Home Blog Page 80

आतंकवाद के शिकार

भारत को आज़ाद हुए 77 साल हो चुके हैं। लेकिन कई तरह की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय समस्याओं से देश आज भी जूझ रहा है। इनमें से सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद की है। आतंकवाद के चलते भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ जैसे महत्त्वपूर्ण इलाक़े में दहशत बनी रहती है। हाल की आतंकी घटनाओं ने एक बार फिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर भारत की इस घाटी को दहला दिया है। केंद्र में एनडीए की तीसरी बार सरकार बनने के बाद से 78 दिनों में ही 11 आतंकी हमले तो सिर्फ़ जम्मू में हुए। इसके बाद कई और आतंकी हमले हुए हैं।

भले ही पाकिस्तान की सीमा पर जम्मू-कश्मीर में तैनात भारतीय सैनिक आतंकवादियों का सफ़ाया कर रहे हैं; लेकिन कई भारतीय सैनिक इन आतंकी हमलों में शहीद हो चुके हैं और कई नागरिक निशाना बन चुके हैं। इसके बाद भी केंद्र सरकार इन हमलों पर चिन्तित होने से ज़्यादा अपने 10 साल के शासन-काल की आंतकी घटनाओं की तुलना यूपीए सरकार के 10 साल के शासन-काल की आतंकी घटनाओं से कर रही है। राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बड़ी बेशर्मी से कहा कि उनकी सरकार के 10 साल के कार्यकाल में यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल की अपेक्षा 68 प्रतिशत कम आतंकी हमले हुए हैं। इससे यह ज़ाहिर होता है कि मौज़ूदा केंद्र सरकार अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को कोसने से बाज़ नहीं आने वाली। राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद ने कितने गर्व से कहा कि मोदी सरकार आने के बाद साल 2014 से 21 जुलाई, 2024 के बीच जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाएँ घटकर 2,259 रह गयीं। यूपीए सरकार के मुक़ाबले मोदी सरकार में आतंकी घटनाओं में 68 प्रतिशत कमी आयी है। उन्हें सोचना चाहिए कि कई बार आतंकवाद को ख़त्म करने का दावा और वादा करने वाली भाजपा तीसरी बार केंद्र में आने पर भी आतंकवाद ख़त्म नहीं कर सकी। फिर किस मुँह से अपनी प्रशंसा कर रही है? क्या नोटबंदी के दौरान, सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान, अनुच्छेद-370 हटाने का दावा करने के दौरान और चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे बड़े भाजपा नेताओं ने आंतकवाद को जड़ से ख़त्म करने के दावे नहीं किये थे? क्या उनके दावों और वादों के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले रुके?

अगर प्रधानमंत्री मोदी के अब तक के कार्यकाल के दौरान की बालाकोट और पुलवामा जैसी बड़ी आतंकी घटनाओं को ही देखें, तो इनकी संख्या लगभग तीन दज़र्न है। ख़ुद गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय भी यह मान चुके हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के 10 साल के शासन-काल में 21 जुलाई, 2024 तक 2,259 आतंकी हमले हुए। फिर यह बेशर्मी कैसी कि हमारी सरकार में आतंकी घटनाएँ कम हुई हैं?

देश की जनता एक तरफ़ पाकिस्तान नियोजित आतंकवाद से पीड़ित है, तो दूसरी तरफ़ आंतरिक आतंक से परेशान है। पाकिस्तानी आतंकवाद कुछ देशद्रोहियों की देन है, तो आंतरिक आतंक भी भ्रष्टाचारियों और अपराधियों की देन है। बाहरी आतंकवाद से निपटने के लिए अपनी जान हथेली पर रखकर देश-सेवा में लगे भारतीय जवान अपने घरों से दूर रहकर रात-दिन देश और देशवासियों की सुरक्षा में तैनात रहते हैं। लेकिन आंतरिक आतंक से जनता को बचाने के लिए ले-देकर पुलिस ही है, जिसके हाथ ज़्यादातर मौ$कों पर बँधे रहते हैं। ज़्यादातर मामलों में पुलिस अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के बारे में सब कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं कर पाती। यही वजह है कि पुलिस में भी भ्रष्टाचारियों की संख्या काफ़ी है। राजनीतिक और पूँजीवाद के दबाव में काम करने को मजबूर पुलिस के कई जवान ऊपर के भ्रष्टाचार को सींचने के लिए इतने मजबूर किये जाते हैं कि अगर वे उन ग़ैर-क़ानूनी आदेशों को न मानें, तो उनकी नौकरी नहीं बचेगी। यह भी हो सकता है कि ईमानदारी का नतीजा उन्हें सज़ा के रूप में भुगतना पड़े। आज़ाद भारत में कई ईमानदार पुलिकर्मियों का अंजाम काफ़ी बुरा देखा भी गया है। फिर भी लाखों पुलिसकर्मी आज भी अपने ज़मीर का सौदा नहीं करते हैं और ज़िन्दगी भर ईमानदारी से जन-सेवा करते हैं। यह अलग बात है कि इसके बदले उन्हें बार-बार तंग किया जाता है। उनकी उन्नति रोक दी जाती है। कई बार उन्हें ईमानदारी के इनाम में अवनति मिलती है।

लेकिन जनता क्या करे? उसे कभी कोई भ्रष्टाचारी अपने लालच का शिकार बनाता है, तो कभी कोई अपराधी अपने ग़ुस्से का शिकार बना डालता है। कभी राजनीतिक बहकावे में आकर मूर्खों की भीड़ किसी को पीट देती है; किसी की हत्या कर देती है; तो कभी क़ानून के रखवाले ही उसे अपना शिकार बना लेते हैं। सबसे ज़्यादा शिकार निर्धन और मध्यम वर्ग का होता है। इन वर्गों में भी महिलाएँ सबसे आसान शिकार हैं। यह आंतरिक आतंकवाद हर दिन देश में लाखों लोगों की ज़िन्दगी बर्बाद कर रहा है। दज़र्नों समस्याएँ इस आंतरिक आतंकवाद की देन हैं। इस आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले इतने मज़बूत हैं कि चाहकर भी उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सरकार इन दोनों तरह के आतंकवाद से आख़िर कब निपटेगी?

