नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने आज सवाल किया कि पटाखों पर स्थायी, राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया गया और दिल्ली में सिर्फ खास महीनों के दौरान ही प्रतिबंध लागू किए जाते हैं, जबकि राजधानी में वायु प्रदूषण साल भर मुद्दा बना रहता है। सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा माना जाता है कि कोई भी धर्म किसी भी ऐसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता, जो प्रदूषण को बढ़ाती है या लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाती है।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि अगर पटाखे इसी तरह से फोड़े जाते रहे तो इससे नागरिकों का सेहत का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा। अदालत ने कहा, “सिर्फ़ कुछ महीने ही क्यों? वायु प्रदूषण तो पूरे साल बढ़ता ही रहता है!” अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि मौजूदा आदेश त्योहारी मौसम और उन महीनों में वायु प्रदूषण पर केंद्रित है जब हवा दिल्ली में प्रदूषण को बढ़ाती है। हालाँकि, पीठ इससे सहमत नहीं थी और उसने सुझाव दिया कि स्थायी प्रतिबंध पर विचार किया जाना चाहिए।
बता दें कि दिल्ली में अभी अक्तूबर से नए साल तक ही पटाखों पर प्रतिबंध लगाया जाता है। इसके बाद कोई बैन नहीं होगा, लेकिन आप सरकार इस बीच भी सख्ती से इसे लागू करने में विफल हो रही है। अब यही देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि दिल्ली में सालभर पटाखा बैन पर 25 नवंबर से पहले फैसला लें।
इंफाल : मणिपुर में जारी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। जिरीबाम इलाके में सुरक्षाबलों ने कुकी उपद्रवियों के हमले का मुंहतोड़ जवाब देते हुए 10 उपद्रवियों को मार गिराया है। वहीं, इंफाल पूर्व जिले में किसानों पर लगातार हमले हो रहे हैं। जिरीबाम में हथियारों से लैस कुकी उपद्रवियों ने सीआरपीएफ पोस्ट पर हमला किया था। जवाबी कार्रवाई में असम राइफल और सीआरपीएफ ने 10 उपद्रवियों को मार गिराया। इस मुठभेड़ में सीआरपीएफ का एक जवान घायल हुआ है।
इंफाल पूर्व जिले में सोमवार सुबह उग्रवादियों ने खेत में काम कर रहे एक किसान पर गोलीबारी कर घायल कर दिया। इससे पहले भी इस क्षेत्र में किसानों पर हमले की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जातीय संघर्ष के कारण घाटी के बाहरी इलाकों में रहने वाले कई किसान खेतों में जाने से डर रहे हैं और इससे धान की फसल की कटाई प्रभावित हो रही है।
मणिपुर में कुकी और मैतेयी समुदाय के बीच शुरू हुआ संघर्ष हिंसक रूप ले चुका है और पिछले कई महीनों से यहां लगातार हिंसा हो रही है। इस हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग बेघर हो गए हैं। मणिपुर में सुरक्षाबलों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उग्रवादी लगातार नए हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं और सुरक्षाबलों पर हमले कर रहे हैं। इसके अलावा, घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में उग्रवादियों को पकड़ना बहुत मुश्किल है।
मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए सरकार को कई कदम उठाने होंगे। इसमें दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाल करना, उग्रवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना और विकास कार्यों को गति देना शामिल है।
नई दिल्ली : जस्टिस संजीव खन्ना ने देश के सीजेआई के तौर पर शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उन्हें शपथ दिलाई। राष्ट्रपति भवन के अशोक हॉल में संजीव खन्ना ने शपथ ली। इस दौरान समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
