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राजस्थान में कांग्रेस सरकार स्थिर, प्रियंका की पहल पर पायलट वापस

राजस्थान की कांग्रेस सरकार में पड़ रही फूट से गहराया तख्तापलट का संकट फिलहाल टल गया है। इसके साथ ही विधायकों की कथित रूप से खरीद-फरोख्त और पायलट खेमे के कांग्रेस विधायकों में उठ रहे बगावत के सुरों पर मचा जारी सियासी घमासान भी लगभग खत्म हो गया है। यह तब हुआ है, जब हर ओर से निंदा झेल रहे सचिन पायलट कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा की पहल पर पार्टी आलाकमान से मिले। हालाँकि सचिन की यह वापसी उनके और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दिलों में पड़ी दरारों को भरती दिखायी नहीं दे रही है। क्योंकि सचिन पायलट ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा से कई शिकायतें की हैं। इस मुलाकात में राहुल गाँधी ने पायलट से कहा कि राजस्थान में किसी भी कीमत पर सरकार नहीं गिरनी चाहिए। उन्होंने पायलट को भरोसा दिलाया कि उनकी शिकायतों और माँगों का उचित समाधान किया जाएगा। उनकी शिकायतों की जाँच के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है, ताकि पायलट और उनके समर्थक विधायकों द्वारा उठाये गये मुद्दों का समाधान किया जा सके। इस समिति में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा, दो वरिष्ठ नेता के.सी. वेणुगोपाल और अहमद पटेल शामिल हैं। इधर, 13 अगस्त को पार्टी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल गहलोत-पायलट में सुलह के लिए राजस्थान पहुँचे।

दरअसल अशोक गहलोत से मतभेदों के चलते सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक बगावत पर उतर आये थे, जिसके बाद मुख्यमंत्री गहलोत ने उन पर सरकार तोडऩे का आरोप लगाया था। हालाँकि आरोप में उन्होंने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष दावे के साथ कुछ सुबूत पेश किये थे, जिसके बाद पायलट को उप मुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था। सचिन पायलट की घर वापसी की पहल पर अशोक गहलोत के समर्थकों का कहना है कि सचिन को समय रहते समझ आ गयी। लेकिन उन्हें भविष्य में ऐसी हरकतों से बचकर रहना होगा। वहीं सचिन पायलट के समर्थक खामोश हैं और सचिन की तरह ही कांग्रेस को न छोडऩे का राग अलाप रहे हैं। हालाँकि गहलोत समर्थक अब भी पायलट खेमे से खफा बताये जा रहे हैं। वैसे अगर सचिन कांग्रस से बाहर हो जाते, तो कांग्रेस का गुर्जर वोट प्रभावित होता।

पद का लालच नहीं

कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी शिकायतों के दौरान सचिन पायलट ने कहा है कि उन्हें पद का लालच नहीं है और न ही वह किसी राजनीतिक दुर्भावना के शिकार हैं। क्योंकि राजनीति में व्यक्तिगत दुर्भावना की कोई जगह नहीं होती। वह तो कांग्रेस में रहकर समाज सेवा करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हम सभी ने मिलकर पाँच साल तक मेहनत की और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनायी और राज्य सरकार में हम सब भागीदार हैं। लेकिन कुछ सैद्धांतिक मुद्दे हैं, जिन्हें सुना जाना चाहिए। शायद उनका इशारा था कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उन्हें तथा उनके सुझावों को नज़रअंदाज़ करते हैं।

पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से बातचीत के बाद पायलट काफी खुश नज़र आये। उन्होंने मीडिया को बताया कि मैंने कांग्रेस नेतृत्व के सामने अपनी समस्याओं को रखा है और मुझे खुशी है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी और अन्य वरिष्ठ नेताओं से मेरी विस्तार से बातचीत हुई, जिसमें उन्हें सहयोग का पूरा आश्वासन मिला है। पार्टी द्वारा सभी पद छीने जाने के सवाल पर पायलट ने कहा कि पार्टी ने पद दिये थे, उसे उनको वापस लेने का पूरा अधिकार है और उन्हें किसी पद का लालच भी नहीं है। वह पार्टी में रहकर जनसेवा करना चाहते हैं। पायलट ने कहा कि उन्हें पार्टी की तरफ से उनके द्वारा उठाये गये मुद्दों के समाधान का पूरा आश्वासन दिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि वह चाहते थे कि सैद्धांतिक और गवर्नेंस के मुद्दों को सुना जाए, ताकि पार्टी और सरकार जनता से किये गये वादों पर खरी उतर सकें, जो वादे करके हम सत्ता में आये थे।

गहलोत की नीतियों के खिलाफ हूँ…

सचिन पायलट ने केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात के बाद भी यही कहा कि उन्हें पार्टी से कोई शिकायत नहीं है और न ही वह पार्टी के खिलाफ हैं। लेकिन वह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ डटे हुए हैं। इसका मतलब यह है कि गहलोत के साथ उनके मतभेद अभी समाप्त नहीं हुए हैं। सचिन पायलट ने राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी से कहा कि वह कांग्रेस पार्टी के खिलाफ नहीं, बल्कि अशोक गहलोत की नीतियों के खिलाफ हैं। उनकी यह मुखालिफत उसूलों और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने से पहले किये जनता के वादों को लेकर है। राजनीतिक जानकारों की मानें, तो सचिन पायलट अब भले ही कुछ कहें, लेकिन पहले वह भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर ही चले थे। मगर उनका पलड़ा काफी हल्का रहा और उन्हें मजबूरन कांग्रेस नेतृत्व के आगे घुटने टेकने पड़े। राजनीतिक जानकार यह भी कहते हैं कि अशोक गहलोत एक मझे हुए खिलाड़ी हैं और सरकार चलाना जानते हैं। इसीलिए राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बची रह गयी, अन्यथा अब तक तो यहाँ भी मध्य प्रदेश वाला हाल हो चुका होता। कुछ लोगों का कहना है कि पायलट और गहलोत के बीच हुआ मतभेद अब मनभेद में बदल चुका है। इसलिए राजस्थान में सरकार भले ही बची रह गयी, पर इनके बीच हुए मनमुटाव के जख्म भरने मुश्किल हैं।

बागी विधायक भी पलटे

इधर सचिन के घर वापसी की भनक लगते ही राजस्‍थान के निलंबित कांग्रेस विधायक भँवर लाल शर्मा और अन्य विधायक भी पलट गये हैं। शर्मा ने अशोक गहलोत के साथ बैठक के बाद कहा कि वह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ हैं। बता दें कि यह वही विधायक हैं, जिन पर गहलोत सरकार के खिलाफ कथित तौर पर साज़िश रचने का आरोप लगा था। भँवर लाल शर्मा पर यह आरोप उनका टेप सामने आने के बाद लगा था, जिसमें वह विधायक खरीद-फरोख्त के बिचौलिया संजय जैन के साथ सौदा करते हुए सुने गये थे।

इसके बाद कांग्रेस ने कहा था कि संजय जैन ने भँवर लाल शर्मा को केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मिलाया था और वह पैसे लेने-देने की चर्चा कर रहे थे। हालाँकि भँवर लाल शर्मा ने पहले की तरह ही अपने द्वारा किसी भी तरह की साज़िश रचे जाने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि वह किसी कैम्प नहीं थे, बल्कि अपनी तरफ से वहाँ गये थे और अपनी ही तरफ से वापस आये। बता दें कि जब पार्टी की राज्य इकाई में फूट पड़ रही थी, तब पायलट समर्थक विधायक गुरुग्राम (गुडग़ाँव) के एक होटल में ठहरे थे। भँवर लाल ने उसी होटल (कैम्प) में खुद के शामिल न होने की बात कही। ऑडियो टेप के झूठे होने की बात दोहराते हुए शर्मा ने कहा कि वह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ हैं।

गहलोत के निशाने पर रहा केंद्र

राजस्थान के कुछ कांग्रेस विधायकों द्वारा राज्य की सत्ता से बगावत करने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कई बार सीधे केंद्र सरकार को निशाने पर लिया। उन्होंने यहाँ तक कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य में यह तमाशा को बन्द करवाएँ। अशोक गहलोत ने फिर से आरोप लगाते हुए कहा है कि भाजपा उनकी सरकार को गिराने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त का बड़ा खेल खेल रही है। इस बार भाजपा का प्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त का खेल बहुत बड़ा है। वह कर्नाटक और मध्य प्रदेश वाला प्रयोग राजस्थान में भी कर रही थी; लेकिन दुर्भाग्य से उसका पर्दाफाश हो गया। गहलोत ने कहा कि उन्हें किसी की परवाह नहीं। उन्हें केवल लोकतंत्र की परवाह है और उनकी लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष या दल से न होकर विचारधारा, नीतियों एवं कार्यक्रमों की लड़ाई है; लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है।

क्या खोयी हुई प्रतिष्ठा वापस पा सकेंगे पायलट

सवाल यह उठता है कि अब जब सचिन पायलट को कांग्रेस नेतृत्व ने राजस्थान वापस भेज दिया है, तो क्या उन्हें कांग्रेस की राजस्थान इकाई में और जनमानस के मन में वह जगह, वह प्रतिष्ठा मिल सकेगी, जो पहले थी। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी में सचिन के प्रति जो प्रेम है, उसे देखकर लगता है कि सचिन की घर वापसी तो हो गयी है; लेकिन सचिन पायलट को पहले जैसी प्रतिष्ठा नहीं निल सकेगी। क्योंकि जनता की नज़रों में पहले जैसी छवि बनाने में उन्हें लम्बा समय लगेगा।

दरअसल जब मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत और उनके साथ कई विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद सचिन पालयट ने कहा था कि वह कांग्रेस का दामन कभी नहीं छोड़ेंगे। उस समय यह सुगबुगाहट थी कि सचिन भाजपा में जाने के मूड में हैं। खबरें तो यहाँ तक उड़ी थीं कि सचिन राजस्थान के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं।

सचिन पायलट ने मुलाकात के दौरान प्रतिबद्धता जतायी है कि वह पार्टी और राजस्थान की कांग्रेस सरकार के हित में काम करेंगे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी से मुलाकात के दौरान सचिन पायलट ने विस्तार से अपनी शिकायतें बतायी हैं। दोनों के बीच स्पष्ट, खुली और निर्णायक बातचीत हुई; उसके बाद कांग्रेस हित में साथ मिलकर काम करने पर सहमति बनी है।

के.सी. वेणुगोपाल, महासचिव, कांग्रेस

वसुंधरा की तल्खी और बगावत से गुस्साया भाजपा नेतृत्व

राजस्थान में मचे सियासी संग्राम के तूफानी थपेड़ों के बीच जब कई अखबारों की सुॢखयों के साथ छपा कि- ‘गुस्साये भाजपा नेतृत्व ने वसुंधरा राजे को दिल्ली तलब किया’ ऐसे में राजनीतिक हलकों में सवालों का सैलाब उठना ही था। यह बात जुदा है कि राजे ने विवादों में ढलते सवालों का जवाब अपने खास अंदाज़ में दिया कि ‘कृपया संकटों के तमाम अंदेशों को मुल्तवी रखिए…।’ सौम्य मुस्कुराहट के साथ उन्होंने कहा कि नियति ने मुझे जिस ऊँचाई तक पहुँचाया है, फिलहाल उसमें कोई कटौती नहीं होने वाली है।

विश्लेषकों का कहना है कि यह सब कहते हुए राजे एक बार फिर अबूझ पहेली की तरह नज़र आयीं। लेकिन एक खामोश अहसास ज़रूर उनके चेहरे पर हावी होता नज़र आया। जानकारों का कहना है कि हाल की चन्द घटनाओं का गणित समझें तो भाजपा नेतृत्व और वसुंधरा राजे के बीच राजनीतिक टकराव की चिंगारी भडक़ चुकी है। अफवाहों का बाज़ार गर्म है कि भाजपा अध्यक्ष नड्डा और राजे के बीच आपसी मनभेद गहराया हुआ है। राजे राजनीतिक ताकत के रूप में अपनी अहमियत किस कदर गँवा चुकी है? उसका अंदाज़ा नड्डा के दो टूक लफ्ज़ों से हो जाता है कि आपको किसी सूबे का गवर्नर बना दिया जाए। अथवा आप चाहें, तो केंद्रीय राजनीति में आपको सक्रिय कर दिया जाए। विश्लेषकों का कहना है कि राजे कोई नौसिखिया राजनेता नहीं हैं। इस बात को कोई नहीं मान सकता कि राजे भाजपा की बदली हुई राजनीतिक संस्कृति न समझ पायी हों और अब तक अपने अँगूठे को ही घायल करती रही हों। वहीं वसुंधरा ने अवाम की क्या और क्या नहीं के बीच सीमा रेखा खींचते हुए कहा- ‘मैं पार्टी के हर फैसले के साथ हूँ, किन्तु स्वाभिमान से समझौता नहीं कर सकती।’ उन्होंने राजनीतिक विरोधाभास का खुलासा करते हुए कहा कि प्रदेश के कुछ नेता पदीय अधिकार मिलने के साथ ही पार्टी की रीति-नीति भूल गये हैं। क्यों हुआ ऐसा? क्या उन्हें अनुशासन का पाठ नहीं पढ़ाना चाहिए? इससे कई सवाल उठते हैं, मसलन- राजे का इशारा किसकी तरफ था? किसके तौर-तरीके सशंकित करने वाले हैं? आिखर राजे का गुस्सा किस-किस पर फूट रहा था? कांग्रेस की सियासी फिज़ाँ में भाजपा के अदृश्य दाँव-पेंच में राजे की चुप्पी का रहस्य क्या था?

हालाँकि राजे ने अपनी चुप्पी को सावन मास में पूजा-अर्चना की खातिर धौलपुर प्रवास को वजह बताया। लेकिन सूत्र कहते हैं कि राजे का अतीत इसकी पुष्टि नहीं करता। अनेक मौकों पर अपने दम-खम का परिचय दे चुकी राजे की चुप्पी ज़िम्मेदारी से दूर भागने की कहानी तो नहीं हो सकती। राजे के स्पष्टीकरण में किसी धारावाहिक से कम नाटकीयता नहीं थी। उनका हर सवाल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, विधानसभा में प्रतिपक्ष उपनेता राजेन्द्र सिंह राठौड़ और भाजपा के घटक दल के राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा के नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल को कटघरे में खड़ा कर रहा था। सयासत तब और गरमा गयी, जब बेनीवाल ने राजे को सीधे निशाने पर लेेते हुए कहा कि वसुंधरा राजे गहलोत सरकार को बचाने में लगी हुई हैं। राजेे ने अपना पक्ष मज़बूती से रखते हुए कहा कि कैसी विडम्बना है कि पार्टी का बाहरी व्यक्ति, जो घटक दल के नाते पार्टी से जुड़ा है; बिना सिर-पैर का बयान दे। क्या उस पर यकीन कर लिया जाना चाहिए? क्या यह पार्टी में दरार पैदा करने की हिमाकत नहीं है? एक-दूसरे के खिलाफ गोटियाँ बिछाने का काम क्यों किया जा रहा है? कुल मिलाकर पूरे बखेड़े को सियासत और शैतानियत की जुगलबन्दी बताते हुए राजे ने प्रदेश भाजपा की कार्यशैली को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि नीतियों की राजनीति ही सियासी दलों का सबसे बड़ा इम्तिहान होती है। लेकिन ता•ज़ुब है कि केंद्रीय नेतृत्व ने अभी तक प्रदेश संगठन की कार्यशैली की समीक्षा करने की ज़हमत ही नहीं उठायी। सूत्र कहते हैं कि बेशक कई मुद्दे राजे की दु:खती रग से जुड़े हैं; लेकिन यह तल्ख हकीकत ही कही जाएगी कि कुछ चर्बीदार नेता बेहतर रणनीतिक हैसियत हासिल करने के लिए अपनी गोटियाँ बिछाने की फिराक में थे।

विश्लेषकों का कहना है कि भले ही सतीश पूनिया, राठौड़ गुट का प्रदेश में कोई जनाधार नहीं है; लेकिन दोनों ही सत्ता परिवर्तन कराकर मुख्यमंत्री बनने की फिराक में हैं। पर क्या इस मशक्कत में भाजपा की ज़मीन खिसक रही है? अगर नहीं, तो भाजपा भी क्यों कांग्रेस की तर्ज पर विधायकों की बाड़ाबन्दी कर रही है? भाजपा ने 8 ज़िलों के 18 विधायकों की बाड़ाबन्दी करते हुए उन्हें गुजरात भेज दिया। सूत्र बताते हैं कि भाजपा ने प्रदेश संगठन की सलाह पर यह कदम उठाया है। भाजपा संगठन की इस कारगुज़ारी पर सफाई देते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया का कहना है कि सरकार गिरने की स्थिति में है। ऐसे में हर तरह की तोडफ़ोड़ की कोशिश है। हम हमारे किसी भी विधायक को सरकार के प्रभाव में नहीं आने देना चाहते। इसलिए सबको सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है। विश्लेषक कहते हैं कि विरोध का धुआँ भाजपा में भी उठ रहा है। 18 विधायकों की इस खेप में वसुंधरा राजे के विधायक कितने हैं?

