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कुर्सी हिल रही है!

विश्व शान्ति की चिन्ता में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को सांत्वना देने प्रधानमंत्री मोदी शान्तिदूत बनकर पहुँचे। यह अच्छी बात है। इससे युद्ध शान्त हो, न हो; लेकिन शायद प्रधानमंत्री की शान्ति-पुरुष की छवि बन जाए। उन्हें शान्ति के क्षेत्र में नोबेल मिल जाए। आख़िर विश्व शान्ति की चिन्ता हर किसी को थोड़े ही होती है? अंतरराष्ट्रीय नेता बनना इतना आसान थोड़े ही है। इसके लिए सभी देशों के शीर्ष नेताओं को रईसी दिखानी पड़ती है। विश्व शान्ति की छवि बनानी पड़ती है। अपने देश में भले ही अशान्ति हो। आख़िर दूसरे दो देशों की अशान्ति के आगे देश की अशान्ति क्या मायने रखती है? अपनों में बदनाम आदमी बाहर वालों के लिए अच्छा हो, तो अच्छा है। उसे बदनाम नहीं करना चाहिए। वह आदमी अगर देश के शीर्षस्थ पदों में से किसी पर हो, तब तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। अब यह देशद्रोह माना जाता है। संसद में सांसदों के द्वारा यशस्वी की उपाधि पा चुके प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ कीजिए कि उन्होंने विश्व भर में भारत के नाम का डंका बजवाया है। वर्ना पहले तो भारत की स्थिति बक़ौल प्रधानमंत्री- ”पता नहीं पिछले जनम में क्या पाप किया था, हिन्दुस्तान में  पैदा हुए थे। यह कोई देश है? यह कोई सरकार है? ये कोई लोग हैं? चलो छोड़ो, चले जाएँ कहीं और।’’

होंगे पहले के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जिनके सामने बैठकर आलोचक खुली आलोचना कर देते थे। यह अब नहीं चलता। अब तो लोकसभा और राज्यसभा के सभापति भी आलोचना नहीं सुनते। सुनें भी कैसे? आलोचना के लायक कुछ है ही नहीं। सब कुछ अच्छा ही अच्छा है। भारत तरक़्क़ी कर रहा है। दुश्मन डर से थरथरा रहे हैं। संसद से भारत को विकसित भारत कहा ही जा चुका है। नया संसद भवन बन चुका है। राम मंदिर बन चुका है। छतों से पानी टपकने वाले दोनों ऐतिहासिक निर्माणों की तकनीक नयी है। सड़कें स्पेस टेक्नोलॉजी से बन रही हैं। ये सड़कें सिर्फ़ सड़कें नहीं हैं, बल्कि बारिश के दौरान स्वीमिंग पूल बन सकती हैं और किसी को कभी भी अचानक पाताल की सैर करा सकती हैं। भ्रष्टाचारी जेल में डाले जा रहे हैं। सरकार उतनी ही ईमानदार है, जितनी ईमानदारी प्रधानमंत्री के चरित्र में है। बिलकुल साफ़-सुथरी छवि। कोई लूट नहीं; कोई संपत्ति नहीं बटोरी। जो कुछ भी है; सब ईमानदारी का है।

हालाँकि फिर भी प्रधानमंत्री मोदी को एक बेचैनी है। शायद यह बेचैनी विश्व शान्ति की ही है। कई पड़ोसी देशों में तनाव भी तो बढ़ रहा है। रूस-यूक्रेन, फिलिस्तीन-इजरायल, इजरायल-ईरान लड़ रहे हैं। उनकी विश्व शान्ति की चिन्ता अमेरिका की शान्ति की चिन्ता से मिलती-जुलती  है। अपनी चिन्ता उन्हें बिलकुल नहीं है। अपनी चिन्ता उन्होंने कभी की भी नहीं। जब भी चिन्ता की; दूसरों की ही की। वैसे भी अपनी चिन्ता करके करना क्या? किसी बात का मोह है नहीं। देश की सेवा का ज़िम्मा जनता जनार्दन ने सौंपा है; सो दिन-रात सेवा में लगे हैं। जिस दिन जनता आदेश करेगी, झोला उठाकर चल देंगे। अपने मन की शान्ति का मंत्र वह जानते ही हैं। किसी भी गुफा में ध्यान लगा सकते हैं। योग से लेकर ध्यान तक में वह पारंगत हैं। राजनीति के जादूगर हैं। केंद्र की सत्ता में आने का भी उनका तरीक़ा अद्भुत था। पूरा देश गुजरात मॉडल पर ख़ुश था, जो पूरे देश में लागू होना था। शायद हुआ भी है। आज पूरा देश उसका नतीजा देख रहा है। अभी तो तीसरे कार्यकाल की शुरुआत हुई है। आगे भी बहुत कुछ होगा।

कुछ मतदाता फिर भी नहीं समझ रहे हैं। अयोध्या, प्रयागराज, बाँदा, रामटेक, चित्रकूट और रामेश्वरम् के मतदाताओं ने भी नहीं समझा। अब लोकपोल के सर्वे बता रहे हैं कि हरियाणा वाले भी नहीं समझना चाहते। वहाँ मुश्किल से 20 से 29 सीटें ही मिलने के आसार नज़र आ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखण्ड में भी स्थिति यही है। महाराष्ट्र में तो शिवाजी महाराज के चरणों में सिर रखकर माफ़ी भी माँग ली। लेकिन राज्यों की सत्ताएँ खिसकती हुई नज़र आ रही हैं। कोई समझने को तैयार ही नहीं है। लोग विकास पुरुष की छवि को पहचान ही नहीं रहे हैं। आरएसएस अलग से नाराज़ है। भाजपा के कई नेता भी विद्रोह की सही घड़ी का इंतज़ार कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर चर्चा कुर्सी हिलने की है। विरोधी वैश्विक नेता की छवि वाले प्रधानमंत्री पर हमले कर रहे हैं। विपक्षी विरोध के सुर अलाप रहे हैं। जनता को भड़का रहे हैं। कुर्सी हिलाने की कोशिश में लगे हैं। देश के एक लोकप्रिय और सर्वश्रेष्ठ नेता को बदनाम कर रहे हैं। अब तो कई अपने भी दुश्मन बन गये।

समझ में नहीं आता कि भारत को विकसित भारत बनाना किसी को क्यों नहीं दिख रहा है? विश्व भर में बजता भारत के नाम का डंका क्यों सुनायी नहीं देता? अच्छे दिन क्यों नहीं दिखते? सबको अपना परिवारजन भी कह दिया, फिर भी तरस नहीं आया। अपने दो कार्यकालों में कितने विकास कार्य किये? लेकिन देशवासियों को वो भी नहीं दिखा। तीसरी बार में लोकसभा पहुँचाया भी, तो बैसाखियों के सहारे। पता नहीं कब कुर्सी की कौन-सी टाँग टूट जाए।

चुनौती भरे चुनाव

चुनाव आयोग ने दो विधानसभाओं- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के लिए चुनाव की तारीख़ों की घोषणा कर दी है। ये चुनाव राजनीतिक और सुरक्षा, दोनों ही स्तर पर चुनौती भरे हैं। जम्मू-कश्मीर का चुनाव सुरक्षा की दृष्टि से काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। 10 साल बाद हो रहा यह चुनाव राज्य की जनता के लिए राहत लेकर आएगा, जो पिछले छ: साल से बग़ैर किसी चुनी सरकार के तमाम परेशानियाँ झेल रही है। इस चुनाव के नतीजों से यह भी पता चलेगा कि अनुच्छेद-370 ख़त्म करने और जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा छीनने को राज्य की जनता ने कैसे लिया है? उधर हरियाणा के चुनाव सत्तारूढ़ भाजपा के लिए चुनौती भरे हैं; क्योंकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन से पाँच सीटें जीतकर उसके ख़ेमे में हलचल मचा दी थी। भाजपा के सामने अब अपनी सरकार को बचाने की मुश्किल चुनौती है।

देश में महाराष्ट्र सहित कुछ और राज्यों में इसी साल चुनाव होने हैं। लेकिन चुनाव आयोग ने फ़िलहाल दो ही राज्यों के लिए चुनाव घोषित किये हैं। विपक्ष ने इस पर विरोध भी जताया। उसका तर्क है कि प्रधानमंत्री मोदी तो रोज़ एक राष्ट्र-एक चुनाव का राग अलापते रहते हैं और हक़ीक़त में चार राज्यों के चुनाव तक एक साथ नहीं करवा पा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में चुनाव की घोषणा स्वागत योग्य है; क्योंकि वहाँ लोग पिछले छ: साल से दिक़्क़तें झेल रहे हैं। उनका यह आरोप है कि राष्ट्रपति (राज्यपाल) शासन में भ्रष्टाचार बढ़ गया है और अपनी दिक़्क़तें सुलझाने या बताने के लिए उनके पास कोई मंच या प्रतिनिधि नहीं है। कश्मीर ही नहीं, जम्मू में भी लोग इस बात से नाख़ुश हैं कि उनका पूर्ण राज्य का दर्जा ख़त्म कर दिया गया है।

जम्मू-कश्मीर में लोगों में अनुच्छेद-370 ख़त्म होने से जो नाराज़गी बनी थी, वह अभी ख़त्म नहीं हुई है। मोदी सरकार को देश ही नहीं, दुनिया के सामने भी यह साबित करना है कि उनका जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 ख़त्म करने का फ़ैसला महज़ उनकी पार्टी के एजेंडे का हिस्सा भर नहीं था और इस फ़ैसले से देश, राज्य और वहाँ के अवाम को फ़ायदा हुआ है। नहीं भूलना चाहिए की जम्मू-कश्मीर में अभी भी सुरक्षाबलों की अब तक की सबसे बड़ी संख्या 2017 के बाद से तैनात है। आतंकवाद की बात करें, तो जम्मू-कश्मीर अभी भी दोराहे पर खड़ा है। केंद्र की लाख कोशिशों और दावों के विपरीत आतंकवादी घटनाएँ वहाँ जारी हैं।

अकेले इस साल के आठ महीनों में जम्मू-कश्मीर में 25 से ज़्यादा आतंकी घटनाएँ हो चुकी हैं, जिनमें 30 से ज़्यादा जवानों शहादत और आम लोगों की मौत हो चुकी है। बेशक केंद्र सरकार का दावा है कि अनुच्छेद-370 ख़त्म करने के बाद जम्मू-कश्मीर में शान्ति बहाल हुई है; लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है और आतंकी घटनाएँ अब जम्मू क्षेत्र में भी होने लगी हैं। ऐसे में मोदी सरकार के लिए जम्मू-कश्मीर में शान्तिपूर्ण चुनाव करवाना एक बड़ी चुनौती रहेगी। यह ज़रूर हो सकता है कि घाटी की जनता भाजपा के विरोध-स्वरूप बड़ी संख्या में वोट डालने के लिए घरों से निकले।

