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कोरोनाकाल में राजधानी में डेंगू का क़हर

राजधानी दिल्ली में हुई तीन दिन मूसलाधार बारिश से एक ओर उमस भरी गर्मी से राहत तो मिल गई है। लेकिन वही जगह-जगह हुये जल भराव से और जमीन में नमी होने के कारण मच्छरों का प्रकोप बढ़ने से लोगों को डेंगू जैसी बीमारी का भी खतरा बढ़ रहा है।

दिल्ली के डाक्टरों का कहना है कि कोरोना का क़हर भी फिर से दिन पर दिन देश में  बढ़ रहा है। वहीं डेंगू के बढ़ते मामले भी चिंता की वजह बन गयें है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त डाँ अनिल बंसल का कहना है कि कोरोना का कहर थमा नहीं है। उस पर डेंगू जैसी बीमारी लोगों को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कते पैदा कर सकती है। ऐसे में ज़रा सी लापरवाही घातक हो सकती है।

नेशनल मेडिकल फोरम के अध्यक्ष डाँ प्रेम अग्रवाल का कहना है कि कोरोना, डेंगू और मौसमी बीमारियों के प्रकोप से बचने के लिये इलाज के साथ-साथ परहेज़ की सख्त जरूरत है। डेंगू से बचने के लिये अपने घरों के आस-पास पानी जमा ना होने दें। जहां पर पानी जमा है और निकासी नहीं हो पा रही है, वहां मच्छर मार दवा या मिट्टी के तेल का छिड़काव करें। डाँ प्रेम अग्रवाल का कहना है कि शरीर में दर्द के साथ बुखार हो तो उसे नजरअंदाज ना करें।

यूपी में वायरल बुखार से अब तक 100 से ज्यादा मौतें, कई बीमार

उत्तर प्रदेश में वायरल बुखार से अब तक 100 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है जबकि 1500 से ज्यादा लोग अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। अब केंद्र सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की 11 सदस्यी टीम फिरोजाबाद भेजी है जिसे शोध करके बुखार के कारणों पर शोध करके रिपोर्ट देनी है। इस बीच यूपी कांग्रेस की प्रभारी प्रियंका गांधी ने सूबे में जिलों में वायरल बुखार से 100 से ज्यादा लोगों की मौत पर चिंता जताते हुए सरकार को इस तरफ ध्यान देने की मांग की है।

वायरल बुखार का सबसे ज्यादा कहर फिरोजाबाद, लखनऊ, कानपुर, एटा, मैनपुरी और मथुरा में है। सिर्फ फिरोजाबाद में 50 लोग इस वायरल बुखार से जान गंवा चुके हैं। मरने वालों में बड़ी संख्या में बच्चे भी शामिल हैं। अकेले लखनऊ के विभिन्न अस्पतालों में बच्चों सहित 400 से ज्यादा लोग भर्ती हैं।

उधर सरकार ने वायरल बुखार से लोगों की मौत के बाद फिरोजाबाद में लापरवाही के आरोप में तीन चिकित्सकों को निलंबित कर दिया है। रहस्यमयी वायरल बुखार के अलावा यूपी के जिलों में डेंगू और टायफाइड के मामले भी आ रहे हैं।
ख़बरों के मुताबिक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी वायरल बुखार के काफी मामले आ रहे हैं। लखनऊ के सरकारी में ही बड़ी संख्या में लोग भर्ती हैं। इनकी संख्या 400 से ज्यादा है जिनमें बच्चे भी शामिल हैं। चिकित्सकों का कहना है कि ज्यादा मामले ‘मौसमी बुखार’ के हैं, हालांकि, इतनी बड़ी संख्या में लोगों की जान जाने से इन जिलों में दहशत बनी हुई है। इसका एक कारण इस समय देश में कोविड-19 के मामलों का बढ़ना भी है।

इस बीच यूपी कांग्रेस की प्रभारी प्रियंका गांधी ने सूबे में जिलों में वायरल बुखार से 100 से ज्यादा लोगों की मौत पर चिंता जताते हुए सरकार को इस तरफ ध्यान देने की मांग की है।

सरकार बनाने की तैयारी में जुटा है तालिबान; कंधार में बैठकों का दौर जारी, पंजशीर पकड़ से दूर  

