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यूपी में चुनाव से पहले उलटफेर के आसार के बीच दिल्ली पहुंचे योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा में गहन मंथन जारी है और बड़े बदलाव के आसार नजर आ रहे हैं। कोरोना महामारी में नदियों पर उतरातीं लाशों से खफा भाजपा आलाकमान ने खुलकर तो कुछ जाहिर नहीं किया है, लेकिन अंदरखाने पड़ताल जारी रही है। पिछले दिनों यूपी में संघ और भाजपा की ओर से कई दिग्गज नेता दौरा कर वहां के दिग्गज नेताओं के साथ अन्य लोगों से भी लोगों की राय की टोह जानने की कोशिश कर चुके हैं। और अब इस बीच यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी दिल्ली स्थित उत्तर प्रदेश भवन पहुंच चुके हैं।

आज उनकी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात संभव है। वे दो दिन यहां रहेंगे और कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद बड़े बदलाव की संभावना है। हालांकि ज्यादा वक्त बचा नहीं है, ऐसे में कई मंत्री और उप मुख्यमंत्री बनाकर बहुत कुछ हासिल किए जाने की संभावना क्षीण ही नजर आ रही हैं। पिछले दिनों उत्तराखंड के सीएम का बदलना भी बहुत फायदे का सौदा साबित होता नजर नहीं आ रहा है।

सीएम योगी आदित्यनाथ दोपहर सवा दो बजे गाजियाबाद के हिंडन पर उतरे और फिर यहां से उनका काफिला दिल्ली रवाना हुआ। चर्चाएं हैं कि योगी की इन बैठकों में आगामी यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चा होगी और रणनीति तैयार की जाएगी। साथ ही यूपी में संगठन और मंत्रिमंडल विस्तार पर बातचीत संभव है।वहीं प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी ए के शर्मा के भविष्य को लेकर भी कुछ तय हो सकता है। फिलहाल उनको विधान परिषद का सदस्य बनाया जा चुका है और बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसकी अटकलें बहुत पहले से ही लगाई जा रही हैं।

एमएलसी बने ए के शर्मा को कैबिनेट में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। पिछले दिनों राधामोहन की राज्यपाल से मुलाकात की चर्चा ने यूपी में मंत्रिमंडल फेरबदल की अटकलों को हवा दे दी थी। राधामोहन ने शनिवार रात पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह व महामंत्री संगठन सुनील बंसल के साथ बैठक की।

इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बी एल संतोष तीन दिन के यूपी दौरे के बाद बीते बुधवार को दिल्ली लौट गए। इस दौरे में उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर संगठन और सरकार के कई प्रमुख लोगों से एक साथ तथा अलग-अलग वार्ता करके आलाकमान को रूबरू कराया था। बैठकों में कोरोना में ऑक्सीजन व बेड की कमी और इस कारण बड़ी संख्या में हुई मौतों को लेकर गैरों के साथ अपनों (भाजपा के लोगों) की मुखर हुई नाराजगी की नब्ज टटोली थी। अब दिल्ली में मिशन यूपी 2022 का ब्लू प्रिंट तैयार होगा। इसमें पूरा जोर कोरोना महामारी से हुए नुकसान की भरपाई पर रहेगा। इसके अलावा भाजपा के कान तब खड़े हो गए थे जब निकाय चुनाव के परिणाम उसके पक्ष में नहीं आए।

मुम्बई में बारिश के बाद मकान ढहने से 11 लोगों की मौत  

मुम्बई में जहाँ मानसून की पहली ही बारिश ने जलथल कर दी है, वहीं मलाड वेस्ट में बीती रात एक घर ढह जाने से 11 लोगों की जान चली गयी है और कई लोग घायल हुए हैं।
मलाड के मलवनी इलाके में एक मंजिला मकान साथ के मकान के ढांचे पर गिर गया। इस घटना में आठ बच्चों सहित 11 लोगों की मौत हो गई। हादसे में सात लोग घायल हुए हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया है। मलवनी इलाके में अब्दुल हमीद रोड के न्यू क्लेक्टर कम्पाउंड में बुधवार देर रात यह हादसा हुआ।
खबर मिलते ही दमकल विभाग और अन्य एजेंसियों के कर्मी तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे और बचाव और तलाश अभियान शुरू किया। घायल हुए सात लोगों में एक की हालत गंभीर है। मलबे से निकाले गए घायलों को नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। हादसा तब हुआ जब मकान पास ही बने एक मंजिला ढांचे पर गिर गया। इससे पास बनी तीन मंजिला इमारत भी हिल गई।
उधर मुंबई में बुधवार को मानसून ने दस्तक दी थी, जिसके बाद से मुंबई में लगातार बारिश हो रही है। मानसून की पहली बारिश में ही मुंबई की हालत काफी खराब हो गई है। मौसम विभाग ने आज भी रेड अलर्ट जारी किया है और लोगों से अपील की है कि बिना जरूरत घर से बाहर न निकलें।
मुम्बई में भारी बारिश की वजह से समुद्र में हाई टाइड की चेतावनी भी जारी की गई है। रेलवे ट्रैक भी पानी से डूब गए हैं, जिसकी वजह से रेलवे ने भी अलर्ट जारी किया है। एहतियात के तौर पर कुछ स्टेशनों के बीच लोकल ट्रेन सेवाओं को भी निलंबित कर दिया गया है। इससे पहले बारिश की वजह से छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर विमान सेवाओं को भी रोक दिया गया था।

वायरल इन्फैक्शन का आयुर्वेदिक वायरोफ्लैम थैरेपी द्वारा कारगर उपचार : डाँ हरीश वर्मा

आयुर्वेदाचार्य डाँ हरीश वर्मा का कहना है कि सीजनल वायरल इंफैक्शन और कोरोनावायरस के लक्षण एक जैसे होते है।जैसे बुखार , गले में खराश, सर्दी , कमजोरी और बदन टूटना इत्यादि । लक्षण एक जैसे होने की वजह से डाँक्टर कोरोना का जांच को प्राथमिकता दे रहे है। जो लोगों के लिये मानसिक तनाव का कारण बन रही है। ऐसे में सावधानी और सतर्कता बहुत जरूरी है।

डाँ हरीश वर्मा ने आयुर्वेद के प्राचीन चिकित्सा ग्रन्थों के आधार पर आयुर्वेदिक वायरोफ्लैम थैरेपी ईजाद की है। जो सीजनल वायरल इंफैक्शन, कोरोनावायरस, डेंगू वायरस और हेपेटाइटिस वायरस सहित कई तरह के रोगियों के लिये काफी कारगर है।

डाँ वर्मा ने बताया कि इस थैरेपी के दौरान दो प्रकार की जड़ी बूटियों के समूह एक ही समय पर दिये जाते है। प्रथम समूह में अश्वगंधा तुलसी, गिलोय और कालमेघ आदि से रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। तथा क्षति ग्रस्त कोशिकाओं को नई बनाती है। दूसरे समूह में हल्दी ,वसाका कंटकारी आदि दिये जाते है। जो कि अंदर की सूजन को कम करती है।डाँवर्मा ने कहा कि अब तक आयुर्वेदिक वायरोफ्लैम थैरेपी से सीजनल वायरल इंफैक्शन, कोरोनावायरस, डेंगू वायरस और हेपेटाइटिस वायरस के रोगियों को लाभ हुआ है।डाँ वर्मा का कहना है कि हमारे किसी भी मरीज को ना तो आँक्सीजन की कमी हुई  और ना ही किसी भी मरीज को आई सी यू में भर्ती होना पड़ा है।

