नई दिल्ली : देश में जाट समाज का नाम रोशन करने वाले यूं तो हर फील्ड में मिल जाएंगे, चाहे वो खेल का मैदान हो, चाहे शिक्षा का मैदान हो, चाहे कला का मैदान हो, चाहे विज्ञान का मैदान हो, चाहे इंजीनियरिंग का मैदान हो, चाहे डॉक्टरी का मैदान हो, चाहे समाज सेवा का मैदान हो या फिर चाहे वो राजनीति का मैदान हो। लेकिन जाट समाज के बहुत से लोग इससे अनजान हैं कि उनके समाज के विद्वानों और पहलवानों ने पूरी दुनिया में परचम लहराया है। अभी हाल ही में ओलंपिक खेलों में जो दो ब्रांज मैडल भारत को मिले हैं, वो भी इसी समाज की देन हैं। इसी आधार पर अपने समाज के हर क्षेत्र के उभरते या चमकते हुए सितारों को सम्मानित करने का बीड़ा अखिल भारतीय जाट फाउंडेशन ने उठाया हुआ है।
हाल ही में 31 जुलाई को अखिल भारतीय जाट फाउंडेशन ने इसी सिलसिले में ‘सांसद सम्मान समारोह’ कार्यक्रम के तहत जाट समाज के सांसदों का सम्मान अशोक होटल, चाणक्यपुरी, नई दिल्ली में किया, जिसमें इस समाज के कई सांसदों को सम्मानित किया गया और समाज के युवाओं को आगे बढ़ने में उनकी मदद करने और उनका मार्गदर्शन करने पर चर्चा हुई।
समारोह की अध्यक्षता महारानी पटियाला, श्रीमति प्रणीत कौर ने की। समारोह के मुख्य अतिथि भाजपा के हरियाणा प्रभारी श्री सतीश पूनिया और उद्योगपति एस.के. नरवर थे। इसके अलावा विशिष्ठ अथितियों में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान, पूर्व केंद्रीय मंत्री बिरेंद्र सिंह, ओलंपियन बजरंग पूनिया, मथुरा के जिला पंचायत अध्यक्ष किशन चौधरी, यूके इंग्लैंड के डिप्टी मेयर रोहित अहलावत, पूर्व आईएएस सुरेंद्र कुमार वर्मा उपस्थित रहे। वहीं कार्यक्रम में बागपत (उत्तर प्रदेश) से सांसद राजकुमार सांगवान, मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) से सांसद हरेंद्र मलिक, झालावाड (राजस्थान) से सांसद दुष्यंत सिंह. बाडमेर (राजस्थान) से सांसद उम्मेदराम, राज्यसभा सांसद माया निरोलिया और श्री सुभाष बराला आदि सांसद भी मौजूद रहे।
इस प्रकार से सांसद सम्मान समारोह में कई पूर्व और कई कार्यरत आईएएस, आईपीएस, आईआरएस अधिकारियों के अलावा राजनीति, खेल और फिल्म जगत की अनेक हस्तियां इस सम्मान समारोह में शामिल हुईं।
इस सम्मान कार्यक्रम में मुख्य रूप से जाट समाज की एकता, उसकी प्रगृति और उसके सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने के बारे में चर्चा हुई और जाट समाज के सदस्यों, सम्मानित व्यक्तियों को एक साथ एक मंच पर लाने के उद्देश्य पर जोर दिया गया। कार्यक्रम का संचालन फेडरेशन के अध्यक्ष धर्मवीर चौधरी ने किया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में फेडरेशन के मुख्य सदस्य के रूप में फेडरेशन के संयोजक एस. के. काकरान, उपाध्यक्ष नरेंद्र चौधरी, फेडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव उत्तम चौधरी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सांसद सम्मान समरोह में सभी प्रमुख हस्तियों ने जाट समाज के साथ-साथ सभी समाज के लोगों और खास तौर पर देश की तरक्की और विकास में योगदान देने की पेशकश की।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
जाट फाउंडेशन ने किया सांसदों का सम्मान
आरबीआई की मौद्रिक नीति बैठक के निर्णय पर रहेगी बाजार की नजर
मुंबई : अमेरिकी अर्थव्यवस्था के एक बार फिर से मंदी की चपेट में आने की आशंका में हुई भारी बिकवाली के दबाव में बीते सप्ताह करीब आधी फीसदी गिरे घरेलू शेयर की अगले सप्ताह रिजर्व बैंक (आरबीआई) की द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक के निर्णय, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के नतीजे तथा पश्चिम एशिया में उत्पन्न तनाव पर नजर रहेगी।
बीते सप्ताह बीएसई का तीस शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 350.77 अंक अर्थात 0.43 प्रतिशत की गिरावट लेकर सप्ताहांत पर 80981.95 अंक पर आ गया। इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 117.15 अंक यानी 0.47 प्रतिशत की गिरावट लेकर 24717.70 अंक रह गया।
समीक्षाधीन सप्ताह में दिग्गज कंपनियों के विपरीत बीएसई की मझौली और छोटी कंपनियों में मिलाजुला रुख रहा। इससे मिडकैप जहां 31.44 अंक अर्थत 0.07 प्रतिशत फिसलकर सप्ताहांत पर 47675.23 अंक पर रहा वहीं स्मॉलकैप 334.94 अंक यानी 0.62 प्रतिशत लुढ़ककर 54629.29 अंक पर आ गया।
विश्लेषकों के अनुसार, बीते सप्ताह कंपनियों के वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही की कमजोर आय और बढ़ा हुआ मूल्यांकन निवेशकों को आश्वस्त नहीं कर रहा है। धातु समूह पर कमजोर नतीजों का असर पड़ा तथा आयात में वृद्धि से घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुंचा है। पूंजीगत सामान और रियल एस्टेट क्षेत्र पर मुनाफावसूली का दबाव रहा जबकि ऑटो क्षेत्र को उम्मीद से कम मासिक बिक्री आंकड़ों के कारण नुकसान उठाना पड़ा है।
वैश्विक स्तर पर आर्थिक वृद्धि में कमजोरी के संकेत दिख रहे हैं, जो बढ़ते व्यापार तनाव, पश्चिम एशिया में संघर्ष और लगातार बढ़ती महंगाई के कारण और भी गंभीर हो गया है। बैंक ऑफ जापान (बीओजे) ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की, जिसका जापानी बाजार पर असर पड़ा है जबकि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व कमजोर रोजगार आंकड़ों के कारण सितंबर में ब्याज दरों में कटौती पर विचार कर रहा है। भविष्य में आरबीआई भी ऐसा ही कर सकता है लेकिन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई में हाल की बढ़ोतरी चिंता का विषय है। चीन विकास में मंदी का सामना कर रहा है, जिससे आर्थिक गति को बहाल करने के लिए अतिरिक्त नीतिगत उपाय आवश्यक हो गए हैं।
शेयरों के प्रीमियम मूल्यांकन, पहली तिमाही के कमजोर नतीजे और वैश्विक बाजार में जारी सुदृढ़ीकरण के कारण अगले सप्ताह बाजार में मजबूती की संभावनाएं बढ़ गई हैं। अगले सप्ताह 06 से 08 अगस्त को आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की होने वाली अगली द्विमासिक समीक्षा बैठक के निर्णयों पर बाजार की नजर रहेगी। हालांकि उम्मीद है कि आरबीआई नीतिगत दरों पर यथास्थिति बरकरार रखेगा।
इसके साथ ही अगले सप्ताह भारती एयरटेल, ओएनजीसी, सेल, एनएचपीसी, ओआईएल, बीईएमएल, टाटा पावर, टीवीएस मोटर, आयोकॉन, ल्यूपिन, अपोलो टायर, एमआरएफ और इरकॉन समेत कई दिग्गज कंपनियों के वित्त वर्ष 2024-25 की अप्रैल-जून तिमाही के परिणाम जारी होने वाले हैं। बाजार को दिशा देने में इन कारकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
