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सभा में किसान की मौत फिर भी भाजपा विधायक का भाषण जारी रहा, कांग्रेस ने घेरा

मध्य प्रदेश में उपचुनाव के लिए हो रही भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की जनसभा में एक किसान की मौत हो गयी लेकिन इसके बाद भी नेता मंच से भाषण देते रहे। इसे लेकर सिंधिया की आलोचना हो रही है। कांग्रेस ने इसे लेकर सिंधिया और भाजपा पर निशाना साधा है। कांग्रेस ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें एक कुर्सी पर किसान मृत पड़ा है और भाजपा नेता का भाषण जारी है। उधर सिंधिया ने इसपर सफाई में कहा है कि उनके सभा में आने से पहले ही किसान की मौत हो चुकी थी और उन्होंने उसकी स्मृति में एक मिनट का मौन रखवाया।

चुनाव सभा खंडवा जिले के मंधाता विधानसभा सीट के लिए हो रही थी। सभा में एक आए एक किसान की मौत हो गई लेकिन भाजपा नेता का भाषण फिर भी जारी रहा। सभा में भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में सभा करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया पहुंचे हुए थे। किसान के मौत जब हुई तो उस समय पंधाना से भाजपा विधायक राम दांगोरे का भाषण चल रहा था। हालांकि, 80 साल के किसान जीवन सिंह की अचानक मृत्यु होने के बाद भी उनका भाषण जारी रहा।

जनसभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पहुंच गए, हालांकि उनके आने से पहले शव को वहां से ले जाया चुका था। सिंधिया ने किसान की मौत की जानकारी मिलने के बाद एक मिनट का मौन रखवाया और उसके बाद भाषण दिया।

जब बुज़ुर्ग किसान ने दम तोड़ा, आस-पास बैठे लोग अपनी-अपनी सीटों से उठ गए। जिससे वहां हलचल मच गयी। इसके बावजूद भाजपा विधायक भाषण देते रहे। यह भी कहा जा रहा है कि दिवंगत किसान जीवन सिंह भाजपा का ही पुराना कार्यकर्ता था। कहा गया है कि हार्ट अटैक के कारण किसान की मौत हुई।

मसले पर तब विवाद पैदा हो गया जब इसे लेकर कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। इनमें कुर्सी पर बैठे-बैठे दिवंगत हुए बुज़ुर्ग का शव दिख रहा है और भाजपा नेता का भाषण भी सुनाई दे रहा है। कांग्रेस के नेता इन वीडियो को पोस्ट करके भाजपा पर निशाना साध रहे हैं और उसपर बेशर्म होने का आरोप लगा रहे हैं।

मध्य प्रदेश कांग्रेस ने वाकायदा एक ट्वीट करके कहा – ‘बीजेपी के कार्यक्रम में किसान की मौत, बीजेपी की भाषणबाज़ी फिर भी जारी रही। आज बीजेपी के कार्यक्रम में एक किसान की मौत हो गई लेकिन बीजेपी के बेशर्म नेताओं ने कार्यक्रम नहीं रोका।  किसान की लाश पड़ी रही और बेशर्म भाजपाई ताली बचाते रहे। शिवराज जी, जनता से न सही, भगवान से तो डरो।’

एक और कांग्रेस नेता ने ट्वीट करके कहा – ‘डराने वाला। ज्योतिरादित्य सिंधिया की रैली में एक बुज़ुर्ग किसान की कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई, लेकिन उसे अस्पताल ले जाने और अंतिम प्रयास करने की बजाए, उन्होंने अपनी रैली जारी रखी।’

उधर सिंधिया ने कहा कि जब वे जनसभा में पहुंचे, किसान का शव वहां से ले जाया चुका था। सिंधिया ने कहा – ‘मुझे अन्नदाता की मौत का जैसे ही पता चला मैंने एक मिनट का मौन रखवाया।’

इमरती देवी पर विवादित टिप्पणी कर घिर गए पूर्व सीएम कमलनाथ

कांग्रेस छोड़ कर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में गईं मंत्री इमरती देवी पर अभद्र टिप्पणी करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को फ़ज़ीहत झेलनी पड़ रही है। उनकी टिप्पणी के बाद राजनीति शुरू हो गयी है और मध्यप्रदेश में महत्वपूर्ण उपचुनाव को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया ‘मौन व्रत’ कर रहे हैं। उधर कमलनाथ ने कोई गलत टिप्पणी नहीं करने’ की बात करते हुए सीएम शिवराज सिंह से कहा कि सहानुभूति और दया बटोरने की कोशिश वही लोग करते हैं, जिन्होंने जनता को धोखा दिया हो।

कमलनाथ ने एक जनसभा में इमरती देवी का नाम अपने सहयोगियों से बुलवाते हुए ‘आइटम’ शब्द का इस्तेमाल किया था जिसके बाद उनकी निंदा हुई है। भाजपा नेता इमरती देवी ने भी उनपर पलटवार करते हुए कहा कि वे कमलनाथ को भाई जैसा मानती थीं लेकिन इस भद्दी टिप्पणी के बाद उनके मन में कमलनाथ के लिए कोई जगह नहीं रही। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से कहा कि वे कमलनाथ को पार्टी से बाहर करें।

बता दें मध्य प्रदेश में काफी सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं और शिवराज सिंह सरकार का भविष्य इनके नतीजों पर ही टिका है। भाजपा यदि समुचित सीटें नहीं जीत पाती है तो शिवराज सिंह सरकार को जाना पड़ेगा। उपचुनाव में डबरा के कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश राजे के समर्थन में प्रचार करते हुए कमलनाथ ने विवादित शब्द कहे। आरोप है कि उनके एक और साथी अजय सिंह ने भी इमरती के लिए कथित तौर पर ‘जलेबी’ शब्द का इस्तेमाल किया।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ पर निशाना साधते हुए कहा कि यह केवल इमरती देवी ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश की बेटियों-बहनों का अपमान है।  कमलनाथ ने एक ऐसी महिला के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया जो लंबे समय तक कांग्रेस में रहीं। लोग इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।’ चौहान और उनके साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया आज इसके विरोध में ‘मौन व्रत’ पर हैं।

उधर इस मामले में घिरे कमलनाथ ने सफाई दी है – ‘शिवराज जी आप कह रहे हैं कमलनाथ ने आइटम कहा। हां, मैंने आइटम कहा है, क्योंकि यह कोई असम्मानजनक शब्द नहीं है। मैं भी आइटम हूं आप भी आइटम हैं और इस अर्थ में हम सभी आइटम हैं। लोकसभा और विधानसभा में कार्यसूची को आइटम नंबर लिखा जाता है, क्या यह असम्मानजनक है? सामने आइए और मुकाबला कीजिए। सहानुभूति और दया बटोरने की कोशिश वही लोग करते हैं, जिन्होंने जनता को धोखा दिया हो।’