अफगानिस्तान पर पंजशीर को छोड़कर लगभग पूरा कब्ज़ा कर लेने के बाद अब तालिबान अपनी सरकार के गठन के गठन की तैयारी में जुट गया है। इसमें हालांकि अभी कुछ दिन लग सकते हैं। तालिबान ने फिलहाल मुल्ला हिब्तुल्लाह अखुंदजादा को अपना सर्वोच्च नेता बताया है और उनके तालिबान सरकार का प्रमुख बनने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इस बीच तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा है कि तालिबान कश्मीर समेत पूरी दुनिया के तमाम मुसलमानों की आवाज बनने का अधिकार रखता है।
तालिबान ने पहले ही कहा है कि उसकी सरकार इस्लामिक सरकार होगी और  सरकार के ऐलान में अभी कुछ वक्त लग सकता है। तालिबान के ज्यादातर नेता फिलहाल कंधार में हैं और सरकार के गठन को लेकर उनकी बातचीत जारी है।
पंजशीर, जहाँ तालिबान कब्ज़ा नहीं कर पाया है, में उसे साझे गठबंधन से नुक्सान उठाना पड़ा है। पंजशीर पर हमले की उसकी अभी तक की कोशिशें असफल रही हैं।
देश पर कब्जे के बावजूद तालिबान लड़ाकों को नॉर्थर्न एलायंस के विद्रोही पंजशीर में घुसने नहीं दे रहे। विद्रोहियों का दावा है कि उसने हाल के दिनों में दर्जनों तालिबान लड़ाकों को मौत के घाट उतार दिया है। इसके प्रमाण के रूप में उसने वीडियो भी जारी किये हैं। इनमें यह देखा जा सकता है कि विद्रोही (तालिबान विरोधी पंजशीर के विद्रोही) पहाड़ों से तालिबानियों पर जमकर गोलियां और रॉकेट दाग रहे हैं। यह भी दावा किया गया है कि दो दर्जन से ज्यादा तालिबानी लड़ाकों को पंजशीर की विद्रोही सेना ने पकड़ लिया है।
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल ने पहले भारत के साथ बेहतर तालमेल और रिश्तों की बात कही थी। हालांकि, अब उसने तालिबान के कश्मीर सहित सभी मुसलामानों की आवाज बनने की बात कही है। शाहीन ने कहा कि मुस्लिम हमारे अपने लोग हैं, हमारे नागरिक हैं और कानून के तहत उन्हें बराबरी का अधिकार है।
वैसे अफगानिस्तान से तालिबान के विभिन्न गुटों के ब्यान विरोधाभासी भी दिखे हैं। उधर अफगानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और हिज्ब-ए-इस्लामी गुलबुद्दीन पार्टी के नेता गुलबुद्दीन हिकमतयार ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा है कि तालिबान को अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी और देश के खिलाफ नहीं होने देने के अपने वादे पर टिकना चाहिए। हिकमतयार के मुताबिक अफगानिस्तान के लोग नहीं चाहते कि कश्मीर विवाद, भारत-चीन सीमा विवाद और तिब्बत जैसे मुद्दे अफगानिस्तान पहुंचें। हिकमतयार को पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई का ख़ास माना जाता है। दिलचस्प यह है कि तालिबान की चीन से भी लगातार बातचीत चल रही है। चीन काबुल में अपना दूतावास बनाये रखने की बात कह चुका है।
इस बीच भारत अफगानिस्तान में फंसे अपने लोगों को निकालने के लिए तैयारी में जुटा है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि काबुल हवाई अड्डे पर आपरेशन दोबारा शुरू होते ही लोगों को निकालने का अभियान शुरू होगा। भारत तालिबान पर जोर दे रहा है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी तरह की आतंकी गतिविधियों के लिए न हो पाए।

जनता मंहगाई से त्रस्त है, मोदी सरकार टैक्स वसूली में मस्त है: श्रीनिवास बी वी 

भारतीय युवा कांग्रेस ने आज देश में लगातार बढ़ती मंहगाई, रसोई गैस सिलेंडर के दामों और पेट्रोल डीजल की कीमतों के खिलाफ पेट्रोलियम मंत्रालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया।

देश में महंगाई लगातार बढ़ रही है, गैस सिलेंडर के दाम भी ₹1000 के पार जाने को तैयार हैं। इसी तरहा पेट्रोल डीजल की कीमतों में भी आग लगी हुई है। महंगाई आसमान से भी ऊपर जा रही है और सरकार गरीब जनता की पुकार सुनने को तैयार नहीं है।

भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्रीनिवास बी वी ने कहा कि रसोई गैस सिलेंडर के दाम में फिर ₹25 की बढ़ोतरी हुई है, इसके साथ ही राजधानी दिल्‍ली में एलपीजी सिलेंडर का भाव अब ₹884.50 हो गया है। रसोई गैस सिलेंडर के दामों में लगातार वृद्धि कर जनता को किस बात की सजा दे रही है मोदी सरकार? गैस सिलेंडर के दामों में ₹190 तक की बढ़ोतरी हुई है। देश और देशवासियों के लिए काफी महंगी पड़ी है मोदी सरकार। पड़ोसी देशों के मुकाबले भारत में पेट्रोल और डीजल सबसे ज्यादा महंगा है, और मोदी जी कह रहे है की देश बदल रहा है।

भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री श्रीनिवास बी वी जी ने यह भी कहा कि देश पर जो मुसीबतों का पहाड़ टूटा है, उसकी जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ मोदी सरकार और उसकी देश विरोधी नीतियां ही हैं। आम आदमी को मुसीबत में डालकर अपना खजाना भरने वाले लोग ये बात भूल गए हैं कि बहुत जल्द इन्हें भी जनता की अदालत में जाना है।

यही है मोदीजी का अच्छे दिनों का वादा। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार ने ‘जनलूट कार्यक्रम’ के तहत तेल टैक्स में वृद्धि कर जनता के साथ लूट की है। इस लूट के बाद भी जनता के हिस्से में सिर्फ खोखले वादे हैं, मोदी सरकार जनता को लूटना बंद करे।

युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी राहुल राव ने कहा कि मनमोहन सरकार के मुकाबले मोदी सरकार के दौरान गैस सिलेंडर के दामों में दोगुने से ज्यादा की वृद्धि हो चुकी है। अच्छे दिनों का सपना दिखाकर जनता को महंगाई के कुचक्र में फंसाया जा रहा है। लेकिन सरकार पर इन सब बातों से कोई फर्क पड़ता हुआ नहीं दिख रहा है। अगर थोड़ा सा भी फर्क पड़ता तो जनता पर इस तरह के जुल्म नहीं करती।

इस अवसर पर भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और दिल्ली प्रभारी भईया पवार, दिल्ली प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रणविजय सिंह लोचव, समेत अनेकों युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता उपस्थित रहे। प्रदर्शन में कई युवा कांग्रेस के साथियों को पुलिस ने डिटेन कर मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन लेकर गई।

