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2000 करोड़ का घोटाला उजागर, कैग रिपोर्ट ने बढ़ायीं देवेंद्र फडणवीस की मुश्किलें!

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली पूर्व सरकार द्वारा मंज़ूर किये गये कुछ प्रोजेक्ट्स पर सवाल उठाकर फडणवीस के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कैग की रिपोर्ट में मेट्रो, इंटरनेशनल एयरपोर्ट और काम में देरी के लिए अनुबन्ध देने में दिशानिर्देशों के उल्लंघन का भी हवाला दिया गया है

महाराष्ट्र विधानसभा में सीएजी की रिपोर्ट को पेश करते हुए उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने पिछली सरकार के कुछ इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में हुई गड़बडियों के लिए फडणवीस को कटघरे में खड़ा किया है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी और औद्योगिक विकास प्राधिकरण (सिडको) के करीब 2000 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स में अनिमियताएँ पायी गयीं। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री पवार का आरोप है कि नवी मुम्बई में बनने वाले इंटरनेशनल एयरपोर्ट, नेरुल- उरण रेलवे लाइन और नवी मुम्बई रेल प्रोजेक्ट में कुछ कथित गड़बडिय़ाँ पायी गयींं। सिडको महाराष्ट्र सरकार के शहरी विकास विभाग के तहत आता है, जिसे खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सँभाल रहे थे। सीएजी के अनुसार, सिडको ने नवी मुम्बई मेट्रो रेल प्रोजेक्ट का काम समय पर पूरा न करने वाले 22 कॉन्ट्रैक्टर्स से टेंडर नियमों का उल्लंघन करने के एवज़ में बकाया 185 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना भी नहीं वसूला।

क्या कहती है कैग की रिपोर्ट?

सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि 50 करोड़ रुपये और उससे अधिक लागत वाले 16 टेंडर्स के विज्ञापन राष्ट्रीय स्तर के अग्रणीय अखबारों में और एमएमआर व एनएमआईए जैसे  प्रोजेक्ट के वैश्विक टेंडर्स के विज्ञापन अंतर्राष्ट्रीय पब्लिकेशंस में प्रकाशित नहीं किये गये, जो कि इस प्रकार के टेंडर्स के लिये बनाये गये दिशानिर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है। कैग की रिपोर्ट आगे कहती है कि तीन कॉन्ट्रैक्ट,  जिनकी कुल लागत 1,581.1 करोड़ रुपये है। ऐसे  प्रोजेक्ट के ठेके बिना उचित प्रतिस्पर्धा के आवंटित कर दिये गये। प्रस्तावित एयरपोर्ट की पैकेज ढ्ढढ्ढढ्ढ और ढ्ढङ्क के डेवलपमेंट कार्य का ठेका मैसर्स जीपीएल को 699.44 करोड़ रुपये में दिया गया, जो कि  प्रस्तावित कीमत से 18 फीसदी ज़्यादा है। वहीं, मैसर्स एसजे-जीवीके को दूसरा ठेका प्रस्तावित कीमत से 28.50 फीसदी ज़्यादा की कीमत पर 804.91 करोड़ रुपये में दिया गया।

कैग अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कहता है कि एनएमएमआर के ऐसे छ: मामले हैं, जिनकी  प्रस्तावित लागत  890.42 करोड़ रुपये है, ऐसे ठेकेदारों को दे दिये गये, जो नियामक के मानकों पर खरे नहीं उतरते। कैग की रिपोर्ट उस एनएमएमआर प्रोजेक्ट में हुई देरी को भी हाईलाइट करती है, जो प्रोजेक्ट दिसंबर, 2013 तक पूर्ण हो जाना चाहिए था। रिपोर्ट के अनुसार, एमएमआर प्रोजेक्ट में देरी इसलिए भी हुई थी, क्योंकि स्टेशन कंप्लीट करने का कार्य ऐसे ठेकेदारों को दे दिया गया था जिनकी वित्तीय स्थिति कमज़ोर थी। रिपोर्ट में ऐसे 10 मामलों का ज़िक्र भी है, जिन्हें ऐसे ठेकेदारों को दे दिया गया जिनके पास पहले से ही 429.89  करोड़ का ठेका था और उन्हें  फिर से बिना किसी टेंडर्स मँगवाये 69.38 करोड़ रुपये का ठेका दे दिया गया, जो कि दिशानिर्देशों का सीधा-सीधा उल्लंघन है।

ठेकेदारों से नहीं वसूला नुकसान का हर्ज़ाना

एनएमएमआर प्रोजेक्ट में 25.33 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पेमेंट्स और रिकवरी को भी सवालों के घेरे में खड़ा करती है। 4,759.94 करोड़ रुपये के 22 कॉन्ट्रैक्ट का ज़िक्र भी रिपोर्ट में है, जहाँ पर प्रोजेक्ट में हुई देरी को लेकर सिडको ने ठेकेदारों से नुकसान की भरपाई के एवज़ मे 185.97 करोड़ रुपये नहीं वसूले।

हालाँकि, विधानसभा में अब नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रहे देवेंद्र फडणवीस ने सीएजी की रिपोर्ट में लगे आरोपों को गलत बताते हैं। सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अपनी सफ़ाई में कहते हैं कि नवी मुम्बई मेट्रो रेल और नेरुल-उरण रेलवे लाइन से जुड़े सभी टेंडर्स पर फैसला 2014 में हमारी सरकार आने से पहले ही लिया जा चुका था। सिडको खुद एक स्वायत्त संस्था है और इसका कोई भी फैसला मुख्यमंत्री तक नहीं आता।

साइबर क्राइम से निपटना एक बड़ी चुनौती

सूचना प्रौद्योगिकी के विस्फोट और पैसों के लेनदेन से जुड़े काम हाईटेक होने के साथ ही इन पर साइबर अपराध के खतरे बढ़ गये हैं और यह कई रूपों में है, जिसका समाज पर व्यापक प्रभाव है। साइबर अपराध से निपटना और कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ ही पुलिस के लिए यह बड़ी चुनौतियों की तरह है। हालाँकि केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) 30 अगस्त, 2019 को लॉन्च किया। इसमें 30 जनवरी, 2020 तक 33,152 साइबर क्राइम के मामले दर्ज किये जा चुके हैं। साइबर अपराध से जुड़े मामलों की 790 एफआईआर भी दर्ज की गयी हैं। इन शिकायतों को कानून लागू करने वाली एजेंसियाँ निपटारा करती हैं।

देश में बढ़ते साइबर अपराध से निपटने के लिए एमएचए ने भारतीय साइबर क्राइम समन्वय केंद्र की स्थापना की है, जिसमें सात सेगमेंट हैं। ये हैं- नेशनल साइबर क्राइम थ्रेट एनालिटिक्स यूनिट, नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल, संयुक्त साइबर अपराध जाँच दल के लिए प्लेटफॉर्म, नेशनल साइबर क्राइम फॉरेंसिक लेबोरेटरी इको सिस्टम, नेशनल साइबर क्राइम ट्रेनिंग सेंटर, नेशनल साइबर क्राइम इको सिस्टम मैनेजमेंट यूनिट और नेशनल साइबर क्राइम रिसर्च एंड इनोवेशन सेंटर।

अब तक 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र की तर्ज पर क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित किया है। ये हैं- आंध्र प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तराखंड। बाकी राज्य क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं।

इस बीच एमएचए अपने सोशल मीडिया हैंडल और अन्य मल्टीमीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों के बीच जागरूकता अभियान चला रहा है। इससे जुड़ी कोई भी शिकायत राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर दर्ज करायी जा सकती है। इसमें साइबर क्राइम की सुरक्षा से जुड़े उपाय अपनाये जाने के तरीके भी बताये जा रहे हैं। लोगों से साइबर क्राइम और ऑनलाइन धोखाधड़ी के विभिन्न रूपों से बचाव की अपील के साथ कैसे बचें, यह भी बताया जाता है। इसके साथ ही लोगों को यह भी बताया गया है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी या बलात्कार, सामूहिक बलात्कार की सामग्री को ऑनलाइन पोस्ट करना एक दंडनीय अपराध है।

देश भर की पुलिस को साइबर क्राइम को लेकर और इससे जुड़े मामलों के विकल्पों व उनसे निपटने के तरीकों के साथ ही साइबर क्राइम का मुकाबला करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी धोखाधड़ी के मामलों में ई-वॉलेट का इस्तेमाल खूब होता है, इससे सोशल मीडिया पर फर्ज़ी प्रोफाइल बनाकर चोरी करने वालों पर बारीकी से नज़र रखी जा रही है। साइबर अपराध जाँच के प्रशिक्षण में बुनियादी जानकारी के अलावा उपकरण, तकनीक, नये-नये ईजाद होने वाले तरीके, कानूनी ढाँचे और आईटी अधिनियम-2000 के ज़रिये निपटने के उपाय बताये जाते हैं। इसके अलावा महिलाओं, बच्चों से जुड़े साइबर अपराध में जाँच के तरीके डिजिटल फोरेंसिक, बैंकिंग और वित्तीय धोखाधड़ी आदि को प्रशिक्षण में शामिल किया गया है।

धोखाधड़ी की जाँच में साइबर अपराधी के दिमाग को डीकोड करना, आईपी पते, डीएचसीपी सर्वर, मैक एड्रेस, डोमेन नाम प्रणाली, वेब सर्वर, यूआरएल, प्रॉक्सी सर्वर, अनाम सर्फिंग, ईमेल से ज़रिये खेल और नेटवर्किंग अन्य पहलू हैं। प्रशिक्षण में वित्तीय धोखाधड़ी, सोशल मीडिया धोखाधड़ी, वायरल वीडियो जाँच, एटीएम/कार्ड क्लोनिंग मामले, एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन को डीकोड करने जैसे क्षेत्र शामिल हैं।

जो भी हो, साइबर अपराधों से निपटने में कई तरह की समस्याएँ हैं, जिससे यह चुनौवी ज़्यादा बड़ी हो जाती है। इसमें सोशल मीडिया से लेकर तमाम इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाले विदेश सर्वर के लिए कानून लागू करने में भी पेच फँसता है। हालाँकि केंद्र सरकार समय-समय पर इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के लिए कानून लागू किये जाने को तलब करती है। केंद्र और राज्य सरकारों का अधिकार क्षेत्र इंटरनेट सेवा प्रदाताओं पर नहीं चलता है; क्योंकि उनके सर्वर विदेशों में स्थापित हैं। सरकार केवल अपने परिचालन को बन्द या प्रतिबन्धित कर सकती है। इसके आगे कुछ नहीं किया जा सकता है।

