सोच भी कैसे सकता है? आपको लगता है कि आज़ादी के समय से लगातार जो कांग्रेस इन जातियों को आरक्षण की समर्थक रही है, वह उनका आरक्षण ख़त्म कर सकती है? यह तो हास्यास्पद आरोप है।’
मतदान के बीच कई ऐसे लोग भी इस पत्रकार को मिले, जिन्होंने कहा कि उन्होंने भाजपा, स्थानीय उम्मीदवार या राहुल गाँधी के मुद्दों के आधार पर वोट नहीं दिया। उन्होंने सिर्फ़ मोदी के नाम पर वोट दिया। नि:संदेह अभी भी काफ़ी लोग हैं, जिन पर मोदी पर पिछले 10 साल की छवि का असर अभी भी है। इनमें से कुछ ऐसे लोग भी मुझे मिले, जिन्होंने कहा कि वे राहुल गाँधी के रोज़गार और महँगाई जैसे मुद्दों को ग़लत नहीं मानते; क्योंकि यह हक़ीक़त है। लेकिन मोदी ने धर्म के लिए जो किया, उसके कारण कम-से-कम इस बार का वोट तो उन्हें देना बनता है। साफ़ है जनता का भाजपा के बड़ी संख्या में सांसदों से मोह भंग था। लोग बेरोज़गारी से भी त्रस्त हैं। और महँगाई भी उन्हें परेशान कर रही है; लेकिन धार्मिक आधार पर वे मोदी के साथ खड़े हैं। ज़मीन की इस हक़ीक़त पर नज़र दौड़ायी जाए, तो मोदी अपने इन समर्थकों के लिए धर्म के आधार पर महत्त्वपूर्ण हैं, सरकार की कार्यकुशलता के कारण नहीं। इन चुनावों में भाजपा और मीडिया के एक बड़े वर्ग और उसी लाइन पर चलने वाले राजनीतिक विश्लेषकों ने मोदी के सामने कौन? वाला नैरेटिव बनाया, तो यह नैरेटिव मोदी की मज़बूत धार्मिक छवि पर आधारित था। यह नैरेटिव कभी भी देश को चला सकने की क्षमता के आधार पर जनता का बनाया नहीं रहा। जिस तरह मोदी समर्थक उन पर राम मंदिर बनवाने और हिन्दुओं को ताक़त देने के कारण उन पर फ़िदा हैं; उसी तरह रोज़गार, महँगाई और सामाजिक न्याय की बात करने वाले राहुल गाँधी के मुद्दों को पसंद करने वाले लोग राहुल गाँधी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखने की कल्पना कर रहे हैं।
इसके बावजूद नैरेटिव यह बना दिया गया कि मोदी के मुक़ाबले विपक्ष में कोई नहीं; क्योंकि इस नैरेटिव को गढ़ने वाली भाजपा के साथ उसके समर्थक पत्रकारों (गोदी मीडिया) की बड़ी $फौज खड़ी दिखी। कांग्रेस, राहुल गाँधी और विपक्ष को मीडिया के इस वर्ग ने भाजपा के प्रभाव के कारण अलग-थलग कर दिया। यही कारण रहा कि अक्सर राहुल गाँधी के भाषणों में यह पीड़ा अक्सर उभर आती थी, जब वह मीडिया के इस ताक़तवर वर्ग पर निष्पक्ष नहीं होने का आरोप लगाते थे। निश्चित ही इससे राहुल गाँधी को कुछ राजनीतिक नुक़सान भी झेलना पड़ा। लेकिन बहुत-से जानकार मानते हैं कि धन-बल के ज़ोर से मीडिया को एकतरफ़ा चलाने की भाजपा की इस मुहिम का सबसे बड़ा नुक़सान ख़ुद मोदी को हुआ है, जिन्होंने इस चुनाव प्रचार में बहुत हल्के शब्दों का इस्तेमाल करके अपनी ही छवि को बड़ी चोट पहुँचायी है। उत्तर प्रदेश में एक जगह युवा बेरोज़गार राहुल पांडेय ने इस पत्रकार से बातचीत में कहा- ‘हम दिन भर टीवी पर मोदी जी का झूठ सुनकर पक चुके हैं। वह रोज़गार की बात नहीं करते। महँगाई की बात नहीं करते। वह अब 2014 और 2019 वाले मोदी नहीं हैं। दोनों बार हमने उनका समर्थन किया था, इस चुनाव में नहीं।’ इस बार फ्लोटिंग वोटर भी भाजपा और मोदी से बिदका हुआ है। मतदान के दौरान अलग-अलग राज्यों में ऐसे बहुत-से लोग मिले, जिन्होंने इस पत्रकार से कहा कि वे इस बार बदलाव के लिए वोट डाल रहे हैं। इनमें नौकरी-पेशा भी थे, बेरोज़गार भी और महिला-युवा-प्रौढ़ सभी ही। राहुल गाँधी के रोज़गार-महँगाई, जातीय जनगणना, युवाओं को रोज़गार की गारंटी और अग्निवीर योजना ख़त्म करने, पुरानी पेंशन, महिलाओं को 8,330 रुपये महीने (साल भर में एक लाख), जीएसटी, 10 किलो अनाज और किसानों को एमएसपी की गारंटी की बात पहले चरण के बाद धीरे-धीरे गाँवों में भी पहुँच गयी। महिलाओं को साल में एक लाख देने का राहुल का वादा उन महिलाओं को भी आकर्षित करने में काफ़ी हद तक सफल रहा है, जो पिछले दो चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी की फैन रही हैं। ख़ासकर ग्रामीण इला$कों में भाजपा को इसका बड़ा नुक़सान झेलना पड़ सकता है। ऐसा लगता है कि बढ़ती महँगाई ने महीने के 8,330 रुपये देने के कांग्रेस के वादे ने महिलाओं को कांग्रेस (इंडिया) गठबंधन की तरफ़ जाने को प्रोत्साहित किया है।
इसके विपरीत भाजपा और ब्रांड मोदी के पास जनता को देने के लिए कुछ नहीं था। इसलिए उनके मुद्दे हिंदू-मुस्लिम, मंगलसूत्र और मुजरा जैसे जुमलों तक सिमट गये, जो वास्तव में वोट की गारंटी नहीं देते। यह मुद्दे उन वोटर को ही भाजपा की तरफ़ आकर्षित कर सके, जो पहले ही धर्म के आधार पर मोदी और भाजपा के साथ हैं। फ्लोटिंग वोटर ऐसे मुद्दों पर कभी भी लगातार तीन बार वोट नहीं देता; क्योंकि उसकी नज़र दैनिक ज़रूरतों पर ज़्यादा रहती है। यह समाज का बड़ी तादाद वाला मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग है। इसी ने 2004 और 2009 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को 10 साल सत्ता में बनाये रखा था। लेकिन 2014 और 2019 के चुनावों में मोदी के साथ रहने वाले इस फ्लोटिंग वोटर का मूड इस बार पिछले दो चुनावों जैसा नहीं दिखा।
यह चुनाव प्रत्यक्ष रूप से नरेंद्र मोदी और राहुल गाँधी के बीच न होते हुए भी मोदी बनाम राहुल गाँधी का चुनाव है। नतीजे चाहें जो भी आएँ, इस चुनाव ने इस देश में मोदी के बाद राहुल गाँधी को एक राष्ट्रीय नेता और विकल्प के रूप में जनता के सामने खड़ा कर दिया है। इस चुनाव के दो सबसे बड़े राजनीतिक पात्रों में मोदी थके हुए और उबाऊ मुद्दों के सहारे खड़े दिखते हैं, जबकि राहुल गाँधी जनता की ज़रूरत के मुद्दों के साथ एक ऊर्जावान नेता के रूप में खड़े दिखते हैं। उबाऊ मुद्दों पर निर्भर होने के बावजूद मोदी ताक़तवर दिखते हैं, तो इसलिए कि वह ज़मीन पर एक मज़बूत संगठन के शिखर पर खड़े हैं, जहाँ उनकी ख़ुद की तमाम कमज़ोरियाँ छिप जाती हैं। अपने बूते जनता के मुद्दों की लड़ाई लड़ने और ऊर्जावान होने के बावजूद राहुल गाँधी यदि मोदी से कमतर दिखते हैं, तो इसका कारण वह ख़ुद नहीं, उनकी पार्टी कांग्रेस का लचर संगठन है। लेकिन एक जीत कांग्रेस और राहुल गाँधी दोनों को उसी मुक़ाम पर ला सकती है, जिस पर आज मोदी विराजमान हैं। क्या राहुल गाँधी और कांग्रेस को इस चुनाव में वह अवसर मिलेगा? यह भी 04 जून को ही पता चलेगा।