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने बांग्लादेश में शांति की बहाली और हिंसा समाप्त करने की अपील की

नई दिल्ली : जमाअत -ए-इस्लामी हिंद के अमीर (अध्यक्ष) सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए इस आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से देश में शांति और स्थिरता बहाल करने एवं तत्काल और निर्णायक कार्रवाई की अपील की है।
मीडिया को जारी एक बयान में सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा, “जमाअत-ए-इस्लामी हिंद बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति और क्षेत्र पर इसके दूरगामी परिणामों पर गहरी चिंता व्यक्त करती है। बांग्लादेश में वर्तमान अशांति शेख हसीना सरकार की तानाशाही और शासन के प्रति कठोर दृष्टिकोण का प्रत्यक्ष परिणाम है। जनवरी 2024 में बांग्लादेश का चुनाव अनुचित प्रथाओं के व्यापक आरोपों से प्रभावित था, जिसके कारण संपूर्ण विपक्ष ने चुनावी प्रक्रिया का बहिष्कार किया था। इससे लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर हुई और राजनीतिक व्यवस्था में जनता का विश्वास खत्म हुआ। इसके अतिरिक्त, प्रतिशोध की राजनीति द्वारा असहमति की आवाजों को दबाने के लिए पिछली सरकार के प्रयास बेहद परेशान करने वाले थे। प्रमुख विपक्षी नेताओं को अन्यायपूर्ण तरीके से जेल में डाला गया जिससे लोकतांत्रिक संवाद बाधित हुआ और राजनीतिक तनाव बढ़ा।
जमाअत के अमीर ने आगे कहा, “प्रदर्शनकारी छात्रों के प्रति शेख हसीना सरकार की प्रतिक्रिया युद्ध जैसी स्थिति में इस्तेमाल किए जाने वाले उपायों के समान अत्यधिक हिंसक और दमनकारी थी। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद बांग्लादेश के शीर्षस्थ अधिकारियों से आग्रह करती है कि वे देश में शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए तत्काल और निर्णायक कार्रवाई करें तथा तत्काल एक अंतरिम सरकार का गठन करें, जिस पर लोगों का विश्वास हो। इस अवधि के दौरान सभी पीड़ित लोगों को न्याय मिलना चाहिए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित किया जाना चाहिए। अंतरिम सरकार को बिना किसी देरी के लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सकें, तथा एक सच्ची प्रतिनिधिक और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की स्थापना हो जो बांग्लादेशी लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करे। मीडिया में आई खबरों से पता चलता है कि उपद्रवी तत्व इस अशांति का फायदा उठाकर संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं तथा निर्दोष नागरिकों, विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं। हम इन हिंसक कृत्यों की स्पष्ट रूप से निंदा करते हैं तथा अल्पसंख्यकों एवं अन्य कमजोर समूहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल उपाय किए जाने की मांग करते हैं। यह जानकर प्रसन्नता होती है कि बड़ी संख्या में नागरिक और नागरिक समाज के सदस्य अल्पसंख्यक समुदायों के धार्मिक स्थलों और संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आगे आ रहे हैं।“
उन्होंने कहा “यह सुनिश्चित करने के लिए भी उपाय किए जाने चाहिए कि बांग्लादेश की आंतरिक स्थिति क्षेत्र और पड़ोसी देशों के लिए सुरक्षा खतरे का रूप न ले ले। हम प्रदर्शनकारियों और आम जनता से भी अपील करते हैं कि वे देश में शांति और व्यवस्था बहाली को प्राथमिकता दें। सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए अल्पसंख्यकों और कमजोर समूहों के जीवन और संपत्तियों की सुरक्षा करना अनिवार्य है। जमाअत -ए-इस्लामी हिंद इस चुनौतीपूर्ण समय में बांग्लादेश के लोगों के साथ एकजुटता से खड़ी है और संकट के शीघ्र समाधान की आशा करती है, ताकि सभी के लिए शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो।”

हिन्दुओं के कथित रक्षक

शिवेन्द्र राणा

पिछले दिनों अम्बानी परिवार में शादी थी। हालाँकि यह उनके परिवार का निजी मामला था; लेकिन मीडिया ने उसे राष्ट्रीय उत्सव बना दिया। ख़ैर! इसी बीच एक आश्चर्यजनक ख़बर दिखी कि एक तथाकथित महंत ने वधु राधिका मर्चेंट के घाघरे पर भगवान श्रीकृष्ण का छपा चित्र सोशल मीडिया पर पोस्ट करके हिन्दू समाज को आक्रोशित करने का प्रयास करके अंबानी परिवार के विरोध का आह्वान किया।

प्रथम दृष्टया यह किसी ओछी मानसिकता के व्यक्ति की टिप्पणी लगती है, जिसके जीवन में कोई सार्थक कार्य न बचा हो। लेकिन यह इकलौता ऐसा मामला नहीं है, जहाँ सनातन धर्म के संत समाज, इन्हें आप तथाकथित भी कह सकते हैं; की हरकतें नागवार गुज़री हैं। अजीब है कि यहाँ देश मे धर्म, संस्कृति के अधोपतन के बहुतेरे कारण हैं, जिन पर परेशान होना चाहिए था। लेकिन उसके बजाय ऐसे संत हैं, जो महिला के घाघरे पर छपी तस्वीर में धर्म की अवनति देख रहे हैं। हालाँकि ग़लत यह भी है कि कोई पैसे के नशे में सर्वपूज्य हमारे देव का अपमान करे। लेकिन कमाल है कि ऐसे मुद्दों से लाभ लेने वाले तथाकथित संत और उनके भक्त देश में बढ़ रहे धर्मांतरण, अपने ही धर्म में बढ़ रहे पाखण्ड, भेदभाव, उसके आधार पर होने वाले अत्याचार, मॉब लिंचिंग और तथाकथित धर्म-गुरुओं की बुराइयों पर कुछ नहीं बोलते हैं।

