नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि आरोपियों को जमानत देने के लिए उसकी गतिविधियों पर नजर रखने के वास्ते गूगल पिन का स्थान संबंधित जांच अधिकारियों से साझा करने की शर्त नहीं रखी जा सकती। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने नशीले पदार्थो की तस्करी के आरोपी नाइजीरिया के निवासी फ्रैंक विटस की दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर यह फैसला सुनाया।
पीठ ने कहा, जमानत की शर्त जमानत के मूल उद्देश्य को विफल नहीं कर सकती। ऐसी कोई शर्त नहीं हो सकती जो पुलिस को आरोपी व्यक्तियों की आवाजाही पर लगातार नज़र रखने में सक्षम बनाए। याचिकाकर्ता विटस ने दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से जमानत के लिए मोबाइल लोकेशन पुलिस से साझा करने की शर्त की व्यवस्था के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि इससे उसके निजात के अधिकार का उल्लंघन होता है।
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान पाया कि जमानत की शर्त के रूप में गूगल पिन स्थान साझा करने की शर्त भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत निजता के अधिकार पर आघात करती है। शीर्ष अदालत ने पहले यह भी कहा था कि जब एक बार किसी अभियुक्त को अदालतों द्वारा निर्धारित शर्तों के साथ जमानत पर रिहा कर दिया जाता है तो उसके ठिकाने को जानना और उसका पता लगाना अनुचित हो सकता है। वजह यह कि इससे उसकी निजता के अधिकार में बाधा आ सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने तब कहा था, यह जमानत की शर्त नहीं हो सकती। हम सहमत हैं कि ऐसे दो उदाहरण हैं जहां इस न्यायालय ने ऐसा किया है, लेकिन यह जमानत की शर्त नहीं हो सकती। नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2017 में अपने ऐतिहासिक फैसले में सर्वसम्मति से कहा था कि निजता का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है।
नई दिल्ली : भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार सुबह (8 जुलाई, 2024) पवित्र शहर पुरी के समुद्र तट पर कुछ समय बिताया। श्री जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा में भाग लेने के अगले दिन उन्होंने प्रकृति के साथ बिताए अपने इस अनुभव के बारे में विचार लिखे।
एक्स पोस्ट में राष्ट्रपति ने लिखा, “ऐसी जगहें हैं जो हमें जीवन का सार समझाती हैं और हमें याद दिलाती हैं कि हम प्रकृति का हिस्सा हैं। पहाड़, जंगल, नदियाँ और समुद्र तट हमारे भीतर की किसी चीज़ को कुरेदते हैं हमें आकर्षित करते हैं। आज जब मैं समुद्र तट पर टहल रही थी, तो मुझे वातावरण से एक जुड़ाव सा महसूस हुआ। मध्यम हवा, लहरों के शोर और पानी के विशाल फैलाव विचारों में खो जाने वाला अनुभव था।”
उन्होंने आगे कहा, ” इससे मुझे एक गहन आंतरिक शांति मिली, जो मैंने कल महाप्रभु श्री जगन्नाथजी के दर्शन के समय भी महसूस की थी। और ऐसा अनुभव करने वाली मैं अकेला नहीं हूँ; हम सभी को ऐसा महसूस हो सकता है जब हम किसी ऐसी चीज़ का सामना करते हैं जो हमसे कहीं बड़ी है, जो हमें सहारा देती है और हमारे जीवन को सार्थक बनाती है।”
राष्ट्रपति ने फिर प्रकृति की मानव जाति के लिए अहमियत बताई। उन्होंने कहा,” रोज़मर्रा की भागदौड़ में हम मदर नेचर से अपना संबंध खो देते हैं। मानव जाति मानती है कि उसने प्रकृति पर कब्ज़ा कर लिया है और अपने अल्पकालिक लाभों के लिए इसका दोहन कर रही है। इसका नतीजा सभी देख सकते हैं। इस गर्मी में, भारत के कई हिस्सों में भीषण हीट वेव चली। हाल के वर्षों में हमने देखा कि दुनिया असामान्य मौसम की मार झेल रही है। हालात इशारा कर रहे हैं कि आने वाले दशकों में स्थिति और भी बदतर हो सकती है।”
इसके बाद राष्ट्रपति ने ग्लोबल वॉर्मिंग से होने वाले नुकसान का जिक्र किया है। लिखा है, ” पृथ्वी की सतह का सत्तर प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा महासागरों से बना है, और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से वैश्विक समुद्र स्तर बढ़ रहा है, इससे तटीय क्षेत्रों के डूबने का खतरा भी बढ़ा है। महासागर और वहां पाए जाने वाली वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता को विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है।”
“सौभाग्य से, प्रकृति की गोद में रहने वाले लोगों ने ऐसी परंपराएँ कायम रखी हैं जो हमें रास्ता दिखा सकती हैं। उदाहरण के लिए, तटीय क्षेत्रों के निवासी समुद्र की हवाओं और लहरों की भाषा जानते हैं। हमारे पूर्वजों का अनुसरण करते हुए, वे समुद्र को भगवान के रूप में पूजते हैं।”
अपने भावों को विराम देते हुए राष्ट्रपति मुर्मू ने लिखा है, “मेरा मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण की चुनौती का सामना करने के दो तरीके हैं; व्यापक कदम जो सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की ओर से उठाए जा सकते हैं, और छोटे, स्थानीय कदम जो हम नागरिकों के रूप में उठा सकते हैं। बेशक, ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। आइए हम बेहतर कल के लिए व्यक्तिगत रूप से, स्थानीय स्तर पर जो कुछ भी कर सकते हैं, उसे करने का संकल्प लें। ”
रांची : झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने सोमवार को विधानसभा के एकदिवसीय विशेष सत्र में हंगामे के बीच विश्वास मत हासिल कर लिया। मौजूदा विधानसभा में मौजूद 76 सदस्यों में से 45 ने सरकार के पक्ष में मतदान किया। विधानसभा के मौजूदा स्ट्रेंथ के हिसाब से बहुमत के लिए न्यूनतम 39 मतों की जरूरत थी।
भाजपा और आजसू के विधायकों ने वोटिंग के दौरान सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी करते हुए सदन का बहिष्कार किया। सीएम हेमंत सोरेन ने सुबह 11 बजकर 10 मिनट पर विश्वास प्रस्ताव पेश किया। इस पर वाद-विवाद के बाद अपराह्न 12 बजकर 20 मिनट पर वोटिंग कराई गई।
हेमंत सोरेन ने विश्वास मत पर बहस का जवाब देते हुए कहा कि मेरे सदन में फिर से सीएम के रूप में आने से विपक्ष के पेट में दर्द हो रहा है। ये लोग जिस तरह का आचरण सदन में कर रहे हैं, उससे उनकी हताशा सामने आई है। चुनाव के बाद इनके आधे से ज्यादा विधायक दुबारा सदन में नहीं आएंगे।
प्रस्ताव पर बहस के दौरान नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी ने सीएम हेमंत सोरेन और उनकी सरकार पर तीखे हमले किए। उन्होंने कहा कि यह दो महीने की सरकार घोटालों के साक्ष्य मिटाने के उद्देश्य से बनी है। नेता प्रतिपक्ष ने इसे ठगबंधन सरकार करार देते हुए कहा कि इसने राज्य की जनता, युवाओं, किसानों, छात्रों, आदिवासियों, दलितों को धोखा दिया है।
अमर कुमार बाउरी ने कहा कि 2019 में हेमंत सोरेन ने सरकार बनाने के पहले युवाओं को प्रतिवर्ष पांच लाख लोगों को नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन कुछ हजार नौकरियां भी नहीं दे पाईं। यह चौथा मौका है, जब हेमंत सोरेन बतौर सीएम झारखंड विधानसभा में विश्वास मत परीक्षण में सफल हुए हैं।
सबसे पहली बार 2013 में सीएम बनने के बाद वह फ्लोर टेस्ट में सफल हुए थे। दूसरी बार वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन की जीत के बाद सीएम बने थे और विधानसभा में विश्वास मत जीता था। तीसरी बार उन्होंने पत्थर खदान लीज विवाद में सरकार को राज्यपाल द्वारा बर्खास्त किए जाने की आशंका को देखते हुए 5 सितंबर, 2022 को एक दिन का विशेष सत्र बुलाकर विश्वास मत साबित किया था।
ईडी ने हेमंत सोरेन को जमीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में इसी साल 31 जनवरी को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था।