इंट्रो- देश में नोटबंदी के बाद अवैध नक़ली नोटों का धंधा बंद होने का दावा किया गया था। लेकिन ‘तहलका’ एसआईटी ने अपनी पड़ताल में पाया कि अवैध नक़ली नोटों का धंधा आज भी धड़ल्ले से चल रहा है। फ़र्क़ यह है कि अब नक़ली नोट पहले की तरह बड़ी संख्या में पकड़े नहीं जा रहे हैं। ‘तहलका’ ने अपनी इस रिपोर्ट में मौज़ूदा चुनावी मौसम के बीच अवैध नक़ली नोटों के कारोबार में शामिल एक बड़े गिरोह का ख़ुलासा किया है। इस ख़ुलासे में स्पष्ट तौर पर कुछ लोगों ने असली नोटों के बदले दोगुने से तीन गुने नक़ली नोट देने की बात क़ुबूल की है। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-
‘मैं गिरफ़्तार नहीं होना चाहता। क्योंकि ऐसा कोई नहीं है, जो मुझे जमानत पर बाहर निकाल सके। मैं जानता हूँ कि जेल में रहने के दौरान मेरी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। मुझे आशंका है कि कुछ लोग, जो नक़ली नोटों के कारोबार में मेरी संलिप्तता के बारे में जानते हैं; वे मुझे गिरफ़्तार करा सकते हैं। इसलिए कृपया सुनिश्चित करें कि मैं सलाखों के पीछे न पहुँचूँ।’
यह बात कर्नाटक के मैंगलोर में रहने वाले समीर (वह अपने पहले नाम से ही जाना जाता है) ने कही, जो पेशे से नाई है। ‘तहलका’ रिपोर्टर के साथ फोन पर स्पष्ट बातचीत में समीर ने अपने अवैध नक़ली नोटों के कारोबार के बारे में विवरण दिया। समीर के अनुसार, वह हमें (नक़ली नोटों के ख़रीदार बनकर बात करने वाले ‘तहलका’ के रिपोर्टर को) उत्तर प्रदेश के नोएडा में एक ऐसे संपर्क से जोड़ सकता है, जो चुनावी उद्देश्यों के लिए नक़ली नोट बनाने में माहिर है। उसने कहा कि हमें (रिपोर्टर को) उसे बस 50,000 रुपये का अग्रिम भुगतान देना है। एक बार लेन-देन पूरा हो जाने पर संपर्क में आने वाला व्यक्ति एक नोट-छापने का सामान ख़रीदेगा और कुछ दिनों के भीतर हमारे (‘तहलका’ रिपोर्टर के) द्वारा दी गयी असली नोटों की नक़दी के दोगुने मूल्य के नक़ली नोट उन्हें दे देगा। समीर ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि किसी भी अतिरिक्त मुद्रा की आवश्यकता को नोएडा में उनके संपर्क से पूरा किया जाएगा।
इस जटिल नक़ली नोटों के गिरोह के नेटवर्क का पर्दाफ़ाश करने के लिए ‘तहलका’ के रिपोर्टर ने ख़ुद को एक ग्राहक के रूप में पेश किया, जो आम चुनाव लड़ रहे (हमारे काल्पनिक) उम्मीदवारों को इस अवैध सेवा देने के लिए बात कर रहा था। समीर ने ‘तहलका’ के रिपोर्टर को बताया कि उन्हें इसके लिए मैंगलोर जाने की कोई ज़रूरत नहीं है; वह नोएडा में ही सब कुछ व्यवस्थित कर देगा। जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आते हैं, सबसे ख़राब रहस्यमयी रूप से नक़ली नोटों का चलन में आ जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि चुनावी मौसम के दौरान लाखों नक़ली नोटों की बाढ़ आ जाती है। हाल ही में बिहार में गया ज़िले की पुलिस ने विशेष रूप से 2024 चुनावों के लिए नक़ली नोट छापने में शामिल एक गिरोह को पकड़ा। चेरकी पुलिस स्टेशन ने नक़ली नोट बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रिंटिंग मशीन के साथ कुल 4.73 लाख रुपये के नक़ली नोट ज़ब्त किये। बरामद नक़ली नोटों में 500, 200, 100 और 50 रुपये के नक़ली नोट थे। अधिकारियों को संदेह है कि इन नक़ली नोटों का इस्तेमाल लोकसभा चुनाव के दौरान किया जाना था, जिसके अंतिम चरण के लिए मतदान 01 जून को होना है।
आम चुनाव की घोषणा के बाद इस साल मई के महीने में बिहार में मोतिहारी पुलिस ने एक बार फिर अवैध नक़ली नोटों के धंधे में शामिल दो लोगों को पकड़ा था। पुलिस ने 2024 के आम चुनावों में इस्तेमाल किये जाने वाले 13 लाख रुपये के नक़ली नोट ज़ब्त किये थे। इस बीच उत्तर प्रदेश के झांसी में एक अन्य मामले में पुलिस ने नोट छापने की मशीन के साथ 2.50 लाख रुपये की नक़ली नोटों के साथ चार लोगों को गिरफ़्तार किया था। इसके अतिरिक्त अप्रैल में चुनाव की तारीख़ों की घोषणा के बाद हैदराबाद पुलिस ने नक़ली नोट बनाने और उन्हें खपाने में लगे एक गिरोह का भंडाफोड़ किया था। ऑपरेशन के दौरान छ: लोगों को गिरफ़्तार किया गया और पुलिस ने 28,000 रुपये की असली नोटों के साथ 36.35 लाख रुपये के नक़ली नोट भी ज़ब्त किये थे। पुलिस ने इन लोगों के पास से नोट छापने में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री भी बरामद की थी। चुनावी सरगर्मी शुरू होते ही नक़ली नोटों का कारोबार करने वाले सक्रिय हो जाते हैं और मौज़ूदा चुनाव भी इसका अपवाद नहीं है। नक़ली नोटों की ‘तहलका’ की इस पड़ताल से एक बड़े गिरोह का पर्दाफ़ाश हुआ है। आप अपने बटुए में मौज़ूद नक़दी पर विचार करें, कि कहीं यह नक़ली मुद्रा तो नहीं है? यह संभव है। इनमें से कुछ नक़ली नोट पाकिस्तान में निर्मित होते हैं और बांग्लादेश के माध्यम से भारत भेजे जाते हैं।
नोटबंदी के बावजूद, जिसका उद्देश्य भारत से नक़ली मुद्रा को ख़त्म करना था; नक़ली नोटों का प्रचलन सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है। सन् 2019 के आम चुनाव के दौरान भी नक़ली नोटों के इस्तेमाल की ख़बरें सामने आयी थीं। इस बार जैसे ही 2024 की चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई, ‘तहलका’ एसआईटी की पड़ताल के दौरान हमारी नज़र हिंदी पट्टी के ऐसे लोगों पर पड़ी, जो नक़ली नोट बनाने में माहिर हैं। इतना ही नहीं, इन लोगों ने अतीत में भी लगभग हर भारतीय चुनाव के दौरान नक़ली नोट बनाने में अपनी संलिप्तता खुले तौर पर स्वीकार की है। इन लोगों ने यह भी दावा किया है कि इन्होंने आम जनता को रोज़मर्रा के लेन-देन के लिए नक़ली नोटों की आपूर्ति भी की है। पड़ताल के दौरान हमारे रिपोर्टर ने सबसे पहले नक़ली नोटों के धंधे के मँझे हुए खिलाड़ी रोहित शर्मा से बात की। नक़ली नोटों के काल्पनिक ग्राहक बने ‘तहलका’ रिपोर्टर से मिलते ही रोहित शर्मा ने उन्हें तुरंत नक़ली नोटों का भाव बता दिया। रोहित की शर्तों के मुताबिक, ‘आपको (हमारे रिपोर्टर को) तीन लाख रुपये के नक़ली नोट प्राप्त करने के लिए मुझे (रोहित को) एक लाख रुपये के असली नोट देने होंगे।’
रोहित : एक का तीन मिलता है।
रिपोर्टर : मैं आपको एक लाख दूँगा। …एक का तीन मतलब?