एक तरफ़ सनातन धर्म, संस्कृति पर सामी पंथों के सुनियोजित षड्यंत्रकारी हमलों से त्रस्त सनातन समाज अपने इस संत-समूह से त्राण की उम्मीद रखता है और दूसरी तरफ़ उसे देश के कथित संतों के गिरते आचरण, उनके अज्ञान, सस्ते वाद-विवाद से ख़ुश होने और फंतासियों के चक्कर में पड़ने से ही फ़ुर्सत नहीं मिल रही है। अब तो कुछ नेता भी धर्म की रक्षा का नाटक करने लगे हैं। कभी-कभी लगता है कि बाज़ारीकरण ने सनातन धर्म के संत समाज को पूरी तरह अपनी गिरफ़्त में ले लिया है। इन्हें भी नेताओं की तरह ऐश-मौज़ से रहने और सेक्युलर दिखने का नशा चढ़ा है। सारे समाज को धर्म में आस्था की सीख देने वाले एक संत पिछले दिनों सड़कछाप ड्रामेबाज़ी करते हुए मुहर्रम के जुलूस में पीठ पर कोड़े लगाते दिखे।

संभव है कि सामी पंथीय षड्यंत्र से सनातन समाज की एकता खंडित हुई हो; लेकिन उसे एकजुट रखने से आपको किसने रोका है? हो सकता है कि सामी पंथीय मौलानाओं और पादरियों में चारित्रिक दोष हो, और है भी; जैसा कि विभिन्न मीडिया सूत्रों से ख़बर मिलती है। लेकिन आपको चरित्रवान बनने से किसने रोका है? हर बार प्रतिपक्षी या विरोधियों की कमियाँ गिनाकर ख़ुद की महानता नहीं साबित की जा सकती। सनातन धर्म का पथ-भ्रष्ट कु-संत समाज आध्यात्मिक-सामाजिक चेतना के प्रसार से इतर राजनीति एवं भौतिकता में धँसा है।

ग़रीब, अभावों से जूझते, अपने लिए सांत्वना तलाशते हिन्दुओं के चंदे पर प्राइवेट जेट और लग्जरी गाड़ियाँ लेकर क़ाफ़िले बनाकर घूमते ये सांसारिक मोह में फँसे निर्लज्ज कथित हिन्दू रक्षक कु-संत भौतिकतापूर्ण जीवन जी रहे हैं। बड़े-बड़े फार्महाउस बनाकर धंधा कर रहे हैं। आज देश की एक बड़ी आबादी को विभिन्न प्रलोभनों के द्वारा ईसाई मिशनरियों ने धर्मान्तरित कर डाला है; लेकिन दुनिया भर में अमीरी से जी रहे कथित संत और धार्मिक संस्थाएँ दिखावे और राजनीतिक टकराव मे उलझी हैं। सनातन धर्म अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है और इन्हें राजनीति मे ही सने रहना है।

हाथरस का बाबा कोई अपवाद नहीं है। सत्ता के दुर्योग से पैदा ऐसे कई कालनेमी यानी संत के भेष में दानव हैं, जो धर्म की आस्था के दोहन से अपना इहलोक सुधारने में लगे रहते हैं। ऐसे बाबाओं को सत्ता संरक्षण मिलना बंद नहीं होगा, और न ही ऐसे सामूहिक भगदड़ में मौतें बंद होंगी; जब तक लोग इन कालनेमियों के चक्कर से बाहर नहीं निकलेंगे। वैसे भी ख़ामोशी से बिना आडम्बर के धर्म, समाज, संस्कृति की नि:स्वार्थ सेवा और रक्षा करने वाले कुछ संतों को छोड़ दें, तो ज़रा याद करिए कि अधिकांश तथाकथित संत-समाज ने राष्ट्रीय निर्माण में कौन-सा उल्लेखनीय योगदान किया है?

वैसे इन्हें बहुत बुरा लगता है, जब कुछ अति पिछड़े और दलित तबक़े के लोग या किसी भी समाज के जागरूक लोग ब्राह्मणवादी व्यवस्था के नाम पर सनातन धर्म की कु-मान्यताओं को कोसते हैं। परन्तु ये संतत्व के गुणों से हीन अधकचरे ज्ञानी धन कमाने, अपने महिमामण्डन और धार्मिक विरुदावलियाँ गाने से ही ख़ुश रहते हैं। इन्हें इसकी फ़ुर्सत नहीं कि उन लोगों के बीच जाकर उन सैकड़ों वर्षों के भेदभाव, कुरीतियों, पाखण्डवाद, सामाजिक असमानता एवं जातिगत हीनता, शोषण पर बात करें। उनकी सुनें और अपनी सही राय बताएँ। दलितों, पिछड़ों को भी मुख्यधारा में जोड़ें और समाज को समरस बनाएँ। लेकिन नहीं; इसके बजाय देश में चुनावी राजनीति, कौन-सा मठ किसे मिले? कौन-सी गद्दी किसके पास हो? सिनेमा के प्रीमियर में जाने; न्यूज चैनल पर राजनीतिक विश्लेषक बनने; विभिन्न मंत्रियों, नेताओं, पार्टी प्रमुखों के साथ मिलने-जुलने और फोटो खिंचवाने; व्यास पीठ पर ड्रामेबाज़ी के अंदाज़ में कथा सुनाने; उस कथा में नये-नये मनगढ़त तथ्य जोड़ने; अंधविश्वास के उपाय बताने जैसे कामों से इन्हें फ़ुर्सत ही कहा हैं? यदि ये तथाकथित संत अपने इन प्रदर्शनकारी कृत्यों के बजाय 10 फ़ीसदी भी संतत्व धर्म का निर्वहन कर रहे होते, तो सनातन समाज का बड़ा कल्याण हो जाता।