इसके बाद उनके मंत्रिमंडल में शामिल रहे चंपई सोरेन ने 2 फरवरी को सीएम की कुर्सी संभाली थी। 28 जून को हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए और उसके छठे दिन ही चंपई सोरेन ने सीएम पद से इस्तीफा दिया। अगले दिन यानि 4 जुलाई को हेमंत सोरेन ने सीएम पद की शपथ ली।
नई दिल्ली : जनसंवाद की नीति के तहत कांग्रेस नेता राहुल गांधी समाज के विभिन्न तबके के लोगों से मिलकर लगातार उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास कर रहे हैं। राहुल गांधी उन्हें यह भरोसा दिला रहे हैं कि हम ना महज आपकी समस्याओं को सुनेंगे, बल्कि उसका निराकरण भी करेंगे और आगे भी हमारी यही कोशिश रहेगी कि आपको भविष्य में फिर कभी ऐसी स्थिति से ना जूझना पड़े।
इसी बीच, राहुल गांधी शुक्रवार को अचानक नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गए। वहां उन्होंने लोको पायलट से मिलकर उनकी समस्याएं सुनीं। राहुल ने उनसे ट्रेन परिचालन के संबंध में जानकारी जुटाई। लोको पायलट से मुलाकात की तस्वीरें कांग्रेस ने अपने एक्स हैंडल पर साझा की हैं। ये तस्वीरें अभी सोशल मीडिया पर खासा सुर्खियों में हैं।
वहीं, राहुल के रेलव स्टेशन के दौरे को लेकर भी अब सवाल खड़े हो रहे हैं। उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी दीपक कुमार ने दावा किया कि राहुल गांधी ने जिन लोको पायलटों से मुलाकात की, वे कहीं और से लाए गए थे और वे भारतीय रेलवे लॉबी से नहीं थे।
गौरतलब है कि इससे पहले गुरुवार को भी राहुल गांधी ने दिल्ली के जीटीबी नगर इलाके में जाकर श्रमिकों से मुलाकात की थी। राहुल ने उनसे बातचीत की, उनकी समस्याएं सुनीं। यही नहीं, श्रमिकों से मुलाकात के दौरान राहुल ने फावड़ा भी चलाया, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में रही।
नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने महाराष्ट्र में जीका वायरस के मामलों के मद्देनजर राज्यों को एडवाइजरी जारी की है।जीका वायरस के बढ़ते मामले को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार का स्वास्थ्य विभाग सजग हो गया है और पूरी स्वास्थ्य प्रणाली इस संक्रमण के रोकथाम के प्रयास में जुट गई है। इस एडवाइजरी के तहत सभी राज्यों को निगरानी बढ़ाने और गर्भवती महिलाओं में जीका वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए स्क्रीनिंग बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं।
दरअसल, महाराष्ट्र में जीका वायरस के कुछ मामलों के मद्देनजर, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने राज्यों को एक परामर्श जारी किया है, जिसमें देश में जीका वायरस की स्थिति पर लगातार निगरानी बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं।चूंकि जीका प्रभावित गर्भवती महिला के भ्रूण में माइक्रोसेफली और न्यूरोलॉजिकल परिणामों से जुड़ा हुआ है, इसलिए राज्यों को सलाह दी गई है कि वे चिकित्सकों को नज़दीकी निगरानी के लिए सचेत करें। इसके अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि सभी राज्यों से आग्रह किया जाता है कि वे प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं या प्रभावित क्षेत्रों से आने वाले मामलों को संभालने वाले लोगों को निर्देश दें। जिसमें जीका वायरस के संक्रमण के लिए गर्भवती महिलाओं की जांच करें, जीका के लिए सकारात्मक परीक्षण करने वाली गर्भवती माताओं के भ्रूण के विकास की निगरानी करें और केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही काम करें।
वहीं, महाराष्ट्र के पुणे में बीते 11 दिनों में जीका वायरस के छह मामले सामने आ चुके हैं।जबकि, एक जुलाई को दो गर्भवती महिलाओं में जीका वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई है।इन कारणों के चलते केंद्र सरकार इसे लेकर सतर्कता बरत रही है। सरकार ने जीका वायरस से संक्रमित महिलाओं के भ्रूण की लगातार निगरानी करने का भी निर्देश दिया है। साथ ही अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं को मच्छरों से मुक्त रखने के लिए नोडल अफसर नियुक्त करने के साथ ही रिहायशी इलाकों, स्कूलों, निर्माणाधीन स्थलों और कई संस्थानों को भी मच्छरों से मुक्त रखने को कहा गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों से आग्रह किया है कि वे समुदाय के बीच वायरस के डर को कम करने के लिए सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों पर एहतियाती संदेशों के माध्यम से जागरूकता को बढ़ावा दें, क्योंकि, जीका डेंगू और चिकनगुनिया की तरह एक एडीज मच्छर जनित वायरल बीमारी है।यह एक गैर घातक बीमारी है। जिसके अधिकांश मामले लक्षणहीन और हल्के होते हैं।वहीं, जीका प्रभावित गर्भवती महिलाओं से पैदा होने वाले शिशुओं में माइक्रोसेफली (सिर का आकार कम होना) से जुड़ा है। जो इसे एक बड़ी चिंता का विषय बनाता है।
भारत में 2016 में गुजरात राज्य से पहला जीका मामला दर्ज किया था।तब से, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और कर्नाटक जैसे कई अन्य राज्यों में इसके मामले सामने आए हैं। जबकि, साल 2024 में (2 जुलाई तक), महाराष्ट्र में पुणे (6), कोल्हापुर (1) और संगमनेर (1) से आठ मामले सामने आए हैं।
झारखंड: झारखंड के नये मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गुरुवार को राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के हाथों राजभवन में शपथ ली। शपथ ग्रहण समारोह में जेएमएम के अध्यक्ष और हेमंत के पिता शिबू सोरेन, उनकी पत्नी रूपी सोरेन, हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे। हेमंत सोरेन का राजनीतिक पृष्ठभूम हेमंत सोरेन जेएमएम पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और पिछले कार्यकाल में भी झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह अपने पिता शिबू सोरेन के राजनीतिक वारिस हैं और पार्टी में उनका प्रभाव काफी मजबूत है।
– पेपर लीक से लेकर परीक्षा पास कराने तक का खुलेआम दावा करते हैं दलाल !
इंट्रो-भारत में छोटी से बड़ी परीक्षाओं में नक़ल और उनके पेपर लीक के मामले समय-समय पर सामने आते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लगातार बड़ी-बड़ी परीक्षाओं के पेपर लीक होने के रिकॉर्ड टूटने से विद्यार्थी परेशान होकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। नीट परीक्षा में अनियमितताओं पर चल रहे विवाद के बीच एफएमजीई परीक्षा में कथित गड़बड़ी सामने आ गयी। पेपर लीक की पड़ताल में ‘तहलका’ एसआईटी को पेपर लीक कराने वाले कुछ ऐसे दलालों का पता चला है, जो भारत में मेडिकल लाइसेंसिंग की अखण्डता से पैसे के लिए समझौता करते हैं। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-
राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (स्नातक) यानी नीट-यूजी, जो भारत में एक महत्त्वपूर्ण मेडिकल परीक्षा है; की इस वर्ष की परीक्षा में दज़र्नों परीक्षार्थियों के असामान्य रूप से उच्च अंक प्राप्त करने के बाद धोखाधड़ी के आरोपों के बीच हज़ारों परीक्षार्थियों का ग़ुस्सा फूट पड़ा है और उन्होंने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। भारत की कुछ सबसे बड़ी परीक्षाओं के लिए ज़िम्मेदार सरकारी विभाग राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) द्वारा आयोजित नीट-यूजी में लाखों छात्र हर साल परीक्षा देते हैं। हालाँकि इस परीक्षा के ज़रिये केवल एक छोटा प्रतिशत ही मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए पर्याप्त अंक प्राप्त कर पाता है।
