नई दिल्ली:खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश के आरोप में अमेरिका की एक अदालत ने भारत सरकार के नाम समन जारी किया है। इसे लेकर भारत सरकार ने सख्त आपत्ति जताई है।
विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने इस संबंध में पूछे जाने पर कहा कि यह एकदम गलत है और हम इस पर आपत्ति जताते हैं। न्यूयॉर्क के दक्षिणी जिले के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने यह समन भारत सरकार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, रॉ के पूर्व चीफ सामंत गोयल, रॉ एजेंट विक्रम यादव और कारोबारी निखिल गुप्ता के नाम जारी किया है। इस समन में सभी पक्षों से 21 दिन के अंदर जवाब देने को कहा गया है। विदेश सचिव ने अमेरिकी अदालत के समन पर कहा कि जब पहली बार यह मामला हमारे संज्ञान में लाया गया तो हमने ऐक्शन लिया। इस मसले पर एक हाईलेवल कमेटी पहले ही गठित की गई है, जो जांच कर रही है। मैं अब उस शख्स की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं, जिसने यह केस दर्ज किया है। गुरपतवंत सिंह पन्नू का इतिहास सभी को पता है, वह किस तरह एक गैर-कानूनी संगठन से जुड़ा रहा है। यह सभी को पता है।
गुरपतवंत सिंह एक कट्टरपंथी संगठन सिख्स फॉर जस्टिस का मुखिया है। वह भारतीय नेताओं और संस्थानों के खिलाफ जहरीले बयान देता रहा है। भारत सरकार ने 2020 में गुरपतवंत सिंह पन्नू को आतंकवादी घोषित कर दिया था। बीते साल नवंबर में ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि पन्नू की हत्या की साजिश अमेरिका ने नाकाम कर दी है। पन्नू के पास अमेरिका और कनाडा दोनों ही देशों की नागरिकता है। इस रिपोर्ट की बाद में जो बाइडेन प्रशासन ने भी पुष्टि की थी। इस मसले की जानकारी मिलने पर विदेश मंत्रालय ने कहा था कि यदि ऐसा है तो यह चिंता का विषय है। हम इस मामले की उच्च स्तरीय जांच करा लेते हैं।
नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली कैबिनेट ने भारत में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर चर्चा की गई। इस पहल के जरिए भारत में चुनावों की प्रक्रिया को सरल और समेकित करने का प्रयास किया जाएगा, जिससे चुनावी खर्च और समय की बचत हो सकेगी।
कल मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने पर गृह मंत्री अमित शाह ने बड़ा ऐलान किया था। शाह ने कहा था कि एक देश एक चुनाव सरकार इसी कार्यकाल में लागू करेगी। इससे पहले लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में भी एक देश एक चुनाव के वादे को शामिल किया था। यह कदम राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है, और इसके संभावित प्रभावों पर देश भर में चर्चाएँ शुरू हो गई हैं।
बता दें, वन नेशन-वन इलेक्शन की दिशा में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को एक कमेटी गठित की गई थी। इस कमेटी ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। कमेटी ने 191 दिनों तक विभिन्न विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से चर्चा की और 18,626 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाकर 2029 तक किया जाए, ताकि अगले लोकसभा चुनाव के साथ ही इन विधानसभाओं के चुनाव भी कराए जा सकें।
जम्मू : जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में सेना का एक वाहन खाई में गिर जाने से एक जवान शहीद हो गया और पांच अन्य घायल हो गए है।
जानकारी के अनुसार जवानों को ले जा रहा सेना का वाहन एक गहरी खाई में गिर गया जिससे छह जवान घायल हो गए और उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां एक जवान का निधन हो गया।
व्हाइट नाइट कोर ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘सभी रैंक लांस नायक बलजीत सिंह के परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं जो मंजाकोट, राजौरी के पास आतंकवाद विरोधी ड्यूटी के दौरान एक दुखद सड़क दुर्घटना में अपनी जान गंवाने वाले बहादुर थे।’
देश में सांसदों, विधायकों और दूसरे चुने हुए जनप्रतिनिधियों का हुक्म अपने-अपने स्तर पर उन लोगों पर चलता है, जो अच्छे-ख़ासे पढ़े-लिखे होते हैं। इसमें अधिकतर नौकरशाह और वरिष्ठ अधिकारी होते हैं। लेकिन जनप्रतिनिधि अनपढ़ भी हो सकता है। उसका रिकॉर्ड आपराधिक भी हो सकता है और वह काम चलाऊ रूप से भी पढ़ा-लिखा, यानी दो-चार क्लास तक पढ़ा-लिखा भी हो सकता है। यानी जिसकी कोई योग्यता न हो, वह नेता बन सकता है। हालाँकि इसे लेकर कई बार माँग उठती रही है कि जनप्रतिनिधियों की योग्यता निर्धारित होनी चाहिए, यानी वे कम-से-कम कॉलेज या यूनिवर्सिटी से शिक्षा हासिल कर चुके हों। हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी कहा कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सांसदों-विधायकों की शिक्षा के मामले में न्यूनतम योग्यता की अनिवार्यता न होने को लेकर अफ़सोस जताया था; लेकिन उनके इस पछतावे पर आज तक ध्यान नहीं दिया गया।
दरअसल हाई कोर्ट के जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु ने 26 नवंबर, 1949 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के संविधान सभा में दिये भाषण का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि क़ानून बनाने वालों की बजाय, क़ानून को लागू करने या लागू करने में मदद करने वालों के लिए उच्च योग्यता पर ज़ोर देना असंगत है। उन्होंने सांसदों और विधायकों की शैक्षणिक योग्यता तय नहीं करने को पहली और देश की भाषा में संविधान नहीं लिखने को दूसरी ग़लती बताते हुए इस पर अफ़सोस ज़ाहिर किया था। जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु ने कहा कि 75 साल बीत गये; लेकिन आज तक पहला पछतावा सुधार की प्रतीक्षा कर रहा है। आज भी देश में मंत्री, सांसद या विधायक बनने के लिए शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की यह टिप्पणी तब आयी, जब भाजपा नेता और पूर्व विधायक राव नरबीर सिंह के ख़िलाफ़ नामांकन-पत्र में शैक्षणिक योग्यता की ग़लत जानकारी देने के आरोप में एक याचिका दायर की गयी थी, जिसे योग्यता निर्धारित न होने के चलते कोर्ट ने पहले राष्ट्रपति की अफ़सोस वाले भाषण को दोहराते हुए ख़ारिज कर दिया।
दरअसल इस मामले में जस्टिस महावीर सिंह सिंधु ने कहा कि लगभग 75 वर्ष बीत चुके हैं; लेकिन आज तक ‘पहला पछतावा’ सुधार की प्रतीक्षा कर रहा है। आज भी हमारे देश में मंत्री, संसद सदस्य या विधानसभा सदस्य बनने के लिए किसी शैक्षिक योग्यता की ज़रूरत नहीं है। इस टिप्पणी के दौरान हाई कोर्ट ने याचिकाओं को सुना और उन्हें यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि पर्याप्त सामग्री है, जो स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि प्रतिवादी ने वर्ष 1988 में हिंदी मध्यमा (विशारद) की डिग्री प्राप्त की थी, जो बीए के समकक्ष है और साथ ही वर्ष 2001 में उत्तम (साहित्य रत्न) की डिग्री प्राप्त की थी, जो बीए (ऑनर्स) के समकक्ष है। ऐसी स्थिति में इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि प्रतिवादी के पास 15 जनवरी, 2005 और 25 सितंबर, 2014 को नामांकन-पत्र दाख़िल करते समय स्नातक की डिग्री थी। कोर्ट ने कहा कि भले ही डिग्री किसी ऐसी यूनिवर्सिटी से हासिल की गयी हो, जो यूजीसी से मान्यता प्राप्त नहीं है; लेकिन इससे प्रतिवादी को नामांकन पत्र के साथ संलग्न फॉर्म संख्या-26 में कोई ग़लत घोषणा करने या इसके समर्थन में हलफ़नामा दाख़िल करने और कथित तरीक़े से अभियोजन का सामना करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