नशा करने से कांवड़ नहीं लगती
डॉ. आशा अर्पित
आजकल धर्मनगरी हरिद्वार कांवड़ियों से अटी पड़ी है। स्थानीय लोगों का अनुमान है कि कांवड़ यात्रा के पहले दिन ही दो लाख कांवड़िये हरिद्वार आये। यह सिलसिला लगातार जारी है। और तो और पिछले वर्षों से महिला कांवड़ियों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है और कई छोटे बच्चे भी कांवड़ यात्रा का हिस्सा बन रहे हैं। कांवड़ियों की राह आसान नहीं होती। ग़रीबी, लाचारी, मजबूरी आदि इस यात्रा के कई पहलू हैं। नशा करने वाले कांवड़ियों की संख्या अधिक है। गांजा, सुल्फा ज़्यादा चलता है। हर कांवड़िया मानता है कि शिव भोले हैं और उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। अज्ञानतावश नशे का चलन है। महादेव के बारे में शास्त्रीय ज्ञान शून्य है। कोई-कोई सोशल मीडिया के ज्ञान को रिपीट करता है कि सबसे पहले किस-किस ने कांवड़ उठायी थी? हालाँकि कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार में कई जगह लंगर चलते हैं। लेकिन लाखों की संख्या है। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि शौच, नहाना-धोना बड़ी समस्या है, जिसके चलते गंदगी भी फैलती है। लेकिन यह ऐसा तबक़ा है, जिसे अच्छे तरीक़े से शिक्षित करके देश के विकास की मुख्यधारा में लाया जा सकता है।
दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से कांवड़ियों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है। शृंगार की हुई कांवड़ में 10-20 लीटर से लेकर 100 लीटर तक गंगाजल भरकर सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। महिलाओं के लिए यह यात्रा काफ़ी कठिन होती है। कई महिलाएँ बताती हैं कि उनकी टाँगें सूज गयी हैं, चलने में दिक़्क़त होती है। वहीं पुरुष कांवड़िये अपनी इस यात्रा को आसान बनाने के लिए नशे का सेवन करते हैं। उसमें भी ख़ासतौर पर गांजा और सुल्फा बीड़ी और सिगरेट में भरकर पीते हैं। कांवड़ के नियमों का पालन करने का ध्यान रखते हैं। जैसे- खाने-पीने के बाद नहाना, सोने के बाद नहाना और विश्राम करने के बाद नहाना। तभी ये गंगाजल को हाथ लगाते हैं; ऐसी उनकी मान्यता है।
नीलकंठ से गंगाजल भरकर आ रहे नज़फ़गढ़ के आकाश भारद्वाज ने बताया कि उसे 300 किलोमीटर का सफ़र तय करके घर पहुँचना है। उसका कहना है कि जो आगे-पीछे नशा नहीं करता, वह सावन में ज़रूर करता है। इसका कारण उसने यह बताया कि नीलकंठ की चढ़ाई- उतराई में ही पैर जवाब दे जाते हैं, तो 300 किलोमीटर कैसे चला जाएगा? इसलिए ज़्यादातर कांवड़िये नशा करते हैं। वह बताता है कि गांजा माफ़ है, क्योंकि इसे भोले का महाप्रसाद माना गया है। इसके अलावा और कोई नशा नहीं किया जा सकता है। उससे कांवड़ ख़राब हो जाएगी। सोहनलाल भी 12 साल से कोई नशा नहीं करते और पवित्रता के साथ कांवड़ उठाकर चलते हैं। 220 किलोमीटर उन्हें जाना है। रोज़ 30 किलोमीटर का सफ़र पैदल तय करते हैं।
दिल्ली के प्रवीण उन कांवड़ियों को संदेश देते हैं कि जो भोले शंकर के नाम से नशा करते हैं, उनको अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि शिव शंकर ने तो लोक-कल्याण के लिए ज़हर पिया था और उसे अपने कंठ में रखा था। क्योंकि शरीर की गर्मी के लिए वह धतूरे का सेवन करते थे, ताकि शरीर ठंडा रहे। क्या हम जैसे लोग दूसरों के भले के लिए ज़हर पी सकते हैं? उनके इसी वाक्य में कावड़ यात्रा का संदेश स्पष्ट हो जाता है। वह मानते हैं कि हमारी सारी कामनाएँ पूर्ण होती हैं, जब पवित्रता के साथ कांवड़ उठाकर हम भोले का जलाभिषेक करते हैं। दिल्ली के नरेला के चंदन कहते हैं कि हम सच्चे मन से अपने गुरु बनवारी लाल के साथ कांवड़ उठाने आते हैं। पहले हम भी नशा करते थे; लेकिन पिछले छ: साल से जबसे कांवड़ उठानी शुरू की, तबसे नशे को हाथ नहीं लगाया। इससे हमारी मनोकामनाएँ पूरी हो रही है। घर वालों की शिक्षा और संस्कार बहुत ज़रूरी हैं। उनका कहना है कि शिव जी ने किसी कारण से नशे का सेवन किया था। हमें तो उन्होंने नहीं कहा कि आप भी नशा करो। बुलंद शहर के साबितगढ़ के बनवारी लाल जूना अखाड़ा के आचार्य स्वामी अवधेशानंद के शिष्य हैं। उन्होंने बताया कि गुरु जी ने हमें अच्छी शिक्षा दी है। हम शिव-भक्त हैं। हमारे में कोई भेदभाव नहीं है। भाईचारा है। 23 साल हो गये उन्हें कांवड़ उठाते हुए और उनके साथ 1,500 कांवड़िये जुड़े हुए हैं, जो पवित्रता से सभी नियमों का पालन करते हैं। गुरु परंपरा के हिसाब से सभी इकट्ठे रहते हैं। उनका कहना है कि बच्चों को संस्कार घर से ही मिलते हैं। नशा करने वालों को शिक्षा और संस्कार घर से नहीं मिले। धर्म की शिक्षा भी नहीं मिली। आज के बच्चे अध्यात्म की तरफ़ आ ही नहीं रहे। धर्म के प्रति जागरूकता ज़रूरी है कि धर्म क्या है? यह ज्ञान उन्हें मिलना चाहिए। जब तक हमारा युवा मज़बूत नहीं होगा, तब तक देश आगे नहीं बढ़ सकता।
पहचान के विवाद में भाजपा सरकारें
– कांवड़ यात्रा वाले मार्गों में स्थित दुकानों पर उनके मालिकों के नाम लिखने के निर्देश पर रोक
इंट्रो– उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार अपने कई विवादास्पद फ़ैसलों के चलते अक्सर चर्चा में रहती है। इस बार उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश सरकारों ने भी कांवड़ यात्रियों के मार्गों में ढाबों, होटलों और खाद्य पदार्थ बेचने वालों की रेहड़ियों पर उनका नाम लिखने का आदेश देकर हंगामा खड़ा कर दिया। लेकिन देश के सर्वोच्च न्यायालय ने यात्रा मार्ग पर भोजनालयों और रेहड़ियों पर उनके मालिकों का नाम लिखने के राज्यों के इस प्रशासनिक विवादास्पद निर्देश पर रोक लगा दी है। प्रशासनों के इस निर्देश और सर्वोच्च न्यायालय की इस पर रोक से योगी सरकार समेत सभी भाजपा सरकारों की छवि ख़राब हुई है और विपक्ष को इससे सरकार पर निशाना साधने का मौक़ा मिल गया है। इस पूरे मामले को लेकर मुदित माथुर की रिपोर्ट :-