डाँ वर्मा ने कहा कि वायरल इंफैक्शन के रोगियों के लिये आयुर्वेदिक वायरोफ्लैम थैरेपी ऐलोपेथिक दवाईयों के मुकाबलें में बहुत ही सस्ती है तथा उनका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।डाँ का कहना है कि आईसीएमआर जैसी संस्थाओं को अश्वगंधा, तुलसी, गिलोय,हल्दी,वसाका कंटकरी और कालमेघ आदि पर रिसर्च करके उन्हें पेटेन्ट कर लेना चाहिये। अन्यथा यह जड़ी बूटियां भी नीम और हल्दी की तरह विदेशियों के हाथ में चली जायेगी।

जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल, यूपी में कांग्रेस को बड़ा झटका

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता के बीच पार्टी को बुधवार को तब झटका लगा जब उसके एक नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो गए। हाल के पंचायत चुनावों में मार खाने की बाद भाजपा आलाकमान यूपी को लेकर सक्रिय हुई है और उसने कांग्रेस के एक बड़े नेता का दलबदल करवा लिया है। जितिन ने भाजपा में शामिल होने के अपने फैसले को सोच समझकर किया फैसला बताया है।
हाल के महीनों में उत्तर कांग्रेस को प्रियंका गांधी ने लगातार सक्रिय किया है। लेकिन जितिन प्रसाद के भाजपा में चले जाने से उसे निश्चित ही झटका लगा है  ब्राह्मणों का एक नेता माना जाता है। पिछले साल भाजपा में दलबदल करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जितिन के पार्टी में आने पर कहा – ‘छोटे भाई का स्वागत।’
जितिन दिल्ली भाजपा केंद्रीय कार्यालय में आज एक संक्षिप्त कार्यक्रम में भाजपा में शामिल हुए। इस मौके पार केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने प्रसाद को पार्टी की सदस्यता दिलाई और उनका स्वागत किया। गोयल ने कहा – ‘प्रसाद के पार्टी में शामिल होने से पार्टी को बल मिलेगा।’
भाजपा में शामिल होने से पहले जितिन प्रसाद गृह मंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा से मिले। प्रसाद ने पार्टी में आने के बाद कहा – ‘आज कोई वास्तव में संस्था के तौर पर काम करने वाला दल है तो वह भाजपा है। बाकी दल, व्यक्ति विशेष और क्षेत्रीयता तक सीमित रह गए हैं। पीएम मोदी नए भारत का जो निर्माण कर रहे हैं, उसमें मुझे भी छोटा सा योगदान करने का मौका मिलेगा। अगर आप किसी पार्टी में रहकर अपने लोगों के काम नहीं आ सकते हैं तो वहां रहने का क्या फायदा। मुझे उम्मीद है कि भाजपा समाजसेवा का माध्यम बना रहेगा।’
जितिन प्रसाद उन 23 नेताओं (जी-23) में एक हैं जिन्होंने कांग्रेस में सक्रिय नेतृत्व और संगठनात्मक चुनाव की मांग को लेकर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी। याद रहे जितिन प्रसाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे जितेंद्र प्रसाद के पुत्र हैं जिन्हें पार्टी में कद्दावर नेता माना जाता था और वे संगठन चुनाव में सोनिया गांधी के  पद के लिए खड़े हुए थे।
जितिन 2009 में यूपीए सरकार में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में इस्पात राज्यमंत्री बनाये गए थे। वे यूपीए सरकार में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, सड़क परिवहन और राजमार्ग और मानव, संसाधन विकास राज्यमंत्री भी रहे। प्रसाद को 2014 के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था और 2019 में भी लोकसभा चुनाव में वे धौरहरा से हार गए थे।
यूपी में भाजपा की योगी सरकार को लेकर भाजपा के भीतर बड़ी चर्चा है। माना जा रहा है कि यूपी में ब्राह्मण भाजपा से बहुत नाराज हैं। अब भाजपा ने जितिन प्रसाद को पार्टी में लेकर बड़ा दांव खेला है क्योंकि उन्हें बड़ा नेता माना जाता है।

माॅक ड्रिल में 22 की मौत के बाद जागी योगी सरकार, अस्पताल सील

ताजनगरी आगरा में अप्रैल के आखिर में पांच मिनट की माॅक ड्रिल के दौरान ऑक्सीजन 22 लोगों की जान जाने के मामले ने तूल पकड़ा तो योगी सरकार को एक्शन लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। फिलहाल आगरा के पारस अस्पताल को प्रशासन ने सील कर दिया है। साथ ही इसके संचालक के खिलाफ केस भी दर्ज कर लिया है। सोशल मीडिया में वीडियो वायरल होने के बाद और राहुल व प्रियंका गांधी के मुद्दे को उठाने के बाद यूपी सरकार की आंखें खुलीं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को बैठक कर इस घटना पर संज्ञान लेते हुए पूरे मामले की जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई करने के आदेश दिए।आगरा में जब कोरोना पीक पर था और चारो तरफ ऑक्सीजन की किल्लत थी तो अस्पताल के मालिक डॉक्टर अरिंजय जैन ने 26 अप्रैल को 5 मिनट के लिए मॉक ड्रिल की थी। इस दौरान 22 मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। उस वक्त अस्पताल में 96 मरीज भर्ती थे। बताया गया कि यह मॉक ड्रिल उन मरीजों पर एक प्रयोग था, जिनकी हालत बेहद नाजुक थी।

वायरल वीडियो में चश्मदीद बता रहे है कि जो डॉक्टर ऑक्सीजन खत्म होने की बात कह रहे हैं वो भ्रामक है। उनके ऊपर महामारी एक्ट का मुकदमा दर्ज कर अस्पताल को सीज किया जा रहा है। अस्पताल में भर्ती मरीजों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाएगा। डीएम के दावों पर एक प्रत्यक्षदर्शी मुकेश ने बताया कि वो अपने एक मित्र के परिजनों के भर्ती होने के कारण पारस अस्पताल आए थे। उस दिन उन्होंने वो मंजर देखा था, जब रात में अचानक एक के बाद एक मौतें हो रही थीं। लगातार 15 से 16 लाशें मैंने खुद निकलते देखी हैं।

कांग्रेस बोली-भाजपा शासन में ऑक्सीजन और मानवता दोनों की भारी कमी

आगरा के अस्पताल का सोमवार को वीडियो वायरल होने के बाद इस पर सियासत होना लाजमी है। मंगलवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने योगी सरकार को निशाने पर लिया। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, भाजपा शासन में ऑक्सीजन और मानवता दोनों की भारी कमी है। इस खतरनाक अपराध के जिम्मेदार सभी लोगों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। दुख की इस घड़ी में मृतकों के परिवारजनों को मेरी संवेदनाएं।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उस वीडियो को पोस्ट किया है, जिसमें पारस अस्पताल के मालिक डॉक्टर अरिंजय जैन यह कह रहे हैं कि 5 मिनट के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद कर दी गई और 22 मरीजों की मौत हो गई। प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कुछ बड़ी बातों का जिक्र किया है। प्रियंका ने ट्वीट किया, पीएम कहते हैं कि मैंने ऑक्सीजन की कमी नहीं होने दी। सीएम कहते हैं कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं। कमी की अफवाह फैलाने वालों की संपत्ति जब्त होगी। मंत्री ने कहा, मरीजों को जरूरत भर ऑक्सीजन दें। ज्यादा ऑक्सीजन न दें। आगरा अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म थी। 22 मरीजों की ऑक्सीजन बंद करके मॉक ड्रिल की। जिम्मेदार कौन?