भारत में कोविड-19 के कुल मामले 75 लाख के पार, 1.14 लाख से ज्यादा लोगों की रोग से मौत

भारत में कोरोनावायरस संक्रमण के अभी तक के कुल मामले 75 लाख का आंकड़ा पार कर गए हैं। देश में अभी तक कोविड-19 से मरने वालों की संख्या भी 1.14 लाख से ज्यादा हो गयी है। अच्छी खबर यह है कि भारत में पिछले 24 घंटे में अपेक्षाकृत कम 55,722 नए मामले दर्ज हुए हैं जबकि 579 की मौत हुई है, जो पिछले लम्बे समय में सबसे कम है। भारत इस समय दुनिया में सबसे ज्यादा कोविड-19 के मामलों में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है।

स्वास्थ्य़ मंत्रालय के आज जारी आंकड़ों के मुताबिक सुबह 8 बजे तक पिछले 24 घंटे में 55,722 नए मामले सामने आए हैं, जिसके बाद कुल संक्रमितों की संख्या 75 लाख 50 हजार 273 हो गई है। इस दौरान 579 लोगों की मौत हुई है और कुल मृतकों की संख्या 1 लाख 14 हजार 610 हो गयी है। देश में इस वक्त 7 लाख 72 हजार 55 सक्रिय मामले हैं।

इसके पहले 11 अगस्त को इससे कम मामले- 53,601 मामले सामने आए थे जबकि  इतनी कम मौतें 19 जुलाई के बाद हुई हैं जब 543 लोगों की 24 घंटे में मौत हुई थी। लगातार तीसरे दिन देश में कुल एक्टिव मामलों की संख्या आठ लाख के नीचे रही है। अब तक बीमारी से देश में 66.6 लाख अब तक स्वस्थ हुए हैं।

देश का रिकवरी रेट 88.3 फीसदी चल रहा है जबकि दैनिक पॉजिटिविटी रेट 6.5 एएसडी है। पिछले 24 घंटे में 8,59,786 टेस्ट कराए गए हैं जिससे अब तक कुल 9,50,83,976 लोगों के टेस्ट हो चुके हैं।

बता दें दुनिया भर में इस महामारी से अब तक चार करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं, वहीं 11 लाख मौतें हो चुकी है। अमेरिका में सबसे ज्यादा 81,54,206 मामले हैं जबकि दूसरे नंबर पर भारत 75,50,273, तीसरे नंबर पर ब्राज़ील 52,24,362, चौथे नंबर पर रूस 13,90,824 है।

ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का चेन्नई में सफल परीक्षण किया

भारत ने रविवार को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का आईएनएस चेन्नई से सफल परीक्षण किया है। मिसाइल परीक्षण के दौरान अरब सागर में एक लक्ष्य पर निशाना भी साधा गया जो सीधा लक्ष्य को भेद गया।
भारत-चीन के बीच सीमा पर जबरदस्त तनाव के बीच स्वदेशी स्टील्थ डिस्ट्रॉयर के परीक्षण को बहुत अहम माना जा रहा है। बता दें भारत पहले ही अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में चीन से लगने वाली सीमा पर ब्रह्मोस मिसाइल तैनात कर चुका है। हालांकि, पहले इसकी रेंज 290 किलोमीटर थी जिसे अब बढ़ाकर 400 किलोमीटर कर देने से इसकी मारक क्षमता घातक हो गयी है।
डीआरडीओ ने एक ट्वीट करके इस मिसाइल के परीक्षण की जानकारी दी है। ट्वीट में
डीआरडीओ ने लिखा – ‘ब्रह्मोस, सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का आज भारतीय नौसेना के स्वदेशी रूप से निर्मित चुपके विध्वंसक आईएनएस, चेन्नई से सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। उसने अरब सागर में एक लक्ष्य को मार गिराया। मिसाइल ने पिन-पॉइंट सटीकता के साथ लक्ष्य को सफलतापूर्वक भेदा।’
उधर एक अनुमान के मुताबिक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल 450 किलोमीटर से अधिक दूरी तक निशाने को तबाह कर सकती है। यह बताना भी जरूरी है कि
सुपरसोनिक ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल को भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम के तहत विकसित किया गया है। यह 400 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक टारगेट को भेद सकती है। रैमजेट सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस को पनडुब्बी, युद्धपोत, लड़ाकू विमान और जमीन से भी लांच किया जा सकता है।’

डीआरडीओ का ट्वीट –

DRDO
@DRDO_India
BRAHMOS, the supersonic cruise missile was successfully test fired today on 18th October 2020 from Indian Navy’s indigenously-built stealth destroyer INS Chennai, hitting a target in the Arabian Sea. The missile  hit the target successfully with pin-point accuracy.

बलिया कांड का मुख्य आरोपी व भाजपा विधायक का करीबी धीरेंद्र सिंह गिरफ्तार

उत्तर प्रदेश के बलिया कांड का मुख्य आरोपी और भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह का करीबी धीरेंद्र सिंह आखिरी स्पेशल टास्क फोर्स के हत्थे चढ़ गया है। हत्याकांड के बाद पुलिस के पकड़ने के बावजूद फरार चल रहा मुख्य आरोपी धीरेंद्र सिंह लखनऊ में दबोचा गया। इसी मामले में दो अन्य आरोपी भी बलिया से गिरफ्तार किए गए। धीरेंद्र की गिरफ्तारी रविवार सुबह लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क के पास से हुई। इस बीच, हत्यारों के समर्थन में खुलकर बयानबाजी कर रहे भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ तलब किया है।

यूपी पुलिस ने धीरेंद्र के अलावा संतोष यादव और अमरजीत यादव को बलिया से गिरफ्तार किया गया है। तीनों आरोपियों पर  50-50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया था। दिनदहाड़े पुलिस-प्रशासन की मौजूदगी में कैमरों के सामने हुए इस चर्चित हत्याकांड अब तक 9 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है।

बता दें कि बलिया के रेवती थाना क्षेत्र के दुर्जनपुर गांव में 15 अक्टूबर को दोपहर बाद पुलिस और जिला प्रशासन के आला अफसरों की मौजूदगी में भाजपा विधायक के करीबी धीरेंद्र और उसके गुर्गों ने एक व्यक्ति की ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर हत्या कर दी थी। यह वारदात तब हुई थी जब राशन की दुकान को लेकर सीओ और एसडीएम की मौजूदगी में खुली बैठक चल रही थी।

हालांकि प्रशासन ने वारदात के बाद अफसरों व पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया था। लेकिन भाजपा विधायक जिस तरह से हत्यारों के समर्थन में खुलकर बयान दे रहे थे और क्राॅस एफआईआर दर्ज न किए जाने पर हजारों समर्थकों के साथ थाने का घेराव करने की धमकी दी, उससे उससे भाजपा की जमकर किरकिरी हुई थी।

