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आरबीआई का रेपो दर में कोई बदलाव नहीं, 4 फीसदी ही रखी

केंद्रीय रिजर्व बैंक ने इस बार भी रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है और रेपो दर चार फीसदी और रिवर्स रेपो दर 3.35 फीसदी पर ही रखी गई है। आरबीआई की  मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी की तीन दिन की बैठक की जानकारी शुक्रवार को सामने आई है जिसे लेकर गवर्नर शक्तिकांत दास ने घोषणा की।

दास ने इस मौके पर कहा – ‘आर्थिक सुधार के दृष्टिगत नीतिगत दरों में बदलाव नहीं किया गया है। जब तक जरूरी होगा, तब तक यही रुख बनाए रखा जाएगा।’ बता दें   आरबीआई ने अप्रैल की पिछली बैठक में भी प्रमुख ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया था। इसे अब बरकरार रखा गया है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि वित्तवर्ष 2021-22 के लिए जीडीपी का असल अनुमान 9.5 फीसदी रखा गया है। उन्होंने कहा – ‘रिजर्व बैंक ने चालू माली साल में आर्थिक वृद्धि के अनुमान को 10.5 फीसदी से घटा कर 9.5 फीसदी कर दिया है। माली साल  2021-22 के लिए सीपीआई इंफ्लेशन (कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स या खुदरा मुद्रास्फीति) का अनुमान 5.1 फीसदी किया गया है।’

दास ने अर्थव्यस्था के लिए कुछ कारकों को उम्मीद की किरण बताते हुए कहा – ‘इस बार सामान्य मानसून का अनुमान, कृषि क्षेत्र की क्षमता और ग्लोबल रिकवरी के चलते घरेलू आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ सकती है।’
आरबीआई ने इस मौके पर बड़ी जानकारी देते हुए बताया कि कोविड-19 की दूसरी लहर के असर को कम करने के लिए 15,000 करोड़ की अलग लिक्विडिटी विंडो खोली खोली जा रही है। इसके तहत बैंक होटल-रेस्टोरेंट, पर्यटन क्षेत्र आदि को क़र्ज़ दिया जा सकेगा और यह योजना 31 मार्च, 2022 तक लागू रहेगी। यही नहीं एमएसईएम को और सपोर्ट देने के लिए सिडबी को 16,000 करोड़ की लिक्विडिटी फैसलिटी देने का फैसला किया गया है। इसके अलावा आरबीआई 17 जून को 40 हजार करोड़ रुपये की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करेगा जबकि दूसरी तिमाही में 1.20 लाख करोड़ रुपये की प्रतिभूतियाँ खरीदी जाएंगी।

दिल्ली में आक्सीजन की कमी से जान गंवाने पर 5 लाख मुआवजा देगी केजरीवाल सरकार  

दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शुक्रवार केंद्र शासित प्रदेश में कोविड-19 के चलते आक्सीजन की जबरदस्त कमी से जान गंवाने वाले मरीजों के परिजनों को मुआवजा देने का ऐलान किया है। सरकार ने कहा कि ऐसे सभी लोगों, जिनकी मौत आक्सीजन की कमी से हुई, को 5 लाख मुआवजा दिया जाएगा।

सरकार ने मुआवजे के मामले के निपटारे के लिए चार लोगों की एक कमेटी भी बना दी है। सरकार ने कहा कि ऑक्सीजन की कमी से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को 5 लाख का मुआवजा दिया जाएगा।

बता दें अप्रैल और उसके बाद मई में दिल्ली सहित देश के कुछ हिस्सों में आक्सीजन की भीषण किल्लत के चलते  दर्जनों लोगों ने सड़कों और अस्पतालों में जान गँवा दी थी, जिसे लेकर देश में जबरदस्त गुस्सा भी दिखा।

अब दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने मुआवजा देने की पहल की है।  सरकार ने कहा कि ऐसे सभी लोगों, जिनकी मौत आक्सीजन की कमी से हुई, को 5 लाख मुआवजा दिया जाएगा। इसके लिए 4 लोगों की कमेटी गठित कार दी गयी है जो सभी मामलों की वैधता की छानवीन करके मुआवजे की सिफारिश करेगी।

