Home Blog Page 615

दिल्‍ली कैंट: 9 साल की बच्ची के रेप और हत्या मामले में गुत्‍थी और भी उलझी

राजधानी दिल्‍ली के कैंट इलाके में 9 साल की बच्ची के रेप और हत्या मामले को लेकर राजनीति तेज़ हो गई है। मामले में परिवारजनों के बदलते बयानों से गुत्‍थी और भी उलझ गई है।

रविवार की शाम को दिल्ली कैंट इलाके में 9 साल की बच्ची के साथ कथित तौर पर रेप हुआ और उसकी हत्या कर दी गयी।

शुरूआती बयान में बच्ची के घरवालों का आरोप था कि रविवार की शाम जब बच्ची श्‍मशान घाट से पानी भरने गयी थी तब वहां उसकी मौत हो गयी थी और पुजारी ने जबरन बच्ची का अंतिम संस्कार करवा दिया।

जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने फोरेंसिक एक्सपर्ट बुलाकर शमशान से जहां बच्ची को जलाया गया था वहा से नमूने उठवाए। बाद में मामले में आरोपी पुजारी राधेश्याम, लक्ष्मीनारायण, कुलदीप और सलीम के कमरों से उनके कपड़े जब्त किए और वाटर कूलर निकालकर उसकी भी फोरेंसिक जांच करवाई।

पुलिस का कहना है कि बच्ची के घरवालों ने शुरुआती बयानों में रेप और हत्या की बात नहीं लिखवाई थी। वही दूसरी तरफ, परिवार वालों ने बच्ची के साथ रेप और हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई है।

शुरुआती बयान में उन्होंने करंट से मौत की बात कही थी। फिर  बाद में जब उन्होंने दोबारा बयान दिए तब हत्या, रेप, सबूत मिटाने और एससी एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज कराया था।

मामले में शामिल सभी आरोपीयों को गिरफ्तार कर लिए गए है। आरोपियों का कहना है कि बच्ची की मौत करंट से हुई है।

पोलिस ने मामले की फोरेंसिक जांच भी कराई है, जांच से पता चला है कि वाटर कूलर में करंट आ रहा था। हालाकी पोस्टमार्टम से आभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है।

पुलिस के अनुसार, आरोपियों के कमरे से उनके कपड़े जब्त किए गए हैं जिनकी डीएनए जांच होगी. इसके साथ ही आरोपियों का पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट भी कराया जाएगा।

इंगित प्रताप सिंह डीसीपी दक्षिणी पूर्वी दिल्ली ने बताया- ‘मामले में संगीन धाराओं में सभी आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए हैं। जांच एसीपी रैंक के अफसर कर रहे हैं। हम जल्दी ही चार्जशीट पेश कर देंगे. वैसे चार्जशीट 60 दिन में होती है।’

इस मामले में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जब संदिग्ध मौत का केस था तो पुजारी ने इतनी जलदी अंतिम संस्कार क्यों करवाया।

संसद के बाहर कांग्रेसी और अकाली नेताओं में जुबानी जंग

संसद के भीतर और बाहर नए कृषि कानूनों को लेकर पहले से ही हंगामा मचा हुआ है। बुधवार को इसका असर संसद के बाहर सांसदों के बीच भी देखने को मिला। इस मामले पर कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू और शिरोमणि अकाली दल सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के बीच जुबानी जंग हुई। प्लेकार्ड्स लेकर संसद के बाहर प्रदर्शन कर रहीं बादल और अकाली सांसद से बिट्टू ने कहा कि आपका यह प्रदर्शन नकली है।

रवनीत सिंह बिट्टू ने कहा कि जिस समय सरकार कृषि कानून संसद में पास करा रही थी, उस वक्‍त शिरोमणि अकाली दल सरकार के साथ थी। उसके किसी भी नेता ने केंद्र सरकार के बिल पर ऐतराज नहीं जताया। संसद में जब बिल पास हो गया और कानून भी बना दिया गया तब जाकर अकाली दल को लगा कि उसे किसान हितैषी बनना चाहिए। जब किसानों ने अकाली नेताओं के घर घेर लिए और बाहर निकलना दूभर कर दिया तब जाकर उन्होंने सत्ता से खुद को अलग करने का ऐलान किया। ये लोग रोज ड्रामा करते हैं, जबकि इन लोगों के कैबिनेट में रहते हुए बिल पास हुआ।

इस पर केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने पलटवार कर कहा कि जब बिल संसद में पास हो रहा था तो कांग्रेस ने बिल के समय वॉकआउट क्‍यों किया था? जब संसद में बिल पास हो रहा था, उस समय राहुल गांधी कहां पर थे? उस समय वो किसानों की आवाज बनकर संसद में क्‍यों नहीं आए। उन्होंने निशाना साधते हुए कहा कि राहुल और सोनिया गांधी ने विधेयक के विरोध में संसद में अपनी बात क्‍यों नहीं रखी।

जासूसी, किसान मुद्दे पर संसद में हंगामे के बीच मिनटों में विधेयक पास करा रही सरकार

पेगासस जासूसी और किसानों के मुद्दे के लेकर जारी हंगामे से संसद के मानसून सत्र का तीसरा हफ्ते भी धुलता नजर आ रहा है। इससे पहले दो हफ्ते तकरीबन बिना कामकाज के ही हंगामे की भेंट चढ़ चुके हैं। पेगासस मुद्दे को लेकर विपक्ष अपने कड़े तेवर बनाए हुए है जबकि सरर भी अपने रुख पर अड़ी है। खास बात यह है कि इसी बीच विपक्ष के विरोध की परवाह किए बिना सरकार मिनटों में फटाफट कई अहम विधेयक पारित करा ले रही है, जिससे जानकार हैरानी जता रहे हैं। लोगों का करोड़ों रुपया संसद की कार्यवाही में बर्बाद हो रहा है और सरकार महज इसे खानापूर्ति की तरह भरपाई करती नजर आ रही है।