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों को व्यक्ति ने मार दिया थप्पड़, पकड़ा गया

एक बड़ी घटना में मंगलवार को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों को एक व्यक्ति ने एक थप्पड़ मार दिया। राष्ट्रपति उस समय लोगों से मुलाकात कर रहे थे जब यह घटना हुई। इस मामले में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक राष्ट्रपति मैक्रों को थप्पड़ मारने की यह घटना दक्षिणपूर्वी फ्रांस के ड्रोम क्षेत्र की है। उस समय राष्ट्रपति लोगों के साथ वॉकआउट सेशन में थे जब यह घटना हुई। अचानक एक व्यक्ति ने उन्हें थप्पड़ मार दिया। हरे रंग की टीशर्ट, धूप का चश्मा और मास्क पहने यह व्यक्ति चिल्लाकर ‘डाउन विद मैक्रोनिया’ कहता सुना जा रहा है और अचानक वह राष्ट्रपति मैक्रों को थप्पड़ मार देता है।
ऐसा होते ही राष्ट्रपति के सुरक्षा कर्मियों ने दो लोगों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। उनके साथ जुड़ी घटना के वीडियो में दिख रहा है कि घटना तब हुई जब राष्ट्रपति हाथ जोड़े एक किनारे पर कतार में खड़ी लोगों की भीड़ के पास पहुंचे। कुछ लोगों ने उनके साथ हाथ मिलाया लेकिन अचानक मास्क पहने एक व्यक्ति ने उन्हें थप्पड़ मार दिया। उनके सुरक्षा कर्मी तुरंत राष्ट्रपति को एक किनारे ले गए और उस व्यक्ति को पकड़ लिया।
कुछ ख़बरों के मुताबिक पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक फ्रांस के बीएफएम टीवी और आरएमसी रेडियो ने इस घटना की पुष्टि की है। घटना की एक वीडियो क्लिप ट्विटर पर वायरल हुई है।

मराठा आरक्षण, चक्रवात पर आज उद्धव दिल्ली में मिलेंगे पीएम से  

मराठा आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आज दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे। वे चक्रवात राज्य में हुए नुक्सान और कुछ अन्य मुद्दों पर भी पीएम से चर्चा करेंगे। जानकारी के मुताबिक उन्होंने आधिकारिक बैठक के अलावा 10 मिनट की एक वन-टू-वन मीटिंग का भी पीएमओ से उद्धव ने  आग्रह किया है।
ठाकरे नई दिल्ली पहुँच गए हैं। उनके साथ एक प्रतिनिधिमंडल भी आया है, जिसमें उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के अलावा कांग्रेस नेता और लोक निर्माण मंत्री अशोक चव्हाण भी शामिल हैं। बता दें चव्हाण मराठा आरक्षण पर मंत्रिमंडलीय उपसमिति के प्रमुख हैं।
उद्धव प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात के दौरान मराठा आरक्षण के अलावा  चक्रवात राहत उपायों के लिए वित्तीय मदद और जीएसटी रिफंड जैसे मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे। याद रहे पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने से संबंधित 2018 का आरक्षण कानून खारिज कर दिया था।  वालसे पाटिल ने कहा कि प्रधानमंत्री के साथ बैठक के दौरान ठाकरे मराठा आरक्षण, चक्रवात ताउते राहत उपायों के लिए वित्तीय सहायता, जीएसटी रिफंड जैसे विषयों पर चर्चा करेंगे.
बता दें एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने सोमवार शाम ठाकरे से मुलाकात की थी।  पिछले एक पखवाड़े में पवार की ठाकरे के साथ यह दूसरी बैठक है। गठबंधन सरकार के सभी दल मराठा आरक्षण को लेकर एकजुट रहे हैं।

दो-मुँहा व्यवहार

हाल ही में फेसबुक पर मेरे द्वारा ईद-उल-फ़ितर की मुबारकबाद देने पर एक ख़ुद को ख़ुद ही सम्भ्रांत मानने वाले एक हिन्दू संरक्षक सज्जन ने टिप्पणी लिखी- ‘अरे पंडित जी पंचांग देखकर थोड़ी अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती की भी कर लो।’ पहले तो इन महाशय की भाषा देखिए। इससे ही पता चलता है कि इनके संस्कार कैसे हैं? फिर भी मैंने इनको जवाब दिया- ‘भाई साहब! सभी प्रमुख त्योहारों की मुबारकबाद, शुभकामनाएँ देता हूँ। आपने कभी होली, रक्षाबन्धन और दीपावली की शुभकामनाएँ स्वीकार ही नहीं कीं।’ इस पर इनका जवाब आता है- ‘तो आपके पंचांग में आज एक ही त्योहार था क्या इन्हीं बाक़ी नहीं थे।’ इस ‘इन्हीं’ का मतलब समझने की ज़रूरत है। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि इन महाशय के मन में एक मज़हब विशेष को मानने वालों के प्रति कितना ज़ह्र भरा है?

खै़र, इसके बाद मैंने दो और जवाब लिखे। लेकिन फिर इनका मुँह नहीं खुल सका। क्योंकि इनके पास जवाब नहीं था। होता भी कैसे? इन्होंने पिछले चार-पाँच साल की फेसबुक मित्रता में कभी भी न तो मेरे किसी शे’र पर दाद दी, न उसे लाइक किया और न ही सनातन रीति से मनाये जाने वाले किसी त्योहार की मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार कीं। इससे इनकी नाक कटती है। लेकिन नफ़रतें बोने से इनकी शान बढ़ती है। क्योंकि ऐसा करने से नफ़रतों की यूनिवर्सिटी चलाने वाले आकाओं की नज़रों में सम्मान बढ़ता है।

मज़ेकी बात यह है कि इन्होंने ख़ुद भी अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती की शुभकामनाएँ अपनी फेसबुक वॉल पर नहीं दीं। क्यों? क्योंकि इनके सम्बन्ध मुस्लिमों से भी ठीक-ठाक हैं। उनके साथ अच्छा-ख़ासा उठना-बैठना है। उन्हें ऐसे लोग फोन करके ईद-उल-फ़ितर (मीठी ईद) की ही नहीं, ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद) की भी मुबारकबाद कहीं एक अदद दावत मिलने की ख़्वाहिश में देते हैं। बस दूसरों को नफ़रत की भट्ठी में झोंकना इनका काम है। वैसे तो इन महाशय के बारे में भी बहुत कुछ जानता हूँ। लेकिन उस सबका ज़िक्र यहाँ ठीक नहीं। दरअसल इस तरह के लोग लालची होते हैं। इन्हें जहाँ बोटी मिलेगी, वहाँ सब ठीक है; और जहाँ भाव नहीं मिलेगा, वहाँ सब कुछ ग़लत है। वैसे भी महोदय ऐसे विभाग से जुड़े हैं, जहाँ बहुत-से लोग ईमानदार होते ही नहीं हैं।

खै़र, किसी की ईमानदारी और बेईमानी से मुझे क्या लेना-देना। लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसे लोगों को समाज में रहने का हक़ है? क्या यह लोग शान्तिपूर्ण और इंसानियत भरे माहौल के लिए घातक नहीं हैं? क्या ऐसे लोगों की वजह से ही अलग-अलग धर्मों को मानने वालों के बीच बैर-भाव नहीं बढ़ रहा है? क्या ऐसे लोग देश की सही मायने में पूरी ईमानदारी से रक्षा करते होंगे? क्या ऐसे लोग दूसरों के साथ समता भरा व्यवहार करते होंगे? मेरे ख़याल से तो बिल्कुल नहीं। क्योंकि जो व्यक्ति ख़ुद सही नहीं है, वह दूसरों को सही रास्ता क्या दिखाएगा? कभी दिखा ही नहीं सकता। और ऐसे लोग हमारे समाज में ही किसी कंटीले जाल की तरह नहीं फैले हैं, बल्कि बड़े-बड़े ओहदों पर भी बैठे हैं; जिनका वे मनमाने तरीक़े से दिन-रात दुरुपयोग करते हैं।