नवरात्रि के पहले दिन पूजा अर्चना के साथ बाजारों में बढ़ी रौनक

राजधानी दिल्ली में नवरात्रि के पहले दिन आज माँ शैलपुत्री के पूजन के साथ ही मंदिरों में धूमधाम देखी गई, देवी भक्ती के भजनों में भक्तजन झूमते –नाचते देखें गये और श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। वहीं मंदिरों के बाहर और बाजारों में रौनक भी देखी गई है। मंदिरों के पुजारियों ने तहलका संवाददाता को बताया कि कोरोना वायरस के कारण  मार्च-अप्रैल माह में नवरात्रि के दौरान मंदिरों में ताला लगा था जिसके कारण भक्त जन मंदिरों में पूजा ना कर सकें। देवी मंदिर पांडव नगर के पुजारी पं. दीनदयाल ने बताया कि कोरोना काल में इस बार सरकार की सख्ती के कारण भक्त जन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर मंदिर में पूजा अर्चना कर रहे। झण्डेवालान मंदिर, छतरपुर मंदिर और शाहदरा के मंदिरों में सुबह-सुबह देवी पूजा कर लोगों ने देश की खुशहाली के लिये दुआयें मांगी।

सबसे ज्यादा खुशी बाजारों में और मंदिरों के बाहर देवी पूजन का सामान बेंचने वालों में देखी गयी है।देवी की पूजा के लिया लाल चुनरी बेंचने वाले रमेश कुमार ने बताया कि कोरोना काल में काम धंधा तो बंद पड़ा है। पर देवी माँ से वे प्रार्थना करते है कि कोरोना को भंगाये और देश में खुशहाली लाये।भाजपा नेता व केन्द्रीय फिल्म बोर्ड के सदस्य राजकुमार सिंह ने शाहदरा के मंदिर में पूजा पाठ कर गरीबों को फल आदि वितरित कर बताया कि कोरोना काल में नवरात्रि के दिन सबके लिये खुशहाल होगें। उनका कहना है कि नवरात्रि के दिनों में बाजारों में रौनक बढ़ी और ग्राहकों का बाजारों में खरीददारी करने से व्यापारियों में भी खुशी बढ़ी है। नीलम माता मंदिर के पुजारी पं. रामखिलावन का कहना है कि जब भी देश में संकट आया है माँ देवी की कृपा से सारे संकटों का समाधान हुआ है। इसी तरह अब कोरोना का संकट माँ देवी ही करेगीं, और फिर से देश खुशहाल और संपन्न होगा।

मिथुन चक्रवर्ती के बेटे के खिलाफ दुष्कर्म का केस दर्ज

मुंबई पुलिस ने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती के बेटे महाअक्षय के खिलाफ दुष्कर्म व धोखाधड़ी की शिकायत पर केस दर्ज किया है। 38 वर्षीय महिला ने ओशिवारा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके आधार पर केस दर्ज किया गया। अ​भिनेता महाअक्षय ने हांटेड 3डी और लूट जैसी फिल्मों में काम किया है।
मुंबई पुलिस ने शनिवार को बताया कि महिला ने शिकायत में कहा है कि वह 2015 से 2018 तक महाअक्षय के साथ रिश्ते में थी और इस दौरान अभिनेता ने उससे शादी का वादा किया था। अपने रिश्ते के दौरान वह अंधेरी के आदर्श नगर में महाअक्षय के फ्लैट पर गई थी। वहां आरोपी ने उसे नशीला शीतल पेय पिलाया और जबरन संबंध बनाए। इतना ही नहीं, जब वह गर्भवती हो गई तो जबरन उसका गर्भपात भी कराया गया। 2018 में महाअक्षय ने शादी से इनकार कर दिया। इस दौरान जब महिला ने महाअक्षय से बात करनी चाही तो महाअक्षय की पत्नी योगिता बाली ने उसे धमकाया।
पुलिस अधिकारी के मुताबिक, इसके बाद शिकायतकर्ता दिल्ली लौट गई और जून 2018 में बेगमपुर पुलिस स्टेशन में महाअक्षय और योगिता बाली के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। मामले में दिल्ली की अदालत ने महाअक्षय और योगिता बाली को अग्रिम जमानत दे दी। मार्च, 2020 में दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला को वहां शिकायत दर्ज कराने को कहा, जहां अपराध हुआ था। इसके बाद जुलाई में ओशिवारा थाने में शिकायत दी थी।

बिहार में राजद गठबंधन के घोषणा पत्र में 10 लाख नौकरियों, मनरेगा में प्रति व्यक्ति 200 दिन काम, कृषि भूमि लगान माफ़ करने जैसे वादे  

बिहार विधानसभा चुनाव  आरजेडी-कांग्रेस-अन्य के महागठबंधन ने शनिवार को  अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया। ‘प्रण हमारा, संकल्प बदलाव का’ नाम के जारी इस घोषणा पत्र में जो सबसे बड़ा वादा किया गया है वह 10 लाख स्थाई नौकरियों का है।  अन्य बड़े वादों में युवाओं को सभी सरकारी बहाली परीक्षाओं के लिए आवेदन शुल्क मुक्त करने और मनरेगा के तहत प्रति परिवार की जगह प्रति व्यक्ति 100 की जगह एक साल में 200 दिन काम देने एयर कृषि भूमि लगान माफ़ करने जैसे वादे  शामिल हैं।
पटना में आज आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेन्स में महागठबंधन के घटक दलों के नेताओं ने यह घोषणा पत्र जारी किया। घोषणा पत्र में 25 सूत्री साझा कार्यक्रम बिहार की जनता के सामने रखा गया है। घोषणा पत्र में सबसे बड़ा वादा 10 लाख स्थाई नौकरियां देने का है। लॉक डाउन के दौरान बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए लोगों की समस्या देखते हुए यह वादा महागठबंधन ने किया है। कहा गया है कि 10 लाख स्थाई नौकरियों की समय पर बहाली की प्रक्रिया पहली ही केबिनेट बैठक में कई दी जाएगी।
घोषणापत्र में राज्य के युवाओं को सभी सरकारी बहाली परीक्षाओं के लिए आवेदन शुल्क मुक्त करने का भी वादा है। साथ ही मनरेगा में प्रति परिवार की जगह प्रति व्यक्ति साल भर में 100 से बढ़ाकर 200 दिन काम देने का बड़ा वादा भी किया गया है। मनरेगा की तर्ज पर राज्य की रोज़गार योजना बनाने का भी भरोसा जनता से है।
प्रेस कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव, कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल, महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे शामिल रहे।
घोषणा पत्र (संकल्प पत्र) में समान काम के लिए समान वेतन, पूरे राज्य में 2005 से लागू नई पेंशन योजना बंद करके पुरानी पेंशन योजना लागू करने, महिलाओं के लिए   जीविका समूह काडर को स्थाई करने और सभी को 4000 रुपये प्रति माह मानदेय का भी वादा किया गया है।
महागठबंधन ने घोषणा पत्र में भ्रष्टाचार  किया है और कहा है कि प्रदेश के सभी थानों  और प्रखंड कार्यालयों में भ्रष्टाचार ख़त्म करेंगे, स्मार्ट ग्राम योजना के तहत हर पंचायत में मान्यता प्राप्त डॉक्टर और प्रशिक्षित नर्स सहित एक क्लीनिक खोलेंगे और कृषि भूमि लगान माफ़ करने की बात भी कही गई है।

घोषणा पत्र के प्रमुख वादे –
* पहली केबिनेट में 10 लाख नौजवानोंं को रोजगार, * परीक्षा आवेदन फार्म पर फीस माफ * परीक्षा केंद्र जाने का किराया सरकार देगी * पलायन रोकेंगे * कर्पूरी श्रम सहायता केंद्र खोलेंगे * शिक्षकों के लिए समान काम-समान वेतन * जीविका दीदियों का मानदेय दोगुना होगा * पहले ही विधानसभा सत्र में केंद्र के कृषि कानूनों के असर  से बिहार के किसानों को मुक्ति दिलाएंगे।

रामराज्य या जंगलराज!