बहरहाल, इस विषय पर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में भी संसद में ख़ूब चर्चा हुई और इस बात पर कुछ सांसदों ने ज़ोर डाला कि लोकसभा का चुनाव लड़ने से लेकर राज्यसभा तक में अच्छे पढ़े-लिखे और क़ाबिल लोगों को आना चाहिए, जिसके लिए सांसदों और विधायकों की शैक्षिक योग्यता निर्धारित की जानी चाहिए। लेकिन ज़्यादातर सांसदों ने इस प्रस्ताव को नकार दिया था और इस प्रस्ताव को नकारने वालों में काफ़ी संख्या में पढ़े-लिखे सांसद भी थे। लेकिन सवाल यह है कि सभी जनप्रतिनिधियों की बात तो दूर, क्या आज सभी सांसद और सभी विधायक पढ़े-लिखे हैं? हालाँकि आज अगर देखें, तो तक़रीबन 80 फ़ीसदी सांसद और विधायक कम-से-कम ग्रेजुएशन या उससे ज़्यादा पढ़े-लिखे हैं। हालाँकि यह अच्छी बात है कि इस बार की 18वीं लोकसभा में कोई सांसद निरक्षर नहीं है, जिसकी वजह कई पुरानों को टिकट न मिलना भी है। इनमें से 34 सांसद 10वीं पास हैं। 65 सांसद 12वीं पास हैं। 147 सांसद ग्रेजुएट हैं। 147 सांसद पोस्ट ग्रेजुएट हैं और 98 सांसद ग्रेजुएट प्रोफेशनल हैं। इनमें से भाजपा के 240 सांसदों में से 64 सांसद ग्रेजुएट हैं। 49 पोस्ट ग्रेजुएट हैं। 87 सांसदों के पास दूसरी डिग्रियाँ हैं। बाक़ी 40 सांसद कक्षा पाँच से 12वीं तक ही पढ़े-लिखे हैं। वहीं कांग्रेस के 99 सांसदों में से 24 ग्रेजुएट हैं। 27 पोस्ट ग्रेजुएट हैं और 21 सांसद प्रोफेशनल ग्रेजुएट हैं। जबकि 19 सांसद कम पढ़े-लिखे हैं। तक़रीबन यही हाल बाक़ी पार्टियों का भी है। लेकिन कई सांसदों और विधायकों की शिक्षा पर सवाल उठते रहे हैं।
दो-तीन साल पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्रियों को लेकर भी देश भर में काफ़ी बवाल मचा था और यह मामला न सिर्फ़ उन्हें डिग्री देने वाली यूनिवर्सिटी के सुबूत देने तक पहुँचा, बल्कि कोर्ट तक भी पहुँचा। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि देश भर में एक बहस छिड़ गयी और कुछ लोग अनपढ़ और चौथी फेल जैसे शब्दों का इस्तेमाल सोशल मीडिया पर करते दिखे। हालाँकि इसे उचित नहीं माना जा सकता; लेकिन इसका असर यह हुआ कि गृह मंत्री अमित शाह को प्रेस कॉन्फ्रेंस तक करनी पड़ी और प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री दिखानी पड़ी। हालाँकि बाद में उस पर भी सवाल उठते रहे और लोगों ने मार्क कर करके डिग्री में ग़लतियों को उजागर करने का दावा किया। इस मामले में सन् 1978 में कम्प्यूटराइज्ड बीए की डिग्री होने पर सबसे ज़्यादा सवाल उठे, जो उनके द्वारा दी गयी जानकारी या यह कहें कि डिग्री के मुताबिक, दिल्ली यूनिवर्सिटी से मिली हुई है। इसके बाद उनकी एमए की डिग्री साल 1983 की है, जो उन्होंने गुजरात की एक यूनिवर्सिटी से ली है। हालाँकि ये अलग मसला है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्होंने एंटायर पॉलिटिक्स में एमए किया है, जिसे लेकर काफ़ी लोग सोशल मीडिया पर मज़ाक़ के लहजे में काफ़ी दिनों तक भिड़े रहे।
बहरहाल, मेरा मानना यह है कि सांसदों और विधायकों से लेकर छोटे स्तर के चुनावों तक में भी ऐसे नेताओं के चुनाव लड़ने से रोक होनी चाहिए, जिनकी योग्यता कम हो और जो भले ही बहुत अच्छी शिक्षा हासिल कर चुके हों; लेकिन उनका आपराधिक रिकॉर्ड रहा हो। बल्कि ऐसे लोगों का बहिष्कार सभी पार्टियों को भी करना चाहिए और उन्हें पार्टी की सदस्यता तक नहीं देनी चाहिए। आज हम देख रहे हैं कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों में बड़ी संख्या में सांसद, विधायक और दूसरे चुने हुए जनप्रतिनिधियों का आपराधिक रिकॉर्ड है और खुलेआम वो न सिर्फ़ घूम रहे हैं, बल्कि किसी भी आपराधिक मामले में उन्हें सज़ा नहीं हो रही है। और ऐसे लोग चुनाव लड़कर संसद और विधानसभाओं में बैठे हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक, इस साल हुए लोकसभा चुनाव में जीतकर आए 543 सांसदों में से 251 सांसद दाग़ी हैं। यानी क़रीब 46 फ़ीसदी सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसी प्रकार से हर विधानसभा में काफ़ी संख्या में आपराधिक मुक़दमों से घिरे हुए विधायक और मंत्री मिल जाएँगे।
दरअसल, संविधान ने अनुच्छेद-19 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, जिसका मतलब यह है कि देश के हर नागरिक को अपनी बात रखने का अधिकार है। लेकिन अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे, जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि रही है, वो न सिर्फ़ चुनावों से लेकर संसद और विधानसभा पहुँचने पर भी कुछ भी ऊटपटाँग बोलते हैं, बल्कि कई के बयान तो देश में भ्रम, नफ़रत, दंगा-फ़साद और बवाल फैलाने के लिए के लिए काफ़ी होते हैं। आज जितने उम्मीदवार चुनाव में खड़े होते हैं, उनमें ज़्यादा उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले होते हैं। ये लोग चुनाव में जो अनाप-शनाप करोड़ों रुपये उड़ाते हैं, वो भी सब ईमानदारी का नहीं होता। ज़ाहिर है जितना बड़ा चुनाव होता है, उसमें उतना ज़्यादा दमख़म दिखाने और दिखावा करने का चलन हो चुका है; और जो जितना ज़्यादा पैसा ख़र्च करता है, वो पैसा उससे की गुना भ्रष्टाचार से बनाता भी है। कहावत है कि बिना शिक्षा के कोई भी आदमी सही शिक्षित साक्षर या शिक्षित ही नहीं होता, बल्कि शिक्षा तरीक़े से न हो, तो देश का तो दूर की बात किसी क्षेत्र या एक गाँव का भला नहीं कर सकता। हालाँकि शिक्षित होने का मतलब महज़ किसी का साक्षर होना या स्कूली शिक्षा हासिल करना ही नहीं है, बल्कि संस्कारित होना भी है। लेकिन आज देश की सियासत में शामिल अशिक्षित और असंस्कारित जनप्रतिनिधियों की वजह से युवाओं पर कितना बुरा असर पड़ रहा है, इस पर हमें विचार करने की ज़रूरत है। इसलिए अगर देश का सर्वांगीण विकास चाहिए, तो कम कम-से-कम उन चुने हुए जनप्रतिनिधियों का उच्च स्तर तक पढ़ा-लिखा होना ज़रूरी है, जो उच्च स्तर की पढ़ाई करने के बाद देश की सबसे कठिन परीक्षाओं को पास करके बने अफ़सरों पर हुक्म चलाते हैं।
शौचालय का नाम सुनते या उसके पास से गुज़रते हुए पहली तस्वीर ज़ेहन में यही उकरती है कि यह महज़ एक ऐसी जगह है, जिसका इस्तेमाल दीर्घ शंका के लिए किया जाता है। दरअसल शौचालय और वो भी स्वच्छ शौचालय तक पहुँच कई बीमारियों से बचाव का एक सशक्त ज़रिया भी माना जाता है। लोगों की ख़ासकर बच्चों की जान बचाने में मददगार भी हो सकते हैं।
प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका नेचर ने हाल ही में अपने एक अध्ययन में कहा है कि भारत सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत घरों में बनाये गये शौचालयों के निर्माण व राष्ट्रीय स्वच्छता कार्यक्रम के तहत बेहतर साफ़-सफ़ाई सेवाओं ने वर्ष 2014-2020 के दरमियान देश में नवजात और पाँच साल से कम आयु के बच्चों की सालाना मृत्यु दर को कम करने में अहम योगदान दिया है। इस पत्रिका में दावा किया गया है कि इससे हर साल 60,000 से 70,000 नवजातों की ज़िन्दगियाँ बची हैं।
ग़ौरतलब है कि स्वच्छ भारत मिशन को 02 अक्टूबर, 2014 में लॉन्च किया गया था। इस राष्ट्रीय अभियान का मुख्य उद्देश्य सभी घरों में शौचालय की सुविधा प्रदान करके देश को खुले में शौच से मुक्त करना है। इसके साथ ही सामुदायिक और सार्वजनिक स्थलों पर शौचालय का निर्माण करके गंदे शौचालयों को फ्लश वाले शौचालयों में बदलना है। देश की गलियों, सड़कों और बुनियादी ढाँचे की सफ़ाई करना भी इसका हिस्सा है। केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी के एक बयान के मुताबिक जुलाई, 2024 तक बीते नौ वर्षों में ग्रामीण और शहरी भारत में लगभग 12 करोड़ शौचालय बनाये गये थे। हालाँकि अभी देश के हर व्यक्ति की शौचालय तक पहुँच संभव नहीं हो सकी है।
टायॅलेट कंस्ट्रशन अंडर द स्वच्छ भारत मिशन और इंफेट मोरटिलटी नामक रिपोर्ट को इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीटयूट, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और ओहयो स्टेट यूनिवर्सिटी ने तैयार की है। इस शोध पत्र के लेखकों ने वर्ष 2011 से 2020 तक 35 राज्यों और 640 ज़िलों में एक वर्ष से कम आयु के शिशुओं और पाँच साल से कम आयु के बच्चों की मुत्यु दर का अध्ययन किया। इस अध्ययन में बताया इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि स्वच्छ भारत मिशन में शौचालयों का निर्माण बड़े स्तर पर हुआ और संभव है कि बड़ी संख्या में शौचालयों के निर्माण की वजह से मुत्यु दर में कमी आयी है। इसके अलावा शुद्ध पानी और सफ़ाई की उपलब्धता के कारण भी शिशु मुत्यु दर में की आयी है।