प्रश्न-पत्र में त्रुटियों और अनुचित तरीक़े से दिये गये अनुग्रह अंक (ग्रेस मार्क्स) से लेकर पेपर लीक और धोखाधड़ी के आरोपों तक कई मुद्दों के कारण इस वर्ष की नीट परीक्षा जाँच के दायरे में आ गयी है। हालाँकि एनटीए अधिकारियों ने किसी भी पेपर लीक से इनकार किया है; लेकिन बिहार पुलिस ने दावा किया है कि परीक्षार्थिर्यों में से एक ने जाँच के दौरान पुष्टि की है कि उसने एक रिश्तेदार के द्वारा आश्वासन दिये जाने के बाद कोटा से पटना की यात्रा की थी कि वह पहले से नीट का पेपर प्राप्त कर सकता है। पुलिस के अनुसार, चार अभ्यर्थी लीक हुए पेपर के उत्तर याद करने के लिए परीक्षा से एक रात पहले एक पूर्व निर्धारित स्थान पर एकत्र हुए थे।
नीट विवाद के मद्देनज़र ‘तहलका’ ने एक अन्य महत्त्वपूर्ण परीक्षा- फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन (एफएमजीई) से जुड़े पेपर लीक के आरोपों की भी पड़ताल की। निष्कर्ष बिहार के ही अनुरूप है, जो दर्शाता है कि एफएमजीई पेपर परीक्षा से एक दिन पहले लीक हो जाना था, और परीक्षार्थियों को उत्तर याद करने के लिए पूर्व निर्धारित स्थानों पर इकट्ठा होना था। हमारी पड़ताल के दौरान ‘तहलका’ के रिपोर्टर की मुलाक़ात दिल्ली के राकेश भंडारी नाम के एक बिचौलिया से हुई, जो हमारे काल्पनिक प्रतियोगी (रिपोर्टर के द्वारा बताये गये काल्पनिक छात्र) को एफएमजीई की परीक्षा पास कराने में उसकी सहायता करने के लिए तैयार था। दिलचस्प बात यह है कि उसने वही तरीक़ा अपनाने की कोशिश की, जिसका उल्लेख पहले किया गया था- परीक्षा से एक दिन पहले पेपर लीक करना। भंडारी ने समझाया- ‘हम परीक्षा से एक दिन पहले प्रश्न-पत्र (क्वेश्चन पेपर) प्राप्त कर लेंगे। अभ्यर्थी को एक अज्ञात स्थान पर ले जाया जाएगा और एक रात पहले दोनों प्रश्न-पत्र उपलब्ध कराये जाएँगे। इसके अतिरिक्त हम परीक्षार्थी के लिए प्रश्न-पत्र हल करेंगे, यह सुनिश्चित करते हुए कि वह कम-से-कम 150 प्रश्नों का उत्तर दे; जो परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए आवश्यक न्यूनतम अंक हैं। परीक्षा के दिन परीक्षार्थी को सावधानीपूर्वक परीक्षा केंद्र पर छोड़ दिया जाएगा। यदि परीक्षा के प्रश्न-पत्र लीक हुए प्रश्न-पत्र से मेल खाते हैं, तो परीक्षार्थी को उसी शाम 15 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। याद रखें, अभ्यथी लीक हुए प्रश्न-पत्रों की तस्वीर खींचकर उन्हें दोस्तों को न भेज दे, इसके लिए उसे अपना मोबाइल फोन पहले ही हमें सौंपना होगा; क्योंकि प्रश्न-पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो सकता है और हम मुसीबत में पड़ सकते हैं।’
यह उल्लेखनीय है कि मौज़ूदा नियम ये कहते हैं कि विदेश में चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को स्वायत्त रूप से काम करने वाले राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (एनबीए) द्वारा वर्ष में दो बार आयोजित विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट परीक्षा (एफएमजीई) उत्तीर्ण करनी होगी। सफल अभ्यर्थी राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) या राज्य चिकित्सा परिषदों (एसएमसीज) के साथ अनंतिम या स्थायी पंजीकरण प्राप्त करते हैं, जिससे उन्हें भारत में चिकित्सा का अभ्यास करने की अनुमति मिलती है। उत्तीर्ण न होने पर उनका अभ्यास अवैध हो जाता है।
‘सिक्किम भारत का एकमात्र राज्य है, जहाँ कोई अन्य व्यक्ति वास्तविक अभ्यर्थी की जगह परीक्षा दे सकता है। लेकिन यह जोखिम भरी बात है। मैं इस विकल्प को नहीं अपनाना चाहता। अगर पकड़े गये, तो हमारी ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी।’ यह बात भंडारी ने कही, जिससे ‘तहलका’ रिपोर्टर ने दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में मुलाक़ात की थी। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने ख़ुद को एक काल्पनिक प्रतियोगी का प्रतिनिधि बताकर एक ऐसे बिचौलिये की तलाश की, जो एफएमजीई परीक्षा पास कराने में हमारे काल्पनिक प्रतियोगी की मदद करने की अपनी योजना ख़ुलासा हमारे ख़ुफ़िया कैमरे के सामने कर सके।
‘तहलका’ रिपोर्टर ने राकेश भंडारी को बताया कि हमारा अभ्यर्थी ढाका (बांग्लादेश) से एमबीबीएस स्नातक है, जो अपने पहले प्रयास में भारत में अभ्यास करने के लिए एनएमसी से लाइसेंस प्राप्त करने के लिए आवश्यक एफएमजीई परीक्षा में असफल रहा। जवाब में भंडारी ने हमें हमारे काल्पनिक अभ्यर्थी को एफएमजीई परीक्षा पास करने में मदद करने के लिए तीन विकल्प दिये। पहला विकल्प परीक्षा से एक दिन पहले प्रश्न-पत्र लीक होना है; दूसरा कम्प्यूटर रिकॉर्ड में हेरा-फेरी करके; और तीसरा यह सुनिश्चित करना कि अभ्यर्थी असफल होने के बाद भी पास हो जाएगा। सभी विकल्प निश्चित रूप से वित्तीय लेन-देन से जुड़े हैं। पहले विकल्प के लिए भुगतान परीक्षा के दिन यह सत्यापित करने के बाद किया जाएगा कि लीक हुआ प्रश्न-पत्र वास्तविक परीक्षा के प्रश्न-पत्र से मेल खाता है। जबकि दूसरे और तीसरे विकल्प के लिए भुगतान परिणाम के बाद करने की बात हुई। भंडारी ने वास्तविक परीक्षार्थी के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा परीक्षा देने को सबसे जोखिम भरा विकल्प बताया, जिसके लिए वह तैयार नहीं था। उसके मुताबिक, प्रश्न-पत्र लीक होना ही सबसे अच्छा विकल्प है।
हर साल विदेशी विश्वविद्यालयों से मेडिकल डिग्री प्राप्त करने वाले हज़ारों भारतीय एफएमजीई परीक्षा देने आते हैं। अपने देश में अभ्यास के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन (एनबीई) द्वारा आयोजित एक स्क्रीनिंग टेस्ट और नेशनल मेडिकल कमीशन (पहले मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) द्वारा एक निश्चित अर्हता अनिवार्य की गयी है। एनबीई के आँकड़ों के मुताबिक, औसतन 20 प्रतिशत से भी कम लोग इसे पास कर पाते हैं। रूस, यूक्रेन, चीन, फिलीपींस, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों के विदेशी चिकित्सा स्नातकों को एफएमजीई उत्तीर्ण करने के बाद ही भारत में अभ्यास करने की अनुमति है। हालाँकि यूएस, यूके, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड के एमबीबीएस स्नातकों को परीक्षा देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। सन् एफएमजीई की परीक्षा सन् 2019 में 25.79 प्रतिशत विदेशी स्नातकों ने पास की, जबकि सन् 2020 में यह प्रतिशत 14.68 और सन् 2021 में 23.83 ही था। सन् 2019 से पहले के वर्षों में आँकड़े और भी कम थे। तो इस परीक्षा में असफल होने के बाद लगभग 80 प्रतिशत स्नातक क्या करते हैं? जबकि कुछ लोग चिकित्सा को आगे बढ़ाने और एक अलग करियर-पथ अपनाने के अपने सपने को छोड़ देते हैं। कुछ लोग एफएमजीई उत्तीर्ण किये बिना ही भारत में अवैध रूप से अभ्यास करते हैं। अन्य लोग उत्तीर्ण होने के अपने प्रयासों में लगे रहते हैं। विशेषकर इसलिए, क्योंकि द्विवार्षिक एफएमजीई के लिए परीक्षा पास करने के प्रयासों की कोई सीमा नहीं है।
एफएमजीई परीक्षा के आसपास कथित धोखाधड़ी की ‘तहलका’ की पड़ताल के हिस्से के रूप में हमारे रिपोर्टर की मुलाक़ात बिचौलिये राकेश भंडारी से हुई, जिसने कई असफल प्रयासों के बाद अवैध तरीक़ों से एक कश्मीरी विदेशी एमबीबीएस स्नातक को एफएमजीई पास कराने में मदद करने की बात क़ुबूल की। भंडारी ने ख़ुलासा किया कि उसने परीक्षा पास करने में मदद करने के लिए प्रतियोगी से 20 लाख रुपये लिये थे।
भंडारी : एक तो ख़ास आदमी है, …4-5 चान्स में पास ही नहीं हो रहा।
रिपोर्टर : एफएमजी में?
भंडारी : हाँ, ..उसको फिर एक झटके में करवाया मैंने पिछले साल।
रिपोर्टर : आपने करवाया एफएमजी में पास?
भंडारी : हाँ; अभी शादी की उसने। मुझे शादी में दावत भी न दी। मुझे खुंदक आ गयी इतनी, …परसों पता चला उसकी शादी भी हो गयी।
रिपोर्टर : कितना पैसा लिया आपने उससे?
भंडारी : रेट तो देखो डिपैंड करता है, …अगर डायरेक्ट आ गया, तो 20 लाख भी लेते हैं।
रिपोर्टर : ऑप्शन कौन-सा था, उसका पास होने का?