यही वजह है कि आज समाज में एक ईमानदार आदमी न तो चैन से रोटी खा पाता है और न सम्मानजनक जीवन जी पाता है। ऐसे लोगों को सही मायने में यह भी पता नहीं होता कि धर्म है क्या? ज़ाहिर है जब किसी को यही नहीं मालूम होगा कि धर्म क्या है? तो वह उस पर अमल भी कैसे कर सकेगा? या अगर दारोग़ा के पद पर किसी जेबक़तरे को बैठा दिया जाए, तो ज़ाहिर है वह किसी भी ईमानदार के पक्ष में कभी फ़ैसला नहीं करेगा, बल्कि उल्टा उसे ही जेल भेज देगा। दरअसल ऐसे लोग कभी भी किसी के साथ न्यायोचित और अच्छा व्यवहार नहीं कर सकते, जब तक कि वह पैसे या शोहरत या ताक़त में बड़ा न हो या फिर जब तक उससे इन्हें कोई मतलब न हो।

ऐसे ही मेरे एक और परिचित हैं। इन सज्जन के व्यवहार की दाद देनी होगी। यह सज्जन अपनी जाति के लोगों पर जान छिडक़ते हैं, लेकिन अगर कोई मेरे जैसा सच कहने वाला मिल जाए, तो उससे भी अन्दर-ही-अन्दर गहरी दुश्मनी मानने लगते हैं। इन्हें अपनी जाति में भी वही लोग पसन्द हैं, जो या तो इनकी हाँ-में-हाँ मिलाएँ या फिर इनके काम के हों। इनकी आदत मुँह में राम, बग़ल में छूरी वाली है। इनके चाल-चरित्र का यहीं से पता चलता है कि जब पिछली सरकार में इनकी सरकारी नौकरी लगी थी, तब यह उस सरकार वाली पार्टी के बहुत बड़े भक्त हुआ करते थे और एक शब्द उसके ख़िलाफ़ नहीं सुन सकते थे। लेकिन अब सत्ताधारी पार्टी के कट्टर समर्थक और सीधे-सादे भक्त हैं। एक भी शब्द उसके ख़िलाफ़ बर्दाश्त नहीं करते, चाहे उसमें कितनी भी सच्चाई हो।

ऐसे लोगों को आप क्या कहेंगे? लेकिन मैं ऐसे लोगों को दो-मुहा मानता हूँ। क्योंकि इनका जब जिधर काम निकलता है, तब उधर वाले का मुँह चाटने लगते हैं और जब जिधर से इन्हें लाभ होता नहीं दिखता, तब उधर वालों को मौक़ा लगते ही काटने की फ़िराक़ में रहते हैं। यानी सही मायने में ये लोग अपनों के भी नहीं होते, सिर्फ़ मौक़ापरस्त होते हैं। ज़ाहिर है मौक़ापरस्त लोग किसी के भी सगे नहीं हो सकते।ऐसे लोगों से मैं इतना ही कहूँगा कि पहले तो अपना व्यवहार बदलिए, अपने गिरेबान में झाँकिए, अपने चाल-चरित्र को साफ़-सुथरा कीजिए, उसके बाद किसी और को समझाइए कि वह कहाँ ग़लत है और कहाँ सही? कहने का मतलब यह है कि पहले अपना दो-मुहा व्यवहार बदलिए। क्योंकि कभी-कभार ऐसे लोग सिर्फ़ चालाक सियासतदानों द्वारा इस्तेमाल करके फेंक दिये जाते हैं।

इजराइल-फिलिस्तीन फ़िलवक़्त शान्त

इजराइल व हमास में संघर्ष थमा, लेकिन दुश्मनी बरक़रार
भारतीय बयान बेहद सधा हुआ और देशहित में
निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर काम करें ओआईसी के सदस्य देश

यरुशलम स्थित अल-अक्सा मस्जिद से शुरू हुई मामूली झड़प से शुरू हुआ इजराइल और फिलिस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास के बीच 11 दिन का ख़ूनी संघर्ष अंतत: थम गया है। इस भीषण युद्ध में अब तक क़रीब 250 लोगों के मारे जाने की ख़बर है, जिसमेंज़्यादातर जानें गाजा शहर में गयी हैं। ऐसा माना जा रहा है कि दोनों पक्षों ने भारी अंतर्राष्ट्रीय दबाव में संघर्षविराम का $फैसला लिया है। इस भयंकर संघर्ष के दौरान जिस तरह से अति उत्साह में कुछ इस्लामिक देशों के बयान आ रहे थे और वो इस मुद्दे पर गोलबंद होते दिख रहे थे, उससे लग रहा था कि यह ख़तरनाक संघर्ष अभी और चलेगा।
संघर्षविराम के बाद जहाँ हमास इसे अपनी जीत बता रहा है, वहीं इजराइल को अपने ही देश के विपक्षी राजनीतिक पार्टियों द्वारा सीजफायर के लिए आलोचना की जा रही है। इस ख़ूनी संघर्ष में नुक़सान दोनों तरफ़हुआ है। लेकिन फिलिस्तीन के गाजा में जिस तरह तबाही हुई है, इसके पुनर्निर्माण में लम्बा वक़्त लगेगा। हमास ने जिस तरह से इजराइल पर हज़ारों रॉकेट हमले किये हैं, अगर इजराइल के पास अत्याधुनिक सुरक्षा प्रणाली ‘आयरन डोम’ नहीं होता, तो इजराइल में भयंकर तबाही मचती। इस भीषण संघर्ष में तबाही का वास्तविक आकलन कुछ समय बाद ही सम्भव है। युद्धविराम से वर्तमान माहौल भले ही बदलने लगा हो। लेकिन इस जगह पर कब छोटी झड़प आगे इस सम्पूर्ण क्षेत्र को आग में झोंक दें, कुछ कहा नहीं जा सकता। संघर्षविराम के बाद इजराइल ने स्पष्ट संकेत दिये हैं कि अगर हमास ने फिर से रॉकेट से हमले किये, तो उसका जवाब बहुत सख़्ती से दिया जाएगा। यह दु:खद है कि जब दुनिया के अधिकतर देश कोरोना वायरस से ज़िन्दगियाँ बचाने में जुटे हैं, ऐसे में मध्य-पूर्व क्षेत्र दूसरे ही मामलों में फँसकर जान गवाँ रहा है। ध्यातव्य रहे कि मध्य पूर्व क्षेत्र लम्बे समय से विभिन्न कारणों से तनाव से गुज़र रहा है, वर्तमान परिदृश्य को देखकर इस क्षेत्र में अभी शान्ति की उम्मीद नहीं की जा सकती।