विश्लेषण यह भी बताता है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत 30 प्रतिशत से अधिक शौचालय कवरेज वाले ज़िलों में प्रति हज़ार जीवित जन्मों पर नवजात मृत्यु दर में 5.3 प्रतिशत और पाँच वर्ष से कम आयु में 6.8 प्रतिशत की कमी देखी गयी। अगर संख्या में देखें, तो यह आँकड़ा 60,000 से 70,000 का होगा। इसमें यह भी बताया गया है कि किस तरह पहले खुले में शौच की वजह से डायरिया और अन्य इस तरह की बीमारियों से बच्चे मर जाते थे, जिनमें आज काफ़ी कमी आयी है।
ग़ौरतलब है कि स्वच्छता यानी साफ़-सफ़ाई को बीती सदी से ही महत्त्वपूर्ण जन स्वास्थ्य हस्तक्षेपों में से एक माना जाता है, इसके प्रमाण 1900 के शुरुआती वर्षों में अमेरिका व पश्चिमी देशों में शिशु मृत्यु दर में जबरदस्त गिरावट वहाँ की साफ़-सफ़ाई की सेवाओं को सुधारने से दर्ज की गयी। भारत में वर्ष 2003 में प्रति हज़ार जीवित जन्मों पर नवजात मृत्यु दर 60 थी, जो 2020 में गिरकर 30 रह गयी। लेकिन यह रिपोर्ट इस ओर भी रेखांकित करती है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा व आंध्र प्रदेश में कुछ ऐसी जगह हैं, जहाँ नवजात मृत्यु दर 45 से 60 लगातार प्रति हज़ार बनी हुई है। सरकार को इसमें सुधार लाने के विशेष प्रयास करने होंगे। इसके साथ ही इस रिपोर्ट के लेखकों ने यह भी कहा है कि हालाँकि लाभों के बावजूद जाति और धर्म आधारित भेदभावपूर्ण प्रथाओं के कारण शौचालयों को अपनाने और इस्तेमाल करने में असमानताएँ बनी हुई हैं। यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है। स्वच्छ भारत मिशन के कई पहलू हैं। नि:संदेह नवजात व पाँच साल से कम आयु के बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार वाला बिंदु इससे जुड़ा हुआ है। लेकिन इसके साथ-साथ जैसा कि रिपोर्ट में इनके इस्तेमाल में भेदभावपूर्ण वाले बिंदु को रेखांकित किया गया है, सरकार को इसकी पड़ताल करके उसकी ओर प्रभावी क़दम उठाने होंगे। न्यायसंगत कार्यान्वयन की दरकार है। दूसरी ओर देश में हर साल कुपोषण से पाँच साल से कम उम्र के 5,00,000 बच्चे मर जाते हैं। इससे पता चलता है कि आँगनबाड़ी के ज़रिये सरकारेेंपोषक आहार देने में असफल हैं। दुनिया के कई देशों में कुपोषण से बच्चे मर रहे हैं; लेकिन भारत में सिर्फ़ यह संख्या 20 प्रतिशत से ज़्यादा है। ऐसे में शौचालयों का बनाना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं मानी जा सकती।
नई दिल्ली : भारत ने एशियन चैंपियंस ट्रॉफी 2024 के फाइनल में चीन को 1-0 से हराकर गोल्ड मेडल जीत लिया। इस निर्णायक मुकाबले में भारत के लिए एकमात्र गोल जुगराज सिंह ने किया, जो अंततः विजयी साबित हुआ। भारत ने कुल पांचवीं बार एशियन चैंपियंस ट्रॉफी का खिताब अपने नाम किया है। चीन ने पहली बार फाइनल में जगह बनाई थी और उससे पहले ही बार में शिकस्त मिली है।
भारत की टीम ने टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन करते हुए सेमीफाइनल तक 25 गोल किए थे, जबकि चीन ने इस दौर में केवल 10 गोल किए थे। हालांकि, फाइनल में चीन ने भारत को कड़ी चुनौती दी, लेकिन भारतीय टीम ने अपने शानदार खेल से जीत दर्ज की। इस महत्वपूर्ण जीत के साथ भारत ने एक बार फिर अपने हॉकी कौशल और टीम स्पिरिट का लोहा मनवाया है।
इससे पहले सेमीफाइनल में भारतीय हॉकी टीम ने कोरिया को 4-1 से शिकस्त दी थी। सेमीफाइनल में कोरियाई टीम के खिलाफ हरमनप्रीत सिंह, उत्तम सिंह और जरमनप्रीत सिंह ने गोल किए। कप्तान हरमनप्रीत ने कुल दो गोल किए थे।
नई दिल्ली: दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) ने आतिशी को राजधानी का नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया है। विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर मुहर लगाई गई, जिसमें पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने आतिशी के नाम का प्रस्ताव रखा। सभी विधायकों ने खड़े होकर इस प्रस्ताव को स्वीकार किया, जिससे आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बन गई हैं। इससे पहले सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित इस पद पर काबिज रह चुकी हैं।
अरविंद केजरीवाल आज शाम 4:30 बजे उपराज्यपाल (LG) विनय सक्सेना को अपना इस्तीफा सौंपेंगे। इस हफ्ते नए मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया जाएगा। इसके साथ ही, 26 और 27 सितंबर को दिल्ली विधानसभा का दो दिवसीय सत्र भी बुलाया गया है।
केजरीवाल ने 13 सितंबर को शराब नीति केस में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद 15 सितंबर को मुख्यमंत्री पद छोड़ने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा, “अब जनता तय करे कि मैं ईमानदार हूं या बेईमान। जनता ने दाग धोया और विधानसभा चुनाव जीता तो फिर से कुर्सी पर बैठूंगा।”
– बलात्कारियों को जल्द सज़ा देने के पश्चिम बंगाल सरकार के निर्णय का देश भर में स्वागत होना चाहिए
संविधान के अनुच्छेद-51(1) के मुताबिक, सम्मान महिलाओं (लड़कियों और महिलाओं) का मौलिक अधिकार है। इस अनुच्छेद में महिलाओं को कई प्रकार की स्वतंत्रताएँ मिली हुई हैं; लेकिन इसके बाद भी न तो महिलाओं को पूरी तरह सम्मान मिल पाता है और न ही उन्हें पूरी स्वतंत्रता है। इसके विपरीत महिला संरक्षण को लेकर कई क़ानून होने के बाद भी उनके ख़िलाफ़ अपराध बढ़ रहे हैं। ये अपराध तब रुकेंगे, जब महिलाओं पर अत्याचार करने वाले दोषियों को जल्द-से-जल्द कड़ी-से-कड़ी सज़ा मिलनी शुरू होगी। पश्चिम बंगाल के सरकारी अस्पताल में 09 अगस्त को हुए जघन्य अपराध से वहाँ की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इतना बड़ा झटका लगा कि उन्होंने ऐसे अपराध रोकने के लिए सख़्त क़दम उठा लिये। पश्चिम बंगाल की विधानसभा में ध्वनिमत से सर्वसम्मति के साथ अपराजिता महिला और बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक क़ानून संशोधित) विधेयक-2024 पारित हो गया। इस क़ानून में सज़ा का नया प्रावधान करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने जो साहस दिखाया है, वह पूरे देश के लिए एक मिसाल है।
हालाँकि इससे पहले भी हरेक यौन अपराधी के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद हुई है और लोगों ने ऐसे अपराधियों के लिए मौत की सज़ा की माँग भी की है। यह आवाज़ संसद से लेकर ज़्यादातर राज्यों की विधानसभाओं में भी गूँजी है और यौन अपराधियों को सज़ा देने के लिए क़ानूनों में बदलाव भी किये गये हैं। लेकिन ज़्यादातर राज्यों में इस जघन्य अपराध को करने वालों के ख़िलाफ़ नये अध्यादेश जारी करके या विधेयक पारित करके सरकारों ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है। दिल्ली में सन् 2012 में निर्भया के साथ हुए इस जघन्य अपराध के बाद पूरे देश में अपराधियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठी, तो केंद्र सरकार ने 2013 में बलात्कार के मामले में अपराधियों को कड़ी सज़ा देने के लिए आपराधिक क़ानून में बदलाव किया। इसके बाद राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश समेत कई राज्यों की सरकारों ने क़ानून में बदलाव किया। लेकिन इन बदलावों से बलात्कार की घटनाओं में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा।
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में अपराधियों के थरथर काँपने के दावे किये जाते हैं; लेकिन वहाँ अपराध रुक ही नहीं रहे हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, मणिपुर समेत कई राज्यों में बलात्कार की रिकॉर्ड तोड़ घटनाओं के बाद भी सरकारें अपराधियों का कुछ ख़ास नहीं बिगाड़ पा रही हैं। लेकिन जैसा कि पश्चिम बंगाल में अपराजिता क़ानून के तहत राज्य में बलात्कार के मामले की जाँच 21 दिन में पूरी होगी, ट्रायल नहीं होगा और बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के दोषियों को मौत की सज़ा दी जाएगी। अगर पीड़ित महिला या लड़की कोमा में चली गयी है या उसकी मौत हो गयी है, तो भी दोषियों को फाँसी की सज़ा दी जाएगी, जो स्वागत योग्य है। हालाँकि कुछ लोग इस विधेयक को लेकर ममता सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब देश में पहले से ही बलात्कारियों को मौत की सज़ा देने का क़ानून है, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को यह सब करने की क्या ज़रूरत थी?