संसद सत्र के सुचारू संचालन न होने से विधायी कार्यों का सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। दूसरे दलों की राय को अहमियत दिए बिना और बिना चर्चा व बहस के कई अहम विधेयक मिनटों में मोदी सरकार पास करा रही है। ऐसा लग रहा है मानो विधेयक पास कराने की महज औपचारिकता पूरी की जा रही है। जबकि संसद को एक मिनट चलाने में करीब ढाई लाख रुपये खर्च होते हैं और इस हिसाब से जनता के करोड़ों रुपये स्वाहा हो रहे हैं।

कानून बनाने की जगह संसद में किसी विधेयक पर कम चर्चा होने का मतलब है संसद में लोकतंत्र का नहीं होना। बहस में विपक्ष की राय न लिए जाने से महज औपचारिकता का एहसास होता है। विधेयक एक बार पारित हो गया और कानून की शक्ल में बदल गया तो इसमें बदलाव लाने में फिर लंबा वक्त लग जाता है।

मिनटों में पास हुए एक या दोनों सदनों से अहम विधेयक

फैक्टरिंग रेगुलेशन (अमेंडमेंट) विधेयक 2021-
26 जुलाई को लोकसभा से 13 मिनट में पारित, इसमें बिल पेश करने वाला समय भी शामिल
राज्यसभा में यह बिल 14 मिनट में पारित, केवल पांच सांसदों ने बहस में हिस्सा लिया
द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी इंटर्नप्नोयरशिप एंड मैनेजमेंट बिल
26 जुलाई को लोकसभा से छह मिनट में पारित
द मरीन एड्स टू नेविगेशन बिल 2021
27 जुलाई को राज्यसभा से 40 मिनट में पारित
जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटक्शन ऑफ चिल्ड्रन) संशोधन बिल, 2021
28 जुलाई को विपक्ष के शोर-शराबे के बीच राज्यसभा से 18 मिनट में पारित

द इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (अमेंडमेंट) बिल 2021
28 जुलाई को पांच मिनट में लोकसभा से पारित

इनलैंड वेसल्स बिल 2021
29 जुलाई को छह मिनट में लोकसभा से और 33 मिनट में दो अगस्त को राज्यसभा से पारित करा लिया गया

द एयरपोर्ट इकोनॉमिक्स रेगुलारिटी अथॉरिटी (संशोधन) बिल 2021
29 जुलाई को 14 मिनट में लोकसभा से पारित

द कोकोनट डेवलपमेंट बोर्ड (संशोधन) बिल, 2021
29 जुलाई को राज्यसभा से पांच मिनट में पारित

द जनरल इंश्योरेंस बिजनेस अमेंडमेंट बिल, 2021
दो अगस्त को आठ मिनट के भीतर लोकसभा से पारित

रैपर हनी सिंह पर पत्नी ने लगाए गंभीर आरोप

यो यो हनी सिंह के नाम से मशहूर रैपर और चर्चित गायक पर उनकी पत्नी ने बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। इससे हनी सिंह की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। शालिनी तलवार ने पति हनी सिंह पर न सिर्फ मारपीट करने के बल्कि यौन हिंसा, मानसिक उत्पीड़न और आथिक शोषण के भी आरोप लगाए हैं।

शालिनी ने हनी सिंह के साथ ही अपने सास-ससुर और ननद पर भी उंगली उठाई है। शालिनी ने हनी सिंह पर ‘द प्रोटेक्शन ऑफ वुमन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट’ के तहत दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में याचिका दायर की है। यह याचिका मजिस्ट्रेट तानिया सिंह के समक्ष पेश की गई है। वकील संदीप कपूर, अपूर्वा पांडे और जीजी कश्यप ने शालिनी तलवार की ओर से यह याचिका दायर की। कोर्ट ने हनी सिंह को नोटिस जारी कर 28 अगस्त से पहले जवाब तलब किया है। साथ ही कोर्ट ने स्त्रीधन को न छेड़ने पर भी हनी सिंह पर रोक लगाई है।

बता दें कि हनी सिंह और शालिनी तलवार 20 साल दोस्त रहने के बाद प्यार में डूबे थे और 2011 में शादी की थी। हालांकि इन दोनों की शादी के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। इस बीच, उनके साथ कई नामों के लेकर चर्चा और अफवाहें उड़ती रहीं, लेकिन इनके रिश्ते में किसी भी तरह की दरार नहीं आई। लेकिन अब कोरोना संकट के इस दौर में रिश्तों में जो कड़वाहट दिख रही है, उससे हर परिवार को संवेदनशील तरीके से डील करने की जरूरत है।

येद्दियुरप्पा की कुर्सी जाते ही भ्रष्टाचार मामले में नोटिस जारी

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येद्दियुरप्पा की कुर्सी जाते ही मुश्किलों का दौर शुरू हो गया है। भ्रष्टाचार से जुड़े एक मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने येदियुरप्पा को नोटिस जारी कर तलब किया है। आवासीय परियोजना में कथित भ्रष्टाचार के मामले में मंगलवार को राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और  उनके बेटे के साथ ही भाजपा के प्रदेश उपाध्ययक्ष बी वाई विजयेंद्र, उनके परिवार के सदस्यों, पूर्व मंत्री एस टी सोमशेखर और भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी को भी नोटिस जारी किया है।