50 हज़ारी की राह पर सोना

सोने की कीमतों में थोड़े उतार-चढ़ाव के बावजूद भी तेज़ी का रुख बना हुआ है। मुम्बई के बाज़ार में 4 मार्च को सोने की कीमत लगभग 1,000 रुपये बढ़कर 43,130 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुँच गयी। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा 3 मार्च को ब्याज दर में 0.5 फीसदी की कटौती किये जाने की घोषणा के तुरन्त बाद सोने की कीमत में तेज़ी देखने को मिली है। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी फेडरल ने आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी लाने के लिए ब्याज दर में कटौती किया है।

सम्भावना है, पर आसान नहीं

मौज़ूदा परिवेश में सोने की कीमत 50,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुँचने की सम्भावना बढ़ गयी है। हालाँकि, यह इतना आसान नहीं है; लेकिन कोरोना वायरस का कहर जल्द नहीं रुकने की स्थिति में ऐसा मुमकिन हो सकता है। सोने को 50,000 रुपये के स्तर तक पहुँचने के लिए इसकी कीमत में महज़ 16 फीसदी तेज़ी की ज़रूरत है। वर्ष 2020 में सोने की कीमत में 10 फीसदी का इजाफा पहले ही हो चुका है, जबकि वर्ष 2019 से तुलना करने पर सोने की कीमत में 30 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। सोने की कीमत 50,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुँचने का अर्थ है कि दो वर्षों की अवधि में सोने में 60 फीसदी से ज़्यादा का प्रतिफल मिलना।

कीमतों में बढ़ोतरी के कारण

भारत में सोने का कम उत्पादन होता है और वह सोने की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में हुई सोने की कीमत में आयी तेज़ी और सरकार द्वारा सोने के आयात पर शुल्क को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फीसदी करने के कारण बीते महीनों से सोने की कीमत में उछाल की स्थिति बनी हुई है।

वैश्विक स्तर पर सुस्ती एवं अनिश्वितता का माहौल

वैश्विक स्तर पर अर्थ-व्यवस्था की हालात भारतीय अर्थ-व्यवस्था से भी ज़्यादा बुरी है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार देशों के केंद्र्रीय बैंकों को आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए। इस साल वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में महज़ 2.4 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है, जो 2009 के बाद सबसे कम है। ओईसीडी का कहना है कि 2021 में वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में 3.3 फीसदी की दर से वृद्धि हो सकती है। सुस्ती का माहौल वैश्विक स्तर पर बना हुआ है। विश्व बैंक पहले ही कोरोना की वजह से वैश्विक वृद्धि दर में 1 फीसदी गिरावट की आशंका जता चुका है। इसकी वजह से दुनिया की दो बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं चीन और अमेरिका के कारोबार में सुस्ती गहरा रही है। कोरोना वायरस से भी अनेक देशों की अर्थ-व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जिसमें भारत भी शामिल है। इधर, ब्रेक्जिट को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है। कुछ देशों के बीच चल रहा कारोबारी जंग के कारण डॉलर को दूसरी करेसियों के मुकाबले मज़बूत रखने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल, रुपया डॉलर की तुलना में कमतर हो रहा है, जिससे सोने की कीमत में तेज़ी आने की सम्भावना बनी हुई है।

फेडरल रिजर्व के रुख से तय होती है कीमत

सोने की कीमत में उतार-चढ़ाव पर अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीति का भी प्रभाव पड़ता है। फेडरल रिजर्व ने जुलाई महीने में ब्याज दर में 0.25 फीसदी की कटौती की है, जिसके कारण डॉलर में मज़बूती आयी है और रुपये की कीमत में कमी। अब फिर से उसने ब्याज दर में 0.50 फीसदी की कटौती की है। फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में कटौती करने की वजह से वैश्विक वित्तीय निवेशक सोने में निवेश को मुफीद मान रहे हैं।

किसानों की बढ़ी मुश्किल

वर्ष 2019 में कृषि जिंसों की सुस्त कीमत रहने से किसानों की आय कम हुई है। अधिकांश किसानों को अपनी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिल पा रहा है, जिससे उनकी आय कम हुई है। महाराष्ट्र के करीब आधे गाँवों में सूखे और अन्य राज्यों में बाढ़ से खरीफ फसलों को नुकसान हुआ है। ऐसे में किसानों के लिए सोने की खरीदारी टेढ़ी खीर साबित होगी।

सोने की खरीद के लिए प्रोत्साहन

सोने की माँग में कमी आने के बाद हाज़िर बाज़ार में प्रति 10 ग्राम सोने पर 550 रुपये की छूट दी जा रही है। हाज़िर बाज़ार की कीमत की तुलना में काफी कम कीमत पर बेचे जाने वाले तस्करी के सोने की वजह से भी हाज़िर बाज़ार में छूट दी जा रही है। कारोबारी आधिकारिक घरेलू कीमतों पर प्रति औंस लगभग 40 डॉलर तक की छूट दे रहे हैं। यह छूट अगस्त, 2016 के बाद से सर्वाधिक है। बहुत सारे कारोबारी ग्राहकों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार और कम मेकिंग चार्ज की भी पेशकश कर रहे हैं।

निवेश में बेहतर रिटर्न की गारंटी

मौके का फायदा उठाने के लिए कुछ कारोबारी और उपभोक्ता सोना बेच रहे हैं, जिससे बाज़ार में सोने की आपूर्ति बढ़ रही है। हालाँकि, बहुत सारे निवेशक मंदी के माहौल में सोने में निवेश को सुरक्षित मान रहे हैं; क्योंकि मौज़ूदा समय में शेयर, रियल एस्टेट और म्युचुअल फंड आदि में सुस्ती का माहौल बना हुआ है। इधर, चालू वित्त वर्ष में सोना 20 से 25 फीसदी रिटर्न के साथ सबसे अधिक रिटर्न देने वाली निवेश परिसम्पत्ति के रूप में उभरा है। निकट भविष्य में शेयर बाज़ार में भी सोने की तुलना में बेहतर रिटर्न मिलने का कोई संकेत नहीं है।

आयात में गिरावट

भारत के स्वर्ण आयात में पिछले वर्ष के मुकाबले 55 फीसदी की गिरावट आयी है और यह तीन वर्ष के निचले स्तर पर पहुँच गया है। भारत ने जुलाई में 39.66 टन सोने का आयात किया है, जो एक वर्ष पहले की समान अवधि के 88.16 टन के मुकाबले आधे से कम है। राशि में यह आयात 42 फीसदी घटकर 1.71 अरब डॉलर रहा।

भारत में माँग ज़्यादा

दूसरे देशों की अपेक्षा भारत में सोने की माँग अभी भी ज़्यादा है। जून तिमाही में देश में सोने की माँग 23 फीसदी बढ़ी है, जबकि वैश्विक स्तर पर इसकी माँग में केवल 8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है।

वैश्विक स्तर पर बढ़ चुकी है सोने की माँग

दुनिया भर के केंद्र्रीय बैंकों की खरीद तथा स्वर्ण आधारित ईटीएफ में निवेश बढऩे से जून तिमाही में सोने की वैश्विक माँग 8 फीसदी बढ़कर 1,123 टन पर पहुँच गयी। विश्व स्वर्ण परिषद् की जून तिमाही की गोल्ड डिमांड ट्रेंड्स रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल की समान तिमाही में सोने की वैश्विक माँग 1,038.80 टन रही थी। इस दौरान केंद्र्रीय बैंकों की माँग 46.9 फीसदी बढ़कर 224.40 टन पर पहुँच गयी, जो पिछले साल की सामान्य अवधि में 152.8 टन थी। इस दौरान पोलैंड सोने का सबसे बड़ा खरीदार रहा। उसने आलोच्य तिमाही के दौरान 100 टन सोने की खरीददारी की, जबकि मामले में रूस दूसरे स्थान पर रहा।

निष्कर्ष

सोने की कम खरीददारी करने से सोने की वैश्विक कीमतों में लगाम लग सकती है, लेकिन निवेशक सोने में निवेश को निवेश का सबसे बेहतर विकल्प मान रहे हैं। वर्तमान में सोने की बढ़ती कीमत के लिए आयात शुल्क में बढ़ोतरी, सोने एवं मेकिंग दोनों पर जीएसटी का आरोपण, फेडरल रिजर्व द्वारा अपनायी जा रही नीति, घरेलू बाज़ार में सुस्ती, नीतिगत समस्याएँ आदि ज़िम्मेदार हैं, लेकिन हाल-फिलहाल में सोने की कीमत को बढ़ाने वाले कारकों के प्रभाव के कम होने या खत्म होने की सम्भावना कम है। इसलिए कयास लगाये जा रहे हैं कि आने वाले महीनों में भी सोने की कीमत में तेज़ी का रुख बना रहेगा।

कहानी: अनजान सुख

इस मुलाकात के बारे में वो जब-जब सोचती, मुस्कान के सिवा और कोई भाव मन में आ ही नहीं पाता! कितना अप्रत्याशित था उनका मिलना और कितना सहज भी! उतनी ही देर में जैसे दोनों ने यह जान लिया हो कि उनके मिलने के अलावा इस क्षण में और कुछ घट नहीं सकता था, जैसे यह क्षण उनके लिए ही घटित होना था और हुआ भी! उतनी ही देर में जैसे दोनों ने एक-दूसरे को पहचान लिया हो, जैसे हम साँस लेने को जान लेते हैं या प्यास लगने पर दरिया को! क्या दरिया भी दौड़ा नहीं चला आता नदी की प्यास बुझाने को!

