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गुमशुदा बच्चों की मसीहा महिला सिपाही

अगर किसी भी शख्स में जज़्बा, जोश, जुनून और अपने काम के प्रति ईमानदारी से निभाने का कर्तव्य हो, तो दुनिया की कोई ताकत उसे कामयाब होने या मंज़िल तक पहुँचने या पहुँचाने से नहीं रोक सकती। बच्चे से लगाव और गुमशुदा होने के बाद उसकी कमी को एक माँ से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं आठ साल के बच्चे की माँ और दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल सीमा ढाका की। इनकी तैनाती गुमशुदा बच्चों को तलाशने की टीम में लगायी गयी। इन्होंने अपने कर्तव्य का बेहद संजीदगी और ईमानदारी से निर्वहन किया और कोरोना-काल में भी कई गुमशुदा बच्चों को तलाशकर उनके परिवारों को सौंपकर जो खुशी प्रदान की, उसके आगे प्रमोशन से कहीं ज़्यादा कीमती दिल को मिलने वाला सुकून है। सीमा ने कोरोना संक्रमण के बीच बीते करीब तीन महीनों में 76 लापता बच्चों को उनके परिजनों से मिलवाया है। इनमें से 56 बच्चों की उम्र 14 साल से कम है।

दरअसल परिवार में महिलाओं के लिए टीचर को सबसे अच्छी नौकरी की सोच रखने वाले उत्तर प्रदेश के बड़ौत की 34 साल की सीमा भी अध्यापिका बनना चाहती थीं। इस बीच दिल्ली पुलिस में भर्ती निकली और उन्होंने फॉर्म भर दिया। इसके बाद सन् 2006 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के तौर पर उनका चयन हो गया। सन् 2014 में वह पुलिस की आंतरिक परीक्षा पास करके हेड कांस्टेबल बन गयीं। सीमा के पति अनिक ढाका भी दिल्ली पुलिस में ही हैं। अनिक उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले से हैं। हालाँकि सीमा को भी नौकरी करने से पहले पढ़ाई के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। बड़ौत से कॉलेज की पढ़ाई के लिए उन्हें करीब छ: किलोमीटर का सफर साइकिल से पूरा करना होता था। पढ़ाई पूरी करने के बाद अन्य परिजनों की तरह वह भी अध्यापन के क्षेत्र में जाना चाहती थीं। पर िकस्मत या कुदरत को शायद कुछ और ही कराना था, इसलिए उन्हें खाकी वर्दी मिली। इसके बाद उन्होंने पीछे मुडक़र नहीं देखा। सीमा बताती हैं कि उनको अपने परिवार और साथी पुलिसकर्मियों का पूरा सहयोग मिला है। बिना उनके सहयोग के अकेले इतने बड़े काम को अंजाम देना शायद सम्भव नहीं होता। जब कोई लापता बच्चा अपने परिवार से मिलता है, तो उसके माँ-बाप लाखों दुआएँ देते हैं। परिजनों को शायद पता भी नहीं होता कि मैं किस पद पर काम कर रही हँू। सीमा मुस्कुराते हुए बताती हैं कि परिजन दुआएँ देते हैं कि बेटा तुम और बड़ी अफसर बन जाओ।

सीमा बताती हैं कि गुमशुदा होने वाले ज़्यादातर बच्चे आठ साल से अधिक उम्र के होते हैं। कई बच्चियाँ होती हैं, जिन्हें बहला-फुसलाकर तस्कर या गलत लोग ले जाते हैं, तो कुछ बच्चे घर से नाराज़ होकर भी निकल जाते हैं और फिर लौट नहीं पाते। सीमा पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों की भी जाँच करती हैं। देश भर में कोरोना वायरस फैलने के खौफ के दौर में दिल्ली से बाहर जाकर बच्चों को खोजना चुनौती भरा काम था। दिल्ली-एनसीआर के अलावा पश्चिम बंगाल, बिहार और पंजाब में भी बच्चों को तलाशने के लिए दौरे किये। आँकड़ों पर नज़र डालें, तो अकेले राजधानी दिल्ली में साल 2019 में 5,412 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई थी। इनमें से दिल्ली पुलिस 3,336 बच्चों को खोजने में कामयाब रही। इस साल (2020 में) अब तक लापता हुए 3,507 बच्चों में से 2,629 को दिल्ली पुलिस ने खोज लिया है।

लापता बच्चों को खोजने में पहला आउट ऑफ टर्न प्रोमोशन (ओटीपी) सीमा को मिला है। दिल्ली पुलिस ने इसी साल अगस्त में लापता बच्चों को खोजने के लिए ओटीपी देने की योजना शुरू की है। इस योजना के तहत 14 साल से कम उम्र के 50 लापता बच्चे खोज लेने पर प्रोमोशन दिया जाना है। सीमा ढाका दिल्ली पुलिस की ऐसी पहली अधिकारी बन गयी हैं, जिन्हें इस स्कीम के तहत प्रमोशन मिला है। सीमा की तैनाती समयपुर बादली में है। दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव ने उनको बैज पहनाया और इसकी जानकारी ट्विटर पर शेयर करके सीमा ढाका को बधाई दी। सीमा को बच्चों को परिजनों से मिलवाने में खुशी तो मिलती ही है, कमिश्नर का ट्वीट पढक़र उनकी खुशी और बढ़ गयी।