 

पंजाब में वर्ष 2019-20 में डायरेक्ट सैलिंग कारोबार 523 करोड़ के पार: सर्वेक्षण​ ​

देश के उत्तरी राज्य पंजाब में वर्ष 2019-20 में डायरेक्ट सैलिंग उद्योग का कारोबार छह प्रतिशत की वर्ष दर वर्ष शानदार वृद्धि दर्ज करते हुये 523 करोड़ रूपये को पार कर गया है। एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। ​

देश में कार्यरत डायरेक्ट सैलिंग कम्पनियों की शीर्ष संस्था इंडियन डायरेक्ट सैलिंग एसोसिएशन(आईडीएसए) की ओर से आज यहां जारी इस रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में गत चार वर्षों में कुल डायरेक्ट सैलिंग कारोबार में 25 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जो यह दर्शाता है कि यह राज्य न केवल उत्तरी क्षेत्र में डायरैक्ट सैलिंग के सबसे बड़े बाजारों में से एक है बल्कि कारोबार का यह मॉडल राज्य की जनता के बीच लोकप्रिय है। राज्य में इस समय लगभग 1.5 लाख लोग इस डायरैक्ट सैलिंग से जुड़े हुये हैं जो न केवल इन्हें स्वरोजगार के अवसर बल्कि एक सतत, स्थायी और अतिरिक्त आय अर्जित करने का भी साधन उपलब्ध करा रहा है। ​

रिपोर्ट के अनुसार डायरेक्ट सैलिंग कारोबार के माध्यम से राज्य को इस अवधि में करों के रूप में 60 करोड़ रूपये से ज्यादा का राजस्व भी प्राप्त हुआ तथा कारोबार बढ़ने के सथ इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि भी होगी। पंजाब समेत देश के अन्य राज्यों में गत अनेक वर्षों से डायरेक्ट सैलिंग कारोबार का दायरा लगातार बढ़ रहा है। विशेषकर युवा और महिलाएं इसे अब बेहतर कैरियर के रूप में अपना रहे हैं। ​ ​ ​

आईडीएसए के कोषाध्यक्ष, विवेक कटोच ने इस अवसर पर पत्रकारों को सम्बोधित करते हुये कहा “हम राज्य सरकार द्वारा गत वर्ष डायरेक्ट सेलिंग गाईडलाईन्स ​ अधिसूचित करने के लिये उसके आभारी हैं जिससे राज्य में इस कारोबार मॉडल को नियामक स्वरूप और स्पष्टता मिलेगी। हम राज्य के खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री भरत भूषण आशु का विशेष तौर पर धन्यवाद देना चाहते हैं जिन्होंने पिछली गाइडलाईन्स को लेकर उद्योग की चिंताओं को समझते हुये ‘पंजाब डायरेक्ट सैलिंग गाइडलाईन्स‘ में कुछ आवश्यक संशोधनों को मंजूरी प्रदान की। हम उद्योगों की समस्याओं का समाधान करने सम्बंधी राज्य सरकार के दृष्टिकोण तथा कारोबार करने की सहजता की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने के लिए भी इसका आभार व्यक्त करते हैं“। श्री कटोच आईडीएसए के पूर्व चेयरमैन भी रहे चुके हैं। ​

आईडीएसए के महाप्रबंधक चेतन भारद्वाज ने इस अवसर पर डायरेक्ट सैलिंग उद्योग के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने के साथ ही पंजाब सरकार द्वारा ​ डायरेक्ट सैलिंग को लेकर गठित राज्य निगरानी समिति में आईडीएसए को ‘विषय विशेषज्ञ‘ के रूप में शामिल करने के लिए खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले विभाग का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा “आईडीएसए का राज्य में निगरानी प्रक्रिया का हिस्सा बनना वास्तव में इस उद्योग के लिये एक सौभाग्य की बात है तथा यह राज्य में डायरेक्ट सेलिंग व्यवसाय के नियामक तंत्र को और मजबूत करने के लिए अपनी सभी विशेषज्ञता सेवाएं प्रदान करेगा“। राज्य की नवम्बर 2020 में अधिसूचित गाइडलाईन्स के अनुरूप गठित राज्य निगरानी समिति में राज्य के विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी और सरकार द्वारा मनोनीत विषय विशेषज्ञ शामिल हैं तथा इनमें आईडीएसए भी एक है। ​

इस अवसर पर राज्य सिविल सेवा अधिकारी और राज्य के खाद्य, आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के विभाग के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम विभाग के उप सचिव इंदर पाल, अतिरिक्त निदेशक सिमरजोत कौर तथा डायरैक्टर सैलिंग उद्योगों के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