चुनाव में ईवीएम की उपयोगिता बनाए रखना, चुनावी बांड योजना को खारिज करना, अनुच्छेद-370 के निरस्तीकरण के फैसले को कायम रखना और दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार के लिए अंतरिम जमानत प्रदान करने के फैसले देने वाले बेंच में वो शामिल थे।
तीस हजारी कोर्ट से भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश तक का सफर जस्टिस संजीव खन्ना दिल्ली के रहने वाले हैं और उन्होंने अपनी सारी पढ़ाई-लिखाई दिल्ली से ही की है। उनका जन्म 14 मई 1960 को हुआ था। उनके पिता न्यायमूर्ति देस राज खन्ना थे, जो दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।
साल 1983 में वो दिल्ली बार काउंसिल के साथ एक वकील के रूप में नामांकित हुए। शुरुआत में दिल्ली के तीस हजारी परिसर में जिला न्यायालयों में और बाद में दिल्ली के उच्च न्यायालय और संवैधानिक कानून, प्रत्यक्ष कराधान, मध्यस्थता जैसे विविध क्षेत्रों में न्यायाधिकरणों में प्रैक्टिस की। वाणिज्यिक कानून, कंपनी कानून, भूमि कानून, पर्यावरण कानून और चिकित्सा लापरवाही कानूनों पर उनकी जबर्दस्त पकड़ है।
18 जनवरी, 2019 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उन्हें पदोन्नत किया गया। उन्होंने 17 जून 2023 से 25 दिसंबर 2023 तक सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति के अध्यक्ष का पद संभाला। वह वर्तमान में राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य भी हैं। संजीव खन्ना 13 मई, 2025 तक सीजेआई के पद पर रहेंगे।
नई दिल्ली : आज के ही दिन 10 साल पहले केंद्र की मोदी सरकार ने वन रैंक वन पेंशन(ओआरओपी) लागू की थी। पीएम ने इस ऐतिहासिक दिन को याद करते हुए बताया कि लाखों पेंशनधारकों को फायदा पहुंचा है।
आज इसे लागू हुए पूरे 10 साल हो चुके हैं। वन रैंक वन पेंशन को लेकर गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया। पोस्ट में उन्होंने लिखा, इस दिन वन रैंक वन पेंशन लागू किया गया। यह हमारे दिग्गजों और भूतपूर्व सैन्यकर्मियों के साहस और बलिदान को श्रद्धांजलि थी। जिन्होंने हमारे देश की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इसे लागू करने का निर्णय लंबे समय से चली आ रही मांग को संबोधित करने और हमारे नायकों के प्रति हमारे राष्ट्र की कृतज्ञता की पुष्टि करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। आप सभी को यह जानकर खुशी होगी कि पिछले एक दशक में लाखों पेंशन धारकों और उनके परिवारों को इस ऐतिहासिक पहल से लाभ मिला है। संख्याओं से परे, ओआरओपी हमारे सशस्त्र बलों की भलाई के लिए सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है।
हम हमेशा अपने सशस्त्र बलों को मजबूत करने और हमारी सेवा करने वालों के कल्याण को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। उन्होंने लिखा, वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सशस्त्र सेनाओं के प्रति नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है। उनके नेतृत्व में सरकार सैनिकों और उनके परिवारों की देखभाल करने के लिए प्रतिबद्ध है। ओआरओपी के क्रियान्वयन से 25 लाख से अधिक भूतपूर्व सैनिकों को लाभ मिला है। देश के भूतपूर्व सैनिकों से की गई प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री का आभार।
भाजपा आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया। उन्होंने लिखा, जैसा कि हम वन रैंक वन पेंशन की वर्षगांठ मना रहे हैं। एक ऐतिहासिक सुधार जो पिछले एक दशक से हमारे दिग्गजों को सम्मानित और उत्थान करता आ रहा है। ओआरओपी ने सुनिश्चित किया है कि समान रैंक और सेवा अवधि वाले सशस्त्र बल कर्मियों को उनकी सेवानिवृत्ति तिथि की परवाह किए बिना समान पेंशन मिले। इस क्रांतिकारी सुधार से 25 लाख से अधिक सशस्त्र बल पेंशन धारकों और उनके परिवारों को लाभ हुआ है। पिछले 10 वर्षों में भारत सरकार ने वन रैंक वन पेंशन पर 1.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं। हर 5 साल में पेंशन को फिर से तय किए जाने के साथ, हमारे नायकों के प्रति यह प्रतिबद्धता समय के साथ मजबूत होती जा रही है।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बंद हो चुकी एयरलाइन जेट एयरवेज को जालान कलरॉक कंसोर्टियम को हस्तांतरित करने के एनसीएलएटी के फैसले को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आज 7 नवंबर को दिक्कतों से जूझ रही जेट एयरवेज को लिक्विडेट करने यानी कि इसकी संपत्तियों को बेचने का आदेश दिया है।