भंडारी : सारी चीज़ें नहीं बताते, पता है क्या होता है ये सीक्रेसी वाला काम है? आप कितने दिनों से फोन कर रहे हो मिलने के लिए, मैंने आपसे क्या कहा? …टाइम नहीं है। क्यूँकि एक्चुअली क्या होता है, हमारे पास एक की जगह 10 आदमी खड़े होते हैं।
अब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने भंडारी के सामने एक काल्पनिक सौदा पेश किया, जिसमें कहा गया कि हमारे पास एक प्रतियोगी है, जिसने ढाका (बांग्लादेश) में एमबीबीएस पूरा किया है; लेकिन पहले प्रयास में वह एफएमजीई में असफल रहा। भंडारी ने तुरंत हमारे रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि वह परीक्षा से एक रात पहले प्रश्न-पत्र दे (पेपर लीक कर) सकता है। अपनी टीम से इसे हल करवा सकता है और अगले दिन परीक्षार्थी को परीक्षा केंद्र पर छोड़ सकता है। यदि लीक हुआ प्रश्न-पत्र परीक्षा के प्रश्न-पत्र से मेल खाता है, तो अभ्यर्थी को उसी शाम 15 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। उन्होंने लीक हुए प्रश्न-पत्र को साझा करने से रोकने के लिए परीक्षार्थी के मोबाइल फोन को अपने पास रखने या साथ न लाने पर ज़ोर दिया, ताकि उसका यह अवैध काम और परीक्षा पास कराने की मुहिम ख़तरे में न पड़ जाए। भंडारी ने अपने धोखाधड़ी वाले नेटवर्क की शर्तों और उसके काम के तरीक़े पर प्रकाश डालते हुए इसमें सावधानीपूर्वक बनायी गयी अपनी प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों के बारे में विस्तार से बताया।
भंडारी : आप समझे नहीं मेरी बात; …क्वेश्चन पेपर का ऐसा स्कैम होता है, उसमें मेरे को भी नहीं पता होगा, …कब, किस लोकेशन पर भेज रहा होगा वो। सीक्रेट होता है। इसकी तलाशी दो जगह करेगा। कोई मोबाइल तो नहीं, कोई पेपर तो नहीं है इसके पास।
रिपोर्टर : जब ये एग्जाम देने जाएगा?
भंडारी : हाँ; उससे पहले। क्यूँकि एक दिन पहले मिलके जाएगा, जानते तो हैं नहीं इसको। मतलब, अगर इसके पास मोबाइल हो, ये फोटो खींचकर 10 लोगों को भेज देगा; …ये वायरल हो गया, तो फँस गये न वो। वो क्या काम करते हैं, दिन में नहीं बुलाएँगे इसको; …11 बजे बुलाएँगे। एक जगह बुलाएँगे। …सपोज करो यहाँ बुला लिया। यहाँ से अपनी गाड़ी में ले जाएँगे। वो हमारी रिस्पॉन्सबिलिटी रहेगी। यहाँ से लेकर दूसरी जगह ले जाएँगे। दूसरी जगह से तीसरी जगह ले जाएँगे। शाम को पेपर कहीं और होगा।
रिपोर्टर : शाम को पेपर?
भंडारी : शाम को पेपर दिखा देंगे उसको। रात में स्टडी करवा देंगे उसको। एक घंटे में थोड़ी हो पाएगा। फिर 4-5 बजे तक इसको (विद्यार्थी को) करवाके सुबह सीधे सेंटर पर इसको 8:00 बजे पौन 8:00 बजे से 12:00 बजे तक।
रिपोर्टर : और दूसरा?
भंडारी : दूसरा एक घंटे के गैप के बाद होगा।
रिपोर्टर : तो ये दोनों पेपर उसे दे देंगे एक रात पहले ही?
भंडारी : करवा देंगे सोल्व। …कोई 150 क्वेश्चन करवा देंगे। पेपर मैच हो गया, जैसे बच्चे ने कर लिया; पेपर तो वही आ गया ना! तो बच्चे को आराम-आराम से करना है, कोई हड़बड़ी नहीं करनी है।
रिपोर्टर : एग्जामिनेशन सेंटर में?
भंडारी : एग्जामिनेशन सेंटर से पहले, पेपर तो 10-15 मिनट पहले मिल जाएगा ना! ताकि भूल न जाए। …एग्जाम दे दिया आराम से; …शाम को तो मैच (मिलान) हो ही जाएगा। शाम को पेमेंट कर दिया।
रिपोर्टर : शाम को?
भंडारी : पेमेंट करनी है।
रिपोर्टर : आप जो एक घंटे का गैप बता रहे हो दोनों एग्जाम के बीच में, उस एक घंटे में इसको किसी से बात नहीं करनी?
भंडारी : ना। क्यूँकि दूसरे को बता दिया इसने; ..ये आएगा, वो आएगा। फँसने वाला काम क्यों करें?
रिपोर्टर : शाम को पेमेंट कर देनी है? लेकिन आप तो कह रहे थे पेमेंट होगा पास होने के बाद?
भंडारी : पास तो हो ही गया ना वो, हमने तो पेपर दिखाया। दूसरे दिन दे दी पेमेंट।
रिपोर्टर : और रिजल्ट कब तक आता है इसका?
भंडारी : 10-15 दिन में।
भंडारी ने ख़ुलासा किया कि वह परीक्षार्थियों को वित्तीय भुगतान करके एफएमजीई पास करने के तीन रास्ते प्रदान करता है। पहला पेपर लीक है; दूसरे में सर्वर के साथ छेड़छाड़ शामिल है; और तीसरा असफल अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण होने की गारंटी देता है। उसने ‘तहलका’ रिपोर्टर को पहले पेपर लीक के तरीक़े के बारे में समझाया और फिर अन्य दो विकल्पों के बारे में विस्तार से बताया, जिसमें परिणामों में हेर-फेर और इन महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए भरपूर मात्रा में धन को लेकर बताया।
रिपोर्टर : दूसरे ऑप्शन में आप क्या बता रहे थे? सर्वर में कुछ करते हैं?
भंडारी : सर्वर का भी खेल होता है। तीसरा ऑप्शन है, …फेल भी हो गया, तो पास हो जाएगा।
रिपोर्टर : वो कैसे?
भंडारी : आपको पता है कितने बच्चे पास होते हैं कुल? 2,500…।
रिपोर्टर : एफएमजी में? और बैठते कितने हैं?
भंडारी : 20,000, 17,000; …और 2,000-2,500 पास होते हैं मैक्सिमम।
रिपोर्टर : बैठते कितने हैं?
भंडारी : 17-18 के (हज़ार) और 2,500-3,000 मैक्सिमम पास होते हैं। 10 प्रतिशत, आठ प्रतिशत रह जाते हैं। बाक़ी 200-400 बच्चे तो ऐसे ही निकाल देते हैं। क्यूँकि इसमें अवैल्युएशन (मूल्यांकन) कुछ नहीं है ना! मोटा पैसा खाते हैं वो। पासिंग सर्टिफिकेट दे दिया काट-काट के।
रिपोर्टर : लेकिन उसमें भी लड़का एग्जाम में बैठता है?
भंडारी : एग्जाम में कहीं भी हो; …मेन क्या है? पासिंग सब्जेक्ट; …वो लास्ट का खेल होता है।
रिपोर्टर : उसमें कितना पैसा लगता है?
भंडारी : एंड का खेल होता है। उसमें 15 लाख भी लगते हैं, 10 लाख भी।
रिपोर्टर : लेकिन एग्जाम में बच्चा बैठता है उसमें?
भंडारी : एग्जाम तो वो देगा।
रिपोर्टर : तीनों ऑप्शंस में एग्जाम देना है?
भंडारी : एग्जाम तो देना-ही-देना है, एग्जाम के बिना कैसे होगा?
यह पूछे जाने पर कि क्या हमारे (काल्पनिक) प्रतियोगी की जगह कोई और एफएमजीई की परीक्षा देगा या प्रतियोगी को ख़ुद परीक्षा देनी होगी? भंडारी ने बताया कि केवल सिक्किम में ही कोई दूसरा व्यक्ति परीक्षार्थी की जगह परीक्षा दे सकता है। हालाँकि उसने इसमें बड़े जोखिम की बात कहते हुए ऐसा न करने को प्राथमिकता दी। भंडारी के अनुसार, उसके लिए सबसे सुरक्षित और अच्छा विकल्प पेपर लीक ही रहा।
रिपोर्टर : अब आप मुझे ये बताओ, …लड़का ये पूछ रहा था, उसको एग्जाम देने जाना पड़ेगा; या उसकी जगह कोई और देगा एग्जाम एफएमजी का?