1 मार्च, 2019 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुम्भ मेले के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाँच सफाईकर्मियों के पैर धोकर, तौलिये से पोंछकर सुिर्खयाँ बटोरीं। इसके करीब डेढ़ साल बाद इसी 14 सितंबर को उत्तर प्रदेश के ही गाँव बूलगढ़ी (हाथरस) में एक 19 वर्षीय बाल्मीकि युवती से गैंगरेप हुआ। उसकी रीढ़ की हड्डी तोडक़र जीभ काट दी गयी और उसके निचले अंगों को लकवा मार गया। बुरी तरह घायल पीडि़त युवती दो हफ्ते तक अस्पतालों में तड़पती रही और जीने के लिए संघर्ष करते-करते दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में 29 सितंबर को ज़िन्दगी की जंग हार गयी। उत्तर प्रदेश पुलिस अस्पताल से उसके शव को बिना परिजनों को बताये ले गयी और आधी रात को तमाम हिन्दू रीति-रिवाज़ों को ताक पर रखते हुए बिना परिवार की सहमति के मिट्टी का तेल डालकर उसका शव जला डाला। घटना से चिन्तित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फोन करके घटना की जानकारी ली। पीडि़त परिवार के अलावा शायद इस घटना के राजनीतिक नुकसान की भी चर्चा की हो; क्योंकि देश भर को इस घटना ने हिलाकर रख दिया है। निश्चित ही इस घटना और योगी सरकार के कुप्रबंधन ने प्रधानमंत्री मोदी की दलितों को रिझाने की उन कोशिशों को पलीता लगा दिया है। इस मामले में योगी सरकार के प्रशासन और पुलिस की भूमिका को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर कई गम्भीर आरोप लगे हैं और उनसे लोग अनेक सवाल पूछ रहे हैं।

योगी नीत उत्तर प्रदेश सरकार पर बड़ा आरोप है कि पीडि़त दलित जाति की थी और आरोपी सामान्य श्रेणी के हैं, इसलिए सरकार उन्हें बचाना चाह रही है। भले सरकार का दावा है कि राज्य में कानून व्यवस्था कायम है और इस मामले में फास्ट-ट्रैक के ज़रिये दोषियों को सज़ा दिलायी जाएगी, लेकिन लोगों को लगता है कि उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ अपराध का ग्राफ बहुत तेज़ी से बढ़ा है। अब सरकार इस मामले को दंगों के षड्यंत्र के आरोप के रूप में पेश कर रही है, जिससे असल मामले को दफ्न करने के कोशिशों के रूप में देखा जा रहा है। आरोपियों के परिजनों की तरफ से घटना के बाद जिस तरह के बयान सामने आये हैं और उनमें जिस तरह कांग्रेस नेताओं प्रियंका गाँधी और राहुल गाँधी को निशाने पर रखा गया है, उससे भी साफ दिखता है कि उन्हें सत्तारूढ़ दल की तरफ से राजनीतिक मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर कोई आरोपी नहीं है, तो उसे अपनी बात कहने का हक है; लेकिन ऐसे लोग उस तरह की राजनीतिक भाषा इस्तेमाल नहीं करते जिस तरह की उन्होंने की है। इससे योगी सरकार की मंशा पर सवाल उठे हैं।

उत्तर प्रदेश का यह इकलौता मामला नहीं है, वहाँ महिलाओं और दलितों के खिलाफ अपराध की स्थिति हाल में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिपोर्ट के आँकड़े भी ज़ाहिर करते हैं। यह रिपोर्ट, जो हाथरस की घटना के दौरान ही सार्वजनिक हुई है, जिसमें साफ कहा गया है कि सन् 2019 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं और दलितों के खिलाफ अपराध के सर्वाधिक मामले सामने आये हैं।

उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में जिस तरह भाजपा ने ज़ात-पात की राजनीति की हार होने का दावा किया था, वह हाथरस और इस तरह की दलित उत्पीडऩ की अन्य घटनाओं से पूरी तरह तार-तार हो गया है और योगी सरकार पर जातिवादी होने के आरोप लगने लगे हैं। प्रधानमंत्री का फोन आने के बाद योगी सरकार ने आनन-फानन मृतक के परिवार के लिए 25 लाख रुपये की राहत राशि, घर और परिवार के सदस्य के लिए नौकरी देने का ऐलान कर दिया; लेकिन तब तक मामला तूल पकड़ चुका था। ऊपर से पीडि़त परिवार ने साफ कह दिया कि उन्हें पैसे का लालच नहीं और वे सिर्फ अपनी बेटी के लिए इंसाफ चाहते हैं। उनकी तरफ से बार-बार आरोप लगाया गया है कि सरकार के लोग उन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। पुलिस-प्रशासन द्वारा आधी रात को मिट्टी का तेल डालकर शव जलाने के बाद ज़िलाधिकारी प्रवीण कुमार का पीडि़त परिवार को धमकाने वाला वीडियो वायरल हुआ, उससे भी योगी सरकार की बहुत किरकिरी हुई है। ज़िलाधिकारी को हटाने की ज़बरदस्त माँग के बावजूद सरकार का उनके पीछे खड़ा रहना यह ज़ाहिर करता है कि कैसे योगी सरकार ने गलती करने वाले अपने अधिकारियों को बचाया है। लोगों में इससे यही संदेश गया है कि सरकार के इशारे पर ही सब कुछ हुआ है।

जब योगी सरकार पर बहुत दबाव बन गया, तब सरकार की तरफ से इस बात पर ज़ोर दिया गया कि लडक़ी से दुष्कर्म हुआ ही नहीं। आरोपियों के परिजनों की तरफ से बयान दिलवाये गये और अगड़ी जातियों की पंचायतें करवाकर इस नयी कहानी को सच साबित करने की भरपूर कोशिश हुई। यह सब तब शुरू हुआ, जब अस्पताल की ओर से दुष्कर्म को प्रमाणित न करने वाली रिपोर्ट सामने आयी। हालाँकि सच यह है कि पीडि़ता के सैम्पल 9 दिन के बाद लिये गये और 11 दिन के बाद इन्हें फॉरेंसिक जाँच के लिए भेजा गया।