जस्टिस एस सुनील दत्त यादव की एकल पीठ ने कार्यकर्ता टी जे अब्राहम की याचिका पर इन सभी के खिलाफ नोटिस जारी करने का आदेश दिया है। इस साल आठ जुलाई को विशेष अदालत द्वारा जारी आदेश को याचिका के जरिए चुनौती दी गई है। विशेष अदालत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा और तत्कालीन मंत्री सोमशेखर पर मुकदमा चलाने के लिए अनुमति मांगने वाला मामला खारिज कर दिया था। यह मामला बेंगलुरु विकास प्राधिकरण की एक आवासीय परियोजना के लिए कथित रिश्वत लेने से जुड़ा हुआ है। इस विषय पर कर्नाटक विधानसभा में भी चर्चा हो चुकी है जब विपक्ष के नेता सिद्धारमैया ने एक अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था और गंभीर आरोप लगाए थे। वहीं, येदियुरप्पा और उनके बेटे ने आरोपों को खरिज कर दिया था।

दरअसल, मामला बेंगलुरु में 662 करोड़ रुपये की लागत से एक अपार्टमेंट के निर्माण से जुड़ा हुआ है। इससे पहले विपक्ष के नेता आरोप लगा चुके हैं कि येद्दियुरप्पा और उनके बेटे के साथ ही परिवार व रिश्तेदार भी इस भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं। आरोप है कि कोलकाता में एक फर्जी कंपनी के जरिये रिश्वत मांगी गई और बाकायदा भुगतान भी किया गया। इससे पहले भी मामले की जांच की मांग की जाती रही है। अब जब सीएम का पद गंवा चुके हैं, ऐसे में सरकार भले ही उनकी न हो, लेकिन पार्टी और करीबी नेता की ही है। ऐसे में अगर अदालत सख्त रुख अख्तियार करती है और मामले की परतें खुलती हैं तो कई नेता इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं।

 

पेगासस मुद्दे पर एडिटर्स गिल्‍ड ऑफ इंडिया ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की

 

सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले को लेकर अब एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी याचिका दाखिल करते हुए एस.आई.टी से जांच कराने की मांग की है।

पेगासस मुद्दे पर पहले ही शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं, जिन पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा।

साथ ही पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल की गई है। याचिका में केंद्र सरकार को निगरानी के लिए स्पाइवेयर तैनात करने के लिए विदेशी कंपनियों के साथ किए गए अनुबंधों का विवरण देने के लिए कहा गया है।

गिल्ड ने वरिष्ठ पत्रकारों की जासूसी और फोन टैपिंग पर भी सवाल उठाए है।

गौरतलब है कि  इससे पहले वरिष्ठ पत्रकार एन राम और उनके सहयोगी भी एक याचिका दाखिल कर चुके हैं. इसके अलावा भी कुछ पत्रकारों, वकील और राज्यसभा सांसद ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाकर इस मामले की जांच  कोर्ट की निगरानी में एस.आई.टी या किसी स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच एजेंसी से करवाने की मांग की  है ।

गिल्ड ने अपनी याचिका में ये भी कहा है कि कोर्ट सरकार को आदेश दे कि इस सॉफ्टवेयर खरीद मामले के तमाम दस्तावेज कोर्ट को सौंपे ताकि सरकारी दावे की सच्चाई सामने आ सके।

असम और मिजोरम की सीमा पर हालात अब भी बेहद तनावपूर्ण

असम और मिजोरम के बीच चल रहे सीमा विवाद थमने का नाम नही ले रहा है। दोनों राज्यों के बीच यह विवाद बहुत पुराना है और पिछले महीने की झड़प के बाद हालात और बिगड़ गए हैं। हालांकि राज्य और केंद्र सरकार की ओर से शांति की कवायद की जा रही है, पर किसी खास नतजी पर नहीं पहुंच सके हैं। एक ओर असम जहां सीमा पर नई चौकी बना रहा है तो दूसरी ओर एक दूसरे के राज्यों से वाहनों और लोगों की आवाजाही पर लगभग पाबंदी जैसे हालात हैं।

मामले की गंभीरता को देखते हुए सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से असम के भाजपा सांसदों ने मुलाकात की है। पूर्वोत्तर के भाजपा सांसदों ने प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद असम-मिजोरम सीमा विवाद सहित क्षेत्र से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर एक ज्ञापन भी सौंपा। ज्ञापन में कहा गया है दोनों राज्यों में विश्वास-निर्माण के लिए काफी काम किया गया है, लेकिन कांग्रेस इससे खुश नहीं है। सांसदों ने आरोप लगाया कि कांग्रेस बांटने का काम कर रही है।

इससे पहले रविवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ टेलीफोन पर बातचीत की थी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा और मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा से कहा था कि सीमा विवाद को शांत करने लिए जरूरी कदम उठाए जाएं। इस दौरान दोनों राज्यों के सीएम ने बातचीत से ही मुद्दे को हल करने की बात कही थी। इसके अलावा केंद्रीय गृह सचिव ने असम और मिजोरम के मुख्य सचिवों और दोनों राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर हालात की जानकारी ली थी।

दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री का रुख नरम

असम और मिजोरम के मुख्यमंत्रियों की ओर से एक-दूसरे को आरोपी बताए जाने के रुख में नरमी दिखी है। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने कहा है कि वो बातचीत के जरिए मुद्दा सुलझाने पर विश्वास करते हैं। मिजोरम के सीएम जोरामथांगा ने असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा और गृह मंत्री अमित शाह से फोन पर बातचीत के बाद कहा कि दोनों राज्यों के बीच जो भी विवाद है उसे बातचीत और मैत्रीपूर्ण रवैये के साथ सुलझा लिया जाएगा। असम सीएम ने कहा, मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने सीमा विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने की इच्छा जाहिर की है। असम पूर्वोत्तर की भावना को जीवित रखना चाहता है। हम अपनी सीमाओं पर शांति सुनिश्चित करने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं। इसी ओर कदम बढ़ाते हुए मैंने असम पुलिस को राज्यसभा सांसद वनलालवेना के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी वापस लेने के लिए निर्देश दिया है।