भंडारी : देखो साब! एग्जाम देना पड़ेगा। सिर्फ़ एक ही सेंटर है, …ऐसा है, जहाँ दूसरा आदमी बैठ सकता है।
रिपोर्टर : वो कहाँ है?
भंडारी : वो है सिक्किम में। उसमें प्रॉब्लम क्या है, उसमें हमें ड्राबैक्स भी देखने होंगे। वैसे ड्राबैक्स में मैं काम करता ही नहीं हूँ। क़िस्मत ख़राब हो; फँस गया, तो ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी।
रिपोर्टर : हम्म।
भंडारी : रिस्की काम है। इसका काम शाम को ही पता चलेगा इसको, …एक दिन पहले या तो।
रिपोर्टर : जैसे कल एग्जाम है एफएमजी का?
भंडारी : रात में ही लेंगे। …दिन में मोबाइल ले लेंगे। …मोबाइल नहीं होगा।
रिपोर्टर : उससे एक दिन पहले लड़के को क्वेश्चन पेपर मिल जाएगा?
भंडारी : उसको दे जाएँगे, वो रख लेगा अपने पास।
भंडारी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि वह एफएमजीई परीक्षा से एक दिन पहले लीक हुए पेपर की व्यवस्था कर देगा, जिससे परीक्षार्थी इसकी समीक्षा कर सकेंगे और उसी के अनुरूप तैयारी कर सकेंगे। इसके अलावा अगर लीक हुआ प्रश्न-पत्र वास्तविक परीक्षा के प्रश्न-पत्र से मेल खाता भी हो; फिर भी परीक्षार्थी असफल हो जाता है, तो उसे (परीक्षार्थी को) तय रक़म का केवल आधा हिस्सा यानी 15 लाख रुपये में से 7.5 लाख रुपये ही देने होंगे।
रिपोर्टर : एक ऑप्शन तो आपने बता दिया एफएमजी एग्जाम का, और दूसरा क्या है?
भंडारी : दूसरा ऑप्शन भी होता है। पर देखो, ये सबसे सटीक होता है; सटीक। पता है कैसे? आपको पेपर दिखा दिया, आंसर दे दिये, 200 दे दिये; …उसके बाद भी नहीं आएगा, तो ऐसे डॉक्टर बनने का क्या फ़ायदा? और उसके बाद भी फेल उसके बाद भी फेल हो जाए, तो आधा पैसा तो देना ही पड़ेगा। …अपनी तो कोई ग़लती है ही नहीं।
रिपोर्टर : आपने तो क्वेश्चन पेपर दिखा दिया।
भंडारी : दिखा दिया, अब तुम याद ही न करो। …समझ लो, तू डॉक्टर बनने के लायक है ही नहीं। ..हा…हा….हा (हँसते हुए), …तेरे को तो कुछ भी नहीं आता। जब तेरे को आंसर दे दिया और आठ घंटे में पढ़ा भी दिया उसको, तब भी नहीं आएगा, तो फिर…।
रिपोर्टर : फेल हो गया, तब भी 50 प्रतिशत देना पड़ेगा?
भंडारी : देना पड़ेगा। वो छोड़ेगा थोड़ी। जब सब मैच हो गया है।
रिपोर्टर : मतलब, 15 लाख का 7.50?
भंडारी से बात करने के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाक़ात ढाका (बांग्लादेश) के एक विदेशी मेडिकल स्नातक से हुई। शुरू में एफएमजीई परीक्षा उत्तीर्ण करने का दावा करते हुए उसने बाद में भारत में अभ्यास करने के लिए आवश्यक स्क्रीनिंग टेस्ट में असफल होने की बात स्वीकार की। उसने मरीज़ों के जीवन को ख़तरे में डालते हुए एनएमसी से आवश्यक लाइसेंस लिये बिना ही कुछ महीनों तक एक अस्पताल में भी काम किया था। फ़िलहाल (बातचीत के समय तक) वह दिल्ली में एक नयी नौकरी की तलाश में था। इसके साथ ही उसे भंडारी जैसे एक बिचौलिये की भी तलाश में भी है, जो उसे एफएमजीई पास कराने में मदद कर सके।
इसके अलावा ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाक़ात कश्मीर के एक प्रतियोगी सिराज (बदला हुआ नाम) से दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में हुई। सिराज लीक हुए परीक्षा पेपर के लिए बिचौलिये को 15 लाख रुपये देने पर सहमत हुआ।
रिपोर्टर : अगर एक दिन पहले क्वेश्चन पेपर दे देता है आपको एफएमजी एग्जाम का पास करने का, तो वो आप कर लोगे?
सिराज : उसमें एक चीज़ आपको मिल जाएगी। पढ़ लूँगा मैं; उसमें ज़्यादा कॉन्फिडेंस हैं ना!
रिपोर्टर : सॉल्व आप थोड़ी न करोगे? …सॉल्व तो कोई और करेगा ना!
सिराज : वही मैं बोल रहा हूँ। सॉल्व करके मुझे ये पता होगा ना कि मैंने ये पेपर रटा है। वहाँ बस छपना है। कॉन्फिडेंस होता है ना! …अब ये लोग कह रहे हैं कि नहीं करेंगे। क्या मतलब? नहीं हो पाया फिर? पछताओगे फिर, इससे अच्छा तो मैंने पढ़ा होता।
रिपोर्टर : पैसे के लिए आप कम्फर्टेबल हैं,…15 लाख?
सिराज : 15 लाख का मसला नहीं है। मसला ये है कि अगर पेपर मुझे एक दिन पहले देगा ना! 200 सवाल ही दे-दे बस, मैं चंडीगढ़ रात को ही निकलूँगा। मैं रास्ते में पढूँगा।
रिपोर्टर : वो भी आप सॉल्व नहीं करोगे क्वेश्चन पेपर? …कोई और करेगा?
सिराज : हाँ-हाँ।
नीट परीक्षा में अनियमितताओं पर चल रही जाँच के कारण राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) एक और विवाद में फँस गयी है। यह मामला वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। इसके अलावा हाल ही में गृह मंत्रालय द्वारा समझौता की गयी परीक्षाओं की अखंडता के बारे में उठायी गयी चिन्ताओं के बाद शिक्षा मंत्रालय ने यूजीसी-नेट परीक्षा रद्द कर दी। इन सामने आ रहे मुद्दों के बीच ‘तहलका’ एसआईटी की यह पड़ताल और परीक्षाओं के प्रश्न-पत्र लीक कराने वाले माफ़िया का ख़ुलासा राष्ट्रीय परीक्षाओं की विश्वसनीयता को कम करने वाली व्यापक चुनौतियों पर प्रकाश डालते हैं। राकेश भंडारी जैसे बिचौलियों द्वारा फैलाये गये भ्रष्टाचार के जटिल जाल को उजागर करके ‘तहलका’ की इस रिपोर्ट का उद्देश्य व्यवस्था में ख़ामियों का फ़ायदा उठाने वालों को उजागर करने के साथ-साथ भविष्य की परीक्षाओं की गोपनीयता और अखंडता की रक्षा के लिए प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता पर बहस शुरू करना है।
आजकल साइबर अपराधी और ग़लत सोच वाले लोग एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुरुपयोग से हर रोज़ हज़ारों लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। एआई का दुरुपयोग करके न सिर्फ़ आपराधिक प्रवृत्ति के लोग ठगी कर रहे हैं, बल्कि लड़कियों और महिलाओं को फँसाकर उनका शोषण भी कर रहे हैं। एआई के दुरुपयोग को लेकर ज़्यादातर समाजसेवी और बुद्धिजीवी चिन्तित रहते हैं कि एआई का दुरुपयोग बढ़ने से अपराध बढ़ रहा है, जिसे रोकने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन इस बीच एक नयी चिन्ता पैदा हो गयी है। यह चिन्ता एआई के और संवेदनशील होने को लेकर है।
जानकारों का कहना है कि अगर एआई संवेदनशील हो गया, तो उसमें सिंगुलैरिटी जैसा कुछ घटित होगा और एआई अपने आप ही अन्य एआई बनाना शुरू कर देगा। इंटरनेट के ज़रिये लिखने-पढ़ने, जानकारी हासिल करने और ग्राफिक्स को आसान बनाने के लिए एआई का आविष्कार किया गया; लेकिन इसके दुरुपयोग ने सबको चिन्ता में डाल दिया। अब एआई से आगे बढ़कर नये लक्ष्य पोस्ट में एजीआई यानी आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस का आविष्कार किया जा रहा है। ये एआई एक ऐसा और आधुनिक वर्जन है, जो एआई से ज़्यादा स्मार्ट होगा और दुरुपयोग करने पर उससे भी कई गुना ज़्यादा ख़तरनाक। वैज्ञानिकों और कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियरों का मानना है कि एजीआई के चलन से ऑनलाइन किये जाने वाले अपराध की गति कई गुना बढ़ जाएगी। हालाँकि एजीआई का सदुपयोग करने पर इसके परिणाम एआई से कहीं बेहतर होंगे और ये ऐप एआई से ज़्यादा उपयोगी साबित हो सकता है। एजीआई के सदुपयोग से बौद्धिक कार्य को पूरा करना सीखा जा सकता है।