यूँ उन दोनों की मुलाकात कुछ खास न थी, जैसा सामान्यतया होता है, देश भर में विविध विषयों के विकास के लिए चलने वाले सम्मेलनों के आयोजक दावे तो बहुत करते हैं; पर वास्तव में यह सम्मेलन अनेक अनियमितताओं के शिकार होते ही हैं… ऐसे ही एक सम्मेलन के लिए परचा पढऩे वह भी पहुँची थी अपने प्रदेश से दूर और ठीक ऐसे ही किसी दूर देश से वह भी आया था… अपने परचे को सँभाले कितनी ही देर से खराब पर्चों को सुनते हुए धीरज धरे बैठी थी… जब उसकी बारी आएगी तो वह बताएगी कि विषय पर अधिकार कैसे किया जाता है और विषय को कैसे समझा जाता है… और तब वह आया था…हवा के झोंके की तरह, हाथ झुलाता, खाली हाथ, कतई निद्र्वन्द्व व्हील चेयर पर बैठा और अपने हाथ से उसे आगे बढ़ाता और मुस्काता! उसका आना जान गयी थी वो जैसे… हवा के झोंके के आने की सूचना मिल ही जाती है, पर उसी को जो हवा के साथ बहना चाहता है, बाकी तो द्वार बन्द ही कर लेते हैं!

आयोजकों से जो उम्मीद थी, वही होना ही था! कुछ लोग तो किसी तरह लड़-झगड़कर आयोजकों से अपने नाम जुड़वा चुके थे… वह अपने साथ बैठी प्रोफेसर से उलझ रही थी जब बोलने नहीं देना था, तो बुलाते क्यों हैं! जाएँ रखें अपना सर्टिफिकेट अपने पास! मैं तो अपनी शोध के बारे में बताना चाहती थी… पर यहाँ सुनने कौन आता है? उफ!

 तभी उसकी धीमी-सी खुली हवा-सी आवाज़ सुनाई दी चिन्ता न करें… आप ज़रूर बोलेंगी… आयोजक आपको नहीं रोक सकते! पर यहाँ सुनने कौन बैठा है, ये भी तो देखिए… हल्की-सी हँसी गूँज गयी उसके आस-पास! अपने आस-पास खाली कुॢसयों को देख वह भी मुस्करा उठी… चलिए, छोडि़ए; इन कुॢसयों को सुनाने नहीं आयी थी मैं…

आप बाहर जा रही हैं, तो मैं भी चलता हूँ… इस आवाज़ ने उसे बाँध लिया… हाँ अब बैठकर क्या करूँगी..? चलिए बाहर मौसम का ही हाल-चाल ले लिया जाए! अभी तक इस खुशबू के झोंके ने एक दूसरे का नाम भी न पूछा था… बाहर आते ही वह हाथ जोड़कर जाने लगाये तो वह हैरान हो गयी… अभी तो आधा दिन बाकी है, सम्मेलन का और अप अभी जा रहे हैं…. वही हवा की सौंधी मिट्टी मिली हँसी फिर सुनाई दी… बस मन था इस शहर को देखने का, अब लगता है, जो देखना था उसे देखकर जा रहा हूँ… इस सम्मेलन में अब कोई रुचि ही नहीं… फिर मेरी बस का समय भी हो गया है… अच्छा नमस्कार!

अनमनी-सी वह भीतर लौट आयी… अभी समय बाकी था… आयोजक अपने तीन वक्ताओं के न आने से क्षमा प्रार्थी थे और कुछ लोगों को अपनी बात रखने का मौका दे रहे थे… मंच से उसके नाम की घोषणा हुई तो वह अनमना उठी… माफ कीजिए, पहले तो आप लोग बुलाते हैं, फिर किसी के आने का सम्मान नहीं रखते और फिर अचानक हमें रिप्लेसमेंट बनाने में लग जाते हैं… गज़ब व्यवहार है यहाँ… आयोजन करने वालों में से एक ने आकर क्षमा माँगी तो वह यंत्रवत उठ गयी… उसके प्रपत्र पर देर तक तालियाँ बजती रहीं, कुछ लोगों की उस विषय पर दिलचस्पी भी बढ़ गयी और वे उससे बातचीत करना चाहते थे… सबके उत्तर देते-देते काफी समय हो गया.. आयोजक खुश थे, जो सत्र लगभग असफल होने की हालत में था, सफल हो गया था… और वह आज के सत्र का केंद्र बन गयी थी…

सम्मेलन खत्म हो गया था… जैसे बारात जाने के बाद मडवा सूना रह जाता है, बस कुछ लोग थके-हारे बचे काम करने की तैयारी में ऊँघे-जागते दिखाई देते हैं, वैसी ही कुछ हालत यहाँ भी थी… अपने साथ आयी प्रोफेसर से उसने धीमे से पूछा …उसे जानती हैं आप? जो दोपहर में ही चला गया था। साथ बैठी प्रोफेसर ने मुस्काते हुए कहा- क्यों शोध की दिशा बदल गयी क्या सखी!

बुरी तरह खीझ आयी उसे खुद पर ही और हँसी भी! अब 40 की उम्र में शोध की दिशा क्या बदलेगी! पर उसे देखने की तीव्र इच्छा हुई उसे बताये तो सही कि कितने उत्सुक थे लोग उसे सुनने के लिए! पर पूछे तो किससे! न जाने लोग क्या समझ बैठें!

घर जाने की आिखरी गाड़ी में उसके साथ के पाँचों कुलीग लोग मौज़ूद थे! कल से फिर कॉलेज और घर के बीच तालमेल बिठाने वाली ज़िन्दगी चलने वाली थी… ऐसा लगता था कि आज की रात सब अपना प्रोफेसराना व्यवहार छोड़कर कुछ देर लड़के-लडकियों वाली ज़िन्दगी जीना चाहते हैं… निशा मुस्करा रही थी और सब वही पुरानी अन्त्याक्षरी पर आ गये थे…  क्यों निशा इतना मुस्करा रही हो, प्रोफेसर कमल की याद आ गयी क्या? रजनी ने उसे छेड़ते हुए कहा- ‘कौन प्रोफेसर कमल? वही जिनको छोडऩे तुम बाहर बावली मीरा की तरह गयी थीं.. नाम तक नहीं जानतीं… रजनी उन सबमें सबसे शोख और युवा प्राध्यापिका थी, निशा सबसे सीनियर और गम्भीर! पर आज जैसे उसके भीतर के बादल छँट गये थे… अच्छा तुम बड़ी नज़र रखती हो… उसने रजनी के कान पकड़ लिये, माफी माफी मैडम! पर प्रोफेसर कमल कल से ही तुम्हें देख रहे थे…  दूर पहाड़ी वादियों से पुकार रहे थे जैसे तुम्हें… उसाँस भरकर रह गयी निशा! हुआ क्या है उन्हें, कितनी तकलीफ में थे; पर फिर भी हवा की तरह की ताज़गी दिख रही थी उनके भीतर! रिचा मुस्कायी तो न मैडम, पता तो करना चाहिए ना! निशा बोल उठी- किस-किस के दु:ख पता करूँ सखी! कौन-सा मन है जो आज़ाद है? छोड़ो, वापस चलते हैं; नौकरी भी करनी है और घर भी इन्तज़ार कर रहा है… इस पूरी बात ने जैसे सभी को ग्रस लिया हो, सब अपने भीतर सिमट गये और ट्रेन वापस दिल्ली की और मुड़ गयी…

दिल्ली जैसे महानगर के अपने संघर्ष हैं… मौज़ूदा हालात देश और दुनिया को जिस तरह निगलते जा रहे हैं, उसका सीधा असर दिल्ली में भी दिखाई देता है… देश की राजधानी पर हाँफती दिल्ली… देश के हालातों पर रोती और उसका सीधा शिकार होती दिल्ली… होगी कभी दिल वालों की दिल्ली, पर जब दिल ही गहन उदासी से भर गये तो दिल्ली क्यों कर बची रहती!

सुबह से शाम तक यहाँ लोग नौकरी करने और ज़िन्दा रहने की होड़ में दौड़ते हैं… देर रात उस घरौंदे में लौटते हैं, जिसमे रहने के लिए न जाने कितना पैसा जुटाकर उसे खरीदा था, पर उसमें रहने के सुख को महसूस नहीं कर पाते हैं… हर पल ज़िन्दा रहने की बेचैनी उनकी ज़िन्दगी को और खोखला करती ही जा रही है… ऐसे ही दड़बे जैसे घुटे घरों में से एक घरौंदा निशा का भी था… पति, दो बच्चे और निशा! यूँ कहने को एक छोटा-सा सुखी परिवार कहा जा सकता था, पर न जाने क्यों निशा कुछ और ढूँढती थी! ‘ये औरतें जो संतुष्ट होना नहीं जानती, अपने सारे सुख अपने ही हाथों से गँवा देती हैं -कहती थीं निशा की माँ बार-बार! पर निशा न जाने किस मिट्टी की बनी थी, अपने हाथों सब खो देने पर तुली थी…

न उसे गृहणियों की तरह रहना सुहाता, न हाथों में सोने की चूडिय़ाँ न गले में बड़ी-बड़ी सोने की माला! त्योहारों पर भी वह इन सबसे दूर ही दिखती! आस-पास वालों के लिए ही नहीं, अपने परिवार वालों के लिए भी वह अजूबा ही थी… पति अपने काम में मगन उसे समय दे नहीं पाते और भीतर घुलती निशा को किताबें लिखने में ही सुकून नज़र आता! निशा और पवन मिलते, पर निशा अधूरी की अधूरी रह जाती! अपने आप से भी लड़ती थी निशा! क्यों नहीं चैन आता उसे! अपने हाथों अपनी सोने जैसी गृहस्थी को आग लगाने में तुली थी वह!

पवन खुद में मगन रहने वाला व्यापारी पति था। निशा जब जब पवन के बारे में सोचती, कुछ बुरा नहीं सोच पाती थी… घर की ज़िम्मेदारी के लिए पर्याप्त से ज़्यादा पैसा कमाता था पवन! कई बार उसने निशा के चेहरे की उदासी को देख उसे सलाह भी दी थी… तुम नौकरी छोड़ क्यों नहीं देती? राज करो घर पर, हम हैं ना कमाने के लिए मैडम! निशा ऐसे क्षणों में बुत बन जाती… कैसे समझाये वह पवन को कि नौकरी उसके भीतर के सूरज को ज़िन्दा रखती है, जिस दिन वो यह छोड़ देगीए उसके भीतर रात उतर आएगी… पर वह कुछ नहीं कहती! पवन के पास वक्त नहीं था… वो उडऩा चाहता था शेयर बाज़ार के पंखों पर सवार होकर और दुनिया भर में अपना बिजनेस फैलाना चाहता था… बड़ा पैसा और बड़ा नाम!