फॉरेंसिक के जानकार कहते हैं कि 92 घंटे के बाद इस तरह के सैम्पल कोई मायने नहीं रखते और उसमें सही रिपोर्ट आने की सम्भावना खत्म हो जाती है। हालाँकि लडक़ी के बयान के जो वीडियो सार्वजानिक हुए हैं, उनमें वह साफ कह रही है कि उसके साथ बर्बरता तथा दुष्कर्म हुआ है। हाल के स्टिंग, जिनमें उस अस्पताल की डॉक्टर से बातचीत भी कैमरे में कैद है; भी यह ज़ाहिर करते हैं कि लडक़ी से दुष्कर्म हुआ है। कुल मिलाकर बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का भाजपा का नारा उत्तर प्रदेश में दलित लडक़ी से हुई इस दरिंदगी और आरोपियों को सरकार द्वारा बचाने के प्रयासों से छिन्न-भिन्न हो गया है। इससे निश्चित ही भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा नुकसान होगा।

घटनाक्रम

पीडि़त के परिवार के मुताबिक, युवती अपनी माँ और भाई के साथ खेत में घास काट रही थी। उसका भाई घास के एक बंडल के साथ घर लौट आया, जबकि वह अपनी माँ के साथ खेत में रही। इसी दौरान युवती का अपहरण कर लिया गया। माँ उसकी तलाश में कुछ दूर गयी तो खेत में उसे अचेत अवस्था में पाया। परिवार ने कहा कि चार से पाँच लोगों ने उस पर पीछे से हमला किया, उसे उसके दुपट्टे से बाँध दिया और उसे एक बाजरे के खेत में खींचकर ले गये। वहाँ उन सभी ने पीडि़त के साथ गैंगरेप किया। माँ ने देखा उसकी गर्दन बुरी तरह जख्मी थी। बेटी को टूटी हड्डियों के कारण साँस लेने में कठिनाई हो रही थी। उसे ऑक्सीजन की ज़रूरत थी; लेकिन पुलिस ने चार-पाँच दिन बाद उसकी स्वास्थ्य स्थिति को लेकर जानकारी दी। पुलिस ने इन आरोपों को गलत बताया। पुलिस के मुताबिक, हाथरस या अलीगढ़ के डॉक्टरों ने यौन उत्पीडऩ की पुष्टि नहीं की। पीडि़त को पहले अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया; लेकिन डॉक्टरों के उसकी स्थिति को गम्भीर बताया और उसे एम्स, दिल्ली रेफर करने का अनुरोध किया। लेकिन दिलचस्प यह है कि पुलिस उसे एम्स के बजाय सफदरजंग अस्पताल, दिल्ली ले गयी। भयानक पीड़ा के बाद 29 सितंबर को अस्पताल में युवती की मौत हो गयी। जब मामले ने तूल पकड़ा, तो योगी ने सम्बन्धित कुछ पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया और हाथरस में धारा-144 लगा दी।

साज़िश का आरोप

प्रदेश सरकार का आरोप है कि हाथरस मामले में विपक्षी दल के नेताओं के बीच पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) भी अपनी चाल चल रहा था। पुलिस ने चार लोगों को पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया है। लैपटॉप और मोबाइल बरामद कर छानबीन शुरू कर दी। मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि विदेश से इस मामले में फंडिंग हुई। एक पत्रकार पर भी इसे लेकर आरोप लगाया गया। पुलिस का दावा है कि पूछताछ में सामने आया है कि गिरफ्तार लोगों का सम्बन्ध पीएफआई और उसके सहसंगठन कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) से है।

अनजान महिला

हाथरस प्रकरण में एक महिला, जो कुछ दिन भाभी बनकर घर पर रही, भी चर्चा में आ गयी। इस महिला ने परिवार की जमकर पैरवी की। मीडिया के सामने भी खुलकर बोली और एसआईटी की पूछताछ के दौरान भी।  कुछ रिपोट्र्स में कहा गया कि महिला जबलपुर की एक मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर है। सरकार पक्ष के लोगों द्वारा कहा गया कि वह जातीय दंगे कराने की साज़िश में शामिल थी। उसने इस परिवार को बरगलाया। यह तक कहा गया है कि वह किसी केंद्रीय एजेंसी की जासूस है। इन लोगों ने उसे नक्सल भाभी की संज्ञा तक दे डाली। जबकि महिला का कहना था कि इस घटना की जानकारी पाकर वह हाथरस गयी और अपने अधिकारियों को अवगत कराया था। उसके नंबर के साथ छेड़छाड़ की गयी है, जिसकी साइबर सेल में शिकायत की गयी है। मुझे नक्सलवाद से जोडऩे वालों पर कानूनी कार्रवाई करूँगी। वहीं मृतक की भाभी ने भी कहा कि महिला उनकी दूर की रिश्तेदार है, और घटना की जानकारी पाकर यहाँ आयी थी। भाई का कहना था कि उनके सब रिश्तेदार और सहानुभूति रखने वालों को साज़िश के तहत बदनाम किया जा रहा है और किसी को नक्सलवादी और किसी को आतंकवादी बताया जा रहा है।

सीबीआई ने शुरू की जाँच

हाथरस मामले की जाँच इस मामले में काफी हीला-हवाली के बाद आखिर सीबीआई ने शुरू कर दी। सीबीआई ने 11 अक्टूबर को एफआईआर दर्ज कर अपनी टीम गठित कर ली। पीडि़त परिवार भी घटना के बाद पहली बात 11 को लखनऊ पहुँचा। वैसे इसकी सिफारिश योगी सरकार ने ही केंद्र को भेजी थी। इस मामले की जाँच सीबीआई की जाँच तक एसआईटी करती रही थी। केस की जाँच का ज़िम्मा एसआईटी को सौंपे जाने के बाद उसने गाँव के 40 लोगों को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा था। इनमें से काफी लोगों से उसने पूछताछ की है।

इस मामले में योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट में भी हलफनामा दायर कर कह चुकी है कि वह चाहती है कि इस तरह के दु:खद हादसे में जान गँवाने वाली युवती को न्याय मिले। मामले का सच सामने आये, इसलिए उसने पहले एसआईटी का गठन किया और पुलिस को जाँच से दूर रखने के मकसद से मामला सीबीआई को सौंपने की सिफारिश की।

सुप्रीम कोर्ट सख्त

इस मामले की आरम्भिक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की। सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबड़े ने इस मामले को शॉकिंग बताया। सुनवाई के दौरान याचिककर्ता के वकील की ओर से कोर्ट की निगरानी में जाँच की बात कही जिस पर सीजेआई ने पूछा कि आप इलाहाबाद हाई कोर्ट क्यों नहीं गये? सीजेआई ने कहा कि यह घटना बहुत ही असाधारण और चौंकाने वाली है। इसी कारण हम आपको सुन रहे हैं। हम मामले में आपकी भागीदारी की सराहना नहीं करते।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दलील रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समाज में जिस तरह से भ्रम फैलाया जा रहा है, हम उसके बारे में सच सामने लाना चाहते हैं।