रोहित : तीन लाख रुपये दूँगा मैं आपको।
रिपोर्टर : मैं एक लाख दूँगा। …आप मुझे नक़ली नोट के तीन लाख दोगे?
रोहित : हाँ।
रोहित शर्मा ने क़ुबूल किया कि चुनाव के दौरान नक़ली नोटों की माँग काफ़ी बढ़ जाती है और उसे नक़ली नोटों के ढेरों ऑर्डर मिलते हैं। उसने कहा कि सांसदों और विधायकों के प्रतिनिधि और सहयोगी इस दौरान अक्सर उसकी सेवाएँ लेते हैं।
रिपोर्टर : अभी तुम्हारा चुनाव में तो काम बढ़ गया होगा? …कितना बढ़ गया?
रोहित : अभी चालू होने वाला है। धीरे-धीरे बढ़ रहा है। बढ़ेगा थोड़ा-थोड़ा। …इलेक्शन में तो काम आता है।
रिपोर्टर : ज़्यादा आता है?
रोहित : हम्म…।
रिपोर्टर : कौन लोग आते हैं ज़्यादा चुनाव में?
रोहित : सांसद, विधायक के काम आते हैं हमारे पास।
रिपोर्टर : विधायक, सांसद ख़ुद आते हैं, या उनके लोग आते हैं?
रोहित : लोग आते हैं उनके।
अब रोहित शर्मा ने ख़ुलासा किया कि उसने एक दिन में सबसे ज़्यादा नक़ली नोट सप्लाई किये थे। उसने महज़ 24 घंटे में 10 लाख रुपये तक के नक़ली नोट खपाने की बात स्वीकार की। जब आगे की जाँच की गयी, तो रोहित ने क़ुबूल किया कि उसका नक़ली नोटों का नेटवर्क पूरे देश में फैला हुआ है, और भारत के किसी भी क्षेत्र तक पहुँचने में सक्षम है।
रिपोर्टर : सबसे ज़्यादा माल आपने, …एक दिन में कितना माल आपने सप्लाई किया है?
रोहित : 10 लाख रुपये एक दिन में।
रिपोर्टर : करे हैं?
रोहित : हाँ।
रिपोर्टर : देश में कहाँ-कहाँ सप्लाई कर सकते हो?
रोहित : हमारा देश में बहुत बड़ा नेटवर्क है। कहीं भी कर सकते हैं।
रिपोर्टर : कहीं भी कर सकते हो?
रोहित : हाँ।
रिपोर्टर : कश्मीर-साउथ?
रोहित : हाँ; नोट तो यही हैं। …कोई हॉन्ग-कॉन्ग का नोट तो है नहीं।
रिपोर्टर : हॉन्ग-कॉन्ग क्या?
रोहित : हॉन्ग-कॉन्ग देश का है नहीं, हमारे पास।
रोहित ने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि उसके नक़ली नोट बैंकों को छोड़कर पूरे भारत में निर्बाध रूप से चलते हैं। उसने पूरे विश्वास के साथ दावा किया कि उसके नक़ली नोट पूरे देश में बिना पहचाने चल सकते हैं।
रिपोर्टर : मतलब, कोई पकड़ न पाये, …..जो नक़ली नोट दे रहे आप हमें?
रोहित : हमारा काम पक्का है। कान पकड़ लेना हमारा। मार्केट में कहीं भी घूम लेना। पूरे हिंदुस्तान घूम लेना, …कभी भी।
रिपोर्टर : किस बारे में हिंदुस्तान में घूम आयेँ?
रोहित : इसी बारे में कहीं पर चला सकते हो। …बैंक छोड़कर।
रिपोर्टर : नोटों के बारे में?
रोहित ने रिपोर्टर को नक़ली नोटों के मूल्य के बारे में भी बताया, जो वह हमें आपूर्ति करेगा। उसने बताया कि नक़ली नोटों में ज़्यादातर 50 और 100 रुपये के नोट शामिल होंगे। उसने बताया कि 500 रुपये के बड़े नोटों पर संदेह पैदा होने की संभावना अधिक होती है, ख़ासकर जब उन्हें बैंकों में ले जाया जाता है।
रिपोर्टर : ये माल जो लेंगे आपसे, …इसमें कौन-कौन से नोट होंगे?
रोहित : यही होंगे …50 का, 100 का।
रिपोर्टर : 500 का नहीं होगा?
रोहित : नहीं। बड़े माल पर शक होता है, …500 पर।
रिपोर्टर : बड़े माल पर क्या होता है?
रोहित : शक, …500 पर शक होता है। जैसे आदमी बैंक में जाएगा…।
रिपोर्टर : 500 वाले में शक ज़्यादा होता है?
रोहित : हाँ।
रिपोर्टर : 100-50 में कम होता है?
रोहित : हाँ।
‘तहलका’ रिपोर्टर की (फ़र्ज़ी) माँग पर रोहित उनके लिए 500 रुपये के नक़ली नोटों का इंतज़ाम करने को तैयार हो गया। संदेह के अधिक जोखिम के कारण शुरू में झिझकते हुए उसने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि वह उन्हें 50 और 100 रुपये के नोट भी दे सकता है।
रिपोर्टर : हमारे लिए कौन-कौन सा मँगा सकते हो?
रोहित : कौन-सा मँगाना है बताएँ?
रिपोर्टर : 500?
रोहित : 500 मँगवा देंगे।
रिपोर्टर : 50 और 100, …वो तो आ ही जाएगा?
रोहित : हाँ।
रोहित ने क़ुबूल किया कि नक़ली नोटों के कारोबार में उसकी प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गयी है, जो दूर-दराज़ के क्षेत्रों से आगंतुकों को आकर्षित करता है। हालाँकि रोहित ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमारे मामले में वह हमसे मिलने के लिए व्यक्तिगत रूप से हमारे (‘तहलका’ रिपोर्टर के बताए) स्थान पर आया।
रोहित : मेरे पास लोग चलके आते हैं, …कहाँ-कहाँ से। मैं आपके पास चलकर आया हूँ।
रिपोर्टर : लोग आते हैं?
रोहित : हाँ; कहाँ-कहाँ से पता नहीं।
रिपोर्टर : बहुत-बहुत धन्यवाद।
रोहित : मैं आपके पास चलकर आया हूँ।
अब रोहित ने इसमें शामिल महत्त्वपूर्ण ख़र्च को स्वीकार करते हुए xxxx सरपंच के चुनावों के दौरान नक़ली नोटों की आपूर्ति करने की बात स्वीकार की।
रोहित : xxxxxx में सरपंच का चुनाव हुआ है। …पैसा बहुत जाता है।
रिपोर्टर : उसका ऑर्डर आया था आपके पास?
रोहित : हाँ।
अब रोहित शर्मा ने ख़ुलासा किया कि नक़ली नोटों के कारोबार में कई लोग शामिल हैं, जिसमें शामिल राशि के आधार पर कमीशन 10 हज़ार रुपये से एक लाख रुपये तक होता है। उसने इस सुझाव को भी सिरे से नकार दिया कि अधिक लोगों के शामिल होने से जोखिम बढ़ जाएगा।
रिपोर्टर : तो आपका इसमें कितना कमीशन होता है?
रोहित : इसमें मेरे अकेले का नहीं है। काफ़ी लोगों का कमीशन होता है। 10 (हज़ार) किसी के, 20 किसी के, 50 किसी के। ऐसे होता है, …सबका कमीशन होता है।
रिपोर्टर : 10 हज़ार, 20 हज़ार या लाख?
रोहित : हाँ; जैसे रक़म आयी ऐसी, …बढ़िया काम हो गया। जैसे 10 लाख आयी आपसे उसमें, …लाख-लाख उठ जाती हैं उसमें।
रिपोर्टर : अच्छा-अच्छा; लाख आपका हो गया। लाख किसी और का होगा। मतलब चेन है पूरी?
रोहित : हाँ।
रिपोर्टर : कितने लोग हैं आपकी चेन में?
रोहित : कोई गिनती नहीं।
रिपोर्टर : बहुत सारे हैं?
रोहित : एक-दूसरे से लिंक हैं। आपसे हो गयी। मुझे हो गयी। …ऐसे हो जाती है।
रिपोर्टर : आपको नहीं लगता जितने ज़्यादा लोग होंगे, उतना ज़्यादा ख़तरा है?