26 जुलाई को हुई थी सीमा पर झड़प

असम और मिजोरम के बीच 26 जुलाई को हुई झड़प के बाद तनाव बढ़ गया था। मिजोरम के कोलासिब जिले के वायरेंग्टे कस्बे में दोनों राज्यों के लोग और पुलिस बल आमने सामने आ गए और कईराउंड फायरिंग के बाद असम के छह पुलिसकर्मी मारे गए थे और एक नागरिक की भी मौत हुई थी। 50 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। जिसके बाद से दोनों राज्यों के बीच भारी तनाव कायम है। केंद्र सरकार ने केंद्रीय अर्धसैनिक बल की पांच कंपनियां इस इलाके में तैनात की हुई हैं। गौरतलब है कि लंबे समय से असम के जिले- कछार, करीमगंज और हैलाकांडी, मिजोरम के तीन जिलों- आइजोल, कोलासिब और मामित के साथ 164 तकरीबन किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। विवाद पुराना है, लेकिन इस तरह की हिंसा पहली बार देखने को मिली है। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री भी सख्त भाषा का प्रयोग करते नजर आए। मिजोरम में तो असम के मुख्यमंत्री के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला भी दर्ज किया गया है। इसके बाद विवाद और बढ़ गया।

आई टी ऐक्ट 66ए के तहत दर्ज मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से जवाब तलब किया

आई टी ऐक्ट 66ए रद्द किए जाने के बावजूद इसके तहत लगातार केस दर्ज होने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई की। कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है और सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को भी नोटिस जारी किये है।

अदालत ने कहा है कि न्यायपालिका को हम अलग से देख सकते हैं, लेकिन पुलिस भी है. इस पर एक उचित आदेश की आवश्यकता है, क्योंकि यह इस तरह जारी नहीं रह सकता है।  यह पुलिस के बारे में भी है।

राज्य सरकारों के तहत कानून का पालन करने वाली एजेंसियों को सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि आईटी एक्ट की धारा-66ए के तहत कोई नया मामला दर्ज न हो.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा-66 ए प्रावधान को रद्द करने के बाद इसके तहत मामले दर्ज को बंद करना राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की जिम्मेदारी है।

गौरतलब है कि रद्द हो चुके कानून पर भी केस दर्ज होने के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई थी और यह मामला संज्ञान में आने के बाद गंभीरता से लिया है।

जानकारी के अनुसार,  रद्द किए जाने के वक्त इस कानून के तहत 11 राज्यों में 229 मामले लंबित थे, लेकिन इसके बाद भी इन राज्यों में इस प्रावधान के तहत 1307 नए मुकदमे दर्ज किए गए हैं।

 

 

आस्था पर कोरोना भारी

संक्रमण की तीसरी लहर फैलने की आशंका के मद्देनज़र कांवड़ यात्रा पर सर्वोच्च न्यायालय ने लगायी रोक