दु:खी माँओं को लौटायी खुशी

गुमशुदा बच्चों को खोजने में सबसे अहम भूमिका मोबाइल फोन की होती है। कई बार लापता बच्चे किसी तरह घर वालों को फोन करके इत्तला देते हैं। इसके बाद पुलिस को मोबाइल की पूरी जानकारी निकालकर जल्द-से-जल्द बच्चों को तलाशने में मदद मिलती है। ज़्यादातर लापता बच्चे ऐसे परिवारों के होते हैं, जो किराये पर रहते हैं या जिनके माता-पिता काम के सिलसिले में जगह बदलते रहते हैं। लापता बच्चों के परिजनों को अपना फोन नंबर नहीं बदलना चाहिए और अगर पता बदलते हैं, तो इसकी जानकारी पुलिस को दी जानी चाहिए। सीमा ढाका जैसी निडर पुलिसकर्मी की कामयाबी दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों को और बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करेगी। ऐसे लोगों के लिए सबसे बड़ा उत्साह वो खुशी है, जो एक माँ या अभिभावक को अपना लम्बे समय से लापता बच्चे को देखकर मिलती है। उस खुशी की तुलना किसी दूसरी खुशी से नहीं की जा सकती। सीमा ढाका ने अब तक कई माँओं को यह खुशी लौटायी है।

सीमा के हल किए दो चर्चित मामले

दो बच्चों की माँ को खोजा

पुलिस की वर्दी में जब सीमा ढाका उत्तर प्रदेश के तिगरी इलाके के एक गाँव पहुँचीं, तो सपना (बदला हुआ नाम) अपने घर के बाहर दो बच्चों को गोद में लिये बैठी थी। पुलिस को देखते ही उसके आँसू निकल आये और रुँधे गले से कहने लगी कि मुझे यहाँ से ले चलिए। सीमा अपनी टीम की मदद से सपना को बचाकर वापस दिल्ली ले आयीं। दरअसल यह अगस्त, 2020 की बात है। सपना दिल्ली के अलीपुर की रहने गयी थी और उसका विवाह एक महिला ने अपने देवर के साथ करवा दिया था। उस समय सपना की उम्र महज 15 साल की थी और आठवीं क्लास में पढ़ रही थी। सपना के मज़दूर पिता ने एफआईआर दर्ज करायी, काफी तलाशने के बावजूद सपना का कहीं कुछ पता नहीं लगा। जब यह मामला सीमा के पास आया, तो उन्होंने परिजनों की तलाश शुरू की। काफी खोजबीन करने पर सपना के पिता सीमा ढाका को मिले, जो रंगाई-पुताई का काम कर रहे थे। जब सीमा ने उनसे उनकी बेटी सपना के बारे में पूछताछ की, तो वह रोने लगे। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले ही उसका फोन आया था। वह बहुत परेशान थी और खुद को बचानेे की गुहार लगा रही थी।

सपना के मज़दूर पिता ने गिड़गिड़ाते हुए सीमा ढाका से कहा कि मैं आपका अहसान मेहनत-मज़दूरी करके चुका दूँगा, पर आप मेरी बेटी को किसी तरह खोज दीजिए। सीमा उस फोन नम्बर के ज़रिये सपना तक पहुँच गयीं, जिस फोन नम्बर से उसने सम्पर्क किया था। अब सपना परिवार वालों के साथ है।

पश्चिम बंगाल से नाबालिग को छुड़ाया

सीमा ढाका ने बताया कि उनके लिए सबसे चुनौतीपूर्ण मामलों में से एक इस साल अक्टूबर में पश्चिम बंगाल से एक नाबालिग को छुड़ाना था। पुलिस टीम ने नावों में यात्रा की और बच्चे को खोजने के लिए बाढ़ के दौरान दो नदियों को पार किया। लडक़े की माँ ने दो साल पहले शिकायत दर्ज की थी; लेकिन बाद में अपना पता और मोबाइल नम्बर बदल लिया था। इसके बाद परिजनों को भी ट्रैस करने में दिक्कत हो रही थी; लेकिन इतना पता था कि वे पश्चिम बंगाल से हैं। तलाशी अभियान शुरू किया गया। इसके लिए पुलिस दल को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बच्चे को तलाशने के लिए बाढ़ के दौरान दो नदियों को पार करने की नौबत आयी। लेकिन आखिर में बच्चे को तलाशने और उसकी ज़िन्दगी में मुस्कान लाने में कामयाबी मिली।