याद रहे यूपीए सरकार की 10 साल की कोशिशों से जम्मू-कश्मीर के 2014 के विधानसभा चुनाव में काफ़ी सकारात्मक असर देखने को मिला था; भले चुनाव के समय मोदी केंद्र की सत्ता में थे। घाटी में पत्थरबाज़ी की घटनाएँ ज़रूर हो रही थीं। लेकिन रणनीतिक तौर पर यूपीए सरकार घाटी की अवाम को बाक़ी के देश से जोड़ने में सफल हो रही थी। वहाँ विकास ने भी ज़ोर पकड़ा था। उस चुनाव में पहले दौर में 71.28 फ़ीसदी, दूसरे दौर में 71 फ़ीसदी, तीसरे दौर में 58.89 फ़ीसदी, चौथे दौर में 49 फ़ीसदी और पाँचवें दौर में 76 फ़ीसदी मतदान हुआ था। घाटी में मतदान जम्मू के मुक़ाबले बेशक कुछ कम था; लेकिन इतने ज़्यादा वोट तब भी पड़े, जब हुर्रियत कॉन्फ्रेंस और आतंकी संगठनों ने मतदान के वहिष्कार की अपील की हुई थी। निश्चित ही कश्मीर की जनता ने इतने दशकों में लोकतंत्र और भारतीय व्यवस्था पर भरोसा जताया है।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि जम्मू-कश्मीर में लागू की गयी मोदी सरकार की नीतियों के पक्ष में जनता का समर्थन न के बराबर है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि उसने 05 अगस्त, 2019 को राज्य की जनता और राज्य के राजनीतिक नेतृत्व को भरोसे में लिए बिना अनुच्छेद-370 और घाटी का पूर्ण राज्य का दर्जा ख़त्म कर दिया। इसे घाटी की जनता ने नई दिल्ली (केंद्र) की नकारात्मक नीति के रूप में देखा। और 2004 के बाद घाटी की जनता को देश से जोड़ने की जिस रणनीति पर काम किया गया था, उसे भी गहरा झटका लगा। इससे पहले 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने घाटी में सख़्त रुख़ रखने वाली मुफ़्ती मोहम्मद सईद की पार्टी पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का फ़ैसला करके बहुत बेहतर संदेश दिया था, जिसका घाटी की जनता में सकारात्मक सन्देश गया था।

नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा के किसी राष्ट्रीय नेता की कश्मीर घाटी में यदि सबसे ज़्यादा स्वीकार्यता थी, तो वह अटल बिहारी वाजपेयी थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में श्रीनगर से पाकिस्तान की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाने की पहल भी की थी। अब सच्चाई यह है कि उनके बाद भाजपा के नेता के रूप में केंद्र की सत्ता में आये नरेंद्र मोदी की घाटी में स्वीकार्यता न के बराबर है। जम्मू के हिन्दू-बहुल क्षेत्रों में बेशक वह लोकप्रिय हैं। अनुच्छेद-370 ख़त्म करने को लेकर घाटी के लोग सोचते हैं कि वाजपेयी होते, तो ऐसा नहीं होता। भाजपा के इन फ़ैसलों का सबसे बड़ा नुक़सान उसके साथ सरकार चला चुकी पीडीपी को झेलना पड़ा है, जिसे घाटी की जनता ने हाल के लोकसभा चुनाव में समर्थन नहीं दिया। लिहाज़ा उसका एक भी उम्मीदवार चुनाव में नहीं जीता। फ़िलहाल राज्य में चुनावी गतिविधियाँ शुरू हो गयी हैं। वहाँ 2014 की कुल 87 सीटों के मुक़ाबले इस बार 90 सीटों पर चुनाव होगा। अब सरकार बनाने के लिए 46 सीटें जीतनी ज़रूरी हैं। कांग्रेस और फ़ारूक़ अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस में चुनावी गठबंधन हो चुका है। तीन चरणों में- 18 सितंबर, 26 सितंबर और 01 अक्टूबर को मतदान प्रस्तावित है; जबकि 08 अक्टूबर को नतीजे आएँगे। भाजपा घाटी में खाता खोलना चाहती है। उसके कुछ समर्थक दल घाटी में हैं। उम्मीदवारों की घोषणा शुरू हो चुकी है। देखना दिलचस्प होगा कि पीडीपी और पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद का क्या रोल इन चुनावों में रहता रहता है?

हरियाणा की बात करें, तो वहाँ सत्तारूढ़ भाजपा के लिए अपनी सरकार को बचाये रखने की मुश्किल चुनौती है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जैसा प्रदर्शन किया था, उसके बाद लगता है कि राज्य में उसकी स्थिति काफ़ी मज़बूत हुई है। आम आदमी पार्टी भी वहाँ अपना खाता खोलने की कोशिश में है, जिसके प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हरियाणा के ही रहने वाले हैं। देखना होगा केजरीवाल के जेल में रहते पार्टी कितनी मज़बूती से चुनाव में उतर पाती है। भाजपा की हरियाणा में घबराहट इस बात से महसूस की जा सकती है कि उसने चुनाव आयोग से छुट्टियों को देखते हुए मतदान की तारीख़ आगे बढ़ाने की माँग की थी, जिसके बाद चुनाव आयोग ने 27 अगस्त को बैठक तो की; लेकिन नयी तारीख़ को लेकर कोई फ़ैसला नहीं दिया था। फिर दोबारा चुनाव आयोग ने 31 अगस्त को नयी तारीख़ की घोषणा कर दी। विपक्षी कांग्रेस ने पहले ही कहा था कि भाजपा की मतदान की तारीख़ आगे बढ़ाने की माँग से ज़ाहिर हो गया है कि राज्य में उसकी बुरी हार होने वाली है।

अब हरियाणा में 01 अक्टूबर की जगह 05 अक्टूबर को मतदान होगा, जिसके नतीजे 08 अक्टूबर को आएँगे। राज्य में भाजपा ख़ेमे में दो कारणों से चिन्ता है। एक तो यह कि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे अपने बूते बहुमत नहीं मिला था और उसने जजपा की मदद से सरकार बनायी थी, जो अब उसका साथ छोड़ चुकी है। लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा आलाकमान ने मनोहर लाल खट्टर को लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए मुख्यमंत्री पद से आनन-फ़ानन हटा दिया था, जिसके बाद मुख्यमंत्री बने नायब सिंह सैनी कुछ ख़ास प्रभाव डालने में सफल नहीं दिखे हैं। हाल ही में हिमाचल से भाजपा की बड़बोली सांसद कंगना रनौत ने किसानों को लेकर जो टिप्पणी की, उसने भाजपा को और नुक़सान पहुँचाया है। राजनीतिक रूप से यह इतनी घातक टिप्पणी थी कि भाजपा को कंगना को फटकार लगानी पड़ी।

जाट भी भाजपा से सख़्त नाराज़ दिखते हैं। कांग्रेस की चुनावी कमान अघोषित रूप से पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने सँभाली हुई है, जिनकी राज्य में काफ़ी लोकप्रियता है। यह माना जा रहा है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आयी, तो हुड्डा ही मुख्यमंत्री होंगे। हालाँकि कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सांसद कुमारी शैलजा भी मुख्यमंत्री बनने की चाहत रखती हैं। देखना होगा कि क्या कांग्रेस मुख्यमंत्री का चेहरा आगे करके चुनाव में उतरेगी? लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाली आम आदमी पार्टी दावा कर रही है कि वह भी बेहतर प्रदर्शन करेगी। जाटों में पैठ रखने वाली जजपा और अन्य छोटे दलों के सामने अस्तित्व का संकट है। हालाँकि दुष्यंत चौटाला की जजपा ने चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी से गठबंधन किया है। ज़मीनी स्थिति देखें, तो मुख्य मुक़ाबला कांग्रेस-भाजपा के बीच है और अन्य दल बहुत कम सीटों पर सिमट सकते हैं।

इंसानी ग़लतियों के चलते दरक रहे पहाड़

ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाएँ आदमी को आईना दिखा रही हैं। इस बार गर्मी में देश के कई राज्यों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस, तो कई का 52 डिग्री से भी ऊपर चला गया था। गर्मियों के बाद कई राज्यों में बारिश का कहर जारी है। पिछले दिनों उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग, जोशीमठ और केदारनाथ मार्ग पर हुए भूस्खलन (लैंडस्लाइड) इंसानी ग़लतियों का ही परिणाम है। हालाँकि पर्वतीय क्षेत्र में भूस्खलन प्राकृतिक घटनाएँ हैं, जो अक्सर होती रहती हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों से जिस तीव्रता से ये आपदाएँ बढ़ी हैं, वह पहाड़ों और वहाँ रहने वालों के लिए ख़तरनाक संकेत है। ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन के अलावा बिना सूझबूझ के असीमित निर्माण कार्य और अंधे शहरीकरण से हिमाचल से लेकर उत्तराखण्ड तक के पहाड़ दरका रहे हैं। पहाड़ों के जानकार और वैज्ञानिक इस बात से चिन्तित हैं कि उनकी राय और सुझावों को लगातार दरकिनार किया जा रहा है। उनका कहना है कि यदि लोग अब भी नहीं चेते, तो विनाशकारी आपदाएँ बढ़ती रहेंगी और भविष्य में जान-माल का अधिक नुक़सान होगा। हालाँकि इसके लिए सरकार को कड़े क़दम उठाने होंगे। आईआईटी रुड़की की एक रिपोर्ट में जोशीमठ के धँसने से पहले ही चेतावनी दी थी कि जोशीमठ का 50 फ़ीसदी से अधिक क्षेत्र अत्यधिक जोखिम वाला है।

वर्ष 2013 में हुई केदारनाथ त्रासदी के बाद भी लगातार पहाड़ों पर निर्माण जारी है और लोगों की संख्या बढ़ रही है। जोशीमठ इसी के चलते तबाह हो चुका है और उत्तराखण्ड के कई संवेदनशील ज़िलों में बार-बार लैंडस्लाइड की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। गौरीकुंड-केदारनाथ मार्ग पर चिड़वासा के पास, जोशीमठ से तीन किलोमीटर पहले नेशनल हाईवे पर हुए लैंडस्लाइड में काफ़ी नुक़सान हुआ है। नुक़सान के अलावा जो दूसरे पहलू हैं, जैसे- सड़कों का अवरुद्ध हो जाना, ट्रैफिक का बाधित होना, आने-जाने का संपर्क टूट जाना। केवल ऐसी आपदाओं का किसी एक स्तर पर ही असर नहीं होता, बल्कि पूरा प्रशासन तंत्र, सरकारी कामकाज और आपदा वाली जगह पर बसे लोगों को मुश्किलें आती हैं।

कुछ दशक पहले तक पहाड़ी क्षेत्रों में जाने का मतलब होता था- गर्मियों की छुट्टियों में घूमना-फिरना, पर्वतीय क्षेत्र के सौंदर्य का आनंद लेना। न ज़्यादा वाहन, न ज़्यादा गैजेट्स; और सादगी से लोग घूम-फिर कर आ जाते थे। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के असर के चलते लोगों ने अब पहाड़ी क्षेत्रों का रुख़ करना शुरू कर दिया है। दूसरा धार्मिक और अन्य पर्यटकों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती चली जा रही है। ऐसे में ज़ाहिर है कि पहाड़ी क्षेत्र में आबादी का बोझ बढ़ रहा है। इसके चलते सड़कों का चौड़ीकरण, राजमार्गों का निर्माण, रिहायशी व व्यावसायिक बहुमंजिला इमारतों का अंधाधुंध निर्माण और असीमित शहरीकरण हो रहा है। पेड़ों और चट्टानों को काटा जा रहा है। पानी-बिजली के लिए बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण आदि ऐसे कारक और कारण हैं, जो हिमालय क्षेत्र को और कमज़ोर बना रहे हैं।

डमी स्कूलों का मकड़जाल

*कोचिंग सेंटर्स की मिलीभगत से पूरे भारत में फल-फूल रहे हैं डमी स्कूल !