अब जन-कल्याण के बजाय स्व-भौतिक कल्याण इस कथित संत समाज के लिए प्रमुख बन चुका है। पिछले कई दशकों से अखाड़ों के बीच मठ-मंदिरों पर क़ब्ज़े और शिष्य परंपरा सिद्ध करने हेतु चलने वाले हिंसक एवं अदालती संघर्षों से संत-परंपरा कलंकित हुई है। रही-सही कसर उन पंडे-पुजारियों ने पूरी कर दी है, जो धर्म की आड़ में मंदिरों में बैठकर न सिर्फ़ धंधा कर रहे हैं, बल्कि मंदिरों में ही बलात्कार और हत्या करने तक से नहीं चूकते हैं। कहीं देवदासी प्रथा के नाम पर बलात्कार हो रहे हैं, तो कहीं महिलाओं की मंडली के बीच रसिया बनकर घिनौने कुकृत्य करने वाले पाखण्डियों ने धर्म को अधोपतन की ओर ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कुछ वर्ष पूर्व प्रयागराज की बाघंबरी गद्दी पर वर्चस्व स्थापना के संघर्ष में षड्यंत्र, आत्महत्या हत्या और गिरफ़्तारियों का जो दौर चला, वो सर्वविदित है। और ऐसे मामले देश भर की अदालतों में चल रहे हैं, जिसमें कहीं मठ-मंदिर की प्रॉपर्टी का विवाद है, तो कही पद का। कई तथाकथित पंडे, पुजारी और कु-संत तो अपनी जवानी और चेहरे की चमक बरक़रार रखने के लिए न सिर्फ़ मांस-मदिरा का उपयोग छुपकर करते हैं, बल्कि बच्चियों पर भी गंदी नज़र रखते हैं। और रोना रोते हैं कि हिन्दू उनका सम्मान नहीं करते। व्यास पीठ की वर्तमान परंपरा पर ग़ौर करिए। धार्मिकता से इतर मेकअप से लदे ये स्त्रैण हावभाव प्रदर्शित करते कथावाचक हिन्दुओं की कोमल भावनाओं का दोहन करने का नया चलन बना चुके हैं। ग़रीब और आम लोगों से मिलने में सेलिब्रिटी जैसा व्यवहार करने वाले इन्हीं तथाकथित संत समाज के अग्रणियों को धन्नासेठों की चाटुकारिता करने में बड़ा गर्व का अनुभव होता है।

एक वो दौर भी रहा है, जब ब्रिटिश सत्ता भारत को लूटकर जनता का दमन करके उसका धर्मांतरण कर रही थी। तब रजवाड़ों की मौन कायरता को पीछे धकेल अनेक संन्यासियों ने धर्म-दण्ड को छोड़कर हथियार उठाये और आततायी सत्ता का मुक़ाबला किया (संन्यासी विद्रोह : 1770-1800)। और एक आज का तथाकथित संत समाज है, जो घुँघरू बाँधकर श्रोताओं के समक्ष नृत्य करने में ही आह्लादित है। ये नैतिक रूप से पतनशील कथित संत क्या सनातन धर्म की युवा पीढ़ी को वीर भोग्य वसुंधरा की शिक्षा देंगे? अब हो सकता है कि आपके पास तर्क हो कि ये बुराइयाँ तो सभी धर्मों और पंथों के वाहक वर्ग (धार्मिक गुरुओं) में आम हो चुकी हैं। तो समझना होगा कि दूसरों की कमियाँ गिनाकर अपना आचरण और चरित्र शुद्ध नहीं किया जा सकता। यदि स्वर्ग आपको चाहिए, तो इसके लिए पवित्र भी आपको ही होना होगा। उनके कुसंस्कारों की परिणति उनको भुगतनी है। आपकी ज़िम्मेदारी अपने धर्म, संस्कृति की है, जिनकी पवित्रता, मज़बूती, संस्कारों से हिन्दू समाज की सुरक्षा होगी। लेकिन प्रश्न और भी हैं। क्या सिर्फ़ संत समाज अकेला इस दुर्योग का दोषी है? संभवत: नहीं। इसके लिए सरकार भी उतनी ही जवाबदेह है। केवल भारत के मंदिर, मठ, उनकी परंपराएँ एवं वेद-वेदांग का ज्ञानी विद्वत् समाज सुरक्षित रहे, तो हिन्दू धर्म की सुरक्षा हो जाएगी। लेकिन आज भी मंदिरों का धन ख़ुद भी पचाया जा रहा है और मदिरों को टैक्स के दायरे में लाकर उनकी स्थिति व्यवसायिक संस्थान जैसी कर दी गयी है। वहीं चर्च, मस्जिदें और दरगाह इससे मुक्त हैं। सरकार किसी अन्य धर्मावलंबियों के उपासना स्थलों से टैक्स के रूप में धन वसूली क्यों नहीं करती? यह पंथनिरपेक्षता नहीं, बल्कि हिन्दुओं के धार्मिक अधिकारों का हनन है।

पिछले दिनों ज्योतिर्मय मठ के शंकराचार्य स्वामी अवमुक्तेश्वरानंद द्वारा सरकार पर केदारनाथ धाम, काशी विश्वनाथ मंदिर समेत अन्य कई मंदिरों का सोना उठवाने तथा उसे अन्य धातु से बदलने का आरोप लगाया है। क़ायदे से इस आरोप की जाँच होनी चाहिए थी; क्योंकि यह अत्यंत गंभीर आरोप है। यदि स्वामी अवमुक्तेश्वरानंद के आरोप मिथ्या है, तो ऐसे अनर्गल आरोपों के लिए उनकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। लेकिन यदि उनके आरोपों में रत्ती भर भी सच्चाई है, तो सरकार के इस कृत्य को सनातन समाज और भारतीय लोकतंत्र द्वारा बिलकुल सहन नहीं किया जाना चाहिए।