निशा के साथ प्यार के क्षणों में भी वो सिर्फ पवन न हो पाता! निशा सिर्फ बिस्तर न हो पाती! पवन खीज जाता तुम दुनिया की पहली औरत हो क्या! क्या ढूँढना चाहती हो! बोलती क्यों नहीं! दिन रात मर-खपकर तुम्हारे लिए कमाता हूँ और तुम मुझे थोड़ा-सा सुख भी नहीं दे सकतीं! आदमी घर क्यों आएए बोलो!ष् वो कहना चाहती ‘इसके लिए आदमी घर नहीं आता पवन! तुम कुछ देर के लिए पवन हो जाओ और ये पति का चोला उतार दो प्लीज! इतना कर सकते हो… पर नहीं कह पाती बस खुद को निर्वस्त्र करने में लग जाती! ‘मुझे नहीं चाहिए तुम जैसी ठंडी औरत! उफ! पवन उफनते दूध की तरह खौलता! वह कई बार कोशिश करती कि पवन को खुश रख सके पर पवन के पास सब कुछ था देने के लिए वक्त के सिवा! और पवन से वक्त पाने की चाह में निशा भीतर ही भीतर घुलती जा रही थी!

पवन और निशा के बीच देह तो थी पर काल का अंतराल बढ़ता जा रहा था… देह से होता कमल मन तक नहीं पहुँचता, बल्कि कहीं बीच ही उसके पैर थक जाते और निशा उससे बहुत दूर निकल जाती! पवन उसकी इस मुद्रा से आहत भी था और परेशान भी पर उसके फोन कॉल उसे भी कहाँ समय देते थे, यह सब सोचने के लिए! निशा बच्चों को सीने से लगाये उदास होती चली गयी और पवन अपने काम में व्यस्त उसके मन के भीतर उतर ही नहीं सका! निशा का कॉलेज भी गज़ब ही था… कुछ तयशुदा घंटे तो कहने को थे, उसके बाद भी एडमिनिस्ट्रेटिव काम उसे ही नहीं सभी को उलझाये रखते… हर साल शोध की नयी ऊँचाइयों के सपने देखते संस्थानों ने इंसानों को मशीन में तब्दील करने में कोई कसर नहीं रखी थी… मशीन में तब्दील ये इंसान अब हँसते बोलते नहीं थे बल्कि एक अनजानी ईष्र्या और होड़ में डूबे एक-दूसरे से घबराये रहते थे… इसी होड़ में कोई किसी के साथ खड़े होने में सुख महसूस नहीं करता था… वही साथी जो सम्मेलन की यात्रा के दौरान हँसी-मज़ाक में डूबे दिख रहे थे, फिर यहाँ आकर अपने कामों में डूब गये थे… निशा इन क्षणों में बहुत अकेला महसूस करती… विद्यार्थियों की कक्षा में खुद को डुबो देने के बाद भी उसके पास बहुत वक्त होता। कभी लिखती, कभी पढ़ती, पर उसके भीतर की खामोशी को सुनने वाला क्या कहीं कोई नहीं था!

घर अपनी बंदिशें लाता ही है… घर के भीतर पहुँचते ही बच्चों की चहचहाने से उसके भीतर की धुँध छँट-सी जाती, बच्चों की किलकारियाँ उसे जिला रखतीं, पर महीनों अपने बिजनेस में व्यस्त पवन के न आने से उसकी सर्द रातें खामोश उदासी में बदल जातीं… कितना बोलती थी निशा, पर अब उसकी चुप्पी उसके वजूद को निगलती जा रही थी… होश वालों को खबर क्या…

समय पंख लगाकर उड़ता है। ऐसा सब कहते हैं। पर जिसके भीतर खालीपन हो, उसके भीतर समय घुन की तरह ठहर जाता है और कीड़े की तरह खा जाता है उसके वजूद को! निशा के वजूद को भी खा रहा था समय धीरे-धीरे!

इसी उहापोह के सिलसिले के बीच उस दिन निशा के फोन की घंटी घनघनायी, देखा तो एक मैसेज था… ‘कैसी हैं आप! आपके पेपर की बहुत तारीफ सुनी! बधाई निशा ने व्हाट्स एप की तस्वीर को इनलार्ज किया, तो कमल की ही तस्वीर दिखाई दी… ‘अरे आप! बिना नाम-पता बताये कहाँ गायब हो गये थे! और मेरे पेपर के बारे में आपको… अभी लिख ही रही थी कि कमल की एक कविता उसके पास आकर ठहर गयी …लफ्ज़ ठहर जाएँ और थमे रहें, कहने दो मन की पंक्तियों को खुद मन से, उसका आना ज़रूरी क्यों हों पास, जिसे दूर मानता ही नहीं मन!

निशा थमी-की-थमी रह गयी… ये कौन था? क्या उसका अपना मन इस उम्र में बगावत कर देगा किसी अनजाने के लिए! सचमुच क्या औरतें अपने मन के हाथों घर-गृहस्थी में आग लगा देती हैं… माँ इसीलिए क्या उसे संयम का पाठ पढ़ाती थीं! पर निशा उससे मिलना तो चाहती थी… क्या ऐसे वो एक पहेली बन उलझाये रखेगा उसे! पर क्या करे निशा, पता पूछने पर पता नहीं बताता! मिलने की बात पर इन्कार करता है… निशा ने उसे सोशल साइट्स पर ढूँढा पर वो कहीं नहीं था… किस दुनिया का वासी था वो जो न मिलने की इच्छा रखता था, न उसे देखने की! एक बार निशा ने उससे मिलने की इच्छा ज़ाहिर की थी, पर कमल ने इनकार कर दिया था- ‘निशा जी! सारी दुनिया को छोड़कर जहाँ चला आया हूँ, वहाँ से लौटना नहीं हो सकता! अब तो बस यहाँ जितना समय बचा है, देकर कुछ ज़िन्दगियों में रोशनी करना चाहता हूँ… अपने अँधेरों से निकलने के लिए इतना तो करना ही चाहिए ना!

निशा कुछ समझ नहीं सकी थी! कैसे अँधेरे? कहाँ से आये? अभी किन अंधेरों से भाग रहा है वो! कुछ बताता क्यों नहीं! निशा और कमल के बीच फोन पर लगातार बात होने लगी थी पर निशा के लाख पूछने पर भी उसने अपना पता बताने से इन्कार कर दिया था- ‘आपसे बात करके अच्छा लगता है… जानती हैं, इन बच्चों को भी निशा आंटी के बारे में पता है… ये कुछ करना तो चाहते हैं निशा जी, पर घोर गरीबी और ज़िन्दगी की सडऩ से निकलने के रास्ते दुर्लभ हैं इनके लिए! देखते हैं कहाँ ले जाती हैं ज़िन्दगी इन्हें भी और मुझे भी!

निशा कुछ समझ नहीं पाती पर इन पिछले 6 माह की फोनियाई दोस्ती ने उसे हँसने और मुस्कुराने के कुछ पल दे दिये थे, जिसे वो खोना नहीं चाहती थी! पवन इतना व्यस्त था कि इस ओर सोचने की फुर्सत ही नहीं थी उसे, पर निशा की खुशी को उसने भी देखा था- ‘क्या बात है तुम बहुत बदली लग रही हो जैसे किसी ने निशा के मन का चोर पकड़ लिया हो! पर पवन की प्रतिक्रिया ने उसे उत्साहित कर दिया- ‘सुनो जानते हो वो जो प्रोफेसर आये थे न कॉन्फ्रेंस में! पवन का फोन आ गया था- ‘सुनो ये सब तुम अपने पास ही रखो, शेयर इतनी तेज़ी से गिर रहे हैं कि… कहते हुए वह बाहर निकल गया था! निशा ठगी-सी रह गयी… ‘ऊधौ, मैं किस हाट बिकानी…

देश भर की आर्थिक मंदी ने पवन के बिजनेस को भी प्रभावित किया था… पवन किस मरीचिका के पीछे भाग रहा था, खुद भी नहीं जानता था… शेयर बाज़ार की बढ़त उसे ज़िन्दा रखती थी और शेयर की मंदी उसे शराब में डुबो देती थी… इस बिजनेस की मरीचिका ने उसे उससे ही दूर कर दिया था, फिर निशा क्या और निशा के बच्चे क्या! निशा पवन का सहारा बनना चाहती थी पर पवन न जाने कहाँ और कैसे अपने ही भीतर सिमटा जा रहा था! निशा उसके पीछे दौडऩा चाहती पर पवन अपनी ही कैद में डूबा निशा को दूर किये देता… ऐसी ही एक रात शेयर बाज़ार की गिरत ने उसे इतना कमज़ोर कर दिया कि उसने निशा पर हाथ उठा दिया था… ‘कितनी खुश नज़र आ रही है साली! किसके साथ लगी रहती है फोन पर, बता! देखता हूँ आज तुझे! निशा स्तब्ध रह गयी थी! बुरे से बुरे वक्त में भी उसने कभी ऐसे व्यवहार नहीं किया था! निशा बुरी तरह टूट गयी थी… कितनी ही देर बच्चों को सीने से लगाये सुबकती रही थी!

कमल को यह सब नहीं कह सकी! वह उसकी हँसी से ही हैरान रहती, पूछने पर अक्सर उसे कहता- ‘इंसा रखे सब्र तो खुदा भी उसका हक देता है, बेसब्री आदम को इंसा रहने नहीं देती निशा उसका पता पूछती तो जवाब होता- ‘पता पूछो इन बेसब्र हवाओं से, हर दरख्त पर नाम मेरा ही है, तुम आओ तो भी तो किस पते पर? हर दरख्त सूखा जा रहा है इन दिनों निशा उसकी तकलीफ के बारे में पूछना चाहती, पर तब तक फोन कट जाता! रिचा ने ही उसका पता बताया… अल्मोड़ा के पास किसी गाँव में बच्चों को पढ़ाने का काम करता था कमल! साथ ही सावधान भी किया- ‘कमल सर कुछ गुमनामी की ज़िन्दगी जी रहे हैं मैडम! सुनते हैं कि घर वालों ने भी साथ छोड़ा हुआ है, बस बच्चों को पढ़ाने और दुनिया को बदलने की धुन सवार थी उन पर और इसी में एक दिन अपनी बँधी-बँधाई नौकरी छोड़कर चले गये! उनके घर वाले कहते हैं कि कोई गम्भीर बीमारी भी है उन्हें और शायद वे लम्बे समय तक… निशा ने उसके होठों पर हाथ रख दिया था… ऋचा घबरा उठी- ‘क्या कर रही हैं मैडम! उनसे मत मिलना मैडम! पवन सर का गुस्सा जानती हैं ना आप! निशा खुद में थी ही कहाँ… ‘उसे तो जाना ही होगा और मिलना ही होगा। क्या हुआ उसे! क्यों वो दरख्तों के सूखने की बात कहता है? जवाब चाहिए उसे वरना जीना कितना मुश्किल हो जाएगा! और एक दिन निशा पहुँच गयी उस अनजान पते पर, जिसके सहारे वो जीना सीख रही थी दोबारा!