इंट्रो – अभिभावक अपने बच्चों को कितने ही महँगे स्कूलों में पढ़ा लें; लेकिन उन्हें यह डर रहता है कि बिना कोचिंग के बच्चों के अच्छे अंक नहीं आएँगे। इसके पीछे स्कूलों द्वारा सही तरीक़े से पढ़ाई न कराने की सीधी-सी कहानी है। आज पूरे भारत में जितने भी स्कूल हैं, उनमें से ज़्यादातर स्कूलों के प्रबंधकों की कोचिंग सेंटर्स से मिलीभगत है, जिसके दम पर अब डमी स्कूल फल-फूल रहे हैं। ये डमी स्कूल अवैध रूप से विद्यार्थियों को नियमित कक्षाएँ न देकर छोटी-बड़ी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं, विशेष रूप से नीट, जेईई और दूसरी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए कोचिंग करने पर ज़ोर देते हैं। हैरानी की बात यह है कि यह सब सीबीएसई की नाक के नीचे होता है। ‘तहलका’ ने नियमों को ताक पर रखकर चल रहे कई कोचिंग सेंटर्स की ख़ुफ़िया जानकारी जुटाकर पिछले अंक में भी आवरण कथा प्रकाशित की थी, जिसके बाद कई कोचिंग सेंटर्स पर बड़ी कार्रवाई करते हुए शिक्षा विभाग ने उन्हें सील कर दिया। अब ‘तहलका’ के ख़ुफ़िया कैमरे में हमारी एसआईटी ने डमी स्कूलों और कोचिंग सेंटर्स की साँठगाँठ को लेकर जानकारी जुटायी है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट :-

भारत के बड़े कोचिंग सेंटर्स चलाने वाले ‘तहलका’ के ख़ुफ़िया कैमरे पर यह स्वीकार करते हुए क़ैद हुए हैं कि वे डमी स्कूलों (बनावटी विद्यालयों), जिन्हें नॉन-अटेंडिंग स्कूल (अनुपस्थित विद्यालय) भी कहा जाता है; में प्रवेश दिलाने के लिए इच्छुक विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों का मार्गदर्शन करते हैं। उल्लेखनीय है कि इनमें से एक संस्थान, ओटीटी प्लेटफॉर्म, अमेजॅन प्राइम पर एक वेब शृंखला के बाद भारत में एक घरेलू नाम बन गया। ये डमी स्कूल विद्यार्थियों को नियमित कक्षाएँ छोड़कर केवल और केवल नीट / जेईई जैसी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए कोचिंग पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह और अनुमति देते हैं।

इन कोचिंग सेंटरों और डमी स्कूलों के बीच गहरा सम्बन्ध है। जो अभिभावक और छात्र एनईईटी / जेईई कोचिंग के लिए इन संस्थानों से संपर्क करते हैं, उन्हें डमी स्कूलों में प्रवेश के अनुरोध के साथ-साथ संस्थानों द्वारा बिचौलियों की सहायता प्रदान की जाती है। ये बिचौलिये दिल्ली-एनसीआर में सीबीएसई-संबद्ध डमी स्कूलों की सूची जुटाकर हर हफ़्ते कोचिंग सेंटर्स के कुछ दौरे करते हैं, जहाँ इच्छुक विद्यार्थियों को प्रवेश मिल सकता है। ये बिचौलिये विद्यार्थियों को डमी स्कूलों में प्रवेश दिलाने के बदले में कोचिंग सेंटर्स को कमीशन का भुगतान करते हैं।

डमी स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया केवल 11वीं कक्षा में होती है। माता-पिता / अभिभावक और विद्यार्थी खुले तौर पर डमी स्कूलों के लिए अपनी प्राथमिकता व्यक्त करते हैं। वे अपने बच्चों को कोचिंग सेंटर्स के माध्यम से ऐसे चयनित सीबीएसई स्कूलों में दाख़िला दिलाते हैं, जहाँ उन्हें कक्षा में जाकर पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती है। यद्यपि विद्यार्थी डमी स्कूलों को भी मासिक शुल्क (मंथली फीस) देते हैं; लेकिन वे स्कूल की नियमित कक्षाओं में पढ़ने नहीं जाते हैं। इसकी जगह वे कोचिंग सेंटर्स में पढ़ाई करते हैं। ‘तहलका’ एसआईटी की पड़ताल से पता चला है कि डमी स्कूलों में इन अनुपस्थित विद्यार्थियों की उपस्थिति नियमित मासिक शुल्क के बदले में स्कूल प्रशासन द्वारा दर्ज की जाती है। विद्यार्थियों को केवल इन डमी स्कूलों की वार्षिक परीक्षा / मुख्य परीक्षाओं में ही शामिल होना होता है।

शिक्षकों का तर्क है कि डमी स्कूल देश में स्कूली शिक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर रहे हैं। वे सीबीएसई से स्कूलों का निरीक्षण करने और उन स्कूलों की पहचान करने का आग्रह करते हैं, जो निजी कोचिंग सेंटर्स के साथ मिले हुए हैं। कुछ लोगों ने चेतावनी दी है कि यदि यह अनुचित शिक्षा प्रणाली अनियंत्रित हो गयी, तो ज़्यादातर स्कूल भी इसका अनुसरण करेंगे, जिससे समग्र शिक्षा व्यवस्था में गिरावट आएगी और स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था चौपट होने लगेगी। एक जनहित याचिका (पीआईएल) से पता चलता है कि दिल्ली के स्कूलों में अन्य राज्यों के छात्रों को दाख़िला देने के लिए डमी स्कूलों का भी उपयोग किया जाता है, जिससे वे दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में 85 प्रतिशत कोटा के लिए पात्र हो जाते हैं। अन्य लोग परीक्षा की तैयारी के लिए डमी स्कूल पसंद करते हैं; क्योंकि यह हर दिन स्कूल और कोचिंग सेंटर, दोनों में जाने की तुलना में कम थका देने वाला होता है।

पिछले साल सितंबर में दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली में सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग वाली याचिका के जवाब में दिल्ली सरकार और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को नोटिस जारी किया था। ये स्कूल कथित तौर पर कक्षा 11 और 12 के छात्रों को डमी स्कूलों द्वारा शिक्षा देने के अवैध कारोबार में शामिल थे। सीबीएसई द्वारा डमी छात्रों को नामांकित करने के लिए दिल्ली के पाँच स्कूलों सहित 20 स्कूलों को असंबद्ध करने के बावजूद डमी स्कूलों का अवैध धंधा धड़ल्ले से फल-फूल रहा है। यह अखिल भारतीय व्यवसाय एक दशक से अधिक समय से चल रहा है। इस फलते-फूलते कारोबार का पर्दाफ़ाश करने के लिए ‘तहलका’ ने कोचिंग संस्थानों के साथ मिलकर संचालित होने वाले डमी स्कूलों की उत्सुकता से प्रतीक्षित गहन पड़ताल की। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने दिल्ली और नोएडा के कई प्रमुख कोचिंग सेंटर्स से संपर्क किया। उल्लेखनीय रूप से ये कोचिंग सेंटर्स नीट / जेईई की तैयारी कराने के लिए रिपोर्टर द्वारा काल्पनिक रूप से प्रवेश के लिए बताये गये विद्यार्थी के प्रवेश के लिए उनके अनुरोध पर सहमत हुए और रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि वे (कोचिंग सेंटर्स) दिल्ली में सीबीएसई से संबद्ध डमी स्कूल में बच्चे (काल्पनिक विद्यार्थी) को प्रवेश दिलाने की सुविधा भी देंगे।

‘हम भी नक़ली व्यवसाय में हैं। कोचिंग सेंटर्स के लिए डमी स्कूल एक बहुत-ही लाभदायक व्यवसाय है। हमें डमी स्कूल में प्रत्येक प्रवेश के लिए कमीशन के रूप में 15-20 हज़ार मिलते हैं। यह कमीशन बिचौलियों से आता है, जो डमी स्कूल और कोचिंग सेंटर्स के बीच समन्वय स्थापित करते हैं। डमी स्कूल कोचिंग उद्योग के लिए महत्त्वपूर्ण रूप से पैसा कमाने का ज़रिया हैं। वर्तमान में हमारे डमी स्कूलों में 10-12 छात्र नामांकित हैं। इन डमी छात्रों के लिए हम सुबह नहीं, बल्कि शाम को कक्षाएँ संचालित करते हैं।’ -एक संस्थान की प्रबंधक रति चौहान (बदला हुआ नाम) ने यह ‘तहलका’ के ख़ुफ़िया कैमरे के सामने बताया।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने रति से पूर्वी दिल्ली के निर्माण विहार स्थित उसके एक सेंटर में मुलाक़ात की, जो ख़ुद को नीट / जेईई की तैयारी कराने और एक डमी स्कूल में रिपोर्टर द्वारा ख़ुद को एक अभिभावक के रूप में प्रस्तुत करने पर उनके द्वारा अपने बच्चे के रूप में बताये गये (काल्पनिक) विद्यार्थी के लिए प्रवेश दिलाने को तैयार थी। रति हमारे (काल्पनिक) बच्चे को एनईईटी / जेईई की तैयारी के लिए दाख़िला देने के लिए सहमत हो गयी और उसने डमी स्कूल व्यवसाय को कोचिंग सेंटर के लिए अत्यधिक आकर्षक बताते हुए डमी स्कूल में प्रवेश दिलाने में सहायता करने का रिपोर्टर से वादा किया। रति के मुताबिक, संस्थान में फ़िलहाल 10-12 विद्यार्थी डमी स्कूलों में नामांकित हैं। बातचीत से यह बात सामने आती है कि डमी स्कूलों की धुँधली दुनिया में विद्यार्थी और संस्थान दोनों ही धोखे के जाल में फँस गये हैं। बिचौलियों और स्कूलों के बीच सम्बन्ध सिर्फ़ मुनाफ़ा कमाने की योजना को उजागर करते हैं, जो गोपनीयता और हेरफेर पर पनपती है।

रति : हम भी डमी कराते हैं। डमी हम भी कराते हैं; …बट (परन्तु) हम प्रमोट नहीं करते। क्यूँकि बच्चा ख़राब हो जाता है। फ़ायदा है उसमें!

रिपोर्टर : क्या फ़ायदा है मैम?

रति : आप जब भी चेक देंगे, वो स्कूल के नाम का चेक देंगे; …जितनी उनकी फीस होगी। हमारा 15 थाउजेंड या 20 थाउजेंड (हज़ार) मीडिएटर (बिचौलिये) का होता है।

रिपोर्टर : अच्छा; स्कूल आपको कमीशन देगा?

रति : स्कूल नहीं, जो मीडिएटर होगा; जिसको जिसके थ्रू हम कराएँगे। हमारे बीच में दो सोर्स होते हैं, …स्कूल के जो- मीडिएटर्स।

रिपोर्टर : मिडिलमैन?

रति : जो पब्लिक डीलिंग करते हैं। …जैसे आप स्कूल जाते हैं, कोऑर्डिनेटर होता है; आप सीधा प्रिंसिपल से नहीं मिल सकते। यू हैव टू मीट कोऑर्डिनेटर। सिम्पली हमें भी स्कूल से मिलने के लिए कोऑर्डिनेटर को सपोर्ट करना पड़ता है। उससे मिलते हैं, वो सारा सेटअप स्कूल से करवाता है। ऐंड देन इंस्टीट्यूट को बहुत फ़ायदा है डमी से। पैसा बहुत अच्छा आता है डमी से। वो कॉस्टली भी होता है।

रिपोर्टर : अभी कितने बच्चे होंगे डमी में?

रति : हम डमी भी देते हैं, तो ईवनिंग (शाम) में; …मॉर्निंग (सुबह) में कोई डमी क्लास नहीं देंगे। ईवनिंग ही देंगे; …सेम।

रिपोर्टर : अभी कितने बच्चे हैं?