कश्मीर के अलगाववादी नेता अली शाह गिलानी का निधन

पिछले तीन दशक में जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी मुहिम के अगुआ हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का निधन हो गया है। गिलानी हमेशा पाकिस्तान के समर्थक रहे।
गिलानी सोपोर से तत्कालीन जम्मू कश्मीर विधानसभा के लिए तीन बार विधायक भी चुने गए थे। साल 2008 के चर्चित अमरनाथ भूमि विवाद और 2010 में श्रीनगर में एक युवक की मौत के बाद उभरे विरोध प्रदर्शनों का गिलानी बड़ा चेहरा बने और इसके बाद हुर्रियत कांफ्रेंस के गठन में वे संस्थापक सदस्य थे। बाद में उससे अलहदा होकर 2000 में गिलानी ने तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया जबकि उन्होंने जून 2020 में हुर्रियत कांफ्रेंस को छोड़ दिया था।
गिलानी खुद को कश्मीर की लड़ाई का अगुआ कहते थे। उनकी मौत पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश में एक दिन के राजकीय शोक का एलान किया है।  केंद्र सरकार ने हाल में हुर्रियत कांफ्रेंस पर प्रतिवंध लगाने की घोषणा की थी। उनकी मौत पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत के खिलाफ ट्वीट किया है जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने इमरान सरकार को लताड़ लगाई है।
दरअसल इस ट्वीट में गिलानी के मौत का जिक्र करते हुए कहा – ‘कश्मीर की आज़ादी के आंदोलन के मशाल वाहक सैयद अली शाह गिलानी के निधन पर पाकिस्तान शोक जताता है। गिलानी ने भारतीय कब्जे की नजरबंदी के तहत आखिर तक कश्मीरियों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्हें शांति मिले और उनकी आजादी का सपना साकार हो।’
हालांकि, कुरैशी के ट्वीट के बाद कांग्रेस ने पाकिस्तान के पीएम इमरान खान पर हमला किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट करके कहा -‘मिस्टर कुरैशी आपने वास्तव में जिहाद के नाम पर निर्दोष कश्मीरियों को कट्टरपंथी बनाने के लिए भारत में काम करने वाली अपनी खुफिया एजेंसी का एक प्रतिनिधि खो दिया। निर्दोष कश्मीरियों की हत्या के लिए आपका देश और आपके सभी प्रतिनिधि इतिहास में दर्ज होंगे।’
गिलानी के निधन पर कश्मीर में अलगाववादियों ने अफ़सोस जताया है। पीपुल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने गिलानी के निधन पर शोक जताया है। उधर मुख्य धारा की नेता और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने ट्वीट में कहा – ‘हम भले ही ज्यादातर चीजों पर सहमत नहीं थे, लेकिन मैं उनकी दृढ़ता और उनके भरोसे पर अडिग रहने के लिए उनका सम्मान करती हूं।’

एक्टर सिद्धार्थ शुक्ल का निधन

जाने माने टीवी एक्टर और बिग बॉस 13 के विनर रहे सिद्धार्थ शुक्ला का निधन हो गया है। वे 40 वर्ष के थे। सिद्धार्थ को हार्ट अटैक आया जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ उनकी मौत हो गयी।
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक सिद्धार्थ पिछली रात दवाई लेकर सोए थे। दवाई कौन सी थी, इसे लेकर कोई साफ़ जानकारी अभी नहीं है। सिद्धार्थ का पार्थिव शरीर फिलहाल मुबंई के कूपर अस्पताल में है, जहाँ उन्हें ले जाय गया था। संभवता पोस्टमॉर्टम के बाद उनका शव परिजनों को सौंपा जाएगा।
शुक्ला की मौत की खबर से ने पूरी इंडस्ट्री को सकते में दाल दिया है क्योंकि शुक्ल अपने प्रोजेक्ट्स में व्यस्त थे और हाल तक शूटिंग भी कर रहे थे। हाल में शहनाज गिल के साथ शुक्ल ‘बिग बॉस ओटीटी’ में भी नजर आए थे।

देश में कोविड के मामलों में दो महीने की सबसे बड़ी उछाल, 24 घंटे में 47,092 मामले

देश में कोविड-19 के मामलों में अचानक फिर बड़ी उछाल देखने को मिल रही है। पिछले 24 घंटे में भारत में 47,092 नए मामले सामने आए हैं और 509 लोगों की  जान चली गयी है। पिछले दो महीने में कोविड के मामले बढ़ने की यह सबसे बड़ी संख्या है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से आज सुबह जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 24 घंटों के दौरान देश में 47,092 नए मामले सामने आए हैं जबकि 509 लोगों की मौत हुई है। हालांकि, इस दौरान 35,181 लोग बीमारी से ठीक भी हो गए हैं।
जहाँ तक सक्रिय मामलों की बात है पिछले 24 घंटे में इनकी संख्या में 11,402 का इजाफा हुआ है, जिससे कुल सक्रिय मामले अब 389,583 हो गए हैं।
यदि राज्यवार मामलों की बात जाए तो सबसे ज्यादा मामले केरल में हैं। वहां इनकी संख्या 2,30,461 (सक्रिय मामले) है जबकि दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है जहाँ  54,606 सक्रिय मामले हैं। इन राज्यों के अलावा कर्नाटक में 18,438, तमिलनाडु में 16,620 और आंध्रप्रदेश में 14,473 सक्रिय मामले हैं।
महाराष्ट्र में कुल 64,69,332 मामलों में से 62,77,230 लोग स्वस्थ हो चुके हैं। केरल में अब तक कुल 40,90,036 मामले आ चुके हैं। कर्नाटक में 29,50,604, तमिलनाडु में 26,16,381, आंध्रप्रदेश 20,15,302, उत्तरप्रदेश में 17,09,351, पश्चिम बंगाल में 15,49,283, दिल्ली में 14,37,800, ओडिशा में 10,08,469, छत्तीसगढ़ में 10,04,482, राजस्थान में 954,100 जबकि गुजरात में भी अब तक संक्रमण के करीब 825,435 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से 815,201 लोग स्वस्थ हो चुके हैं।
इन राज्यों के अलावा मध्यप्रदेश में 792,186, हरियाणा में 770,506, बिहार में 725,718, तेलंगाना में 658,376, पंजाब में 600,651, इसके बाद असम 589,999 का नंबर आता है। यदि पूरे देश का आंकड़ा देखें तो अब तक कुल 320,28,825 लोग कोविड से ठीक हो चुके हैं।