परिवहन व्यवस्था दुरस्त नही की गई तो, कोरोना पर काबू पाना होगा मुश्किल

 

अगर समय रहते दिल्ली में परिवहन व्यवस्था को सुचारू दिल्ली सरकार ने नहीं किया तो, आने वाले दिनों में यात्रियों को दिक्कत ही नहीं होगी। बल्कि कोरोना के संक्रमण बढ़ने का खतरा भी बढ़ जायेगा। दिल्ली के लोगों ने तहलका संवाददाता को बताया कि दिल्ली में कोरोना के मामले कम हो रहे है। खुशी की बात है। लेकिन सरकारी सिस्टम, खासकर परिवहन व्यवस्था लड़खड़ा रही है। जिसके चलते निजी बस वाले मजबूरी में यात्रियों से औने –पौने दाम वसूल रहे है। निजी मिनी बस में तो यात्रियों को ठूस-ठूस कर भर कर यात्रा करायी जा रही है।

ऐसा नहीं है कि पुलिस मामलें में अनभिज्ञ है। दिल्ली के निवासी और कोरोना पीड़ित रह चुके रामकिशन और इन्द्रजीत ने बताया कि कोरोना को रोकने में बसों में बढ़ती भीड़ को काबू पाना जरूरी है। ऐसे में सरकार को चाहिये कि परिवहन व्यवस्था ऐसी करें । ताकि किसी को बसों में आने-जाने में संक्रमण का खतरा ना हो। क्योंकि रामकिशन और इन्द्रजीत भी बसों में यात्रा करते हुये ही कोरोना की चपेट में आये थे और ऐसे तामाम लोग है। बसों और भीड़भाड़ वाले इलाके में रहने के कारण कोरोना की चपेट में ही आये है। सरकार को इस मामलें में कड़े कोरोना गाइड लाइन के पालन कराने होगे। तब जाकर कोरोना को काबू पाया जा सकता है। अन्य़था सब यूं ही व्यर्थ जायेगा।

 

अमरिंदर ने 3 आप विधायकों को पार्टी में शामिल करवा दिखाई ताकत, कल मिलेंगे समिति से

एक तरफ पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह और उनके डिप्टी रहे नवजोत सिंह सिद्धू के बीच खींचतान को सुलटाने की पार्टी आलाकामन कोशिश कर रही है, वहीं कैप्टेन गुरुवार को दिल्ली पहुंचे। वे शायद कल सोनिया गांधी की गठित की तीन सदस्यीय समिति से मिलेंगे, लेकिन आज उन्होंने पंजाब आम आदमी पार्टी (आप) के तीन नाराज विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की। पिछले चार दिन से कांग्रेस दिल्ली में पंजाब संगठन में चल रही लड़ाई को हल करने के अलावा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर बारी-बारी सभी विधायकों से चर्चा कर रही है।

केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को आज तब बड़ा झटका लगा जब उसके तीन विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। इनमें वरिष्ठ नेता सुखपाल सिंह खैरा भी शामिल हैं जिन्हें पिछले विधानसभा से पहले तक ‘आप’ का मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था, लेकिन बाद में उनकी दिल्ली के नेताओं के व्यवहार को लेकर खींचतान हो गयी थी। खैरा भोलथ से विधायक चुने गए थे।

खैरा के साथ ही खैरा के अलावा कांग्रेस में शामिल होने वाले आम आदमी पार्टी के दो और मौर के विधायक जगदेव सिंह कमलू और भदौर के विधायक पिरमल सिंह धौला भी शामिल हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने तीनों विधायकों का पार्टी में स्वागत किया। सीएम अमरिंदर सिंह ने पत्नी परनीत कौर के साथ दिल्ली रवाना होने से ऐन पहले खैरा, कमलू और धौला को पार्टी में शामिल करवाया और कुछ देर बाद पार्टी के आधिकारिक अकाऊंट पर कांग्रेस ने इसकी जानकारी साझा की।