रति : आप मानोगे नहीं! क़रीब 10-12 बच्चे हैं अभी।

‘हमारे पास कोचिंग सेंटर्स से जुड़े डमी स्कूलों की एक सूची है, जो सभी सीबीएसई से संबद्ध हैं और शाहदरा, लोनी और रोहिणी में स्थित हैं। छात्रों को दो साल में एक बार भी स्कूल जाने की ज़रूरत नहीं है, यही कारण है कि वे डमी स्कूल पसंद करते हैं।’ -रति ने ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर को बताया। निम्नलिखित बातचीत के आदान-प्रदान में डमी स्कूलों की छायादार दुनिया को उजागर किया गया है, जिससे यह उजागर होता है कि ये संस्थान भारतीय शिक्षा प्रणाली में कितनी गहराई तक घुसे हुए हैं। यह उस चिन्ताजनक सहजता को उजागर करता है, जिसके जाल में फँसकर विद्यार्थी पारंपरिक स्कूली शिक्षा को दरकिनार कर देते हैं।

रिपोर्टर : और अगर हम डमी के लिए जाते हैं नेक्स्ट ईयर (अगले साल), तो आपके कौन-कौन से स्कूल हैं डमी वाले?

रति : वो सब मैं आपको लिस्टिंग कर दूँगी।

रिपोर्टर : सब सीबीएसई के हैं?

रति : सीबीएसई एफिलिएटेड (संबद्ध) ही होते हैं। …गवर्नमेंट का नही होता है।

रिपोर्टर : आस-पास मिल जाएँगे स्कूल्स कहीं?

रति : सर! ये मुश्किल होता है। शाहदरा में एक है। लोनी के पास है। फिर रोहिणी में हैं दो-तीन स्कूल्स। क्यूँकि बच्चों को जाना तो होता नहीं, पूरे दो साल में एक बार भी नहीं जाता।

रिपोर्टर : एक बार भी नहीं?

रति : कुछ नहीं, तभी तो बच्चा लेता है।

‘वास्तव में डमी स्कूल की अवधारणा भारत में काफ़ी पुरानी है। जब मैंने 2013 में देवघर, झारखण्ड से 12वीं कक्षा पूरी की, तो मेरे क्षेत्र के छात्र पहले से ही दिल्ली से डमी स्कूलों और कोचिंग का उपयोग कर रहे थे।’ -रति ने ख़ुलासा किया। रति द्वारा यहाँ बताये गये तथ्य इस बात को रेखांकित करते हैं कि डमी स्कूलों की अवधारणा। हालाँकि अवैध और अनैतिक है, इसकी जड़ें गहरी हैं। यह बातचीत इसके इतिहास पर प्रकाश डालती है, जिससे पता चलता है कि कैसे यह एक दशक से अधिक समय तक चुपचाप अस्तित्व में रहा, जिसने झारखण्ड जैसे छोटे राज्यों के शैक्षिक परिदृश्य को भी प्रभावित किया।

रिपोर्टर : ये कॉन्सेप्ट शुरू क्यूँ हुआ मैम?

रति : कॉन्सेप्ट, …ये मेरे टाइम का कॉन्सेप्ट है। बहुत पुराना; जब मैंने ट्वेल्थ (12वीं) किया है, इन 2013 आई डिड ट्वेल्थ। (2013 में मैंने 12वीं की।)

रिपोर्टर : इतना पुराना है ये?

रति : आई एम टॉकिंग अबाउट माईसेल्फ। (मैं अपने बारे में बात कर रही हूँ।)

रिपोर्टर : आई एम टॉकिंग अबाउट डमी। (मैं डमी के बारे में बात कर रहा हूँ।)

रति : बहुत पुराना है। मैं स्माल स्टेट (छोटे राज्य) से हूँ; …झारखण्ड से। उस समय मेरे फ्रेंड्स, 2013 में; …दे वेयर डूइंग कोचिंग इन डेल्ही। (वे दिल्ली में कोचिंग कर रहे थे।)

रिपोर्टर : 11 ईयर्स (साल) पहले की बात है! हमने तो अभी सुना है।

रति : यस-यस। बहुत पुराना है सर! मेरे फ्रेंड्स दिल्ली में आकर; …दे वेयर डूइंग कोचिंग इन नारायणा ऐंड ऑल, ….वहाँ भी देवघर में जहाँ से मैं हूँ। वहाँ भी सबने छोटे-छोटे स्कूल्स बनाये हैं। सबकी श$क्लें दिखती हैं, जब बोर्ड एग्जाम देना होता है।

रति के बाद हम एक अन्य प्रमुख संस्थान के कार्यालय में राबिया सदफ़ (बदला हुआ नाम) से एक फ़र्ज़ी सौदे के साथ मिले कि हम अपने बच्चे को उनके संस्थान में नीट कोचिंग के लिए प्रवेश दिलाना चाहते हैं और उसे डमी स्कूल में भी प्रवेश दिलाना चाहते हैं। ‘हाँ, हमने डमी स्कूलों के साथ गठजोड़ किया है, क्योंकि कई छात्र प्रवेश के लिए कहते हैं। हमारे संस्थान के अधिकांश छात्र डमी स्कूलों में नामांकित हैं, जो सभी सीबीएसई से संबद्ध हैं और दिल्ली और नोएडा में स्थित हैं। इन दाख़िलों की सुविधा के लिए एक दलाल नियमित रूप से हमारे कोचिंग सेंटर में आता है।’ -नोएडा में एक प्रसिद्ध कोचिंग संस्थान की सेक्टर-18 शाखा में परामर्शदाता राबिया ने हमारे अंडरकवर रिपोर्टर को बताया। राबिया ने हमें आश्वासन दिया कि वह हमारे बच्चे को डमी स्कूल में दाख़िला दिलाने के लिए हर संभव मदद करेगी। संवाद इस छायादार शैक्षिक नेटवर्क को नेविगेट करने के व्यावहारिक पहलुओं का ख़ुलासा करता है। ग़ैर-उपस्थित स्कूलों से लेकर महत्त्वपूर्ण संदर्भों तक, यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि ये संस्थान कैसे संचालित होते हैं और छात्रों के लिए विकल्प प्रदान करते हैं।

रिपोर्टर : प्रतीक जी से बात हुई थी मेरी इलेवंथ (11वीं) में एडमिशन के लिए; नॉन अटेंडिंग स्कूल। (अनुपस्थिति वाले स्कूल।)

राबिया : तो वो स्कूल जा रहे हैं ना?

रिपोर्टर : ही विल लीव दि स्कूल। (वह स्कूल छोड़ देगा।)

राबिया : अच्छा; ही विल बी लीविंग दि स्कूल? हाँ; तो स्कूलिंग के लिए हम करवा देंगे। हाँ; डमी स्कूल्स से टाईअप है। वो हम करवा देंगे; अगर आपको लेना है।

रिपोर्टर : मुझे प्रतीक जी ने बताया- हम रेफरेंस दे देंगे आपको। …उनको डमी स्कूल्स कहते हैं।

राबिया : हाँ; डमी स्कूल्स।

रिपोर्टर : स्कूल्स कौन-कौन से हैं?

राबिया : वो तो मेरे पास नहीं हैं। एक मैम आती हैं, उनसे पूछना पड़ेगा।

रिपोर्टर : कौन-सी मैम हैं?

राबिया : उन्हीं के हैंड से है, जो हमारी मैम हैं; …रेफरेंस वाली। हमारे पास बच्चे आते हैं, तो उनको प्रोवाइड करना ही पड़ता है।

रिपोर्टर : हैं आपके पास बच्चे?

राबिया : हाँ; बहुत-से बच्चे। …मोस्टली तो नॉन-अटेंडिंग वाले ही होते हैं।

रिपोर्टर : मोस्टली नॉन-अटेंडिंग वाले हैं! ….डमी वाले?

राबिया : हाँ; अब बच्चों को लगता है स्कूल में टाइम ज़्यादा ऑक्यूपाइड (बर्बाद) हो रहा है।

रिपोर्टर : प्रतीक चौधरी क्या हैं?

राबिया : वो भी काउंसलर हैं।

रिपोर्टर : मैम! ये नॉन-अटेंडिंग स्कूल्स नोएडा के ही हैं या दिल्ली के भी हैं?

राबिया : दोनों ही रहते हैं मैम! प्रिफरेंस रहेगा आपका। आपको अगर बेनिफिट मिल रहा है, तो मिल जाता है दिल्ली का भी। …वो फोन उठा नहीं रही हैं। मैं नंबर दे दूँगी, आप बात कर लेना।

रिपोर्टर : आपके रेफरेंस से बात कर लूँ?

राबिया : हाँ।

रिपोर्टर : ये डमी स्कूल्स सीबीएसई रहेंगे?

राबिया : हाँ-हाँ; और अगर हम आपको रेफरेंस दे रहे हैं, तो डेफिनेटली एडमिशन होगा।

‘आप (बच्चे के लिए) दो साल की डमी स्कूल फीस के लिए 1.20 से 1.30 लाख रुपये का भुगतान करेंगे। आपकी (बच्चे की) उपस्थिति प्रबंधित की जाएगी और आपको कक्षा 11 में स्कूल जाने की आवश्यकता नहीं होगी। कक्षा 12 में आप केवल प्रैक्टिकल के लिए जाएँगे और अंतिम परीक्षा। आपको कक्षा 11 से 12 तक बिना परीक्षा के प्रमोट कर दिया जाएगा। बस उस जगह से एक स्कूल यूनिफॉर्म ख़रीदें, जो हम निर्दिष्ट करते हैं; जब तक आपको उपस्थित होने की आवश्यकता है।’ -राबिया ने स्वीकार किया। निम्नलिखित आदान-प्रदान से फीस, उपस्थिति आवश्यकताओं और परीक्षा प्रोटोकॉल सहित एक डमी स्कूल में नामांकन की व्यावहारिकता का पता चलता है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे ये संस्थान (डमी स्कूल) छात्रों के लिए अपरंपरागत होते हुए भी एक सुव्यवस्थित शैक्षिक मार्ग प्रदान करते हैं।

रिपोर्टर : इसका प्रोसीजर (प्रक्रिया) क्या है?

राबिया : उनका कोई 1.20 टू 1.30 लाख के बीच का फीस होगा। कौन-सा क्लास रहेगा आपका?

रिपोर्टर : इलेवंथ, ट्वैल्थ। (11वीं, 12वीं।)

राबिया : हाँ; 1.20 (लाख) रहेगा। एक लाख 20 हज़ार; …दोनों साल का। इसमें आपको स्कूल नहीं जाना पड़ेगा। अटेंडेंस मैनेज होगा। इलेवंथ में आपको जाना नहीं पड़ेगा। ट्वेल्थ में आपके प्रैक्टिकल्स होंगे। फाइल वग़ैरह सबमिट करना होगा। नंबर भी अच्छे दे देते हैं, ये प्रैक्टिकल्स में। यूनिफॉर्म कुछ लेना पड़ेगा। एग्जाम देने जाना पड़ेगा स्कूल; …वो भी आपको बता देंगे, कहाँ से कॉलेज करना है।

रिपोर्टर : फर्स्ट टर्म, सेकेंड टर्म, …सब देने जाना पड़ेगा?

राबिया : नहीं; इलेवंथ में तो कोई एग्जाम ही नहीं देना पड़ेगा। ट्वेल्थ में सिर्फ़ बोर्ड के लिए जाना पड़ेगा।

रिपोर्टर : फर्स्ट टर्म, सेकेंड टर्म, कुछ नहीं होगा? सिर्फ़ बोर्ड में जाना होगा?

राबिया : हाँ; सिर्फ़ बोर्ड में।

रिपोर्टर : इलेवंथ में फाइनल एग्जाम में नहीं जाना होगा?

राबिया : नहीं।

रिपोर्टर : पास कैसे करेगी फिर?

राबिया : एंट्री रहता है, उसमें सब डिटेल रहती है।

रिपोर्टर : अच्छा; कोई इश्यू नहीं है?