बच्चों की भीड़ लगी थी और उनके बीच ‘माटी गड़े कुम्हार वाला कुम्हार बना कमल था! कमल उसे देखकर हैरान नहीं हुआ- ‘आओ, जानता था तुम आओगी। पर इतनी जल्दी, ये नहीं पता था निशा उसे देख हैरान रह गयी… कमल बीमार लग रहा था इस खुली हवा में भी! पर उसे देखते ही खिल उठा- ‘आओ, तुम चाहती हो ना, मैं तुम्हें सुनूँ। कहो, क्या कहना चाहती हो… निशा जन्मों से जैसे कुछ कहने के लिए किसी का इंतज़ार कर रही थी पर ये कैसे जानता है! कमल उसके मन को जैसे पहले से ही जानता था- ‘तुम्हें देखते ही मुझे लगाए जैसे तुम एक दोस्त ढूँढ रही हो, तुम्हारे मन को जिस दोस्त की तलाश थी, वो मैं हो सकता हूँ… बताओ, गलत कह रहा हूँ? कमल मुस्करा उठा… निशा भी मुस्काई!

निशा को कमल ने बताया कि कमल ब्रिटल बोन नाम की बीमारी का शिकार था, जिसमें शरीर की हड्डियों का टूटना लगातार जारी रहता था… शरीर के किसी भी हिस्से को कभी भी टूटने का खतरा था… तेज़ गर्मी शरीर सह नहीं सकता था तो दूर पहाड़ी इलाका ही तो कर्मस्थली बन सकता था… फिर यहाँ आया तो लगा, इन लोगों के लिए ही शायद मुझे चुना गया हो! वो तो तुम्हें देखकर लगा कि जैसे तुमसे बात करने के लिए ही कुछ मज़बूती बची हुई है… कमल कहकर हँस पड़ा! निशा के हाथ से जैसे ज़िन्दगी फिसली जा रही थी… ‘तुम किस तरह मुस्करा सकते हो ऐसे? मेरे साथ चलो… मैं तुम्हें लेकर जाऊँगी अच्छे से अच्छे डॉक्टर के पास!

हो न तुम मेरी डॉक्टर! आयी हो ना मिलने इतनी दूर से अपने किसी दोस्त के नाम पर! मैं हर ओर दिखा चुका हूँ… पिता को भी यही दिक्कत थी और जीन्स से मुझ तक चली आयी… जल्दी थक भी जाता हूँ और इसका इलाज भी नहीं है दोस्त! बस कुछ यादें लेकर ही रहना चाहता हूँ तुम्हारी और कुछ और प्यारे लोगों की! निशा को लगता था साँस रुक जाएगी… ‘मैं तुम्हें नहीं जानती पर न जाने क्यों लगा तुम ही हो, जो मेरी बात सुन और समझ सकता है… मैं इतनी दूर चली आयी, पर क्या मैं कुछ नहीं कर सकूँगी!

कमल मुस्कुराया- ‘कोलोजन नहीं बनता अब शरीर में! समझती हो कोलोजन! बिल्कुल तुम्हारी तरह! प्रोटीन की तरह तुम भी ज़रूरी हो न अपने बच्चों की ग्रोथ के लिए! तुम नहीं रहोगी तो कैसे बढ़ेंगे वो! ऐसे ही प्रोटीन नहीं बन रहा शरीर में! तो हड्डियाँ तेज़ी से चटक जाती हैं कभी भी! इसीलिए व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ता है…

10 दिन कैसे बीत गये निशा को पता ही न चला! उसके दोनों बच्चों के साथ कमल ऐसे घुलमिल गये थे जैसे अपने ही बच्चे हों! स्कूल के बच्चे अपने हाथों में समेटे उन दोनों रुई के गोले जैसे बच्चों को लिये-लिये फिरते! निशा इतना शायद कभी नहीं बोली थी… अपने मन की हर बात को जब वो कहती, कमल आँखें बन्द किये सुनते-सुनते तल्लीन हो जाते! वो खुद भी शायद इतने ठहाके लगाकर कभी नहीं हँसे होंगे! निशा का प्रेम इस बाड़ी में उपज रहा था, पर किस हाट बिकायेगा यह प्रेम! पवन का कुछ अता-पता न था… उस दिन निशा ने फोन करने की कोशिश की थी, तो व्यस्त होने की बात कहकर पवन ने देर से आने की सूचना मैसेज पर दे दी थी… निशा सोचती, क्या प्रतिक्रिया होगी पवन की, जब वो घर पहुँचेगा! निशा अपने काँपते हाथों से घर से निकलने की सूचना देकर निकल आयी थी किसी अनजान सुख की तलाश में!

कमल के साथ दिन पंख लगाकर निकले जा रहे थे! निशा उस वादी के भीतर बहते बादलों की नदी को देखकर एक नये सुख को जी रही थी… सूरज की पहली किरण को देखने के लिए बेचैन बच्चे उसे बिस्तर पर न मिलते! स्कूल के बच्चों के साथ वो टकटकी लगाये सूरज दादा का इंतज़ार करते! बादल नदी की तरह बहते और दिन की चटकीली धूप में कमल के साथ बहते हुए निशा को अपने होने का अहसास होता  जिसे वह बरसों बरस पहले भूल चुकी थी!

अब सफरी झोला तैयार था… निशा को लौटना था, बच्चे तैयार हो चुके थे… ‘फिर कब मिलना होगा -कमल उदास था। उदास निशा भी थी… बहती रेत को हाथों में कौन थाम पाया है! दोनों के बीच कोई वादा नहीं था… कमल किस रास्ते जाएँगे, खुद भी नहीं जानते थे, निशा लौट रही थी, बस एक ही वादा था, जब कभी कमल उस ओर से गुज़रेंगे तो निशा से मिलेंगे ज़रूर! और निशा इस पूरी कथा के बीच कब कहाँ गुज़र जाएगी, क्या वो खुद जानती थी!

वापस आकर निशा ने उस पर्ची को मोड़कर कॉपी के भीतर रख दिया… पवन कुछ दिन बाद लौटा बिना यह जाने कि इस बीच कितना बड़ा तूफान होकर गुज़र चुका है! निशा ने तय किया इस बार पवन को समेटने की कोशिश करेगी ज़रूर! एक मौका देगी उसे! शायद उसकी ही कोशिश से पवन लौट आये! प्रेम का विस्तार क्या हमें दूसरों के लिए भी खुद को विस्तृत करने के लिए तैयार कर देता है? निशा सोचती है… क्या वो भीतर से खाली है? नहीं अब भीतर खालीपन महसूस नहीं होता… एक इच्छा ज़रूर होती है… बिटिया को क्या ऐसा डॉक्टर बनाया जा सकता है, जो ब्रिटल बोन का इलाज कर पाये! बिटिया से पूछती है, तो बिटिया तुतलाती है… जैसे माँ के मन को पढ़ रही हो! और मुस्कुराकर जैसे हाँ कर देती है। वैसे निशा आज भी इंतज़ार करती है टेलीफोन की घंटी का, जो कभी-कभी टुनटुनाती है, निशा उन दिनों ज़्यादा मुस्काती है… सुनने वालों को ज़्यादा हँसी सुनाई देती है, बच्चे ज़्यादा मुस्काते हैं…सूरज कुछ ज़्यादा चमकने लगता है उन दिनों…।

प्यार के बिना मज़ा नहीं : सारा

सारा और कार्तिक की फिल्म ‘लव आजकल कितनी अलग है?

एक अलग दुनिया है। एक अलग ज़माना है। 11 वर्षों में काफी चीज़ें बदल गयी हैं। मेरे अभिनय की अगर आप बात करें, तो यह आज की लड़की का प्रतिनिधित्व करती है। जिस तरह से करियर आजकल बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है, शायद इसलिए भी; क्योंकि औरतें आर्थिक रूप से भी स्वतंत्र हो चुकी हैं। इसी वजह से कोई भी महिला किसी भी रिश्ते में आकर अपना अधिकार भी माँग सकती है। पहले रचनात्मक सीमाओं की वजह से वह अपने अधिकार माँग नहीं सकती थी। पर अब ऐसा नहीं है।

क्या आप मानती हैं कि एक अभिनेता के जीवन में सफलता के बावजूद तन्हाई बसती है?

जी, सफलता के बाद दरअसल में अभिनेता के जीवन में ज़्यादा तन्हाई बसती है; क्योंकि आप कलाकार हैं, तो आपको यह पता नहीं चलता है कि कौन किस वजह से आपसे बात कर रहा है। आपको कहीं-न-कहीं यह भी महसूस होता है। आपके कॉलर लिस्ट और जो आपको अक्सर कॉल करते हैं, उनकी लिस्ट बदलती रहती है। आप फिल्म के बाहर भी अपने आपको ढूँढें, क्योंकि यहाँ पर आपको बहुत प्यार और इज़्ज़त मिलती है। पर यह सब कुछ टाइम-टाइम की बात होती है। अगर आप यहाँ पर अपने आप के लिए स्थाई स्थान ढूँढेंगे, तो अपने आपको बहुत ही अकेला पाएँगे।

अकेलापन खत्म करने के लिए बतौर अभिनेत्री आप कुछ करना चाहेंगी?