हिन्दी दिवस 14 सितंबर पर विशेष हिन्दी राष्ट्र में हिन्दी की अवहेलना

भारत में हर वर्ष 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। पहला हिन्दी दिवस सन् 1953 की इसी तिथि (14 सितंबर) को मनाया गया। वैसे हिन्दी को आधिकारिक भाषा 4 सितंबर, 1949 को ही घोषित कर दिया गया था। किन्तु संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी, जो कि रोमन में लिखी जाने वाली हिन्दी नहीं है; के साथ-साथ अंग्रेजी को भी राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया।

यह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि स्वतंत्रता की लड़ाई के समय से ही भारत के लिए एक साझा भाषा को मान्यता देने की माँग उठती रही। स्वतंत्रता के दीवानों को अंग्रेजी से आपत्ति थी, जबकि अंग्रेजों के सेवकों या कहें कि उनकी शरण में दासों की तरह रहने वाले लोगों को हिन्दी से घृणा थी। महात्मा गाँधी भारत की राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी को देखना चाहते थे। नेताजी सुभाषचंद्र बोस, बलिदानी (शहीद) भगत सिंह जैसे महान् क्रान्तिकारी भी इस पक्ष में थे; किन्तु अंग्रेजी सरकार के अनेक चाटुकार इतिहासकारों ने इसे वरीयता नहीं देने दी तथा अब भी इसी मानसिकता के लोग हिन्दी को राष्ट्र भाषा मानने से मना करते हैं। स्वतंत्रता के बाद अधिकतर राज्यों के नेताओं, बुद्धिजीवियों तथा सामान्य लोगों ने हिन्दी को देश की राष्ट्र भाषा बनाने की बात को माना। हिन्दी के महत्त्व को देखते हुए ही जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने हर वर्ष 14 सितंबर के दिन को हिन्दी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।

किन्तु आज तक समूचे भारत में इसे सबने स्वीकार नहीं किया। जबकि उत्तर से लेकर पश्चिम तक के भारतीय हिन्दी बोलते तथा समझते हैं। यहाँ तक कि बड़ी संख्या में दक्षिण भारतीय भी हिन्दी बोलते-समझते हैं। किन्तु दक्षिण भारतीय तथा पूर्वोत्तर राज्य के लोग हिन्दी को अपनाने को तैयार नहीं होते। हिन्दी को राष्ट्र भाषा मानने में किसी को आपत्ति क्यों है? नहीं पता। हिन्दी को अपनाने का दबाव भारत सरकार भी किसी पर नहीं बनाती। जबकि संविधान सभा ने भी यह बात कही थी कि सभी न्यायिक एवं कार्यालयी प्रक्रियाओं में हिन्दी को कामकाज की भाषा बनाने की दिशा में सार्थक प्रयास किये जाने चाहिए तथा जैसे ही यह हो जाए, कामकाज के लिए अंग्रेजी की जगह हिन्दी का उपयोग किया जाना चाहिए। किन्तु अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा से हटाने का जब समय आया, तो देश के कुछ हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन हुए; हिंसक प्रदर्शन हुए। तमिलनाडु में भी हिंसा हुई। ऐसे में भारत सरकार ने आधिकारिक भाषा के तौर पर हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों को रखा तथा भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाओं को देश की भाषाओं के तौर पर मान्यता दी। अभी भी अनेक लोग अपने क्षेत्र, समाज की कई भाषाओं, जिन्हें बोलियों का स्थान प्राप्त है; संविधान की 8वीं अनुसूची में भाषा के रूप में सम्मिलित कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। किन्तु पूरे भारत के लोग एकजुट होकर हिन्दी को राष्ट्र भाषा का सम्मान दिलाने की बात पर सहमत नहीं हो रहे; जो कि देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। क्योंकि विश्व में ऐसा कोई देश नहीं, जहाँ उसकी कोई एक ही भाषा राष्ट्र भाषा के रूप में न हो। अभी स्थिति यह है कि विश्व के हर देश में अंग्रेजी बोली तथा पढ़ी जाती है। किन्तु उसे केवल बाहरी लोगों से सम्प्रेषण (मनोभावों के आदान-प्रदान) का माध्यम माना जाता है। किन्तु जब उस देश के लोग आपस में वार्तालाप (बातचीत) करते हैं, तो उनके सम्प्रेषण की अपनी राष्ट्र भाषा ही होती है; जो कि पूरे देश में एक है। यहाँ तक कि विश्व के अधिकतर देश पढ़ाई के लिए अपनी मातृ भाषा को अपनाते हैं, किन्तु भारत में अंग्रेजी माध्यम को ही लोकप्रियता मिली हुई है तथा जबरन मान्यता के तौर पर पढ़ाया जाता है।

