Home Blog Page 609

देश में लोकतंत्र को कुचलकर तानाशाही थोप दी है : राहुल

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुधवार को आरोप लगाया कि देश में लोकतंत्र को कुचलकर तानाशाही चल रही है। लखीमपुर खेरी में किसानों के साथ हुई घटना की कड़ी निंदा करते हुए राहुल ने घोषणा की है कि वे पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ आज लखीमपुर जा रहे हैं। उधर उत्तर प्रदेश प्रशासन ने राहुल को राज्य में आने की अनुमति देने से इंकार कर दिया है। उधर किसानों से मिलने जा रहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को यूपी पुलिस ने पिछले 48 घंटे से जेल में बंद हुआ है।

राहुल ने सवाल किया कि कोई उन्हें नहीं बता रहा कि उन्हें  किसानों से मिलने जाने से  क्यों रोका जा रहा है। कांग्रेस नेता ने कहा कि जिन्होंने मर्डर किया वे भाग कर निकल रहे हैं और जो किसानों की पीड़ा साझा करना चाहते हैं उन्हें रोका और गिरफ्तार किया जा रहा है। राहुल ने इसके लिए प्रियंका गांधी का नाम लिया और कहा कि कांग्रेस महासचिव बहुत बहादुरी से वहां हैं।

कांग्रेस नेता ने सवाल किया कि भाजपा ने मंत्री और उनके बेटे के खिलाफ तो कुछ नहीं किया है, दूसरे लोगों को जेल में बंद कर रही है। किसानों से मिलने जाने से भी सिर्फ हमें ही रोका जा रहा है। उन्होंने कहा कि वे आज लखीमपुर खेरी किसानों से मिलने जा रहे हैं और उनके साथ पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बधेल भी होंगे।

प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में गांधी ने मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला। राहुल गांधी ने कहा – ‘भूमि अधिग्रहण किसानों पर पहला हमला था और कृषि कानून देश के किसानों पर दूसरा आक्रमण है। विरोध कर रहे किसानों का जीप के नीचे कुचला जा रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लखीमपुर खीरी की घटना पर कुछ नहीं बोला है। आरोपी मंत्री और उनके बेटे पर कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है।”

लखीमपुर खेरी में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को गिरफ्तार किये जाने के बाद वहां जाने की  दूसरे बड़े नेता होंगे। राहुल गांधी ने आज पीएम मोदी पर हमला करते  हुए कहा – कल प्रधानमंत्री लखनऊ में थे, ‘लेकिन लखीमपुर खेरी नहीं जा पाए। ठीक से पोस्टमार्टम नहीं किया जा रहा है। आज हम 2 मुख्यमंत्रियों के साथ लखीमपुर खेरी जाकर उन परिवारों से मिलने की कोशिश करेंगे।’

बता दें कि उत्‍तर प्रदेश प्रशासन ने राहुल गांधी को लखीमपुर जाने की अनुमति नहीं दी है। उन्‍हें नोएडा में भी रोकने की पूरी तैयारी हो गई है। देखना है कि राहुल गांधी का वहां जाने का अब वहां जाने का अब क्या कार्यक्रम बनता है।

गिरफ्तारी के बाद अचानक यूपी की राजनीति के ‘केंद्र’ में पहुँची कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी

उत्तर प्रदेश में पहले ही ब्राह्मणों की नाराजगी झेल रही भाजपा लखीमपुर खेरी में अपने केंद्रीय मंत्री के बेटे के किसानों को अपनी गाड़ी से कुचलकर मार देने से पैदा हुए देश भर के गुस्से को देखकर भी अपने ब्राह्मण राज्‍य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को सरकार से हटाने और उनके आरोपी बेटे को गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं दिखाकर देश भर में अपनी बड़ी फजीहत करवा रही है। भाजपा की योगी सरकार, जिसे कुछ महीने में ही विधानसभा के चुनाव झेलने हैं, की पुलिस ने आरोपी आशीष मिश्रा को नहीं बल्कि उन प्रियंका गांधी को जेल में डाल दिया है, जो पीड़ित किसानों के परिजनों से मिलने खेरी लखीमपुर जा रही थीं।

प्रियंका को लखीमपुर जाकर पीड़ित परिवारों से मिलने के राजनीतिक लाभ को रोकने के लिए योगी की भाजपा सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर और जेल में डालकर अनजाने में ही उत्तर प्रदेश में उससे भी बड़ा राजनीतिक लाभ दे दिया है। अपनी दादी इंदिरा गांधी की ही तरह के हाव-भाव वाली उत्तर प्रदेश की प्रभारी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पिछले दो दिन से लगातार टीवी चैनलों पर छाई हुई हैं और उन्हें एक बड़ा ‘राजनीतिक स्पेस’ मिल गया है। उत्तर प्रदेश में खुद को भाजपा का विकल्प बताने वाले सपा के अखिलेश यादव और भाजपा से नजदीकियों के आरोप झेल रहीं मायावती कहीं नहीं दिख रहे हैं।

इन दो दिनों में ही प्रियंका गांधी ने अपनी हिरासत और बाद में गिरफ्तारी को जिस तरह जनता के सामने पेश किया है उससे उनकी छवि एक निर्भीक राजनेता की बन गयी है और अचानक उत्तर प्रदेश में वे सपा और बसपा से भी आगे दिखने लगी हैं। प्रियंका ने एक मझे राजनीतिक नेता की तरह जिस तरह हिरासत के दौरान जेल के भीतर झाड़ू से सफाई की और जिस तरह 33 घंटे हिरासत में रखने के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई उसे उन्होंने जेल के भीतर से वीडियोज के जरिये जनता तक पहुंचाकर उतना जनसमर्थन हासिल कर लिया, जो बहुत मेहनत से मिल पाता है।

यहाँ एक रोचक संयोग भी है। आज से 44 साल पहले 4 अक्टूबर, 1977 को आपातकाल के बाद बनी मोरारजी देसाई सरकार ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया था। उसके बाद देश में ऐसा माहौल बना कि कुछ ही महीनों के बाद इंदिरा गांधी फिर जबरदस्त बहुमत से सत्ता में आ गईं। प्रियंका भी 4 अक्टूबर को ही जेल में डाली गयी हैं।  जेल से आज उन्होंने एक वीडियो के जरिये सीधे प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देकर पूछा है कि अब तक आशीष की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई है।

प्रियंका गांधी अचानक देश के विपक्ष के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हो गगई हैं। उनकी गिरफ्तारी के बाद शिव सेना नेता संजय राऊत ने कहा – ‘उनकी (प्रियंका गांधी) की इस बहादुरी से देश के विपक्ष को एक ऊर्जा मिली है। वे राहुल गांधी से भी मिले, जो लगातार उनकी बहादुरी और किसानों के प्रति उनके समर्थन के लिए उनका उत्साह वर्धन कर रहे हैं।

बता दें 33 घंटे हिरासत में रखने के बाद आज  प्रियंका गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया। सीतापुर के पीएसी गेस्‍ट हाउस में उनके लिए अस्‍थाई जेल बनाई गई है। प्रियंका गांधी, हरियाणा से कांग्रेस के राज्‍यसभा सांसद दीपेन्‍द्र हुड्डा और कांग्रेस प्रदेश अध्‍यक्ष अजय लल्‍लू समेत कुल 11 लोगों के खिलाफ पुलिस ने धारा 151, 107, 116 के तहत मामला दर्ज किया है। पुलिस का कहना है कि प्रियंका गांधी की गिरफ्तारी 4 अक्‍टूबर की सुबह 4.30 बजे की गई थी। गिरफ्तारी के बाद उन्‍हें सीतापुर में पीएसी बटालियन के गेस्‍ट हाउस में रखा गया है।

गांधी की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किए जाने से कांग्रेस गुस्से में है। पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदम्‍बरम ने कहा – ‘यह पूरी तरह गैरकानूनी और बेहद शर्मनाक है। प्रियंका गांधी को सर्योदय से पहले साढ़े चार बजे एक पुरुष पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उन्‍हें अभी तक किसी ज्‍यूडिशियल मजिस्‍ट्रेट के सामने नहीं पेश किया गया। बिल्‍कुल कानून के खिलाफ।’

उधर प्रियंका ने आज पीएम मोदी के नाम एक वीडियो जारी किया। इसमें उन्‍होंने मोबाइल पर लखीमपुर हिंसा से पहले किसानों को जीप से रौंदे जाने का एक वीडियो दिखाते हुए पीएम से पूछा कि क्‍या आपने यह वीडियो देखा है?  उन्‍होंने केंद्रीय गृह राज्‍य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्‍तगी और उनके बेटे आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी न होने पर सवाल उठाया, जिनके खिलाफ पुलिस ने हत्‍या का मामला दर्ज किया है।

फेसबुक, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम दुनिया भर में अचानक हुए डाउन

दुनिया भर में फेसबुक, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम अचानक डाउन हो गए हैं। अभी तक इसका कारण नहीं पता चला है।

करीब 20 मिनट पहले लोगों ने अचानक पाया कि उनका व्हाट्सऐप चलना बंद हो गया है। फेसबुक और इंस्ट्राग्राम भी नहीं चल रहे। पता चला है कि किसी समस्या के चलते यह तीनों दुनिया भर में बंद हो गए हैं।

टीवी रिपोर्ट्स में भी बस यही बताया जा रहा है कि दुनिया भर में फेसबुक, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम अचानक डाउन हो गए हैं। किस कारण से हुए हैं इसकी अभी जानकारी नहीं है।

किसानों को कुचलकर मारने के आरोपी केंद्रीय मंत्री के बेटे पर एफआईआर; लखीमपुर जा रही प्रियंका, कई नेता हिरासत में