केंद्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है कि यह क़ानून ममता सरकार द्वारा ख़ुद को बचाने की कोशिश है। लेकिन केंद्रीय मंत्री यह नहीं बोले कि मुख्यमंत्री ममता ने इस क़ानून में संशोधन करके विधेयक पास करने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की माँग की थी, जिसका जवाब प्रधानमंत्री ने नहीं दिया। ऊपर से केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इस पत्र के जवाब में कहा कि देश भर में फास्ट ट्रैक कोर्ट हैं; लेकिन आपने फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित नहीं किये हैं।
अपराजिता विधेयक पास करने को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार का स्वागत होना चाहिए; लेकिन इसे अमल में भी लाया जाना चाहिए। हालाँकि यहाँ ग़ौर करने की बात यह है कि किसी भी राज्य सरकार को दण्ड संहिता के क़ानून में संशोधन लागू करने के लिए राष्ट्रपति की सहमति की ज़रूरत होती है। पश्चिम बंगाल में अपराजिता क़ानून के मामले में कई क़ानूनविद यह भी कह रहे हैं कि पश्चिम बंगाल सरकार को इस क़ानून में संशोधन नहीं करना था, बल्कि मौज़ूदा क़ानून को ही सख़्ती से लागू करना चाहिए था। ऐसे लोगों का बेतुका तर्क है कि सिर्फ़ बलात्कार के सामान्य अपराध में फाँसी की सज़ा देना बहुत ग़लत होगा। इसके लिए पहले से ही सज़ा देने का क़ानून मौज़ूद है। लेकिन क़ानूनविदों से सवाल यह है कि अगर बलात्कारियों को मौत की सज़ा नहीं दी जाएगी, तो क्या देश में बलात्कार की घटनाएँ कभी रुकेंगी? इसलिए आज पूरे देश में ऐसे सख़्त क़ानून की ज़रूरत है; क्योंकि हर दिन महिलाओं के ख़िलाफ़ अनैतिक यौन हिंसा हो रही है।
केंद्रीय जाँच एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आँकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल चार लाख से ज़्यादा मामले महिलाओं पर अत्याचार के दर्ज होते हैं। इन अपराधों में बलात्कार, मारपीट, अपहरण, तस्करी, हत्या, एसिड अटैक और छेड़छाड़ के मामले हैं, जो बच्चियों से लेकर महिलाओं तक के ख़िलाफ़ होते हैं। एनसीआरबी के मुताबिक, भारत में हर घंटे कम-से-कम तीन लड़कियाँ और महिलाएँ बलात्कार का शिकार होती हैं। यानी हर 20 मिनट में एक बलात्कार देश में होता है। बलात्कार करने वालों में 96 प्रतिशत से ज़्यादा अपराधी पीड़ितों के परिचित होते हैं। लेकिन सज़ा के मामले में भारतीय क़ानून व्यवस्था काफ़ी कमज़ोर है, जिसके चलते 100 बलात्कारियों में से सिर्फ़ 27 को ही सज़ा हो पाती है। अगर देश में होने वाले बलात्कार के ही आँकड़े हैरान-परेशान करने वाले हैं।
साल 2009 में देश में 21,397 बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामले दर्ज हुए। इसके बाद साल 2010 में 22,172 मामले, साल 2011 में 24,206 मामले, 2012 में 24,923 मामले, 2013 में 33,707 मामले, साल 2014 में 36,735 मामले बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामले दर्ज हुए। इसके बाद साल 2015 में यह आँकड़ा कुछ कम हुआ और 34,651 मामले बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामले दर्ज हुए। इसके बाद फिर बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामलों में बढ़ोतरी हुई और साल 2016 में 38,947 मामले दर्ज हुए। फिर साल 2017 में 32,559 मामले, साल 2018 में 33,356 मामले, साल 2019 में 32,032 मामले, साल 2020 में 28,046 मामले, साल 2021 में 31,677 मामले, साल 2022 में 31,516 मामले दर्ज हुए। इसके बाद के आँकड़े सामने नहीं आये हैं। हालाँकि राज्यों में होने वाले बलात्कार के आँकड़ों से पता चलता है कि देश में बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामले बढ़े ही हैं।
भारतीय दण्ड संहिता, भारतीय न्याय संहिता से सम्बन्धित धाराएँ आज बलात्कार के लिए मौत की सज़ा या उम्रक़ैद या कड़ी सज़ा का प्रावधान करती हैं। मौत की सज़ा पाँच अपराधों- बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, पुलिस अधिकारी या लोक सेवक द्वारा बलात्कार, बलात्कार के चलते मौत होने या पीड़िता के हमेशा के लिए कोमा में चले जाने और दोबारा बलात्कार का अपराध करने पर दिये जाने का क़ानून देश में है। लेकिन फाँसी की सज़ा तो दूर की बात, ज़्यादातर बलात्कार के अपराधियों को सज़ा तक नहीं होती है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 20 सितंबर, 2018 को साइबर अपराध पोर्टल लॉन्च किया था, जिससे कोई भी व्यक्ति किसी अश्लील सामग्री की रिपोर्ट कर सके। लेकिन न तो अश्लील सामग्री पर रोक लगी और न बलात्कार और अत्याचार की घटनाएँ कम हुईं। गृह मंत्रालय ने कई राज्यों में साइबर अपराध फोरेंसिक लैब स्थापित किये; लेकिन महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराध कम नहीं हुए। अपराधियों का पता लगाने के लिए 410 सरकारी अभियोजक और न्यायिक अधिकारियों समेत 3,664 से ज़्यादा कर्मचारियों को सरकार ने अपराधियों पर नियंत्रण के लिए प्रशिक्षण दिया; लेकिन अपराध कम नहीं हुए।
इसके अलावा महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध रोकने के लिए देश में दहेज निषेध अधिनियम-1961, महिलाओं का अभद्र चित्रण (निषेध) अधिनियम-1986, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम-1990, घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम-2005, बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम-2013 बनाये हुए हैं; लेकिन फिर भी महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ अपराध हो रहे हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने 31 जनवरी, 1992 को संसद द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम-1990 के तहत राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की स्थापना की थी; लेकिन महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध नहीं रुके। इसके अलावा केंद्र सरकार ने साल 2012 में निर्भया फंड बनाया गया, जिसमें साल 2013 के केंद्रीय बजट में 1,000 करोड़ रुपये का घोषित फंड था। इस फंड में व्यक्तिगत रूप से लोगों ने ख़ूब दान किया। लेकिन इस फंड से बलात्कार पीड़िताओं की मदद या तो होती ही नहीं है या कितनी होती है, इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती है।
इसके अलावा संबल नाम का सरकारी फंड है, जिसका बजट घटा दिया गया है। इसकी वजह यह बतायी जाती है कि इस फंड का पैसा ख़र्च नहीं हो पाता। यह अजीब तर्क है कि पैसा ख़र्च नहीं हो पाता। पैसा जब पीड़ित महिलाओं को दिया ही नहीं जाएगा, तो ख़र्च कहाँ से होगा? इन सब पहलुओं पर केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों तक को ध्यान देना चाहिए और क़ानूनों का सख़्ती से पालन करते हुए पीड़ित महिलाओं और लड़कियों को सांत्वना के तौर पर फंड रिलीज करना चाहिए। इसके साथ ही बलात्कारियों और महिलाओं पर अत्याचार करने वालों को कड़ी-से-कड़ी सज़ा तो हर हाल में मिलनी ही चाहिए।