एक अभिनेता या अभिनेत्री को अपने आप को हमेशा यह बात याद दिलाते रहनी चाहिए कि वह एक कलाकार है। अगर आप कलाकार हैं, तो आप ऐसा काम करते हैं, जिससे आप और सभी लोग प्यार करते हैं। यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन जब आप घर जाते हैं, तो आपको वही बनना चाहिए, जो आप कलाकार बनने से पहले होते हैं। क्योंकि वहाँ आपकी ज़िन्दगी है, आपका काम नहीं है। जो आपके साथ हमेशा रहेगा, वह आपका साधारण व्यक्तित्व है और आपका परिवार है। या फिर आपके दोस्त आपके साथ हमेशा रहेंगे। आपको अपनी जड़ें कभी भी नहीं छोडऩी चाहिए। जड़ों से जुड़े रहना आपके लिए बहुत ज़रूरी है।

कार्तिक आर्यन के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? अब क्या आप दोनों जीवन भर दोस्त रहेंगे?

हम दोनों जीवन भर दोस्त रहें, ऐसी मैं आशा करती हूँ। जहाँ तक कार्तिक के साथ काम करने का अनुभव रहा, बहुत ही बढिय़ा रहा। कार्तिक बहुत ही को ऑपरेटिव अभिनेता हैं। वह अपने को एक्टर को बहुत ही प्रोत्साहित करते हैं।

रिएक्शंस देना तो उनका काम है, किन्तु उन्होंने इससे भी ज़्यादा किया है। उन्होंने मुझे खड़े होकर मेरे शॉट के दौरान मुझे ‘क्यू भी दिया है। और ऐसा उन्होंने हमेशा ही किया है। यह सब सहयोग उनकी तारीफ के काबिल है।

सारा के लिए प्यार के क्या मायने हैं?

प्यार को हम शब्दों में बयाँ नहीं कर सकते हैं। यह एक ऐसी अनुभूति होती है, जिसे हम महसूस कर सकते हैं। फिल्म ‘लव आजकल में हम इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि प्यार के बारे में हम आपसे कुछ-न-कुछ बाँट सकें। मुझे लगता है प्यार का एहसास बहुत अच्छा है। चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो।

प्यार के बिना मज़ा नहीं है। प्यार नहीं है, तो यह तो ऐसे हुआ, जैसे फिर किसी का भी हाथ पकड़ लो।

आप अपने आपको किस हद तक सुरक्षित महसूस करती हैं?

मुझे नहीं लगता यहाँ पर कम्फर्ट और सिक्योरिटी ढूँढी जा सकती है। मेरी पहली फिल्म ‘केदारनाथ से ही मुझे बहुत प्यार मिला है। यह बात मैं खूब अच्छी तरह जानती हूँ। मुझे नहीं लगता मैं इसकी हकदार भी हूँ। क्योंकि मैंने उस समय तक कुछ भी नहीं किया था और मुझे आज भी यही लगता है कि मैंने अभी तक भी ऐसा कुछ खास नहीं किया है। बस सभी का प्यार मिलता रहे और मैं उसके लायक बनूँ, बस इसी की मुझे उम्मीद है। मुझे मौके मिलते रहें और मैं अपने आपको साबित करती रहूँ, ताकि मैं वाकई उस प्यार की हकदार रहूँ। रही बात ज़िन्दगी बदलने की, तो पेशे से हमारी ज़िन्दगी हर शुक्रवार को बदलती रहती है। पर एक कलाकार का सीखना कभी बन्द नहीं होना चाहिए, अगर वह बन्द हो गया तो समस्या हो जाएगी।

ऐतिहासिक, सपोर्ट या राजनीति से जुड़े किस व्यक्तित्व की बायोपिक करना चाहेंगी सारा?

मैं सभी क्षेत्र से जुड़े लोगों की अलग-अलग कहानियाँ करना चाहूँगी। लेकिन मिस्टर भंसाली मुझे रानी बना दें (कोई भी रानी) तो मुझे बहुत मज़ा आयेगा।

फिल्मी सितारों का सरोगेसी में बढ़ता रुझान और कानून

बॉलीवुड में सरोगेसी आजकल आम-सा हो गया है। सेलीब्रिटीज़ ट्रेंड सेटर्स होते हैं और वे जो भी करते हैं, वह अपने आपमें ट्रेंड बन जाता है। लोग उसे फॉलो भी करने लगते हैं। बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी कुंद्रा और उनके बिजनेसमैन पति राज कुंद्रा 15 फरवरी, 2020 को सरोगेसी के द्वारा पैरेंट्स बने हैं। इस बात की जानकारी शिल्पा शेट्टी ने इंस्टाग्राम पर 21 फरवरी, 2020 महाशिवरात्रि को एक फोटो साझा करके अपने प्रशंसकों को दी, जिसमें वह अपनी नन्ही परी का हाथ थामे दिखीं। उन्होंने अपने अकाउंट पर फोटो साझा करके लिखा- ‘हमें यह बताने में बेहद खुशी हो रही है कि हमारी दुआ कुबूल हो गयी है। घर में लक्ष्मी आयी है। उन्होंने अपनी बेटी का नाम समीशा रखा है। ‘मीशा शब्द उन्होंने रशियन भाषा से लिया है,  जिसका मतलब होता है- ईश्वर। जबकि ‘स प्रत्यय (संस्कृत व्याकरण के अनुसार) लगने से ‘के जैसा अर्थ होता है। इस तरह शिल्पा ने अपनी बेटी का नाम- समीशा यानी ‘ईश्वर के जैसी सोचकर रखा है।

  इससे पहले, शाहरुख खान, सन्नी लियोनी, तुषार कपूर, एकता कपूर, करण जौहर, आमिर खान जैसे दिग्गज फिल्मी सितारे पैरेंट्स बनने के लिए सेरोगेसी का रास्ता अपना चुके हैं। शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा का पाँच साल का एक बेटा है। एक साक्षात्कार में शिल्पा ने खुलासा किया था कि वह लम्बे समय से दूसरे बच्चे के बारे में सोच रहे थे। लेकिन इसमें कुछ दिक्कतें आ रही थीं। इसलिए उन्होंने सरोगेसी का रास्ता अपनाया। जूनियर शिल्पा शट्टी की  खुशी में उन्होंने अपने कुछ खास रिश्तेदारोंऔर दोस्तों के साथ पार्टी भी रखी थी। इस पार्टी की फोटो भी उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर की।

शाहरुख खान ने 2017 में मीडिया को बताया था कि चार साल पहले उनकी बीवीऔर वे बच्चे का प्लान कर रहे थे। 2013 में उन्होंने सरोगेसी से दूसरा बेटा अबराम हुआ। अभिनेत्री सनी लियोनी ने 2018 में बेटी निशा को गोद लेने के बाद सरोगेसी के ज़रिये जुड़वाँ बच्चों का स्वागत किया, इसकी सूचना सनी लियोनी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर ‘गॉड्स प्लान लिखकर दी। उन्होंने लिखा- वे काफी समय से फैमिली प्लानिंग कर रहे थे और भगवान ने हमारे लिए कुछ बड़ा सोचा था। आिखरकार हमारा परिवार पूरा हो गया। अब हमारा बड़ा परिवार है। अब हमारे तीन खूबसूरत बच्चे हैं, जिनके नाम आशेर सिंह वेबर, नोहा सिंह वेबर और निशा सिंह वेबर हैं।

2011 में मिस्टर परपेक्शनिस्ट के नाम से मशहूर आमिर खान और उनकी फिल्ममेकर धर्मपत्नी किरण राव ने अपने पहले बच्चे आज़ाद  राव खान के बारे में लोगों को बताया। किरण राव ने बताया कि यह बेहद खास बच्चा है, जो कि कुछ परेशानियों के चलते काफी समय इंतज़ार करने के बाद सरोगेसी के ज़रिये इस दुनिया में आया है। राव ने बताया था कि विशेषज्ञों ने हमें आईवीएफ-सरोगेसी की सलाह दी थी और हम बेहद खुश हैं कि हमारा सपना साकार हुआ।

इसी तरह 2017 मे प्रोड्यूसर-डायरेक्टर करण जौहर जो कि बॉलिवुड की मशहूर हस्ती हैं, वह भी सरोगेसी के ज़रिये जुड़वाँ बच्चे (लड़का और लड़की) के सिंगल पैरेंट बने, जिनके नाम यश और रूही हैं। इसी तरह वर्ष 2016 में अभिनेता तुषार कपूर भी सरोगेसी के द्वारा एक बेटे के पिता बने, उन्होंने बताया कि मेरे माता-पिता इस बात को लेकर बहुत चिन्तित थे कि इसकी आईवीएफ-से सरोगेसी के ज़रिये हुए बेटे की सूचना मुझे देनी चाहिए या नहीं। बालाजी टेली फिल्म्स की क्रिएटिव हेड एकता कपूर ने स्वयं बताया था कि वे 27 जनवरी 2019 को सरोगेसी के ज़रिये एक बेटे की माँ बनीं। उन्होंने अपने बेटे का नाम रवि रखा है, जो कि उनके पिताजी सदाबहार अभिनेता जितेंद्र का असली नाम है। बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत की बहन रंगोली चंदेल ने उस दिन बेटी गोद ली, जिस दिन शिल्पा शेट्टी ने अपनी सरोगेसी से हुई बेटी की खबर सोशल मीडिया पर शेयर की थी। रंगोली चंदेल ने बताया उनका पहले ही एक बच्चा है, उन्होंने कहा कि मैं और मेरे पति अजय ने यह निर्णय लिया है कि हम सेरोगेसी की बजाय एक बच्चा और गोद लेंगे।

सुष्मिता सेन 18 वर्ष की उम्र में 1994 में मिस यूनिवर्स बनने वाली भारत की पहली महिला हैं। सुष्मिता ने वर्ष 2000 मे एक बेटी, जिनका नाम रैने है और 2010 में दूसरी बेटी, जिनका नाम अलिसा है। मिस यूनिवर्स ने ये दोनों बेटियाँ गोद  ली हुई हैं। हाल ही में उन्होंने एक बेटा भी गोद लिया है। सरोगेसी एक तरह का कानूनी समझौता है, जिसके अंतर्गत दूसरी महिला अपने गर्भाशय में नौ महीने बच्चा रखने को तो तैयार होती है और उस बच्चे को जन्म देने के बाद कानूनी समझौते के अनुसार उसके असली माता-पिता को दे देती है।

सरोगेसी और इसकी वैधता

सरोगेसी बिल :- 15 जुलाई, 2019 को लोकसभा में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री, डॉ. हर्षवर्धन ने सरोगेसी बिल पेश किया। बिल में उन्होंने सरोगी के बारे में बताया गया है कि एक महिला ऐसे बच्चे को जन्म देती है, जिसे वह जन्म देने के बाद इच्छुक दम्पति को सौंप देती है।