इस मामले की पुलिस और एसआईटी जाँच चल रही है। इसके बावजूद हमने सीबीआई जाँच की सिफारिश की। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से तीन अन्य मुद्दों पर भी हलफनामा माँगा है। याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पीडि़त परिजन सीबीआई जाँच से संतुष्ट नहीं हैं, वो कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जाँच चाहते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आपकी माँग जाँच को ट्रांसफर करने की है या फिर ट्रायल को ट्रांसफर करने की है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार से तीन मुद्दों- गवाहों और परिवार की सुरक्षा, पीडि़त परिवार के पास वकील है कि नहीं और इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस केस का स्टेट्स क्या है? इस पर हलफनामा दाखिल करने को कहा है। 12 अक्टूबर को पत्रकारों को प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की खामियों पर उसे लताड़ा और पत्रकारों को सलाह दी कि वे इलाहाबाद हाई कोर्ट जाएँ। हाथरस कांड की जाँच सीबीआई को सौंपने की माँग को लेकर एक एनजीओ ने भी शीर्ष कोर्ट में दस्तक दी थी। एनजीओ ने कहा कि उसे ऐसे पीडि़तों के साथ काम करने का अनुभव है, जिन्हें डराया और धमकाया गया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की माँग को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दाखिल की गयी। तमिलनाडु के वकील सीआर जयासुकिन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, लिहाज़ा राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।

केंद्र की नयी एडवाइजरी

हाथरस घटना के बाद 10 अक्टूबर को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एक एडवाइजरी जारी की है। इसमें यौन अपराधों जैसे संज्ञेय मामलों में एफआईआर अनिवार्य रूप से दर्ज करने को कहा गया है। सरकारी कर्मचारी एफआईआर दर्ज करने में नाकाम रहता है, तो उसे सज़ा दी जाए और दुष्कर्म मामलों में पुलिस जाँच हर हाल में दो महीने में पूरी की जाए।

गृह मंत्रालय की तीन पन्नों की एडवाइजरी में कहा गया कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाले अपराधों से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने कानूनी प्रावधानों को और मज़बूत बनाया है। इनमें एफआईआर दर्ज करने, फॉरेंसिक जाँच के लिए साक्ष्य जुटाने और यौन हमला साक्ष्य संग्रह (एसएईसी) किट, दो महीने में जाँच पूरी करने और यौन अपराधियों का राष्ट्रीय डाटाबेस का अनिवार्य इस्तेमाल शामिल हैं। डाटाबेस से यौन अपराधियों की पहचान करने और ऐसे अपराधी के बार-बार किये जा रहे यौन अपराध पर भी नज़र रखी जा सकेगी। सीआरपीसी की धारा-154 की उपधारा (1) के तहत संज्ञेय अपराधों के मामलों में एफआईआर अनिवार्य रूप से दर्ज हो। कानून के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ यौन हमलों समेत संज्ञेय अपराधों में पुलिस को एफआईआर या ज़ीरो एफआईआर (अपने थानाक्षेत्र के बाहर हुई घटना के मामले में) भी दर्ज करना होगा। इसमें सबसे महत्त्वपूर्व बात यह कही गयी है कि सीआरपीसी की धारा-164 (ए) के तहत यौन हमले या दुष्कर्म पीडि़त का परीक्षण अपराध की सूचना मिलने के 24 घंटे के भीतर सहमति से किसी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर से कराया जाए। हालाँकि हाथरस की पीडि़ता के मामले में नियमों का पालन नहीं हुआ। उसकी सैम्पल रिपोर्ट 11 दिन के बाद फारेंसिक जाँच के लिए भेजी गयी, जबकि सैम्पल ही नौ दिन के बाद लिया गया। यह भी नियम है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-32 (1) के तहत मृतका का लिखित या मौखिक बयान एक अहम तथ्य के तौर पर माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के पुरुषोत्तम चोपड़ा बनाम दिल्ली सरकार मामले में 7 जनवरी, 2020 के एक आदेश के मुताबिक, मरने के पहले का दिया गया बयान न्यायिक जाँच के लिए सभी ज़रूरतों को पूरा करता है। इसे इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि ऐसे बयान को मजिस्ट्रेट या किसी पुलिस अफसर के बयान के सामने रिकॉर्ड नहीं किया गया।

सीबीआई के सामने चुनौती

सीबीआई के सामने इस मामले की जाँच आसान नहीं। सीबीआई को यह जाँच घटना के एक महीन बाद जाकर मिली है। तब तक क्राइम सीन नष्ट हो चुका है। पीडि़ता का शव कब का जलाया जा चुका है। उससे गैंगरेप या रेप को लेकर विरोधाभासी रिपोट्र्स हैं। सीबीआई को हर साक्ष्य के लिए अभी तक की दूसरी एजेंसियों से हुई जाँच रिपोट्र्स पर ही निर्भर रहना होगा। उसकी साड़ी जाँच उसी के दायरे में रहेगी। कुल मिलाकर यह मामला लगभग सुशांत सिंह राजपूत के मामले जैसा ही हो गया है, जिसमें सीबीआई को कड़ी मशक्कत करनी होगी। सीबीआई के सामने कुछ बुनियादी सवाल हैं। सबसे बड़ा यह कि आखिर 14 सितंबर को खेत में लडक़ी को किसने मारा? लडक़ी ने पहले दिन वाले बयान में अपने साथ कथित बलात्कार की बात क्यों नहीं की? पीडि़त ने आखरी बयान में बलात्कार की बात की; लेकिन मेडिकल रिपोर्ट इसके विपरीत क्यों है? 29 सितंबर को पीडि़त की मौत के बाद आनन-फानन में रात के अँधेरे में उसका शव क्यों जला दिया गया? सीबीआई एसआईटी की अब तक की पड़ताल से मदद लेगी, लेकिन एक बड़ा पेच यह है कि पीडि़त के परिवार को एसआईटी या सीबीआई जाँच पर भरोसा नहीं है। पीडि़त परिवार बार-बार  न्यायिक जाँच की माँग कर रहा है। सीबीआई को चश्मदीदों से लेकर फॉरेंसिक जाँच जैसे सुबूतों के आधार पर सच तक पहुँचना होगा। सीबीआई के रिकॉर्ड में कई ऐसे बड़े मामले हैं, जिनमें वह वर्षों से किसी नतीजे पर नहीं पहुँची है।