रोहित : नहीं, ऐसा कुछ नहीं है।
अब रोहित ने अवैध नक़ली नोटों के धंधे से अपनी आमदनी का ख़ुलासा किया। उसने दावा किया कि नक़ली नोटों के धंधे से उसने हर महीने दो-तीन लाख रुपये कमाये हैं।
रिपोर्टर : तो आप इसी काम से पैसा कमाते हो?
रोहित : हाँ।
रिपोर्टर : महीने में कितना कमा लेते हो? …लाख, दो लाख?
रोहित : हाँ; दो-तीन लाख कमा लेता हूँ।
जैसे-जैसे रोहित शर्मा से मुलाक़ात आगे बढ़ी, ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उससे पूछा कि 10 लाख मूल्य के नक़ली नोट पहुँचाने के लिए उसे कितना समय चाहिए। इसके जवाब में रोहित ने कहा कि नक़ली नोट पहुँचाने के लिए उसे सिर्फ़ एक दिन का वक़्त चाहिए।
रिपोर्टर : जैसे आज हम ऑर्डर करते हैं, 10 लाख का; …कब दे दोगे हमें?
रोहित : आज देते हो, तो कल आ जाना।
रिपोर्टर : कल आ जाएँ?
रोहित : हाँ।
‘तहलका’ रिपोर्टर ने रोहित के बाद इस धंधे में शामिल एक और व्यक्ति मैंगलोर के समीर से बात की, जिसने उन्हें वीरपाल से मिलवाया। समीर डरा हुआ लग रहा था। उसने कहा कि वह गिरफ़्तार नहीं होना चाहता। क्योंकि अगर वह जेल जाता है, तो उसकी रिहाई के लिए जमानत राशि देने वाला कोई नहीं है। उसने आशंका जताते हुए कहा- ‘कुछ लोग जो जानते हैं कि मैं नक़ली नोटों का कारोबार करता हूँ। वे मुझे गिरफ़्तार करा सकते हैं।’
समीर : वो मिल जाएगा, फिर आपको जितनी भी ज़रूरत है, …दो या तीन की; वो आप बता दें।
रिपोर्टर : ठीक है।
समीर : और क्या बोलते हैं, अपना जो है पैरवी करने वाला कोई नहीं है। बेल कराने वाला भी कोई नहीं है।
रिपोर्टर : अच्छा।
समीर : हाँ; मतलब जो जानेगा, वही खेल कर सकता है।
समीर ने अब कार्यप्रणाली समझायी कि ‘तहलका’ रिपोर्टर को उसके संपर्की वीरपाल को 50 हज़ार रुपये अग्रिम रूप से देने होंगे, और दो-तीन दिनों में वह दोगुनी राशि के नक़ली नोट दे देगा। प्रारंभिक राशि में प्रिंटिंग मशीन की लागत शामिल होती है।
समीर : उनको अपना सामान लेना पड़ेगा, बस एक 50 के (हज़ार) तक का ख़र्चा है।
रिपोर्टर : 50 हज़ार का?
समीर : जी! 50 हज़ार तक का ख़र्चा बताया था; …वो चाहिए हमें एडवांस में। वो सामान ला के, …उसके दो दिन या तीन दिन में 50 का दोगुना हो जाएगा।
रिपोर्टर : ठीक है।
समीर : वो मिल जाएगा, फिर आपको जितनी भी ज़रूरत है, दो या तीन की; …वो आप बता दें।
रिपोर्टर : ठीक है।
रोहित से मिलने के बाद हमारी मुलाक़ात वीरपाल से हुई, जिसका परिचय समीर ने कराया था; जो नक़ली नोटों के कारोबार में शामिल एक अन्य व्यक्ति है। वीरपाल ने भी रोहित की तरह एक लाख रुपये के असली नोटों के बदले दो लाख रुपये के नक़ली नोट देने की पेशकश की। उसने आश्वासन दिया कि वह उसे मिलने वाले असली नोटों से दोगुनी क़ीमत के नक़ली नोट उपलब्ध कराएगा।
वीरपाल : वहाँ से मिलेगा एक का डबल।
रिपोर्टर : कहाँ से?
वीरपाल : जहाँ से भी आएगा, वहाँ से आयेगा एक का डबल।
रिपोर्टर : एक का डबल मानें तो?
वीरपाल : एक लाख के दो लाख मिलेंगे।
रिपोर्टर : एक लाख के हम असली नोट देंगे और दो लाख के आप नक़ली नोट दोगे?
वीरपाल : हाँ।
अब वीरपाल ने नक़ली नोटों का उपयोग करते समय सावधानी बरतने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उसने कहा- ‘क्योंकि नोट एक ही सीरियल नंबर के होंगे। इन्हें एक समय में किसी के लिए भी थोक में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि पकड़े जाने के जोखिम से बचने के लिए हमेशा असली नोटों में मिश्रित करके कई भागों में ख़र्च किया जाना चाहिए।’
वीरपाल : जो मैं आपको बता रहा हूँ, वो ही क्लीयर रहेगा। नोट नक़ली आपका चलेगा मार्केट में। …ये नहीं है, अब आप एक लाख किसी को दे दो; वो तो पकड़ा जाएगा। आज भी या कल भी। क्यूँकि एक ही सीरियल नंबर के हैं। अगर उसने ध्यान दिया, तो। …और ध्यान क्यों नहीं देगा? बड़ा नोट है। हर बंदा ध्यान देगा।
रिपोर्टर : इसमें तो ये है कि छोटे-छोटे नोट दिये जाएँ। एक साथ गड्डी दे दी…?
वीरपाल : गड्डी में नहीं दे सकते। गड्डी में दिक़्क़त है।
रिपोर्टर : गड्डी में तो पकड़ा जाएगा ना?
वीरपाल : पकड़ा जाएगा भाई! आप किसी को एक लाख रुपये दे रहे हो। उसमें 10 हज़ार नक़ली मिक्स करके दे दो। 50 हज़ार दे रहे हो, उसमें 10 हज़ार मिक्स कर दो।
रिपोर्टर : पूरा नहीं दे सकते?
वीरपाल : पकड़े जाओगे आप। एक बंदे को पकड़ लिया, …ख़त्म है कहानी।
बैठक आगे बढ़ी, तो वीरपाल ने खुलकर बात की। उसने ख़ुलासा किया कि उसने दिल्ली, नोएडा और मेरठ में नक़ली नोटों की आपूर्ति की थी; विशेष रूप से मेरठ और देवबंद जैसे आसपास के क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण अभियानों में नक़ली नोट खपाने का काम उसने किया है।
रिपोर्टर : वीरपाल जी! आपकी सप्लाई वैसे कहाँ-कहाँ रही है? …नक़ली नोटों की उसने ख़ुलासा किया कि उसने दिल्ली, नोएडा और मेरठ में नक़ली मुद्रा की आपूर्ति की थी, विशेष रूप से मेरठ और देवबंद जैसे आसपास के क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण अभियानों पर ज़ोर दिया था।
वीरपाल : सेक्टर-37, नोएडा में। दिल्ली के कुछ बंदे थे। मेरठ किया है। मेरठ में काफ़ी किया है। मेरठ के आसपास देवबंद पूरा, …उधर किया है।
अब वीरपाल ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि वह बिना कोई जोखिम उठाये उन्हें एक हफ़्ते में छ: लाख रुपये के नक़ली नोट दे सकता है। उसने आगाह किया कि इस राशि से अधिक नक़ली नोट बनाना जोखिम से भरा होगा और उसे डर है कि अगर उसने ऐसा किया, तो उसे जेल भी हो सकती है।
रिपोर्टर : एक बार में आप कितना दे सकते हो नक़ली नोट?
वीरपाल : एक बार में क्या, बताओ? भाई! ज़्यादा के लफड़े में नहीं पड़ना। दो- तीन लाख रुपये कर दूँगा। तीन लाख रुपये।
रिपोर्टर : एक दिन में?
वीरपाल : आप हफ़्ते में दो टाइम लगा लीजिए।
रिपोर्टर : मतलब हफ़्ते में छ: लाख रुपये, नक़ली नोट?