राबिया : कहीं पर भी जाते हो डमी के लिए, ऐसा ही प्रोसेस होता है।

‘निश्चिंत रहें, आपके बच्चे को बिना कोई परीक्षा दिये 12वीं कक्षा में दाख़िला दे दिया जाएगा। मैं आपको आश्वस्त कर सकती हूँ कि कोई परेशानी नहीं होगी। इन डमी स्कूल को चलाने वाले अनुभवी लोग हैं; क्योंकि वे वर्षों से ऐसा कर रहे हैं।’ -राबिया ने हमें आश्वस्त करने की कोशिश की। यह बातचीत डमी स्कूलों की सर्वव्यापकता और व्यावहारिकता को उजागर करती है, जिसमें विस्तार से बताया गया है कि वे न्यूनतम उपस्थिति के साथ प्रैक्टिकल और परीक्षाओं का प्रबंधन कैसे करते हैं। राबिया के अनुभव से पता चलता है कि यह प्रणाली एक सुस्थापित, राष्ट्रव्यापी घटना है।

राबिया : मैंने भी अपने टाइम पर जब किया था, तो हमें भी एग्जाम देने जाना पड़ता था। सिर्फ़ प्रैक्टिकल्स में जाना पड़ता है। दे देंगे क्या बनाना है। ट्वेल्थ में सिर्फ़ जाना होगा एग्जाम के लिए। …वो तो पैसा आपसे इसी बात का तो ले रहे हैं।

रिपोर्टर : अच्छा; इलेवंथ, ट्वेल्थ आपने भी डमी से की है?

राबिया : जी, सर!

रिपोर्टर : इसमें कोई इश्यू तो नहीं है बच्चे के लिए?

राबिया : नो सर!

रिपोर्टर : नहीं, ऐसा न हो सीबीएसई की तरफ़ से कुछ जाँच हो जाए?

राबिया : वैसे तो कुछ भी कभी भी हो सकता है, बट काफ़ी टाइम से ये लोग यही काम कर रहे हैं। इनका बिजनेस ही ये है। आप तो फिर भी एंड यूजर हो। कुछ होगा, तो सबसे पहले तो हम पर होगा।

रिपोर्टर : आप बिहार से हो और आपने भी डमी स्कूल से पढ़ा है। इसका मतलब ये तो ऑल इंडिया में होता है?

राबिया : हाँ-हाँ; एक्जेटली। ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ यहाँ पर होता है, ये सब जगह होता है।

रिपोर्टर : वी आर सरप्राइज्ड। (हम हैरान हैं।) हम लोगों को अभी तक डमी स्कूल के बारे में पता ही नहीं था। वो तो मेरे बेटे ने बताया कि बहुत सारे बच्चे स्कूल नहीं आते हैं। …यहाँ इंस्टीट्यूट में हैं; …आपके डमी स्कूल वाले बच्चे?

राबिया : हाँ-हाँ; बहुत-से एडमिशन्स होते हैं।

‘कोचिंग सेंटर आपको एक डमी स्कूल में दाख़िला दिलाएगा। जो माता-पिता जागरूक हैं, वे डमी स्कूलों को पसंद करते हैं; क्योंकि अंतत: विद्यार्थियों को प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में शामिल होना पड़ता है। पूर्वी दिल्ली के प्रीत विहार में एक प्रमुख संस्थान के प्रशासक अनूप कुमार (बदला हुआ नाम) ने बताया।’ उसने कहा- ‘स्कूल और कोचिंग संस्थान दोनों में एक ही चीज़ पढ़ने का कोई मतलब नहीं है, इसलिए वे नक़ली स्कूल चुनते हैं।’ यह तीसरा कोचिंग संस्थान था, जहाँ ‘तहलका’ के अंडरकवर टीम ने ख़ुद को एक डमी स्कूल में अपने (काल्पनिक) बच्चे के लिए प्रवेश चाहने वाले माता-पिता के रूप में दौरा किया था। (तीसरे व्यक्ति से हुई) इस बाचतीत में अनूप डमी स्कूलों की अवधारणा को समझाया कि एक समानांतर प्रणाली जहाँ छात्र प्रतिस्पर्धी परीक्षा की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अनूप ने कई शैक्षणिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने वाले छात्रों के लिए डमी स्कूलों के रणनीतिक उपयोग के बारे में बताया। उसे यह बताने में (संकोची) परेशानी भी हुई कि कैसे ये संस्थान छात्रों को नियमित स्कूली शिक्षा से विचलित हुए बिना अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देते हैं।

रिपोर्टर : अच्छा; एक मैं काफ़ी बच्चों को देख रहा हूँ। जैसे टेंथ के बाद एक सिस्टम और भी चल रहा है, …हम लोग को जानकारी नहीं है; …आपसे पता करना चाह रहा हूँ, सिंस यू आर फ्रॉम दिस फील्ड। (क्योंकि आप इस क्षेत्र से हो।) कि इलेवंथ में बच्चा गया, वो स्कूल नहीं जाता…।

अनूप : डमी स्कूल?

रिपोर्टर : डमी स्कूल? …ये क्या है?

अनूप : सर! क्लासेस हैं। इलेवंथ, ट्वेल्थ में है क्या, वही आपका नीट में है, वही जेईई में। …अब जब हम भी आपको वही पढ़ा रहे हैं, वही चीज़ आप स्कूल में पढ़ रहे हो, दोनों जगह पर अलग-अलग आपको वर्कआउट करना है, आपका फोकस नहीं हो पाता है। जो पैरेंट्स अवेयर होते हैं, वो क्या करते हैं, बेटा एक ही जगह फोकस करो। इलेवंथ, ट्वेल्थ अपना डमी स्कूल से करो। कॉम्पिटिटिव (प्रतिस्पर्धा) की तैयारी कोचिंग से करो। आपको एंड ऑफ दि डे क्या चाहिए? कम्पटीशन लेवल पर ही बैठना है। जब सिलेबस आपका क्लीयर होता है, एग्जाम देने आये, सिर्फ़ एक सर्टिफिकेशन के लिए। आख़िरकार क्या करना है, कंपटीशन देना है। फोकस रहे, इसलिए डमी स्कूल प्रेफर करते हैं।

रिपोर्टर : वो डमी स्कूल सीबीएसई एफिलिएटेड (संबद्ध) होते हैं?

अनूप : ऑब्वियसिली। (ज़ाहिर तौर पर।)

रिपोर्टर : होता है स्कूल में? एनरॉल (नामांकन) कौन कराएगा? …कोचिंग सेंटर?

अनूप : हाँ।

‘डमी स्कूल सीबीएसई की आवश्यकता के अनुसार छात्रों की उपस्थिति का प्रबंधन करता है। हमारे पास लोगों की एक टीम है जो बच्चों के लिए डमी स्कूल प्रवेश का काम सँभालती है। कक्षा 10 उत्तीर्ण करने के बाद आपका बच्चा हमारे माध्यम से एक डमी स्कूल में प्रवेश ले सकता है।’ -अनूप ने कहा। अब अनूप ने बताया कि कैसे डमी स्कूल छात्रों की उपस्थिति प्रबंधन की सुविधा प्रदान कर सकते हैं; ख़ासकर 10वीं कक्षा के बाद। वह सीबीएसई आवश्यकताओं का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए इन स्कूलों के साथ समन्वय करने में अपनी टीम की भूमिका के बारे में बताते हैं। यह प्रणाली छात्रों को उनकी प्रतियोगी परीक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक सुव्यवस्थित मार्ग प्रदान करती है।

रिपोर्टर : क्यूँकि सीबीएसई तो माँगेगा अटेंडेंस, जब बच्चा बोर्ड देगा।

अनूप : वो अटेंडेंस मैनेज करते हैं।

रिपोर्टर : कुछ स्कूल्स आपकी लिस्ट में हैं; …या सब स्कूल्स करते हैं?

अनूप : नहीं; हमारी टीम कॉर्डिनेट करती है। बता देगी।

रिपोर्टर : क्या हम अपने बच्चे का टेंथ क्लीयर कर लेता है, तो आपके साथ ये सिस्टम करवा सकते हैं?

अनूप : हाँ; बिलकुल करवा सकते हैं। अभी टेंथ पर फोकस करने दीजिए। आफ्टर दैट वी विल सिट ऐंड डिस्कस। (10वीं के बाद हम बैठकर बात कर लेंगे।)

‘यह डमी स्कूलों के लिए फ़ायदे का सौदा है। सबसे पहले उन्हें स्वचालित रूप से छात्र मिलते हैं। दूसरा, चूँकि वे उपस्थित नहीं होते हैं, इसलिए उन पर छात्रों को प्रबंधित करने का दबाव नहीं होता है। तीसरा, स्कूल 20 के बजाय 10 शिक्षकों को नियुक्त कर सकता है।’ -अनूप ने ख़ुलासा किया। शैक्षणिक संस्थानों की जटिल दुनिया में ये बातचीत ज़मीनी स्तर की वास्तविकताओं पर प्रकाश डालती है। जैसा कि अनूप ने डमी स्कूलों के सूक्ष्म लाभों के बारे में बताया, एक्सचेंज शिक्षा के विकसित परिदृश्य पर एक स्पष्ट ख़ुलासा करता है।

रिपोर्टर : अच्छा; सर! ये इसमें स्कूल का क्या फ़ायदा है? बेनिफिट है?

अनूप : स्कूल का ये फ़ायदा है, वैसे वो बच्चों के लिए भटकेंगे, ऐसे बच्चे मिल रहे हैं।

रिपोर्टर : बच्चों का प्रेशर कम होगा स्कूल पर मुझे ऐसा लगता है?

अनूप : बच्चों के प्रेशर के अलावा टीचर्स का भी। …जहाँ उन्हें 20 टीचर्स चाहिए पढ़ाने को, वहाँ 10 में ही काम चल जाएगा।

‘आपको हमारे माध्यम से एक डमी के रूप में एक प्रतिष्ठित स्कूल मिलेगा। वे उपस्थिति का प्रबंधन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि छात्र कोचिंग सेंटरों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करें। हमारे पास पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार और कड़कड़डूमा में स्कूल हैं।’ एक स्पष्ट बातचीत में अब अनूप ने अपने नेटवर्क के माध्यम से प्रतिष्ठित स्कूल खोजने की बारीकियों के बारे में ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया। यह बातचीत इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे कुछ संस्थान पारंपरिक दिखने के बावजूद प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए उत्साहित विद्यार्थियों की उपस्थिति को प्रबंधित करने के लिए स्कूल चलाने के नियमों में बदलाव करते हैं।

रिपोर्टर : ऐसे अच्छे स्कूल मिल जाएँगे आपके थ्रू (ज़रिये)?

अनूप : ऑब्वियसली सर! बहुत स्कूल हैं। xxxx पब्लिक स्कूल है, कड़कड़डूमा में।

रिपोर्टर : xxxx सीबीएसई बोर्ड है?

अनूप : xxxx वो भी अच्छा स्कूल है। आनंद विहार में है। xxxx वो भी अच्छा स्कूल है।

रिपोर्टर : वो भी डमी कराते हैं?

अनूप : प्रॉपर स्कूल्स ही होते हैं। पर वो मैनेज करते हैं, अटैंडेंस। कोई बात नहीं, नहीं आ रहा आप तैयारी करो कंपीटीटिव एग्जाम (प्रतिस्पर्धी परीक्षा) की सिंपल।

रिपोर्टर : आपके पैनल में भी हैं, हो जाएगा?