हरियाणा सरकार द्वारा करोड़ों रुपये ख़र्च करके एक सफ़ेद हाथी पाला हुआ है, जिसे पुलिस कंप्लेंट्स अथॉरिटी (पीसीए) के नाम से जाना जाता है। इस अथॉरिटी में एक चेयरमैन और दो मैंबर्स होते, अक्सर ये रिटायर आईएएस और आईपीएस अधिकारी होते हैं। इन सबके साथ 40 से 50 लोगों का स्टाफ, सरकारी गाड़ियाँ, गनमैन इत्यादि सभी सरकार की ओर से होता है। पीडब्लूडी की पूरी बिल्डिंग चण्डीगढ़ में इस अथॉरिटी के पास है। सरकार ने इस अथॉरिटी को काम दिया है कि पुलिस की नाइंसाफ़ी से आम जनता की रक्षा करे और उन्हें न्याय दिलाए। यदि पुलिस महकमे के किसी मुलाज़िम ने ग़लत तफ़तीश की, तो उस पर भी ये अफ़सर महकमे को कार्रवाई के लिए आदेश दे सकते हैं। परन्तु यह कार्रवाई पुलिस अधिकारियों को करनी होती है।
यह अफ़सरों की मर्ज़ी होती है। कार्रवाई करें या आदेश रद्दी में डाल दें। अक्सर पुलिस के नीचे के अधिकारी अपने बड़े अधिकारियों की शह के बिना ग़लत काम नहीं करते। इसीलिए वे अन्य किसी भी कार्रवाई से नहीं डरते, चाहे वो कोई भी अथॉरिटी हो। पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी में शिकायत करने पर लगभग तीन महीने से पहले सुनवाई की तारीख़ नहीं मिलती। और उसके बाद की तारीख़ पुलिस वालों पर निर्भर है कि वे कब की क़ुबूल करें। जिस तारीख़ को वे मानेंगे, वही सबको माननी पड़ेगी। और इस कार्रवाई में महीनों निकल जाते हैं। इधर भागदौड़ में शिकायतकर्ता भी थक जाता है। इन सबके बाद पुलिस कह देती है कि केस का चालान कोर्ट में पेश कर दिया है। अब कुछ नहीं हो सकता। शिकायत को लंबा करने के लिए पुलिस अधीक्षक कई आईओ बदल देते हैं। जब भी अथॉरिटी में पेशी होती है, तो आईओ के पास अगली तारीख़ लेने का बहाना हो जाता है कि मेरे पास तो अभी फाइल आयी है।
ऐसी ही एक शिकायत रविन्द्र कुमार वासी कुरुक्षेत्र ने पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी चण्डीगढ़ में 21/7/2023 को आईओ सब इंस्पेक्टर विजय कुमार के ख़िलाफ़ की थी। एक साल से अधिक समय और 08 तारीख़े मिलने के बाद भी उस शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। आईओ के ख़िलाफ़ शिकायत की तफ़तीश पर अथॉरिटी ने कुरुक्षेत्र के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुरेन्द्र भोंरिया को पत्र लिखा। अधीक्षक सुरेन्द्र ने तफ़तीश के लिए डीएसपी को निर्देश दिये और डीएसपी ने गोल-मोल रिपोर्ट अथॉरिटी को भेज दी। उस रिपोर्ट को अथॉरिटी के जज ने भी ध्यान से नहीं पढ़ा, और विजय कुमार पर कार्रवाई न हो, इसके लिए केस का रुख़ अगली कार्रवाई पर मोड़ दिया। अगर पुलिस की कार्रवाई से ही शिकायतकर्ता सन्तुष्ट होता, तो उसे चण्डीगढ़ जाने कि क्या आवश्यक थी? जबकि विजय कुमार आईओ की शिकायत को लेकर एसपी को शिकायतकर्ता तीन बार मिला। परन्तु वहाँ से कार्रवाई न होने के कारण ही शिकायतकर्ता को पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी चण्डीगढ़ जाना पड़ा।
कम्पलेंट अथॉरिटी उन्हीं से दोबारा जाँच करवाकर क्या शिकायतकर्ता को मूर्ख बना रही है? शिकायतकर्ता लगभग एक साल एक महीने पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी के चक्कर लगाता रहा, परन्तु सुबूत होने के बावजूद कोई कार्रवाई किसी पुलिसकर्मी पर नहीं हुई। रिकॉर्ड में दर्ज है कि आईओ विजय कुमार, सब इंस्पेक्टर सुरेश कुमार और इंस्पेक्टर जगदीश कुमार ने आरोपी के साथ मिलकर जालसाज़ी की है, जो उस समय थाना महेश नगर, अंबाला शहर में तैनात थे।
13 अगस्त को शिकायतकर्ता को अथॉरिटी की तरफ़ से बताया गया कि हम आईओ को कोई निर्देश नहीं दे सकते। और इन पर कार्रवाई से आपको कोई लाभ नहीं होगा। यह तो एक छोटा-सा केस था। पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी, चण्डीगढ़ में ऐसी बहुत-सी शिकायतें आती हैं। लेकिन शिकायतकर्ता चक्कर लगा-लगाकर मायूस लौट जाते हैं। ख़ास बात यह है कि जिनके ख़िलाफ़ शिकायत होती है, वे अधिकारियों के साथ एसी में बैठकर चाय-नाश्ता करते हैं और शिकायतकर्ता बाहर गर्मी में खड़े होकर दो-दो घंटे अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करते रहते हैं। हरियाणा सरकार सिर्फ़ अपने चहेतों को सुविधा देने के नाम पर लोगों के टैक्स के करोड़ों रुपये बर्बाद कर रही है, जो इस पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी पर ख़र्च हो रहे हैं, जिसका कोई औचित्य नहीं है। अगर किसी स्वतंत्र एजेंसी से इसके कार्यों की जाँच हो, तो पता चलेगा कि बिना किसी काम के इस अथॉरिटी पर सरकार करोड़ों रुपये उड़ा रही है।
– दिल्ली में भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से केंद्र सरकार की झुग्गी पुनर्वास योजना के तहत बने फ्लैट बेच रहे दलाल
इंट्रो- भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों और दलालों की मिलीभगत के चलते सरकारी योजनाओं का फ़ायदा योग्य ज़रूरतमंदों को नहीं मिल पाता। और अगर मिलता भी है, तो ज़रूरतमंद की महीनों भागदौड़ और रिश्वत की बदौलत। दिल्ली में केंद्र सरकार की झुग्गी पुनर्वास योजना के तहत बने फ्लैट, जो कि नियम के अनुसार बिना किसी अड़चन के झुग्गी में रहने वालों को मिलने चाहिए; अवैध रूप से बिचौलियों (प्रॉपर्टी-दलालों) के ज़रिये भ्रष्ट अधिकारियों की शह पर फ्लैट ख़रीदने की सामर्थ्य रखने वालों को बेचे जा रहे हैं। इसके लिए उन्हें बाक़ायदा झुग्गीवासी दिखाया जा रहा है। ‘तहलका’ एसआईटी की पड़ताल से पता चला है कि कैसे ये बिचौलिये भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलकर अवैध रूप से ज़रूरतमंदों के लिए झुग्गी पुनर्वास योजना के तहत बने फ्लैट्स फ़र्ज़ी क़ाग़जात के ज़रिये समृद्ध लोगों को दिलवाकर सरकार की आँखों में धूल झोंक रहे हैं। कोई बड़ी बात नहीं, इसमें कुछ राजनीतिक हस्तियों की मिलीभगत भी हो। लेकिन यह जाँच करना सरकार और उसकी जाँच एजेंसियों का काम है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट :-
02 नवंबर, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की इन-सीटू स्लम पुनर्वास परियोजना के तहत दिल्ली के कालकाजी एक्सटेंशन में झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए 3,000 से अधिक फ्लैट्स का उद्घाटन किया था। कालकाजी एक्सटेंशन परियोजना, जिसका उद्देश्य कालकाजी के भूमिहीन शिविर, नवजीवन शिविर और जवाहर शिविर के झुग्गीवासियों का पुनर्वास करना है; की परिकल्पना सन् 2011 में की गयी थी, जिसकी आधारशिला सन् 2013 में रखी गयी थी।
पहले चरण में डीडीए ने भूमिहीन कैम्प में रहने वाले लोगों के लिए ख़ाली व्यावसायिक भूखंड पर 3,024 फ्लैट्स का निर्माण किया। हालाँकि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इन फ्लैट्स का उद्घाटन करने के ठीक दो साल बाद भ्रष्टाचारियों ने दलालों से मिलकर झुग्गीवासियों के लिए बनाये गये इन फ्लैट्स को अमीरों को बेचना शुरू कर दिया है। ये 25 वर्ग मीटर में बने 14 मंज़िला ऊँचे फ्लैट्स, जो बिक्री के लिए नहीं हैं; लाभार्थियों को केवल 1.24 लाख रुपये में प्रदान किये जाने थे। बाक़ी लागत डीडीए द्वारा ख़र्च की गयी है। इसके बावजूद बिचौलिये झुग्गी-झोंपड़ी के नक़ली पते का उपयोग करके अमीर ख़रीदारों से रिश्वत लेकर उन्हें प्रति फ्लैट 6.50 लाख रुपये के हिसाब से बेच रहे हैं, जिनमें से अधिकांश के पास पहले से ही दिल्ली में घर हैं। ‘तहलका’ जाँच से पता चला है कि झुग्गीवासियों के लिए बनी इस सोसायटी में फ्लैट दिलाने का वादा करके बिचौलिये पहले ही कई लोगों को ठग चुके हैं।