वीरपाल : हफ़्ते में छ: लाख रुपये नक़ली के दे सकता हूँ। क्यूँकि मैं इतना बड़ा रिस्क नहीं लूँगा कि मैं पैसे समेत वहाँ पकड़ा जाऊँ। आपका तो हो गया, दुश्मन ज़िन्दगी भर का। मैं वहाँ पड़ा रहा हुआ हूँ जेल में।
वीरपाल ने अब क़ुबूल कर लिया है कि जिस आदमी ने उसके लिए नक़ली नोट बनाये थे, उसके पास चुनाव के दौरान काम के ऑर्डरों की बाढ़ आ गयी थी। उसने चुनाव के दौरान नक़ली नोटों की माँग बढ़ने का संकेत दिया।
रिपोर्टर : अच्छा; चुनाव चल रहा है। चुनाव की कोई डिमांड आयी आपके पास?
वीरपाल : मेरे पास नहीं आयी।
रिपोर्टर : उसके पास?
वीरपाल : उसके पास तो चल रहा है, वो कहाँ ख़ाली बैठता है।
रिपोर्टर : चल रहा है, काम उसका?
वीरपाल : वो कर रहा है अपना।
अब वीरपाल ने क़ुबूल कर लिया कि कैसे वह और उसके दोस्त रात में बाज़ार में सामान ख़रीदने के लिए नक़ली नोटों का इस्तेमाल करते थे।
रिपोर्टर : आपका किसी का भी नहीं पकड़ा गया? …आपका? न समीर का, न तीसरे का?
वीरपाल : पकड़ा जाता, कुछ-न-कुछ तो होता। हम शाम को चलते थे। 9:00-10:00 बजे फ्री हो जाते थे अपना। कई-कई बोरी तो सब्ज़ी हो जाती थी। गुटखे इतने हो जाते थे।
रिपोर्टर : वो ही नक़ली नोट से?
वीरपाल : हाँ।
हमारी सुरक्षा एजेंसियों के निष्कर्षों के अनुसार, जालसाज़ी को पाकिस्तान से निरंतर समर्थन मिलता है, जहाँ अधिकांश नक़ली नोट तैयार होते हैं। हमारे पड़ोसियों का स्पष्ट उद्देश्य भारतीय अर्थ-व्यवस्था को अस्थिर करना है। सीमा पार सुविधाओं में मुद्रित इन नक़ली नोटों को नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, मलेशिया और संयुक्त अरब अमीरात में फैले एक स्थापित नक़ली नोट वितरण नेटवर्क के माध्यम से भारत में तस्करी करके लाया जाता है। ग़ौरतलब है कि पिछले साल भारत में नक़ली नोटों की खेप भेजने के लिए चीन के रास्ते का इस्तेमाल किया गया था।
नशीली दवाओं के तस्करों और हथियार तस्करों के साथ-साथ संगठित अपराध सिंडिकेट और लश्कर-ए-तैयबा और इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी समूह इस अवैध धंधे के अभिन्न अंग हैं।
इंडियन मुजाहिदीन के यासीन भटकल सहित गिरफ़्तार आतंकवादी गुर्गों से पूछताछ में नक़ली नोटों के धंधे से प्राप्त आमदनी का उपयोग हथियारों और विस्फोटक सामग्री की ख़रीद, आतंकियों की भर्ती और काडरों की घुसपैठ जैसी अन्य ख़तरनाक गतिविधियों को वित्तपोषित करने के उनके मंसूबों का ख़ुलासा हुआ है। यह गठजोड़ केवल आर्थिक अस्थिरता से परे नक़ली नोटों द्वारा उत्पन्न तरह-तरह के ख़तरों को रेखांकित करता है।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि चुनावों में भारी मात्रा में धन का उपयोग किया जाता है। अब तो चुनावों में नक़दी का उपयोग पहले से कहीं अधिक बड़े पैमाने पर किया जाता है। तत्काल कार्रवाई के अभाव में हम नक़ली नोटों के प्रचलन में वृद्धि देख सकते हैं, जो अराजक आर्थिक स्थितियों में योगदान दे रही है और मुद्रास्फीति को बढ़ा रही है। पाकिस्तान के साथ राजनीतिक बातचीत में शामिल होने के चल रहे प्रयासों के बावजूद भारत को अपने इस पड़ोसी की कुख्यात ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई द्वारा उत्पन्न आर्थिक अस्थिरता के ख़तरे से निपटने के लिए यथार्थवादी और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
कुछ साल पहले ‘तहलका’ ने भारतीय व्यवस्था से अपराधियों को जड़ से उखाड़ने की उम्मीद से नक़ली नोटों पर एक और पड़ताल की थी। हालाँकि यह निराशाजनक है कि नक़ली नोटों का धंधा करने वाले हमारी व्यवस्था के भीतर ही काम कर रहे हैं। चुनाव का मौसम उन्हें इस धंधे को बढ़ाने वाला ख़ास समय बन जाता है। क्योंकि नक़ली नोटों के धंधेबाज़ों से कई राजनीतिक ग्राहक इस तरह की अवैध सेवाएँ लेने के लिए आतुर रहते हैं। नक़ली नोटों के ये धंधेबाज़ केवल अपने विश्वसनीय ग्राहकों से ही जुड़ते हैं, अजनबियों को एक साधारण संदेश देकर दूर कर देते हैं; जिस प्रकार से ‘तहलका’ रिपोर्टर को उन्होंने अपने ठिकानों की जानकारी नहीं दी। ‘हम इस धंधे से बाहर हैं।’
यह बात किसी से ढकी छुपी नहीं है की हिंदुस्तान की सारी सेकुलर पार्टियों ने मुसलमानों को हमेशा अपना वोट बैंक समझ कर इस्तेमाल किया है यह काम इंदिरा गांधी ने शुरू किया था उन्होंने मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा हिंद को मुसलमानों के वोट को कांग्रेस के लिए ट्रांसफर करने के लिए इस्तेमाल किया इसके बाद मस्जिदों के इमामों का एक संगठन बना जिसने यह दावा किया कि वह पूरे मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि है यह संगठन इंदिरा गांधी जी के वक्त में ही बन गया था इस संगठन के अध्यक्ष मौलाना जमील इलियासी साहब से इंदिरा गांधी जी बहुत प्रभावित थी इन्हीं बातों को देखते हुए बहुत से इमामों ने अलग-अलग नाम से इमामों के संगठन खड़े कर दिए और यहीं से मुसलमानों के वोटो की दलाली का वह सिलसिला चला की हर चुनाव में चाहे वह लोकसभा के चुनाव हो चाहे प्रदेशों के विधानसभाओं के चुनाव हो सब में यह संगठन अलग-अलग सेकुलर सियासी पार्टियों के लिए अपील करते हुए और उनके लिए काम करते हुए नजर आए इनके अलावा हिंदुस्तान की बड़ी-बड़ी मस्जिदों के इमामों ने भी अपनी-अपनी पसंद की सियासी पार्टियों के लिए अपील जारी करते रहे यहां तक के 2014 से पहले के लोकसभा चुनाव में जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी ने मुसलमानों से बीजेपी के लिए वोट देने की अपील जारी कर दी थी और तो और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जो कि मुसलमानों के मज़हब के मामलात को निमटारे के लिए बनाया गया था वह भी कुछ खास पार्टियों के लिए अपील जारी करने से पीछे नहीं रहा इन मुस्लिम संगठनों के रवइयों से हिंदुओं के अंदर मुसलमानों के खिलाफ एक ऐसी लहर और नफरत सी पैदा हुई जिसने मौजूदा हिंदुस्तान में मुसलमानों के हालात को और भी खराब से खराब कर दिया और हिंदू इस बात से एकजुट होते चले गए के मुसलमान संगठन और पूरी मुस्लिम बिरादरी बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो गई है और मुसलमान कुछ सियासी पार्टियों का वोट बनकर रह गए हैं जो की हिंदुओं को नीचा दिखाना चाहते हैं अब यह अलग बात है कि इन मुस्लिम संगठनों की सियासी पार्टियों के लिए अपील जारी करने का कितना फायदा हुआ या सियासी पार्टियों को कितना नुकसान हुआ यह हम 2014 के इलेक्शन से पहले के इलेक्शन में अच्छी तरह से देख सकते हैं इन मुस्लिम संगठनों का जादू या सियासी पार्टियों के लिए वोट की अपील जारी करने और इन अपीलों के असर को खत्म करने का सहरा नरेंद्र मोदी को जाता है इसमें कोई शक नहीं है कि 2014 2019 और अब 2024 के चुनाव में मुस्लिम संगठनों का रोल खत्म सा होकर रह गया है विशेष कर 2024 के इलेक्शन में ना कोई मुस्लिम संगठन सामने आया ना किसी ने किसी पार्टी के लिए कोई अपील जारी की अलबत्ता मुसलमानों ने इस चुनाव में जिस तरह बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है और उनका वोटिंग प्रतिशत दूसरी कम्युनिटी से ज्यादा बढ़ा हुआ है उन्होंने इस चुनाव में एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ वोट किया है हालांकि 2014 और 2019 में बहुत से मुसलमानों ने बीजेपी को अपने तौर पर वोट दिया था लेकिन इस चुनाव में मुसलमानों ने एकजुट होकर हर जगह पूरे भारत में बीजेपी के खिलाफ वोट दिया है उसकी वजह यह है कि 2019 के बाद मोदी जी और उनकी सरकार ने जिस तरह से मुसलमान के खिलाफ काम किया है विशेष कर सी ए ए बिल पार्लियामेंट से मंजूर कराया गया और यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की इच्छा और मुसलमानों में के दिल में एनआरसी का जो डर पैदा हुआ उसकी वजह से उन्होंने बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर वोट किया है मुसलमान की इस एकजुट में किसी मुस्लिम संगठन का कोई भी हाथ नहीं है और उम्मीद यही है कि अब आने वाले हर चुनाव में मुसलमान अपने हितों को सामने रखते हुए ही सियासी पार्टियों को वोट देंगे
24 May 2024 Gurdaspur
Farmers protest as they were stopped from going ahead towards PM's election rally site near Gurdaspur on Friday. PM Narendra Modi will address an election rally at Gurdaspur later.
