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प्रकृति: कोरोना से पहले और कोरोना के बाद

कोरोना वायरस संक्रमण ने भौतिकतावादी अंधी दौड़ में प्रकृति के जरिये मानव मूल्यों की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया है। इसके अलावा इंसानों को नए सिरे से सोचने को मजबूर किया है। पूरी दुनिया के लिए मिलने-मिलाने के लिए एक फासला तय कर दिया है। वायरस ने बता दिया है कि भौतिकतवादी के आगे प्रकृतिप्रेमी ज्यादा मजबूत और टिकाऊ है। इन सबके बीच जहां हवा, पानी को साफ रखने के लिए सरकारें अरबों रुपये खर्च कर रही थीं, अब बिना खर्च किए तकरीबन पूरी दुनिया की आबोहवा मानो पवित्र हो गई है।
प्रकृति ने जतला दिया है कि अगर गैर प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध प्रयोग होगा तो उसका विपरीत असर तो पड़ेगा ही, साथ ही उसका खामियाजा भी एक न एक दिन आपको ही भुगतना होगा। एक तरह से चेतावनी भी है और सीख भी। न सिर्फ सरकारों के लिए, बल्कि हर शख्स के लिए जो प्रकृति को यूं ही हल्के में ले रहा था। कोरोना ने कइयो को बेसहारा कर दिया है तो कइयों का पर्दाफाश भी कर दिया है।
कहां डेढ़ महीने पहले तक लोग चिड़ियों की चहचहाहट को तरसते थे, आज सिर्फ चिड़ियों की गूंज ही सुबह-शाम मेट्रो शहरोें तक के लोगों के दिल को सुकून दे रही है। कभी वे परिंदे कैद हुआ करते थे, आज लगभग पूरी दुनिया अपने ही बनाए या खरीदे गए घरों में कैद है। इसके पीछे गंभीरता से सिर्फ सोचने या विचार करने की ही जरूरत नहीं है, बल्कि अपनी खामियों और कथित तरक्की के पीछे होने वाले नुकसानों का आकलन करने की भी आवश्यकता है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि आज जो गंगा और यमुना जैसी नदियों की सेहत में सुधार हुआ है, उसके पीछे कोराना ही एकमात्र वजह है। इन नदियों का पानी जो नालों की हालत में बदल चुका था, अब इसमें सफ्फाकपन नजर आने लगा है। हवा में भी धूल-धुंध के कण मिट से गए हैं। चूंकि अब कामधंधे, उद्योग, वाहनों और विमानों का आवागमन भी ठप है। ऐसे में मानव को बड़ी कीमत तो चुकानी पड़ रही है, जिसका खामियाजा आने वाले समय में कहीं ज्यादा भयावह रूप में हमारे सामने आता दिखेगा, इससे कोई इनकार भी नहीं कर रहा है। पर जिनका जो फर्ज है, क्या वे उसे अदा कर रहे हैं?
भविष्य में बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी के आंकड़े डरावने वाले हो सकते हैं। लेकिन इनको भी समय रहते ईमानदारी से काम करने पर कम किया जा सकता है। ऐसे में जो लोग और देश मजबूत हैं, उनको आगे आना होगा। उनको बिना किसी झिझक और एहसान के अपना फर्ज निभाना होगा। वरना आने वाले वक्त में पीढ़ियां याद रखेंगी कि ये वक्त कोरोना से पहले का है और ये वक्त कोरोना के बाद का। यानी इतिहास बनने वाला है। अब कइयों के पास इस इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाने के लिए पूरा मौका है। वह चाहे मुल्क हो, व्यक्ति विशेष हो या फिर आम इंसान। कोई भी इसमें मददगार या हिस्सेदार बन सकता है।