हिन्दी इतनी सरल भाषा है कि जन्म के बाद हर शिशु के मुँह से स्वत: फूट पडऩे वाले पहले अक्षर ‘अ’ आरम्भ होती है। हिन्दी का व्याकारण विश्व की सभी भाषाओं से परिमार्जित तथा परिष्कृत है। इतना शुद्ध व्याकरण विश्व की किसी भी भाषा का नहीं है। हिन्दी की सरलता तथा सुन्दरता का एक सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि हिन्दी हर भाषा के शब्दों को अपने में शामिल कर लेती है; जबकि विश्व की कोई भी भाषा दूसरी भाषा के शब्दों को अपने यहाँ जगह नहीं देती। इतना ही नहीं, हिन्दी की लिपि देवनागरी विश्व की हर भाषा को अपने आपमें लिपिबद्ध कर सकती है। विश्व की शेष किसी भी भाषा में यह अच्छाई नहीं है। हिन्दी की सरलता तथा सहजता का अनुमान इस बात से भी सहज लगाया जा सकता है कि देवनागरी लिपि के आरम्भ से अन्त तक के स्वर बच्चे के पहले उच्चारण से आगे तक के स्वर उच्चारणों से सम्बन्धित हैं। हम किसी बच्चे को अगर बोलते हुए देखें, तो वह सबसे पहले ‘अ’ ही बोलता है। फिर ‘आ’, फिर कभी ‘उ’ तो कभी ‘ऊ’, कभी ‘इ’, ‘ई’, ‘ओ’, ‘औ’, ‘अं’, ’अ:’, ‘ए’ तथा ‘ऐ’ स्वयं ही तभी से बोलने लगता है, जब उसने कोई भाषा सीखी-पढ़ी नहीं होती है। इससे बड़ा आश्चर्य इस बात का है कि विश्व के किसी भी देश में जन्म लेने वाला बच्चा भी इन्हीं स्वरों के उच्चारण आरम्भ में अपने मुँह से उच्चारित करता है। यही वजह है कि हम अपनी मात्र भाषा की लिपि को ‘देवनागरी’ अर्थात् देवों की लिपि कहते हैं।

किन्तु यह दु:ख की बात है कि आज अनेक भारतीय ही हिन्दी से द्वेष करते हैं; दूरी रखते हैं। आज देश के अधिकांश हिन्दी-भाषी लोग भी हिन्दी के सही तथा सम्पूर्ण ज्ञान से अनभिज्ञ हैं। दु:ख इस बात का है कि आज जिसे भी देखो अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाना पसन्द करता है। जबकि आज हिन्दी भाषियों की आवश्यकता पूरे विश्व में है। जो लोग हिन्दी पढऩा-पढ़ाना नहीं चाहते, उन्हें इतनी बात अवश्य समझनी चाहिए कि हिन्दी विश्व के एक मध्यम देश की लगभग 22 मान्य भाषाओं तथा सैकड़ों बोलियों के बीच से निकलकर विश्व की तीसरी बड़ी भाषा के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है। भले ही भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है; किन्तु सन् 2011 के आँकड़ों के अनुसार, 10,000 से अधिक लोगों द्वारा बोली एवं समझी जाने वाली 121 भाषाएँ तथा बोलियाँ यहाँ हैं।

भारत में लगभग 40 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते तथा समझते हैं। किन्तु इसके सही व्याकरण तथा इसके अक्षरों के सही उच्चारण की जानकारी बहुत कम लोगों को ही है। दु:ख इस बात का भी है कि हिन्दी भारत देश की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा होने के बाद भी अपने ही देश में राष्ट्र भाषा का सम्मान नहीं पा सकी है। कहने को हिन्दी देश की आधिकारिक भाषा है तथा इसे मातृ भाषा का सम्मान प्राप्त भी है। देशवासियों से सरकारी या निजी कार्यक्षेत्र में काम करने के लिए हिन्दी के उपयोग की अपील भी सरकार द्वारा की जाती है एवं प्रेरणा भी दी जाती है। किन्तु सरकारी काम ही हिन्दी से अधिक अंग्रेजी में देखने को मिलते हैं। राज्यों की अपनी-अपनी भाषा हो सकती है। किन्तु देश की अलग-अलग भाषाएँ होना देश को तोडऩे की ओर पैर बढ़ाने के बराबर है।

आज हमें हिन्दी को राष्ट्र भाषा एवं विभिन्न लिखित कार्यों में उपयोग के तौर पर अपनाने की आवश्यकता है। बच्चों को अच्छी तरह हिन्दी पढ़ाने की भी आवश्यकता है। क्योंकि यहाँ हिन्दी की शुद्धता में लगातार बिगाड़ पैदा किया जा रहा है। कुछ लोग दूसरी भाषाओं के शब्दों को बलात् (जबरन) हिन्दी पर थोपने में लगे हुए हैं, जो कि हिन्दी के भविष्य के लिए संकट का संकेत है। आज हमारी युवा पीढ़ी के अधिकतर बच्चे हिन्दी का सामान्य ज्ञान भी नहीं रखते। ऐसे में देश के सभी माता-पिता एवं शिक्षकों का यह उत्तरदायित्व है कि वे बच्चों को शुद्ध हिन्दी पढ़ाने-सिखाने पर ध्यान दें; अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि हमें अपनी ही मातृ भाषा सीखने-सिखाने के लिए अनुशिक्षण (अतिरिक्त शिक्षा अर्थात् ट्यूशन) लेनी पड़े। केवल हिन्दी दिवस मनाकर पल्ला झाड़ लेने से न हिन्दी को ही उसकी योग्यता के अनुसार सम्मान मिलेगा तथा न ही हिन्दी भाषियों को। इसके लिए हिन्दी की उपयोगिता को हृदय से स्वीकार करना होगा एवं इसे कामकाज की भाषा के रूप में अपनाना होगा।

पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक का गिरफ़्तारी मामला न्यायालय से राहत, सरकार की आफ़त

पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी की गिरफ़्तारी से सतर्कता ब्यूरो (विजिलैंस) की ही नहीं, बल्कि राज्य सरकार की भी किरकिरी हुई। गृह विभाग चूँकि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के पास ही है, लिहाज़ा वह भी न्यायालय की विपरीत टिप्पणी की ज़द से बाहर नहीं हैं। विजिलैंस प्रमुख बी.के. उप्पल उन्हें पूरे घटनाक्रम की बराबर जानकारी देते रहे होंगे। हाई प्रोफाइल मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान से बाहर जा नहीं सकता। गिरफ़्तारी से पहले उन्हें भरोसे में लिया होगा। वहाँ से हरी झण्डी मिलन के बाद ही कार्रवाई को अंजाम दिया होगा।

पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने पूछताछ के लिए बुलाये गये सैनी की सतर्कता ब्यूरो द्वारा की गिरफ़्तारी को ग़ैर-क़ानूनी बताते हुए तल्ख़ टिप्पणी की है। सैनी की जिस मामले में ब्यूरो ने गिरफ़्तारी की है, उसमें उन्हें उच्च न्यायालय ने अग्रिम जमानत दे रखी थी। ब्यूरो ने दूसरी दर्ज प्राथमिकी में गिरफ़्तारी को सही बताया। लेकिन पंजाब सरकार उच्च न्यायालय में अपनी बात को सही साबित नहीं कर सकी, लिहाज़ा उसे मुँह की खानी पड़ी।

सैनी को हिरासत से छोडऩे के आदेश के बाद राज्य के जेल और सहकारिता मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने एडवोकेट जनरल, गृह सचिव और विजिलैंस ब्यूरो चीफ को पद से हटाने की माँग कर डाली। जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार से जुड़े किसी मंत्री या अन्य को सार्वजनिक तौर पर ऐसी आलोचना करने से पहले तथ्यों आदि पर विचार करना चाहिए। सीधा इशारा अपने ख़िलाफ़ चल रहे उन मंत्रियों पर है, जो उनके ख़िलाफ़ गुटबंदी कर रहे हैं।

उच्च न्यायालय के आदेश पर ही सैनी मोहाली में सतर्कता ब्यूरो दफ़्तर गये थे; लेकिन बजाय इसके उन्हें मामले में गहन पूछताछ की जाती, उन्हें हिरासत में ले लिया गया। इसके बाद मीडिया में उनकी गिरफ़्तारी और सलाख़ों के पीछे जाने की ख़बरें चलने लगीं। सैनी की पत्नी की शिकायत पर उच्च न्यायालय ने ब्यूरो की कार्रवाई को ग़लत बताते हुए न केवल फटकार लगायी, बल्कि भविष्य में सैनी को गिरफ़्तार करने से एक सप्ताह पहले उन्हें (न्यायालय) को अवगत कराने की अनिवार्यता का आदेश दिया। तो क्या सतर्कता ब्यूरो ने जल्दबाज़ी और हड़बड़ी में सैनी को गिरफ़्तार किया या फिर उनके पास दर्ज प्राथमिकी में कोई ठोस सुबूत थे? निश्चित तौर पर हड़बड़ी में और मुख्यमंत्री को यह दिखाने के लिए कि वह बहुत कुछ करने में सक्षम है।

न्यायालय के आदेश पर मुँह की खाने के बाद भी सरकार की सेहत पर कुछ ख़ास पड़ता नहीं दिख रहा। शिअद-भाजपा सरकार के दौरान बरगाड़ी और बहबलकलां गुरु ग्रंथ साहिब बेअदबी और गोलीकांड मामले में कांग्रेस सरकार की विशेष जाँच टीम की रिपोर्ट भी उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दी थी। रिपोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल आदि को इन सबके लिए ज़िम्मेदार बताया गया था।

इसे एक पक्षीय बताते हुए रिपोर्ट पर ही सवालिया निशान लगा दिया था। अगर सब कुछ ठीक होता, तो राज्य सरकार इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती देती; लेकिन अब तक इस दिशा में कोई प्रयास नज़र नहीं आता। हालाँकि सरकार ने नयी समिति गठित कर जाँच शुरू करा दी है। नैतिकता के आधार पर तत्कालीन आईजी कुँवर विजय प्रताप सिंह ने इस्तीफ़ा दे दिया था। बेअदबी से जुड़ा मामला कांग्रेस सरकार के लिए बहुत महत्त्व रखता है। तय समय में नयी समिति इसे अंजाम तक पहुँचा पाएगी, यह कहना फ़िलहाल मुश्किल है। सैनी ने न्यायालय से अपने मामलों की जाँच सीबीआई या किसी केंद्रीय स्वतंत्र एजेंसी से कराने की गुहार लगायी है। उन्हें लगता है कि पंजाब में कांग्रेस सरकार के दौरान वह किसी-न-किसी मामले में फँसते रहेंगे। वह राज्य सरकार के निशाने पर हैं। इसलिए उनके ख़िलाफ़ नये मामले दर्ज किये जा रहे हैं। सैनी के आरोप अपनी जगह ठीक हो सकते हैं; लेकिन विजिलैंस प्रमुख और पुलिस महानिदेशक रहते उन्होंने जो कुछ शिअद-भाजपा सरकार के लिए किया, वह तो जगज़ाहिर है।

सैनी तेज़ तर्रार पुलिस अधिकारी के तौर पर जाने जाते रहे हैं। एक बार किसी से ख़ुन्नस हो जाए, तो उसे जल्दी से भुला नहीं पाते। बेअदबी के मामलों में शिअद-भाजपा सरकार की आलोचना होने के बाद वह सरकार की नज़रों से उतर गये। तब शिअद का भाजपा के साथ गठजोड़ था। लिहाज़ा राज्य में आलोचना और केंद्र के दबाव के चलते सैनी को सन् 2015 में पद से हटाना पड़ा। उसके बाद से सैनी नैपथ्य में चले गये और उनके एक तरह से बुरे दिन शुरू हो गये। सन् 2018 में सेवानिवृत्ति के बाद से तो वह कांग्रेस सरकार विशेषकर कैप्टन अमरिंदर सिंह को किसी खलनायक की तरह लगने लगे हैं और कई मुसीबतों में घिर गये हैं।