एनसीएलएटी ने जेट एयरवेज का मालिकाना हक मंजूर हो चुके रिजॉल्यूशन प्लान के तहत जालान-कालरॉक कंसोर्टियम (JKC) को देने का फैसला सुनाया था। हालांकि इस फैसले के खिलाफ एसबीआई और बाकी क्रेडिटर्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने जेट एयरवेज को फिर से ट्रैक पर लाने के लिए कंसोर्टियम की प्रस्तावित समाधान योजना को रद्द कर दिया और कहा कि कंसोर्टियम निर्धारित समय में पहला किश्त का पैसा भी नहीं डाल सकी। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को 16 अक्टूबर को ही सुरक्षित कर लिया था और इसे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में तीन जजों की पीठ ने सुनाया। चीफ जस्टिस 10 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं। जालान कालरॉक ने 150 करोड़ रुपये की जो बैंक गारंटी की थी, उसे भी जब्त कर लिया गया है।
प्रयागराज : महाकुंभ 2025 को लेकर अखाड़ों की जमीन निरीक्षण से पहले आज 13 अखाड़ों के साधु-संतों की बैठक मेला प्राधिकरण के दफ्तर में हुई। इसी दौरान निर्मोही अखाड़े के महंत राजेंद्र दास से किसी बात को लेकर किसी साधु से झगड़ा हुआ और नौबत मार-पीट तक आ गई। इस बीच अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री स्वामी हरी गिरी महाराज ने भी दूसरे गुट के संत की पिटाई की। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने कहा-जमीन आवंटन को लेकर विवाद है।
कुछ संतों की तरफ से हंगामा हुआ। महाकुंभ के लिए जमीन आंवटन को लेकर संत आपस में भिड़े, दोनों गुटों को बैठक के लिए बुलाया गया था। निर्मोही अखाड़े के अध्यक्ष राजेंद्र दास ने कहा-जब भी कोई मेला होता है, तो जो अखाड़े के पदाधिकारी हैं। उन्हें बुलाया जाता है। लेकिन, कुंभ मेले में ये दो तीन बार हुआ है कि पदाधिकारियों को न बैठाकर दूसरों को बैठाया जाता है।
महाकुंभ 2025 के दौरान पूरे 2 महीने प्रयागराज में मांस और शराब की बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी। इस आदेश का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसलिए लोगों की धार्मिक आस्था और भावनाओं का ख्याल रखते हुए इस आदेश का दिल से सम्मान करें और इसे दिल से मानें।
नई दिल्ली : देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार को बुलडोजर एक्शन पर फटकार लगाई है। मामला यूपी के महाराजगंज जिले का है, जहां सडक़ चौड़ीकरण प्रोजेक्ट के लिए घरों को बुलडोजर के जरिए ध्वस्त किया गया था। मनोज टिबरेवाल आकाश ने रिट याचिका दायर की थी, जिस पर अदालत सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यूपी सरकार ने जिसका घर तोड़ा है उसे 25 लाख रुपए का मुआवजा दे। सीजेआई ने कहा कि यह पूरी तरह से मनमानी है, उचित प्रक्रिया का पालन कहां किया गया है? हमारे पास हलफनामा है, जिसमें कहा गया है कि कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था, आप केवल साइट पर गए थे और लोगों को सूचित किया था। हम इस मामले में दंडात्मक मुआवजा देने के इच्छुक हो सकते हैं। क्या इससे न्याय का उद्देश्य पूरा होगा? वार्ड नंबर 16 मोहल्ला हामिदनगर में स्थित अपने पैतृक घर और दुकान के विध्वंस की शिकायत करते हुए मनोज टिबरेवाल द्वारा संबोधित पत्र पर स्वत: संज्ञान लिया गया था।
डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव में अपनी जीत का ऐलान किया है। उन्होंने जीत को अमेरिका का ‘स्वर्ण युग’ बताया। रिपब्लिकन उम्मीदवार ने कहा, “यह अमेरिकी लोगों के लिए एक शानदार जीत है, जो हमें अमेरिका को फिर से महान बनाने का अवसर देगी।” चुनाव प्रचार के दौरान उन पर हमला भी हुआ, खून से लथपथ ट्रंप ने फिर भी हार नहीं मानी।
कैनबरा : विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को उम्मीद जताई अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम चाहे जो भी हो, भारत-अमेरिका संबंध लगातार बढ़ते रहेंगे। कैनबरा में संसद भवन में ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग के साथ एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए, जयशंकर ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 2017 में क्वाड गठबंधन को पुनर्जीवित करने का क्रेडिट दिया, जो भारत-पैसिफिक सहयोग में एक महत्वपूर्ण डेवलपमेंट था।
जयशंकर ने यह पूछे जाने पर कि यूएस प्रेसिडेंशियल इलेक्शन के बाद भारत-अमेरिका संबंध किस प्रकार विकसित होंगे, उन्होंने कहा, ‘हमने पिछले पांच राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में अमेरिका के साथ अपने संबंधों में स्थिर प्रगति देखी है, जिसमें ट्रंप का पिछला कार्यकाल भी शामिल है।” उन्होंने कहा, “इसलिए, जब हम अमेरिकी चुनाव को देखते हैं, तो हमें विश्वास है कि परिणाम चाहे जो भी हो, अमेरिका के साथ हमारे संबंध बढ़ते रहेंगे।”
बता दें अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए 5 नवंबर को वोट डाले जाने हैं। चुनाव परिणाम बुधवार सुबह तक घोषित किया जा सकता है। हालांकि देरी संभव है, कभी-कभी परिणामों को अंतिम रूप देने में कई दिन, सप्ताह या एक महीने भी लग सकते हैं।
विदेश मंत्री जयशंकर वर्तमान में दो देशों की यात्रा पर हैं, 7 नवंबर तक ऑस्ट्रेलिया में रहेंगे और 8 नवंबर को सिंगापुर का दौरा करेंगे। वह रविवार को ब्रिस्बेन पहुंचे, जिसके बाद उन्होंने भारतीय प्रवासियों को संबोधित किया और एक नए वाणिज्य दूतावास का उद्घाटन किया।
अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने आस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग के साथ 15वें विदेश मंत्रियों की फ्रेमवर्क डायलॉग (एफएमएफडी) की सह-अध्यक्षता की। बैठक के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने पोस्ट किया, “आज कैनबरा में विदेश मंत्री पेनी वोंग के साथ 15वीं भारत-ऑस्ट्रेलिया विदेश मंत्रियों की फ्रेमवर्क डायलॉग संपन्न हुआ। हमारी व्यापक रणनीतिक साझेदारी लगातार बढ़ रही है। यह मजबूत राजनीतिक संबंधों, मजबूत रक्षा और सुरक्षा सहयोग, विस्तारित व्यापार, अधिक गतिशीलता और गहन शैक्षिक संबंधों में परिलक्षित होती है। हमारे संबंधित पड़ोस, इंडो-पैसिफिक, पश्चिम एशिया, यूक्रेन और वैश्विक रणनीतिक परिदृश्य पर चर्चा की।”
– रबी की सिर्फ़ छ: फ़सलों के नये न्यूनतम समर्थन मूल्य से ख़ुश नहीं किसान
योगेश
केंद्र सरकार ने रबी की छ: फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में मामूली भाव बढ़ाकर किसानों को ख़ुश करने की कोशिश की है; लेकिन किसान इससे ख़ुश नहीं हैं। रबी की फ़सलों के बड़े हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर जब कुछ किसानों से बात की गयी, तो उन्होंने बिना सोचे कहा कि अभी तो धान ही बहुत सस्ता बिक रहा है। लागत भी नहीं निकल पा रही है।