कोरोना संक्रमण के फैलने और भविष्य में तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच अब कांवड़ यात्रा पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। अनेक लोग कह रहे हैं कि कोरोना महामारी को लेकर जो काम केंद्र और राज्य सरकारें नहीं कर सकीं, वह सर्वोच्च न्यायालय ने किया है। आपत्ति काले मर्यादा न अस्ति। मौत मुँह पर खड़ी हो, तो ख़ुशी मनाना ठीक नहीं। कोई भी भीड़भाड़ वाला त्योहार हो, उस पर रोक लगनी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय का यह फ़ैसला स्वागत योग्य है, जिसका कांवडिय़ों ने भी स्वागत किया है। विदित हो कि कांवड़ यात्रा 25 जुलाई से शुरू होनी थी। कांवड़ यात्रा से जुड़े लोगों ने ‘तहलका’ को बताया कि कोरोना की दूसरी लहर का कहर जारी है और तीसरी लहर की आंशका है, जिसे देखते हुए न्यायालय ने इस धार्मिक यात्रा पर रोक लगायी है। हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की सराहना करते हैं और उसका पालन करेंगे।
बताते चलें कि कांवड़ यात्रा हर साल सावन के महीने से शुरू होती है, जिसमें देश भर से लाखों कावडिय़ा महत्त्वपूर्ण सनातन (हिन्दू) तीर्थ स्थल हरिद्वार जाकर वहाँ से गंगा जल लेकर घर वापस लौटते हैं। इस साल कोरोना महामारी की तीसरी लहर के दौरान कांवड़ यात्रा होने से लाखों लोगों में कोरोना संक्रमण फैलने का ख़तरा था। क्योंकि कांवडि़ यात्रा से रास्तों पर, कांवड़ स्वागत स्थलों पर और हरिद्वार में भीड़ जुटना स्वाभाविक है। इन्हीं सब बातों पर ग़ौर करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों से कहा कि इस साल हर हाल में कांवड़ यात्रा को रोकना ज़रूरी है।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा रोक दी है; जबकि उत्तराखण्ड सहित अन्य राज्य सरकारों ने पहले ही चिकित्सकों, विशेषज्ञों की सलाह पर कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी थी।
कांवड़ यात्रा महासंघ से जुड़े विशाल शुक्ला का कहना है कि हर साल सावन के महीने में कांवड़ यात्रा को लेकर गुडग़ाँव और दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक वह महासंघ के सहयोग से निर्धारित स्थानों पर मेडिकल कैम्प और भण्डारे लगाते रहे हैं, ताकि किसी भी कांवड़ यात्री को कष्ट न हो। लेकिन पिछले साल से कोरोना महामारी के कहर ने लोगों को परेशान कर दिया है, जिसके चलते कांवड़ यात्रा के दौरान कोरोना के संक्रमण फैलने के ख़तरे को भाँपते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस बार रोक लगायी है।
दरअसल कांवड़ यात्रा को लेकर सही मायने में पेच उत्तर प्रदेश को लेकर फँसा था। उत्तर प्रदेश सरकार कांवड़ यात्रा को सुचारू रूप से जारी रखने को अडिग थी। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना था कि कोरोना प्रोटोकाल के तहत कांवड़ यात्रा जारी रहेगी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में होने वाली कांवड़ यात्रा पर स्वत: संज्ञान लेते हुए रोक लगा दी।
कांवड़ महासंघ के सदस्य प्रदीप कुमार ने कहा कि महासंघ नोएडा में हर साल सावन के महीने में कांवडिय़ों का भव्य स्वागत करता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी। इसलिए महासंघ ने फ़ैसला लिया है कि वह न्यायालय और सरकार के आदेश का पालन करेगा।
पंडित सुरेन्द्र पांडेय का कहना है कि कोई भी बीमारी ग़रीबी-अमीरी में भेद नहीं करती। जब यह कोरोना महामारी भीड़-भाड़ वाली जगहों से जल्दी फैलती है, तो भीड़ से बचाने के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने जो आदेश दिया है, हम उसका पालन करेंगे और लोगों से अपील भी करते हैं कि वे भी कोरोना की लड़ाई में सरकार का साथ दें। पूजा-अर्जना अपने घरों में श्रद्धा के साथ करें। भीड़-भाड़ से बचें।
कांवड़ यात्रा पर रोक लगने के बाद कुछ राजनीतिक दलों ने भले ही इसे सियासी अखाड़ा बनाने की कोशिश की; लेकिन न्यायालय के फ़ैसले के कारण सियासी दाँव नहीं चल सका। भले ही कोरोना सियासतदानों के काम का है; लेकिन इस साल कोरोना महामारी से लाखों लोग मर गये और कई परिवार के परिवार तबाह हो गये। ऐसे में सियासी तीर चलाने वालों के लिए कांवड़ यात्रा काफ़ी राजनीतिक नुक़सान का कारण बन सकती थी। लेकिन कांवड़ यात्रा पर ज़्यादा राजनीति नहीं हो सकी। कुछ लोगों ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय की दख़ल के पहले हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों से कांवड़ यात्री हरिद्वार पहुँच गये। सवाल यह है कि क्या पहले ही हरिद्वार जा चुके कांवडिय़ों को वापसी में सरकार रोकेगी?
इस बारे में कांवडिय़ा राजकुमार का कहना है कि हर साल कांवड़ यात्रा के 15 से 20 दिन पहले बहुत-से कांवडिय़ा हरिद्वार पहुँच जाते हैं। इसमें उनकी कोई ग़लती नहीं है। रोक तो अभी लगी है। इसलिए हरिद्वार पहुँच चुके कांवडिय़ा अपनी और दूसरों की सुरक्षा करते हुए कोरोना वायरस की जाँच के बाद ही अपने घर आएँ।

कोरोना वायरस क्या तीसरी लहर भी मचाएगी तबाही?

डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि अगर तीसरी लहर से अभी नहीं निपटा गया, तो भयावह परिणाम भुगतने होंगे,
भाजपा ने दिल्ली सरकार से कहा हर रोज़ आएँगे 40 हज़ार नये मामले, सरकार ठीक से कर ले तैयारी

अभी दुनिया कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रही है कि इसकी तीसरी लहर ‘डेल्टा वैरिएंट’ ने दस्तक दे दी है। हर कोई तीसरी लहर के ख़ौफ़ से सहमा हुआ है; क्योंकि विशेषज्ञ इसे दूसरी लहर से भी ज़्यादा ख़तरनाक बता रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इसे लेकर चेतावनी जारी की है। डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रॉस ए. गेब्रेयेसिस ने पिछले दिनों कहा कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर अभी शुरुआती दौर में हैं और पूरी दुनिया में अभी इस डेल्टा वैरिएंट से संक्रमितों की संख्या काफ़ी कम है, जिसे गिनती भर का कह सकते हैं। लेकिन अगर इस पर अभी से क़ाबू नहीं पाया गया, तो इसे रोकना असम्भव हो जाएगा है और हमेशा की तरह इस बार भी अगर लापरवाही हुई, तो पहले से भी भयावह परिणाम हमारे सामने होंगे। क्योंकि यह वायरस दुनिया के 111 देशों में दस्तक दे चुका है। यह जिस तेज़ी से फैल रहा है, उससे साफ़ है कि बहुत जल्दी यह पूरी दुनिया को अपनी गिरफ़्त में ले लेगा।
वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा है कि लोगों को समझना होगा कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर अभी ख़त्म नहीं हुई है और तीसरी लहर का ख़तरा सिर पर मँडरा रहा है। लेकिन कोरोना महामारी के नियमों में ढील देने से लोग लापरवाह हुए हैं, जो कि घातक हो सकता है।
भारत में कोरोना की तीसरी लहर को लेकर हैदराबाद के टॉप वैज्ञानिक भौतिक विज्ञानी और हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रो-बाइस चांसलर डॉक्टर विपिन श्रीवास्तव ने दावा किया है कि कोरोना की तीसरी लहर 4 जुलाई को ही दस्तक दे चुकी है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर लोगों ने कोरोना दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया और कोरोना-टीका नहीं लगवाया, तो स्थिति भयावह हो सकती है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कम होने के बाद से देखा जा रहा है कि लोग लापरवाही बरत रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी लोगों द्वारा सार्वजनिक स्थानों और पर्यटन स्थलों पर भीड़ लगाये जाने को लेकर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि लोगों को अभी सावधानी बरतने की ज़रूरत है। कोरोना की तीसरी लहर की दस्तक की आहट मिलते ही दिल्ली समेत कुछ राज्यों में रात्रि निषेधाज्ञा (नाइट कफ्र्यू) भी लागू है।
इधर विश्व भर में जुलाई के दूसरे हफ़्ते में 33.76 लाख कोरोना महामारी के नये मामले सामने आने से दहशत है। जुलाई के पहले हफ़्ते में विश्व में 29.22 लाख मामले सामने आये थे। यानी केवल एक हफ़्ते के अन्तर में कोरोना महामारी के आँकड़ों में 16 फ़ीसदी की वृद्धि हुई। कोरोना महामारी की रफ़्तार का यह हाल तब है, जब इसके तीसरे विषाणु के फैलने की गति अभी धीमी है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना महामारी के फैलने की दर अभी भारत में बहुत धीमी है। लेकिन अगर समय रहते इससे नहीं निपटा गया, तो यहाँ तबाही मचते देर नहीं लगेगी। नीदरलैंड में तो कोरोना महामारी की तीसरी लहर के मामलों में 300 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं स्पेन में 64 फ़ीसदी, तो दक्षिण अफ्रीका में 50 फ़ीसदी की वृद्धि इस महामारी में दर्ज की गयी है।
हालाँकि भारत में डेल्टा-3 वैरिएंट का कोई मामला नहीं मिला है, लेकिन जीनोम सीक्वेंसिंग की निगरानी कर रही इन्साकॉग समिति ने भारत को भी इस वायरस से सावधान रहने को कहा है।