कैप्टेन ने दिल्ली आने से पहले यह दांव बहुत सोच समझकर चला है और यह जताने की कोशिश की है कि उन्हें हलके में नहीं लिया जा सकता। जाहिर है पंजाब कांग्रेस में इससे उनके समर्थक विधायकों की संख्या भी बढ़ी है। नवजोत सिंह सिद्धू से चल रही खींचतान के बीच इसे कैप्टेन का बड़ा दांव माना जा सकता है। हालांकि, आलाकमान जिस गंभीरता से पंजाब के मसले पर सुनवाई कर रहा है उससे कैप्टेन गुट पर भी ख़ासा दबाव है।

वैसे खैरा पहले कांग्रेस में ही थे। लेकिन 2015 में वे आप में चले गए थे। जब 2017 में विधानसभा के चुनाव हुए तो वे भोलथ से चुनाव जीत गए। उन्हें इससे पहले आप की तरफ से मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाने लगा था, लेकिन बाद में एक स्टिंग और अन्य कारणों से वे पार्टी से खफा हो गए। जनवरी 2019 में  वे खुले रूप से आप के खिलाफ हो गए और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद खैरा ने अपनी पार्टी ‘पंजाब एकता पार्टी” का गठन कर लिया।

उधर पार्टी का एक वर्ग सोनिया गांधी की समिति के सामने लगातार तर्क दे रहा है कि अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी नहीं जीत सकती। पंजाब में अफसरशाही के हावी होने और आम लोगों से सरकार के कट जाने के आरोप भी इस धड़े की तरफ से लगाए गए हैं। दलितों के सरकार में कम प्रतिनिधित्व को लेकर भी बागियों ने आवाज उठाई है।

इसके अलावा साल 2015 में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के दौरान गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और पुलिस फायरिंग से जुड़े मामलों में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने में सरकार की नाकामी को लेकर भी अमरिंदर सरकार पर पार्टी के लोग सवाल उठा रहे हैं। पार्टी के नाराज विधायकों को आशंका है कि ग्रामीण स्तर पर कांग्रेस इन चार सालों में कमजोर हुई है और अमरिंदर के रहते पार्टी को अगले साल चुनाव में इसका नुक्सान उठाना पड़ेगा।

उधर अमरिंदर समर्थक अपने नेता के हक़ में दलीलें दे रहे हैं। उनका कहना है कि अमरिंदर के अलावा पार्टी के पास ऐसा कोई नहीं जो चुनाव में पार्टी को जिता सके। नवजोत सिंह सिद्धू का मसला पार्टी में बहुत अहम है और कांग्रेस आलाकमान उन्हें किसी सूरत में खोना नहीं चाहती। ऐसे में सोनिया की बनाई तीन सदस्यीय कमेटी की सिफारिशें बहुत महत्वपूर्ण होंगी। अभी तक तो ऐसा ही लग रहा है कि सिद्धू को कोई न कोई महत्वपूर्व पद ज़रूर दिया जाएगा।

विनोद दुआ के खिलाफ देशद्रोह का केस खारिज, पत्रकारों को संरक्षण जारी रहेगा

सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ पर देशद्रोह का केस रद्द कर दिया। विनोद दुआ पर अपने यूट्यूब चैनल में मोदी सरकार पर कुछ टिप्पणियों के लिए हिमाचल प्रदेश में भाजपा नेता ने देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया था। उन्होंने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने प्राथमिकी और कार्यवाही को रद्द कर दिया। 6 अक्टूबर 2020 में जस्टिस ललित और जस्टिस सरन की पीठ ने विनोद दुआ, हिमाचल सरकार और शिकायतकर्ता के तर्क सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सर्वोच्च अदालत ने 1962 के केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस का हवाला देकर दुआ को दोषमुक्त करते हुए कहा कि केदारनाथ सिंह के फैसले के अनुसार हर पत्रकार की रक्षा की जाएगी। यानी पत्रकारों को संरक्षण मिलता रहेगा।