सरोगेसी के नियम :- यह विधेयक व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबन्ध लगाता है, लेकिन परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है। परोपकारी सरोगेसी में गर्भावस्था में माँ को दवाइयों और बीमा के खर्च के अलावा कुछ और नहीं दिया जाता। व्यावसायिक सरोगेसी के अंतर्गत सरोगेट माँ को गर्भावस्था में इलाज की सुविधा, बीमा और रकम भी अदा की जाती है, इस पर यह सरोगेसी तय होती है।

सरोगेसी की अनुमति की शर्तें :- सरोगेसी को निम्नलिखित कारणों से अनुमति दी जाती है : (1)  उन कपल्स के लिए, जिन्हें डॉक्टर ने साबित कर दिया हो कि वह माता-पिता बनने मे असमर्थ हैं।

(2) किसी की मदद करने का इरादा हो। (3) व्यवसाय के इरादे से न किया गया हो। (4) बच्चों को पैदा कर बेचने के व्यापार और दुरुपयोग के लिए न किया गया हो।

पात्रता के मानक :-  इच्छुक दम्पति के पास आवश्यकता का प्रमाण-पत्र के साथ आगे बच्चे के पालन पोषण करने के योग्य होने का सबूत भी देना होता है।

शर्तें, जो कि प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं :- (1) ज़िला मेडिकल बोर्ड से मिला सर्टिफिकेट, जो कि माता-पिता बनने की इच्छा रखने वाले जोड़े में से किसी एक की अयोग्यता को साबित करने वाला हो।  (2) बच्चे के पालन पोषण और देखरेख का कोर्ट से मिला आदेश।

(3) सरोगेट माँ के लिए बच्चा हो जाने के बाद 16 महीनों का बीमा कवरेज़।

(4) भारत का नागरिक होने के साथ-साथ उनके विवाह को पाँच साल से ज़्यादा हो गये हों। (5) पत्नी की उम्र 23 से 50 वर्ष के बीच हो और पति की उम्र 26 से 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए। (6) इच्छुक जोड़े के पास पहले से ही कोई जीवित बच्चा (गोद लिया हुआ, अपना और सरोगेसी के द्वारा) नहीं होना चाहिए। यदि हो भी तो मानसिक बीमार हो।

सरोगेट माँ के लिए ज़रूरी मापदंड :-    सरोगेट माँ बनने के लिए ज़रूरी अधिकृत प्रमाण-पत्र होना ज़रूरी है कि वह इसके योग्य है। (1) कोई करीबी रिश्तेदार  (2) 25 से 35 वर्ष उम्र हो (3) अपने पूरे जीवन काल में महिला केवल एक ही बार सरोगेट माँ बन सकती है। (4) महिला के पास सरोगेसी के लिए मेडिकल और मनोवैज्ञानिक फिटनेस सर्टिफिकेट होना आवश्यक है, अन्यथा महिला सरोगेसी के लिए अपने गैमीट प्रदान नहीं कर सकती।

प्राधिकरण बनाएँगे :- केंद्र और राज्य सरकार ने बिल के अधिनियम बनने के बाद 90 दिन के भीतर उचित प्राधिकरण बनाएँगे। (1) पंजीकृत सरोगेसी क्लीनिकों को निलम्बित, स्थगित और रद्द करना।  (2) सरोगेसी के लिए घूस देने वालों के िखलाफ जाँच और कार्रवाई।

सरोगेसी क्लीनिकों का पंजीकरण :-    सरोगेसी से सम्बन्धित प्रक्रिया को तब तक पूरा नहीं किया जा सकता, जब तक के वह उचित प्राधिकरण में पंजीकृत न हो। सरोगेसी क्लीनिक्स में किसी भी अप्वाइंटमेंट लेने से पूर्व 60 दिन के अन्दर पंजीकरण कराना अनिवार्य है।

राष्ट्रीय और राज्य सरोगेसी बोर्ड :- केंद्र और राज्य सरकारें राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड और राज्य सरोगेसी बोर्ड का गठन करेंगी। (1) इसके अंतर्गत केंद्र सरकार को सरोगेसी से सम्बन्धित नीतिगत मामले की जानकारी देना। एसएसबी के कामकाज की निगरानी करना।

सरोगेसी के अंतर्गत किए गए अबॉर्शन का प्रतिशत :- सरोगेसी प्रक्रिया से पैदा होने वाले बच्चे को अंतर्गत दम्पति का बायोलॉजिकल बच्चा माना जाएगा। गर्भपात के लिए सरोगेट माँ की लिखित सहमति आवश्यक है और उचित प्राधिकरण  से अनुमति लेना भी ज़रूरी है। यह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट-1971 के तहत आवश्यक है।

अपराध और दंड :- विधेयक के तहत अपराधों में शामिल हैं। (1) कमर्शियल सरोगेसी। (2) सरोगेट माँ का शोषण।  (3) सरोगेट बच्चे का शोषण (4) सरोगेसी के लिए मानव जैमीट या भ्रूण को बेचना कानून के खिलाफ है। ऐसा करने पर 10 साल की सज़ा और 10 लाख तक का ज़ुर्माना होगा। सरोगेसी बिल का उल्लंघन करने पर अन्य तरह से भी सज़ा व ज़ुर्माने का प्रावधान किया गया है।

भेदभाव और नफरत का परिणाम

आज हम सब कोरोना जैसी महामारी के डर से एक-दूसरे से काफी दूर हो चुके हैं; जानबूझकर न सही, पर मजबूरीवश अलग-थलग पड़ गये हैं। हमने पिछले समय में सदियों से एक-दूसरे से झगड़े किये हैं; एक-दूसरे से घृणा की है; एक-दूसरे को कमतर समझा है और एक-दूसरे को अपना दुश्मन भी माना है। और यह सब हमने केवल मज़हब और जातिवाद की दीवारें खड़ी करके किया है। एक-दूसरे से काफी गहरा सरोकार होते हुए भी; एक ईश्वर, एक प्रकृति और एक जीवात्मा होते हुए भी; सभी की मूलभूत ज़रूरतें एक जैसी होने के बावजूद भी हमने एक-दूसरे को कभी उतने अंतर्मन से नहीं अपनाया, जितने गहरे तक ईश्वर ने हमें जोड़कर पृथ्वी पर भेजा है।

कहने का तात्पर्य यह है कि हम एक ही नीली छत के नीचे रहकर भी एक-दूसरे से इस तरह कटे-कटे रहने लगे थे, जैसे कि हम इंसान नहीं हैं; दिमागदार नहीं हैं। आज प्रकृति ने हमें एक-दूसरे से उससे भी ज़्यादा अलग रहने को मजबूर कर दिया है। आज महज़ एक बीमारी के खौफ से हम घरों में दुबकने को, एक-दूसरे से दूर रहने को विवश हो चुके हैं। मज़े की बात यह है कि अब हम एक-दूसरे से मिलने के लिए छटपटाने लगे हैं। खुली हवा में साँस लेने के लिए तरसने लगे हैं। सभी की बनायी मिली-जुली दुनिया देखने के लिए बेचैन हैं। एक-दूसरे से हाथ मिलाने की तमन्ना दिल में दफ्न करे उदास बैठे हैं। आज प्रकृति ने हमें सिखा दिया कि स्वार्थ और नफरत की उम्र बहुत लम्बी नहीं होनी चाहिए; वरना यह हमारे और भावी पीढिय़ों के लिए घातक सिद्ध होगी। यह ठीक वैसे ही है, जैसे दो पड़ोसियों को बार-बार झगडऩे और एक-दूसरे से नफरत करने से आजिज़ पुलिस उनके घरों में पहरेदारी कर घरों में कैद कर दे या जेल के अलग-अलग बैरकों में बन्द कर दे। सोचिए, बार-बार झगडऩे, एक-दूसरे से नफरत करने और एक-दूसरे को न जीने देने की सज़ा आपको घरों में कैद होने की मिले, तो क्या आपका मन ऊब नहीं जाएगा? क्या आपके मन में घर कर चुकी नफरत अन्दर-ही-अन्दर आपको ही नहीं खाने लगेगी? क्या आपका मन लोगों से मिलने, उन्हें प्यार से देखने के द्रवित और दु:खी नहीं हो उठेगा? ज़रूर हो उठेगा। क्योंकि यह नफरत, यह भेदभाव, यह वैमनस्य और ये मज़हब तथा जातिवाद की दीवारें हमने अपने स्वार्थ और अहंकार की बुनियाद पर खड़ी की हैं। और आज जब हम घरों में कैद हो चुके हैं, तब हम उकताने लगे हैं। क्योंकि इंसान प्रकृति प्रेम और रक्षा करने की है। हमारा काम एक-दूसरे के वगैर चल ही नहीं सकता। हम सब इंसानों को एक-दूसरे के कन्धे-से-कन्धा मिलाकर हमेशा ज़रूरत रही है और हमेशा रहेगी; अन्यथा न तो हम अपने जीवन में तरक्की कर पाएँगे और न ही जीवन का आनन्द ले पाएँगे।

हमें सदियों से यह बात सिखायी जाती रही है कि आपसी प्रेम, भाईचारे और एक-दूसरे का सहयोग करके चलने में ही हम इंसानों की भलाई है। संतों ने, धर्म-ग्रन्थों ने, प्रकृति ने हमें बार-बार इस बात के संकेत दिये हैं कि हमारा जीवन बहुमूल्य है, लेकिन यह नश्वर भी है। इसे गलत तरीके से बर्बाद नहीं करना चाहिए। हमें कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे किसी इंसान, किसी जीव, प्रकृति या हमारी आत्मा को दु:ख या हानि पहुँचे। पर हम आज तक नहीं सुधरे। मैंने कई ऐसे लोगों का बुरा अन्त देखा है, जिन्होंने उम्र भर दूसरों के साथ बुरा किया। कई ऐसे लोगों को भी देखा-सुना है, जो दूसरों का बुरा करते रहे और जब उनका अन्तिम समय आया, तो रोते-रोते मुआफी माँगते हुए इस संसार से विदा हुए।

अकड़ इंसान की सबसे बड़ी दुश्मन है। लालच इंसान के शरीर में लगी हुई दीमक है। नफरत दिल-ओ-दिमाग का कैंसर है और किसी के नुकसान की भावना दमा की तरह है।