पत्रकार का फोन टैपिंग मामला 

हाथरस घटना में पुलिस और प्रशासन भले के मामलों में नाकाम साबित हुआ; लेकिन पत्रकारों को निशाना बनाने में वह पीछे नहीं रहा। आरोप लगा कि प्रदेश सरकार ने इंडिया टुडे टीवी की रिपोर्टर तनुश्री पांडेय का फोन टैप किया। इसमें वह हाथरस की पीडि़त के भाई से कह रही है कि वह अपने पिता के बयान का एक वीडियो बनाकर उसे भेज दे। सरकार के इस कदम के खिलाफ सोशल मीडिया पर भी तीखी प्रतक्रिया हुई और ट्विटर पर प्त॥ड्डह्लद्धह्म्ड्डह्य॥शह्म्ह्म्शह्म्स्द्धशष्द्मह्यढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड लगातार ट्रेंड में रहा। यूसर्स ने इसमें जमकर सरकार को कोसा। इंडिया टुडे ग्रुप ने एक बयान जारी करके पूछा कि उसकी रिपोर्टर का फोन क्यों और किस नियम के तहत टैप किया गया है? उसने यह भी कहा है कि यदि पीडि़त के भाई का फोन टैप किया गया है, तो क्यों? इंडिया टुडे ग्रुप ने यह भी कहा है कि सरकार को बताना चाहिए कि पीडि़त के शोकाकुल परिवार के फोन को निगरानी पर क्यों रखा जा रहा है और वह टैप क्यों किया जा रहा है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया ने भी इस मामले पर योगी सरकार की निन्दा की और कहा कि वह संविधान के अनुछेद-21 के तहत मिले जीवन के अधिकार और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन कर रही है। इसके साथ ही वह इससे जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लंघन कर रही है। बता दें सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संघ बनाम पीयूसीएल के एक फैसले में कहा कि पूर्ण निजता के साथ टेलीफोन पर बात करना अनुछेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और निजी स्वतंत्रता के हक के तहत आता है। इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है और राज्य सरकार खास स्थितियों में ही किसी का फोन टैप कर सकती है।

सियासत : योगी बनाम प्रियंका

क्या हाथरस के मामले में शुरुआती सुस्ती दिखाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति के दो सबसे बड़े विपक्षी दलों बसपा और सपा ने गलती कर दी? लगता यही है। इस बड़ी घटना पर प्रदेश में विपक्ष के शून्य के बीच कांग्रेस की उत्तर प्रदेश मामलों की महासचिव प्रियंका गाँधी ने बहुत ही सटीक रणनीति बनाकर लपका है। पूरे मामले के दौरान योगी सरकार के सामने विपक्ष के नाम पर कांग्रेस या कह लीजिए प्रियंका गाँधी ही दिखायी दीं। बाद में सपा रालोद या बसपा ने मैदान में आकर भले डंडे भी खाये, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और हर जगह प्रियंका की ही चर्चा थीं। प्रदेश में इस मामले में खूब राजनीति हुई। प्रियंका गाँधी शुरू से ही हाथरस मामले को उठाते हुए मैदान में डट गयीं। हाथरस जाते हुए रास्ते में पुलिस से भी भिड़ीं। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी साथ रहे।

कांग्रेस उत्तर प्रदेश में खोई ज़मीन तलाश रही है और हाथरस के मुद्दे ने उसे एक बड़ा अवसर प्रदान कर दिया। एक पुलिसकर्मी के उनके कपड़ों पर हाथ डालने वाला वीडियो भी खूब वायरल हुआ, जिस पर पुलिस को माफी माँगनी पड़ी। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस पर संज्ञान लिया। उत्तर प्रदेश पुलिस विरोधी राजनीतिक दलों को रोकने की हर सम्भव कोशिश करती दिखी और पीडि़ता का गाँव छावनी में बदल दिया गया। राहुल गाँधी का गिरेबान पकड़ा गया, उन्हें गिराया भी गया। पुलिस की ही धक्कामुक्की में टीएमसी के सांसद डेरेक ओब्रायन सडक़ पर गिर पड़े, जबकि टीएमसी की ही महिला सांसद प्रतिमा मंडल और ममता ठाकुर ने ब्लाउज फाड़े जाने का आरोप लगाया। रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी को पुलिस ने लाठियाँ भाँजीं, पर उनके कार्यकर्ताओं ने ढाल बनकर बचा लिया। इसी तरह कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर पुलिस की बरसती लाठियों के बीच प्रियंका गाँधी को ढाल बनते देखा गया। भीम आर्मी के चंद्रशेखर भी मैदान में डटे रहे। हाथरस के चंदपा थाना में चंद्रशेखर और उनके 400-500 समर्थकों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। प्रियंका ने गाँधी जयंती पर दिल्ली के बाल्मीकि मंदिर में धरने में शामिल होकर अपनी राजनीतिक चतुराई का सुबूत दिया। एक ट्वीट में प्रियंका ने सीधे मुख्यमंत्री योगी को इस मामले में ज़िम्मेदार ठहराया। प्रियंका ने लगातार योगी सरकार पर हमलावर होकर सपा और बसपा जैसे दलों को किनारे कर दिया। प्रियंका की रणनीति प्रदेश में दलितों के कांग्रेस के साथ जोडऩे की है, जहाँ ब्राह्मण पहले ही भाजपा से दूर जाते दिख रहे हैं। यह प्रियंका और राहुल गाँधी का दबाव ही था कि उत्तर प्रदेश सरकार को उन्हें तीन अन्य लोगों के साथ परिवार से मिलने की मंज़ूरी देनी पड़ी। प्रियंका जिस आत्मीयता से परिजनों से मिलीं, उससे कांग्रेस के प्रति अच्छा संदेश गया। पीडि़ता की माँ ने कहा कि प्रियंका उनके साथ बैठीं, उन्हें गले लगाया और उनसे बेटी को लेकर बातें कीं दु:ख पूछा और उन्हें न्याय दिलाने की लड़ाई लडऩे का भी वादा किया। उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रियंका की मज़बूत एंट्री कांग्रेस को बदल रही है। वहीं योगी सरकार का बार-बार प्रियंका गाँधी को निशाने पर रखना यह ज़ाहिर करता है कि कांग्रेस बड़ी तेज़ी से प्रदेश की राजनीति में विपक्ष की भूमिका में उभरती जा रही है। यही वजह है कि हाथरस मामला योगी बनाम प्रियंका होता जा रहा है।

शर्मनाक सच्चाई यह है कि कई भारतीय दलित, मुस्लिम और आदिवासियों को मानव नहीं मानते हैं। मुख्यमंत्री और उनकी पुलिस का कहना है कि किसी का बलात्कार नहीं किया गया; क्योंकि उनके लिए और कई अन्य भारतीयों के लिए वह (पीडि़त दलित लडक़ी) हृह्र ह्रहृश्व थी।