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ियों की शान्तिपूर्ण तीर्थयात्रा सुनिश्चित करने के लिए यात्रा मार्ग के किनारे की दुकानों, ढाबों और रेहड़ियों के मालिकों को अपना नाम लिखने का निर्देश दिया जाना भारी पड़ गया है। हालाँकि यह निर्देश उत्तराखण्ड और मध्य प्रदेश में भी जारी किया गया। इस विवादास्पद निर्देश के बाद योगी आदित्यनाथ, पुष्कर सिंह धामी और मोहन यादव की सरकारों को जहाँ विपक्षी पार्टियों और आलोचकों ने घेर लिया है, तो वहीं दूसरी तरफ़ सर्वोच्च न्यायालय ने पहले 26 जुलाई तक इस निर्देश पर रोक लगाने के बाद अब और आगे बढ़ा दिया है। तीनों राज्यों की सरकारों के निर्देश पर स्थगन आदेश के बाद न्यायालय इस मामले पर अब अगली सुनवाई 05 अगस्त को करेगा। उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और मध्य प्रदेश सरकारों द्वारा जारी निर्देशों पर 26 जुलाई को सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रखते हुए एक और तारीख़ दे दी।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और मध्य प्रदेश सरकारों के निर्देशों के ख़िलाफ़ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स के तहत टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, प्रोफेसर अपूर्वन और स्तंभकार आकार पटेल द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायालय की कार्यवाही को आगे बढ़ाया। इस मामले में मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने रात 10:30 बजे जवाबी हलफ़नामा दायर किया। 25 जुलाई को और प्रत्युत्तर दाख़िल करने के लिए समय की आवश्यकता थी। यह कहते हुए कि जवाबी हलफ़नामा रिकॉर्ड पर नहीं आया है, पीठ ने मामले को स्थगित करने पर सहमति व्यक्त की। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानों को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का उसका निर्देश यह सुनिश्चित करने के लिए था कि कांवड़ियों की धार्मिक भावनाएँ संयोग से भी आहत न हों और शान्ति बनी रहे। दुकानों और भोजनालयों के नाम बदले होने के कारण होने वाले भ्रम के सम्बन्ध में कांवड़ियों से प्राप्त शिकायतों के बाद यह निर्देश जारी किया गया था। सरकार ने कहा- ‘पिछली घटनाओं से पता चला है कि बेचे जाने वाले भोजन के प्रकार के बारे में ग़लतफ़हमी के कारण तनाव और गड़बड़ी हुई। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए निर्देश एक सक्रिय उपाय है। राज्य सरकार ने कहा कि आदेश मांसाहारी भोजन की बिक्री पर प्रतिबंध को छोड़कर खाद्य विक्रेताओं के व्यापार या व्यवसाय पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाता है। दुकानदार हमेशा की तरह अपना व्यवसाय संचालित करने के लिए स्वतंत्र हैं। मालिकों के नाम लिखने का निर्देश केवल पारदर्शिता सुनिश्चित करने और किसी भी संभावित भ्रम को दूर रखने के लिए एक अतिरिक्त उपाय है। कांवड़ियों को परोसे जाने वाले भोजन से सम्बन्धित छोटे भ्रम भी उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने और दंगा भड़काने की सामर्थ्य रखते हैं; ख़ासकर मुज़फ़्फ़रनगर जैसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में।
उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि निर्देश धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता है। मालिकों के नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी खाद्य विक्रेताओं पर समान रूप से लागू होती है, भले ही उनकी धार्मिक या सामुदायिक संबद्धता कुछ भी हो। राज्य सरकार ने न्यायालय को बताया कि शान्तिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण तीर्थयात्रा सुनिश्चित करने के लिए निवारक उपाय करना अनिवार्य है।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्रीय क़ानून खाद्य और सुरक्षा मानक अधिनियम-2006 के तहत नियमों के तहत ढाबों सहित प्रत्येक खाद्य सामग्री विक्रेता मालिक को अपना नाम प्रदर्शित करना आवश्यक है। मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश पर रोक लगाने वाला न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश इस केंद्रीय क़ानून के अनुरूप नहीं है, क्योंकि इसे याचिकाकर्ताओं द्वारा न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाया गया। इस पर न्यायमूर्ति रॉय ने टिप्पणी की कि यदि ऐसा कोई क़ानून है, तो राज्य को इसे सभी क्षेत्रों में लागू करना चाहिए, केवल कुछ क्षेत्रों में ही नहीं। यह दिखाते हुए एक काउंटर दाख़िल करें कि इसे हर जगह लागू किया गया है।

राज्य सरकार के वकील रोहतगी ने मामले की शीघ्र सुनवाई की अपील करते हुए न्यायालय से कहा कि अगर इस मामले में शीघ्र सुनवाई नहीं की गयी, तो मामला निरर्थक हो जाएगा, क्योंकि कांवड़ यात्रा की अवधि दो सप्ताह में समाप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं का कर्तव्य है कि वे ऐसे क़ानून के अस्तित्व के बारे में न्यायालय को सूचित करें। इसके जवाब में सिंघवी ने कहा कि चूँकि पिछले 60 वर्षों की कांवड़ यात्राओं के दौरान मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का कोई आदेश नहीं था, इसलिए इस तरह के निर्देशों को लागू किये बिना इस वर्ष यात्रा की अनुमति देने में कोई नुक़सान नहीं है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह और हुज़ैफ़ा अहमदी भी उपस्थित हुए। सिंघवी ने हलफ़नामे से निम्नलिखित बयान पढ़ा- ‘निर्देशों की अस्थायी प्रकृति यह सुनिश्चित करती है कि वे खाद्य विक्रेताओं पर कोई स्थायी भेदभाव या कठिनाई नहीं पैदा करते हैं। साथ ही कांवड़ियों की भावनाओं और उनकी धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं को बनाए रखना भी सुनिश्चित करते हैं। तो वे कहते हैं कि भेदभाव है। लेकिन यह स्थायी नहीं है।’
उत्तराखण्ड के उप महाधिवक्ता जतिंदर कुमार सेठी ने कहा कि क़ानून मालिकों के नाम प्रदर्शित करने को अनिवार्य बनाता है और अंतरिम आदेश समस्याएँ पैदा कर रहा है। यह क़ानूनी आदेश राज्य द्वारा सभी त्योहारों के दौरान पूरे देश में लागू किया जा रहा है। यदि कोई अपंजीकृत विक्रेता कांवड़ यात्रा मार्ग पर कोई शरारत करता है, तो इससे क़ानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो जाएगी। जब पीठ ने उनसे पूछा कि शरारत क्या हो सकती है? आपने एक अपंजीकृत विक्रेता का उदाहरण दिया, जो तीर्थयात्रियों को आम बेच रहा है, उससे क्या दिक़्क़त? पीठ ने कुछ कांवड़ तीर्थयात्रियों की संक्षिप्त दलीलें भी सुनीं, जिन्होंने सरकार के निर्देशों का समर्थन करने के लिए मामले में हस्तक्षेप किया था। हस्तक्षेपकर्ता ने कहा कि कांवड़ यात्री लहसुन और प्याज के बिना तैयार केवल शाकाहारी भोजन लेते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ दुकानें भ्रामक नामों वाली हैं, जिससे यह ग़लत धारणा बनती है कि वे केवल शाकाहारी भोजन परोसते हैं, जिससे तीर्थयात्रियों को परेशानी होती है। उन्होंने कहा कि सरस्वती ढाबा, माँ दुर्गा ढाबा जैसे नामों से दुकानें हैं। हम मानते हैं कि यह शुद्ध शाकाहारी हैं। जब हम दुकान में प्रवेश करते हैं, तो मालिक और कर्मचारी अलग-अलग होते हैं और वहाँ मांसाहारी भोजन परोसा जाता है। यह हमारे रीति-रिवाज और उपयोग के ख़िलाफ़ है। इसी संदर्भ में मुज़फ़्फ़रनगर पुलिस ने स्वेच्छा से नाम लिखने की सलाह दी थी।

पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने किसी को भी मालिकों और कर्मचारियों के नाम स्वेच्छा से प्रदर्शित करने से नहीं रोका है और रोक केवल किसी को ऐसा करने के लिए मजबूर करने के ख़िलाफ़ है। आदेश तय होने के बाद उत्तराखण्ड के डिप्टी एजी ने पीठ से यह स्पष्ट करने का आग्रह किया कि क्या राज्य मालिक के नाम प्रदर्शित करने की आवश्यकता वाले क़ानून के तहत कार्रवाई कर सकता है? हालाँकि पीठ ने कहा कि अंतरिम आदेश यथावत् रहेगा। मध्य प्रदेश राज्य की ओर से पेश वकील ने उस समाचार रिपोर्ट का खण्डन किया कि उज्जैन नगर निगम ने इसी तरह का निर्देश जारी किया है। सुनवाई की आख़िरी तारीख़ पर सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देशों के ख़िलाफ़ दायर तीन याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश और दिल्ली को नोटिस जारी किया। इसने विवादित निर्देशों पर भी रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि दुकानों और भोजनालयों को उस तरह का भोजन प्रदर्शित करने की आवश्यकता हो सकती है, जो वे कांवड़ियों को बेच रहे थे। हालाँकि उन्हें प्रतिष्ठानों में तैनात मालिकों और कर्मचारियों के नाम / पहचान प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
कांवड़ यात्रा एक वार्षिक तीर्थयात्रा है, जो शिव-भक्तों द्वारा की जाती है। इन्हें कांवड़िया या भोले के नाम से जाना जाता है, जिसके दौरान वे पवित्र गंगा नदी का जल लाने के लिए उत्तराखण्ड स्थित हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री और सुल्तानगंज, भागलपुर, बिहार में अजगैबीनाथ जैसे प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हैं। 17 जुलाई, 2024 को मुज़फ़्फ़रनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने एक निर्देश जारी किया कि कांवड़ यात्रा मार्ग के सभी भोजनालयों, खाद्य पदार्थों बिक्री केंद्रों पर उनके मालिकों को अपना नाम लिखना आवश्यकता है। इस निर्देश को 19 जुलाई, 2024 को पूरे राज्य में विस्तारित किया गया था। कथित तौर पर निर्देश को उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के सभी ज़िलों में स$ख्ती से लागू किया गया। उक्त निर्देश के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष तीन याचिकाएँ दायर की गयीं। पहली याचिका एनजीओ-एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) ने, दूसरी टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने और तीसरी जाने-माने राजनीतिक टिप्पणीकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षाविद् अपूर्वानंद झा और स्तंभकार आकार पटेल ने दायर की। याचिकाकर्ताओं का अन्य बातों के साथ-साथ तर्क है कि ये निर्देश धार्मिक विभाजन पैदा करने की धमकी देते हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14, 15, 17 और 19 के तहत गारंटीकृत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। ये निर्देश भोजनालयों के मालिकों और श्रमिकों की निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। उन्हें ख़तरे में डालते हैं और उन्हें निशाना बनाते हैं। शुरुआत में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने निर्देशों के पीछे तर्कसंगत साँठगाँठ पर सवाल उठाया। उन्होंने बताया कि स्थिति चिन्ताजनक है। क्योंकि जिन पुलिस अधिकारियों ने ये निर्देश जारी किये हैं, उन्होंने विभाजन पैदा करने का बीड़ा उठाया है।
डॉ. सिंघवी का दावा है कि ये निर्देश वस्तुत: मालिकों की पहचान करेंगे और उनका आर्थिक बहिष्कार करेंगे। उन्होंने तर्क दिया कि इससे अन्य राज्यों में डोमिनोज प्रभाव पैदा होगा। पीठ ने पूछा कि क्या ये एक प्रेस बयान में जारी किये गये आदेश या निर्देश थे? इस पर डॉ. सिंघवी ने स्पष्ट किया कि पहले निर्देश प्रेस बयानों के माध्यम से जारी किये गये थे। हालाँकि अधिकारी इसे स$ख्ती से लागू कर रहे हैं। डॉ. सिंघवी ने कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं किया गया। इसका कोई वैधानिक समर्थन नहीं है। कोई भी क़ानून पुलिस आयुक्तों को ऐसा करने की शक्ति नहीं देता। निर्देश हर फेरी वालों, चाय की दुकानों के लिए हैं। कर्मचारियों और मालिकों के नाम देने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता है।
न्यायमूर्ति रॉय ने फिर पूछा कि क्या सरकार की ओर से कोई औपचारिक आदेश जारी किया गया है? डॉ. सिंघवी ने जवाब दिया कि यह एक छलावा वाला आदेश है। न्यायमूर्ति रॉय ने बताया कि कुछ निर्देश स्वैच्छिक प्रकृति के हैं। इस पर डॉ. सिंघवी ने कहा कि आपका आधिपत्य उल्लंघन करने वाले लोगों पर कठोर है और जब लोग बहुत चालाक और छद्मवेशी होते हैं, तो वे और अधिक कठोर होते हैं। पीठ ने पूछा कि क्या निर्देशों में जबरदस्ती का कोई तत्त्व है? डॉ. सिंघवी ने कहा कि इनमें से कुछ निर्देश अनुपालन न करने पर उल्लंघनकर्ताओं पर ज़ुर्माना लगाते हैं। उन्होंने आगे तर्क दिया कि ये निर्देश एक बड़ा मुद्दा उठाते हैं, जो यह है कि पहचान के आधार पर बहिष्कार होगा। हालाँकि जस्टिस भट्टी ने कहा कि इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने संक्षेप में बताया कि इन निर्देशों के तीन आयाम हैं- सुरक्षा, मानक और धर्मनिरपेक्षता। डॉ. सिंघवी ने न्यायालय को बताया कि देश में दशकों से कांवड़ यात्रा का चलन है। न्यायालय को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध आदि सभी धर्मों के लोग कांवड़ियों की मदद कर रहे हैं। शाकाहारी और मांसाहारी भोजन के मुद्दे पर डॉ. सिंघवी ने कहा कि मौज़ूदा क़ानून हैं, जो मांसाहारी भोजन परोसने पर स$ख्त हैं। बहुत सारे शुद्ध शाकाहारी रेस्तरां हैं, जो हिन्दुओं द्वारा चलाये जाते हैं; लेकिन उनके कर्मचारी मुस्लिम हैं। क्या मैं कह सकता हूँ कि मैं वहाँ जाकर खाना नहीं खाऊँगा? क्योंकि खाना किसी तरह उनके (मुस्लिम कर्मचारियों) द्वारा छुआ जाता है। न्यायमूर्ति भट्टी ने एक दिलचस्प कहानी साझा करते हुए कहा कि केरल में एक होटल हिन्दू चलाता है और दूसरा मुस्लिम चलाता है। लेकिन वह अक्सर किसी मुस्लिम के स्वामित्व वाले शाकाहारी होटल में जाते थे; क्योंकि वह अपने होटल में अंतरराष्ट्रीय मानकों की स्वच्छता बनाए रखते थे।
क्या निर्देश स्वैच्छिक हैं?