अब जबकि राजे की जवाबतलबी दुराग्रहों, तल्ख िकस्सों और मोहभंगों की रपटीली राह पर है, तो सम्भावना प्रबल होती जान पड़ती है कि उन्हें दलीय राजनीति में प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के नेतृत्व में काम करने को कह दिया जाए। सूत्रों की मानें तो राजस्थान में जिस तरह भाजपा की संगठनात्मक गतिविधियाँ बदल रही हैं। तमाम तरह की राजनीतिक गतिविधियों पर पूनिया की पकड़ मज़बूत होती जा रही है। लेकिन राजे को इस खेल कोई तवज्जो मिल पायेगी; यह सोचना भी गलत है। विश्लेषकों का कहना है कि अपने दर्द और स्वाभिमान से इत्तिफाक रखने वाली राजे गर्दन झुका लेंगी, ऐसा सम्भव ही नहीं है। राजे को राजस्थान की राजनीति से बेदखल करना एक दु:स्वप्न तो हो सकता है; हकीकत नहीं।

खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पिछले साल भर से राजे से कन्नी काटे हुए हैं। अमित शाह राजे को फिर मिलने का मौका देंगे, इसके भी कोई आसार नहीं है। स्वाभिमानी राजे के पास एक ही आखरी हथियार बचा है- ‘थर्ड फ्रंट।’ यह हथियार राजे पहले भी आजमा चुकी हैं। भाजपा की तेज़तर्रार नेता वसुंधरा राजे के अवचेतन में कहीं-न-कहीं अपना असली रूप दिखाने की बेकरारी रही होगी या फिर कोई नया शिगूफा छोडऩे की भीतर से घंटी बजी होगी। पिछले दशक में हाशिये पर डाल दिये गये राजनीतिक पुरोधाओं के साथ स्नेह मिलन से तो ऐसा ही लगा था। खण्डहर होते नेताओं के सत्ता के स्वप्नीले घरों की चहारदीवारी में हुई इस रहस्यमय मुलाकात को खालिस सद्भावना भेंट तो नहीं कहा जा सकता। अलबत्ता खुद वसुंधरा का चुटीले अंदाज़ में यह कहना था कि राज को राज ही रहने दो। सुॢखयाँ में ढली इस मुलाकात के बारे में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि राजनीति और कारोबार में तिलक माथा और मौका देखकर लगाया जाता है। वसुंधरा ने भी बेगानों के माथे पर तिलक लगाने की कोशिश की, तो इसके पीछे दूरगामी राजनीतिक अनुभूति की तीव्रता थी। वसुंधरा के व्यवहार में हमेशा चक्रवर्ती होने की बात झलकती है। यही उनकी प्राण-वायु भी है। प्रदेश भाजपा के मुखिया पूनिया जिस तरह विरोध के ताप में तप रहे हैं, वसुंधरा ने वह तापमान माप लिया है। मगर पूनिया और उनके समर्थक इस सत्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि राजस्थान में वसुंधरा का मतलब ही भाजपा है।

सम्भवत: यही वजह रही कि राजनीतिक पंडितों ने एक बार फिर तीसरे मोर्चे की सम्भावनाएँ जताते हुए कहा है कि अगर बात बिगड़ी, तो हाशिये पर पड़े राजनीतिक भीष्म पितामह उनकी खातिर शर शय्या पर लेटने से इन्कार नहीं करेंगे। राजनीति के पुरोधाओं ने भी सियासत में जीवन खपाया है, इसलिए उनका अनुसरण करने वाले भी कम नहीं होंगे। सत्ता की राजनीति एक ज़बरदस्त नशा है, जिसकी मामूली खुराक भी थरथराते जिस्मों में फौलाद भर देती है।

बार-बार चुनौतियों से होना पड़ा दो-चार

वसुंधरा राजे का इतिहास खँगालें, तो कहना होगा कि उन्होंने हर मौके और मुद्दे पर अपनी बात मनवाने में कसर नहीं छोड़ी। बात ज़्यादा पुरानी नहीं है, जब तमाम दुरभिसंधियों को धता बताते हुए वसुंधरा राजे जिस तरह अपने भरोसेमंद अशोक परनामी की संगठन के अध्यक्ष पद पर दोबारा ताजपोशी करवाने में निर्णायक और सफल साबित हुईं। संगठन के शिखर पद की इस दौड़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक अलग ही चेहरा दिखायी दिया था। संघ अपनी कूटनीति के साथ फलक के दोनों सिरों की धुरी पर स्थापित था। इस अबूझ दौड़ में संघ की पहली पसन्द माने जाने वाले सतीश पूनिया थे, तो संघ पृष्ठभूमि के राज्य सभा सांसद नारायण पचारिया भी थे। यहाँ तक कि कभी राजे को गुर्राहट दिखा चुके ओंकार सिंह लाखावत भी पीछे नहीं थे; लेकिन संघ की नज़रें टेढ़ी होने के कारण खुद ही मैदान छोड़ गये। शतरंज की बिसात से पूनिया और पचारिया को इस तर्क के साथ हटा दिया गया कि इनको मौका दिये जाने पर सत्ता और संगठन के बीच दूरी बढ़ सकती थीं। इस सीनेरियो को अलग से देखें, तो संघ के कद्दावर नेता राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री वी. सतीश परनामी के नाम की घोषणा के दौरान वसुंधरा राजे के साथ थे। यहाँ तक कि कभी राजे के धुर-विरोधी रहे रामदास अग्रवाल भी इस मौके पर मौज़ूद थे। यह सतीश वही थे, जो कभी इस पटकथा के खिलाफ थे और कह चुके थे कि मुख्यमंत्री आवास को सत्ता और संगठन का साझा केंद्र नहीं होना चाहिए। जबकि राजनीतिक हलकों में उनकी प्रतिक्रिया पर हैरानी जतायी गयी थी। परनामी की ताजपोशी के मौके पर सहमति के बावजूद राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह क्यों नहीं आये? इसको लेकर राजनीतिक विश्लेषकों की प्रतिक्रिया थी कि उनकी आमद पर सम्भवत: उनका यह कथन ही उनके पाँवों की बेडिय़ाँ बन सकता था कि जिस प्रदेश में भी भाजपा सरकार है, वहाँ मुख्यमंत्री का खास समझा जाने वाला व्यक्ति प्रदेश अध्यक्ष नहीं होना चाहिए। इससे संगठन चौपट हो जाता है।

हालाँकि राजे ने अंदेशों की धुन्ध को यह कहकर साफ कर दिया कि केवल एक व्यक्ति ही परिणाम नहीं ला सकता। प्रदेश अध्यक्ष पद की खींचतान को लेकर चली बातों की बत्तीसी को उन्होंने यह कहकर बन्द कर दिया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को मेरे विरुद्ध पता नहीं क्या कुछ कहा होगा? लेकिन शाह इससे विचलित नहीं हुए। उन्होंने अपना रास्ता अपनाया और अटूट विश्वास जताते हुए कहा कि बेधडक़ अपना काम करें। पार्टी को आगे ले जाने की हर सम्भव कोशिश करें। हम आपके पीछे खड़े हैं। इस हौसला अफजाई से ही अशोक परनामी को फिर से अध्यक्ष बनाया जा सका। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे से नाराज़ है, क्योंकि उन्होंने राजस्थान में भाजपा की मदद न करते हुए केंद्र को भाजपा की छवि खराब होने से आगाह किया।

मौत के रन-वे!

कोझिकोड विमान हादसे ने इस बात को एक बार फिर साबित कर दिया है कि कैसे हमारे देश में आपात मामलों में भी आपराधिक लापरवाही बरती जाती है। वहाँ के डाउनस्लोप (ढलान) वाले टेबल टॉप रन-वे पर गम्भीर खतरे को इंगित करते हुए 10 साल पहले इसके रन-वे के कम बफर एरिया को बढ़ाने की सिफारिश और खतरे की चेतावनी के बावजूद इस पर कुछ नहीं हुआ।

इस हवाई अड्डे का निरीक्षण करने के बाद डीजीसीए ने एक साल पहले कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इसमें कहा गया था कि वहाँ का रखरखाब तय पैमानों के मुताबिक नहीं है। डीजीसीए ने वहाँ रबर डिपॉजिट की बात कही थी। तहलका की जानकारी के मुताबिक, देश भर में 11 हवाई अड्डों को हाई रिस्क की श्रेणी में रखा गया है। फिर भी वहाँ रन-वे के मामलों में पिछले वर्षों में कुछ खास काम नहीं हुआ है। हैरानी की बात यह है कि भारत में आज तक जो बड़े विमान हादसे हुए हैं, उनमें से ज़्यादातर एयर इंडिया या तत्कालीन इंडियन एयरलाइंस के रहे हैं।

तहलका के द्वारा जुटायी जानकारी के मुताबिक, 2010 में जब मंगलूरु में एयर इंडिया एक्सप्रेस विमान हादसे का शिकार हुआ था, तो देश के सभी टेबल टॉप रन-वे को लेकर खतरों को सूचीवद्ध करने की कवायद हुई थी। इस हादसे में 160 लोगों की जान चली गयी थी। लेकिन यह सारी कवायद कागज़ों में ही सीमित रह गयी और उन पर कोई काम नहीं हुआ।

रन-वे के इस खतरे के कारण ही कई अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइंस, जिनमें बोइंग 777 और एयरबेस ए-330 जेट विमान शामिल हैं; ने कोझिकोड को अपनी ऑपरेशन स्टेशन्स की सूची से बाहर कर दिया था। केरल में जो चार हवाई अड्डे हैं, उनमें कोझिकोड का रन-वे सबसे छोटा, खतरनाक है, जो दोनों तरफ से खुला है।

देश में कुछ हवाई अड्डे ऐसे हैं, जो पहाड़ी के ऊपर बने हैं। इन हवाई अड्डों पर पट्टी के दोनों या एक तरफ खाई (ढलान) होती है, लिहाज़ा इन टेबल टॉप रन-वे में लैंडिंग का बहुत ज़्यादा जोखिम होता है। करीब 9 साल पहले एयर सेफ्टी एक्सपर्ट और तब सुरक्षा सलाहकार समिति के सदस्य कैप्टन मोहन रंगनाथन ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि कोझिकोड (उस समय कालीकट) का हवाई अड्डा लैंडिंग के लिए बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। लेकिन उनकी चेतावनी और सिफारिशों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया।

तहलका की जानकारी के मुताबिक, ठीक एक साल पहले जुलाई, 2019 में भी इसी हवाई अड्डे पर एक बड़ा हादसा होने से टल गया था। तब एयर इंडिया एक्सप्रेस का ही विमान लैंडिंग के दौरान हादसे का शिकार होते-होते बचा था। स्ट्रिप पर उतरते ही विमान का पिछला हिस्सा रन-वे को छू गया था। हालाँकि विमान और सभी यात्री सुरक्षित बच गये थे।

कालीकट हवाई अड्डे पर पहले भी दुर्घटनाएँ हुई हैं। रिकॉर्ड के मुताबिक, 9 जुलाई, 2012 को एयर इंडिया एक्सप्रेस उड़ान बोइंग 737-800 लैंडिंग के दौरान रन-वे पर फिसल गयी। उस दिन भी भारी बारिश हुई थी। हालाँकि हादसे में किसी सवारी को कोई नुकसान नहीं हुआ। इसके बाद 4 अगस्त, 2017 को लैंडिंग के दौरान स्पाइसजेट का विमान रन-वे पर फिसल गया। इससे विमान का आईएलएस बीकन क्षतिग्रस्त हो गया।

यदि लोबल विमान ट्रैकर की वेबसाइट देखें, तो उस पर दर्शाया गया है कि केरल के कोझिकोड हवाई अड्डे के रन-वे पर हादसे के शिकार एयर इंडिया एक्सप्रेस विमान को कम-से-कम दो बार लैंड कराने की कोशिश की गयी थी। हादसे के बाद नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने कहा कि विमान लैंडिंग के बाद रन-वे पर रोका नहीं जा सका और रन-वे को पार करके घाटी में गिर गया। जानकारी के मुताबिक, इस हवाई अड्डे की बनावट के कारण ही पिछले दिनों लगातार बारिश के कारण भी रन-वे को काफी नुकसान पहुँचा था।

यह बड़ा सवाल है कि जब नौ साल पहले इस हवाई अड्डे पर खतरे को लेकर चेतावनी जारी की गयी थी, तो क्यों उसमें सुधार नहीं किया गया? कोझिकोड में डाउनस्लोप वाला टेबलटॉप रन-वे है। रन-वे के आिखर में बफर एरिया (सुरक्षा की दृष्टि से अतिरिक्त क्षेत्र) पर्याप्त रूप से होना चाहिए, जो वहाँ नहीं है।

नियमों के मुताबिक, इस तरह के हवाई अड्डे में रन-वे के बाद 240 मीटर का ऐसा बफर एरिया होना चाहिए, जो आपातकाल में काम आये। जानकारी के मुताबिक, कोझिकोड के हवाई अड्डे पर यह मात्र 90 मीटर है। हैरानी की बात यह है कि इसे डीजीसीए की मंज़ूरी मिली थी, जिसने खुद एक साल पहले हवाई पट्टी पर रबर डिपॉजिट को लेकर सवाल खड़े किये थे। यही नहीं, वहाँ रन-वे के दोनों तरफ भी स्थान बहुत सँकरा है। वहाँ अनिवार्य रूप से 100 मीटर जगह होनी चाहिए, जो इससे कहीं कम 75 मीटर ही है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, हवाई अड्डों पर बारिश के समय टेबल टॉप रन-वे पर जहाज़ों के परिचालन को लेकर कोई दिशा-निर्देश नहीं है। नागर विमानन सचिव और महानिदेशक नागरिक उड्डयन को 17 जून, 2011 को नागर विमानन सुरक्षा सलाहकार समिति (सीएएसएसी) के अध्यक्ष को लिखे पत्र में कैप्टन मोहन रंगनाथन ने कहा था कि रन-वे एंड सेफ्टी एरिया (आरईएसए) की कमी को देखते हुए रन-वे 10 अप्रोच (जहाँ हादसा हुआ) को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। साथ ही 240 मीटर के आरईएसए को तुरन्त शुरू किया जाना चाहिए और परिचालन को सुरक्षित बनाने के लिए रन-वे की लम्बाई को कम करना होगा।

कोझिकोड के हवाई अड्डे को लेकर सुरक्षा सलाहकार समिति ने कहा था कि यदि कोई विमान रन-वे के भीतर रुकने में असमर्थ है, तो अन्त तक वहाँ कोई आरईएसए नहीं है। आईएलएस स्थानीयकरण एंटीना को एक ठोस संरचना पर रखा गया है और इसके आगे का क्षेत्र ढलान वाला है। इसके मुताबिक, मंगलूरु में एयर इंडिया एक्सप्रेस दुर्घटना ने रन-वे की स्थिति को सुरक्षित बनाने के लिए एएआई को सचेत किया है। हम सीएएसएसी की प्रारम्भिक उप-समूह बैठकों के दौरान आरईएसए का मुद्दा उठा चुके हैं। हमने विशेष रूप से उल्लेख किया था कि आईसीएओ अनुलनक 14 के आवश्यक अनुपालन के लिए दोनों रन-वे के लिए घोषित दूरी को कम करना होगा।

एक साल पहले कोझिकोड हवाई अड्डे का निरीक्षण करने के बाद वहाँ गड़बडिय़ों को देखते हुए डीजीसीए ने बाकायदा हवाई अड्डे को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इस नोटिस में साफ कहा गया था कि हवाई अड्डे पर रखरखाब ज़रूरी पैमानों के मुताबिक नहीं है। तहलका की जानकारी के मुताबिक, कोझिकोड के कालीकट हवाई अड्डे के खिलाफ डीजीसीए ने यह कारण बताओ नोटिस 4 जुलाई, 2019 को जारी किया था। डीजीसीए की टीम ने अपने निरीक्षण के दौरान पाया था कि हवाई अड्डे /रन-वे पर बहुत-सी खामियाँ हैं।

जानकारी के मुताबिक, डीजीसीए की जाँच टीम ने इन खामियों को लेकर हवाई अड्डे  प्रशासन से जवाब तलब किया था। हालाँकि उन्हें कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं मिला था।

इस तरह देखा जाये तो एक तरह से डीजीसीए टीम ने इस हवाई अड्डे पर को खामियाँ देखी थीं, वे लैंडिंग के लिहाज़ से खतरनाक थीं। अर्थात् वहाँ लैंडिंग रिस्की थी। लेकिन इसके बावजूद इन खामियों को दूर करने की कोई कोशिश नहीं हुई।

इन खामियों को देखते हुए और हवाई अड्डे प्रशासन की तरफ से असन्तोषजनक उत्तर के बाद उसे 5 जुलाई को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। यह पता नहीं कि इसके जवाब में कोझिकोड हवाई अड्डे प्रशासन ने क्या कहा? लेकिन उसमें यह ज़रूर कहा गया था कि इन कमियों को सुधारने की कोशिश की जाएगी। लेकिन इस दिशा में कुछ खास हुआ नहीं।

डीजीसीए के कारण बताओ नोटिस में जो बिन्दु उठाये गये थे, उनके मुताबिक इस हवाई अड्डे पर बारिश में जलभराव (वाटर लॉगिंग) की गम्भीर समस्या है। ज़रूरी रखरखाव न होने से पट्टी पर दरारें (क्रैक्स) हैं। यही नहीं जहाज़ों की लैंडिंग से रन-वे पर बड़ी मात्रा में रबर डिपॉजिट हो गया है। इसे हटाया जाना ज़रूरी होता है।

हालाँकि लैंडिंग के लिहाज़ से जो सबसे गम्भीर बिन्दु उठाया गया था, वह रन-वे के आिखर में ढलान (स्लोप) का था। अर्थात् रन-वे पर जहाज़ के किसी कारण आिखर तक चले जाने की स्थिति में उसकी सुरक्षा का गम्भीर रिस्क है।

यही 7 अगस्त के हादसे के मामले में भी हुआ है जब जहाज़ लैंडिंग के बाद रन-वे के आिखर तक चले जाने कारण खाई में लुढक़ गया। बफर जोन में ज़रूरी सुरक्षित क्षेत्र होता, तो हादसा टल सकता था। उस समय जाँच के दौरान हवाई अड्डे पर डिजिटल मेट डिस्प्ले और डिस्टेंट इंडिकेशन विंड इक्यूपमेंट भी आउट ऑफ ऑर्डर पाये गये थे। ज़ाहिर है इस हवाई अड्डे पर इस कार्य के लिए ज़िम्मेदार स्थानीय विभाग सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े कदम नहीं उठा पाया था।