आखिर हम मज़हबी भी कहाँ हैं

हम सब हमेशा इस बात का दम्भ भरते हैं कि हमसे बड़ा मज़हबी यानी धर्म का पालन करने वाला कोई दूसरा नहीं; लेकिन क्या हम वास्तव में अपने मज़हब की शिक्षाओं, नीतियों और आज्ञाओं का पालन करते करते हैं? इसका सीधा-सा जवाब है- शायद नहीं। क्योंकि यह जीवन-परीक्षा है; अच्छाई के रास्ते पर चलने के जीवन-परीक्षा…; जिस पर चलना तलवार की धार पर चलना है। इसमें खुद को जीवन भर दु:खों, त्याग और तपस्या की आग में तपाना है। दूसरों के हित में ही अपना हित समझना है। कौन करता है यह सब? बड़े-बड़े संन्यासी, साधु-सन्त और वैरागी भी इस जीवन-परीक्षा में पास नहीं हो पाते; क्योंकि अधिकतर मोह-माया में विचलित हो जाते हैं; जो या तो मानव के लिए स्वाभाविक है या शायद लोभ का मकडज़ाल है, जिसमें कभी-न-कभी हर कोई उलझ ही जाता है।

दरअसल हम सबकी आदत है कि हम बुराई की जमकर बुराई करते, यहाँ तक कि दूसरों की कमियाँ निकालकर उनकी भी मौका मिलते ही बुराई करने लगते हैं। लेकिन आखिर वह कौन-सी वजह है, जिसके चलते हम सब बुराई के रास्ते को बुरा मानते हुए भी खुद अच्छे रास्ते पर नहीं चल पाते? आखिर क्यों अधिकतर लोग जीवन भर अच्छे इंसान नहीं बन पाते? या कहें कि शायद एक अच्छा इंसान बनने की कोशिश ही नहीं करते। अच्छाई अच्छी तो सबको लगती है; लेकिन क्यों अधिकतर लोग दूसरों को अच्छा बनने की सीख देते नज़र आते हैं? जबकि खुद अच्छा बनने को तैयार नहीं होते। क्योंकि हम इंसानों ने अपने स्वार्थवश हमेशा अपने फायदे की तरफ कदम बढ़ाये हैं। फिर चाहे हमें ईश्वर को छलना पड़ा हो या मज़हब का दुरुपयोग करना पड़ा हो। हमने वह सब किया है, जिसमें भी हमारा लौकिक स्वार्थ निहित है। फिर हम मज़हबी यानी धार्मिक कहाँ हैं? मज़हब तो यह सब नहीं सिखाता। मज़हब तो परहित सिखाता है। आपस में प्रेम से रहना सिखाता है। दूसरों की, खासकर निर्बलों की मदद करना सिखाता है। जीव हत्या को पाप बताता है। त्याग सिखाता है। सभी का सम्मान करना सिखाता है। दूसरों के कल्याण के लिए बलिदान करना सिखाता है।

क्या कभी हमने सोचा है कि जो आदतें हममें हैं कोई भी मज़हब उन्हें अच्छा नहीं बताता। और इन्हीं बुरी आदतों के चलते हम मज़हबों को अलग-अलग मानकर ईश्वर को भी अलग-अलग मानने लगे हैं, जिसके चलते हम दूसरे मज़हब में अलग नाम से पुकारे जाने वाले अपने ही परमपिता परमात्मा को गालियाँ तक दे डालते  हैं! छी:, कितने गिरे हुए हैं हम?

सवाल यह है कि जो आदतें हमें एक बुरा इंसान बनाती हैं, उन आदतों को अपने बर्ताव में रखकर हम अच्छे कैसे हो सकते हैं? और अगर हम अच्छे नहीं हैं, तो हम अच्छे दिख कैसे सकते हैं? लोगों को अच्छे कैसे लग सकते हैं? उस परमपिता परमात्मा के प्रिय कैसे हो सकते हैं? आजकल एक सोच लोगों में पनप गयी है कि अच्छा खान-पान होगा, अच्छा रहन-सहन होगा, तो इ•ज़त होगी। और यह हो भी रहा है। लेकिन कभी किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि आपके ठाट-बाट देखकर लोग भले ही आपके मुँह पर झूठी या दिखावे की तारीफ कर दें, मगर पीठ पीछे वही लोग आपके बारे में वह सब कुछ कहते हैं, जो आप कभी नहीं चाहते। इतना ही नहीं, आप अगर कुछ भी गलत करते हैं, तो आपको आत्मगिलानी भी ज़रूर होती है। चेहरे पर मलिनता ज़रूर आती है। उदासी ज़रूर रहती है, और रूखापन साफ-साफ दिखता है। यह अलग बात है कि हम उस पर दिखावे की हँसी के, बनावटी बातों के परदे डालते रहते हैं। लेकिन मन तो दर्पण की तरह होता है। वह यह सब कुछ बहुत दिनों तक छिपने नहीं देता। आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग चाहे जितना भी मीठा बोल लें, चाहे जितना भी भला दिखने की कोशिश कर लें, अगर वह अच्छे नहीं हैं, तो उनके चेहरे की कुरूपता, भयंकरता और भयावहता साफ नज़र आती है। ऐसे लोग यह नहीं सोचते कि जब वे अन्दर से बहुत बुरे इंसान बन चुके हैं, तो बहुत अच्छे कैसे दिख सकते हैं? आप सोचिए, किसी का मुस्कुराता हुआ चेहरा अच्छा लगता है या गुस्से से तमतमाता हुआ? ज़ाहिर-सी बात है कि मुस्कुराता हुआ चेहरा ही सभी को अच्छा लगता है; लेकिन फिर भी हम सब कभी-न-कभी गुस्सा करते हैं। कई बार तो यह गुस्सा इतना भयंकर होता है कि हम अपना या सामने वाले का बड़ा नुकसान कर बैठते हैं।