भारत में सनातन धर्म का पतन हो रहा है। हर बार हम सामी पंथीय षड्यंत्रों पर इसका दोषारोपण करके अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं बच सकते। पूरा सनातन समाज नैतिक पतनशीलता से पीड़ित नज़र आ रहा है, जहाँ वह राष्ट्रधर्म के प्रति आग्रह और संस्कृति, संस्कारों के प्रति चिन्तन-शून्य होता जा रहा है। इसकी एक मुख्य वजह धर्म ध्वजवाहक कथित संत समाज का स्वयं कर्तव्यच्युत होना है। इसे ही अधोपतन कहते हैं। सॉल बेलो लिखते हैं- ‘किसी व्यक्ति को अपने बारे में सबसे बुरा सुनने और सहने में सक्षम होना चाहिए।’ यह भावना आत्मशुद्धि का एक बेहतरीन मार्ग प्रशस्त करेगी। उम्मीद है सनातन धर्म के ध्वज वाहक, और विशेष रूप से कथित संत एक बार स्वमूल्यांकन करने का प्रयास करेंगे; ताकि उनके बीच पसरे नैराश्य, कुंठा, भौतिकतावाद जैसे विभिन्न दुराग्रहों से संत परंपरा की शुद्धि हो सके।

भाजपा में विरोध के स्वर क्यों होने लगे मुखर ?

इस बार जैसे ही लोकसभा चुनाव में भाजपा अल्पमत में आयी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का न सिर्फ़ जलवा कम हो गया, बल्कि भाजपा में ही उनका विरोध शुरू हो गया है। पिछले 10 वर्षों में या यह कहें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्र सरकार में पिछले दो कार्यकालों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि भाजपा में किसी नेता या मंत्री ने दबी ज़ुबान से भी उनकी पीठ के पीछे भी उनके ख़िलाफ़ कुछ भी बोलने, यहाँ तक कि उनके ख़िलाफ़ सोचने की भी कोशिश की हो। बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जलवा यह रहा है कि उनका फोन भी किसी मंत्री या नेता को चला जाता था, तो कुर्सी से उठ खड़ा होता था और ऐसे बात करता था, जैसे एक डरा हुआ बच्चा अपने हेड मास्टर के सामने बड़े अदब से सोच-समझकर बोलता है। प्रधानमंत्री मोदी का ही क्या, गृह मंत्री अमित शाह का भी अमूमन यही जलवा रहा है। लेकिन जैसे ही केंद्र में बैसाखियों के सहारे मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनी और भाजपा बहुमत से 32 सीटें कम 240 सीटों पर सिमटी, तबसे कई राज्यों से प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री के ख़िलाफ़ भाजपा के ही कई नेता, मंत्री, सांसद और विधायक बोलने लगे हैं। बोलने के अलावा बाक़ायदा वो चिट्ठियाँ लिखकर उनकी ख़िलाफ़त कर रहे हैं। इस्तीफ़ों का दौर शुरू हो गया है। झारखण्ड में गुणानंद महतो ने भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता पद से इस्तीफ़ा दे दिया, तो वहीं राजस्थान में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सी.पी. जोशी का इस्तीफ़ा हो सकता है।

दरअसल जब सरसंघचालक मोहन भागवत ने केंद्र की मोदी सरकार को, या यह कहें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जब कई मामलों को लेकर नसीहत दी, तभी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराज़ चल रहे उन्हीं की पार्टी के नेता उनके ख़िलाफ़ दबी ज़ुबान से बोलने लगे थे। लेकिन जैसे ही भाजपा केंद्र में पूर्ण बहुमत न लाकर कमज़ोर हुई और प्रधानमंत्री को अपने बलबूते पर कुछ बाहरी पार्टियों को एनडीए का हिस्सा बनाकर सरकार बनाने के लिए सहयोग लेना पड़ा, तो इस विरोध के दबे स्वर मुखर होकर बाहर तक सुनायी देने लगे। अब स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री मोदी उत्तर प्रदेश में करारी हार को पचा नहीं पा रहे हैं और चाहकर भी अपने चेहरे पर लड़े गये और अपने ख़ासमख़ास गृहमंत्री अमित शाह द्वारा टिकट बँटवारे के चलते लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पिछड़ने, जिसमें ख़ासतौर पर उत्तर प्रदेश से उम्मीदों के मुताबिक परिणाम नहीं आया, इसका ठीकरा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सिर पर नहीं फोड़ पा रहे हैं। और न ही उन्हें इस हार का ज़िम्मेदार ठहराते हुए हटा पा रहे हैं। हालाँकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हटाने की ख़बरों को केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनते ही ख़ूब हवा मिली और यह हवा यूँ ही नहीं चली। कथित रूप से चर्चा तो यहाँ तक है कि इसके पीछे भाजपा के तथाकथित चाणक्य के इशारे के तहत बाक़ायदा उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह और दूसरे दलों से आयातित तमाम नेताओं, विधायकों और मंत्रियों की लॉबिंग शुरू हुई थी। इनमें से उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से लगातार मिल रहे थे, तो वहीं उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष को बुलाकर ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक की।

ज़ाहिर है कि अगर मुख्यमंत्री योगी की आज हिंदुत्ववादी छवि और राष्ट्रीय पहचान नहीं होती और उनके समर्थकों की संख्या करोड़ों में नहीं होती, तो उनका आज मुख्यमंत्री पद पर बने रहना भी नामुमकिन ही था। लेकिन जब उत्तर प्रदेश से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ विरोध की आवाज़ें आने लगीं, तो फिर केशव प्रसाद मौर्य को वापस उत्तर प्रदेश भेज दिया गया और पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की तरफ़ से सफ़ाई दी गयी कि उत्तर प्रदेश में कोई बदलाव नहीं हो रहा है। विपक्ष इस तरह की अफ़वाहें फैलाकर भाजपा को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन उससे पहले केशव प्रसाद मौर्य ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लिए बग़ैर यह तक कह दिया कि सरकार से संगठन बड़ा होता है।