डॉ. सिंघवी ने बताया कि निर्देशों में ‘स्वेच्छा से’ कहा गया है। उन्होंने तर्क दिया कि इसमें तथ्य छुपाये गये हैं। क्योंकि यदि नामों का ख़ुलासा किया जाता है, तो व्यक्ति को आर्थिक बहिष्कार का सामना करना पड़ेगा। यदि नामों का ख़ुलासा नहीं किया गया, तो व्यक्ति को ज़ुर्माना देना होगा। डॉ. सिंघवी ने स्पष्ट किया कि हालाँकि ये स्वैच्छिक निर्देश हो सकते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि निर्देश सामान्य रूप से सभी ज़िलों में लागू होंगे। डॉ. सिंघवी ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगों ने कथित तौर पर अपनी नौकरियाँ खो दी हैं। उन्होंने कहा कि क़ानून केवल कैलोरी और भोजन की प्रकृति प्रदर्शित करने का प्रावधान करता है। उन्होंने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम-2006 के तहत खाद्य सुरक्षा मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम-2020 का उल्लेख किया और तर्क दिया कि क़ानून मालिकों को अपने भोजनालयों का नाम उनके नाम से रखने का निर्देश नहीं देता है। उन्होंने अदालत को बताया कि क़ानून खाद्य पदार्थों पर केवल दो शर्तें निर्धारित करता है, यानी खाद्य पदार्थों पर केवल कैलोरी और शाकाहारी या मांसाहारी लेबलिंग का उल्लेख किया जाना चाहिए। मुज़फ़्फ़रनगर में, जहाँ इस तरह का पहला निर्देश पुलिस की ओर से आया था; रोक से कोई ख़ास फ़$र्क नहीं पड़ा है। कुछ सड़क विक्रेताओं को छोड़कर लगभग सभी भोजनालयों के आगे विवरण के साथ नयी नेम प्लेट्स लगी हैं। भ्रम के बजाय सावधानी बरतते हुए कम-से-कम कुछ भोजनालय बंद हो गये हैं। इस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने पारदर्शिता और धार्मिक भावनाओं के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष निर्देश का बचाव किया।
50 वर्षीय वसीम अहमद, जिनकी दुकान में 2023 में दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के एक समूह ने अशुद्ध भोजन परोसने के लिए एक हिंदू देवता के नाम का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए तोड़फोड़ की थी। पिछले साल तक वह हरिद्वार के बाईपास रोड पर हलचल भरा गणपति टूरिस्ट ढाबा चलाते थे। उनका सह-मालिक एक हिंदू था, इसलिए ऐसा नाम रखा। वह कहते हैं कि उनके यहाँ सभी कर्मचारी थे। नौ वर्षों तक उन्हें किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। अहमद ने इसके बाद अपना ढाबा दोबारा नहीं खोला है। उनका मानना है कि मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के नवीनतम पुलिस आदेश का कारण वही घटना है। फ़रमान अली ने अपनी शीरमाल की दुकान खुली रखी है। उन्हें उम्मीद है कि कांवड़िये उनके नाम पर ध्यान देंगे। फ़रमान अफ़सोस के साथ बताते हैं कि पिछले साल तक कांवड़िये विशेष रूप से मीठी रोटी की तलाश में उनकी दुकान पर भोजन करते थे, जिसे वह 17 वर्षों से चला रहे हैं। वे चिल्लाते- ऐ भोले! क्या बनायेहो (आपने क्या बनाया है)? हालाँकि बिक्री पहले की तुलना में घटकर 10वें हिस्से पर आ गयी है। पहले मैं कांवड़ यात्रा के दौरान एक दिन में लगभग सौ शीरमाल बेचता था; लेकिन अब यह घटकर केवल 10 रह गया है। पिछले साल तक मैं कांवड़ यात्रा के दौरान शाकाहारी भोजन और नाश्ता बेचने वाला एक भोजनालय भी चलाता था। लेकिन अब लड़ाई में उतरने की हिम्मत कौन करेगा?
हरिद्वार में 25 जुलाई की सुबह कांवड़ यात्रा मार्ग पर मस्जिदों और मज़ारों को बड़ी स$फेद चादरों से ढक दिया गया और शाम तक ज़िला प्रशासन ने उन्हें हटा दिया। पुलिस ने कहा कि जो हुआ वह ग़लती थी। हरिद्वार में यात्रा मार्ग शहर के ज्वालापुर क्षेत्र से होकर गुज़रता है, जहाँ मस्जिदें और मज़ारें स्थित हैं। जबकि प्रशासन ने दावा किया कि उन्होंने चादरें लगाने के लिए कोई आदेश जारी नहीं किया।
हरिद्वार ज़िले के प्रभारी मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि यह उपाय किसी भी आन्दोलन या अशान्ति को रोकने और कांवड़ यात्रा की सुचारू प्रगति सुनिश्चित करने के लिए किया गया था। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह पहली बार है, जब अधिकारियों द्वारा इस तरह का अनोखा उपाय अपनाया गया है।
इस क़दम के बारे में पूछे जाने पर सतपाल महाराज ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया है कि कोई आन्दोलन या उपद्रव न हो। इस बात का ध्यान रखा गया कि हमारी कांवड़ यात्रा सुचारू रूप से चलती रहे। जहाँ कोई निर्माण चल रहा है, वह भी ढका गया है। …हमने यहाँ किया है और देखेंगे कि हमें क्या प्रतिक्रिया मिलती है? हम उसका अध्ययन करेंगे। हालाँकि हरिद्वार के पुलिस अधीक्षक (शहर) स्वतंत्र कुमार ने मीडिया को बताया कि ज़िला प्रशासन या पुलिस की ओर से ऐसा करने का कोई आदेश नहीं था।
सर्वोच्च न्यायालय क्यों पहुँचा कांवड़ यात्रा विवाद ?
सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और मध्य प्रदेश सरकारों के द्वारा जारी निर्देशों के कार्यान्वयन को रोकने के लिए क़दम उठाया है, जिसमें कांवड़ यात्रा के दौरान खाने-पीने और फलों की दुकानों के मालिकों को अपना नाम लिखकर लगाना अनिवार्य किया गया है। इस अंक में ‘तहलका’ की आवरण कथा ‘पहचान के विवाद में भाजपा सरकारें’ में मुदित माथुर का तर्क है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए खाने-पीने की दुकानों पर उनके मालिकों का नाम लिखने का जो निर्देश यह कहकर जारी किया गया था कि कांवड़ियों की धार्मिक भावनाएँ संयोग से भी आहत न हों, इसलिए यह निर्देश जारी किया गया; ग़लत है। यह ध्यान देने योग्य है कि याचिकाकर्ताओं ने भी सर्वोच्च न्यायालय में वही बात कही, जो हमारी आवरण कथा में कही गयी है कि इन निर्देशों के परिणामस्वरूप देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को नकारने के अलावा भेदभावपूर्ण परिणाम होंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश और दिल्ली को समन जारी करके इस पर जवाब माँगा है।
बहुत पहले उत्तराखण्ड के देहरादून और उत्तर प्रदेश के लखनऊ में स्थित इंडियन एक्सप्रेस समूह के एक रिपोर्टर के रूप में मैंने देखा कि पिछले कुछ वर्षों में एक पखवाड़े तक चलने वाली कांवड़ यात्रा के दौरान कई मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग कांवड़ियों की सेवा करते थे और शिव-पूजा में भाग लेने के लिए हिन्दू कांवड़ियों के साथ पैदल यात्रा करते थे। हालाँकि सरकार की ध्रुवीकरण की चाल उसके सहयोगियों- जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के विरोध से उलटी पड़ गयी है। इन दलों ने इस आदेश की आलोचना की है और बसपा अध्यक्ष मायावती ने इसे असंवैधानिक बताया है।
इधर, दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भर जाने की दु:खद घटना, जिसमें यूपीएससी की तैयारी करने वाले तीन अभ्यर्थियों की मौत हो गयी; राजनीतिक विवाद का विषय बन गयी है। इसके लिए जवाबदेह राजनीति और कोचिंग प्रबंधन की कमी पर सवालिया निशान खड़े होते हैं। दिल्ली सरकार इस मामले में केंद्र सरकार पर आरोप लगा रही है और केंद्र सरकार तारीफ़ का जवाब दे रही है। कुछ अनुमानों के अनुसार, भारत में कोचिंग उद्योग 58,000 करोड़ रुपये का है और लगभग 15 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर के साथ साल 2028 तक इसके 1.33 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने का अनुमान है। विडंबना यह है कि यह दु:खद घटना ऐसे समय में हुई, जब शिक्षा मंत्रालय देश भर में कोचिंग सेंटर्स के विनियमन के लिए दिशा-निर्देशों का एक सेट लेकर आया है। इन तीन युवाओं- उत्तर प्रदेश की श्रेया यादव, तेलंगाना की तान्या सोनी और केरल के नेविन डाल्विन की मौत सरकारों को अंतिम चेतावनी होनी चाहिए कि विद्यार्थियों की मौत व्यर्थ नहीं जा सकती और आगे से इस तरह की लापरवाही भी नहीं होनी चाहिए।
विनाशकारी ख़बरों के बीच पेरिस ओलंपिक से कुछ अच्छी ख़बरें आयी हैं, जहाँ मनु भाकर ने सरबजोत सिंह के साथ मिलकर आज़ादी के बाद खेलों के एक ही संस्करण में दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट बनने का इतिहास रचा है। हरियाणा के अंबाला के सिंह ने 10 मीटर एयर पिस्टल मिश्रित टीम में कांस्य पदक जीता। ये दोनों एथलीट हरियाणा से हैं, जो अब तक मुक्केबाज़ों और पहलवानों के लिए अग्रणी जाना जाता है। कहना होगा कि अच्छी शुरुआत और भी अच्छी ख़बरों की शुरुआत करती है।
ओलंपिक हॉकी : भारत क्वार्टर फाइनल में, आयरलैंड को 2-0 से हराया
मनमोहन सिंह
जैसे ही पूल बी में अर्जेंटीना ने न्यूजीलैंड को 2-0 से हराया वैसे ही तीन मैचों में सात अंक लेने वाला भारत क्वार्टर फाइनल में प्रवेश कर गया। इसी पूल में भारत ने आयरलैंड को 2-0 से हरा कर पूरे तीन अंक हासिल कर लिए।
कल आयरलैंड के खिलाफ भारत के खेल में काफी सुधर नज़र आया। पहले दो मैचों में हमारी हॉफ लाइन हमलों और मिड फील्ड में सुस्त दिख रही थी पर कल मनप्रीत, हार्दिक, जर्मनप्रीत सभी ने मिड फील्ड को नियंत्रित किया और फॉरवर्ड लाइन को हमले बनाने में मदद की। हालांकि इस मैच में ऊंचे स्कूप कम लगे पर आयरलैंड की डी में स्टीक पासिंग हुई। कम से पांच मौकों पर हमारे फॉरवर्ड उनकी डी में लंबे पासों को नियंत्रित नहीं कर पाए वरना ये स्कोर लाइन कहीं बड़ी होती। तकनीकी तौर पर भारत अब अंतिम आठ में है। अपने पूल में बेल्जियम के बाद वह दूसरे नंबर पर है। कल बेल्जियम ने भी ऑस्ट्रेलिया को 6-2 के बड़े अंतर से परास्त कर पूरे अंक बटोरे। ऑस्ट्रेलिया तीसरे और अर्जेंटीना चौथे स्थान पर है। न्यूजीलैंड और आयरलैंड का कोई अंक नहीं है।
भारत के लिए दोनों गोल हरमनप्रीत ने किए। पहला पेनल्टी स्ट्रोक पर और दूसरा पेनल्टी कॉर्नर पर।इस मैच में भारत ने पेनल्टी कॉर्नर लेते हुए थोड़ा रणनीति को बदलने का भी प्रयास किया है। यहां पेनल्टी कॉर्नर का जो गोल आया उस समय आयरलैंड का एक ही फ्रंट रनर था।इस तरह तीन मैचों में भारत ने जो छह गोल किए उनमें से चार हरमनप्रीत के हैं। इस तरह वो इस ओलंपिक में सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी बन गए हैं। सभी टीमों को अभी दो दो मैच और खेलने हैं, पर भारत और बेल्जियम आगे निकल चुके हैं।
भारत की चिंता: क्वार्टर फाइनल में आने के बावजूद भारत की दो बड़ी चिंताएं हैं। पहली, भारत फील्ड गोल नहीं कर पा रहा। अभी तक हमारी टीम ने केवल एक फील्ड गोल किया है। दूसरी, गैर ज़रूरी पेनल्टी कॉर्नर देना। कल भी आयरलैंड को दो पेनल्टी कॉर्नर 23 मीटर में जानबूझ कर किए गए फाउल पर मिले। हमारी किस्मत अच्छी थी कि श्रीजेश ने सभी बचा लिए अन्यथा कुछ भी हो सकता था। फील्ड गोल किए बिना बड़ी टीमों के खिलाफ जीत नहीं मिल सकती। अगला मैच बेल्जियम के साथ है। भारत की असली परीक्षा वहां होगी। इसके बाद हमें अपना आखरी मैच ऑस्ट्रेलिया से होगा।
ओलंपिक हॉकी : भारत ने अंक बांटे, अर्जेंटीना से 1-1 की बराबरी
गलतियों में कोई सुधार नहीं
पेरिस ओलंपिक खेलों में भारत ने किसी तरह अंतिम दो मिनट में गोल कर अपना सम्मान ही नहीं बचाया बल्कि पूरे भारत की उम्मीदों को बरकरार रखा। भारत का यह गोल 59 वें मिनट में कप्तान हरमनप्रीत सिंह की स्टिक से आया। दो मैचों और 12 पेनल्टी कॉर्नर मिलने के बाद यह पहला गोल था तो सीधे ड्रैग फ्लिक से हुआ।