 गुस्से में हम कभी सुन्दर नहीं दिख सकते। ठीक इसी तरह अन्दर से बुरे होकर हम बहुत दिनों तक बाहर अच्छा होने का दिखावा करके भी अच्छे नहीं दिख सकते। क्योंकि बुरे होकर भी अच्छे बनने का नाटक करते-करते एक दिन वह आता है, जब इंसान चेहरे पर झूठी हँसी, मीठी बोली और दिखावे की सज्जनता के परदे डालते-डालते थक जाता है और कभी-न-कभी या कम-से-कम ज़िन्दगी के आखिर में जाकर उसे खुद भी इस बात का अहसास ज़रूर होता है कि हाँ, हम गलत थे। तब चेहरे की बनावटी हँसी, बातें, सब काफूर हो जाती हैं और आँखों की शर्मिंदगी, झेप, डबडबाहट बता देती है कि हम एक बुरे इंसान थे। लेकिन तब पछताने से कोई फायदा नहीं होता। देखा गया है कि तब कुछ लोग मज़हब के सहारे ईश्वर की तरफ मुडऩे की कोशिश करते हैं और जिस बात को खुद ज़िन्दगी भर नहीं समझ पाये, वह दूसरों को समझाने की कोशिश करते रहते हैं। लेकिन यह बात कभी कोई नहीं सोचता कि वह खुद सही रास्ते पर नहीं चला, तो उसके कहने पर दूसरे लोग क्यों किसी रास्ते पर चलेंगे? क्यों उसका कहना मानेंगे? मेरा मानना है कि इस अवस्था में जाने से पहले एक सवाल हर किसी को खुद से पूछना चाहिए कि आखिर हम मज़हबी कहाँ हैं?

ट्रायल के बाद बीमार होने का दावा करने वाले प्रतिभागी के खिलाफ एसआईआई का 100 करोड़ का मानहानी दावा

कोविड-19  वैक्सीन भले अभी मार्किट में न आई हो, इसे लेकर बवाल शुरू हो गया है। ट्रायल में कोविड खुराक दिए जाने के बाद ‘वर्चुअल न्यूरोलॉजिकल ब्रेकडाउन’ से पीड़ित होने का दावा करने वाले कोविशल्ड कोरोनावायरस वैक्सीन परीक्षण स्वयंसेवक के खिलाफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई ) ने 100 करोड़ का मानहानि मुकदमा किया है और इन आरोपों को ‘दुर्भावनापूर्ण और गलत’ करार दिया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कहा है कि ‘सीरम इंस्टिट्यूट स्वयंसेवक की चिकित्सा स्थिति के प्रति सहानुभूति रखता है, लेकिन टीके के परीक्षण का उसकी स्थिति के साथ कोई संबंध नहीं है’।

एसआईआई ने एक बयान में कहा – ‘नोटिस में लगाये गये आरोप दुर्भावनापूर्ण और गलत हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया उक्त व्यक्ति की चिकित्सा स्थिति के प्रति सहानुभूति रखता है, लेकिन टीके के परीक्षण का उसकी स्थिति के साथ कोई संबंध नहीं है। वह व्यक्ति अपने स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के लिये गलत तरीके से टीके को जिम्मेदार बता रहा है।’

पुणे स्थित एसआईआई ने चेन्नई के रहने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ 100 करोड़ रुपये की मानहानि का दावा किया है। बता दें कि चेन्नई के इस 40 वर्षीय व्यक्ति ने ‘कोविशील्ड’ के ट्रायल में बतौर स्वयंसेवक हिस्सा लिया था। बाद में उसने दावा किया कि ‘वैक्सीन की खुराक लेने के बाद उसमें गंभीर लक्षण दिखने शुरू हो गये और वह न्यूरोलॉजिकल और मनोवैज्ञानिक परेशानी से जूझ रहा है’।

एसआईआई एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की तैयार की जा रही कोरोना की संभावित वैक्सीन कोविशील्ड के भारत में ट्रायल कर रही है। हाल में इस स्वयंसेवक ने एसआईआई को नोटिस भेजकर पांच करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है। उसका कहना है कि वैक्सीन की खुराक की वजह से उसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो रही हैं। यही नहीं उसने वैक्सीन के ट्रायल और वितरण रोकने की भी मांग की है।