बहरहाल, इस अंदरूनी ख़िलाफ़त और वाद-विवाद को बढ़ता देख नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि आलाकमान को उत्तर प्रदेश के नेताओं को यह हिदायत देनी पड़ी कि वे सार्वजनिक मंचों पर पार्टी और नेताओं के ख़िलाफ़ न बोलें और अगर कुछ कहना ही है, तो पार्टी के भीतर ही अपनी समस्याओं को रखें। उत्तर प्रदेश में मुख़ालिफ़त के चलते यह भी नौबत आ गयी कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को उत्तर प्रदेश में भाजपा की कोर कमेटी की बैठक में ख़ुद शामिल होकर नाराज़ पार्टी नेताओं को शान्त करने की कोशिश करनी पड़ी। लेकिन इसके बावजूद भी केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ यानी उप मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री के बीच रिश्ते अच्छे नहीं हो सके। अंदर की ख़बरें तो यहाँ तक हैं कि उत्तर प्रदेश में हार की समीक्षा के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जितनी भी बैठकें बुलायीं, उनमें केशव प्रसाद मौर्य नदारद रहे। न ही उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार की हार की ज़िम्मेदारी अपने सिर पर ली। अब वह कह रहे हैं कि पूरा प्रदेश उनका है और उप चुनाव में फूलपुर सीट की ज़िम्मेदारी शायद उन्हें सौंपी जाए। माना जा रहा है कि अगर उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहता है, तब तो उत्तर प्रदेश में बदलाव नहीं होगा; लेकिन अगर इसमें भी भाजपा पिछड़ी, तो उत्तर प्रदेश में मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुछ फेरबदल करेंगे। हालाँकि यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में अच्छा परिणाम न आने के बाद उत्तर प्रदेश में आगामी चुनावों में जीत के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कमर कस ली है और कोई बड़ी बात नहीं कि आगामी चुनावों में टिकट वितरण में उनकी बात पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को माननी पड़े। इसके संकेत यहीं से मिल रहे हैं कि हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने 30 मंत्रियों को बुलाकर बैठक करके 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर गुप्त रणनीति बनायी है। हालाँकि इस बैठक में भी उत्तर प्रदेश के दोनों उपमुख्यमंत्री यानी केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक ने हिस्सा नहीं लिया।

बहरहाल, फ़िलहाल तो भाजपा के उत्तर प्रदेश नेतृत्व में बदलाव के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं; लेकिन कहा जा रहा है कि आने वाले समय में संगठनात्मक स्तर पर बड़े फेरबदल हो सकते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी भी उत्तर प्रदेश में मिली बड़ी हार को पचा नहीं पा रहे हैं। कथित सूत्रों ने बताया कि पिछले दिनों पाँच राज्यों की 13 विधानसभा सीटों में से 11 सीटें हारने के बाद वह और भी बेचैन हो गये हैं और अपने स्तर पर उत्तर प्रदेश में होने वाले उपचुनाव पर नज़र रखे हुए हैं। हो सकता है कि उपचुनाव की तारीख़ चुनाव आयोग के घोषित करने के बाद वह इस उपचुनाव में अपने दिशा-निर्देश जारी करें या उनकी मज़ीर् के हिसाब से गृह मंत्री अमित शाह या पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा दिशा-निर्देश जारी करें। और अगर उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, तो यह भी हो सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी यहाँ कुछ फेरबदल करने की कोशिश करें। कुछ लोगों का मानना यह है कि लोकसभा में ज़्यादातर सीटें हारने की ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी की ही क्यों हो? जब उनके हिसाब से टिकट तक नहीं बाँटे गये और चुनाव भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा गया।

इतना ही नहीं, ख़ुद उत्तर प्रदेश के बनारस से तीसरी बार चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री मोदी लोकसभा पहुँचे हैं। इस प्रकार से उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी उत्तर प्रदेश में जनाधार बनाये रखने की भी बनती है। दूसरी बात, ख़ाली उत्तर प्रदेश को लोकसभा में हार के लिए ज़िम्मेदार ही क्यों माना जाए? क्योंकि हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र समेत कई दूसरे राज्यों में भी भाजपा का प्रदर्शन कौन-सा अच्छा रहा? रही विरोध की बात, तो उत्तर प्रदेश ही नहीं, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तराखण्ड और हिमाचल से भी पार्टी के भीतर से ही मुख़ालिफ़त होने लगी है। उसका क्या? यह मुख़ालिफ़त सिर्फ़ लोकसभा चुनाव में मनचाहा परिणाम न आने की वजह से नहीं है, बल्कि पिछले कुछ ही वर्षों में कई भाजपा नेताओं को उनके ओहदों से हटाने से लेकर बाहरियों को पार्टी में लाकर अचानक बड़े पदों पर बैठाने और कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने से भी विरोध हो रहा है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत कई प्रमुख नेता एक्शन मोड में आ गये हैं और विधायकों, सांसदों, मंत्रियों को आदेश हुआ है कि वे कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद करें। इससे शायद स्थिति सुधर जाए; लेकिन पार्टी के भीतर उठने वाले विरोध को कैसे शान्त किया जाएगा।

मसलन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बात भले ही दोनों ही उप मुख्यमंत्री नहीं सुन रहे हो; लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता योगी को आज भी सिर-माथे पर बिठाये हुए है। मुख्यमंत्री योगी का सात साल का बेदाग़ चेहरा और प्रदेश की क़ानून व्यवस्था ही उनकी असली ताक़त है। हालाँकि भाजपा में लगातार उठ रही मुख़ालिफ़त और फूट से प्रधानमंत्री मोदी ज़रूर चिन्तित होंगे; लेकिन उन्हें इसका समाधान ढूँढना होगा और सभी को मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करना होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

फिजी के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित हुईं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

नई दिल्ली  :  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को फिजी का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘कंपेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ फिजी’ से सम्मानित किए जाने पर बधाई दी। पीएम मोदी ने कहा कि यह हर भारतीय के लिए अत्यंत गर्व और खुशी का क्षण है। यह राष्ट्रपति के नेतृत्व के साथ-साथ भारत और फिजी के बीच ऐतिहासिक लोगों के आपसी संबंधों की भी पहचान है।