कोझिकोड का हादसा

दुबई से आ रहा एयर इंडिया का विमान 7 अगस्त को हादसे का शिकार हो गया। इसमें यह रिपोर्ट लिखे जाने तक 20 लोगों की मौत हो गयी, जिसमें दोनों पायलट भी शामिल हैं। भारी बारिश के चलते रन-वे पर पानी भरा था और लैंडिंग के समय विमान फिसलकर लगभग 35 फीट गहरी खाई में जा गिरा। हादसे में 127 लोग घायल हुए। विमान दुर्घटना जाँच ब्यूरो ने विमान से डिजिटल विमान डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर बरामद किये हैं, जिनकी छानबीन से हादसे को लेकर कुछ खुलासे होंगे।

नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी कोझिकोड हवाई अड्डे का दौरा किया। उन्होंने विमान हादसे में मुआवज़े का भी ऐलान किया है। पीडि़तों को अंतरिम राहत के रूप में मृतकों के परिजन को 10-10 लाख रुपये, गम्भीर रूप से घायलों को दो-दो लाख रुपये और मामूली चोटों का सामना करने वालों को 50-50 हज़ार रुपये की सहयोग राशि देने का ऐलान किया है। साथ ही केरल के मुख्यमंत्री की ओर से मारे गये लोगों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने की घोषणा की गयी है। दुर्घटना में मारे गये या घायलों की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट में एक रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है।

हादसे के समय हवाई अड्डे पर तैनात एएसआई अजीत सिंह के मुताबिक, वह 7.30 पर तीसरे राउंड के लिए निकले और इमरजेंसी फायर गेट पर पहुँचे। वह एएसआई मंगल सिंह से बात करने लगे। तभी उन्होंने देखा कि ऊपर से एयर इंडिया एक्सप्रेस की एक विमान डिस्बैलेंस होकर नीचे पैरामीटर रोड की तरफ गिर रहा है। उन्होंने तुरन्त कंट्रोल रूम को सूचित किया, तब तक विमान नीचे गिर चुका था। ड्यूटी पर तैनात जवान ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्होंने इसके बाद शिफ्ट आईसी को कॉल किया, लाइन में कॉल किया, उसके बाद हवाई अड्डे अथॉरिटी, फायर, हमारी सीआईएसएफ की टीम और लाइन मेंबर्स रेस्क्यू के लिए आ गये।

नियमों का पालन नहीं

देश भर में हवाई अड्डों की समस्याएँ भीतर ही नहीं हैं। हवाई अड्डों के बाहर भी बहुत-से नियमों का उल्लंघन होता है। हवाई अड्डों निर्माण की नियमावली देखें तो रन-वे की दिशा में हवाई अड्डे के छ: किलोमीटर क्षेत्र में कोई बूचडख़ाना नहीं हो सकता है। लेकिन कुछ हवाई अड्डों के पास बूचडख़ाने और मीट-मांस की दुकानें धड़ल्ले से चल रही हैं। जम्मू का हवाई अड्डा भी इनमें से एक है। बूचडख़ाने इसलिए नहीं बनाने दिये जाते, ताकि उस क्षेत्र में पक्षी जमा न हों। पक्षी हादसे का बड़ा कारण बन सकते हैं।

इसके अलावा हवाई अड्डों के पास ऊँचे भवन बनाने को लेकर भी मनाही है। इसके बावजूद देश के कई हवाई अड्डों के नज़दीक ऊँची इमारतें हैं। सबसे ज़्यादा नियम छोटे हवाई अड्डों के आसपास तोड़े जाते हैं। हवाई अड्डों के पास ऊँची इमारतें हादसों का कारण बन सकती हैं या इमरजेंसी लैंडिंग के दौरान हादसे को न्यौता दे सकती हैं।

विस्तार के काम में दिक्कतें 

हादसे के बाद कालीकट हवाई अड्डे के डायरेक्‍टर के. जनार्दन ने कहा कि टेबल टॉप हवाई अड्डे में चौड़ाई वाले विमानों के संचालन में बाधा थी। उनके मुताबिक, रन-वे की लम्बाई को मौज़ूदा 2,850 मीटर से बढ़ाकर 3,150 मीटर तक किया जाना चाहिए, ताकि बड़े विमानों का संचालन किया जा सके।

हालाँकि देश में हवाई अड्डों के विस्तार के लिए अब तक जो सबसे बड़ी बाधा देखी गयी है, वह ज़मीन का इंतज़ाम करना है। बहुत-से हवाई अड्डों के आसपास बस्तियाँ या घर हैं। वहाँ ज़मीन लेना आसान काम नहीं। हालाँकि इसके लिए अच्छी-खासी कीमत अदा की जाती है; लेकिन इसके बावजूद इस काम में बहुत बाधाएँ आती हैं।

खुद जनार्दन भी मानते हैं कि रन-वे का विस्तार करने में बड़ी बाधा भूमि अधिग्रहण में देरी होना है। उनके मुताबिक, रन-वे और सम्बन्धित सुविधाओं के विस्तार के लिए कुल 385 एकड़ ज़मीन की ज़रूरत होती है। जनार्दन के मुताबिक, राज्य सरकार को यह काम मुश्किल लग रहा है; क्योंकि इसमें हवाई अड्डे के आसपास रहने वाले 1,500 परिवारों को हटाने की ज़रूरत है।

कोझिकोड हवाई अड्डे की ही बात की जाए तो यह 13 अप्रैल, 1988 को खुला था। दरअसल, यह अर्थात् कालीकट हवाई अड्डा एयर इंडिया एक्सप्रेस का एक ऑपरेटिंग बेस भी है। वहाँ से मक्का मदीना और जेद्दा को हज की तीर्थयात्रा की हवाई सेवाएँ संचालित होती हैं। इसे एक व्यस्त हवाई अड्डा माना जाता है। इसे 2 फरवरी, 2006 को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का दर्जा मिला था। इसे देश के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में एक माना जाता है।

क्या होते हैं टेबल टॉप हवाई अड्डे

पहाड़ी की ऊँचाई पर बने हवाई अड्डे को टेबल-टॉप हवाई अड्डा कहा जाता है। ऐसे  हवाई अड्डों पर उड़ान भरने और लैंडिंग के लिए पायलटों को अतिरिक्त सावधानी की ज़रूरत होती है। साथ ही इसके लिए खास दक्षता भी होनी चाहिए। यह एक तरह से युद्धाभ्यास की तरह ही होती है। ऐसे हवाई अड्डों पर उड़ान तब और कठिन काम बन जाता है, जब मौसम खराब या बारिश वाला हो।

देश में शुद्ध रूप से तीन टेबलटॉप हवाई अड्डे हैं, जहाँ से अनुसूचित उड़ानें संचालित होती हैं। इनमें मंगलूरु, कोझिकोड और लेंगपुई शामिल हैं। हालाँकि हिमाचल प्रदेश के शिमला में जुब्बड़हट्टी हवाई अड्डा भी टेबल टॉप हवाई अड्डा ही है; जहाँ दोनों और खुली जगह है, जो खाई की तरफ ले जाती है। ऐसे हवाई अड्डों पर अंडर शूटिंग और ओवर शूटिंग दोनों का खतरा रहता है। ऐसे में वहाँ थोड़ी-सी असावधानी हादसे का कारण बन सकती है। मंगलूरु हादसे में यही हुआ था।

देश के कमोवेश सभी टेबल टॉप हवाई अड्डों में रन-वे के आसपास लिंकिंग रोड्स (सम्पर्क सडक़ों) की काफी कमी है। इससे हादसे की सूरत में दिक्कत आती हैं। जो सडक़ें हैं, वह या तो बहुत संकीर्ण हैं या सीधी नहीं हैं।

इमरजेंसी में इन सडक़ों में वक्त जाया होता है और बचाव कार्यों में बाधा आती है। वैसे मंगलूरु हवाई अड्डे पर जो नया रन-वे बना है, उसकी लम्बाई 2,450 मीटर है, जो बोइंग 737-800 और एयरबस 320 जैसे विमानों के परिचालन की सुविधा देता है। नया रन-वे 24/06 रात्रि लैंडिंग की सुविधा प्रदान करता है और पहले वाले ऑफसेट आईएलएस से एक आईएलएस कैट वन प्रदान करता है।

बचाव और अनिशमन सेवाओं को भी वहाँ श्रेणी 7 में अपग्रेड किया गया है। लेकिन बरसात इन हवाई अड्डों में अनेक दिक्कतें लेकर आती हैं। इनमें से कुछ जगह बरसात के मौसम में धुन्ध भी रहती है, जो स्थितियों को और कठिन बना देती है। धुन्ध और तेज़ बारिश में वहाँ दृश्यता की समस्या रहती है। मिज़ोरम की राजधानी अज़ावी से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, लेंगपुई भी एक टेबलटॉप हवाई अड्डा है। वहाँ 2,500 मीटर लम्बा रन-वे एक पठार के ऊपर स्थित है, जिसके दोनों छोर पर गहरी खाई हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, वहाँ ऑप्टिकल भ्रम बनता है, जो लैंडिंग के समय थोड़ी-सी चूक होने पर ही हादसे का कारण बन सकता है। वैसे यही चीज़ मंगलूरु और कोझिकोड के हवाई अड्डों में भी है।

हिमाचल प्रदेश के शिमला के जुब्बड़हट्टी हवाई अड्डे पर एक समय में दो छोटे विमान रखने की जगह है। वहाँ कुछ साल पहले भूमि कटाव के कारण यह तीन साल से अधिक समय तक बन्द रहा। बाद में इसे शुरू किया गया; लेकिन इसका रन-वे सिकुड़ गया।

सोर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित थे साठे

कोझीकोड विमान हादसे में एयर इंडिया एक्सप्रेस के शहीद पायलट कैप्टन दीपक वसन्त साठे और को-पायलट अखिलेश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर था। दीपक साठे तो देश के बेहतरीन पायलट में एक गिने जाते थे। एयर इंडिया के यात्री विमान से पहले साठे 22 साल तक एयरफोर्स में विंग कमांडर के रूप में सेवा दे चुके थे। उन्होंने अपनी इस सेवा के दौरान मिग-21 जैसे लड़ाकू विमान भी उड़ाये। यही नहीं वे सोर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित पायलट थे। उनके भाई पाकिस्तान से कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गये थे, जबकि पिता सेना में ब्रिगेडियर रिटायर हुए थे। साठे ने 11 जून, 1981 में एयरफोर्स वाइन किया और कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। कैप्टन साठे को नेशनल डिफेंस एकेडमी के 58वीं कोर्स में गोल्ड मेडल मिला था। इसके बाद उन्होंने एयरफोर्स एकेडमी वाइन की। वहाँ 127वें पायलट कोर्स में उन्होंने टॉप किया और इसके लिए उन्हें सोर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया। वह काफी समय तक गोल्डन एरो 17 स्क्वार्डन का हिस्सा रहे, जिसे हाल ही में राफेल फाइटर प्लेन की ज़िम्मेदारी दी गयी है। वे 30 जून 2003 को वायुसेना से सेवानिवृत्त हो गये और एयरलाइन कम्पनियों को अपने अनुभव से मदद करनी शुरू की। वह एयर इंडिया एक्सप्रेस की बोइंग 737 फ्लाइट उड़ाने से पहले एयरबस 310 भी उड़ा चुके हैं। हिन्दुस्तान एयरोनॉटिकल के वह टेस्ट पायलट भी रहे। उनकी शानदार परफॉरमेंस के चलते एयरफोर्स एकेडमी ने भी उन्हें सम्मानित किया था। सह-पायलट अखिलेश कुमार के चचेरे भाई बासुदेव ने बताया कि वह बहुत विनम्र और अच्छे व्यवहार वाले व्यक्ति थे। उनकी पत्नी अगले 15-17 दिनों में बच्चे को जन्म देने वाली हैं। वह 2017 में एयर इंडिया में शामिल हुए थे और लॉकडाउन से पहले घर आये थे।

देश के 11 हाई रिस्क हवाई अड्डे

देश में 11 ऐसे हवाई अड्डे हैं, जिन्हें हाई रिस्क की सूची में रखा गया है। जब 2010 मंगलूरु में एयर इंडिया का विमान टेबल टॉप हवाई अड्डे पर हादसे का शिकार हुआ था, उसके बाद नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डी.जी.सी.ए.) ने इन हवाई अड्डों की एक सूची तैयार की थी। इस सूची का मकसद इन हवाई अड्डों पर खतरों को टालने वाले उपाय करना था, ताकि हादसों के खतरे को कम या खत्म किया जा सके। लेकिन इन दस वर्षों में इन हवाई अड्डों पर कुछ काम नहीं हुआ, या नाम मात्र को ही हुआ। इन हवाई हड्डों में केरल के कोझिकोड का हवाई अड्डा भी शामिल है। हाई रिस्क चिह्नित इन हवाई अड्डों में कोझिकोड के अलावा, लेह, भुंतर (कुल्लू, हिमाचल प्रदेश), जुब्बड़हट्टी (शिमला, हिमाचल प्रदेश), पोर्ट ब्लेयर (अंडमान निकोबार), अगरतला (त्रिपुरा), लेंगपुई (मिजोरम), मैंगलोर (कर्नाटक), सतवारी जम्मू (जम्मू कश्मीर), पटना (बिहार) और लातूर (महाराष्ट्र) शामिल हैं। हाई रिस्क श्रेणी में होने के नाते वहाँ कुछ न्यूनतम सुरक्षा उपाय ज़रूरी होते हैं; लेकिन इस स्तर पर कुछ खास नहीं हुआ है या जो हो रहा है, वह कछुए की चाल से हो रहा है।

भारत में विमान हादसे

-7 जुलाई, 1962 – सिडनी से आ रहा विमान मुम्बई के उत्तर पूर्व में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में कम-से-कम 94 लोगों की मौत हुई थी।

-पहली जनवरी, 1978 – दुबई से मुम्बई के लिए उड़ान भरने वाले एयर इंडिया के विमान के बांद्रा के पास दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से 213 लोगों की मौत हो गयी थी।

-21 जून, 1982 – कुआलालंपुर से चेन्नई आ रहे एयर इंडिया के विमान के मुम्बई के सहारा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दुम्र्घटनाग्रस्त हो जाने से 99 लोगों की मौत हो गयी थी।

-23 जून, 1985 – मॉट्रियल से लंदन और दिल्ली के रास्ते मुम्बई आ रहा एयर इंडिया का विमान आयरिश हवाई क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में 329 लोगों मौत हुई थी।

-19 अक्टूबर, 1988 – इंडियन एयरलाइंस का मुम्बई से आ रहा विमान अहमदाबाद हवाई अड्डे पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में 130 लोगों की मौत हुई थी।

-14 फरवरी, 1990 – इंडियन एयरलाइंस का मुम्बई से उड़ान भरने वाला विमान बेंगलूरु हवाई अड्डे पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में 92 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 54 को बचा लिया गया था।

-16 अगस्त, 1991 – कोलकाता से उड़ान भरने वाला इंडियन एयरलाइंस का विमान इम्फाल से 40 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में एक पहाड़ी से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में 69 लोगों की मौत हो गयी थी।

-26 अप्रैल, 1993 – दिल्ली से जयपुर और उदयपुर के रास्ते मुम्बई जा रहा इंडियन एयरलाइंस का विमान औरंगाबाद के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस हादसे में 63 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि पाँच को बचा लिया गया था।

-12 नवंबर, 1996 – यह हादसा बेहद अजीब था, क्योंकि ये आसमान में हुआ था। नई दिल्ली में हवाई अड्डे के निकट हरियाणा के चरखी दादरी के ऊपर 4000 मीटर की ऊँचाई पर सउदी एयरलाइंस के बोइंग 747 और कज़ाकिस्तान के इल्यूशिम आईएल 76 की टक्कर हो गयी थी। बोइंग पर सवार 312 और इल्यूशिन पर सवार 37 लोगों की मौत हो गयी थी। इस हादसे में कुल 349 लोगों की मौत हुई थी।

-17 जुलाई, 2000 – एलायंस एयर का विमान पटना हवाई अड्डे के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में 60 लोगों की मौत हो गयी थी।

-भारत के बड़े प्लेन हादसों में सन् 2010 में हुआ मंगलूरु प्लेन हादसा शामिल है। एयर इंडिया का एक विमान मंगलूरु एयरपोर्ट पर लैंडिंग के दौरान चट्टान से टकरा गया। हादसे की वजह से 160 लोगों की मौत हो गयी थी।

-साल 2010 में ही जुलाई में बिहार के पटना में एक प्लेन क्रैश हो गया था। ये प्लेन एयरपोर्ट से दो किलोमीटर दूर एक रिहायशी इलाके में क्रैस हुआ, जिसमें 55 लोगों क मौत हो गयी थी।

-जून, 2018 में मुम्बई के भीड़भाड़ वाले एक इलाके में 12 सीटों वाले एक विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से दोनों पायलटों, दो विमान रखरखाव इंजीनियरों और एक पदयात्री की मौत हो गयी।

यह विमान घाट कोपर टेलीफोन एक्सचेंज के समीप ओल्ड मलिक एस्टेट में दुर्घटनाग्रस्त हुआ।

-कोझिकोड में 7 अगस्त, 2020 को हुए हादसे में यह रिपोर्ट लिखे जाने तक 18 लोगों की मौत हुई, जिसमें दोनों पायलट भी शामिल हैं।

नागरिक उड्डयन महानिदेशालय को साल 2015 में रन-वे के साथ कुछ दिक्कत थी, लेकिन उसे सुलझा लिया गया था। बाद में साल 2019 में इसे मंज़ूरी भी दे दी गयी थी। एयर इंडिया के जंबो जेट्स को भी वहाँ उतारा गया है। हादसे का शिकार विमान उस रन-वे पर किसी कारण से नहीं उतर पाया था, जहाँ उसे उतरना था।

अरविंद सिंह, चेयरमैन, ए.ए.आई.