दरअसल, 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ बनाम बिहार राज्य के वाद में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी। अदालत ने कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर कमेंट करने से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। राजद्रोह का केस तभी बनेगा जब कोई भी वक्तव्य ऐसा हो जिसमें हिंसा फैलाने की मंशा हो या फिर हिंसा बढ़ाने के कारक हों।

देशद्रोह के मुकदमे पर काफी समय से विवाद चल रहा है। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र को दो तेलुगु चैनल के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाते हुए उनके खिलाफ देशद्रोह का केस रद्द किया था। इतना ही नहीं, सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि अब समय आ गया है कि देशद्रोह की सीमाएं तय की जाएं कि यह कहां पर लगेगा और कहां नहीं लगेगा।

पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर एक अर्जी भी दाखिल की गई थी और राजद्रोह कानून पर सवाल उठाया गया था। तब सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया गया था कि राजद्रोह से संबंधित कानून का सरकार दुरुपयोग कर रही है। याचिकाकर्ता ने तब कहा था कि संवैधानिक पीठ ने राजद्रोह मामले में व्यवस्था दे रखी है बावजूद इसके कानून का दुरुपयोग हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट में कॉमनकॉज की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने 1962 ने केदारनाथ बनाम बिहार राज्य के मामले में जो व्यवस्था दे रखी है उसे पालन किया जाना चाहिए और इसको लेकर सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए।

पूर्व जस्टिस लोकुर ने भी जताई थी चिंता

14 सितंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा था कि विचार अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाने के लिए देशद्रोह जैसे कानून का इस्तेमाल किया जा रहा है जो चिंता का विषय है। फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड ज्यूडिशियरी विषय पर आयोजित कार्यक्रम में लोकुर ने ये बात कही थी। विचार अभिव्यक्ति के मामले में पत्रकारों को जेल में डालने के मामले का हवाला दिया था और कहा था कि विचार अभिव्यक्ति के मामले में अनुमान लगाया जा रहा है और गलत संदर्भ में देखा जा रहा है, जो गंभीर चिंता का विषय है।

भाजपा नेता ने दुआ पर ये आरोप लगाए थे

शिमला में भाजपा नेता अजय श्याम की ओर से कराई गई एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि ‘विनोद दुआ शो’ के दौरान पत्रकार ने जो टिप्पणी की थीं, वो सांप्रदायिक नफरत फैलाने और शांति भंग कर सकती थीं। दुआ का ये शो 30 मार्च 2020 को स्ट्रीम हुआ था। विनोद दुआ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (देशद्रोह या राजद्रोह), धारा 268 (सार्वजनिक उपद्रव), धारा 501 (अपमानजनक चीजें छापना) और धारा 505 (सार्वजनिक शरारत करने का इरादा रखने) के आरोपों में मुकदमा दर्जकिया यगा था। दुआ पर आपदा प्रबंधन कानून के तहत भ्रामक जानकारी और झूठे दावे करने के भी आरोप लगे थे।
मामले में दिल्ली पुलिस ने भी इस वीडियो के लिए विनोद दुआ के खिलाफ 4 जून को शिकायत दर्ज की थी। हालांकि, इस एफआईआर पर दिल्ली हाई कोर्ट ने 10 जून को रोक लगा दी थी।

बीमारी को छिपाना घातक हो सकता है

लोगों में डर इस क़दर है कि आज भी कोरोना के नाम पर इलाज कराने से आम जनता कतरा रही है। दिल्ली एनसीआर में तो आलम ये है कि कोरोना को लेकर लोग चर्चा तक करने डरते है। ऐसे ही कई मामले तहलका संवाददाता को लोगों ने बताये । दिल्ली के नजफगढ़ में जब कोरोना की लहर थी । तब लोगों को हल्का भी बुखार चढ़ा तो लोगों ने घरेलू उपचार करके काढ़ा और गरारे करके अपना उपचार किया। लेकिन अस्पताल जाने से कतराते रहे है। वे ही मरीज अस्पतालों में गये है। जिन्हें कोरोना के साथ आँक्सीजन की दिक्कत हुई है।