PHOTO-PRABHJOT GILL GURDASPUR
योगेश
किसानों में कमियाँ देखने वाले कह रहे हैं कि किसानों की माँगें जायज़ नहीं हैं। किसान आन्दोलन भी जायज़ नहीं है। लेकिन वे यह नहीं कह रहे हैं कि केंद्र सरकार कहाँ-कहाँ ग़लत है। समझदार लोग कह रहे हैं कि देश के किसानों की माँगें जायज़ हैं, इसलिए केंद्र सरकार को उन्हें मान लेना चाहिए। किसान केंद्र की सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) माँग रहे हैं, तो ग़लत क्या है? कुछ किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में पूछने पर उनका जवाब था कि भाव कम है। भाव कम मिलने से हर फ़सल में उन्हें घाटा होता है। खाद, पानी, जुताई, मज़दूरी; सब महँगा है और अनाज सस्ता बिकता है। बचत इतनी ही है कि पेट भर लेते हैं। फ़सल ख़राब न हो, तो लागत तो निकल आती है। लेकिन अपनी और परिवार की मेहनत कभी नहीं निकलती। फ़सल बेचकर इतना पैसा भी नहीं मिलता कि अगली फ़सल की लागत निकलकर अपने और बच्चों के दो जोड़ कपड़े भी बना सकें।
कुछ किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का पता ही नहीं है कि यह क्या होता है। उन्हें यह पता है कि उनके अनाजों और दूसरी फ़सलों का भाव कम मिलता है। ऐसे किसानों में ज़्यादातर बुजुर्ग और बिना पढ़े हुए किसान हैं। बहुत किसान ऐसे भी हैं, जिन्हें किसान आन्दोलन के बारे में भी ख़ास जानकारी नहीं है। ऐसे किसानों को किसान आन्दोलन से किसी भी तरह जुड़ना चाहिए। न्यूनतम समर्थन मूल्य किसी भी फ़सल की बिक्री के लिए सरकार द्वारा तय किया गया कम-से-कम भाव होता है। पूरे देश में हर चीज़ पर अधिकतम ख़ुदरा मूल्य (एमआरपी) का चलन है, तो किसानों की फ़सलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने का चलन है। लेकिन किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का भाव भी ठीक से नहीं मिल पता। कई साल से केंद्र सरकार ने किसानों को महँगाई और लागत के हिसाब से भी न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया है। भ्रम यह फैलाया जाता है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर किसानों की फ़सलों को नहीं ख़रीदेगी; लेकिन यह इतना कम है कि किसानों को घाटा होता है और इसकी गारंटी भी नहीं दी जाती। किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की ही माँग कर रहे हैं। इसके अलावा किसान अपनी क़ज़र्माफ़ी की माँग कर रहे हैं, जो सरकार चला रहे लोग ही वादा कर चुके हैं। इसके अलावा किसान आन्दोलन के दौरान किसानों की मौत और हत्या को लेकर किसान सरकार से मुआवज़े की माँग कर रहे हैं। आन्दोलन में किसानों को झूठे मुक़दमे वापस लेने और गिरफ़्तार किसानों को जेल से छोड़ने की माँग कर रहे हैं। किसान की ऐसी ही ज़रूरी क़रीब एक दज़र्न माँगे हैं, जो ग़लत नहीं हैं।
केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 23 फ़सलों की ख़रीद करने के लिए प्रतिबद्ध है। इन फ़सलों में 23 फ़सलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर केंद्र सरकार करने के लिए प्रतिबद्ध है, उनमें गेहूँ, धान, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौ आदि सात अनाज हैं। अरहर, उड़द, मूँग, मसूर और चना आदि पाँच दालें हैं। सरसों, तिल, सोयाबीन, मूँगफली, सूरजमुखी, कुसुम और नाइजर सीड आदि सात तेल वाली फ़सलें और कपास, गन्ना, खोपरा और कच्चा जूट आदि चार व्यावसायिक फ़सलें शामिल हैं। लेकिन सभी 23 फ़सलें किसी भी सरकारी क्रय केंद्र-लेबी पर नहीं ख़रीदी जाती हैं। 23 फ़सलें तो दूर की बात है, किसानों की मुख्य फ़सलों को लेने में इन क्रय केंद्रों पर आनाकानी होती है। कई फ़सलों के समय पर भुगतान नहीं होते, जिनमें गन्ना सबसे प्रमुख फ़सल है। गन्ना किसानों को कई महीने बाद भुगतान होता है। अभी तक उत्तर प्रदेश के कई किसानों को दो से तीन साल पुराना भुगतान नहीं हुआ है। इसके अलावा ज़्यादातर क्रय केंद्रों पर दो-तीन फ़सलों की ही ख़रीद होती है। बाक़ी फ़सलों के लिए बहुत कम क्रय केंद्र हैं। इसी के चलते कई राज्यों के किसानों को अपनी फ़सल बेचने के लिए दूसरे राज्यों और दूसरे क्रय केंद्रों पर जाने की समस्या रहती है, जिसके चलते उनकी फ़सलों का एक बड़ा हिस्सा व्यापारी उठाते हैं।
इन सब परेशानियों के चलते किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य इस कारण भी नहीं मिल पाता है। मिलना तो उन्हें 2024-25 के हिसाब से समर्थन मूल्य चाहिए, जिसे केंद्र सरकार लागू नहीं कर रही है। कोई राज्य सरकार भी किसानों की फ़सलों की ख़रीद के लिए अपनी ओर से भाव नहीं बढ़ाना चाहती। केंद्र सरकार को कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर हर वर्ष अनाजों, दलहनों, तिलहनों और वाणिज्यिक फ़सलों का मूल्य बढ़ाना चाहिए और उनका तुरंत भुगतान भी सुनिश्चित करना चाहिए। कृषि फ़सलों के लिए संबंधित राज्य की सरकारें और संबंधित केंद्रीय विभाग भी न्यूनतम समर्थन मूल्य की एक सही राशि का सुझाव केंद्र सरकार को नहीं देते हैं। इन सबके प्रमुखों की सहमति के बाद केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है।
हालाँकि ये सभी विभाग केंद्र सरकार के ही अधीन हैं, इसलिए उनकी सहमति भी सरकार की सहमति ही मानी जा सकती है। शायद इसलिए ही केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत आने वाली फ़सलों पर सही एमएसपी नहीं देती है। इस वर्ष 2024-25 में रबी की फ़सलों के लिए केंद्र सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य बहुत कम है। इसमें गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,275 रुपये प्रति कुंतल, जौ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,850 रुपये प्रति कुंतल, चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,440 रुपये प्रति कुंतल, मसूर दाल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6,425 रुपये प्रति कुंतल, रेपसीड और सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,650 रुपये और कुसुम का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,800 रुपये प्रति कुंतल है। बीते 10 साल में फ़सलों पर लागत 30 से 35 प्रतिशत तक बढ़ी है, जबकि महँगाई तीन से सात गुनी तक बढ़ी है। किसानों की फ़सलों का भाव 20 से 29 प्रतिशत बढ़ा है। इसके हिसाब से किसानों का घाटा और बढ़ा है। आज की परिस्थिति को देखते हुए किसानों को हर फ़सल का भाव आज के न्यूनतम समर्थन मूल्य से डेढ़ से दोगुना मिलना चाहिए और उसकी गारंटी होनी चाहिए।