इजराइल और हमास में जारी भीषण संघर्ष के बीच 16 मई को संयुक्त राष्ट्र में स्थायी भारतीय प्रतिनिधि टी.एस. तिरूमूर्ति द्वारा जारी बयान के बाद कई अंतर्राष्ट्रीय नीति विश्लेषक और पत्रकार इस बयान को अलग अलग तरीक़े से देख रहे हैं। अगर हम भारतीय प्रतिनिधि के बयान को भारतीय हित से देखें, तो यह बयान बेहद सटीक मालूम पड़ता है। इस बयान में जहाँ एक तरफ़भारत ने हमास द्वारा जारी रॉकेट हमले का विरोध किया, वहीं इसने फिलिस्तीनी कारण का समर्थन करते हुए दो राष्ट्र की बात कही। भारत ने यह भी कहा कि दोनों देशों को आपसी बातचीत के ज़रिये इस मामले को सुलझाने चाहिए। भारतीय प्रतिनिधि के सम्पूर्ण बयान का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि यह बयान इजराइल की तरफ़कम और फिलिस्तीन की तरफ़ ज्यादा झुका हुआ था, जो भारतीय नज़रिये से सही भी है। हालाँकि भारत ने अपने बयान से इजराइल को भी नाराज़ नहीं किया है, बल्कि इसने अपने बयान से दोनों पक्षों को साधने को कोशिश की है।

क्योंकि भारत का बयान एक तरफ़ा नहीं है। जो भी मध्य-पूर्व की राजनीति अच्छे से समझते हैं, उन्हें भारत का बयान बहुत सधा हुआ मालूम पड़ेगा। व्हाट्स ऐप विश्वविद्यालय से ज्ञान प्राप्त कर रातोंरात विदेश नीति के जानकार बना देश का एक समूह भारत के बयान को इजराइल के ख़िलाफ़मान रहा है। ऐसे लोग उतावले होकर इजराइल के प्रधानमंत्री के ट्विटर अकाउंट पर जाकर यह भी लिख रहे हैं कि पूरा देश उनके साथ हैं। ऐसे लोगों को यह स्पष्ट समझना चाहिए कि विदेश नीति में कोई भी देश अपना और देशवासियों का हित सबसे पहले देखता है, जो बिल्कुल सही भी है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत की इजराइल के साथ हाल के दिनों में घनिष्ठता बढ़ी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक इजराइल यात्रा और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा इसकी सबसे बड़ी गवाह हैं। वर्तमान में कोरोना वायरस के दूसरी लहर से बुरी तरह प्रभावित भारत को यह देश मेडिकल सहायता भी उपलब्ध करा रहा है। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना है कि भारत के अरब देशों से भी अच्छे सम्बन्ध हैं। मध्य-पूर्व वह क्षेत्र है, जहाँ भारत की एक बड़ी आबादी को काम मिला हुआ है और वे वहाँ से बड़ी मात्रा में भारत में पैसे भेजते हैं और यहाँ की अर्थ-व्यवस्था को मज़बूत करते हैं। भारत का इन देशों के साथ आर्थिक कारोबार भी इजराइल की तुलना में कई गुनाज़्यादा है तथा भारत की पेट्रोल तथा डीजल जैसी ऊर्जा ज़रूरतों की भी पूर्ति इन्हीं देशों से होती है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी अंतर्राष्ट्रीय प्रवास-2020 की रिपोर्ट के अनुसार, 1.8 करोड़ भारतीय दूसरे देशों में रहते हैं और यह संख्या दुनिया में किसी भी देश के प्रवासियों कि तुलना में सबसेज़्यादा है। मध्य पूर्व के केवल तीन देशों संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब तथा क़ुवैत में ही 70 लाख सेज़्यादा भारतीय रहते हैं। ओमान और क़तर में भी इनकी संख्या अच्छी ख़ासी है। अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में कोई भी देश अपनी विदेश नीति में अपने देश का हित सबसे पहले देखता है। ज़ाहिर है कि भारत भी अपनी विदेश नीति में भारतीय हितों को ध्यान में रखते हुए अरब देशों से सम्बन्ध बेहतर रखने की कोशिश करेगा।

ओआईसी का नज़रिया
भारत को यह भी अच्छे से पता है कि पाकिस्तान इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) का सदस्य देश है और इसे जब भी मौक़ा मिलता है, यह अक्सर ऐसा बयान देता है कि भारत में मुस्लिमों के साथ अत्याचार हो रहा है और इनके साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जाता है। हाल के वर्षों में कई बार पाकिस्तान अपने निजी स्वार्थों के लिए इसके सदस्य देशों को भारत के ख़िलाफ़लामबंद करने की कोशिश करता रहा है और यह चाह रखता रहा है कि यह संगठन भारत पर ठोस बयान दें या कार्रवाई करें। लेकिन यह अलग बात है कि सऊदी अरब के दबदबे वाले इस संगठन ने पाकिस्तान के आरोपों को कभी भीज़्यादा महत्त्व नहीं दिया। हालाँकि भारत में दक्षिणपंथ से जुड़ा एक बड़ा समूह इजराइल का पक्ष करता दिख रहा है। ऐसे लोग इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के ट्विटर अकाउंट पर भी जाकर लिख रहे हैं कि भारत इजराइल के साथ है। वहीं इजराइल की भीषण कार्रवाई के ख़िलाफ़कई देशों में धरने देखने को मिले हैं।

भारत में भी अच्छी संख्या में लोग फिलिस्तीन के पक्ष में दिखे। हमें ऐतिहासिक सन्दर्भ यही बताते हैं कि इजराइल-फिलिस्तीन के मुद्दे पर भारतज़्यादातर फिलिस्तीनियों के ही पक्ष में रहा है और यह अलग-अलग मंचों से कई बार इजराइल द्वारा फिलिस्तीन की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने के मामले में उसकी निंदा भी कर चुका है। इसके पीछे भारत की अपनी सोच है कि भारत पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर को वापस हासिल करना चाहता है। इसके लिए वह इजराइल के अवैध क़ब्ज़े की नीति को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है। भारत की नीति इस मामले में बेहद स्पष्ट है कि वह इजराइल के लिए अरब के महत्त्वपूर्ण देशों से अपना सम्बन्ध कभी ख़राब नहीं करना चाहता और यही नीति देशहित में भी है। अभी हाल ही में कुछ साल पहले जब इजराइल ने अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव शहर से हटाकर यरुशलम में स्थानांतरित किया था, तो भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद अपना रुख़ स्पष्ट कर दिया था कि वह इसके पक्ष में नहीं है।

ओआईसी का ज़िम्मेदार बनना वर्तमान समय की माँग
ओआईसी कहने को तो संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद सदस्य देशों की संख्या के लिहाज़ से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा संगठन है। लेकिन इसके सदस्य देश ख़ुद के स्वार्थों से कभी ऊपर नहीं उठ सके। 57 देशों वाले इस संगठन को मुस्लिम दुनिया की सामूहिक आवाज़ माना जाता है; लेकिन सच्चाई यही है कि इसके सदस्य देशों के बीच अक्सर आपसी दबदबे को लेकर तनाव देखने को मिलता है। मध्य-पूर्व क्षेत्र में आपसी वर्चस्व के लिए सऊदी अरब और ईरान के बीच तनाव लम्बे समय से जारी है। अपनी स्थापना के समय से ही ओआईसी का प्रमुख लक्ष्य फिलिस्तीन को उसका वाजिब हक़ दिलाना था। लेकिन इस संगठन के सामने फिलिस्तीनियों की ज़मीन सिकुड़ती चली गयी और यह संगठन तमाशबीन बना रहा। इजराइल और यरुशलम के बँटवारे के बाद आज फिलिस्तीनी 48 फ़ीसदी ज़मीन से महज़ 12 फ़ीसदी ज़मीन पर सिमट गये हैं। इनके पास गाजा और वेस्ट बैंक के ही कुछ इलाक़े बचे हैं, बाक़ी इनके हिस्से के 36 फ़ीसदी ज़मीन पर इजराइलियों का क़ब्ज़ा है। वर्तमान में इजराइल इस क्षेत्र के 80 फ़ीसदी हिस्से पर क़ाबिज़ है, फिलिस्तीनी केवल 12 फ़ीसदी टुकड़ों पर सिमट गये है तथा बाक़ी के 8 फ़ीसदी हिस्सा यानी यरुशलम संयुक्त राष्ट्र संघ के नियंत्रण में है। स्मरण रहे कि यरुशलम इस्लाम, यहूदी तथा इसाई यानी तीनों धर्मों के लिए एक पवित्र स्थल है और विशेष जगह मानी जाती है। ऐसे में यह स्थान संयुक्त राष्ट्र संघ को अपने अधीन लेना पड़ा, ताकि यहाँ इसके लिए संघर्ष न हो।