खेती-बाड़ी में पाई-पाई का हिसाब रखने वाले सुरेश नाम के एक किसान ने कहा कि उनकी 16 बीघा धान की फ़सल में कुल 57,890 रुपये की लागत आयी है। उन्हें 16 बीघा खेत से 42 कुंतल धान मिले हैं। इसमें से आठ कुंतल उन्होंने अपने लिए रखे हैं और बाक़ी 34 कुंतल व्यापारी को एक महीने की उधारी पर 2,100 रुपये प्रति कुंतल के भाव में बेच दिये हैं। उनके कुल 42 कुंतल धान 2,100 के हिसाब से 88,200 रुपये के हुए, जिसमें से 30,310 रुपये की बचत हुई। इसमें भी घर के पाँच लोग लगातार मेहनत करते रहे। अगर उनकी मज़दूरी घर में खाने के लिए बचाये गये आठ कुंतल धान ही मान लें, तो 16,800 रुपये के होते हैं। तब 13,510 रुपये बचे। सुरेश ने कहा कि अगर इसमें अपनी और अपने परिवार की हर दिन की मेहनत जोड़ दूँ, तो मुझे घाटा ही होगा। रामपाल नाम के एक किसान ने कहा कि उन्हें धानों में इस साल कुछ ख़ास नहीं बचा है। उनकी धान की फ़सल में लागत के हिसाब से पैदावार ही नहीं मिली है। आवारा पशुओं ने उनका काफ़ी नुक़सान किया है। इस बार समय पर बारिश भी ठीक से नहीं हुई। तीन बीघा धान की फ़सल थी, जिसमें उनकी क़रीब 7,000 रुपये की लागत आयी और परिवार के खाने लायक भी धान नहीं मिले।
दीपावली से ठीक पहले रबी की छ: फ़सलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य में थोड़ी-सी बढ़ोतरी से किसानों को कोई बड़ा लाभ नहीं होने वाला है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीदी जाने वाली सभी फ़सलों का भाव बढ़ाने की किसानों की माँग किसान आन्दोलन के समय से है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी नहीं हुई और केंद्र सरकार ने हमारे किसानों से उनकी खेती छीनकर पूँजीपतियों को देने के लिए भूमि अधिग्रहण क़ानून को सरल किया है। किसानों पर दर्ज मुक़दमों को भी केंद्र सरकार ने वापस नहीं लिया है। आन्दोलन के दौरान मरने वाले किसानों के परिजनों को मुआवज़ा नहीं मिला है। आय दोगुनी करने के नाम पर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 500 रुपये देने में भी केंद्र सरकार बहुत सफल नहीं दिखती है। कई किसानों की शिकायत है कि उन्हें सरकार से कोई पैसा नहीं मिलता है। कई किसानों की शिकायत है कि उनके खाते में सम्मान राशि आनी बंद हो गयी है। कई किसानों का कहना है कि 500 रुपये महीने से उनका कोई भला नहीं होता। अभी 05 अक्टूबर को ही प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की इस साल की तीसरी $िकस्त 9.5 करोड़ किसानों के खातों में भेजने के केंद्र सरकार के दावे पर कई किसानों ने कहा कि उन्हें कोई पैसा नहीं मिला है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य वाली सभी 23 फ़सलों पर भाव न बढ़ने से किसानों में कोई ख़ुशी नहीं है। बड़े किसानों में गिने जाने वाले भमोरा के किसान विष्णु ने कहा कि महँगाई और लागत के हिसाब से किसानों को हर फ़सल पर लागत मूल्य और उस पर 50 प्रतिशत लाभ जोड़कर सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य देना चाहिए, जो कि किसानों की माँग है। यह फॉर्मूला स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर तय सी2+50 वाला है, जिसे किसान एमएसपी का गारंटी क़ानून कहकर माँग कर रहे हैं और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए किसानों से लिखित में वादा भी कर चुके हैं। तहमारे देश में फ़सलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीदने वाली प्रमुख एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) है। लेकिन 23 फ़सलों की ख़रीद की जगह भारतीय खाद्य निगम ज़्यादातर धान और गेहूँ ही ख़रीदता है, जिसकी ख़रीद 100 प्रतिशत भी नहीं है। किसानों की माँग है कि केंद्र सरकार ऐसा क़ानून बनाए, जिसमें किसानों की सभी 23 फ़सलों की 100 प्रतिशत ख़रीदारी सी-2+50 के फॉर्मूले पर तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर हो। लेकिन केंद्र सरकार किसानों की इस माँग पर ध्यान न देकर उन्हें कहीं 500 रुपये महीना देकर बहला रही है और अब रबी मौसम की छ: फ़सलों का थोड़ा-थोड़ा भाव बढ़ाकर उनका अपमान कर रही है।
समझदार और पढ़े-लिखे किसान कह रहे हैं कि केंद्र सरकार ने सभी फ़सलों पर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करके सी2+50 वाला एमएसपी का गारंटी क़ानून बनाने की जगह रबी की छ: फ़सलों के लिए ए2+एफएल फॉर्मूले का इस्तेमाल किया है। ए2+एफएल फॉर्मूले में खेती में लगने वाली लागत और परिवार के परिश्रम के मूल्य को एक निश्चित लागत से जोड़कर दिया जाता है। लेकिन फ़सलों की लागत और परिवार की मेहनत को केंद्र सरकार मनमाने तरीक़े से कम लगा रही है।