‘ये फ्लैट्स झुग्गीवासियों के लिए हैं। लेकिन मैं यह दर्शाने वाले दस्तावेज़ तैयार करूँगा कि आप 2005 से पहले से झुग्गी में रह रहे थे। सरकार जाँच नहीं करेगी। इसलिए किसी को पता नहीं चलेगा कि आप झुग्गी-झोंपड़ी से नहीं हैं। एक फ्लैट के लिए हम 6.5 लाख रुपये लेते हैं। सारा भुगतान नक़द करना होता है। यह रिश्वत प्राधिकरण के भीतर ऊपर से नीचे तक बाँटी जाती है। ये फ्लैट बेचे नहीं जा सकते; लेकिन एक बार जब हम दिखा देंगे कि आप झुग्गी बस्ती से हैं, तो आपको फ्लैट मिल जाएगा।’ -‘तहलका’ रिपोर्टर को संजय कुमार पंडित नाम के एक बिचौलिये ने दावा किया।
‘मैं पहले ही एक ग्राहक से तीन लाख रुपये रिश्वत के रूप में ले चुका हूँ। मुझे 5.5 लाख रुपये और चाहिए। और फिर उसे फ्लैट के लिए आवंटन पत्र मिलेगा। अब तक मैंने इस सोसायटी में 10 फ्लैट ऐसे धनी ग्राहकों को बेचे हैं, जो झुग्गियों से नहीं हैं। लेकिन हमारे द्वारा बनाये गये नक़ली दस्तावेज़ के माध्यम से हमने ऐसा दिखाया है कि वे झुग्गी के ही रहने वाले थे।’ – यह दावा मोइनुद्दीन अल्वी नाम के एक अन्य बिचौलिये ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के सामने किया।
‘मेरे मुवक़्क़िल ने एक फ्लैट के लिए रिश्वत के रूप में 6.5 लाख रुपये की पूरी राशि का भुगतान किया है। वह एक अमीर व्यक्ति है; लेकिन मैंने फ़र्ज़ी दस्तावेज़ की मदद से यह साबित कर दिया है कि वह झुग्गी बस्ती का रहने वाला है। वह अपने फ्लैट का इंतज़ार कर रहा है। इन फ्लैट्स की सरकारी क़ीमत महज़ 1.47 लाख रुपये है। सरकारी अधिकारियों के पास इस सोसायटी में 25-30 फ्लैट्स हैं, जिन्हें वे पैसे लेकर उन अमीरों को बेच रहे हैं, जो झुग्गी बस्ती से नहीं आते हैं।’ -संजय कुमार पंडित ने आगे बताया।
दिल्ली के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) से सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी अली जान बताते हैं कि कैसे वह बिचौलियों के जाल में फँस गये। दिल्ली में अपना घर होने और झुग्गियों से कोई सम्बन्ध नहीं होने के बावजूद उन्होंने तीन लाख रुपये अग्रिम भुगतान करके 13 लाख रुपये की तय राशि में इस सोसायटी में दो फ्लैट बुक किये थे। उनसे वादा किया गया था कि उन्हें तीन महीने के भीतर दोनों फ्लैट मिल जाएँगे। हालाँकि जब समय-सीमा के बाद भी वादा किये गये फ्लैट नहीं मिले, तो अली को एहसास हुआ कि बिचौलियों ने उसे धोखा दिया है। झुग्गीवासियों के लिए फ्लैट्स की पेशकश करके लोगों को धोखा देने वाले दलालों की अधिकारियों से साँठगाँठ वाले इस भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए उन्होंने एक व्हिसल-ब्लोअर के रूप में ‘तहलका’ से संपर्क किया। ‘मैंने अपनी पत्नी और बेटी के नाम पर दो फ्लैट बुक किये और तीन लाख रुपये अग्रिम भुगतान रिश्वत के रूप में दिये। लेकिन जब निर्धारित समय के बाद फ्लैट्स की डिलीवरी नहीं हुई और बिचौलिये और पैसे माँगने लगे, तो मुझे संदेह हुआ कि मेरे साथ धोखा हुआ है। तभी मैंने इन दोषियों को बेनक़ाब करने का फैसला किया।’ – अली जान ने बताया।
अली जान की मदद से ‘तहलका’ के रिपोर्टर ने दलालों के साथ पहली बैठक नोएडा में की। ‘तहलका’ रिपोर्टर को अली ने अपने फ्लैट्स के लिए अली की ओर से रिश्वत की बक़ाया राशि का भुगतान करने के लिए तैयार हुए एक व्यवसायी के रूप में पेश किया। दो बिचौलिये- संजय और अल्वी ‘तहलका’ रिपोर्टर के साथ उन्हें व्यवसायी समझकर बैठक के लिए आये। संजय ने हमारे ख़ुफ़िया कैमरे के सामने स्वीकार किया कि ये फ्लैट कालकाजी में तीन झुग्गी समूहों- नवजीवन, भूमिहीन और जवाहर शिविरों के निवासियों के पुनर्वास के लिए हैं। उसने बताया कि वह धोखे से नक़ली काग़ज़ बनवाकर अली जान को नवजीवन झुग्गी बस्ती का निवासी साबित कर देगा, जिससे उसे एक फ्लैट मिल जाएगा। संजय ने यह भी पुष्टि की कि ये फ्लैट बिक्री के लिए नहीं हैं और इन्हें बेचना अवैध है। हालाँकि उसने कुछ सरकारी अधिकारियों से अपनी साँठगाँठ का दावा किया, जिनके पास कुछ फ्लैट हैं और वे उन्हें उन चुनिंदा लोगों के समूह को बेचने के इच्छुक हैं, जिन पर उन्हें भरोसा हो। संजय ने बताया कि ‘इस तरह हम इन फ्लैट्स को एक तय क़ीमत पर बेच रहे हैं।’
संजय : ये जो झुग्गी-झोंपड़ी वाले हैं ना…।
रिपोर्टर : झुग्गी-झोंपड़ी वालों को बसाने के लिए?
संजय : हाँ; अब उनसे ज़मीन लिया जा रहा है। अब हम जानकार लोग हैं ना पीए का, हम कुछ अपने पास रखते हैं। बाहर निकाल देंगे, तो कुछ पैसा बन जाएगा। तो हम लोग उनके साथ जुड़कर के…, उन्होंने मेरे को ये बोला कि कुछ ख़ास लोग हों, उनको दिला सकते हो। क्यूँकि ये चीज़ें सबके लिए नहीं हैं।
रिपोर्टर : ये आपको किसने बोला?
संजय : जिनके थ्रू हमारा काम हो रहा है।
रिपोर्टर : xxxx के थ्रू?
संजय : हाँ; xxxx के थ्रू हमारा काम हो रहा है, तो उन्होंने बोला- सबके लिए नहीं है। कुछ ख़ास लोग हों; क्यूँकि बेचने के लिए नहीं हैं ये। लीगल तो हैं नहीं, बेचने के लिए। कुछ ख़ास लोग हों, तो उनको हम काम करा सकते हैं; तो उसी बात का पैसा है।
रिपोर्टर : अच्छा; क्यूँकि ये मकान बेचने के लिए तो होते नहीं हैं?
संजय : और अच्छी बात ये है कि इनके नाम से हो करके मिल रहा है। साबित करके दिया जा रहा है कि इनका भी वहीं खाता है।
रिपोर्टर : मतलब, इनका मकान वहाँ से तोड़ा जा रहा है?
संजय : जैसे, जो झुग्गी-झोंपड़ी तोड़ी जा रही है ना! उसमें साबित करके मिलेगा कि इनका भी है।
रिपोर्टर : मतलब, अली भाई का भी आप साबित करोगे कि झुग्गी-झोंपड़ी में इनका घर था?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : ये कैसे कर दोगे घर तो था नहीं है इनका?
संजय : नहीं था ना सर! अभी पुराना रिकॉर्ड चल रहा है। 2005 का रिकॉर्ड चल रहा है, तो वो लोग अपने रिकॉर्ड में साबित करेंगे।
रिपोर्टर : झुग्गी-झोंपड़ी कौन-सी है, जो तोड़ी गयी?
संजय : नवजीवन कैम्प की अभी टूटेगी।
रिपोर्टर : टूटी नहीं है अभी? …टूटेगी?
संजय : हाँ; टूटेगी। आधा टूटी है। आधा टूटेगी। हो तो बहुत पहले जाता काम; लेकिन उन लोगों ने धरना डाल दिया, इस चक्कर में लेट हो गया सारा काम।
रिपोर्टर : इनका कहाँ शो करोगे आप नवजीवन में ही?
संजय : नवजीवन में।
‘तहलका’ रिपोर्टर के यह पूछे जाने पर कि वह (दलाल) उन्हें (रिपोर्टर को) फ्लैट के लिए पात्र बनाने के लिए उनको एक झुग्गी निवासी के रूप में कैसे दिखाएँगे? संजय ने कहा कि, चूंकि आप एक करदाता हैं और आपके वित्तीय लेनदेन आधिकारिक रिकॉर्ड में हैं, इसलिए वह इसके बजाय मेरे (रिपोर्टर के) भाई या बहन को ग़लत तरीक़े से पंजीकृत कर देगा। संजय ने कहा कि आपकी तरह आपके भाई या बहन कर (टैक्स) का भुगतान नहीं करते या उतना भी नहीं करते, जितना आप करते हो, जो उन्हें (मेरे भाई या बहन को) एक झुग्गी निवासी के रूप में साबित करके उनके नाम पर फ्लैट सुरक्षित करने के लिए काफ़ी है।
रिपोर्टर : आप मुझे झुग्गी-झोंपड़ी वाला कैसे बता दोगे?