‘लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना’

इसे कोरोना वायरस जैसी महामारी फैलने का बहाना कहें या सन् 2020 की त्रासदी? इस साल के शुरू से अब तक दुनिया भर में लाखों लोग काल के गाल में समा गये। कई बड़ी हस्तियाँ भी विस्मित कर देने वाली दशा में चल बसीं। ऐसी ही मशहूर-ओ-मकबूल हस्ती, अज़ीम शाइर राहत इंदौरी ने भी 11 अगस्त के दिन दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके दुनिया से चले जाने की खबर से दबिस्तान-ए-अदब को एक झटका-सा लगा है। झटका यूँ भी लगा, क्योंकि किसी को भी इसकी कतई उम्मीद नहीं थी कि राहत इंदौरी यूँ अचानक उठकर चले जाएँगे।

उनसे मेरी कुछेक मुलाकातें यूँ ही मुशायरों में शाइर और सामयीन की तरह चलते-फिरते दुआ-सलाम की तरह ही हुई थीं। लेकिन नवंबर, 2019 में जब मैंने ‘तहलका’ में ज़िम्मेदारी सँभाली, तब अपने सम्पादकीय वरिष्ठों से ‘साहित्य’ नाम से साहित्यिक सामग्री प्रकाशित करने की इजाज़त माँगी; जो मुझे सहर्ष मिल भी गयी। तब मैंने निर्णय लिया कि कुछ बड़े शाइरों-कवियों के साक्षात्कार प्रकाशित किये जाएँ। इस फेहरिश्त में दुनिया भर में मशहूर शाइर राहत इंदौरी का नाम भी था। मेरे पास उनका फोन नम्बर नहीं था, जो मैंने उनके अज़ीज़ दोस्त मशहूर शाइर मुनव्वर राणा से लिया। जब मेरी फोन पर मुहतरम राहत इंदौरी से बात हुई, तो मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि वह मुझे मेरे नाम से पुकारेंगे।

हो सकता है कि यह मोबाइल एप ट्रू-कलर का कमाल हो या फिर मुमकिन है कि उन्हें उनके साक्षात्कार की मेरी ख्वाहिश के बारे में मुनव्वर राणा साहब ने बता दिया हो। फोन उठते ही आवाज़ आयी- ‘जी, प्रेम भाई! नमस्कार।’ मैंने हैरत भरे अंजाज़ में बड़े अदब से उन्हें सलाम किया और हालचाल पूछने के बाद अपने दिल की बात उनके सामने रखी।

उन्होंने बड़ी मुहब्बत और आत्मीयता से कहा- ‘प्रेम भाई! इंशा अल्लाह जल्द ही दिल्ली आऊँगा और आपसे मिलूँगा।’ ‘ठीक है हुज़ूर! मैं इंतज़ार करूँगा।’ -मैंने कहा और उन्होंने जैसे मुस्कुराते हुए कहा- ‘आपकी मुहब्बतें प्रेम भाई! अल्लाह ने चाहा, तो जल्द मुलाकात होगी। नमस्कार’ मेरे मुँह से निकला- ‘नमस्कार हुज़ूर! अल्लाह हाफिज़।’ उधर से आवाज़ आयी- ‘अल्लाह हाफिज़ प्रेम भाई!’ मेरे कानों में पड़े यह उनके आखरी अल्फाज़ थे, जो 11 अगस्त को उनके दुनिया से अलविदा कह देने की खबर के साथ अचानक मेरे कानों में फिर से गूँज गये। राहत इंदौरी के इंतकाल फरमा जाने की खबर से मैं सन्न था, मेरे मुँह से सिर्फ इतना निकला- ओह! यह क्या हो गया?

राहत इंदौरी ऐसी शिख्सयत थे, जिन्हें दुनिया भर में बेहद मुहब्बत मिली; लेकिन हिन्दुस्सान में ही कुछ लोगों की वजह से उन्हें विवादों का सामना भी करना पड़ा। खैर, मैं उस मामले में नहीं जाना चाहता, लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि राहत इंदौरी अपने देश और देशवासियों से बहुत मुहब्बत करते थे। यह उनकी शाइरी में कई जगह साफ देखने को मिलता है। हर बात को शाइरी में ढाल देना और गम्भीर-से-गम्भीर बात को हँसते-हँसते बड़े लाजवाब अंदाज़ में कह देना इस अज़ीम शाइर का सबसे बड़ा फन था। वह कहते हैं :-

‘मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना।

लहू से  मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना।।’

‘दो गज़ सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है।

ऐ मौत  तूने  मुझको ज़मींदार कर दिया।।’

‘जनाज़े पर मेरे लिख देना यारो,

मोहब्बत करने वाला जा रहा है।’

मैं उन्हें गलत ठहराने वालों से इतना ही कहना चाहूँगा कि जिसने आपको कभी नफरत नहीं बाँटी, उससे आप नफरत क्यों और कैसे कर सकते हैं? लिखने को बहुत कुछ है और उन पर कई दीवान लिखे जा सकते हैं; लेकिन जगह का अभाव है। अन्त में इतना ही कहना चाहूँगा कि राहत इंदौरी का जिस्म सुपुर्द-ए-खाक हुआ है, पर राहत इंदौरी हिन्दुस्तान की आब-ओ-हवा, हिन्दोस्तानियों के दिलों में ज़िन्दा हैं, ज़िन्दा रहेंगे और दुनिया रहने तक उनकी शाइरी लोगों को उनकी याद दिलाती रहेगी। अंत में :-

नाम हमेशा रहता है, जो लोगों को अज़बर है।

खाक सुपुर्द-ए-खाक हुई, ‘राहत’ दिल के अन्दर है।।

मध्य-पूर्व गठबन्धन में बदलाव अब पाकिस्तान बनाम सऊदी अरब

यह तो सर्वविदित है कि पाकिस्तानी सत्ता का केंद्र सेना मुख्यालय यानी जनरल हेड क्वार्टर (जीएचक्यू) रावलपिंडी है। लेकिन पाकिस्तान में क्रिकेटर से राजनेता बने प्रधानमंत्री इमरान खान ने चीन के बैनर तले तुर्की, ईरान और मलेशिया के साथ नये गठबन्धन को मज़बूत करने के लिए अपने घनिष्ठ मित्र सऊदी अरब से रिश्ते खत्म करने का फैसला किया है।

दोनों देशों के बीच खटास आने के बाद सऊदी अरब ने पाकिस्तान के साथ लम्बे समय के लिए कर्ज़ कर तौर पर माँग के हिसाब से पेट्रोल देने के कुछ बिलियन डॉलर के करार को पिछले दिनों खत्म कर दिया। इससे दोनों सहयोगियों के बीच रिश्तों की खाई बढ़ गयी।

पाकिस्तान को लगता रहा है कि वह परमाणु सम्पन्न देश है और क्षेत्र में इस्लामी सरकार का प्रतिनिधित्व करता है; इसलिए अरब दुनिया को उसकी ज़्यादा ज़रूरत है। आश्चर्यजनक यह भी है कि दोनों देशों के बीच मज़बूत रक्षा और वित्तीय रिश्ते रहे हैं। पाकिस्तानी सेना की एक ब्रिगेड सऊदी अरब की राजधानी रियाद में तैनात है। इसने अरबों को आधुनिक युद्ध के लिए प्रशिक्षण तक दिया है।

पाकिस्तान के बारे में ऐसा माना जाता है कि स्थापित विदेश नीति में बदलाव के लिए जीएचक्यू फैसला करता है और इसमें चीन का असर न हो, ऐसा सम्भव नहीं है। इससे पहले इस तरह का असर अमेरिकी-अरब एजेंडे के हिसाब से होता था। देश में प्रधानमंत्री एक कठपुतली की तरह है, असल में विदेश नीति बदलने का निर्णय तो सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ही करते हैं। देश के अधिकांश राजनेताओं को भ्रष्ट लोकतंत्र के नाम पर भ्रष्टाचार के आरोपों में फँसा दिया गया। इस तरह बाजवा देश के एकमात्र शासक हैं। वह पाकिस्तान को अंतत: चीनी प्रभाव की ओर ले जा रहे हैं; खासकर जब कोविड-19 को लेकर अमेरिका और चीन एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। चीन को इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी घेरा जा रहा है।

लंदन में पाकिस्तानियों द्वारा संचालित एक लोकतंत्र समर्थक चैनल ने तो इमरान खान को बेशर्म, बेगैरत और गद्दार जैसे शब्दों से सम्बोधित किया। उन्होंने खान के परिवार में भ्रष्टाचार के इतिहास की भी पड़ताल की। इसमें बताया गया कि उनके पिता को तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के शासन-काल में घूस लेने के जुर्म में सरकारी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। इसके अलावा अपने देश से बाहर रहने वाले अधिकांश पाकिस्तानी गृह युद्ध के लिए अपनी सेना को ही ज़िम्मेदार ठहराते हैं, जिससे पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर एक अलग देश बांग्लादेश बना। वह तो यहाँ तक कहते हैं कि बाजवा और उनके कठपुतली खान, अंतत: बलूचिस्तान को चीन को सौंप सकते हैं।

अमेरिका ने भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ इन देशों के हालात को लेकर गहराई में जाने का दावा करके लगातार दबाव बनाया और वह जीएचक्यू को आश्वस्त करने में कामयाब रहा कि चीन की तुलना में अमेरिका उसके लिए ज़्यादा विश्वसनीय सहयोगी और संरक्षक है। उसे अब पश्चिमी देशों या अरब की ओर देखने की ज़रूरत नहीं है। इस बीच चीन ने भी सऊदी अरब का भारी-भरकम कर्ज़ भुगतान करने के लिए पाकिस्तान को भारी वित्तीय मदद दी है। ईरान-चीन के बीच समझौता होने के साथ शायद पाकिस्तान की ईंधन की ज़रूरत की भरपाई बिना किसी दिक्कत के पूरी हो सकती है। इससे उसकी सऊदी अरब पर निर्भरता की आवश्यकता नहीं होगी।

इससे पहले मध्य-पूर्व में सत्ता समीकरणों में बदलाव की शुरुआत तब हुई थी, जब सितंबर 2019 में सऊदी के अरामको के अबकैद और खराइस में तेल के कुओं पर ड्रोन से हमले किये गये थे। ऐसा माना जाता है कि ये हमले ईरान की ओर से कराये गये। हालाँकि यमन के हूती विद्रोहियों ने हमले किये जाने का दावा किया था। सऊदी अधिकारियों ने बताया था कि इस हमले में ईरानी मिसाइलों और बमों का इस्तेमाल किया गया था।

पाकिस्तान अब तुर्की और मलेशिया के साथ नये गठजोड़ करने की कोशिश कर रहा है। इससे पहले उसने यमन, इराक और लीबिया के क्षेत्र में विवादों पर तटस्थ रहने की नीति अपनायी थी।

जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान की नीति का समर्थन करने से इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) के इन्कार किये जाने के बाद अरब दुनिया से उसकी निराशा बढ़ गयी। सेना के अपने आकलन में चीन के साथ क्षेत्र में पाकिस्तान की बड़ी और मुखर भूमिका का अहसास हुआ। इससे यह भी पता चलता है कि जीएचक्यू ने देश में मूक आवाज़ों को नज़रअंदाज़ करने का भी फैसला किया है। नज़म सेठी जैसे राजनीतिक मामलों के जानकारों ने आगाह किया था कि ऐसा कदम पाकिस्तान के लिए आत्मघाती होगा, यदि वह चीन के साथ गठबन्धन के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अपने विश्वसनीय सहयोगियों को छोड़ता है। उनका आकलन था कि संयुक्त राज्य अमेरिका की वित्तीय और सैन्य शक्ति का मिलान करने में चीन को एक और दशक लगेगा।

अधिकांश राजनीतिक टिप्पणीकारों का मानना है कि पाकिस्तान को सऊदी अरब जैसे विश्वसनीय मित्र के साथ अपने सम्बन्धों को सुधारना होगा। हालाँकि उनमें से एक वर्ग इस बात से आश्वस्त है कि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की नाराज़गी सऊदी के लिए कर्ज़ वापसी की आवेगी प्रतिक्रिया नहीं थी; खासकर तब, जब देश गहरे वित्तीय संकट से जूझ रहा हो। यह भी बताया जा रहा है कि चीन को छोडक़र, पाकिस्तान के नये सहयोगी, मलेशिया और तुर्की देश की ज़रूरतों के लिए बहुत ज़्यादा वित्तीय सहायता देने की स्थिति में नहीं हैं। इसका मतलब है कि हमें सऊदी अरब के साथ अपने सम्बन्धों को लेकर पुनर्विचार करना होगा। यह भी सवाल किया जा रहा है कि पाकिस्तान को सऊदी अरब से नाराज़गी क्यों होनी चाहिए? जब चीन सऊदी अरब के साथ-साथ ईरान से भी अपने अच्छे सम्बन्ध बनाये हुए है। इस बीच चीन की रणनीति यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों से पहले इस क्षेत्र में वह अपने नये गठबन्धनों को और मज़बूत बना ले। पश्चिमी देशों से इतर चीन इस बात के लिए उत्सुक है कि पाकिस्तान इस क्षेत्र में उसकी नीतियों को अपनाये।

कुल मिलाकर कह सकते हैं कि जीएचक्यू ने चीन की उस राय को गम्भीरता से लिया है; जिसमें कहा गया है कि चुनावों के बाद अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापारिक टकराव को खत्म करने के लिए नया दौर शुरू होगा, जिससे उनके व्यापारिक रिश्ते और मज़बूत होंगे।

(गोपाल मिश्रा नई दिल्ली स्थित स्वतंत्र स्तंभकार हैं।)

जूनागढ़ पर पाकिस्तान का दावा

भारत के हालिया इतिहास की दो दिलचस्प घटनाएँ हैं। जम्मू और कश्मीर की रियासत का विलय और जूनागढ़ को सौराष्ट्र में मिलाना, जो अब गुजरात का हिस्सा है। जम्मू-कश्मीर के मामले में पाकिस्तान ने दावा किया कि चूँकि यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र था, इसलिए इसका नये बने मुस्लिम होमलैंड में विलय करना चाहिए। हालाँकि जूनागढ़, जो कि हिन्दू बहुल क्षेत्र है; के मामले में उसका कहना है कि यह इसलिए पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए; क्योंकि इसके शासक ने पाकिस्तान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। जम्मू-कश्मीर की रियासत के हिन्दू शासक, महाराजा हरि सिंह, नये बने इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान के शासक मुहम्मद अली जिन्ना के साथ स्थायी समझौते पर हस्ताक्षर करते हैं, और राज्य के भविष्य के बारे में अंतिम निर्णय लेने से पहले अपने विषयों के लिए कुछ समय देने का अनुरोध करते हैं। इस प्रकार अगर जूनागढ़ के परिग्रहण को स्वीकार कर लिया जाता है, तो महाराजा के निर्णय को भी चुनौती नहीं दी जा सकती।

महाराजा के साथ समझौते की स्याही सूखने से पहले ही इसे डस्टबिन में फेंक दिया गया था। जिन्ना ने राज्य को बल से साथ मिलाने का फैसला किया। पाकिस्तानी सेना, तब भारत के अन्तिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के पसन्दीदा ब्रिटिश जनरल सर फ्रैंक मेसर्वी के तहत थी और उन्हें यह कार्य सौंपा गया था। इसे मेसर्वी के लिए एक आसान कार्रवाई माना गया था; क्योंकि राज्य की सडक़ और रेल सम्पर्क पंजाब क्षेत्र के माध्यम से था, जो अब पाकिस्तान के अधीन है। मुस्लिम सैनिकों की एक छोटी-सी टुकड़ी, जिन पर महाराजा का भरोसा था, हमलावर सेना में शामिल हो गये। पाकिस्तानी का नियंत्रण लगभग हो चुका था, जब भारतीय सेना श्रीनगर में प्रवेश कर गयी।

पाकिस्तानी-ब्रिटिश षड्यंत्र को अंतत: भारतीय सेना और कश्मीरी नेता, शेख अब्दुल्ला और उनकी पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने नाकाम कर दिया था। अब्दुल्ला की पार्टी ने जिन्ना के दो-राष्ट्र सिद्धांत की सदस्यता नहीं ली। उन्होंने मुस्लिम सामंती और भू-स्वामियों वाले पाकिस्तान की भूमि की तुलना में लोकतांत्रिक भारत को प्राथमिकता दी।

ऐसा प्रतीत होता है कि सौभाग्य से जनरल मेसर्वी को फज़ीहत से बचाने के लिए माउंटबेटन ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जोड़-तोड़ करके संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में संघर्ष विराम के लिए मना लिया। इसके बाद मेसर्वी ने फरवरी, 1948 में चुपचाप पाकिस्तान छोड़ दिया और एक और ब्रिटिश सर डगलस ग्रेसी को उनकी जगह नियुक्त किया गया, जो अगले तीन साल तक पद पर रहे; जब तक कि अंग्रेजों को मूल मुस्लिमों में से एक उपयुक्त सेना प्रमुख नहीं मिल गया। ग्रेसी के कार्यकाल में ही पाकिस्तानी सेना की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) बनायी गयी, जो आज जम्मू-कश्मीर में हो रही हिंसा के पीछे है।

जूनागढ़ के मामले में निवर्तमान औपनिवेशिक ताकत और सिन्ध के भू-स्वामियों के पसन्दीदा शाह नवाज़ भुट्टो को नवाब मुहम्मद महाबत खान-तृतीय के दरबार में अपने दीवान या प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। ब्रिटिश रक्षक होने के कारण जूनागढ़ के शासक को उच्च नियुक्तियों के लिए ब्रिटिश सरकार की स्वीकृति लेनी पड़ती थी। भुट्टो की नियुक्ति से पहले नवाब के संवैधानिक सलाहकार नबी बख्श ने माउंटबेटन से कहा था कि उनका सुझाव था कि जूनागढ़ भारत में शामिल हो। हालाँकि भुट्टो ने इस कोशिश को नाकाम कर दिया।

हालाँकि 15 अगस्त, 1947 को दीवान भुट्टो की सलाह पर नवाब ने पाकिस्तान में विलय का फैसला किया। 13 सितंबर, 1947 को पाकिस्तान ने यह भी अधिसूचित किया कि यह विलय स्वीकार किया जाता है। जूनागढ़ के अधिकांश लोगों ने विद्रोह कर दिया, जिससे राज्य सरकार का पतन होते-होते बचा और भारत को अपनी सेना को जूनागढ़ भेजना पड़ा। दिसंबर, 1947 में एक जनमत संग्रह आयोजित किया गया, जिसमें 91 फीसदी आबादी ने भारत में शामिल होने का समर्थन किया। पाकिस्तान के हक में इस बाद के जनमत संग्रह में केवल 91 मत थे।