सैनी हिरासत में हत्या और मानवाधिकार के उल्लंघन जैसे गम्भीर आरोपों से घिरे हैं; लेकिन अभी तक उनकी कभी गिरफ़्तारी नहीं हुई। न्यायालय से उन्हें अब तक राहत मिलती रही है। वे कई मामलों का सामना कर रहे हैं। इनमें चंडीगढ़ के बलवंत सिंह मुल्तानी की हिरासत में हत्या का मामला, बरगाड़ी और बहबलकलां में गुरु ग्रंथ साहिब बेअदबी के मामले, पुलिस गोलीबारी में दो लोगों की मौत, चंडीगढ़ के सेक्टर-20 में एक कोठी का मामला, सभी उनसे जुड़े हैं। मोहाली ज़िले के कुराली में वल्र्डवाइड इमीग्रेशन कंसलटैंसी सर्विस मामले में भी उनका नाम जुड़ गया है। सतर्कता ब्यूरो ने इस सन्दर्भ में कम्पनी की ही इकाई एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक देविंदर संधू को गिरफ़्तार कर लिया है। कम्पनी पर कृषि भूमि पर मिलीभगत और झूठे काग़ज़ातों के आधार पर आवासीय क्षेत्र बनाने का आरोप है। यह मामला काफ़ी पुराना है; लेकिन अब सैनी का नाम भी अपरोक्ष तौर इसमें जुड़ गया है।

सैनी को पंजाब का सबसे युवा पुलिस महानिदेशक बनने का मौ$का योग्यता से मिला या तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की मेहरबानी से यह बहस का विषय हो सकता है; लेकिन वह बने और लगभग तीन साल तक बादल परिवार के चहेते अधिकारी रहे। इससे पहले सतर्कता ब्यूरो के प्रमुख रहते उन्होंने इस परिवार के लिए बहुत कुछ किया; लेकिन इसे योग्यता नहीं माना जा सकता। राज्य में सन् 1980 से सन् 1990 तक आतंकवाद के दौर में सुमैध सैनी के काम की सराहना हुई। उन्हें इसके लिए वीरता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। आतकंवादियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई के बाद वह उनके निशाने पर थे।

सन् 1991 में चंडीगढ़ में उनकी कार को बम से उड़ाने का प्रयास हुआ, जिसमें वह बाल-बाल बच गये; लेकिन उनके तीन सहयोगियों की मौत हो गयी। तब वह चंडीगढ़ में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थे। ख़ालिस्तानी अभियान को नेस्तानाबूद करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही; लेकिन इसकी आड़ में बहुत-से लोगों के ग़ायब होने और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के आरोप भी उन पर लगे।

उनकी छवि विवादास्पद अधिकारी की रही है, जो सरकार के इशारे पर कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाए। वह बादल परिवार के चहेते बने, तो उनकी सरकार के इशारे पर कैप्टन अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई करने में भी गुरेज़ नहीं किया। शिअद सरकार के दौरान ही लुधियाना का सिटी सेंटर घोटाला सामने आया। इसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके बेटे रणिंदर सिंह और अन्य प्रमुख लोगों के नाम सामने आये। तब सैनी विजिलैंस विभाग के प्रमुख थे। इस मामले में कैप्टन, उनके बेटे, रिश्तेदार और अन्य को क्लीन चिट मिल चुकी है।

कभी कैप्टन अमरिंदर सिंह के मीडिया सलाहकार रहे भरत इंदर सिंह चहल की तत्कालीन सरकार में तूती बोलती थी। कांग्रेस के सत्ता से बाहर और शिअद की सरकार बनने पर उन्हीं चहल को विजिलैंस प्रमुख रहते हुए सैनी ने ही गिरफ़्तार करवाया था। आज वही चहल कैप्टन के सलाहकार हैं और उनका ख़ूब रुतबा भी है। लेकिन पहले की तरह अब वह खुलकर सामने नहीं आते; फिर भी सरकार जो चाहे, वह मैनेज कराने में सक्षम हैं। पूछताछ के बहाने सैनी की गिरफ़्तारी पुरानी ख़ुन्नस मिटाने की भी हो सकती है। सेवानिवृत्ति के बाद शीर्ष स्तर के अधिकारी आराम की ज़िन्दगी बसर करना चाहते हैं; लेकिन सैनी के लिए यह किसी सपने जैसा है।

कोठी बनी मुसीबत

चंडीगढ़ के सेक्टर-20 में बनी एक कोठी का मामला सैनी के लिए मुसीबत बना हुआ है। एक प्राथमिकी इसे लेकर ही है। काग़ज़ों में सैनी इस कोठी में किरायेदार के तौर पर है। लेकिन हक़ीक़त में क्या ऐसा है? यह तो न्यायालय के फ़ैसले से पता चलेगा; लेकिन इसमें राज़ बहुत हैं। समझौते (एग्रीमेंट) के मुताबिक, सैनी कोठी के एक हिस्से का किराया 2.50 लाख रुपये देते हैं। शुरू के 11 माह का कुल किराया लगभग 27.50 लाख बनता है; लेकिन सैनी ने 40 लाख रुपये प्रतिभूति सुरक्षा (सिक्योरिटी) के नाम से मकान मालिक के खाते में जमा कराये; जबकि दो माह के किराये के पाँच लाख रुपये अलग से जमा कराये। विजिलैंस विभाग ने सैनी और मकान मालिक के बैंक खातों की पड़ताल की है; जिसके आधार पर वह जाँच कर रही है।