उधर वॉलेंटियर के दावों का खंडन करते हुए एसआईआई ने कहा कि ‘वह इन ‘दुर्भावनापूर्ण और गलत आरोपों’ के लिए 100 करोड़ का दावा करेगी।’ कंपनी ने यह भी कहा कि वह वॉलेंटियर की मेडिकल स्थिति के लिए सहानुभूति रखती है, लेकिन इसका वैक्सीन के ट्रायल से कोई संंबंध नहीं है। कंपनी ने अपने बयान में कहा कि वॉलेंटियर अपने स्वास्थ्य समस्याओं के लिए झूठ बोलकर वैक्सीन ट्रायल को जिम्मेदार ठहरा रहा है। कंपनी ने वॉलेंटियर के खिलाफ आपराधिक मामला भी दायर किया है। सोमवार तक उसे इस संबंध में नोटिस मिल जाएगा।

किसान आंदोलन से केंद्र सरकार दबाव में; बैठकों का दौर, किसानों की चेतावनी ‘क़ानून वापस नहीं लिए तो दिल्ली घेर लेंगे’

किसान आंदोलन का दबाव अब मोदी सरकार पर दिखने लगा है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर पर आधी रात को दो घंटे तक उच्च स्तरीय बैठक हुई है जबकि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की है। पीएम नरेंद्र  मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ में कृषि कानूनों की बात की थी लेकिन किसानों ने  केंद्र सरकार की कोई भी बात मानने से साफ़ इनकार कर दिया है और कहा है कि जब तक यह कानून वापस नहीं लिए जाते आंदोलन जारी रहेगा। इस बीच सोमवार को  किसानों ने दिल्ली को जाम करने का ऐलान कर दिया। अभी भी हज़ारों की संख्या में किसान सिंघु बार्डर पर डटे हैं।

दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों ने बुराड़ी स्थित निरंकारी मैदान में जाने के बाद बातचीत शुरू करने के केंद्र सराकार के प्रस्ताव को नकार दिया और कहा कि वे सशर्त बातचीत को तैयार नहीं हैं। किसानों के संगठनों ने सरकार को चेतावनी दी है कि वे राष्ट्रीय राजधानी में आने वाले सभी मार्गों को बंद कर देंगे। किसान पिछले चार दिन से हरियाणा-दिल्ली बॉर्डर पर डटे हुए हैं और उनकी मांग जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने की है।

आज गुरपुरब है और आंदोलनकारी किसान सड़कों पर ही भांगड़ा डालकर इस बड़े दिन को मना रहे हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार अब बैकफुट पर दिखने लगी है। दिल्ली सीमा के करीब जमे किसानों ने गृह मंत्री अमित शाह की बातचीत की मांग को ठुकराते हुए दिल्ली घेरने का ऐलान कर दिया है। इस बीच, कई केंद्रीय मंत्रियों ने आज ट्वीट कर कृषि कानून पर सरकार का पक्ष रखा है। हजारों की संख्या में किसान दिल्ली सीमा पर डटे हुए हैं और उन्होंने  चेतावनी दी है कि वे सशर्त बातचीत स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि वे राष्ट्रीय राजधानी में आने वाले सभी पांच प्रवेश मार्गों को बंद कर देंगे।

बता दें कि रविवार तक सिर्फ सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर ब्लॉक थे, लेकिन सोमवार  को गुरुग्राम, गाजियाबाद और फरीदाबाद से राजधानी को जोड़ने वाले हाईवे को किसानों ने बंद कर देना है। किसानों के विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर दिल्ली-गाजियाबाद बॉर्डर पर सुरक्षा और कड़ी की गई। गाजीपुर बॉर्डर को पुलिस ने बड़े-बड़े बोल्डर लगाकर ब्लॉक किया है। गाजीपुर सीमा (दिल्ली-गाजियाबाद) पर मौजूद किसानों ने बैरिकेड्स गिरा दिए।
किसानों ने प्रदर्शन के लिए बुराड़ी जाने से मना कर दिया तो देर रात भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर पर हाई लेवल बैठक हुई जो करीब 2 घंटे तक चली।  कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की है।

इस बीच लगातार किसानों की बात कर रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को एक ट्वीट करके कहा – ‘मोदी सरकार ने किसान पर अत्याचार किए- पहले काले क़ानून फिर चलाए डंडे लेकिन वो भूल गए कि जब किसान आवाज़ उठाता है तो उसकी आवाज़ पूरे देश में गूंजती है। किसान भाई-बहनों के साथ हो रहे शोषण के खिलाफ आप भी स्पीक अप फॉर फार्मर्स कैंपेन के माध्यम से जुड़िए।’

उधर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने किसानों के मसले पर कहा – ‘नाम किसान कानून लेकिन सारा फायदा अरबपति मित्रों का। किसान कानून बिना किसानों से बात किए कैसे बन सकते हैं? उनमें किसानों के हितों की अनदेखी कैसे की जा सकती है? सरकार को किसानों की बात सुननी होगी। आइए मिलकर किसानों के समर्थन में आवाज उठाएं।’ प्रियंका ने भी राहुल की तरह अपने ट्वीट के साथ स्पीक अप फॉर फार्मर्स कैंपेन हैशटैग का इस्तेमाल किया।