एजीआई एक व्यापक बुद्धिमान और जागरूकता में एआई से कहीं ज़्यादा बेहतर है। यह ऐप चैटबॉट या मानव-रोबोट इंटरैक्शन के लिए ज़रूरी माना जा रहा है। लेकिन इस ऐप को बनाने वालों को भी पता है कि इसका दुरुपयोग काफ़ी ख़तरनाक साबित होगा, जो अपने कार्यों और डोमेन की एक विस्तृत शृंखला में ज्ञान देने, अत्याधुनिक नया बहुत कुछ सीखने और क्लोन आदि को बेहतर तरीक़े से लागू करने की क्षमता वाला होगा। हालाँकि एजीआई पर अभी काम चल रहा है और इसे जन सामान्य के लिए अभी उपलब्ध कराने में लंबा समय लगेगा। लेकिन इसे लेकर व्यापक स्तर पर काम चल रहा है। हालाँकि अभी एजीआई बनाने में लगे लोग इसमें संज्ञानात्मक लचीलापन, अनुकूलनशीलता और सामान्य समस्या-समाधान कौशल जैसे वर्जन शामिल करने के साथ-साथ इसे सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे इसका दुरुपयोग कम हो सके। लेकिन फिर भी एजीआई भविष्य की सुपर इंटेलिजेंट प्रणालियों में जितना स्मार्ट, उपयोगी और काम का साबित होगा, दुरुपयोग करने पर उससे ज़्यादा ख़तरनाक और असुरक्षित भी हो सकता है।
दरअसल इंसानी ऑपरेटर की जानकारी के बाहर काम करने में स्मार्ट एजीआई एक अभूतपूर्व नवाचार है, जिसे ओपेन एआई और उसके प्रतिद्वंद्वी नये और आधुनिक रूप में हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। एजीआई इंसानों का बनाया हुआ अब तक का सबसे आधुनिक ऑनलाइन सॉफ्टवेयर होगा, जिसका मक़सद इंसानी दिमाग़ की तरह या उससे भी आगे की सोच रखकर काम करना होगा। एजीआई एआई से ज़्यादा संवेदनशील और भविष्य की सुपर इंटेलिजेंट प्रणालियों को बढ़ावा देगा। एजीआई उन प्रणालियों को संदर्भित करेगा, जो इंसानों की बौद्धिक क्षमता के बराबर या उससे भी आगे जाकर काम करने में सक्षम हो सकता है। कहा जा रहा है कि एजीआई जब बनकर तैयार होगा, तो इसका उपयोग न सिर्फ़ इंसान की बौद्धिक उलझनों को सुलझाने में मदद करेगा, बल्कि कैंसर जैसी बीमारियों की दवा के यौगिकों के नये संयोजन खोजने में मदद करेगा।
अगर एजीआई का सदुपयोग हुआ, तो इससे कई फ़ायदे हो सकते हैं। क्योंकि इसका उपयोग मशीनों के स्वत: संचालन में भी किया जा सकेगा। ड्राइवर रहित ड्राइविंग में भी इसका उपयोग करने की उम्मीदें जगी हैं, जिसके लिए कई साल से वैज्ञानिक कर रहे हैं। इस तरह से एजीआई के आने से कई फ़ायदे हो सकते हैं; लेकिन दूसरी तरफ़ कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर्स और ऐप्स का दुरुपयोग करके अपराध करने वाले इसका दुरुपयोग करके आपराधिक आतंक मचा सकते हैं। हालाँकि अभी तक एजीआई का निर्माण करने वाले इसके उस स्तर तक नहीं पहुँच सके हैं, जिसकी उन्हें तलाश है। लेकिन एआई के जानकारों और बनाने वाले ज़्यादातर लोगों का मानना है कि एजीआई जैसी इंटेलिजेंसी के ईजाद होने और जीपीटी-4 जैसे बड़े भाषा मॉडल के बनने से कम्प्यूटर के एक सबसे आधुनिक लक्ष्य तक पहुँचने की समय-सीमा को काफ़ी छोटा कर दिया है और वह दिन दूर नहीं, जब इंसान कम्प्यूटर इंटेलिजेंसी की सोच वाली आज तक की सबसे ऊँची चोटी पर खड़ा होगा, जो पूरी दुनिया को हैरान कर देगी।
कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि एजीआई स्वाभाविक रूप से अत्यधिक ख़तरनाक है, क्योंकि इसका सामान्यीकृत ज्ञान और संज्ञानात्मक कौशल इसे चलाने के किसी भी जानकार को उस व्यक्ति की ख़तरनाक योजनाओं और उद्देश्यों का आविष्कार करने में मदद करेगा और उसका दुरुपयोग करने की अनुमति देगा। लेकिन कई शोधकर्ताओं का मानना है कि एजीआई तक पहुँचना एक क्रमिक, पुनरावृत्तीय प्रक्रिया होगी, जिसमें हर क़दम पर विचारशील सुरक्षा रेलिंग होगी, जिससे इसका दुरुपयोग आसान भी नहीं होगा। हालाँकि अभी तक एजीआई के समर्थकों और विरोधियों में इस बात पर भी काफ़ी बहस जारी है कि इस अत्याधुनिक कृत्रिम सामान्य बुद्धिमत्ता को लेकर क्या अच्छा है और क्या ख़राब? दोनों तरफ़ से सवालो-जवाबों और समस्याओं-सुगमताओं को लेकर वाद-विवाद जारी है।
एजीआई में 49 प्रतिशत हिस्सा रखने वाली माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी के शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने जीपीटी-4 में एजीआई की चिंगारी पहले ही देख ली है। एजीआई को बनाने में लगी कम्पनी एंथ्रोपिक के सीईओ डारियो अमोदेई ने पिछले दिनों कहा था कि दो-तीन साल के अंदर एजीआई को लॉन्च कर दिया जाएगा। लेकिन डीपमाइंड के सह-संस्थापक शेन लेग का कहना है कि साल 2028 तक एजीआई के आने की संभावना 50 प्रतिशत है। वहीं गूगल ब्रेन के सह-संस्थापक और वर्तमान लैंडिंग एआई के सीईओ एंड्रयू एनजी ने कहा है कि एजीआई जैसी तकनीक लाने के लिए पहले पर्याप्त स्मार्ट सिस्टम होना चाहिए, जिसे प्राप्त करना बहुत दूर की बात है। एंड्रयू एनजी का कहना है कि एजीआई के दुरुपयोग के बारे में कई तर्कों से वह ख़ुद चिन्तित हैं। उनका कहना है कि एजीआई का दुरुपयोग और सदुपयोग तो दूसरी चिन्ता है। पहले तो एजीआई के क़रीब पहुँचने का सवाल परेशान कर रहा है, जिसका जवाब है हमारे पास नहीं है। क्योंकि एजीआई की परिभाषा नहीं बदली जा सकती। एजीआई को उपयोगी बनाने में ही अभी क़रीब तीन साल लगेंगे, भले ही हम 30 साल पहले ही वहाँ पहुँच सकते हैं। एनजी का कहना है कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए एजीआई की परिभाषा को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं और ज़्यादा अच्छा या ज़्यादा ख़राब प्रचार कर रहे हैं। इसीलिए एजीआई शब्द से जुड़ी उम्मीदें और डर दोनों सामने आ रहे हैं।
ओपेन एआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने हाल ही में एजीआई को एआई सिस्टम के आधुनिक रूप में परिभाषित किया है, जिसका प्रचार निश्चित तौर पर इस नयी और हैरान करने वाली नयी तकनीक में लोगों की रुचि बढ़ाने के साथ-साथ ज़्यादा-से-ज़्यादा निवेश को बढ़ावा दे सकता है। लेकिन यह उम्मीदों का एक बुलबुला भी बन सकता है, जो पूरा न होने पर अंतत: फट सकता है और कई लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है। इन बयानों से लगता है कि कई लोगों को बड़े घाटे में ले जा सकता है और कई लोगों का दिमाग़ी संतुलन बिगाड़ सकता है। क्योंकि जिस तन्मयता से एजीआई के आविष्कारक पैसा और समय ख़राब करके इसे ईजाद करने में लगे हैं, उनका इस ऐप के लिए बहुत कुछ दाँव पर लगा है।
इस दिशा में काम करने वाले मोटे तौर पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के तीन प्रकारों को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसे हम इसके संकीर्ण या कमज़ोर रूप कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई (एएनआई), सामान्य या कृत्रिम सामान्य बुद्धिमत्ता यानी एजीआई और असामान्य या कृत्रिम सुपर इंटेलिजेंस यानी एएसआई के रूप में जान सकते हैं। इससे पता चलता है कि एआई को ईजाद करने वाले आज जिस एजीआई के आविष्कार में लगे हैं, वे या उनके फॉलोअर्स एजीआई के बाद भी रुकेंगे नहीं और इससे आगे भी कुछ नया बनाएँगे, जिसे एएसआई या इससे अलग कुछ और कहा जाएगा। हालाँकि इस तरह के नये कम्प्यूटरीकृत ऐप इनके उपयोगकर्ताओं को ही फ़ायदा पहुँचाने वाले होते हैं। ये लोग कम्प्यूटर की भाषा नहीं समझने वालों या ऐप के उपयोग न करने वालों के लिए मुसीबत बन सकते हैं।