कोरोना की दहशत : बेटे ने नहीं किया पिता का अंतिम संस्कार

कोरोना वायरस के संक्रमण का भय लोगों के मन में बहुत गहरे बैठ चुका है। इसके कई उदाहरण देखने को मिल रहे हैं। हाल ही में सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो वायरल हुए, जिनमें हिन्दू मृतकों को अंतिम संस्कार में उनके निकट सम्बन्धी, पड़ोसी और परिचित शामिल नहीं हुए। इनमें कई शवों का अंतिम संस्कार मुस्लिम समुदाय के लोगों ने किया। इसके अलावा ऐसे मामले भी सामने आये हैं, जहाँ लोगों ने कोरोना से हुई मौत के कारण शवों को दफ़नाने या उसके अंतिम संस्कार करने पर पाबंदी लगा दी। ऐसी अमानवीय घटनाएँ न केवल सामान्य लोगों के साथ आ रही हैं, बल्कि इलाज करते-करते कोरोना की चपेट में आये या काल के गाल में समा चुके डॉक्टरों के साथ भी घटित हुई हैं। चेन्नई में कोरोना से मरे एक डॉक्टर के साथ भी ऐसा ही हुआ, वहाँ के लोगों ने डॉक्टर को चर्च की सीमेट्री में नहीं दफ़नाने दिया। ये तो वे घटनाएँ हैं, जिनमें समाज ने बेरुख़ी दिखायी है। लेकिन अगर किसी के परिजन ही ऐसा बर्ताव करें, तो कैसा महसूस होगा? इंसानियत को तो दूर अपनेपन को भी धिक्कार भेजनी पड़ेगी।

मध्य प्रदेश के भोपाल में एक ऐसी घटना सामने आयी है। यहाँ कोरोना वायरस के संक्रमण से एक व्यक्ति की मौत के बाद न केवल उसके परिजनों ने शव लेने से इन्कार कर दिया, बल्कि उसके बेटे ने अपने पिता के शव का अंतिम संस्कार करने से भी मना कर दिया। परिजनों की बेरुख़ी देखकर वहाँ के तहसीलदार स्वेच्छा से अंतिम संस्कार के लिए आगे आये और उन्होंने शवदाह किया।

सूत्रों के मुताबिक, भोपाल के शुजालपुर के रहने वाले को अचानक लकवा मार गया। उसे भोपाल के चिरायु अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस शख़्स की कोरोना वायरस की जाँच की गयी, जो कि पॉजिटिव आयी। इसके बाद उसका कोरोना वायरस का इलाज चलने लगा। 20 अप्रैल उसकी मौत हो गयी। जब उसके परिजन अस्पताल पहुँचे, तो अस्पताल प्रशासन ने कहा कि वे शव को गाँव नहीं ले जा सकते, उन्हें भोपाल में ही पूरी सावधानी और सरकार की ओर से निर्धारित दिशा-निर्देशों के तहत अंतिम संस्कार करना होगा। इस पर परिजनों ने न केवल शव लेने से इन्कार कर दिया, बल्कि अंतिम संस्कार करने से भी मना कर दिया। प्रशासन ने उन्हें पूरी सुरक्षा का भरोसा दिलाया, बावजूद इसके मृतक के पुत्र ने मुखाग्नि देने तक से इन्कार कर दिया। इसके बाद तहसीलदार गुलाब सिंह बघेल स्वेच्छा से अंतिम संस्कार के लिए आगे आय और उन्होंने शव को मुखाग्नि दी। अब पूरे क्षेत्र में तहसीलदार साहब की इंसानियत के गुण गाये जा रहे हैं। मगर सवाल यह है कि क्या एक बीमारी के डर से समाज और यहाँ तक कि परिजनों की भी संवेदनाएँ मर गयी हैं? क्या ऐसे लोगों का अभाव होता जा रहा है, जो दूसरों के लिए अपनी जान तक पर खेल जाते हैं? क्या कुछ लोग अपनी जान को इतना क़ीमती समझते हैं कि जिसने उन्हें पैदा किया, पाला-पोसा, उसी को मरने के बाद लावारिश छोड़ने पर आमादा हैं? क्या ऐसे लोगों से हज़ार गुना अच्छे वे लोग नहीं हैं, जो दूसरों के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं, यहाँ तक कि जान गँवा भी चुके हैं?