उत्तर प्रदेश पुलिस ने आखिर भारी दबाव के बाद किसानों को गाड़ी से कुचलकर मार देने के आरोपी केंद्रीय गृह राज्‍य मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा समेत 14 लोगों के खिलाफ हत्‍या, आपराधिक साजिश और दंगा करने समेत कई धाराओं में एफआईआर दर्ज कर ली है। इस घटना में 8 लोगों की मौत हुई है। उधर लखीमपुर के तिकुनिया में कथित तौर पर मंत्री के बेटे की गाड़ी के नीचे कुचलकर शहीद हुए किसानों के परिजनों से मिलने जा रहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। इलाके में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गयी हैं और वहां धारा 144 लगा दी गयी है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत लखीमपुर पहुँच गए हैं और इलाके में जबरदस्त तनाव बना हुआ है।

लखनऊ में धरने पर बैठे सपा नेता अखिलेश यादव को भी हिरासत में लिया गया है। यादव ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के इस्तीफे की मांग की है। लखीमपुर में किसानों की इस तरह हत्या की घटना के बाद देश भर में गुस्सा पैदा हो गया है। केंद्रीय मंत्री के बेटे के खिलाफ एफआईआर बहराइच नानपारा के जगजीत सिंह की तहरीर पर दर्ज की गई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक लखीमपुर में हिंसक झड़प के दौरान किसानों की मौत को लेकर केंद्रीय गृह राज्‍य मंत्री अजय मिश्रा के आरोपी बेटे आशीष मिश्रा समेत 14 लोगों के खिलाफ हत्‍या, आपराधिक साजिश और गंगा सहित कई धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है। लखीमपुर के तिकुनिया थाने में यह  एफआईआर दर्ज हुई है।

उधर राज्यमंत्री अजय मिश्रा ने सफाई दी है कि उपद्रवी तत्वों ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमला किया, लाठी-डंडों और तलवारों से पीटा जिसके वीडियो उनके पास हैं। तत्वों ने गाड़ियों में आग लगाई जबकि उनका बेटा कार्यक्रम स्थल पर था। मंत्री के दावे के मुताबिक उनके तीन कार्यकर्ताओं और ड्राइवर की मौत हुई है जिसके खिलाफ मामला दर्ज करवाया गया है।

इस बीच किसानों से मिलने के लिए सोमवार सुबह लखीमपुर खीरी पहुंचने वाली  कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी को हरगांव के पास ही हिरासत में ले लिया गया। प्रियंका गांधी आधी रात एक बजे वहां के लिए रवाना हुई थीं। प्रियंका गांधी को हरगांव से हिरासत में लेकर सीतापुर पुलिस लाइन ले जाया गया। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि प्रियंका गांधी से पुलिसकर्मियों ने जोर जबरदस्ती की।

उधर राहुल गांधी ने इस घटना पर ट्वीट में कहा – ‘प्रियंका, मैं जानता हूं तुम पीछे नहीं हटोगी। तुम्हारी हिम्मत से वे डर गए हैं। न्याय की इस अहिंसक लड़ाई में हम देश के अन्नदाता को जिता कर रहेंगे।’ रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रियंका गांधी लड़के छह बजे ही  लखीमपुर खीरी की सीमा पर पहुंच गयी थीं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सीतापुर पुलिस लाइन की सेकेंड बटालियन के गेट के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। कार्यकर्ताओं ने गेट के अंदर घुसने का प्रयास किया। इस दौरान कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच हाथापाई भी हुई।

कुछ वीडियो फुटेज में देखा जा सकता है कि हरगांव में हिरासत में लिए जाने के दौरान प्रियंका गांधी यूपी पुलिस के अफसरों को कड़ी फटकार लगा रही हैं। उन्होंने पुलिस के अधिकारियों से सवाल उठाया कि पुलिस वाहन में उन्हें कैसे ले जाया जा रहा है। धक्का-मुक्की पर प्रियंका ने पुलिसकर्मियों को चेताया कि यह अपहरण, छेड़छाड़ और मारपीट का मामला बन सकता है। गिरफ्तार करने की चुनौती भी प्रियंका ने पुलिसकर्मियों को दी।

उन्होंने पुलिस अफसरों और मंत्रियों से वारंट लाने या ऑर्डर लाने को कहा। प्रियंका ने कहा कि कानून वो भी समझती हैं। यूपी में भले ही कानून का पालन न हो, लेकिन देश में ऐसा कानून है। प्रियंका के साथ पार्टी के नेता दीपिन्दर सिंह हुड्डा भी रविवार रात लखनऊ पहुंच गए थे।

आज सुबह सपा नेता अखिलेश यादव लखनऊ में इस घटना के विरोध में धरने पर बैठ गए। बाद में पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। कई विपक्षी दलों ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और इस लोकतंत्र की हत्या बताया है। इस बीच हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के ब्यान की कड़ी निंदा की जा  रही है जिसमें उन्होंने किसानों को ‘जैसे को तैसा’ की धमकी दी है। किसान लखीमपुर के घटना के बाद जबरदस्त गुस्से में हैं और अभी वहां तनाव बना हुआ है।

लखीमपुर खीरी में भाजपा नेता के बेटे ने किसानों को गाड़ी से कुचल डाला; 5 किसानों की मौत, इलाके में तनाव

उतर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक बड़ी घटना में मंत्री का विरोध कर रहे किसानों के ऊपर भाजपा नेता के बेटे ने गाड़ी चढ़ा दी, जिससे अभी तक 5 किसानों की मौत होने की खबर है। इलाके में जबरदस्त तनाव है और कुछ वाहनों में आगजनी की भी खबर है। वहां धारा 144 लगा दी गयी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे अमानवीय बताते हुए इस घटना की कड़ी निंदा की है। प्रियंका गांधी कल लखीमपुर खीरी जा रही हैं और किसानों के परिजनों से मिलेगी।

रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसान उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या का विरोध कर रहे थे। कुछ रिपोर्ट्स में आरोप लगाया गया है कि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र ने किसानों को धमकाया था। आरोप है कि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे अभय मिश्र मोनू पर किसानों को गाड़ी से कुचल दिया। कुछ किसान संगठनों ने गोलीबारी करने का आरोप भी लगाया है।

काफिले के एक वाहन के किसानों को रोंदने पर बवाल हुआ। हादसे के बाद किसान गुस्से से भर गए हैं और वहां बहुत ज्यादा तनाव है। लखीमपुर खीरी के डीएम अरविंद चौरसिया ने घटना की पुष्टि की है। अभी तक की जानकारी के मुताबिक पांच किसानों की मौत हो गई है।

घटनास्थल पर हालात बहुत तनावपूर्ण बने हुए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा और भारतीय किसान यूनियन के नेता लखीमपुर पहुंच रहे हैं। इससे आशंका बन रही है कि वहां तनाव और बढ़ सकता है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी कल लखीमपुर खेरी जा रही हैं और वे किसानों के परिजनों से मिलेंगी।

हजारों की संख्या में किसान वहां पहुंचे हुए हैं। आरोप है कि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे अभय मिश्र मोनू पर किसानों को गाड़ी से कुचल दिया। कुछ किसान संगठनों ने गोलीबारी करने का आरोप भी लगाया है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने घट्न को लेकर कहा – ‘जो इस अमानवीय नरसंहार को देखकर भी चुप है, वो पहले ही मर चुका है. लेकिन हम इस बलिदान को बेकार नहीं होने देंगे- किसान सत्याग्रह ज़िंदाबाद !’

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट – ‘ भाजपा देश के किसानों से कितनी नफ़रत करती है? उन्हें जीने का हक नहीं है? यदि वे आवाज उठाएँगे तो उन्हें गोली मार दोगे, गाड़ी चढ़ाकर रौंद दोगे? बहुत हो चुका। ये किसानों का देश है, भाजपा की क्रूर विचारधारा की जागीर नहीं है। किसान सत्याग्रह मजबूत होगा और किसान की आवाज और बुलंद होगी।’

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी भाजपा पर निशाना साधा  है। उन्होंने किसानों पर गाड़ी चढ़ाने को क्रूर कृत्य बतया है। यादव ने कहा कि कि कृषि कानूनों का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे किसानों को भाजपा सरकार के गृह राज्यमंत्री के पुत्र द्वारा, गाड़ी से रौंदना घोर अमानवीय और क्रूर कृत्य है।

भवानीपुर में ममता की 58 हजार से जीत, तीनों सीटें टीएमसी को

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बंगाल की भवानीपुर सीट से विधानसभा उपचुनाव में अब तक के सबसे बड़े अंतर से जीत गईं हैं। वहां भाजपा उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल  को करारी हार मिली है। टीएमसी ने बाकी दो सीटें भी जीत ली हैं। जीत के बाद ममता ने भवानीपुर के लोगों का आभार जताया साथ ही बाकी की चार सीटों, जहाँ चुनाव जल्द ही होने हैं, के लिए उम्मीदवारों के नामों का ऐलान भी कर दिया।

भवानीपुर विधानसभा सीट से ममता बनर्जी ने भाजपा उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल को 58,832 वोटों अंतर से हरा दिया है। कुल 21 राउंड की गिनती के बाद ममता को 84,709 वोट मिले। भाजपा की पराजित उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल को 26,320 वोट ही मिले। टीएमसी कार्यकर्ता कोलकाता में ममता के आवास के बाहर दोपहर से ही जीत का जमकर जश्न मना रहे हैं। ममता की आज की जीत अब तक की उनकी  सबसे बड़ी जीत है। ममता की जीत के बाद उनके आवास के बाहर जश्न मनाया जा रहा है। कार्यकर्ता एक-दूसरे को मिठाई खिला रहे हैं।