इन दोनों घटनाओं के अलग-अलग सन्दर्भ हैं। यदि तत्कालीन शासक का हस्ताक्षरित विलय स्वीकार किया जाता है, तो पाकिस्तान को यह स्वीकार करना होगा कि उसका जम्मू-कश्मीर पर कोई दावा नहीं है। भले यह तर्क स्वीकार कर लिया जाए कि कश्मीरियों ने बहुमत के साथ भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के विलय के समर्थन में राज्य विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया है। जनमत संग्रह के मुद्दे पर इसने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बावजूद कब्ज़े वाले कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों से सैनिकों को वापस नहीं किया।

यह व्यापक रूप से माना जाता है कि चीन और नेपाल से प्रेरित पाकिस्तान नयी आक्रामक मुद्राएँअपना रहा है। क्रिकेटर से राजनेता बने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान का एक नया नक्शा ही बना डाला है, जिसमें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, सर क्रीक और जूनागढ़ सभी उसके हिस्से में शामिल दिखाये गये हैं। इस बीच एक अल्पकालिक ऋण के रूप में पाकिस्तान को दिये गये एक बिलियन अमेरिकी डॉलर (100 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की वापसी की माँग के साथ पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच सम्बन्ध निम्न स्तर पर पहुँच गये हैं। अरब सहयोगी के साथ बकाया निपटाने के लिए पाकिस्तान ने चीन से उच्च ब्याज दरों पर ऋण लिया। उसने इस क्षेत्र को और अधिक चीनी नीतियों के अधीन कर दिया है।

जम्मू-कश्मीर में पाक्सितान के लम्बे समय तक आतंकवादी अभियानों के बावजूद कश्मीर में कोई भी पाकिस्तान में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है। एक वर्ग स्वतंत्र कश्मीर के हक में ज़रूर हो सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह नया मानचित्र इमरान खान की सरकार की गिरती साख को बचाने की एक कोशिश हो सकती है।

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि मानचित्र उसकी एक बेतुकी कसरत के अलावा कुछ नहीं, जो भारत के क्षेत्रों के बिना सिर-पैर के दावे करता रहता है। उन्होंने कहा कि इन हास्यास्पद दावों की न तो कानूनी वैधता है और न ही अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता। बयान में कहा गया है कि नये नक्शे के जारी होने से सीमा पार से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के इरादों की पुष्टि होती है। इस बीच सेना प्रमुख का समर्थक माने जाने वाले पाकिस्तानी मीडिया ने खान और उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की चीन से नये ऋण को लेने के मामले में देश को अँधेरे में रखने का आरोप लगातार उनकी आलोचना शुरू कर दी है।

यह अब दुनिया भर को पता चल गया है कि चीन भारत को अपने पड़ोसियों के साथ यथासम्भव विवाद में उलझाये रखने की कोशिश में है। यदि नेपाल में चीनी राजदूत नेपाली सरकार को भारतीय क्षेत्रों पर दावा करने के लिए उकसा सकता है, तो पाकिस्तान का नया दावा भी इस क्षेत्र में चीन की शरारत का हिस्सा हो सकता है।

सन् 2019 में अपनी भारत यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने माँग की थी कि भारत को जम्मू-कश्मीर को संवैधानिक दर्जा बहाल करना चाहिए। भारत इससे चौंका ज़रूर था। इसके बाद तिब्बत और भारत के बीच लम्बी हिमालयी सीमाओं के साथ चीनी सैन्य गतिविधियाँ शुरू हुईं, जिसके कारण जून 2020 में गलवान की झड़पें हुईं। क्षेत्र में चीन ने ईरान को भारी धनराशि का वादा किया है; लेकिन पश्चिम में निर्यात में गिरावट के कारण ईरान को भारी वित्तीय सहायता की भविष्यवाणी करना मुश्किल है।

पाकिस्तान के भीतर भी इमरान सरकार के तथाकथित साहसिक दावों के कुछ गिने-चुने ही समर्थक हैं। दो प्रमुख राजनीतिक दलों- पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन  (पीएमएल-एन) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने अब तक नये नक्शे का समर्थन नहीं किया है। इस बीच पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी की भ्रष्टाचार के मामले में फिर से गिरफ्तारी ने खान सरकार को और कमज़ोर कर दिया है, जो केवल सेना मुख्यालय की मदद से चल रही है। पीएमएल-एन के प्रमुख नेताओं में से एक अब्बासी को लाहौर में उनके वाहन को रोकने के बाद पुलिस हिरासत में ले लिया गया था। गिरफ्तारी वारंट पर राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) के अध्यक्ष ने हस्ताक्षर किये थे।

एनएबी भ्रष्टट्राचार विरोधी निगरानी तंत्र है, जो केवल राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई करती है; लेकिन भ्रष्ट सैन्य अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है, जिन्होंने जनता के कल्याण के लिए आवंटित पैसे को हड़पकर भारी धन अर्जित किया है।

अब्बासी 2017 और 2018 के बीच प्रधानमंत्री के रूप में अपने वर्ष के दौरान लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) अनुबन्धों पर हस्ताक्षर करने में भ्रष्टाचार के आरोपी हैं। अब्बासी ने भविष्यवाणी की है कि अगर विरोधियों को मामलों में फँसाने ने की ये नीतियाँ जारी रहती हैं, तो पाकिस्तान नहीं बचेगा।

इससे पहले एनएबी ने पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी को गिरफ्तार किया था; जो पीपीपी के प्रमुख हैं। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम नवाज़ ने भी पहले एक वीडियो जारी किया था, जिसमें भ्रष्टाचार विरोधी न्यायाधीश, जिसने उनके पिता को दोषी ठहराया था; को यह स्वीकार करते हुए दिखाया गया है कि ये फैसले देने के लिए उन्हें ब्लैकमेल किया गया था। हालाँकि न्यायाधीश ने वीडियो की प्रामाणिकता से इन्कार किया था; लेकिन उन्हें उनके पद से निलंबित कर दिया गया था।

विपक्षी नेताओं के खिलाफ इन कार्रवाइयों के बीच देश के भीतर पाकिस्तान के नये नक्शे के गिने-चुने ही समर्थक हैं। यह 4 जुलाई को जारी किया गया था, जो भारत सरकार के संविधान के अनुच्छेद-370 के तहत जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने का एक साल होने के एक दिन पहले जारी किया गया था।

(गोपाल मिश्रा नई दिल्ली स्थित स्वतंत्र स्तंभकार हैं। उपरोक्त उनके निजी विचार हैं।)

ज़हरीली शराब की त्रासदी

पंजाब में ज़हरीली शराब से 121 लोगों की मौत के लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकते; क्योंकि यह उनकी सीधी ज़िम्मेदारी बनती है। न ही वह इस संगीन मामले को राजनीतिक दलों के इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने का बहाना बनाकर अपना पल्ला झाड़ सकते हैं। बता दें तरनतारन में ज़हरीली शराब के सेवन से सबसे ज़्यादा लोगों की मौत हुई है। उसके बाद अमृतसर और बटाला के लोग ज़्यादा मरे हैं। घटना में मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है; क्योंकि अस्पतालों में कई लोग गम्भीर हैं। इस ज़हरीली शराब के चलते बहुत-से लोग आँखों की रोशनी खो चुके हैं, तो कुछ सदमे जैसी हालत में हैं। प्रभावितों में ज़्यादातर गरीब या मध्य वर्ग के हैं। कई परिवारों में तो मुखिया या ज़िम्मेदार व्यक्ति की ही मौत हो गयी, जिससे परिवार के भरण-पोषण का संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि घर में और कोई कमाने वाला नहीं है।

समस्या यह है कि बहुत बड़ी संख्या में निम्न और मध्यम वर्गीय लोग नशे के आदी तो हैं, मगर महँगी शराब पी नहीं सकते। इसलिए सस्ती शराब से नशा करते हैं और इसी लालच में बड़ी आसानी से माफिया के चंगुल में फँस जाते हैं। सरकारी ठेके से जितनी शराब उन्हें 50 से 60 रुपये में मिलती है, उतनी शराब तस्करों से उन्हें 20 से 30 रुपये में बड़ी ही आसानी से मुहैया हो जाती थी। हैरत की बात यह है कि राज्य के दूरदराज़ इलाकों से यह अवैध शराब बड़ी आसानी से गाँवों तक बिना किसी रोक-टोक और दिक्कत के पहुँच जाया करती थी। दरअसल शराब माफिया का नेटवर्क इतना बड़ा है कि छोटे से गाँवों में भी इनके कारिंदे आसानी से धन्धा कर रहे हैं। प्रदेश में नकली शराब के लिए कच्चे माल की कोई कमी नहीं है, इसलिए दिन दुनी रात चौगुनी के हिसाब से काम चलता रहा है। सरकारी ठेकों के समान्तर चलने वाली यह अवैध व्यवस्था राज्य में काफी समय से चल रही थी। लेकिन सरकार जान-बूझकर इससे अनजान बनी रही; नतीजा सैकड़ों लोगों को बेवजह मौत का शिकार होना पड़ा।

देश में सबसे ज़्यादा अन्न उत्पादक पंजाब के दामन पर करीब दो दशक से नशे का दाग लगा हुआ है। नतीजतन युवाओं का एक बड़ा वर्ग हेरोईन, ब्राउन शुगर, अफीम, पोस्त, नशीले कैप्सूल, टेबलेट्स और इंजेक्शन का आदी हो चुका है। नशे से राज्य की छवि भी धूमिल हुई है। चुनाव में नशा एक मुद्दे के तौर पर उभरता रहा है। दुर्भाग्य की बात यह कि कोई भी सरकार इस पर नियंत्रण नहीं पा सकी है।

कांग्रेस सरकार ने अपने एजेंडे में इसे वरीयता दी, और नशा तस्करी पर लगाम कसने की कोशिश में कुछ हद तक काबू पाने की मंशा दिखायी; लेकिन इसे खत्म नहीं किया जा सका। राज्य में ड्रग्स माफिया की तरह शराब माफिया भी सक्रिय हैं। इसी के चलते माझा इलाके में बड़ी त्रासदी हो गयी, जिसे समय रहते टाला जा सकता था; अगर सरकार इसे पहले ही गम्भीरता से लेती। जो पुलिस अब गाँव-गाँव जाकर दबिश देकर अवैध शराब बरामद कर रही है। फैक्ट्रियों का पता लगा रही है। धन्धा करने वाले लोगों को पकड़ रही है। क्या पुलिस यह सब पहले नहीं कर सकती थी?

इससे पहले कई थानों में अवैध शराब बिक्री की शिकायतें दर्ज हुईं; लेकिन किसी मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यह सब मिलीभगत से चल रहा था। शराब माफिया पुलिस और आबकारी विभाग के संरक्षण में बे-खटके काम कर रहे थे। त्रासदी में अपने बेटे को खो चुकी एक महिला कहती है कि कितनी बार पुलिस को बताया कि गाँव में अवैध रूप से शराब बिक रही है। पुलिस को लोगों (शराब माफिया) के नाम भी बताये; लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। अगर की होती, तो उसका बेटा बे-मौत नहीं मरता। वह नशा करता था; लेकिन यह क्या पता था कि कभी वह शराब की जगह ज़हर ही पी लेगा और अपने साथ-साथ पूरे परिवार को भी बर्बाद कर देगा। वह कहती है कि शराब बेचने वाले कहते हैं कि हमारा कुछ नहीं बिगड़ सकता; क्योंकि हमारी पहुँच ऊपर तक है। उनके पास हर माह पैसा पहुँचता है। ऐसे में कोई क्या कर सकता है? सरकार के मुखिया होने के अलावा कैप्टन अमरिंदर सिंह पुलिस और आबकारी मंत्रालय भी सँभालते हैं। दोनों विभागों के कई अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है। इसी के चलते करीब एक दर्जन आबकारी और पुलिस विभाग के लोगों को निलंबित किया जा चुका है। इनमें आबकारी विभाग के दो प्रथम श्रेणी अधिकारी, दो डीएसपी, चार एसएचओ प्रमुख तौर है। इनके अधिकार क्षेत्र में त्रासदी हुई लिहाज़ा प्रथम दृष्टया ड्यूटी में कोताही के आरोप में कार्रवाई की गयी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ का कहना है कि अधिकारियों का निलंबन या बर्खास्ती ही काफी नहीं है, बल्कि इनके खिलाफ ऐसी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए; जिससे अन्य अधिकारियों को भी सबक मिल सके।

दोनों विभागों के कुछ अधिकारियों के संरक्षण में अवैध शराब का धन्धा खूब पनप रहा था। करोड़ों रुपये के इस धन्धे में कई सफेदपोश लोग भी हैंै। सरकार किसी भी दल की हो, मालिक बदल जाते हैं। पर धन्धा बदस्तूर चलता रहता है। अगर हादसा न होता, तो यह गोरखधन्धा पहले की तरह ही जारी रहता। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का प्रमुख मुद्दा राज्य में ड्रग्स को खत्म करने का रहा; क्योंकि अकाली-भाजपा सरकार में कुछ नेताओं पर करोड़ों के ड्रग्स धन्धे में अपरोक्ष हिस्सेदारी के आरोप लगते रहे हैं। राज्य से नशे का अवैध धन्धा खत्म करने और रसूखवाले नेताओं को बेनकाब करके उन्हें जेल में डालने का कांग्रेस का यह वादा काफी असरदार रहा।

कांग्रेस नेता अमरिंदर सिंह जनसभाओं में कहा करते थे, यह उनका अन्तिम चुनाव है। उन्हें एक बार और मुख्यमंत्री बनाओ, फिर देखो क्या होता है; सरकार बनते ही चार सप्ताह के अन्दर पंजाब को नशामुक्त राज्य बना दूँगा। कांग्रेस जीती और सरकार बने तीन साल हो गये कैप्टन अपना वादा पूरा नहीं कर सके। लोग उसे राजनीतिक वादा कहकर मखौल उड़ाने लगे हैं। अकाली, भाजपा और आम आदमी पार्टी के नेता कैप्टन को कमज़ोर प्रशासक के तौर पर आँकते हैं, जबकि उनकी छवि कठोर प्रशासक के तौर पर है। जानकारों की राय में घटना के बाद अमरिंदर सख्त हो जाते हैं; उससे पहले वे नरम ही दिखते हैं। शराब त्रासदी के बाद उन्होंने जिस तरह से कड़ी कार्रवाई की है। वह मिसाल के तौर पर है; लेकिन क्या उन्हें या उनकी सरकार को पूरे राज्य में अवैध शराब के नेटवर्क के बारे में कुछ भी पता नहीं था?

अमरिंदर का गृह ज़िला पटियाला भी अवैध शराब का केंद्र बना हुआ रहा। ज़िले के राजपुरा और घन्नौर में अवैध शराब की फैक्टरियाँ पकड़ी गयी जहाँ से बड़ी मात्रा में शराब राज्य के विभिन्न हिस्सों में सप्लाई होती रही। यह संसदीय क्षेत्र उनकी पत्नी परणीत कौर का भी है। सांसद और मुख्यमंत्री जब एक ही परिवार से हों, हलके में शराब माफिया बड़े स्तर पर सक्रिय हों; तो इसे क्या कहेंगे? घोर लापरवाही और सरकार की नाकामी से ज़्यादा क्या कह सकते हैं?