डाक्टरों, चिकित्सा स्टाफ पर हमला अब गैर जमानती अपराध, जुर्माना भी

डाक्टरों की सुरक्षा को लेकर केंद्र सरकार ने बुधवार को एक अध्यादेश जारी किया जा रहा है। यह अध्यादेश इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और डाक्टरों के प्रतिनिधियों के बीच सुबह गृह मंत्री की बातचीत के बाद आया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस अध्यादेश को लेकर अपनी बैठक में फैसला किया। इसमें डाक्टरों पर हमले को  गैर जमानती अपराध बना दिया है।

केबिनेट मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने बताया कि अध्यादेश के मुताबिक इसमें ५० हजार से २ लाख के मुआवजे का प्रावधान भी किया गया है। इसके लिए १२३ साल पुराने क़ानून को संशोधित किया गया है। हमला करने वाले को तीन महीने से लेकर ५ साल तक की सजा होगी। गंभीर घायल होने पर ६ महीने से ७ साल तक की सजा का भी प्रावधान किया गया है। यदि डाक्टर, चिकित्सा कर्मी के क्लीनिक, घर, वाहन आदि का भी नुक्सान होता है तो दोगुना जुर्माना भरना होगा और इसे दोषी से ही बसूला जाएगा।

लॉक डाउन के बीच डाक्टरों और चिकित्सा स्टाफ पर लोगों के हमलों की खबर के बाद डाक्टरों के जबरदस्त विरोध के बाद यह फैसला हुआ है। आईएमए  ने आज ही गृह मंत्री के साथ बातचीत के बाद अपना आज का ”ब्लैक डे” कार्यक्रम टालने का फैसला किया था।

अध्यादेश में कहा गया है कि डाक्टरों/चिकित्सा स्टाफ पर हमला करने की सूरत में दोषियों के खिलाफ मामला दर्ज होगा और उनका अपराध गैर जमानती अपराध माना जाएगा। उन्हें एक से लेकर पांच लाख तक हर्जाना भी देना होगा।

मंत्रिमंडल के फैसले की जानकारी केबिनेट मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने एक प्रेस कांफ्रेंस में दी। उन्होंने कहा कि यह मामला अब गैर जमानती होगा। डाक्टरों/स्वास्थ्य कर्मियों का ५० लाख का बीमा भी किया जाएगा।

मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोगों की प्रापर्टी जैसे घर, वाहन आदि की तोड़फोड़ करने पर भी अलग से जुर्माने का प्रावधान किया गया है जो दोगुना होगा। मुकदमा ३० दिन के भीतर चलना शुरू हो जाएगा और एक साल में फैसला आ जाएगा।

चीन के खिलाफ कोरोना को लेकर अमेरिका की ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट मिसौरी की अदालत में मुक़दमा दर्ज

पूरी दुनिया की नाराजगी झेल रहे चीन के खिलाफ अब अमेरिका के राज्य की एक अदालत में बुधवार को नोवेल कोरोना वायरस से जुड़ी सूचनाएं दबाने, इस वायरस की जानकारी दुनिया को बताने वालों के खिलाफ गिरफ्तार करने जैसी कार्रवाई करने और दुनिया में इससे हुए इंसानी और आर्थिक नुकसान को लेकर मुकदमा दायर कर दिया गया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक यह मुक़दमा अमेरिका के सूबे ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट मिसौरी की एक अदालत में मिसौरी के अटॉर्नी जनरल एरिक शिमिट की ओर से दायर किया गया है जिसमें चीन की सरकार, वहां की सत्तारूढ़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य चीनी अधिकारियों के अलावा स्थानीय संस्थानों को पार्टी बनाया गया है। मुकदमे में आरोप लगाया कि दिसंबर के अंतिम हफ्ते तक चीन के स्वास्थ्य अधिकारियों के पास मनुष्यों के बीच संक्रमण के पर्याप्त प्रमाण थे लेकिन इस जानकारी को छिपा लिया गया।

इस मुकदमे  दस्तावेजों में आरोप लगाया गया है कि कोरोना वायरस फैलने के शुरू के सप्ताहों में चीनी अधिकारियों ने कथित तौर पर जनता से धोखा किया और उनसे और दुनिया से बहुत अहम जानकारियों को छिपा दिया गया।

इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि चीन सरकार ने ऐसे लोगों को प्रताड़ित किया जिन्होंने कोरोना वायरस की जानकारी को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की।
इन लोगों को गिरफ्तार तक किया गया। यही नहीं तमाम सबूत होते हुए भी कोरोना के मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण फैलाने के क्षमता से इनकार किया और अहम मेडिकल रिसर्च अनुसंधानों नष्ट कर दिए गए।

चीन पर आरोप लगाया गया है कि लाखों लोगों को संक्रमण से पीड़ित होने दिया गया और इसके इलाज या जांच में काम आने वाले पीपीई किट जैसे उपकरणों को मार्केट में नहीं  आने दिया ताकि जमाखोरी हो सके।

अपने मुकदमे में शिमिट ने कहा कि कोविड-१९ ने दुनिया भर में अपूर्णीय क्षति पहुंचाई है। यह इंसानी जिंदगियों से लेकर आर्थिक स्तर तक है। हजारों-हजार लोग मारे गए, लोग प्रियजनों से बिछड़ गए, अगहु उद्योग ठप्प हो गए हैं और करोड़ों लोगों के सामने रोटी का मसला पैदा हो गया है।

सुरक्षा बलों ने शोपियां में ४ आतंकी ढेर किये

कुछ दिन पहले तीन सैनिकों की शहादत का बदला लेते हुए कश्मीर में सुरक्षा बलों ने बुधवार को चार आतंकियों को मार गिराया। यह आतंकी कश्मीर के बारामुला जिले के शोपियां में हुई एक मुठभेड़ में मारे गए।

जानकारी के मुताबिक वहां अब गोलाबारी फिलहाल बंद हो गयी है लेकिन सुरक्षाबल इलाके की घेराबंदी कर तलाशी अभियान चला रहे हैं। सुरक्षा बलों को शोपियां के जैनापोरा (मेलहोरा) में आतंकवादियों की मौजूदगी की खबर मिली जिसके बाद जेके  पुलिस, सीआरपीएफ और सेना ने रात को ही साझे तौर पर पूरे इलाके को घेर कर तलाशी अभियान शुरु किया।

सुरक्षा बलों के आने पर खुद को घिरता देख आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी जिसका सुरक्षा बलों ने करारा जवाब दिया। काफी देर तक चली गोलीबारी में चार आतंकी मार गिराए गए। बाद में उनके शव भी सुरक्षा बलों ने बरामद कर लिए हैं।

आतंकियों के शवों के पास से बड़ी मात्रा में हथियार और गोला बारूद बरामद हुआ है। फिलहाल आतंकियों की पहचान की जा रही है। हालांकि, उनके आतंकी संगठन
अंसार गजवत-उल-हिंद से जुड़े होने की आशंका है।

इलाके में सुरक्षाबल अभी भी  सर्च अभियान चलाये हुए हैं। जिन आतंकियों को मार गिराया गया है वो एक मकान में छिपे बैठे थे। उन्हें समर्पण के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने गोलियां चलानी शुरू कर दीं। इसके अलावा पिछले तीन दिन में इलाके में  पांच आतंकी पकड़े भी गए हैं।

आईएमए ने ‘व्हाइट अलर्ट’ का कार्यक्रम अमित शाह के साथ बैठक के बाद टाला

लॉक डाउन के दौरान डाक्टरों औरचिकित्सा स्टाफ पर लगातार बढ़ रहे हमलों से सख्त नाराज इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने जिस ”व्हाइट अलर्ट” का ऐलान किया है, उसे फिलहाल स्थगित कर दिया है। बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज आईएमए के प्रतिनिधियों से बातचीत की और उन्हें भरोसा दिलाया कि उन्हें पूरी सुरक्षा दी जाएगी। इसके बाद आईएमए ने फिलहाल अपना विरोध प्रदर्शन टालने का फैसला किया है।

जानकारी के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए डॉक्टरों और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रतिनिधियों से बातचीत की।  शाह ने बातचीत के दौरान डाक्टरों के काम और समर्पण की सराहना की। साथ ही शाह ने उन्हें सुरक्षा का पूरा भरोसा दिलाया। गृह मंत्री ने उनसे अपील की कि वे अपना प्रस्तावित विरोध भी न करें क्योंकि सरकार पूरी तरह उनके साथ है।

इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन भी शामिल रहे। अब आईएमए ने फिलहाल अपना ”व्हाइट अलर्ट” वापस ले लिया है, जिसमें उन्होंने आज रात ९ बजे देश भर के चिकित्सकों और चिकित्सा स्टाफ को मोमबत्ती जलाने को कहा था और इसे व्हाइट अलर्ट की संज्ञा दी थी। आईएमए ने इसे ”ब्लैक डे” के रूप में मानाने के बात कही थी और इसे ”व्हाइट अलर्ट” की संज्ञा दी थी।

गौरतलब है कि लॉक डाउन के दौरान देश में कई जगह डॉक्टरों और चिकित्सा स्टाफ पर हमले की घटनाएं हुई हैं। राज्य सरकारों ने इसपर कार्रवाई तो की ही लेकिन फिर भी घटनाएं हो रही थीं। अब गृह मंत्री ने डॉक्टरों को भरोसा दिलाया है कि सरकार उनकी सुरक्षा के प्रति जागरूक है।

सौ किलोमीटर पैदल चली, १४ किमी रह गया घर तो तोड़ दिया १२ साल की बच्ची ने दम

लॉक डाउन के कारण तेलंगाना में फंसी १२ साल की एक बच्ची की हिम्मत उसे १०० किलो मीटर तक पैदल चलने की शक्ति दे गयी लेकिन जब वो घर पहुँचने ही वाली थी,  तो उसने दम तोड़ दिया। थकी-हारी इस बच्ची ने जब अंतिम सांस ली तो वह छत्तीसगढ़ स्थित अपने घर से महज १४ किलोमीटर दूर थी।

देश में लॉक डाउन के बाद ऐसी बहुत सी घटनाएं हो चुकी हैं। नया मामला १२ साल की जमलो मड़कम का है जो सिर्फ दो महीने पहले ही रोजगार की तलाश में तेलंगाना गयी थी। यह बच्ची तेलंगाना के पेरूर गांव से छत्तीसगढ़ राज्य के बीजापुर स्थित अपने  गाँव आदेड़ के लिए तीन दिन पहले पैदल चली थी। वो अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी।

जानकारी के मुताबिक यह नन्हीं जान रास्ते में कुछ बीमार भी पड़ी लेकिन किसी तरह उसने हिम्मत न हारते हुए तीन दिन में करीब १०० किलोमीटर का रास्ता तय कर लिया। लेकिन उसकी बदकिस्मती देखिये, जब घर महज १४ किलोमीटर रह गया था तो उसकी हिम्मत जवाब दे गयी और इस दुनिया को अलविदा कह गयी।

वैसे वो अकेली नहीं थी। जानकारी के मुताबिक उसके साथ उसी के गांव के ११ और  लोग भी थे। रास्ते में जंगल पड़ने के कारण वे उसके लिए दवाई भी नहीं ले पाए। गांववालों के मुताबिक वो लगातार पेट में पीड़ा की शिकायत कर रही थी। उसे  पेरूर में काम तो मिल गया था, लेकिन बदकिस्मती से लॉक डाउन में उसका रोजगार चला गया।

जब पास में रखा सारा सामान खत्म हो गया तो उसके पास गाँव जाने के अलावा और कोइ चारा नहीं बचा। अन्य लोगों के साथ वो गाँव के लिए निकल गयी। लेकिन दो दिन पहले मोदकपाल इलाके के भंडारपाल गांव के पास उसने दम तोड़ दिया।

राष्ट्रपति भवन ने साफ़ किया, कोइ कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव नहीं  

राष्ट्रपति भवन ने मीडिया रिपोर्ट्स को लेकर साफ़ किया है कि राष्ट्रपति भवन में कोई भी कर्मचारी कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं है। राष्ट्रपति भवन ने मंगलवार शाम एक बयान में कहा है कि राष्ट्रपति सचिवालय का कोई कर्मचारी कोरोना संक्रमित नहीं है और जो व्यक्ति कोरोना संक्रमित पाया गया है, वो कर्मचारी के परिवार का सदस्य है।