कृषि विशेषज्ञ किसान धीरेंद्र से बात करने पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी हर जगह गारंटी देते फिर रहे हैं, फिर उन्हें अपनी पुरानी गारंटियाँ याद क्यों नहीं हैं? किसानों से की गयी उनकी गारंटियों का क्या हुआ? वह एमएसपी की गारंटी क्यों नहीं देते? एमएसपी पर गारंटी देने से किसानों की फ़सलों को कोई कम मूल्य पर नहीं ख़रीद सकेगा। बात बिलकुल उपयुक्त है। आन्दोलन के समय से केंद्र सरकार ने किसानों से अब तक कई बार बातचीत की; लेकिन यह बातचीत सही एमएसपी तय करने और उसकी गारंटी देने पर जब आती है, तो केंद्र सरकार पलटी मार जाती है। जब किसान केंद्र सरकार को वादाख़िलाफ़ी के लिए घेरने की योजना बनाते हैं और दिल्ली की ओर बढ़ते हैं, तो उन्हें रोकने के लिए केंद्र सरकार से लेकर भाजपा की राज्य सरकारें तक किसानों को रोकने के लिए बेरिकेडिंग कराती है, रास्ते में कीलें ठुकवाती है। कँटीले तार लगवाती है। हाईवे ख़ुदवाती है और किसानों पर गैस, लाठियाँ, पानी की बौछार करवाती है। पुलिस ने खनौरी और शंभू बॉर्डर पर तो किसानों पर गोलियाँ भी दा$गीं। किसानों के दिल्ली कूच से सरकार ने उन्हें किसान मानने से इनकार कर दिया और खेती न करने वाले लोगों को किसानों के ख़िलाफ़ भड़काने का काम कुछ सरकार समर्थित लोगों ने लगातार किया।
किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की माँग पूरी करा पाने में आज सड़क पर बैठने को मजबूर हैं। केंद्र सरकार और उसके समर्थक किसानों की माँगों को निराधार बताकर किसानों को अपराधी ठहराने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन किसानों के ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब केंद्र सरकार देने से कतरा रही है, यह भी कह सकते हैं कि केंद्र सरकार के पास किसानों की जायज़ माँगों और जायज़ सवालों के जवाब नहीं हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुद्दा कोई आज का मुद्दा नहीं है। यह मुद्दा पुराना है और इसके लिए कांग्रेस की सरकार में स्वामीनाथन आयोग का गठन किया गया था। लेकिन जब स्वामीनाथन आयोग ने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी, तो केंद्र सरकार ने उसे लागू नहीं किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री और आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों की फ़सलों पर उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का वादा करके सत्ता में आये थे; लेकिन सरकार में आते ही वह भी अपने वादे से फिर गये। इसके बाद केंद्र सरकार में आयी भाजपा के नेता प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। न्यूनतम समर्थन मूल्य देना तो दूर की बात, उन्होंने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया, वो भी भूल गये। अब किसान स्वामीनाथन रिपोर्ट के हिसाब से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की माँग कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार में 80 करोड़ लोगों को हर महीने पाँच किलो राशन मु$फ्त देने का दम्भ भरा; लेकिन किसानों और दूसरे ज़मीनी मुद्दों पर वह चर्चा नहीं की और तीसरी बार जनता से सत्ता माँगी। किसान अपनी फ़सलों का सही मूल्य नहीं पा रहे हैं और बाज़ार के उतार-चढ़ाव का नुक़सान भी भर रहे हैं। छोटे किसान सबसे ज़्यादा परेशान हैं। वे आर्थिक तौर पर इतने कमज़ोर हैं कि लाखों किसान मज़दूरी करने को भी मजबूर हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी न मिलने से बाज़ार में फ़सलों के भाव ज़्यादातर समय कम रहता है। किसानों को अगली फ़सल और घर ख़र्च के लिए पैसे की ज़रूरत फ़सल पकते ही होती है; लेकिन उस समय फ़सलों का अच्छा भाव नहीं मिलता। इसके चलते हर वर्ष सैकड़ों किसान आत्महत्या कर लेते हैं।
नेशनल अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में क़रीब हर साल सैकड़ों किसान और मज़दूर आत्महत्या करते हैं। 2022 में 11,290 किसानों ने आत्महत्या की थी। इस वर्ष के बाद किसानों की आत्महत्या के आँकड़े सरकार ने जारी नहीं किये। भारतीय अर्थ-व्यवस्था ने आँकड़े जारी करके कहा है कि भारत की अर्थ-व्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान 17.3 प्रतिशत है, जो काफ़ी कम है। लेकिन यह आँकड़े सही नहीं लगते, क्योंकि कृषि से क़रीब 62 प्रतिशत जनसंख्या जुड़ी हुई है। स्वामीनाथन आयोग ने किसानों के लिए फ़सल की औसत लागत और उसका 50 प्रतिशत लाभ मिलाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने को कहा था। केंद्र सरकार इसे लागू नहीं करना चाहती है, क्योंकि इससे व्यापारियों को किसानों से ज़्यादा लाभ नहीं मिलेगा।
अमेरिका : राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले पूर्व राष्ट्रपति को अदालत ने दोषी ठहराया गया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बड़ा झटका लगा है। डोनाल्ड ट्रम्प गुरुवार को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने वाले पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए। कोर्ट ने डोनाल्ड ट्रंप को हश मनी केस के सभी 34 मामले में दोषी करार दिया है। अमेरिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी मौजूदा या पूर्व राष्ट्रपति के खिलाफ आपराधिक मामला चलाया गया है।
जूरी ने डोनाल्ड ट्रंप पर फैसला सुनाने से पहले करीब 10 घंटे तक विचार-विमर्श किया। डोनाल्ड ट्रंप को क्या सजा मिलेगी, इस पर अब 11 जुलाई को सुनवाई होगी। ट्रम्प के खिलाफ पोर्न स्टार स्टॉर्मी डेनियल को पैसे देकर चुप कराने और इलेक्शन कैंपेन के दौरान बिजनेस रिकॉर्ड में हेराफेरी करने के 34 केस चल रहे थे। उन्हें इन सभी आरोपों में दोषी पाया गया है।
पॉर्न स्टार को ‘गुप्त दान’: अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप सभी 34 मामलों में दोषी करार
जानकारी के लिए आपको बता दें कि, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर 2016 में व्हाइट हाउस में आने से पहले पूर्व पोर्न स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स के साथ अपने यौन संबंधों को छिपाने के लिए व्यापारिक रिकॉर्ड में हेराफेरी करने का आरोप है। यह मामला उनके पहली बार अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने से पहले 2016 का है। केस की शुरुआत से ही डोनाल्ड ट्रंप खुद को निर्दोष बताते आए हैं और दोषी करार होने के बाद उन्होंने इसको अपने खिलाफ एक साजिश का हिस्सा बताया है। रिपब्लिकन पार्टी के सीनियर नेता की सजा पर अब 11 जुलाई, 2024 को सुनवाई होगी। जज जुआन मर्चन ने इसी तारीख को सजा की सुनवाई तय की है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, कोर्ट ने 6 सप्ताह में 22 गवाहों को सुना। इनमें स्टॉर्मी डेनियल्स भी शामिल थीं। ऐसे में ये सवाल भी उठने लगे है कि क्या ट्रंप दोषी करार होने के बाद भी चुनाव लड़ सकते हैं? अमेरिकी कानून के हिसाब से डोनाल्ड ट्रंप दोषी ठहराए जाने के बाद भी चुनाव लड़ सकते हैं। ट्रंप ने अदालत कक्ष से बाहर निकलने के बाद अपना असंतोष व्यक्त करते हुए कहा, “हमने कोई गलत काम नहीं किया। मैं बहुत निर्दोष आदमी हूं।”