वैसे सरकार बड़े स्तर पर राज्य स्तरीय कार्रवाई कर रही है। मुख्यमंत्री घटना में सीधी संलिप्तता वालों पर हत्या की धारा-302 लगाने का आदेश दे चुके हैं। वह इसे जान-बूझकर हत्या की घटना ही करार दे रहे हैं। एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है और अभियान जारी है। राज्य के सीमांत ज़िलों अमृतसर, तरनतारन, गुरदासपुर और पठानकोट में सरकार के समांतर अवैध शराब का धन्धा बरसों पुराना है।

ज़हरीली शराब से सामूहिक मौतों की घटनाएँ देश के किसी-न-किसी हिस्से में होती रहती हैं। अवैज्ञानिक तरीके से केमिकल युक्त शराब बनाने का काम बहुत खतरनाक है। मेथेनॉल, इथेनॉल, स्प्रिट या मेथे-अल्कोहल की मात्रा ज़्यादा हो जाए, तो बनने वाली शराब जानलेवा साबित हो सकती है। तरनतारन, गुरदासपुर और अमृतसर के ग्रामीण इलाकों में यही तो हुआ। शराब पीने के कुछ घंटों में ही ज़हर ने असर दिखाना शुरू किया और सेवन करने वालों में एक के बाद कई लोग मौत की नींद सो गये। ज़्यादा पीने वाले नहीं बच सके, जबकि पीने वाले अस्पतालों में इलाज के बाद ठीक हो गये। कुछ की मौत अस्पताल में भी हुई।

अमृतसर के मुच्छल गाँव में कई लोग ज़हरीली शराब से मरे हैं। ग्रामीण कहते हैं कि ज़हर पीने के बाद बचना मुश्किल ही होता है। लोग घरों तक नहीं पहुँच सके, रास्ते में ही बेहोश होकर गिर पड़े। ऐसा मंजर पहले कभी नहीं देखा, अस्पताल पहुँचाने का मौका भी नहीं मिला। जाँच में फँस जाने के डर से बहुत से परिजनों ने पुलिस-प्रशासन को बताए बिना अंतिम संस्कार कर दिये।

गाँव में कई लोग अवैध शराब का धन्धा बरसों से कर रहे हैं, कई बार उनकी शिकायतें की गयी। पुलिस ने छापे मारे, लेकिन कोई बरामदगी नहीं हुई; तो मामले रफा-दफा होते रहे। पूर्व सरपंच सुखराज सिंह कहते हैं कि देसी तरीके से गुड़ आदि से चोरी-छिपे बनने वाली शराब के बारे में तो लोग जानते हैं; लेकिन केमिकल से बनने वाली विधि के बारे में कोई नहीं जानता। गाँव के हरजीत सिंह पिता बलविंदर सिंह की मौत से सदमे में है। वह बताते हैं कि पुलिस में नामजद शिकायतें दी हैं। पुलिस ने दिखावे के तौर पर कार्रवाई तो की, लेकिन अवैध धन्धा बन्द नहीं हुआ।

केमिकलयुक्त शराब बनाने से लेकर इसकी आपूर्ति के लिए बहुत बड़ा नेटवर्क है। इसके लिए राष्ट्रीय राजमार्गों पर बने खाने के ढाबे भी इनके काम आते हैं। ट्रकों के माध्यम से माल यहाँ उतरता था और फिर उसे जगह-जगह पहुँचा दिया जाता था। हज़ारों लोग इस धन्धे से परोक्ष या अपरोक्ष तौर पर जुड़े हुए थे। पुलिस ने इन ढाबों के मालिकों या प्रबन्धकों पर कार्रवाई की है। कुछेक के पास से केमिकल या शराब भी बरामद हुई है। हरियाणा सीमा पर स्थित शम्भू में झिलमिल ढावा, बनूड में ग्रीन और राजपुरा में छिंदा ढाबों पर पुलिस ने कार्रवाई की है। नकली शराब के काम में महिलाएँ भी कम नहीं है। बलविंदर कौर, दर्शन रानी, फौजन, और त्रिवेणी नामक महिलाएँ गिरफ्तार हुई हैं।

शराब में मिलावट के लिए राज्य में केमिकल्स की उपलब्धता बड़ी आसान है। यही वजह है कि धन्धा बड़े स्तर पर पनप रहा था। पुलिस ने लुधियाना में राजीव जोशी नामक एक पेंट विक्रेता को गिरफ्तार किया है। उसने शराब बनाने में काम आने वाले केमिकल मेथेनॉल (मेथे अल्कोहल) के तीन ड्रम किसी प्रभदीप सिंह नामक व्यक्ति को बेचे थे। इसी से इतनी बड़ी त्रासदी हो गयी; जबकि उसके गोदाम से 284 ड्रम इसी केमिकल के बरामद हुए हैं। राज्य में न जाने ऐसे कितने राजीव जोशी जैसे लोग होंगे, जो ज़्यादा पैसे के लालच में शराब माफिया को यह केमिकल बेचते होंगे। हादसे के बाद सरकार किस तरह से कार्रवाई को अंजाम दे रही है इसका सुबूत इससे मिलता है कि अभी तक एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। यह सिलसिला तो अभी शुरू हुआ है। अभी छोटे मोटे लोग ही पकड़े जा रहे हैं, जिनकी आजीविका का साधन ही यही बना हुआ था। ये कमीशन के आधार पर शराब सप्लाई से लेकर बेचने वाले हैं। यह धन्धा करोड़ों का है और छोटे मोटे लोगों के बस की बात नहीं है। बिना संरक्षण राज्य स्तर पर ऐसा काम करने वाले कौन हैं? क्या सरकार उन तक पहुँच पाएगी? अक्सर ऐसे लोग बच ही निकलते हैं क्योंकि उनकी पहुँच ऊपर तक होती है। अब देखना होगा कि सरकार किस मंशा से काम करेगी? सरकार ने दो स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीमें गठित की हैं। दोनों टीमें सहायक पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) ईश्वर सिंह की देख-रेख में काम करेंगी। सरकार ने आरोपियों के खिलाफ ठोस सुबूत जुटाने के आदेश दिये हैं; ताकि ये लोग अदालतों से नहीं बच सकें। इसके लिए पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी की सीधी ज़िम्मेदारी लगायी गयी है। अदालत में इनके हस्ताक्षर से ही चालान पेश होने हैं। ऐसे में सुबूतों के अभाव में आरोप साबित नहीं होंगे, तो पुलिस अधिकारी से जवाबदेही होनी तय है। आरोपियों पर पंजाब कंट्रोल ऑफ ऑरगेनाइजेशन क्राइम एक्ट (पीसीओसीए) के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए।

मुख्यमंत्री त्रासदी को सीधी हत्या से जोडक़र देख रहे हैं। वह स्पष्ट कह चुके हैं कि कार्रवाई में कोई नरमी बरतने का सवाल ही पैदा नहीं होता। तस्करों ने शराब नहीं, बल्कि ज़हर बेचा है; उन्होंने निर्दोष लोगों की हत्या की है। कृत्य में संलिप्त कोई भी हो बख्शा नहीं जाएगा। घटना में एक कांग्रेस विधायक की संलिप्तता के आरोप लग रहे हैं। विरोधी दल शराब माफिया को सरकारी संरक्षण के आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री के लिए यह चुनौती जैसा काम होगा।

सरकार बड़े स्तर पर कार्रवाई करके सही दिशा में बढऩे का प्रयास कर रही है; लेकिन मामला अब राजनीतिक हो चला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंदर केजरीवाल भी शराब त्रासदी की जाँच सी.बी.आई. को देने की माँग कर चुके हैं।

आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रमुख और सांसद भगवंत मान कह चुके हैं कि अमरिंदर सिंह को नाम के आगे कैप्टन लगाने का हक नहीं है। त्रासदी ने उनकी कार्यकुशलता को उजागर कर दिया है। ऐसे में कैप्टन लिखना भारतीय सेना के पद का अपमान है। वह नैतिकता के आधार पर अमरिंदर सिंह को कुर्सी छोडऩे का कहते हैं; क्योंकि घटना के लिए वह सीधे तौर पर उत्तरदायी हैं। आबकारी और पुलिस विभाग उनके पास है, फिर भी इतनी बड़ी त्रासदी हो गयी। ऐसे में वह कार्रवाई के नाम पर बचने का प्रयास करके रहे हैं। जिन लोगों पर संरक्षण का आरोप है; क्या पुलिस उनके खिलाफ जाँच करेगी? अगर करेगी, तो उनके खिलाफ रिपोर्ट होगी? जाँच के नाम पर यह लोगों की आँखों में धूल झोंकने जैसा ही है।

प्रदेश भाजपा और शिरोमणि अकाली दल को सरकार की जाँच पर कतई भरोसा नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री और शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा मामले की जाँच सी.बी.आई. को सौंपने के हक में है। पंजाब के राज्यपाल वी.पी. सिंह बदनौर को इस बाबत ज्ञापन भी दिया है। विरोधी दलों के अलावा कांग्रेस के दो बड़े नेताओं ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। दोनों प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं और मौजूदा राज्यसभा के सदस्य भी हैं। प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलो त्रासदी के लिए अपनी ही कांग्रेस सरकार को ज़िम्मेदार बता रहे हैं। दोनों राज्यपाल बदनौर को मिलकर सी.बी.आई. जाँच का ज्ञापन दे चुके हैं।

दोनों का अमरिंदर सिंह से राजनीतिक तौर पर 36 का आँकड़ा है। विशेषकर बाजवा और अमरिंदर सिंह, तो एक दूसरे के घोर विरोधी है। बाजवा को राज्य की राजनीति से दूर करने में अमरिंदर सिंह की प्रमुख भूमिका रही है। क्या ऐसे मौके पर सांसदों का ऐसा रुख पार्टी के लिए ठीक है? दोनों आखिर क्यों सी.बी.आई. जाँच के पक्ष में है? क्या उन्हें अपनी सरकार की पुलिस की जाँच पर भरोसा नहीं है? क्या सरकार अपनी जाँच में उन लोगों को बचाना चाहती है; जो उसके बारे में काफी कुछ जानते हैं।

मुख्यमंत्री के नेतृत्व पर सवाल उठाने और सरकार की आलोचना से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ काफी नाराज़ हैं। वह भी पार्टी लाइन से हटकर दोनों की आलोचना करने में जुट गये हैं। जाखड़ कहते हैं कि जिस पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में सांसद बनाकर भेजा वहाँ वह प्रदेश हित का कोई मुद्दा नहीं उठा रहे। उन्हें प्रदेश या यहाँ के लोगों के हितों की चिन्ता है, तो कुछ करके तो दिखाएँ। वह दोनों की कार्रवाई को अनुशानहीनता मान रहे हैं और कड़ी कार्रवाई के पक्ष में हैं।

वहीं अमरिंदर सिंह जहाँ वैश्विक महामारी के मोर्चे पर लड़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ विपक्ष के अलावा उन्हें अपनी ही पार्टी के लोगों के विरोध से जूझना पड़ रहा है। इसी समस्या को लेकर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, प्रदेश कांग्रेस सुनील जाखड़ और पुलिस महानिदेशक दिनकर गुप्ता ने तरनतारन जाकर प्रभावितों के परिजनों से मुलाकात की। उन्होंने मामले की निष्पक्ष जाँच कर आरोपियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई का भरोसा दिलाया। विपक्षी दल के लोग भी गाँव-गाँव जाकर प्रभावितों के परिजनों से मिल रहे हैं। सवाल यही है कि क्या कांग्रेस सरकार कोई ऐसी कार्रवाई करेगी, जिससे भविष्य में ऐसी घटना न हो? क्या शराब माफिया को खत्म करने की उसकी मंशा है? सत्ता सँभालने के चार सप्ताह में पंजाब को नशामुक्त राज्य बनाने का वादा अभी अधूरा है मुख्यमंत्री जी!

कांड-दर-कांड

देश के विभिन्न राज्यों में ज़हरीली शराब पीकर सैकड़ों लोग मर चुके हैं। 1978 में बिहार के धनबाद में ज़हरीली शराब से 254 लोगों की जान गयी। वर्ष 1981 में कर्नाटक में 308 लोगों ने जान गँवायी। 1982 में केरल में 77 लोगों की मौत और 1991 में राजधानी दिल्ली में 199 लोग ज़हरीली शराब से मौत की नींद सो गये। 1992 में ओडिसा में 200 लोग और वर्ष 2008 में कर्नाटक और तमिलनाडू में 180 से ज़्यादा लोगों को ज़हरीली शराब ने निगल लिया। 2009 में गुजरात में 136 लोगों ने दम तोड़ा, तो वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल में 167 लोगों को शराब ने लील लिया। इसी वर्ष पश्चिम बंगाल में 167 लोगों की, जबकि 2012 में ओडिसा में 29 लोगों की मौत हुई। 2013 में आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में 39 लोगों की, जबकि वर्ष 2015 में पश्चिम बंगाल में 182 लोगों ने दम तोड़ा। मुम्बई में वर्ष 2015 में 45 लोगों की और 2016 में बिहार में 16 और वर्ष 2019 में असम में 100 से ज़्यादा लोग ज़हरीली शराब की वजह से मरे।

पीडि़तों को आर्थिक मदद

राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को पाँच-पाँच लाख रुपये की आर्थिक मदद की घोषणा की है। पहले यह राशि दो लाख रुपये ही थी। पता चला कि प्रभावितों में ज़्यादातर की आर्थिक हालत बहुत ही खस्ता है। रोज़ कमाने और रोज़ खाने वाले लोगों के लिए दो लाख रुपये की राशि कम होगी; लिहाज़ा इसे बढ़ाया गया है। जिन परिवारों में किसी के पास रोज़गार का साधन नहीं है। उन्हें काम देने का भरोसा दिलाया गया है। 92 परिवारों को आर्थिक मदद दे दी गयी है। प्रभावित परिवार चाहते हैं कि सरकार जाँच के बाद आरोपियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करे, ताकि भविष्य में फिर ऐसी घटना न हो। सस्ती शराब पीने की वजह से मरने वाले गरीब लोग ही होते हैं। कम पैसे में नशा करने के आदी ये लोग खतरा उठाकर नशा करते हैं। देश में ऐसी घटनाएँ हो चुकी हैं, जिनसे सबक लेना चाहिए, लेकिन कोई सबक नहीं लिया जाता। गाँव-गाँव में शराब बिकती है, यह लोगों को पता है; तो फिर पुलिस को ऐसी जानकारी क्यों नहीं होती?

कांग्रेस का संकट बना पंजाब का शराब कांड

पंजाब में ज़हरीली शराब पीने से 121 लोगों की मौत के बाद कांग्रेस के भीतर ही तलवारें खिंच गयी हैं। यह शराब पीने से 29 जुलाई को बड़ी संख्या में लोगों की मौत होने की बात सामने आयी, उसके बाद मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ उनके अपने ही सांसदों ने विरोध का झण्डा बुलन्द कर दिया। इस घटना के विरोध में न सिर्फ विपक्ष, बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस के सांसदों ने भी शराब बनाने वालों को सरकार की तरफ से राजनीतिक संरक्षण मिलने का आरोप लगाया।

 इस त्रासदी के सम्भावना पहले से ज़ाहिर की जा रही थी। लेकिन उसके बाद जो हुआ वह कोई सोच भी नहीं सकता था। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने पंजाब के राज्यपाल वी.पी. सिंह बदनोर से आग्रह किया कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया जाए, क्योंकि राज्य में अब तक की सबसे त्रासद घटना में 121 लोगों की मौत हो गयी है। हालाँकि मुख्यमंत्री के लिए असली मुसीबतें तब बढ़ीं, जब पंजाब में उनकी अपनी ही पार्टी के दो सांसदों ने मुख्यमंत्री की सार्वजनिक आलोचना कर दी।

अब ऐसा लगता नहीं है कि इस राजनीतिक दंगल का जल्दी अन्त होने वाला नहीं है; क्योंकि अमरिंदर सरकार ने एक सांसद को दिया पंजाब पुलिस का सुरक्षा कवच वापस ले लिया है। यह सांसद प्रताप सिंह बाजवा हैं, जो प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। कांग्रेस की इस जंग को भाँपते हुए विपक्षी शिरोमणि अकाली दल ने दिल्ली में शीघ्र ही कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी के आवास के बाहर विरोध-प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है।

शराब कांड की बात करें, तो कहानी की पृष्ठभूमि पर जाने पर पता चलता है कि लॉकडाउन ने पंजाब में शराब की माँग और आपूर्ति में उछाल ला दिया था। इस दौरान पंजाब में नकली शराब बेची जा रही है। इसका ही परिणाम यह है कि शराब से 29 जुलाई को पहले पाँच मौतों की सूचना दी गयी, जो बढक़र तीन ज़िलों में 121 तक पहुँच गयी है। इस शराब को बनाने का आरोप लुधियाना के एक पेंट (रंगरोगन) शॉप के मालिक राजेश जोशी पर है। वह वर्तमान में चल रहे मामले में एक महत्त्वपूर्ण संदिग्ध है।

पंजाब पुलिस ने तीन दशकों में सूबे की इस सबसे वादी त्रासदी के मामले में अब तक 50 से अधिक लोगों को गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल की है। गिरफ्तार लोगों में एक मोगा स्थित हैंड सैनिटाइजर निर्माता रविंदर सिंह भी है। एक मैकेनिकल जैक फैक्ट्री के मालिक सिंह ने 11,000 रुपये प्रति ड्रम के हिसाब से नकली शराब के तीन ड्रम खरीदे थे। प्रत्येक ड्रम में 200 लीटर शराब थी। तीन ड्रम खरीदने में सिंह ने कुल 33,000 रुपये अदा किये थे।

पुलिस ने सिंह के कारोबारी साथी अश्विनी बजाज को भी गिरफ्तार किया, जो मोगा में एक पेंट स्टोर चलाता है। रविंदर सिंह ने अवतार सिंह के रूप में पहचाने गये एक व्यक्ति को सभी तीन ड्रम नकली शराब बेची थी। उसने इसे तरनतारन के पंडोरी गोला गाँव के निवासी हरजीत सिंह को बेच दिया था। हरजीत सिंह के बेटे सतनाम और शमशेर भी सौदे के बारे में जानते थे। हरजीत सिंह ने अवतार सिंह को 50,000 रुपये का भुगतान किया और बाद में शेष राशि का भुगतान करने का वादा किया। लेकिन अधिक लाभ कमाने के लालच में हरजीत और उसके बेटों ने शराब में मिलाबट करके इसे और पतला कर दिया।

मामले की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारियों ने कहा कि सतनाम और शमशेर ने शराब को पतला कर दिया और गोविंदर सिंह को 6,000 रुपये में 42 बोतलें बेचीं। उसने शराब को और भी पतला कर दिया और उसकी 46 बोतलें बेच दीं। गोविंदर ने इसे 28 और 29 जुलाई को बलविंदर कौर के बेटों को बेच दिया, जो अमृतसर के मुच्छल का रहने वाला है। कौर को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। उसने कथित तौर पर शराब में 50 फीसदी पानी मिलाया और उसे एक दर्ज़न से अधिक लोगों को बेच दिया। शराब का सेवन करने वाले कम-से-कम 12 लोग मुच्छल में मारे गये।

मौतों पर सियासत

इसके तुरन्त बाद राज्य सरकार विपक्षी शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी (आप) के निशाने पर आ गयी, जिन्होंने इस मामले की जाँच विशेष जाँच दल (एसआईटी) से करवाने को महज़ एक धोखा करार दिया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ कांग्रेसी नेता, जिनमें एक कैबिनेट मंत्री, एक पूर्व मंत्री, पंजाब के मुख्यमंत्री के धार्मिक सलाहकार के रिश्तेदार और चार पार्टी विधायक इस मामले में शामिल हैं; जो राज्य में शराब का कारोबार चला रहे हैं। अकाली दल के महासचिव और प्रवक्ता डॉ. दलजीत चीमा ने कहा कि एसआईटी सिर्फ एक धोखा है। हम इतनी मौतें होने की घटना की न्यायिक जाँच की माँग करते हैं; क्योंकि शराब माफिया कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार के संरक्षण में चल रहा है।