संजय : आपको नहीं, आपके फैमिली मेंबर को।
रिपोर्टर : मेरे फैमिली मेंबर को भी झुग्गी-झोंपड़ी का कैसे साबित कर दोगे?
संजय : जैसे आपका घर यहाँ पे है, आपका कोई भाई है, बहन है, वो रह सकते हैं। वो तो नहीं भर रहे हैं टैक्स इतना। वो लोग इतना नहीं, जितना आप भर रहे हो टैक्स। और झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाला टैक्स नहीं पे करता है। सब कुछ पॉसिबल है सर!
‘तहलका’ रिपोर्टर ने संजय से पूछा कि अगर वह उन्हें झुग्गी बस्ती का निवासी साबित करने में असफल रहा, तो क्या होगा? और क्या मैं फ्लैट में निवेश किया गया पैसा खो दूंगा? तब संजय ने यह कहकर रिपोर्टर को आश्वस्त किया कि सरकारी अधिकारी सावधानी से काम करते हैं, इसलिए ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। उसने बताया कि अधिकारियों की संलिप्तता के कारण सोच-समझकर काम करता है, इसलिए पैसे खोने की संभावना बहुत कम होती है।
रिपोर्टर : नहीं हो पाया साबित, तो पैसे डूब गये ना?
संजय : मतलब ही नहीं होता सर! सरकारी अधिकारी जो होता है ना! कोई भी क़दम उठाता है, उसमें चार बार पहले सोचता है। ठीक है सर!
फिर संजय ने ‘रेड पेपर’ के बारे में बताया। उसके अनुसार, सरकार द्वारा जारी किया गया यह दस्तावेज़ महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि यह सोसायटी में फ्लैट के लिए पात्रता साबित करता है। उसने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि उन्हें (नक़ली ग्राहक यानी रिपोर्टर को) निश्चित रूप से फ्लैट मिलेगा; क्योंकि वे (दलाल) केवल चुनिंदा लोगों को फ्लैट बेच रहे हैं।
संजय : एक बार कोई पेन चल गया ना सरकारी अफ़सर का, तो काम होना-ही-होना है। नहीं तो ऐसा हो नहीं सकता, पहली बात। दूसरी बात, जो लाल वाला पेपर आपके पास आ गया ना सर!…।
रिपोर्टर : लाल वाला?
संजय : रेड पेपर एक तरह से कार्ड है, जिसमें फोटो भी होता है बंदे का। गवर्नमेंट का मोहर भी होता है। xxxx का पेपर होता है। ये पेपर आ गया ना जब आपके पास, तो किसी का हो या न हो, आपका ज़रूर होगा। क्यूँकि जो भी करवा रहा है ना! उसको डर है, कल को मेरा नाम ख़राब हो सकता है। मैं तो इतना ही तसल्ली करवा सकता हूँ कि आपका काम 100 पर्सेंट होगा, इसमें दो-राय नहीं है। क्यूँकि हम लोग ज़्यादा लोगों को बेचे नहीं हैं। कुछ ख़ास लोगों को दिया है।
संजय अब लाल काग़ज़ के बारे में विस्तार से बताने लगा। उसके अनुसार, यह अधिकारियों द्वारा जारी किया जाता है और इंगित करता है कि धारक 2005 से पहले झुग्गी बस्ती का निवासी है। इसके आधार पर धारक झुग्गीवासियों के लिए बने फ्लैट के लिए पात्र है। संजय ने दावा किया कि लाल काग़ज़ की क़ीमत 35 लाख रुपये है। उसने आश्वासन दिया कि यदि फ्लैट सुरक्षित नहीं है, तो 35 लाख रुपये वापस कर दिये जाएँगे। हालाँकि ‘तहलका’ अपनी ओर से इस दस्तावेज़ की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं कर रहा है और न ही कर सकता है।
संजय : सर! रेड पेपर जो है ना! वो 2005 के बैक डेट से दिखाएगा कि आपके वहाँ सब कुछ थे; वो 35 लाख का पेपर है, अगर नहीं हुआ तो।
रिपोर्टर : वो कहाँ दिखाएगा संपत्ति हमारी?
संजय : स्लम में। उसी से और उस पेपर की वैल्यू सरकार की नज़र में 35 लाख है। अगर मान के चलो, सबको अलॉट हो गया और आपका नहीं हुआ। लाल पेपर आपके पास है, आप चले जाओ लेने। या तो 35 लाख रिटर्न करेगी सरकार या तो जहाँ पर फ्लैट होगा, अलॉट कराएँगे। मुकर नहीं सकते।
संजय ने आश्वासन दिया कि यदि फ्लैट मिल गया और जाँच हुई, तो कोई दिक़्क़त नहीं होगी। उसने बताया कि एक बार जब सरकार किसी के नाम पर फ्लैट जारी कर देती है, तो वे (अधिकारी) आगे की जाँच नहीं करेंगे। इसके अतिरिक्त संजय और अल्वी दोनों ने क़ुबूल किया कि उन्होंने अली जान से रिश्वत के रूप में तीन लाख रुपये अग्रिम रूप से लिये हैं।
रिपोर्टर : एक बात बताओ, हमने ये फ्लैट ले लिया; कल को कोई जाँच बैठ गयी, सवाल उठ गया?
संजय : सर! कोई सवाल नहीं उठेगा।
रिपोर्टर : 25-30 फ्लैट जो हैं, वो कैसे उन लोगों को बिक गये, पैसे वाले लोगों को?
संजय : ऐसा कुछ नहीं होगा सर! गवर्नमेंट एक बार इश्यू कर देगी ना आपके नाम, पूछने नहीं आएगी कि आप क्या कर रहे हो उसमें। क्यूँकि वो आपको दे रही है। पाँच साल तक मेंटेनेंस फ्री रहेगा आपका, गवर्नमेंट की तरफ़ से।
रिपोर्टर : आप बताओ, आपने कैश कितना लिया अली साहिब से?
अल्वी : तीन लाख लिया।
रिपोर्टर : पूरा तीन लाख लिया?
अल्वी : नहीं; दो लाख लिया।
रिपोर्टर : दो लाख ऑनलाइन, एक लाख कैश? वैसे इस मामले में कोई ऑनलाइन देता नहीं है।
संजय : आपस की बात है, इसलिए लिया।
रिपोर्टर : देखो, अगर तीन लाख आपने इनसे लिया है, ठीक है। अगर कुछ काग़ज़-पत्री आपने दे दी होती, इन्हें एक भरोसा-सा हो जाता।
संजय : सर! उस पैसे का तो डाक्यूमेंटेशन हो गया। अब जो जाएगा, मैं इतना गारंटी कर सकता हूँ कि आप सिर्फ़ चार लाख रुपया ऑनलाइन करते हो, सिर्फ़ चार लाख ऑनलाइन में दिलवा दूँगा।
अब अल्वी और संजय ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि वे एक फ्लैट के लिए 6.5 लाख रुपये रिश्वत के तौर पर ले रहे हैं। अली ने दो फ्लैट बुक किये हैं, इसलिए उन्हें कुल 13 लाख रुपये चुकाने होंगे। लेकिन उन्होंने केवल तीन लाख रुपये का भुगतान किया है, इसलिए वे (संजय और अल्वी) अली से 10 लाख रुपये और माँग रहे हैं।
रिपोर्टर : तो इसमें हमें क्या करना है, ये बताइए?
संजय : पेमेंट चाहिए। ..इनका काम हो जाएगा।
रिपोर्टर : अभी तक कितना पेमेंट जा चुका है?
संजय : इनका पेमेंट दो चला गया है, अब पूरा पेमेंट देंगे तो..।
रिपोर्टर : कितना चला गया है?
अली : तीन लाख चला गया मेरा।
रिपोर्टर : टोटल आप कितना ले रहे हैं इनसे, एक फ्लैट का?
संजय : साढ़े छ: (6.5) के हिसाब से बताया आपको।
रिपोर्टर : साढ़े छ:। मतलब, टोटल इनको 13 लाख देना है, दो अपार्टमेंट का?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : तीन जा चुका है, 10 बचता है?
दो फ्लैट बुक करने वाले अली जान को कुल 13 लाख रुपये का भुगतान करना होगा; लेकिन उन्होंने अब तक केवल तीन लाख रुपये का भुगतान किया है। दलालों ने उनसे (अली से) कहा कि उन्हें फ्लैट सुरक्षित करने के लिए पूरा भुगतान करना होगा। जब अली की ओर से दो फ्लैट्स के लिए 13 लाख रुपये के निवेश के बाद होने वाले लाभ के बारे में दलालों से पूछा गया, तो संजय ने आश्वासन दिया कि प्रत्येक फ्लैट को बाद में 15 लाख रुपये में बेचा जा सकता है, जिससे पर्याप्त लाभ होगा। इसका तात्पर्य यह है कि संजय के मुताबिक, अभी निवेश करने से भविष्य में अच्छा लाभ हो सकता है।
रिपोर्टर : मान लीजिए, मैं इनकी तरफ़ से बाक़ी का 10 लाख रुपया दे दूँ, मेरा उसमें क्या फ़ायदा है?