टीकाकरण की स्थिति
कोरोना महामारी से बचाव का एकमात्र उपाय कोरोना टीकाकरण बताया जा रहा है। हालाँकि कोरोना टीका लगवाने वालों को कोरोना महामारी नहीं होगी, इसकी कोई गारंटी तो नहीं है; लेकिन इससे जोखिम कम होगा। भारत में क़रीब छ: महीने में क़रीब 40 फ़ीसदी लोगों का टीकाकरण हो चुका है। लेकिन अभी 60 फ़ीसदी लोगों को कोरोना टीकाकरण नहीं हुआ है, जो कि अगले छ: महीने में पूरा किया जाना है।
टीकों की कमी, टीकों के दाम को लेकर केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों का टकराव, लोगों में टीके के प्रति भय, अंधविश्वास व अफ़वाहों का होना और जागरूकता की कमी अब तक पूर्ण टीकाकरण न होने के मुख्य कारण हैं। वैसे केंद्र सरकार ने कहा है कि इस साल दिसंबर तक देश के हर पात्र नागरिक को टीका लग जाएगा। वहीं कहा जा रहा है कि बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए भी कोरोना टीका जल्द ही उपलब्ध होगा।
डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर को रोकने के लिए दुनिया के हर देश को सितंबर, 2021 तक कम-से-कम अपने देश के 10 फ़ीसदी लोगों का, 2021 के अन्त तक 40 फ़ीसदी लोगों का, जबकि 2022 के मध्य तक 70 फ़ीसदी लोगों का टीकाकरण हो जाना चाहिए।

कोरोना के आँकड़े
भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के आँकड़े जब न के बराबर आने लगे, तो लोगों ने यह मान लिया कि कोरोना वायरस ख़त्म हो गया। यह ग़लती कोरोना महामारी की पहली लहर के जाने के भ्रम के जैसी ही साबित हुई और अब इसकी तीसरी लहर ने देश में दस्तक दे दी। देश में 5 जुलाई से 11 जुलाई के बीच 2 लाख 90 हज़ार कोरोना के नये मामले दर्ज किये गये।
चिकित्सा रिपोट्र्स बताती हैं कि जुलाई के पहले हफ़्तें में प्रतिदिन कोरोना महामारी के नये मामलों का औसत 41,256 था, जबकि उससे पिछले सप्ताह यह 43,668 प्रतिदिन था। लेकिन कई राज्यों में जुलाई के पहले पखवाड़े में कोरोना महामारी के मामले बढ़े हैं। जैसे केरल में जुलाई के पहले पखवाड़े में 8.1 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा देखने को मिला। अरुणाचल प्रदेश में 5 से 11 जुलाई के दौरान कोरोना महामारी के मामलों में 43.8 फ़ीसदी की वृद्धि हुई, जबकि मिजोरम में 42.9 फ़ीसदी, मणिपुर में 26.6 फ़ीसदी और त्रिपुरा में 7.9 फ़ीसदी वृद्धि हुई। हाल ही में देश के एक जाने-माने अखबार ने एक रिसर्च रिपोर्ट का हवाला देते हुए किया है कि भारत में कोरोना से हुई मौतों का जो आँकड़ा दिया गया है, सही आँकड़ा उससे 10 गुना ज्यादा हो सकता है। रिपोर्ट में दावे के मुताबिक, भारत में जून, 2021 तक कोरोना से 30 लाख से 49 लाख मौतें हो चुकी हैं। बताया जा रहा है कि यह रिसर्स रिपोर्ट तैयार करने वालों में केंद्र सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम भी शामिल रहे।

बच्चों में फैल रहा संक्रमण


अब से तीन-चार महीने पहले ही कहा गया था कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर का असर बच्चों पर होगा, यह सच होता प्रतीत हो रहा है। इंडोनेशिया में जुलाई के तीसरे सप्ताह में क़रीब 100 बच्चों की मौत हो गयी। इससे पहले भारत में सैकड़ों बच्चों के कोरोना संक्रमित होने और कुछ मौतों की ख़बरें भी आ चुकी हैं। ऐसे में हम सबको सचेत रहने की आवश्यकता है।