राहुल गाँधी, कांग्रेस नेता

हाथरस में एक बड़ी साज़िश रची जा रही थी। हम किसी भी तरह की साज़िश को सफल नहीं होने देंगे। विपक्ष हाथरस के मुद्दे पर राजनीति कर रहा है। एक तरफ सरकार विकास के काम में लगी है; वहीं ये लोग षड्यंत्र रच रहे हैं। झूठे नारों पर जाति, क्षेत्र, मत और मज़हब के आधार पर समाज को बाँटने वाले लोग आज भी अपनी विभाजनकारी मानसिकता से बाज़ नहीं आ रहे हैं। विकास उन्हें अच्छा नहीं लग रहा है। लोक कल्याण उन्हें अच्छा नहीं लग रहा है। शासन की योजनाएँ अच्छी नहीं लग रही हैं, यही कारण है कि वे षड्यंत्र पर षड्यंत्र रच रहे हैं। रोज़ नये षड्यंत्रों को जन्म देते हैं। इन सभी नमूनों की साज़िश और कृत्य जनता के सामने आ रहे हैं। कोई कहता है कि जाति के आधार पर हम दंगा कराएँगे, कुछ और उधर से मरेंगे, कुछ लोग इधर से मरेंगे। हमारे नेता आएँगे, उसके बाद जाकर राजनीति करेंगे। एक गरीब की लाश पर राजनीति करने वाले इन चेहरे को पहचानना होगा।

योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश)

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगर महिलाओं को सुरक्षा नहीं दे सकते, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। मैं केंद्र सरकार से कहना चाहती हूँ कि वह उन्हें उनके मूल स्थान गोरखनाथ मन्दिर भेज दे। अगर उन्हें मंदिर पसन्द नहीं है, तो उन्हें राम मन्दिर के निर्माण का काम सौंप देना चाहिए।

मायावती, बसपा प्रमुख

हाथरस कांड में मृतका के परिजनों का नहीं, बल्कि उन अधिकारियों का नार्को टेस्‍ट होना चाहिए, जि‍न्होंने इस कांड को अंजाम दिया; जिससे यह सच उजागर हो सके कि उन्होंने किसके महा-आदेश पर ऐसा किया। असली गुनहगार कितनी भी परतें ओढ़ लें, लेकिन एक दिन सच सामने आ जाएगा और आज की सत्ता का राज जाएगा।

अखिलेश यादव, सपा नेता

पाप पर पर्दा

इस पखवाड़े ‘तहलका’ की आवरण कथा एक ऐसी भयावह घटना पर है, जो उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में घटी। इस घटना में 19 वर्षीय दलित युवती के साथ उच्च जाति के युवकों ने कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया और उससे क्रूरता की तमाम हदें पार कर दीं, जिससे दो सप्ताह बाद उसकी दर्दनाक मौत हो गयी। इस घटना ने पूरे देश को आक्रोश से भर दिया। पुलिस ने जल्दबाज़ी में आधी रात को शव का परिजनों के बगैर दाह संस्कार कर डाला और पीडि़त परिवार को सुरक्षा के नाम पर घर में कैद कर दिया गया। इसे लेकर देश के हर संवेदनशील व्यक्ति ने सवाल उठाने शुरू कर दिये। अब मामले की जाँच सीबीआई को सौंप दी गयी है। निस्संदेह यह एक भयावह हत्या थी। हालाँकि युवती से दुष्कर्म को लेकर अलग-अलग जानकारियाँ सामने आयी हैं। लडक़ी पर 14 सितंबर को उसके गाँव के चार लोगों ने हमला किया था, यह बात पीडि़त युवती ने जीवित रहते दी, जिसमें उसने कहा कि उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ। उत्तर प्रदेश पुलिस ने हमले के 11 दिन बाद लिये गये नमूनों के आधार पर फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि लडक़ी से दुष्कर्म नहीं हुआ।

विशेष जाँच दल (एसआईटी) ने मृतक दलित लडक़ी के परिजनों के आरोपों की सत्यता का पता लगाने के लिए नार्को-पॉलीग्राफ टेस्ट का प्रस्ताव दिया, जिससे पुलिस को व्यापक आलोचना झेलनी पड़ी। पीडि़त लडक़ी के दु:खी भाई ने ठीक ही कहा कि आरोपियों और पुलिसकर्मियों पर इस तरह का परीक्षण किया जाना चाहिए, न कि पीडि़त परिवार पर। भाई का आरोप है कि यह दुष्कर्म की घटना को दूसरा मोड़ देने की कोशिश है। पीडि़त के अस्पताल में भर्ती होने के 11 दिन बाद लिये गये नमूनों के आधार पर आयी फॉरेंसिक रिपोर्ट कि ‘दुष्कर्म नहीं हुआ’ से ही किसी अंतिम नतीजे पर पहुँच जाना मामले की जाँच को हास्यास्पद बनाने जैसा है। यह दावा भी तर्कसंगत नहीं लगता है कि यह वास्तव में साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाडऩे की साज़िश थी। पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप के साथ-साथ प्राथमिकी दर्ज की है, जिसमें कहा गया है कि वास्तव में यह राज्य में जाति-आधारित दंगे छेडऩे और राज्य तथा राज्य सरकार की छवि को धूमिल करने का षड्यंत्र था।

इसके बाद साज़िश और राजद्रोह के आरोपों के साथ कई मामलों का दर्ज किया जाना कहानी को बदलकर मोडऩे की व्यर्थ कोशिश दिखती है। सरकार ने आरोप लगाया कि एक साम्प्रदायिक संगठन के सदस्यों ने विरोध-प्रदर्शन के माध्यम से सरकार को उखाड़ फेंकने की साज़िश रची थी। लेकिन षड्यंत्र के इन आरोपों की पोल राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नवीनतम रिपोर्ट भी खोलती है। ये आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि सन् 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के सबसे ज़्यादा मामले उत्तर प्रदेश में सामने आये हैं, जो कि देश के हर राज्य से कहीं अधिक हैं।

फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ लोगों की ज़बरदस्त नाराज़गी के बाद ही घटना की जाँच सीबीआई को सौंपी गयी है; भले ही दबाव के चलते प्रदेश सरकार को ही इसकी सिफारिश करनी पड़ी थी। सरकार को अपनी छवि को बहाल करने के लिए पीडि़त और उसके परिवार के प्रति दया दिखानी चाहिए और निष्पक्ष रूप से सच के साथ खड़ा होना चाहिए।

सरकार का ज़िम्मा पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने का होना चाहिए, न कि उसे आरोपियों को बचाने की भूमिका में दिखना चाहिए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सीबीआई को जाँच सौंपने के फैसले से ही ज़ाहिर हो जाता है कि उनकी अपनी गठित की गयी एसआईटी से उसे इस गम्भीर मामले में सरकार की निष्पक्ष छवि दिखाने में मदद नहीं मिली है। ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश सरकार का अपनी ही पुलिस पर भरोसा नहीं है; लेकिन वह नहीं चाहती है कि कुछ निहित स्वार्थ जातीय संघर्ष और हिंसा भडक़ाने के अपने परोक्ष उद्देश्यों के लिए झूठ फैलाएँ।