जीत के बाद ममता ने अपने घर के बाहर कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। ममता ने भवानीपुर के लोगों को धन्यवाद कहा। शानदार जीत के बाद ममता बनर्जी ने कहा – ‘जब से बंगाल विधानसभा चुनाव शुरू हुआ तब से मेरी पार्टी के खिलाफ साजिश होती रही। भवानीपुर छोटी सी जगह है फिर भी यहां 3500 सुरक्षाकर्मी भेजे गए। मेरे पैर को चोट पहुंचाई गई ताकि चुनाव न लड़ सकूं। चुनाव आयोग की आभारी हूं। उन्होंने कहा कि सुवेंदु अधिकारी सिर्फ 28,000 वोटों से जीत दर्ज की थी।’

कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए सीएम ने कहा – ‘कोई भी जीत का जश्न नहीं मनाएंगे। कार्यकर्ता बाढ़ पीड़ितों की मदद करें।’ ममता ने केंद्र सरकार पर भी हमला बोला। ममता ने कहा – ‘नंदीग्राम न जीत पाने की बहुत सारी वजहें हैं। जनता ने बहुत सारी साजिशों को नाकाम किया है। भवानीपुर में 46 फीसदी लोग गैर बंगाली हैं।’

उधर हार के बाद प्रियंका टिबरेवाल ने कहा – ‘मैं शालीनता के साथ हार स्वीकार करती हूँ। ममता बनर्जी को जीत की बधाई। हालांकि, सबने देखा कि ममता ने कैसे जीत हासिल की।’

पश्चिम बंगाल के उपचुनाव में ममता बनर्जी की बड़ी बढ़त, टीएमसी आगे

बंगाल की भवानीपुर विधानसभा सीट पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुरू में ही उपचुनाव के लिए पड़े वोटों की गिनती में अच्छी बढ़त बना ली है, जिससे संकेत मिलता है कि वे बड़े अंतर से जीत की तरफ बढ़ रही हैं। दस राउंड की गिनती के बाद अपनी निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा की प्रियंका टिबरेवाल से करीब 32000 मतों की बड़ी बढ़त बनाये हुयी हैं। ममता के लिए यह चुनाव जीतना इसलिए जरूरी है क्योंकि मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्हें छह महीने के भीतर विधानसभा (या विधान परिषद्) का सदस्य बनना जरूरी है। बंगाल की बाकी दो सीटों पर भी टीएमसी ही आगे चल रही है। उधर ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजेडी एकमात्र सीट पर बढ़त बनाए हुए हैं।

अभी तक की रिपोर्ट्स के मुताबिक 29 सितंबर को उपचुनाव के लिए हुए मतदान के बाद आज सुबह सभी सीटों पर वोटों की गिनती चल रही है। बंगाल की भवानीपुर सीट, जहाँ से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मैदान में हैं, में शुरुआती रुझानों के मुताबिक बनर्जी दस राउंड की गिनती के बाद अपनी निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा की प्रियंका टिबरेवाल से करीब 32000 मतों की बड़ी बढ़त बनाये हुयी हैं।

भवानीपुर में ममता की बड़ी बढ़त को देखते हुए लोग उनके आवास पर अभी से भीड़ जुटनी शुरू हो गयी है और उनकी पार्टी के नेता और समर्थक बड़ी संख्या में वहां उनकी जय के नारे लगा रहे हैं। हाथों में टीएमसी का झंडा लिए यह समर्थक अभी से जश्न के मूड में हैं।

उधर बंगाल की अन्य दो सीटों पर भी टीएमसी की ही बढ़त बनी हुई है। मुर्शिदाबाद जिले के जंगीपुर और समसेरगंज में एक-एक उम्मीदवार की मौत के बाद मतदान स्थगित कर दिया गया था। वहां अब उपचुनाव हुआ है। भवानीपुर में 57 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था जबकि समसेरगंज और जंगीपुर में क्रमशः 79.92 प्रतिशत और 77.63 प्रतिशत वोट पड़े थे। इन सभी सीटों पर टीएमसी आगे है।

नतीजे 21 चरण की मतगणना के बाद घोषित किए जाएंगे। तीनों निर्वाचन क्षेत्रों में मतगणना केंद्रों के 200 मीटर के दायरे में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू है।

उधर ओडिशा की ओडिशा में पुरी जिले की पिपली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के लिए रविवार सुबह आठ बजे कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच वोटों की गिनती शुरू हुई। सत्तारूढ़ बीजेडी के रुद्रप्रताप महारथी, जनता पार्टी (भाजपा) के आश्रित पटनायक और कांग्रेस उम्मीदवार बिस्वोकेशन हरिचंदन महापात्र सहित 10 उम्मीदवार मैदान में हैं। अभी तक की रिपोर्ट्स के मुताबिक बीजेडी के रुद्रप्रताप महारथी आगे चल रहे हैं।

मुंबई से गोवा जा रहे शिप में रेव पार्टी पर छापा; शाहरुख के बेटे सहित 8 लोगों से पूछताछ, ड्रग्स भी मिलीं

एनसीबी ने मुंबई से गोवा जा रहे जिस क्रूज (शिप) में चल रही रेव पार्टी पर छापा  मारा है, उसमें बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन से भी पूछताछ की जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक छापे में ड्रज्स भी मिले हैं। इस मामले में अभी तक 8  लोगों को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ चल रही है। यह घटना कल रात की है। क्रूज प्रबंधन ने सफाई दी है कि उन्होंने ‘फेस्टिव सीजन’ के आधार पर इन लोगों को पार्टी के लिए क्रूज में स्पेस किराए पर दिया था।

पता चला है कि शिप में 600 से ज्यादा लोग थे। इनमें से पार्टी से जुड़े में शामिल 8 लोगों से पूछताछ की जा रही है। इनमें शाहरुख़ के बेटे आर्यन से भी पूछताछ की गयी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अधिकारी सबसे पूछताछ कर रहे हैं। हिरासत में लिए लोगों में दिल्ली की दो महिलाएं भी शामिल हैं।

जानकारी के मुताबिक एनसीबी की छापेमारी के दौरान जहाज से कोकीन के अलावा अन्य तीन तरह के ड्रग्स भी बरामद हुए हैं। पूछताछ के दौरान शाहरुख खान के बेटे आर्यन का कहना है कि उन्होंने पार्टी में शामिल होने के लिए किसी भी तरह का भुगतान नहीं किया था, उन्हें गेस्ट के तौर पर पार्टी में बुलाया गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक आर्यन ने दावा किया है कि पार्टी में उनके नाम पर कई लोगों को बुलाया गया था। पार्टी में क्या होने वाला था इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी। हालांकि, एनसीबी के अधिकारियों ने शाहरुख के बेट आर्यन का मोबाइल फोन जब्त कर लिया है और उनके चैट्स खंगाले जा रहे हैं, जिससे रेव पार्टी में आर्यन की भूमिका साफ हो सके।

बताया जा रहा है कि एनसीबी ने जब जहाज पर छापेमारी की तब उस पर करीब 600 हाईप्रोफाइल लोग सवार थे। सभी लोग पार्टी में शामिल होने के लिए जहाज में सवार हुए थे। पार्टी में शामिल होने के लिए टिकट की कीमत 80 हजार से लेकर दो लाख रुपये तक थी। एनसीबी की छापेमारी में रेव पार्टी से हिरासत में ली गई दोनों  महिलाएं दिल्ली की रहने वाली हैं। मुंबई स्थित एनसीबी ऑफिस में सभी से पूछताछ चल रही है।

एनसीबी ने पार्टी के आयोजक को समन भेजा है। उन्हें आज 11 बजे मुंबई स्थित एनसीबी कार्यालय में तलब किया गया। सात घंटे तक चली छापेमारी में एनसीबी को चार तरह के ड्रग्स कोकीन, हशीश, एमडीएमए और मेफेड्रीन बरामद हुए हैं, जिन्हें जब्त कर लिया गया है। जोनल अधिकारी समीर वानखेड़े ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। वह टीम के साथ यात्री के रूप में क्रूज पर सवार हुए और बीच समुद्र में पार्टी शुरू होते ही एनसीबी ने वहां रेड कर दी। आरोपियों को रंगे हाथों ही पकड़ लिया गया। शिप में छापेमारी के दौरान बॉलीवुड, फैशन और बिजनेस इंडस्ट्री से जुड़े लोग शामिल थे।

उदास है चिनार

मोदी की अमेरिका यात्रा में भी झलकी तालिबान को लेकर कश्मीर की चिन्ता

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने से कश्मीर को लेकर भारत की चिन्ता इस बात से समझी जा सकती है कि क्वाड बैठक के लिए अमेरिका गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो बाइडन के साथ बैठक से लेकर यूएनजीए के सम्बोधन तक हर मंच पर आतंकवाद का ज़िक्र किया। वैश्विक पटल पर भारत अमेरिका और अन्य देशों से अपनी, विशेष तौर पर कश्मीर की सुरक्षा को लेकर कितना सहयोग हासिल कर पाएगा, यह भविष्य की बात है। लेकिन इतना ज़रूर है कि पाकिस्तान और आतंकियों को तालिबानी अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल देश के ख़िलाफ़ करने की इजाज़त न देने की भारत पूरी कोशिश कर रहा है। पूरे मामले पर विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की रिपोर्ट :-