मुस्लिम दुनिया में जो धनी और प्रभावाशाली देश है, उनके रिश्ते पश्चिमी दुनिया से बेहतर है। वे अपने विकास में काम आने वाले ज़रूरी तकनीकों के लिएज़्यादातर पश्चिमी देशों पर निर्भर है। इजराइल काज़्यादातर पश्चिमी दुनिया के प्रभावशाली देशों से न केवल बेहतर सम्बन्ध है, बल्कि इसके शुरुआती समय से ही वे इजराइल की मदद करते रहे हैं। ओआईसी के प्रमुख देशों को भी ये पता है कि वे इजराइल काज़्यादा कुछ बिगाड़ नहीं पाएँगे। इसलिए इजराइल और फिलिस्तीनियों के बीच संघर्ष में वे इजराइल की निंदा करके रस्म अदायगी कर देते हैं। तुर्की अभी भले ही इजराइल को लेकर काफ़ी विरोध कर रहा हो, लेकिन सच यही है कि इस देश का सन् 1949 से ही इजराइल से सम्बन्ध है।

सऊदी अरब वर्तमान में भले ही संयुक्त राष्ट्र संघ में इजराइल के हवाई हमलों को लेकर खुलकर विरोध करे। लेकिन इसे भी यह बात पता है कि इजराइल को अमेरिका और पश्चिमी देशों का भरपूर सपोर्ट है और ऐसे में सऊदी अरब के विरोध की एक सीमा है, जो वह कभी पार नहीं करेगा। ईरान की आलोचना से इजराइल को ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता। क्योंकि ईरान अपने हितों के लिए लम्बे समय से इजराइल का विरोध करता रहा है। मिस्र और जॉर्डन ने पहले ही इजराइल से शान्ति समझौता किया हुआ है। संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मोरक्को पहले ही ‘अब्राहम समझौते’ के ज़रिये इजराइल को मान्यता दे चुके हैं। लेकिन इजराइल और फिलिस्तीन के बीच वर्तमान संघर्ष ने यह साबित कर दिया कि तमाम शान्ति समझौतों के बाद भी यह क्षेत्र अभी अशान्त ही रहने वाला है। संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद् में इजराइल के ख़िलाफ़लाये गये प्रस्ताव को अमेरिका ने वीटो करके यह स्पष्ट कर दिया है कि वह पूरी तरह इजराइल के पक्ष में है। हमें यह भी अच्छे से पता है कि पश्चिमी दुनिया अमेरिका के ही नेतृत्व मेंज़्यादातर फै़सले लेती है। अभी इजराइल और फिलिस्तीन के बीच जो संघर्ष विराम हुआ है, यह भी अमेरिका और मिस्र के सहयोग से हो पाया है; ओआईसी की वजह से नहीं।

ओआईसी संगठन को मध्य-पूर्व में निरंतर चलने वाले सिया और सुन्नियों के बीच तनाव कम करने की दिशा में काम करना चाहिए। आज ईराक, सीरिया और कई अफ्रीकी देशों में आतंकवादी समूह सक्रिय हैं, जो पूरी दुनिया की शान्ति व्यवस्था के लिए ख़तरा हैं। यहाँ आये दिन जिस तरीक़े से आम इंसान मर रहे हैं और आतंकवादी संगठन युवाओं को धर्म के नाम पर गुमराह करके उन्हें वीभत्स हमलों के लिए लगातार उकसा रहे हैं, वह बेहद दु:खद है। आज आईएसआईएस और बोको हराम जैसे ख़तरनाक आतंकवादी समूहों से ट्रेनिंग लेकर छोटे-छोटे लड़ाका जिस तरह से सक्रिय हैं, वो पूरी दुनिया के लिए बेहद चिन्ता का विषय है। ओआईसी को इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि कैसे मुस्लिम युवाओं को दहशत फैलाने वाले इन आतंकवादी समूहों से जुडऩे से रोका जाए और इस क्षेत्र में शान्ति और सद्भाव का रास्ता तैयार किया जाए।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ओआईसी और संयुक्त राष्ट्र संघ दोनों ही दुनिया के बड़े संगठनों का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाये रखना है; लेकिन वर्तमान में इनकी भूमिका प्रश्नों के घेरे में है। ओआईसी से जुड़े बहुत देशों में लोकतंत्र नाम की चीज़ नहीं है, मध्य पूर्व के देशों में अभी भी राजशाही चल रही है। ऐसे में इन दोनों अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को लोगों में समानता लाने और उनके अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना चाहिए। यह स्पष्ट है कि जब तक ओआईसी के सदस्य देश व्यक्तिगत लाभ की नीति छोडक़र अपने आसपास की दुनिया में हो रहे अत्याचारों के ख़िलाफ़एकजुट होकर मुखर नहीं होंगे, विस्तारवादी शक्तियाँ इनका हक़ छीनती रहेंगी। अभी बात फिलिस्तीन तक है, कल वृहत इजराइल नीति के तहत और भी देश इसके शिकार होंगे और ओआईसी के सदस्य देश एक बार फिर से सि$र्फ निंदा करेंगे।

बातचीत से ही सुधरेंगे हालात


इजराइल और चरमपंथी गुट हमास के संघर्षविराम के कुछ दिनों बाद ही भारत में फिलिस्तीनी प्रशासन के राजदूत ने कहा कि भारत को दोनों देशों के बीच शान्ति प्रक्रिया को बहाल करने में भूमिका निभानी चाहिए। कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र संघ भी यही चाहता था कि इजराइल और फिलिस्तीन के बीच शान्ति समझौते को लेकर भारत मध्यस्थता करे। पिछले साल ईरान और अमेरिका के तनाव के दौरान भारत में ईरान के राजदूत ने भी कहा था कि अगर दोनों देशों के बीच भारत शान्ति समझौते को लेकर कोई पहल करता है, तो ईरान उसका स्वागत करेगा। फिलिस्तीन और संयुक्त राष्ट्र संघ यह बात अच्छे से समझते हैं कि भारत का पश्चिम एशिया के देशों के साथ बेहतर सम्बन्ध है और इस क्षेत्र में यह कई कारणों से विशेष रुचि भी रखता है।