पहले खबर आई थी कि कोरोना पॉजिटिव का एक मामला आने के बाद राष्ट्रपति भवन क्षेत्र के १२५ लोगों को सेल्फ आइसोलेशन में भेजा गया है। अब राष्ट्रपति के डिप्टी प्रेस सचिव निमिष रुस्तगी ने एक प्रेस रिलीज जारी कर इसे गलत बताया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति भवन (प्रेजिडेंट एस्टेट) में कोरोना पॉजिटिव की इन रिपोर्ट्स को लेकर स्पष्ट किया जाता है कि मध्य दिल्ली के एक कोरोना पॉजिटिव मरीज की १३ अप्रैल को नई दिल्ली के बीएल कपूर अस्पताल में मौत हो गई थी। वह न तो राष्ट्रपति सचिवालय का कर्मचारी था और न ही राष्ट्रपति एस्टेट का निवासी था।

प्रेस रिलीज में कहा गया है कि बाद में जब मृतक व्यक्ति को लेकर छानबीन की गयी तो इसमें राष्ट्रपति सचिवालय के एक कर्मचारी के परिवार का एक सदस्य उसके संपर्क में पाया गया था। ऐसे में राष्ट्रपति के एस्टेट के अनुसूची ए क्षेत्र, पॉकेट एक में परिवार के साथ रहने वाले उस कर्मचारी के परिवार के सभी सात सदस्यों को १६  अप्रैल को मंदिर मार्ग पर क्वारंटीन किया गया था। हालांकि, जो व्यक्ति मरने वाले से पहले संपर्क में था, वह जांच में कोरोना पॉजिटिव निकला।

उन्होंने कहा कि दिशा-निर्देशों के तहत प्रेसिडेंट एस्टेट  के पॉकेट-एक में ११५ घरों के सदस्यों को अंदर ही रहने को कहा गया है। इन परिवारों को आवश्यक वस्तुओं की घरद्वार पर डिलीवरी की जा रही है।