शनिवार को भी राहुल गांधी ने एक तस्वीर को साझा करके केंद्र सरकार पर निशाना साधा था। तस्वीर में एक जवान बुजुर्ग किसान पर डंडे चलाता हुआ नजर आ रहा है। राहुल ने तस्वीर साझा करते हुए लिखा था, ‘बड़ी ही दुखद फोटो है। हमारा नारा तो ‘जय जवान जय किसान’ का था लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी के अहंकार ने जवान को किसान के खिलाफ खड़ा कर दिया। यह बहुत खतरनाक है।’

इस बीच अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के प्रतिनिधियों ने कहा कि  अगर सरकार किसानों की मांगों को लेकर गंभीर है, तो उसे बात करनी चाहिए। भारतीय किसान एकतागृह के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह ने कहा – ‘हम बॉर्डर से नहीं हटेंगे। हमारी मांग है कि सरकार कृषि कानूनों को वापस ले। इससे कम हमें कुछ भी मंजूर नहीं है।’

राहुल गांधी का ट्वीट –
Rahul Gandhi
@RahulGandhi
मोदी सरकार ने किसान पर अत्याचार किए- पहले काले क़ानून फिर चलाए डंडे लेकिन वो भूल गए कि जब किसान आवाज़ उठाता है तो उसकी आवाज़ पूरे देश में गूंजती है।
किसान भाई-बहनों के साथ हो रहे शोषण के ख़िलाफ़ आप भी #SpeakUpForFarmers campaign के माध्यम से जुड़िए।

शादी –विवाह की धूम , बैण्ड और टैन्ट वालों के चेहरे खिलें

जब मार्च में कोरोना ने देश में दस्तक दी थी। तब देश में लोग कोरोना बीमारी से इस कदर डर गये थे, कि मार्च , अप्रैल और मई में होने वाले शादी-विवाह को कुछ लोगों ने स्थगित कर दिया था, तो कुछ लोगों ने बहुत ही सादे तरीके से यानि कि बिना धूमधाम के साथ शादी-विवाह किये थे। जिसके कारण शादी –विवाह की धूमधाम भी ना देखी जा सकीं। जिसके कारण बैण्ड बाजे वाले, टैन्ट वालें और हलवाईयों का धंधा बुरी तरह से चौपट हो गया था। पर इस बार सर्दियों के मौसम में और गुरू पर्व के अवसर व कार्तिक पूर्णिमा से होने वाली शादियों में धूमधाम देखी जा रही है। बैण्ड वालों के चेहरे खिले है। टैन्ट वालो का कारोबार फिर से चलने लगा है।हलवाईयों के मांग बढ़ गयी है।

इस बारे में तहलका संवाददाता को बैन्ड वाले सुदामा कुमार ने बताया कि वे कोरोना काल को याद करके डर जाते है। क्योंकि कोरोना काल के कारण उनका धंधा चौपट हो गया था। रोजी रोटी की समस्या गहरा गयी थी।टैन्ट वाले कुक्कू कपूर ने बताया कि ज्यादात्तर लोगों ने कोरोना के डर के कारण शादियों को स्थगित कर दिया था। जिससे उनको काफी नुकसान हुआ है। पर बैण्ड और टैन्ट वालों के चेहरे खिल गये है। वे ईश्वर से प्रार्थना भी कर रहे है। कि कोरोना जैसी बीमारी से बचाये और कोरोना को भगाये ताकि देश के नागरिक और अपना जीवन-यापन कर सकें । जिससे काम धंधा भी सही चल सकें।

यूपी के बलरामपुर में पत्रकार को साथी के साथ ज़िंदा जला डाला

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में फिर एक पत्रकार को दबंगों ने मार डाला। पत्रकार राकेश सिंह और उसके साथी पिंटू साहू को ज़िंदा जलाकर मार दिया गया। पिंटू का शव पूरी तरह जला मिला, जबकि गम्भीर रूप से झुलसे राकेश ने लखनऊ स्थित केजीएमयू में दम तोड़ा। घर के कमरे की दीवार का कुछ हिस्सा ढहा मिला है। पत्रकार के पिता मुन्ना सिंह ने बम फेंककर हत्या करने का मुकदमा दर्ज कराया है। पुलिस कुछ लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है।
देहात क्षेत्र के कलवारी निवासी 35 वर्षीय राकेश सिंह निर्भीक अपने साथी हिंदूवादी नेता पिंटू साहू (34) के साथ बेडरूम में सोए थे। शुक्रवार देर रात उनके मकान में आग की लपटें देखीं गईं। पिंटू साहू का पूरा शरीर जल चुका था। राकेश आग की लपटों से पूरी तरह घिरे थे। धमाके से कमरे की दीवार ढह चुकी थी। राकेश किसी तरह बाहर निकल आए। उनका शरीर 90 प्रतिशत जल चुका था।
बताया गया कि पत्रकार किसी बड़ी खबर पर काम कर रहे थे। शायद इसी वजह से उनकी जान ली गई। राकेश के पिता मुन्ना सिंह का कहना है कि रात को घर में घुसकर कुछ दबंगों ने कमरे में बम फेंका था। इलाके में भारी तनाव और गुस्सा है। क्षेत्र में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है।
पत्नी बोली-2 दिन में न्याय नहीं मिला तो बेटियों के साथ कर लूंगी आत्मदाह
मारे गए पत्रकार की पत्नी विभा सिंह ने रविवार को कहा, 2 दिन में न्याय नहीं मिला तो बेटियों के साथ कलेक्ट्रेट में आत्मदाह कर लूंगी। पत्रकार की शवयात्रा से पूर्व उनकी पत्नी विभा सिंह ने कहा कि मुझे पुलिस पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है। अगर दो दिन में सभी मुजरिम गिरफ्तार नहीं हुए तो वह कलेक्ट्रेट डीएम दफ्तर के सामने अपनी दोनों बेटियों के साथ आत्मदाह कर लेंगी। लोकल विधायक पलटू राम ने पत्रकार की पत्नी को न्याय का भरोसा दिलाया और कहा कि विभा सिंह को नौकरी तथा बेटियों को आर्थिक सहायता भी दिलाई जाएगी ।