अगर केंद्र सरकार सभी 23 फ़सलों की ख़रीदी सी-2+50 के फॉर्मूले से न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करके किसानों से करे, तो अनुमानित रूप से केंद्र सरकार को 10 लाख करोड़ रुपये से 12 लाख करोड़ रुपये इसके लिए हर साल लगाने होंगे। केंद्र सरकार ने पूँजीगत निवेश के लिए वित्त वर्ष 2024-25 का अंतरिम बजट लक्ष्य 11.11 लाख करोड़ रुपये रखा है। इसी बजट में से सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को वेतन मिलता है। पूँजीपतियों का क़ज़र् सरकार ने 10 लाख करोड़ से ज़्यादा माफ़ कर दिया है; लेकिन किसानों के लिए उसके पास 500 रुपये महीने से ज़्यादा कुछ नहीं है। रबी की जिन छ: फ़सलों पर केंद्र सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में मामूली भाव बढ़ाया है, उन फ़सलों की ख़रीद अगले साल अप्रैल में शुरू होगी। इन छ: फ़सलों में गेहूँ पर 150 रुपये प्रति कुंतल, चने पर 210 रुपये प्रति कुंतल, सरसों पर 300 रुपये प्रति कुंतल, मसूर दाल पर 275 रुपये प्रति कुंतल, जौ पर 130 रुपये प्रति कुंतल और कुसुम पर 140 रुपये प्रति कुंतल का भाव बढ़ाया है। इसके हिसाब से रबी की इन छ: फ़सलों में गेहूँ का नया भाव 2,275 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 2,425 रुपये, चने का नया भाव 5,440 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 5,650 रुपये, सरसों का नया भाव 5,650 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 5,950 रुपये, जौ का नया भाव 1,850 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 1,980 रुपये, मसूर का नया भाव 6,425 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 6,700 और कुसुम का नया भाव 5,800 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 5,940 रुपये प्रति कुंतल किसानों को मिलेगा।
इस समय किसानों की ख़रीफ़ की फ़सल बिकने को तैयार है, जिसमें धान की फ़सल प्रमुख है। लेकिन किसानों की धान की फ़सल का सही भाव नहीं मिल रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सामान्य धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,300 रुपये प्रति कुंतल और ग्रेड-ए वाले धान के लिए 2,320 रुपये प्रति कुंतल मिल रहा है। लेकिन ख़रीद केंद्रों पर धान में गीलेपन और पराली होने के आरोप लगाकर किसानों से मोलभाव करने की कोशिश दलाल और ख़रीद केंद्रों के लालची कर्मचारी कर रहे हैं। धान की लागत लगभग 2,600 रुपये प्रति बीघा से लेकर 4,100 रुपये प्रति बीघा तक आती है। एक बीघा में दो से तीन कुंतल की उपज होती है। अगर भूमि में जान कम है, तो पैदावार कम ही मिलती है। इस तरह धानों में किसानों को कुछ ख़ास नहीं मिलता है। अगर केंद्र सरकार सी2+50 के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य वाली सभी फ़सलों को ख़रीदेगी, तो उन्हें लागत मूल्य से अलग उसका 50 प्रतिशत लाभ मिलेगा, जिसके हिसाब से सिर्फ़ धान का ही भाव कम-से-कम 3,600 रुपये प्रति कुंतल से 5.400 रुपये प्रति कुंतल हो जाएगा। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने पर किसानों को न प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि देने की ज़रूरत पड़ेगी और न ही उन्हें हर महीने पाँच किलो अनाज देने की ज़रूरत पड़ेगी। किसी किसान पर क़ज़र् नहीं रहेगा और न ही किसान आत्महत्या करेंगे। किसानों के बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ सकेंगे और किसानों को बीमार होने पर इलाज कराने में आसानी होगी। किसी बुरे वक़्त में और बच्चों की शादी आदि में उन्हें क़ज़र् भी नहीं लेना पड़ेगा। लेकिन हमारे देश की सरकार किसानों के हित में काम न करके उन्हें बहलाने की कोशिश कर रही है।