आज साइबर अपराध तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसके ज़रिये सामान्य लोगों की बात तो दूर, बड़े-बड़े इंटेलिजेंस और यहाँ तक कि सरकारें भी ठगी का शिकार हो रही हैं। साइबर अपराधी के निशाने पर दुनिया के बड़े-बड़े लोग तक हैं। हैरानी की बात है कि जो लोग इन आधुनिक ऐप्स को ईजाद कर रहे हैं, साइबर अपराधी उन्हें भी नहीं छोड़ रहे हैं। इसी के चलते वैज्ञानिक और कुछ शोधकर्ता इस सवाल में उलझे हुए हैं कि ऐप स्मार्ट होना चाहिए या उनसे भी ज़्यादा सुपर स्मार्ट? और इस बात को लेकर चिन्तित हैं कि आधुनिक ऐप्स की बढ़ती शृंखला कहीं उनके सामने बहुत बड़ी चुनौतियाँ खड़ी न कर दें।
पंजाब और हरियाणा के किसानों के आन्दोलन के बीच न्यूनतम समर्थन मूल्य और दूसरी 20 माँगों को लेकर देश भर के किसान फिर से बड़ा आन्दोलन कर सकते हैं। इसकी घोषणा हरिद्वार से भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत कर चुके हैं। राकेश टिकैत ने हरिद्वार किसान कुंभ-2024 के मंच से केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को आन्दोलन की चेतावनी देते हुए किसानों और युवाओं की समस्याओं का समाधान करने को कहा है। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें किसानों की माँगें पूरी करें और बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार दें।
हरिद्वार में 14 जून से 18 जून तक चार दिवसीय हरिद्वार किसान कुंभ 2024 का आयोजन हुआ था, जिसमें 18 जून को किसान कुंभ के समापन के दौरान भाकियू की महापंचायत में किसानों और भाकियू के कार्यकर्ताओं से 100 दिन के एजेंडे पर संघर्ष करने की रणनीति अपनाने का आह्वान राकेश टिकैत ने किया। इस महापंचायत में किसानों और देश के युवाओं की 21+5 सूत्रीय माँगों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से एक बार फिर अपील की गयी। 21+5 में 21 माँगें किसानों हैं और पाँच माँगें युवाओं की हैं। ये सभी माँगें महापंचायत की रणनीति में प्रमुखता से शामिल की गयी हैं और सरकारों के इन माँगों को पूरा न करने पर किसान आन्दोलन में इन माँगों को पूरा करने की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से माँग की जाएगी।
किसानों की 21 माँगों में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित 23 फ़सलों का एमएसपी गारंटी क़ानून बनाना प्रमुख माँग है। इसमें किसानों की माँग है कि केंद्र सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में नयी समिति बनाकर तत्काल एमएसपी क़ानून बनाये, जिसमें स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के सी2+50 प्रतिशत के फार्मूले के हिसाब से एमएसपी लागू करे। इसके अलावा देश में अलग से किसान आयोग का गठन हो। कई राज्यों की तरह सभी राज्य सरकारें किसानों को मुफ़्त बिजली दें। उत्तर प्रदेश में ट्यूबवेलों पर बिजली मीटर लगाने को लेकर स्पष्टीकरण देते हुए इस काम को वहाँ की सरकार रोके। सभी राज्यों में आवारा पशुओं से फ़सलों के नुक़सान को रोकने के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर सरकारी परती की ज़मीनों पर अस्थायी पशु शालाएँ बनें, जिससे किसानों को खेती और जान-माल का नुक़सान न हो। गन्ने का भाव कम-से-कम 400 रुपये प्रति कुंटल तय हो और गन्ना किसानों का बक़ाया पैसा डिजिटल भुगतान से तुरंत दिया जाए।
अलग से योजनाएँ बनाकर छोटे किसानों के परिवारों के स्वास्थ्य और उनके बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था हो। छोटे किसानों को ब्याज मुक्त कृषि ऋण दिया जाए। किसान क्रेडिट कार्ड पर लिये गये पैसे को लौटाने की मीयाद कम-से-कम पाँच साल हो और उस ऋण पर सिर्फ़ एक प्रतिशत ब्याज दर ली जाए। सरकारी कर्मचारियों की तरह किसानों और उनके परिवारों का कम-से-कम पाँच लाख का बीमा एक रुपये की प्रीमियम पर किया जाए। किसानों की सामाजिक सुरक्षा का दायरा मज़बूत हो। हर गाँव में साफ़ पीने योग्य पानी की सप्लाई करते हुए इसे स्वच्छ जल योजना के दायरे में लाया जाए। खादों, बीजों और कीटनाशकों के नाम पर कम्पनियों को दी जाने वाली सब्सिडी किसानों को दी जाए।
इसके अलावा गिरते भू-जल स्तर को ऊपर उठाने के लिए सभी नदियों को आपस में जोड़ा जाए और वाटर रिचार्ज की योजना को धरातल पर उतारा जाए। नदियों पर चेकडेम बनाने के साथ उनकी सफ़ाई करायी जाए और छोटी नहरों में रिचार्ज कूप योजना लागू करते हुए उनमें भरपूर पानी छोड़ा जाए। अभी 24 घंटे बिजली सप्लाई नहीं हो रही है। इसके लिए केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें गाँवों में सोलर पैनल लगाने का काम करें, जिससे किसानों को 24 घंटे मुफ़्त बिजली मिल सके। जिन किसानों की छतों पर और खेतों में सोलर पैनल लगे हैं, उन्हें उसकी सब्सिडी दी जाए और किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाए, जिससे गाँवों की बिजली पर निर्भरता कम हो सके। मंडी व्यवस्था मज़बूत की जाए और सभी फ़सलों की ख़रीद को नक़दी में सुनिश्चित हो, जिससे किसानों को अपने ही पैसे के लिए इंतज़ार न करना पड़े और पैसे के अभाव में उनकी अगली फ़सल की बुवाई में देर न हो। गाँवों के उजाड़ने या उजड़ने पर सभी ग्रामीणों के उत्थान के लिए विशेष योजनाएँ बनें, जिसके तहत किसानों को बाज़ार भाव से उनकी ज़मीनों का मुआवज़ा दिया जाए।
पूरे देश में बनी मंडियों को मज़बूत बनाकर किसान और स्थानीय लोगों को खाने के लिए सस्ता अनाज उनमें देने की व्यवस्था की जाए। भारत में खेती यहाँ की जीवन पद्धति का हिस्सा है, इसलिए फ़सलों को व्यापार से बाहर रखते हुए लूटने वालों का मुनाफ़ा कम करने के लिए खेती को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से अलग किया जाए। किसानों के अलावा केंद्र सरकार मछुआरों को भी सब्सिडी दे और उनके परिवारों को मुफ़्त शिक्षा और स्वास्थ्य प्रदान करे। किसानों पर फ़सल अवशेषों को जलाने और दूसरे एनजीटी के नियमों के तहत ज़ुर्माने के प्रावधान वापस लिये जाएँ। इसके अलावा कृषि यंत्रों पर कृषि करने के संसाधनों के उपयोग पर किसानों को समय-सीमा में छूट दी जाए। प्राइवेट और कमर्शियल वाहनों को अलग-अलग वर्गों में विभाजित करके किलोमीटर के हिसाब से उनकी मीयाद की गारंटी निर्धारित की जाए। राजस्थान की ईस्टर्न कनाल परियोजना को केंद्रीय योजना के अंतर्गत लाया जाए, जिससे राजस्थान के 13 ज़िलों की जीवन-शैली प्रभावित न हो। पहाड़ी राज्यों में पहाड़ी कृषि नीति के तहत स्थानीय संसाधनों और बाज़ार व्यवस्था लागू की जाए। पहाड़ के निवासियों का पलायन रोकने के लिए वहीं पर रोज़गार की व्यवस्था हो। उन्हें पशुपालन, बाग़वानी और औषधीय खेती के लिए आर्थिक मदद, प्रशिक्षण आदि मिले। आदिवासी इलाक़ों में जल, जंगल और ज़मीन बचाने के लिए केंद्र सरकार और आदिवासी राज्यों की सरकारें आदिवासियों के कल्याण के लिए योजनाएँ बनाएँ और उन्हें ज़मीनों का मालिकाना हक़ दिलाते हुए भूमि अधिग्रहण और जंगलों के कटान को रोकें। भूमि अधिग्रहण क़ानून को उद्योगपतियों और पूँजीपतियों के हित में नहीं, किसानों के अनुकूल बनाया जाए। देश में फैली विद्युत लाइनों के जाल से किसानों को हो रहे नुक़सान की भरपाई किसानों को मुआवज़ा देकर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें करें।