सेकुलरिज्म और सौहार्द राजनीतिक फैशन नहीं, जुनून है : नक़वी

केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी ने 21 अप्रैल को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सेकुलरिज्म और सौहार्द भारत और भारतवासियों के लिए राजनीतिक फैशन नहीं, बल्कि जुनून और जज़्बा है। उन्होंने कहा कि इसी समावेशी संस्कार और मज़बूत प्रतिबद्धता ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (भारत) को विविधताओं के बावजूद एकता के सूत्र में बाँध रखा है।
नकवी ने कहा कि अल्पसंख्यकों सहित देश के सभी नागरिकों के संवैधानिक, सामाजिक, धार्मिक अधिकार भारत की संवैधानिक एवं नैतिक गारंटी है। किसी भी हालत में हमारी अनेकता में एकता की ताक़त कमज़ोर नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि यहाँ दुष्प्रचार की साज़िशें में अभी भी सक्रीय हैं। लेकिन हमें सतर्क और एकजुट होकर ऐसी ताक़तों और उनके दुष्प्रचार को हराना होगा।
नकवी ने कहा कि फ़र्ज़ी ख़बरों, भड़काऊ बातों और अफ़वाह फैलाने वालों की साज़िशों से हमें होशियार रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश के नागरिक कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जंग लड़ रहे हैं। हम सबको कोरोना के ख़िलाफ़ देश की सामूहिक जंग को कमज़ोर नहीं होने देना है और साज़िशों को नाकाम करना है।
इसके साथ-साथ केंद्रीय मंत्री ने सभी मुसलमानों द्वारा पवित्र रमज़ान के महीने के नियमों का घर में रहकर पालन करने की पहल की सराहना की। उन्होंने कहा कि देश के सभी मुस्लिम धर्म गुरुओं, इमामों, धार्मिक-सामाजिक संगठनों एवं भारतीय मुस्लिम समाज ने संयुक्त रूप से 24 अप्रैल से शुरू हो रहे रमज़ान के पवित्र महीने में घरों पर ही रह कर इबादत, इफ़्तार एवं अन्य धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करने का निर्णय लिया है। नकवी ने कहा कि कोरोना के कहर के कारण रमजान के पवित्र महीने में धार्मिक, सार्वजनिक, व्यक्तिगत स्थलों पर लॉकडाउन, कर्फ्यू, सोशल डिस्टेंसिंग का प्रभावी ढंग से पालन करने एवं लोगों को अपने-अपने घरों पर ही रह कर इबादत आदि के लिए जागरूक करने के लिए देश के 30 से ज़्यादा राज्य वक़्फ़ बोर्डों ने मुस्लिम धर्म गुरुओं, इमामों, धार्मिक-सामाजिक संगठनों, मुस्लिम समाज एवं स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर काम शुरू कर दिया है। विदित हो कि देश के विभिन्न वक़्फ़ बोर्डों के अंतर्गत सात लाख से ज़्यादा पंजीकृत मस्जिदें, ईदगाह, दरगाह, इमामबाड़े एवं अन्य धार्मिक-सामाजिक स्थल हैं। सेंट्रल वक़्फ़ कौंसिल, राज्यों के वक़्फ़ बोर्डों की रेगुलेटरी बॉडी (नियामक संस्था) है।
नकवी ने कहा कि कोरोना की चुनौतियों के मद्देनज़र देश के सभी मंदिरों, गुरुद्वारों, चर्चों एवं अन्य धार्मिक-सामाजिक स्थलों पर भीड़-भाड़ वाली सभी धार्मिक-सामाजिक गतिविधियाँ रुकी हुई हैं। इसी तरह दुनिया के अधिकांश मुस्लिम राष्ट्रों ने भी माहे रमजान में मस्जिदों एवं अन्य धार्मिक स्थलों पर भीड़-भाड़ वाली गतिविधियों पर रोक लगा रखी है एवं नमाज, इफ़्तार एवं अन्य धार्मिक कर्तव्य घरों पर ही रह कर पूरा करने के निर्देश जारी किये हैं। उन्होंने उम्मीद जतायी कि सभी मुस्लिम घर में रहकर ही इन निर्देशों का पालन करेंगे।

समय पर खुलेंगे केदारनाथ धाम के कपाट

हर साल की तरह इस बार भी केदारनाथ धाम के कपाट खोले जाएँगे। बता दें कि देश भर में लॉकडाउन के चलते इस बार केदारनाथ धाम के कपाट खुलने में देरी की आशंका जतायी जा रही थी। इस आशंका पर से 21 अप्रैल को संतों ने परदा उठा दिया है। अब निहित समय पर 29 अप्रैल को ही केदारनाथ धाम के कपाट खोले जाएँगे और भगवान केदारनाथ की स्तुति की जाएगी। यह फ़ैसला ऊखीमठ में पंचगाई समिति के सदस्यों और आचार्य बेदपाठियों ने लिया। समिति सदस्यों और आचार्यों ने 29 अप्रैल को सुबह 6:10 बजे केदारनाथ रावल की देखरेख में पूर्व के फैसले को यथावत रखते हुए केदारनाथ धाम के कपाट खोलने का फ़ैसला किया है। विचार मंथन बैठक में केदारनाथ रावल के दिशा-निर्देशों के बाद पंचगाई समिति के प्रमुख सदस्यों और आचार्यों और वेदाध्ययन करने वालों द्वारा विचार-विमर्श किया गया।

फ़ैसले के बाद समिति में कहा गया कि बाबा केदारनाथ धाम के कपाट तय तिथि को निर्धारित समय सुबह 6:10 पर ही खोल दिये जाएँगे। इससे पहले 25 अप्रैल को ऊखीमठ में भैरवनाथ की पूजा होगी, जबकि 26 अप्रैल को डोली धाम के लिए रवाना होगी। बता दें कि इससे पहले बीकेटीसी के पूर्व सीईओ की देखरेख में कपाट खोले जाने की बात थी, जिसकी तिथि लॉकडाउन के चलते टलने की उम्मीद थी। लेकिन 21 अप्रैल को समिति के सदस्यों और आचार्यों ने इसका फ़ैसला कर दिया।