कर्नाटक : कई महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी जनता दल (सेक्युलर) के सांसद प्रज्वल रेवन्ना 35 दिन बाद जर्मनी से बेंगलुरु लौट आए हैं। एयरपोर्ट पर फ्लाइट लैंड करने के कुछ ही मिनटों बाद एसआईटी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। प्रज्वल को जर्मनी से आने के बाद एसआईटी ने केम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किया और पूछताछ के लिए सीआईडी कार्यालय ले जाया गया। आज उन्हें जज के सामने पेश किये जाने की संभावना है। प्रज्ज्वल रेवन्ना सेक्स वीडियो कांड के मुख्य आरोपी है।
प्रज्वल रेवन्ना पर कई महिलाओं के यौन शोषण के आरोप हैं। कर्नाटक सेक्स स्कैंड पर काफी बवाल हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रज्वल से सबसे पहले शुक्रवार को पूछताछ की जाएगी। इसके बाद उसका मेडिकल टेस्ट कराया जाएगा। प्रज्वल को महिला पुलिसकर्मियों की एक टीम जीप से सीआईडी ऑफिस लेकर पहुंची, जिसके बाद उन्हें रातभर सीआईडी ऑफिस में ही रखा गया। इससे पहले बुधवार को स्थानीय अदालत ने उसकी अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। जानकारी के लिए आपको बता दें कि, प्रज्ज्वल ने पहले ही एक वीडियो संदेश जारी कर 31 मई को भारत वापसी की घोषणा की थी। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते और हासन लोकसभा क्षेत्र से एनडीए उम्मीदवार प्रज्वल रेवन्ना को अब जेडीएस ने पार्टी से निलंबित कर दिया है। वह लुफ्थांसा की फ्लाइट एलएच0764 से शुक्रवार तड़के वापस देश आए। प्रज्वल के खिलाफ 3 महिलाओं के उत्पीड़न के 3 मामले दर्ज हैं। वे 26 अप्रैल को लोकसभा की वोटिंग के बाद जर्मनी चले गया था, तब से उसका कोई पता नहीं है। कर्नाटक सेक्स स्कैंडल का मुख्य आरोपी प्रजवल रेवन्ना गिरफ्तार. वहीं गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के अंदर एसआईटी प्रज्वल रेवन्ना को कोर्ट में पेश करेगी और रिमांड मांगेगी। प्रज्वल रेवन्ना को मेडिकल टेस्ट के लिए शुक्रवार को सरकारी अस्पताल ले जाया जाएगा। रेवन्ना ने अपने राजनयिक पासपोर्ट पर म्यूनिख के लिए उड़ान भरी थी। करीब 34 दिनों बाद वह बेंगलुरु लौटे हैं। आज उन्हें कोर्ट में पेश किया जाएगा। प्रज्वल रेवन्ना ने 27 मई को वीडियो जारी करके कहा- ‘मैं 31 मई को SIT के सामने पेश हो जाऊंगा। मेरे खिलाफ लगे सभी आरोप झूठे हैं। मुझे अदालत पर भरोसा है और विश्वास है कि मैं अदालत के जरिए झूठे मामलों से बाहर आऊंगा।’
नई दिल्ली:भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने रुद्रम-2 मिसाइल का सफल परीक्षण किया। इस मिसाइल को Su-30MKI फाइटर जेट से लॉन्च किया गया और उसकी तेज़ हाइपरसोनिक स्पीड ने सभी को आश्चर्यचकित किया। रुद्रम-2 एक एंटी-रेडिएशन मिसाइल है, जिसका उद्देश्य दुश्मन के रेडार और अन्य अविश्वसनीय उपकरणों को नष्ट करना है। इस मिसाइल की ताकत 6791.4 km/hr की अद्वितीय स्पीड में है।
इस परीक्षण के दौरान, मिसाइल के प्रोप्लशन सिस्टम, कंट्रोल और गाइडेंस सिस्टम, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सिस्टम, राडार, और टेलिमेट्री स्टेशंस की जांच की गई। यह विशेष रूप से ताकतवर राकेट है, जो विभिन्न अद्वितीय तंत्रों का उपयोग करती है। इस मिसाइल का सफल परीक्षण भारत की रक्षा क्षमता में महत्वपूर्ण योगदान है, और इससे देश की सुरक्षा को और भी मजबूती मिलेगी।
यूपी: नोएडा के सेक्टर 100 स्थित लोटस बुलेवार्ड सोसाइटी में एसी फटने से भीषण आग लग गई। इस घटना में कई फ्लैट आग की चपेट में आ गए, जिससे सोसाइटी में रहने वाले लोगों में अफरा-तफरी मच गई।
घटना की जानकारी मिलते ही दमकल विभाग की पांच गाड़ियाँ मौके पर पहुँचीं। सीएफओ प्रदीप कुमार ने बताया कि स्थानीय निवासियों द्वारा उन्हें आग लगने की सूचना मिली थी। त्वरित कार्रवाई करते हुए दमकल टीम ने आग बुझाने का काम शुरू किया। उन्होंने बताया कि अग्निशमन प्रणाली ने सही समय पर काम किया, जिससे दमकल की गाड़ियों के पहुंचने से पहले ही आग को काबू में कर लिया गया।
सीएफओ प्रदीप कुमार ने आगे बताया कि आग स्प्लिट एसी में ब्लास्ट होने की वजह से लगी थी। अच्छी बात यह रही कि इस घटना में कोई जनहानि नहीं हुई है। हालांकि, फ्लैट में भारी नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है। घटना के बाद सोसाइटी में भगदड़ मच गई थी, लेकिन स्थिति को जल्द ही नियंत्रित कर लिया गया।
भीषण गर्मी के चलते एसी में ब्लास्ट होने की घटनाओं से सावधानी बरतने की आवश्यकता है। प्रशासन ने नागरिकों से अपील की है कि वे एसी और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की नियमित जांच कराते रहें और सुरक्षा मानकों का पालन करें।
नई दिल्ली :आसमान से बरसती आग से उत्तर भारत उबलने लगा है। राजस्थान के चूरू में पारा 50 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया है। अन्य शहरों में भी तापमान 48-49 डिग्री के आसपास दर्ज किया गया है। दिल्ली में भी पारा 50 डिग्री को छूने की और है। वहीं, यूपी के झांसी में दिन का पारा 49 डिग्री रहा। आगरा में तापमान 48.6 और वाराणसी में 47.6 डिग्री रहा। आंचलिक मौसम विज्ञान केंद्र, लखनऊ के वैज्ञानिक अतुल कुमार सिंह के मुताबिक, यूपी में मई माह में इतनी तपिश कभी नहीं रही।
जयपुर स्थित मौसम विज्ञान केंद्र ने बताया कि मंगलवार को चूरू देश में सबसे गर्म रहा। यहां अधिकतम तापमान 50.5 डिग्री दर्ज किया गया, जो इस सीजन में सबसे अधिक है। इससे पहले यहां एक जून, 2019 को पारा 50.8 डिग्री दर्ज किया गया था। चूरू के अलावा राजस्थान के गंगानगर में तापमान 49.4, पिलानी और झुंझुनू में 49, बीकानेर में 48.3, कोटा में 48.2, जैसलमेर में 48 और जयपुर में 46.6 डिग्री दर्ज किया गया। पिलानी में इससे पहले 2 मई, 1999 को अधिकतम तापमान 48.6 डिग्री दर्ज किया गया था। राज्य सरकार ने बहुत जरूरी होने पर ही घर से बाहर निकलने को कहा है।
मौसम विभाग के मुताबिक, राजधानी दिल्ली के तीन केंद्रों पर तापमान 50 डिग्री के पास पहुंच गया। मुंगेशपुर व नरेला में अधिकतम तापमान 49.9 व नजफगढ़ में 49.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। विभाग ने कहा कि अभी कम से कम दो दिन प्रचंड गर्मी और लू से लोगों को राहत नहीं मिलने वाली है।
उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में लगातार बढ़ते तापमान के चलते जनजीवन प्रभावित हो रहा है। राज्य सरकारें और स्थानीय प्रशासन जनता को आवश्यक सावधानियां बरतने और अत्यधिक आवश्यक होने पर ही घर से बाहर निकलने की सलाह दे रहे हैं। इस अत्यधिक गर्मी से निपटने के लिए ठंडे पेय पदार्थों का सेवन, पर्याप्त जल का सेवन और सूरज की सीधी किरणों से बचने की सलाह दी जा रही है।