अनूप : हाँ।

‘तहलका’ की इस पड़ताल ने कोचिंग सेंटर्स और डमी स्कूलों के बीच एक चिन्ताजनक साँठगाँठ का ख़ुलासा किया है। एक गुप्त नेटवर्क को उजागर किया है, जहाँ कोचिंग सेंटर्स मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं। ये केंद्र न केवल बिचौलियों के माध्यम से विद्यार्थियों और डमी स्कूलों के बीच समझौता कराते हैं, बल्कि इस संदिग्ध गठजोड़ से लाभ भी कमाते हैं। अतिरिक्त शिक्षकों या भौतिक स्थान के ओवरहेड के बिना अतिरिक्त राजस्व अर्जित करने से स्कूलों को लाभ होता है, जबकि कोचिंग सेंटर इस तरह के लेन-देन को सुविधाजनक बनाने और विद्यार्थियों के नामांकन से अपनी अतिरिक्त आमदनी सुनिश्चित करते हैं। यह पारस्परिक रूप से मुनाफ़ाख़ोरी की योजना शैक्षिक प्रणाली के भीतर गहराई तक व्याप्त मुद्दे को रेखांकित करती है।

अब समय आ गया है कि सीबीएसई इस प्रणाली के खुले दुरुपयोग को रेखांकित करते हुए शिक्षा क्षेत्र में अखण्डता बहाल करने के लिए निर्णायक कार्रवाई करे। ‘तहलका’ के रहस्योद्घाटन में व्यापक बदलाव और कड़े नियमों की माँग की गयी है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शैक्षणिक संस्थान नैतिक मानकों से समझौता किये बिना अपने इच्छित उद्देश्य को पूरा करें।

डमी स्कूलों के धंधे का पर्दाफ़ाश

विद्यार्थियों के कल्याण के बारे में चिन्तित शिक्षा मंत्रालय ने देश भर में तेज़ी से बढ़ते डमी स्कूलों के लिए कई दिशा-निर्देशों की घोषणा की है। ये निर्देश तब आये, जब राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट आयी कि देश भर में हर 42 मिनट में एक विद्यार्थी ने अपनी जान ले ली। या दूसरे शब्दों में, हर दिन 34 विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं। इसका कारण कड़ी प्रतिस्पर्धा और डमी स्कूलों में प्रवेश की आसान उपलब्धता है। इसके लिए कई कोचिंग सेंटर्स भी ज़िम्मेदार हैं, जो बिचौलिये के रूप में काम करते हैं। शिक्षा प्राप्त करने की यह दुर्भावना इतनी व्यापक है कि इंजीनियरिंग के लिए मेडिकल कॉलेजों में दाख़िला लेने के मक़सद से जेईई और एनईईटी जैसी परीक्षाओं में भाग लेने के लिए हर साल दो लाख से अधिक विद्यार्थी राजस्थान के कोटा में पहुँचते हैं, जिनमें अधिकांश बिना आवश्यक उपस्थिति वाले डमी स्कूलों में प्रवेश लेते हैं और इन स्कूलों के प्रबंधकों का धन्यवाद करते हैं। सीयूईटी में सफलता पाने के लिए भी विद्यार्थी स्कूल छोड़कर कोचिंग सेंटर्स में दाख़िला लेकर पढ़ाई करते हैं। नये दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि कोचिंग सेंटर अब केवल कम-से-कम 16 वर्ष से ज़्यादा उम्र के विद्यार्थियों को ही दाख़िला दे सकते हैं। हालाँकि देश भर के कई कोचिंग सेंटर्स ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कक्षा आठ से लेकर 12वीं तक के बच्चों को दाख़िला दे रखा है।

‘तहलका’ की आवरण कथा ‘डमी स्कूलों का जाल’ कोचिंग सेंटर्स और डमी स्कूलों के बीच अनैतिक साँठगाँठ को उजागर करती है। हमारी एसआईटी ने गुप्त कैमरे में रिकॉर्ड किया कि कैसे पूरे भारत में कोचिंग सेंटर्स की मिलीभगत से डमी स्कूल फल-फूल रहे हैं। ‘तहलका’ एसआईटी ने कोचिंग सेंटर्स के साथ मिलकर संचालित होने वाले डमी स्कूलों की उत्सुकता की गहन पड़ताल की। कई कोचिंग सेंटर चलाने वालों ने डमी व्यवसाय में अपनी विशेषज्ञता का दावा करते हुए एनईईटी / जेईई परीक्षा की तैयारी के लिए हमारी टीम के अनुरोध पर प्रस्तावित (काल्पनिक) बच्चे को कोचिंग में इस तरह का दाख़िला दिलानेके लिए सहमति व्यक्त की और आश्वासन दिया कि बच्चे की सुविधा के लिए वे बिना पाठ्यक्रम और बिना उपस्थिति वाले सीबीएसई-संबद्ध डमी स्कूल में बच्चे का दाख़िला भी कराएँगे। एक गुप्त नेटवर्क के तहत ये कोचिंग सेंटर इस संदिग्ध गठजोड़ से लाभ के लिए विद्यार्थियों और डमी स्कूलों के बीच दलाली वाले समझौते की व्यवस्था करते हैं, जिससे बेईमान स्कूल और कोचिंग संचालकों को लाभ पहुँचता है। ये डमी स्कूल, जो अपेक्षित संख्या में शिक्षकों या स्कूल के लिए पर्याप्त जगह के बिना ही जमकर पैसा कमाते हैं; कोचिंग सेंटर्स को कमीशन भी देते हैं। जबकि इन स्कूलों में दाख़िला दिलाकर कोचिंग सेंटर विद्यार्थियों को ट्यूशन देने की सुविधाओं से अतिरिक्त लाभ उठाते हैं। विडंबना यह है कि यह सब हाल ही में देश भर में- दिल्ली, उत्तर प्रदेश, केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड, असम और मध्य प्रदेश के कई असंबद्ध और डाउनग्रेड स्कूलों में सीबीएसई द्वारा औचक निरीक्षण करने के बावजूद हो रहा है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इस बात से सहमत हैं कि डमी स्कूलों के मुद्दे को अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता और इस विषय पर गंभीर चर्चा करते हुए विचार-विमर्श करने का समय आ गया है। विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि नियमित स्कूलों से दूर रहने वाले विद्यार्थी अक्सर प्रतिबंधित व्यक्तित्व के होते हैं, जिससे वे उन्नति और वृद्धि के लिए संघर्ष करते हैं। यह रहस्योद्घाटन शिक्षा प्रणाली की अखण्डता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक बदलाव और कड़े नियमों की माँग करता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति और एयरोस्पेस वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने एक बार कहा था- ‘शिक्षण एक बहुत ही महान् पेशा है, जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता और भविष्य को आकार देता है।’ आइए, हम उस ऊँचे आदर्श पर खरा उतरने का प्रयास करें!

हिंदुओं को मनाने में लगे योगी

सुनील कुमार

कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों का रोना प्रदेश की जनता से रो रहे हैं एवं बार-बार यह कह रहे हैं कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे हैं। अभी शीघ्र ही में उन्होंने अपने भाषण में तो यह तक कह दिया कि हिंदू बटेंगे, तो कटेंगे। ऐसा लगने लगा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपनी सत्ता बचाकर रखने के लिए हिंदू-मुस्लिम करने के सिवाय कोई दूसरा उपाय अब नहीं सूझ रहा है। उनके शासन में हिंदुओं के प्रति भी स्पष्ट भेदभाव भी दिखता है। पिछड़ा एवं दलित वर्ग के लोग ही उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक संख्या वाले मतदाता हैं; मगर चुनाव के अवसर के अतिरिक्त इनके साथ भेदभाव ही होता है। अब पुन: जब सत्ता पर आँच आ रही है, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हिंदुओं को एकजुट करने की चिन्ता सता रही है। हालाँकि अभी उत्तर प्रदेश में भाजपा के हाथ में 2027 तक सत्ता है। मगर भाजपा के प्रति मतदाताओं का रोष दिखने लगा है। एकता की बात करें, तो भाजपा में ही एकता नहीं है। योगी आदित्यनाथ की सरकार में ही कई मंत्री उनके धुर-विरोधी हैं। अपनी पार्टी में ही मतभेद एवं मनभेद के अतिरिक्त एक-दूसरे पर अविश्वास करने वाले भाजपा नेताओं के उत्तर प्रदेश में अगुवा बने योगी आदित्यनाथ हिंदुओं की एकता को लेकर चिन्तित इसलिए भी हैं, क्योंकि अब मतदाता ही उनकी सत्ता बचा सकते हैं।

राजनीति के जानकार एवं अनेक बार छोटे चुनाव लड़ चुके प्रदीप कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ को हिंदुओं की चिन्ता से अधिक अपनी सत्ता की चिन्ता है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से भाजपा बुरी तरह पिछड़ गयी है, जिसके चलते योगी आदित्यनाथ को भविष्य का डर है। अब विधानसभा के उपचुनावों में जीत के आसार नहीं दिख रहे हैं, जिसके चलते उप चुनाव नहीं कराये जा रहे हैं। इसी डर के चलते योगी आदित्यनाथ हिंदुओं को बिना मतलब का डर बार-बार दिखा रहे हैं। वास्तव में इस प्रकार डराने के पीछे उनका अपना डर है। भाजपा कार्यकर्ता देवेंद्र कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहले ही हिंदुओं को सचेत किया था कि वो एकजुट रहें। इसके उपरांत भी हिंदू बँट रहे हैं। अगर इसी तरह चलता रहा, तो बांग्लादेश जैसी स्थिति यहाँ भी हो सकती है। हालाँकि भाजपा कार्यकर्ता देवेंद्र यह स्पष्ट नहीं कर सके कि बांग्लादेश की स्थिति से उनका क्या तात्पर्य है? बांग्लादेश में सत्ता पलट का खेल हो गया एवं वहाँ स्थितियाँ अलग थीं। यह पूछने पर कि योगी आदित्यनाथ की सरकार में हिंदुओं को क्या लाभ हुआ है? देवेंद्र इतना ही बोलते रहे, हिंदू आज खुलकर जी रहे हैं एवं सुरक्षित हैं। पहले हिंदुओं डरकर रहना पड़ता था। भाजपा कार्यकर्ता देवेंद्र के इस उत्तर का भी कोई औचित्य समझ नहीं आता।

उपचुनाव में हार का डर

वास्तव में लोकसभा चुनाव नतीजों का डर भाजपा में दिखने लगा है। विश्लेषक कहते हैं कि 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में स्थिति को लेकर भाजपा की आंतरिक पड़ताल भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बेचैन किये हुए है। विश्लेषक कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा एवं योगी आदित्यनाथ सरकार कई मोर्चों पर विफल हुए हैं। योगी आदित्यनाथ न विकास के नाम पर रामराज्य की कल्पना को साकार कर सके एवं न प्रदेश की व्यवस्था में सुधार ला सके। केवल विज्ञापनों एवं भाषणों में ही रामराज्य आया है एवं व्यवस्था में सुधार हुआ है। धरातल पर तो स्थिति कुछ और है।

लगता है कि भाजपा को लोकसभा चुनाव में पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा 29 सीटों की हानि होने से योगी आदित्यनाथ थर्राये हुए हैं। ऊपर से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य उनके पद पर वक्र-दृष्टि गढ़ाए बैठे हैं। सत्ता के लिए भाजपा नेताओं में व्याप्त यह मनमुटाव योगी आदित्यनाथ को जनता के रोष से अधिक हानि पहुँचा रहा है। लगता है उपचुनाव में भाजपा के हार का डर भी चुनाव नहीं होने दे रहा है।

सोशल मीडिया पर कृपा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लगभग सात वर्ष के शासन में सरकार की कमियों को उजागर करने वाले पत्रकारों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं हुआ। योगी आदित्यनाथ के शासन के इन सात वर्षों में कई पत्रकारों की हत्या हुई, कई पत्रकारों के विरुद्ध पुलिस ने आपराधिक मुक़दमे दायर किये एवं कई पत्रकारों को जेल भेजा गया। हालात ये रहे कि सच लिखने वाले पत्रकारों को धमकियाँ मिलती रहीं। मगर अब स्थिति यह आ पहुँची है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सोशल मीडिया संचालकों को साधने का प्रयास करना पड़ रहा है।