इसके अलावा देश में रोज़गार के लिए परेशान युवाओं के लिए भी रोज़गार की व्यवस्था सरकार करे। अन्य कामों के अलावा खेती को भी आकर्षक और लाभकारी बनाते हुए युवाओं को रोज़गार दिया जाए और स्वरोज़गार के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इसके अलावा अग्निपथ योजना की मीयाद चार साल ज़्यादा की जाए और चयनित युवाओं की चार साल में 75 फ़ीसदी छँटनी रोकी जाए। इन युवाओं को पुलिस, अर्द्धसैनिक बलों में प्राथमिकता के आधार पर भर्ती किया जाए। चयन न होने तक उन्हें बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए। देश केंद्र सरकार एक युवा आयोग का गठन करके उसे संवैधानिक दर्जा दे, जिसमें युवाओं की शिकायतों का तत्काल निपटारा किया जाए। रोज़गार पाने की आयु-सीमा पार कर चुके युवाओं को इसके तहत लाभ दिलाया जाए। इसके अलावा बार-बार भर्ती परीक्षाओं में घोटालों और पेपर लीक रोकने के लिए केंद्र सरकार कड़े क़दम उठाए। युवा किसानों को खेती से सम्बन्धित कुटीर व लघु उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए और दलालों पर रोक लगाते हुए समय से उनके काम सीधे तौर पर किये जाएँ। 50 या 100 युवाओं के दल बनाकर उनके अपने-अपने इलाक़े में फ़सल चक्र, खेती करने और अनाज, फलों की प्रोसेसिंग के लिए उन्हें सब्सिडी दी जाए, जिससे वे खेती में रोज़गार तय कर सकें। कृषि विषय को निम्न स्तर से लेकर हर तरह के विद्यालयों में अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाए, जिससे देश के युवाओं को खेती का ज्ञान हो और खाद्य पदार्थों की अहमियत मालूम हो सके। किसानों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए पंचायत स्तर पर खेल के मैदान बनाकर उनकी समितियों को ही रख-रखाव की ज़िम्मेदारी सौंपी जाए। युवक मंगल दल जैसे मॉडलों के माध्यम से उनको प्रोत्साहन दिया जाए। इसके अलावा किसानों ने शिक्षित युवतियों के लिए महिला समूह का गठन करने और उनके हितों में अन्य योजनाएँ लागू करने की माँग रखी है।
हरिद्वार किसान कुंभ 2024 के समापन के दिन महापंचायत में भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने किसानों से कहा कि किसान संगठन को मज़बूत करने की ज़रूरत है, क्योंकि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें किसानों की एक भी नहीं सुन रही हैं। किसानों को अपनी माँगें मनवाने के लिए एक और बड़ा आन्दोलन करना होगा और इसके लिए ज़्यादा समय नहीं है। कांवड़ यात्रा के बाद उत्तराखण्ड में आन्दोलन युवाओं को करना होगा। पूरे देश में बड़ा आन्दोलन करना होगा, जिससे किसानों और देश के युवाओं के साथ सरकारें धोखा न कर सकें और उनकी उचित माँगें पूरी हो सकें। राकेश टिकैत ने इस दौरान साल 2025 तक देश भर में 25 किसान भवन बनाने का भी लक्ष्य रखा। महापंचायत में तय किया गया कि इस बार हर राज्य में किसानों को आन्दोलन करना होगा।
आन्दोलन बड़े स्तर पर हो या न हो; लेकिन किसानों की माँगों और युवाओं की माँगों को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मान लेना चाहिए। आज भी पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और देश के ज़्यादातर राज्यों के किसान अपनी माँगों को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं; लेकिन केंद्र सरकार उनकी बात नहीं सुन रही। उलटे किसानों पर हमले करवाये जा रहे हैं। डेढ़ महीने पहले ही किसानों पर ख़ूब हमले हुए, जिसमें कई किसानों की जान चली गयी। लेकिन केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार ने हमलावरों पर कार्रवाई करने की जगह किसानों के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई की। इससे किसान काफ़ी आहत हैं।
राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) ने 21 अगस्त से 04 सितंबर के बीच विश्वविद्यालय अनुदान आयोग-राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा 2024 जून सत्र की परीक्षा, संयुक्त सीएसआईआर यूजीसी नेट 25 से 27 जुलाई तक, एनसीईटी की परीक्षा 10 जुलाई को निर्धारित की है। परीक्षाओं की नयी तारीख़ें मिलना, एक समिति का गठन और नीट जैसी महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं के संचालन में हुई अनियमितताओं की जाँच का ज़िम्मा सीबीआई को सौंपे जाने के बीच एनटीए के महानिदेशक पद से सुबोध कुमार सिंह को हटाना सरकार की मंशा को दर्शाता है। नीट मेडिकल प्रवेश परीक्षा, जिसमें रिकॉर्ड 24 लाख उम्मीदवार उपस्थित हुए; अब सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न एजेंसियों की जाँच के दायरे में है। यूजीसी-नेट परीक्षा आयोजित होने के एक दिन बाद उसे रद्द करना केंद्र के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी है, जिसने माना है कि परीक्षा की अखंडता से समझौता किया गया है। हालिया फ़ैसले विपक्ष द्वारा संसद में इस सर्वोपरि मुद्दे को बार-बार उठाने के बाद आये हैं।
हमारी एसआईटी द्वारा की गयी ‘तहलका’ की इस बार की आवरण कथा ‘परीक्षा माफ़िया का जाल’ से पता चलता है कि कैसे एक व्यापक नेटवर्क परीक्षा प्रणाली की अखण्डता से समझौता कर रहा है, जिससे चुनिंदा केंद्रों के कई उम्मीदवार असामान्य रूप से उच्च अंक प्राप्त कर रहे हैं। सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम-2024, जिसे पेपर लीक विरोधी क़ानून के रूप में भी जाना जाता है; लागू हो गया है। लेकिन क्या यह पर्याप्त है? प्रश्न-पत्रों का बार-बार लीक होना जनता का विश्वास बहाल करने के लिए पूर्ण सुधार की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के बढ़ते उपयोग के बीच ख़तरा और भी बढ़ गया है। एनटीए की स्थापना 2017 में हुई थी। लेकिन इतने वर्षों के बाद भी एजेंसी यूपीएससी की तर्ज पर एक फुलप्रूफ प्रणाली विकसित करने में विफल रही है, जो सुरक्षा को शामिल किये बिना सिविल सेवा परीक्षा, एनडीए की परीक्षा और अन्य समान रूप से प्रतिष्ठित परीक्षाओं का संचालन करती है।
तो ग़लत क्या है? आवश्यकता है कि सज़ा को तीन साल से बढ़ाकर कम-से-कम 10 साल किया जाए, फास्ट ट्रैक अदालतों में समयबद्ध फ़ैसले दिये जाएँ, किसी भी पेपर लीक घोटाले में शामिल कोचिंग संस्थानों को काली सूची में डालना चाहिए, नक़ल में शामिल प्रतियोगियों को भविष्य की सभी परीक्षाओं से वंचित करना चाहिए और राजनीतिक संबद्धता के आधार पर परीक्षण निकायों के सदस्यों को नियुक्त करने की प्रथा को बंद करना चाहिए।
सभी प्रकार के राजनेताओं और सभी हितधारकों को एक साथ बैठकर समाधान खोजने के लिए विचार-मंथन करने की आवश्यकता है। क्योंकि यह देश के भविष्य का सवाल है। एनटीए या इसी तरह के संस्थानों को ख़त्म करना समाधान नहीं है; बल्कि अपर्याप्तताओं को ठीक करना है। दरअसल एनटीए की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान है। परीक्षाओं को रद्द करने और स्थगित करने से प्रतियोगियों और उनके परिवारों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति पर भारी असर पड़ सकता है। इस मुद्दे पर देशव्यापी बहस की ज़रूरत है। क्योंकि शिक्षा और बेरोज़गारी के मुद्दे केंद्र में हैं और विश्वास की कमी को पूरा किया जाना चाहिए, ताकि विद्यार्थी और उनके परिवार ख़ुद को ठगा हुआ महसूस न करें।