भारत के लिए यह मैच जीतना इसलिए भी ज़रूरी था क्योंकि उसे पूल के अंतिम दो मैच पिछले विजेता बेल्जियम और ऑस्ट्रेलिया के साथ खेलने हैं। पूल बी की छह टीमों में से ऊपर की चार टीमें क्वार्टर फ़ाइनल में प्रवेश करेंगी। टीमों की रैंकिंग और प्रदर्शन को देखते हुए बेल्जियम और ऑस्ट्रेलिया का नॉकआउट स्टेज पे जाना लगभग तय लग रहा है। तीसरी टीम भारत और चौथी टीम न्यूजीलैंड, आयरलैंड, या अर्जेंटीना में से एक होगी। अभी तक खेले मैचों में वो भारत नज़र नहीं आया जो पिछले ओलंपिक खेलों में था।
पेनल्टी कॉर्नर पर गोल नहीं : भारत ने पिछले ओलंपिक में लगभग 50 फीसद पेनल्टी कार्नर गोल में बदले थे, लेकिन इस बार बाकी टीमों ने भारत के पेनल्टी कॉर्नर की तकनीक समझ ली है। अगर अर्जेंटीना वाले मैच की बात करें तो उस टीम ने भांप लिया था की भारत कभी वेरिएशन नहीं करता और न ही ऊंचा स्कूप मारता है। हरमनप्रीत और साथी गोलकीपर के दाएं या फिर कभी बाएं हाथ की तरफ पुश करते हैं। हरमनप्रीत के पुश की गति इतनी तेज होती है की गोलकीपर उसक पूर्वानुमान लगाने के बावजूद उसे रोक नहीं पाता। इसलिए उन्हों ने एक की बजाए दो रक्षकों को आगे दौड़ने के काम पर लगाया और उनसे गोलपोस्ट का अपना बायां हिस्सा कवर करने को कहा, बाकी गोलकीपर ने सिर्फ अपना दांया भाग ही कवर करना होता था। क्योंकि भारत कोई वेरिएशन नहीं कर रहा था और न कोई स्कूप तो तो विपक्षी टीम का काम आसान हो गया। अगर आप ध्यान से देखेंगे तो जो गोल अंतिम मिनट में भारत को मिला वह भी अर्जेंटीना के रक्षक के पैर से डिफ्लेक्ट हो कर ऊंची उठी गेंद पर आया। अर्जेंटीना का गोलरक्षक इसकी अपेक्षा नहीं कर रहा था।
दो फ्रंट रनर: जिस तरह टीमें दो रक्षकों को आगे दौड़ा कर पेनल्टी कॉर्नर बचाती हैं उसका लाभ भारत ले सकता है। असल में पेनल्टी कॉर्नर के समय गोलकीपर सहित कुल पांच रक्षक गोल लाइन पर होते हैं। इनमें से गोलकीपर और एक रक्षक तो गोलरेखा पर ही रहते हैं आगे नहीं आते। दो फ्रंट रनर हैं वे डी टॉप तक पहुंच जाते हैं इस तरह डी के भीतर केवल एक डिफेंडर रह जाता है। अगर फ्रंट रनर्स को चकमा दे कर गोलपोस्ट के बीचोबीच हिट, पुश या स्कूप किया जाए तो गोल निकालना आसान हो सकता है।
इसके अलावा भारत की चिंता का विषय यह भी है कि हमारी ओर से फील्ड गोल नहीं आ रहे। सही तो यह है कि जो चार गोल भारत ने इन दो मैचों में किए उनमें एक ही फील्ड गोल है। इनमें एक गोल पेनल्टी स्ट्रोक से, एक पेनल्टी कॉर्नर के रिबाउंड से और एक सीधा पेनल्टी कॉर्नर से आया है।
हमारी किस्मत ने भी कल हमारा का साथ दिया जो अर्जेंटीना अपना पेनल्टी स्ट्रोक गोल में नहीं बदल पाया अन्यथा मैच हाथ से निकल जाता।
आयरलैंड: आज शाम 04:45 पर भारत अपना तीसरा मैच आयरलैंड से खेलने वाला है। आयरलैंड को किसी भी तरह से कम करके नहीं आंका जा सकता। उसने अपने पिछले मैच में ऑस्ट्रेलिया को नाकों चने चवबा दिए। ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम उसे बड़ी मुश्किल से हरा पाई। स्कोर रहा 2-1। ऐसा नहीं की भारत में उसे आसानी से हराने की ताकत नहीं पर समय अनुसार अपने खेल को बदलने की ज़रूरत है। आयरलैंड का खेल देखने के बाद पता लगता है की वे लोग मजबूत रक्षण के साथ जवाबी हमलों में विश्वास रखते हैं। वे मैदान के बीच से किसी हमले को रोकने के लिए भीड़ सी लगा देते हैं। उस भीड़ को काटने का तरीका है कि भारत अपने दाएं और बाएं दोनों छोर का भरपूर इस्तेमाल करे और उनकी ‘डी’ के टॉप पर फॉरवर्ड अपने लिए थोड़ी जगह बना लें क्योंकि दोनों छोर से हुए हमलों के बाद आमतौर पर माइनस की गई गेंद उसी क्षेत्र में आती है। उनके खिलाफ पेनल्टी कॉर्नर भी अधिक मिलेंगे क्योंकि भीड़ भरी रक्षपंक्ति में इसकी संभावना अधिक रहती है।
मध्य पंक्ति: भारत की हाफ लाइन को हमलों में अधिक परिपक्वता दिखानी होगी। उनकी स्टीक पासिंग के बिना हमले नहीं बन सकते। हमलों और रक्षण दोनों में उसकी बड़ी भूमिका है।
अगर भारत अपनी पूरी रणनीति से हॉकी खेल गया तो आयरलैंड को आसानी से हरा सकता है। अभी तक हमारे फॉरवर्ड पेनल्टी कॉर्नर लेने के हिसाब से डी में प्रवेश करते हैं लेकिन उन्हें फील्ड गोल की तरफ जाना होगा। भारत का बड़ा हथियार उसकी हवा में की गई पासिंग है। उसका भरपूर इस्तेमाल करना होगा।
महिला एशिया कप : लचर गेंदबाजी भारत को ले डूबी
आखिर श्रीलंका ने पहली बार महिला एशिया कप अपने नाम करने में सफलता हासिल की। जिस तरह का फाइनल उसने भारत के खिलाफ खेला उसकी तारीफ की जानी चाहिए। उनकी कप्तान चमेरी अट्टापट्टू ने भारतीय गेंदबाजी को पूरी तरह से पंगु साबित कर दिया। भारत की किसी गेंदबाज को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कोई योजना नहीं थी। गेंदबाजी के अलावा फील्डिंग भी निहायत खराब थी। आसान रन दिए गए, रनआउट के मौके छोड़े गए। श्रीलंका की बल्लेबाज शॉर्ट प्वाइंट, शॉर्ट कवर या शॉर्ट मिड ऑन से भी रन चुराती रहीं।
मैच में भारत की शुरुआत अच्छी थी। उस पिच पर जहां कोई समस्या नहीं थी भारत ने 165 का स्कोर खड़ा कर दिया था। हालांकि हालात के मुताबिक इस में 20-30 रन और जुड़ने चाहिए थे पर श्रीलंका के गेंदबाजों की अनुशासित गेंदबाजी और फील्डिंग के कारण ऐसा न हो सका। समृति मांधना के अलावा भारत की कोई बल्लेबाज अधिक प्रभावित नहीं कर पाई। देखा जाए तो इस पिच पर विकेट टू विकेट गेंदबाजी करने की ज़रूरत थी। शेफाली वर्मा ऐसी ही गेंदबाजी की शिकार हुई। 20-20 क्रिकेट में यही गेंदबाजी सफल रही है। इस तरह की गेदों पर क्रॉस बेटेड शॉट हमेशां जोखिम भरे होते हैं। इन गेंदों को मारने के लिए सीधे बल्ले का इस्तेमाल करना पड़ता है। वक्त के साथ उन लोगों की यह गलतफहमी दूर हो जाएगी जो ये समझते हैं कि इस फॉर्मेट में क्रिकटिंग शॉट्स की ज़रूरत नहीं बस बल्ला घुमाते रहो।
हालांकि भारत का स्कोर थोड़ा कम था पर आराम से डिफेंड किया जा सकता था अगर गेंदबाजी अनुशासित की होती। चमेरी अट्टापट्टू को उसकी ऑफ स्टंप के बाहर छोटी लंबाई की गेंदें खिलाई जाती रही। कप्तान हरमनप्रीत ने कभी भी स्लिप में फिल्डर नहीं रखा जबकि चमेरी को चार पांच चौके उसी क्षेत्र से मिले। गेंद हवा में गई पर वहां कभी फिल्डर था ही नहीं। इसके अलावा उसके खिलाफ भारत की कोई योजना भी नहीं थी। पूजा के पास बाउंसर का हथियार है पर उसका इस्तेमाल नहीं हुआ। रेणुका सिंह, जो की बहुत अच्छी इन स्विंग गेंद डालती है ने या तो बहुत छोटी या ओवर पिचड गेंदबाजी की। बाएं हाथ की चमेरी के खिलाफ रेणुका सबसे प्रभावी गेंदबाज हो सकती थी पर बिना स्लिप उसकी इन स्विंग जो कि चमेरी के लिए आउट सविंग पड़ रही थी किसी काम नहीं आई। चमेरी की पूरी पारी में केवल एक ही गेंद ऐसी पड़ी जिसकी लाइन और लेंथ बिलकुल सही थी और उसी पर वह बोल्ड हो गई। उसे पता ही नहीं चला की गेंद कब उसकी विकेट्स को ले उड़ी।