कश्मीर में यह सुनहरी पतझड़ का मौसम है। चिनार के सुनहरे पत्ते इस मौसम में धरती को अपनी ख़ूबसूरती से ऐसा रंग दे देते हैं, मानों हम स्वर्ग पर उतर आये हों। लेकिन इस ख़ूबसूरती के बीच कश्मीर के लोग एक अनजाने भय से भरे हैं। तुर्की और अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता पर क़ाबिज़ हुए तालिबान और अलक़ायदा जैसे आतंकवादी संगठनों के कश्मीर को लेकर भडक़ाऊ बयानों से यह चिन्ता और गहरी हुई है। इसी चिन्ता के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की यात्रा हुई है। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन समेत अन्य राष्ट्राध्यक्षों के सामने आतंकवाद को एक बड़े मुद्दे के रूप में पेश किया। मोदी की पिछले सात साल में अमेरिका की यह सातवीं यात्रा थी और इसका एक बड़ा मक़सद अमेरिका के नये प्रशासन, ख़ासकर राष्ट्रपति जो बाइडन से पहली मुलाक़ात भी थी। हालाँकि भारत की बड़ी चिन्ता कश्मीर को लेकर है; ख़ासकर अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी शासन आने के बाद। भारत उन देशों का मज़बूत समूह बनाना चाहता है, जो आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक साझा मंच चाहते हैं। अमेरिका की यात्रा शुरू होने से कुछ घंटे पहले ही जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद पर बयान जारी किया, उससे साफ़ था कि भारत फ़िलहाल तालिबान को मान्यता पर कोई विचार नहीं कर रहा। दोहा (क़तर) में तालिबान के प्रतिनिधियों से एक महीने पहले भारत के राजदूत की बैठक के बावजूद भारत तालिबान के प्रति सख़्त रूख़ बनाये रखे हुए है। इसकी सबसे बड़ी एक वजह कश्मीर भी है; जिसे लेकर तालिबान, ख़ासकर सत्ता में उसका सहयोगी आतंकवादी संगठन अलक़ायदा ज़हर उगल रहा है।

अमेरिका को लेकर हमेशा यह कहा जाता है कि वह किसी भी देश की मदद से पहले अपने हित देखता है। ऐसे में कश्मीर में आतंकवाद बढऩे के ख़तरे को लेकर यह कहना मुश्किल है कि अमेरिका का नया प्रसाशन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के इस ख़तरे में कश्मीर को लेकर भारत के साथ कितनी मज़बूती से खड़ा होगा? इसका एक कारण राष्ट्रपति जो बाइडन और उप राष्ट्रपति कमला हैरिस का कश्मीर में मानवाधिकार के मुद्दों पर मुखर होकर बोलना है। दूसरे प्रधानमंत्री मोदी की पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मित्रता होने के बावजूद कश्मीर और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के मसले पर ट्रंप कभी खुलकर भारत के पक्ष में खड़े नहीं दिखे। इसका बड़ा कारण यह है कि दक्षिण एशिया में अमेरिका पाकिस्तान को एक सहयोगी के रूप में साथ रखना चाहता है।

अनुच्छेद-370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्महोने के बाद अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विरोध-प्रदर्शन हुए हैं। वहाँ कश्मीर के मानवाधिकार हनन को लेकर पहले ही कुछ गुट प्रदर्शन करते रहे हैं। हालाँकि भारत ने बार-बार यह कहा है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मसला है और इसमें किसी को दख़्ल का कोई अधिकार नहीं। पाकिस्तान में फलने-फूलने वाले आतंकवादी समूह और अब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान और उसके सहयोगी आतंकवादी संगठनों के सत्ता में आने के बाद कश्मीर की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा है। भारत की एक बड़ी चिन्ता चीन का तालिबान के प्रति नरम रूख़ है। पाकिस्तान तो पहले ही तालिबान और आतंकी समूहों को पालता-पोसता रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा से एक बात तो साफ़ हुई है कि प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिका के नये प्रशासन के साथ ट्रंप के समय वाली स्थिति बहाल करने में अभी समय लगेगा। नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका के अख़बारों ने मोदी की यात्रा को बहुत ज़्यादा तरजीह नहीं दी, भले ही वहाँ रह रहे कुछ भारतवंशी मोदी की यात्रा से उत्साहित दिखे। उप राष्ट्रपति कमला हैरिस के साथ बातचीत में भी मोदी ने अन्य विषयों के अलावा आतंकवाद पर भी चर्चा की। आतंकवाद के वैश्विक विषय होने के बावजूद दुर्भाग्य से मोदी-हैरिस की बैठक को ज़्यादा कवरेज नहीं मिली। यहाँ तक कि ख़ुद हैरिस ने मोदी की बैठक का अपने ट्वीट में ज़िक्र नहीं किया।

इससे पहले भारत को तब झटका लगा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्वाड वाशिंगटन पहुँचने से ऐन पहले अमेरिका ने भारत को ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ हुए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में ऑकस रक्षा समझौते में जोडऩे से साफ़ मना कर दिया। वैश्विक कूटनीति के स्तर पर यह भारत के लिए बड़ा झटका था। यह इसलिए भी बहुत आश्चर्यजनक था क्योंकि उस समय मोदी अमेरिका जा रहे थे। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ त्रिपक्षीय सुरक्षा गठबन्धन ऑकस की 15 सितंबर को घोषणा की थी। विशेषज्ञ मानते हैं कि ऑकस के गठन से क्वाड का महत्त्व कम हुआ है।

चीन से साथ भारत के तनाव और अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने और कश्मीर में उसकी तरफ़ से ख़ून-ख़ूराबे की आशंका के बीच भारत का ऑकस से बाहर रहना बड़ा नुक़सान तो है ही। हालाँकि विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने ऑकस से भारत को बाहर रखने पर कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया का नया सुरक्षा समझौता न तो क्वाड से सम्बन्धित है और न ही समझौते के कारण इसके कामकाज पर कोई प्रभाव पड़ेगा। बता दें ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका तीन देशों के बीच एक सुरक्षा गठबन्धन है, जबकि क्वाड एक मुक्त, खुले, पारदर्शी और समावेशी हिन्द प्रशांत के दृष्टिकोण के साथ एक बहुपक्षीय समूह है।

बता दें ऑकस के तहत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बियों का एक बेड़ा अर्थात् परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाँ बनाने की तकनीक मिलेगी। इसके पीछे एक कारण चीन का पिछले कुछ अरसे से दक्षिण चीन सागर में सक्रियता बढ़ाना है। ऑस्ट्रेलिया इसे अपने लिए ख़तरा मानता है। अब ऑकस को वैश्विक कूटनीति के लिहाज़ से दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामता का मुक़ाबला करने के एक कारगर गठबन्धन के रूप में देखा जा रहा है। यदि भारत इससे जुड़ता, तो यह उसके लिए लाभकारी साबित होता। इसमें कोई दो-राय नहीं कि भारत आतंकवाद से अपने स्तर पर निपटने में सक्षम है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिहाज़ से ऑकस में भारत को साथ न रखने के अमेरिका के फ़ैसले से भारत के प्रति अमेरिकी रूख़ का पता तो चलता ही है।

चिन्ता के कारण

 

विशेषज्ञ अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने और कश्मीर पर उसके असर को लेकर अलग-अलग राय रखते हैं। कुछ का कहना कि तालिबान कश्मीर में हस्तक्षेप नहीं करेगा; क्योंकि इस बार तालिबान का रूख़ थोड़ा बदला हुआ है। हालाँकि अन्य का मानना है कि तालिबानी सरकार में इस बार ताक़त को लेकर संघर्ष है। इसका असर यह होगा कि अलक़ायदा जैसे उसके गुट ख़ुराफ़ात कर सकते हैं।

अलक़ायदा के नेता तो कई बार कश्मीर को लेकर भडक़ाऊ बयान दे चुके हैं। लेकिन विशेषज्ञ यह मानते हैं कि पाकिस्तान कश्मीर में छद्म युद्ध जारी रखेगा। कश्मीर में सक्रिय जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन हक़्क़ानी नेटवर्क के नज़दीकी हैं, जो पाकिस्तान की ख़ुराक से अब तालिबान सरकार में शामिल हैं। लिहाज़ा कश्मीर में स्थिति ख़राब करने के बड़े ख़तरे तो हैं ही।

भले कुछ विशेषज्ञ मानते हों कि तालिबान पिछली बार के मुक़ाबले इस बार कुछ बदला हुआ दिखता है। लेकिन जाने-माने सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी इसे ग़लत मानते हैं। चेलानी कहते हैं- ‘संयुक्त राष्ट्र ने जिसे आतंकवादियों की सूची में शामिल किया है, जिसने बुद्ध की मूर्ति तुड़वायी, वो अफ़ग़ानिस्तान का प्रधानमंत्री है। जिस सिराजुद्दीन हक़्क़ानी को गृह मंत्री बनाया गया है। वो कुख्यात हक़्क़ानी नेटवर्क का है और हम कह रहे हैं कि तालिबान अब पहले वाला नहीं है।’

उधर सेना की चिनार कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल डी.पी. पांडे ने कहा- ‘अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान की हुकूमत का कश्मीर पर कोई असर नहीं होगा। कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति पूरे नियंत्रण में है। लिहाज़ा चिन्ता की कोई बात नहीं है। सेना हर किसी से हर तरह की स्थिति से निपटने के लिए तैयार है।’

आरएसएस नेता राम माधव ने हाल में चेताया था कि तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान में आने से भारत के सामने गम्भीर सुरक्षा चुनौतियाँ आ खड़ी हुई हैं। उनके मुताबिक, पाकिस्तान की कुख्यात एजेंसी आईएसआई तालिबान की माई-बाप है और उसके पास पाकिस्तान में प्रशिक्षित 30,000 से अधिक भाड़े के आतंकी हैं। माधव कहते हैं- ‘काबुल की सत्ता में मौज़ूद तालिबान का नेतृत्व अब उन्हें अपने संरक्षक पाक की मदद से कहीं और (कश्मीर में) तैनात करेगा। भारत को गम्भीर सुरक्षा चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा। तालिबान भारत के लिए ख़तरा है।’

जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्महोने के बाद वहाँ राज्य के दो केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में टुकड़े किये गये थे। जम्मू-कश्मीर और लेह। लिहाज़ा इन महीनों में जम्मू-कश्मीर बिना किसी जन प्रतिनिधित्व के हैं, जिससे लोगों की दिक़्क़ते बढ़ी हैं। अफ़सरशाही उनकी समस्यायों का घर-द्वार पर वैसा समाधान नहीं कर सकती, जैसा जनप्रतिनिधि कर सकते हैं।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, मोदी सरकार अगले साल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव करवा सकती है। हालाँकि यह उस समय वहाँ की स्थिति पर निर्भर करेगा। वहाँ परिसीमन का काम अभी चल रहा है और इसके अगले साल की शुरुआत तक पूरा हो जाने की सम्भावना है। परिसीमन को लेकर भी कश्मीर के राजनीतिक दल सवाल उठा रहे हैं और उनका आरोप है कि इसके ज़रिये जम्मू-कश्मीर की वास्तविक जनसांख्यिकीय स्थिति को बदलने की कोशिश की जा रही है। प्रदेश भाजपा भी उम्मीद कर रही है कि अगले साल चुनाव हो सकते हैं। ‘तहलका’ से फोन पर बातचीत में जम्मू-कश्मीर भाजपा अध्यक्ष रवींद्र रैना ने कहा- ‘केंद्र शासित प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने की सम्भावना है। यह काम परिसीमन का काम पूरा होने के बाद ही कराये जाएँगे। आतंकवाद के समर्थक इस केंद्र शासित प्रदेश के लोगों के दुश्मन हैं और उनके साथ क़ानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी।’

केंद्र सरकार के दावों के विपरीत कश्मीर में आतंकी गतिविधियाँ बदस्तूर जारी हैं। वहाँ सेना की बड़ी मात्रा में उपस्थिति है और आतंकियों का काम इससे कठिन हुआ है। लेकिन इसके बावजूद सीमा पार से घुसपैठ करवायी जा रही है। सितंबर के तीसरे हफ़्ते कश्मीर में पकड़े गये हथियार ज़ाहिर करते हैं कि आतंकियों पर पूरी लगाम कसने में अभी वक़्त लगेगा। भारत के लिए बड़ी चिन्ता की बात यह है कि आतंकियों ने अपनी रणनीति में बदलाव करके अब स्थानीय युवाओं पर फोकस किया है और उन्हें आतंकी संगठनों में भर्ती किया जा रहा है।

समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय संगठन यह मान चुके हैं कि कई आतंकी गुटों की पाकिस्तान से दोस्ती है और वह उनकी मदद करता है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि कश्मीरी अवाम में कभी भी अलक़ायदा और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों के प्रति सहानुभूति नहीं रही है। लेकिन कश्मीर की अवाम में इस बात को लेकर चिन्ता ज़रूर है कि यह आतंकी संगठन यदि अपनी गतिविधियाँ बढ़ाते हैं, तो इसकी सबसे बड़ी क़ीमत उन्हें ही चुकानी पड़ेगी। निश्चित ही कश्मीर में आतंकवाद के इन वर्षों में कश्मीरी जनता ने बहुत कुछ खोया है।

कश्मीर में आतंकवाद में अब तक जान गँवाने वाले लोगों में 90 फ़ीसदी से ज़्यादा कश्मीरी मुसलमान हैं। उनके अलावा सेना और अर्धसैनिक बलों के जवान, कश्मीरी पंडित और सिख हैं। ऐसे में उन्हें लगता है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने से कश्मीर में अस्थिरता की स्थिति बन सकती है। कश्मीर में भले अनुच्छेद-370 वापस लेकर राज्य का विशेष दर्जा ख़त्मकरने के मोदी सरकार के फ़ैसले से सख़्त नाराज़गी है; लेकिन कश्मीर की जनता तालिबान के प्रति भी सख़्त नफ़रत का भाव रखती है। इसका एक बड़ा कारण 20 साल पहले अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान राज के दौरान कश्मीरियों पर पड़ी मुसीबतें हैं।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तान कश्मीर के अलगाववादी हुर्रियत नेता सईद अली शाह गिलानी के बाद वहाँ इस जगह को भरने के लिए अपने किसी प्यादे को बिठाने की कोशिश कर रहा है। दरअसल गिलानी के नज़दीकी कुछ नेता जेल में हैं, जिनमें मसर्रत आलम और गिलानी का दामाद अल्ताफ़ शाह फंटूश प्रमुख हैं; जबकि एक और नेता अशरफ़ सहराई की जेल में मौत हो गयी थी। इन तीनों को गिलानी का उत्तराधिकारी माना जाता रहा है। हुर्रियत के नरमपंथी धड़े के नेता मीरवाइज उमर फ़ारूक़ सक्रिय नहीं दिख रहे हैं, जबकि जेकेएलएफ के नेता यासीन मालिक कुछ मामलों में सरकार के निशाने पर हैं। जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तान अब पीओके में हुर्रियत के नेता अब्दुल्ला गिलानी को आगे करने की साज़िश रच रहा है।

जानकारों का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद कश्मीर में विदेशी आतंकियों की तादाद में इज़ाफ़ा हुआ है। एक दशक बाद जम्‍मू-कश्‍मीर में पहली बार विदेशी आतंकवादियों की संख्या में यह इज़ाफ़ा देखा गया है। कुछ रिपोट्र्स में यह दावा किया गया है। तालिबान की जीत के बाद यहाँ पहले से सक्रिय आतंकी संगठनों को ताक़त मिली है। जानकार मानते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने से जम्मू-कश्मीर निश्चित ही एक संवेदनशील इलाक़ा हो गया है। तालिबान के आने न कश्मीर ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया पर असर पड़ेगा।

रिर्पोटस के मुताबिक, अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के ख़िलाफ़ कुछ ऐसे आतंकवादी संगठनों ने तालिबान की मदद की है, जिनके तार सीधे जम्‍मू-कश्‍मीर से जुड़ते हैं। लश्‍कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्‍मद जैसे आतंकवादी संगठनों ने तालिबान की मदद की है। ज़ाहिर है इस सहयोग के बदले यह आतंकी संगठन तालिबान से मदद की उम्मीद करते होंगे। साफ़ है कि जम्मू-कश्मीर पर तालिबान का बड़ा रोल हो सकता है। भले तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के समक्ष कहा है कि वह अपनी धरती का उपयोग अन्‍य देशों के ख़िलाफ़ नहीं होने देगा, ज़मानी हक़ीक़त समय में ही पता चलेगी।

भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी आशंका ज़ाहिर करते हैं। स्वामी का कहना है- ‘अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भारत के लिए एक नया ख़तरा पैदा हो गया है। अब सरकार के गम्भीर होने का समय है। पाकिस्तान जल्द ही तालिबानीकृत अफ़ग़ानिस्तान का हिस्सा बन जाएगा।’

पाकिस्तान की हाय-तौबा

पाकिस्तान इस ताक में है कि आतंकी गुटों का कश्मीर के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा सके। याद रहे अलक़ायदा ने अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान की जीत को यूरोप और पूर्वी एशिया में जनता के लिए अमेरिकी आधिपत्य की बेडिय़ों से मुक्त होने का अवसर बताया था। उसने कश्मीर को इस्लाम के दुश्मनों के चंगुल से मुक्ति दिलाने की बात कही है। हालाँकि अलक़ायदा ने चीन के शिनजियांग में मानवाधिकारों के हनन के बारे में एक शब्द नहीं बोला। यह हैरानी की बात है कि दुनिया भर के मुस्लिम क़ैदियों की बात करने वाले अलक़ायदा को उइगर मुसलमानों की याद नहीं आयी।

बता दें वहाँ उइगर मुसलमानों के मानवाधिकार हनन की ख़बरें अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में हैं। कारण साफ़ है कि चीन तालिबान के प्रति नरम रूख़ अपनाये हुए है। तालिबान और सहयोगी आतंकी गुटों को चीन से आर्थिक मदद और प्रोत्साहन मिल रहा है। विशेषज्ञों का कहना कि बदले में चीन अफ़ग़ानिस्तान के संसाधनों का इस्तेमाल अपने लिए करना चाहता है, जिसे एक ख़तरनाक संकेत माना जाएगा। अफ़ग़ानिस्तान में लीथियम का भण्डार है और वह खुले तौर पर अफ़ग़ानिस्तान में बड़े निवेश की योजना बना रहा है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को वह ईरान तक ले जाना चाहता है। अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान दोनों का सहयोग उसका काम आसान कर देगा। ऐसे में कश्मीर को लेकर भारत की चिन्ताएँ वाजिब हैं।

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान कश्मीर को लेकर और भडक़ाऊ बातें कहने लगा है। यह ख़तरा बार-बार जताया जाता रहा है कि पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पसन्दीदा सरकार बनने के बाद आतंकवादी समूहों को वहाँ से संचालित करवा सकता है। यही कारण है कि भारत तालिबान पर दबाव बनाने के लिए बार-बार यह दोहरा रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल भारत के ख़िलाफ़ आतंकी गुटों को पनाह या ट्रेनिंग देने के लिए नहीं होना चाहिए।

कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के इरादे वहाँ के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में प्रधानमंत्री मोदी के सम्बोधन से ऐन पहले अपने सम्बोधन में सिर्फ़ कश्मीर के मुद्दे को प्रमुखता से उठाने से ज़ाहिर हो जाते हैं। यूएनजीए में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अपने सम्बोधन में 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के भारत सरकार के फ़ैसले और पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के निधन के बारे में भी बात की, जिससे उनके इरादे ज़ाहिर होते हैं। यही नहीं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने हाल ही में एक साक्षात्कार में तालिबान को वैश्विक मान्यता देने की अपील की थी, जबकि पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी संयुक्त राष्ट्र महासभा में तालिबान राज को मान्यता देने की वकालत कर चुके हैं। इमरान ख़ान ने यूएनजीए में यह भी कहा कि अमेरिका में 9/11 हमलों के बाद दुनिया भर के दक्षिणपंथियों (राइट विंग) ने मुसलमानों पर हमले शुरू कर दिये। भारत में इसका सबसे ज़्यादा असर है। वहाँ आरएसएस और भाजपा मुस्लिमों को निशाना बना रहे हैं। कश्मीर में एकतरफ़ा क़दम उठाकर भारत ने जबरन क़ब्ज़ा किया है। मीडिया और इंटरनेट पर पाबंदी है। जनसांख्यिकीय संरचना (डेमोग्राफिक स्ट्रक्चर) को बदला जा रहा है। बहुसंख्यक को अल्पसंख्यक में बदला जा रहा है। यह दुर्भाग्य है कि दुनिया चुनिंदा प्रतिक्रिया ही देती है। यह दोहरे मापदण्ड हैं। सैयद अली शाह गिलानी के परिजनों के साथ अन्याय हुआ। मैं इस सभा से माँग करता हूँ कि गिलानी के परिवार को उनका अन्तिम संस्कार इस्लामी तरीक़े से करने की मंज़ूरी दी जाए।’

हालाँकि इमरान ख़ान के सम्बोधन के बाद संयुक्त राष्ट्र में भारत की प्रथम सचिव स्नेहा दुबे ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में साफ़ कहा कि पाकिस्तान के नेता द्वारा भारत के आंतरिक मामलों को विश्व मंच पर लाने और झूठ फैलाकर इस प्रतिष्ठित मंच की छवि ख़राब करने का एक और प्रयास कर रहे हैं। इस तरह के बयान देने वालों और झूठ बोलने वालों की सामूहिक तौर पर निंदा की जानी चाहिए। ऐसे लोग अपनी मानसिकता के कारण सहानुभूति के पात्र हैं।

दुबे ने कहा- ‘हम सुनते आ रहे हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद का शिकार है। यह वह देश है, जिसने ख़ुद आग लगायी है और आग बुझाने वाले के रूप में ख़ुद को पेश करता है। पाकिस्तान आतंकवादियों को इस उम्मीद में पालता है कि वे केवल अपने पड़ोसियों को नुक़सान पहुँचाएँगे। क्षेत्र और वास्तव में पूरी दुनिया को उनकी नीतियों के कारण नुक़सान उठाना पड़ा है। दूसरी ओर वे अपने देश में साम्प्रदायिक हिंसा को आतंकवादी कृत्यों के रूप में छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। समूचे केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ हमेशा भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा थे; हैं; और रहेंगे। इसमें वे क्षेत्र भी शामिल हैं, जो पाकिस्तान के क़ब्ज़े में अवैध रूप से हैं। हम पाकिस्तान से उसके अवैध क़ब्ज़े वाले सभी क्षेत्रों को तुरन्त ख़ाली करने का आह्वान करते हैं।’

अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका से हर कोई वाक़िफ़ है। तालिबान को मदद देने के अलावा पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान की नयी सरकार में हक़्क़ानी नेटवर्क को ताक़त देने के लिए सक्रिय है। चीन भी तालिबान के ख़िलाफ़ प्रतिबन्ध हटाने का आह्वान कर चुका है। चीन ने तो अमेरिका से अनुरोध किया कि वह युद्धग्रस्त देश के रोके गये विदेशी मुद्रा भण्डार को समूह पर राजनीतिक दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं करे।

संयुक्त राष्ट्र और कश्मीर

प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह अमेरिका यात्रा के दौरान संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर भी सवाल उठाया था, उसके पीछे भी एक बड़ा कारण कश्मीर पर यूएन का हालिया बयान था, जिससे भारत नाराज़ था। दरअसल मोदी की अमेरिका यात्रा से कुछ ही दिन पहले संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बैचलेट ने भारत में ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम (यूएपीए) के इस्तेमाल और जम्मू-कश्मीर में बार-बार अस्थायी रूप से संचार सेवाओं पर पाबन्दी लगाये जाने को चिन्ताजनक बताया था। बता दें जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् के 48वें सत्र में उद्घाटन वक़्तव्य में बैचलेट ने यह बात कही थी। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का मुक़ाबला करने और विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के प्रयासों को तो स्वीकार किया; लेकिन कहा कि इस तरह के प्रतिबन्धात्मक उपायों के परिणामस्वरूप मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है और भविष्य में तनाव और असन्तोष बढ़ सकता है।

बैचलेट ने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक सभाओं और संचार सेवाओं पर बार-बार पाबन्दी लगाये जाने का सिलसिला जारी है, जबकि सैकड़ों लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए हिरासत में हैं। साथ ही पत्रकारों को लगातार बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ता है। पूरे भारत में ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम का उपयोग चिन्ताजनक है। इसके जम्मू-कश्मीर में सबसे अधिक मामले सामने आये हैं। हालाँकि भारत ने बैचलेट की टिप्पणियों पर सख़्त असहमति जतायी है।

 

“जो देश आतंकवाद को राजनीतिक औज़ार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें यह समझना होगा कि आतंकवाद उनके लिए भी उतना ही बड़ा ख़तरा है, जितना कि वह दुनिया के लिए है। यह तय करना होगा कि अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद और आतंकी हमलों के लिए न हो पाये। इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि अफ़ग़ानिस्तान का इस्तेमाल कोई देश अपने स्वार्थ के लिए नहीं कर सके। इस वक़्त अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों को मदद की ज़रूरत है और इसमें हमें अपनी ज़िम्मेदारी निभानी ही होगी। हमारे समंदर भी हमारी साझी विरासत हैं। ध्यान रखना होगा कि ओशन रिर्सोसेज (समुद्री संसाधनों) का हम यूज (सदुपयोग) करें, एब्यूज (दुरुपयोग) नहीं। समंदर इंटरनेशन ट्रेड (अंतरराष्ट्रीय व्यापार) की लाइफलाइन (जीवन-रेखा) हैं। इन्हें एक्सपेंशन (विस्तार) और एक्सक्लूजन (काटने) से बचाना होगा। नियमों का पालन हो। इसके लिए दुनिया को एक साथ ‌आवाज़ उठानी होगी।”

नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री (यूएनजीए में अपने सम्बोधन में)

 

“अब गेंद भारत के पाले में है। भारत को कश्मीर में उठाये गये क़दमों को वापस लेना होगा। कश्मीर में बर्बरता और डेमोग्राफिक चेंज (जनसांख्यिकीय बदलाव) बन्द करना होगा। भारत सैन्य ताक़त बढ़ा रहा है। इससे इस क्षेत्र का सैन्य सन्तुलन बिगड़ रहा है। दोनों देशों के पास न्यूक्लियर (परमाणु) हथियार हैं।”

इमरान ख़ान

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री (यूएनजीए में अपने सम्बोधन में)

 

कश्मीर में आतंकी

सेना के मुताबिक, कश्मीर में अभी भी 70 से 80 विदेशी आतंकी मौज़ूद हैं। उधर पिछले क़रीब तीन साल में जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच 400 मुठभेड़ हुई हैं। यह आंकड़े 4 अगस्त को संसद में सरकार की और से बताये गये थे। इन मुठभेड़ों में 85 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गये, जबकि 630 आतंकियों को मार गिराया गया। नागरिकों के मरने की संख्या अलग से है। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक लिखित जवाब में जानकारी दी कि मई, 2018 से जून, 2021 तक जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच 400 मुठभेड़ हुईं। इस साल अभी तक नौ महीनों में सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में 108 आतंकियों को मार गिराया है। इससे ज़ाहिर होता है कि कश्मीर में आतंक अभी ज़िन्दा है। देखा जाए तो कश्मीर में एक बार फिर से हमलों में तेज़ी आयी है। सितंबर में आतंकियों की तरफ़ से लगातार हमलों को बढ़ा दिया गया है। पिछले दिनों में आतंकियों ने कश्मीर में चार हमले किये हैं।

 

अफ़ग़ानिस्तान ख़ुद दोराहे पर

अफ़ग़ानिस्तान तालिबान के आने के दोराहे पर खड़ा दिख रहा है। देश की जनता जहाँ भुखमरी झेलने के मुहाने पर खड़ी है, वहीं दूसरी तरफ़ तालिबान की क्रूरता फिर शुरू हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र ने हाल में कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में लोगों को रोटी तक के लाले पडऩे की नौबत आ सकती है। अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के विशेष अधिकारी और मानवाधिकार समन्वयक रमीज अकबारोव ने हाल में काबुल में यह कहकर दुनिया भर के लोगों को चिन्ता में डाल दिया कि अफ़ग़ानिस्तान में विश्व खाद्य कार्यक्रम (वल्र्ड फूड प्रोग्राम) के पास मौज़ूद खाद्य स्टॉक सितंबर के आख़िर तक ख़त्महो जाएगा। इसके बाद वहाँ लोगों को ज़रूरी खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना नामुमकिन होगा। इसका असर यह हो सकता है कि पाँच साल की कम उम्र के आधे बच्चे अत्यंत कुपोषित की श्रेणी में चले जाएँगे। और तो और अफ़ग़ानिस्तान की एक-तिहाई वयस्क आबादी को पर्याप्त खाना तक नसीब नहीं हो सकेगा। निश्चित ही यह चिन्ताजनक स्थिति है। यह भी रिपोट्र्स हैं कि काबुल में लोग भुखमरी बचने के लिए अपने बच्चे बेचने को मजबूर हो चुके हैं।