पीएम मोदी ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, राष्ट्रपति को फिजी के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘कंपेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ फिजी’ से सम्मानित किए जाने पर बधाई। यह प्रत्येक भारतीय के लिए अत्यंत गर्व और खुशी का क्षण है। यह राष्ट्रपति के नेतृत्व के साथ-साथ भारत और फिजी के बीच ऐतिहासिक लोगों के आपसी संबंधों की भी पहचान है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को फिजी का सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने एक्स पोस्ट में लिखा, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को फिजी के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘कंपेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ फिजी’ से सम्मानित किए जाने पर मेरी हार्दिक बधाई। यह सम्मान न केवल विश्व मंच पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाता है, बल्कि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और कूटनीतिक संबंधों को भी मजबूत करता है, जो मानवता की भलाई के लिए हमारी साझेदारी की पुष्टि करता है।

केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को फिजी के राष्ट्रपति रातू विलियामे मैवलीली कटोनिवेरे द्वारा फिजी के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘कंपेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ फिजी’ से सम्मानित किए जाने पर हार्दिक बधाई। भारत और फिजी के बीच आपसी सम्मान, सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर आधारित दीर्घकालिक संबंध हैं। यह सम्मान हमारी मजबूत रणनीतिक साझेदारी और हमारे वैश्विक साझेदारों के साथ मजबूत संबंध बनाने के राष्ट्रपति के प्रयासों को दर्शाता है। बता दें कि इसी साल प्रधानमंत्री मोदी को भी फिजी के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया गया था।

पेरिस ओलंपिक में विनेश फोगाट ने वर्ल्ड चैम्प‍ियन को धोया

हिसार :  भारत की महिला रेसलर विनेश फोगाट पेरिस ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंच चुकी हैं। प्री क्वार्टर फाइनल में उन्होंने विश्व चैंपियन जापान की युई सुसाकी को 3-2 से हराया। उसके बाद क्वार्टर फाइनल में यूक्रेन की ओकसाना लिवाच को हराया। विनेश का यह तीसरा ओलंपिक है और देश को उनसे गोल्ड की उम्मीद होगी। इस मैच में ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट यूई सुसाकी पहले आगे चल रही थीं, लेकिन अंतिम 10 सेकेंड में विनेश ने पूरी बाजी पलट दी।

सुसाकी मौजूदा विश्व चैंपियन और टोक्यो ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता हैं। फोगाट पहले राउंड में 0-1 से पीछे चल रही थी लेकिन अंतिम 30 सेकंड में 2 पॉइंट के साथ स्थिति को अपने पक्ष में कर लिया। भारतीय खिलाड़ी अधिकांश मैच में रक्षात्मक थी लेकिन बाद के चरण में उसने चैंप-डी-मार्स एरेना में जीत हासिल करने के लिए खुद को पूरी तरह से लागू किया।

हेल्थ इंश्योरेंस पर जीएसटी के मामले को लेकर एकजुट हुए विपक्षी सांसद

नई दिल्ली : कांग्रेस समेत इंडिया ब्लॉक के दलों ने हेल्थ इंश्योरेंस में जीएसटी बढ़ाए जाने के खिलाफ मंगलवार को प्रदर्शन किया। इस दौरान विपक्षी सांसदों ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी द्वारा इस मुद्दे पर सरकार को पत्र लिखे जाने का भी उल्लेख किया।

विपक्षी दलों के सांसद संसद परिसर में मकर द्वार के बाहर एकत्र हुए और अपना विरोध जताया। इस प्रदर्शन में कांग्रेस सांसद व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी शामिल रहे।

विरोध कर रहे कांग्रेस सांसदों का कहना था कि सरकार ने हेल्थ इंश्योरेंस पर जो जीएसटी लगाया है उससे सामान्य जन काफी प्रभावित हुए हैं। कांग्रेस के राज्यसभा सांसदों ने इस दौरान कहा कि स्वयं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इस विषय पर पत्र लिख चुके हैं।

कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि न केवल विपक्ष बल्कि सरकार के अंदर भी हेल्थ इंश्योरेंस पर जीएसटी की दरों को लेकर विरोध है। विपक्षी सांसद महुआ माजी ने इस विरोध प्रदर्शन के दौरान कहा कि हेल्थ इंश्योरेंस पर सरकार ने बिना कुछ सोचे समझे तानाशाही रवैया अपनाते हुए 18 पर्सेंट जीएसटी लगा दिया है।

उन्होंने कहा कि लोगों की सुविधा और असुविधा को ध्यान में न रखते हुए मनमाने तरीके से फैसले लिए जा रहे हैं। पहले नोटबंदी कर दी गई, जीएसटी लागू किया दिया। यदि हेल्थ इंश्योरेंस में 18 प्रतिशत जीएसटी लिया जाएगा तो इसका सबसे अधिक प्रभाव मध्यम वर्ग पर पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि हेल्थ इंश्योरेंस महंगा होने पर लोग इंश्योरेंस खरीदना बंद कर देंगे। वे अपने पैसों को किसी दूसरी जगह जैसे कि सोना, संपत्ति आदि में निवेश करेंगे ताकि बीमार पड़ने पर इस संपत्ति को बेचकर अपना उपचार करवा सकें।

गौरतलब है कि विपक्षी दलों ने हेल्थ इंश्योरेंस में जीएसटी की दरों के विरोध में संसद परिसर में यह प्रदर्शन किया। कांग्रेस पार्टी का यह विरोध सदन के अंदर भी जारी रहने वाला है। हालांकि सदन के अंदर वह दूसरे मुद्दों पर अपना विरोध दर्ज कराएगी।

कांग्रेस पार्टी का कहना है कि वह केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाएगी। कांग्रेस ने कहा है कि केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने वक्तव्यों से राज्यसभा को गुमराह किया है।