क्योंकि अकड़ अंतत: उसी इंसान को तोड़ देती है, जो उम्र भर दूसरों को तोड़ देने, नष्ट कर देने का वहम् पाले रहता है। लालच इंसान को धीरे-धीरे अन्दर से इतना खोखला कर देता है कि वह अपनी ही नज़र में खत्म होने लगता है। क्योंकि कोई लालचवश भले ही बहुत सारा धन कमा ले, लेकिन वह भूल जाता है कि उसका अस्तित्व इससे भी आगे, इससे भी बड़ा हो सकता था। नफरत इंसान के दिल-ओ-दिमाग को इस तरह जकड़ लेती है कि वह कैंसर के रोगी की तरह खुद ही उसी नफरत की आग में जल-जलकर मरता है। इसी तरह दूसरे के नुकसान की भावना इंसान के अन्दर ऐसी घुटन पैदा करती है कि एक दिन दूसरे का नुकसान करने-चाहने वाले का दम खुद ही घुटने-सा लगता है।

यह सब बातें मैंने सिर्फ और सिर्फ एक ही बात बताने के लिए कही हैं और यह बात केवल इतनी-सी है कि हमें एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए। क्योंकि हमारे बाद इस पृथ्वी पर और भी लोग आएँगे, जिनकी बेहतर या बद्तर ज़िन्दगी की पैमाइश हमारे कर्मों से ही की जाएगी। उन आने वाली पीढिय़ों के सुख-दु:ख के ज़िम्मेदार कहीं-न-कहीं हम भी होंगे।

आज प्रकृति ने महज़ एक बीमारी का भय दिखाकर हमारी ही भावनाओं के अनुकूल हमें एक-दूसरे से इतना ज़्यादा अलग कर दिया है, जिसकी हमने कल्पना तक नहीं की थी। क्योंकि हम एक-दूसरे से कटने लगे थे। ऐसे में आज हम सबको शपथ लेनी चाहिए कि अब हम एक-दूसरे से कभी नफरत नहीं करेंगे। मज़हब और जातिवाद की दीवारों का सहारा लेकर कभी एक-दूसरे से नहीं लड़ेंगे। एक-दूसरे का बुरा नहीं सोचेंगे। एक-दूसरे को कभी कमतर नहीं समझेंगे। एक-दूसरे का सहयोग करेंगे। एक-दूसरे के साथ-साथ प्रकृति और दूसरे जीवों की रक्षा करेंगे। ईश्वर एक है; प्रकृति एक है और जीवात्मा एक है; इस सिद्धांत को मानते हुए ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामय:; सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत्’की भावना से आगे बढ़ेंगे।

देश में कोरोना से मरने वालों की संख्या ४७ हुई, निजामुद्दीन स्थित मरकज पर कार्रवाई की तैयारी

कोरोना से देश में मरने वालों की संख्या ४७ पहुंच गयी है। दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तब्लीगी जमात के मरकज (केंद्र) में घोर लापरवाही का मामला सामने आने के बाद उसपर कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। देश में लॉक डाउन के बावजूद वहां सात देशों के करीब पांच सौ जमाती छिपे बैठे थे। वहां  पकड़े गए २०० जमातियों में से २४  को कोरोना पॉजिटिव की पुष्टि हुई थी। यहाँ से काफी लोग दूसरी जगह गए हैं।
अभी तक की जानकारी के मुताबिक मरकज में १४-१५ मार्च के बाद से विदेशी जमातियों की भीड़ जुटने लगी थी जबकि वहां १६ मार्च से तीन दिन का तब्लीगियों का सम्मेलन हुआ जिसमें देश भर से तब्लीगी और इस्लामी विद्वान और जानकार जुटे थे।  माना जा रहा है कि यह संख्या हजारों में थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक जब २४ मार्च की रात को देशव्यापी लॉकडाउन के वक्त मरकज में चीन, यमन, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान, सऊदी अरब और इंग्लैंड के करीब १५०० जमाती मौजूद थे।
जानकारी के बाद लॉकडाउन के बाद समूह बनाकर ये तमाम विदेशी वहां से समूहों में निकल लिए। बाद में जब कुछ लोगों बीमार होने की खबर सामने आई तो स्वास्थ्य विभाग और पुलिस ने साझा अभियान चलाकर रविवार को तड़के साढ़े तीन बजे वहां  छापा मारा। उस समय वहां करीब ५०० जमाती मौजूद थे, जिनमें से २०० के करीब पकड़ लिए गए जबकि बाकी भाग गए।
दिलचस्प यह है कि अभी तक मरकज के खिलाफ कोइ कार्रवाई नहीं  की गयी है।
पकड़े गए २०० जमातियों को कोरोना संदिग्ध मानकर सोमवार को दिल्ली के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। पकड़े गए २०० जमातियों में से २४ को  कोरोना पॉजिटिव की पुष्टि हुई थी। यह संख्या बढ़ सकती है।
इस मामले में दिल्ली सरकार ने पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए हैं। हालांकि, अभी तक कोइ कार्रवाई नहीं हुई है।
भारत में अब कोरोना से मरने वालों की संख्या ४७ हो गयी है जबकि १२१३ लोग संक्रमण से ग्रसित हैं। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा १० और गुजरात में ६ जबकि पश्चिम बंगाल में ४ लोगों की मौत हुई है।

बंगाल में समय रहते संभाल ली स्थितियां

कोलकाता : कोरोना वायरस के कारण देशभर में लॉकडाउन के दौरान सोशिल मीडिया पर अफवाह के कारण अखबारों को तगड़ा झटका लगा। लोग अखबार लेने से डरने लगे थे। अफवाहों के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में अखबारों के प्रकाशन बंद करना पड़ा था, क्योंकि हॉकर अखबार लेने को तैयार नहीं थे। ऐसे समय में भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममताबनर्जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। हॉकर यूनियनों द्वारा अखबार नहीं उठाने की बात संस्थानों द्वारा मुख्यमंत्री तक पहुंचायी गयी। उन्होंने पूरी रपट ली तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया पर लाइव होकर कहा कि ‘मुझे जानकारी मिली है कि कई हॉकर अखबार नहीं ले रहे हैं। मैं उनसे कहना चाहूंगी कि इस आपात परिस्थिति में अखबारों को राहत दी गयी है। अखबार लोगों को पढ़ना जरूरी है वरना दैनिक जीवन से जुड़ी बातें लोगों को कैसे पता चलेंगी। पुलिस प्रशासन से पूरा सहयोग करने के लिए कहा गया है।’ इसके अगले दिन मुख्यमंत्री ने दोबारा कहा कि आप सभी सही खबरों के लिए अखबार पढ़िये। इस विकट समय में अखबार ही सही खबर आप तक पहुंचा सकते हैं। ममता बनर्जी का यह संदश मीडिया के लिए संजीवनी की तरह था। यह संदेश जब हॉकरों और आम लोगों तक गया तो हाकर भी वापस अपने काम पर आने लगे तथा अखबारों ने अपना नियमित प्रकाशन जारी रखा।

धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य होती चली गईं, अन्यथा एक दो दिन के लिए स्थिति यह बन गयी थी कि छोटे छोटे कुछ अखबाराें ने प्रकाशन बंद कर दिया था तथा एक बड़े अखबार ने भी दो दिन प्रकाशन बंद रखा था।

मालवाहक विमानों से देश भर में पहुँचायी जा रही चिकित्सा सामग्री

नई दिल्ली। कोविड-19 से बचाव और इस महामारी की जाँच से जुड़े आवश्यक चिकित्सा उपकरणों और ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति के लिए मालवाहक विमानों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय राज्य सरकारों के साथ समन्वय कर रहा है। विभिन्न राज्यों की ओर से तत्काल ज़रूरत की माँग के आधार पर मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी आवश्यक चीज़ों की आपूर्ति के लिए आपूर्ति एजेंसियों की मदद ले रहे हैं, ताकि ऐसी सामग्रियों को उनके गंतव्यों तक आगे पहुँचाया जा सके। फ़िलहाल आवश्यक चीज़ों की आपूर्ति के लिए एयर इंडिया और एलायंस एयर की उड़ानें शुरू की गयी हैं। सरकारी सूत्रों की मानें तो नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा अधिकृत एजेंसियाँ अपने क्षेत्र के सम्बन्धित अधिकारियों से सम्पर्क करती हैं और ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति और उसकी रसीद प्राप्त करने के लिए समन्वय स्थापित करती हैं।

देश के पूर्वी और उत्तर पूर्वी हिस्सों में आपूर्ति के लिए एलायंस एयर की एक उड़ान गुवाहाटी, डिब्रूगढ़ और अगरतला के लिए चिकित्सा की ज़रूरी चीज़ें लेकर 29 मार्च, 2020 को दिल्ली से कोलकाता गयी। देश के उत्तरी क्षेत्र में आपूर्ति के लिए भारतीय वायुसेना के एक मालवाहक विमान के ज़रिये आईसीएमआर के वीटीएम किट और अन्य आवश्यक सामग्रियाँ दिल्ली से चंडीगढ़ और लेह भेजी गयीं। पुणे से दिल्ली लायी गयी आईसीएमआर किटों को (मुम्बई-दिल्ली-हैदराबाद-चेन्नई-मुम्बई और हैदराबाद-कोयम्बटूर) के मार्गों पर संचालित उड़ानों के ज़रिये शिमला, ऋषिकेश, लखनऊ और इम्फाल पहुँचाया जा रहा है। आईसीएमआर की किटें आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पुद्दुचेरी भी पहुँचाई गयी हैं। चेन्नई और हैदराबाद के लिए अलग से इनकी खेप भेजी गयी है। चेन्नई और हैदराबाद के लिए अलग से इनकी खेप भेजी गयी है। कपड़ा मंत्रालय की और से भेजी गयी खेप को कोयंबटूर पहुँचाया गया है।

समय पर ढंग से गंतव्यों तक आपूर्ति पहुँचाने के लिए सूचनाओं को साझा करने, प्रश्नों का उत्तर देने और ज़मीनी स्तर पर किया जा रहा काम 24 घंटे चल रहा है, ताकि कोविड-19 से निबटने के प्रयासों को और सशक्त बनाया जा सके और इनके लिए आवश्यक मदद दी जा सके।