अफ़ग़ानिस्तान में काम-धन्धे बन्द हो चुके हैं। जीडीपी बेहद ख़राब हालत में पहुँच चुकी है। ऊपर से देश के सम्पत्ति पहले ही विदेशी संस्थाओं और अमेरिका ने फ्रीज कर दी है। यूएन अफ़ग़ानिस्तान में भुखमरी से लोगों के मरने की बात कह चुका है। ऐसे में काबुल में ग़रीब परिवार अपने बच्चे बेचने को मजबूर हैं। इन घटनाओं के वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। भुखमरी की इन चिन्ताओं के बीच दूसरी बुरी ख़बर यह है कि तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में लोगों पर पुराने दिनों की तरह ज़ुल्म ढाना शुरू कर दिया है। तालिबान ने शरिया क़ानूनों के तहत लोगों का बर्बर सज़ा देना शुरू कर दिया है। अभी 26 सितंबर को हेरात में एक शख़्स को तालिबान ने मारकर सार्वजनिक तौर पर खम्भे पर लटका दिया। इस घटना का वीडियो सामने आया, जिसे अफ़ग़ानिस्तान के एक पत्रकार हिजबुल्लाह ख़ान ने ट्वीट किया। ट्वीट में ख़ान ने लिखा- ‘तालिबान ने शहरों के अन्दर सार्वजनिक तौर पर सज़ा-ए-मौत देना शुरू कर दिया है।’ यह हेरात का मामला है। तालिबान के संस्थापकों में शामिल मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी ने तो यहाँ तक कह दिया कि अफ़ग़ानिस्तान में फाँसी की सज़ा देने, लोगों के हाथ काटने जैसी क्रूर सज़ाएँ जारी रहेंगी। तुराबी ने एक इंटरव्यू में कहा कि वह ग़लती करने वालों को पुराने तरीक़े से ही सज़ा देगा। इसमें महिलाओं को पत्थर मारना और चोरी करने पर हाथ काट देना शामिल है। तुराबी ने कहा कि ग़लती करने वालों की हत्या करने और अंग-भंग किये जाने का दौर जल्द लौटेगा। लेकिन वह सार्वजनिक जगहों पर किसी क़ैदी या आरोपी को फाँसी नहीं देगा, बल्कि क़ैदियों को फाँसी अब जेल में ही दी जाएगी। पहले तालिबान किसी स्टेडियम में या फिर सडक़ों पर किसी शख़्स को फाँसी देकर उसकी लाश को चौराहों पर लटका देता था। लेकिन अब तालिबान उसे सार्वजनिक नहीं करेगा। जिन क़ैदियों को सज़ा देनी होगी, उन्हें चुपचाप ही सज़ा दे दी जाएगी।

बदलते मोहरे

लचर प्रदर्शन के कारण मुख्यमंत्री बदलने को मजबूर भाजपा

भाजपा अब तक कांग्रेस की सरकारों को गिराकर अपनी सरकारें बना रही थी। अब अपनी ही सरकारों में मुख्यमंत्रियों को ताश के पत्तों की तरह फेंट रही है। विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा की इस कसरत ने कांग्रेस, टीएमसी और बाक़ी विपक्ष को यह अवसर दे दिया है कि वह भाजपा के मुख्यमंत्रियों को बदले जाने की वजह उनकी नाकामी को बताये।

उधर भाजपा के भीतर नेताओं में अपने भविष्य को लेकर अस्थिरता की भावना पैदा हो चुकी है। वरिष्ठ नेताओं को लगने लगा है कि उन्हें भी आडवाणी, जोशी और अन्य की तरह मार्गदर्शक मण्डल में बैठा दिया जाएगा। भाजपा में अब ऐसे नेताओं का दायरा बढ़ता जा रहा है, जो यह महसूस करने लगे हैं कि उनकी हैसियत सिर्फ़ मोहरों की रह गयी है। भाजपा में इस उठा-पटक का क्या असर है?

यह केंद्रीय मंत्री और आरएसएस के नज़दीकी नितिन गडकरी के जयपुर वाले बयान से सहज ही समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा- ‘आज के हालात में हर कोई दु:खी है। कोई मंत्री न बनने से दु:खी है, तो मुख्यमंत्री। वे इसलिए दु:खी हैं कि पता नहीं कब हटा दिये जाएँगे।’ बात मज़ाक़ में कही गयी थी। लेकिन राजनीतिक तंज़ ऐसे ही मुहावरे बनाकर कसे जाते हैं।

इसी साल में अब तक भाजपा अपने चार मुख्यमंत्रियों को ठिकाने लगा चुकी है। जनता में सन्देश जा रहा है कि यह मुख्यमंत्री नाकाम हो चुके थे और पार्टी को चुनाव जिताने की स्थिति में नहीं थे, लिहाज़ा उन्हें बदल दिया गया। मुख्यमंत्रियों में अपनी कुर्सी बचाने की चिन्ता है। भाजपा अपने मुख्यमंत्रियों को किस तत्परता से फेंट रही है? इसका बड़ा उदहारण उत्तराखण्ड है, जहाँ पार्टी ने तीन महीने में ही दो मुख्यमंत्री बदल दिये। इससे भाजपा शासित राज्यों में विकास के कामों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है और पार्टी के बीच ही अस्थिरता जैसी स्थिति बन चुकी है। कर्नाटक में जुलाई में ताक़तवर लिंगायत नेता बी.एस. येदियुरप्पा को कुर्सी छोडऩी पड़ी।

अपना नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा कि इन फ़ैसलों से पार्टी को नुक़सान उठाना पड़ सकता है। उनके मुताबिक, ऐसा करने से पार्टी नेतृत्व अपनी असुरक्षा की भावना को उजागर कर रहा है, जो उसके लिए घातक भी साबित हो सकता है। उधर इस विषय पर ‘तहलका’ से बातचीत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा- ‘यह साफ़ हो गया है कि राज्यों में भाजपा की सरकारें फ्लॉप (नाकाम) हैं। लोगों में उनकी नाकामी से निराशा है। लेकिन इसमें एक और बात भी है। केंद्र की भाजपा सरकार अपनी नाकामियाँ छिपाने का ठीकरा भी अपने मुख्यमंत्रियों पर ही फोड़ रही है, ताकि लोगों का उनसे ध्यान हटाया जा सके। केंद्रीय मंत्रिमण्डल के हाल के फेरबदल में भी यही किया गया था। यह सन्देश देने की कोशिश की गयी कि ख़राब प्रदर्शन वाले मंत्री हटा दिये गये। जबकि कोविड, महँगाई और अन्य मोर्चों पर सरकार की नाकामी की सीधी ज़िम्मेदारी तो प्रधानमंत्री (पीएमओ) की है, जहाँ से सब कुछ संचालित होता है।’

गुजरात में भाजपा ने जिस तरह भूपेंद्र यादव की नयी सरकार के गठन में विजय रूपाणी के मंत्रिमण्डल के सभी मंत्रियों की छुट्टी करने जैसा प्रयोग किया, उससे ज़ाहिर होता है कि मोदी-शाह के गृह राज्य में लोगों की पिछली सरकार और मंत्रियों से कितनी नाराज़गी रही होगी। अन्यथा ऐसा कभी नहीं होता कि नये मुख्यमंत्री को नया मंत्रिमण्डल देते हुए पुराने सभी मंत्रियों को बाहर कर दिया जाए। इससे तो यही संकेत जाता है कि इन सभी मंत्रियों का प्रदर्शन ख़राब रहा। लेकिन प्रदेशों में मुख्यमंत्री बदलने के पीछे भाजपा आलाकमान का एक और सन्देश भी अपने संगठन के लोगों को है। वह यह कि ‘पार्टी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही सर्वशक्तिमान हैं।’

मुख्यमंत्री बदलने का संकेत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भी है। बंगाल के विधानसभा चुनाव में मिली हार के तुरन्त बाद हुए उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में भाजपा की हार के बाद सर्वशक्तिमान नेतृत्व ने जिस मुख्यमंत्री को सबसे पहले बदलने की क़वायद की थी, वह योगी ही थे। यह क़वायद सफल होती, उससे पहले ही आरएसएस (संघ) का बयान आ गया कि उत्तर प्रदेश के अगले चुनाव भाजपा योगी के ही नेतृत्व में लड़ेगी। इस दौरान योगी भी दिल्ली में तलब किये गये या कहें कि ख़ुद चले गये थे और शीर्ष नेतृत्व से मिले। बहुत-से लोग कहते हैं कि यह कोई बहुत सम्मानजनक मुलाक़ातें नहीं थीं। लगभग उन्हीं दिनों में अपने प्रदेश के कुछ विकास विज्ञापनों और होर्डिंग्स में योगी सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगाने से परहेज़ किया था। बहुतों को योगी सरकार का यह फ़ैसला दिलचस्प और कुछ को हैरानी भरा लगा था। कहते हैं भाजपा शीर्ष नेतृत्व में इसे लेकर भी योगी के प्रति बहुत नाराज़गी थी। योगी को बहुत सारे राजनीतिक जानकार नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री की कुर्सी को चुनौती मानते हैं; भले योगी एक प्रधानमंत्री और पार्टी के सर्वोच्च नेता के रूप में मोदी के प्रति पूरा सम्मान दिखाते हैं। राजनीतिक गलियारों में यह कहा जाने लगा है कि योगी की पार्टी के भीतर ही बहुत-सी दुश्वारियाँ हैं।

बहुत दिलचस्प बात तो यह है कि भाजपा के कट्टर हिन्दुत्व समर्थकों वाली टोलियों के बीच योगी भी मोदी की तरह ही लोकप्रिय हैं। कई लोग तो उन्हें मोदी से भी ज़्यादा पसन्द करते हैं। पार्टी के बीच योगी का एक अलग समर्थक वर्ग बन चुका है, जो उनके भाषणों के तरीक़े और धर्म आधारित कटाक्षों का दीवाना है।

यह वही वर्ग है, जो सोशल मीडिया पर अपने सन्देशों में जमकर धर्म आधारित ज़हर उगलता है और योगी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित करता है। इसमें एक सन्देश यह भी है- ‘देश का अगला प्रधानमंत्री मर्यादा पुरषोतम श्रीराम की जन्मभूमि से।’