कांग्रेस का कहना है कि देश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का ट्रैक रिकॉर्ड रायसेन और मंदसौर में किसानों के खिलाफ खराब रहा है और अब वह देश के कृषि मंत्री बन गए हैं।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा देने के बाद देश छोड़ा, PM आवास में घूसे लोग

ढाका : बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया है और देश में अब एक अंतरिम सरकार का गठन होगा। देश के सेना प्रमुख जनरल वकर-उज-जमान ने सोमवार को ये घोषणा की।

देश के नाम एक टेलीविजन संबोधन में, बांग्लादेश सेना प्रमुख ने नागरिकों से सेना पर भरोसा बनाए रखने का आग्रह किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि रक्षा बल आने वाले दिनों में शांति सुनिश्चित करेंगे। इससे पहले, कई रिपोर्टों से संकेत मिले कि सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के ढाका में प्रधानमंत्री के आधिकारिक निवास में घुसने के बाद हसीना “सुरक्षित स्थान” के लिए रवाना हो गईं। जानकारी के अनुसार शेख हसीना ने किसी दूसरे देश रवाना हो गई है।

पंजाब नेशनल बैंक से दिन दहाड़े 21 लाख की लूट

पटना : बिहार में विपक्ष कानून व्यवस्था को लेकर लगातार सरकार पर निशाना साध रहा है। इस बीच, सोमवार को अपराधियों ने पटना के दुल्हिन बाजार स्थित एक बैंक को निशाना बनाया और करीब 21 लाख रुपए लूटकर फरार हो गए। पुलिस अब पूरे मामले की जांच कर रही है।

पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि सोमवार को दुल्हिन बाजार स्थित पंजाब नेशनल बैंक खुलने के कुछ ही देर के बाद चार-पांच की संख्या में अपराधी बैंक में घुस गए और हथियार के बल पर बैंक के कर्मचारियों को एक कमरे में बंद कर दिया। इसके बाद ये लोग वहां से करीब 21 लाख रुपए लूटकर फरार हो गए।

पटना (वेस्ट) के पुलिस अधीक्षक अभिनव धीमन ने बताया कि बैंक मैनेजर से मिली सूचना के मुताबिक अब तक 21 लाख रुपए के लूट की जानकारी है। घटना की सूचना मिलने के बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंचकर मामले की जांच कर रही है। उन्होंने बताया कि श्वान दस्ते और एफएसएल की टीम को भी बुलाया गया है।

उन्होंने बताया कि आसपास लगे सीसीटीवी के फुटेज को खंगाला जा रहा है। लुटेरे भागने के क्रम में डीवीआर अपने साथ ले गए हैं। उनके भागने के रास्ते की तरफ भी पता किया जा रहा है। बताया जाता है कि लुटेरों की संख्या चार से पांच थी, जो हथियार से लैस थे। सभी लुटेरे युवा बताए जा रहे हैं। हाल के दिनों में बिहार में बैंक, ज्वेलरी शॉप और पेट्रोल पंप पर लूट की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है।

शेयर बाजार  धड़ाम, सेंसेक्स 2,222 अंक लुढ़का, निवेशकों को लगी 16 लाख करोड़ की चपत

मुंबई: भारतीय शेयर बाजार के लिए सोमवार का कारोबारी सत्र काफी नुकसान वाला रहा। अमेरिका में मंदी की आहट के चलते वैश्विक बाजारों के साथ भारतीय बाजारों में बड़ी गिरावट देखने को मिली। सेंसेक्स 2,222 अंक या 2.74 प्रतिशत गिरकर 78,759 और निफ्टी 662 अंक या 2.68 प्रतिशत गिरकर 24,055 पर बंद हुआ।

बाजार में गिरावट के कारण बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का मार्केट कैप कम होकर 441 लाख करोड़ रुपए रह गया, जो कि पिछले कारोबारी सत्र में 457 लाख करोड़ रुपए था। इस तरह निवेशकों को 16 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। छोटे और मझोले शेयरों में गिरावट का सबसे ज्यादा असर देखा गया।

निफ्टी स्मॉलकैप 100 इंडेक्स 858 अंक या 4.57 प्रतिशत गिरकर 17,942 पर था और निफ्टी मिडकैप 100 इंडेक्स 2,056 अंक या 3.55 प्रतिशत गिरकर 55,857 पर बंद हुआ। सभी इंडेक्स लाल निशान में बंद हुए हैं। सबसे ज्यादा गिरावट पीएसयू बैंक, मेटल, रियल्टी, एनर्जी, इन्फ्रा, ऑटो और आईटी इंडेक्स में थी।

सेंसेक्स में 30 में से 28 शेयर लाल निशान में बंद हुए हैं। टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, एसबीआई, पावर ग्रिड, मारुति सुजुकी, जेएसडब्ल्यू स्टील, इन्फोसिस, एलएंडटी और टेक महिंद्रा टॉप लूजर्स थे। एचयूएल और नेस्ले ही केवल हरे निशान में बंद हुए हैं।

बाजार के जानकारों का कहना है कि अमेरिका में मंदी की आहट और खराब जॉब डेटा एवं जापानी येन के बढ़ने के कारण बाजारों में अस्थिरता का माहौल है। इस कारण से भारतीय बाजारों में भारी बिकवाली देखी गई है। हालांकि, निफ्टी 24,000 के करीब आकर बंद हुआ है।

स्वास्तिका इन्वेस्टमार्ट के रिसर्च हेड संतोष मीणा का कहना है कि वैश्विक बाजारों से लगातार आ रही खराब खबरों के कारण गिरावट देखने को मिली है। जापान की ओर से ब्याज दरें बढ़ा दी गई है और जिसके कारण दुनियाभर में लगा जापान का पैसा वापस वहां की अर्थव्यवस्था में जाने की उम्मीद है। वहीं, अमेरिका में भी जॉब डेटा खराब आया, जिसके कारण बाजार में बिकवाली देखने को मिल रही है।