सरकार किसानों ,मजदूरों और बेरोजगारों के हितों को नजरअंदाज कर रही है

कई बार राजनीति इस कदर स्वार्थ में सन जाती है कि वो अपना और देश का हित तक नहीं देखती है। जिसके कारण जनमानस, किसान और मजदूर हाहाकार करने लगता है, कोरोना के कारण उपजे संकट से लोग काफी परेशान है। बताते चलें इस समय दिल्ली में किसान आंदोलन के कारण सियासत गरमायी हुई है। किसानों का कहना है कि केन्द्र सरकार अपने राजनातिक स्वार्थ के कारण किसानों की मांगों को अनदेखा किया जा रहा है। किसानों के हितो को दरकिनार किया जा रहा है। किसान नेता बलबीर सिंह का कहना है कि आज अन्नदाता किसान लाठी खाने को मजबूर है। किसान रो रहा है। अपनी बात नहीं रख पा रहा है। उनका कहना है चुनावी रैलियों में कोई कोरोना नहीं होता है अगर कोई अपनी जायज मांगों को लेकर अपनी बात ऱखता है तो कोरोना की दलील दी जाती है।

इस समय मौजूदा दौर में जो एक माहौल बना हुआ है कोरोना को लेकर उससे किसी को कोई फायदा नहीं हो रहा है। राजनीति जरूर हो रही है। ऐसा नहीं कि किसान ही सरकार की नीतियों को लेकर विरोध कर रहा है। देश का मजदूर और बेरोजगार भी सरकार की नीतियों का विरोध कर रहा है। मजदूर रघु और बेरोजगार सुमित का कहना है कि सरकार अपनी स्वार्थ नीतियों के काऱण लोगों को कोरोना का हवाला देकर लोगों के हितों को नजरअंदाज कर रही है।

किसान आंदोलन में खट्टर के ‘खालिस्तानी’ एंगल जोड़ते ही उखड़े अमरिंदर बोले, 10 फोन करेंगे खट्टर तब भी नहीं करूंगा बात

किसान आंदोलन अपने उफान पर है और वे सरकार के आगे घुटने टेकने से मना कर चुके हैं। इस बीच हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शनिवार को शांत किसान आंदोलन को लेकर दावा किया कि उनके पास इनपुट हैं कि आंदोलन के बीच ‘खालिस्तानी’ घुसे हुए हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह ने उनका फोन नहीं उठाया। हालांकि, खट्टर की इस टिप्पणी के तुरंत बाद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने उनपर बड़ा हमला करते हुए कहा कि ‘जैसा उनके किसानों के साथ खट्टर सरकार ने किया है, वो अब के 10 फोन आने पर भी नहीं सुनेंगे’।

बता दें किसान पूरी मजबूती से हरियाणा-दिल्ली के सिंघु बार्डर पर डटे हुए हैं। तमाम विरोधों के बावजूद उन्होंने आंदोलन को पूरी ताकत से चलाने का ऐलान किया है। इस बीच आज कृषि विधेयकों के खिलाफ जारी किसानों के प्रदर्शन को लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने ‘खुफिया इनपुट के आधार पर’ प्रदर्शन में ‘खालिस्तानियों के शामिल होने’ का दावा किया।

खट्टर ने मीडिया के लोगों से बात करते हुए कहा – ‘हमारे पास इनपुट है कि कुछ अवांछित तत्व इस भीड़ के अंदर आए हुए हैं। हमारे पास इसकी रिपोर्ट्स है। अभी उसका खुलासा करना ठीक नहीं है, लेकिन जैसे ही पुख्ता प्रमाण मिलेगा हम बताएंगे।’ खट्टर ने यह भी कहा कि उन्होंने आज पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को फोन किया था लेकिन उन्होंने फोन नहीं सुना।