ज़ाहिर है योगी के यह समर्थक प्रधानमंत्री के उत्तर प्रदेश के वाराणसी से चुनाव जीतकर सांसद बनने के बावजूद उन्हें राज्य का नहीं मानते। दिलचस्प बात यह भी है कि सोशल मीडिया का ही एक वर्ग योगी को भी बाहरी बताता है। इस वर्ग के सन्देश कहते हैं कि योगी तो उत्तराखण्ड के हैं। अब सोशल मीडिया के इस वर्ग के प्रचार के पीछे कौन है? यह तो राम ही जानें। लेकिन यह तय है कि दोनों की ही तरफ़दारी करने वाले भाजपा के ही लोग हैं। बीच में इसी सोशल मीडिया पर यह चर्चा भी ख़ूब चली कि केंद्र उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में विभाजित करना चाहता है। कहा जाता है कि यह प्रचार योगी को दबाव में लाने के लिए था। लब्बोलुआब यह है कि भाजपा के भीतर ही सौ लड़ाइयाँ और दाँव-पेच हैं। बाहर से भले कुछ भी दिखे, मगर भाजपा के भीतर भी एक छद्म युद्ध लड़ा जा रहा है, जिसका औज़ार में सोशल मीडिया है।

हाल के महीनों में योगी सरकार ने अपने चार साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को लेकर जमकर प्रचार किया है। यह किसी भी भाजपा शासित राज्य के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है। हालाँकि योगी सरकार की कई मोर्चों पर नाकामियों का ज़िक्र भी मीडिया में ख़ूब हुआ है- क़ानून व्यवस्था से लेकर कोरोना वायरस के कहर के दौरान स्वास्थ्य कुप्रबन्धन, श्मशानों और क़ब्रिस्तानों में लम्बी-लम्बी क़तारों और दुष्कर्म की घटनाओं तक। इसे लेकर भाजपा के ही कुछ बड़े नेता गाहे-बगाहे बोलते रहे हैं। योगी का यह प्रचार सिर्फ़ विधानसभा चुनाव से पहले अपनी विकास पुरुष की छवि गढऩे भर के लिए नहीं है, भाजपा के अंतर्विरोधों से निपटने के लिए भी है। भाजपा में यह पहला मौक़ा नहीं है, जब पहली बार जीते विधायक को मुख्यमंत्री बनाया गया है। हिमाचल में सन् 1997 में पहला चुनाव जीतने के बाद प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालाँकि वह इससे पहले तीन बार सांसद और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके थे और उनके पास संगठन के अलावा प्रशासनिक अनुभव था। कल्पना करें कि यदि भाजपा उनके बेटे अनुराग ठाकुर को अगले साल के विधानसभा चुनाव के बाद हिमाचल में मुख्यमंत्री का ज़िम्मा देना चाहेगी, तो अनुराग भी पहली बार विधायक बनकर ही मुख्यमंत्री हो जाएँगे। हालाँकि पिता की तरह वह भी चार बार सांसद बनने के अलावा दो बार मंत्री बन चुके हैं। लिहाज़ा उनका प्रशासनिक अनुभव तो है ही।

उत्तर प्रदेश में सन् 2017 के विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ पहली बार विधायक बनकर ही मुख्यमंत्री बन गये थे। उससे पहले वह पाँच बार सांसद रहे थे। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर पहली पारी में जब मुख्यमंत्री बने, तो वह विधायक भी पहली बार बने थे। कुछ पुरानी बात करें, तो गुजरात में सन् 2001 में नरेंद्र मोदी को जब मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब तो वह विधायक भी नहीं थे। उसके बाद वह दो बार और मुख्यमंत्री बने। आज वह दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं। ऐसे प्रयोग कांग्रेस में भी हुए हैं; लेकिन भाजपा ने निश्चित ही यह प्रयोग ज़्यादा किये हैं। इसके पीछे उसका मक़सद भविष्य का नेतृत्व तैयार करने का रहा है।  ख़ात बात यह है कि इसमें आरएसएस की भी बड़ी भूमिका रही है।

 

भाजपा में भी अब आलाकमान

कांग्रेस संगठन से जुड़ा एक शब्द मशहूर रहा है- ‘आलाकमान’। भाजपा दशकों तक इस स्थिति से बचती रही। दूसरे भाजपा में उच्चतम स्तर की ताक़त कांग्रेस के गाँधी परिवार की तरह किसी परिवार के पास नहीं थी। वहाँ भाजपा के अध्यक्ष की अपनी हैसियत थी और प्रधानमंत्री की अपनी। लेकिन अब भाजपा में जिस तरह सारी ताक़त प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के आसपास सिमट गयी है, उसने उन्हें भाजपा की आलाकमान की हैसियत दे दी है। उनकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी भाजपा में नहीं हिलता; यह भाजपा के ही लोग अब खुलकर कहने लगे हैं। मोदी-शाह के अलावा तीसरी किसी ताक़त की भाजपा में यदि चलती है, तो वह आरएसएस है। याद करिए, जब प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा का सन् 2019 का चुनाव जीतने के बाद पार्टी के लोगों को सम्बोधित किया था। मोदी ने सांसदों को सलाह दी थी कि वे बयानबाज़ी से बचें। यह एक तरह से उन्हें सुझाव था कि यह काम आलाकमान का है, आपका नहीं। वही तय करेंगे कि क्या और कितना बोलना है? पिछले कुछ वर्षों पर नज़र डालिए, भाजपा का कोई मंत्री आधिकारिक पत्रकार वार्ता (प्रेस कॉन्फ्रेंस) को छोडक़र कभी चलते-फिरते पत्रकारों से बात करने में हिचकता है। पहले ऐसा कभी नहीं होता था। इसे सत्ता का वैसा ही केंद्रीयकरण कह सकते हैं, जैसा इंदिरा गाँधी के ज़माने में था। इसके नुक़सान बाद में कांग्रेस को उठाने पड़े। उसका संगठन लचर और पंगु हो गया; क्योंकि सरकार और संगठन एक ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द सिमट गये। मुख्यमंत्री बदलने की भाजपा की रफ़्तार मोदी-शाह की जोड़ी के समय में बहुत तेज़ हुई है। देखें तो इन दोनों के समय में अब तक 13 राज्यों में भाजपा के 19 मुख्यमंत्री बने हैं। इनमें योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्व सरमा, सर्वानंद सोनोवाल, देवेंद्र फडऩवीस, त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत, पुष्कर सिंह धामी, जयराम ठाकुर, बिप्लब देब, मनोहर लाल खट्टर, रघुबर दास, लक्ष्मीकांत पारसेकर, प्रमोद सावंत, बीरेन सिंह, पेमा खांडू, आनंदी बेन पटेल, विजय रूपाणी, भूपेंद्र पटेल, बासवराज बोम्मई शामिल हैं। इन 19 में से छ: को पार्टी नेतृत्व हटा चुका है।

“आज के हालात में हर कोई दु:खी है। कोई मंत्री न बनने से दु:खी है, तो मुख्यमंत्री इसलिए दु:खी हैं कि पता नहीं कब हटा दिये जाएँगे। समस्या सबके सामने है। पार्टी में है। पार्टी के बाहर है। परिवार में है। आज़ू-बाज़ू में है।’’

नितिन गडकरी

केंद्रीय मंत्री (जयपुर के एक कार्यक्रम में)

 

अब किसकी बारी?

भाजपा में आजकल बहुत दिलचस्प शर्तें लग रही हैं। वैसे भाजपा से बाहर भी लग रही हैं। शर्त यह कि ‘बताओ अब भाजपा के किस मुख्यमंत्री का नंबर लगने वाला है?’ यानी अब मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने की बारी किसकी है? भाजपा ने जिस तरीक़े और रफ़्तार से मुख्यमंत्री बदले हैं, वह आम जनता में भी दिलचस्पी जगा रहा है। चर्चाओं के मुताबिक, राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को किनारे कर दिया गया है और भाजपा शायद ही उन्हें अगली बार मुख्यमंत्री बनाए। जहाँ तक मुख्यमंत्रियों की बात है, रूपाणी के बाद अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बिस्तर गोल हो सकता है। पार्टी मानती है कि इस बार उनका कार्यकाल बहुत ख़राब रहा है और उनके नेतृत्व में चुनाव में जाने पर पार्टी की लुटिया डूबने की पूरी सम्भावना है। पार्टी वहाँ भी कोई नया चेहरा ला सकती है। हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के प्रदर्शन पर भी ढेरों सवाल हैं। कहा जा रहा है कि बहुत विवादित न होने के बावजूद एक मुख्यमंत्री के रूप में जयराम सरकार की छाप छोडऩे में बुरी तरह नाकाम रहे हैं। यहाँ तक कि उनके अपने गृह ज़िले मंडी में ही लोग ज़्यादा ख़ुश नहीं हैं। इस पहाड़ी सूबे में अगले साल के आख़िर में चुनाव होने हैं। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर पिछले चुनाव में ही भाजपा को बहुमत नहीं दिला पाये थे और भाजपा को सरकार बनाने के लिए दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) से गठबन्धन करना पड़ा था। खट्टर को दूसरी पारी मिल गयी; लेकिन किसान आन्दोलन से जिस ख़राब तरीक़े से खट्टर ने निपटा है, उससे हरियाणा भाजपा में बहुत बेचैनी है। बहुत सम्भावना कि खट्टर का पत्ता भी पार्टी नेतृत्व काट दे। हरियाणा में वैसे विधानसभा चुनाव अक्टूबर, 2024 होने हैं, लिहाज़ा हो सकता है कि खट्टर को अभी कुछ वक़्त और मिल जाए।