गर्भवती महिलाओं को भी ख़तरा
कोरोना महामारी की तीसरी लहर बच्चों के अलावा गर्भवती महिलाओं के लिए भी घातक सिद्ध हो सकती है, ऐसा स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों की संस्था फाग्सी ने कहा है। राष्ट्रीय स्तर की इस संस्था ने जल्द-से-जल्द गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण करने का सुझाव का देते हुए उन्हें सचेत रहने को भी कहा है। बड़ी बात यह है कि बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए टीका नहीं है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर तो गर्भवती महिलाओं के लिए बड़ा ख़तरा है ही, लेकिन पहली और दूसरी लहर में भी गर्भवती महिलाएँ कोरोना संक्रमित हुई हैं और कुछ की मृत्यु भी हुई है। इसलिए अब उन्हें बहुत सावधान रहने की ज़रूरत है।

स्वरूप बदल रहा कोरोना
कोरोना महामारी की इस तीसरी लहर को लेकर चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि यह अपना स्वरूप बदल रहा है। तीसरी लहर के नये स्वरूप को डेल्टा बैरियंट के नाम से पुकारा जा रहा है। बता दें कि पिछले साल 2020 में जब यह दुनिया भर में फैल चुका था, तब विशेषज्ञों ने कहा था कि कोरोना वायरस ख़त्म नहीं होगा, बल्कि स्वरूप बदलकर लोगों को प्रभावित करता रहेगा। भारत में जब कोरोना वायरस की दूसरी लहर तबाही मचा रही थी, तभी से केंद्र सरकार, चिकित्सा विशेषज्ञ और जानकार तीसरी लहर के आने की चेतावनी देते आ रहे हैं।
सरकार ने तो यहाँ तक कह दिया था कि अगस्त में कोरोना की तीसरी लहर आएगी; जो और अधिक तबाही मचा सकती है। यह भी कहा गया था कि तीसरी लहर विशेष रूप से बच्चों को प्रभावित करेगी। इसी साल मार्च-अप्रैल में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में बच्चे कोरोना संक्रमित भी हुए थे। तब भी तीसरी लहर होने की आशंका तो जतायी गयी, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की गयी।

यह वायरस ज़्यादा घातक
डेल्टा वैरिएंट बहुत घातक है। लेकिन जुलाई में अमेरिका में कोरोना वायरस के नये मामलों में इससे भी ज़्यादा घातक वायरस डेल्टा-3 वैरिएंट मिला है। यह डेल्टा वैरिएंट की तुलना में सबसे ज़्यादा फैलने की क्षमता रखता है और टीकाकरण करा चुके या संक्रमित हो चुके लोगों में फैल सकता है। चिकित्सा विशेषज्ञों और डब्ल्यूएचओ ने पहले ही कहा था कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर का वायरस पहले से अधिक घातक, आक्रामक और अधिक संक्रामक होगा, जो कि समय के साथ और भी शक्तिशाली होता जाएगा।
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि कोरोना महामारी के डेल्टा वैरियंस नाम के इस वायरस को लेकर और इसके हर छ: महीने में बदलने वाले स्वरूप को लेकर दुनिया भर के देशों को सावधान रहना होगा, नहीं तो हालात बिगड़ सकते हैं।

भाजपा का दावा
इधर देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा, जो कि केंद्र की सत्ता में भी है; ने दावा किया है कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर के दौरान दिल्ली में हर दिन 40 हज़ार तक कोरोना महामारी के नये मामले आएँगे, जिससे राज्य में बड़ी तबाही मचेगी। आईआईटी दिल्ली की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा है कि देश में कोरोना महामारी की तीसरी लहर आ चुकी है, जो तेज़ी से बढ़ रही है। भविष्य में देश की राजधानी दिल्ली में हर दिन 40 हज़ार नये मामले आ सकते हैं, जिससे निपटने के लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार को अपनी तैयारियों में तेज़ी लानी चाहिए। उन्होंने कहा कि तीसरी लहर से निपटने के लिए दिल्ली में 500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की ज़रूरत होगी।
इधर दिल्ली सरकार ने काफ़ी समय से कोरोना महामारी की तीसरी लहर से निपटने की तैयारी कर ली है। इसके अलावा महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश ने भी तीसरी लहर से निपटने के लिए कमर कस ली है। फिर भी कोरोना महामारी की तीसरी लहर के नये मामले सामने आ रहे हैं। अगर कोरोना महामारी की तीसरी लहर का संक्रमण लोगों में तेज़ी से फैला, तो यह देश के लिए एक बार फिर बेहद ख़तरनाक और दु:खदायी समय होगा।