अब विश्व कप सामने है। उसे देखते हुए टीम की कमज़ोरियों को दूर करना ज़रूरी है। खास तौर से गेंदबाजी और फील्डिंग में सुधार की काफी गुंजाइश है। भारत की एक युवा प्रतिभाशाली टीम है इससे भविष्य में उम्मीदें करनी चाहिए।
दिल्ली शराब नीति मामला : मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई 5 अगस्त को
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आबकारी नीति और भ्रष्टाचार के मामले में आप नेता और दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच अगस्त तक कार्रवाई स्थगित कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने आबकारी नीति मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत याचिका खारिज करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली आप नेता मनीष सिसोदिया की याचिका पर सुनवाई पांच अगस्त तक स्थगित कर दी।
कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को एक अगस्त तक जवाब दाखिल करने का समय दिया। इस बीच, सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसने जवाब दाखिल कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के जवाब को रिकॉर्ड पर लाने का निर्देश दिया। कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित वाद सूची के अनुसार, जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ 29 जुलाई को इस मामले में सुनवाई की। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर सीबीआई और ईडी को सिसोदिया की जमानत याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा था।
सिसोदिया के वकील ने तर्क दिया कि वरिष्ठ आप नेता 16 महीने से जेल में हैं और केस आगे नहीं बढ़ रहा है। अक्टूबर 2023 से जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 30 अक्टूबर को अपने फैसले में सिसोदिया को जमानत देने से इन्कार कर दिया था।
पेरिस ओलंपिक 2024 में मनु भाकर ने रचा इतिहास, शूटिंग में भारत को ब्रांज मेडल
नई दिल्ली : पेरिस ओलंपिक 2024 में भारत का खाता खुल चुका है। शूटिंग में मनु भाकर ने भारत को पहला पदक दिला दिया है। दूसरे दिन विमेंस 10 मीटर एयर पिस्टल शूटिंग के फाइनल में मनु ने तीसरा स्थान हासिल किया। मनु भाकर पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं, जिन्होंने ओलंपिक शूटिंग में भारत के लिए ब्रांज मेडल जीता।
फाइनल में मनु भाकर ने कुल 221.7 अंक हासिल किए। मनु भाकर ने महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा के फाइनल के लिए क्वालीफाई किया था। 580 अंकों के साथ वह तीसरे स्थान पर रहीं। भाकर ने पहली सीरीज में 97, दूसरी में 97, तीसरी में 98, चौथी में 96, 5वीं में 96 और छठी में 96 अंक हासिल किए थे। फाइनल में मनु भाकर का सामना वियतनाम, तुर्किए, कोरिया, चीन, और हंगरी के खिलाड़ियों से हुआ।
मनु भाकर के मेडल जीतने पर भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह ने शुभकामनाएं दी हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए लिखा, मनु भाकर को 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में कांस्य पदक जीतकर पेरिस ओलंपिक में देश के लिए पहला पदक हासिल करने पर बहुत बधाई। वह शूटिंग में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। मनु भाकर पर सारा देश गर्व कर रहा है। उनकी इस उपलब्धि से कई खिलाड़ियों, खासकर महिला खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलेगी। भविष्य में उनके और भी ऊंचाइयां छूने की कामना करती हूं।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए मनु भाकर को बधाई दी, यह एक ऐतिहासिक मेडल है। मनु भाकर को पेरिस ओलंपिक में भारत का पहला मेडल जीतने पर बधाई। उन्होंने कांस्य पदक जीता। वह भारत के लिए शूटिंग में मेडल जीतने वाली पहली महिला हैं, इससे यह सफलता और खास बन जाती है। यह एक अविश्वसनीय उपलब्धि है।
भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने एक्स पर पोस्ट किया, पेरिस ओलंपिक 2024 में कांस्य पदक जीतकर भारत को पहला पदक दिलाने के लिए मनु भाकर को हार्दिक बधाई। आपके शानदार प्रदर्शन ने पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ा दी है। आपकी इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है।
कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, भारत ने पेरिस ओलंपिक में शानदार शुरुआत की है! मनु भाकर ने महिलाओं की 10 मीटर पिस्टल स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर भारत को पहला पदक दिलाया है।
मनु की यह उपलब्धि उनके असाधारण कौशल और दृढ़ संकल्प का प्रमाण है। हम उन पर बेहद गर्व महसूस करते हैं! यह ऐतिहासिक क्षण अनगिनत युवा खिलाड़ियों को उत्कृष्टता की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, पेरिस ओलंपिक-2024 में आयोजित 10 मीटर एयर पिस्टल प्रतिस्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर मां भारती को गौरवभूषित करने वाली प्रख्यात निशानेबाज मनु भाकर जी को हार्दिक बधाई। उनकी यह जीत असंख्य युवाओं के लिए प्रेरणा है। विजय का यह क्रम अनवरत जारी रहे, स्वर्णिम भविष्य की अनंत शुभकामनाएं। जय हिंद!
मनु भाकर हरियाणा से आती हैं। नायब सिंह सैनी ने हरियाणा की बेटी मनु भाकर को ओलंपिक पदक जीतने पर बधाई दी। उन्होंने एक्स पर लिखा, आखिरकार वो सपना सच हुआ, जिसकी उम्मीद पूरे देश को, हरियाणा की धाकड़ बेटी मनु भाकर से थी। महिला शूटर मनु भाकर ने पेरिस में अपना दम दिखा दिया है। मनु भाकर ने पेरिस ओलंपिक में 10 मीटर महिला एयर पिस्टल इवेंट में देश के लिए कांस्य पदक जीता।
उन्होंने कहा कि, 22 साल की मनु भाकर ने आज वो कर दिखाया है, जिस पर पूरे देश और हरियाणा प्रदेश को गर्व है। हर हरियाणवी का सीना आज गर्व से चौड़ा हो गया है। हरियाणा की दमदार और साहसी बेटी को बहुत-बहुत बधाई।
ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने पर मनु भाकर को भाजपा के राष्ट्रीय सचिव ओमप्रकाश धनखड़ ने भी शुभकामनाएं दी। धनखड़ ने कहा किृ, मनु ने देश का नाम रोशन किया और पेरिस ओलंपिक में भारत के लिए ओलंपिक की शुरुआत की है। अब मेडल की लंबी लाइन लगेगी क्योंकि देश के अन्य खिलाड़ियों से भी बड़ी उम्मीदे हैं।