विपक्षी दलों द्वारा इस मुद्दे को उठाने की उम्मीद थी ही, मुख्यमंत्री के एक फैसले के बाद उनकी ही पार्टी कांग्रेस में उनके प्रतिद्वंद्वी और राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दुल्लो ने राज्यपाल पी.पी. सिंह बदनोर से शिकायत कर दी कि राज्य सरकार की शराब माफिया के साथ मिलीभगत है। यहाँ यह दिलचस्प है कि बाजवा और दुल्लो दोनों ही कांग्रेस आलाकमान के करीबी माने जाते हैं। इन दोनों ने राज्यपाल को जो पत्र भेजा है, उसमें लिखा है कि शराब की तस्करी पर रोक के लिए ज़िम्मेदार दो विभाग (आबकारी व कराधान और गृह) मुख्यमंत्री के पास हैं। दुल्लो ने आरोप लगाया कि उन्होंने इस खतरे के प्रति राज्य सरकार को पहले भी चेताया था; लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी।

सीबीआई व ईडी जाँच की माँग

यहाँ यह गौरतलब है कि बाजवा और शमशेर सिंह दुल्लो दोनों ने राज्य में कथित अवैध शराब के कारोबार की सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से जाँच कराने की माँग की थी; जिसमें 121 लोगों की मौत का दावा किया गया था। अपनी ओर से राज्य कांग्रेस इकाई ने अपने केंद्रीय उच्च कमान को पत्र लिखकर पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए दोनों सांसदों को निष्कासित करने की सिफारिश की है। दिलचस्प बात यह है कि एक त्वरित कार्रवाई में पंजाब सरकार ने कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा को दी गयी राज्य पुलिस की सुरक्षा को वापस लेने का फैसला किया है। यह कहा गया है कि रिव्यू करने के बाद पता चलता है कि उन्हें (बाजवा को) वास्तव में किसी तरह का खतरा निहित नहीं है और किसी स्थिति में उनके ही मुताबिक अब सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय से उन्हें केंद्रीय सुरक्षा प्राप्त है।

पंजाब सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि बाजवा को प्रदान किया गया राज्य पुलिस सुरक्षा कवच तबसे बेमानी हो गया था, जब उन्होंने सीधे गृह मंत्री अमित शाह से निजी स्तर पर सुरक्षा प्राप्त की थी। सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि किसी भी मामले में मिश्रित सुरक्षा चक्र को अच्छा नहीं माना जाता है, खासकर तब, जब राज्यसभा सांसद ने केंद्रीय सुरक्षा हासिल करते हुए कहा था कि उन्हें राज्य पुलिस पर कोई भरोसा नहीं है।

प्रवक्ता के अनुसार, बाजवा के किये गये दावों के विपरीत उन्हें जो केंद्रीय सुरक्षा मिली  है, वह कांग्रेस नेतृत्व के कहने पर नहीं थी। वास्तव में पंजाब सरकार के सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से उनके (बाजवा के) लिए खतरे के पैमाने को समझने हेतु परामर्श भी नहीं लिया, जो आमतौर पर किसी भी व्यक्ति को केंद्रीय सुरक्षा प्रदान करने से पहले किया जाता है।

सरकारी प्रवक्ता ने यह भी कहा कि बाजवा को एक राज्यसभा सदस्य के रूप में केंद्रीय सुरक्षा प्राप्त करने के लिए सिर्फ सदन में पार्टी के नेता गुलाम नबी आज़ाद से सम्पर्क करने की आवश्यकता थी, जो कि एक आदर्श तरीका है। इसके अलावा उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय को अपना अनुरोध भेजना चाहिए था। हालाँकि किसी कारणवश गृह मंत्रालय ने बाजवा को सुरक्षा के खतरे के पैमाने को लेकर राज्य सरकार के साथ चर्चा नहीं करने का फैसला किया, जो इस तरह के मामलों में पालन किये जाने वाले मानदण्ड से मेल नहीं खाता।

प्रवक्ता ने यह भी कहा कि प्रताप सिंह बाजवा को वास्तव में इस समय पंजाब पुलिस से बढ़ी हुई सुरक्षा मिल रही है, जिस तरह की सुरक्षा के वह राज्यसभा सांसद होने के नाते हकदार थे। ऐसा इसलिए था, क्योंकि राज्य सरकार ने उन्हें पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में वापस नहीं लेने का फैसला किया था। आदर्श रूप से बढ़ा हुआ सुरक्षा कवच उनके सांसद बनने के बाद से ही वापस ले लिया जाना चाहिए था; क्योंकि उनके लिए खतरे का स्तर वास्तव में शून्य था। प्रताप सिंह बाजवा को 19 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जेड-श्रेणी सुरक्षा कवच प्रदान किया था और आज की तारीख में उनकी निजी सुरक्षा, आवास सुरक्षा और एस्कॉर्ट के लिए 25 सीआईएसएफ कर्मियों के अलावा 2 एस्कॉर्ट चालक भी तैनात हैं। इसके अलावा 23 मार्च तक पंजाब पुलिस के 14 कर्मी भी तैनात थे। हालाँकि कुछ को कोविड-19 सेवा में भेजने के लिए वहाँ से हटाया गया था। इसके उपरान्त उनके पास छ: पंजाब पुलिस कर्मी और ड्राइवर के साथ एक एस्कॉर्ट भी थे, जिन्हें अब वापस बुला लिया गया है।

दूसरी ओर बाजवा ने अपने रुख को सख्त करते हुए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ को पार्टी के हित में हटाने की माँग की है। उन्होंने कहा कि अगर मुख्यमंत्री और राज्य प्रमुख को नहीं हटाया जाता है, तो पार्टी का पंजाब में नाम-ओ-निशान मिट जाएगा।

अविश्वास और संदेह के बीच सबसे पहले रूस ले आया कोरोना वैक्सीन

हाल में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने दुनिया को बताया कि औसत व्यक्ति के मन में रोज़ना कम-से-कम 6000 खयाल आते हैं। इन शोधकर्ताओं ने एमआरआई तकनीक की मदद से ऐसा तरीका ईजाद किया है, जिससे पता चलता है कि इंसान के दिमाग में कब कोई खयाल पनपता है और कब खत्म होता है? इस शोध का ज़िक्र यहाँ इस सन्दर्भ में किया जा रहा है कि बीते चार महीनों से लगभग सभी के दिमाग में अधिकतर खयालों का वास्ता कोरोना महामारी से ही होगा। लोगों का मानना है कि कोरोना महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए मास्क, स्वच्छता, सामाजिक दूरी, वेबिनार, वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) का अपना महत्त्व है; लेकिन कोविड-19 को हराने के लिए इसका कारगर इलाज दुनिया के पास होना चाहिए। इधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कोरोना वायरस का अचूक इलाज आ पाना मुश्किल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक टेड्रोस ऐडनम ने एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अभी इसका कोई रामबाण इलाज नहीं है और मुमकिन है कि आगे भी न हो। उन्होंने यह भी कहा कि हालात सामान्य होने में लम्बा वक्त लग सकता है। सभी मुल्कों से मास्क पहनने, सामजिक दूरी बनाये रखने, हाथ धोने और टेस्ट कराने जैसे कदम उठाने में सख्ती बरतने को कहा है। 11 अगस्त को रूस के राष्ट्रपति व्लीदिमीर पुतिन ने कोरोना वैक्सीन बनाने का ऐलान कर दिया। राष्ट्रपति पुतिन ने दावा किया है कि दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन ‘स्पुतनिक वी’ बन गयी है। उन्होंने वैक्सीन के कारगर होने पर मुहर लगाते हुए कहा कि पहला टीका उन्होंने अपनी बेटी को लगवाया है।

रूस के स्वास्थ्य मंत्री का दावा

रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने दावा किया कि गामालेवा इंस्टीट्यूट द्वारा बनायी गयी वैक्सीन का परीक्षण पूरा हो चुका है और उसे अनुमति देने की प्रक्रिया चल रही है। गामालेवा संस्था के अधिकारियों का कहना है कि पंजीकरण के तीन से सात दिन के अन्दर यह टीका लोगों के लिए उपलब्ध होगा। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि पंजीकरण के बाद अक्टूबर माह से देश में बड़े पैमाने पर लोगों के टीकाकरण का काम शुरू किया जाएगा। वैक्सीन के लिए फंड देने वाले रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष के प्रमुख किरिल दिमित्रिण का कहना है कि वैक्सीन के तीसरे चरण का परीक्षण चल रहा है; लेकिन हम संतुष्ट हैं और जल्द ही वैक्सीन की अनुमति मिल जाएगी।

वैक्सीन निर्माण के लिए भारत समेत दुनिया के कई देशों से बातचीत चल रही है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि हम हर महीने लाखों डोज तैयार करेंगे और सिन्तबर से नवंबर तक करोड़ों लोगों तक इसे पहुँचा देंगे। रूस ने तो सबसे पहले कोरोना वैक्सीन को लॉन्च करने का जो दावा किया है, उस पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों को भरोसा नहीं है। यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो इस वैक्सीन को लेकर संदेह जताते हुए दुनिया को आगाह किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता क्रिस्टियन लिंडमियर ने कहा कि हमें ऐसी खबरों से सतर्क और सावधान रहना चाहिए। विशेषज्ञों और विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि वैक्सीन का तीन चरणों में मानव परीक्षण किया जाना ज़रूरी है। लेकिन रूस ने जो वैक्सीन बनायी है, उसका तीसरा मानव परीक्षण अब तक पूरा नहीं हुआ है। तीसरे चरण का परीक्षण किये बिना रूस इसे बाज़ार में उतारने की तैयार कर रहा है। लेकिन रूस के स्वास्थ्य मंत्री ने हाल ही में कहा था कि अक्टूबर से आम लोगों को वैक्सीन लगायी जाएगी और साथ-साथ तीसरे चरण का परीक्षण भी चलता रहेगा। यही नहीं जुलाई के तीसरे सप्ताह रूस से यह खबर भी आयी, जिसमें सूत्र रूस के राष्ट्रपति व्लादिमोर पुतिन, शीर्ष राजनेताओं, अधिकारियों और अमीरों को अप्रैल में ही कोरोना वैक्सीन लगा दिये जाने का दावा कर रहे हैं।

वैक्सीन को लेकर संदेह

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता क्रिस्टियन लिंडमियर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अगर किसी वैक्सीन की तीसरे चरण का परीक्षण किये बिना ही उसके उत्पादन का लाइसेंस जारी कर दिया जाता है, तो इसे खतरनाक मानना ही पड़ेगा। दरअसल दुनिया में पहली कोरोना वैक्सीन तैयार करने और उसे बाज़ार में उतराने के रूस के दावों को शक की निगाह से देखा जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी वेबसाइट पर क्लीनीकल परीक्षण से गुज़र रही 25 वैक्सीन सूचीबद्ध की हैं, जबकि 139 वैक्सीन अभी प्री-क्लीनीकल स्टेज में हैं। प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि वैक्सीन के असरदार होने के संकेत मिलने और क्लीनिकल परीक्षण के सभी चरणों से गुज़रने में बहुत बड़ा अन्तर होता है। एक सुरक्षित वैक्सीन बनाने को लेकर कई नियम और दिशा-निर्देश बनाये गये हैं। इनका पालन करना बहुत ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से हमें यह भी पता चलता है कि क्या किसी इलाज या वैक्सीन के साइड इफेक्ट हैं या फिर कहीं इससे फायदे के बजाय नुकसान तो नहीं हो रहा है। रूस सुरक्षित वैक्सीन बनाने के लिए बनाये गये नियमों और दिशा-निर्देशों का पालन नहीं कर रहा है। ब्रिटेन ने 5 अगस्त को कहा कि वह रूस से वैक्सीन नहीं लेगा। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, इतनी तेज़ी से परीक्षण और स्वीकृति की प्रक्रिया के लिए आवेदन पर ब्रिटेन को शक है। दलील यह दी जा रही है कि जब बड़े सारे निर्माता अगले साल वैक्सीन तैयार होने की बात कर रहे हैं, तो रूस इतनी जल्दी वैक्सीन कैसे लॉन्च कर सकता है। गौरतलब है कि ब्रिटेन से पहले अमेरिका ने रूस की वैक्सीन लेने से इन्कार कर चुका है।

अमेरिका नहीं लेगा संदिग्ध वैक्सीन

अमेरिका के महामारी विशेषज्ञ एंथनी फॉसी ने कहा था कि वह रूस और चीन दोनों से ही वैक्सीन नहीं लेंगे; क्योंकि दोनों ही देशों ने इस बारे में पारदर्शिता नहीं बरती है। दुनिया कोरोना से क्यों डरी हुई है? आँकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। इस महामारी ने अब तक सात लाख से अधिक लोगों की जान ले ली है। इस हिसाब से हर 15 सेकेंड में एक मरीज़ की मौत हो रही है। सर्वाधिक मौतें अमेरिका, ब्राजील, भारत और मैक्सिको में हुई हैं। कोरोना पीडि़तों की मौत की इतनी भयावह संख्या के साथ ही साथ मौत के बाद उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? ये खबरें अन्दर तक हिला देती हैं। इससे भी उनके परिजन बहुत दु:खी हैं। इसके अलावा मौतों की संख्या ने कई देशों में अन्तिम संस्कार तक का तरीका बदल दिया है। अमेरिका जहाँ सबसे अधिक मौतें हो रही हैं। वहाँ लोग दफनाने की बजाय दाह संस्कार को तरजीह दे रहे हैं, ताकि परिजनों की राख को ताउम्र अपने पास रख सकें या बाद में पूरे तौर तरीके से उनकी विदाई कर सकें। ब्राजील जो मौतों के आँकड़ें के मामले में दूसरे नम्बर पर है, वहाँ अपने तरीके से अन्तिम संस्कार करने की तो छूट है; लेकिन इसके लिए 10 मिनट का समय तय है। परिजनों का कहना है कि इतने वक्त में वे अपनों को आखरी वक्त देखकर ठीक से रो भी नहीं सकते। कोरोना के कारण लोगों में अवसाद बढ़ा है। करोड़ों बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। घर से काम करने ने भी कई समस्याओं को बढ़ाया है। लॉकडाउन में महिलाओं, बच्चों के खिलाफ हिंसा में वृद्धि हुई है। प्रवासी मज़दूरों की पीड़ा ने सरकारी तंत्र की पोल खोल दी। अर्थ-वयवस्था की हालत क्या है, सब जानते हैं। लिहाज़ा दुनिया इस महामारी को हराने के लिए और ज़िन्दगी को पटरी पर लाने के लिए कोरोना वैक्सीन के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही है। इस बीमारी से सात लाख से अधिक मौतें हो चुकी हैं। वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में 2020 के पहले छ: महीनों में 8 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। इस परिदृश्य में वैज्ञानिक इसका कारगर इलाज ढूँढने में तेज़ी से काम कर रहे हैं। जैसे-जैसे वैक्सीन के काम में प्रगति हो रही है, वैसे-वैसे राष्ट्रों के बीच वैक्सीन की अधिक-से-अधिक डोज हासिल करने की होड़ भी हो रही है। इस समय दुनिया भर में 150 कोरोना वैक्सीन पर काम हो रहा है। इनमें से छ: अन्तिम दौर में हैं। अमेरिका की मॅाडर्न इंक का मानव परीक्षण तीसरे चरण में है। अमेरिका जर्मनी कम्पनी फाइजर तीसरे चरण की इजाज़त मिलने का इंतज़ार कर रही है। चीन की सिनोवैक बायोटेक कम्पनी का वैक्सीन परीक्षण के अन्तिम चरण में है। ऑक्सफोर्ड वैक्सीन का दूसरे चरण का परीक्षण खत्म हो गया है।

वैक्सीन परीक्षण को भारत तैयार

गौरतलब है कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा तैयार कोरोना के टीके को भारत ने मानव परीक्षण की इजाज़त दे दी है। देश की कम्पनी सीरम इंस्टीट्यूट ने चरण-2 और चरण-3 के परीक्षणों के लिए मंज़ूरी हासिल कर ली है। भारत में यह तीसरी वैक्सीन है, जिसे मानवीय परीक्षण की मंज़ूरी मिली है। भारत बायोटेक और कैंडिला के दो वैक्सीन का परीक्षण पहले से ही जारी है। इन दोनों कम्पनियों के परीक्षण का पहला चरण पूरा हो गया है और दूसरा शुरू हो गया है। वैक्सीन पर शोध के लिए कई अमीर मुल्कों की सरकारों ने 74 हज़ार करोड़ से अधिक खर्च किये हैं। कई मुल्कों ने वैक्सीन की करीब चार अरब खुराकें पहले से ही खरीद ली हैं। ऐसा अनुमान है कि इनकी डिलिवरी अगले साल के अन्त तक हो जाएगी। लेकिन यहाँ पर कई सवाल भी साथ-साथ चल रहे हैं। क्या सभी वैक्सीन, जिन पर काम हो रहा है; सफल होंगी? शोधों की रिपोट्र्स बताती हैं कि यदि 10 या इससे अधिक वैक्सीनों का विकास हो रहा है, तो उनमें से केवल एक के असरकारक होने के 90 फीसदी आसार हैं। यह भी कहा जा रहा है कि जिन वैक्सीन का परीक्षण हो रहा है, उनके विफल होने की सम्भावना 20 फीसदी है। कुछ वैक्सीन पूरी सुरक्षा नहीं दे पाएँगी। कोरोना के इलाज के लिए वैक्सीन की एक डोज प्रभावशाली नहीं होगी। ऐसे में कई खुराक लेनी पड़ सकती हैं। वैक्सीन के सभी परीक्षण सफल होने के बाद जब उसे आम लोगों के लिए बाज़ार में उपलब्ध कराने के वास्ते उसके उत्पादन व आम लोगों तक किफायती कीमत पर उपलब्ध होने वाले बिन्दु अहम हैं। कई विशेषज्ञ बताते हैं कि अगले साल के अन्त तक दो अरब खुराकों की ही बिक्री हो पायेगी। वायल, सिरिंज और ज़रूरी केमिकल्स की कमी सामने आयेगी। इस कमी से निपटना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा अमेरिका, चीन, रूस जैसे मुल्क अपने यहाँ बनी वैक्सीन पहले अपने नागरिकों को देंगे। इसके बाद दूसरे मुल्कों में सप्लाई होगी। जहाँ तक गरीब मुल्कों और वंचित तबकों के बच्चों को कोरोना वैक्सीन मुहैया कराने का सवाल है, वहाँ बिल एंड मेंलिडा गेट्स फाउडेशन मदद के लिए आगे आया है। वैक्सीन के लिए गठित ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइजेशन (गावि एलायंस) संस्था और गेट्स संस्था ने पुणे की सीरम इस्ंटीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ गठजोड़ का ऐलान किया है। इसके तहत कम्पनी कम आय वाले मुल्कों के लिए 10 करोड़ डोज बनायेगी। वैक्सीन पहले किसे दिया जाएगा, इसे लेकर आम राय यह बनती नज़र आ रही है कि सबसे पहले फ्रंटलाइन वाले स्वास्थ्यकर्मियों को ही दी जाएगी; ताकि वे स्वस्थ व सुरक्षित रहें और दुनिया को स्वस्थ व सुरक्षित रखने में उनका योगदान बराबर बना रहे।