इस बारे दिल्ली के डाँक्टरों को कहना है कि कोरोना के नाम इलाज ना कराने की वजह ये है, कि कोरोना पीडित से सामाज के लोग कई महीनों तक दूरी बनाते है और गलत दृष्टि से देखते है। जिसके कारण लोग कोरोना होने पर चुपचाप घर में रहकर ही अपना इलाज करते है। जो कई बार घातक हो जाता है और जानलेवा भी हो जाता है। नेशनल मेडिकल फौरम के चैयरमेन डाँ प्रेम अग्रवाल का कहना है कि कोरोना को हल्कें में ना लें । कोरोना होने पर इलाज कराये ताकि समय रहते कोरोना से बचा जा सकें। क्योंकि कोरोना को सही मायने में हराने के लिये हमें समय पर ही उपचार लेना होगा। डाँ प्रेम अग्रवाल का कहना कि कई लोग बीमारी को छिपाकर खुद व अपने परिवार के लिये मुशीबत पैदा करते है।

डाँ पी के जोशी का कहना है कि कोरोना तो तब जायेगा जब लोग कोरोना से बचाब के तौर पर , अपनी बीमारी को छिपाये नहीं । उन्होंने कहा कि कोरोना में इलाज के साथ-साथ जागरूक होना होगा । मुंह में मास्क के साथ सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें।

सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीनेशन के लिए घोषित 35,000 करोड़ रुपये का केंद्र सरकार से मांगा हिसाब

देश के सर्वोच्च अदालत ने केंद्र की कोविड टीकाकरण नीति को लेकर सख्त टिप्पणी की है। सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड आदेश में नीति को प्रथम दृष्टया मनमानापूर्ण और  अतार्किक करार दिया गया है जिसके पहले दो चरणों में वैक्सीन मुफ्त में दी गयी और अब राज्यों और निजी अस्पतालों को 18-44 साल आयु वर्ग के लोगों से इसका शुल्क वसूलने की मंजूरी दे दी गयी है।

सर्वोच्च अदालत ने केंद्र को आदेश दिया है कि इसकी समीक्षा करे। अदालत ने कहा कि जब कार्यपालिका की नीतियां नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण करती हैं तो अदालतें खामोश नहीं रह सकतीं। कोविड टीकाकरण नीति का विस्तार से मूल्यांकन करने का प्रयास करते हुए सर्वोच्च अदालत ने केंद्र से कई जानकारियां तलब की हैं  और यह भी जानना चाहा कि टीकाकरण के लिए निर्धारित 35,000 करोड़ रुपये अब तक कैसे खर्च किए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस नीति से संबंधित तमाम दस्तावेज और फाइल नोटिंग उपलब्ध कराने को कहा है। अदालत ने पूछा कि वैक्सीनेशन के लिए आवंटित रकम से 18-44 वर्ष के लोगों को मुफ्त डोज क्यों नहीं दी जा सकती हैं। शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर पिछले कल अपलोड 31 मई के इस आदेश में उदारीकृत टीकाकरण नीति, केंद्र-राज्यों और निजी अस्पतालों के लिए टीके के अलग-अलग दाम, उनके आधार, ग्रामीण और शहरी भारत के बीच विशाल डिजिटल अंतर के बाद भी टीके के स्लॉट बुक कराने के लिए कोविन ऐप पर अनिवार्य पंजीकरण आदि को लेकर केंद्र के फैसले पर सख्त टिप्पणी की गयी है।

अदालत ने सरकार से सवालों पर दो सप्ताह में जवाब मांगा है। न्यायालय ने कहा कि वह नागरिकों के जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना जारी रखेगा और यह देखेगा कि जो नीतियां हैं, वे तार्किकता के अनुरूप हैं या नहीं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एलएन राव और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की एक विशेष पीठ ने कहा कि यह कहना सही नहीं होगा कि शक्तियों का पृथककरण संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है और नीति-निर्माण कार्यपालिका के एकमात्र अधिकार क्षेत्र में है।