हालांकि, खट्टर के इस दावे के कुछ देर बाद ही कैप्टेन ने इसे झूठ बताया। सीएम ने कहा – ‘खट्टर झूठ कह रहे हैं कि उन्होंने मुझे फोन करने की कोशिश की और मैंने नहीं सुना। लेकिन जो मेरे किसानों के साथ (हरियाणा में) किया गया है, मैं उनके दस फोन आने पर भी उनसे बात नहीं करूंगा।’

जाहिर है, किसान आंदोलन को लेकर पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच ठन गयी है। बता दें अमरिंदर सिंह सरकार ने मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों को स्वीकार करने से इंकार करते हुए  पंजाब विधानसभा में किसानों के लिए अपने विधेयक लाये हैं।’

सोनिया गांधी ने पवन बंसल को सौंपा पार्टी कोषाध्यक्ष का अंतरिम जिम्मा, सीडब्ल्यूसी ने अहमद पटेल, गोगोई को श्रद्धांजलि दी

हाल में कांग्रेस के महासचिव बनाये गए पवन कुमार बंसल को पार्टी ने शनिवार को पार्टी कोषाध्यक्ष का अतिरिक्त जिम्मा सौंपा है। बंसल पार्टी के प्रशासन विभाग के प्रमुख हैं। केंद्र में रेल मंत्री रहे बंसल को यह जिम्मा अहमद पटेल के निधन के कारण रिक्त हुए पद के कारण सौंपा गया है।

बंसल, मनमोहन सिंह सरकार में रेल मंत्री और चंडीगढ़ से सांसद रहे हैं। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शनिवार को इसकी मंजूरी दी। इससे पहले कांग्रेस की सर्वोच्च समिति सीडब्ल्यूसी की आज वर्चुअल बैठक हुई जिसमें अहमद पटेल और असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। सोनिया गांधी ने भी कांग्रेस के मुखपत्र नेशल हेराल्ड में लिखे एक लेख में पटेल के निधन को पार्टी के लिए बड़ा नुकसान बताया।

आज की बैठक में पवन बंसल को अंतरिम रूप से कोषाध्यक्ष का अतिरिक्त जिम्मा सौंपा गया है। पार्टी ने कहा कि बंसल तत्काल रूप से कोषाध्यक्ष के रूप में कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए चार्ज लेंगे। बता दें हाल में ही बंसल को महासचिव बनाने के साथ-साथ मोतीलाल वोरा की जगह पार्टी प्रशासन का प्रभारी भी बनाया गया है।

बंसल को 10 जनपथ का भरोसेमंद माना जाता है। यही नहीं बंसल अहमद पटेल की ही तरह लो प्रोफाइल रहने वाले नेता माने जाते हैं। याद रहे उनके भतीजे को रिश्वत देने के लिए रेलवे पदों को तय करने के आरोप लगने के बाद यूपीए सरकार के केबिनेट मंत्री से इस्तीफा देना पड़ा था। बंसल चार बार चंडीगढ़ से सांसद रहे हैं।

दो टके के लोग अदालत को सियासत का अखाड़ा बनाना चाहते हैं : बीएमसी मेयर

बॉम्बे हाईकोर्ट से अभिनेत्री कंगना रनौत को राहत जरूरत मिल गई है, पर मामला ठंडा होता दिख नहीं रहा है। बीएमसी को मामले में कोर्ट ने फटकार भी लगाई है और कंगना के बंगले को तोड़ने के एवज में उसका हर्जाना देने के लिए चार महीने का वक्त दिया है। इस दौरान तय किया जाएगा कि कितना हर्जाना बनता है। बता दें कि कंगना ने दो करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है। इस बीच, महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा है कि हाईकोर्ट का जो फैसला आया है, वह बीएमसी का मुद्दा था, राज्य सरकार का उससे लेना-देना नहीं।

शिवसेना अब भी कम से कम बयानबाजी के मामले में पीछे नहीं हटना चाहती है। बीएमसी की मेयर किशोरी पेडनेकर ने कंगना के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया है। मेयर ने कहा है कि सभी लोग चकित हैं कि एक अभिनेत्री जो हिमाचल में रहती है, यहां आती है और हमारे मुंबई को पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर यानी पीओके बताती है। ऐसे दो टके के लोग अदालत को राजनीति का अखाड़ा बनाना चाहते हैं। यह सही नहीं है।

मेयर ने एक बार फिर कहा कि कंगना का बंगला तोड़ने की कार्रवाई नियमों के अनुसार ही की गई थी। हाईकोर्ट के फैसले के बारे में उन्होंने कहा कि जल्द ही बीएमसी की कानूनी टीम बैठकर अगले कदम के बारे में फैसला लेगी।

मेयर के बयान पर कंगना ने सोशल मीडिया के जरिये जवाब दिया। उन्होंने लिखा- पिछले कुछ महीनों में मैंने महाराष्ट्र सरकार की तरफ से इतने लीगल केस, गालियां, बेइज्जती और बदनामी झेली है कि बॉलीवुड माफिया, आदित्य पंचोली और ऋतिक रोशन जैसे लोग अब भले इंसान लगने लगे हैं। न जाने मुझमें ऐसा क्या है, जो लोगों को इस कदर परेशान करता है।