हिन्दू-धर्म को समझना -5 : शाश्वत् संकट मोचक पुराण

पुराण, जिसका शाब्दिक अर्थ है- प्राचीन लेखन; शास्त्रों के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलुओं को संक्षिप्त रूप से उजागर करता है, जो हिन्दू परम्पराओं का मूल है। इन ग्रन्थों को चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 11वीं शताब्दी तक के लम्बे काल-खण्ड के बीच लिखा गया था और इसका श्रेय हिन्दू ऋषि महर्षि वेद व्यास, जिन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत की भी रचना की थी; को दिया जाता है।

पुराण, सांसारिक जीवन की प्रमुख पहेलियों- जैसे कि दुनिया कैसे बनी और किसने बनायी? आदि का भी वर्णन करके हल बताते हैं। पुराणों में मिथक और वंशावलियाँ भी शामिल हैं, जो धार्मिक कविता के रूप में हैं। इनमें मनुष्य के कर्तव्यों और जीवन के विकास के इतिहास व जीवन महत्त्व को समझाने के लिए कई महाकाव्य कविता की तरह धाराप्रवाह में लिखे गये हैं। इसके दो मुख्य खण्डों में से, पहले वाले मिथक हैं; जो पिछली घटनाओं के बारे में पारम्परिक कहानियों के रूप में हैं, जिनमें आमतौर पर देवी-देवता शामिल होते हैं। दूसरे घटक, जो मिथकों के साथ मेल खाते हैं; वंशक्रम या पूर्वजों और वंशजों की वंशावली हैं। पुराणों में दुनिया के निर्माण, देवताओं की किंवदंतियों और धार्मिक अनुष्ठानों को करने के तरीकों का खुलासा किया गया है।

इन सभी प्रमुख पुराणों में पाँच विशिष्ट संकेत या रेखाएँ हैं; जो उनके अभिन्न दर्शन के बिन्दु हैं। सबसे पहले ब्रह्माण्ड के निर्माण का एक चित्रण है। दुनिया की कई पारम्परिक कहानियाँ कैसे बनायी गयींं? किसने बनायीं? और क्यों बनायीं? उनमें से प्रत्येक में वर्णित हैं। हिन्दू परम्परा में यह माना जाता है कि बुरी ताकतें अक्सर अराजकता और विनाश का कारण बनती हैं, इसलिए दूसरा संकेत ब्रह्माण्ड के नष्ट होने के बाद इसके पुनर्निर्माण को लेकर है।

सबसे प्रसिद्ध संकेत तीसरा है, जो देवी और देवताओं की कहानियों और उनकी वंशावली से सम्बन्धित है। जैसे कि उनके माता-पिता और बच्चे कौन हैं? चौथा संकेत प्राणिक (मौलिक) मनुष्यों और उनके सांसारिक शासनकाल से सम्बन्धित है। पुराणों के पाँचवें और अंतिम चिह्न में प्रसिद्ध सौर और चंद्र राजवंशों का वर्णन है। अनिवार्य रूप से दो प्राणियों में से एक ने सूर्य और दूसरे ने चंद्रमा से वंश का दावा किया, और यह उन राजवंशों की उत्पत्ति की व्याख्या करता है। पुराण स्मृति का एक हिस्सा हैं, अर्थात् गैर-वैदिक शास्त्र। हिन्दू विश्व शीर्षक वाले ग्रन्थ में पुराणों की उपस्थिति 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 16वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक की है। आमतौर पर यह माना जाता है कि पुराण आम लोक के वेद हैं। 18 प्रमुख पुराण हैं, जिन्हें लोकप्रिय रूप से महापुराण कहा जाता है, उनमें से छ: भगवान विष्णु से सम्बन्धित हैं, छ: भगवान शिव को समर्पित हैं और छ: भगवान ब्रह्मा को लेकर लिखे गये हैं। इन महापुराणों का वर्णन हिन्दू विश्व ग्रन्थ में निम्नलिखित तरीके से किया गया है :-

छ: विष्णु पुराण, प्रकृति में सात्विक के रूप में प्रतिष्ठित हैं –

(1) विष्णु पुराण में 7000 श्लोक हैं और सच्चे पुराण के सभी गुण हैं। किंवदंती है कि यह पहली बार भगवान ब्रह्मा से ऋषि ऋभु को पता चला था, जिन्होंने इसे ऋषि पुलस्त्य के सामने प्रकट किया था। ऋषि पुलस्त्य ने इसके बाद ऋषि पारासर को दिया, जिसने बदले में इसे अपने शिष्य मैत्रेय के नाम से जाना। विष्णु पुराण का पाठ पारासर और मैत्रेय के बीच एक संवाद का रूप लेता है। इसका मूल उपदेश यह है कि विष्णु विश्व के निर्माता, अनुचर और नियंत्रक हैं; सांसारिक दुनिया एक सामंजस्यपूर्ण प्रणाली के रूप में मौज़ूद है, और सच्चाई के रूप में भगवान विष्णु दुनिया है। यह पुराण इस वर्ग के सभी कामों में सबसे सही और सबसे अच्छा ज्ञात है। यह मौर्य वंश के बारे में बहुत मूल्यवान जानकारी देता है।

(2) नारद पुराण में 3,000 श्लोक शामिल हैं, जिसमें ऋषि नारद मनुष्य के आवश्यक कर्तव्यों का वर्णन करते हैं। एक अन्य सम्बन्धित कार्य, जिसे बृहण के रूप में जाना जाता है। बृहत् नारदिया में 3,500 छन्द हैं। ये पुराण इस्लामिक आक्रमण के बाद की अवधि के हैं, और इस पर एक वास्तविक पुराण की छाप नहीं हैं।

(3) भागवत् पुराण (या श्रीमद् भागवतम्), जो पुराणों में सबसे अधिक मनाया जाता है; 18,000 छन्दों का एक विशाल ग्रन्थ है, जिसे 12 स्कंदों या पुस्तकों में विभाजित किया गया है। सबसे लोकप्रिय हिस्सा 10वीं पुस्तक है, जो भगवान की जीवन कहानी को दर्शाती है। विशेष रूप से श्रीकृष्ण के लडक़पन को। भागवत् पुराण में एक ऋषि और एक राजा के बीच एक संवाद के रूप में व्यक्त किया गया है, जिसे एक पवित्र व्यक्ति को बिना अभिप्राय मारने के लिए एक सप्ताह के भीतर मृत्यु का सामना करना है। अपने उद्धार को सुनिश्चित करने के लिए वह भागवत् पुराण सुनकर सप्ताह बिताता है। भक्ति का सिद्धांत या सर्वोच्च विश्वास, भगवान की भक्ति, गोपियों की भक्ति (जिनके साथ श्रीकृष्ण क्रीड़ा करते थे), आध्यात्मिक भक्ति के प्रतीक के रूप में सामने आये। दिलचस्प बात यह है कि इस पुराण में दिव्य चरित्र राधा का कोई सन्दर्भ नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि यह दक्षिण भारत में 1250 ईस्वी के आसपास लिखा गया था; जबकि अन्य का मानना है कि इसे 900 ईस्वी के आसपास लिखा गया था। इस पुराण की प्रसिद्ध 10वीं पुस्तक का सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

(4) गरुड़ पुराण, जिसके कई संस्करण उपलब्ध हैं; को लेकर संदेह है कि क्या इसके वास्तविक मूल संस्करण ही अस्तित्व में हैं? इसका नाम भगवान विष्णु के श्रद्धेय वाहन गरुड़ के नाम पर रखा गया है; लेकिन इसकी सामग्री इसके नाम को सही नहीं ठहराती है। यह मुख्य रूप से मृत्यु के समय या उसके बाद किये जाने वाले अनुष्ठानों, अन्तिम संस्कार समारोहों का विवरण, पूर्व या मृतक के लिए एक नये शरीर का अनुष्ठान निर्माण, आत्मा की यात्रा के विभिन्न चरणों में मृत्यु के बाद के एक नये शरीर में पुनर्जन्म से सम्बन्धित है। यह सूर्योपासना और ज्योतिष से सम्बन्धित है और सम्भवत: मूल रूप से भारतीय-पारसी (इंडो-जोरोस्ट्रियन) है।

(5) पद्म पुराण, छ: पुस्तकों में विभाजित एक व्यापक संकलन है, जो उस समय का वर्णन करता है, जब दुनिया एक सुनहरे कमल (पद्म) के आकार में होती है। इसमें सृष्टि और पृथ्वी, स्वर्ग और अधोलोक के क्षेत्रों का वर्णन है। भक्ति पर एक पूरक को बाद की तारीख में जोड़ा गया है। लेकिन सम्पूर्ण कार्य लगभग ईस्वी सन् 1100 से पहले नहीं हुआ है।

(6) वराह पुराण में लगभग 10,000 श्लोक हैं, और यह 1000 ईस्वी से ज़्यादा पुराना नहीं है। यह भगवान विष्णु से वराह को पता चला था।

छ: शिव पुराणों को गुणवत्ता में तामसिक के रूप में माना जाता है –

(1) मत्स्य पुराण में एक वास्तविक पुराण के सभी गुण हैं। इसका पाठ एक व्यापक मिश्रण है, जो विष्णु और पद्म पुराण और महाभारत से भी बड़े पैमाने पर उधार लिया गया है। यह भगवान विष्णु के एक मत्स्य (मछली) अवतार की गाथा है, जो ऋषि मनु के द्वारा प्रकट माना जाता है। इसमें आंध्र वंश के बारे में कुछ जानकारी है।

(2) कूर्म पुराण, 900 ईसा पूर्व के आसपास का माना जाता है कि जिसमें भगवान विष्णु एक कछुए (कुर्मा) के रूप में जीवन का उद्देश्य बताते हैं। इस पुराण में भगवान महादेव और माँ जगदंबा की पूजा की महिमा है।

(3) लिंग पुराण, 700 ईस्वी के आसपास का कार्य है; जिसमें भगवान शिव पुण्य, धन, सुख और मुक्ति के अर्थ और लिंग का आध्यात्मिक महत्त्व बताते हैं। यह काफी हद तक कर्मकाण्ड है।

(4) वायु पुराण, पुराणों में से सबसे पुराना है, भगवान शिव की कई विशेषताओं और गया की पवित्रता के लिए समर्पित है। इस पुराण का एक रूप, जिसे शिव पुराण भी कहा जाता है, चन्द्रगुप्त प्रथम के शासनकाल के बारे में जानकारी देता है।

(5) स्कंद पुराण, युद्ध के देवता भगवान स्कंद से सम्बन्धित है। सबसे लम्बे पुराणों में से है और इसमें 80,000 से अधिक श्लोक शामिल हैं। हालाँकि समग्र रूप में नहीं, केवल टुकड़ों में। चित्रण के लिए काशी खण्ड है, जिसमें बनारस और वहाँ के शैव मन्दिरों का वर्णन है, और उत्कल खण्ड, जो उड़ीसा का विवरण देता है।

(6) अग्नि पुराण, जिसे आग्नेय पुराण भी कहा जाता है; मूल रूप से अग्नि के देवता अग्नि द्वारा ऋषि वशिष्ठ को बताया गया था। इस विश्वकोश संकलन में कुछ मूल सामग्री के अलावा अन्य कार्यों के कई अंश, अनुष्ठान पूजा, ब्रह्माण्ड विज्ञान, वंशावली कालक्रम, युद्ध कला और ऋषि याज्ञवल्क्य (सदानीरा) से ली गयी विधि पर एक अनुभाग, चिकित्सा ज्ञाता सुश्रुत से ली गयी औषधि पर एक अध्याय, और ऋषि पिंगला और ऋषि पाणिनी से व्याकरण पर हैं।

छ: ब्रह्म पुराण, प्रकृति में राजसिक हैं –

(1) ब्रह्म पुराण, जिसे आदि पुराण या प्रथम पुराण भी कहा जाता है; पुराणों की सभी सूचियों में प्रथम स्थान पर है। सूर्य देव के प्रति अपने समर्पण के कारण, इसे सौर पुराण के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने ऋषि मरीचि को इसका पता दिया था। ओडिशा के मन्दिरों आदि के वर्णन के लिए समर्पित कुछ वर्गों के अलावा यह भगवान कृष्ण की जगन्नाथ के रूप में पूजा करता है, जो आंशिक रूप से विष्णु पुराण से लिया गया है।

(2) ब्रह्माण्ड पुराण, ब्रह्मा की संरचना की भव्यता को उजागर करता है, और भविष्य के पूर्वजों का वर्णन करता है। स्कन्द पुराण की तरह यह एक समग्र कार्य के रूप में मौज़ूद नहीं है; लेकिन केवल टुकड़ों में है। लोकप्रिय पुराण रामायण इसी पुराण का एक हिस्सा है। अध्यात्म रामायण की रचना महर्षि व्यास की बतायी गयी है, और इसमें भगवान राम को एक नश्वर नायक के बजाय एक उद्धारकर्ता भगवान और एक तारणहार के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

(3) ब्रह्म-वैवस्वत् पुराण (या ब्रह्म-वैवर्त) मनु सवर्ण पुत्र वैवस्वत् द्वारा ऋषि नारद को बताया गया है। यह तुलनात्मक रूप से देर की तारीख का है, और भगवान कृष्ण और राधा की पूजा में शामिल होते हैं; जिससे यह युगल पति-पत्नी बन जाता है; ताकि उनका प्रेम व्यभिचारी नहीं बल्कि संयुग्मित हो।

(4) मार्कंडेय पुराण, अन्य सभी पुराणों से स्वर में काफी भिन्न है। यह ऋषि मार्कंडेय द्वारा प्रकट किया गया था, जब वेदों में निपुण कुछ विशिष्ट पक्षियों द्वारा सुना गया था। इन पक्षियों ने इसे ऋषि जैमिनी के सामने दोहराया। इसका सम्प्रदाय, अनुष्ठान या ब्रह्म की उपासना के साथ बहुत कम है; लेकिन किंवदंतियों का एक स्वर है। स्वर धर्मनिरपेक्षता का मतलब है- किसी विशेष सिद्धांत की सिफारिश नहीं करना और मुख्य रूप से पुराणों से श्रेष्ठ, मूल रचनाओं से मिलकर बनता है। इस पुराण का एक प्रकरण दुर्गा महात्म्य (जिसे देवी महात्म्य, चण्डीप्रथा, चण्डी सप्तसती कहा जाता है), बाकी की तुलना में पुराना है। यह 13 अध्यायों में 700 छन्दों की कविता है, जो माँ-देवी के रूप में माँ शक्ति की महिमा को समर्पित है, जो समय-समय पर राक्षसों और राक्षसों की दुनिया से छुटकारा पाने के लिए पृथ्वी पर उतरती है। यह खण्ड कई हिन्दू धार्मिक कार्यों में सुनाया जाता है।

(5) भविष्य पुराण, शीर्षक, जिसका अर्थ है- भविष्य पुराण को मनमाना रूप दिया गया है। यह मुख्य रूप से संस्कार और समारोहों की एक पुस्तिका है, जो चरित्र और सामग्री में बहुत अधिक असमान है।

(6) वामन पुराण में विष्णु के एक वामन (बौने) अवतार का वर्णन है। यह भगवान शिव और भगवान विष्णु के बीच अपनी श्रद्धा को विभाजित करता है।

उपरोक्त के अलावा कुछ अन्य पुराण हैं, जिन्हें उप-पुराण या लघु पुराण भी कहा जाता है, जिनमें से कुछ हिन्दू विश्व में सूचीबद्ध हैं।

उप पुराण निम्नलिखित हैं :-

(1)        आदित्य या आदि पुराण

(2)        आश्चर्य पुराण

(3)        औसानसा (उसानस से)

(4)        भास्कर (या सूर्य या सौर) पुराण

(5)        देवी पुराण

(6)        देवी-भागवत (एक शैव पुराण, जो महान् पुराणों के साथ सूचीबद्ध है।)

(7)        दुर्वासा पुराण

(8)        कालिका (ईसा पूर्व 1350), एक शक्त पाठ, बहुत तांत्रिक सामग्री का स्रोत (मानव बलि) पुराण

(9)        कल्कि पुराण

(10)      कपिला पुराण

(11)      महेश्वर पुराण

(12)      मानव पुराण

(13)      मारीच पुराण

(14)      नंदिकेश्वर पुराण (कुमार द्वारा कथित)

(15)      नारद या वृहान पुराण

(16)      नरसिंह पुराण

(17)      पाराशर (पराशरोक्त) पुराण

(18)      साम्ब पुराण

(19)      सनतकुमार पुराण

(20)      शिवधर्म पुराण

(21)      सुता-संहिता (एक भक्ति पुराण, भागवत की तरह; लेकिन शिव को समर्पित)

(22)      वरुण पुराण

(23)      वैया पुराण

(24)      वृहण (देखें नारद) पुराण

(25)      युग पुराण

सभी पुराणों और उप पुराणों ने युगों के माध्यम से सभी हिन्दुओं के लिए जीवन के सनातन दृष्टिकोण को समृद्ध और निरन्तर बनाये रखा है और इसे शाश्वत् प्रेरणास्रोत के रूप में प्रतिष्ठित किया है।

(अगले अंक में – विश्व स्तर पर लोगों को मंत्रमुग्ध करता है सनातन धर्म)