दिल्ली में एमसीडी चुनावों की तैयारी शुरू

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव में भले ही अभी 10 महीनें से कम का समय बचा है। लेकिन दिल्ली की सियासत में हलचल तेज हो गयी है। दिल्ली में कोरोना का कहर, मजदूरों का पलायन और गिरती अर्थ व्यवस्था को दिल्ली कांग्रेस भुनाने के लिये रात –दिन किये हुये है। वहीं भाजपा दिल्ली में चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था के लिये दिल्ली की आप पार्टी की सरकार और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के जिम्मेदार मान रहे है। जबकि आप पार्टी का कहना है कि दिल्ली सहित पूरे देश में चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था और आँक्सीजन की कमी के लिये भाजपा की केन्द्र सरकार जिम्मेदार है।

इन्ही तीनों पर पार्टियों को लेकर दिल्ली जनता ने तहलका संवाददाता को बताया कि दिल्ली में कोरोना काल में जो भी हुआ है। वो कुदरत के कहर के साथ –साथ सियासतदांनों की नाकामियों का नतीजा है। जिसके कारण दिल्ली तहस-नहस हो गयी है। दिल्ली के लोगों ने बताया कि आज जो दिल्ली के स्थानीय नेता सेवाभाव दिखा रहे है। वो आगामी एमसीडी चुनाव की आहट की वजह से है। जब दिल्ली में आँक्सीजन और बैड की कमी थी । तब कोई सियासी नेता ना तो सुनने को राजी था। ना ही मदद के लिये तैयार था। जिसके कारण लोगों काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है।

दिल्ली में राजनीतिक दल से जुड़े नेता रामस्वरूप मिश्रा ने बताया कि कोरोना को अगर किसी ने हराया है। तो दिल्ली की जनता ने और डाँक्टरों की कार्यकुशलता ने। जिसके कारण आज दिल्ली में लोग राहत की सांस ले रहे है। रामस्वरूप का दावा है कि अगर सियासी पार्टी चुनावी तालमेल को देखकर लोगों की सेवा करने का ढौंग करेगीं तो आने वाले दिनों में फिर से कोरोना की रफ्तार बढ़ने लगेगी। क्योंकि चुनाव की तैयारी में लगे स्थानीय नेता अब कोरोना गाइड लाइन के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे है।

यूपी के गोंडा में सिलेंडर फटने से गिरी ईमारत में 8 की मौत

उत्तर प्रदेश में सिलेंडर फटने के एक हादसे में 8 लोगों की मंगलवार देर रात मौत हो गयी। यह सभी एक ही परिवार के थे। राज्य के गोंडा जिले के गाँव में सिलेंडर फटने से दो मंजिला इमारत की छत गिर गयी जिससे यह लोग उसके नीचे दब गए।
रिपोर्ट्स के मुताबिक गोंडा जिले के वजीरगंज क्षेत्र में टिकरी पंचायत के ठठेर पुरवा गांव में बीती रात की यह घटना है। बचाव दल ने घटनास्थल पर आठ शव मलबे से निकाले हैं। उनके अलावा 14 लोग घायल हुए हैं जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है। धमाका इतना जबरदस्त था कि उसकी आवाज से इमारत हिल गयी और घर नीचे आ गिरी। घटना में घायल लोगों  को नवाबगंज जन स्वास्थ्य केंद्र में दाखिल किया गया है।
पुलिस के मुताबिक हादसे में जिन लोगों की जान गयी है उनमें तीन बच्चे और दो महिलाएं शामिल हैं। छत गिरने से 14 लोग उसमें फंस गए थे। सरकार ने घटना के कारणों की जांच के लिए आदेश दिए हैं। घायलों को प्राथमिक उपचार के बाद जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी नाजुक स्थिति वाले घायलों को लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर रेफर किया गया है।