सभी का टीकाकरण ज़रूरी : डॉ. अनूप नाथ


इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सदस्य, आस्ट्रेलियन ट्रेडीशनल मेडिसियन सोसायटी के मान्यता प्राप्त सदस्य, माँ आद्यशक्ति हॉलिस्टिक हेल्थ ऐंड केयर फाउण्डेशन के संस्थापक एवं स्वास्थ्य निदेशालय दिल्ली सरकार (स्कूल स्वास्थ्य योजना) के अंतर्गत गीता कॉलोनी में कार्यरत वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर अनूप नाथ ने ‘तहलका’ को बताया कि अगर देश में अधिक-से-अधिक टीकाकरण हो जाएगा, तो हम तीसरी लहर से भी निपट लेंगे। इसमें कहीं-न-कहीं विषमता आ रही है। जैसे, कभी-कभी बहुत लोगों का टीकाकरण हो जाता है, तो कभी-कभी बहुत कम होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि लोग ऐसे आज़ाद घूम रहे हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। वे पैसे बचाने के लिए सरकारी तंत्र का फ़ायदा तो उठा रहे हैं कि हम आरटीपीसीआर करा लें, रैपिड टेस्ट करा लें। लोग यह सब इसलिए भी करा रहे हैं कि उन्हें कहीं जाने में कोई दिक़्क़त न हो। लेकिन टीकाकरण के नाम से कतरा रहे हैं। वे एक-दूसरे के सम्पर्क में भी आ रहे हैं। भीड़ भी लगा रहे हैं, और घूमने भी जा रहे हैं। जैसे कुछ हुआ ही न हो।
लोगों की यही अनुशासनहीनता काफ़ी बड़ी परेशानी खड़ी कर सकती है और सरकार को भी मुसीबत में डाल सकती है। सरकार इसलिए ज़्यादा सख़्ती नहीं कर रही है कि लोग बहुत दिनों तक परेशान रहे हैं। उनके काम-धन्धे भी बन्द रहे हैं। आर्थिक परेशानियों के चलते वे तनाव में भी हैं। लेकिन लोग इसका ग़लत फ़ायदा उठा रहे हैं। उन्हें कम-से-कम एक-दो साल तक, या जब तक कोरोना पूरी तरह से दुनिया से ख़त्म न हो जाए; मास्क भी लगाना चाहिए।
सामाजिक दूरी का पालन भी करना चाहिए और कोरोना वायरस से बचाव के लिए जारी सभी दिशा-निर्देशों का पालन भी करना चाहिए। टीकाकरण करा चुके लोगों को भी सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि टीकाकरण एक साथ तो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा नहीं देगा; उसके लिए दो-तीन महीने का समय तो लगेगा ही। लेकिन इससे बाद भी बचाव तो ज़रूरी है न! अब धीरे-धीरे संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। कोरोना के मरीज़ लगातार आ रहे हैं। अब उनकी रैपिड टेस्ट की रिपोर्ट होगी, जो तीन दिन में आयेगी। मान लीजिए रैपिड टेस्ट रिपोर्ट कहीं गड़बड़ हो गयी, तो आरटीपीसीआर की रिपोर्ट करायी जाएगी। आरटीपीसीआर की रिपोर्ट दो-तीन में रिपोर्ट आती है। तब तक तो वह कई लोगों को संक्रमित कर देता है।
दूसरी बात अभी टीकाकरण की जो गति है, वह बहुत धीमी है। अगर सरकार चाहे तो एक महीने के अन्दर लगभग सभी लोगों का टीकाकरण हो सकता है। लेकिन टीकाकरण का ठेका अपने हाथ में लेकर व्यवस्था को ख़राब कर दिया गया है। सरकार क्यों नहीं कुछ और कम्पनियों को कोरोना-टीका बनाने का ठेका दे देती? इससे कम्पनियों के बीच बेहतर टीका बनाने की होड़ भी लगेगी और ज़्यादा-से-ज़्यादा और अच्छी गुणवत्ता वाले कोरोना-टीके बन सकेंगे। लेकिन चंद कम्पनियों को इसका ठेका देकर सरकार ने उन्हें मनमानी करने की छूट-सी दे रखी है।
इसके अलावा प्राइवेट अस्पतालों को टीकाकरण का ज़िम्मा दिया जाना चाहिए और उनसे एक समझौता कर लेना चाहिए कि आपको सभी का मुफ़्त टीकाकरण करना है। या बुजुर्गों, दिव्यांगों और ग़रीबों का मुफ़्त टीकाकरण करना है और बाक़ी लोगों से एक छोटी-सी रक़म लेनी है। वैसे तो सरकार कह ही चुकी है कि सभी का मुफ़्त टीकाकरण किया जाएगा और मुफ़्त टीकाकरण का प्रचार भी हो रहा है; तो फिर सरकारी डॉक्टरों की कमी के होते हुए भी उन्हीं पर सारा बोझ क्यों डाला जा रहा है? प्राइवेट अस्पतालों को ठेका दिया भी था, उसे वापस ले लिया गया। इसे क्या समझा जाए? आख़िर कब तक महामारी से निपटने में हीला-हवाली होती रहेगी? राज्य सरकारें भी टीकाकरण के मामले में अपनी मनमानी कर रही हैं। टीकाकरण के आँकड़े बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रही हैं। क्यों नहीं केंद्र सरकार सारी व्यवस्था अपने हाथ में ले लेती?
सभी राज्य सरकारों और लोगों से डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देश का पालन तो आख़िर केंद्र सरकार को ही कराना पड़ेगा न! मेरा मतलब यह है कि सभी राज्यों में पूरी तरह टीके मुहैया कराकर केंद्र सरकार को आदेश देना चाहिए था कि इतने दिनों में टीकाकरण हो जाना चाहिए। सरकार को टीकाकरण का ठेका इंडियन मेडिकल एसोसएिशन को, नर्सिंग कॉउंसिल को या जो संस्थाएँ समाजसेवा करना चाहती हैं; उनको दे देना चाहिए।
अब दिल्ली में ही देखिए, टीकाकरण के लिए जगह-जगह टैंट लगा दिये गये हैं। स्कूलों को घेर लिया गया है। क्यों न इसके लिए औषधालय (डिस्पेंसरी) और मोहल्ला क्लीनिक्स का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे टैंट लगाने और स्कूलों में व्यवस्था करने का ख़र्च भी बच जाता और ज़्यादा-से-ज़्यादा टीकाकरण भी हो जाता।
अब यह देखिए कि डॉक्टरों और कोरोना योद्धाओं के परिजनों को भी तब तक टीका नहीं लग सकता, जब तक कि उनका पंजीकरण के आधार पर नंबर नहीं आएगा। ठीक से टीकाकरण न हो पाने और कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के अन्य कई कारण भी हैं; जैसे- बीच-बीच में त्योहार और चुनाव आ जाते हैं। अब बारिश में भी कहीं बाढ़ आ जाएगी, तो कहीं अधिक बारिश होगी, जिससे टीकाकरण प्रभावित होगा।