सुनने में आया है कि लोकसभा चुनाव में मनचाहे परिणाम न आने के कारणों पर भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षण में पता चला है कि लोकसभा चुनाव में हार का एक बड़ा कारण सोशल मीडिया पर भाजपा के विरुद्ध चली मुहिम भी थी। विपक्ष को इसका बड़ा लाभ हुआ। अब योगी आदित्यनाथ सरकार ने सोशल मीडिया नीति को मंत्रिमंडल में पारित किया है, जिसके तहत सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर अर्थात् संचालकों को हर महीने दो लाख रुपये से लेकर आठ लाख रुपये तक सरकार दे सकती है।

विश्लेषक कहते हैं कि यह राशि सोशल मीडिया पर योगी सरकार की प्रशंसा के हिसाब से वितरित हो सकती है। क्योंकि सरकार ने सभी सोशल मीडिया संचालकों को एक समान तय राशि देने पर विचार नहीं किया है। मगर अभी तक पत्रकारीय संस्थानों से जुड़े पत्रकारों के लिए कोई लाभ देने की बात कानों तक नहीं पहुँची है। हालाँकि यह पैसा सरकार किसी को सीधे-सीधे न देकर उन्हें विज्ञापन देकर उसके भुगतान के रूप में देगी, जो सोशल मीडिया एवं अन्य डिजिटल नेटवर्क के माध्यम से अच्छी सामग्री उपलब्ध कराएँगे अथवा सरकार के कार्यों एवं उपलब्धियों का सकारात्मक विश्लेषण करेंगे।

दण्ड मिलेगा, अगर…

उत्तर प्रदेश में वास्तविक पत्रकारिता करने वालों के दिन तो अच्छे नहीं आये हैं; मगर सरकार का महिमामंडन करने वाले सोशल मीडिया संचालकों के दिन अच्छे आ ही गये। मगर इसके साथ ही उन पत्रकारों एवं सोशल मीडिया संचालकों को दण्डित भी किया जा सकता है, जो योगी सरकार के हिसाब से कोई अनर्गल सूचना अथवा समाचार फैलाते हैं।

विश्लेषक कहते हैं कि सरकार के विरुद्ध कोई समाचार अथवा सूचना प्रकाशित अथवा प्रसारित होने पर भी उसे राज्य एवं राष्ट्र विरोधी घोषित किया जा सकता है। हालाँकि सरकार कह रही है कि राष्ट्र विरोधी सामग्री प्रकाशित एवं प्रसारित करने पर सज़ा का प्रावधान किया है। मगर इसके पीछे सरकार का मतलब अपने ही विरोध से है। इसके अतिरिक्त अभद्र एवं अश्लील सामग्री प्रसारित करने पर मानहानि के मुक़दमे का सामना करना पड़ सकता है एवं दंड भरना पड़ सकता है। हालाँकि यह क़ानून पहले से ही है। अब तक राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ चलाने वालों के विरुद्ध धारा-66(ई), धारा-66(एफ) के तहत कार्रवाई होती थी।

यूनिफाइड पेंशन योजना

कुछ हो अथवा न हो मगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर उस योजना को उत्तर प्रदेश में केंद्र सरकार की योजनाओं को सर्वप्रथम लागू करते हैं। अगस्त के तीसरे सप्ताहांत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन योजना स्वीकृत की गयी। प्रधानमंत्री के इस निर्णय पर विपक्ष ने प्रतिक्रिया दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए एक्स पर पोस्ट कर लिखा है- ‘140 करोड़ देशवासियों के जीवन को सुगम बनाने हेतु सतत समर्पित आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के यशस्वी नेतृत्व में आज केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा यूनिफाइड पेंशन स्कीम (ups) को दी गयी मंज़ूरी अभिनंदनीय है। केंद्र सरकार के लाखों कर्मचारियों को लाभान्वित करता यह युगांतरकारी निर्णय उनके जीवन में आर्थिक सुरक्षा और सुखद भविष्य की सुनिश्चितता का नया सूर्योदय लेकर आया है। आपका हार्दिक आभार प्रधानमंत्री!’

विश्लेषक कहते हैं कि यदि सभी राज्य सरकारें इसे लागू करती हैं, तो लगभग 25 लाख केंद्रीय कर्मचारियों समेत लगभग 90 लाख सरकारी कर्मचारियों को इसका लाभ होगा। यह योजना 01 अप्रैल, 2025 से लागू होगी। इसके तहत 10 साल से अधिक एवं 25 साल से कम समय सरकारी सेवा करने वालों को न्यूनतम 10,000 रुपये मासिक पेंशन मिलेगी। हालाँकि इसमें संदेह है कि अगर यह पेंशन मिलेगी, तो पुरानी पेंशन का क्या होगा? इस पेंशन से पुरानी पेंशन अधिक है।

एक्सप्रेस-वे का निर्माण

उत्तर प्रदेश सरकार प्रयागराज में महाकुंभ के सजने से पूर्व की तैयारियाँ आरंभ करने में लग गयी है। महाकुंभ से पूर्व मेरठ से प्रयागराज तक गंगा एक्सप्रेस-वे का निर्माण होगा। यह एक्सप्रेस-वे लगभग 594 किलोमीटर लंबा बन रहा है, जिसे बनाने के लिए योगी सरकार ने मंत्रिमंडल में 5,664 करोड़ रुपये स्वीकृत किये हैं। समाचार मिला है कि गंगा एक्सप्रेस-वे परियोजना के लिए केंद्र सरकार से व्यावहारिकता अंतर अनुदान के मद से मदद प्राप्त नहीं हुई है। अत: सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के नमूना बोली आलेख व छूट समझौता के तहत पीपीपी मोड पर डीबीएफओटी के आधार पर पहल की गयी है। इस मद में शत-प्रतिशत भुगतान राज्य सरकार करेगी।

रेलवे स्टेशनों के बदले नाम

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जगहों एवं रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने में पूरे देश में प्रथम हो गये हैं। विकास हो अथवा न हो; मगर जगहों के नाम बदलना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नहीं भूलते। प्रदेश में कई जगहों के नाम बदलने के बाद अब 27 अगस्त को आठ रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने की आधिकारिक घोषणा की गयी है। ये सभी रेलवे स्टेशन उत्तर रेलवे के लखनऊ मंडल के हैं। इन स्टेशनों को अब संतों एवं स्वतंत्रता सेनानियों के नाम से जाना जाएगा। प्रशासन ने जायस रेलवे स्टेशन का नाम गुरु गोरखनाथ धाम, बनी रेलवे स्टेशन का नाम स्वामी परमहंस, मिसरौली रेलवे स्टेशन का नाम माँ कालिकन धाम, फ़ुरसतगंज रेलवे स्टेशन का नाम तपेश्वर धाम, अकबरगंज रेलवे स्टेशन का नाम नाम माँ अहोरवा भवानी धाम, वारिसगंज हाल्ट स्टेशन का नाम अमर शहीद भाले सुल्तान, निहालगढ़ स्टेशन का नाम महाराजा बिजली पासी रेलवे स्टेशन रखा है।

मगर इसे लेकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं सांसद अखिलेश यादव ने तंज किया है कि भाजपा सरकार से आग्रह है कि केवल रेलवे स्टेशनों के नाम ही न बदलें, हालात भी बदलें। जब नाम बदलने से फ़ुरसत मिल जाए, तो रेल दुर्घटनाओं की रोकथाम को लेकर भी कुछ विचार करें। सोशल मीडिया को पैसा देने को लेकर भी योगी को विपक्ष ने घेरा है।

गुजरात में प्रत्यक्ष बिक्री कारोबार 10 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 1,000 करोड़ रुपये के पार

अहमदाबाद, 29 अगस्त ; देश के पश्चिमी क्षेत्र में महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर कब्जा बरकरार रखते हुये गुजरात में प्रत्यक्ष बिक्री कारोबार वर्ष 2022-23 में लगभग दस प्रतिशत की विकास दर दर्ज करते हुये 1,000 करोड़ रुपये को पार कर गया है, इंडियन डायरेक्ट सेलिंग एसोसिएशन (आईडीएसए) ने वीरवार को यहां एक कार्यक्रम में जारी की गई सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह जानकारी दी। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोनाकाल की तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद स्वरोजगार, आय के अतिरिक्त साधन, आजीविका और सूक्ष्म उद्यमिता के असीम अवसर पैदा करने की क्षमता वाले प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग ने तेजी से पटरी पर लौटते हुये राज्य में इस अवधि के दौरान वर्ष 2021-22 के 923 करोड़ रूपये के मुकाबले 9.86 प्रतिशत से अधिक की मजबूत विकास दर हासिल कर 1,014 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार किया। 

स्वतंत्र एजेंसी ‘कंतार‘ द्वारा तैयार इस रिपोर्ट के अनुसार सतही स्तर पर लोगों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग के लिये गुजरात देश में नौवां शीर्ष बाजार है। देश में 21,282 करोड़ रुपये से अधिक के प्रत्यक्ष बिक्री कारोबार में राज्य 4.8 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी है। राज्य में 2.1 लाख से अधिक लोग इस उद्योग के साथ जुड़े हुये जिनमें से 77 हजार से अधिक महिलाएं हैं। उद्योग करों के माध्यम से राज्य के खजाने में सालाना 150 करोड़ रुपये से अधिक का अहम योगदान भी करता है। 

राज्य के खाद्य, आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण मामलों के मंत्री कुंवरजीभाई मोहनभाई बावलिया ने इस अवसर पर कहा कि राज्य सरकार प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग के लिए अनुकूल कारोबारी माहौल बनाने के साथ ही उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। उपभोक्ताओं के लिए उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, उन्होंने इस उद्योग को अपने विभाग की ओर से हरसम्भव मदद का भी भरोसा दिया। उन्होंने यह जानकारी भी साझा की कि उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष बिक्री) नियम 2021 की अनुपालना में राज्य में निगरानी समिति (मॉनिटरिंग कमेटी) गठित करने पर भी काम कर रहा है। इस अवसर पर उन्होंने राज्य में आईडीएसए से सम्बद्ध कम्पनियों की उत्कृष्ट कारोबार करने वाली 12 महिला उद्यमियों को भी सम्मानित किया।   

आईडीएसए अध्यक्ष विवेक कटोच ने इस अवसर पर देश में प्रत्यक्ष बिक्री परिदृश्य की जानकारी दी और कहा कि ‘गुजरात प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग के लिये प्रमुख और प्राथमिकता वाले बाजारों में शामिल है। लगभग दस प्रतिशत की सालाना विकास दर स्पष्ट रूप से यह दर्शाती है कि राज्य में प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग नये आयाम छूने की ओर अग्रसर है और इसमें प्रत्यक्ष बिक्रेताओं की अथक मेहनत की भी पुष्टि होती है‘। 

उन्होंने कहा ‘प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग देश में लगभग 86 लाख लोगों के लिये स्थायी स्वरोजगार और सूक्ष्म उद्यमिता के अवसर प्रदान कर रहा है और इसने गत चार वर्षों में लगभग आठ प्रतिशत की औसतन सीएजीआर के साथ प्रगति की है। आईडीएसए की 19 सदस्य कम्पनियां गर्व और आत्मविश्वास के साथ उपभोक्ता हितों के साथ राज्य के 2.1 लाख से अधिक प्रत्यक्ष विक्रेताओं के हितों की सफलतापूर्वक रक्षा करने का दावा कर सकती हैं।“  

श्री कटोच के अनसुार केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने देश में प्रत्यक्ष बिक्री कम्पनियों के परिचालन को लेकर नियामक स्पष्टता लाने और उपभोक्ता संरक्षण हेतु दिसम्बर 2021 में उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष बिक्री) नियम अधिसूचित किये हैं। अब तक दस राज्यों ने इन नियमों के तहत अपने यहां निगरानी समितियां (मॉनिटरिंग कमेटी) गठित कर ली हैं और आशा करते हैं कि गुजरात सहित अन्य राज्य भी इसे जल्द पूरा कर लेंगे।