संजय : जी, आपका क्या फ़ायदा? ये आप इनसे पूछिए।
रिपोर्टर : ये तो ये कहेंगे, आप उसको ज़्यादा पैसों में बेच दीजिए।
संजय : बिक ही जाएगा। वो ज़्यादा में बिक जाएगा। दो-तीन महीने रुक कर अगर 15 में भी बेचोगे, तो बिक जाएगा।
रिपोर्टर : दोनों 15 में?
संजय : नहीं, एक ही 15 लाख में।
अब संजय 10 लाख रुपये नक़द लेने पर अड़ा रहा और चेक से भुगतान लेने से इनकार कर दिया। उसने स्पष्ट किया कि पूरी राशि का भुगतान एक ही बार में किया जाना चाहिए। उसने दूसरे तरीक़े से (चेक आदि से) भुगतान की जगह नक़द भुगतान करने को प्राथमिकता देते हुए बक़ाया देने पर ज़ोर दिया।
रिपोर्टर : 10 लाख का आप पेमेंट लोगे, तो कैसे लोगे? …इंस्टॉलमेंट पर या वन टाइम?
संजय : वन टाइम।
रिपोर्टर : पूरे 10 लाख, कैश?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : चेक नहीं चलेगा?
संजय : नहीं सर! चेक नहीं चलेगा।
इस बिंदु पर मोइनुद्दीन अल्वी ने टिप्पणी की कि हालाँकि ये गतिविधियाँ अवैध हैं; लेकिन इन्हें अक्सर ईमानदार और पारदर्शी तरीक़े से किया जाता है। संजय ने कहा कि फ्लैट कुछ सरकारी अधिकारियों की सहायता से बेचे जा रहे हैं, जिनके बिना वे इस काम को पूरा नहीं कर पाएँगे।
अल्वी : एक बात मैंने भी कहनी है आपसे, …ये जो दो नंबर का काम है, ये बड़ी ईमानदारी से होता है।
रिपोर्टर : नहीं, ईमानदारी से होता है। लेकिन कई बार दो नंबर में भी बेईमानी हो जाती है।
संजय : नहीं; एक बात जानते हैं? हर व्यक्ति को अपनी नौकरी का डर होता है।
रिपोर्टर : तो आपकी तो किसी की नौकरी नहीं है?
अल्वी : हमारी किसी की नहीं है, मगर जिनके लिए हम काम करा रहे हैं, उनकी तो है।
रिपोर्टर : xxxx वालों की?
संजय : ऑब्वियसली सर!
रिपोर्टर : ये xxxx ने बनवाया है?
संजय : उनके इन्वॉल्वमेंट के बग़ैर हम कैसे करा सकते हैं?
अब अल्वी ने ख़ुलासा किया कि उन्होंने (संजय और अल्वी ने) इसी सोसायटी में 10 फ्लैट्स बेचे हैं। दलालों के दावों को सत्यापित करने के लिए ‘तहलका’ रिपोर्टर ने संजय से कहा कि वह उन अन्य ग्राहकों से उन्हें मिलवाये, जिन्हें उनके फ्लैट के आवंटन पत्र प्राप्त हुए हैं। जवाब में संजय ने रिपोर्टर को बाद की बैठक में मोहम्मद जमील से मिलवाया और दावा किया कि जमील ने एक फ्लैट के लिए 6.50 लाख रुपये की पूरी राशि का भुगतान किया था; लेकिन अभी भी फ्लैट के मिलने का इंतज़ार कर रहा है।
रिपोर्टर : कितने फ्लैट ऐसे आपने दिलवा दिये?
अल्वी : मेरे ख़याल में दस एक करवा दिये।
संजय : मैं जमील भाई को डायरेक्ट मिलवा दूँगा, आपको; …उसका लाल पेपर भी देख सकते हैं आप। और इनका भी लाल पेपर आ जाएगा, जमील भाई का और इनका सबका इकट्ठा आएगा; …फ्लैट इकट्ठा आएगा।
रिपोर्टर : जमील भाई का नहीं आया अभी?
संजय : पेपर आ जाएगा, फ्लैट नहीं मिला।
रिपोर्टर : उनसे कितना पैसा लिया?
संजय : उनसे पूरा पैसा हो गया।
रिपोर्टर : एक ही लिया है?
संजय : क्या चीज़?
रिपोर्टर : एक ही फ्लैट लिया है? पैसा कितना?
संजय : साढ़े छ: (6.5 लाख)।
रिपोर्टर : साढ़े छ:, पूरा?
अब संजय ने अपने लिए एक फ्लैट सुरक्षित करने के लिए मोहम्मद जमील को झुग्गी निवासी के रूप में धोखाधड़ी से सूचीबद्ध करने की बात स्वीकार की। उसने आगे ख़ुलासा किया कि जमील ने झुग्गी में न रहने के बावजूद प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक और फ्लैट हासिल किया था। यह फ्लैट प्राप्त करने के लिए निवास की शर्तें पूरी न होने पर भी हेरफेर किया गया।
रिपोर्टर : एक इसमें और ले लिया है उन्होंने, पीएम आवास में।
संजय : हाँ; एक और ले लिया है।
रिपोर्टर : झुग्गी में नहीं रहते वो?
संजय : झुग्गी में कहाँ रहेंगे वो…!
संजय ने अब ख़ुलासा किया कि फ्लैट आधिकारिक तौर पर बिक्री के लिए नहीं हैं; फिर भी सरकारी अधिकारी 25-30 फ्लैट्स पर क़ब्ज़ा किये हुए हैं और उन्हें चयनित बिचौलियों के माध्यम से बेच रहे हैं। उसने कहा कि सभी अधिकारियों में फ्लैट्स के बदले रिश्वत के रूप में मिला पैसा वितरित होता है। अब केवल कुछ ही फ्लैट बचे हैं। ज़ाहिर है इससे इन फ्लैट्स के आसपास भ्रष्टाचार और वित्तीय हेराफेरी के नेटवर्क का पता चलता है।
रिपोर्टर : अच्छा; सरकारी पैसा उसमें 1.47 है?
संजय : आरएस (रुपीज) 1.47 लाख की डीड जाती है। और डेढ़ लाख, …रुपीज 1.5 ऐसे ही लोग लेते हैं; उसका लेते हैं, जिसका ज़मीन हो।
रिपोर्टर : ये किन-किन लोगों में जाता है पैसा?
संजय : ये ऊपर से नीचे तक जाता है। इनके पास 15-20 फ्लैट बचे हैं; …ज़्यादा नहीं हैं। और वही सब वो पेमेंट ऑनलाइन करवा देंगे सारा।
रिपोर्टर : हम जैसे और भी लोग हैं लेने वाले?
संजय : नहीं सर! ये बेचने के लिए नहीं हैं।
रिपोर्टर : बेचने के लिए तो नहीं हैं, पर फिर भी बेचे जा रहे हैं ना!
संजय : सरकारी आदमी के हाथ में 25-30 फ्लैट था।
रिपोर्टर : अच्छा! 25-30 थे। सब नहीं हैं?
संजय : जिसमें से क़रीबन पाँच-छ: निकल गये हैं। 23-24 और बचे हुए हैं। ठीक है ना! …वो जैसे ही निकलेंगे, उसी का पैसा खाएँगे ये लोग।
शुरुआती रिश्वत देने के बाद अली जान को जल्द ही एहसास हुआ कि उसे दो बिचौलियों द्वारा धोखा दिया जा रहा है। नतीजतन, उसने आगे का भुगतान रोक दिया। क्योंकि उसे न तो लाल काग़ज़ मिला और न ही वह फ्लैट मिला, जिसका उनसे वादा किया गया था। इस बीच मोहम्मद जमील, जिसने अपने फ्लैट के लिए पूरी रक़म का भुगतान करने का दावा किया था; को केवल एक लाल काग़ज़ मिला; लेकिन कोई फ्लैट नहीं मिला।
जमील ने स्वीकार किया कि वह कभी झुग्गी-झोंपड़ी में नहीं रहता था, फिर भी रिश्वत देने के बाद उसे जो लाल काग़ज़ मिला, उसमें सर्वेक्षण संख्या का ग़लत संकेत दिया गया है। उसमें दिखाया गया है कि वह 2005 से पहले से झुग्गी-झोपड़ी में रहता रहा है। इस तरह संजय कुमार पंडित और मोइनुद्दीन अल्वी, दोनों बिचौलिये धनी लोगों को झुग्गीवासियों के लिए बने फ्लैट बेचकर लोगों को धोखा देने का काम कर रहे हैं।
अब दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के लिए हस्तक्षेप करते हुए झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए कालकाजी एक्सटेंशन परियोजना के आसपास बने फ्लैट्स में हो रहे कथित भ्रष्टाचार के मुद्दों को उजागर करके भ्रष्टाचारियों और दलालों को सज़ा दिलाने का समय आ गया है। क्योंकि आगे के शोषण को रोकने और प्रभावित लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए यह हस्तक्षेप आवश्यक है। मौज़ूदा समस्याएँ आवास क्षेत्र में कड़े नियमों के उल्लंघन के निरीक्षण और इसकी जवाबदेही की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर डालती हैं।