भारत के पश्चिम एशिया की नीति और पश्चिमी देशों के साथ इसके गहरे सम्बन्ध को फिलिस्तीन बख़ूबी समझता है, इसलिए वह भारत से थोड़ीज़्यादा उम्मीद कर रहा है। फिलिस्तीन को यह उम्मीद यकायक नहीं पनपा, बल्कि भारत के साथ उसके पुराने और विश्वसनीय सम्बन्धों के कारण ऐसा वह सोच रहा है। पिछले कई वर्षों से फिलिस्तीन स्पष्ट मानता रहा है कि भारत उसका साथ देता रहा है। हाल ही में भारत ने वहाँ विकास के कार्यों को भी आगे बढ़ाया है। अगर हम वर्तमान में वैश्विक सम्बन्धों को अच्छे से समझने कि कोशिश करें, तो पाते हैं कि भारत ही वह देश है, जिसके दुनिया के दो बड़े और बेहद शक्तिशाली देश, यानी अमेरिका और रूस के साथ बहुत बेहतर सम्बन्ध हैं। ऐसे में फिलिस्तीन को लगता है कि भारत इनके साथ इस मुद्दे पर बातचीत कर अगर इजराइल पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाये, तो यहाँ शान्ति व्यवस्था को मज़बूती मिलेगी।

इसमें कोई शक नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा पहले के मुक़ाबले थोड़ीज़्यादा बढ़ी है और इसके कई उदाहरण हमारे सामने हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ, ओआईसी, अमेरिका, रूस, चीन तथा पाकिस्तान इस बात को अच्छे से जानते हैं। यह सम्भव भी हो कि भारत बड़े देशों को साथ लेकर अगर इजराइल से शान्ति के समझौते को लेकर कुछ बात करे, तो शायद बात बने। लेकिन यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इजराइल और फिलिस्तीन एक दूसरे के प्रति अपनी नीतियों में बदलाव लाना चाहते हैं? या केवल एक-दूसरे पर संगीन आरोप लगाकर हिंसात्मक गतिविधियों में फँसे रहना चाहते हैं? इस क्षेत्र के वर्तमान परिस्थितियों को समझने पर यही लगता है कि दोनों तरफ़ऐसे संगठन / पार्टियाँ हैं, जो हिंसा को बढ़ावा देना चाहते हैं और दे भी रहे हैं। जब भी यहाँ हालात बिगड़ते हैं और स्थिति संघर्ष में बदल जाती है, तब ये दोनों देश एक-दूसरे पर पहले हमला करने का आरोप लगाते हैं।

ज़्यादातर मामलों में यहाँ ऐसा ही होता है और इससे बाहरी दुनिया के देशों और संगठनों को यह पता ही नहीं चल पाता कि आख़िर पहले हमला किसने और क्यों किया? ऐसे में किसी तीसरे देश या संगठन के लिए शान्ति समझौते के प्रस्ताव को पेशकश करना, तो आसान होगा। लेकिन शान्ति बहाली के लिए बहुत सारी बातों पर अमल करना दोनों देशों के लिए आसान नहीं होगा। संघर्षविराम के बाद भी हमास और इजराइल जिस तरह से आने वाले समय को लेकर बयानबाज़ी कर रहे हैं, उससे आगे हालात बनने की जगह सि$र्फ बिगड़ेंगे और इसका ख़ामियाज़ा वहीं के लोग भुगतेंगे। इजराइल को यह बात अच्छे से समझनी चाहिए कि फिलिस्तीनियों के साथ उसका ज़मीन के केवल टुकड़े की लड़ाई नहीं है, बल्कि वे उस क्षेत्र में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, जो कभी फिलिस्तीन में बसने के पहले दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में इजराइल ने भी लड़ी थी। चरमपंथी संगठन हमास भी ग़लत$फहमी दूर करके एक बात स्पष्ट समझ लें कि हज़ारों रॉकेट दाग़कर भी वह इजराइल काज़्यादा कुछ बिगाड़ नहीं सकता। हाँ, ऐसा करने से इसकी भारी क़ीमत उसे और फिलिस्तीनियों को ज़रूर चुकानी पड़ सकती है, जो वे चुका भी रहे हैं।

इजराइल और फिलिस्तीन दोनों को हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि का दिया गया बयान एक बार फिर से सुनना चाहिए, जिसमें भारत ने दोनों देशों से आपसी बातचीत के ज़रिये इस मामले को निपटाने की अपील की और साथ ही साथ दोनों तरफ़से जारी हिंसा की निंदा की। दोनों देशों को एक बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि हिंसा से किसी परिणाम पर नहीं पहुँचा जा सकता। विश्व इतिहास में ऐसे अनगिनत मामले हैं, जहाँ आपस में एक-दूसरे के विरुद्ध ताक़त और हिंसा के प्रदर्शन से सिर्फ़ बर्बादी ही हुई है, जिसकी भरपाई आज तक नहीं हुई। हमास द्वारा इजराइल पर हज़ारों रॉकेट दाग़ना और इजराइल द्वारा लगातार फिलिस्तीन की ज़मीन को ताक़त के दम पर हथियाना, ये दोनों कार्य बेहद निंदनीय हैं; और इससे यहाँ एक-दूसरे के प्रति केवल असन्तोष और हिंसा की भावना पनपेगी, जो दुर्भाग्य से यहाँ हो भी रहा है। जिस तरीक़े से इस बार इन दोनों ने एक-दूसरे पर हमले किये और बहुत सारे देश आपस में इस मामले को लेकर गोलबंदी करते हुए युद्ध को बढ़ावा देते देखे गये, वह बेहद दु:खद है। आये दिन यहाँ जिस तरह से आम लोग हिंसा में मारे जा रहे हैं और उनकी सम्पतियाँ बर्बाद हो रही हैं, उससे यह एक वैश्विक मुद्दा बन गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ को ऐसे मामले को लेकर समय-समय पर शान्ति सम्मेलन के प्रयास करने चाहिए और बड़े देशों को दुनिया में शान्ति स्थापित करने के लिए उनकी भूमिका को लगातार याद दिलाते रहना चाहिए, ताकि किसी भी देश की अकड़ और ज़िद से वैश्विक माहौल न बिगड़े।

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शोधार्थी हैं।)

राजस्थान : विधानसभा उप चुनाव में कांग्रेस को मज़बूती

चुनावी गणिताई अनिश्चय की राजनीति में बिंधी होती है। इसलिए कंटीली भाषणबाज़ी से वोटरों का मिज़ाज आँकने का दावा करना तीखी बहस तो पैदा कर सकता है, किन्तु फ़तह की चाबी नहीं थमा सकता। विश्लेषकों का कहना है कि जातीय रुझानों, दीवानावार निसार होने वाले चेहरों और लुढक़ते आँकड़ों के अलावा तथ्यों का एक उजला झरोखा भी होता है, जहाँ से वोटरों का मन पढ़ा जा सकता है। इसकी तार्किक परिणिति पिछले दिनों भीलवाड़ा ज़िले के सहाड़ा विधानसभा क्षेत्र के उप चुनाव में देखी गयी। हालाँकि उप चुनाव सहाड़ा, सुजानगढ़ और राजसमंद समेत तीन विधानसभा क्षेत्रों में हुए थे। लेकिन सहाड़ा में कांग्रेस के चुनाव प्रभारी रामसिंह कस्वां ने अपेक्षित जज़्बा, संकल्प और इच्छा शक्ति के साथ दोहरा खेल खेलकर राजनीति के अनुभवी से अनुभवी राजनीति के जानकारों को भी हैरान कर दिया।


कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत सहाड़ा विधानसभा क्षेत्र में हुई। यहाँ दिवंगत विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री देवी मैदान में थीं। उनके विरुद्ध भाजपा की नुमाइंदगी खेमाराम कर रहे थे। विश्लेषकों का कहना है कि दाँव-पेच में प्रतिद्वंद्वी की कमज़ोरी का स्यापा करने की बजाय मुनाफ़े पर दाँव लगाना चाहिए। कांग्रेस के चुनाव प्रभारी रामसिंह ने यही किया। उन्होंने विधानसभा के हर वोटर के घर पर दस्तक देते हुए बेधडक़ सवालों-जवाबों के साथ सबसे जुडऩे की राह बनायी। अपने प्रचार अभियान में उन्होंने मतदाताओं के दिमाग़ पर क़ब्ज़ा करने की हर तरकीब अपनायी। विश्लेषक इसे प्रचार और विचार के आदर्श मॉडल की संज्ञा देते हुए कहते हैं कि वोटर अगर न्यौछावर हुआ, तो इसलिए कि चुनाव प्रभारी उनकी चिन्ताओं के लिएफ़िक्रमंद होकर उनकी ड्योढ़ी पर खड़े थे। उन्होंने कम्युनिकेशन की रणनीति से जुड़ी चिन्ताओं को भी दूर किया। रामसिंह ने सु$िर्खयाँ ही नहीं बटोरीं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की शाबासी भी बटोरी। सहाड़ा में कांग्रेस की गायत्री देवी को 81,700 वोट मिले, जबकि भाजपा के रतनलाल जाट को 39,500 वोट मिले।

जीत का अन्तर 42,200 वोटों का रहा। सूत्रों का कहना है कि सहाड़ा विधानसभा क्षेत्र के क़रीब 35,000 लोग बाहर रह कर कारोबार में जुटे हैं। यदि समय पर उनका आना सम्भव होता तो जीत का अन्तर 17,000 पर आ सकता था। वोटरों का यही रुख़ राजसमंद में भी रहा, जहाँ भाजपा की दीप्ति माहेश्वरी केवल 3,310 वोटों से जीत पायीं। इन चुनावों में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को अपने आपको करिश्माई साबित करने के लिए बड़ी लहर चाहिए थी। लेकिन लहर तो दरकिनार भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया अपना लोहा भी नहीं मनवा सके। विश्लेषकों का कहना है कि ये उप चुनाव सतीश पूनिया की ताक़त की सैम्पलिंग थे, लेकिन पूनिया बातों की गैम्बलिंग करके ही रह गये कि पराजय की समीक्षा करेंगे और नए मनोबल के साथ आगे बढ़ेंगे।फ़िलहाल पूनिया राहत की साँस ले सकते हैं कि उन्होंने फीकी ही सही राजसमंद की सीट बचा ली है। भाजपा विधायक किरण माहेश्वरी के निधन से ख़ाली हुई इस सीट पर पार्टी को नयी किरण की तलाश थी।

उनकी बेटी दीप्ति माहेश्वरी ही उनका आईना साबित हुई। उप चुनावों में केवल भाजपा का प्रदेश नेतृत्व ही वफ़िल नहीं रहा, बल्कि पार्टी के रणनीतिकारों और नीति निर्धारकों में भी कल्पनाशीलता की कमी अखरती रही। सहाड़ा में लादूलाल पीतलिया का नामांकन और दबाव में नाम वापसी के दाँव-पेच भाजपा के लिए बहुत महँगे साबित हुए। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जनता ने सरकार को मज़बूती दी है तथा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सामंजस्य बिठाने वाले नेता साबित हुए। अच्छी ख़बरें यहीं नहीं थमी, कांग्रेस की वोटरों की हिस्सेदारी में भी 15 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है।
विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस ने सकारात्मक सोच के साथ शुरुआत की। गहलोत सरकार के तरकश की चिरंजीवी योजना और विद्युत संबल योजना ने मतदाताओं में सरकार की पैठ बनायी। विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस की दो सीटों पर बड़ी जीत, कोरोना के दर्द के बीच हमदर्दी भरे नतीजों के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए। बहरहाल तीनों सीटों पर परिवारवाद का साया बना रहा। चुनावों से पहले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया पूरी तरह चौकस और आत्मविश्वास से लबरेज थे।

पंचायत चुनावों में जीत इसकी बड़ी वजह थी। लेकिन पूनिया इस ताक़त को उप चुनावों में नहीं भुना सके। राजनीति में जब कोई असामान्य जीत हासिल कर लेता है, तो अनहोनी से ग़ा$फ़िल हो जाता है। सतीश पूनिया भी इसी भ्रम के शिकार हुए और तीनों सीटें जीतने का दावा कर बैठे, जबकि दावे से उलट वह दो सीटें हार बैठे। कांग्रेस ने सचिन पायलट को साथ रखते हुए गुटबाज़ी पर पर्देदारी बनाये रखी। लेकिन पूनिया भाजपा की ताक़त का स्रोत वसुंधरा राजे को भुला बैठे। विश्लेषकों का कहना है कि जब राष्ट्रीय नेतृत्व ने पूनिया को राजे को साथ लेकर चलने की नसीहत दी थी, तो वे एकला चलने की क्यों ठान बैठे? अब वसुंधरा राजे गुट खुलकर सामने आये, तो ताज्ज़ुब कैसा?

टेपिंग विवाद
राजस्थान के सियासी हलक़ों में इन दिनों नज़ारें जिस अजीबों ग़रीब ढंग से उथले पानी की तरह बदल रहे हैं, राजनीति के मिज़ाज पर संशय पैदा करते हैं। टेपिंग विवाद ऐसा ही सियासी नज़ला है, जो मूल्य आधारित राजनीति करने वाले राजनेता अशोक गहलोत को घेरने की जुगाड़ में चलाया गया भाजपा का ब्रह्मास्त्र था, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। राज्य सरकार के गृह विभाग ने इस सवाल की समीक्षा करते हुए कहा कि लोक व्यवस्था या लोक सुरक्षा के हित में या किसी ऐसे अपराध को प्रोत्साहित होने से रोकने के लिए, जिससे लोक सुरक्षा या लोक व्यवस्था को ख़तरा हो। भारतीय तार अधिनियम-1885 के अनुच्छेद-5(2), भारतीय तार अधिनियम (संशोधित)-2007 के अनुच्छेद-419(ए) और आईटी एक्ट के अनुच्छेद-69 में वर्णित प्रावधान के अनुसार सक्षम अधिकारी की स्वीकृति के उपरांत टेलीफोन अंत: अवरोध किये जाते हैं। पुलिस की ओर से सक्षम अधिकारी से अनुमति होने के बाद ही टेलीफोन अंत: अवरोध किये गये। राज्य सरकार के गृह विभाग का यह जवाब भाजपा विधायक कालीचरण सर्राफ के प्रश्न पर था कि क्या यह सही है कि विगत दिवसों में फोन टेपिंग के विवाद सामने आये हैं?

प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया का कहना था कि सरकार के मुख्य सचेतक महेश जोशी ने एक एफआईआर दर्ज करवायी थी, उसका आधार फोन टेपिंग ही था। नतीजतन तय हो गया कि सरकार ने किसी एजेंसी से फोन टेपिंग करवायी। सरकार को बताना चाहिए कि किस आधार से किन-किन लोगों के फोन टेप करवाये? जिस प्रसंग में मुक़दमा दर्ज हुआ, उसमें सक्षम स्तर पर अनुमति लेकर फोन टेप हुआ या नहीं? हम जानना चाहते हैं कि मुख्य सचेतक ने जो एफआईआर दर्ज करवायी थी, क्या उसका आधार फोन टेपिंग ही था? मुख्यमंत्री गहलोत का कहना है कि राजस्थान में अवैध तरीक़े से विधायकों के फोन टेप कराने की कोई परम्परा ही नहीं रही और न ही यहाँ ऐसा हुआ। उधर सरकार के संसदीय मंत्री शान्ति धारीवाल ने दो-टूक शब्दों में कह दिया कि एक सुबूत ला मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री ही नहीं, हम सब इस्तीफ़ा दे देंगे।