आज जन्मदिवस पर विशेष : भारत का रत्न, हॉकी का जादूगर दादा ध्यानचंद

नई दिल्ली : आज 29 अगस्त है। जन्मदिवस उस महान खिलाड़ी का जो आज भी हॉकी की दुनियां का बेताज बादशाह है। अपने करोड़ों चाहने वालों में ‘दादा’ के नाम से मशहूर मेजर ध्यानचंद आज भी हर उस बशर के दिल में जिंदा हैं जो देश को प्यार करता है। आज भी उनका नाम हॉकी का पर्याय बन गया है।

तीन ओलंपिक खेलों एमेस्टरडम (1928) लॉस एंजेलिस (1932) और बर्लिन (1936) में ध्यानचंद ने भाग लिया। बर्लिन में तो वे भारतीय हॉकी टीम के कप्तान भी थे। 1928 में जब भारत की टीम समुद्र के रास्ते एमेस्टरडम के लिए रवाना हुई तो उसे विदा करने केवल तीन लोग आए थे। इनमे दो  हॉकी फेडरेशन के पदाधिकारी और एक पत्रकार था। यह बात अलग है कि टीम की वापसी पर उसके स्वागत के लिए जनता का हजूम था। दादा ने तीन ओलंपिक खेलों में कुल 12 मैच खेले और 40 गोल किए। इन तीनों ओलंपिक खेलों में भारत ने प्रति मैच 8.5 की औसत से कुल 102 गोल किए और उनके खिलाफ मात्र तीन गोल हुए। दादा की प्रति मैच औसत 3.33 गोल की बैठती है।

एलान तो ऑटोग्राफ दे रहे थे:

इन तीनों ओलंपिक खेलों में जो तीन गोल भारत पर हुए उनमें अमेरिका का गोल तो इसलिए हो गया क्योंकि गोलकीपर एलेन अपनी पोस्ट को छोड़ कर अपने फैंस को ऑटोग्राफ देने में व्यस्त थे। असल में भारत के हाफ में गेंद आ ही नहीं रही थी। एलेन भी अकेले खड़े बोर हो गए थे इसलिए  अपने चाहने वालों को खुश करने चले गए। इतने में एक लंबी गेंद निकली। भारतीय रक्षापंक्ति को विश्वास था कि एलेन आगे बढ़ कर गेंद रोक ही लेंगे, पर एलेन थे ही नहीं। जब तक भारतीय टीम को पता चला की गोलपोस्ट तो खाली है तब तक देर हो चुकी थी। अमेरिका एक गोल कर गया। अंत में भारत 24-1 के अंतर से जीता। ओलंपिक हॉकी के इतिहास की अब तक भी यही सबसे बड़ी जीत है। ध्यान रहे उस ज़माने में कृत्रिम खेल मैदान नहीं होते थे, अगर कहीं एस्ट्रो टर्फ होती तो शायद गोलों की गिनती कहीं अधिक होती।1936 के बाद 1940 और 1944 के ओलंपिक दूसरे विश्व युद्ध के कारण नहीं हो सके। फिर 1948 तक आते आते दादा 43 साल के हो चुके थे और खेलना छोड़ चुके थे फिर भी 31 साल की उम्र में उन्होंने अपना आखरी ओलंपिक खेल था।

दादा ने भारतीय हॉकी को उरूज़ से रसातल की तरफ जाते देखा। पर तीन दिसंबर 1979 को 74 बरस की आयु में संसार छोड़ने से पहले उन्होंने भारत को कुआलालंपुर (1975) में तीसरा विश्व कप जीतते देखा। उनके लिए इससे अधिक खुशी की बात क्या होगी की फाइनल में पाकिस्तान को हराने वाला गोल उनके अपने पुत्र अशोक कुमार की स्टिक से आया। भारत ने यह फाइनल 2-1 के अंतर से जीता था। अशोक कुमार आज भी हॉकी को समर्पित हैं। हॉकी के विकास में लगे हैं। पिछले दो ओलंपिक खेलों में भारत ने लगातार दो कांस्य पदक जीत कर यह साबित कर दिया है कि यदि ओडिशा के पूरब मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जैसे कुछ और लोग आगे आ कर हॉकी को बढ़ावा दें तो हमारे खिलाड़ी हॉकी को ध्यानचंद के सपनों की उड़ान दे सकते हैं। ….दादा को नमन।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X फिर से ग्लोबल आउटेज का शिकार

नई दिल्ली : पॉपुलर माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म एक्स ने आज सुबह 9 बजे के करीब एक बार फिर से ग्लोबल आउटेज का सामना किया। इस तकनीकी गड़बड़ी के कारण एक्स की अधिकांश सर्विसेज अचानक डाउन हो गईं, जिससे यूजर्स को ऐप एक्सेस करने में परेशानी हुई। भारत समेत दुनिया भर के कई देशों में लोगों ने इस समस्या का सामना किया।

आउटेज के दौरान, कई इंटरनेट यूजर्स ने एक्स सर्विस सस्पेंड होने और ऐप को एक्सेस न कर पाने की शिकायत की। डाउन डिटेक्टर, जो आउटेज को ट्रैक करता है, ने भी इस मामले की पुष्टि की है। सुबह करीब 9 बजे तक, डाउन डिटेक्टर पर 1,200 से अधिक शिकायतें दर्ज की गईं।

यह पहली बार नहीं है जब एक्स ने ग्लोबल आउटेज का सामना किया है। अगस्त 2024 में भी प्लेटफॉर्म की सर्विसेज कुछ समय के लिए डाउन हो गई थीं, जिसके बाद यूजर्स को पोस्ट्स एक्सेस करने में कठिनाई हुई थी। आउटेज के बाद, सोशल मीडिया पर एक्स के विषय में मीम्स भी शेयर किए जाने लगे।

ग्लोबल आउटेज के दौरान, जब यूजर्स एक्स को एक्सेस करने की कोशिश कर रहे थे, तो उन्हें “Something Went Wrong” और “Try Reloading” की वार्निंग देखने को मिली। हालांकि, कुछ समय के लिए सर्विसेस बाधित रहीं, लेकिन ऐप को पुनः चालू करने पर यह सामान्य रूप से काम करने लगा।

एलन मस्क ने 2022 में एक्स को 44 अरब डॉलर में खरीदा था। प्लेटफॉर्म के अधिग्रहण के बाद, मस्क ने कई बड़े बदलाव किए, जिनमें से एक महत्वपूर्ण बदलाव ट्विटर का नाम बदलकर एक्स करना था।

नैतिक जागरूकता लाने के लिए जमाअत-ए-इस्लामी हिंद महिला विभाग का राष्ट्रव्यापी अभियान

नई दिल्ली- : जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के महिला विभाग की ओर से सितंबर 2024 में एक महीने का राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया जा रहा है।  इस अभियान का विषय है ‘नैतिकता ही स्वतंत्रता का आधार’। अभियान का उद्देश्य लोगों में जागरूकता पैदा करना और उन्हें यह बताना है कि सच्ची स्वतंत्रता क्या है और इसे नैतिकता से कैसे जोड़ा जाए। ये बातें : जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की राष्ट्रीय सचिव सुश्री रहमतुन्निसा ने नई दिल्ली स्थित जमाअत के मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहीं। उन्होंने देश में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ बढ़ती यौन हिंसा और हत्याओं पर दुख जताया और कहा, “हमारे समाज में महिलाओं के प्रति गहरी सामाजिक असमानताएं, स्त्रीद्वेष, पूर्वाग्रह और भेदभाव स्थिति को और भी जटिल बना दिया है। विशेषकर जब बात उपेक्षित वर्गों जैसे दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और विकलांग महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की हो।

 कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में आरजी कर अस्पताल में बलात्कार और हत्या, गोपालपुर (बिहार) में 14 वर्षीय दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या, उधम सिंह नगर (उत्तराखंड) में एक मुस्लिम नर्स के साथ बलात्कार और हत्या तथा बदलापुर (महाराष्ट्र) के एक स्कूल में दो किंडरगार्टन बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं साबित करती हैं कि हमारे देश में महिलाओं और लड़कियों के प्रति मानसिकता और दृष्टिकोण पर गंभीर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है।

केरल में आंशिक रूप से जारी हेमा समिति की रिपोर्ट से पता चलता है कि मनोरंजन उद्योग जैसे अत्यंत उदार कार्यस्थलों पर भी महिलाओं की सुरक्षा में कमी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराध साल दर साल बढ़ रहे हैं। हालाँकि, ये संख्याएँ तो केवल एक झलक है, क्योंकि ये दर्ज मामलों पर आधारित हैं। जानबूझकर या अन्यथा दबाए गए या अनदेखा किए गए मामलों की संख्या काफी अधिक है। इस चिंतनीय प्रवृत्ति का एक और उल्लेखनीय पहलू बिलकिस बानो (जिनके साथ 2002 के गुजरात दंगे में सामूहिक बलात्कार हुआ था) द्वारा न्याय के लिए किया गया कठिन संघर्ष है। उसका (बिलकिस) मामला हमारी संस्थाओं में व्याप्त प्रणालीगत पूर्वाग्रह और असंवेदनशीलता का स्पष्ट प्रमाण है।

 सुश्री रहमतुन्निसा ने कहा कि “महिलाओं पर अत्याचार की मानसिकता एक महामारी की तरह फैल गई है जो हमारे देश की शांति और विकास को प्रभावित कर रही है।” इस अभिशाप का मुख्य कारण स्वतंत्रता के नाम पर नैतिक मूल्यों का पतन है। समाज में नैतिक मूल्यों की कमी, महिलाओं को वस्तु मानना, यौन शोषण और दुर्व्यवहार, वेश्यावृत्ति, विवाहेतर संबंध, शराब और नशीली दवाओं का बढ़ता उपयोग आदि जैसी समस्याएं उत्पीड़न और शोषण को जन्म देती हैं। इसी तरह, यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई), गर्भपात, यौन हिंसा और बलात्कार में वृद्धि के अलावा, पारिवारिक इकाई का टूटना एवं निर्लज्जता की व्यापकता समाज के नैतिक ताने-बाने को तेजी से नष्ट कर रही है। इसके अलावा, सांप्रदायिक और जाति-आधारित राजनीति के बढ़ते प्रभाव, कुछ समुदायों और जातियों को नीच समझने और उन पर हावी होने की चाहत ने स्थिति को और खराब कर दिया है। अपराधियों और आरोपियों को राजनीतिक और भौतिक हितों के लिए नायक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जबकि उनकी निंदा की जानी चाहिए।

‘नैतिकता ही स्वतंत्रता का आधार’ शीर्षक वाले राष्ट्रव्यापी अभियान के बारे में बात करते हुए, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की राष्ट्रीय संयुक्त सचिव सुश्री शाइस्ता रफत ने कहा कि “इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति केवल नैतिक मूल्यों का अनुसरण करके ही वास्तविक जीवन और स्थायी स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है। इस अभियान का उद्देश्य जाति, समुदाय, रंग और नस्ल, लिंग, धर्म और क्षेत्र के भेदभाव के बिना सभी के लिए बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और बुनियादी अधिकारों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है। अभियान के दौरान राष्ट्रीय, राज्य, जिला और जमीनी स्तर पर शिक्षाविदों, परामर्शदाताओं, वकीलों, धार्मिक विद्वानों और सामुदायिक नेताओं को शामिल करते हुए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। छात्रों और युवाओं को सच्ची स्वतंत्रता और नैतिक मूल्यों से परिचित कराने के लिए परिसर में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। प्रत्येक धर्म और संस्कृति में समान नैतिक मूल्यों पर सार्वजनिक चर्चा के लिए विभिन्न धर्मों के विद्वानों को शामिल करते हुए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।