बंगाल में सियासी तूफान

पश्चिम बंगाल में सीबीआई द्वारा सन् 2014 में किये गये एक स्टिंग मामले में टीएमसी के चार दिग्गज नेताओं की गिरफ़्तारी को लेकर नया सियासी तूफ़ान खड़ा हो गया है। दरअसल स्टिंग में पार्टी नेताओं को एक पत्रकार से कथित तौर पर रिश्वत लेते हुए दिखाया गया था, जो एक कारोबारी बनकर उनसे मिला था। केंद्रीय एजेंसी की इस कार्रवाई के समय पर सवाल उठता है कि आख़िर नवनिर्वाचित विधानसभा का सत्र बुलाये जाने से ऐन पहले ही गिरफ़्तारियाँ क्यों की गयीं? गिरफ़्तारियाँ करने से पहले विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति तक नहीं ली गयी। वैसे भी जिन जन-प्रतिनिधियों को गिरफ़्तार किया गया था, वे मंत्री और विधायक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सक्रिय हुए और उन्होंने कहा कि उन्हें नियुक्ति प्राधिकारी होने के नाते अभियोजन को मंज़ूरी देने का अधिकार था। राज्यपाल इससे पहले तब सुर्ख़ियाँ बटोर चुके हैं, जब उन्होंने कूचबिहार में चुनाव बाद की हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था; जो कथित तौर पर राजनिवास कार्यालय के संवैधानिक औचित्य का उल्लंघन था। मामले में बदले की राजनीति शुरुआत से ही दिखायी देती है। क्योंकि यह महज़ संयोग नहीं हो सकता है कि पश्चिम बंगाल में सन् 2016 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले ही स्टिंग ऑपरेशन के टेप जारी किये गये थे।

सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि स्टिंग टेप में लिप्त दो बड़े नेताओं को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया? पश्चिम बंगाल में हिंसा को लेकर नागरिकों के एक समूह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर कथित राजनीतिक हत्याओं की निष्पक्ष जाँच और त्वरित न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में विशेष जाँच दल गठित कर जाँच कराये जाने की माँग की है। समूह ने माँग की है कि इन मामलों को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी यानी एनआईए को सौंपा जाए। चक्रवात ‘यास’ के लिए केंद्र द्वारा घोषित राहत राशि को लेकर भी विवाद पैदा हो गया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि ओडिशा और आंध्र प्रदेश की तुलना में बड़ी और अधिक घनी आबादी के बावजूद आपदा राहत के लिए राज्य को कम राशि जारी की गयी। दो तटीय राज्यों की तुलना में राहत राशि के तौर पर पश्चिम बंगाल को 400 करोड़ रुपये मिले, जबकि ओडिशा और आंध्र प्रदेश को 600-600 करोड़ रुपये दिये गये। इस मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह प्रधानमंत्री से बैठक कर चर्चा करेंगी। राहत राशि जनसंख्या घनत्व, इतिहास, भूगोल और सीमाओं पर और इस तथ्य पर निर्भर होनी चाहिए थी कि 15 लाख से ज़्यादा लोगों को चक्रवात के मद्देेनज़र सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया।

कलकत्ता उच्च न्यायालय की पाँच जजों की पीठ ने केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) से सवाल किया है कि स्टिंग ऑपरेशन मामले में आरोपी चार नेताओं को पिछले सात साल में गिरफ़्तार नहीं किया, तो अब उन्हें चार्जशीट दाख़िल होने के बाद क्यों गिरफ़्तार किया जा रहा है? इस बीच सीबीआई ने कलकत्ता हाईकोर्ट की सुनवाई को स्थगित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया था, लेकिन फिर स्वयं ही अपनी याचिका वापस ले ली। केंद्र-राज्य के बीच जारी गतिरोध कोई अच्छा संकेत नहीं है और दोनों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस घटनाक्रम के पीछे सियासी मक़सद हावी न हो। क्योंकि सियासी या सत्ता का मक़सद पूरा करने के लिए चले गये दाँव-पेच में आख़िरकार जनता पिसती है, जो किसी भी राज्य के लिए बेहतर नहीं हो सकता।

चरणजीत आहुजा